प्रश्न :- किसी देश में मानवीय पूँजी के दो प्रमुख स्रोत क्या होते हैं?
उत्तर :- एक
देश में मानव पूँजी निर्माण के दो प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं
1. शिक्षा
में निवेश,
2. कार्य के
दौरान प्रशिक्षण।
प्रश्न :- किसी देश की शैक्षिक उपलब्धियों के दो सूचक क्या होंगे?
उत्तर :- सामान्यतः
शिक्षा से अभिप्राय लोगों के पढ़ने-लिखने तथा समझने की योग्यता से है। यह उच्च आय अर्जित
करने का साधन माना जाता है। शिक्षा के दो सूचक इस प्रकार हैं
1. इससे लोगों
के मानसिक स्तर का विकास होता है।
2. विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का विकास होता है।
प्रश्न :- भारत में शैक्षिक उपलब्धियों में क्षेत्रीय विषमताएँ क्यों दिखाई
दे रही हैं?
उत्तर :- भारत
जैसे विकासशील देश में जहाँ जनसंख्या का एक विशाल वर्ग निर्धनता रेखा से नीचे जीवन
बिता रहा है, वे लोग बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं पर पर्याप्त व्यय
नहीं कर सकते। अधिकांश जनता, उच्च शिक्षा का भार वहन नहीं कर पाती। जब बुनियादी शिक्षा
को नागरिकों को अधिकार मान लिया जाता है, तो यह अनिवार्य हो जाता है कि सभी नागरिकों
को सरकार ये सुविधाएँ नि:शुल्क प्रदान करे। आर्थिक विषमर्ताओं के साथ-साथ शैक्षिक उपलब्धियों
के क्षेत्र में भी व्यापक असमानताएँ देखने को मिलती हैं; उदाहरण के लिए साक्षरता दर
जहाँ हिमाचल प्रदेश में 83.78%, मिजोरम में 91.58%, केरल में 93.91% और दिल्ली में
86.34% है, वहीं आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना में 67.66%, झारखण्ड में 67.63%, जम्मू-कश्मीर
में 68.74% और तमिलनाडु में 80.33% है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी व्यापक
विषमताएँ विद्यमान
हैं।
प्रश्न :- मानव पूँजी निर्माण और मानव विकास के भेद को स्पष्ट करें।
उत्तर :- मानव
पूँजी निर्माण एवं मानव विकास में भेद इस प्रकार है-मानव पूँजी की अवधारणा शिक्षा और
स्वास्थ्य को श्रम की उत्पादकता बढ़ाने का माध्यम मानती है। मानव पूंजी का विचार मानव
को किसी साध्य की प्राप्ति का साधन मानता है। यह साध्य उत्पादन में वृद्धि का है। इस
मतानुसार शिक्षा और स्वास्थ्य पर किया गया निवेश अनुत्पादक है, अगर उसमें वस्तुओं और
सेवाओं के निर्गत में वृद्धि न हो। दूसरी ओर मानव विकास के परिप्रेक्ष्य में मानव स्वयं
साध्य भी है। भले ही शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर निवेश से श्रम की उच्च उत्पादकता में
सुधार न हो किंतु इनके माध्यम से मानव कल्याण का संवर्द्धन तो होना ही चाहिए।
प्रश्न :- मानव पूँजी की तुलना में मानव विकास किस प्रकार से अधिक व्यापक
है?
उत्तर :- मानव
पूंजी का विचार मानव को किसी साध्य की प्राप्ति का साधन मानता है। यह साध्य उत्पादकता
में वृद्धि का है। इस मतानुसार शिक्षा और निवेश पर किया गया निवेश अनुत्पादक है, अगर
उसमें वस्तुओं और सेवाओं के निर्गत में वृद्धि न हो। मानव विकास का संबंध इस बात से
है कि स्वास्थ्य एवं शिक्षा मानव भलाई का अंग है। मानव विकास वह अवसर प्रदान करता है
जिससे वे उपयोगिता प्राप्त करने में चयन कर सकें। मानव विकास के परिप्रेक्ष्य में मानव
स्वयं साध्य भी है। भले ही शिक्षा, स्वास्थ्य आदि पर निवेश से श्रम की उच्च उत्पादकता
में सुधार न हो किंतु इनके माध्यम से मानव कल्याण का संवर्द्धन तो होना ही चाहिए। प्राथमिक
शिक्षा और स्वास्थ्य उसके लिए आवश्यक हैं। संक्षेप में मानव पूंजी की अवधारणा का संबंध
मानव की उत्पादकता से है जबकि मानव विकास की अवधारणा का संबंध मानव कल्याण से है। दोनों
अवधारणाओं में शिक्षा एवं स्वास्थ्य प्रमुख स्रोत हैं। लेकिन निवेश का लक्ष्य अलग-अलग
है। मानव विकास से मानवीय उत्पादकता में स्वतः वृद्धि हो । जाएगी। अत: मानव विकास,
मानन पूँजी की तुलना में अधिक व्यापक है।
प्रश्न :- मानव पूंजी के निर्माण में किन कारकों का योगदान रहता है?
उत्तर :- मानव
पूँजी के निर्माण में निम्नलिखित कारकों का योगदान रहता है
1. शिक्षा,
2. स्वास्थ्य, 3. प्रशिक्षण, 4. संचार तथा 5. प्रवास
प्रश्न :- शिक्षा एवं स्वास्थ्य को नियंत्रित करने वाले दो-दो सरकारी संगठनों
के नाम बताइए।
उत्तर
:- शिक्षा
1. राष्ट्रीय
शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्।
2. विश्वविद्यालय
अनुदान आयोग।
स्वास्थ्य
1. स्वास्थ्य
मंत्रालय।
2. भारतीय
आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद्।
प्रश्न :- शिक्षा को किसी राष्ट्र के विकास में एक महत्त्वपूर्ण आगत माना
जाता है, क्यों?
उत्तर :- राष्ट्र-निर्माण
के लिए शिक्षा का महत्त्वपूर्ण आगत है, क्योंकि
1. शिक्षा
से अच्छे नागरिक उभरकर आते हैं।
2. शिक्षा व्यक्ति के साथ-साथ पूरे समाज को लाभान्वित
करती है।
3. शिक्षा
से मामव की क्षमता का संवर्द्धन होता है।
4. शिक्षा
से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास होता है।
5. शिक्षा
से लोगों के मानसिक स्तर का विकास होता है।
6. देश के
सभी क्षेत्रों के प्राकृतिक तथा मानवीय साधनों के प्रयोग को शिक्षा सुविधाजनक बनाती
है।
7. शिक्षित
मनुष्य आर्थिक-सामाजिक विकास में जयादा योगदान देता है।
8. शिक्षा
अनुसंधान दृष्टिकोण को विकसित करती है।
9. शिक्षा
से देश के निवासियों के सांस्कृतिक स्तर को प्रोत्साहन मिलता है।
प्रश्न :- पूँजी निर्माण के निम्नलिखित स्रोतों पर चर्चा कीजिए-
(क) स्वास्थ्य आधारिक संरचना,
(ख) प्रवसन पर व्यय।
उत्तर
:- (क) स्वास्थ्य आधारिक संरचना
किसी भी कार्य
को अच्छी तरह से कौन कर सकता है-एक बीमार व्यक्ति या फिर एक स्वस्थ व्यक्ति? चिकित्सा
सुविधाओं के सुलभ नहीं होने पर एक बीमार श्रमिक कार्य से विमुख रहेगा। इससे उत्पादकता
में कमी आएगी। अत: इस प्रकार से स्वास्थ्य पर व्यय मानव पूंजी के निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण
स्रोत है। अस्पताल के भवन, मशीनों एवं उपकरणों, एम्बुलेन्स आदि पर किया गया व्यय स्वास्थ्य
आधारित संरचना का निर्माण करता है। स्वास्थ्य आधारिक संरचना से स्वास्थ्य में बढोत्तरी
होती है और परिणामस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि होती है।
(ख) प्रवसन पर व्यय
व्यक्ति अपने
मूल स्थान की आय से अधिक आय वाले रोजगार की तलाश में प्रवसन/पलायन करते हैं। भारत में
ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर प्रवसन मुख्यतः गाँवों में बेरोजगारी के कारण ही
होता है। अकुशल श्रमिक देश के अंदर प्रवास करते हैं तथा शिक्षित एवं कुशल व्यक्ति देश
के बाहर भी प्रवास के के लिए जाते हैं। प्रवसनों की दोनों ही स्थितियों में परिवहन
की लागत और उच्चतर निर्वाह लागत के साथ एक अनजाने सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में रहने
की मानसिक लागतें भी प्रवासी श्रमिकों को सहन करनी पड़ती हैं। लेकिन प्रवसित स्थान
पर ज्यादा कमाई से प्रवसन काव्यय हल्का हो जाता है। अतः प्रवसन पर किया गया व्यय मानवे
पूँजी निर्माण का स्रोत है।
प्रश्न :- मानव संसाधनों के प्रभावी प्रयोग के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा
पर व्यय संबंधी जानकारी प्राप्त करने की आवश्यकता का निरूपण करें।
उत्तर :- शिक्षा
में निवेश को मानव पूंजी का एक प्रमुख स्रोत माना जाता है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य
में निवेश, कार्य के दौरान प्रशिक्षण, प्रबंधन तथा सूचना आदि में निवेश मानव पूंजी
के निर्माण के अन्य स्रोत हैं। व्यक्ति अपनी आय को बढ़ाने के लिए शिक्षा पर निवेश करता
है। उसी प्रकार स्वास्थ्य पर व्यय से स्वस्थ श्रमिकों की आपूर्ति बढ़ती है और इस कारण
उत्पादकता में भी वृद्धि होती है। बचाव, निदान, स्वच्छ पेयजल, दवाइयों पर व्यय तथा
सफाई पर किया गया व्यय आदि स्वास्थ्य व्यय के उदाहरण हैं। जनसामान्य को इन सबकी जानकारी
होना आवश्यक है तभी वह इन सुविधाओं का भरपूर लाभ उठा सकता है।
प्रश्न :- मानव पूंजी में निवेश आर्थिक संवृद्धि में किस प्रकार सहायक होता
है?
उत्तर :- हम
जानते हैं कि एक साक्षर व्यक्ति का श्रम-कौशल निरक्षर व्यक्ति की अपेक्षा अधिक होता
है। इसी कारण वह अपेक्षाकृत अधिक आय अर्जित कर पाता है आर्थिक संवृद्धि का अर्थ देश
की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि से होता है तो फिर स्वाभाविक है कि किसी साक्षर
व्यक्ति का योगदान निरक्षर व्यक्ति मी तुलना में कहीं अधिक होगा। एक स्वस्थ व्यक्ति
अधिक समय तक व्यवधान रहित श्रम की पूर्ति कर सकता है। इसीलिए स्वास्थ्य भी आर्थिक संवृद्धि
का एक महत्त्वपूर्ण कारक बन जाता है। इसी प्रकार कार्य प्रशिक्षण, सूचना एवं प्रवास
पर व्यय भी मानव पूँजी निर्माण करते हैं। इन सब पर व्यय से मानव की उत्पादकता में वृद्धि
होती है एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण पनपता है। इस प्रकार मानव पूँजी एवं आर्थिक संवृद्धि
में सीधा संबंध है।
प्रश्न :- विश्व भर में औसत शैक्षिक स्तर में सुधार के साथ-साथ विषमताओं
में कमी की प्रवृत्ति| पाई गई है। टिप्पणी करें।
उत्तर :- शिक्षा
मामेव पूँजी निर्माण का मुख्य स्रोत है। शिक्षा से अच्छे नागरिक उभरकर आते हैं। एक
शिक्षित व्यक्ति अशिक्षित व्यक्ति की तुलना में पर्यावरण को ज्यादा बेहतर ढंग से समझ
सकता है। शिक्षा से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास होता है। देश के सभी क्षेत्रों
के प्राकृतिक तथा मानवीय साधनों के प्रयोग को शिक्षा सुविधाजनक बनाती है। शिक्षा से
लोगों के मानसिक स्तर का विकास होता है। शिक्षा से नई तकनीक को स्वीकार करने की योग्यता
आती है। अधिक आय उपार्जन हेतु साक्षर मनुष्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास कर
सकता है। इन सब कारकों से व्यक्ति की आय में वृद्धि होती है। आम आदमी की आय बढ़ने से
उच्च एवं निम्न आय वर्ग की दूरी घटने लगती है। इस प्रकार शिक्षा में विषमताओं में कमी
की प्रवृत्ति पाई जाती है। दूसरे शब्दों में, शैक्षिक सुधार आर्थिक व सामाजिक विषमताओं
में कमी लाता है।
प्रश्न :- किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास में शिक्षा की भूमिका का विश्लेषण
करें।
उत्तर :- आर्थिक
विकास को आर्थिक संवृद्धि के रूप में देखा जा सकता है यदि संवृद्धि के साथ-साथ साधनों
का वितरण समान हो। शिक्षा मानव पूँजी का स्रोत है। किसी साक्षर व्यक्ति के श्रम-कौशल
निरक्षर व्यक्ति से अधिक होते हैं। इसी कारण से साक्षर व्यक्ति निरक्षर व्यक्ति की
तुलना में अधिक आय अर्जित कर लेता है और आर्थिक संवृद्धि में उसका योगदान भी अधिक होता
है। शिक्षा से व्यक्ति ही नहीं समाज भी लाभान्वित होता है। शिक्षा केवल मनुष्य की उत्पादकता
को ही नहीं बढ़ाती है बल्कि उसे ज्यादा समझदार, जागरूक व अनुकूलन योग्य बनाती है। शिक्षित
श्रम शक्ति की उपलब्धता, नई प्रौद्योगिकी को अपनाने में भी सहायक होती है। इस प्रकार
कुशलता से संवर्द्धित व्यक्ति शहर के आर्थिक विकास के लिए ज्यादा योगदान देता है।
प्रश्न :- समझाइए कि शिक्षा में निवेश आर्थिक संवृद्धि को किस प्रकार प्रभावित
करता है?
उत्तर :- व्यक्ति
अपनी भावी आय बढ़ाने के लिए शिक्षा पर निवेश करता है। एक साक्षर व्यक्ति को श्रम-कौशल
एक निरक्षर की तुलना में अधिक होता है। शिक्षा न केवल श्रम की उत्पादकता को बढ़ाती
है। बल्कि यह साथ-ही-साथ परिवर्तन को प्रोत्साहित कर नवीन प्रौद्योगिकी को आत्मसात
करने की क्षमता भी विकसित करती है। शिक्षा समाज में परिवर्तनों एवं वैज्ञानिक प्रगति
को समझ पाने की क्षमता प्रदान करती है जिससे आविष्कारों एवं नव-परिवर्तनों में सहायता
मिलती है। शिक्षित एवं कुशल श्रमिक भौतिक साधनों का प्रयोग करके ज्यादा और उच्च गुणवत्ता का उत्पादन
करके आर्थिक संवृद्धि को जन्म देते हैं। इस प्रकार शिक्षा में निवेश से आर्थिक संवृद्धि
में भी बढ़ोत्तरी होती है।
प्रश्न :- किसी व्यक्ति के लिए कार्य के दौरान प्रशिक्षण क्यों आवश्यक होता
है?
उत्तर :- आजकल
फर्मे अपने कर्मचारियों के कार्यस्थल पर प्रशिक्षण में व्यय करती हैं। कार्य के दौरान
प्रशिक्षण कई प्रकार से दिया जा सकता है; जैसे
1. फर्म के
अपने कार्यस्थल पर ही पहले से काम को जानने वाले कुशलकर्मी कर्मचारियों को काम सिखा
सकते हैं।
2. कर्मचारियों
को किसी अन्य संस्थान/स्थान पर प्रशिक्षण पाने के लिए भेजा जा सकता है। दोनों ही विधियों
में फर्म अपने कर्मचारियों के प्रशिक्षण के प्रशिक्षण का कुछ व्यय वहन करती है तथा
इस बात पर बल देती है कि प्रशिक्षण के बाद वे कर्मचारी एक निश्चित अवधि तक फर्म के
पास ही कार्य करें। इस प्रकार फर्म उनके प्रशिक्षण पर किए गए व्यय की उगाही अधिक उत्पादकता
से हुए लाभ के रूप में कर पाने में सफल रहती है। प्रशिक्षण से श्रम-उत्पादकता एवं गुणवत्ता
में भी वृद्धि होती है। इस कारण कार्य के दौरान प्रशिक्षण आवश्यक होता है।
प्रश्न :- मानव पूँजी और आर्थिक संवृद्धि के बीच संबंध स्पष्ट करें। ”
उत्तर :- मानव
पूँजी एवं आर्थिक संवृद्धि एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं अर्थात् एक ओर जहाँ प्रवाहित
उच्च आय उच्च स्तर पर मानव पूंजी के सृजन का कारण बन सकती है तो दूसरी ओर उच्च स्तर
पर मानव पूँजी निर्माण से आय की संवृद्धि में सहायता मिल सकती है।
प्रश्न :- भारत में स्त्री शिक्षा के प्रोत्साहन की आवश्यकता पर चर्चा करें।
उत्तर :- भारत
में स्त्री शिक्षा दर (65.46%) अभी तक पुरुष शिक्षा दर (82.14%) से कम है। ग्रामीण
स्त्री शिक्षा दर लगभग 54 है जो शहरी स्त्री शिक्षा दर 87% की अपेक्षा बहुत कम है।
इसीलिए आज महिला शिक्षा को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है
1. समाज में
महिलाओं का सामाजिक स्तर ऊँचा उठाने के लिए।
2. स्त्रियों
को तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिए।
3. महिलाओं
की आर्थिक स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करने के लिए।
4. महिलाओं
की स्वास्थ्य देख-रेख एवं बच्चों की शिक्षा के लिए महिला शिक्षा आवश्यक है।
प्रश्न :- शिक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों में सरकार के विविध प्रकार के
हस्तक्षेपों के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर :- शिक्षा
एवं स्वास्थ्य आधारिक संरचना के मुख्य बिन्दु हैं। शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाएँ निजी
क्षेत्र द्वारा भी उपलब्ध कराई जाती हैं और सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा भी। शिक्षा का
उच्च स्तर जहाँ कौशल व तकनीकी को विकसित करके उत्पादन क्षमता में वृद्धि करता है वहीं
पौष्टिक, प्रदूषण रहित, स्वच्छ व स्वस्थ जीवन श्रम की उत्पादकता में वृद्धि करके राष्ट्रीय
आय को संवर्धित करता है। हम जानते हैं कि एक स्वस्थ व साक्षर व्यक्ति एक अस्वस्थ व
निरक्षर व्यक्ति की तुलना में अधिक कुशलतापूर्वक कार्य कर सकता है, एक अच्छा प्रबंधनै
दुर्लभ राष्ट्रीय संसायधनों के अधिक अच्छे उपयोग को संभव बना सकता है और इस प्रकार
राष्ट्रीय एवं प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने में सहायक हो सकता है। इस प्रकार शिक्षा व स्वास्थ्य
पर निवेश मानव पूंजी के अच्छे स्रोत हैं और राष्ट्रीय उत्पादकता बढ़ाने में भी सहायक
हैं। निजी क्षेत्र लाभ-आधारित होता है और निजी क्षेत्र द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली
शैक्षिक व स्वास्थ्य सुविधाएँ अत्यधिक महँगी होती हैं और समाज के सामान्य वर्ग की पहुँच
से परे होती हैं। इन सुविधाओं के विस्तार के लिए सरकारी हस्तक्षेप आवश्यक है। इस संबंध
में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं
1. निजी क्षेत्र
की एकाधिकारात्मक प्रवृत्ति को रोकना।
2. निजी क्षेत्र
द्वारा शोषण को रोकना।।
3. सामाजिक
एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
4. निर्धनता
रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले लोगों को शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
5. विभिन्न
प्रकार की संक्रामक बीमारियों की रोकथाम करना।
6. संतुलित
आहार की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
प्रश्न :- भारत में मानव पूँजी निर्माण की मुख्य समस्याएँ क्या है?
उत्तर :- भारत
में मानव पूँजी निर्माण से संबंधित मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं
1. भारत में
तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या मानवीय पूँजी की गुणवत्ता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित
करती है। यह सामान्य सुविधाओं जैसे—सफाई, शिक्षा, रोजगार, अस्पतालों और आवासों आदि
की प्रति व्यक्ति उपलब्धता को कम करती है।
2. भारत में
सर्वोच्च वरीयता कृषि एवं औद्योगिक क्षेत्रों के विकास को दी जाती है तथा उपलब्ध वित्तीय
साधनों का प्रयोग अधिकतम इन्हीं क्षेत्रों में किया जाता है। इसके बाद बचे वित्तीय
संसाधनों को अन्य क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है। उनमें भी मानव संसाधन क्षेत्र
की वरीयता निम्न दर्जे की होती है। अतः इस क्षेत्र का विकास अवरुद्ध है।
3. भारत में
कुल शिक्षा व्यय का एक बहुत बड़ा हिस्सा प्राथमिक शिक्षा पर व्यय होता है। उच्चतर/तृतीयक
शिक्षण संस्थाओं पर होने वाला व्यय सबसे कम है।
4. राज्यों
में होने वाले प्रति व्यक्ति शिक्षा व्यय में काफी अंतर है। जहाँ लक्षद्वीप में इसका
उच्च स्तर १ 3,440 है, वहीं बिहार में यह मात्र १ 386 है। ये विषमताएँ ग्रामीण एवं
शहरी क्षेत्रों में भी देखने को मिलती हैं।
5. जहाँ देश
में एक ओर कुछ विशिष्ट प्रकार के श्रमिकों का अभाव अनुभव किया जा रहा है वहीं । दूसरी
ओर घोर बेरोजगारी भी विद्यमान हैं। परिणामस्वरूप एक ओर श्रम न मिलने के कारण प्राकृतिक
संसाधनों का उचित प्रयोग नहीं होता तथा दूसरी ओर श्रमशक्ति व्यर्थ ही नष्ट हो जाती
6. शिक्षा
सिद्धांत प्रधान है, व्यवसाय प्रधान नहीं।
7. उच्च शिक्षित
एवं कौशल युक्त श्रम विदेशों की ओर पलायन (brain drain) कर जाता है।
प्रश्न :- क्या आपके विचार में सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों
में लिए जाने वाले | शुल्कों की संरचना निर्धारित करनी चाहिए? यदि हाँ, तो क्यों?
उत्तर
:- हम जानते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य की देखभाल निजी तथा सामाजिक लाभों को उत्पन्न
करती है। इसी कारण इन सेवाओं के बाजार में निजी और सार्वजनिक संस्थाओं को अस्तित्व
है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर व्यय महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं और उन्हें आसानी से
नहीं बदला जा सकता। इसीलिए सरकारी हस्तक्षेप अनिवार्य है तथा निजी क्षेत्रों के लिए
शुल्कों की संरचना निर्धारित करना भी आवश्यक है। मान लीजिए, जब भी किसी बच्चे को किसी
स्कूल या फिर स्वास्थ्य देखभाल केन्द्र में भर्ती कर दिया जाता है, जहाँ बच्चे को आवश्यक
सुविधाएँ नहीं प्रदान की जा रही हों तब ऐसी स्थिति में किसी दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण
कर देने पर भी पर्याप्त मात्रा में धन का व्यय हो चुका होगा। यही नहीं, इन सेवाओं के
व्यक्तिगत उपभोक्ताओं को सेवाओं की गुणवत्ताओं और लागतों के विषय में पूर्ण जानकारी
नहीं होती। इन परिस्थितियों में शिक्षा स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करा रही संस्थाएँ
एकाधिकार प्राप्त कर लेती हैं और शोषण करने लगती हैं। इस समय सरकार की भूमिका यह होनी
चाहिए कि वह निजी सेवा प्रदायकों को उचित मानकों के अनुसार सेवाएँ देने और उनकी उचित
कीमत लेने को बाध्य करे।
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न :- पूँजी-निर्माण का अर्थ है
(क) बचत करना
।
(ख) बचत नियंत्रित
करना
(ग) विनियोग
करना
(घ) बचत का
वास्तविक पूँजीगत परिसम्पत्तियों में विनियोग करना √
प्रश्न :- “आर्थिक विकास मानवीय प्रयत्नों का परिणाम है।” यह कथन किसका
है?
(क) प्रो०
रिचार्ड टी० गिल
(ख) प्रो०
आर्थर लेविस √
(ग) प्रो०
शुल्ज
(घ) प्रो०
मिंट
प्रश्न :- सन् 2011 में भारत में साक्षरता का प्रलिंशत था
(क) 70.04
(ख) 74.04
√
(ग) 90
(घ) इनमें
से कोई नहीं
प्रश्न :- शिक्षा का महत्त्व नहीं है
(क) शिक्षा
नागरिकता की भावना का विकास करती है।
(ख) शिक्षा
से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास होता है।
(ग) शिक्षा
से लोगों के मानसिक स्तर का पतन होता है। √
(घ) शिक्षा
से देशवासियों के सांस्कृतिक स्तर में अभिवृद्धि होती है।
प्रश्न :- औपचारिक शिक्षा का कार्यक्रम कब शुरू किया गया?
(क) सन्
1995 ई० में √
(ख) सन्
1993 ई० में
(ग) सन्
1996 ई० में ।
(घ) सन्
1980 ई० में
प्रश्न :- जनसंख्या मानव पूंजी में कब बदल जाती है?
उत्तर :- जब
शिक्षा, प्रशिक्षण एवं चिकित्सा सेवाओं में निवेश किया जाता है तो जनसंख्या मानव पूंजी
में बदल जाती है।
प्रश्न :- मानव पूँजी से क्या आशय है?
उत्तर :- मानव
पूँजी से आशय कौशल और मानव में निहित उत्पादन के ज्ञान के स्टॉक से है।
प्रश्न :- सकल राष्ट्रीय उत्पाद से क्या आशय है?
उत्तर :- किसी
अर्थव्यवस्था में जो भी अन्तिम वस्तुएँ और सेवाएँ एक वर्ष की अवधि में उत्पादित की
जाती हैं, उन सभी के बाजार मूल्य के योग को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।
प्रश्न :- जनसंख्या का उत्पादक पक्ष क्या है?
उत्तर :- जनसंख्या
का उत्पादक पक्ष है—सकल राष्ट्रीय उत्पाद के सृजन में उसके योगदान की क्षमता।
प्रश्न :- मानव पूँजी निर्माण क्या है।
उत्तर :- शिक्षा,
प्रशिक्षण एवं स्वास्थ्य द्वारा मानव संसाधन का विकास ही मानघ’पूँजी निर्माण कहलाता
है।
प्रश्न :- मानव पूंजी में निवेश का क्या महत्त्व है?
उत्तर :- मानव
पूंजी में निवेश भौतिक पूँजी की ही भाँति प्रतिफल प्रदान करता है। इससे उत्पादकता बढ़ती
है। और उत्पादन बढ़ने से आय बढ़ती है।
प्रश्न :- चिकित्सक, अध्यापक, अभियंता तथा दर्जी अर्थव्यवस्था के लिए किस
प्रकार परिसम्पत्ति
उत्तर :- चिकित्सक,
अध्यापक, अभियंता तथा दर्जी अर्थव्यवस्था के लिए उत्पादक क्रियाओं में संलग्न हैं।
और परिसम्पत्ति है क्योंकि ये चारों ही सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि करते हैं।
प्रश्न :- मानव पूँजी को उत्पादक परिसम्पत्ति में कैसे बदला जा सकता है?
उत्तर :- मानव
पूँजी में निवेश (शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, तकनीकी व अनुसंधान) द्वारा मानव पूँजी
को उत्पादक परिसम्पत्ति में बदला जा सकता है।
प्रश्न :- शिक्षा से क्या लाभ है?
उत्तर :- शिक्षा
द्वारा श्रम की गुणवत्ता में वृद्धि होती है। इससे देश की कुल उत्पादकता में भी वृद्धि
होती है। और इसके फलस्वरूप उसकी आय/मजदूरी में भी वृद्धि हो जाती है।
प्रश्न :- जनसंख्या की गुणवत्ता किस पर निर्भर करती है?
उत्तर :- जनसंख्या
की गुणवत्ता साक्षरता दर, जीवन प्रत्याशा से निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य और देश
के नागरिकों द्वारा प्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर करती है।
प्रश्न :- किस व्यक्ति को साक्षर माना जाता है?
उत्तर :- वह
व्यक्ति जो स्व-विवेक से किसी भाषा को पढ़-लिख सके, साक्षर माना जाता है।
प्रश्न :- सन 1951 में साक्षरता-दर क्या थी?
उत्तर :- सन्
1951 में साक्षरता दर 16.67 (पुरुष =24.95 तथा स्त्री = 7.93) थी।
प्रश्न :- सन 2011 में साक्षरता-दर क्या थी?
उत्तर :- सन्
2011 में साक्षरता दर 74.04 (पुरुष = 82.14 तथा स्त्री = 65.46) थी।
प्रश्न :- भारत में पुरुष व महिलाओं में से किनमें साक्षरता-दर अधिक है
और क्यों?
उत्तर :- भारत
में पुरुषों में साक्षरता स्त्रियों से अधिक है क्योंकि पुरुष स्त्रियों की तुलना में
अधिक संख्या में शिक्षा ग्रहण करते हैं।
प्रश्न :- पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ कम शिक्षित क्यों हैं?
उत्तर :- पुरुषों
की अपेक्षा महिलाएँ कम शिक्षित हैं क्योंकि वे घर व घर से बाहर गैर-आर्थिक क्रिया-कलापों
में प्रायः संलग्न रहती हैं।
प्रश्न :- साक्षरता-दर की परिकलन कैसे किया जाता है?
उत्तर
प्रश्न :- समाज के विकास में शिक्षा का क्या योगदान है?
उत्तर :- शिक्षा राष्ट्रीय आय और सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि करती है और प्रशासन की कार्यक्षमता को बढ़ाती है।
प्रश्न :- क्या विद्यार्थियों की बढ़ती हुई संख्या को प्रवेश देने के लिए
कॉलेजों की संख्या में वृद्धि पर्याप्त है?
उत्तर
:- नहीं। बढ़ती हुई विद्यार्थियों की संख्या को प्रवेश देने के लिए और अधिक कॉलेजों
की स्थापना की जानी चाहिए।
प्रश्न :- क्या आप सोचते हैं कि हमें विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ानी
चाहिए?
उत्तर
:- हाँ! विश्वविद्यालयों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए और व्यवसायपरक शिक्षा देने के
लिए अधिकाधिक विश्वविद्यालय खोले जाने चाहिए।
प्रश्न :- संसाधन के रूप में लोग से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर :-
‘संसाधन के रूप में लोग’ से अभिप्राय वर्तमान उत्पादन कौशल और क्षमताओं के संदर्भ में
किसी देश में कार्यरत लोगों के वर्णन करने की एक विधि से है। अन्य संसाधन की भाँति
जनसंख्या भी एक साधन है। उसे ‘मानव संसाधन’ कहते हैं।
प्रश्न :- मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूँजी जैसे अन्य संसाधनों से कैसे
भिन्न हैं?
उत्तर :- मानव
एक सक्रिय संसाधन है जबकि अन्य साधन निष्क्रिय हैं। मानव संसाधन ही भूमि वे भौतिक पूँजी
जैसे अन्य संसाधनों का उपयोग करके उन्हें उपयोगी बनाता है, वे अपने आप में उपयोगी नहीं
हैं।
प्रश्न :- मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है?
उत्तर :- शिक्षा
मानव संसाधन को कुशल बनाती है। शिक्षा एवं प्रशिक्षण सुविधाएँ उसकी उत्पादकता में वृद्धि
करती हैं जिससे उसकी आय बढ़ती है।
प्रश्न :- मानव पूँजी निर्माण में स्वास्थ्य की क्या भूमिका है?
उत्तर :- मानव
पूंजी निर्माण में स्वास्थ्य सेवाएँ भौतिक पूँजी की ही भाँति प्रतिफल प्रदान करती हैं।
अधिक स्वस्थ लोगों की उत्पादकता भी अधिक होती है जिससे उनका उपभोग स्तर एवं जीवन-स्तर
भी उच्च रहता
प्रश्न :- किसी व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य की क्या महत्त्वपूर्ण
भूमिका है?
उत्तर :- किसी
व्यक्ति के कामयाब जीवन में स्वास्थ्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। अच्छा स्वास्थ्य
उसे अधिक सक्षम एवं सशक्त बनाता है, रोगों से लड़ने की शक्ति देता है तथा अधिक कार्य
करने की क्षमता प्रदान करता है। इससे उसकी उत्पादक़ता एवं आय बढ़ती है। आय की प्राप्ति
कामयाबी की सीढ़ी है।
प्रश्न :- विरोधाभासी जनशक्ति स्थिति से क्या आशय है?
उत्तर :- कुछ
विशेष श्रेणियों में जनशक्ति का आधिक्य तथा अन्य श्रेणियों में जनशक्ति की कमी पाई
जाती
प्रश्न :- श्रमिकों के प्रवास से क्या आशय है?
उत्तर :- रोजगार की तलाश में श्रमिकों को गाँवों से शहरों की ओर पलायन ‘श्रमिकों का प्रवास’ कहलाता
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न :- मानव पूँजी निर्माण किसे कहते हैं?
उत्तर :- जनशक्ति
अर्थव्यवस्था के लिए एक परिसम्पत्ति है। जब शिक्षा, प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में
निवेश किया जाता है तो जनशक्ति मानव पूंजी में बदल जाती है। वास्तव में मानव पूँजी
कौशल और उनमें निहित उत्पादन के ज्ञान का स्टॉक है। जब मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा
तथा स्वास्थ्य द्वारा और विकसित किया जाता है तो हम इसे मानव पूँजी निर्माण कहते हैं।
आर्थिक विकास की दर को तीव्र गति से बढ़ाने की दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण संसाधन
है।
प्रश्न :- किसी देश के लिए मानव पूंजी निर्माण का क्या महत्त्व है?
उत्तर :- मानव
पूंजी निर्माण के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
1. मानव पूंजी
निर्माण भौतिक पूँजी निर्माण की ही भाँति देश की उत्पादकता शक्ति में वृद्धि करता है।
2. शिक्षित
और बेहतर प्रशिक्षित लोगों की उत्पादकता में वृद्धि के कारण आय में वृद्धि होती है
जिससे उनका उपभोग स्तर और इसके फलस्वरूप जीवन-स्तर उच्च होता है।
3. आय में
वृद्धि से समाज के सभी वर्ग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होते हैं।’
4. शिक्षित,
प्रशिक्षित एवं स्वस्थ व्यक्ति उपलब्ध संसाधनों का अधिक बेहतर उपयोग कर सकते हैं।
प्रश्न :- जनसंख्या को एक उत्पादक परिसम्पत्ति के रूप में कैसे बदला जा
सकता है?
उत्तर :- मानव
पूंजी के निवेश द्वारा विशाल जनसंख्या को एक उत्पादक सम्पत्ति के रूप में बदला जा सकता
है। हम जानते हैं कि मानव पूंजी में निवेश (शिक्षा, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सेवा के
द्वारा) भौतिक पूँजी की ही भाँति प्रतिफल प्रदान करता है। अधिक शिक्षित, बेहतर प्रशिक्षित
और अधिक स्वस्थ लोगों की उत्पादकता का स्तर उच्च होता है। इससे सकल राष्ट्रीय उत्पाद
में वृद्धि होती है, प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है और उपभोग का स्तर ऊँचा होता है। फलस्वरूप
रहन-स्तर के स्तर में भी सुधार होता है। दूसरे, शिक्षित प्रशिक्षित एवं स्वस्थ लोग
निष्क्रिय पड़े संसाधनों का बेहतर उपयोग कर सकते हैं।
प्रश्न :- जनसंख्या की गुणवत्ता किन घटकों पर निर्भर करती है? जनसंख्या
की गुणवत्ता में सुधार क्यों आवश्यक है?
उत्तर :- जनसंख्या
की गुणवत्ता निम्नलिखित घटकों पर निर्भर करती है
1. साक्षरता
दर,
2. जीवन प्रत्याशा,
3. स्वास्थ्य,
4. कौशल निर्माण
जनसंख्या की
गुणवत्ता में सुधार आवश्यक है क्योंकि इससे ही अन्ततः देश की संवृद्धि दर निर्धारित
होती है। वास्तव में साक्षर एवं स्वस्थ जनसंख्या ही देश की परिसम्पत्तियाँ होती हैं,
जबकि निरक्षर व अस्वस्थ जनसंख्या देश पर एक बोझ होती है।
प्रश्न :- शिक्षा का क्या महत्त्व है? इसके विकास के लिए सरकार ने क्या
किया है?
उत्तर :- शिक्षा
एक महत्त्वपूर्ण आगत है। यह राष्ट्रीय आय और सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि करती है
और प्रशासन की कार्यक्षमता बढ़ाती है। सरकार ने शिक्षा के विकास के लिए निम्न कदम उठाए
हैं1. प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्य किया गया है तथा प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय
खोले गए हैं। इस
1. दिशा में
सर्वशिक्षा अभियान एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
2. विद्यार्थियों
को व्यावसायिक शिक्षा उपलब्ध कराने पर विशेष बल दिया गया है।
3. शिक्षा
पर योजना व्यय बढ़ाया गया है।
प्रश्न :- किसी देश में जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना क्यों
आवश्यक है?
उत्तर :- अच्छा
स्वास्थ्य व्यक्ति को अपनी क्षमता बढ़ाने और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है। वास्तव
में स्वास्थ्य स्व-कल्याण की अनिवार्य आधारशिला है। अस्वस्थ लोगों की कार्यक्षमता का
स्तर निम्न होता है। जबकि स्वस्थ लोगों की कार्यक्षमता का स्तर उच्च होता है। इसलिए
जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना किसी भी देश की प्राथमिकता होती है और इसीलिए
सरकार स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण और पौष्टिक भोजन पर विशेष ध्यान दे रही है।
अब एक विस्तृत स्वास्थ्य आधारित संरचना का निर्माण देश का प्राथमिक लक्ष्य है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न :- मानव पूंजी में विनियोग की सीमाएँ बताइए।
उत्तर :- मानव
पूंजी में विनियोग की सीमाएँ निम्नलिखित हैं
1. अल्पविकसित
देशों में वित्तीय साधनों का अभाव होता है। अत: उपलब्ध संसाधनों को केवल मानव विकास
पर ही व्यय नहीं किया जा सकता।
2. विदेशी
तकनीकी सहायता के बिना अल्पविकसित देशों में कौशल निर्माण सम्भव नहीं है। विदेशी तकनीकी
सहायता के आयात के लिए विदेशी विनिमय कोषों की आवश्यकता होती है और अल्पविकसित देशों
में विदेशी विनिमय कोष पर्याप्त मात्रा में नहीं होते।
3. अधिकांश
अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाएँ कृषिप्रधान होती हैं और कृषि के अंतर्गत नव-प्रवर्तन एवं
कौशल निर्माण की सम्भावना अत्यधिक कम होती है।
4. इनका सामाजिक,
सांस्कृतिक ढाँचा तकनीकी परिवर्तन के अनुकूल नहीं होता।
5. इन देशों
में ज्ञान व कौशल के प्रति जन-सामान्य उदासीन होता है।
6. कौशल निर्माण
मानवीय साधनों के विकास की एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है जिसके लिए पर्याप्त एवं लगातार
विनियोग, असीमित धैर्य एवं सतर्कता की आवश्यकता है। अल्पविकसित देशों में ऐसा सम्भव
नहीं होता।
प्रश्न :- मानव विकास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :- मानव
विकास से आशय मानव में गुणात्मक सुधार करना है। सन् 1990 में सर्वप्रथम प्रकाशित
Human Development Report के अनुसार, मानव विकास लोगों के सामने विस्तार की प्रक्रिया
है। UNDP की मानव विकास रिपोर्ट (1997 ई०) में मानव विकास की अवधारणा को इस प्रकार
स्पष्ट किया गया है, “यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा जनसामान्य के विकल्पों का विस्तार
किया जाता है और इनके द्वारा उनके कल्याण के उन्नत स्तर को प्राप्त किया जाता है। यही
मानवीय विकास की धारणा का मूल है। ऐसे सिद्धांत न तो सीमाबद्ध होते हैं और न ही स्थैतिक।
परंतु विकास के स्तर को दृष्टि में न रखते हुए जनसामान्य के पास तीन विकल्प हैं—एक
लम्बा और स्वस्थ जीवन व्यतीत करना, ज्ञान प्राप्त करना ही अच्छा जीवन स्तर प्राप्त
करने के लिए आवश्यक, संसाधनों तक अपनी पहुँच बढ़ाना और भी अनेक विकल्प हैं जिन्हें
बहुत-से लोग महत्त्वपूर्ण मानते हैं–राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता से सृजनात्मक
और उत्पादक बनने के अवसर और स्वाभिमान एवं गारण्टीकृत मानवीय अधिकारों का लाभ उठाना…..आय
केवल एक विकल्प है…. जो लोग आय प्राप्त करना चाहेंगे, चाहे यह बहुत महत्त्वपूर्ण है
परंतु यह उनके समग्र जीवन का सार नहीं है। आय एक साधन है जबकि मानव विकास एक साध्य।”
प्रश्न:- निर्माण से क्या आशय है? मानव संसाधन विकास के मुख्य स्रोत बताइए।
उत्तर :- आर्थिक
विकास की प्रक्रिया में अधिकांशतः भौतिक पूँजी के संचय को ही अधिक महत्त्व दिया जाता
है जबकि व्यवहार में पूँजी स्टॉक की वृद्धि पर्याप्त सीमा तक मानव पूंजी-निर्माण पर
निर्भर रहती हैं। मानव पूंजी-निर्माण, देश के सब लोगों का ज्ञान, कुशलता तथा क्षमताएँ
बढ़ाने की प्रक्रिया है। शुल्ज, हार्बिसन, डेनिसन, केण्डूिक, मोसिज, अब्रामोविट्ज़,
बैकर, मेरी बोमन, कुजनेस आदि अर्थशास्त्रियों का मत है कि शिक्षा पर व्यय किया गया
एक डॉलर राष्ट्रीय आय में उसकी अपेक्षा अधिक वृद्धि करता है, जितना बाँधों, सड़कों,
फैक्ट्रियों या अन्य व्यवहार्य पूँजी वस्तुओं पर व्यय किया गया एक डॉलर।
मानव पूँजी निर्माण का अर्थ एवं परिभाषाएँ
मानव पूँजी
निर्माण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत मानवीय शक्ति के विकास हेतु भारी मात्रा
में विनियोग किया जाता है ताकि देश में मानव-शक्ति तकनीकी कुशलता एवं योग्यता प्राप्त
कर सके। इसका संबंध ‘‘ऐसे व्यक्ति उपलब्ध करना और उनकी संख्या में वृद्धि करना है जो
कुशल, शिक्षित तथा अनुभवी हों-मानव पूँजी–निर्माण इस प्रकार मानवे में विनियोजन और
उसके निर्माणकारी तथा उत्पादक साधन के रूप में विकास से संबंध है।’ इसके अंतर्गत शिक्षा,
स्वास्थ्य एवं प्रशिक्षण पर किया गया व्यय सम्मिलित होता है।
प्रो० मायर के अनुसार- “मानवीय पूँजी निर्माण ऐसे लोगों को
प्राप्त करने तथा उनकी संख्या को बढ़ाने की प्रक्रिया है जिनके पास ये कुशलताएँ, शिक्षा
और अनुभव होता है जो किसी देश के आर्थिक विकास एवं राजनीतिक विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण
हैं।”
प्रो० हार्बिसन के शब्दों में—“मानव पूँजी निर्माण से अभिप्राय ऐसे
व्यक्तियों को उपलब्ध करना और इनकी संख्या में वृद्धि करना है जो कुशल, शिक्षित व अनुभवपूर्ण
हों, जिनकी देश के आर्थिक एवं राजनीतिक विकास के लिए नितांत आवश्यकता होती है। मानव
पूंजी निर्माण इस प्रकार मानव में विनियोजन और उसके सृजनकारी तथा उत्पादक साधन की माप
में विकास से संबंधित है।”
मानव पूँजी निर्माण के स्रोत मानव पूंजी निर्माण के कुछ महत्त्वपूर्ण स्रोत
निम्न प्रकार हैं
1. शिक्षा :- शिक्षा पर व्यंय मनुष्य को अधिक कुशल बनाकर उसकी उत्पादन
क्षमता में वृद्धि करता | है। इससे भविष्य की आय बढ़ने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।
2. स्वास्थ्य :- एक स्वस्थ व्यक्ति ही किसी कार्य को अच्छी तरह
से कर सकता है। चिकित्सासुविधाओं के अभाव में श्रमिक बीमार रहता है और बीमार श्रमिक
कार्य से बचता हैं इससे उसकी उत्पादकता कम हो जाती है। स्वास्थ्य पर किया गया व्यय
स्वस्थ श्रम बल की पूर्ति को बढ़ाता है। और इस कारण यह मानव पूँजी निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण
स्रोत है।
3. प्रशिक्षण :- फमें अपने कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर व्यय करती
हैं। फमें प्रशिक्षण कार्य की व्यवस्था कारखाने के अंदर भी कर सकती हैं अथवा अपने कर्मचारियों
को अन्य प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षण दिला सकती हैं। प्रशिक्षण पर किया गया यह
व्यय कर्मचारी की उत्पादकता को बढ़ाता है और इस प्रकार फर्म के लाभ में वृद्धि होती
है।
4. प्रवसन तथा सूचना :- सामान्यत: लोग अधिक आय की तलाश में
अपने मूल स्थान से दूसरे स्थानों को पलायन करते हैं। प्रवसन के दौरान किए जाने वाले
व्यय की तुलना में आय में अधिक वृद्धि होती है। इसी प्रकार व्यक्ति श्रम बाजार तथा
दूसरे बाजार जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए व्यय
करते हैं यह जानकारी मानव पूंजी के उपयोग के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती हैं।
प्रश्न :- एक अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में मानव पूँजी निर्माण के महत्त्व
एवं भूमिका को स्पष्ट कीजिए।’
उत्तर :- अल्पविकसित
अर्थव्यवस्था में मानव पूँजी निर्माण का महत्त्व (भूमिका) किसी भी देश के द्रुत आर्थिक
विकास में मानवीय पूँजी का विशेष महत्त्व है। प्रो० आर्थर लेविस के शब्दों में “आर्थिक
विकास मानवीय प्रयत्नों का परिणाम है।” प्रो० रिचार्ड टी० गिल के अनुसार आर्थिक विकास
कोई यांत्रिक प्रक्रिया नहीं बल्कि एक मानवीय उपक्रम है जिसकी प्रगति उन लोगों की कुशलता,
गुणों, दृष्टिकोणों एवं अभिरुचियों पर निर्भर करती है। प्रो० शुल्ज के अनुसार-“हमारी
आर्थिक प्रणाली का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण मानवीय पूँजी का विकास है।’
आर्थिक विकास
की दृष्टि से मानवीय पूँजी भौतिक पूँजी की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसका कारण
यह है कि भौतिक पूँजी का निर्माण भी मानवीय पूँजी के निर्माण पर ही निर्भर करता है।
यदि मानवीय पूँजी निर्माण के लिए कम विनियोग किया जाता है, तो अतिरिक्त भौतिक पूँजी
के उत्पादक कार्यों में विनियोग की दर कम होगी और आर्थिक विकास की प्रक्रिया धीमी पड़
जाएगी। अधिकांश अल्पविकसित देशों में मानवीय पूँजी निर्माण उपेक्षित रहा है और उन्होंने
‘भौतिक परिसम्पत्ति के निर्माण पर ही अधिक ध्यान दिया है। प्रो० मिंट का यह कथन सत्य
है कि “अब यह अधिकाधिक स्वीकार किया जाता है कि बहुत-से अल्पविकसित देशों का विकास
बचत की कमी के कारण इतना नहीं | रुका है जितना कि कौशल और ज्ञान की कमी के कारण, जिसकी
वजह से उनकी व्यवस्था की उत्पादक विनियोग में पूंजी का अवशोषण करने की क्षमता सीमित
हो गई है।”
इसलिए नई तथा
विस्तारशील सरकारी सेवाओं में कर्मचारी नियुक्त करने के लिए, भूमि प्रयोग की नई व्यवस्था
तथा कृषि के नए तरीके प्रचलित करने के लिए, संचारण के नए साधनों का विकास करने के लिए,
औद्योगीकरण को आगे ले जाने के लिए, शिक्षा प्रणाली का निर्माण करने के लिए मानव पूँजी
आवश्यक है। वास्तव में, यदि देश के पास पर्याप्त मानव पूंजी हो, तो भौतिक पूँजी अधिक
उत्पादक बन जाती है। जैफ रेंज के शब्दों में जो देश अपने आर्थिक विकास की गति बढ़ाने
का प्रयत्न कर रहे हैं। उनमें यह देखा गया है कि उन्नत औद्योगिक देशों से आधुनिक विधियों
तथा मशीनरी का प्रयोग करने के लिए प्रथम श्रेणी के अभियंताओं द्वारा जमाएँ रूपांकित
किए जाते हैं तब भी प्रदा की मात्रा तथा श्रेणी प्रायः असंतोषजनक रहती है। क्यों? क्योंकि
अधिकांश स्थितियों में प्रबन्धक तथा श्रमिक अपर्याप्त रूप से
अप्रशिक्षित
होते हैं और उनमें अनुभव की कमी होती है। प्रो० शुल्ज का कहना है कि “मानव पूँजी के
अभाव में ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे पास साधनों का मानचित्र हो पर उसमें महान नदी
और उसकी शाखाएँ न हों। शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य में उन्नतियाँ और अर्थव्यवस्था
में सूचना के बढ़ते स्टॉक उस विशिष्ट नदी का पोषण करते हैं।’ एक विकासशील अर्थव्यवस्था
में आर्थिक विकास की गति को तेज करने तथा उसे पिछड़ेपन से बाहर निकालने में मानव पूंजी
निर्माण निम्न प्रकार सहायक हो सकता है
1. यह अल्पविकसित
देशों के समग्र वातावरण में परिवर्तन ला सकता है। यह लोगों की आकांक्षाओं,अभिवृत्तियों
एवं अभिप्रेरणाओं को विकासोन्मुखी बनाकर आर्थिक विकास के लिए उपयुक्त वातावरण तैयार
करा सकता है।
2. मानव पूँजी
भौतिक पूँजी को अधिक उत्पादक बना देती है।
3. मानवीय
पूँजी निर्माण में निवेश अधिक प्रतिफल प्रदान करता है। यह प्रतिफल लागत से अधिक | होता
है।
4. प्राकृतिक
संसाधनों का अधिक बेहतर उपयोग किया जा सकता है।
5. श्रम बल
की गतिशीलता बढ़ती है जिससे उसकी आय में वृद्धि होती है।
6. श्रमिकों
के ज्ञान में वृद्धि होती है।
7. आधुनिक
प्रौद्योगिकी का उपयोग करके उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
8. श्रम को
लाभकारी रोजगार प्राप्त होता है।
संक्षेप में,
मानवीय पूँजी निर्माण में किया गया निवेश उपलब्ध संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करके
आर्थिक विकास की देर में वृद्धि कर सकता है।
प्रश्न :- मानवीय पूँजी निर्माण में निवेश के मुख्य क्षेत्र बताइए।
उत्तर :- मानवीय
पूँजी निर्माण में निवेश के मुख्य क्षेत्र निम्नलिखित हैं
1. शिक्षा एवं प्रशिक्षण सुविधाएँ :- शिक्षा एवं प्रशिक्षण सेवाओं
पर किया गया विनियोजन मानव शक्ति की कार्यकुशलता को बढ़ाता है, जिससे आर्थिक विकास
को प्रोत्साहन मिलता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के एक अध्ययन के अनुसार-‘सबसे अधिक प्रगति
उन देशों में होगी जहाँ पर शिक्षा विस्तृत होती है और जहाँ पर वह लोगों में प्रयोगात्मक
दृष्टिकोणों को विस्तृत करती है। प्रो० सिंगर के अनुसार-“शिक्षा में किया गया विनियोग
बहुत अधिक उत्पादक ही नहीं होता है बल्कि वह बढ़ता हुआ प्रतिफल भी देता है क्योंकि
कुल तथा शिक्षित व्यक्तियों के सहयोग से काम करता हुआ दल उन व्यक्तियों के समूह में
अधिक उपयोगी होता है जिससे कि वह मिलकर बनता है। मानवीय विनियोग के जिस क्षेत्र में
भी हम देखते हैं, वहाँ हमें बढ़ता हुआ प्रतिफले ही देखने को मिलता है।’ प्रो० रिचार्ड
टी० गिल के शब्दों में—“शिक्षा पर किया गया विनियोग आर्थिक विकास की दृष्टि से सर्वाधिक
सार्थक विनियोग माना जाएगा। प्रो० गैलबैथ ने शिक्षा को उपभोग और विनियोग दोनों ही माना
है। शिक्षा पर विनियोग करते समय निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए
a. अर्थव्यवस्था
की दशा पर ध्यान देना चाहिए उदाहरण के लिए कृषिप्रधान अर्थव्यवस्थाओं में कृषि शिक्षा
एवं प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
b. विकास को
गति मिलने पर ‘औद्योगिक प्रशिक्षण’ पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
c. शैक्षिक
पद्धति कार्यमूलक होनी चाहिए, सिद्धान्त प्रधान नहीं।
d. इसके पश्चात्,
प्रबन्धकीय व व्यावसायिक शिक्षा पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
2. स्वास्थ्य
एवं पोषण :- किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए उत्पादकता में वृद्धि’ एक आवश्यक पूर्ण
शर्त है और उत्पादकता में वृद्धि के लिए स्वस्थ जनशक्ति का होना आवश्यक है। स्वास्थ्य
का निम्न स्तर एवं पोषण की कमी उत्पादकता एवं आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालते
हैं। अल्पविकसित देशों में अल्पपोषण, चिकित्सा सेवाओं की कमी व स्वास्थ्य के निम्न
स्तर के कारण उनकी गुणात्मक उत्पादकता कम होती है। उनकी प्रति व्यक्ति आय कम होती है
और वे निर्धनता के दूषित चक्र में जड़ जाते हैं। अतः इन देशों में विकास की गति को
तेज करने के लिए जनशक्ति के गुणों में सुधार किया जाना आवश्यक है। इसके लिए लोगों को
पर्याप्त एवं पौष्टिक भोजन दिया जाना चाहिए, सफाई एवं स्वास्थ्य दशाओं की व्यवस्था
की जानी चाहिए वृथा चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए। इन मदों पर किया
गया विनियोग लोगों के स्वास्थ्य एवं कार्यक्षमता में सुधार लाएगा, श्रम की कार्यक्षमता
एवं उत्पादकता को बढ़ाएगा और आर्थिक विकास दर को तेज करेगा।
3. आवास सुविधाएँ :- आवास व्यवस्था मानवीय स्वास्थ्य एवं कार्यकुशलता
को प्रभावित करने वाली एक महत्त्वपूर्ण घटक है। गंदी बस्तियाँ, बिना हवा एवं रोशनी
के छप्परयुक्त झोंपड़ियाँ, सीलन एवं गंदगी से भरी गलियाँ लोगों के स्वास्थ्य को शनैः-शनैः
क्षीण करती हैं जिसका उनकी उत्पादकता एवं देश के आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता
है। अतः इन गंदी बस्तियों को स्वस्थ, हवादार एवं स्वच्छ बनाया जाना चाहिए, मकान निर्माण
योजनाओं को व्यापक स्तर पर चालू किया जाना चाहिए और कार्य हेतु निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित
किया जाना चाहिए। अच्छी आवास व्यवस्था श्रमिकों की कार्यक्षमता को बढ़ाएगी, उनके उत्पादकता
के स्तर को ऊँचा करेगी और आर्थिक विकास की दर को तीव्र करेगी।
प्रश्न :- मानवीय पूँजी निर्माण की मुख्य समस्याएँ बताइए। इन समस्याओं को
हल करने के लिए उपयुक्त सुझाव दीजिए।
उत्तर :- मानवीय
पूँजी निर्माण की समस्याएँ मानव पूंजी निर्माण में आने वाली कुछ मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित
हैं
1. आवश्यक मानव पूँजी के स्टॉक का अनुमान लगाने की समस्या :- अल्पविकसित
देशों में आर्थिक विकास की दृष्टि से आवश्यक मानव पूंजी के कुल स्टॉक का अनुमान लगाना
एक कठिन कार्य है। विशेष रूप से विकास की विभिन्न अवस्थाओं में यह अनुमान लगाना तो
और भी कठिन होता है। फिर भी, ईतना निश्चित है कि अल्पविकसित देशों के विकास की प्रारम्भिक
अवस्था में शिक्षित व प्रशिक्षित व्यक्तियों के रूप में मानव पूंजी (उद्यमी, संगठक,
प्रशासक, वैज्ञानिक, चिकित्सक, अभियंता आदि) की आवश्यकता अधिक होती है।
2. मानव पूँजी निर्माण की वृद्धि दर को व्यक्त करने की समस्या :- मानव पूँजी
निर्माण की वृद्धि दर को स्पष्ट शब्दों में व्यक्त करना सम्भव नहीं होता। फिर भी, इस
संबंध में यह कहा जाता है कि सामान्य रूप से मानव पूँजी निर्माण की वृद्धि दर, केवल
श्रम-शक्ति की वृद्धि दर से ही नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर से भी अधिक होनी
चाहिए। हार्बिसन का कहना है कि तकनीकी व्यक्तियों में वृद्धि दर श्रम शक्ति की वृद्धि
दर से कम-से-कम तिगुनी तथा क्लर्को, शिल्पियों, प्रबंधकों और प्रशासक सेविवर्ग की वृद्धि
से दुगुनी अवश्य होनी चाहिए।
3. शिक्षा में विनियोजन का ढाँचा निर्धारित करने की समस्या :- एशिया, अफ्रीका
तथा दक्षिणी अमेरिका के अधिकांश देशों में, प्राथमिक शिक्षा पर अधिक बल दिया जाता है
जोकि प्रायः निःशुल्क एवं अनिवार्य होती है और माध्यमिक शिक्षा पर कम। ऐसा करने में
पर्याप्त अपव्यय होता है और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों का दबाव बढ़ने से आर्थिक
विकास में बाधा पड़ती है।
4. उच्चतर शिक्षा के अनुचित प्रसार की समस्या :- अल्पविकसित
देश शिक्षा के विद्यमान स्तर में सुधार किए बिना ही उच्चतर शिक्षा हेतु विश्वविद्यालय
खोलते रहते हैं। फलस्वरूप शिक्षा के स्तर में गिरावट आ जाती है तथा निजी तथा सार्वजनिक
क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त स्नातकों की दक्षता और उन्नति की सम्भावना घट जाती है।
मिंट महोदय का विचार है कि इस प्रकार की शिक्षा नीति एक प्रकार से देश के आर्थिक विकास
व मानवीय साधनों का अपव्यय है।।
5. कृषि शिक्षा, स्त्री एवं प्रौढ़ शिक्षा तथा कार्यरत प्रशिक्षण कार्यक्रमों
का अभावं :- अल्पविकसित देशों में कृषि शिक्षा, स्त्री एवं प्रौढ़ शिक्षा तथा कार्यरत
प्रशिक्षण (On the job training) कार्यक्रमों की ओर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। परिणामत:
आर्थिक विकास की दृष्टि से उपयुक्त मानसिकता, दृष्टिकोण तथा उत्पादक क्रियाओं का अभाव
बना रहता है।
समस्याओं के निवारण हेतु उपयुक्त सुझाव
भारत में मानव
पूंजी निर्माण में वृद्धि एवं इसके मार्ग में आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए निम्नलिखित
सुझाव दिए जा सकते हैं
1. जनसंख्या
में उच्च वृद्धि दर को कम किया जाए। इससे श्रम-बल में वृद्धि की दर कम होगी, बचत ।
और निवेश में वृद्धि होगी तथा जनसंख्या की गुणवत्ता में सुधार होगा।
2. उपयुक्त
जनशक्ति नियोजन किया जाए ताकि श्रम की पूर्ति श्रम की माँग के अनुरूप की जा सके।
3. उपर्युक्त
शिक्षा सुधार की योजना बनाई जाए। शिक्षा सिद्धांत प्रधान न होकर व्यवसाय प्रधान हो।
शिक्षा विकास के अनुरूप होनी चाहिए।
4. देश में
वर्तमान जनसंख्या के लिए पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएँ और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया
| जाना चाहिए।
5. मानव पूँजी
निर्माण राष्ट्रीय विकास कार्यक्रम का एक भाग बनाया जाना चाहिए।
प्रश्न :- मानव संसाधन विकास के एक आवश्यक तत्त्व के रूप में शिक्षा का
महत्त्व एवं स्वरूप बताइए। भारत में शिक्षा क्षेत्र के विकास पर एक संक्षिप्त टिप्पणी
लिखिए।
उत्तर :- शिक्षा
: मानव संसाधन के विकास का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। शिक्षा से आशय लोगों के पढ़ने-लिखने
और समझने की योग्यता से है। भारत में मात्र 74.04% लोग साक्षर हैं, जबकि अन्य विकसित
देशों में यह प्रतिशत 90 से 95 तक है।
शिक्षा का
महत्त्व
शिक्षा के
महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
1. शिक्षा
नागरिकता की भावना का विकास करती है।
2. शिक्षा
से विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का विकास होता है।
3. शिक्षा
उपलब्ध प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों के विवेकपूर्ण उपयोग को सुविधाजनक बनाती है।
4. इससे लोगों
के मानसिक स्तर का विकास होता है।
5. इससे देशवासियों
के सांस्कृतिक स्तर में अभिवृद्धि होती है।
6. यह मानवीय
व्यक्तित्व के विकास में सहायक है।
7. यह विकास
प्रक्रिया में जनसहभागिता को संभव बनाती है।
भारत में शिक्षा क्षेत्र का विकास
1. सामान्य शिक्षा का प्रसार :- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश
में सामान्य शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ है। देश में शिक्षण संस्थाओं की संख्या लगभग
चार गुना और छात्रों की संख्या लगभग पाँच गुना बढ़ चुकी है। 1951 ई० में कुल जनसंख्या
का मात्र 16% ही साक्षर था जो 2011 में बढ़कर लगभग 74.04% हो गया है।
2. प्राथमिक शिक्षा :- प्राथमिक शिक्षा में 6 से 14 वर्ष
तक की आयु के बच्चों में कक्षा एक से आठ तक के छात्र आते हैं। योजनाकाल में प्राथमिक
स्कूलों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। इस समय 6 से 14 वर्ष के आयु समूह में लगभग
90% बच्चे स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं किंतु अभी भी यह प्रतिशत निम्न है।
शिक्षा की दृष्टि से अति पिछड़े राज्य हैं-बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व अरुणाचल
प्रदेश। शिक्षा के इस पिछड़ेपन का प्रमुख कारण आर्थिक व सामाजिक पिछड़ापन है।
3. माध्यमिक शिक्षा :- वर्ष 2010-11 में देश में लगभग 2 लाख 45 हजार
माध्यमिक विद्यालय कार्य कर रहे थे। इनके अतिरिक्त केन्द्रीय विद्यालय’ व ‘नवोदय विद्यालय
भी स्थापित किए गए हैं। किंतु इन विद्यालयों
में विद्यार्थियों का दाखिला संतोषजनक नहीं रहा है। यह मात्र 20% है। इसके अतिरिक्त
शिक्षा के व्यावसायीकरण में भी विशेष सफलता नहीं मिली है।
4. उच्चतर शिक्षा :- भारत में विश्वविद्यालयों एवं विश्वविद्यालय स्तर
की संस्थाओं में 20 केन्द्रीय विश्वविद्यालय, 215 राज्य विश्वविद्यालय, 100 समकक्ष
विश्वविद्यालय, राज्य अधिनियम के अंतर्गत गठित 5 संस्थाएँ तथा 13 राष्ट्रीय महत्त्व
के संस्थान शामिल हैं। ये संस्थान 1800 महिला महाविद्यालयों सहित 17000 महाविद्यालयों
के अतिरिक्त हैं। देश में शिक्षा के क्षेत्र में अब प्राइवेट विश्वविद्यालय भी खुल
गए हैं।
5. तकनीकी, चिकित्सकीय एवं कृषि शिक्षा :- स्वतंत्रता
प्राप्ति के बाद तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाले संस्थानों में काफी
वृद्धि हुई है। वर्तमान में देश में 1215 पॉलीटैक्निकल संस्थाएँ तथा 778 मान्यता प्राप्त
इंजीनियरिंग कॉलेज हैं। चिकित्सा के क्षेत्र में, देश में 268 मेडिकल कॉलेज तथा
126 डेन्टल कॉलेज हैं। देश में अनेक अनुसंधान केन्द्र भी स्थापित किए गए
6. ग्रामीण शिक्षा :- ग्रामीण क्षेत्रों में भी शिक्षा के व्यापक प्रसार
पर बल दिया जा रहा है। इस हेतु राष्ट्रीय ग्रामीण उच्च शिक्षा परिषद् की स्थापना की
जा चुकी है।
7. प्रौढ़ तथा स्त्री शिक्षा :- प्रौढ़ शिक्षा के प्रोत्साहन के लिए
राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना की गई। 1975 ई० में औपचारिक शिक्षा कार्यक्रम शुरू
किया गया है। स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार करने के लिए स्त्री शिक्षा परिषद् की
स्थापना की गई है।
8. कुल साक्षरता अभियान :- देश में सभी के लिए शिक्षा’ आन्दोलन शुरू किया जा चुका है। | इसके फलस्वरूप साक्षरता में तेजी से वृद्धि हुई है। उपर्युक्त प्रयासों के बावजूद हमने शिक्षा के क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय सफलता अर्जित नहीं की है। आज भी भारत में निरक्षर लोगों की संख्या विश्व में सबसे अधिक है, व्यावसायिक शिक्षा की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है, बालिकाओं का दाखिला प्रतिशत अपेक्षाकृत कम है, ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों में शिक्षा तक पहुँच कम है और निजीकरण से शैक्षिक जगत में असमानताएँ बढ़ी हैं। अतः शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है।