स्टोप्लर और सैम्युअल्सन ने
1941 में एक लेख में बताया है कि कुछ प्रतिबंधक मान्यताओं के अंतर्गत, प्रशुल्क लगाने
से उत्पादन के सापेक्ष रूप से दुर्लभ साधन की सापेक्ष तथा निरपेक्ष दोनों प्रकार की
आय बढ़ सकती है और सापेक्ष रूप से प्रचुर साधन की सापेक्ष तथा निरपेक्ष दोनों प्रकार
की आय गिर सकती है। उनका विश्लेषण सामान्य संतुलन सांचे में ढला हुआ है और स्टोप्लर-सैम्युअल्सन
सिद्धांत कहलाता है।
इसकी मान्यताएं
(Its Assumptions)
इससे पहले कि इस सिद्धांत का
अध्ययन करें, इसकी मान्यताओं को जानना आवश्यक है :
1. दो देश एक-दूसरे के साथ
व्यापार करते हैं लेकिन ज्यामितीय रूप से विश्लेषण एक देश से संबद्ध है।
2. यह देश केवल दो वस्तुएं
गेहूं (W) और घड़ियां (W1) उत्पादित करता है।
3. ये दोनों वस्तुएं केवल पूंजी
और श्रम दो साधनों से उत्पादित की जाती हैं।
4. दोनों वस्तुओं के उत्पादन
फलन एक रेखीय तथा एक कोटि (Degree) के समरूप हैं अर्थात् उत्पादन पैमाने के स्थिर प्रतिफल
के अंतर्गत होता है।
5. दोनों साधनों की पूर्ति
स्थिर है।
6. दोनों साधन पूर्ण रोजगार
में लगे हैं।
7. दोनों साधन पूर्णतया गतिशील
हैं।
8. साधन और वस्तु मार्किटों
में पूर्ण प्रतियोगिता है।
9. घड़ियों का उत्पादन सापेक्षतया
पूंजी गहन है और गेहूं का उत्पादन सापेक्षतया श्रम गहन है।
10. श्रम उत्पादन का एक प्रचुर
(abundant) साधन है तथा पूंजी एक दुर्लभ साधन है।
11. गेहूं निर्यात्य वस्तु
है और घड़ियां आयात्य वस्तु हैं।
12. दोनों देशों के बीच व्यापार
की शर्ते अपरिवर्तित रहती हैं। इन मान्यताओं के दिए हुए होने पर, मान लीजिए कि एक देश
गेहूं की, जो सापेक्ष रूप से श्रम गहन है, कुछ मात्रा निर्यात करता है और घड़ियों की
कुछ मात्रा आयात करता है जो पूंजी गहन हैं। इस
मुक्त व्यापार स्थिति को संदूक रेखा चित्र में नीचे दिखाया गया है
जहां गेहूं के उत्पादन का मूल
बिन्दु O तथा घड़ियों के उत्पादन का मूल बिन्दु O1 है जिनसे OO1
संविदा वक्र बनता है। aa गेहूं का सममात्रा वक्र है और bb घड़ियों का सममात्रा वक्र
है। वे दोनों एक-दूसरे को मुक्त व्यापार के अंतर्गत pp साधन कीमत रेखा के बिन्दु N
पर स्पर्श करते हैं।
अब मान लीजिए कि आयात्य वस्तु
घड़ियों पर प्रशुल्क लगाया जाता है। परिणामस्वरूप, इसकी घरेलू कीमत बढ़ जाती है और
आयात कम हो जाते हैं, जिससे देश इसका उत्पादन बढ़ाता है और गेहूं का उत्पादन कम करता
है। इससे पूंजी और श्रम को गेहूं के उत्पादन से हटाकर घड़ियों के उत्पादन में लगा दिया
जाता है। इसे दिखाने के लिए गेहूं का सममात्रा वक्र aa नीचे की ओर सरकाकर a1a1
पर ले जाया गया है और घड़ियों का सममात्रा वक्र bb सरकाकर ऊपर b1b1
पर लाया गया है। नया उत्पादन बिन्दु M है जहां दोनों सममात्रा वक्र एक-दूसरे को साधन
कीमत रेखा p1p1पर स्पर्श करते हैं। क्योंकि घड़ियां पूंजी गहन
हैं इसलिए पूंजी की सापेक्ष मांग बढ़ती है।
क्योंकि देश के भीतर साधन पूर्णरूप
से गतिशील हैं इसलिए पूंजी तथा श्रम दोनों ही गेहूं उद्योग से घड़ी उद्योग में चले
जाएंगे। परंतु श्रम की अपेक्षा पूंजी की मांग अधिक होगी, क्योंकि घड़ियां अपेक्षाकृत
अधिक पूंजी गहन हैं । इससे पूंजी को सापेक्ष कीमत बढ़ेगी। इसका परिणाम यह होगा कि दोनों
उद्योगों में कम पूंजी तथा अधिक श्रम के उपयोग की स्थानापन्नता की प्रवृत्ति शुरू हो
जाएगी। इसका अभिप्राय यह है कि दोनों वस्तुओं के उत्पादन में पूंजी-श्रम अनुपात गिरता
है। इसे प्रशुल्क लगाने से पहले की pp रेखा की तुलना में साधन कीमत रेखा p1p1
की कम तिरछी ढलान द्वारा दिखाया गया है। ज्यों-ज्यों उत्पादन में श्रम का प्रयोग बढ़ता
है त्यों-त्यों इसकी सीमांत उत्पादकता गिरती है और श्रम की वास्तविक मजदूरी भी गिरती
है। इसके विपरीत पूंजी-श्रम अनुपात में कमी का अर्थ है कि दोनों वस्तुओं के उत्पादन
में पूंजी की सीमांत उत्पादकता और पूंजी के वास्तविक प्रतिफल में वृद्धि हुई है।
निष्कर्ष यह निकलता है कि जब
प्रशुल्क लगाने पर देश बिन्दु N से बिन्दु M पर आता है तो देश की राष्ट्रीय आय घट जाती
है। जब संसाधनों का पुनर्विभाजन होता है तो सापेक्ष तथा निरपेक्ष (absolute) दोनों
ही मूल्यों की दृष्टि से दुर्लभ साधन पूंजी का प्रतिफल बढ़ता है और प्रचुर साधन श्रम
की मजदूरी गिरती है।
इसकी आलोचनाएं
(Its Criticisms)
मैटजलर, लैंकास्टर तथा भगवती
ने स्टोपलर-सैम्युअल्सन सिद्धांत की आलोचना की है।
1. मैटज़लर का
विरोधाभास (The Metzler Paradox)- मैटज़लर ने स्टोप्लर-सैम्युअलसन
सिद्धांत, जिसमें यह माना गया है कि प्रशुल्क लगाने वाले देश में व्यापार की शर्तों
में परिवर्तन नहीं आता, की आलोचना की है। उसने दर्शाया है कि प्रशुल्क लगाने से व्यापार
की शर्तों में इतना सुधार आता है कि आयात की जाने वाली वस्तुओं की कीमतें गिर जाती
हैं तथा निर्यात की जाने वाली वस्तुओं की सापेक्ष कीमतें घरेलू तौर पर बढ़ती हैं। इसका
यह अर्थ है कि निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का उत्पादन करना अधिक लाभकारी है। इसके
फलस्वरूप श्रम तथा पूंजी आयात प्रतियोगी उद्योग से निर्यात उद्योग की ओर गति करते हैं।
ऐसी स्थिति में निर्यात उद्योगों में गहनता से प्रयोग में आने वाले साधन का लाभ सापेक्षतया
से बढ़ेगा तथा दूसरे साधन का सापेक्षता में गिरेगा। यह आय वितरण प्रचुर साधन के पक्ष
में बढ़ेगा तथा दुर्लभ साधन की ओर कम होगा। यह स्टोप्लर-सैम्युअलसन सिद्धांत के प्रतिकूल
है तथा मैटज़लर विरोधाभास (Metzler Paradox) अथवा मैटज़लर प्रभावn(Matzler Effect)
कहलाता है।
मैटज़लर विरोधाभास को नीचे दिये गये चित्र में स्पष्ट किया गया है
जहां OE इंग्लैंड के गेहूं
का प्रस्ताव वक्र है तथा OG जर्मनी की घड़ियों का प्रस्ताव वक्र है। बिन्दु A, जहां
OE तथा OG वक्र दोनों एक-दूसरे को काटते हैं, स्वतंत्र व्यापार संतुलन को चित्रित करता
है। OT व्यापार की शर्तों पर इंग्लैंड OC गेहूं के बदले OL घड़ियां लेता है। जब इंग्लैंड
प्रशुल्क लगाता है तब इसका प्रस्ताव वक्र OE सरक कर OE1 हो जाता है तथा
नया संतुलन बिन्दु B पर आ जाता है। जहां पर OC1 गेहूं के बदले OT1
व्यापार शर्तों पर OL1 घड़ियां प्राप्त होती हैं । क्योंकि जर्मनी का प्रस्ताव
वक्र OG, AB रेंज में बेलोच है इससे इंग्लैंड की व्यापार की शर्तों में सुधार होता
है अर्थात OT1 की ढलान > OT, । परिणामस्वरूप इंग्लैंड अपनी निर्यात की
जाने वाली गेहूं की कम मात्रा OC1 के बदले आयातित की जाने वाली घड़ियों की अधिक मात्रा
OL1 लेता है, OC1 >OL1
इन नई व्यापार शर्तों का अर्थ
निर्यात होने वाली वस्तु गेहूं की कीमतों में सुधार है। जहां तक प्रशुल्क का घरेलू
मार्किट में आयात की जाने वाली घड़ियों की सापेक्ष कीमत से संबंध है यह कम हो जाएगी।
क्योंकि कुल प्रशुल्क की कुल राशि DB है इसलिए घरेलू उपभोक्ता आयात्य OL1
घड़ियां पाने के लिए OC2 निर्यात्य गेहूं देंगे। इस प्रकार निर्यात की जाने
वाली गेहूं की घरेलू सापेक्ष कीमत Px/Pm = गेहूं की कीमत/घड़ियों की कीमत के बराबर बढ़ जाएगी।
इसका अर्थ है कि प्रशुल्क लगने के उपरांत घरेलू मार्किट में निर्यात्य गेहूं की सापेक्ष
कीमत बढ़ गई है तथा आयात्य घड़ियों की सापेक्ष कीमत कम हो गई है । अर्थात् OC2/OL1
< OC/OL में यह किरण OD की ढलान भी स्पष्ट होता है जो OA से अधिक तिरछी है । इस
प्रकार आयात्य वस्तु की सापेक्ष कीमत में कमी तथा निर्यात्य वस्तु की सापेक्ष कीमत
में वृद्धि के साथ घरेलू उद्योग निर्यात्य वस्तु की अधिक मात्रा उत्पादित करेगा। परिणामस्वरूप,
श्रम तथा पूंजी आयात प्रतियोगी पूंजी वहन उद्योग से श्रम गहन निर्यात्य उद्योग की ओर
गति करेगा। इस कारण पूंजी के प्रतिफल की सापेक्षता में श्रमिकों के वेतन बढ़ेंगे। यह
निष्कर्ष स्टोप्लर-सैम्युअलसन सिद्धांत के विपरीत है।
2. लर्नर का विरोधाभास (The Lerner Paradox)- स्टोफ्लर-सैम्युअलसन विरोधाभास की भांति लर्नर का विरोधाभास स्थिर व्यापार की शर्तों के रूप में प्रशुल्क के आय वितरण के प्रभावों की व्याख्या करता है। लेकिन पिछले सिद्धांत से अलग परिणाम पर पहुंचता है। जब स्थिर व्यापार की शर्तो पर प्रशुल्क लगाया जाता है तो यह प्रशुल्क लगी वस्तु की घरेलू कीमत बढ़ा देता है। ऐसा इसलिए कि प्रशुल्क आयात्य वस्तु घड़ियों के लिए अधिक मांग लाता है क्योंकि इनकी घरेलू मांग सापेक्षता बेलोच होती है। अपने विश्लेषण में लर्नर घरेलू मांग में उपभोक्तओं की मांग तथा सरकारी मांग दोनों को सम्मिलित करता है । वह यह मानकर चलता है कि सरकार आयातित वस्तु के प्रशुल्क राजस्व को उसी पर खर्च करती है। लर्नर के मामले में आय वितरण का प्रभाव आय को उपभोक्ताओं से प्रशुल्क राजस्व के रूप में सरकार को स्थानांतरित करना है। इस कारण उपभोक्ताओं में आयात्य वस्तु के उपभोग में कमी आती है लेकिन सरकार द्वारा उपभोग में वृद्धि होती है। लर्नर यह मानता है कि आयात्य वस्तु की सीमांगत उपभोग प्रवृत्ति सरकार में उपभोक्ताओं से अधिक होती है, इसलिए सरकार के पक्ष में आय का वितरण आयात्य वस्तु की मांग में वृद्धि लाएगा। यह निष्कर्ष स्टोप्लर-सैमयुअलसन सिद्धांत के विरुद्ध है कि प्रशुल्क लगाने से आयात्य वस्तु की घरेलू मांग में कमी आती है। लर्नर विरोधाभास को नीचे चित्र द्वारा दर्शाया गया है
जहां OE इंग्लैंड का प्रस्ताव
वक्र है तथा OG जर्मनी का प्रस्ताव वक्र है। OT व्यापार की शर्तों पर बिन्दु A मुक्त
व्यापार संतुलन है जहां इंग्लैंड के गेहूं के निर्यात OC तथा घड़ियों के आयात OL पर
दोनों वक्र एक-दूसरे को काटते हैं। प्रशुल्क लगने के उपरांत इसका प्रस्ताव वक्र OE
बदलकर OE1 हो जाता है। स्थिर व्यापार की शर्तों OT पर घड़ियों की मांग गेहूं
की मांग से अधिक बढ़ जाती है। अर्थात LL1 <CC1 । ऐसा इस कारण
कि DB में प्रस्ताव वक्र OE1 बेलोच है क्योंकि आयातों की मांग बेलोच है
इसलिए आयात्य वस्तु की घरेलू कीमत में वृद्धि होती है। नए संतुलन व्यापार की शर्तों
की रेखा OT1 जो रेखा OT के दाईं ओर है प्रशुल्क लगाने वाले देश इंग्लैंड
की व्यापार शर्तों में बिगाड़ दिखाती है। घरेलू कीमत में वृद्धि के कारण उपभोक्ता मांग
में कमी आती है तथा सरकारी प्रशुल्क राजस्व निर्यात वस्तु की मांग में वृद्धि लाता
है। यह स्टोप्लर सैम्युअलसन सिद्धांत के विरुद्ध है कि प्रशुल्क लगाने से आयात्य वस्तु
की मांग में कमी आती है।
3. साधन गतिशील
नहीं (Factors not Mobile)- साधनों की पूर्ण गतिशीलता की मान्यता के
आधार पर स्टोप्लर-सैम्युअलसन सिद्धांत आय वितरण पर प्रशुल्क के प्रभावों का विश्लेषण
करता है। यह दीर्घकाल में तो संभव है लेकिन अल्पकाल में संभव नहीं जहां एक साधन मानलीजिए
श्रम पूरी तरह गतिशील है तथा पूंजी दोनों प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन के लिए विशेष
हो, ऐसी स्थिति में घड़ियों पर लगाया गया प्रशुल्क उद्योग में घड़ियों से संबंधित वास्तविक
मजदूरी को कम कर देगा तथा निर्यात्य गेहूं से संबंधित वास्तविक मजदूरी में वृद्धि लाएगा।
आय वितरण पर प्रशुल्क के ये प्रभाव स्टोप्लर सैम्युअल्सन सिद्धांत के विरुद्ध जाते
हैं।
चित्र में
जहां घड़ियों तथा गेहूं दोनों
के लिए क्षैतिज अक्ष घरेलू देश की श्रम की कुल पूर्ति OL1 को मापता है तथा
अनुलंब अक्ष वास्तविक मजदूरी दर को। गेहूं उत्पादन के लिए श्रम का मांग वक्र DH है।
यह रोजगार के प्रत्येक स्तर पर श्रम के सीमांत उत्पादन MPL (Marginal Product of
Labour) मापता है। Dw घड़ियों के उत्पादन में श्रम (MPL) का मांग वक्र है। मुक्त व्यापार
श्रम बाजार का संतुलन E बिन्दु पर है जहां OR दोनों उद्योगों के लिए गेहूं में वास्तविक
मजदूरी का माप है और घड़ी उद्योग में OL श्रमिक तथा गेहूं उद्योग में L1L
श्रमिक रोजगार पर लगाए गए हैं। जब आयात्य घड़ियों पर प्रशुल्क लगता है तो घड़ी उद्योग
का श्रम का मांग वक्र, ऊपर की ओर प्रशुल्क की पूर्ण राशि RR1 ( RR1/OR)
के बराबर सरक कर Dw1 पर चला जाता है। जब घड़ियों के आयात पर प्रतिबंध लगाया
जाता है तो देश की घरेलू घड़ियों की मांग बढ़ जाती है जिससे श्रम की मांग में भी वृद्धि
होती है। इसके परिणामस्वरूप घड़ी उद्योग में वास्तविक मजदूरी OR से बढ़कर गेहूं के
रूप में OR2 हो जाती है। लेकिन घड़ियों के रूप में गेहूं उद्योग में वास्तविक
मजदूरी OR1 से कम होकर OR हो जाएगी क्योंकि गेहूं उद्योग में श्रम की मांग
में कमी से श्रम का सीमांत उत्पादन कम हो जाता है। दूसरी ओर आयात प्रतियोगी उद्योग
में श्रम के अंतर्वाह (Inflow) होने से, पूंजी-श्रम अनुपात कम हो जाएगा जो घड़ी उद्योग
में श्रम की पूंजी का सीमांत उत्पादन और उसके प्रतिफल मे घड़ी उद्योग के रूप में वृद्धि
लाता है। इसके विपरीत गेहूं उद्योग से श्रम का बाह्य प्रवाह पूंजी के सीमांत उत्पादन
और उसके प्रतिफल में घड़ी उद्योग के रूप में कमी लाएगा। ये परिणाम स्टोप्लर-सैम्युअलसन
सिद्धांत के अनुरूप हैं जब श्रम तथा पूंजी दोनों गतिशील हों तो आयात प्रतियोगी उद्योग
में श्रम की वास्तविक मजदूरी कम होती है तथा पूंजी के प्रतिफल में वृद्धि होती है।
4. दुर्लभ साधन
का अंतर्वाह (Inflow of Searce Factor)- ऊपर वर्णित सिद्धांत के उपसिद्धांत
के रूप में कि आयात्य वस्तु, जिस पर प्रशुल्क लगाया जाता है, वह सापेक्षतया दुर्लभ
विशिष्ट साधन (scarce specific factor) में गहन है तो इससे घरेलू देश में उसका अंतर्वाह
हो सकता है। यदि दुर्लभ साधन पूंजी हो तथा पूंजी गहन वस्तु के साथ वह देश में आती हो
तो साधन कीमतों में 'बराबरी आएगी तथा शुल्क का आय वितरण पर लगभग शून्य प्रभाव पड़ेगा।
स्टोप्लर-सैम्युअल्सन सिद्धांत इस संभावना पर ध्यान देने में असफल है।
5. उपभोग ढांचे
की उपेक्षा (Neglects Consumption Pattern)- लैंकास्टर ने लक्ष्य किया कि
स्टोप्लर तथा सैमयुअल्सन ने सूचकांक समस्या से बचने का प्रयत्न किया है और इस प्रयत्न
में वे "आसमान से गिरकर खजूर में अटकने में ही सफल हुए हैं।" लैंकास्टर का
मत है कि उन्होंने देश के नागरिकों के उपयोग ढांचे की उपेक्षा की है। हो सकता है कि
श्रम गहन वस्तु के प्रति लोगों का झुकाव इतना प्रबल हो कि तुलनात्मक लाभ के कारण उस
वस्तु का आयात जरूरी हो जाए। उस स्थिति में प्रशुल्क लगाने से सापेक्ष रूप से दुर्लभ
साधन पूंजी को नहीं अपितु प्रचुर साधन श्रम को लाभ पहुंचेगा। इस प्रकार लैंकास्टर ने
निष्कर्ष रूप में कहा है "प्रशुल्क से श्रम की वास्तविक मजदूरी तभी और केवल तभी
बढ़ेगी जब देश श्रम गहन वस्तु को आयात करेगा।"
6. सार्वभौम
तौर से मान्य नहीं (Not Universally Valid)- भगवती प्रशुल्क के आय वितरण
प्रभाव को "सार्वभौमिक मान्य सामान्यीकरण" (Universally valid
generalisation) नहीं मानता है। उसने साधनों के वास्तविक मजदूरी पर संरक्षण के प्रभाव
को स्टोप्लर सैम्युअल्सन सिद्धांत के तीन विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है। पहले,
को उसने प्रतिबंधात्मक स्टोप्लर सैम्युअल्सन सिद्धांत (Restrictive
Stopler-Samuclson Theroem) नाम दिया है। यह सिद्धांत केवल निषेधात्मक
(Prohibitive) प्रशुल्क तक सीमित है और अनिषेधात्मक प्रशुल्क को नहीं लेता। यह सिद्धांत
कहता. है कि निषेधात्मक संरक्षण अवश्य ही दुर्लभ साधन की वास्तविक मजदूरी बढ़ाता है।
दूसरे, रूप को उसने सामान्य स्टोप्लर-सैम्युअल्सन सिद्धांत (General Stopler
Samuelson Theorem) कहा है। इस सिद्धांत में निषेधात्मक तथा अनिषेधात्मक दोनों ही प्रकार
के प्रशुल्क शामिल हैं। यह सिद्धांत कहता है कि संरक्षण चाहे निषेधात्मक हो चाहे अनिषेधात्मक,
यह आवश्यक तौर से दुर्लभ साधन की मजदूरी बढ़ाता है। तीसरे, रूप को उसने स्टोप्लर-सैम्युअल्सन-मैट्जलर-लैंकास्टर
सिद्धांत (Stopler- Samuelson-Metzler-Lancaster Theorem) कहा है। यह सिद्धांत कहता
है कि सरंक्षण, चाहे निषेधात्मक हो चाहे अनिषेधात्मक, उस साधन की वास्तविक मजदूरी बढ़ाता
है जिसमें आयातित वस्तु सापेक्ष रूप से अधिक गहन होती है। भगवती इन तीनों रूप से सहमत
नहीं है। उसने सिद्धांत का अपनी ओर से यह व्यवस्थित रूप प्रस्तुत किया है : "संरक्षण
(निषेधात्मक हो या अनिषेधात्मक), किसी वस्तु के उत्पादन में गहन रूप से लगे साधन की
वास्तविक मजदूरी बढ़ाएगा, घटाएगा या उसे अपरिवर्तित रहने देगा जो यथाक्रम इस बात पर
निर्भर करेगा कि संरक्षण से उस वस्तु की आंतरिक (देश में) सापेक्ष कीमत बढ़ती, गिरती
या अपरिवर्तित रहती है।"
निष्कर्ष
(Conclusion)
कहा जा सकता है कि स्टोप्लर-सैम्युअलसन सिद्धांत आय के पुनर्वितरण पर प्रशुल्क के प्रभावों के संबंध में लाभदायक प्रकाश डालता है। अब केवल यह मान लेना संभव नहीं रह गया है कि मुक्त व्यापार से समाज के सभी वर्गों को लाभ होता है। इसके विपरीत, यह माना जाता है कि प्रशुल्क से उत्पादन के साधनों में से एक की कीमत पर दूसरे को लाभ होता है। इतिहास में ऐसे आर्थिक ग्रुपों के अनेक उदाहरण मिलते हैं जिन्होंने अपना स्वार्थ पूरा करने के प्रयत्न में प्रशुल्कों की मांग की है। इस प्रकार स्टोप्लर-सैम्युअल्सन सिद्धांत का निष्कर्ष यह है कि प्रशुल्क लगाने से राष्ट्रीय आय गिरती है, परंतु देश के दुर्लभ साधनों को लाभ पहुंचता है। परंतु जिन देशों में श्रम साधन दुर्लभ हैं, उनके मजदूर संघ अपनी मजदूरी बढ़वाने के लिए इसे संरक्षण के पक्ष में मजबूत तर्क के रूप में प्रस्तुत नहीं कर सकते, क्योंकि यह सिद्धांत दो-वस्तु, दो-साधन तथा संसाधनों के पूर्ण रोजगार की कठोर मान्यताओं पर आधारित है। ऐसे देशों में मौद्रिक तथा राजकोषीय उपायों द्वारा श्रम की वास्तविक मजदूरी बेहतर ढंग से बढ़ाई जा सकती है।