परिवहन
(TRANSPORT)
किसी
भी देश के आर्थिक विकास में परिवहन के साधनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कृषि और
उद्योग को किसी देश की अर्थव्यवस्था का शरीर माना जाये तो परिवहन इसकी नसें हैं।
वास्तव में, कोई भी अर्थव्यवस्था एक कुशल यातायात प्रणाली के बिना नहीं चल सकती
परिवहन का वर्गीकरण (Classification of Transport)
परिवहन का वर्गीकरण मुख्यतः तीन वर्गों में किया जा सकता है जैसाकि नीचे चार्ट में दर्शाया गया है-
I.
थल परिवहन (LAND TRANSPORT)
1. सड़क परिवहन (Road Transport)
भूतल
पर सड़क परिवहन सबसे प्राचीन एवं निरन्तर विकासमान साधन रहा है। इसे मानव, पशुओं, पशुवाहनों
एवं यन्त्रचालित वाहनों ने सड़कों के माध्यम से गतिशीलता की ओर निरन्तर विकसित
किया है।
(1) मनुष्य- मनुष्य ही पहला भार ढोने वाला
प्राणी रहा है। आज भी स्टेशनों, भूमध्यरेखीय वनों एवं पहाड़ी में मनुष्य बोझा ढोने का प्रमुख
साधन है। एक मनुष्य केवल 18 किलो से 40 किलो तक बोझ लादकर ले जा सकता है किन्तु आज मनुष्य का उपयोग वही
होता है जहाँ अन्य साधन उपलब्ध नहीं होते हैं।
(2) पशु-मानव ने विकास के साथ-साथ पशुओं को भार ढोने
का माध्यम बनाया जो कि बीसी सदी के प्रारम्भ तक सभी देशों में
चलता रहा। आज भी इसका घोड़ा, गधा, ऊँट व बैलगाड़ी के रूप में अल्पविकसित देशों या
प्रदेशों में प्रयोग होता है। प्रमुख भार ढोने वाले पशु घोड़ा, टटू, गधा, खच्चर,
ऊँट व बैल रहे हैं। पहाड़ी भागों में लामा, याक आदि। अब अधिकांश पशुओं को रथों या गाड़ी
में जोतकर उनसे पाँच से दस गुना अधिक वजन ढोया जाता है। विकासशील देशों की सीमा की
चौकसी के लिए व सामान पहुँचाने में भी इसका उपयोग कहीं-कहीं होता है। मूलतः सड़क परिवहन
के साधन इस प्रकार हैं-(1) सिर पर बोझा, (2) लद्दू पशु. (3) बैलगाड़ी, (4) मोटर ठेला,
(5) अन्य साधन।
एक
घोड़ा या पशु, एक यात्री या 50 से 100 किग्रा सामान ले जा सकता है, जबकि उसी को एक
वाहन में जोतकर उससे 250 से 800 किग्रा तक वजन बैलगाड़ी, घोड़ा गाड़ी या ऊँट गाड़ी
आदि में ढोया जा सकता है। अब इनका उपयोग सभी जगह तेजी से घटता जा रहा है।
विशेष
प्रतिकूल प्रदेशों में विशेष पशु बोझा ढोते हैं; जैसे-ऊँचे पहाड़ी भागों में लामा,
अल्पाका, व याक; ध्रुवीय प्रदेशों में कुत्ते, रेण्डीयर व केरीबू आदि।
सड़क परिवहन का विकास
आदिकाल
से ही भारत में परिवहन पथों में सड़कों का महत्व अधिक रहा है। यह परिवहन के अन्य सभी
साधनों का आधार स्तम्भ है तथा रेल, जहाज एवं विमान की पूरक है। सड़क परिवहन के सर्वोपरिगुण
उसकी लचक, सेवा का व्यापक क्षेत्र, माल की सुरक्षा, समय बचत और बहुमुखी एवं सस्ती सेवा
का होना है।
भारत
में सड़कों की व्यवस्था बहुत प्राचीन है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में की गई खुदाई से
पता लगा है कि 5,000 वर्ष पूर्व भी भारत में पक्की सड़कें थीं। जिन पर दो पहिये बाले
ताँबे के रथ चलते थे। भारतीय सम्राटों ने अपनी राजधानी को बाहरी क्षेत्रों से जोड़ने
के लिए अनेक सड़कें बनवायी थीं। चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक सड़क पाटलिपुत्र को उत्तरी-पश्चिमी
सीमान्त से जोड़ने के लिए बनवायी थी। यह पक्की सड़क थी तथा इस पर से वर्षा का जल बहकर
चले जाने की भी व्यवस्था रखो गयी थी। सम्राट अशोक ने इस सड़क का विस्तार किया तथा राजकीय
राजमार्गों को सुधारा । ईसा से 200 वर्ष पूर्व तथा 300 ई. के बीच उत्तरी भारत में दो
मार्गों से आन्तरिक व्यापार होता था जो पाटलिपुत्र से काबुल और सिन्धु नदी की घाटी
तक जाते थे। एक बड़ी सड़क महाराष्ट्र और नालवा के बीच थी जो बुरहानपुर होकर जाती थी।
700 ई. में चीनी यात्री (ताओसन) के अनुसार भारत और चीन के बीच तीन मुख्य व्यापारिक
मार्ग थे। एक मार्ग लॉय झोल से तिब्बत और नेपाल तक; दूसरा शानशाव से कोयन तक तथा तीसरा
मार्ग भारत से चीन जाता था।
मुगल
बादशाहों का योगदान सड़कें बनाने में बहुत रहा। शेरशाह को तो सड़क निर्माता ही कहा
जाता है। इसने बंगाल में सुनार गाँव से वाराणसी, कानपुर, दिल्ली होते हुए पेशावर और
वहाँ से सिन्धु नदी तक ग्रांड ट्रंक रोड बनवाची जिसकी शाखाचें आगरा से जोधपुर, आगरा
ले इन्दौर और लाहौर से मुल्तान तथा आगरा में चित्तौड़गढ़ तक जाती थीं। इन सड़कों के
सहारे अनेक छायादार वृक्ष तथा सराएँ बनायी गयीं थीं। बाद में इसी ग्रांड ट्रंक रोड
को अंग्रेजों द्वारा सन् 1880 में सुधारा गया। इसके उपरान्त
मिर्जापुर
से जबलपुर, नागपुर से बाबई ग्रेट डैकन रोड और आगरा से झाँसी होकर जाने वाली वैस्टर्न
डैकन रोड रोड बनवायी गयी। किन्तु सन् 1870 के उपरान्त अंग्रेजों का ध्यान रेलमार्गों
के विकसित करने की ओर होने से सड़कों के निर्माण का कार्य उतना तीव्र गति से नहीं किया
जा सका। केवल उन्हीं सड़कों के निर्माण पर ध्यान दिया गया जिनका सामाजिक महत्व था।
ये सड़क सन् 1900 तक बन चुकी थीं। आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15 के अनुसार 96,214 किमी
लम्बी विभिन्न सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग तथा शेष 1,42,687 किमी को राज्य राजमार्ग
घोषित किया जा चुका है।
सड़कों के प्रकार (Kind of Roads)
सन्
1943 की नागपुर सड़क योजना के अनुसार भारतीय सड़कों का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया
गया है-
(1) राष्ट्रीय राजमार्ग-समस्त देश को न केवल आर्थिक
दृष्टि से ही वरन् सैनिक दृष्टि से भी एक सूत्र में बाँध देते हैं। इन सड़कों द्वारा
राज्य को राजधानियाँ, बड़े-बड़े औद्योगिक और व्यापारिक नगर तथा मुख्य-मुख्य बन्दरगाह
आपस में एक-दूसरे से मिला दिये गये हैं। भारत को बर्मा (म्यांमार), पाकिस्तान, नेपाल,
भूटान, बांग्लादेश और चीन (तिब्बत) से भी ये सड़कें मिलाती हैं। इनके निर्माण, सुधार
और रख-रखाव का भार पूर्णत: केन्द्रीय सरकार पर रहता है। इस समय ऐसी सड़कों की लम्बाई
70,934 किमी. है। इन सड़कों के रख-रखाव का उत्तरदायिल केन्द्रीय सरकार पर है। वर्तमान
में कुल 219 राष्ट्रीय राजमार्ग हैं।
(2) राजकीय राजमार्ग-राज्यों की प्रमुख सड़कें हैं
जिनका महत्व व्यापार और उद्योग की दृष्टि से अधिक है। ये सड़कें राष्ट्रीय सड़कों अथवा
निकटवर्ती राज्यों की सड़कों से मिली हुई हैं। ये ही सड़कें राज्य को उसके मुख्य व्यापारिक,
औद्योगिक नगरों से जोड़ती हैं। राज्य सरकारों पर इन सड़कों के निर्माण और ठीक दशा में
रखने का दायित्व होता है। इस समय इन सड़कों की लम्बाई 1,33,000 किलोमीटर है।
(3) स्थानीय या जिले की सड़कें-जिले के विभिन्न भागों
को इसके मुख्य नगरों, उत्पादक केन्द्रों और मण्डियों से जोड़ती हैं। बड़ी सड़कों तथा
रेलों से भी उनका सम्बन्ध होता है। इनको बनाने का दायित्व जिला बोर्डों का होता है।
इसमें से अधिकांश सड़कें कच्ची हैं जो वर्षा के दिनों में सर्वथा अनुपयुक्त हो जाती
हैं। इन सड़कों की लाबाई 34,17,000 किलोमीटर है।
(4) गाँव की सड़कें-विभिन्न गाँवों को आपस में
एक-दूसरे से मिलाती हैं। इनका सम्बन्ध निकटवर्ती जिले और राज्यों की सड़कों से भी होता
है। प्राय: ये पगडण्टियाँ मात्र होती हैं जो अधिकतर ग्रामवासियों के सहयोग से ही निर्मित
की जाती हैं। इनकी लम्बाई 26,50,000 किलोमीटर है।
नागपुर
सड़क योजना के अनुसार देश में 8.4 लाख किलोमीटर लम्बी सड़कें बनाने का निश्चय किया
गया था किन्तु विभाजन के उपरान्त इस योजना में आर्थिक साधनों सड़क निर्माण सामग्री
तथा प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी के कारण संशोधन करना पड़ा। संशोधित योजना के अनुसार
भारत में 5.2 लाख किलोमीटर लम्बी सड़क बनाने का निश्चय किया गया। इसी को आधार मानकर
योजनाकाल में काम किया गया है। अब तक जो प्रगति हुई है वह नीचे तालिका में बताई गई
है-
सड़कों
का विकास (लाबाई 000 किलोगीटर में)
(i) |
प्रथम एवं द्वितीय पंचवर्षीय योजना
(नागपुर योजना) |
4,56,700 किमी. |
(ii) |
वर्ष 1981 में |
10,57,000 किमी. |
(iii) |
1989-90 में |
19.7 लाख किमी. |
(iv) |
नवीं योजना |
33.20 लाख किमी. |
(v) |
31 मार्च, 2015 तक |
48.65 लाख किमी. |
यद्यपि
पिछले 64 वर्षों में सड़कों में पर्याप्त सुधार किया गया है किन्तु अभी भी इनकी दशा
सन्तोषजनक नहीं कही जा सकती, क्योंकि कई नदियों पर पुलों का अभाव है, इनकी चौड़ाई इतनी
कम है कि उन पर भारी यातायात चलाना कठिन है। अधिकांश सड़कें कच्ची हैं। भारत में प्रति
100 वर्ग किलोमीटर पीछे 49 किलोमीटर और प्रति 1 लाख जनसंख्या पोले 291 किलोमीटर लम्बी
सड़कें हैं जो पर्याप्त नहीं कहीं जा सकती।
एक्सप्रेस राजमार्ग
तेज
व्यापारिक वाहनों के चलने हेतु पाँच एक्सप्रेस राजमार्ग बनाये गये हैं। दो मुम्बई नगर
के उत्तरीकिनारे पर हैं- पूर्वी और पश्चिमी एक्सप्रेस राज्य मार्ग-पहला मुम्बई के हवाई
अड्डे तथा दूसरा थाणे तक जाता है। तीसरा कोलकाता और दमदम हवाई अड्डे के बीच। चौथा सुकिन्दा
खानों में पारादीप के बीच तथा पाँचवां दुर्गापुर और कोलकाता के बीच।
(1) ग्राण्ड ट्रंक रोड-भारत की सबसे प्रमुख सड़क है
जो कोलकाता से आसनसोल, धनबाद, सासाराम, वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर, अलीगढ़, दिल्ली,
करनाल, अम्बाला, लुधियाना, जालन्धर होती हुई अमृतसर तक जाती है। आगे यह लाहौर-वजीराबाद
होती हुई पेशावर तक चली जाती है। इसका एक भाग जालन्धर से श्रीनगर तक जाता है।
(2) कोलकाता-चेन्नई रोड-कोलकाता से खड्गपुर, सम्बलपुर,
विजयवाड़ा और गुंटूर होती हुई चेन्नई तक जाती है।
(3) मुम्बई-आगरा रोड-मुम्बई से नासिक, धूलिया, इन्दौर
और ग्वालियर होती हुई आगरा तक जाती है। इसको ग्राण्ट ट्रंक रोड से मिलाने के लिए आगरा
से अलीगढ़ तक सड़क बनी है।
(4) ग्रेट दक्कन रोड-मिर्जापुर से जबलपुर, नागपुर
होती हुई हैदराबाद तक और उससे आगे गुण्टी होती हुई बंगलौर तक गयी है। नागपुर से छोटी-छोटी
सड़कों द्वारा इसको दक्षिणी भारत की अन्य सड़कों से जो मुम्बई कोलकाता को जाती हैं,
मिला दिया गया है। इसी प्रकार मिर्जापुर से एक छोटी सड़क द्वारा इसे माधोसिंह के समीप
ग्राण्ड ट्रंक रोड से मिलाया गया है।
(5) मुम्बई-कोलकाता रोड-कोलकाता से खड्गपुर, सम्बलपुर,
रायपुर, नागपुर, धूलिया होती हुई आमलबेर स्थान पर मुम्बई आगरा रोड़ से मिल जाती है।
नागपुर पर यह सड़क ग्रेड दक्कन रोड़ से मिलती है।
(6) चेन्नई-मुम्बई रोड-चेन्नई से बंगलौर, बेलगाँव
तथा पुणे होती हुई बनायो गयी है।
(7) पठानकोट-जम्मू रोड-पठानकोट से जम्मू तक जाती है।
वहाँ से इसका सम्बन्ध श्रीनगर जाने वाली सड़क से है। यह सड़क देश विभाजन के बाद कश्मीर
से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए बनायी गयी है।
(8) गौहाटी-चेरापूँजी रोड-यह रोड भी विभाजन के बाद ही
गौहाटी से शिलांग होती हुई चेरापूँजी तक के लिए बनायी गई है।
इन
सड़कों के अतिरिक्त कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, गोआ राज्यों की सरकारों ने भी तटीय
भागों में सड़कों का निर्माण किया है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असोम होती
हुई 2.165 किलोमीटर लम्बी सड़क जो बरेली से अमौन गाँव तक जाती है, का भी निर्माण किया
गया है। भारत में कुल सड़कों को लम्बाई में राष्ट्रीय राजमार्ग का हिस्सा 2 प्रतिशत
है जबकि राज्य राजमार्ग का 3.9 प्रतिशत। शेष 91.1 प्रतिशत सड़कें जिला मार्ग या ग्रामीण
मार्ग को हैं।
अन्य सड़कें
इन
सड़कों के अतिरिक्त कुछ महत्वपूर्ण पहाड़ी सड़कें भी हैं जिनके द्वारा भारत का नेपाल,
तिब्बत और म्यांमार से सम्बन्ध है। एक मार्ग कश्मीर में लेह से तिब्बत और चीन को जाता
है। यह कराकोरम दरें में होकर निकलता है। दार्जिलिंग, नैनीताल और बेतिहा से भी तिब्बत
को मार्ग जाते हैं। दूसरा मार्ग उत्तरी-पूर्वी असोम में लीडो से बर्मा होता हुआ चीन
में चुंगकिंग को जाता है। इन दोनों मार्गों पर यात्रा के लिए टटू, याक, खच्चर और पहाड़ी
बैलों का ही उपयोग किया जा सकता है। ये मार्ग पक्के होने पर भी ऊँचे-नीचे हैं और पर्वतीय
क्षेत्रों में से निकलने के कारण मटरगाड़ियों द्वारा इनका उपयोग नहीं किया जा सकता।
तीसरा मार्ग भारत और पाकिस्तान के बीच अमृतसर से पेशावर जाता है। पंजाब से कश्मीर के
बीच जवाहर सुरंग होकर एक पक्की सड़क पठानकोट को श्रीनगर से मिलाती है। मनाली से लेह
जाने वाली सड़क 4,270 मीटर ऊँचे भागों से होकर जाती है। इससे चण्डीगढ़ और लद्दाख के
बीच की दूरी बहुत कम हो जाती है।
अन्तर्राष्ट्रीय राज्यमार्ग
एशिया
एवं सुदूरपूर्व आर्थिक आयोग के एक निश्चय के अनुसार यह नयी योजना कार्यान्वित की जा
रही है जिसके अनुसार भारत के राष्ट्रीय मार्ग इस राजमार्ग से मिला दिये जायेंगे। ये
अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग दो प्रकार के होंगे। एक वे जो विभिन्न देशों की राजधानियों
को मिलायेंगे और मुख्य मार्ग होंगे। दूसरे वे जो मुख्य मार्गों को नगरों एवं बन्दरगाहों
को मिलायेंगे। प्रथम राजमार्ग 63,500 किलोमीटर लम्बा होगा जो सिंगापुर से सैगाँव, बैंकाक
और मांडले (म्यांमार) होता हुआ बंग्लादेश, भारत, पाकिस्तान को जोड़ता हुआ तुर्की होकर
एशियाई राजमार्ग को यूरोपीय अन्तर्राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ेगा। भारत में इस राजमार्ग
का भाग 2,860 किमी. लम्बा होगा जो पाकिस्तान की सीमा पर अमृतसर-दिल्ली, आगरा-कानपुर,
कोलकाता-ढाका, आगरा-ग्वालियर-हैदराबाद-बंगलौर-धनुषकोटि और बरही से काठमांडु को जोड़ेगा।
दूसर राजमार्ग फीरोजपुर के निकट भारत में आरम्भ होकर दिल्ली, मुरादाबाद, तनकपुर (नेपाल
की सीमा) तक 900 किलोमीटर लम्बा होगा। इसकी अन्य शाखायें आगरा-मुम्बई, दिल्ली-मुल्तान,
कोलकाता चेन्नई तथा गोलाघाटा लीडो मार्ग हैं।
राष्ट्रीय राजमार्ग विकास योजना
भारतीय
राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NIIAI) राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना को कार्यान्वित
करने का काम सौंपा गया था। इस परियोजना के दो संघटक हैं-
(1) स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना-भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग
प्राधिकरण (NHAI) ने देश के चार महानगर-दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई एवं चेन्नई को पलेन
वाले द्रुतगामी सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए ₹ 27,000 करोड़ के व्यय वाली स्वर्णिम
चतुर्भुज परियोजना का शुभारम्भ किया है। 5,800 किमी लम्बे सड़क मार्ग की यह योजना सन्
2004 तक पूरी करने का लक्ष्य केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मन्त्रालय द्वारा
निर्धारित किया गया था, किन्तु प्रधानमन्त्री ने इस योजना को दिसम्बर 2003 तक ही पूरा
कर लेने का निर्देश दिया है।
(2) उत्तर-दक्षिण एवं पूर्व-पश्चिम के कोरिडोर-ये क्रमश:
कन्याकुमारी को कश्मीर से तथा पोरबन्दर को सिलचर से जोड़ते हैं। इनकी स्थापना 2007
तक पूरी कर लिए जाने का लक्ष्य है।
2. भारत में रेल परिवहन (Rail Transport in India)
महत्व
(Importance) रेल परिवहन के निम्नलिखित लाभ व महत्व हैं-
(i)
रेलवे भारी और बड़े सामनों के लिए ज्यादा बेहतर साधन होती है।
(ii)
रेलवे सड़क परिवहन की तुलना में तेज गति की होती है। इसलिए वस्तुएँ भेजने के लिए रेलवे
ज्यादा उपयुक्त है।
(iii)
यह कृषि उत्पादों, बीजों, यन्त्रों और उपकरणों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने
ले जाने में सहायक होते हैं। भारतीय कृषि में हरित क्रान्ति परिवहन सुविधाओं का ही
परिणाम है।
(iv)
देश में औद्योगीकरण का प्रादुर्भाव रेलों के विकास के साथ ही हुआ है। आज रेलें कोयला,
लोहा-इस्पात, सीमेण्ट, जूट, सूती वस्त्र आदि उद्योगों के विकास में योगदान दे रही हैं।
(v)
रेलों द्वारा निर्यात सम्बर्द्धन में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है।
(vi)
रेलें पर्यटन को प्रोत्साहन देती हैं।
(vii)
रेलों ने श्रम में गतिशीलता ला दी है जिससे श्रमिक गाँव छेड़कर शहरों व कस्बों में
आ गया है।
(viii)
रेलों द्वारा नाशवान बस्तुएँ, जैसे-फल, तरकारी, दूध, मक्खन, घी, गन्ना, मछलियाँ आदि
एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी जाती हैं।
(ix)
आजकल रेलें प्रतिदिन हजारों टन डाक एक स्थान से दूसरे स्थान को ले जाती हैं। इससे सन्देशवाहन
व संचार व्यवस्था में उन्नति हुई है।
(x)
रेलों की स्थापना एवं इनके विकास से सैकड़ों गाँव व कस्बे नगरों में परिणित हो गये
हैं, समुद्री बन्दरगाहों का विकास हुआ है।
भारत में रेल परिवहन का विकास (Development of Rail Transport in
India)
भारत
में प्रथम रेल 16 अप्रैल, 1853 को 21 मील मार्ग पर बम्बई से ठाणे तक चली थी। यह मार्ग
धोरे-धीरे बढ़कर 15 अगस्त, 1947 को 40,524 मील हो गया जिसमें से 6,539 मील पाकिस्तान
को व शेष 33,985 मील भारत को मिला।
1
अप्रैल, 1951 से प्रथम पंचवर्षीय योजना आरम्भ को गयो। तब से अब तक 67 वर्ष के नियोजन
काल में रेलों में काफी विकास हुआ है भारतीय रेल वर्तमान में एशिया की सबसे बड़ी व
विश्व की दूसरी बड़ी रेल प्रणाली है।
विभिन्न
पंचवर्षीय योजनाओं में रेल विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत निम्नलिखित पर बल दिया गया
है-
(i)
रेलों का आधुनिकीकरण (इसके अन्तर्गत । पथ नवीनीकरण, विद्युतीकरण, नयी लाइनें, दोहरी
लाइनें इत्यादि बातें आती हैं।)
(ii)
बढ़ती हुई यातायात की माँग को पूरा करने के लिए अतिरिक्त क्षमता सृजन।
(iii)
बिजली एवं डीजल चलित रेलों पर
(iv)
वर्तमान क्षमता का उच्चतम उपयोग।
(v)
आधुनिक शक्तिशाली तथा नये डिजाइनों के इंजनों तथा रेल डिब्बों के उत्पादन पर।
(vi)
यात्रियों को ज्यादा से ज्यादा सुविधाएँ प्रदान करना।
(vii)
रेलगाड़ियों को कार्य-कुशलता में सुधार के लिए यातायात नियन्त्रण व्यवस्था, आधुनिक
सिग्नल प्रणाली, रुट रिले इण्टर-लॉकिंग इत्यादि ।
रेलवे की वर्तमान स्थिति (Present Position of Ruilway)
भारत
में रेलवे की वर्तमान स्थिति व योजनावधि की उपलब्धियों का अध्ययन हम निम्नलिखित शीर्षकों
के अन्तर्गत् कर सकते हैं-
1. रेलवे की कुल लम्बाई-31 मार्च 2016 को रेलमार्ग
की कुल लम्बाई 66,687 किमी. हो गई थी। इसमें 60,510 किमी ब्रॉड गेज, 3,880 किमी गेज
तथा 2,297 किमी नैरो गेज को थी। इतने विशाल रेलमार्ग के साथ भारतीय रेलवे एशिया की
सबसे बड़ी व विश्व की दूसरे स्थान की रेल प्रणाली हो गई।
2. रेल चल स्टॉक-31 मार्च, 2016 की स्थिति के अनुसार भारतीय
रेलवे के पास 11,122 इंजन, 63,342 यात्री डिब्बे, 6,899 अन्य सवारी गाड़ियों के डिब्बे
और 2,51,256 माल डिब्बे हैं। देश में रेलवे स्टेशनों की संख्या 7,216 है। रेल चल स्टॉक
में 39 भाप इंजन, 5,869 डीजल व 3,214 बिजली रेलइंजन थे।
3. रोजगार-भारतीय रेलवे में लगभग 13.31 लाख श्रमिकों को
रोजगार मिला हुआ है, जो देश के किसी भी उपक्रम में सबसे अधिक है तथा केन्द्रीय कर्मचारियों
की कुल संख्या का 40% है।
4. विद्युतीकरण-देश में लगभग 35.32 प्रतिशत रेलमाग एवं
45.19 प्रतिशत चालू रेलपथ तथा 17 प्रतिशत कुल रेल पथ का विद्युतीकरण हो चुका है।
5. भारतीय रेल में यात्री गाड़ियों के प्रकार-(i)
राजधानी एक्सप्रेस, (ii) शताब्दी एक्सप्रेस, (iii) जनशताब्दी एक्सप्रेस, (iv) गरीब
रथ, (v) सम्पर्क क्रांति एक्सप्रेस, (vi) दुरान्तों, (vii) गतिमान एक्सप्रेस,
(viii) जनसाधारण एक्सप्रेस, (ix) सुपरफास्ट, (x) एक्सप्रेस. (xi) मेल, (xii) सवारी
गाड़ी, (xiii) राज्य रानी (xiv) विवेक एक्सप्रेस, (xv) ट्रॉय, (xvi) उपनगरीय रेलें,
(xvii) मेट्रो ट्रेन, (xviii) मोनो रेल, (xix) ट्रॉय ट्रेन, (xx) लग्जरी ट्रेन,
(xxi) डबल डेकर, (xxii) इन्टरसिटी।
6. विवेक एक्सप्रेस सर्वाधिक दूरी तय करने वाली रेलगाड़ी-देश
में सर्वाधिक दूरी तय करने वाली रेलगाड़ी अब विवेक एक्सप्रेस है। असम को कन्यामारी
से जोड़ने वाली इस रेलगाड़ी का परिचालन 19 नवम्बर, 2011 पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती
इन्दिरा गाँधी की जयन्ती से शुरू हुआ है।
7. भारतीय रेल में दुमंजिली (Double Decker) रेलगाड़ियाँ-भारतीय
रेल में पहली सुपरफास्ट वातानुकूलित डबल डेकर यात्री गाड़ी 1 अक्टूबर, 2011 को हावड़ा-धनबाद
के बीच चलाई गई। इसके बाद 19 सितम्बर, 2012 को अहमदाबाद जंक्शन मुम्बई सेन्ट्रल के
बीच चलाई गई। चेन्नई-बेंगलुरू के बीच चलने वाली सुपरफास्ट वातानुकूलित डबल डेकर ट्रेन
इस श्रेणी की तीसरी यात्री गाड़ी है। 2014-15 में देश में कुल 10 डबल डेकर सुपरफास्ट
बातानुकूलित यात्री गाड़ियाँ चल रही हैं।
8. कोंकण रेलवे परियोजना-गोचा, महाराष्ट्र, कर्नाटक
तथा केरल के बीच छोटे से छोटे रेलवे मार्ग द्वारा एक लिंक प्रदान करने के लिए मार्च
1990 में कोंकण रेलवे परियोजना प्रारम्भ की गई।
9. रेल लैण्ड डेबलपमेट अथॉरिटी का गठन-रेलवे
फालतू पड़ी जमीन का व्यावसायिक इस्तेमाल करने के लिए रेलवे बोर्ड के एक सदस्य ए.के.
भटनागर की अध्यक्षता में रेललैण्ड टेबलपमेट अथॉरिटी (RLDA) का गठन रेलवे द्वारा किया
गया है।
इस
प्राधिकरण द्वारा ही रेलवे की भूमि निजी क्षेत्र को सार्वजनिक निजी सहभागिता (PPP)
आधार पर व्यावसायिक उपयोग के लिए उपलब्ध करायी जाएगी।
रेलों का प्रबन्ध (Management of Rails)
इस
सार्वजनिक उद्योग की विशालता, राष्ट्रीय व्यापकता, विशिष्ट महत्ता एवं क्षेत्र विस्तार
को देखते हुए प्रशासन प्रबन्ध, कार्यक्षमता एवं सुधार आदि के लिए एवं सभी स्तरों पर
निरन्तर वास्तविक गतिशीलता तथा प्रगति बनाए रखने के लिए भारत सरकार ने रेल मंत्रालय
के अधीन एक रेलवे बोर्ड स्थापित कर रखा है। सम्पूर्ण रेलमार्ग को इसके अधीन 17 रेल
क्षेत्रों (जोन) में बाँटा गया है। प्रत्येक क्षेत्र चा जोन को रेलवे को सघनता, कार्यभार
एवं क्षेत्र विस्तर के अनुसार डिवीजन में बाँटा गया है। रेल मन्त्रालय, रेलवे बोर्ड
एवं 17 रेल क्षेत्रों के सर्वोच्च अधिकारी ही राष्ट्रीय नीति निर्धारण के लिए उत्तरदायी
हैं। विभिन्न रेल क्षेत्र निम्न प्रकार से हैं-
सारणी-1.
क्र.सं. |
जोन |
मुख्यालय |
कार्य प्रारम्भ करने का वर्ष |
1. |
मध्य रेलवे (CR) |
मुम्बई वो टी |
5 नवम्बर 1961 |
2. |
पूर्वी रेलवे (ER) |
कोलकाता |
1 अगस्त 1955 |
3. |
उत्तरी रेलवे (NR) |
नई दिल्ली |
4 अप्रैल, 1952 |
4. |
उत्तरी पूर्वी रेलवे (NER) |
गोरखपुर |
4 अप्रैल,
1952 |
5. |
उत्तरी-पूर्वी सीमा प्रान्त रेलवे (NEFR) |
मालीगाँव-गुवाहाटी |
15 जनवरी, 1958 |
6. |
दक्षिण रेलवे (SR) |
चेन्नई |
14 अप्रैल, 1951 |
7. |
दक्षिणी मध्य रेलवे (SCR) |
सिकन्दराबा |
2 अक्टूबर, 1966 |
8. |
दक्षिण-पूर्वी रेलवे (SER) |
कोलकाता |
1 अगस्त, 1955 |
9. |
पश्चिम रेलवे (WR) |
मुम्बई चर्चगेट |
5 नवम्बर, 1951 |
10. |
पूर्वी मध्य रेलवे (ECR) |
हाजीपुर |
1 अक्टूबर, 2002 |
11. |
उत्तर-पश्चिमी रेलवे (NWR) |
जयपुर |
1 अक्टूबर, 2002 |
12. |
पूर्वी तटवर्ती Coast) रेलवे (ECR) |
भुवनेश्वर |
1 अप्रैल, 2003 |
13. |
उत्तर मध्य रेलवे (NCR) |
इलाहाबाद |
1 अप्रैल,
2003 |
14. |
दक्षिण-पश्चिमी रेलवे (SWR) |
हुबली |
1 अप्रैल, 2003 |
15. |
पश्चिम मध्य रेलवे (WCR) |
जबलपुर |
1 अप्रैल, 2003 |
16. |
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे (SERC) |
बिलासपुर |
5 अप्रैल, 2003 |
17. |
कोलकाता मेट्रो रेलवे (KMR) |
कोलकाता |
25 दिसम्बर, 2010 |
रेल विकास के मुद्दे व समस्याएँ (ISSUES AND PROBLEMS OF RAIL
DEVELOPMENT)
भारत
सरकार ने रेलवे मन्त्रालय द्वारा प्रकाशित 'स्टेट्स पेपर में रेलवे विकास से सम्बन्धित
निम्नलिखित छह मुद्दे उठाए गए हैं-1. तकनीक का सुधार, 2. रेल सेवाओं का विस्तार,
3. वित्तीय साधनों की पूर्ति, 4. पूँजी को पुनः संरचना, 5. भाड़ा नीति, 6. यात्री सेवाएँ
तथा वस्तुओं का आगमन ।
1. तकनीक का सुधार-'स्टेट्स पेपर' के अनुसार,
सौमित साधनों को ध्यान में रखते हुए तकनीक में सुधार लाने की आवश्यकता है ताकि परिचालन
लागतों में कमी लाई जा सके, निवेश के आकार में बचत की जा सके तथा बेहतर सेवाएं उपलब्ध
कराई जा सके।
2. रेल सेवाओं का विस्तार-देश की आवश्यकताओं को देखते
हुए रेल सेवाएँ बहुत अपर्याप्त हैं। बहुत सारे क्षेत्रों में अभी रेल पहुँचना शेष है।
यह सन्तोष का विषय है कि अनेक दुर्गम मार्गों पर हाल के दिनों में रेल सेवाओं का विस्तार
हुआ है, किन्तु अभी भी अनेक क्षेत्र में रेल सेवा उपलब्ध नहीं है।
3. वित्तीय साधनों की पूर्ति-रेलवे विस्तार कार्यक्रमों
की सफलता अन्ततः वित्तीय साधनों की उपलब्धि पर निर्भर करती है। यदि रेलवे को अपने लक्ष्य
प्राप्त करने हैं तो रेल बजट में घोषित प्रावधानों को सख्ती से लागू करना होगा।
4. भाड़ा नीति-सामाजिक उत्तरदायित्व के कारण रेलवे का
बहुत सा अलाभकारी लाइनों पर भी सेवाएँ उपलबध करानी पड़ती हैं तथा उपनगरीय व अन्य सेवाओं
पर भारी घाटे उठाने पड़ते हैं। अधिकांशत: आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं; जैसे-खाद्यान्न,
लोहा इत्यादि को हानि उठाकर भी लाना-ले-जाना पड़ता है।
5. यात्री सेवायें तथा वस्तुओं का आवागमन-रेलवे
की उपलब्ध क्षमता का यात्रियों द्वारा या च्यापारियों द्वारा प्रयोग किया जाता है।
क्षमता कम होने के कारण तथा अर्थव्यवस्था के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न
वस्तुओं के आवागमन को प्राथमिकता दी जाती है ताकि आर्थिक व औद्योगिक प्रगति में रुकावट
न पड़े। इस नीति का परिणाम यह हुआ कि यात्री ट्रेनों का विस्तार यात्रियों की संख्या
की तुलना में बहुत कन हो पाया है। इसके परिणामस्वरूप यात्री गाड़ियों में भीड़-भाड़
बढ़ी है तथा यात्री सेवाओं की क्वालिटी में सुधार लाना कठिन हो गया है।
5. अन्य समस्याएँ-
(i)
भारतीय रेलों की कार्य-कुशलता निम्न श्रेणी को है। आये दिन रेलों की दुर्घटनाएँ होती
रहती हैं, साथ ही भ्रष्टाचार को समस्या भी बहुत गम्भीर है।
(ii)
बिना टिकट यात्रा रेल परिवहन की एक महत्वपूर्ण समस्या बनी हुई है।
(iii)
भारत की रेल व्यवस्था पुराने ढाँचे पर ही आधारित है।
(iv)
भारत की रेल व्यवस्था एशिया में सबसे बड़ी है, फिर भी भारत की आवश्यकताओं की तुलना
में अपर्याप्त है और विकसित देशों की तुलना में अभी पिछड़ी हुई है। भारतीय रेलों को
चलाने की लागत अपेक्षाकृत बहुत अधिक है।
(vi)
भारतीय रेलों के समक्ष सड़क परिवहन को प्रतिस्पर्द्धा की समस्या भी गम्भीर है।
II.
भारत में जल परिवहन (WATER TRANSPORT IN INDIA)
महत्व (Importance)
देश
की विकासोन्मुख अर्थव्यवस्था के लिए जल परिवहन का महत्त्व इस प्रकार है-
(1)
उत्तरी-पूर्वी भारत में प्रति वर्ष बाढ़ें आती हैं जिससे अनेक बार कई महीनों के लिए
सड़क यातायात बन्द हो जाता है, ऐसे समय में जलमार्ग लाभदायक हो सकते हैं।
(2)
लम्बी यात्रा के लिए तथा अधिक परिमाण में जाने वाले माल के लिए जल परिवहन, रेल और सड़क
दोनों से सस्ता पड़ता है। कलकत्ता से असोम को मशीनें, भारी नल एवं अन्य भारी उपकरण
जलमार्गों से ही भेजे जा सकते हैं। इसी प्रकार असोम से कलकत्ता को चाय, जूट तथा चावल
लाया जा सकता है।
(3)
यद्यपि नावों की चाल प्रति किलोमीटर मोटर और रेल दोनों से कम होती है, किन्तु एक साथ
अधिक परिमाण में जाने वाले माल को नदो से भेजने में समय की बचत होती है क्योंकि बहुत
सा माल एक साथ बिना मार्ग में रुके निर्दिष्ट स्थान पर पहुँच जाता है।
(4)
रेलें और सड़कें वर्तमान परिवहन वृद्धि के अनुरूप नहीं बढ़ाया जा सकती, क्योंकि उनके
लिए पर्याप्त पूँजो उपलब्ध नहीं है जबकि जलमार्ग प्राकृतिक हैं, उनको परिवहन योग्य
बनाने के लिए अपेक्षाकृत बहुत कम पूँजी की आवश्यकता पड़ती है।
(5)
युद्ध के समय अथवा अन्य राष्ट्रीय संकट के दिनों में जल परिवहन के लिए उतना भय नहीं
जितना रेल व सड़क के लिए है, अतः जल परिवहन का विकास राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से
करना वांछनीय है।
1. आन्तरिक जल परिवहन (Internal Water Transport
आन्तरिक
जलमार्ग में देश के आन्तरिक भागों में नदियों एवं नहरों द्वारा किये जाने वाले परिवहन
को सम्मिलित किया जाता है। भारत में अन्तर्देशीय जल परिवहन का 11,500 किलोमीटर लम्बा
जलमार्ग है। देश की प्रमुख नदियों में 3,700 किमी की दूरी यान्त्रिक नौकाओं से पूर्ण
होती है। अन्तर्देशीय जलमार्ग के विकास के लिए अक्टूबर, 1986 में भारतीय देशीय जलमार्ग
प्राधिकरण का गठन किया गया है। वर्तमान में मात्र 2,000 किमी. जलमार्ग का ही उपयोग
किया जा रहा है। भारत में आन्तरिक जलमार्ग के निम्नलिखित तीन उप-विभाग हैं-
(1) नदी परिवहन (River Transport) भारत में वर्तमान में
निम्नलिखित नदियाँ परिवहन के योग्य हैं जहाँ स्टीमर चलाये जाते हैं-
(i)
ब्रह्मपुत्र नदी, (ii) गंगा नदी, (ii) यमुना नदी, (iv) हुगली नदी, (v) भागीरथी नदी,
(vi) नर्मदा नदी, (vii) छिप्रा नदी।
(2)
नहर परिवहन (Kanal Transport) भारत में परिवहन योग्य नहरों का उपयोग बहुत कम किया जाता
है। अधिकतर नहरें सिंचाई के काम आती हैं किन्तु कुछ प्रमुख नहरों का प्रयोग परिवहन
के लिये किया जाता है जो कि निम्न हैं-
(i)
गंगा की ऊपरी व निचली नहरें ( उ. प्र.), (ii) ओडिशा की तटीय नहरें (ओडिशा), (iii) कर्नूल
हट्टप्पा नहर (तमिलनाड), (iv) बर्मिघन नहर (तमिलनाडु), (v) सरहिन्द नहर (पंजाब व हरियाणा),
(vi) सर्कुलर नहर (पश्चिम बंगाल), (vii) गोदावरी व कृष्णा डेल्या की नहरें, (viii)
पूर्वी नहरें (पश्चिम बंगाल)।
(3)
राष्ट्रीय जलमार्ग (National Water Transport) भारत में राष्ट्रीय राजमार्ग निम्नवत्
हैं-
(i)
हल्दिया से इलाहाबाद तक (गंगा नदी में 1,620 किमी.), अक्टूबर, 19861
(ii)
धुबरी से नादिया तक (ब्रह्मपुत्र नदी में 891 किमी.), 26 अक्टूबर, 1988 ।
(iii)
केरल में कोलम से कोट्टापुरम (186 किमी.), 1 फरवरी, 1993 ।
(iv)
काकीनाडा-मखकानम (गोदावरी एवं पर 1,100 किमी.) (प्रस्तावित)।
(v)
ब्राह्मणी नदी-पूर्वी तट नहर, मटाई । एवं महानदी का 583 किमी. हिस्सा।
योजना काल में विकास (Progress during Plan Period) नियोजन
काल में आन्तरिक जल परिवहन के विकास हेतु प्रयास किये ग यद्यपि आन्तरिक जल परिवहन राज्य
सूची का विषय है।
राज्य
सरकारें ही केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं के रूप में अधिकतर विकास कार्यक्रमों को क्रियान्वित
करती हैं परन्तु आन्तरिक जल परिवहन के लिए विकास सम्बन्धी नीति का निर्धारण केन्द्रीय
अन्तर्देशीय जल परिवहन बोर्ड (CIWTB) करता है।
भारत में आन्तरिक जल परिवहन की समस्याएँ (Problems of Internal
Water Transport)
भारत
में आन्तरिक जल परिवहन की समस्याएँ संक्षेप में निम्नलिखित हैं-
(i)
जल परिवहन केवल कुछेक क्षेत्रों तक सीमित है।
(ii)
रेल व सड़क परिवहन की तुलना में आन्तरिक जल परिवहन कुल मिलाकर महंगा पड़ता है।
(iii)
भारत के जलमार्गों का सम्भाव्य कई कारणों से पूरा उपयोग नहीं हो पाता है, जैसे-कई नदियों
में पानी की गहराई कम है।
(iv)
जल विद्युत् उत्पादन, बाढ़ नियन्त्रण तथा सिंचाई परियोजनाओं के बीच पर्याप्त समन्वय
का अभाव है
(v)
आन्तरिक जल परिवहन की अपेक्षा रेलों से अधिक लाभ है। इसलिए जल परिवहन रेलों से कभी
प्रतियोगिता नहीं कर सकता।
(vi)
देश में अधिकांश नदियों में प्रतिवर्ष बाढ़ आ जाने के कारण जल परिवहन मार्ग अवरुद्ध
हो जाता है।
(vii)
आन्तरिक जल परिवहन को बढ़ावा देने के लिए वित्त एवं साख व्यवस्था का अलग से प्रावधान
है।
(viii)
प्रतिवर्ष नदियाँ मार्ग बदलती रहती हैं जिससे जल परिवहन में कठिनाई उत्पन्न हो जाती
है।
(ix)
उथला पानी तथा सूख्खे मौसम के कारण भारतीय नहरों की चौड़ाई कम हो जाती है।
जल
यातायात की ऑनलाइन निगरानी योजना केन्द्र सरकार ने हवाई यातायात नियन्त्रण की तरह एक
नदी सूचना प्रणाली (River Information System—RIS) बनाने का निर्णय लिया है, जो जलमार्ग
यातायात पर नजर रखेगी। यह नई प्रणालो देश में अपनी तरह की पहली प्रणाली होगी, जो जलमार्गों
पर सुरक्षित एवं सटीक निगरानी रखेगी और इससे आयात निर्यात को प्रोत्साहन मिलेगा। इस
प्रणाली के तहत सबसे पहले गंगा पर राष्ट्रीय जलमार्ग-1 (चरण-1-सागर से फरक्का) के
145 किलोमीटर के खण्ड के लिए नदी सूचना प्रणाली की शुरूआत की गई है।
भारत में सामुद्रिक परिवहन (Overseas Shipping in India)
भारत
में सामुद्रिक परिवहन का विवरण निम्न प्रकार है-
भारत
में आधुनिक जहाजरानी का प्रारम्भ-भारत में आधुनिक जहाजरानी का वास्तविक प्रारम्भ सन्
1920 में हुआ, जबकि ब्रिटिश जहाजो एकाधिकार का मुकाबला करने के लिए सिंधिया स्टीम नेवीगेशन
कम्पनी की स्थापना की गई परन्तु इस कम्पनी की स्थापना के भी इस दिशा में कुछ प्रयत्न
किये गये थे, जैसे-सन् 1893 में टाटा ने चीन और जापान से सूत और रुई का व्यापार करने
के लिए जहाजो कम्पनी प्रारम्भ की थी। सन् 1905 में बंगाल स्टीम नेवीगेशन कम्पनी ने
चटगाँव-रंगून मार्ग पर अपनी जहाजी सेवा प्रारम्भ की। सन् 1906 में चिदम्बरम् पिल्ले
ने तूतीकोरन में स्वदेशी जहाजी कम्पनी की स्थापना की। सन् 1927 तक 33 भारतीय जहाजी
कम्पनियाँ बनी थीं परन्तु केवल चार ही शेष रहीं।
प्रथम
महायुद्ध के पश्चात् भारत में राष्ट्रीय भावनाएँ उभरने लगीं। फलतः भारतीय जहाजी व्यवसाय
का भारतीयकरण करने की जनता की माँग काफी तीव्र हो गई। बढ़ते हुए विरोध के कारण सन्
1923 में सरकार ने हैडलाम की अध्यक्षता में भारतीय व्यापारिक जाजी बेड़ा समिति
(Indian Mercantile Marine Committee) की नियुक्ति की।
द्वितीय
विश्व युद्ध के समय भारतीय जहाजरानी ने सरकार को बहुत अधिक सहायता की। इस समय भारतीय
जहाजरानी की क्षमता विश्व जहाजरानी की क्षमता को केवल 0.24 प्रतिशत ही थी। स्वतन्त्रता
प्राप्ति के समय भारतीय जहाजरानी बेड़े में 59 जहाज थे और उनकी माल ढोने की क्षमता
1.92 लाख GRT थी। यह क्षमता 31 मार्च, 1951 को बढ़कर 3.78 लाख GRT हो गयी थी।
पंचवर्षीय
योजनाओं के दौरान जहाजरानी के विकास पर काफी बल दिया गया।
नौवीं
योजना में जहाजरानी क्षेत्र के लिए 8,000 करोड़ रुपये व्यय करने का प्रावधान था।
वर्तमान स्थिति (Present. Position)
भारतीय
जहाजरानी का में 17वाँ तथा एशिया में दूसरा स्थान है। वर्तमान में भारतीय जहाजरानी
की क्षमता विश्व जहाजरानी में केवल 1.7% है। आज भारतीय जहाज विश्व के सभी समुद्री मार्गों
पर चलते हैं। भारतीय जहाजरानी की वर्तमान स्थिति निम्न है-
1. बन्दरगाह-देश के 7,516 किलोमीटर लम्बे समुद्र तट
पर 13 बड़े बन्दरगाह हैं जिनकी व्यवस्था केन्द्र सरकार के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत
भारतीय बन्दरगाह ट्रस्ट करता है और 200 छोटे बन्दरगाह हैं जो सम्बन्धित राज्य सरकारों
के क्षेत्राधिकार में हैं। बड़े बन्दरगाह अखिल भारतीय बन्दरगाहों के 90 प्रतिशत माल
को संचालित करते हैं। चेन्नई के निकट एक और बड़ा बन्दरगाह विकसित किया जा रहा है।
2. जहाजरानी की क्षमता-1951 में भारतीय जहाजों की
क्षमता केवल 3.9 लाख टन (Gross Tonnage of GT) थी। 30 जून, 2012 तक भारतीय जहाजों की
क्षमता 110 लाख टन पहुँच चुकी थी और क्षमता अनुसार उसका विश्व में सोलहवाँ स्थान था।
बारहवीं योजना में भारतीय जहाजों की क्षमता को बढ़ाकर 124 लाख टन तक पहुँचाने का लक्ष्य
है। वर्तमान में भारत के विदेशी व्यापार की मात्रा अनुसार 95 प्रतिशत और मूल्य अनुसार
70% समुद्री मार्गों के माध्यम से होता है।
3. जहाजरानी कम्पनियाँ-आज भारतीय जहाज विश्व के सभी
समुद्री मार्गों पर चलते हैं। देश में 140 जहाज कम्पनियाँ कार्य कर रही हैं। जिसमें
सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इण्डिया भी सम्मिलित है जो देश की
सबसे छड़ी जहाजरानी कम्पनी है।
4. समुद्री जहाज निर्माण भारत में वर्तमान में समुद्री जहाज निर्माण
करने वाली निम्न चार संस्थाएं कार्य कर रही हैं-
(i)
हिन्दुस्तान शिपयाई ( विशाखापट्टनम), (ii) कोच्चि शिपयार्ड (कोचीन), (iii) मझगाँव डाक
(मुम्बई), (iv) गार्डन रीच वर्कशॉप (कोलकाता)।
5. जहाजरानी संगठन-भारतीय जहाजरानी के सफल संचालन
के लिए भारतीय जहाजरानी संगठन में निम्न तीन संस्थाएँ बनाई गई हैं-
(i)
राष्ट्रीय नौवहन बोर्ड (केन्द्रीय सरकार की सलाहकारी संस्था)।
(ii)
जहाजरानी समन्वय समिति (केन्द्रीय भूतल परिवहन मन्त्रालय के अन्तर्गत कार्य करने वाली
समिति जो सरकार एवं जहाज कम्पनियों के बीच समन्वय करती है)।
(iii)
अखिल भारतीय राजनीति परिषद् (शिपिंग कम्पनियों के बीच किराया एवं अन्य समस्याओं से
समझौता करने वाली संस्था)।
6. सेतु समुद्रम परियोजना केन्द्र सरकार ने मार्च,
2003 में सेतु समुद्रम परियोजना को स्वीकृति दे दी है। इस योजना के अन्तर्गत पाक जलडमरूमध्य
(Pak Strait) के निकट ही स्वेज नहर व पनामा नहर की तर्ज पर नौवहन योग्य नहर के निर्माण
का प्रस्ताव है। इससे चेन्नई व तूतीकोरिन अन्दरगाहों के बीच पोत सीधे हो आ-जा सकेंगे
तथा इसके लिए उन्हें श्रीलंका का चक्कर काटने को आवश्यकता नहीं होगी।
7. सागरमाला परियोजना-प्रधानमन्त्री ने 15 अगस्त,
2003 को इस योजना की घोषणा की थी। इस परियोजना के अन्तर्गत प्रमुख बन्दरगाहों के तटों
को चौड़ा करने के साथ-साथ इनकी गहराई को बढ़ाया जायेगा तथा उन्हें आधुनिक संयन्त्रों
व उपकरणों से युक्त किया जायेगा। सूचना प्रौद्योगिकी के आधुनिकत्तम उपकरणों को भी इन
पर तैनात किया जायेगा। अन्तर्राष्ट्रीय नौवहन के साथ-साथ तटवर्ती नौवहन को भी इससे
बढ़ावा मिल सकेगा।
8. निजी क्षेत्र से सहयोग-चूँकि भारत सरकार बन्दरगाहों
को सामर्थ्य की माँग और पूर्ति में अन्तर को पाटने लिए उचित मात्रा में विनियोग जुटा
नहीं पा रही है, इसलिए इस क्षेत्र के विनियोग को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। भारत सरकार
ने नवी मुम्बई में जवाहरलाल नेहरू पोर्ट की सामर्थ्य का विकास करने के लिए आस्ट्रेलिया
के नेतृत्व अधीन कन्सौरटियम (Consortium) के प्रोजेक्ट को चालू करने की स्वीकृति दे
दी है। अन्य बन्दरगाह भी निजी क्षेत्र के सहयोग द्वारा सामर्थ्य विस्तार के लिए प्रोजेक्ट
तैयार कर रहे हैं।
भारत में जहाजरानी की समस्याएँ (Problems of Shipping in India) भारत
में जहाजरानी के विकास के मार्ग में अनलिखित कठिनाइयाँ हैं-
(i)
भारत में जहाजरानी की टन भार क्षमता अत्यन्त कम है।
(ii)
भारतीय जहाजों को विदेशी जहाजों से कठोर प्रतियोगिता करनी पड़ती है।
(iii)
जहाजरानी के विकास के लिए विदेशी मुद्रा का अभाव है।
(iv)
भारत में उपयुक्त बन्दरगाहों का अभाव है।
(v)
भारतीय जहाजों का संचालन व्यय बहुत अधिक है और प्रतिदिन बढ़ रहा है।
(vi)
देश में जहाज सम्बन्धी तकनीकी ज्ञान का अभाव है।
(vii)
भारत में कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने की सुविधाओं का अभाव है।
(viii)
भारत में विशाल व आधुनिक जहाजों का अभाव है।
(III)
वायु परिवहन (CIVIL AVIATION)
यद्यपि
वायु परिवहन बहुत महँगा है, परन्तु भारत में यह बहुत महत्वपूर्ण साधन है क्योंकि-
1.
देश का आकार बहुत बड़ा है। इसका क्षेत्रीय विस्तार भी बहुत अधिक है। अत: देश की भूमि
तथा जलवायु में अत्यन्त विविधता है। सड़क व रेल परिवहन देश के ऊबड़-खाबड़ एवं वनाच्छादित
क्षेत्रों में नहीं बनाए जा सकते। ऐसे प्रदेशों में वायु परिवहन यातायात सबसे उपयुक्त
साधन हैं।
2.
देश में औद्योगिक तथा व्यापारिक केन्द्र एक-दूसरे से बहुत दूर-दूर स्थित हैं। वायु
परिवहन द्वारा ये केन्द्र एक-दूसरे के निकट आ गए हैं।
3.
भारत का पश्चिमी यूरोप तथा अफ्रीका और दक्षिणी पूर्वी एवं पूर्वी एशिया के मध्य स्थित
होने के कारण बहुत महत्व है।
4.
बाढ़, भूकम्प, तूफान आदि विपत्तियों समय इनमें फंसे लोगों को निकालने तथा उन्हें खाद्य-सामग्री,
दवाएँ आदि पहुँचाने के लिए वायु परिवहन का ही प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार देश के
आन्तरिक एवं विदेशी परिवहन में वायु परिवहन का महत्वपूर्ण योगदान है। इसके द्वारा देश
का प्रत्येक बिन्दु एकता-सूत्र में बँधा हुआ है।
भारत में वायु परिवहन का विकास (DEVELOPMENT OF CIVIL AVIATION IN
INDIA)
भारत
में वायु परिवहन अति प्राचीन काल से ही प्रचलित रहा (रामायण में श्री रामचन्द्र जी
के लंका से अयोध्या आने में पुष्पक विमान का वर्णन मिलता है)। आधुनिक युग में भारत
में सन् 1911 से प्रयोगात्मक उड़ान प्रारम्भ हुई थी, जबकि मुम्बई व कराँची के बीच प्रथम
बार उड़ान को व्यवस्था की गयी थी परन्तु भारत में वायु परिवहन का वास्तविक प्रारम्भ
सन् 1927 से हुआ, जबकि नागरिक उड्डयन विभाग (Civil Aviation Department) की स्थापना
की गयी और कई उड्डयन क्लब (Flving Clubs) स्थापित किये गये। सन् 1920 में ब्रिटेन,
फ्रांस व हालैण्ड की साम्राज्य वायु सेवा (Empire Air Service) के विमान भारत में भी
आने-जाने लगे। वास्तव में नागरिक विमान परिवहन का विकास सन् 1950 के बाद हुआ। सन्
1953 में सरकार ने वायु परिवहन निगम अधिनियम (यह अब खण्डित कर दिया गया है) पास किया
जिसके अधीन इण्डियन एयर लाइन्स कॉरपोरेशन आन्तरिक वायु सेवा के लिए और एयर इण्टरनेशनल
विदेशी वायु सेवा के लिए स्थापित की गयी (अब इण्टरनेशनल शब्द प्रयोग नहीं होता)।
पंचवर्षीय योजना में विकास एवं वर्तमान स्थिति-योजनाओं
के अन्तर्गत वायु परिवहन का काफी विकास हुआ। प्रथम एवं द्वितीय योजना के अधीन वायु
परिवहन पर खर्चा क्रमशः 7.2 करोड़ तथा 15.9 करोड़ रुपये हुआ। तृतीय योजना में 25.5
करोड़ रुपये वायु परिवहन पर लगाये गये। पाँचवीं एवं छठी योजना के अन्तर्गत नागरिक विमान
सेवा पर प्रस्तावित खर्चा क्रमश: 295 करोड़ तथा 700 करोड़ रुपये था। छठी योजना में
वायु परिवहन पर वास्तविक खर्चा लगभग 931 करोड़ रूपये का रहा। सातवीं योजना के दौरान
यह खर्च 1,948 करोड़ रुपये का था। आठवीं तथा नौवीं योजना में नागरिक विमान सेवा पर
होने वाला परिव्यय क्रमशः 4,106 करोड़ तथा 11,112 करोड़ रुपये रहा। दसर्वी योजना में
वायु परिवहन विकास पर 12,928 करोड़ रुपये व्यय किए जाने हैं।
भारत
में वायु परिवहन की वर्तमान स्थिति का अध्ययन हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कर
सकते हैं।
1. विमान सेवाएँ (Airlines Services)
भारत
में निम्न संस्थाओं द्वारा विमान सेवाएं प्रदान की जाती हैं-
(i) एयर इण्डिया (Air India)
(a)
एयर इण्डिया के पास 16 विमानों का बेड़ा है जिनमें कुल विमानों की संख्या 87 हो गई
है।
(b)
एयर इण्डिया सप्ताह में 56 स्थानों (43 अन्तर्राष्ट्रीय 13 घरेल) के लिए 200 उड़ाने
चलाता है।
(c)
एयर इण्डिया की कुल 43 अन्तर्राष्ट्रीय उड़ा जिनमें से | 19 उड़ानों के लिए, उसके अपने
विमान उपलब्ध हैं।
(d)
इस समय एयर इण्डिया की चार सहायक कम्पनियाँ हैं।
(e)
घाटे में चल रही एयर इण्डिया को वित्तीय संकट से उबारने के लिए ₹ 1,200 करोड़ की 'ईक्विटी
सपोर्ट, का फैसला सरकार ने दिसम्बर 2010 में किया।
(ii) इण्डियन एयरलाइन्स (Indian Airlines)
इण्डियन
एयर-लाइन्स का मुख्यालय दिल्ली में है-मूलतः यह देश की घरेलू उड़ानों के लिए उत्तरदायी
है, किन्तु वर्तमान में यह 17 पड़ोसी राष्ट्रों के लिए भी विमान सेवा प्रदान करती है।
वर्तमान में इण्डियन एयर लाइन्स के पास 73 विमानों का बेड़ा है। निजी क्षेत्र की कम्पनियाँ
निजी क्षेत्र में 11 निर्धारित एयर लाइस हैं-इनमें, जेड एयरवेज, इण्डिया लिमिटेड, सहारा
एयरलाइन्स, डेकन विमानन, गो एयरवेज, किंग फिशर एयरलाइन्स, पैरामाउण्ट एयरवेज गो एयरलाइंस
इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड, इण्टर एविएशन (इण्डिगो), घरेलू क्षेत्र में संचालित हैं
और यात्रियों को चुनाव का व्यापक अवसर मिलता है।
2. हवाई अड्डे (Air Port)
देश
में वर्तमान में 13 अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे हैं। 13वाँ हवाई अड्डा जयपुर में बनाया
जा रहा है। इसके अतिरिक्त देश में 87 हवाई अड्डे हैं। निजी क्षेत्र का पहला हवाई अड्डा
केरल सरकार की पहल पर कोचीन इण्टरनेशनल एअरपोर्ट लि. के नाम से कोचीन में बनाया गया
है।
3. उड्डयन क्लब (Flying Club)- भारत में 25 उड्डयन क्लब हैं
जिनका उद्देश्य साधारण नागरिकों को उचित व रियायती दरों पर उड़ान का प्रशिक्षण प्रदान
करना है।
4. प्रशिक्षण सुविधाएँ (Trainning Facilities)-इन्दिरा
गाँधी उड़ान अकादमी फुरसतगंज (उ. प्र.) में स्थित है। यह एक स्वायत्तशासी संस्था है
जिसकी स्थापना उड़ान और स्थल प्रशिक्षण में उच्चतम स्तर को प्राप्त करने तथा व्यावसायिक
पायलटों को अवसर प्रदान करने के लिए की गयी है।
5. प्राइवेट निवेश के लिए एक नयी नीति (A New Policy for Private
Investment.)- अप्रैल, 1997 में घरेलू विमान परिवहन सेवा क्षेत्र में प्राइवेट
निवेश के लिए एक नयी नीति की घोषणा की गयी थी जिसमें अनिवासी भारतीय विदेशी निगमित
निकाय के लिए 100 प्रतिशत इक्विटी सहभागिता की अनुमति दी गयी थी। तथापि प्रत्यक्ष तथा
अप्रत्यक्ष रूप से विदेशी विमान सेवाओं द्वारा इक्विटी सहभागिता की अनुमति नहीं दी
गयी है।
भारत में वायु परिवहन की समस्याएँ (Problems of Air Transport in
India)—भारत
में वायु परिवहन का विकास प्रशंसनीय रहा है लेकिन इसके सामने प्रमुख समस्याएँ हैं-
(i)
भारतीय वायु परिवहन उद्योग में अभी तक केवल गति पर ही विशेष ध्यान दिया गया है, किराया
कम करने पर नहीं।
(ii)
भारतीय वायु परिवहन उद्योग को निजी एयरलाइन्स से तीव्र प्रतियोगिता का सामना करना पड़
रहा है।
(iii)
भारतीय विमानों के आधुनिकीकरण के लिए विदेशी मुद्रा अभाव है।
(iv)
पेट्रोलियम की कीमत में अत्यधिक वृद्धि होने के कारण वायुयान का संचालन व्यय अत्यधिक
बढ़ गया है।
(v)
वायुयान दुर्घटनाओं के फलस्वरूप प्राय:धन-जन की अपार क्षति हो जाती है। इसका मुख्य
कारण चालकों की गलती है।
(vi)
भारत में भारवाहक विमानों की कमी है।
IV.
पाइपलाइन परिवहन (PIPELINL TRANSPORT)
परिवहन
का यह एक नवीन साधा है जो मुख्यत: पेट्रोलियम पदार्थ तथा प्राकृतिक गैस के यातायात
से जुड़ा हुआ है। इसे तरल पदार्थों के परिवहन के लिए सस्ता एवं सुरक्षित साधन माना
जाता है क्योंकि इसकी परिचालन लागत (Operating Cost) कम होती है और रास्ते की हानियाँ
न्यूनतम होती हैं। परन्तु भारत जैसे विकासशील देशों में पाइपलाइन अधिक लोकप्रिय नहीं
हो सकी क्योंकि इसमें होने वाली स्थिर लागत (Fixed Cost) अत्यधिक है।
भारत में महत्वपूर्ण पाइप लाइनें (Important Fipelines in India) भारत
में महत्वपूर्ण पाइप लाइनें निम्नलिखित हैं-
1. कच्चे तेल के यातायात के लिए (For the Transportation of Crude
Oil)-
(i)
विरंगम में विदेशों से प्राप्त कच्चे तेल को करनाल (हरियाणा) के लिए शोधक कारखानों
तक पहुँचाना।
(ii)
कोयलो (गुजरात) के पश्चिम तट को विदेशों से प्राप्त कच्चे तेल को मथुरा के तेलशोधक
कारखानों तक पहुँचाना।
(iii)
पूर्वी तट से बरौनी (बिहार) में तेलशोधक कारखानों तक पहुँचाना।
2. पेट्रोलियम पदार्थों के यातायात के लिए (For the Transportation
of Petroleum Products)—
(i)
मुम्बई में तेलशोधक कारखानों से पुणे तक।
(ii)
बरौनी में तेलशोधक कारखानों से लेकर दिल्ली, अम्बाला (हरियाणा) और जालंधर (पंजाब) तक।
3. प्राकृतिक गैस के यातायात के लिए (For the Transportation of Natural Gas)- हजीरा के पश्चिमी तट से मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में लगाये गये विभिन्न गैस प्लाण्टों तक।