8. मार्गदर्शन और परामर्श

8. मार्गदर्शन और परामर्श
6. खाद्य गुणवत्ता और खाद्य सुरक्षा

Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. परामर्श से आपका क्या अभिप्राय है?

उत्तर : परामर्श-परामर्श परस्पर बातचीत (अंतःक्रिया) द्वारा सीखने की प्रक्रिया है जिसमें परामर्शदाता (कभी कभी जिसे चिकित्सक भी कहते हैं) परामर्श लेने वालों को (चाहे वह व्यक्ति, परिवार, समूह या संस्थान हो) कठिनाइयों का कारण समझने और मुद्दों को सुलझाकर निर्णय पर पहुँचने में उनकी सहायता करते हैं। परामर्श में समग्र सोच होती है जो सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और भावनात्मक मुद्दों को संबोधित करती है।

प्रश्न 2. परामर्श के प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?

उत्तर : परामर्श के प्रमुख सिद्धान्त-परामर्श सेवा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जिम्मेदारी और गोपनीयता शामिल होती है। इसलिए मार्गदर्शनं एवं परामर्श विशेषज्ञों के लिए निम्नलिखित नीतिपरक सिद्धान्तों का पालन करना आवश्यक है-

  • परामर्शदाता व्यक्ति और उसकी सांस्कृतिक भिन्नताओं तथा मानव अनुभवों की विविधताओं के प्रति सम्मान और सावधानी से काम करें।
  • परामर्शदाता कभी भी कोई ऐसे कदम न उठाएँ जिससे परामर्श लेने वाले को किसी तरह का कोई नुकसान हो।
  • वे परामर्श लेने वाले व्यक्ति द्वारा परामर्शदाता पर किए गए भरोसे का सम्मान करें और उसके मुद्दों के बारे में दूसरों से बातें न करें।
  • वे परामर्श लेने वाले व्यक्ति को आत्मज्ञान (बोध) बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करें।
  • वे संकट की स्थितियों से प्रभावी रूप से निपटने के लिए परामर्श लेने वाले व्यक्ति के विकल्पों को तलाशने और उनमें वृद्धि करने में सहायता करें।
  • वे उनकी क्षमता के दायरे में उनसे व्यवहार करें और ऐसे मामलों में जिनमें अधिक गहन उपचार की आवश्यकता हो, परामर्श के लिए ऐसे विशेषज्ञों के पास ही भेजें जो उनका समाधान करने के लिए प्रशिक्षित हों।
  • वह कठिन परिस्थितियों से घिरे व्यक्तियों के लिए उपलब्ध सभी सेवाओं का जानकार होना चाहिए जिससे आगे संदर्भ के लिए, यदि आवश्यक हो तो, उचित मार्गदर्शन किया जा सके।

प्रश्न 3. आपकी उम्र के विद्यार्थियों को कौन-कौनसी सामान्य कठिनाइयाँ हो सकती हैं?

उत्तर : अखिल भारतीय शैक्षिक एवं व्यावसायिक मार्गदर्शन संस्था द्वारा महाविद्यालय स्तर के विद्यार्थियों की आवश्यकताओं का आकलन करने के लिए किए गए सर्वेक्षण के अनुसार 50 प्रतिशत विद्यर्थियों द्वारा जो कठिनाइयाँ बताई गईं, वे हमारे उम्र के विद्यार्थियों की सामान्य कठिनाइयाँ ही थीं। इसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि हमारे उम्र के विद्यार्थियों को निम्नलिखित प्रमुख सामान्य कठिनाइयाँ हो सकती हैं-

  • अपेक्षाओं और निष्पादन के बीच अन्तराल होना।
  • जीविका और व्यवसायों के बारे में जानकारी का अभाव।
  • भविष्य के बारे में चिन्ता।
  • एकाग्रता का अभाव।
  • विपरीत जेंडर के सदस्यों से मित्रता करने अथवा उनके साथ व्यवहार करने में असमर्थता।
  • यौन व्यवहारों के बारे में जानकारी का अभाव।
  • अपनी शक्तियों और कमियों के बारे में जानकारी न होना।
  • अपनी रुचियों और क्षमताओं के बारे में जानकारी न होना। संसाधनों का अभाव।
  • अधिगम की प्रभावी कार्यनीतियों के बारे में जानकारी का अभाव।
  • पिछली गलतियों के लिए स्वयं को माफ न कर पाने की असमर्थता।

प्रश्न 4. विभिन्न प्रकार की परामर्श सेवाएँ कौन-सी हैं?

उत्तर : परामर्श सेवा के प्रकार (स्तर)

परामर्श सेवा मुख्यतः तीन प्रकार की होती है-

(अ) अनौपचारिक परामर्श सेवा

(ब) गैर-विशेषज्ञ परामर्श सेवा

(स) व्यावसायिक परामर्श सेवा। यथा-

(अ) अनौपचारिक परामर्श सेवा-यह परामर्श सामान्यतः ऐसे व्यक्ति द्वारा दिया जाता है जिससे मिलकर बात की जा सकती है और जो बातों को समझ सकता है, भले ही वह व्यावसायिक रूप से योग्यता प्राप्त न हो। सहानुभूति रखने वाला यह व्यक्ति चाचा/मामा, चाची/मामी, मित्र अथवा सहकर्मी हो सकता है।

(ब) गैर-विशेषज्ञ परामर्श सेवा-यह अन्य क्षेत्र के विशेषज्ञों, जैसे-शिक्षकों, डॉक्टरों, वकीलों, धर्मगुरुओं द्वारा प्रदान की जाने वाली सहायता है जो अपने क्षेत्र की विशेषज्ञता के अतिरिक्त मनोवैज्ञानिक समस्याओं का समाधान भी करना चाहते हैं। वे लोगों की इन समस्याओं से निपटने के लिए वैकल्पिक तरीके प्रदान करने का प्रयास करते हैं।

(स) व्यावसायिक परामर्श सेवा-व्यावसायिक परामर्शदाता वे होते हैं जिन्होंने परामर्श में विशेष प्रशिक्षण लिया हो और जिनके पास आवश्यक योग्यता हो। ये परामर्शदाता व्यक्ति की सामाजिक, भावनात्मक और व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान करते हैं। परामर्श की प्रक्रिया में व्यावसायिक परामर्शदाता विभिन्न तकनीकों का प्रयोग कर सकते हैं।

व्यावसायिक परामर्शदाता परामर्श लेने वाले से व्यवहार करने की उपयोग की जाने वाली तकनीक के आधार पर व्यावसायिक परामर्श सेवा को निम्नलिखित तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) निदेशित, परामर्शदाता-केन्द्रित परामर्श-इसमें परामर्शदाता मुख्य भूमिका निभाता है और परामर्श लेने वाले को समस्या के निदान के अनुरूप निर्णय लेने में हर संभव प्रयास करता है।

(ii) अनिदेशित अथवा अनुज्ञात्मक अथवा सेवार्थी-केन्द्रित परामर्श-इसमें परामर्शदाता की भूमिका अपेक्षाकृत निष्क्रिय होती है। परामर्श लेने वाला व्यक्ति उपचार की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेता है। सहायता चाहने वाले व्यक्ति को परामर्शदाता की सहायता से समस्या के मूल कारण को समझने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। परामर्श लेने वाला व्यक्ति अंतिम निर्णय लेता है। इस प्रकार, परामर्श सेवा की यह प्रक्रिया व्यक्ति के अनुभवों में वृद्धि करती है।

(iii) संकलनात्मक परामर्श सेवा-जो परामर्शदाता संकलनात्मक परामर्श सेवा के प्रयोग की पैरवी करते हैं, उनका विचार है कि निदेशित अथवा अनिदेशित परामर्श सतत् काल के दो सिरे होते हैं। परामर्शदाता को उक्त दोनों प्रकार के परामर्श के तरीकों से परिस्थिति, समस्या और सेवार्थी के स्वभाव के आधार पर आवश्यकतानुसार उपयुक्त तकनीकों को समावेशित करना चाहिए।

प्रश्न 5. आप परामर्श सेवा और मार्गदर्शन में जीविका की तैयारी किस प्रकार कर सकते हैं?

उत्तर : परामर्श सेवा और मार्गदर्शन में जीविका की तैयारी

परामर्श सेवा और मार्गदर्शन में जीविका की तैयारी के लिए अर्थात् परामर्शदाता बनने के लिए हमें अपने अन्दर कुछ व्यक्तिगत गुणों का विकास करना होगा और इसके साथ ही साथ हमें कुछ आवश्यक कौशलों को अर्जित करने हेतु विशेष प्रशिक्षण भी लेना होगा। इस प्रक्रिया को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा गया है-

(अ) परामर्शदाता की विशेषताएँ।

(ब) परामर्शदाता के लिए आवश्यक कौशल। यथा-

 

(अ) पसमर्शदाता की विशेषताएँ

एक परामर्शदाता में निम्नलिखित व्यक्तिगत गुण या विशेषताओं का होना आवश्यक है-

  • उसे मानवीय समस्याओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।
  • वह समानुभूति युक्त हो।
  • उसमें व्यक्तिगत भिन्नताओं के लिए सम्मान का भाव होना चाहिए।
  • उसे निर्णयात्मक नहीं होना चाहिए।
  • उसमें गोपनीयता बनाए रखने का गुण होना चाहिए।
  • वह आसानी से सम्पर्क करने योग्य होना चाहिए।
  • वह दृढ़ लेकिन मित्रवत होना चाहिए।
  • उसका व्यक्तित्व रुचिकर होना चाहिए।
  • वह मूल्यों और सम्बन्धों को समझने वाला होना चाहिए।

(ब) परामर्शदाता के लिए आवश्यक कौशल तथा विशेष प्रशिक्षण

एक परामर्शदाता बनने के लिए सिर्फ उक्त विशेषताओं का होना पर्याप्त नहीं है। इन विशेषताओं के साथ परामर्शदाता में व्यवसाय की मांग के अनुसार विशिष्ट कौशल भी होने चाहिए।

(1) ये कौशल हैं-(i) सुनने के कौशल, (ii) विश्लेषण के कौशल और (iii) अच्छे निरीक्षण के कौशल। (iv) इसके अतिरिक्त एक परामर्शदाता में व्यक्तियों और समूहों दोनों के साथ काम करने के कौशल होने चाहिए।

(2) एक परामर्शदाता को उपर्युक्त वर्णित आवश्यक कौशल अर्जित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण भी लेना चाहिए। यथा-

  • व्यावसायिकं परामर्शदाता को सामान्यतः मानव विकास अथवा बाल विकास/मनोविज्ञान अथवा शिक्षा में स्नातकोत्तर डिग्री धारक होने के साथ-साथ परामर्श सेवा में भी स्नातकोत्तर डिग्री/डिप्लोमाधारी होना चाहिए।
  • पाठ्यक्रम के दौरान प्रशिक्षार्थी प्रशिक्षित मनोविज्ञान अथवा परामर्शदाता की देखरेख में प्रायोगिक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं, क्योंकि परामर्शदाता के कौशल विकसित करने के लिए प्रायोगिक प्रशिक्षण अनिवार्य है।
  • व्यावसायिक परामर्शदाता हेतु उक्त प्रमाण पत्र होने के साथ-साथ उसे उस व्यावसायिक संस्था के साथ पंजीकृत होना चाहिए जो प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस देती है।

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