प्रश्न 1. एक अपवर्जी श्रेणी में
(अ) दोनों वर्ग-सीमाओं पर विचार किया जाता है।
(ब) निचली सीमा को निकाल दिया जाता है।
(स) ऊपरी सीमा को निकाल दिया जाता है।
(द) दोनों सीमाओं को निकाल दिया जाता है।
प्रश्न 2. व्यक्तिगत श्रेणी में प्रत्येक पद-मूल्य की आवृत्ति होती है
(अ) बराबर
(ब) असमान
(स) दोनों स्थितियाँ सम्भव
(द) कोई सत्य नहीं
प्रश्न 3. वर्गीकरण का प्रमुख उद्देश्य है
(अ) समंकों के विशाल समूह को संक्षिप्त रूप प्रदान करना
(ब) समंकों को लोचशील बनाना
(स) समंकों को स्थिरता प्रदान करना
(द) समंकों को परस्पर अपवर्जी बनाना
प्रश्न 4. निम्नांकित श्रेणी है
प्राप्तांक |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
छात्रों की संख्या |
20 |
4 |
2 |
3 |
1 |
(अ) व्यक्तिगत
(ब) खंडित
(स) सतत् समावेशी
(द) सतत अपवर्जी
प्रश्न 5. यदि किसी वर्ग की निचली सीमा (L1) 10 तथा ऊपरी सीमा (L2) 20 हो, तो मध्य बिन्दु होगा
(अ) 15
(ब) 10
(स) 15
(द) 30
प्रश्न 6. निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य अंकात्मक नहीं है।
(अ) ऊँचाई
(ब) भार
(स) बेरोजगारी
(द) आयु
प्रश्न 7. एक वर्ग मध्य बिन्दु बराबर है
(अ) उच्च वर्ग सीमा तथा निम्न वर्ग सीमा के औसत के
(ब) उच्च वर्ग सीमा तथा निम्न वर्ग सीमा के गुणनफल के
(स) उच्च वर्ग सीमा तथा निम्न वर्ग सीमा के अनुपात के
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 8. वर्गीकृत आँकड़ों में सांख्यिकीय परिकलन आधारित होता है
(अ) प्रेक्षणों के वास्तविक मानों पर
(ब) उच्च वर्ग की सीमाओं पर
(स) निम्न वर्ग की सीमाओं पर
(द) वर्ग के मध्य बिन्दुओं पर
प्रश्न 9. किसी विद्यालय में लिंग (स्त्री तथा पुरुष) के आधार पर छात्रों को विभिन्न संकायों में विभक्त करने के लिए निम्नलिखित में से कौन-सी सारणी का प्रयोग करना चाहिए?
(अ) सरल सारणी
(ब) द्विगुण सारणी
(स) त्रिगुण सारणी
(द) बहुगुण सारणी
प्रश्न 10. वर्ग सीमाओं के मध्य मूल्य को कहते हैं
(अ) वर्गान्तर
(ब) वर्ग विस्तार
(स) मध्य बिन्दु
(द) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 11. किसी भी वर्ग आने वाले चरों की संख्या को कहते हैं
(अ) वर्ग सीमा
(ब) वर्ग आवृत्ति
(स) वर्गान्तर
(द) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 12. वह श्रेणी जिसमें प्रत्येक मूल्य स्वतन्त्र होता है तथा पृथक् लिखा जाता है, कहलाती है
(अ) व्यक्तिगत श्रेणी
(ब) खण्डित श्रेणी
(स) सतत् श्रेणी
(द) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 13. 10-14, 15-19, 20-24, 25-29 वर्गान्तरे उदाहरण है
(अ) अपवर्जी श्रेणी का।
(ब) समावेशी श्रेणी को
(स) दोनों (अ) एवं (ब)
(द) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 14. 10-15, 15-20, 20-25, 25-30 वर्गान्तर उदाहरण है
(अ) समावेशी श्रेणी का
(ब) अपवर्जी श्रेणी का
(स) दोनों (अ) एवं (ब)
(द) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 15. 10-20, 20-30, 30-40, 40-50 में वर्ग-विस्तार (i) है
(अ) 10
(ब) 5
(स) 15
(द) इनमें से कोई नहीं
प्रश्न 1. गुणात्मक वर्गीकरण के दो प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर: a. साधारण वर्गीकरणं या द्वन्द्व-भाजन वर्गीकरण, b. बहुगुण वर्गीकरण।
प्रश्न 2. चरों के आधार पर वर्गीकरण किसे कहते है?
उत्तर: चर वे मूल्य होते हैं, जिनका मान बदलता रहता है तथा इसके आधार पर वर्गीकरण चरों के आधार पर वर्गीकरण कहलाता है।
प्रश्न 3. चर से क्या आशय है?
उत्तर: संख्यात्मक रूप में व्यक्त किये जा सकने वाले वे तथ्य जिनके मूल्य में परिवर्तन होता रहता है, चर कहलाते है।
प्रश्न 4. श्रेणियाँ कितने प्रकार की होती है? उनके नाम लिखिए।
उत्तर: सांख्यिकी श्रेणियों को उनकी रचना के आधार पर निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा गया है।
a. व्यक्तिगत श्रेणी, b. खण्डित श्रेणी, c. सतत् या अखण्डित श्रेणी।
प्रश्न 5. वर्ग सीमाएँ किसे कहते हैं?
उत्तर: प्रत्येक वर्ग की दो सीमाएँ होती हैं। वर्ग की निम्न सीमा तथा ऊपरी सीमा वर्ग सीमा कहलाती है। जैसे-वर्ग 10-20 में 10 निम्न सीमा तथा 20 ऊपरी सीमा है।
प्रश्न 6. मध्य-बिन्दु की गणना कैसे की जाती है?
प्रश्न 7. संचयी आवृत्ति ज्ञात करते समय से कम तथा ‘से अधिक में कौन-कौन सी सीमाओं को प्रयोग में लाते हैं?
उत्तर : संचयी आवृत्ति ज्ञात करते समय ‘से कम’ में उच्च सीमा का प्रयोग किया जाता है तथा ‘से अधिक’ में निम्न सीमा का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 8. सांख्यिकी समंकों के प्रकार को लिखिए।
उत्तर: a. वर्णात्मक या गुणात्मक, b. संख्यात्मक या अंकात्मक।
प्रश्न 9. क्या गुणात्मक समंकों का प्रत्यक्ष रूप से मापन सम्भव है?
उत्तर: नहीं
प्रश्न 10. अंकात्मक समंक क्या है?
उत्तर: अंकात्मक समंक या तथ्य वे तथ्य हैं जिनका प्रत्यक्ष मापन सम्भव है।
प्रश्न 11. गुणात्मक वर्गीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर: जब तथ्यों को उनके वर्णन या गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, तो उसे गुणात्मक वर्गीकरण कहते हैं।
प्रश्न 12. गुणात्मक वर्गीकरण के दो प्रकारों के नाम बताओ।
उत्तर: a. साधारण वर्गीकरण, b. बहुगुण वर्गीकरण
प्रश्न 13. बहुगुण वर्गीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर: बहुगुण वर्गीकरण में तथ्यों को दो या दो से अधिक गुणों के आधार पर बाँटा जाता है।
प्रश्न 14. वर्ग आवृत्ति किसे कहते हैं?
उत्तर: किसी वर्ग विशेष की सीमाओं के अन्तर्गत पदों की संख्या, उस वर्ग की आवृत्ति या बारम्बारता कहलाती है।
प्रश्न 15. मध्य मूल्य किसे कहते हैं?
उत्तर: वर्ग की दोनों सीमाओं के मध्य स्थान को मध्य बिन्दु कहते हैं। दोनों सीमाओं को जोड़कर आधा भाग मध्य-बिन्दु कहते हैं।
प्रश्न 16. चर कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर: दो।
प्रश्न 17. चरों के प्रकार के नाम लिखो?
उत्तर: a. खंडित चर, b. सतत या अखंडित चर।
प्रश्न 18. सांख्यिकी श्रेणियों को उनकी रचना या बनावट के आधार पर कितने भागों में बाँटा है?
उत्तर: तीन।
प्रश्न 19. सांख्यिकी श्रेणियों की रचना के आधार पर प्रकारों के नाम लिखो।
उत्तर: a. व्यक्तिगत श्रेणी, b. खण्डित श्रेणी, c. सतत या अखण्डित श्रेणी।
प्रश्न 20. आँकड़ों को वर्गीकृत करने का क्या उद्देश्य है?
उत्तर: आँकड़ों का सांख्यिकीय विश्लेषण के योग्य बनाया जा सके। इस उद्देश्य से इनको वर्गीकृत किया जाता है।
प्रश्न 21. सांख्यिकी के अनुसार वर्गीकरण की कितनी रीतियाँ हैं?
उत्तर: दो।
प्रश्न 22. सामान्यतः खण्डित चरों के लिए किस-विधि का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर: सामान्यतः खण्डित चरों के लिए समावेशी विधि का ही प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 23. सतत् चरों के लिए किस विधि का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर: अपवर्जी विधि का।
प्रश्न 17. 2, 5, 9, 10, 12,
14, 18, 20 किस प्रकार की श्रेणी है?
उत्तर: व्यक्तिगत श्रेणी।
प्रश्न 24. समावेशी श्रेणी किसे कहते हैं?
उत्तर: वे वर्ग जिनमें उसकी निचली सीमा तथा ऊपरी सीमाओं के बराबर चर मूल्यों के मानों को उसी वर्ग में सम्मिलित करते हैं, समावेशी वर्ग कहलाते हैं।
प्रश्न 25. वर्गीकरण क्या होता है?
उत्तर: वर्गीकरण वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत संकलित समंकों को उनकी विभिन्न विशेषताओं के आधार पर अलग-अलग समूहों, वर्गों या उप-वर्गों में क्रमबद्ध किया जाता है।
प्रश्न 26. वर्गान्तर किसे कहते हैं?
उत्तर: वर्ग की ऊपरी तथा निचली सीमा के अन्तर को वर्गान्तर कहते हैं।
प्रश्न 27. सांख्यिकी श्रेणी क्या होती है?
उत्तर: सांख्यिकी श्रेणी उन आँकड़ों या आँकड़ों के गुणों को कहते हैं जोकि तर्कपूर्ण क्रम के अनुसार व्यवस्थित किये जाते हैं।
प्रश्न 28. आवृत्ति से क्या आशय है?
उत्तर: किसी सांख्यिकी समूह में एक मूल्य कितनी बार आता है, उसे उस मूल्य की आवृत्ति कहते हैं।
प्रश्न 29. अपरिष्कृत आँकड़ों को वर्गीकृत करने का क्या उद्देश्य है?
उत्तर: अपरिष्कृत आँकड़ों को वर्गीकृत करने का उद्देश्य उन्हें सुव्यवस्थित करना है ताकि इन्हें सांख्यिकी विश्लेषण के योग्य बनाया जा सके।
प्रश्न 30. वर्गीकरण के दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर: a. सरल एवं संक्षिप्त बनाना, b. समनिती तथा असमानता को स्पष्ट करना।
प्रश्न 31. आदर्श वर्गीकरण के कोई चार आवश्यक तत्व बताइए।
उत्तर: a. स्पष्टता, b. स्थिरता, c. व्यापकता, d. उपयुक्तता।
प्रश्न 32. साक्षरता, वैवाहिक स्थिति, रोजगार आदि कैसे समंक हैं?
उत्तर: साक्षरता, वैवाहिक स्थिति, रोजगार आदि गुणात्मक समंक हैं।
प्रश्न 33. आयु, ऊँचाई, भार, आय आदि किस प्रकार के समंक हैं?
उत्तर: आयु, ऊँचाई, भार, आय आदि अंकात्मक समंक है।
प्रश्न 34. उन्हें भाजन वर्गीकरण का एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर: उपलब्ध सर्मकों को ग्रामीण तथा शहरी या पुरुष तथा महिला के आधार पर वर्गीकरण करना।
प्रश्न 35. 50-60 में ऊपरी सीमा तथा निचली सीमा बताइए।
उत्तर: 50-60 में 50 निचली सीमा तथा 60 ऊपरी सीमा है।
प्रश्न 36. वर्ग अन्तराल क्या है?
उत्तर: किसी भी वर्ग की ऊपरी सीमा तथा निचली सीमा के अन्तर को वर्ग विस्तार कहते हैं। उसे “i” से व्यक्त करते हैं।
प्रश्न 37. वर्ग अन्तराल का सूत्र लिखिए।
उत्तर: वर्ग अन्तराल (i) = ऊपरी सीमा (L2) – निचली सीमा (L1)
प्रश्न 38. खण्डित चर से क्या आशय है?
उत्तर: खण्डित चर वे चर हैं जिनके मूल्य निश्चित तथा खण्डित होते हैं। इसमें विस्तार नहीं होता तथा इनकी इकाइयाँ विभाज्य नहीं होती हैं।
प्रश्न 39. खण्डित चर के कोई दो उदाहरण दीजिये।
उत्तर:
a. परीक्षा में छात्रों के प्राप्तांक 0, 1, 2, 3…
b. फुटबाल में किये गये गोलों की संख्या।
प्रश्न 40. सतत चर से क्या आशय है?
उत्तर: सतत् चर वह चर है जिसका मान निश्चित नहीं होता। दी गई सीमाओं के अन्तर्गत उसका मान कोई भी हो सकता है।
प्रश्न 41. व्यक्तिगत श्रेणी से क्या आशय है?
उत्तर: इस प्रकार की श्रेणी के प्रत्येक पद को व्यक्तिगत तथा स्वतन्त्र रूप से महत्त्व दिया जाता है। प्रत्येक पद को व्यक्तिगत रूप से मापा जाता है।
प्रश्न 42. खण्डित श्रेणी से क्या आशय है?
उत्तर: जिस श्रेणी में प्रत्येक इकाई का यथार्थ मापन किया जा सकता है, उसे खण्डित श्रेणी कहते हैं।
प्रश्न 43. निरन्तर या सतत् या अखण्डित श्रेणी से क्या आशय है?
उत्तर: सतत् चरों से अखण्डित श्रेणी की रचना की जाती है। सतत् चरों का कोई निश्चित मूल्य नहीं होत, बल्कि एक निश्चित सीमा या वर्ग के अन्तर्गत कुछ भी मूल्य हो सकता है।
प्रश्न 44. खण्डित श्रेणी तथा असतत् श्रेणी में दो अन्तर लिखिए।
उत्तर:
a. खण्डित श्रेणी में इकाइयों का मूल्य दिया होता है, जबकि सतत् श्रेणी में वर्गान्तर दिये होते हैं।
b. खण्डित श्रेणी में विछिन्नता होती है पद मूल्य में एक निश्चित अन्तर हो सकता है, जबकि असतत् श्रेणी में निरन्तरता या अविच्छिन्नता पायी जाती है।
प्रश्न 45. अपवर्जी श्रेणी किसे कहते हैं?
उत्तर: इस विधि में एक वर्ग की ऊपरी सीमा तथा उससे अगले वर्ग की निचली सीमा एकसमान होती है। इस विधि को अपवर्जी इसलिए कहते हैं कि एक वर्ग की ऊपरी सीमा के बराबर चर मूल्यों का मान उसी वर्ग में सम्मिलित नहीं कर उससे अगले वर्ग में शामिल किये जाते हैं।
प्रश्न 46. किसी संस्थान में आय का वर्ग ₹ (400-500) प्रतिमाह तो ३ 500 मजदूरी पाने वाले मजदूर को अपवर्जी श्रेणी में किस वर्ग में सम्मिलित करते हैं?
उत्तर: ₹ 500 पाने वाले मजदूर को ₹ (400-500) के वर्ग में शामिल नहीं करेंगे। इसे (500-600) वर्ग में सम्मिलित करेंगे।
प्रश्न 47. सतत् श्रेणी कितने प्रकार की होती है?
उत्तर: सतत् श्रेणी 5 प्रकार की होती है-
a. अपवर्जी श्रेणी,
b. समावेशी श्रेणी,
c. खुले सिरे वाली श्रेणी,
d. संचयी आवृत्ति श्रेणी,
e. मध्य-मूल्य. वाली श्रेणी।
लघुउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. समंकों के वर्गीकरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: वर्गीकरण का आशय-वर्गीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें संकलित समंकों को उनकी विभिन्न विशेषताओं के आधार पर अलग-अलग समूहों, वर्गों या उपवर्गों में क्रमबद्ध किया जाता है। होरेस सेक्राइस्ट के अनुसार वर्गीकरण समंकों को उनकी सामान्य विशेषताओं के आधार पर क्रम या समूहों में क्रमबद्ध व विभिन्न परन्तु सम्बद्ध भागों में अलग-अलग करने की रीति है।
प्रश्न 2. वर्गीकरण के मुख्य उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर: वर्गीकरण के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं :
1. वर्गीकरण का मुख्य उद्देश्य सांख्यिकी सामग्री को सरल व संक्षिप्त करना है।
2. वर्गीकरण की सहायता से तथ्यों की समानता-असमानता को स्पष्ट किया जाता है।
3. वर्गीकरण का उद्देश्य तथ्यों को तुलनीय बनाना है।
4. वर्गीकरण का उद्देश्य समंकों को तर्कपूर्ण आधार पर व्यवस्थित करना है।
5. वर्गीकरण का एक उद्देश्य समंकों को वैज्ञानिक आधार प्रदान करना है।
6. वर्गीकरण का उद्देश्य समंकों की उपयोगिता में वृद्धि करना है।
7. वर्गीकरण का उद्देश्य सारणीयन का आधार तैयार करना भी है।
प्रश्न 3. एक आदर्श वर्गीकरण के कोई चार आवश्यक तत्व बताइए।
उत्तर: एक आदर्श वर्गीकरण में निम्नलिखित तत्व होने चाहिए
a. स्पष्टता : संकलित आँकड़ों को किस वर्ग या समूह में रखना है, इस सम्बन्ध में कोई अनिश्चितता या अस्पष्टता नहीं होनी चाहिए।
b. स्थिरता : आँकड़ों को तुलना योग्य बनाने तथा परिणामों की अर्थपूर्ण तुलना करने के लिए आवश्यक है, स्थिरता हो।
c. व्यापकता : विभिन्न वर्गों की रचना इस प्रकार व्यापक रूप से करनी चाहिए कि संग्रहित समंकों की कोई मद छूट न जाए।
d. उपयुक्तता : वर्गों की रचना उद्देश्यानुसार होनी चाहिए। जैसे-व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति या बचत प्रवृत्ति जानने के लिए आय के आधार पर वर्गों की रचना करना उपयुक्त रहेगा
प्रश्न 4. आवृत्ति बंटन क्या है?
उत्तर: एक आवृत्ति बंटन से तात्पर्य किसी मापनीय चर के आधार पर समंकों के वर्गीकरण से है। आवृत्ति बंटन एक तालिका है जिससे समंकों को मुल्य या वर्गों के रूप में समूहित किया जाता है तथा प्रत्येक मूल्य या वर्ग में आने वाली इकाइयों की संख्या को अंकित कर लिया जाता है जो उन मूल्यों या वर्गों की आवृत्तियाँ कहलाती है। इस प्रकार मूल्यों या वर्गों और उनकी आवृत्तियों के क्रमबद्ध विन्यास को ही आवृत्ति बंटन कहते हैं।
प्रश्न 5. अपवर्जी तथा समावेशी श्रेणी में अन्तर बताइए।
उत्तर: अपवर्जी विधि : इस विधि में एक वर्ग की ऊपरी सीमा तथा उससे अगले वर्ग की निचली सीमा एक समान होती है। इस विधि में एक वर्ग की ऊपरी सीमा के बराबर चर मूल्यों के माने, उसी वर्ग में सम्मिलित नहीं कर उससे अगले वर्ग में शामिल किये जाते हैं।
समावेशी श्रेणी : इस श्रेणी में वे वर्ग जिनकी निचली तथा ऊपरी दोनों सीमाओं के बराबर चर मूल्यों के मानों को उसी वर्ग में सम्मिलित करते हैं। इस विधि में किसी वर्ग अन्तराल में उच्च वर्ग सीमा को नहीं छोड़ी जाती है। समावेशी श्रेणी की पहचान यह है कि एक वर्ग की ऊपरी सीमा तथा उससे अगले वर्ग की निचली सीमा बराबर नहीं होती है।
प्रश्न 6. क्या आप इस बात से सहमत हैं कि अपरिष्कृत समंकों की
अपेक्षा वर्गीकृत समंक बेहतर होते हैं?
उत्तर: अपरिष्कृत आँकड़े अत्यधिक अव्यवस्थित होते हैं
जिसके कारण उनका विश्लेषण करना तथा निष्कर्ष निकालना लगभग असम्भव होता है।
सांख्यिकीय विधियों का इन पर सरलता से प्रयोग भी नहीं किया जा सकता है। इसके
विपरीत वर्गीकृत आँकड़े, सुव्यवस्थित, समझने योग्य तथा विश्लेषण योग्य बन जाते
हैं। उनसे आसानी से निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। इसलिए वर्गीकरण आँकड़ों को
अपरिष्कृत आँकड़ों से बेहतर माना जाता है।
प्रश्न 7. एक उदाहरण देकर स्पष्ट करें कि किस प्रकार सामान्य आवृत्ति बंटन को संचयी आवृत्ति बंटन में बदला जाता है।
उत्तर: सामान्य आवृत्ति बंटन
वर्गान्तर |
आवृत्ति |
0-10 |
4 |
10-20 |
16 |
20-30 |
20 |
30-40 |
8 |
40-50 |
2 |
योग |
N = 50 |
संचयी आवृत्ति बंटन
वर्गान्तर |
आवृत्ति |
संचयी आवृत्ति |
0-10 |
4 |
4 |
10-20 |
16 |
20
(16+4) |
20-30 |
20 |
40
(20+20) |
30-40 |
8 |
48
(40+8) |
40-50 |
2 |
50
(48+2) |
योग |
N = 50 |
प्रश्न 8. वस्तुओं को वर्गीकृत करने से क्या कोई लाभ हो सकता है? अपने दैनिक जीवन में एक उदाहरण देकर व्याख्या करो।
उत्तर: वस्तुओं को वर्गीकृत करने से बहुत सुविधा हो जाती है। इससे वस्तुओं को ढूंढ़ निकालना आसान होता है। यदि एक विद्यार्थी अपनी पुस्तक को अपनी आवश्यकतानुसार वर्गीकृत कर लेता है तो उसे आवश्यकता पड़ने पर सम्बन्धित पुस्तक को निकालने में कठिनाई नहीं होगी। विद्यार्थी अपनी पुस्तकों को विषय के आधार पर या लेखक के आधार पर या प्रकाशन वर्ष के आधार पर या वर्णमाला क्रम में वर्गीकृत कर सकता है। यदि बिना वर्गीकृत किये विद्यार्थी पुस्तकों का ढेर लगा देता है तो एक पुस्तक को ढूंढ़ने के लिए सारी पुस्तकों को उलटना-पलटना पड़ेगा।
प्रश्न 9. चर क्या है? एक संतत तथा विविक्त चर के बीच भेद कीजिये।
उत्तर: चर का आशय-संख्यात्मक रूप से व्यक्त किये जा सकने वाले वे तथ्य जिनके मूल्य में परिवर्तन होता रहता है, चर कहलाती हैं। यदि किसी कक्षा के विद्यार्थियों की लम्बाई को मापा जाता है, तो विद्यार्थी की लम्बाई चर कहलायेगी।
सतत चर तथा विविक्त चर के बीच भेद-इन दोनों में अन्तर यह है कि संतत् चर का कोई मान हो सकता है। यह निरन्तर धीरे-धीरे बढ़ते हैं तथा यह भिन्नात्मक होते हैं। जैसे-2.4, 3.5 या 0-5, 5-10 आदि वर्गान्तर के रूप में प्रकट किये जाते हैं जबकि विविक्त चर हमेशा पूर्णांक में होते हैं। जैसे-1, 2, 3, 5, 10, 12 आदि।
प्रश्न 10. वर्गीकरण के मुख्य लाभ कौन से हैं?
उत्तर: वर्गीकरण के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं :
a. वर्गीकरण के द्वारा समंक सरल व संक्षिप्त हो जाते हैं।
b. वर्गीकरण समंकों की एकरूपता को प्रकट करके उनकी उपयोगिता बढ़ा देता है।
c. वर्गीकरण से समंक तुलना करने योग्य हो जाते हैं।
d. वर्गीकरण से समंक आकर्षक एवं प्रभावशाली बन जाते हैं।
e. वर्गीकरण से समंकों के विशिष्ट अन्तर स्पष्ट हो जाते हैं।
f. वर्गीकरण समंकों को वैज्ञानिक आधार प्रदान करता हैं।
प्रश्न 11. आदर्श वर्गीकरण के किन्हीं तीन आवश्यक तत्वों को समझाइए।
उत्तर: a. स्पष्टता : संकलित आँकड़ों को किस वर्ग या समूह में रखना है इस सम्बन्ध में कोई अनिश्चितता या अस्पष्टता नहीं होनी चाहिए। वर्गों का निर्माण इस प्रकार किया जाए कि उनमें सरलता, स्पष्टता या असंदिग्धता के लक्षण दिखाई दे। प्रत्येक मद केवल एक ही वर्ग में सम्मिलित होनी चाहिए।
b. स्थिरता : आँकड़ों को तुलना योग्य बनाने तथा परिणामों की अर्थपूर्ण तुलना करने के लिए आवश्यक है कि वर्गीकरण में स्थिरता हो।
c. व्यापकता : विभिन्न वर्गों की रचना इस प्रकार व्यापक रूप से करनी चाहिए कि संग्रहित समंकों का कोई पद छूट न जाये तथा किसी न किसी वर्ग में आवश्यक रूप से सम्मिलित हो सके। आवश्यक हो तो एक विविध वर्ग बनाया जा सकता है।
प्रश्न 12. सांख्यिकी समंक के कितने प्रकार होते हैं?
उत्तर: सांख्यिकी समंक के दो प्रकार होते हैं :
a. गुणात्मक समंक : गुणात्मक समंकों का प्रत्यक्ष रूप से मापन नहीं किया जा सकता। केवल समंकों की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति के आधार पर उनका मापन किया जाता है। उदाहरण-साक्षरता, वैवाहिक स्थिति, रोजगार आदि गुणात्मक है।
b. संख्यात्मक या अंकात्मक समंक : अंकात्मक समंक या तथ्य वे तथ्य हैं जिनका प्रत्यक्ष मापन सम्भव नहीं है। जैसे-आय, आयु, ऊँचाई, भार आदि।
प्रश्न 13. गुणात्मक वर्गीकरण किसे कहते हैं? इसके वर्गीकरण को समझाइए।
उत्तर: गुणात्मक वर्गीकरण-ज़ब तथ्यों को उनके वर्णन या गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, तो उसे गुणात्मक वर्गीकरण कहते हैं। गुणात्मक वर्गीकरण दो प्रकार का होता है :
a. साधारण वर्गीकरण या द्वन्द्व भाजन वर्गीकरण : जब तथ्यों को किसी एक गुण की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया जाता है ऐसे वर्गीकरण को द्वन्द्व भाजन वर्गीकरण कहते हैं। जैसे-उपलब्ध समंकों को ग्रामीण तथा शहरी या पुरुष तथा महिला के आधार पर वर्गीकरण करना।
b. बहुगुण वर्गीकरण : जब वर्गीकरण में तथ्यों को दो. या दो से अधिक गुणों के आधार पर बाँटा जाता है। जैसे-जनगणना से प्राप्त समंकों को पहले पुरुष तथा महिला वर्ग में बाँटना तथा फिर दोनों को साक्षर तथा निरक्षर में बाँटना फिर प्रत्येक को रोजगारित तथा बेरोजगारित के रूप में वर्गीकरण करना।
प्रश्न 14. संग्रहीत आँकड़ों को वर्गीकृत करने के उद्देश्य बताइए।
उत्तर: अपरिष्कृत आँकड़ों को वर्गीकृत करने का उद्देश्य उन्हें क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित करने से है जिसमें उसे आसानी से आगे के सांख्यिकीय विश्लेषण के योग्य बनाया जा सके।
पदार्थों तथा वस्तुओं का वर्गीकरण बहुमूल्य श्रम और समय को बचाता है, इसे मनमाने तरीके से नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार वर्गीकरण से आशय एक समान वस्तुओं के समूह या वर्गों में व्यवस्थित करने से है।
प्रश्न 15. व्यक्तिगत श्रेणी में क्या अभिप्राय है? व्यक्तिगत श्रेणी का एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर: व्यक्तिगत श्रेणी का आशय-यह ऐसी श्रेणी होती है जिसमें प्रत्येक मूल्य को स्वतन्त्र रूप से दिखाया जाता है। इन्हें वर्गों में विभाजित नहीं किया जाता है और न ही इन्हें आवृत्तिबद्ध किया जाता है। जो मूल्य जितनी बार आता है, उतनी बार ही पृथक् रूप से अंकित किया जाता है। इन मूल्यों को आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित कर लिया जाता है।
सामान्यतः ऐसी श्रेणी में क्रम संख्या, अनुक्रमांक, वर्ष, स्थानों के नाम या व्यक्तियों के नाम आदि दिये होते हैं। इसकी विशेष पहचान यह है कि इसमें पद मूल्य दिये होते हैं, उनकी आवृत्ति नहीं होती।
जैसे :10 छात्रों के प्राप्तांक-17, 32, 35, 33, 15, 26, 41, 32, 11, 18:
प्रश्न 16. सतत श्रेणी से क्या अभिप्राय है। एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर: सतत् श्रेणी से अभिप्राय : सतत श्रेणी में पदों को कुछ निश्चित वर्गों में रखा जाता है। वर्गों में रखे जाने पर पद मूल्य अपनी व्यक्तिगत पहचान खो देते हैं। व्यक्तिगत पद मूल्य किसी-न-किसी वर्ग समूह में समा जाते हैं। इस प्रकारे बनाये गये वर्गों में निरन्तरता रहती है, क्योंकि जहाँ एक वर्ग समाप्त होता है वहीं से दूसरा वर्ग शुरू होता है। इस वर्ग निरन्तरता के कारण ही इस प्रकार की श्रेणी को सतत श्रेणी कहते हैं।
सतत श्रेणी का प्रयोग तब ज्यादा होता है, जबकि पद मूल्य बहुत ज्यादा होते हैं तथा उनका विस्तार भी ज्यादा होता है।
सतत श्रेणी का उदाहरण
आयु वर्ग |
आवृत्ति |
10-20 |
15 |
20-30 |
10 |
30-40 |
13 |
40-50 |
12 |
50-60 |
18 |
60-70 |
4 |
70-80 |
8 |
प्रश्न 17. समावेशी श्रेणी को अपवजी श्रेणी में कैसे बदला जाता
है? समझाइए।
उत्तर: सामान्यतः खण्डित चरों (श्रमिकों की संख्या,
प्राप्तांक आदि) के लिए समावेशी विधि का ही प्रयोग किया जाता है। लेकिन सतत चरों
(आय, आयु, भार आदि) के लिए अपवर्जी विधि का प्रयोग किया जाता है। ऐसी स्थिति में
सुगमता एवं सरलता की दृष्टि से हमें समावेशी श्रेणी को अपवर्जी श्रेणी में बदलना
चाहिए।
इसके लिए किसी एक वर्ग की ऊपरी सीमा तथा उससे अगले
वर्ग की निम्न सीमा के अन्तर को आधा करके उसे वर्ग की निचली सीमाओं (l1) में से
घटा दिया जाता है तथा ऊपरी सीमाओं (l2) में जोड़ दिया जाता है।
प्रश्न 18. खण्डित श्रेणी अथवा विविक्त श्रेणी से क्या अभिप्राय है? एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर: खण्डित श्रेणी से आशय-जब एक ही मूल्य की कई बार पुनरावृत्ति होती है तो व्यक्तिगत श्रेणी उस मूल्य को बार-बार लिखा जाता है। खण्डित श्रेणी में किसी भी मूल्य को बार-बार नहीं लिखी जाता है। प्रत्येक मूल्य केवल एक बार लिखा जाता है। यदि कोई मूल्य या कुछ मूल्य बार-बार आये हैं, तो जितनी बार उनकी पुनरावृत्ति होती है, वह उस मूल्य की आवृत्ति कहलाती है और खण्डित श्रेणी में उस मूल्य के सामने उसकी आवृत्ति लिख दी जाती है। खण्डित श्रेणी में प्रत्येक मूल्य के सामने उसकी आवृत्ति का उल्लेख होता है।
खण्डित श्रेणी का उदाहरण
छात्रों के प्राप्तांक |
आवृत्ति अथवा छात्रों की संख्या |
0 |
2 |
1 |
4 |
2 |
7 |
3 |
4 |
4 |
3 |
प्रश्न 19. संचयी आवृत्ति श्रेणी से क्या अभिप्राय है? एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर: संचयी आवृत्ति से अभिप्राय-संचयी आवृत्ति श्रेणी से आशय ऐसी श्रेणी से है जिसमें विभिन्न वर्गों की आवृत्तियाँ वर्गानुसार अलग-अलग नहीं दी जाती है बल्कि आवृत्तियाँ संचयी रूप में लिखी जाती हैं। ऐसी श्रेणी में प्रत्येक वर्ग की दोनों सीमाएँ नहीं दी होती हैं केवल ऊपरी या निचली सीमा दी हुई होती है। ऊपर सीमा के आधार पर संचयी आवृत्ति दी होने पर प्रत्येक पद मूल्य के पहले से कम’ शब्द लिखा होता है तथा निचली सीमा के अनुसार संचयी आवृत्तियाँ लिखते समय प्रत्येक पद मूल्य से अधिक शब्द लिखा होता है। संचयी आवृत्ति श्रेणी के प्रश्न को हल करते समय पहले उसे संचयी से साधारण आवृत्ति में बदला जाता है। संचयी आवृत्ति का उदाहरण
प्राप्तांक |
संचयी आवृत्ति |
10 से कम |
2 |
20 से कम |
12 |
30 से कम |
26 |
40 से कम |
34 |
50 से कम |
40 |
प्रश्न 20. अपवर्जी श्रेणी से क्या आशय है? ऐसी श्रेणी का एक उदाहरण दीजिये।
उत्तर: अपवर्जी श्रेणी से आशय-अपवर्जी श्रेणी सतत श्रेणी का एक प्रकार है। इसमें पहले वर्ग को उच्च सीमा अगले वर्ग की निम्न सीमा होती हैं। पहले वर्ग की उच्च सीमा के मूल्य को उस वर्ग में शामिल न करके अगले वर्ग में शामिल किया जाता है। इसलिए इसे अपवर्जी श्रेणी कहते हैं।
उदाहरण के लिए, यदि आय वर्ग ₹ 100-200 तथा ₹ 200-300 है तो है ₹ 200 आय वाला व्यक्ति या पद 100-200 वर्ग में शामिल न होकर 200-300 वर्ग में शामिल होगा।
अपवर्जी श्रेणी का उदाहरण
प्राप्तांक |
आवृत्ति |
0-10 |
2 |
10-20 |
12 |
20-30 |
26 |
30-40 |
34 |
40-50 |
40 |
योग = 35 |
प्रश्न 21. खण्डित श्रेणी तथा सतत श्रेणी में अन्तर लिखिये।
उत्तर: खण्डित तथा सतत श्रेणी में निम्नलिखित अन्तर है :
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. समंकों के वर्गीकरण में प्रयुक्त अपवर्जी तथा समावेशी विधियों की व्याख्या कीजिये।
उत्तर: वर्गान्तरों के अनुसार वर्गीकरण की दो विधियाँ हैं :
(i) अपवर्जी विधि (Exclusive Method) : इस विधि में वर्ग की ऊपरी सीमा तथा उससे अगले वर्ग की निचली सीमा एक समान होती है। इस विधि को अपवर्जी इसलिए कहते हैं कि एक वर्ग की ऊपरी सीमा के बराबर चरे मूल्यों के मान, उसी वर्ग में सम्मिलित नहीं कर उससे अगले वर्ग में शामिल किये जाते हैं अर्थात् एक वर्ग की ऊपरी सीमा के बराबर चर मूल्यों के मानों का उसी वर्ग में प्रवेश निषेध या अपवर्जित है
उदाहरण : अपवर्जी वर्गान्तरों को निम्नांकित तालिका द्वारा आसानी से समझा जा सकता है :
तालिका
अंक |
|
0-10 |
0 परन्तु 10 से कम |
10-20 |
10 परन्तु 20 से कम |
20-30 |
20
परन्तु 30 से कम |
30-40 |
30
परन्तु 40 से कम |
40-50 |
40
परन्तु 50 से कम |
(ii) समावेशी श्रेणी (Inclusive Method) : वे वर्ग जिनमें उनकी निचली तथा ऊपरी दोनों सीमाओं के बराबर चर मूल्यों के मानों को उसी वर्ग में सम्मिलित करते हैं, समावेशी वर्ग कहलाते हैं। इस विधि में किसी वर्ग अन्तराल में उच्च वर्ग सीमा को नहीं छोड़ा जाता है। समावेशी वर्गीकरण की यह पहचान है कि एक वर्ग की ऊपरी सीमा तथा उससे अगले वर्ग की निचली सीमा बराबर नहीं होती है तथा दोनों क्रमागत वर्गों में अधिकतम अन्तर 1 का होता है।
उदाहरण : समावेशी वर्गान्तरों को निम्नांकित तालिकाओं द्वारा समझा जाता है :
I तालिका |
II तालिका |
बच्चों का भार (kg) |
X |
40-45 |
20-29.5 |
46-50 |
30-39.5 |
51-55 |
40-49.5 |
56-60 |
50-59.5 |
61-65 |
60-69.5 |
प्रश्न 2. एक आदर्श वर्गीकरण में आवश्यक तत्वों को समझाइए। वर्गीकरण के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर: एक आदर्श वर्गीकरण में निम्नलिखित तत्व का होना आवश्यक है :
a. स्पष्टता : संकलित आँकड़ों को किस वर्ग या समूह में रखना है इस सम्बन्ध में कोई अनिश्चितता या अस्पष्टता नहीं होनी चाहिए। वर्गों का निर्माण इस प्रकार किया जाये कि उनमें सरलता, स्पष्टता या असंदिग्धता के लक्षण दिखाई दे। प्रत्येक मद केवल एक ही वर्ग में सम्मिलित होनी चाहिए।
b. स्थिरता : आँकड़ों की तुलना योग्य बनाने तथा परिणामों की अर्थपूर्ण तुलना करने के लिए आवश्यक है कि वर्गीकरण में स्थिरता हो।
c. व्यापकता : विभिन्न वर्गों की रचना इस प्रकार व्यापक रूप से करनी चाहिए कि संग्रहित समंकों की कोई मद छूट न जाये तथा किसी-न-किसी वर्ग में आवश्यक रूप से सम्मिलित हो सके। आवश्यक हो तो एक विविध वर्ग बनाया जा सकता। है; जैसे-वैवाहिक स्थिति के आधार पर वर्ग बनाते समय विवाहित तथा अविवाहित वाले वर्गों में विधुर, विधवा, तलाकशुदा आदि वर्गीकरण व्यापक होगा।
d. उपयुक्तता : वर्गों की रचना उद्देश्यानुसार होनी चाहिए। जैसे-व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति या बचत प्रवृत्ति जानने के लिए आय के आधार पर वर्गों की रचना करना उपयुक्त रहेगा।
e. लोचशीलता : वर्गीकरण लोचदार होना चाहिए जिससे नवीन परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न वर्गों में परिवर्तन, संशोधन, समायोजन किया जा सके।
f. सजातीयता : प्रत्येग वर्ग की इकाइयों में सजातीयता होनी चाहिए। एक वर्ग या समूह के अन्तर्गत समस्त इकाइयाँ उस गुण के अनुसार होनी चाहिए, जिसके आधार पर वर्गीकरण किया गया है।
वर्गीकरण के उद्देश्य :
सरल एवं संक्षिप्त बनाना : वर्गीकरण का मुख्य उद्देश्य एकत्रित समंकों की जटिलता को दूर कर उन्हें संक्षिप्त रूप देना ताकि वर्गीकरण समंकों को आसानी से समझा जा सके।
a. समानता तथा असमानता को स्पष्ट करना : वर्गीकृत समंकों को समान गुण वाले तथा सजातीय समूहों में अलग-अलग रखने से उनके मध्य समानता व असमानता को आसानी से समझा जा सकता है।
b. तुलना में सहायक : वर्गीकरण से समंकों का तुलनात्मक अध्ययन सरल हो जाता है। यदि शहरों या गाँवों की जनसंख्या को साक्षरे व निरक्षर विवाहित व अविवाहित या रोजगारित व बेरोजगारित वर्गों में विभाजित करें तो दोनों शहरों/गाँवों की गुण के आधार पर तुलना आसानी से की जा सकती है।
c. तर्कपूर्ण व्यवस्था करना : वर्गीकरण एक तर्कसंगत क्रिया है। इसके अन्तर्गत समंक नियमित एवं सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत किये जाते हैं। जैसे-जनगणन समंकों को आयु, लिंग, जाति धर्म, राज्य, आदि वर्गों में बाँटना एक तर्कपूर्ण क्रिया है।
d. सारणीयन का आधार प्रस्तुत करना : अव्यवस्थित एवं परिष्कृत समंकों को बिना वर्गीकरण किये सारणीयन असम्भव है, फिर इसके बिना सांख्यिकी विश्लेषण अव्यवहारिक है। अत: वर्गीकरण की क्रिया, सारणीयन के लिए आधार प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 3. एक काल्पनिक उदाहरण देकर व्यक्तिगत समंकों से खंडित तथा सतत श्रेणियों की रचना कीजिए।
उत्तर: किसी परीक्षा में सम्मिलित होने वाले 50 विद्यार्थी के प्राप्तांक नीचे दिये हुए हैं
व्यक्तिगत समंकों से सतत श्रेणी में बदलाव :
किसी कक्षा के 30 छात्रों के मासिक जाँच में निम्न अंक
8, 2, 9, 3, 5, 8, 6, 1, 0, 5, 5, 4, 2, 9, 8, 8, 4, 5, 3, 7, 7, 2, 3, 5, 9, 3, 4, 6, 1, 7
खण्डित श्रेणी निम्नांकित प्रकार बनायी जाएगी
प्राप्तांक X |
छात्रों की संख्या (ƒ) |
0 |
1 |
1 |
2 |
2 |
3 |
3 |
4 |
4 |
3 |
5 |
5 |
6 |
2 |
7 |
3 |
8 |
4 |
9 |
3 |
10 |
0 |
योग |
N = 30 |
प्रश्न 4. वर्गीकरण की परिभाषा दीजिये तथा उसके उद्देश्य बताइए।
उत्तर: वर्गीकरण की परिभाषा-वर्गीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें संकलित समंकों को उनकी विभिन्न विशेषताओं के आधार पर अलग-अलग समूहों, वर्गों या उपवर्गों में क्रमबद्ध किया जाता है। सैक्राइस्ट के अनुसार, “वर्गीकरण समंकों को उनकी सामान्य विशेषताओं के आधार पर क्रम अथवा समूहों में क्रमबद्ध व विभिन्न, परन्तु सम्बद्ध भागों में अलग-अलग करने की रीति है।”
स्पर एवं स्मिथ के अनुसार, “समंकों को समान गुणों के आधार पर व्यवस्थित करके वर्गों या विभागों में प्रस्तुत करने की क्रिया को वर्गीकरण कहते हैं।”
इस प्रकार वर्गीकरण एक ऐसी क्रिया है जिसके अन्तर्गत आँकड़ों को किसी गुण या विशेषता के आधार पर अलग-अलग सजातीय वर्गों, उपवर्गों में बाँट दिया जाता है।
वर्गीकरण के उद्देश्य : वर्गीकरण के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं :
i. सांख्यिकीय सामग्री को सरल वे संक्षिप्त करना : वर्गीकरण का मुख्य उद्देश्य सांख्यिकीय सामग्री को सरल एवं संक्षिप्त बनाना है, जिससे उसे सुविधापूर्वक समझा जा सके। उदाहरण के लिए, एक कारखाने में 1000 श्रमिकों के वेतन के आँकड़े इकट्ठे किये गये। उनसे उसी रूप में कोई भी निष्कर्ष निकालना सम्भव नहीं है, लेकिन उन्हें अग्र प्रकार वर्गीकृत कर दिया जाये और सारणीबद्ध कर दिया जाये, तो उन्हें सरलता से समझा जा सकता है
वेतन (₹ में) |
श्रमिकों की संख्या |
250 से कम |
40 |
250-350 |
300 |
350-450 |
320 |
450-550 |
180 |
550-650 |
100 |
650
से अधिक |
60 |
योग = 1000 |
ii. समानता तथा असमानता को स्पष्ट करना : वर्गीकरण की सहायता से तथ्यों की समानता एवं असमानता स्पष्ट हो जाती है, क्योंकि इसमें समान गुण वाले समंक एक साथ रखे जाते हैं; जैसे-साक्षर व निरक्षर व्यक्ति, विवाहित-अविवाहित व्यक्ति, उत्तीर्ण व अनुत्तीर्ण छात्र आदि।
iii. तथ्यों को तुलनीय बनाना : वर्गीकरण का एक उद्देश्य तथ्यों को तुलनीय बनाना है। उदाहरण के लिए, यदि दो विद्यालयों के इण्टर (वाणिज्य) के छात्र-छात्राओं के परीक्षा परिणामों की तुलना करनी हो, तो वर्गीकरण की सहायता से इस प्रकार की जा सकती है :
इण्टर (वाणिज्य) परीक्षा परिणाम
iv. तर्कपूर्ण व्यवस्थित करना : वर्गीकरण के माध्यम से बिखरे समंकों को व्यवस्थित रूप में रखा जाता है। देश की जनसंख्या को बिना किसी आधार के लिखने के बजाय, यदि राज्य, लिंग, धर्म, जाति, आयु, शिक्षा, रोजगार के आधार पर विभिन्न वर्गों में बाँटकर लिखा जाये, तो यह ज्यादा तर्कसंगत होगा।
v. वैज्ञानिक आधार प्रदान करना : इसका उद्देश्य समंकों को वैज्ञानिक आधार प्रदान करना है। इसके फलस्वरूप समंकों की विश्वसनीयता बढ़ जाती है।
vi. उपयोगिता : वर्गीकरण का उद्देश्य आँकड़ों को समरूपता प्रदान करके उनकी उपयोगिता में वृद्धि करना है।
vii. सारणीयन का आधार प्रदान करना : वर्गीकरण से सारणीयन का आधार तैयार होता है। सारणीयन सांख्यिकीय विश्लेषण का आधार है तथा वर्गीकरण सारणीयन का आधार है।
प्रश्न 5. वर्गीकरण की कौन-कौन सी विधियाँ हैं? वर्गीकरण में प्रयुक्त महत्त्वपूर्ण अवधारणाओं को भी स्पष्ट कीजिये।
उत्तर : वर्गीकरण की विधियाँ-वर्गीकरण की विधियों को निम्नलिखित दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जा सकता :
(अ) गुणात्मक वर्गीकरण
(ब) संख्यात्मक वर्गीकरण।
(अ) गुणात्मक वर्गीकरण : गुणात्मक वर्गीकरण में समंकों को उनके गुणों अथवा विशेषताओं के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है; जैसे-स्त्री-पुरुष, शिक्षित-अशिक्षित, विवाहित-अविवाहित आदि। गुणात्मक वर्गीकरण दो प्रकार का हो सकता है
a. सरल वर्गीकरण : इसे द्वन्द्व भाजन वर्गीकरण भी कहते हैं। इस वर्गीकरण में तथ्यों को किसी एक गुण की उपस्थिति तथा अनुपस्थिति के आधार पर बाँटते हैं; जैसे-पुरुष-स्त्री आदि।
b. बहु-गुण वर्गीकरण : इसमें तथ्यों को एक से अधिक गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। ऐसे वर्गीकरण को निम्न चार्ट द्वारा दर्शाया जा सकता है :
जनसंख्या
(ब) संख्यात्मकं वर्गीकरण : प्रत्यक्ष माप वाले तथ्यों के वर्गीकरण को संख्यात्मक वर्गीकरण कहते हैं। इस वर्गीकरण की मुख्य रीतियाँ निम्नलिखित हैं :
a. समयानुसार वर्गीकरण : जब समंकों को समय; जैसे-घण्टे, दिन, सप्ताह आदि के आधार पर व्यवस्थित किया जाता है, तो इसे समयानुसार वर्गीकरण कहते हैं। उदाहरण के लिए, 5 वर्ष का देश में जूट का उत्पादन निम्नलिखित प्रकार दिखाया जाएगा
वर्ष |
1 |
2 |
3 |
4 |
5 |
जूट का उत्पादन (गाँठों में) |
20 |
4 |
2 |
3 |
1 |
b. भौगोलिक वर्गीकरण : इसे क्षेत्रीय या स्थानानुसार वर्गीकरण कहते हैं। इसमें समंकों को स्थान या क्षेत्र के अनुसार दिखाया जाता है; जैसे
स्थान |
भारत |
जापान |
फ्रांस |
अमेरिका |
प्रति व्यक्ति आय (डॉलर में) |
120 |
1500 |
2000 |
4000 |
c. चर-मूल्य वर्गीकरण : संख्याओं में स्पष्ट रूप से मापे जाने वाले तथ्य चल-मूल्य कहलाते हैं। इनके आधार पर किया गया वर्गीकरण चर-मूल वर्गीकरण कहलाता है। चर मूल्य दो प्रकार के होते हैं-खण्डित मूल्य तथा अखण्डित मूल्य। इसे अग्रलिखित उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है :
वर्गीकरण में प्रयोग किये जाने वाले शब्द-समूह या पारिभाषिक शब्द :
a. वर्ग-सीमाएँ : प्रत्येक वर्ग की दो सीमाएँ होती हैं : (अ) निम्न सीमा तथा (ब) उच्च सीमा। निम्न सीमा को L1 तथा उच्च सीमा को L2 द्वारा प्रकट किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि वर्ग 0-20 हो, तो 0 निम्न सीमा (L1) तथा 20 उच्च सीमा (L2) होगी। यदि श्रेणी समावेशी से; जैसे-10-19; 20-29 तो पहले वास्तविक सीमाएँ निर्धारित करनी होती हैं जो 9.5-19.5;
19.5-29.5 होंगी। अब पहले वर्ग में L1 9.5 तथा L2 19.5 होगी।
b. वर्ग-विस्तार : प्रत्येक वर्ग के अन्तर को वर्ग-विस्तार या वर्गान्तर या वर्ग अन्तराल कहते हैं। वर्ग-विस्तार को उच्च सीमा (L2) में से निम्न सीमा (L1) को घटाकर ज्ञात किया जाता है। उदाहरण के लिए, 9.5-19.5 वर्ग में वर्ग-विस्तार 19.5-9.5 = 10 होगा। वर्ग-विस्तार वास्तविक सीमाओं के आधार पर ही निकाला जाता हैं।
c. मध्य बिन्दु : किसी वर्ग की सीमाओं के मध्य स्थान को मध्य बिन्दु कहते हैं। मध्य बिन्दु निकालने के लिए निम्न सीमा (L1) तथा उच्च सीमा (L2) को जोड़कर 2 से भाग दे देते हैं। सूत्र रूप में
Mid-Point or. Mid-value या मध्य बिन्दु = L1+L22
वर्ग 0-10 का मध्य बिन्दु = 0+102 = 5 होगा।
d. वर्ग आवृत्ति : वर्ग बनाने के बाद यह जानना आवश्यक होता है कि समूह में से कितने पद किस वर्ग में आते हैं; जैसे-0-5 वर्ग में यदि 5 पद आते हैं, तो ये पद उस वर्ग की आवृत्ति कहीं जाती हैं। आवृत्ति के लिए f’ चिह्न का प्रयोग करते हैं।
प्रश्न 6. एक अच्छे वर्गीकरण की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर : एक अच्छे वर्गीकरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
a. स्पष्टता : वर्गीकरण करते समय विभिन्न वर्ग इस प्रकार निर्धारित किये जाने चाहिए कि उनमें सरलता व स्पष्टता हो।
b. आधार : वर्गीकरण का आधार एक ही होना चाहिए। प्रत्येक जाँच के साथ आधार परिवर्तित नहीं करना चाहिए।
c. व्यापकता : किसी भी समस्या से सम्बन्धित आंकड़ों का वर्गीकरण इतना व्यापक होना चाहिए कि उस समस्या से सम्बन्धित इकट्ठे किये गए सभी आँकड़े किसी-न-किसी वर्ग में अवश्य आ जायें। कोई भी इकाई वर्गीकरण से बाहर नहीं रहनी चाहिए।
d. सजातीयता : प्रत्येक वर्ग की सभी इकाइयाँ समान गुण वाली होनी चाहिए।
e. अनुकूलता : अनुसन्धान के उद्देश्य के अनुकूल हीं वर्गों का निर्माण किया जाना चाहिए, जैसे-कक्षा के छात्रों का बौद्धिक स्तर जानने के लिए उनका आय के आधार पर वर्गीकरण करना गलत होगा। उनका वर्गीकरण केवल आधार पर किया जाना चाहिए।
f. लोचपूर्ण : वर्गीकरण लोचपूर्ण होना चाहिए, जिससे आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन किया जा सके। बेलोचदार वर्गीकरण को अच्छा वर्गीकरण नहीं कहा जाएगा।
प्रश्न 7. आवृत्ति वितरण के आधार पर सांख्यिकीय श्रेणियाँ कितने प्रकार की होती हैं? विभिन्न प्रकार की सांख्यिकीय श्रेणियों को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर: सांख्यिकीय श्रेणियाँ-आवृत्ति वितरण के आधार पर सांख्यिकीय श्रेणियाँ निम्न तीन प्रकार की होती हैं 1. व्यक्तिगत श्रेणी,
2. खण्डित या विच्छिन्न श्रेणी,
3. सतत या अविच्छिन्न श्रेणी।
1. व्यक्तिगत श्रेणी : व्यक्तिगत श्रेणी में प्रत्येक पद को स्वतन्त्र रूप से दिखाया जाता है। इन्हें वर्गों में विभाजित नहीं किया जाता है। प्रत्येक पद को व्यक्तिगत रूप से अलग-अलग दिखाया जाता है। केवल उनको आरोही अथवा अवरोही क्रम में व्यवस्थित कर लेते हैं।
व्यक्तिगत श्रेणी को निम्नांकित उदाहरण में दिखाया गया है :

सांख्यिकीय गणनाओं के लिए उपरोक्त श्रेणी को आरोही अथवा अवरोही क्रम में व्यवस्थित कर लिया जायेगा। सामान्यतः ऐसी श्रेणी में क्रम संख्या, अनुक्रमांक, वर्ष, स्थानों के नाम आदि दिये होते हैं। इनकी विशेष पहचान यह है कि इसमें पद मूल्य दिये होते हैं, उनकी आवृत्ति नहीं दी होती है।
2.खण्डित या विच्छिन्न श्रेणी : जब एक ही मूल्य की कई बार पुनरावृत्ति होती है, तो व्यक्तिग श्रेणी में उस मूल्य को बार-बार लिखना होता है। खण्डित श्रेणी में किसी भी मूल्य को बार-बार नहीं लिखा जाता बल्कि मूल्य की जितनी बार पुनरावृत्ति होती है वह उसकी आवृत्ति कहलाती है तथा मूल्य के सामने उस आवृत्ति को लिख दिया जाता है। खण्डित श्रेणी का एक उदाहरण नीचे दिया गया है :
छात्रों के प्राप्तांक |
छात्रों की संख्या या आवृत्ति |
0 |
4 |
1 |
2 |
2 |
6 |
3 |
7 |
4 |
6 |
5 |
5 |
योग = 30 |
उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि ‘0’ अंक लाने वाले 4 छात्र हैं तथा ‘1’ अंक लाने वाले 2 छात्र हैं। इसी प्रकार ‘2’ अंक लाने वाले 6, 3 अंक लाने वाले 7, 4 अंक लाने वाले 6 तथा ‘5’ अंक लाने वाले 5 छात्र हैं।
3. सतत या अविच्छिन्न श्रेणी : सतत श्रेणी में पदों को कुछ निश्चित वर्गों में रखा जाता है। वर्गों में रखे जाने पर पद-मूल्य अपने यथार्थ मूल्य अथवा व्यक्तिगत मूल्य को खो देते हैं। व्यक्तिगत पद मूल्य किसी-न-किसी वर्ग समूह में समा जाते हैं। इस प्रकार बनाये गए वर्गों में निरन्तरता रहती है, क्योंकि जहाँ एक वर्ग समाप्त होता है, वहीं से दूसरा वर्ग प्रारम्भ हो जाता है। इस वर्ग निरन्तरता के कारण ही इस प्रकार की श्रेणी को सतत अथवा अविच्छिन्न श्रेणी कहते हैं।
सतत श्रेणी का प्रयोग उस समय ज्यादा होता है, जहाँ पदं मूल्य बहुत ज्यादा होते हैं तथा उनका विस्तार भी ज्यादा होता है। सतत श्रेणी का उदाहरण नीचे दिया गया है :
आयु वर्ग |
व्यक्तियों की संख्या या आवृत्ति |
10-20 |
15 |
20-30 |
10 |
30-40 |
13 |
40-50 |
12 |
50-60 |
18 |
60-70 |
4 |
70-80 |
8 |
उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि 10-20 वर्गान्तर की आवृत्ति 15 है। इसका आशय यह हुआ कि 15 जिनकी आयु 10-20 वर्ष के बीच है तथा 10 व्यक्ति ऐसे हैं जिनकी आयु 20-30 वर्ष के मध्य है। इसी प्रकार 30-40 आयु वाले 13 व्यक्ति, 40-50 आयु वर्ग के 12 व्यक्ति, 50-60 आयु वर्ग के 18 व्यक्ति, 60-70 आयु वर्ग के 4 व्यक्ति तथा 70-80 आयु वर्ग के 8 व्यक्ति हैं।
प्रश्न 8. सतत अथवा अविच्छिन्न श्रेणी के विभिन्न प्रकारों को उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिये।
उत्तर: सतत अथवा अविच्छिन्न श्रेणी के प्रकार-सतत अथवा अविच्छिन्न श्रेणी में आवृत्ति वितरण के पाँच प्रकार होते हैं :
1. अपवर्जी श्रेणी,
2. समावेशी श्रेणी,
3. खुले सिरे वाली श्रेणी,
4. संचयी आवृत्ति श्रेणी,
5. मध्य-मूल्य वाली श्रेणी
1. अपवर्जी श्रेणी : अपवर्जी श्रेणी में पहले वर्ग की उच्च सीमा अगले वर्ग की निम्न सीमा होती है। प्रत्येक वर्ग की। उच्च सीमा (L2) का मूल्य उस वर्ग में शामिल नहीं होता बल्कि वह अगले वर्ग में शामिल होती है। इसीलिए इसे अपवर्जी श्रेणी कहा जाता है। उदाहरण के लिए, यदि आय वर्ग ₹ 100-200 तथा ₹ 200-300 है, तो ₹ 200 आय वाला व्यक्ति 100-200 वर्ग में शामिल न होकर 200-300 वाले वर्ग में शामिल होगा। अपवर्जी श्रेणी का एक उदाहरण नीचे दिया गया है :
अपवर्जी श्रेणी
प्राप्तांक |
विद्यार्थियों की संख्या या आवृत्ति |
0-10 |
5 |
10-20 |
7 |
20-30 |
12 |
30-40 |
6 |
40-50 |
5 |
योग = 35 |
उपर्युक्त श्रेणी में 10 अंक पाने वाला छात्र यदि कोई होगा, तो वह 10-20 वर्गान्तर में शामिल होगा। इसी प्रकार 40 अंक पाने वाली छात्र 40-50 वर्गान्तर में शामिल होगा।
2. समावेशी श्रेणी : समावेशी श्रेणी में आशय ऐसी श्रेणी से है जिसमें प्रत्येक वर्ग मूल्य को उसी वर्ग में शामिल किया जाता है अर्थात् ऊपरी सीमा (L2) का मूल्य भी उसी वर्ग में शामिल किया जाता है। इस प्रकार की श्रेणी में पहले वर्ग की उच्च सीमा (L2) तथा अगले वर्ग की निम्न सीमा (L1) बराबर नहीं होते हैं। समावेशी श्रेणी का उदाहरण आगे दिया गया है।
समावेशी श्रेणी
प्राप्तांक |
विद्यार्थियों
की संख्या |
1-5 |
2 |
6-10 |
3 |
11-15 |
7 |
16-20 |
4 |
21-25 |
4 |
योग = 20 |
समावेशी श्रेणी का प्रयोग उस समय उचित रहता है, जबकि मूल्यों में आंशिक अन्तर न होकर एक का अन्तर होता है। उपर्युक्त उदाहरण में प्रत्येक वर्ग की उच्च सीमा अपने अगले वर्ग की निम्न सीमा से भिन्न है। इस श्रेणी में वर्ग की उच्च सीमा के मूल्य को उसी वर्ग में शामिल किया जाता है। इसीलिए इस श्रेणी को समावेशी श्रेणी कहते हैं।
3. खुले सिरे वाली अविच्छिन्न श्रेणी : कभी-कभी श्रेणी के प्रथम वर्ग की निचली सीमा तथा अन्तिम वर्ग की ऊपरी सीमा नहीं लिखी जाती है। ऐसी श्रेणी को खुले सिरे वाली श्रेणी कहते हैं। ऐसी श्रेणियों में प्रथम वर्ग की निचली सीमा के स्थान पर से कम तथा ऊपरी सीमा के स्थान पर से अधिक लिखा होती है। ऐसी स्थिति में प्रथम वर्ग तथा अन्तिम वर्ग का वर्ग विस्तार निकट के वर्गों के वर्ग विस्तार के आधार पर निकाल लिया जाता है। खुले सिरे वाली श्रेणी का उदाहरण नीचे दिया गया
प्राप्तांक |
विद्यार्थियों की संख्या |
5 से कम |
2 |
5-10 |
3 |
10-15 |
7 |
15-20 |
4 |
20 से अधिक |
4 |
योग = 20 |
उपर्युक्त उदाहरण में पूरी श्रेणी का वर्ग विस्तार 5 है। अत: पहले व आखिरी वर्ग का विस्तार भी 5 मानकर उन्हें 0-5 तथा 20-25 में बदल लिया जायेगा
4. संचयी आवृत्ति श्रेणी : संचयी आवृत्ति श्रेणी से आशय ऐसी श्रेणी से है जिनमें विभिन्न वर्गों की आवृत्तियाँ वर्गानुसार अलग-अलग नहीं दी जाती है, बल्कि आवृत्तियाँ संचयी रूप में लिखी होती हैं। ऐसी श्रेणी में प्रत्येक वर्ग की दोनों सीमाएँ नहीं लिखी होती है। केवल ऊपरी अथवा निचली एक ही सीमा लिखी होती है। ऊपरी सीमा के आधार पर संचयी आवृत्ति लिखते समय पद मूल्य के पहले से कम’, शब्द लिखा होता है तथा निचली सीमा के अनुसार संचयी आवृत्तियाँ लिखते समय पद मूल्य के बाद से अधिक शब्द लिखा होता है। संचयी आवृत्ति श्रेणी के प्रश्न को हल करते समय पहले उसे संचयी से साधारण आवृत्ति में बदला जाता है।
साधारण श्रेणी में संचयी श्रेणी का निर्माण तथा संचयी श्रेणी से साधारण श्रेणी का निर्माण निम्नांकित उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया गया है :
प्राप्तांक |
छात्रों की संख्या |
0-10 |
2 |
10-20 |
10 |
20-30 |
14 |
30-40 |
8 |
40-50 |
6 |
योग = 40 |
इसे संचयी श्रेणी के रूप में इस प्रकार लिखा जाएगा :
(अ) ‘से कम’ संचयी आवृत्ति
प्राप्तांक |
छात्रों की संख्या |
10 से कम |
2 |
20 से कम |
12(2+10) |
30 से कम |
26
(12+14) |
40 से कम |
34
(26+8) |
50 से कम |
40
(34+6) |
इसे निम्नांकित प्रकार भी लिखा जा सकता है :
प्राप्तांक |
छात्रों की संख्या |
50 से कम |
40 |
40 से कम |
34 |
30 से कम |
26 |
20 से कम |
12 |
10 से कम |
2 |
(ब) ‘से अधिक संचयी आवृत्ति :
प्राप्तांक |
छात्रों की संख्या |
0 से अधिक |
40 |
10 से अधिक |
38 |
20 से अधिक |
28 |
30 से अधिक |
14 |
40 से अधिक |
6 |
इसे निम्न प्रकार भी लिख सकते हैं :
प्राप्तांक |
छात्रों की संख्या |
40 से अधिक |
6 |
30 से अधिक |
14 |
20 से अधिक |
28 |
10 से अधिक |
38 |
0 से अधिक |
40 |
संचयी आवृत्ति श्रेणी को साधारण श्रेणी में बदलना-संचयी आवृत्ति श्रेणी को साधारण श्रेणी में बदला जा सकता है। इसके बदलने की प्रक्रिया को अग्रलिखित उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है :
आय (₹ में) |
परिवारों की संख्या |
0 से ज्यादा |
100 |
100 से ज्यादा |
80 |
200 से ज्यादा |
65 |
300 से ज्यादा |
25 |
400 से ज्यादा |
10 |
हल : उपर्युक्त सारणी में निचली सीमाएँ दी हुई हैं तथा इसमें 100-100 का अन्तर है। अत: पहले वर्ग की उच्च सीमा होगी 0 + 100 = 100 तथा दूसरे की उच्च सीमा होगी 100 + 100 = 200। इसी तरह सभी वर्गों की उच्च सीमाएँ ज्ञात कर ली जाएँगी जो कि निम्नांकित प्रकार होंगी :
आय |
परिवारों की संख्या |
0-100 |
20
(100-80) |
100-200 |
15
(80-65) |
200-300 |
40
(65-25) |
300-400 |
15
(25-10) |
400-500 |
10 |
योग = 100 |
मध्य-मूल्य श्रेणी : मध्य मूल्य श्रेणी में वर्गान्तरों के मध्य मूल्य तथा आवृत्तियाँ दी हुई होती हैं। उदाहरण :
मध्य बिन्दु |
आवृत्तियाँ |
50 |
20 |
150 |
15 |
250 |
40 |
350 |
15 |
450 |
10 |
ऐसी श्रेणियों को साधारण श्रेणी में बदलने के लिए मध्य मूल्यों के वर्ग ज्ञात करने होते हैं। इनकी प्रक्रिया निम्नलिखित प्रकार है
पहले मध्य बिन्दुओं के अन्तर का आधा ज्ञात किया जाता है उसे आधे मूल्य को मध्य बिन्दु में से घटाने पर निम्न सीमा तथा जोड़ने पर उच्च सीमा ज्ञात हो जाती है। सूत्र रूप में :
उपर्युक्त उदाहरण में मध्य बिन्दुओं का अन्तर 100 है। (150-50 का 250-150 आदि) इसका आधा 50 होगा। प्रत्येक मध्य मूल्य में से 50 घटाने पर वर्ग की , तथा 50 जोड़ने पर , प्राप्त हो जाएगी। परिवर्तित श्रेणी अग्र प्रकार होगी :