एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank)

एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank)

एशियाई विकास बैंक (Asian Development Bank)

प्रश्न :- एशियाई विकास बैंक संगठन, पूँजी तथा कार्यों की प्रगति का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए ?

"एशियाई विकास बैंक द्वारा दी गयी वित्तीय तकनीकी सहायता इतनी कम है कि इस क्षेत्र के विकासशील देशों के लिए इसका वास्तविक लाभ शून्य है"। इस कथन की पुष्टि कीजिए ।

उत्तर :- एशियाई विकास बैंक स्थापना का प्रश्न सबसे पहले 1963 में मनीला (फिलीपाइस) में हुए एक सम्मेलन में उठाया गया था। इस सम्मेलन ने एशिया के लिए प्रादेशिक विकास बैंक की स्थापना का सुझाव दिया, किंतु इसे कार्यरूप नहीं दिया जा सका। बैंक की स्थापना के लिए वास्तविक ठोस कदम एशिया तथा सुदूर-पूर्व के लिए आर्थिक आयोग इकाफे (ECAFE) की वेलिंगटन की बैठक में उठाया गया था और 1966 में 26 नवंबर को इसकी विधिवत् स्थापना हुई।

उद्देश्य एवं कार्य

एशिया विकास बैंक के उद्देश्यों तथा कार्यों का उल्लेख इस बैंक के चार्टर में किया गया है,जो कि निम्नलिखित हैं-

(1) पूंजी विनियोजन : इकाफे क्षेत्र के देशों में विकास कार्यों के लिए यह बैंक विशेषकर सरकारी तथा निजी पूंजी के क्षेत्र में विनियोग प्रोत्साहन का कार्य करता है।

(2) उपलब्ध साधनों का सदुपयोग:- इस क्षेत्र में उपलब्ध साधनों का इस प्रकार से प्रयोग करना ताकि संपूर्ण इकाफे क्षेत्र का सामंजस्यपूर्ण तथा सुव्यवस्थित आर्थिक विकास हो सके और छोटे तथा कम विकसित देशों को विशेष सहायता मिल सके।

(3) विकास मार्ग प्रशस्त करना :- इस बैंक का उद्देश्य व कार्य एशिया तथा सुदूर पूर्व में आर्थिक सहयोग और विकास का मार्ग प्रशस्त करना तथा एशिया के देशों के सामूहिक व पृथक आर्थिक विकास की प्रक्रिया को गति प्रदान करना है।

(4) विकास नीतियों में सहयोग :- बैंक इस क्षेत्र के देशो को अपनी प्रायोजनाओं तथा नीतियों में समन्वय स्थापित करने के लिए सहायता देता है ताकि उनकी अर्थव्यवस्था अधिक संतुलित बन सके और विदेशी व्यापार का सम्यक विस्तार हो सका

(5) तकनीकी सहायता :- बैंक सदस्य देशों के विकास के लिए प्रायोजनाएं तैयार करने, उनके लिए धन जुटाने तथा उनको कार्यान्वित करने के लिए तकनीकी सहायता भी प्रदान करता है।

(6) अन्य संगठनों से सहयोग :- बैंक का कार्य संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्त्वावधान में स्थापित तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के विकास कार्यों में सहयोग करना भी है।

(7) अन्य कार्य :- अपने उद्देश्य से संबंधित अन्य सभी कार्य करना। इस प्रकार एशियाई विकास बैंक का मुख्य कार्य इकाफे क्षेत्र के देशों के आर्थिक विकास मे आर्थिक व तकनीकी सहायता प्रदान करना है।

ADB की सदस्यता

एशियाई विकास बैंक की सदस्यता केवल एशियाई देशों तक ही सीमित न होकर, वित्तीय साधनों की अभिवृद्धि की दृष्टि से गैर एशियाई देशों के लिए भी खुली है। अतः बैंक की सदस्यता निम्न श्रेणी के देशों को प्राप्त हो सकती है।

(i) एशिया तथा सुदूर-पूर्व के लिए आर्थिक आयोग (इकाफे - ECAFE) के सदस्य देशों अथवा इकाफे के सह- सदस्य देशों को ।

(ii) एशिया के अन्य देशो तथा

(iii) एशिया के बाहर के उन विकसित देशों को जो संयुक्त राष्ट्र संघ तथा उससे संबद्ध किसी भी संगठन के सदस्य हो। गैर क्षेत्रीय राष्ट्रों को सदस्यता प्रदान करने के लिए बैंक के गवर्नर मंडल के 2-3 सदस्यो (जो मताधिकार के 75% भाग का प्रतिनिधित्व करते हो) की स्वीकृति मिलना अनिवार्य होता है।

बैंक की सदस्यता को दो भागों में बांटा गया है :

(A) क्षेत्रीय एवं (B) गैर क्षेत्रीय 1वर्ष 1997 के अंत तक बैंक की कुल सदस्यता 56 थी, जिसमे 40 क्षेत्रीय सदस्य राष्ट्र तथा 16 गैर क्षेत्रीय सदस्य राष्ट्र थे।

बैंक का प्रबंध

एशियाई विकास बैंक का संगन एवं प्रबंध अंतर्राष्ट्रीय विकास वित्त प्रदान करने वाली अन्य संस्थाओ जैसा ही है। सर्वोच्च स्तर पर प्रशासन मंडल, द्वितीय स्तर पर संचालक मंडल तथा फिर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं बैंक अधिकारी है।

(1) प्रशासन मंडल :- यह विकास बैंक की नीति निर्धारण कर्ता सर्वोच्च सत्ता है जिसका गठन सदस्य राष्ट्रों द्वारा मनोनीत एक-एक गवर्नर तथा एक-एक स्थानापन्न (वैकल्पिक) गर्वनर होता है। यह गवर्नर मंडल बैंक के सविधान में परिवर्तन, निदेशक मंडल का चयन, नये सदस्यों के प्रवेश और नीति निर्धारण आदि महत्त्वपूर्ण कार्यों पर सामूहिक रूप से विचार करता है। वर्ष में कम से कम एक बैठक होनी अनिवार्य है।

(2) संचालन मंडल :- प्रशासन मंडल द्वारा निर्धारित नीतियों को लागू करने तथा बैंक के दिन-प्रतिदिन के कार्यों को संचालित करने के लिए प्रशासन मंडल द्वारा 12 सदस्यीय संचालक मंडल का गठन किया जाता है। इस मंडल में 8 सदस्य क्षेत्रीय देशों से तथा 4 गैर क्षेत्रीय देशों से होते है। भारत जापान तथा अमेरिका अपनी अंश पूंजी के आधार पर संचालक मंडल में स्थायी सदस्य है तथा शेष 9 सदस्य चुनाव के द्वारा चुने जाते है।

(3) अध्यक्ष :- निदेशक मंडल के प्रधान के रूप में निदेशक मंडल सदस्यों में से एक सदस्य अध्यक्ष चुना जाता है। यह बैंक के संगठन व विभिन्न प्रक्रियाओं के लिए उत्तरदायी होता है। उसका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, पर पुनर्विचार हो सकता है।

(4) उपाध्यक्ष :- अध्यक्ष को सहयोग देने के लिए प्रारंभ में एक उपाध्यक्ष हुआ करता था, परन्तु 1978 में बैंक के संगठन मे किये गये सुधारों के अनुसार अब दो उपाध्यक्ष होते है। इनमें से एक बैंक के क्रियात्मक कार्यों को देखता है तथा दूसरा उपाध्यक्ष वित्त तथा प्रशासनिक कार्यों को देखता है।

बैंक की ऋण क्रियाएं

एशियाई विकास बैंक अपने क्षेत्रीय सदस्यों को उनके आर्थिक विकास कार्यों के लिए ऋण व सहायता प्रदान करता है। बैंक की ऋण क्रियाओं को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है।

(1) सामान्य ऋण क्रियाएं - बैंक सामान्य ऋण क्रियाओं के अन्तर्गत अपने सामान्य पूँजी कोषों से ऋण देता है। सामान्य ऋण क्रियाओं के लिए बैंक अपनी अंश पूँजी तथा ऋण पत्र बेचकर कोष एकत्र करता है। ऋण की शर्ते, व्याज, अवधि आदि निर्धारण सदस्य देश की आवश्यकताओ व साख क्षमता को ध्यान में रखकर किया जाता है।

(2) विशिष्ट ऋण क्रियाएं :- विशिष्ट ऋण क्रियाओं का संचालन बैंक द्वारा निर्मित विशिष्ट कोषो से किया जाता है। इसकी अवधि बहुत लम्बी तथा ब्याज दर बहुत कम होती है।

ऋण क्रियाओं के सिद्धांत

बैंक ऋण स्वीकृत करते समय ग्यारह सिद्धांतों का पालन करता है:-

(1) क्षेत्रीय देशों को ऋण :- क्षेत्रीय विकास के लिए राष्ट्रो को अंश पूँजी तथा ऋ‌णों से एकत्रित पूँजी स्तोतों के सामान्य ऋण तथा विशिष्ट कोषो से विशिष्ट परियोजनाओं के लिए ऋण स्वीकृत किये जाते हैं।

(2) सदस्य देशों की निजी क्षेत्र तथा सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए सहायता :- बैंक क्षेत्रीय देशों को निजी क्षेत्र तथा सार्वजनिक क्षेत्र दोनों ही परियोजनाओं के लिए सहायता देता है।

(3) सरकारी सहमति आवश्यक :- यदि बैंक किसी सदस्य देश की निजी क्षेत्र की परियोजना के लिए सहायता देता है तो संबंधित देश की सरकार की सहमति आवश्यक होती है।

(4) ऋण उद्देश्य:- बैंक क्षेत्रीय देशों को कृषि, उद्योग, परिवहन, विद्युत, संचार, जल आपूर्ति, शहरी विकास स्वास्थ्य तथा वित्त संस्थाओं के विकास हेतु ऋण देता है।

(5) परियोजनाओं का चुनाव :- बैंक अपने ऋणों के लिए ऐसी परियोजनाओं को चुनता है जो क्षेत्रीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हो तथा अत्यधिक अर्द्धविकसित राष्ट्रो से संबंधित हो।

(6) साझेदारी एवं गारंटी :- कमी-कभी आवश्यकता पड़ने पर बैंक अन्य अंतर्राष्ट्रीय विकास वित्त एजेंसियों या क्षेत्रीय विकास वित्तीय एजेंसियों के साथ साझेदारी कर आंशिक ऋणों की पूर्ति स्वयं करता है तथा आंशिक ऋ‌णों की पूर्ति अन्य विकास वित्त संस्थाए करती है।

(7) विदेशी विनिमय की व्यवस्था :- बैंक सदस्य राष्ट्रों को विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन में आवश्यक विदेशी विनिमय उपलब्ध करने में भी सहायता करता है।

(8) ऋणों की अवधि:- बैंक दीर्घकालीन आवश्यकताओ के लिए ऋण देता है। ऋण की अवधि एवं किस्ते परियोजनाओं की प्रकृति के अनुसार निर्धारित की जाती है।

(9) ऋणो की वापसी :- सदस्य देश ने जिस मुद्रा में ऋण लिया है उसी मुद्रा में बैंक को वापस करना होता है।

(10) ब्याज की दर व शूल्क :- बैंक सदस्य राष्ट्रों को दिये गये ऋणों पर देश की परिस्थितियों पर आधारित ब्याज दर वसूल करता है तथा स्वीकृत ऋणो के संचालन पर कमीशन लेता है, ऋणों की समय पर वापसी न होने पर कुछ शुल्क भी वसूल किया जाता है।

(11) ऋणों की स्वीकृति :- जिस परियोजना के लिए ऋण चाहा जाता है, उसकी विस्तृत रिपोर्ट ऋण चाहने वाले देश को प्रस्तुत करनी पड़ती है। बैंक उसकी जांच करता है तथा संतुष्ट होने पर ऋण स्वीकार करता है।

एशियाई विकास बैंक की प्रगति

एशियाई विकास बैंक की सभी क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है। बैंक की प्रगति को निम्न शीर्षको में देखा जा सकता है-

(1) सदस्यता में वृद्धिः- 1960 में स्थापना के समय बैंक के सदस्यों की संख्या 30 थी जो बढ़कर 2000 में 59 हो गयी है।

(2) पूँजी स्त्रोतों में वृद्धि :- सदस्य राष्ट्रो की विकास वित्त आवश्यकताओं में वृद्धि व बढ़ती हुई माँग को देखते हुए बैंक ने भी अपने वित्त साधनों में वृद्धि के प्रयास किये है। जहाँ स्थापना के समय बैंक की अधिकृत पूँजी 1,100 मिलियन थी जिसमे समय-समय पर वृद्धि हो गयी है। 31 दिसंबर 2000 को बैंक की अभिदत्त पूंजी 4531 करोडडालर थी।

(3) विकास णों में वृद्धि :- एशियन विकास बैंक ने पिछले वर्षों में अपने सदस्य देशों के आर्थिक विकास के लिए वित्तीय साधन उपलब्ध कर उनके विकास को गति प्रदान की है। 2000 तक एशियन विकास बैंक ने 6489, करोड़ डालर के ऋण 1240 परियोजनाओं के लिए दिये है। इस बैंक ने सबसे अधिक ऋण कृषि एवम् उद्योगों के विकास के लिए दिये है। बिजली तथा परिवहन तथा संचार योजनाओ को क्रमशः दूसरा तथा तीसरा स्थान प्राप्त है।

(4) सह वित्त प्रेषण :- अल्प विकसित सदस्य राष्ट्रों के विकास कार्यक्रमों को गति प्रदान करने के लिए बैंक ने यह योजना शुरू की है। इस योजना के अन्तर्गत बैंक अपने स्वयं के साधनो तथा अन्य साधनो से यह सुविधा उपलब्ध कराने की चेष्टा करता है। 1970 से लेकर 31 दिसंबर 1997 तक बैंक ने ऐसी 468 परियोजनाओं के लिए 27160 मिलियन डालर की सह वित्त प्रेषण की सुविधा उपलब्ध करायी है।

(5) एशियाई विकास बैंक द्वारा तकनीकी सहायता :- एशियाई विकास बैंक सदस्य देशों की विशिष्ट विकास योजनाओ को उधार देने के साथ-साथ तकनीकी सहायता भी उपलब्ध कराता है। यह तकनीकी सहायता किसी भी योजना अथवा परियोजना के निर्माण, वित्तीय पोषण कार्यान्वयन आदि में सहायक होती है। इसके लिए बैंक तकनीकी सहायता के मिशनो की स्थापना करता है। बैंक द्वारा उपलब्ध करायी जाने वाली तकनीकी सहायता ऋण अथवा अनुदान के रूप में हो सकती है।

बैंक द्वारा तकनीकी सहायता उपलब्ध कराने के लिए सन् 1968 में एक तकनीकी सहायता विशिष्ट कोष की स्थापना की गयी है, जिसमे स्थापना से लेकर 31 दिसंबर 1997 तक 29 सदस्य राष्ट्रों ने 637 मिलियन डालर की धनराशि का योगदान दिया है।

आलोचनाऐ

एशियाई बैंक की प्रगति से यह स्पष्ट है कि इसने विकास ऋण सहायता के द्वारा एशिया के विकासशील, किंतु छोट देशों के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना प्रारंभ कर दिया है। किंतु इसकी कार्यप्रणाली के कुछ दोष निम्न प्रकार है:-

(1) अधिकांश ऋण प्राय अमेरिका समर्थित देशों को मिले हैं।

(2) अधिकांशतः सामान्य ऋण ही है जिनकी ब्याज दर ऊँची होती है।

(3) ऋणों का उप‌योग उत्पादक वस्तुओं व सेवाओं को प्राप्त करने में होता है।

(4) बैंक सार्वजनिक क्षेत्र की वित्तीय आवश्यकताओं की अपेक्षा निजी क्षेत्र की इकाइयों का वित्त पूर्ति पर अधिक ध्यान दिया गया है जो कि अमेरिका नीति का समर्थन है। इसी कारण एशिया के अल्पविकसित देशों में इस बैंक की साख नहीं जम पायी है।

(5) ऋण परियोजनावद्ध होते है।

(6) पूंजी में अमेरिका, जापान तथा इसके समर्थक देशों का अधिक भाग होने के कारण मताधिकार के बल पर इन देशों का बैंक के प्रशासन पर नियंत्रण है।

(7) अमेरिका की घोर पूँजीवादी नीतियो के कारण विकासशील देशों को सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार हेतु ऋण मिलने में बाधा है।

(8) बैंक द्वारा संचालित दो विशेष कोषो बहुउद्देशीय विशेष कोष तथा एशियाई विकास कोष में जिन राष्ट्रों द्वारा आवश्यक सहायता दी जाती है, उनके प्रयोग में विशेष बाधा आती है।

(9) बैंक के अर्द्धविकसित सदस्य राष्ट्रों में आपस में ऋण प्राप्त करने की होड़ लगी रहती है, जिससे कि आपस में प्रतिस्पर्धा होती है।

(10) हर एक सदस्य राष्ट्रों को अपने अम्यंश का 50% भाग स्थानीय मुद्रा में चुकाना पड़ता है। स्थानीय मुद्रा में अम्यंश के भुगतान में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में कई राष्ट्रों की मुद्राओं को स्वीकार किये जाने में कठिनाई आती है।

एशियाई विकास बैंक एवं भारत

एशियाई विकास बैंक की सदस्यता से भारत को मिलने वाले लानिम्नलिखित है:-

(1) ऋण सहायता :- भारत ने ADB से 1986 में उधार लेना आरंभ किया है। आरंभिक ऋण 250 मिलियन अमेरिकी डालर का था। ADB ने भारत की विविध परियोजनाओं (ऊर्जा, परिवहन, संचार, वित्त, उद्योग, खनिज आदि) में ऋण प्रदान किया है। 31 दिसंबर 2000 तक संचयी रूप में ADB ने भारत को 57 णों में 7,878.3 मिलियन अमेरिकी डालर के ण स्वीकृत किये।

(2) इंजीनियरिंग एवं पूंजीगत सामान के निर्यातो में वृद्धि :- भारत को बैंक के क्षेत्रीय विकासशील देशों को उनके आर्थिक विकास के लिए काफी पूँजीगत एवं इंजीनियरिंग सामान निर्यात करने के नये-नये अवसर उपलब्ध हुए है।

(3) कृषि विकास में तकनीकी सहायता :- भारत को अन्य गैर क्षेत्रीय विकसित सदस्य  राष्ट्रों से कृषि विकास हेतु तकनीकी सहायता का भी लाभ प्राप्त हुआ है।

(4) एशियन साझा बाजार का गठन :- इस बैंक की सदस्यता से क्षेत्र के सभी विकासशील देशों का एशियन साझा बाजार के निर्माण का नया मार्ग खुला है। भारत को इससे काफी लाभान्वित होने की आशा है।

(5) स्थगित भुगतान पद्धति के आधार पर निर्यात वृद्धि :- भारत बैंक के क्षेत्रीय सदस्य  राष्ट्रों को उनके आर्थिक विकास के लिए अपने देश में ही निर्मित पूँजीगत सामान तथा मशीनो आदि का निर्यात स्थगित भुगतान पद्धति के आधार पर कर सकेगा। इस सुविधा से देश के निर्यातो में वृद्धि होगी तथा उत्पादकता में बढ़ेगी।

(6) कृषि विकास में योगदान :- एशियाई विकास बैंक की सदस्यता के कारण भारत अन्य राष्ट्रों से कृषि विकास के कार्यक्रमों को क्रियान्वित करने के लिए आवश्यक तकनीकी एवं विशेषज्ञ सेवाएं प्राप्त कर सकता है।

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