अर्थशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definition of Economics)

अर्थशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definition of Economics)

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बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1. धन प्रधान परिभाषा किसने दी है?
() मार्शल
() सेम्युलसन
() एडम स्मिथ
() रॉबिन्स,

प्रश्न 2. अर्थशास्त्र की आर्थिक कल्याण सम्बन्धी परिभाषा दी
() रॉबिन्स ने
() पीगू ने
() जे. के. मेहता ने
() उपरोक्त सभी

प्रश्न 3. “अर्थशास्त्र आर्थिक कल्याण का अध्ययन है।यह परिभाषा सम्बन्धित है
() धने प्रधान परिभाषा से
() आर्थिक विकास सम्बन्धी परिभाषा से
() कल्याण सम्बन्धी परिभाषा से
() दुर्लभता प्रधान परिभाषा से

प्रश्न 4. व्यक्ति की असीमित आवश्यकताओं का सीमित साधनों से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न किससे सम्बन्धित है?
() धन प्रधान परिभाषा से
() आर्थिक विकास सम्बन्धी परिभाषा से
() दुर्लभता प्रधान, परिभाषा से
() कल्याण सम्बन्धी परिभाषा से

प्रश्न 5. अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान किस अर्थशास्त्री ने माना है?
() मार्शल
() पीगू
() रॉबिन्स
() जे. एस. मिल

प्रश्न 6. अर्थशास्त्र को सामाजिक विज्ञान की रानी किसने कहा है?
() एडम स्मिथ
() मार्शल
() सेम्युलसन
() पीगू

प्रश्न 7. अर्थशास्त्र की दृष्टि से साधन हैं
() सीमित
() असीमित
() बराबर
() अधिक

प्रश्न 8. अर्थशास्त्र की दृष्टि से आवश्यकताएँ हैं
() सीमित
() असीमित
() बराबर
() अधिक

प्रश्न 9. “जहाँ छः अर्थशास्त्री होते हैं वहाँ सात मत होते हैं।किसने कहा है?
() मार्शल
() पीगू
() श्रीमती बारबरा बूटन
() सेम्युलसन

प्रश्न 10. “An enquiry into the nature and causes of wealth of nations” नामक पुस्तक किसने लिखा है?
(), मार्शल
() सेम्युलसन
() एडम स्मिथ
() पीगू

प्रश्न 11. “अर्थशास्त्र धन का विज्ञान हैकिसने कहा?
() एडम स्मिथ
() पीगू
() सेम्युलसन
() मार्शल

प्रश्न 12. एडम स्मिथ की पुस्तक “An enquiry into the nature and causes of wealth of nations” कब प्रकाशित हुई?
() 1776
() 1881
() 1907
() 1700

प्रश्न 13. धन के स्थान पर मनुष्य के आर्थिक कल्याण (Economic welfare) पर अधिक जोर किस अर्थशास्त्री ने दिया?
() स्मिथ
() पीगू
() मार्शल
() रॉबिन्स

प्रश्न 14. “An essay on the nature and significance of economic source” किसकी पुस्तक है?
() स्मिथ
(ब) रॉबिन्स
() पीगू
() मार्शल

प्रश्न 15. रॉबिन्स अर्थशास्त्र को कैसा विज्ञान मानते हैं?
() आदर्शात्मक विज्ञान
() वास्तविक विज्ञान
() भौतिक विज्ञान
() ये सभी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. अर्थशास्त्र के विषय में मार्शल के विचार बताइए।
उत्तर: मार्शल के अनुसार, “अर्थशास्त्र मानव जीवन के सामान्य व्यवसाय का अध्ययन है। इसमें व्यक्तिगत तथा सामाजिक क्रियाओं के उस भाग की जाँच की जाती है जो भौतिक सुख के साधनों की प्राप्ति एवं उपभोग से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है।

प्रश्न 2. अर्थशास्त्र सम्बन्धी स्मिथ की धन सम्बन्धी परिभाषा दीजिए।
उत्तर: एडम स्मिथ के अनुसारअर्थशास्त्र धन का विज्ञान है।

प्रश्न 3. अर्थशास्त्र की दुर्लभता सम्बन्धी परिभाषा दीजिए।
उत्तर: अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जिसमें साध्यों तथा सीमित और अनेक उपयोग वाले साधनों से सम्बन्धित मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 4. मार्शल ने अर्थशास्त्र को कैसा विज्ञान बताया है?
उत्तर: मार्शल ने अर्थशास्त्र को सामाजिक विज्ञान बताया।

प्रश्न 5. अर्थशास्त्र को चयन का विज्ञान किस अर्थशास्त्री ने परिभाषित किया?
उत्तर: अर्थशास्त्र को चयन का विज्ञान रॉबिन्स ने बताया है।

प्रश्न 6. रॉबिन्स के अनुसार अर्थशास्त्र कैसा विज्ञान है?
उत्तर: रॉबिन्स के अनुसार अर्थशास्त्र चयनात्मक विज्ञान है।

प्रश्न 7. जे.के.मेहता की आवश्यकता विहीनता की परिभाषा क्या है?
उत्तर: जे.के. मेहता के अनुसारअर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो मानवीय आचरण का इच्छा रहित अवस्था में पहुँचाने के लिए साधन के रूप में अध्ययन करता है।

प्रश्न 8. अर्थशास्त्र का ढाँचा किन दो आधारों पर टिका हुआ है?
उत्तर: 1. साधन, 2. आवश्यकताएँ।

प्रश्न 9. “जहाँ छः अर्थशास्त्री होते हैं वहाँ सात मत होते हैयह किसने लिखा है?
उत्तर: श्रीमती बारबरा वूटन ने।

प्रश्न 10. धन केन्द्रित परिभाषाएँ किन अर्थशास्त्रियों ने दी हैं?
उत्तर: प्रो एडम स्मिथ, जे. बी. से, वॉकर आदि अर्थशास्त्रियों ने

प्रश्न 11. एडम स्मिथ की पुस्तक का नाम लिखो।
उत्तर: “An enquiry into the nature and causes of wealth of nations.”

प्रश्न 12. एडम स्मिथ द्वारा दी गई अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए?
उत्तर: “अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है।

प्रश्न 13. “अर्थशास्त्र ज्ञान के उस भाग का नाम है जिसका सम्बन्ध धन से हैंयह परिभाषा किस अर्थशास्त्री ने दी?
उत्तर: यह परिभाषा अर्थशास्त्रीं वाकॅर द्वारा दी गई।

प्रश्न 14. संस्थापनवादी सभी अर्थशास्त्री क्या मानते थे?
उत्तर: संस्थापनवादी सभी अर्थशास्त्री यह मानते थे कि मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अन्तिम उद्देश्य धन अर्जित करना है।

प्रश्न 15. मार्शल ने अपनी परिभाषा में किस पर अधिक जोर दिया?
उत्तर: आर्थिक कल्याण पर।

प्रश्न 16. किनके अनुसार अर्थशास्त्रभौतिक कल्याण का अध्ययन है?
उत्तर: मार्शल, पीगू आदि अर्थशास्त्रियों के अनुसार अर्थशास्त्र भौतिक कल्याण का अध्ययन है।

प्रश्न 17. “धन मनुष्य के लिए है कि मनुष्य धन के लिए यह किसने कहा है।
उत्तर: मार्शल ने।

प्रश्न 18. रॉबिन्स की पुस्तक का क्या नाम है?
उत्तर: “An essay on nature and significance of economic source.”

प्रश्न 19. कल्याण प्रधान परिभाषा को किसने संकुचित एवं भ्रामक बताया था।
उत्तर: रॉबिन्स ने।

प्रश्न 20. मार्शल तथा उनके समर्थक अर्थशास्त्रियों द्वारा दी गई परिभाषा की आलोचना किसने की थी?
उत्तर: रॉबिन्स ने।

प्रश्न 21. रॉबिन्स अर्थशास्त्र को कैसा विज्ञान मानते हैं?
उत्तर: वास्तविक विज्ञान।

प्रश्न 22. चयन की समस्या का कारण बताइए।
उत्तर: आर्थिक संसाधनों का सीमित होना

प्रश्न 23. मार्शल ने अपनी परिभाषा में केन्द्र बिन्दु क्या माना है?
उत्तर: मार्शल ने अपनी परिभाषा में केन्द्र बिन्दुअधिकतम कल्याणमाना है।

प्रश्न 24. मार्शल ने कैसे साधनों को अर्थशास्त्र के अध्ययन में शामिल किया है?
उत्तर: भौतिक साधनों को।

प्रश्न 25. प्रो. मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र कैसा विज्ञान है?
उत्तर: प्रो. मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान है।

प्रश्न 26. रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को कैसा विज्ञान माना है?
उत्तर: रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान माना है।

प्रश्न 27. चुनाव की क्रिया को रॉबिन्सने क्या कहा है?
उत्तर: आर्थिक समस्या कहा है।

प्रश्न 28. अर्थशास्त्र की आवश्यकता विहीन परिभाषा किसने दी?
उत्तर: प्रो. जे. के. मेहता ने

प्रश्न 29. अर्थशास्त्र की परिभाषा के सम्बन्ध में अर्थशास्त्री एकमत क्यों नहीं हैं?
उत्तर: आर्थिक क्रियाओं की प्रकृति में भिन्नता तथा निरन्तर हो रहे परिवर्तनों के कारण अर्थशास्त्र की परिभाषा के सम्बन्ध में अर्थशास्त्रियों में एकमत नहीं है।

प्रश्न 30. अर्थशास्त्र की परिभाषा को कितने क्षेत्रों में बाँटा गया है।
उत्तर: अध्ययन की सरलता की दृष्टि से अर्थशास्त्र की परिभाषाओं को पाँच बड़े भागों में बाँटा गया है।

प्रश्न 31. एडम स्मिथ के विचारों से सहमत दो अर्थशास्त्रियों के नाम बताओ।
उत्तर: एडम स्मिथ के विचारों से वॉकर तथा जे. बी, से, सहमत थे।

प्रश्न 32. संस्थापनवादी अर्थशास्त्री क्या मानते हैं?
उत्तर: संस्थापनवादी अर्थशास्त्री मानते थे कि मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अन्तिम उद्देश्य धन अर्जित करना

प्रश्न 33. रॉबिन्स अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान क्यों मानते हैं?
उत्तर: रॉबिन्स अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान मानते हैं क्योंकि यह अच्छाई और बुराई के सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं देता, बल्कि जो स्थिति जैसी है उसका वैसा ही अध्ययन करता है।

प्रश्न 34. अर्थशास्त्र को केवल सामाजिक विज्ञान मानना अनुचित है। क्यों?
उत्तर: क्योंकि आर्थिक नियम ऐसे होते हैं जो समाज में रहने वाले मनुष्यों पर उसी प्रकार लागू होते हैं जिस प्रकार समाज से बाहर रहने वाले व्यक्तियों पर।

प्रश्न 35. मानसिक संतुलन प्राप्त करने पर ही व्यक्ति को सुख का अनुभव होता है, किसने कहा है?
उत्तर: प्रो. जे. के. मेहता ने

प्रश्न 36. सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. जे. के. मेहता किस विश्वविद्यालय में कार्यरत थे।
उत्तर: सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. जे. के. मेहता इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे।

प्रश्न 37. किसने अर्थशास्त्र को मानव के भौतिक कल्याण का अध्ययन माना है?
उत्तर: मार्शल ने अर्थशास्त्र को मानव के भौतिक कल्याण का अध्ययन माना है।

प्रश्न 38. कल्याण केन्द्रित परिभाषाओं के समर्थक कौन थे?
उत्तर: मार्शल, पीगू, स्टुअर्ट मिल आदि कल्याण केन्द्रित परिभाषाओं के समर्थक थे।

प्रश्न 39. प्रो.मेहता के अर्थशास्त्र के प्रति दृष्टिकोण की दो आलोचना लिखिए।
उत्तर: 1. इच्छा रहित मानव की कल्पना भी मुश्किल , 2. अधिकतम सुख की धारणा सही नहीं।

प्रश्न 40. जे.बी. से के अनुसार अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर: जे.बी. से के अनुसार, “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो धन का अध्ययन करता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. धन सम्बन्धी परिभाषा की कोई दो आलोचनाएँ लिखिए।
उत्तर:

a. धन पर आवश्यकता से अधिक बल: धन सम्बन्धी परिभाषा में धन पर आवश्यकता से अधिक जोर दिया। गया है। धन को एक साध्ये मान लिया गया है जबकि धन की प्राप्ति साध्य नहीं साधन है।

b. आर्थिक मानव की कल्पना अनुचित : प्राचीन अर्थशास्त्रियों के अनुसार मनुष्य धन की प्रेरणा एवं अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर कार्य करता है। परन्तु वास्तव में ऐसा सोचना गलत है वास्तव में मनुष्य धन की प्रेरणा के अतिरिक्त मानवीय भावनाओं; जैसे-दया, प्रेम आदि से प्रेरित होकर भी कार्य करता है।

प्रश्न 2. मार्शल के अनुसार, अर्थशास्त्र की प्रमुख विषय वस्तु धन होकर मानव कल्याण है।इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र का उद्देश्य केवल धन की प्रकृति एवं उत्पत्ति का विश्लेषण करना ही नहीं है। धन की उत्पत्ति से अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य यह है कि धन के उपयोग द्वारा अपनी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि की जाए तथा भौतिक कल्याण में वृद्धि की जाए। मार्शल ने धन के स्थान पर मनुष्य के आर्थिक कल्याण पर अधिक जोर दिया है।

प्रश्न 3. रॉबिन्स ने आर्थिक समस्या किसे कहा है?
उत्तर: रॉबिन्स के अनुसार मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त एवं असीमित हैं। उन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए। मनुष्य के पास समय एवं धन सीमित है जिससे मनुष्यों को किन आवश्यकताओं को पहले पूरा करना है इसका चुनाव करना पड़ता है। क्योंकि इन साधनों का वैकल्पिक प्रयोग हो सकता है। अतः साधनों की उपयोगिता बढ़ जाती है और मनुष्य को विभिन्न आवश्यकताओं के मध्य चुनाव करना पड़ता है जिससे आर्थिक समस्या सदा बनी रहती है।

प्रश्न 4. मार्शल तथा रॉबिन्स की परिभाषा में कोई दो समानताएँ बताइए।
उत्तर:

a. मार्शल ने अपनी परिभाषा में केन्द्र बिन्दु अधिकतम कल्याणमाना है जबकि रॉबिन्स ने मितव्ययिता को परिभाषा में प्रमुखता दी है। परन्तु मानव की ये दोनों प्रवृत्तियाँ एक ही अन्तिम उद्देश्य अधिकतम सन्तुष्टि की ओर ले जाती है।

b. मार्शल की परिभाषा मेंधनशब्द का प्रयोग हुआ है जबकि रॉबिन्स नेसीमित साधनों का प्रयोग किया है। एक सीमा तक ये दोनों शब्द एक ही अर्थ में प्रयोग होते हैं क्योंकि सीमितता धन का एक मुख्य गुण है।

प्रश्न 5. मार्शल तथा रॉबिन्स की परिभाषा में कोई तीन असमानताएँ बताइए।
उत्तर:

a. परिभाषा के स्वरूप में अन्तर : मार्शल की परिभाषा वर्गकारिणी है जबकि रॉबिन्स की परिभाषा विश्लेषणात्मक है।

b. विषय सामग्री में अन्तर : मार्शल ने अपनी परिभाषा में धन से सम्बन्धित उन क्रियाओं का अध्ययन शामिल किया और धन व्यय करने से सम्बन्धित है जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र में मानव व्यवहार के चुनाव करने सम्बन्धी दृष्टिकोण का अध्ययन किया। :

c. अर्थशास्त्र का स्वरूप : प्रो. मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान माना है।

प्रश्न 6. अर्थशास्त्र की विकास आधारित परिभाषा के प्रमुख तत्त्व क्या हैं?
उत्तर : विकास आधारित परिभाषा के प्रमुख तत्त्व निम्न है :

a. मानव व्यवहार के चुनाव तथा साधनों की सीमितता को अधिक महत्त्व दिया है।

b. वस्तु विनिमय प्रणाली के अन्तर्गत साधनों के आवंटन की समस्या को महत्त्वपूर्ण माना है।

c. रिभाषाओं में मार्शल तथा रॉबिन्स दोनों की परिभाषाओं का समावेश किया गया है।

d. विकास की परिभाषा को गत्यात्मक दृष्टिकोण है।

प्रश्न 7. अर्थशास्त्र की धन केन्द्रित परिभाषा की आलोचना क्यों की गई?
उत्तर: धन के अध्ययन पर अत्यधिक बल देने के कारण अर्थशास्त्र के विषय में कई भ्रम पैदा करने वाले विचार : उत्पन्न हो गए। इससे यह समझा जाने लगा कि अर्थशास्त्र तो मनुष्य को धन या मुद्रा से मोह करने वाला बताता है। परन्तु 19, वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही कुछ अर्थशास्त्रियों ने ऐसा कहना प्रारम्भ कर दिया कि धन तो मानव जीवन के लिए एक साधन मात्र है। इसलिए इसकी उत्पत्ति के विश्लेषण मात्र से अर्थशास्त्र का सम्बन्ध जोड़ना अनुचित है।

प्रश्न 8. धन सम्बन्धी परिभाषा की दो आलोचना समझाइए।
उत्तर:

a. धन पर आवश्यकता से अधिक बल-धन सम्बन्धी परिभाषाओं में धन पर आवश्यकता से अधिक जोर दिया गया है। धन को एक साध्य मान लिया गया है, जबकि धन की प्राप्ति साध्य नहीं अपितु साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

b. आर्थिक मानव की कल्पना अनुचित प्राचीन अर्थशास्त्रियों के अनुसार मनुष्य धन की प्रेरणा एवं अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर कार्य करता है। परन्तु वास्तव में ऐसा सोचना गलत है वास्तव में मनुष्य धन की प्रेरणा के अतिरिक्त मानवीय भावनाओं आदि से प्रेरित होकर भी कार्य करता है।

प्रश्न 9. मार्शल की कल्याण केन्द्रित अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर: मार्शल के अनुसार, “अर्थशास्त्र मानव जीवन के सामान्य व्यवसाय का अध्ययन है। इसमें व्यक्तिगत तथा सामाजिक क्रियाओं के उस भाग की जाँच की जाती है जो भौतिक सुख के साधनों की प्राप्ति एवं उपभोग से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है।

प्रश्न 10. आर्थिक समस्या से क्या आशय है?
> चयन की समस्या को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: मानव की एक आवश्यकता पूरी हो जाती है तो दूसरी आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है। अतः आवश्यकताएँ असीमित होती हैं। लेकिन उनको पूरा करने के साधन (धन तथा समय) सीमित होते हैं तथा इन सीमित साधनों के भी अन्य उपयोग भी होते हैं। अतः यह समस्या उत्पन्न होती है कि पहले किस आवश्यकता को पूरा किया जाये? इसी को एडम स्मिथ ने आर्थिक समस्या या चयन की समस्या कहा है।

प्रश्न 11. साधनों की सीमितता से क्या आशय है?
उत्तर: उपत्ति के साधन; जैसे-भूमि श्रम, पूँजी आदि की मात्रा जब माँग से कम होती है तो इसी को साधनों की सीमितता कहते हैं। यह सीमितता तब और भी बढ़ जाती है जबकि इनके अनेकों उपयोग होते हैं। ऐसे में व्यक्ति यह सोचने पर मजबूर हो जाता है कि इन साधनों का उपयोग मैं पहले किस आवश्यकता को पूरा करने में करूं। तथा किस आवश्यकता को बाद में पूरा करने के लिए छोड़ दें।

प्रश्न 12. “पीगूद्वारा दी गई अर्थशास्त्र की परिभाषा लिखो।
उत्तर: पीगू के अनुसार, “अर्थशास्त्र आर्थिक कल्याण का अध्ययन है और आर्थिक कल्याण के उस भाग तक सीमित रहता है जिसको प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से मुद्रा के मापदण्ड से सम्बन्धित किया जा सके।

प्रश्न 13. मार्शल की परिभाषा के दो बिन्दु लिखो।
उत्तर:

a. धन की तुलना में मनुष्य का महत्त्व अधिक-मार्शल ने धन के स्थान पर मनुष्य के कल्याण पर अधिक बल दिया। उनके अनुसार धन मनुष्य के लिए है, कि मनुष्य धन के लिए अर्थात् मनुष्य का कल्याण सबसे महत्त्वपूर्ण है।

b. सामाजिक, सामान्य एवं वास्तविक मनुष्य के रूप में अध्ययन-अर्थशास्त्र में सामाजिक, सामान्य तथा वास्तविक मनुष्य द्वारा की जाने वाली आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 14. भौतिक कल्याण पर आधारित परिभाषाओं की दो आलोचानाओं की व्याख्या करो।
उत्तर:

a. साधनों का भौतिक और अभौतिक वर्गीकरण अनुचित : मार्शल ने अर्थशास्त्र के अध्ययन की विषय वस्तु को केवल भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उसके उपयोग तक सीमित रखा परन्तु वास्तव में साधन अभौतिक भी होते हैं; जैसे-डॉक्टर, इंजीनियर, मजदूर, वकील आदि भी अपनी सेवाओं के द्वारा साधन प्राप्त करते हैं।

b. अर्थशास्त्र केवल सामाजिक विज्ञान नहीं है : अर्थशास्त्र को केवल सामाजिक विज्ञान मानना अनुचित है क्योंकि आर्थिक नियम ऐसे होते हैं जो समाज में रहने वाले मनुष्यों पर उसी प्रकार लागू होते हैं। जिस प्रकार समाज के बाहर रहने वाले व्यक्तियों पर। अतः अर्थशास्त्र मानव विज्ञान है।

प्रश्न 15. अर्थशास्त्र मानव विज्ञान है। कैसे?
उत्तर: अर्थशास्त्र में आर्थिक नियम ऐसे होते हैं जो समाज में रहने वाले मनुष्यों पर उसी प्रकार लागू होते हैं जिस प्रकार समाज के बहार रहने वाले व्यक्तियों पर। अत: अर्थशास्त्र मानव विज्ञान है।

प्रश्न 16. ‘रॉबिन्स ने किन आधारों पर कल्याण सम्बन्धी विचारधारा को दोषपूर्ण माना है?
उत्तर: रॉबिन्स ने निम्नलिखित आधारों पर कल्याण सम्बन्धी विचारधारा को दोषपूर्ण माना है :

a. बहुत सी क्रियाएँ जैसे मादक पदार्थों का उत्पादन तथा इनका उपभोग मानव कल्याण के हित में नहीं है, फिर भी अर्थशास्त्र में इनका अध्ययन किया जाता है।

b. कल्याण का प्रमाणिक माप नहीं है। मुद्रा को भी कल्याण का प्रमाणिक माप नहीं माना जा सकता क्योंकि कल्याण मनोवैज्ञानिक एवं भावात्मक अभिव्यक्ति है।

प्रश्न 17. रॉबिन्स की दुर्लभता प्रधान परिभाषा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: रॉबिन्स की दुर्लभता प्रधान परिभाषा के निम्नलिखित चार महत्त्वपूर्ण बिन्दु हैं :

a. मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त एवं असीमित हैं।

b. आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य के पास साधन सीमित हैं। मनुष्यों को ऐसी स्थिति में आवश्यकताओं के बीच चुनाव करना पड़ता है।

c. इन साधनों के वैकल्पिक प्रयोग हो सकते हैं। इसके कारण साधनों की सीमितता और अधिक बढ़ जाती है।

d. आवश्यकताओं की तीव्रता में भी भिन्नता होती है-मनुष्य की आवश्यकता की तीव्रता एक समान नहीं होती हैं। कुछ आवश्यकताएँ अधिक तीव्र हैं तथा कुछ कम तीव्र। आवश्यकताओं की तीव्रता में भिन्नता होने के कारण उनके बीच चुनाव करने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 18. रॉबिन्स की दुर्लभता प्रधान परिभाषा की किन्हीं दो आलोचनाओं की व्याख्या करो।
उत्तर:

a. अर्थशास्त्र के क्षेत्र को आवश्यकता से अधिक व्यापक बनाया-प्रो. रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान बताते हुए सभी प्रकार की मानवीय क्रियाओं के चयनात्मक पहलू को अर्थशास्त्र की विषय वस्तु माना है। इससे अर्थशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र व्यापक हो गया है।

b. अर्थशास्त्र केवल मूल्य निर्धारण नहीं-रॉबिन्स की परिभाषा में केवल यह अध्ययन किया है कि विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में साधनों का वितरण किस प्रकार होता है और इसके परिणामस्वरूप साधनों के मूल्य या कीमत किस प्रकार निर्धारित होती है।

प्रश्न 19. रॉबिन्स तथा मार्शल की परिभाषाओं में चार समानताएँ लिखिए।
उत्तर: रॉबिन्स तथा मार्शल की परिभाषाओं में निम्नलिखित समानताएँ हैं :

a. मार्शल तथा रॉबिन्स दोनों ने अपनी परिभाषाओं में अर्थशास्त्र को एक विज्ञान माना है।

b. मार्शल तथा रॉबिन्स दोनों अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र के अध्ययन में मानव को प्रधान मानकर साधनों को गौण स्थान दिया है।

c. मार्शल ने अपनी परिभाषा में केन्द्र बिन्दुअधिकतम कल्याणमाना है जबकि रॉबिन्स ने मितव्ययिता को परिभाषा में प्रमुखता दी है। परन्तु मानव की ये दोनों प्रवृत्तियाँ एक ही अन्तिम उद्देश्य अधिकतम सन्तुष्टि की ओर ले जाती हैं।

d. मार्शल की परिभाषा मेंधनशब्द का प्रयोग हुआ है। जबकि रॉबिन्स ने सीमित साधनों का प्रयोग तक ये दोनों शब्द एक ही अर्थ में प्रयोग होते हैं क्योंकि सीमितता धन का एक मुख्य गुण है।

प्रश्न 20. रॉबिन्स तथा मार्शल की परिभाषा में चार असमानताएँ लिखिए।
उत्तर: रॉबिन्स तथा मार्शल की परिभाषा में निम्नलिखित चार असमानताएँ हैं :

a. परिभाषा के स्वरूप में अन्तर : मार्शल की परिभाषा वर्गकारिणी है जबकि रॉबिन्स की परिभाषा विश्लेषणात्मक है।

b.,विषय सामग्री में अन्तर : मार्शल ने अपनी परिभाषा में धन से सम्बन्धित उन क्रियाओं का अध्ययन शामिल किया जो धन कमाने और धन व्यय करने से सम्बन्धित है। जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र में मानव व्यवहार के चुनाव करने सम्बन्धी दृष्टिकोण का अध्ययन किया।

c. अर्थशास्त्र का स्वरूप : प्रो. मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान माना है।

d. साधनों के वर्गीकरण में अन्तर : मार्शल ने केवल भौतिक साधनों को ही अर्थशास्त्र के अध्ययन में शामिल किया है जबकि रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में उन सभी भौतिक-अभौतिक साधनों को अर्थशास्त्र में सम्मिलित किया है जिनकी दुर्लभता है।

प्रश्न 21. आवश्यकता विहीन परिभाषा किसने दी? परिभाषा भी लिखिए।
उत्तर: भारत के सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जे. के. मेहता ने आवश्यकता विहीन परिभाषा दी।
प्रो. मेहता के अनुसारअर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो मानवीय आचरण की इच्छा रहित अवस्था में पहुँचने के लिए साधन के रूप में अध्ययन करता है।

प्रश्न 22. प्रो मेहता की आवश्यकता विहीन परिभाषा की आलोचना के दो बिन्दु लिखो।
उत्तर: प्रो. मेहता की परिभाषा की दो आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं :

a. इच्छा रहित मानव की कल्पना भी मुश्किल : आज के इस भौतिकवादी युग में साधारण से साधारण मनुष्य भी अधिकतम सुख प्राप्त करने के लिए आवश्यकताओं में कमी करने की नहीं सोचता है। अतः इच्छाओं में कमी नहीं की जा सकती है।

b. अधिकतम सुख की धारणा सही नहीं : आलोचक प्रो. मेहता की धारणा को विरोधाभासी मानते हैं। उनके अनुसार प्रो. मेहता एक ओर तो आवश्यकताओं में कमी करने की बात करते हैं तथा दूसरी ओर अधिकतम सुख की धारणा को व्यक्त करते हैं।

प्रश्न 23. प्रो.सेम्युलसन के अनुसार अर्थशास्त्र की परिभाषा लिखिए।
उत्तर: प्रो. सेम्युलसन के अनुसार, “अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन करता है कि व्यक्ति और समाज अनेक प्रयोगों में सकने वाले उत्पादन के सीमित साधनों का चुनाव एक समयावधि में विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में लगाने और उनको समाज में विभिन्न वस्तुओं और समूहों में उपभोग हेतु, वर्तमान भविष्य में बाँटने के लिए किस प्रकार करते हैं ऐसा वे चाहे द्रव्य का प्रयोग करे या इसके बिना करें। यह साधनों के आवंटन के स्वरूप में सुधार करने की लागतों एवं उपयोगिताओं को विश्लेषण करता है।

प्रश्न 24. आर्थिक समस्या अथवा चयन की समस्या के दो कारण बताइए।
उत्तर:

a.mआर्थिक संसाधनों का सीमित होना : मानव के पास उपलब्ध आर्थिक संसाधन जैसे आदि की मात्रा सीमित है। अतः ये मानव की असीमित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

b. असीमित आवश्यकताएँ : मानव की आवश्यकताएँ असीमित हैं। यदि एक आवश्यकता पूरी हो जाती है तो दूसरी उत्पन्न हो जाती है। जैसे-जिसके पास पंखा नहीं है, उसे पंखा की आवश्यकता है लेकिन जिसके पास पंखा होता है उसे कूलर की आवश्यकता होती है तथा जिसके पास कूल होता है उसे A.C. की आवश्यकता होती है। इस तरह आवश्यकताएँ असीमित हैं।

प्रश्न 25. मार्शल तथा रॉबिन्स की परिभाषाओं की कोई दो समानताएँ बताइए।
उत्तर:

a. मार्शल तथा रॉबिन्स दोनों ने ही अर्थशास्त्र के अध्ययन में मानव को प्रधान माना है तथा साधनों को गौण स्थान दिया है।

b. मार्शल द्वारा अपनी परिभाषा मेंअधिकतम कल्याणको केन्द्र बिन्दु माना गया है जबकि रॉबिन्स ने ‘‘मितव्ययिता मान्य है। परन्तु मानव की ये दोनों ही प्रवृत्तियाँअधिकतम सन्तुष्टिके एक ही उद्देश्य से प्रेरित हैं।

प्रश्न 26. प्रो. मेहता के अनुसार अर्थशास्त्र का उद्देश्य वास्तविक सुख में वृद्धि करना है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: प्रो. मेहता ने कहा है कि अर्थशास्त्र का उद्देश्य केवल सन्तुष्टि में वृद्धि करना नहीं अपितु वास्तविक सुख में वृद्धि करना है। क्योंकि इच्छाएँ असीमित होती हैं। अतः उनको पूर्ण रूप से संतुष्ट करना सम्भव नहीं है। अत: वास्तविक सुख इच्छाओं में कमी करके प्राप्त किया जा सकता है। प्रो. मेहता ने इसे मानसिक सन्तुलन की स्थिति कहा है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मार्शल तथा रॉबिन्स की परिभाषाओं की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर: मार्शल की परिभाषा कल्याण केन्द्रित थी, जिसकी निम्नलिखित आलोचनाएँ की गई :

a. साधनों का भौतिक और अभौतिक वर्गीकरण अनुचित : मार्शल ने अर्थशास्त्र के अध्ययन की विषय वस्तु को केवल भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उसके उपभोग तक ही सीमित रखा। परन्तु वास्तव में साधन अभौतिक (Non Material) भी होते हैं। जैसे-डॉक्टर, इंजीनियर, मजदूर, वकील आदि भी अपनी सेवाओं के द्वारा ही साधन प्राप्त करते हैं।

b. अर्थशास्त्र केवल सामाजिक विज्ञान नहीं : अर्थशास्त्र को केवल सामाजिक विज्ञान माननी अनुचित होगा क्योंकि आर्थिक नियम ऐसे हैं जो समाज में रहने वाले मनुष्यों पर भी उसी प्रकार लागू होते हैं जिस प्रकार समाज से बाहर रहने वाले व्यक्तियों पर। अत: अर्थशास्त्र मानव विज्ञान है।

c. अर्थशास्त्र का सम्बन्ध भौतिक कल्याण से स्थापित करना ठीक नहीं : रॉबिन्स के अनुसारअर्थशास्त्र का सम्बन्ध चाहे किसी से भी हो, इतना निश्चित है कि इसका सम्बन्ध भौतिक कल्याण के कारणों से नहीं है।रॉबिन्स ने कई आधारों पर

कल्याण सम्बन्धी धारणा को दोषपूर्ण माना :

1.  बहुत-सी क्रियाएँ जैसे मादक पदार्थों का उत्पादन तथा इसका उपभोग मानव कल्याण के हित में नहीं है परन्तु फिर भी अर्थशास्त्र में इनका अध्ययन किया जाता है।

2. कल्याण का प्रामाणिक माप नहीं है। मुद्रा को भी कल्याण की प्रामाणिक माप नहीं माना जा सकता क्योंकि कल्याण मनोवैज्ञानिक एवं भावात्मक अभिव्यक्ति है।

d. अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति तटस्थ है : अर्थशास्त्र का जब कल्याण के साथ सम्बन्ध स्थापित किया जाता है तो इसका अर्थ यह है कि अर्थशास्त्रियों को आर्थिक कार्यों की अच्छाई तथा बुराई के सम्बन्ध में निर्णय देना होता है। जो आदर्शात्मक विज्ञान से सम्बन्धित हो जाता है। रॉबिन्स अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान मानते हैं जो अच्छाई एवं बुराई के सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं देता, बल्कि जो स्थिति जैसी है उसका वैसा ही अध्ययन करता है।

e. अर्थशास्त्र का क्षेत्र संकुचित है : मार्शल द्वारा अर्थशास्त्र में अभौतिक साधनों की प्राप्ति एवं उपभोग, असामाजिक, असाधारण तथा अनार्थिक क्रियाओं के अध्ययन की उपेक्षा करना ही उनकी आलोचना का कारण बना।

रॉबिन्स द्वारा दी गयी परिभाषा को भी अर्थशास्त्री त्रुटि रहित नहीं मानते हैं। इस परिभाषा की मुख्य आलोचनाएँ अग्रलिखित हैं :

1. अर्थशास्त्र के क्षेत्र को आवश्यकता से अधिक व्यापक बनाया : प्रो. रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान बताते हुए। सभी प्रकार की मानवीय क्रियाओं के चयनात्मक पहलू को अर्थशास्त्र की विषय वस्तु माना है। इससे अर्थशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र व्यापक हो गया है और आर्थिक सिद्धान्तों को प्रतिपादन, समस्याओं का विश्लेषण एवं विवेचन आदि जटिल हो गए।

2. अर्थशास्त्र के सामाजिक स्वभाव पर उचित ध्यान नहीं दिया : रॉबिन्स के अनुसार अर्थशास्त्र में समाज के बाहर रहने वाले व्यक्तियों की क्रियाओं का भी अध्ययन किया जाता है। परन्तु अर्थशास्त्र की आवश्यकता तभी होती है जब आर्थिक समस्याएँ सामाजिक महत्त्व का स्वरूप ले लेती हैं और मानवों के एक समूह की क्रियाएँ दूसरे समूह की क्रियाओं को
प्रभावित करते हैं।

3. अर्थशास्त्र केवल मूल्य निर्धारण नहीं : रॉबिन्स की परिभाषा में केवल यह अध्ययन किया है कि विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में साधनों का वितरण किस प्रकार होता है और इसके परिणामस्वरूप साधनों के मूल्य या कीमत किस प्रकार निर्धारित होता है। परन्तु अर्थशास्त्र का क्षेत्र साधनों के आवंटन तथा मूल्य निर्धारण से भी कहीं विस्तृत है।

4. उद्देश्यों की प्रति तटस्थता : रॉबिन्स ने लिखा है, “अर्थशास्त्र का सम्बन्ध केवल साधनों से है उद्देश्यों का निर्धारण, जिनके लिए सीमित साधनों का प्रयोग किया जाता है, किस प्रकार से होगा? यदि हमें उद्देश्यों की सही जानकारी नहीं है। तो सीमित साधनों का अधिकतम उपयोग नहीं कर सकते हैं।

5. अर्थशास्त्र केवल वास्तविक विज्ञान नहीं है, कला भी है : अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान मान लेने पर यह केवल सिद्धान्त निर्माण करने वाला शास्त्र मात्र रह जाएगा। आलोचकों का मानना है कि अर्थशास्त्र का कर्तव्य केवल उपकरणों का ही निर्माण करना नहीं है अपितु उसे उपकरणों के प्रयोग की विधि पर भी प्रकाश डालना चाहिए।

6. परिभाषा स्थैतिक है : प्रो.रॉबिन्स साध्यों को दिए हुए या स्थिर मानकर चलते हैं और उन दिए हुए साध्यों का साधनों से समन्वय बिठाया जाता है जबकि व्यावहारिक जीवन में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है।

7. आर्थिक समस्या का कारण : रॉबिन्स का यह कथन सही नहीं है कि आर्थिक समस्या दुर्लभता के कारण ही जन्म लेती है। आलोचकों के अनुसार, आर्थिक समस्या सीमितता या दुर्लभता के कारण ही नहीं बल्कि कभी-कभी विपुलता के कारण भी जन्म लेती है।

प्रश्न 2. कल्याण केन्द्रित परिभाषाओं की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर: मार्शल की परिभाषा कल्याण केन्द्रित थी जिसकी निम्नलिखित आलोचनाएँ की गई :

a. साधनों का भौतिक और भौतिक वर्गीकरण अनुचित : मार्शल ने अर्थशास्त्र के अध्ययन की विषय वस्तु को केवल भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उसके उपभोग तक ही सीमित रखा। परन्तु वास्तव में साधन अभौतिक (Non Material) भी होते हैं। जैसे-डॉक्टर, इंजीनियर, मजदूर, वकील आदि भी अपनी सेवाओं के द्वारा ही साधन प्राप्त करते हैं।

b. अर्थशास्त्र केवल सामाजिक विज्ञान नहीं : अर्थशास्त्र को केवल सामाजिक विज्ञान मानना अनुचित होगा क्योंकि आर्थिक नियम ऐसे हैं, जो समाज में रहने वाले मनुष्यों पर भी उसी प्रकार लागू होते हैं जिस प्रकार समाज से बाहर रहने वाले व्यक्तियों पर। अतः अर्थशास्त्र मानव विज्ञान है।

अर्थशास्त्र का सम्बन्ध भौतिक कल्याण से स्थापित करना ठीक नहीं : रॉबिन्स के अनुसारअर्थशास्त्र का सम्बन्ध चाहे किसी से भी हो, इतना निश्चित है कि इसकी सम्बन्ध भौतिक कल्याण के कारणों से नहीं है।रॉबिन्स ने कई आधारों पर कल्याण सम्बन्धी धारणा को दोषपूर्ण माना :

a. बहुत सी क्रियाएँ जैसे मादक पदार्थों का उत्पादन तथा इसका उपभोग मानव कल्याण के हित में नहीं है परन्तु फिर भी अर्थशास्त्र में इनका अध्ययन किया जाता है।

b. कल्याण का प्रामाणिक माप नहीं है। मुद्रा को भी कल्याण का प्रामाणिक माप नहीं माना जा सकती क्योंकि कल्याण
मनोवैज्ञानिक एवं भावात्मक अभिव्यक्ति है।

c. अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति तटस्थ है : अर्थशास्त्र का जब कल्याण के साथ सम्बन्ध स्थापित किया जाता है तो इसका अर्थ यह है कि अर्थशास्त्रियों को आर्थिक कार्यों की अच्छाई तथा बुराई के सम्बन्ध में निर्णय देना होता है जो आदर्शाक विज्ञान से सम्बन्धित हो जाता है। रॉबिन्स अर्थशास्त्र को एक वास्तविक विज्ञान मानते हैं जो अच्छाई एवं बुराई के सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं देता, बल्कि जो स्थिति जैसी है उसका वैसी ही अध्ययन करता है।

d. अर्थशास्त्र का क्षेत्र संकुचित है : मार्शल द्वारा अर्थशास्त्र में अभौतिक साधनों की प्राप्ति एवं उपभोग, असामाजिक, असाधारण तथा अनार्थिक क्रियाओं के अध्ययन की उपेक्षा करना ही इनकी आलोचना का कारण बना।

प्रश्न 3. मार्शल तथा रॉबिन्स की परिभाषाओं में समानताओं तथा असमानताओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: मार्शल तथा रॉबिन्स की परिभाषाओं में समानताएँ :

1. मार्शल तथा रॉबिन्स दोनों ने अपनी परिभाषाओं में अर्थशास्त्र को विज्ञान माना है।

2. मार्शल तथा रॉबिन्स दोनों अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र के अध्ययन में मानव को प्रधान मानकर साधनों को गौण स्थान दिया है।

3. मार्शल ने अपनी परिभाषा में केन्द्र बिन्दु अधिकतम कल्याण माना है जबकि रॉबिन्स ने मितव्ययिता को परिभाषा में प्रमुखता दी है। परन्तु मानव की ये दोनों प्रवृत्तियाँ एक ही अन्तिम उद्देश्य अधिक़तम सन्तुष्टि की ओर ले जाती हैं।

4. मार्शल की परिभाषा मेंधनशब्द का प्रयोग हुआ है जबकि रॉबिन्स ने सीमित साधनों शब्द का प्रयोग किया है। एक सीमा तक ये दोनों शब्द एक ही अर्थ में प्रयोग होते हैं क्योंकि सीमितता धन का एक मुख्य गुण है।

5. प्रो. रॉबिन्स ने कहा कि सीमित साधनों का प्रयोग किफायत से होना चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था में अधिकतम उत्पादन तथा उपभोक्ता को अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो सके।

मार्शल तथा रॉबिन्स की परिभाषाओं में असमानताएँ :

1. परिभाषा के स्वरूप में अन्तर : मार्शल की परिभाषा वर्गकारिणी है जबकि रॉबिन्स की परिभाषा विश्लेषणात्मक है। मार्शल ने मनुष्य की क्रियाओं यथा भौतिक तथा अभौतिक, आर्थिक-अनार्थिक, साधारण जीवन व्यवसाय सम्बन्धी क्रियाओं तथा असाधारण क्रियाओं के अध्ययन को अर्थशास्त्र की विषय वस्तु माना है।

2. विषय सामग्री में अन्तर : मार्शल ने अपनी परिभाषा में धन से सम्बन्धित उन क्रियाओं का अध्ययन शामिल किया है जो धन कमाने तथा धन व्यय करने से सम्बन्धित होती हैं। जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र में मानव व्यवहार के चुनाव करने सम्बन्धी दृष्टिकोण का अध्ययन किया है।

3. अर्थशास्त्र का स्वरूप : प्रो. मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है। इसमें केवल उन मनुष्यों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, जो समाज में रहते हैं जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान माना है। जिसमें चुनाव करने के पहलू को अध्ययन किया जाता है।

4. साधनों के वर्गीकरण में अन्तर : मार्शल ने केवल भौतिक साधनों को ही अर्थशास्त्र के अध्ययन में शामिल किया है। जबकि रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में उन सभी भौतिक-अभौतिक साधनों को सम्मिलित किया है जिनकी दुर्लभता है।

5. अर्थशास्त्र की प्रकृति : मार्शल ने अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान के साथ आदर्शात्मक विज्ञान भी माना है तथा अर्थशास्त्र में कला को भी शामिल किया गया है जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान माना है।

6. उद्देश्य में असमानता : प्रो.मार्शल ने स्पष्ट किया है कि अर्थशास्त्र का उददेश्य मानव कल्याण में वृद्धि करना है जबकि अर्थशास्त्र उददेश्यों के प्रति तटस्थ है। अर्थशास्त्र का मनुष्य के कल्याण से कोई सम्बन्ध नहीं होता है।

प्रश्न 4. अर्थशास्त्र की विकास आधारित परिभाषाओं का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए। इस सन्दर्भ में भारतीय दृष्टिकोण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: आज का युग विकास का युग है। अतएव अर्थशास्त्र विषय के साथ-साथ उसकी परिभाषा में भी परिवर्तन हो रहा है। विकास आधारित परिभाषाएँ नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री जिनमें प्रो. सेम्युलसन, पीटरसन, फग्र्युसन आदि है; ने। दीं। सेम्युलसन ने अपनी परिभाषा में मानव व्यवहार के चुनाव करने तथा साधनों की सीमितता को अधिक महत्त्व दिया है। लेकिन इन्होंने मानव की इच्छाओं के अनसार साधनों पर ध्यान नहीं दिया। और ही उन्होंने साधनों के आवंटन को महत्त्वपूर्ण मानते हुए इस समस्या के निराकरण के उपाय दिये। उन्होंने केवल समस्याओं को बताया लेकिन समस्याओं को दूर करने के उपाय नहीं खोजे। विकास की सेम्युलसन की विचारधारा में कोई नई बात नहीं कही गई।

इनकी परिभाषा में मार्शल और रॉबिन्स की परिभाषाओं का समावेश है। के.जी. सेठ ने भी सेम्युलसन की तरह साधनों पर ही अधिक जोर दिया है। इन्होंने तो धन, ही आर्थिक कल्याण पर जोर दिया। इन्होंने केवल साधनों के विकास पर ही जोर दिया। विकास आधारित परिभाषाएँ देने वाले अर्थशास्त्रियों ने केवल साधनों के विकास पर ही जोर दिया। इन्होंने मानव कल्याण, भौतिक कल्याण, आर्थिक कल्याण आदि से कोई सम्बन्ध नहीं रखा।।

विकास आधारित परिभाषाओं के सन्दर्भ में भारतीय दृष्टिकोण : भारतीय दर्शन, सभ्यता एवं संस्कृति पर आधारित प्रो. मेहता की परिभाषा पाश्चात् दृष्टिकोण से सर्वथा भिन्न है। पश्चिम में आधुनिक विकासवादी अर्थशास्त्री का मत अधिकतम आवश्यकताओं की संतुष्टि में निहित है जबकि भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार अधिकतम संतुष्टि की प्राप्ति आवश्यकताओं की संतुष्टि में नहीं वरन् आवश्यकताओं की कमी करने या उनकी समाप्ति में है। अर्थात् भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार आवश्यकताएँ असीमित होने के कारण कभी पूर्ण नहीं हो सकती हैं। अतः उन्हें समाप्त करके या उनमें कमी लाकर ही अपने संतुष्टि के स्तर को बढ़ाया जा सकता है।

प्रश्न 5. “अर्थशास्त्र धन का विज्ञान था, अब वह मानव का विज्ञान है।इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: प्रो. एडम स्मिथ ने 1776 में प्रकाशित पुस्तक “An enquiry into the nature and causes of wealth” में अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान माना है। संस्थापनवादी सभी अर्थशास्त्री यह मानते थे कि मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अन्तिम उद्देश्य धन अर्जित करना है। धन के अध्ययन पर अधिक बल देने के कारण अर्थशास्त्र के विषय में कई भ्रम पैदा करने वाले विचार उत्पन्न हो गए। इसे यह समझा जाने लगा कि अर्थशास्त्र तो मनुष्य को धन या मुद्रा से मोह करने वाला बताता है परन्तु उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही कुछ अर्थशास्त्रियों ने ऐसा कहना प्रारम्भ किया कि धन तो मानव जीवन के लिए एक साधन मात्र है।

प्रो. रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान बताया। अर्थशास्त्र में मनुष्य की इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए साधनों का उचित प्रयोग किया जाता है। धन का विज्ञान अर्थशास्त्र की शुरुआती विचारधारा थी लेकिन समय के परिवर्तन के साथ-साथ अर्थशास्त्र की परिभाषा भी बदलती गई। अब उसे मानव विज्ञान माना जाने लगा। आवश्यकता की पूर्ति के लिए मनुष्य के पास साधन (समय एवं धन) सीमित होते हैं। मनुष्यों को ऐसी स्थिति में आवश्यकताओं के बीच चुनाव करना पड़ता है जो कि मानव के बारे में अध्ययन करने से पता चलता है। मानव की असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सीमित साधनों के साथ समन्वय करने के बारे में अर्थशास्त्र ही बतलाता है। अतः समय के परिवर्तन के साथ-साथ अर्थशास्त्र धन के विज्ञान की जगह मानव विज्ञान का अर्थशास्त्र बन गया।

प्रश्न 6. अर्थशास्त्र कीसीमितताकी परिभाषा की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर: अर्थशास्त्र कीसीमितताकी परिभाषा रॉबिन्स द्वारा दी गई। रॉबिन्स द्वारा दी गई परिभाषा को भी अर्थशास्त्री त्रुटि रहित नहीं मानते। इस परिभाषा की मुख्य आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं :

a. अर्थशास्त्र के क्षेत्र को आवश्यकता से अधिक व्यापक बनाया : प्रोरॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान बताते हुए सभी प्रकार की मानवीय क्रियाओं के चयनात्मक पहलू को अर्थशास्त्र की विषय वस्तु माना है। इससे अर्थशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र व्यापक हो गया है और आर्थिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन, समस्याओं का विश्लेषण एवं विवेचन आदि जटिल हो गए।

b. अर्थशास्त्र के सामाजिक स्वभाव पर ध्यान नहीं : रॉबिन्स के अनुसार अर्थशास्त्र में समाज के बाहर रहने वाले व्यक्तियों की क्रियाओं का भी अध्ययन किया जाता है परन्तु अर्थशास्त्र की आवश्यकता तभी होती है जब आर्थिक
समस्याएँ सामाजिक महत्त्व का स्वरूप ले लेती हैं।

c. अर्थशास्त्र केवल मूल्य निर्धारण नहीं : रॉबिन्स की परिभाषा में केवल यह अध्ययन किया है कि विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में साधनों का वितरण किस प्रकार होता है और इसके परिणामस्वरूप साधनों के मूल्य अथवा कीमत किस प्रकार निर्धारित होती है परन्तु अर्थशास्त्र का क्षेत्र साधनों के आवंटन तथा मूल्य निर्धारण से भी कहीं विस्तृत है।

d. उद्देश्यों के प्रति तटस्थता : रॉबिन्स ने लिखा हैअर्थशास्त्र का सम्बन्ध केवल साधनों से है उद्देश्यों का निर्धारण, जिनके लिए सीमित साधनों का प्रयोग किया जाता है, किस प्रकार से होगा? यदि हमें उद्देश्यों की सही जानकारी नहीं है तो सीमित साधनों को अधिकतम उपयोग नहीं कर सकते। अर्थशास्त्र यदि उद्देश्यों के प्रति तटस्थ रहता है तो वर्तमान युग में आर्थिक योजनाओं का महत्त्व नहीं रह जाता।

e. अर्थशास्त्र केवल वास्तविक विज्ञान नहीं है कला भी है : अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान मान लेने पर यह केवल सिद्धान्त निर्माण करने वाला शास्त्र मात्र रह जाएगा, आलोचकों का मानना है कि अर्थशास्त्र का कर्तव्य केवल उपकरणों का ही निर्माण करना नहीं है अपितु उपकरणों के प्रयोग की विधि पर भी प्रकाश डालना चाहिए।

f. परिभाषा स्थैतिक है : प्रो. रॉबिन्स साध्यों को दिए हुए या स्थिर मानकर चलते हैं और उन दिए हुए साध्यों का साधनों से समन्वय बिठाया जाता है। जबकि व्यावसायिक जीवन में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है।

g. आर्थिक समस्या का कारण : आर्थिक समस्या दुर्लभता के कारण ही जन्म लेती है। राबिन्स का यह कहना सही नहीं है। क्योकि आर्थिक समस्या सीमितता या दुर्लभता के कारण ही नहीं बल्कि कभी-कभी विपलुता के कारण भी जन्म लेती है।

प्रश्न 7. अर्थशास्त्र की धन केन्द्रित परिभाषा को समझाइए। इसकी आलोचना भी बताइए।
उत्तर: धन केन्द्रित परिभाषा-प्रो. एडम स्मिथ, जे. बी. से, वॉकर अर्थशास्त्रियों ने ऐसी परिभाषाएँ दी हैं जिनका केन्द्र बिन्दुधनथा। प्रो. एडम स्मिथ ने 1776 में प्रकाशित पुस्तक “An enquiry into the nature and causes of wealth of nations” में अर्थशास्त्र को परिभाषित करते हुए बताया कि अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है।

संस्थापनवादी सभी अर्थशास्त्री यह मानते थे कि मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अन्तिम उद्देश्य धन अर्जित करना है। धन के अध्ययन पर अधिक बल देने के कारण अर्थव्यवस्था के विषय में कई भ्रम पैदा करने वाले विचार उत्पन्न हो गए। इससे यह समझा जाने लगा कि अर्थशास्त्र तो मनुष्य को धन या मुद्रा से मोह करने वाला बताता है। परन्तु 19 वीं शताब्दी के प्रराम्भ में ही कुछ अर्थशास्त्रियों ने ऐसा कहना प्रारम्भ कर दिया कि धन तो मानव जीवन के लिए साधन मात्र है इसलिए उनकी उत्पत्ति के विश्लेषण मात्र से अर्थशास्त्र का सम्बन्ध जोड़ना अनुचित है। इस विचार की आलोचना हुई।

अर्थशास्त्र की धन केन्द्रित परिभाषाओं की आलोचनाएँ :

1. धन पर आवश्यकता से अधिक बल : इन परिभाषाओं में धन पर आवश्यकता से अधिक बल दिया गया है। धन को एक साध्य मान लिया गया है। जबकि धन की प्राप्ति साध्य नहीं है अपितु साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।

2. आर्थिक मानव की कल्पना अनुचित : प्राचीन अर्थशास्त्रियों के अनुसार मनुष्य धन की प्रेरणा एवं अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर कार्य करता है। परन्तु वास्तव में ऐसा सोचना गलत है वास्तव में मनुष्य धन की प्रेरणा के अतिरिक्त मानवीय भावनाओं; जैसे-दया, प्रेम आदि से प्रेरित होकर भी कार्य करता है।

3. अर्थशास्त्र के क्षेत्र को संकुचित किया : प्राचीन अर्थशात्रियों की परिभाषाओं में धन में केवल भौतिक पदार्थों को ही शामिल किया है तथा सेवाओं (जैसे-डॉक्टर, इंजीनियर, वकील आदि) को धन के अन्तर्गत नहीं माना, जिसके कारण अर्थशास्त्र का क्षेत्र भी संकुचित हो गया।

प्रश्न 8. रॉबिन्स की दुर्लभता प्रधान परिभाषा की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: प्रो. रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया। उन्होंने तो धुन पर अधिक जोर दिया और मनुष्य के कल्याण पर बल्कि उन्होंने व्यक्ति की असीमित आवश्यकताओं का सीमित साधनों से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न किया। उन्होंने नवीन दृष्टिकोण से अर्थशास्त्र को परिभाषित किया।

रॉबिन्स के अनुसारअर्थशास्त्र वह विज्ञान है जिसमें साध्यों तथा सीमित और अनेक उपयोग वाले साधनों से। सम्बन्धित मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

रॉबिन्स की परिभाषा की व्याख्या : रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र की परिभाषा को नया रूप प्रदान किया। इस परिभाषा के निम्नलिखित चार महत्त्वपूर्ण बिन्दु हैं :

1. मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त एवं असीमित हैं।

2. आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य के पास साधन (समय एवं धन) सीमित हैं। मनुष्यों को ऐसी स्थिति में आवश्यकताओं के बीच चुनाव करना पड़ता है।

3. इन साधनों के वैकल्पिक प्रयोग हो सकते हैं। इसके कारण साधनों की सीमितता और अधिक बढ़ जाती है और मनुष्य को विभिन्न आवश्यकताओं के मध्य चुनाव करना पड़ता है। चुनाव की आर्थिक समस्या सदा हमारे साथ बनी रहती है।

4. आवश्यकताओं की तीव्रता में भी भिन्नता होती है अर्थात् मनुष्य की आवश्यकता की तीव्रता एक समान नहीं है। कुछ आवश्यकताएँ अधिक तीव्र होती है तथा कुछ कम तीव्र। आवश्यकताओं की तीव्रता में भिन्नता होने के कारण उनके बीच चुनाव करने में सहायता मिलती है। एक विवेकशील व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं की प्राथमिकता के क्रम में रखना पड़ता है।

इस विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि असीमित आवश्यकताओं तथा सीमित और उनके उपयोग वाले साधनों के बीच का स्वरूप चुनाव करने या निर्णय करने का होता है। रॉबिन्स ने इसे आर्थिक समस्या कहा ।

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