Textbook Questions and Answers
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प्रश्न 1. निम्नलिखित पदों को समझाइए-
(A) खाद्य विज्ञान, (B) खाद्य संसाधन, (C) खाद्य प्रौद्योगिकी, (D)
खाद्य विनिर्माण, (E) खाद्य का खराब होना।
उत्तर
:
(A)
खाद्य विज्ञान-खाद्य विज्ञान एक विशिष्ट क्षेत्र है जिसमें
आधारभूत विज्ञान विषयों, जैसे-रसायन और भौतिकी, पाक कलाओं, कृषि विज्ञान और सूक्ष्मजीवी
विज्ञान के अनुप्रयोग शामिल हैं।
यह
एक बहुत व्यापक विषय विशेष है जिसमें फसल काटने अथवा पशुवध से लेकर भोजन पकाने और उपभोग
तक खाद्य के सभी तकनीकी पहलू जुड़े हुए हैं। खाद्य वैज्ञानिकों को खाद्य पदार्थों का
संघटक, फसल काटने से लेकर विभिन्न प्रक्रमों और भंडारण की विभिन्न स्थितियों में होने
वाले परिवर्तनों, उनके नष्ट होने के कारण और खाद्य संसाधन से जडे सिद्धान्तों के अध्ययन
के लिए जीवविज्ञान, भौतिक विज्ञानों और अभियांत्रिकी का उपयोग करना पड़ता है। खाद्य
वैज्ञानिक खाद्य के भौतिक-रासायनिक पहलुओं से संबंध रखते हुए हमें खाद्य की प्रकृति
और गुणों को समझने में मदद करते हैं।
(B)
खाद्य संसाधन-संसाधन ऐसी विधियों और तकनीकों का समूह है,
जो कच्ची सामग्रियों को तैयार या आधे तैयार उत्पादों में बदल देता है। खाद्य संसाधन
के लिए पौधों, और/अथवा जंतुओं से प्राप्त अच्छी गुणवत्ता वाले कच्चे माल की आवश्यकता
होती है जिसे आकर्षण, विपणन योग्य और अकसर लम्बे.सुरक्षा-बल वाले खाद्य उत्पादों
में बदला जाता है।
(C)
खाद्य प्रौद्योगिकी-खाद्य प्रौद्योगिकी विभिन्न प्रकार के खाद्य
पदार्थों के उत्पादन के लिए खाद्य विज्ञान और खाद्य अभियांत्रिकी का उपयोग करती है,
इसका लाभ उठाती है। खाद्य प्रौद्योगिकी का अध्ययन विज्ञान और प्रौद्योगिकी को गहरा
देता है और सुरक्षित, पोषक, संपूर्ण, वांछनीय के साथ-साथ सस्ते, सुविधाजनक खाद्य पदार्थों
के चयन, भंडारण, संरक्षण, संसाधन पैक करने के कौशलों को विकसित करता है। खाद्य प्रौद्योगिकी
का एक अन्य महत्त्वपूर्ण पक्ष सभी उत्पादित खाद्यों को सुरक्षित करना और उपयोग में
लाना है।
(D)
खाद्य विनिर्माण-खाद्य विनिर्माण में वैज्ञानिक ज्ञान तथा प्रौद्योगिकी
का उपयोग करके कच्चे माल को मध्यवर्ती स्तर पर तैयार खाद्य पदार्थों अथवा तुरन्त खाने
के लिए तैयार उत्पादों में बदला जाता है। इसके अन्तर्गत स्थूल, नाशवान और कभी-कभी खाये
जा सकने वाले पदार्थों को अधिक उपयोगी, सांद्रित, लंबे समय तक स्थायी रहने योग्य और
स्वादिष्ट खाद्य पदार्थों में बदलने के लिए विभिन्न उपक्रम उपयोग में लाये जाते हैं।
(E)
खाद्य का खराब होना-खाद्य पदार्थ भौतिक, रासायनिक और जैविक रूपों
से खराब हो सकते हैं। इसके अन्तर्गत खाद्य के विकृत होने के साथ उसका नष्ट होना, उसमें
दुर्गंध आना, उसकी बनावट नष्ट होना, रंग बिगड़ना, भिन्न स्तर पर पोषण मान में कमी,
सौंदर्य बोध में कमी और उपयोग के लिए अनुपयुक्त/असुरक्षित होना सम्मिलित है।
खाद्य
के खराब होने के लिए जो कारक उत्तरदायी हैं, वे हैं-पीड़क, कीटों का आक्रमण, भंडारण
के लिए अपेक्षा से अनुपयुक्त ताप, प्रकाश और अन्य विकिरण, ऑक्सीजन और नमी का अत्यधिक
प्रभाव, आदि। ये प्राकृतिक रूप से उपस्थित एंजाइम द्वारा निम्नीकरण से भी नष्ट हो जाते
हैं।
प्रश्न 2. खाद्य प्रौद्योगिकी के महत्त्व को संक्षेप में समझाइए। इसने
आधुनिक महिलाओं विशेषकर कार्यरत महिलाओं के जीवन पर किस प्रकार प्रभाव डाला है?
उत्तर
: खाद्य प्रौद्योगिकी का महत्त्व-
(1)
खाद्य प्रौद्योगिकी ने विविध प्रकार के सुरक्षित और सुविधाजनक खाद्य पदार्थ उपलब्ध
कराए हैं। खाद्य प्रौद्योगिकी में पाश्चुरीकरण खाद्य की सूक्ष्मजीवों से सुरक्षा करने
के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम रहा है।
(2)
खाद्य प्रौद्योगिकी को प्रारंभ में सेना की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग में
लाया गया।
(3)
बीसवीं सदी में, कामकाजी महिलाओं की आवश्यकताओं को विशेष रूप से पूरा करने के लिए तत्काल
मिलाकर बनने वाले सूप मिश्रण और पकाने को तैयार पदार्थ एवं भोजन सम्मिलित करते हुए
प्रोद्योगिकियाँ विकसित हुईं। इसने कार्यरत महिलाओं के जीवन को आसान बनाया।
(4)
खाद्य प्रौद्योगिकी ने पोषण सम्बन्धी मुद्दों पर ध्यान दिया तो भोजन की अधिमान्यताएँ
और रुचियाँ बदलने से लोगों ने विभिन्न क्षेत्रों की खाद्य वस्तुएँ व्यंजक अपनाना आरंभ
कर दिया और पूरे वर्ष में मौसमी खाद्यों के लिए पसंद भी बढ़ गई। फलस्वरूप खाद्य प्रौद्योगिकी
ने नयी तकनीकों का उपयोग कर सुरक्षित और ताजे खाद्य उपलब्ध कराना प्रारंभ कर दिया।
(5)
अतः विकासशील देशों में तेजी से फैल रहे और विकसित हो रहे खाद्य प्रौद्योगिकी के क्षेत्र
ने, खाद्य सुरक्षा में सुधार लाने में मदद की है और सभी स्तरों पर रोजगार के रास्ते
भी खोल दिए हैं।
प्रश्न 3. खाद्य परिरक्षण की उन पुरानी विधियों की उदाहरण सहित सूची
बनाइए जो घरों में उपयोग में लाई जाती हैं और वर्तमान में उनकी क्या व्यवहार्यता है?
उत्तर
: खाद्यों को फसल कटने या पशु वध के बाद नष्ट होने से बचाने की विधियाँ इतिहास पूर्व
काल से चली आ रही हैं। पुरानी विधियाँ जो घरों में उपयोग में लाई जाती हैं, वे हैं-
- धूप में सुखाना,
- नियंत्रित किण्वन,
- नमक लगाना या अचार बनाना,
- सेकना,
- भूनना,
- धूमन,
- चूल्हे में पकाना और
- मसालों का परिरक्षी के रूप में उपयोग करना।
यद्यपि
औद्योगिक क्रांति आने से नयी विधियाँ विकसित हो चुकी हैं परन्तु ये अजमाई और परखी हुई
विधियाँ आज भी उपयोग में लाई जा रही हैं।
प्रश्न 4. खाद्य परिरक्षण की वर्तमान स्थिति तक इसके विकास का संक्षिप्त
विवरण दीजिए।
उत्तर
: खाद्य परिरक्षण का विकास
खाद्य
परिरक्षण के विकास को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-
(1)
डिब्बाबन्दी-खाद्य संरक्षण तकनीक-वर्ष 1810 ई. में निकोलस
ऐप्पर्ट द्वारा खाद्य पदार्थों को डिब्बों में बंद करने की प्रक्रिया को विकसित करना
एक निर्णायक घटना थी। डिब्बाबंदी का खाद्य संरक्षण तकनीकों पर प्रमुख प्रभाव पड़ा।
(2)
पाश्चुरीकरण-1864 ई. में लुई पाश्चर द्वारा अंगूरी शराब
के खराब होने पर शोध 'उसे खराब होने से कैसे बचाएं' का वर्णन खाद्य प्रौद्योगिकी संरक्षण
को वैज्ञानिक आधार देने का प्रारंभिक प्रयास था। अंगूरी शराब के खराब होने के अतिरिक्त
पाश्चर ने ऐल्कोहल, सिरका, अंगूरी शराब और बीयर के अतिरिक्त दूध के खट्टा होने पर शोध
कार्य किया और उन्होंने रोग उत्पन्न करने वाले जीवों को नष्ट करने के लिए पाश्चुरीकरण
प्रक्रम को विकसित किया। पाश्चुरीकरण खाद्य की सूक्ष्म जीवों से सुरक्षा सुनिश्चित
करने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम था।
(3)
उपभोक्ताओं की विभिन्न उत्पादों की बढ़ती माँग और तैयार खाद्य एवं भोजन प्रौद्योगिकी
का विकास 20वीं सदी में विश्व युद्धों, अंतरिक्ष में खोज और उपभोक्ताओं
द्वारा विभिन्न उत्पादों की बढ़ती मांग ने खाद्य प्रौद्योगिकी के विकास में योगदान
दिया। 20वीं सदी में कामकाजी महिलाओं की आवश्यकताओं को विशेष रूप से पूरा करने के लिए
तत्काल मिलाकर बनने वाले सप मिश्रण और पकाने को तैयार पदार्थ एवं भोजन की प्रौद्योगिकि
(4)
पोषण संबंधी मुद्दों पर ध्यान तथा सुरक्षित और ताजे खाद्य उपलब्ध कराना-अब
खाद्य उद्योग, पोषण सम्बन्धी मुद्दों पर ध्यान देने लगा। भोजन की अधिमान्यताएँ और रुचियाँ
बदलीं और लोगों ने विभिन्न क्षेत्रों और देशों की खाद्य वस्तुएँ/व्यंजन अपनाना प्रारंभ
कर दिया। पूरे वर्ष में मौसमी खाद्यों के लिए पसंद भी बढ़ गई। खाद्य प्रौद्योगिकी विदों
ने नयी तकनीकों का उपयोग कर सुरक्षित और ताजे खाद्य उपलब्ध कराने का प्रयास किया।
(5)
सुरक्षित और सुविधाजनक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराना-21वीं
सदी में खाद्य प्रौद्योगिकी ने उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और अन्य बदलती हुई आवश्यकताओं
के अनुरूप विविध प्रकार के सुरक्षित और सुविधाजनक खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराये हैं।
प्रश्न 5. एक भावी खाद्य प्रौद्योगिक विद् के रूप में उद्योग द्वारा
आपसे किस ज्ञान और कौशलों की अपेक्षा की जाती है?
उत्तर
: खाद्य उद्योग में संसाधन/निर्माण, शोध और विकास (वर्तमान खाद्य उत्पादों में सुधार,
नए उत्पादों का विकास, उपभोक्ता बाजारों में शोध और नयी प्रौद्योगिकियों का विकास);
खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना और खाद्य गुणवत्ता को मॉनीटर करना, गुणवत्ता को नियंत्रित
करने की पद्धतियों में सुधार करना, लाभप्रद उत्पादन को सुनिश्चित करने हेतु लागत निकालना
और नियामक मामले सम्मिलित हैं। जीविका के लिए लोग खाद्य प्रौद्योगिकी की एक शाखा के
रूप में विशेषज्ञता प्राप्त कर सकते हैं, जैसे--पेय पदार्थ, डेयरी उत्पाद, मांस और
मुर्गी पालन, समुद्री खाद्य, अनाज और योजक पदार्थ आदि।
एक
भावी खाद्य प्रौद्योगिकविद् के रूप में उद्योग द्वारा हमसे निम्नलिखित ज्ञान और कौशलों
की अपेक्षा की जाती है-
खाद्य
विज्ञान, खाद्य रसायन, सूक्ष्मजीव विज्ञान, खाद्य संसाधन, सुरक्षा/गुणवत्ता आश्वासन,
बेहतर विनिर्माण पद्धतियाँ और पोषण का ज्ञान।
- कच्चे और पकाए हुए/निर्मित खाद्यों के संघटन,
गुणवत्ता और सुरक्षा का विश्लेषण करना।
- खाद्य सामग्री, बड़े पैमाने पर खाद्य निर्माण
और खाद्य उत्पादन में उनका उपयोग करने का कौशल।
- उत्पादन विनिर्देशन और खाद्य उत्पादन में
विकास का ज्ञान।
- औद्योगिक पद्धतियों, कार्य नियंत्रण प्रणाली,
वितरण प्रणालियों तथा उपभोक्ता क्रय पैटर्न का ज्ञान।
- खाद्यों को पैक करने और उन पर लेबल लगाने
का कौशल।
- उत्पादन रूपरेखा डिजाइन की सहायता के लिए
सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग की योग्यता।
- संवेदी मूल्यांकन करने का कौशल।
- खाना बनाने और पाक क्रिया में कौशल।
- डिजाइन (प्रतिरूप) तैयार करने, विश्लेषण
करने, प्रतिरूपण का अनुसरण और रैसीपी के अनुकूलन की योग्यता।
खाद्य
उद्योग, विशेषकर बड़े पैमाने की इकाइयों में नौकरियों के लिए एवं शोध कार्य व प्रशिक्षण
के लिए खाद्य प्रौद्योगिकी में स्नातक, स्नातकोत्तर डिग्रियाँ और शोध योग्यता आवश्यक
आधार हैं।
प्रश्न 6. स्वास्थ्य और कल्याणकारी संकल्पनाओं को ध्यान में रखते हुए
उदाहरण सहित समझाइए कि खाद्य वैज्ञानिक संसाधित और पैक किए हुए खाद्यों के लिए खाद्य
मानों को बढ़ाने का किस प्रकार प्रयास कर रहे हैं?
उत्तर
: स्वास्थ्य और कल्याणकारी संकल्पनाओं के दृष्टिकोण से खाद्य वैज्ञानिक संसाधित और
पैक किए हुए खाद्यों के खाद्य मानों को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित प्रयास कर रहे हैं-
(1)
सामान्य अनाजों पर आधारित मुख्य भोजन में अक्सर कुछ पोषक तत्त्वों की कमी होती है,
उन्हें मिलाकर खाद्य पदार्थों का प्रबलीकरण (फूड फॉर्टीफिकेशन) किया जाता है। इससे
यह सुनिश्चित हो जाता है कि आहार की न्यूनतम आवश्यकताएं पूरी हो रही हैं। उदाहरण के
लिए आयोडीन युक्त नमक, फोलिक अम्ल युक्त आटा, विटामिन A युक्त घी/तेल।
(2)
हृदय रोग और मधुमेह जैसे रोगों की बढ़ती व्यापकता से वैज्ञानिकों के लिए यह आवश्यक
हो गया है कि खाद्यों में कुछ पोषक तत्वों की मात्रा को बदल दें, उदाहरण के लिए संसाधित
खाद्यों की कैलोरी मात्रा को कम करने के लिए कैलोरी युक्त खाद्य को कृत्रिम मिठास देने
वाले पदार्थों से बदल दें। इसी प्रकार आइसक्रीम में वसा की जगह विशेष रूप से उच्चरित
प्रोटीनों का प्रयोग आइसक्रीम में वसा जैसी चिकनी बनावट तो देता है, परन्तु ऊर्जा की
मात्रा को कम कर देता है।
प्रश्न 7. निम्नलिखित को संक्षेप में समझाइए।
(क) हमें खाद्य को संसाधित और परिरक्षित करने की आवश्यकता क्यों है?
(ख) खाद्य पदार्थ किन कारणों से खराब होते हैं और मानव उपभोग के लिए
अनुपयुक्त बन जाते हैं?
(ग) खाद्य पदार्थों के खराब होने के कारण सामान्यतः जीवाणु होते हैं।
जीवाणुओं के विकास और वृद्धि के लिए कौन-सी चार परिस्थितियाँ आवश्यक होती हैं?
(घ) खाद्य संसाधन में खाद्य पदार्थों का शैल्फ काल बढ़ाने के लिए क्या
किया जाता है?
(च) खाद्य विनिर्माता के रूप में यह एक कानूनी आवश्यकता है कि उत्पाद
पर लेबल लगाया जाए। इन लेबलों पर उपभोक्ताओं को दी जाने वाली सूचनाओं और सलाहों की
सूची बनाइए।
(छ) लेबल पर दी गई पोषक तत्त्वों के मान सम्बन्धी सूचना किस प्रकार
उपयोगी होती है?
(ज) 10 + 2 परीक्षा पास करने के बाद खाद्य संसाधन और प्रौद्योगिकी के
क्षेत्र में व्यवस्था के क्या-क्या अवसर होते हैं?
उत्तर
:
(क)
खाद्य को संसाधित और परिरक्षित करने की आवश्यकता-खाद्य को संसाधित और परिरक्षित करने
की आवश्यकता निम्न कारणों से होती रही है-
- प्राचीन काल से फसल कटने पर अनाजों को सुखा
लिया जाता रहा है, जिससे उनका सुरक्षा काल बढ़ जाता है। अतः खाद्य के सुरक्षा
काल को बढ़ाने के लिए उसको संसाधित और परिरक्षित करने की आवश्यकता है।
- खाद्य पदार्थों का संसाधन उनकी सुपाच्यता,
स्वाद सुधारने और खाद्य पदार्थ की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक
है। भारत में अचार, मुरब्बा और पापड़ संरक्षित उत्पादों के उदाहरण हैं।
- वर्तमान में सुविधाजनक खाद्यों, ताजे' और
अधिक प्राकृतिक खाद्यों, सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्द्धक खाद्यों तथा पर्याप्त सुरक्षा
काल वाले खाद्यों के लिए खाद्य को संसाधित और परिरक्षित करने की आवश्यकता है।
(ख)
खाद्य पदार्थों के खराब होने के रूप-खाद्य पदार्थ भौतिक, रासायनिक और जैविक रूपों से
खराब होते हैं । खाद्य के विकृत होने के साथ उसका नष्ट होना, दुर्गंध आना, बनावट नष्ट
होना, रंग बिगड़ना, भिन्न स्तर पर पोषण मान में कमी, सौंदर्य बोध में कमी और उपयोग
के लिए अनुपयुक्त/असुरक्षित होना सम्मिलित है।
खाद्य
पदार्थों के खराब होने के कारण-भोजन के बिगड़ने या खराब होने के लिए निम्नलिखित कारक
उत्तरदायी हैं-
- पीड़क, कीटों का आक्रमण।
- संसाधन और/अथवा भंडारण के लिए अपेक्षा से
अनुपयुक्त ताप, प्रकाश और अन्य विकिरणें।
- ऑक्सीजन और नमी का अत्यधिक प्रभाव।
- खाद्य पदार्थ सूक्ष्मजीवों (जीवाणु, यीस्ट,
और फफूंदी) अथवा पीड़कनाशियों जैसे रसायन से संदूषित होते हैं।
- खाद्य पदार्थ प्राकृतिक रूप से उपस्थित
एंजाइम (वृहत प्रोटीन अणु जो रासायनिक अभिक्रियाओं को त्वरित करने के लिए जैविक
उत्प्रेरकों का काम करते हैं) द्वारा निम्नीकरण से भी नष्ट/खराब हो जाते हैं।
- पौधों और जंतु स्रोतों से प्राप्त खाद्य
पदार्थों के कुछ अवयवों में फसल काटने या पशुवध के तुरन्त बाद भौतिक रासायनिक
परिवर्तन होते हैं, जो खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को बदल देते हैं।
खाद्य
पदार्थ खराब होकर मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त बन जाते हैं।
(ग)
खाद्य पदार्थों के खराब होने का कारण सामान्यतः जीवाणु होते हैं। ये जीवाणु अनुकूल
परिस्थितियों में बहुत जल्दी बढ़ते हैं। जीवाणुओं के विकास और वृद्धि के लिए अग्रलिखित
परिस्थितियाँ आवश्यक होती हैं-
- पोषक पदार्थों की उपलब्धता,
- नमी,
- pH ऑक्सीजन स्तर और
- रोधक पदार्थों जैसे-प्रतिजैविक की उपस्थिति
या अनुपस्थिति।
खाद्य
पदार्थों में मूल रूप से उपस्थित एंजाइमों की गतिविधि भी PH और ताप पर निर्भर करती
है। ताजे फलों और सब्जियों में उपस्थित ऑक्सीकरण एंजाइम ऊर्जा के लिए ग्लूकोस का उपापचय
हेतु ऑक्सीजन का उपयोग करना जारी रखते हैं और फलों तथा सब्जियों का शैल्फकाल कम कर
देते हैं।
(घ)
खाद्य संसाधन में खाद्य पदार्थों का शैल्फ काल बढ़ाने के लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनायी
जाती हैं-
- ऊष्मा का अनुप्रयोग,
- जल को हटाना,
- भंडारण के समय ताप कम करना,
- pH कम करना तथा
- ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड की उपलब्धता
पर नियंत्रण करना।
(च)
खाद्य विनिर्माता द्वारा अपने उत्पादों पर लगाए जाने वाले लेबलों पर उपभोक्ताओं की
दी जाने वाली सूचनाओं और सलाहों की सूची निम्नलिखित है-
- उत्पादक का नाम और फोटो।
- विनिर्माता का नाम व पता।
- उत्पाद में काम में लिए गए मूल तत्त्व और
उनकी मात्रा अर्थात् पोषक तत्त्वों के मान सम्बन्धी सूचना।
- उत्पाद के विनिर्माण की. तिथि।
- उत्पाद के सुरक्षित रहने का काल या उत्पाद
के खराब हो जाने की तिथि।
- इसको उपयोग में लाने का तरीका और उपयोग
में लेने की मात्रा (बच्चों, युवक और वृद्धों के लिए)।
- उत्पाद को सुरक्षित रखने के लिए किस प्रकार
के वातावरण में रखना है।
(छ)
लेबल पर दी गई पोषक तत्त्वों के मान संबंधी सूचना की उपयोगिता-लेबल पर दी गई पोषक तत्त्वों
के मान सम्बन्धी सूचना इस दृष्टि से उपयोगी होती है कि इस उत्पाद में कौन-कौन से पोषक
तत्त्व किस-किस मात्रा में मिलाए गए हैं। इसके आधार पर उपभोक्ता की आवश्यकता को समझा
जाता है। खाद्य विशेषज्ञ उनकी मात्रा को देखकर ही उपयुक्त उपभोक्ता को उसे उपभोग करने
की सलाह देता है और वह उसकी लेने की मात्रा भी निर्धारित कर पाता है।
(ज) 10+2 परीक्षा पास करने के बाद खाद्य संसाधन और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में व्यवसाय के अवसर-भौतिक, रसायन और गणित (पी.सी.एम.) अथवा भौतिकी, रसायन और जीवविज्ञान (पी.सी.बी.) विषयों के साथ 10+2 अथवा समकक्ष परीक्षा पास करने के बाद कोई भी व्यक्ति विभिन्न राज्यों के विभिन्न खाद्य शिल्प संस्थानों/ अनुप्रयुक्त विज्ञानों के महाविद्यालयों से कम अवधि के प्रमाण-पत्र पाठ्यक्रम, शिल्प और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार के पाठ्यक्रम खाद्य परिरक्षण और संसाधन तथा खाद्य प्रबंध संस्थानों के लघु उद्योग विभागों में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।