चयन
की समस्या की ओर सर्वप्रथम ध्यान आकर्षित करने वाले अर्थशास्त्री प्रो. रॉबिन्स थे
जिन्होंने अपनी पुस्तक 'An Essay on the Nature & Significance of Economic
Science' में यह विचार व्यक्त किया कि "अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो
लक्ष्यों और वैकल्पिक प्रयोगों वाले सीमित साधनों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध के
रूप में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है। रॉबिन्स के विचार में मानवीय आवश्यकताएँ अनन्त
होती हैं जबकि आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने वाले साधन सीमित होते हैं। परिणामतः
मनुष्य अपनी सभी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट नहीं कर पाता। आवश्यकताओं के अनन्त और
साधन सीमित होने के कारण व्यक्ति को आवश्यकताओं में से तीव्रता (Intensity) के
आधार पर चयनित करना पड़ता है। यही व्यक्ति के समक्ष चयन (अथवा चुनाव) की समस्या है
जिसे 'आर्थिक समस्या' कहा जाता है।'
प्रो.
एरिक रोल के अनुसार, “आर्थिक समस्या मूलतः चयन की आवश्यकता में से उत्पन्न होने वाली
समस्या है। यह वह नयन है जिसमें बैकल्पिक उपयोगों वाले सीमित संसाधनों का प्रयोग
किया जाता है। यह संसाधनों के मितव्ययी उपयोग की समस्या है।''1
प्रो.
लेफ्टविच अनुसार, “आर्थिक समस्या का सम्बन्ध वैकल्पिक मानवीय आवश्यकताओं में सीमित
साधनों का प्रयोग करने और इन साधनों का इस दृष्टि से उपयोग करने से है कि
आवश्यकताओं की अधिकतम सम्भव सन्तुष्टि हो सके।''2
सरल
शब्दों में, विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सीमित साधनों के प्रयोग से
सम्बन्धित चयन की समस्या ही आर्थिक समस्या कहलाती है।
चुनाव की समस्या क्यों उत्पन्न होती है ? (Why does Problem of Choice Arises ?)
आर्थिक
समस्या मूलत: निम्न कारणों से उत्पन्न होती है :
(1) असीमित आवश्यकताएँ (Unlimited wants)- मनुष्य
की अवश्यकत एँ अनन्त और असीमित होती हैं। एक आवश्यकता के पूर्ण
हो जाने पर नयी आवश्यकताएँ उत्पन्न होती रहती है। अतः मनुष्य की सभी आवश्यकताओं को
सन्तुष्ट नहीं किया जा सकता है।
(2) आवश्यकताओं की तीव्रता में अन्तर (Difference in Wants)- आवश्यकताएँ
तीव्रता की दृष्टि से भी भिन होती हैं अर्थात् प्रत्येक मनुष्य
के लिए कुछ आवश्यकताएँ अधिक महत्वपूर्ण हैं और कुछ के लिए कम। अत: महत्व के आधार
पर प्रत्येक व्यक्ति अपनी विभिन्न आवश्यकताओं को प्राथमिकता के क्रम में रख सकता
है।
(3) आवश्यकताओं की पूर्ति के सीमित साधन (Scarce Means) हैं- साधन
की स्वल्पता से तात्पर्य है जितनी मत्रा में इन साधनों की माँग
है, उनकी तुलना में यह कम उपलब्ध हैं। जो वस्तु मनुष्य की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट
करने की क्षमता रखती है, वह ‘साधन' कहलाती है। साधन दो प्रकार के हो सकते हैं—(अ)
प्राकृतिक एवं (ब) मनुष्य के द्वारा निर्मित।
दोनों
ही प्रकार के साधन असीमित मानवीय आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के दृष्टिकोण से
सीमित होते हैं।
W>
R; यहाँ W आवश्यकताओं और R साधनों का सूचक
यदि
सभी वस्तुएँ व सेवाएँ जल तथा वायु के समान प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होतीं तो
प्रत्येक व्यक्ति अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता था।
(4) साधनों का वैकल्पिक प्रयोग (Alternative Uses of Resources)—साधन
न केवल सीमित होते हैं बल्कि इनके वैकल्पिक उपयोग भी होते हैं।
उदाहरण के लिए, बिजली का उपयोग बिजली के पंखे, कूलर, फ्रिज, रोशनी आदि में कया जा
सकता है। अत: यहाँ भी हमारे सामने यह सनस्या उत्पन्न हो जाती है कि हम किस साधन के
किस काम के लिए प्रयोग करें।
(5) चयन या चुनाव की समस्या (Problem of Choice) उपर्युक्त
तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि कोई भी व्यक्ति, परिवार या
देश अपने सीमित साधन से अपनी सभी आवश्यकताओं के पूरा नहीं कर सकता। अत: उनके सामने
यह समस्या बनी रहती है कि वह अपने कौन-से साधन को कितनी मात्रा में लौन-सी आवश्यकता
की पूर्ति में लगाये ? अन्य शब्दों में, "उसके सामने चयन की समस्या उत्पन्न
हो जाती है और चयन की समस्या ही आर्थिक समस्या कहलाती है।'
उपर्युक्त विवेवन से यह स्पष्ट है कि चयन की समस्या है आर्थिक समस्या है। यदि नानवीय आवश्यकतओं की तरह साधन भी असीमित होते तो चयन की समस्या उत्पन्न नहीं होती और न ही कोई आर्थिक समस्या। दूसरे शब्दों में, साधनों की दुर्लभता ही सभी आर्थिक समस्याओं को जननी है। संक्षेप में, असीमित आवश्यकताएँ एवं सीमित साधन दो आधारभूत स्तम्भ हैं जिन पर सभी आर्थिक समस्याओं क ढाँचा खड़ा है। "अर्थशास्त्र का उदय तभी होता है जब चयन की समस्या या दुर्लभता की समस्या उत्पन्न होती है।'' इस प्रकार अर्थशास्त्र आर्थिक समस्याओं का अध्ययन है। प्रमुख आर्थिक समस्या को नीचे चार्ट द्वारा दर्शाया गया है :
दुर्लभता
या सीमितता ही सब आर्थिक समस्याओं का मुख्य कारण–उपर्युक्त विवेचन से हमें निम्नलिखित
मुख्य बातो का पता चलता है :
(i)
मानवीय आवश्यकताएँ असीमित, आवर्ती एवं विभिन्न प्राथमिकताओं वाली होती हैं।
(ii)
साधनों की पूर्ति सीमित होती है और इन्हें विभिन्न वैकल्पिक उपयोगों में लगाय जाता
है।
अतः
इसे असीमित आवश्यकताओं और सीमित साधनों के बीच सामंजस्य वैठाने की समस्या का
सामना
करना पड़ता है। इसी में से चयन की समस्या का जन्म होता है और फिर वही आर्थिक
समस्या का रूप ले लेती है।
उपर्युक्त
ववेचन से स्पष्ट है कि आवश्यकताओं की तुलना में साधनों का सीमित होना ही समस्त
आर्थिक समस्याओं का प्रमुख कारण है। अत: यह कहा जाता है कि सीमितता (दुर्लभत) ही
सब आर्थिक समस्याओं की जननी है (Scarcity is the mother of all economic problems.)।
आर्थिक समस्या के बिना कोई अर्थव्यवस्था नहीं है (No Economy is without Economic Problem)
अब
एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि क्या कोई ऐसी अर्थव्यवस्था या देश हो सकता है
जिसमें आर्थिक समस्या न पाई जाती हो ?
आर्थिक
समस्या का न पाया जाना दो स्थितियों में सम्भव हो सकता है। प्रथम, जब हमारी
आवश्यकताएँ सीमित हों; द्वितीय, जब हमारे साधन असीमित हों किन्तु व्यावहारिक जगत्
में ये दोनों स्थितियाँ देखने को नहीं मिलती है।
प्रोफेसर
जे. के गैलबैथ ने अपनी पुस्तक 'The Affluent Society' में बतलाया है कि अमरीका जैसे
सम्पन्न राष्ट्रों के समक्ष सोमितता की समस्याओं के स्थान पर सम्पन्नता अथवा
विपुलता की समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। इस सम्बन्ध में यह कहना उचित होगा कि वहाँ
निर्धनता का प्रभाव काफी कम हो गया है लेकिन चुनाव की समस्या तो वहाँ भी बनी हुई
है। कारण यह है कि वहाँ के नागरिकों को यह भी तय करना होता है कि किन वस्तुओं का
उत्पादन किया जाय, किन विधियों का उपयोग किया जाय और माल का वितरण किस तरह किया
जाय आदि। इसलिए निर्धनता पर विजय पा लेने से भी साधनों की सीमितता (Scarcity of
Resources) व तत्सम्बन्धी चुनाव की समस्या समाप्त नहीं हो जाती।
निष्कर्ष के रूप में चूँकि सीमितता हर स्थिति एवं हर देश में पाई जाती है, अत: आर्थिक समस्या भी सब देशों में और सभी परिस्थितियों में पाई जाती है अर्थात् विश्व में ऐसा कोई देश नहीं हो सकता जिसमें कोई आर्थिक समस्या न पाई जाती हो।