पाठ्यपुस्तक आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि 'इस अभागे आलसी देश में जो
कुछ हो जाए वही बहुत कुछ है' क्यों कहा गया है ?
उत्तर
: भारत के लोग आलसी हैं। ये स्वयं कोई कार्य नहीं करते। किसी की प्रेरणा से प्रेरित
होकर ही यहाँ के लोग जागते हैं। ये रेलगाड़ी के डिब्बे हैं जो इंजन के बिना नहीं चलते।
बलिया जैसी छोटी जगह में उत्साह के साथ लोगों ने यह . आयोजन किया है, यह खुशी की बात
है, बनारस के लोग कुछ नहीं करते, वे छोटा-सा कार्य कर दें, यही बड़ी बात है। के लोग
राज-महाराजे, नवाब और हाकिमों की ओर देखते हैं। भारतीयों के आलस्य और अकर्मण्यता देखकर
ही भारतेंद जी ने ऐसा कहा कि इस अभागे आलसी देश में जो कुछ हो जाय वही बहुत कुछ है,
उन्हें भारतीयों के आलसी.होने का दुख है।
प्रश्न 2. 'जहाँ रॉबर्ट साहब बहादुर जैसे कलेक्टर हों, वहाँ क्यों न
ऐसा समाज हो' वाक्य में लेखक ने किस प्रकार के समाज की कल्पना की है ?
उत्तर
: भारतीय आलसी हैं, इस कारण इनमें कार्य के प्रति उत्साह नहीं है। इनमें हनुमान की
सी शक्ति तो है पर कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है, जो इन्हें प्रेरित कर सके। बलिया जैसे
छोटी जगह में इतने सारे लोगों को उत्साह के साथ एकत्रित होते देखकर भारतेन्दु जी को
आश्चर्य हुआ और खुशी भी हुई। इसका श्रेय उन्होंने तत्कालीन कलेक्टर रॉबर्ट बहादुर साहब
के प्रशासन को दिया। यह समारोह उनकी प्रेरणा का परिणाम है। लेखक ने आलस्यविहीन समाज
की कल्पना की है। जतना परिश्रमी हो और जाति, वर्ग, सम्प्रदाय विहीन समारोह का आयोजन
करती रहे, ऐसे समाज की कल्पना की है।
प्रश्न 3. जिस प्रकार ट्रेन बिना इंजिन के नहीं चल सकती ठीक उसी प्रकार
'हिन्दुस्तानी लोगों को कोई चलाने वाला हो' से लेखक ने अपने देश की खराबियों के मल
कारण खोजने के लिए क्यों कहा है ?
उत्तर
: भारत के लोग आलसी और अकर्मण्य हैं। यहाँ कुशल नेतृत्व का अभाव है और राजे-महाराजे,
नवाब और हाकिम अपनी मस्ती में मस्त हैं। यहाँ लोगों के पास हनुमान की सी अपार शक्ति
है, कार्य-कुशलता है, क्षमता है किन्तु आत्मबल का अभाव है। इनमें उत्साह नहीं है। इन्हें
किसी की प्रेरणा की आवश्यकता है। इन खराबियों के कारण देश की उन्नति नहीं हो पा रही
है। अत: भारतेन्दु चाहते हैं कि लोग इन खराबियों के मूल कारणों को जाने और उन्हें दूर
करें।
प्रश्न 4. देश की सब प्रकार से उन्नति हो, इसके लिए लेखक ने जो उपाय
बताए, उनमें से किन्हीं चार का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर
: भारतेन्दु जी देश के पिछड़ेपन को देखकर बहुत दुखी थे। वह चाहते थे कि देशवासी हर
क्षेत्र में उन्नति करें। इसके उन्होंने जो उपाय बताए, उनमें से चार उपाय निम्नलिखित
हैं -
1.
देशवासी आलस्य और निकम्मेपन का त्याग करके समय का सदपयोग करें। परिश्रम से धन अर्जित
करते हए बेकारी की समस्या दूर करें।
2.
धार्मिक अंधविश्वासों से छुटकारा पाएँ। पूर्वजों द्वारा धर्म को लेकर बनाए गए सामाजिक
नियमों के मर्म को समझें और उनमें देश-काल के अनुसार सुधार करते रहें।
3.
सामाजिक भाईचारा बनाए रखें। जाति, वर्ग और उपासना के भेदों को भुलाकर एकता का परिचय
दें।
4.
बच्चों को ऐसी शिक्षा दिलाएँ जिससे वे स्वावलंबी बनकर देश को उन्नत और समृद्ध बनाएँ।
प्रश्न 5. लेखक जनता से मत-मतांतर छोड़कर आपसी प्रेम बढ़ाने का आग्रह
क्यों करता है ?
उत्तर
: भारतेन्दु जी का यह भाषण उस समय का है जब देश गुलाम था। अंग्रेज आपस में भेदभाव पैदा
करने और हमें बाँटने का प्रयास कर रहे थे। अंग्रेजों की इस चाल को देखकर ही उन्हें
यह प्रेरणा दी थी कि बच्चों को ऐसी शिक्षा दी जाय जिससे वे अपना देश और कुल-धर्म सीखें।
विभिन्नताओं के आधार पर द्वेष भावना न रखें। हिन्दू और मुसलमान सब आपस में मिलकर रहें।
सभी जातियों के आधार और भेदभाव न हो, ऊँच-नीच का भाव नहीं, वैष्णव-शक्ति के आधार पर
द्वेष न हो। मुसलमान और हिन्दुओं में भाईचारे का भाव हो। आपस में संगठित हों और प्रेम-भाव
से रहें तो देश की उन्नति हो सकेगी। देश की उन्नति का मूलाधार प्रेम, सहयोग और संगठन
है।
प्रश्न 6. आज देश की आर्थिक स्थिति के संदर्भ में नीचे दिए गए वाक्य
का आशय स्पष्ट कीजिए -
'जैसे हजार धारा होकर गंगा समुद्र में मिलती है, वैसे ही तुम्हारी लक्ष्मी
हजार तरफ से इंग्लैण्ड, फरांसीस, जर्मनी, अमेरिका को जाती है।
उत्तर
: गंगा हजारों धारों में प्रवाहित होती हुई अन्त में सागर में मिल जाती है। हमारे देश
का धन भी इसी प्रकार विभिन्न रूपों में विदेशों में बाहर जा रहा था। हम विदेशी वस्तुओं
के प्रति आकर्षित थे और वहाँ की बनी वस्तुओं को महत्त्व देते थे। छोटी से छोटी वस्तु
विदेश से मँगाकर उसका उपभोग करते थे। इसके कारण देश का धन इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी
और अमेरिका आदि देशों को जा रहा था। आज भी हमारे देश को विदेशों से अनेक वस्तुओं का
आयात करना पड़ता है। निर्यात की तुलना में आयात बहुत अधिक है। इस कारण देश आर्थिक दृष्टि
से घाटे में चल रहा है। भारतेन्दु जी की प्रेरणा आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक है।
इसी कारण सरकार आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाओं पर जोर दे रही है।
प्रश्न 7. आपके विचार से देश की उन्नति किस प्रकार संभव है ? कोई चार
उदाहरण तर्क सहित दीजिए।
उत्तर
: आज देश की जनता की अपेक्षाएँ बढ़ी हुई हैं। देश को एक कुशल, दूरदर्शी, निर्भीक, साहसिक
निर्णय ले सकने वाला राजनेता चाहिए, जो देश को उन्नति की ओर ले जा सके। यह उन्नति किसी
क्षेत्र विशेष में नहीं बल्कि सर्वांगीण होनी चाहिए। हमारे चार सुझाव निम्नलिखित हैं
-
1.
सर्वप्रथम देश को आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ बनाना है। इसके लिए हमें देश का निर्यात-व्यापार
को बढ़ाना होगा। अपनी आवश्यकता की अधिक-से-अधिक वस्तुएँ स्वयं ही निर्मित करनी होंगी।
2.
देश में ऐसी परिस्थितियाँ बनानी होगी कि विदेशी उद्यमी यहाँ धन निवेश करने को आकर्षित
हों।
3.
आन्तरिक सुरक्षा के साथ ही देश की बाह्य सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी होगी।
4.
हर हाल में देश की सामाजिक एकता और समरसता को बनाए रखना होगा।
प्रश्न 8. भाषण की किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। उदाहरण देकर
सिद्ध कीजिए कि पाठ भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?' एक भाषण है।
उत्तर
: भाषणं देना एक कला है जो साहित्य की सभी विधाओं से भिन्न है। भाषण की कुछ विशेषताएँ
निम्न हैं-
1.
भाषण तथ्यात्मक होता है, जिसमें समस्या या समस्याओं पर ध्यान दिया जाता है।
2.
भाषण तर्कपूर्ण और उदाहरण सहित होता है।
3.
भाषण की भाषा सरल और बोलचाल की होती है। व्यंग्यात्मक भी हो सकती है। उसमें रोचकता
भी होती है। उसमें प्रभावोत्पादकता होती है।
4.
भाषण जन समूह को सम्बोधित करके दिया जाता है। कभी-कभी वार्तालाप शैली का प्रयोग भी
होता है। 'भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है? 'भारतेन्दुजी का बलिया में दिया हुआ
भाषण है। इसमें भारतेन्दुजी ने मेले में जनसमूह को सम्बोधित करते हुए देश की उन्नति
कैसे हो? समस्या पर अपने विचार रखे। उन्होंने 'रेल के डिब्बों' का उदाहरण देकर भारतीयों
के आलस्य को प्रकट किया। भाषा सरल और बोलचाल की है। 'तुम्हें गैरों से कब फुरसत' और
'अजगर करे न चाकरी' जैसी काव्य-पंक्तियों का समावेश करके भाषण को रोचक बनाया था। अतः
स्पष्ट है कि यह एक भाषण है।
प्रश्न 9. 'अपने देश में अपनी भाषा में उन्नति करो' से लेखक का क्या
तात्पर्य है ? वर्तमान संदर्भो में इसकी प्रासंगिकता पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
भारतेन्दुजी ने यह भाषण उस समय दिया था जब अंग्रेजी प्रशासन था और हम गुलाम थे। अंग्रेजों
ने अंग्रेजी भाषा को महत्व दिया, हिन्दी को नहीं। अनपढ़ लोगों के लिए उसका महत्त्व
नहीं था। देश की उन्नति अपनी भाषा से ही होती है, जिस तरह पराई वस्तु या उधार ली हुई
वस्तु पर घमंड करना व्यर्थ है, उसी प्रकार दूसरी भाषा पर घमंड करना भी व्यर्थ है। अपनी
भाषा जल्दी समझ में आती है। उसमें सुविधा से अभिव्यक्ति हो सकती है। दुनिया के सभी
देशों में अपनी भाषा को महत्त्व दिया जाता है। दूसरे देशों में जाकर भी वे लोग अपनी
ही भाषा बोलते हैं। दूसरी भाषा को महत्त्व देने से हीनता आती है। अपनी भाषा से देशानुराग
और देश- भक्ति उत्पन्न होती है। अपनी भाषा अभिव्यक्ति का सुगम साधन है।
परन्तु
वर्तमान परिस्थिति में अंग्रेजी का जानना भी आवश्यक है। अंग्रेजी अन्तर्राष्ट्रीय भाषा
है, राष्ट्रों के मध्य सम्पर्क इसी के माध्यम से होता है। अपनी राजभाषा, राष्ट्रभाषा
और मातृभाषा को जानना, सीखना बहुत आवश्यक है। किन्तु साथ-साथ अन्य देशों की भाषा भी
जानें जिससे सभी क्षेत्र के ज्ञान की वृद्धि हो।
प्रश्न 10. निम्नलिखित गद्यांशों की व्याख्या कीजिए -
(क)
सास के अनुमोदन से.......फिर परदेस चला जाएगा।
(ख)
दरिद्र कुटुंबी इस तरह.......वही दशा हिन्दुस्तान की है।
(ग)
वास्तविक धर्म तो.......शोधे और बदले जा सकते हैं।
विशेष
: इस प्रश्न का उत्तर व्याख्या वाले भाग में देखें।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारतेन्दु जी ने रॉबर्ट साहब को बताया -
(क)
टोडरमल के समान
(ख)
बीरबल के समान
(ग) अकबर के समान
(घ)
अबुल फजल के समान
प्रश्न 2. भारतेन्दुजी के समय अमीर व्यक्ति समझा जाता था -
(क)
ठाट-बाट से रहने वाला
(ख)
बड़ी जमीन-जायदाद का मालिक
(ग) सब से अधिक निकम्मा व्यक्ति
(घ)
समाज-सेवा करने वाला
प्रश्न 3. भारतेन्दु जी के अनुसार सब उन्नतियों का मूल है -
(क) धर्म
(ख)
धन
(ग)
आत्मविश्वास
(घ)
एकता
प्रश्न 4. भारतेन्दु जी ने वास्तविक धर्म माना है -
(क)
तीर्थयात्रा करना
(ख)
गंगास्नान करना
(ग)
धर्म ग्रंथों का अध्ययन
(घ) परमेश्वर के चरणों का भजन
प्रश्न 5. भारतेन्दुजी ने किन वस्तुओं के प्रयोग पर बल दिया -
(क)
सस्ती वस्तुएँ।
(ख) स्वदेशी वस्तुएँ
(ग)
कीमती वस्तुएँ
(घ)
सुलभ वस्तुएँ
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारतेन्दुजी ने हिन्दुस्तानियों को किसके समान बताया है
?
उत्तर
: भारतेन्दजी ने हिन्दस्तानियों को रेल की गाड़ी के समान बताया है।
प्रश्न 2. भारतेन्दुजी के समय सरकारी हाकिम भारतीयों को किस दृष्टि
से देखते थे ?
उत्तर
: वे भारतीयों को गरीब, गंदे और काले आदमी मानकर उनकी उपेक्षा करते थे।
प्रश्न 3. भारतेन्दुजी ने आत्महत्यारा कैसे व्यक्ति को माना है ?
उत्तर
: जो व्यक्ति मनुष्य जन्म पाकर, गुरु का मार्ग- दर्शन पाकर और धन की अनुकूलता पाकर
भी अपना उद्धम न कर पाए, उसे भारतेन्दुजी आत्महत्यारा मानते हैं।
प्रश्न 4. भारतेन्दुजी के भाषण में उद्धृत मूलकदास के दोहे का क्या
भाव है ? लिखिए।
उत्तर
: दोहे का भाव है कि ईश्वर ही सबका पालन कर्ता है। अजगर और पक्षी कोई काम-धंधा नहीं
करते फिर भी उनको भोजन और सुरक्षा मिलती है।
प्रश्न 5. मर्दुमशुमारी की रिपोर्ट से क्या पता चलता था ?
उत्तर
: रिपोर्ट से पता चलता था कि भारत की जनसंख्या निरंतर बढ़ रही थी और लोगों की आय कम
होती जा रही थी।
प्रश्न 6. भारतेन्दु जी ने होली मनाए जाने के पीछे क्या कारण बताया
है ?
उत्तर
: भारतेन्दु के अनुसार होली मनाए जाने के पीछे यह विचार रहा होगा कि इस त्योहार पर
अग्नि जलाए जाने से बसंत ऋतु की वायु शुद्ध हो जाए।
प्रश्न 7. भारतेन्दु जी ने किन माँ-बाप को बच्चों का शत्रु बताया है
?
उत्तर
: जो माँ-बाप अपनी संतानों का छोटी आयु में ही विवाह कर देते हैं, उन्हें भारतेन्दु
जी ने बच्चों का शत्रु बताया है।
प्रश्न 8. भारतेन्दु के अनुसार हिन्दू की परिभाषा क्या होनी चाहिए
?
उत्तर
: भारतेन्दु के अनुसार जो व्यक्ति हिन्दुस्तान में रहे, चाहे वह किसी रंग या जाति का
हो, वह हिन्दू है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. हिन्दुस्तानी लोगों को कोई चलाने वाला हो तो यह क्या नहीं
कर सकते। भारतेन्दुजी का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: भारतेन्दुजी ने भारतीयों की मनोवृत्ति पर व्यंग्य किया है। यहाँ के आदमी आलसी और
निकम्मे स्वभाव वाले हैं। इनमें स्वयं कुछ नया करने का उत्साह नहीं है। ऐसा नहीं है
कि इनमें शक्ति नहीं है। ये हनुमान जैसी असीम शक्ति रखते हैं, किन्तु उस शक्ति का अनुभव
कराने वाले नेतृत्व की आवश्यकता है। कुशल नेतृत्व पाकर ये बड़े और कठिन-से-कठिन कार्य
कर सकते हैं। ये स्वयं मार्ग नहीं खोज सकते। भारतेन्दजी ने भारतीयों की निष्क्रियता
को रेल के डिब्बों का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है। रेल के डिब्बे इंजन के बिना गतिशील
नहीं होते। इसी प्रकार यहाँ के आदमी भी अपने आप उन्नति नहीं कर सकते। इन्हें कोई मार्ग
दिखाए तो ये चल सकते हैं।
प्रश्न 2. उन्नति की घुड़दौड़ में भारतेन्दुजी ने भारतीयों की क्या
स्थिति बताई है ?
उत्तर
: भारतेन्दुजी ने भाषण में कहा कि अंग्रेजी विद्या की और जगत की उन्नति के कारण लाखों
पुस्तकें और हजारों यंत्र आज प्राप्त हैं और विकसित देश उनका उपयोग करके उन्नति की
घुड़दौड़ में आगे निकले जा रहे हैं। साधनों के होते हुए भी आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं।
यह ईश्वर का कोप ही है। भारतेन्दुजी को दुख है कि यदि हम अब भी नहीं जागे और आगे बढ़ने
का प्रयास नहीं किया तो हम कभी आगे नहीं बढ़ सकेंगे।
प्रश्न 3. "किसी देश में भी सभी पेट भरे हए नहीं होते।" भारतेन्दजी
ने यह बात किस प्रसंग में कही है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
: देश में अनेक व्यक्तियों का कहना था कि उन्हें पेट भरने के काम से ही फुरसत नहीं
मिलती थी। वे भला उन्नति आदि की बातें कैसे सोचें ? इस पर भारतेन्दुजी ने कहा कि संसार
में कोई देश ऐसा नहीं मिलेगा, जहाँ सभी लोगों के पेट भरे हों। इंग्लैण्ड आज निरंतर
उन्नति कर रहा है। कभी वहाँ भी लोग पेट भरने के लिए चिंतित रहते थे। उन लोगों ने अपने
पेट भरने के साथ-साथ उन्नति के मार्ग में आने वाली बाधाओं को भी हटाया। इंग्लैण्ड में
भी किसान, खेत-मजदूर, गाड़ीवान, मजदूर और कोचवान आदि हैं। परन्तु वे लोग अपना धंधा
करने के साथ कुछ नया काम या वस्तु बनाने के बारे में भी सोचते रहते हैं। इसी कारण इंग्लैण्ड
निरंतर उन्नति कर रहा था।
प्रश्न 4. "फिर कब राज जनकपुर अइ हैं।" यह पंक्ति भारतेन्दुजी
ने किस संदर्भ में कही है ?
उत्तर
: भारतेन्दुजी ने अपने भाषण में लोगों से कहा कि इस समय उन्नति का शुभ अवसर है। इसे
हाथ से मत जाने दो। राजा-महाराजों से कोई आशा मत करो, वे आलसी और विलासी हैं, स्वार्थी
हैं। पंडितों के चक्कर में भी मत पड़ो। आलस छोड़कर और कमर कस कर खड़े हो जाओ। उन्नति
की इतनी सुविधाएँ पाकर भी नहीं सुधरे तो फिर कब सुधरोगे ? जो बातें तुम्हारे मार्ग
में कंटक हों उन्हें छोड़ो चाहे कितना भी अपमान सहन करना पड़े। इसी संदर्भ में भारतेन्दुजी
ने उपर्युक्त पंक्ति कही थी।
प्रश्न 5. भारतेन्दुजी ने देशहित के लिए युवकों को क्या प्रेरणा दी
?
उत्तर
: भारतेन्दुजी ने कहा देश-हित के लिए अपने को होम कर दो और कमर कसकर खड़े हो जाओ। अपमान
और मान की चिन्ता मत करो। अपने दोषों का जानो और उन्हें दूर करने का प्रयत्न करो। जो
धुएँ और सुख की आड़ लेकर देश की उन्नति में बाधक बन रहे हैं, उन्हें मार्ग से हटाओ।
उन्हें दण्ड दो और देश-हित के लिए कार्य करने को प्रेरित करो। जो बातें उन्नति-पथ में
बाधक बनें, उन्हें हटाओ। जब तक देश-हित के लिए, उन्नति के लिए कुर्बानी नहीं होगी और
देशद्रोहियों को दंडित नहीं करोगे तब तक उन्नति नहीं होगी। इस उद्बोधन से उन्होंने
नवयुवकों को प्रेरित किया।
प्रश्न 6. लड़के-लड़कियों के सम्बन्ध में भारतेन्दुजी के क्या विचार
थे ?
उत्तर
: भारतेन्दुजी ने मेले में जनसमूह को संबोधित करके कहा कि बाल विवाह मत करो। इससे उनका
बल और वीर्य क्षीण होगा। उन्हें पढ़ने दीजिए और परिवार के भरण-पोषण की चिन्ता से मुक्त
रखिए। बाल-विवाह का विरोध कीजिए। लड़कियों को भी पढ़ाइए किन्तु आजकल की तरह की पढ़ाई
मत पढ़ाइए। उन्हें देश और कुलधर्म की शिक्षा दीजिए। पति-भक्ति की शिक्षा दीजिए।
निबंधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. 'हम नहीं समझते कि इनको लाज भी क्यों नहीं आती।' लेखक ने
भारतीयों के लिए ऐसा क्यों का?
उत्तर
: भारतेन्दुजी ने बताया कि भारतीय आलसी और अकर्मण्य हैं। इनें काम करने की लगन नहीं
है। यदि कर्म करने की इच्छा हो तो साधनों के अभाव में भी बहुत कुछ किया जा सकता है।
हमारे पूर्वजों के पास कोई साधन नहीं थे। वे जंगल में पत्तों और मिट्टी की कुटिया में
रहते थे। साधनों के अभाव में भी उन्होंने कुटिया में बैठकर बाँस की नलियों से तारा
ग्रह आदि वेधकर उनकी गति की जानकारी दी थी, जिस गति को विलायत की सोलह लाख से बनी दु:खी
ने ही नाप पाती है। आज जब साधन और सुविधाएँ अधिक हैं और आसानी से उपलब्ध हैं फिर भी
हम काम नहीं करते, उत्पादन नहीं करते, क्योंकि हममें लगन नहीं है। इसलिए भारतेन्दुजी
ने कहा कि इन्हें अपनी स्थिति को देखकर लाज भी नहीं आती।
प्रश्न 2. भारतेन्दुजी ने मुसलमानों को क्या सलाह दी ?
उत्तर
: भारतेन्दुजी ने मुसलमानों को सलाह दी कि वे लोग हिन्दुस्तान में रहते हैं इसलिए हिन्दुओं
के साथ भाई-चारे का व्यवहार करें। ऐसा व्यवहार न करें जिससे आपस में वैर बढ़े, आपत्तियों
के समय सभी आपस में एक-दूसरे का सहयोग करें। मुसलमानों में हिन्दुओं की अपेक्षा कुछ
अच्छाइयाँ हैं। उनमें जाति-भेद नहीं है, चौके-चूल्हे के सम्बन्ध में उनमें हिन्दुओं
की सी बेकार बातें नहीं हैं। विदेश जाने को वे बुरा नहीं समझते। पर मुसलमानों की दशा
अभी भी सुधरी नहीं है। क्योंकि वे आलसी हैं, उनमें हठधर्मी है। हिन्दू-मुसलमान दोनों
मिलकर चलो। एक-एक दो होंगे। दोनों की शक्ति बढ़ेगी। अपने बच्चों को सँभालो, उन्हें
अच्छी पुस्तकें पढ़ने को दो। बच्चों को व्यर्थ फैशन करने से रोको। उन्हें रोजगार सिखाओ।
बचपन से परिश्रमी बनाओ। मिलकर चलने की प्रेरणा दो।
प्रश्न 3. 'भाइयो, अब तो नींद से चौको, अपने देश की सब प्रकार उन्नति
करें।' भारतेन्दुजी ने हिन्दुओं की क्या सन्देश दिया ?
उत्तर
: भारतेन्दुजी ने अपने भाषण में मुसलमानों के साथ हिन्दुओं से भी कुछ अपेक्षाएँ की।
उन्होंने कहा कि हिन्दुओ मत-मतांतर का आग्रह छोड़ो। यह सोचो कि जो हिन्दुस्तान में
रह रहा है चाहे वह किसी रंग, जाति, धर्म का क्यों न हो हिन्दू है और उसके साथ हिन्दुओं
का सा व्यवहार करो। अब आपस में एक दूसरे का हाथ पकड़ो और आगे बढ़ो, कारीगरी सीखो जिससे
देश का रुपया देश में ही रहे। विदेश से कोई वस्तु मत मँगाओ और न उसका उपभोग करो। अब
अपने को सँभालो। विदेशी आगे बढ़ रहे हैं तुम पीछे क्यों हट रहे हो। सब प्रकार से उन्नति
करो। इसी में तुम्हारी भलाई है विदेशी वस्तु और विदेशी भाषा का त्याग करो।
प्रश्न 4. भारतेन्दुजी की दृष्टि में भारत की अवनति का क्या कारण है
?
उत्तर
: भारतेन्दुजी ने भारत की अवनति का मूल कारण आलस्य को माना है। हमें स्वयं सोचने, अपना
मार्ग खोजने और उन्नति करने की इच्छा नहीं है। हमें कोई प्रेरणा दे तभी हम कार्य करते
हैं। देश में कशल नेतत्व का अभाव है। हम विदेशी वस्तुओं पर अधिक निर्भर हैं। स्वयं
प्रयत्न करके अपने देश में उनका उत्पादन करने का प्रयास नहीं करते। अतः देश का रुपया
बाहर जा रहा है। यहाँ मत-मतांतर बहुत हैं। जाति-धर्म, सम्प्रदाय के आधार पर द्वेष का
भाव बढ़ रहा है। हम अपने धर्म को भूल गए हैं। गुलामी भी हमारी अवनति का एक कारण है।
इसी कारण भारत की अवनति हो रही है, जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं है, रूढ़ियों ने भारत
को ग्रस रखा है, जो हमारी उन्नति में बाधक है।
प्रश्न 5. भारतेन्दुजी के भाषण का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर
: भारतेन्दुजी ने अपने भाषण में दो बातों को स्पष्ट किया-एक अंग्रेजी शासन की निरंकुशता
और दूसरी भारतीयों की आलसी प्रवृत्ति। भाषणकर्ता ने अंग्रेजी शासन पर व्यंग्य किया।
उन्होंने देशवासियों के आलासीपन, समय के अपव्यय, अन्धविश्वास पर भी अपना दृष्टिकोण
प्रस्तुत किया। देश की बुराइयों को दूर करने की प्रेरणा दी। ऋषियों की उन बातों को
अपनाने पर भी जोर दिया जो उपयोगी हैं। उनके भाषण का यही उद्देश्य था। उन्होंने भारतीयों
को प्रेरित किया कि वे संसार के अन्य देशों के समान ही भारत को आगे ले जाएँ। परिश्रमी,
उत्साही, उद्यमी और स्वाभिमानी बनकर अपनी छवि को सुधारें।
भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है? एक (सारांश)
लेखक परिचय :
भारतेंदु
हरिश्चंद्र का जन्म काशी में सन् 1850 ई. में हुआ। इन्होंने संस्कृत, हिन्दी, उर्दू,
बंगला और अंग्रेजी भाषा का अध्ययन घर पर ही किया। आपकी बचपन से ही काव्य-रचना के प्रति
रुचि थी। सन् 1885 ई. अल्प वय में ही आपका निधन हो गया। भारतेन्दु ने उस हिन्दी गद्य
का प्रचलन किया जिसे आम हिन्दुस्तानी बोलचाल में एवं व्यवहार में प्रयुक्त करता था।
इसमें संस्कृत, उर्दू के प्रचलित शब्द थे। हिन्दी गद्य को समुचित भाषा प्रदान कर भारतेन्दु
जी ने एक बहुत बड़े अभाव की पूर्ति की, इसीलिए उन्हें हिन्दी गद्य का जनक कहा जाता
है।
'कविवचन
सधा' पत्रिका निकाली और 'हरिश्चन्द्र मैगजीन' का सम्पादन किया। आठ अंकों के बाद इस
पत्रिक का नाम बदलकर 'हरिश्चन्द्र चन्द्रिका' कर दिया गया। इन पत्रिकाओं ने एक ओर तो
नये लेखकों को प्रोत्साहित किया, दूसरी ओर जन-जागरण और समाज-सुधार की भावना जाग्रत
कर हिन्दी समाजसुधार, देशोद्धार से जुड़ी हुई अनेक समस्याओं की ओर सामान्यजन का ध्यान
आकृष्ट किया। हिन्दी गद्य का परिष्कृत रूप सर्वप्रथम हरिश्चन्द्र चन्द्रिका में ही
दृष्टिगोचर हुआ।
भारतेन्दु
का निधन भले ही 35 वर्ष की अल्पायु में हो गया हो, किन्तु उन्होंने यह दिखा दिया कि
प्रबल इच्छाशक्ति होने पर व्यक्ति कम समय में भी कितना यशस्वी और महान हो सकता है।
इनकी प्रतिभा का आदर करते हुए तत्कालीन पत्रकारों ने इन्हें 1880 ई. में 'भारतेन्दु'
की उपाधि प्रदान की और इस प्रकार इनकी साहित्यिक सेवाओं का सम्मान किया।
स्त्री
शिक्षा के लिए 'बाला बोधिनी' पत्रिका निकाली। इनके मौलिक नाटक-श्री चन्द्रावली', 'भारत
दुर्दशा', 'अंधेर नगरी', 'नील देवी' आदि हैं। 'प्रेम सरोवर', 'प्रेम फुलवारी' आदि उनके
काव्य संग्रह हैं।
बलिया
में उत्साह के साथ लोगों को एक स्थान पर देखकर लेखक को प्रसन्नता हुई। अपने भाषण में
उन्होंने कहा-यहाँ नेतृत्व का अभाव है, इस कारण लोगों में उत्साह नहीं है। इन्हें प्रेरित
करने की आवश्यकता है। आर्यों ने राजा और ब्राह्मणों को देश में विद्या और नीति की शिक्षा
फैलाने का उत्तरदायित्व सौंपा। हम अभी विदेशों की अपेक्षा पिछड़े हुए हैं। अंग्रेजों
ने लाखों पुस्तकें और हजारों यंत्रों के सहारे विद्या तथा विज्ञान के अनेक साधन उपलब्ध
कराए। भारतीयों को उन्नति के लिए आलस्य का त्याग करना चाहिए। धर्म सब उन्नतियों का
आधार है। ऋषियों के मन्तव्य को समझें और जो बातें उचित हों उन्हें अपनायें। सभी जाति
के लोग मिलकर रहें। अपने उद्योगों को महत्व दें। देश की उन्नति में सहयोग करें।
पाठका सारांश :
भारतेंदु
जी ने यह निबन्ध बलिया के ददरी मेले के अवसर पर आर्य देशोपकारिणी सभा में भाषण देने
के लिए तैयार किया था। इस भाषण का सार इस प्रकार है
नेतृत्व
का अभाव बलिया में बहुत लोगों को उत्साह के साथ एकत्रित देखकर भारतेंदु जी ने प्रशंसा
की और तत्कालीन कलेक्टर की सराहना की। देश में प्रतिभाशाली लोगों की कमी नहीं है किन्तु
उन्हें प्रेरणा देने वाले कुशल नेतृत्व का अभाव है। भारतीयों में हनुमान की सी अपार
शक्ति है, किन्तु उन्हें मार्ग दिखाने वाला, प्रेरित करने वाला कोई नहीं है। भारतीय
रेल के डिब्बों के समान हैं। रेल के डिब्बों को गति इंजन प्रदान करता है। इन्हें प्रेरित
करने के लिए प्रेरक की आश्वयकता है।
आर्यों
का आगमन आर्यों ने और ब्राह्मणों को देश में शिक्षा-प्रसार का उत्तरदायित्व सौंपा।
उनकी अपेक्षा थी कि हिन्दुस्तान प्रतिक्षण उन्नति के मार्ग पर अग्रसर है। किन्तु भारतीयों
के निकम्मेपन के कारण शिक्षा का प्रसार भली प्रकार नहीं हो सका।
रतेन्दु
की पीड़ा निकम्मेपन के कारण हम पिछड़ रहे हैं, साधनों के अभाव में पूर्व पुरुषों ने
बाँस की तीलियों से ताराग्रह वेध किए, आज साधनों की कमी नहीं है। यह प्रतिस्पर्धा का
युग है। अमेरिकी, अंग्रेज, फ्रांसीसी और जापानी उन्नति की घुड़दौड़ में शामिल हैं।
सब आगे बढ़ने के प्रयास में हैं और हम चुंगी की कचरा फेंकने की गाड़ी बना रहे हैं।
इस दौड़ में पीछे रह गए तो आगे उन्नति सम्भव नहीं है।
अंग्रेजी
शासन में सुविधाएँ - अंग्रेजों ने पुस्तकों और यंत्रों के द्वारा शिक्षा-प्रसार के
लिए अनेक साधन उपलब्ध कराए। उनके राज्य में सब प्रकार का सामान पाकर और अवसर पाकर भी
हम उन्नति नहीं कर सके। यह हमारा दुर्भाग्य ही है। हम सुविधा और अवसर पाकर भी कुएँ
के मेंढ़क, काठ के उल्लू, पिंजड़े के गंगाराम ही रह गए, यह हमारा दुर्भाग्य ही है।
आलसी
प्रवृत्ति - भारत के लोग पेट के धन्धे का बहाना बनाकर अपने निकम्मेपन को छिपाते हैं।
ये उन्नति करना नहीं चाहते। इंग्लैंड का छोटे-से-छोटा मजदूर भी पेट की चिन्ता करता
है पर उन्नति का भी ध्यान रखता है। वे नई कल और मसाला बनाने की चिन्ता करते हैं। खाली
समय का उन्नति के लिए उपयोग करते हैं। भारतीय आलसी हैं। ये हुक्का पीकर और गप्प लगाकर
खाली समय का दुरुपयोग करते हैं। हमारे यहाँ निकम्मेपन को अमीरी की निशानी समझा जाता
है। यहाँ निकम्मे नौजवान अधिक हैं।
प्रेरणास्पद
भावना - भारतेन्दु जी ने युवकों को प्रेरणा दी है कि राजा-महाराजाओं की ओर मत देखो।
पंडितों से रुपया कमाने का उपाय मत पूछो। आलस्य छोड़कर कमर कसकर खड़े रह जाओ। कब तक
जंगली हूस और मूर्ख बने रहेंगे। अब पिछड़ गए तो फिर बढ़ना असम्भव है। इस सुविधा का
लाभ उठाओ। हर क्षेत्र में सुधरो और उन्नति करो।
भारतोन्नति
का मूलाधार - धर्म सब उन्नतियों का आधार है। उसकी उन्नति आवश्यक है। अंग्रेजी की धर्म
और राजनीति एक है। हमारे यहाँ धर्मनीति और समाज नीति को दूध पानी की तरह मिला दिया
है। यहाँ ध नीति, समाज-गठन और वैद्यक आदि भरे पड़े हैं। एक कारण यह भी है कि हमने ऋषियों
के आशय को नहीं समझा और नए-नए धर्म बनाकर शास्त्रों में धर दिए। ऋषियों के मन्तव्य
को समझकर जो बातें उपयोगी हैं, उन्हें स्वीकार कर लें। जो बातें
समाज
- विरुद्ध मानी हैं, किन्तु धर्मशास्त्र में उनका विधान है उन्हें स्वीकार कीजिए। छोटी
आयु में लड़कों का विवाह न करें, उन्हें पढ़ाइए, मेहनत करने दीजिए, रोजगार की शिक्षा
दीजिए। लड़कियों को भी पढ़ाना चाहिए। कुल धर्म की शिक्षा भी देनी चाहिए। भातृत्व का
भाव धर्म, जाति, सम्प्रदाय के आधार पर वैमनस्य न हो। भाईचारे का भाव हो। ऊँच-नीच का
भाव न हो, सबका आदर होना चाहिए। मुसलमान हिन्दुस्तान में रहकर हिन्दुओं को नीच न समझें।
भाई-भाई की तरह मिलकर रहें और प्रेम क व्यवहार करें। देश की उन्नति के लिए दोनों मिलकर
काम करें। कुरीतियों के कारण मुसलमानों की दशा ठीक नहीं है, उसे सुधारने का प्रयत्न
करें। हिन्दू भी मत-मतान्तर छोड़कर मिलकर रहें और आपस में सहयोग करें।
उद्योग
- धन्धों का विकास अपने लोगों को कारीगरी सिखाओ। विदेशी सामान का उपभोग करने की अपेक्षा
अपने ही देश की वस्तुओं का उपयोग करें। देश का रुपया देश में ही रहे। अपने देश की उन्नति
करो, इसी में भलाई है।
कठिन शब्दार्थ :
महसूल
= किराया।
हाकिम
= अधिकारी।
गरज
= मतलब, आवश्यकता।
गम
= दुख।
गैर
= दूसरा।
प्रतिछिन
= निरंतर।
बौद्धारो........स्मरदूषिता
= स्मरदषिता = बुद्धिमान लोग ईर्ष्या-द्वेष से ग्रस्त हैं।
पुरुषों
= पुरखों।
वेध
करना = अध्ययन या खोज करना।
कतवार
= कूड़ा।
चुंगी
= नगरपालिका।
फ्ररासीस
= फ्रांस के लोग।
तुरकी
ताजी = घोड़ों की श्रेष्ठ नस्लें।
हिन्दू
काठियावाड़ी = भारतीय घोड़े।
कम्बख्ती
= दुर्भाग्य।
कोप
= क्रोध।
अनुमोदन
= स्वीकृति, समर्थन।
गंगाराम
= तोता (व्यंग्यार्थ)।
कल
= यंत्र।
निकम्मी
= व्यर्थ की।
चाकरी
= नौकरी।
मुसाहबी
= चापलूसी।
जमा
= धन, पैसा।
मर्दुमशुमारी
= जनगणना।
हूस
= असभ्य।
बोदे
= दुर्बल।
रसातल
= सबसे नीचे या पीछे।
गौरे
= गौर देश के लोग, मुहम्मद गौरी के सैनिक।
शब्दभेदी
बाण = शब्द को सुनकर बाण से भेदना।
ताबे
= रोटी सेकने के तबे।
कमान
= धनुष।
जिनि
= मत, नहीं।
चुक्के
= चूके, चूक जाए।
कंटक
= काँटा, बाधा।
कृस्तान
= ईसाई, अंग्रेज।
अपमान
पुरस्कृत्य......मूर्खता।
बुद्धिमान
व्यक्ति को अपमान सहते हुए और सम्मान की चिंता न करते हुए भी अपने कार्य को सफल बनाना
चाहिए। कार्य में असफल होना तो घोर मूर्खता कहलाती है।
होम
करके = हवन करके, ध्यान न देकर।
वैद्यक
= चिकित्सा, स्वास्थ्य संबंधी बातें।
उपवास
= भोजन नं करना।
तिवहार
= त्योहार।
हिकमत
= लाभ, अच्छाई।
देशकाल
= स्थान और समय।
शोधे
= संशोधित किया जाना।
फलानी
= अमुक।
पैर
काठ में डालना = विवाह कर देना।
शाक्त
= शक्ति या देवी के उपासक।
तिरस्कार
= अपमान।
धौरानी
= देवरानी (पति के छोटे भाई की पत्नी)।
डाह
= जलन, ईर्ष्या।
मयस्सर
= प्राप्त।
मीर
हसन = एक पुराना लेखक।
मनसी
= मीर हसन लिखित ग्रंथ।
इंदरसभा
= एक पुराना ग्रंथ।
तिफली
से = बचपन से।
गुल
= फूल, सुंदर रूप।
दीदार
= दर्शन, देखना।
गुलिस्तां
= उपवन, बाग।
तालीम
= शिक्षा।
पिनशन
= पैंशन।
मत-मतांतर
= विभिन्न मान्यताएँ।
आग्रह
= बल देना।
सिर
झारना = कंघा करना।
बेफिकरे
= चिंताओं से मुक्त व्यक्ति।
मसल
= उदाहरण, कहावत।
महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्यारव्याएँ -
1.
लोगों को कोई चलानेवाला हो, तो ये क्या नहीं कर सकते। इनसे इतना कह दीजिए, “का चुप
साधि रहा बलवाना" फिर देखिए कि हनुमान जी को अपना बल कैसे याद आ जाता है। सो बल
कौन याद दिलावे या हिंदुस्तानी रांजे-महाराजे या नवाब रईस या हाकिम। राजे-महाराजों
को अपनी पूजा, भोजन, झूठी गप से छुट्टी नहीं। हाकिमों को कुछ तो सरकारी काम घेरे रहता
है, कुल बॉल, घुड़दौड़, थिएटर, अखबार में समय गया। कुछ समय बचा भी तो उनको क्या गरज
है कि हम गरीब गंदे काले आदमियों से मिलकर अपना अनमोल समय खोवें। बस वही मसल हुई -
“तुम्हें गैरों से कब फुरसत हम अपने गम से कब खाली। चलो, बस हो चुका मिलना न हम खाली
न तुम खाली।"
संदर्भ
- प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के
भाषण 'भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है? ' से अवतरित है।
प्रसंग
- इस अंश में भारतेन्दु बलिया के मेले में जनता को भाषणे देते हुए कह रहे हैं कि उनको
स्वयं ही जागरूक होकर अपनी उन्नति करनी होगी।
व्याख्या
- भारतेन्दु कहते हैं कि भारत के लोगों को कोई सही मार्गदर्शक या नेता मिल जाए तो ये
कुछ भी करके दिखा सकते हैं। इनका स्वभाव रामचरितमानस के पात्र हनुमान जी से मिलता हुआ
है। जैसे समुद्र पार करके लंका जाने वाले हनुमान को जामवंत ने उनका पराक्रम याद दिलाया
था और हनुमान उस कठिन कार्य को संपन्न करके लौट आए थे। उसी प्रकार भारतीयों को कोई
उनका बल-विक्रम और चतुराई याद करा दे तो ये भी महान से महान कार्य पूरा करके दिखा सकते
हैं।
भारतेन्दु
कहते हैं कि आज ऐसा कोई मार्गदर्शक देश में नहीं है। देशी राजा-महाराजा पूजा-पाठ, स्वादिष्ट
भोजन और गप्पें लड़ाने में मस्त रहते हैं। सरकारी अधिकारियों को, सरकारी कामों से और
अपने घुड़दौड़, थिएटर आदि मनोरंजनों से फुर्सत नहीं है। 'काले भारतीयों की भलाई करने
की कोई चिंता नहीं। इसलिए उनकी उन्नति के बारे में कौन सोचेगा? तुमको फुर्सत नहीं है
तो फिर मिलना कैसे हो सकता है। जनता को स्वयं देश की उन्नति के लिए जागरूक होना पड़ेगा।
विशेष
:
1.
भारतेन्दु जी के मन में देश की जनता के पिछड़ेपन को लेकर जो व्यथा थी, वह इस अंश में
स्पष्ट झलक रही है।
2.
भाषा सरल है। हिन्दी गद्य के पुराने स्वरूप के दर्शन होते हैं।
3.
वाक्य रचना भी वर्तमान स्वरूप से भिन्न है। यथा-'सो बल कौन याद दिलावे या हिन्दुस्तानी
राजे-महाराजे या नवाब रईस......!
4.
उद्धरण-शैली का प्रयोग हुआ है।
2.
यह समय ऐसा है कि उन्नति की मानो घुड़दौड़ हो रही है। अमेरिकन, अंग्रेज फरांसीस आदि
तुरकी ताजी सब सरपट्ट दौड़े जाते हैं। सबके जी में यही है कि पाला हमीं पहले छू लें।
उस समय हिंदू काठियावाड़ी खाली खड़े-खड़े टाप से मिट्टी खोदते हैं। इनको, औरों को जाने
दीजिए, जापानी टटुओं को हाँफते हुए दौड़ते देखकर भी लाज नहीं आती। यह समय ऐसा है कि
जो पीछे रह जाएगा, फिर कोटि उपाय किए भी आगे न बढ़ सकेगा। इस लूट में, इस बरसात में
भी जिसके सिर पर कमबख्ती का छाता और आँखों में मूर्खता की पट्टी बँधी रहे उन पर ईश्वर
का कोप ही कहना चाहिए।
संदर्भ
-
प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित 'भारतेन्दु हरिश्चन्द्र' के
भाषण 'भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?' से लिया गया है। इस अंश में भारतेन्दु
मेले में आई जनता को समझा रहे हैं कि संसार के सभी देश अपनी उन्नति के लिए कठोर परिश्रम
कर रहे हैं। ऐसे समय में भारतीयों के पिछड़े रह जाना बड़ी लज्जा की बात है।
व्याख्या
- भारतेन्दु कह रहे हैं कि सारे संसार में उन्नति के लिए, देशों के बीच घुड़ दौड़-सी
हो रही है। अमेरिका वाले, अंग्रेज और फ्रांसीसी आदि बढ़िया नस्ल के घोड़ों की तरह इस
दौड़ में सरपट भागे जा रहे हैं। हर देश यही चाह रहा है कि वह सबसे पहले उन्नति कर ले।
ऐसे समय में भारत के लोग, काठियावाड़ी, घटिया किस्म के घोड़ों के समान व्यर्थ की उछलकूद
करते हुए, देश को लजा रहे हैं। चलो इन बड़े देशों को छोड़ भी दें तो जापान जैसे छोटे
से देश भी हम से आगे से अधिक लज्जा की और क्या बात हो सकती है। भारतेन्दु जी सावधान
कर रहे हैं कि यदि हम ऐसे सुअवसर पर भी चूक गए, पिछड़ गए तो फिर करोड़ों उपाय करके
भी उन्नति नहीं कर पाएँगे।
जब
दुनिया में उन्नति की लूट सी हो रही है, वर्षा सी हो रही है तब भी हम लोगों ने सिरों
पर दुर्भाग्यरूपी छाते लगा रखे हैं। आँखों पर मुर्खतारूपी पटियाँ बाँध रखी हैं। इससे
तो यह सिद्ध होता है कि भगवान ही हम से सुअवसर पर चूक रहे हैं।
विशेष
:
1.
भाषा में आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग है।
2.
शैली प्रेरणात्मक, उपदेशात्मक और व्यंग्यात्मक है।
3.
भारतवर्ष की उन्नति के लिए भारतेन्दु जी की तड़प, शब्द-शब्द से व्यंजित हो रही है।
3.
सास के अनुमोदन से एकांत रात में सूने रंगमहल में जाकर भी बहुत दिन से जिस प्रान से
प्यारे परदेसी पति से मिलकर छाती ठंडी करने की इच्छा थी, उसका लाज से मुँह भी न देखे
और बोलै भी न, तो उसका अभाग्य ही है। वह तो कल फिर परदेस चला जाएगा।
संदर्भ
- प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के
भाषण 'भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?' से उद्धृत है।
प्रसंग
- अंग्रेजी शासन में उन्नति की सभी सुविधाएँ उपलब्ध थीं, किन्तु भारतीयों ने उनका उपयोग
कर उन्नति नहीं की। इसी का वर्णन यहाँ है।
व्याख्या
-
भारतेन्दुजी ने भाषण में कहा कि जिस प्रकार दुर्लभ मानव शरीर और गुरु की कृपा पाकर
भी जिसने संसार-सागर पार नहीं किया उसका जीवन व्यर्थ है। इसी प्रकार अंग्रेजों के राज्य
में अनेक यंत्र और ज्ञान-विज्ञान की अनेक पुस्तकें तथा बहुत सा सामान उपलब्ध है फिर
भी हम उन्नति नहीं कर रहे हैं। यह भारतीयों का दुर्भाग्य ही है। हमारी आँखों पर मर्खता
की पट्टी बँधी रहे. इसे ईश्वर की अकपा ही कहना चाहिए। एक उदाहरण देकर उन्होंने अपनी
बात को पष्ट किया है। यदि सास की स्वीकृति पाकर भी कोई बहू जो लम्बे समय से परदेशी
पति से मिलने की इच्छुक थी, लाज के कारण पति का मुँह भी न देख सके और अपनी छाती ठंडी
न कर सके, उससे बात भी न कर सके, तो इसे उसका दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। सभी सुविधाओं
को पाकर भी भारतीय लोग अपनी उन्नति न कर सकें तो यह उनका दुर्भाग्य ही था।
विशेष
:
1.
भारतीयों की अकर्मण्यता पर व्यंग्य है।
2.
भाषा सरल है। 'छाती ठंडी करना' मुहावरे का प्रयोग हुआ है।
4.
दरिद्र कुटुंबी इस तरह अपनी इज्जत को बचाता फिरता है, जैसे लाजवंती कुल की बहू फटे
कपड़ों में अपने अंग को छिपाए जाती है। वही दशा हिन्दुस्तान की है।
संदर्भ
-
भारतेन्दुजी के भाषण 'भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है?' से ये पंक्तियाँ उद्धृत
हैं। यह भाषण अंतरा भाग-1 में संकलित है।
प्रसंग-हिन्दुस्तानी
आलसी हैं, कामचोर हैं इसलिए गरीब हैं। गरीबी के कारण गन्दी आदतों में पड़ जाते हैं,
अकरणीय कार्य करते हैं। इसी प्रसंग में यह कथन है।
व्याख्या
- भारतेन्दुजी ने अपने भाषण में कहा कि भारत के लोग आलसी हैं, काम से घबराते हैं, निकम्मे
हैं। बेरोजगारी की संख्या अधिक है। कोई रोजगार नहीं होने के कारण अमीरों की चापलूसी
करते हैं। अकरणीय कार्य करते हैं। उन्हें करने में वे लज्जा का अनुभव भी नहीं करते।
जिस प्रकार कोई कुलवधू कपड़े फटे होने पर लज्जा के कारण अपने अंगों को छिपाती है, लोगों
की निगाह से बचने का प्रयत्न करती है। उसी प्रकार गरीब भारतीय भी दूसरों के समान अपनी
गरीबी को छिपाने का प्रयास करते रहते हैं। स्वयं को गरीब कहलाने में इन्हें लज्जा का
अनुभव होता है।
विशेष
:
1.
भारतीयों की निर्धनता और बेरोजगारी का मूल कारण आलस्य है, यह बताया गया है।
2.
भाषा सरल है।
3.
शैली व्यंग्यात्मक और उद्धरणात्मक है।
5.
मर्दुमशुमारी की रिपोर्ट देखने से स्पष्ट होता है कि मनुष्य दिन-दिन यहाँ बढ़ते जाते
हैं और रुपया दिन-दिन कमती होता जाता है। तो अब बिना ऐसा उपाय किए काम नहीं चलेगा कि
रुपया भी बढ़े और वह रुपया बिना बुद्धि बढ़े न बढ़ेगा।
भाइयो,
राजा-महाराजों का मुँह मत देखो, मत यह आशा रक्खो कि पंडित जी कथा में कोई ऐसा उपाय
भी बतलाबैंगे कि देश का रुपया और बुद्धि बढ़े। तुम आप ही कमर कसो, आलस छोड़ो। कब तक
अपने को जंगली, हूस, मूर्ख, बोदे, डरपोकने पुकरवाओगे। दौड़ो, इस घोड़दौड़ में जो पीछे
पड़े तो फिर कहीं ठिकाना नहीं है।
संदर्भ
- प्रस्तुत गद्यांश पाठ्यपुस्तक 'अंतरा भाग-1' संकलित 'भारतेन्दु हरिश्चन्द्र' के भाषण
'भारतवर्ष की उन्नत कैसे हो सकती है ?' से लिया गया है।
प्रसंग
- इस गद्यांश में भारतेन्दु भारतीयों को प्रेरित कर रहे हैं कि वे आलस्य त्याग कर स्वावलम्बी
बनें। किसी दूसरे का मुँह न देखें।
व्याख्या
- भारतेन्दु जी देशवासियों की दुर्दशा देखकर बड़े व्यथित थे। अपने भाषण में उन्होंने
भारतीयों को संबोधित करते हुए कहा है कि देश की जनसंख्या निरंतर बढ़ती जा रही थी और
आय निरंतर घटती जा रही थी। अत: देशवासियों को ऐसे उपाय करने चाहिए जिनसे आय में भी
वृद्धि होती रहे। आय तभी बढ़ेगी जब लोग अपना भला-बुरा, उचित-अनुचित सोचते हुए काम करें।
ये सरकारी चापलूस, राजे-महाराजे तो तुम्हारी आय बढ़ाने से रहे।
ये
तो स्वयं ही जनता का शोषण करते आए हैं। न कोई कथावाचक तुम्हें ऐसा उपाय बता देगा कि
बिना परिश्रम किए देशवासी धनवान हो जाएँ, बुद्धिमान हो जाएँ। अब तो तुम्हें भी आलस्य
त्यागकर अपनी उन्नति के लिए कमर कसनी पड़ेगी। अन्य देशों के लोग और अंग्रेजी शासक कहते
आ रहे हैं कि भारतीय जंगली हैं, असभ्य हैं, मूर्ख हैं, कमजोर दिलवाले और डरपोक हैं।
इस कलंक को सदा के लिए मिटा दो। उन्नति भी दौड़ में आगे निकलने का सुअवसर मिला है।
इसका पूरा लाभ उठाओ। यदि इस बार चूक गए तो फिर जीवन में कभी आगे न बढ़ पाओगे।
विशेष
:
1.
गद्यांश में भारतेन्दुजी का देशप्रेम तो छलक ही रहा है, देशवासियों के पिछड़ेपन का
दर्द भी सामने आया है।
2.
भाषा सरल है।
3.
शैली प्रेरणास्पद और उपदेशात्मक है।
6.
उन लोगों ने धर्मनीति और समाजनीति को दूध-पानी की भाँति मिला दिया है। खराबी जो बीच
में भई है वह यह है कि उन लोगों ने ये धर्म क्यों मानने लिखे थे, इसका लोगों ने मतलब
नहीं समझा और इन बातों को वास्तविक धर्म मान लिया। भाइयो, वास्तविक धर्म तो केवल परमेश्वर
के चरण कमल का भजन है। ये सब तो समाज धर्म हैं, जो देशकाल के अनुसार शोधे और बदले जा
सकते हैं।
संदर्भ
-
प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के
भाषण 'भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?' से लिया गया है।
प्रसंग
- इस अंश में भारतेन्दुजी ने भारतवासियों में व्याप्त धार्मिक अंधविश्वासों पर व्यंग्य
किया है।
व्याख्या
-
भारतेन्दुजी कहते हैं कि हमारे पूर्वजों ने धर्म को लेकर जो नियम बनाए हैं, उनमें सामाजिक
जीवन को लाभ पहुँचाने वाली बातें छिपी हुई हैं। धर्म को आधार बना कर उन्होंने ऐसी व्यवस्थाएँ
बनाईं, जिनके पालन से स्वास्थ्य, स्वच्छता तथा सामाजिक भाईचारे आदि के लाभदायक नियमों
का स्वतः ही पालन होता रहता है। किन्तु आगे चलकर लोग, उन धार्मिक रीतियों और नियमों
को बनाए जाने के उद्देश्य को तो भूल गए और उन नियमों को ही धर्म मान बैठे। वास्तविक
धर्म ये नियम और परंपराएँ नहीं हैं। वास्तविक धर्म तो ईश्वर की सच्चे मन से आराधना
करना है। धर्म के नाम पर पालन की जाने वाली ये बातें समान धर्म या उपधर्म कही जा सकती
हैं। इन सामाजिक रीति-रिवाजों को स्थान और समय के अनुसार सुधारते रहना ही बुद्धिमानी
है। धर्म के नाम पर अंधविश्वासों को गले लगाए रखना, मुर्खता ही मानी जाएगी।
विशेष
:
1.
भारतेन्दुजी ने भारतीय समाज में व्याप्त अंधपरंपराओं का स्पष्ट रूप से विरोध करते हुए
देशवासियों को प्रगतिशील विचारों को अपनाने की प्रेरणा दी है।
2.
'खराबी जो बीच में भई है' जैसे भारतेन्दुकालीन हिन्दी गद्य के प्रयोग हैं।
3.
भाषा सरल है।
4.
शैली व्याख्यात्मक और प्रेरणात्मक है।
7.
मीरहसन की 'मसनवी' और 'इंदरसभा' पढ़ाकर छोटेपन ही से लड़कों का सत्यानाश मत करो। होश
सम्हाला नहीं कि पट्टी पार ली, चुस्त कपड़ा पहना और गजल गुनगुनाए। “शौक तिफ्ली से मुझे
गुल की जो दीदार का था। न किया हमने गुलिस्ताँ का सबक याद कभी।" भला सोचो कि इस
हालत में बड़े होने पर वे लड़के क्यों न बिगड़ेंगे अपने लड़कों को ऐसी किताबैं छूने
भी मत दो। अच्छी से अच्छी उनको तालीम दो।
संदर्भ
- प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के
भाषण 'भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है ?.' से लिया गया है।
प्रसंग
- इस गद्यांश में भारतेन्दुजी ने समकालीन मुस्लिम समाज के पुरातनपंथी स्वरूप पर बड़ा
सोचना और मार्मिक व्यंग्य किया है। मुस्लिमों को किस्से-कहानियों की दुनिया से बाहर
आकर, वक्त के साथ बदल जाने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या
- भारतेन्दु हिन्दुओं के साथ ही मुसलमानों को भी जागने और समय के साथ चलने की प्रेरणा
दे रहे हैं। मीर हसन द्वारा लिखी गई 'मसनबी' और 'इन्दरसभा' जैसी प्रेम कथाओं को बढ़ते
हुए बड़े होने वाले मुसलमान बच्चों का भविष्य क्या होगा, इसकी ओर भारतेन्दु ध्यान दिला
रहे हैं। ये लड़के इन कथाओं को पढ़कर अपने भविष्य का सत्यानाश करते आ रहे थे। बचपन
से ही सजने-सँवरने के चक्कर में पड़ जाते थे। बालों में पट्टियाँ डालकर, चुस्तं कपड़े
पहनकर, ये नादान, इश्क की गजलें गुन-गुनाने लगते थे। नतीजा यह होता था कि 'गुलों' के
चक्कर में पड़ जाने से ये 'गुलिस्ताँ' की कठोर सच्चाई से वाकिफ नहीं हो पाते थे। इन
हालातों में पड़कर ये लड़के अपने भविष्य को बरबाद कर रहे थे। भारतेन्दु कहते हैं कि
अगर इन बच्चों की जिन्दगी सँवारनी है तो ऐसी किताबों से इन्हें बिलकुल दूर रखना होगा।
इन्हें जीवन में काम आने वाली शिक्षा दिलानी होगी। तभी मुसलमान समाज अपनी जिंदगी को
सुधार पाएगा।
विशेष
:
1.
भारतेन्दु हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों को ही समय के साथ चलने की प्रेरणा दे रहे हैं।
2.
भाषा सरल है और शैली व्यंग्यात्मक है।