विशेष आर्थिक क्षेत्र Special Economic zones (SEZ)

विशेष आर्थिक क्षेत्र Special Economic zones (SEZ)

विशेष आर्थिक क्षेत्र Special Economic zones (SEZ)

 विशेष आर्थिक क्षेत्र Special Economic zones (SEZ)

विशेष आर्थिक क्षेत्र का अभिप्राय एक ऐसे भौगोलिक क्षेत्र से है जो देश में गैर-विशेष आर्थिक क्षेत्र (Non-SEZ) की तुलना में अनेक आर्थिक वित्तीय, राजकोषीय, व्यापारिक एवं प्राविधिक विशेषाधिकारो का लाभ प्राप्त करता है।

"विशेष आर्थिक क्षेत्र LPG नीति की उपज है"

वास्तव में सेज (SEZ) की अवधारणा का महत्व भारत में अन्य देशो विशेषकर चीन इत्यादि देशो इसकी बढ़ती भूमिका के कारण स्वीकार किया गया। आर्थिक उदारीकरण के कारण ही वाणिज्य मंत्रालय भारत सरकार ने देश में तीव्र गति से निर्यात को प्रोत्साहित करने हेतु भारतीय एवं विदेशी निगमो तथा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को निवेश करने के लिए आकर्षित एवं उत्प्रेरित करने हेतु आमंत्रित किया है तथा इसके लिए अनेको रियायते भी देने की घोषणा की है।

विशेष आर्थिक क्षेत्र वस्तुतः देश मे पूर्व में स्थापित निर्यात प्रोत्साहन क्षेत्र (Export production zone, EPZ) का ही रुपान्तरण है।

सर्वप्रथम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंध की वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन वाणिज्य मंत्री, स्व० रामकृष्ण हेगड़े और बाद में उनके उत्तराधिकारी स्व. मोरासोली मारन ने 2000 ई में 'विशेष आर्थिक क्षेत्र' की घोषणा की, तदुपरान्त 2002-07 की वाणिज्यिक नीति अर्थात् निर्यात-आयात नीति में SEZ की भूमिका को स्वीकार किया गया था तथा तत्कालीन वाणिज्य मंत्री श्री अरुण जेटली द्वारा SEZ को भारत के लिए आवश्यक बताया गया । 2004 में केन्द्र में बनी डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की सरकार में वर्तमान वाणिज्य मंत्री ने उस 2002-07 की वाणिज्यिक नीति में कतिपय महत्त्वपूर्ण संशोधन कर 2004-09 के लिए नई नीति की घोषणा की और इसके लिए संसद से एक अधिनियम भी पारित करा दिया।

8 SEZ के अतिरिक्त 20 और SEZ काम करने लगे है जिनमें से 8 SEZ ने तो निर्यात कार्य शुरु कर दिया है। SEZ अधिनियम के तहत निजी / संयुक्त क्षेत्र या राज्य सरकारों और उसकी एजेन्सियों द्वारा शुरू किए जानेवाले 105 विशेष आर्थिक क्षेत्र को औपचारिक स्वीकृति भारत सरकार द्वारा दी जा चुकी है। इनमें से वे सभी 10 स्वीकृतियाँ भी शामिल है, जिनके लिए अधिसूचना निर्गत की जा चुकी है। अन्य क्षेत्र अमल के विभिन्न चरणों में है।

वर्तमान समय में 127 SEZ की इकाइयाँ काम कर रही है जिनमें से लगभग 1.10 लाख लोगों को रोजगार मिला है।

निर्यात उन्मुख इकाइयों और विशेष आर्थिक क्षेत्रों का निर्यात-निष्पादन

वर्ष

विशेष आर्थिक क्षेत्र

निर्यात उन्मुख इकाइयां

कुल निर्यात

 

करोड़ रु.

दस लाख U.S डालर

करोड़ रु.

दस लाख U.S डालर

करोड़ रु.

दस लाख U.S डालर

2004-05

18655 (4.9)

4140 (4.8)

37488 (9.9)

86343 (9.8)

375340 (100)

85536 (100)

2005-06

22309 (4.9)

4984 (4.8)

37658 (8.2)

8506 (8.3)

456418 (100)

103091 (100)

2004-05 में विशेष आर्थिक क्षेत्रों से 18665 करोड़ रु. का निर्यात किया गया। यह देश के कुल निर्यात (375340 करोड़ रु.) का 4.9% बैठता है। 2005-06 के दौरान यह 22309 करोड़ रुपये था अर्थात् कुल निर्यात (456418 करोड़ रु.) का 4.88% था।

 SEZ की मुख्य विशेषताएँ

SEZ को समर्थको द्वारा आज के इस उदारीकृत (LPG) के युग में आर्थिक विकास का इंजन कहा जा रहा है। इसका उद्देश्य ही अच्छी (ढाँचागत) आधारभूत सुविधाओं और केन्द्र तथा राज्य दोनो स्तर पर आकर्षक वित्तीय पैकेज, न्यूनतम संभव नियमो की मदद से आर्थिक विकास का इंजन बनाना है। SEZ की निम्नांकित विशेषताएँ है-

(1) एक निर्दिष्ट शुल्क मुक्त क्षेत्रो जिसे व्यापार संचालन तथा शुल्क एवं तटकर हेतु विदेशी क्षेत्र माना जाएगा

(2) आयात के लिए लाइसेंस की जरूरत नही

(3) विनिर्माण या सेवा गतिविधियों की अनुमति

(4) SEZ इकाइयां तीन वर्षों के भीतर विदेशी मुद्रा की कमाई में शुद्ध लाभ अर्जित करने लगेगी

(5) पूरे शुल्क के साथ घरेलू बाजार में बिक्री तथा आयात नीति लागू

(6) उप- अनुबंध की पूर्ण स्वतंत्रता

(7) सीमा शुल्क के द्वारा यात एवं निर्यात की नियमित जाँच नही

(8) कुछ चयनित क्षेत्रों में संसाधनों के संकेन्द्रण द्वारा निर्यात को बढ़ावा देना

(9) भारतीय निर्यात को अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से प्रतिस्पर्धी और असुविधामुक्त वातावरण प्रदान करना

(10) विनिर्मित वस्तुओं एवं सेवाओं को उपलब्ध कराना

(11) तीव्रगति से निर्यात को बढ़ाना

(12) तीव्रगति से शुद्ध मुद्रा अर्जक का कार्य करना

(13) सरकारी, गैर सरकारी या संयुक्त क्षेत्र मे या किसी राज्य सरकारी के सहयोग के नियमो द्वारा स्थापित होना एवं कायम रहना

(14) न्यूनतम लागत पर उच्च कोटि का उत्पाद प्रस्तुत करना

 SEZ के विशेषाधिकार

SEZ को निम्नांकित विशेषाधिकार SEZ अधिनियम 2005 के तहत प्राप्त हुए है-

(1) SEZ को विकास के शुल्क-मुक्त इन्कलेब समझना जिन्हे व्यापार शुल्को एवं टैरिफो के लिए विदेशी क्षेत्र समझा जाता है

(2) SEZ के निवेशको और विकास कर्ताओ को इन क्षेत्रों में अपनी इकाइ‌याँ स्थापित करने पर अनेक राजकोषीय एवं विनियामक प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है

(3) SEZ के निगमों को पहले पाँच वर्षों के लिए अपने लाभ पर आयकर का भुगतान नहीं करना होगा तथा इसके पश्चात् मात्र 50% ही कर देना होगा। केवल 50% कर देने की राहत का अगले तीन वर्षों के लिए विस्तार किया जा सकता है, बशर्ते कि निगम अपने लाभ का आधा भाग पुनः निवेश के लिए प्रयुक्त करता है।

(4) आयकर के अलावे कई अतिरिक्त करो की रियायतो इन SEZ को दी जाती है- जैसे उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क, सेवाकर, मूल्य वृद्धि कर, लाभांश कर इत्यादि

(5) SEZ के विकास कर्ताओं को सभी प्रकार के संबंधित कच्चे माल, सीमेण्ट से इस्पात तक, पर करो एवं शुल्कों के रियायते प्राप्त होगी

(6) विकास के लिए आयात पर किसी भी प्रकार की सीमा शुल्क से छुट होगी

(7) SEZ के निगमो या विकासकर्ताओं को आवश्यक भूमिका सरकार द्वारा अधिग्रहण कराकर मुहैया कराया जाएगा, बशर्ते कि SEZ का 25% क्षेत्र निर्यात से संबंधित क्रियाओं के लिए प्रयुक्त किया जाय और शेष 75% का प्रयोग आर्थिक एवं सामाजिक आधारभूत संचना के लिए किया जाय

(8) SEZ के लाभों एवं रियायतो की उपलब्धि सम्पूर्ण क्षेत्र के लिए उपलब्ध होगी

(9) SEZ की क्षेत्र विशेष इकाइयों के लिए अतिरिक्त क्रियाओं की भी इजाजत होगी जिनमें स्कूल, शैक्षणिक एवं तकनीकी संस्थान और होटल इत्यादि सम्मिलित है।

(10) बहु उत्पाद (क्षेत्र) सेज (multiproduc+ SEZ) को बंदरगाहो, हवाई अड्‌‌डों एवं गोल्फ कोसिंस की भी इजाजत होगी

(11) क्षेत्र विशेष के SEZ को 7500 मकानो, 100 कमरे का होटल, 25 बिस्तर का अस्पताल, विद्यालयों एवं शैक्षणिक संस्थानो तथा 5000 वर्गमीटर मल्टीप्लेक्स की भी इजाजत होगी, तथा बहु उत्पादक SEZ के लिए 25000 मकानो, 250 कमरे का होटल, 100 बिस्तरो का अस्पताल एवं 200000 वर्ग मीटर के मल्टीप्लेक्स की इजाजत होगी।

(12) SEZ को श्रम कानूनों के पालन से छूट दी गयी ताकी औद्योगिक इकाइ‌यां स्थापित करने के लिए उद्यमकर्ताओं को आकर्षित कर सके। श्रम आयुक्त को SEZ के निरीक्षण का कोई अधिकार नही होगा। यह अधिकार सुरक्षा एवं पर्यावरण के मानदण्डो को लागू करने के लिए उपलब्ध नहीं होगा।

(13) SEZ की सभी औद्योगिक इकाइयों एवं प्रतिष्ठानों को सार्वजनिक उपयोगिता सेवा' घोषित किया जाएगा जिसमे हड़ताल गैर कानूनी होगी।

(14) SEZ औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के प्रावधानों का पालन नहीं करेंगे, किंतु उन्हें किसी भी सीमा तक ठेका श्रमिक को अपनी इकाई में लगाने की आजादी होगी। इस संबंध में ठेका मजदूरी विनिमय एवं उन्मूलन कानून का भी कुछ बाह्म क्रियाओ के लिए जरूरी संशोधन किया जाएगा।

 आलोचना

सर्वप्रथम, वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने रियायतो की मुख्य मुद्‌दो पर वाणिज्य मंत्री से अपना मतभेद व्यक्त किया है। सार्वजनिक वित्त एवं नीति पर राष्ट्रीय संस्थान ने इस तथ्य का रहस्याद्‌घाटन किया कि SEZ की इकाइयों को कर-रियायते देने के नतीजे के कारण सरकार को 2005-10 के दौरान 97000 करोड़ हानि कर-राजस्व में होगी। IMF के प्रमुख अर्थशास्त्री ने सरकारी खजाने को हानि का अनुमान 175000 करोड़ रुपये लगाया है।

क्या देश को लघु एवं मध्यम क्षेत्र के उद्यमों को बढ़ावा देना चाहिए जिसकी निर्यात क्षमता कही अधिक है (2004-05 में 124416 करोड़ रु. जो कुल निर्यात का 34.4% था), या SEZ की इकाइयों को जो विदेशी मुद्रा की प्राप्ति में अपेक्षाकृत बहुत कम योगदान देते है?

बढ़िया कृषि भूमि की भारी मात्रा को SEZ की इकाइयों के लिए अधिग्रहण किया गया। अधिग्रहण सरकार द्वारा निर्धारित कीमतो पर किया गया, न कि बाजार की कीमतो पर जो कि किसानो का वैध अधिकार था। जाहिर है कि यह सब गरीब किसानो की कीमत पर समृद्ध औद्योगिक घरानों और विकास को पोषित करने के लिए किया जा रहा है।

SEZ के उद्योगपतियों को श्रमिको का शोषण करने का अधिकार देना और उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूर करना संविधान के अनुच्छेद 38(1) का उल्लंघन है जिसमे उल्लेख किया गया है

निष्कर्ष

विशेष आर्थिक क्षेत्र के दृष्टिकोण पर जिससे औद्योगीकरण और निर्यात प्रोन्नति को बढ़ावा दिया जा रहा है, पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। अन्तिम देश दो भागो मे बट जाएगा - SEZ और Non-SEZ I स्थिति निश्चयन की प्राथमिकता जिसके अन्य बहुत से प्रलोभन जुड़े होते है; जैसे कर एवं शुल्को से छूट, श्रम कानूनो को न लागू करने से उत्पादन लागत में कमी - के कारण बहुत सी औद्योगिक इकाइया Non-SEZ से पलायन कर SEZ में प्रोत्साहित हो जाएंगी। इसका अभिप्राय यह है कि कुल निवेश में शुद्ध वृद्धि प्रत्याशा से कम होगी।

वित्त मंत्री और RBI इन क्षेत्रों और शेष देश के बीच विभेदक कराधान को न्यायोचित नहीं मानते क्योंकि विभिन्न अनुमानो के अनुसार इससे 100000 करोड़ रुपये से 175000 करोड़ रुपये के कर राजस्व का नुकसान होगा।

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