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बहुविकल्पीय प्रश्न
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
a. धन पर आवश्यकता से अधिक बल: धन सम्बन्धी परिभाषा में धन पर आवश्यकता से अधिक जोर दिया। गया है। धन को एक साध्ये मान लिया गया है जबकि धन की प्राप्ति साध्य नहीं साधन है।
b. आर्थिक मानव की कल्पना अनुचित : प्राचीन अर्थशास्त्रियों के अनुसार मनुष्य धन की प्रेरणा एवं अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर कार्य करता है। परन्तु वास्तव में ऐसा सोचना गलत है वास्तव में मनुष्य धन की प्रेरणा के अतिरिक्त मानवीय भावनाओं; जैसे-दया, प्रेम आदि से प्रेरित होकर भी कार्य करता है।
a. मार्शल ने अपनी परिभाषा में केन्द्र बिन्दु अधिकतम कल्याण” माना है जबकि रॉबिन्स ने मितव्ययिता को परिभाषा में प्रमुखता दी है। परन्तु मानव की ये दोनों प्रवृत्तियाँ एक ही अन्तिम उद्देश्य अधिकतम सन्तुष्टि की ओर ले जाती है।
b. मार्शल की परिभाषा में ‘धन’ शब्द का प्रयोग हुआ है जबकि रॉबिन्स ने ‘सीमित साधनों का प्रयोग किया है। एक सीमा तक ये दोनों शब्द एक ही अर्थ में प्रयोग होते हैं क्योंकि सीमितता धन का एक मुख्य गुण है।
a. परिभाषा के स्वरूप में अन्तर : मार्शल की परिभाषा वर्गकारिणी है जबकि रॉबिन्स की परिभाषा विश्लेषणात्मक है।
b. विषय सामग्री में अन्तर : मार्शल ने अपनी परिभाषा में धन से सम्बन्धित उन क्रियाओं का अध्ययन शामिल किया और धन व्यय करने से सम्बन्धित है जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र में मानव व्यवहार के चुनाव करने सम्बन्धी दृष्टिकोण का अध्ययन किया। :
c. अर्थशास्त्र का स्वरूप : प्रो. मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान माना है।
a. मानव व्यवहार के चुनाव तथा साधनों की सीमितता को अधिक महत्त्व दिया है।
b. वस्तु विनिमय प्रणाली के अन्तर्गत साधनों के आवंटन की समस्या को महत्त्वपूर्ण माना है।
c. रिभाषाओं में मार्शल तथा रॉबिन्स दोनों की परिभाषाओं का समावेश किया गया है।
d. विकास की परिभाषा को गत्यात्मक दृष्टिकोण है।
a. धन पर आवश्यकता से अधिक बल-धन सम्बन्धी परिभाषाओं में धन पर आवश्यकता से अधिक जोर दिया गया है। धन को एक साध्य मान लिया गया है, जबकि धन की प्राप्ति साध्य नहीं अपितु साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
b. आर्थिक मानव की कल्पना अनुचित प्राचीन अर्थशास्त्रियों के अनुसार मनुष्य धन की प्रेरणा एवं अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर कार्य करता है। परन्तु वास्तव में ऐसा सोचना गलत है वास्तव में मनुष्य धन की प्रेरणा के अतिरिक्त मानवीय भावनाओं आदि से प्रेरित होकर भी कार्य करता है।
a. धन की तुलना में मनुष्य का महत्त्व अधिक-मार्शल ने धन के स्थान पर मनुष्य के कल्याण पर अधिक बल दिया। उनके अनुसार धन मनुष्य के लिए है, न कि मनुष्य धन के लिए अर्थात् मनुष्य का कल्याण सबसे महत्त्वपूर्ण है।
b. सामाजिक, सामान्य एवं वास्तविक मनुष्य के रूप में अध्ययन-अर्थशास्त्र में सामाजिक, सामान्य तथा वास्तविक मनुष्य द्वारा की जाने वाली आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
a. साधनों का भौतिक और अभौतिक वर्गीकरण अनुचित : मार्शल ने अर्थशास्त्र के अध्ययन की विषय वस्तु को केवल भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उसके उपयोग तक सीमित रखा परन्तु वास्तव में साधन अभौतिक भी होते हैं; जैसे-डॉक्टर, इंजीनियर, मजदूर, वकील आदि भी अपनी सेवाओं के द्वारा साधन प्राप्त करते हैं।
b. अर्थशास्त्र केवल सामाजिक विज्ञान नहीं है : अर्थशास्त्र को केवल सामाजिक विज्ञान मानना अनुचित है क्योंकि आर्थिक नियम ऐसे होते हैं जो समाज में रहने वाले मनुष्यों पर उसी प्रकार लागू होते हैं। जिस प्रकार समाज के बाहर रहने वाले व्यक्तियों पर। अतः अर्थशास्त्र मानव विज्ञान है।
a. बहुत सी क्रियाएँ जैसे मादक पदार्थों का उत्पादन तथा इनका उपभोग मानव कल्याण के हित में नहीं है, फिर भी अर्थशास्त्र में इनका अध्ययन किया जाता है।
b. कल्याण का प्रमाणिक माप नहीं है। मुद्रा को भी कल्याण का प्रमाणिक माप नहीं माना जा सकता क्योंकि कल्याण मनोवैज्ञानिक एवं भावात्मक अभिव्यक्ति है।
a. मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त एवं असीमित हैं।
b. आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य के पास साधन सीमित हैं। मनुष्यों को ऐसी स्थिति में आवश्यकताओं के बीच चुनाव करना पड़ता है।
c. इन साधनों के वैकल्पिक प्रयोग हो सकते हैं। इसके कारण साधनों की सीमितता और अधिक बढ़ जाती है।
d. आवश्यकताओं की तीव्रता में भी भिन्नता होती है-मनुष्य की आवश्यकता की तीव्रता एक समान नहीं होती हैं। कुछ आवश्यकताएँ अधिक तीव्र हैं तथा कुछ कम तीव्र। आवश्यकताओं की तीव्रता में भिन्नता होने के कारण उनके बीच चुनाव करने में सहायता मिलती है।
a. अर्थशास्त्र के क्षेत्र को आवश्यकता से अधिक व्यापक बनाया-प्रो. रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान बताते हुए सभी प्रकार की मानवीय क्रियाओं के चयनात्मक पहलू को अर्थशास्त्र की विषय वस्तु माना है। इससे अर्थशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र व्यापक हो गया है।
b. अर्थशास्त्र केवल मूल्य निर्धारण नहीं-रॉबिन्स की परिभाषा में केवल यह अध्ययन किया है कि विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में साधनों का वितरण किस प्रकार होता है और इसके परिणामस्वरूप साधनों के मूल्य या कीमत किस प्रकार निर्धारित होती है।
a. मार्शल तथा रॉबिन्स दोनों ने अपनी परिभाषाओं में अर्थशास्त्र को एक विज्ञान माना है।
b. मार्शल तथा रॉबिन्स दोनों अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र के अध्ययन में मानव को प्रधान मानकर साधनों को गौण स्थान दिया है।
c. मार्शल ने अपनी परिभाषा में केन्द्र बिन्दु “अधिकतम कल्याण’ माना है जबकि रॉबिन्स ने मितव्ययिता को परिभाषा में प्रमुखता दी है। परन्तु मानव की ये दोनों प्रवृत्तियाँ एक ही अन्तिम उद्देश्य अधिकतम सन्तुष्टि की ओर ले जाती हैं।
d. मार्शल की परिभाषा में “धन” शब्द का प्रयोग हुआ है। जबकि रॉबिन्स ने सीमित साधनों का प्रयोग तक ये दोनों शब्द एक ही अर्थ में प्रयोग होते हैं क्योंकि सीमितता धन का एक मुख्य गुण है।
a. परिभाषा के स्वरूप में अन्तर : मार्शल की परिभाषा वर्गकारिणी है जबकि रॉबिन्स की परिभाषा विश्लेषणात्मक है।
b.,विषय सामग्री में अन्तर : मार्शल ने अपनी परिभाषा में धन से सम्बन्धित उन क्रियाओं का अध्ययन शामिल किया जो धन कमाने और धन व्यय करने से सम्बन्धित है। जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र में मानव व्यवहार के चुनाव करने सम्बन्धी दृष्टिकोण का अध्ययन किया।
c. अर्थशास्त्र का स्वरूप : प्रो. मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान माना है।
d. साधनों के वर्गीकरण में अन्तर : मार्शल ने केवल भौतिक साधनों को ही अर्थशास्त्र के अध्ययन में शामिल किया है जबकि रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में उन सभी भौतिक-अभौतिक साधनों को अर्थशास्त्र में सम्मिलित किया है जिनकी दुर्लभता है।
a. इच्छा रहित मानव की कल्पना भी मुश्किल : आज के इस भौतिकवादी युग में साधारण से साधारण मनुष्य भी अधिकतम सुख प्राप्त करने के लिए आवश्यकताओं में कमी करने की नहीं सोचता है। अतः इच्छाओं में कमी नहीं की जा सकती है।
b. अधिकतम सुख की धारणा सही नहीं : आलोचक प्रो. मेहता की धारणा को विरोधाभासी मानते हैं। उनके अनुसार प्रो. मेहता एक ओर तो आवश्यकताओं में कमी करने की बात करते हैं तथा दूसरी ओर अधिकतम सुख की धारणा को व्यक्त करते हैं।
a.mआर्थिक संसाधनों का सीमित होना : मानव के पास उपलब्ध आर्थिक संसाधन जैसे आदि की मात्रा सीमित है। अतः ये मानव की असीमित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
b. असीमित आवश्यकताएँ : मानव की आवश्यकताएँ असीमित हैं। यदि एक आवश्यकता पूरी हो जाती है तो दूसरी उत्पन्न हो जाती है। जैसे-जिसके पास पंखा नहीं है, उसे पंखा की आवश्यकता है लेकिन जिसके पास पंखा होता है उसे कूलर की आवश्यकता होती है तथा जिसके पास कूल होता है उसे A.C. की आवश्यकता होती है। इस तरह आवश्यकताएँ असीमित हैं।
a. मार्शल तथा रॉबिन्स दोनों ने ही अर्थशास्त्र के अध्ययन में मानव को प्रधान माना है तथा साधनों को गौण स्थान दिया है।
b. मार्शल द्वारा अपनी परिभाषा में “अधिकतम कल्याण” को केन्द्र बिन्दु माना गया है जबकि रॉबिन्स ने ‘‘मितव्ययिता” ख मान्य है। परन्तु मानव की ये दोनों ही प्रवृत्तियाँ “अधिकतम सन्तुष्टि” के एक ही उद्देश्य से प्रेरित हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
a. साधनों का भौतिक और अभौतिक वर्गीकरण अनुचित : मार्शल ने अर्थशास्त्र के अध्ययन की विषय वस्तु को केवल भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उसके उपभोग तक ही सीमित रखा। परन्तु वास्तव में साधन अभौतिक (Non Material) भी होते हैं। जैसे-डॉक्टर, इंजीनियर, मजदूर, वकील आदि भी अपनी सेवाओं के द्वारा ही साधन प्राप्त करते हैं।
b. अर्थशास्त्र केवल सामाजिक विज्ञान नहीं : अर्थशास्त्र को केवल सामाजिक विज्ञान माननी अनुचित होगा क्योंकि आर्थिक नियम ऐसे हैं जो समाज में रहने वाले मनुष्यों पर भी उसी प्रकार लागू होते हैं जिस प्रकार समाज से बाहर रहने वाले व्यक्तियों पर। अत: अर्थशास्त्र मानव विज्ञान है।
c. अर्थशास्त्र का सम्बन्ध भौतिक कल्याण से स्थापित करना ठीक नहीं : रॉबिन्स के अनुसार “अर्थशास्त्र का सम्बन्ध चाहे किसी से भी हो, इतना निश्चित है कि इसका सम्बन्ध भौतिक कल्याण के कारणों से नहीं है।” रॉबिन्स ने कई आधारों पर
कल्याण सम्बन्धी धारणा को दोषपूर्ण माना :
1. बहुत-सी क्रियाएँ जैसे मादक पदार्थों का उत्पादन तथा इसका उपभोग मानव कल्याण के हित में नहीं है परन्तु फिर भी अर्थशास्त्र में इनका अध्ययन किया जाता है।
2. कल्याण का प्रामाणिक माप नहीं है। मुद्रा को भी कल्याण की प्रामाणिक माप नहीं माना जा सकता क्योंकि कल्याण मनोवैज्ञानिक एवं भावात्मक अभिव्यक्ति है।
d. अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति तटस्थ है : अर्थशास्त्र का जब कल्याण के साथ सम्बन्ध स्थापित किया जाता है तो इसका अर्थ यह है कि अर्थशास्त्रियों को आर्थिक कार्यों की अच्छाई तथा बुराई के सम्बन्ध में निर्णय देना होता है। जो आदर्शात्मक विज्ञान से सम्बन्धित हो जाता है। रॉबिन्स अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान मानते हैं जो अच्छाई एवं बुराई के सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं देता, बल्कि जो स्थिति जैसी है उसका वैसा ही अध्ययन करता है।
e. अर्थशास्त्र का क्षेत्र संकुचित है : मार्शल द्वारा अर्थशास्त्र में अभौतिक साधनों की प्राप्ति एवं उपभोग, असामाजिक, असाधारण तथा अनार्थिक क्रियाओं के अध्ययन की उपेक्षा करना ही उनकी आलोचना का कारण बना।
रॉबिन्स द्वारा दी गयी परिभाषा को भी अर्थशास्त्री त्रुटि रहित नहीं मानते हैं। इस परिभाषा की मुख्य आलोचनाएँ अग्रलिखित हैं :
1. अर्थशास्त्र के क्षेत्र को आवश्यकता से अधिक व्यापक बनाया : प्रो. रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान बताते हुए। सभी प्रकार की मानवीय क्रियाओं के चयनात्मक पहलू को अर्थशास्त्र की विषय वस्तु माना है। इससे अर्थशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र व्यापक हो गया है और आर्थिक सिद्धान्तों को प्रतिपादन, समस्याओं का विश्लेषण एवं विवेचन आदि जटिल हो गए।
3. अर्थशास्त्र केवल मूल्य निर्धारण नहीं : रॉबिन्स की परिभाषा में केवल यह अध्ययन किया है कि विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में साधनों का वितरण किस प्रकार होता है और इसके परिणामस्वरूप साधनों के मूल्य या कीमत किस प्रकार निर्धारित होता है। परन्तु अर्थशास्त्र का क्षेत्र साधनों के आवंटन तथा मूल्य निर्धारण से भी कहीं विस्तृत है।
4. उद्देश्यों की प्रति तटस्थता : रॉबिन्स ने लिखा है, “अर्थशास्त्र का सम्बन्ध केवल साधनों से है उद्देश्यों का निर्धारण, जिनके लिए सीमित साधनों का प्रयोग किया जाता है, किस प्रकार से होगा? यदि हमें उद्देश्यों की सही जानकारी नहीं है। तो सीमित साधनों का अधिकतम उपयोग नहीं कर सकते हैं।
5. अर्थशास्त्र केवल वास्तविक विज्ञान नहीं है, कला भी है : अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान मान लेने पर यह केवल सिद्धान्त निर्माण करने वाला शास्त्र मात्र रह जाएगा। आलोचकों का मानना है कि अर्थशास्त्र का कर्तव्य केवल उपकरणों का ही निर्माण करना नहीं है अपितु उसे उपकरणों के प्रयोग की विधि पर भी प्रकाश डालना चाहिए।
6. परिभाषा स्थैतिक है : प्रो.रॉबिन्स साध्यों को दिए हुए या स्थिर मानकर चलते हैं और उन दिए हुए साध्यों का साधनों से समन्वय बिठाया जाता है जबकि व्यावहारिक जीवन में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है।
7. आर्थिक समस्या का कारण : रॉबिन्स का यह कथन सही नहीं है कि आर्थिक समस्या दुर्लभता के कारण ही जन्म लेती है। आलोचकों के अनुसार, आर्थिक समस्या सीमितता या दुर्लभता के कारण ही नहीं बल्कि कभी-कभी विपुलता के कारण भी जन्म लेती है।
a. साधनों का भौतिक और भौतिक वर्गीकरण अनुचित : मार्शल ने अर्थशास्त्र के अध्ययन की विषय वस्तु को केवल भौतिक साधनों की प्राप्ति तथा उसके उपभोग तक ही सीमित रखा। परन्तु वास्तव में साधन अभौतिक (Non Material) भी होते हैं। जैसे-डॉक्टर, इंजीनियर, मजदूर, वकील आदि भी अपनी सेवाओं के द्वारा ही साधन प्राप्त करते हैं।
b. अर्थशास्त्र केवल सामाजिक विज्ञान नहीं : अर्थशास्त्र को केवल सामाजिक विज्ञान मानना अनुचित होगा क्योंकि आर्थिक नियम ऐसे हैं, जो समाज में रहने वाले मनुष्यों पर भी उसी प्रकार लागू होते हैं जिस प्रकार समाज से बाहर रहने वाले व्यक्तियों पर। अतः अर्थशास्त्र मानव विज्ञान है।
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध भौतिक कल्याण से स्थापित करना ठीक नहीं : रॉबिन्स के अनुसार “अर्थशास्त्र का सम्बन्ध चाहे किसी से भी हो, इतना निश्चित है कि इसकी सम्बन्ध भौतिक कल्याण के कारणों से नहीं है।” रॉबिन्स ने कई आधारों पर कल्याण सम्बन्धी धारणा को दोषपूर्ण माना :
a. बहुत सी क्रियाएँ जैसे मादक पदार्थों का उत्पादन तथा इसका उपभोग मानव कल्याण के हित में नहीं है परन्तु फिर भी अर्थशास्त्र में इनका अध्ययन किया जाता है।
c. अर्थशास्त्र उद्देश्यों के प्रति तटस्थ है : अर्थशास्त्र का जब कल्याण के साथ सम्बन्ध स्थापित किया जाता है तो इसका अर्थ यह है कि अर्थशास्त्रियों को आर्थिक कार्यों की अच्छाई तथा बुराई के सम्बन्ध में निर्णय देना होता है जो आदर्शाक विज्ञान से सम्बन्धित हो जाता है। रॉबिन्स अर्थशास्त्र को एक वास्तविक विज्ञान मानते हैं जो अच्छाई एवं बुराई के सम्बन्ध में कोई निर्णय नहीं देता, बल्कि जो स्थिति जैसी है उसका वैसी ही अध्ययन करता है।
d. अर्थशास्त्र का क्षेत्र संकुचित है : मार्शल द्वारा अर्थशास्त्र में अभौतिक साधनों की प्राप्ति एवं उपभोग, असामाजिक, असाधारण तथा अनार्थिक क्रियाओं के अध्ययन की उपेक्षा करना ही इनकी आलोचना का कारण बना।
1. मार्शल तथा रॉबिन्स दोनों ने अपनी परिभाषाओं में अर्थशास्त्र को विज्ञान माना है।
2. मार्शल तथा रॉबिन्स दोनों अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र के अध्ययन में मानव को प्रधान मानकर साधनों को गौण स्थान दिया है।
3. मार्शल ने अपनी परिभाषा में केन्द्र बिन्दु अधिकतम कल्याण माना है जबकि रॉबिन्स ने मितव्ययिता को परिभाषा में प्रमुखता दी है। परन्तु मानव की ये दोनों प्रवृत्तियाँ एक ही अन्तिम उद्देश्य अधिक़तम सन्तुष्टि की ओर ले जाती हैं।
4. मार्शल की परिभाषा में ‘धन’ शब्द का प्रयोग हुआ है जबकि रॉबिन्स ने सीमित साधनों शब्द का प्रयोग किया है। एक सीमा तक ये दोनों शब्द एक ही अर्थ में प्रयोग होते हैं क्योंकि सीमितता धन का एक मुख्य गुण है।
5. प्रो. रॉबिन्स ने कहा कि सीमित साधनों का प्रयोग किफायत से होना चाहिए ताकि अर्थव्यवस्था में अधिकतम उत्पादन तथा उपभोक्ता को अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो सके।
मार्शल तथा रॉबिन्स की परिभाषाओं में असमानताएँ :
1. परिभाषा के स्वरूप में अन्तर : मार्शल की परिभाषा वर्गकारिणी है जबकि रॉबिन्स की परिभाषा विश्लेषणात्मक है। मार्शल ने मनुष्य की क्रियाओं यथा भौतिक तथा अभौतिक, आर्थिक-अनार्थिक, साधारण जीवन व्यवसाय सम्बन्धी क्रियाओं तथा असाधारण क्रियाओं के अध्ययन को अर्थशास्त्र की विषय वस्तु माना है।
2. विषय सामग्री में अन्तर : मार्शल ने अपनी परिभाषा में धन से सम्बन्धित उन क्रियाओं का अध्ययन शामिल किया है जो धन कमाने तथा धन व्यय करने से सम्बन्धित होती हैं। जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र में मानव व्यवहार के चुनाव करने सम्बन्धी दृष्टिकोण का अध्ययन किया है।
3. अर्थशास्त्र का स्वरूप : प्रो. मार्शल के अनुसार अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है। इसमें केवल उन मनुष्यों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, जो समाज में रहते हैं जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान माना है। जिसमें चुनाव करने के पहलू को अध्ययन किया जाता है।
4. साधनों के वर्गीकरण में अन्तर : मार्शल ने केवल भौतिक साधनों को ही अर्थशास्त्र के अध्ययन में शामिल किया है। जबकि रॉबिन्स ने अपनी परिभाषा में उन सभी भौतिक-अभौतिक साधनों को सम्मिलित किया है जिनकी दुर्लभता है।
5. अर्थशास्त्र की प्रकृति : मार्शल ने अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान के साथ आदर्शात्मक विज्ञान भी माना है तथा अर्थशास्त्र में कला को भी शामिल किया गया है जबकि रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान माना है।
6. उद्देश्य में असमानता : प्रो.मार्शल ने स्पष्ट किया है कि अर्थशास्त्र का उददेश्य मानव कल्याण में वृद्धि करना है जबकि अर्थशास्त्र उददेश्यों के प्रति तटस्थ है। अर्थशास्त्र का मनुष्य के कल्याण से कोई सम्बन्ध नहीं होता है।
इनकी परिभाषा में मार्शल और रॉबिन्स की परिभाषाओं का समावेश है। के.जी. सेठ ने भी सेम्युलसन की तरह साधनों पर ही अधिक जोर दिया है। इन्होंने न तो धन, न ही आर्थिक कल्याण पर जोर दिया। इन्होंने केवल साधनों के विकास पर ही जोर दिया। विकास आधारित परिभाषाएँ देने वाले अर्थशास्त्रियों ने केवल साधनों के विकास पर ही जोर दिया। इन्होंने मानव कल्याण, भौतिक कल्याण, आर्थिक कल्याण आदि से कोई सम्बन्ध नहीं रखा।।
विकास आधारित परिभाषाओं के सन्दर्भ में भारतीय दृष्टिकोण : भारतीय दर्शन, सभ्यता एवं संस्कृति पर आधारित प्रो. मेहता की परिभाषा पाश्चात् दृष्टिकोण से सर्वथा भिन्न है। पश्चिम में आधुनिक विकासवादी अर्थशास्त्री का मत अधिकतम आवश्यकताओं की संतुष्टि में निहित है जबकि भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार अधिकतम संतुष्टि की प्राप्ति आवश्यकताओं की संतुष्टि में नहीं वरन् आवश्यकताओं की कमी करने या उनकी समाप्ति में है। अर्थात् भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार आवश्यकताएँ असीमित होने के कारण व कभी पूर्ण नहीं हो सकती हैं। अतः उन्हें समाप्त करके या उनमें कमी लाकर ही अपने संतुष्टि के स्तर को बढ़ाया जा सकता है।
प्रो. रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान बताया। अर्थशास्त्र में मनुष्य की इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए साधनों का उचित प्रयोग किया जाता है। धन का विज्ञान अर्थशास्त्र की शुरुआती विचारधारा थी लेकिन समय के परिवर्तन के साथ-साथ अर्थशास्त्र की परिभाषा भी बदलती गई। अब उसे मानव विज्ञान माना जाने लगा। आवश्यकता की पूर्ति के लिए मनुष्य के पास साधन (समय एवं धन) सीमित होते हैं। मनुष्यों को ऐसी स्थिति में आवश्यकताओं के बीच चुनाव करना पड़ता है जो कि मानव के बारे में अध्ययन करने से पता चलता है। मानव की असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सीमित साधनों के साथ समन्वय करने के बारे में अर्थशास्त्र ही बतलाता है। अतः समय के परिवर्तन के साथ-साथ अर्थशास्त्र धन के विज्ञान की जगह मानव विज्ञान का अर्थशास्त्र बन गया।
a. अर्थशास्त्र के क्षेत्र को आवश्यकता से अधिक व्यापक बनाया : प्रो० रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को मानव विज्ञान बताते हुए सभी प्रकार की मानवीय क्रियाओं के चयनात्मक पहलू को अर्थशास्त्र की विषय वस्तु माना है। इससे अर्थशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र व्यापक हो गया है और आर्थिक सिद्धान्तों का प्रतिपादन, समस्याओं का विश्लेषण एवं विवेचन आदि जटिल हो गए।
c. अर्थशास्त्र केवल मूल्य निर्धारण नहीं : रॉबिन्स की परिभाषा में केवल यह अध्ययन किया है कि विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन में साधनों का वितरण किस प्रकार होता है और इसके परिणामस्वरूप साधनों के मूल्य अथवा कीमत किस प्रकार निर्धारित होती है परन्तु अर्थशास्त्र का क्षेत्र साधनों के आवंटन तथा मूल्य निर्धारण से भी कहीं विस्तृत है।”
d. उद्देश्यों के प्रति तटस्थता : रॉबिन्स ने लिखा है “अर्थशास्त्र का सम्बन्ध केवल साधनों से है उद्देश्यों का निर्धारण, जिनके लिए सीमित साधनों का प्रयोग किया जाता है, किस प्रकार से होगा? यदि हमें उद्देश्यों की सही जानकारी नहीं है तो सीमित साधनों को अधिकतम उपयोग नहीं कर सकते। अर्थशास्त्र यदि उद्देश्यों के प्रति तटस्थ रहता है तो वर्तमान युग में आर्थिक योजनाओं का महत्त्व नहीं रह जाता।
e. अर्थशास्त्र केवल वास्तविक विज्ञान नहीं है कला भी है : अर्थशास्त्र को वास्तविक विज्ञान मान लेने पर यह केवल सिद्धान्त निर्माण करने वाला शास्त्र मात्र रह जाएगा, आलोचकों का मानना है कि अर्थशास्त्र का कर्तव्य केवल उपकरणों का ही निर्माण करना नहीं है अपितु उपकरणों के प्रयोग की विधि पर भी प्रकाश डालना चाहिए।
f. परिभाषा स्थैतिक है : प्रो. रॉबिन्स साध्यों को दिए हुए या स्थिर मानकर चलते हैं और उन दिए हुए साध्यों का साधनों से समन्वय बिठाया जाता है। जबकि व्यावसायिक जीवन में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है।
g. आर्थिक समस्या का कारण : आर्थिक समस्या दुर्लभता के कारण ही जन्म लेती है। राबिन्स का यह कहना सही नहीं है। क्योकि आर्थिक समस्या सीमितता या दुर्लभता के कारण ही नहीं बल्कि कभी-कभी विपलुता के कारण भी जन्म लेती है।
संस्थापनवादी सभी अर्थशास्त्री यह मानते थे कि मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं का अन्तिम उद्देश्य धन अर्जित करना है। धन के अध्ययन पर अधिक बल देने के कारण अर्थव्यवस्था के विषय में कई भ्रम पैदा करने वाले विचार उत्पन्न हो गए। इससे यह समझा जाने लगा कि अर्थशास्त्र तो मनुष्य को धन या मुद्रा से मोह करने वाला बताता है। परन्तु 19 वीं शताब्दी के प्रराम्भ में ही कुछ अर्थशास्त्रियों ने ऐसा कहना प्रारम्भ कर दिया कि धन तो मानव जीवन के लिए साधन मात्र है इसलिए उनकी उत्पत्ति के विश्लेषण मात्र से अर्थशास्त्र का सम्बन्ध जोड़ना अनुचित है। इस विचार की आलोचना हुई।
अर्थशास्त्र की धन केन्द्रित परिभाषाओं की आलोचनाएँ :
1. धन पर आवश्यकता से अधिक बल : इन परिभाषाओं में धन पर आवश्यकता से अधिक बल दिया गया है। धन को एक साध्य मान लिया गया है। जबकि धन की प्राप्ति साध्य नहीं है अपितु साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
2. आर्थिक मानव की कल्पना अनुचित : प्राचीन अर्थशास्त्रियों के अनुसार मनुष्य धन की प्रेरणा एवं अपने स्वार्थ से प्रेरित होकर कार्य करता है। परन्तु वास्तव में ऐसा सोचना गलत है वास्तव में मनुष्य धन की प्रेरणा के अतिरिक्त मानवीय भावनाओं; जैसे-दया, प्रेम आदि से प्रेरित होकर भी कार्य करता है।
3. अर्थशास्त्र के क्षेत्र को संकुचित किया : प्राचीन अर्थशात्रियों की परिभाषाओं में धन में केवल भौतिक पदार्थों को ही शामिल किया है तथा सेवाओं (जैसे-डॉक्टर, इंजीनियर, वकील आदि) को धन के अन्तर्गत नहीं माना, जिसके कारण अर्थशास्त्र का क्षेत्र भी संकुचित हो गया।
रॉबिन्स के अनुसार “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जिसमें साध्यों तथा सीमित और अनेक उपयोग वाले साधनों से। सम्बन्धित मानव व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।”
रॉबिन्स की परिभाषा की व्याख्या : रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र की परिभाषा को नया रूप प्रदान किया। इस परिभाषा के निम्नलिखित चार महत्त्वपूर्ण बिन्दु हैं :
1. मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त एवं असीमित हैं।
2. आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य के पास साधन (समय एवं धन) सीमित हैं। मनुष्यों को ऐसी स्थिति में आवश्यकताओं के बीच चुनाव करना पड़ता है।
3. इन साधनों के वैकल्पिक प्रयोग हो सकते हैं। इसके कारण साधनों की सीमितता और अधिक बढ़ जाती है और मनुष्य को विभिन्न आवश्यकताओं के मध्य चुनाव करना पड़ता है। चुनाव की आर्थिक समस्या सदा हमारे साथ बनी रहती है।
4. आवश्यकताओं की तीव्रता में भी भिन्नता होती है अर्थात् मनुष्य की आवश्यकता की तीव्रता एक समान नहीं है। कुछ आवश्यकताएँ अधिक तीव्र होती है तथा कुछ कम तीव्र। आवश्यकताओं की तीव्रता में भिन्नता होने के कारण उनके बीच चुनाव करने में सहायता मिलती है। एक विवेकशील व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं की प्राथमिकता के क्रम में रखना पड़ता है।
इस विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि असीमित आवश्यकताओं तथा सीमित और उनके उपयोग वाले साधनों के बीच का स्वरूप चुनाव करने या निर्णय करने का होता है। रॉबिन्स ने इसे आर्थिक समस्या कहा ।