Class 10 Eco chapter 3 Money and Credit (मुद्रा एवं साख)

Class 10 Economics chapter 3 Money and Credit (मुद्रा एवं साख)

Economics+ app : https://bit.ly/3dH3bJD

Deepak Page : https://bit.ly/2YDJhax


NCERT Book Chapter-3 PDF Free Download

                     👉 Click Here

अभ्यास के प्रश्नों का उत्तर

1. जोखिम वाली परिस्थितियों में ॠण कर्जदार के लिए और समस्याएं खड़ी कर सकता है। स्पष्ट कीजिए?

उत्तर:- निश्चित रूप से ऋण आय बढ़ाने में मदद करता है। जिससे व्यक्ति की स्थिति पहले की तुलना में बेहतर हो जाती है। परंतु जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए और भी समस्याएं खड़ी कर सकता है। ऋण कर्जदार को और भी बदतर स्थिति में पहुंचा सकता है। इसे निम्न उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं।

किसान खेत के लिए HYV बीजों, रसायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, सिंचाई, कृषि औजारों आदि के लिए पैसे खर्च करता है। वह प्राय: फसल के प्रारंभ में ऋण लेते हैं। और उम्मीद करते हैं कि फसल अच्छी होगी। जिससे ऋण चुकता कर देंगे। परंतु यदि हम कम वर्षा, अतिवृष्टि, चक्रवात आदि के कारण फसल बर्बाद हो जाए तो वह ऋण कैसे चुकता करेगा। ऐसी स्थिति में किसान को ऋण चुकता के लिए अपने भूमि का एक टुकड़ा या वस्तुओं को बेचना पड़ेगा। इस कारण किसान की स्थिति पहले की तुलना में और बदतर हो जाएगी।

इस प्रकार ऋण कृषि के अतिरिक्त अन्य जोखिम वाली परिस्थितियों में कर्जदार के लिए और भी समस्याएं खड़ी कर सकता है।

2. मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस तरह सुलझाती है? अपनी ओर से उदाहरण देकर समझाइए।

उत्तर:- वस्तु विनिमय प्रणाली में मुद्रा का उपयोग किए बिना वस्तुओं का आदान-प्रदान किया जाता है। इसमें एक वस्तु लेते हैं तो दूसरी वस्तु देते हैं। इस कारण वस्तु विनिमय प्रणाली में मांगों का दोहरा संयोग होना एक आवश्यक विशेषता है। जबकि इसके विपरीत वस्तुओं के लेन-देन में मुद्रा का प्रयोग किया जाता है वहां मुद्रा, विनिमय प्रक्रिया में एक मध्यस्थता के रूप में कार्य करती है। इसे निम्न उदाहरण से समझ सकते हैं।

वस्तु विनिमय प्रणाली में किसान के लिए यह जरूरी रह जाता है कि कपड़े निर्माता या जूते निर्माता को ढूंढे। जो ना केवल उसके अनाजों को खरीदे बल्कि बदले में उसे कपड़े और जूते भी बेचे। जबकि मुद्रा विनिमय प्रणाली में किसान को बाजार में केवल अपने अनाज बेचने होते हैं। और अनाज बेचकर मुद्रा प्राप्त करना होता है। इस मुद्रा से न केवल वह कपड़े और जूते खरीद सकता है बल्कि अपनी जरूरत की हर चीजों को खरीद सकता है।

इस प्रकार से मुद्रा वस्तुओं के आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को दूर करती है।

3. अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच बैंक किस तरह ममध्यस्थता करते हैं?

उत्तर:- बैंक अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों से जमाए स्वीकार करते हैं। जैसे रेकरिंग डिपाजिट, फिक्स डिपोजिट, बचत जमाऐं इत्यादि रूपों में। और बैंक इन जमाओं के लिए उचित ब्याज भी देती है। बैंक जमाऐं स्वीकार कर उन जमाओं का एक छोटा हिस्सा 15 % अपने पास रखते हैं। ताकि जमाकर्ताओं द्वारा धन निकालने की मांग को पूरा किया जा सके। साथ ही बाकी 85% हिस्सा बैंक जरूरतमंद लोगों के बीच ऋण देने में प्रयोग करते हैं।

इस प्रकार बैक अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच मध्यस्थता करता है।

4. 10 रुपए के नोट को देखिए।इसके ऊपर क्या लिखा है? क्या आप इस कथन की व्याख्या कर सकते हैं?

उत्तर:- 10 रुपए के नोट के ऊपरी भाग पर भारतीय रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार द्वारा प्रत्याभूत लिखा हुआ है।

भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केंद्र सरकार की ओर से करेंसी नोट जारी करता है। इस कथन का मतलब है कि करेंसी अर्थात कागज के नोट केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत या प्रत्याभूत है। इसका अर्थ है भारतीय कानून भुगतान के माध्यम के रूप में करेंसी नोट का प्रयोग वैध है। जिसे भारत में लेन-देन में कोई इंकार नहीं कर सकता।

इस नोट के बीच में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर का हस्ताक्षर रहता है। जहां लिखा होता है कि मैं धारक को 10 रुपए अदा करने का वचन देता हूं।

5. हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की क्यों जरूरत है?

उत्तर:- हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके निम्न कारण है:-

(i) ब्याज दर नियंत्रण करने के लिए:- ऋण के औपचारिक स्रोतों जैसे बैंक, सहकारी बैंक आदि में ब्याज दर अनौपचारिक क्षेत्र से कम रहता है।
(ii) शर्त मुक्त ऋण:- ऊंची ब्याज दर के अतिरिक्त अनौपचारिक क्षेत्र जैसे साहूकार, मित्र, व्यापारी द्वारा ऋण के बदले कई तरह की शर्तें रहती हैं। जैसे वह किसानों को कम दरों पर फसल बेचने का भी वादा करवाते हैं। जबकि औपचारिक क्षेत्र में ऋण की शर्तें इतनी कठिन नहीं होती।
(iii) निरीक्षणता:- RBI ऋणों के औपचारिक स्रोतों के कामकाज, ब्याज की दरें आदि का निरीक्षण करता है। इसके विपरीत अनौपचारिक क्षेत्र में ऐसा कोई संगठन नहीं है।
(iv) ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए:- ऋण के औपचारिक स्रोतों जैसे बैंक, सरकारी बैंक इत्यादि का एक उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करना भी होता है। ये ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए ऋण दरों में भी कटौती करती है।

इस कारण हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की जरूरत है।

6. गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूहों के संगठन के पीछे मूल विचार क्या है? अपने शब्दों में व्याख्या कीजिए?

उत्तर:- गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूहों के संगठनों के पीछे मूल विचार ग्रामीण गरीब, विशेषकर महिलाओं को स्वयं सहायता संगठनों में संगठित और उनमें बचतों को एकत्रित करना है। ये संगठन समर्थक ऋणाधार के बिना ही उचित ब्याज दर पर सदस्यों को ऋण प्रदान करते हैं। इससे संगठन में मौजूद लोगों को सस्ता ऋण उपलब्ध हो जाता है।

स्वयं सहायता समूह के संगठनों के मुख्य उद्देश्य:-

(i) ग्रामीण गरीबों, विशेषकर महिलाओं को छोटे स्वयं सहायता समूह में संगठित करना तथा उन्हें लाभ पहुंचाना।
(ii) सदस्यों के बीच बचत की भावना विकसित करना तथा आवश्यकता पर उनका पैसा उन्हीं के उपयोग में लाना।
(iii) समर्थक ऋणधार के बिना ऋण प्रदान करना।
(iv) विभिन्न उद्देश्यों के लिए समय पर उपलब्ध कराना।
(v) उचित ब्याज दर पर ऋण प्रदान करना।
(vi) शिक्षा,स्वास्थ्य, पोषण और घरेलू मारपीट जैसे समाजिक मुद्दों पर चर्चा और कार्यवाही का एक मंच प्रदान करना।

7. क्या कारण है कि बैंक कुछ कर्जदारों को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होते?

उत्तर:- बैंक निम्न कारणों से कुछ कर्जदारों को कर्ज देने में आना-कानी करते हैं:-

(i) समर्थक ऋणाधार का अभाव:- बैंक उन गरीब व्यक्तियों को ऋण देना नहीं चाहते जिसके पास समर्थक ऋणधार नहीं होता है। इसका कारण यह है कि बैंक कर्जदारों को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता है। यदि कर्जदार ऋण नहीं चुका पाता तो बैंक को समर्थक ऋणाधार बेचने का अधिकार होता है।
(ii) कर्ज भुगतान का अभाव:- वैसे कर्जदार जिसने अपने पुराने कर्ज का भुगतान नहीं किया है। बैंक उसे पुनः कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होता।
(iii) व्यवसाय का स्वरूप:- बैंक उन कर्जदारों को ऋण देने के लिए तैयार नहीं होते जिनका व्यवसाय जोखिम वाला होता है।
(iv) लाभ मुख्य उद्देश्य:- बैंक का भी मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना है। इस कारण उन्हें ऋण सोच समझकर देना पड़ता है।

उपरोक्त कारणों से बैंक कर्जदारों को ऋण देने के लिए तैयार नहीं होते हैं।

8. भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर किस तरह नजर रखता है? यह जरूरी क्यों है?

उत्तर:- भारत में बैंकों की कार्यप्रणाली पर निगरानी रखने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की स्थापना की गई है। RBI बैंकों की गतिविधियों पर निम्न तरीके से नजर रखता है:-
(i) भारत में व्यवसायिक बैंकों को अपने नकद रिजर्व का एक भाग भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पास रखना आवश्यक होता है। यह ग्राहक द्वारा जमा का कम से कम 15% राशि होती है।
(ii) RBI यह भी नजर रखता है कि बैंक न केवल लाभ कमाने वाले व्यवसायों और व्यापारियों को ही ऋण दें। बल्कि छोटे किसानों, लघु उद्यमियों, छोटे कर्जदारों इत्यादि को भी ऋण प्रदान करें।
(iii) भारत के सभी व्यवसायिक बैंकों को समय-समय पर यह जानकारी देनी पड़ती है कि वह कितना और किनको ऋण दे रहे हैं। तथा ऋण देने की ब्याज दर क्या है। यह मुख्यता: छोटे कर्जदारों, किसानों, लघु उद्यमियों इत्यादि को संरक्षण देने के लिए आवश्यक है।

उपरोक्त तरीके से RBI अन्य बैंकों की गतिविधियों पर नजर रखता है।

9. विकास में ऋण की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।

उत्तर:- आर्थिक विकास में ऋण की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इसे निम्न रूप से देखा जा सकता है:-

(i) सस्ता और वहनीय ऋण देश के विकास में निर्णायक भूमिका निभाता है।
(ii) विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाओं के लिए ऋण की बड़ी मांग है।
(iii) ऋण व्यक्तियों के उत्पादन के कार्यशील खर्चो और समय पर उत्पादन पूरा करने में सहायता करता है। इससे उनकी आय में वृद्धि होती है।
(iv) कई लोग विभिन्न कार्यों के लिए ऋण लेते हैं जैसे खेती, व्यवसाय, लघु उद्यमों की स्थापना इत्यादि के लिए।
(v) लोग ऋण लेकर नए उद्योग लगाते हैं और वस्तुओं का उत्पादन करते हैं।

इस प्रकार ऋण किसी भी देश के विकास में लाभदायक होता है।

10. मानव को एक छोटा व्यवसाय करने के लिए ऋण की जरूरत है। मानव किस आधार पर यह निश्चित करेगा कि उसे यह ऋण बैंक से लेना चाहिए या साहूकार से चर्चा कीजिए।

उत्तर:- मानव को ऋण बैंक या साहूकार से लेना है यह निम्न आधारों पर तय होता है:-

(i) निम्न ब्याज दर
(ii) समर्थक ऋणधार और कागजातों की कम से कम आवश्यकता
(iii) ऋण भुगतान के आसान तरीके

उपरोक्त सभी सुविधाएं साहुकार की तुलना में बैंकों में होती है। इस कारण बैंकों में ऋण लेना साहूकार की तुलना में अच्छा है।

11. भारत में 80% किसान छोटे किसान है, जिन्हें खेती करने के लिए ऋण की जरूरत होती है।
(क) बैंक छोटे किसानों को ऋण देने से क्यों हिचकिचा सकते हैं।
(ख) वे दुसरे स्रोत कौन है, जिनसे छोटे किसान कर्ज ले सकते हैं।
(ग) उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए कि किस तरह ऋण की शर्ते छोटे किसानों के प्रतिकूल हो सकती है।
(घ) सुझाव दीजिए कि किस तरह छोटे किसानों को सस्ता ऋण उपलब्ध कराया जा सकता है।

उत्तर :-

(क) बैंक ऋण के लिए गारंटी के तौर पर समर्थक ऋणाधार और उचित कागजात की मांग करता है। परंतु छोटे किसानों के पास उचित कागजात और समर्थक ऋणाधार का अभाव होता है। फसल का कोई निश्चित उत्पादन न होने के कारण यह कार्य जोखिम भरा होता है। इस कारण कई बार किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है। जिससे यह छोटे किसान बैंक को समय पर ऋण का भुगतान नहीं कर पाते। यही वजह है कि बैंक छोटे किसानों को ऋण देने से हिचकिचा सकते हैं।

(ख) छोटे किसान बैंक के अतिरिक्त साहूकारों, व्यापारियों, बड़े भूमिपतियों, सहकारी बैंकों, स्वयं सहायता समूहों, रिश्तेदारों आदि से ऋण ले सकते हैं।

(ग) कृषि एक जोखिम भरा कार्य है क्योंकि यह मानसून पर निर्भर करता है। इस कारण बैंक छोटे किसानों को ऋण देते समय आना-कानी करते हैं। स्थानीय साहूकारों से उन्हें ऋण कुछ शर्तों से प्राप्त हो जाती है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं।

मोहन एक छोटा किसान है। उसने मानसून प्रारंभ के साथ ही धान की फसल के लिए 3% प्रति माह की ऊंची ब्याज दर पर स्थानीय साहूकार से कर्ज लेता है। परंतु मानसून के खराब होने के कारण फसल सूख जाता है। मोहन को ऋण चुकता करने के लिए भूमि का एक टुकड़ा बेचना पड़ता है।ऐसी स्थिति में ऋण उसके लिए बेहद नुकसानदायक सिद्ध होता है।

(घ) छोटे किसानों को निम्नलिखित स्रोतों से सस्ता ऋण उपलब्ध हो सकता है:-
(i) बैंक
(ii) प्राथमिक कृषि सहकारी समितियां (पैक्स) Pacs
(iii) स्वयं सहायता समूह (SHGS)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:

  1. गरीब  परिवारों की ऋण की अधिकांश जरूरतें अनौपचारिक स्रोतों से पूरी होती हैं।
  2. अधिक ऋण की लागत ऋण का बोझ बढ़ाती है।
  3. रिजर्व बैंक केंद्रीय सरकार की ओर से करेंसी नोट जारी करता है।
  4. बैंक जमा राशि पर देने वाले ब्याज से ऋण पर अधिक ब्याज लेते हैं।
  5. गिरवी सम्पत्ति है जिसका मालिक कर्जदार होता है जिसे वह ऋण लेने के लिए गारंटी के रूप में इस्तेमाल करता है, जब ऋण चुकता नहीं हो जाता।

सही उत्तर का चयन करें:

प्रश्न 1. स्वयं सहायता समूह में बचत और ऋण संबंधित अधिकतर निर्णय लिये जाते हैं:

  1. बैंक द्वारा
  2. सदस्यों द्वारा
  3. गैर सरकारी संस्था द्वारा

प्रश्न 2. ऋण के औपचारिक स्रोतों में शामिल नहीं है:

  1. बैंक
  2. सहकारी समिति
  3. नियोक्ता

कुछ अतिरिक्त प्रश्न        

1. भारत में केंद्रीय सरकार के तरफ से करेंसी नोट कौन जारी करता है?

उत्तर:- केंद्रीय सरकार की ओर से करेंसी नोट भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) जारी करता है।

2. साख की प्रमुख स्रोत की व्याख्या करें?

उत्तर:- साख के दो प्रमुख स्रोत है।
(i) औपचारिक स्रोत:- इसके अंतर्गत ऋण के वे स्रोत शामिल होते हैं। जो सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं। इन्हें सरकारी नियमों और विनियमों का पालन करना पड़ता है। जैसे:- बैंक, सहकारी समितियां और स्वयं सहायता समूह।

(ii) अनौपचारिक स्रोत:- इसके अंतर्गत वे छोटी और छिट-पुट इकाइयां शामिल है। जो सरकार के नियंत्रण से प्रायः बाहर होती हैं। हालांकि इनके लिए भी सरकारी नियम और विनियम होते हैं। परंतु यहां उनका पालन नहीं किया जाता है। जैसे:- साहूकार, व्यापारी, नियोक्ता और रिश्तेदार आदि।

3. ऋण के औपचारिक और अनौपचारिक स्रोतों में क्या अंतर है?

उत्तर:- ऋण के औपचारिक और अनौपचारिक स्रोतों के बीच अंतर को निम्न तरह से स्पष्ट किया जा सकता है:-

ऋण के औपचारिक स्रोत:-

(i) सरकार द्वारा नियंत्रित:- इसके अंतर्गत ऋण के वे स्रोत शामिल होते हैं जो सरकार द्वारा पंजीकृत होते हैं। इन्हें सरकारी नियमों और विनियमों का पालन करना पड़ता है। ये स्रोत है:- बैंक, सहकारी समितियां और स्वयं सहायता समूह।
(ii) निरीक्षक उपलब्ध :-भारतीय रिजर्व बैंक ऋण के औपचारिक स्रोतों के कामकाज पर नजर रखता हैं।
(iii) लाभ एकमात्र उद्देश्य नहीं:- इनका उद्देश्य लाभ कमाने के साथ-साथ सामाजिक कल्याण भी है।
(iv) कम ब्याज दर:- यह सामान्यता: ऋण के औपचारिक स्रोतों की अपेक्षा ब्याज की कम दर मांगते हैं।
(v) उचित शर्त:- यह कोई अनुचित शर्त नहीं लगाते हैं।

ऋण के अनौपचारिक स्रोत:-

(i) परिस्थितियों द्वारा नियंत्रित:- इसके अंतर्गत वे छोटी और छिट-पुट इकाइयां शामिल होती है। जो सरकार के नियंत्रण से प्रायः बाहर होती हैं। हालांकि इनके लिए भी सरकारी नियम और विनियम होते हैं। परंतु यहां उनका पालन नहीं किया जाता है। ये स्रोत है:- साहूकार, व्यापारी और मित्र आदि।
(ii) निरीक्षकहीन:- अनौपचारिक क्षेत्र में ऐसा कोई संगठन नहीं है। जो ऋणदाताओं की ऋण क्रियाओं का निरीक्षण करता हो।
(iii) लाभ एकमात्र उद्देश्य:- इनका एकमात्र उद्देश्य लाभ कमाना है। इसमें सामाजिक कल्याण का कोई महत्व नहीं होता है।
(iv) अधिक ब्याज दर:- यह औपचारिक क्षेत्र की तुलना में कर्ज पर ब्याज की ऊंची दर मांगते हैं।
(v) अनुचित शर्त:- ये ऊंची ब्याज दरों के अतिरिक्त अन्य कई कठोर शर्ते भी लगाते हैं।

1 comment

  1. Rahul
    Rahul
    Nice Useful Post
Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare