लॉरेंज वक्र अपकिरण ज्ञात करने की एक बिंदुरेखीय रीति है। इसे संचयी प्रतिशत वक्र (Cumulative Percentage Curve) भी कहते हैं। इसका प्रयोग सर्वप्रथम डॉ० मैक्स ओ. लॉरेंज ने आय और धन के वितरण का अध्ययन करने के लिए किया था।
गणन क्रिया व निर्माण विधि
1. मूल्यों या स्वतन्त्र चरों के
संचयी योग ज्ञात करते हैं। फिर अन्तिम संचयी योग को 100 मानकर प्रत्येक संचयी मूल्य
को प्रतिशत में बदल देते हैं।
2. आवृत्तियों के संचयी योग ज्ञात करते हैं। फिर अन्तिम
संचयी योग को 100 मानकर सभी आवृत्तियों को प्रतिशत में बदल देते हैं।
3. संचयी मूल्यों के प्रतिशत y-axis पर तथा संचयी आवृत्तियों
के प्रतिशत x-axis पर रखे जाते हैं।
4. y-axis का माप 0-100 तक तथा x-axis का माप 100-0 तक
लिखा जाता है।
5. x.axis के 0 तथा y-axis के 100 को एक सीधी रेखा द्वारा
मिला दिया जाता है। इसे समान वितरण की रेखा (Line of Equal Distribution) कहते हैं।
6. संचयी आवृत्तियों के प्रतिशत और संचयी मूल्यों के
प्रतिशत बिन्दुओं को मिला दिया जाता है। इस प्रकार जो वक्र तैयार होता है, उसे लॉरेंज
वक्र कहते हैं।
लॉरेंज वक्र समान वितरण की रेखा से जितना अधिक दूर होगा,
अपकिरण या वितरण में असमानता उतनी ही अधिक होगी। इसके विपरीत, यह वक्र समान वितरण की
रेखा से जितना अधिक निकट होगा, अपकिरण की मात्रा उतनी ही कम होगी।
गुण
1. यह आकर्षक व प्रभावशाली होता है।
2. यह समझने में सरल है।
3. इसकी सहायता से दो या दो से अधिक श्रेणियों की अपकिरण
की मात्रा की तुलना की जा सकती है।
4. इससे मस्तिष्क पर बोझिल अंकों का भार नहीं पड़ता।
दोष
1. इससे अपकिरण का अंकात्मक माप ज्ञात नहीं होता।
2. इसे बनाने की क्रिया कठिन है और इसे बनाने से पहले
श्रेणी में काफी संशोधन करना पड़ता है।
प्रश्न :- निम्न आंकड़ों से लॉरेंज वक्र प्राप्त कीजिए
आय (हजार रु.में) | व्यक्तियों की संख्या (हजार में) |
---|---|
10 | 16 |
20 | 14 |
30 | 10 |
40 | 6 |
50 | 4 |
उत्तर :-
आय(हजार रु. में) |
संचयी आय |
संचयी प्रतिशत |
व्यक्तियों की संख्या |
संचयी व्यक्तियों की संख्या |
संचयी प्रतिशत |
10 |
10 |
6.6 |
16 |
16 |
32 |
20 |
30 |
20 |
14 |
30 |
60 |
30 |
60 |
40 |
10 |
40 |
80 |
40 |
100 |
66.6 |
6 |
46 |
92 |
50 |
150 |
100 |
4 |
50 |
100 |
1. लॉरेंज वक्र का प्रयोग मुख्यत: आय एवं धन के वितरण को मापने के लिए किया जाता है। इसकी सहायता से यह पता चलता है कि देश में आय का वितरण समान है अथवा असमान है।
2. इसकी सहायता से देश में धनी एवं गरीब व्यक्तियों की सापेक्षिक संख्या का अनुमान लगाया जा सकता है।
3. इसकी सहायता से भूमि, मजदूरी एवं लाभ के वितरण को भी माप की जा सकती है।
4. यह सरकार द्वारा वितरण संबंधी नीति निर्धारण में सहायक होता है।