JPSC_Poverty_and_Unemployment (गरीबी और बेरोजगारी)

Poverty and Unemployment (गरीबी और बेरोजगारी)

(मापन और प्रवृत्तियाँ, बी.पी.एल. परिवारों की पहचान, एच.पी.आई., बहुआयामी भारतीय गरीबी सूचकांक)

भारतवर्ष में गरीबी की समस्या का विश्लेषण करने से पूर्व अर्थव्यवस्था की संरचना एवं स्वरूप को समझना अति आवश्यक है। प्रारम्भ में जब अंग्रेजों ने भारत में आधिपत्य स्थापित किया तो उन्होंने देश की सम्पत्ति तथा संसाधनों का पूरी तरह से विदोहन का प्रयास किया जो उनके निहित स्वार्थों के पक्ष में था। उन्होंने भारतीय शासकों, जमीदारों एवं सामान्य जनता तथा व्यापारियों से जबरदस्ती वसूली की वहीं दूसरी ओर भारतीय कारीगरों, नील की खेती करने वाले किसानों और व्यापारियों का शोषण भी किया तथा भारत में उपलब्ध अतिरेक को ब्रिटेन ले जाकर अपने देश की समृद्धि हासिल की।

भारत में ब्रिटिश राज्य के पूर्णतया स्थापित हो जाने के बाद प्रचलित प्रत्यक्ष लूट की प्रणाली के स्थान पर ब्रिटिश साम्राज्यवादी तथा उपनिवेशवादी शोषण की प्रणाली उभर कर सामने आई।

1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तो उसे विरासत में मिली एक पंगु अर्थव्यवस्था जिसमें गरीबी की जड़ें बरगद के वृक्ष के समान पनप चुकी थी। सरकार के सामने समस्या थी कि कैसे अर्थव्यवस्था को गरीबी के जाल से निकाला जाए तथा देश में तीव्र तथा आत्मनिर्भर आर्थिक विकास लाया जाए भारत में आर्थिक विकास की इन समस्याओं को हल करने के लिए बाजार व्यवस्था के साथ नियोजन काल में मिश्रित आर्थिक प्रणाली को चुना। और 1951 से पहली पंचवर्षीय योजना का प्रारम्भ किया। अब तक दस पंचवर्षीय योजना पूर्ण हो चुकी हैं और ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना चल रही है। एक लम्बी अवधि के अन्तराल के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन आए।

जब समाज का एक भाग न्यूनतम जीवन स्तर से भी नीचे जीवनयापन के लिए विवश हो तो यह स्थिति गरीबी की स्थिति कहलाती है। विश्व के सभी देशों में गरीबी को परिभाषित करने का प्रयास किया गया है। परन्तु इन सबका आधार न्यूनतम या अच्छे जीवन स्तर की कल्पना है। यद्यपि गरीबी को कई दृष्टिकोण से परिभाषित करने का प्रयास किया जाता है। एक दृष्टिकोण में गरीबी को आधारित सुविधाओं यथा भोजन, आवास, शिक्षा तथा चिकित्सा से सम्बद्ध कर परिभाषित करने का प्रयास किया गया है। आय के स्तर पर विचार किए बिना यदि किसी परिवार में इन आधारिक सुविधाओं की कमी रहती है तो उस परिवार को गरीब माना जाता है। इस दृष्टिकोण का सबसे बड़ा दोष यह है, कि इसमें वे भी परिवार गरीबी की सूची में सम्मिलित कर लिए जाते हैं जिनकी आय अधिक है परन्तु अपनी बुनियादी आवश्यकताओं पर व्यय नहीं करते हैं। और दूसरी ओर वे परिवार सम्मिलित नहीं होते हैं जिनकी आय तो नगण्य है परन्तु वे ऋण, पूर्व बचत को कम करके रिश्तेदारों और मित्रों से सहायता लेकर अपनी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। एक दूसरे दृष्टिकोण में एक परिवार की न्यूनतम आवश्यकताओं का आकलन तथा फिर एक आधार वर्ष की कीमत के आधार पर अपेक्षित आय में रूपांतरित कर दिया जाता है। भारत में इसी दृष्टिकोण के आधार पर गरीबी को परिभाषित किया जाता है। विभिन्न विद्वानों ने गरीबी को निम्न प्रकार परिभाषित किया है-

एस. महेन्द्र देव ने गरीबी को बहुआयामी तथ्य के संदर्भ में लिया है। इनके अनुसार गरीबी केवल आय व उपभोग के स्तर से ही सम्बन्धित नहीं वरन् स्वास्थ्य व शिक्षा का भी गरीबी की अवधारणा में विचार करना चाहिए।

प्रो. अमर्त्य सेन के अनुसार, गरीबी निरपेक्ष वंचित की तुलना में सापेक्षिक अभाव को बताती है। सेन का मानना है कि सामान्यतः भुखमरी गरीबी को ही दर्शाती है परन्तु यह आवश्यक नहीं कि व्यापक रूप में गरीबी होने पर भुखमरी भी गम्भीर अवस्था में हो।

बाईसब्रान्ड के अनुसार गरीबी मुख्यतः अपर्याप्त भोजन, कपड़ा और रहने की समस्या से सम्बन्धित है।

इस प्रकार गरीबी की धारणा एक बहुआयामी तथ्य है। यह केवल आय व उपभोग स्तर से ही सम्बन्धित नहीं वरन् स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास व उचित रहन-सहन के स्तर से वंचित रहने की स्थिति से भी सम्बन्धित है।

गरीबी की माप

गरीबी की माप के लिए सामान्यत: दो प्रतिमानों का प्रयोग किया जाता है :

सापेक्षित प्रतिमान : गरीबी के सापेक्षित माप के अन्तर्गत देश की जनसंख्या की सम्पत्ति उपभोग अथवा आय स्तर के आधार पर विभिन्न क्रमिक वर्गों में विभक्त किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त वर्गों को सम्पत्ति, आय, उपभोग के बढ़ते या घटते हुए स्तरों के आधार पर क्रमबद्ध किया जाता है। तत्पश्चात उच्चतम 5 प्रतिशत या 10 प्रतिशत निवासियों के अंश से की जाती है। सापेक्षित प्रतिमान के आधार पर प्राप्त जानकारी गरीबी की अपेक्षा आय, सम्पत्ति तथा उपभोग के वितरण में व्याप्त विषमता का बेहतर चित्रण करती है। इसकी सीमा यह है कि इसके द्वारा गरीबी की माप करने पर विकसित देशों में भी जनसंख्या का एक बड़ा भाग गरीबी की श्रेणी में आएगा। यद्यपि उन देशों के गरीबों के रहन-सहन का स्तर विकासशील देशों के गरीबों की तुलना में अधिक बेहतर होगा। वस्तुत: यह प्रणाली गरीबी की वास्तविक माप का चित्रण नहीं करके आर्थिक विषमता का चित्रण करती है। यही कारण है कि भारत में गरीबी की माप इस विधि से नहीं की जाती है।

निरपेक्ष प्रतिमान : गरीबी माप की इस विधि के अन्तर्गत गरीबी की माप के लिए देश में विद्यमान एक न्यूनतम उपभोग स्तर को जीवन यापन की अनिवार्य आवश्यकताओं के आधार पर निर्धारित किया जाता है। न्यूनतम उपभोग स्तर से कम उपभोग करने वाले व्यक्ति को गरीबों की श्रेणी में रखा जाता है। भारत में इस न्यूनतम उपभोग स्तर को गरीबी रेखा की संज्ञा दी गई है। गरीबी रेखा के निर्धारण के लिए जीवनयापन हेतु अनिवार्य आवश्यक वस्तुओं की न्यूनतम मात्रा को पोषकता की न्यूनतम मात्रा के आधार पर ज्ञात किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त भौतिक मात्राओं की कीमत से गुणा करके मुद्रा के रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है। प्राप्त मौद्रिक मान प्रति व्यक्ति न्यूनतम उपभोग व्यय को प्रदर्शित करता है। यही न्यूनतम उपभोग व्यय गरीबी रेखा को व्यक्त करता है। ज्ञातव्य है कि गरीबी की माप के लिए निरपेक्ष प्रतिमान का प्रयोग सर्वप्रथम खाद्य एवं कृषि संगठन के प्रथम महानिदेशक ब्याएड आर. ने 1945 में किया तथा इसके आधार पर गरीबी की माप करने के लिए क्षुधा रेखा की संकल्पना का प्रतिपादन किया। यही संकल्पना विश्व के सभी देशों में किसी न किसी रूप में विद्यमान है।

भारत में गरीबी की माप करने के लिए निरपेक्ष प्रतिमान का ही प्रयोग किया जा रहा है। इसी प्रतिमान के आधार पर निर्धारित किए गए न्यूनतम उपभोग व्यय को गरीबी रेखा की संज्ञा दी जाती है। इस विधि के माध्यम से गरीबी की माप करने की विधि को हेड काउंट रेशियो भी कहा जाता है।

गरीबी का परिमाण

भारत में गरीबी के परिमाण का अनुमान लगाने के लिए समुचित एवं संतोषजनक आँकड़ों का अभाव है। इसका कारण यह है कि इस देश में आय के वितरण से सम्बन्धित आँकड़ों का प्रायः उचित संकलन नहीं हो पाता। परन्तु राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण के विभिन्न दौर में सर्वेक्षण के आधार पर जनसंख्या के विभिन्न वर्गों द्वारा निजी उपभोग पर व्यय के संतोषजनक आँकड़े उपलब्ध हुए हैं। परन्तु गरीबी की परिभाषा पर मतभेद और अध्ययन की रीतियों के अन्तर के कारण बर्धन, मिन्हास, पी.डी. ओझा तथा दांडेकर व नीलकंठ रथ आदि अर्थशास्त्री गरीबी की व्यापकता के सम्बन्ध में एक-दूसरे से भिन्न निष्कर्षों पर पहुँचे हैं।

पी.डी, ओझा के अनुमान : ओझा का मत है कि वे सभी व्यक्ति जिन्हें अपने आहार से प्रतिदिन 1,800 कैलोरी की प्राप्ति नहीं होती, गरीब माने जा सकते हैं। 1960-61 में प्रचलित मूल्यों के आधार पर भोजन के उपर्युक्त स्तर के अनुरूप प्रति व्यक्ति उपभोग 18-18 रु. प्रति माह होना चाहिए। इस आधार पर ओझा के अनुसार 1960 61 में 52 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या तथा इसी वर्ष शहरी क्षेत्रों में 56 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी के स्तर से नीचे थी।

दांडेकर एवं रथ के अनुमान : इन्होंने राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण द्वारा प्रदत्त आँकड़ों का प्रयोग किया है। वे 1968-69 में ग्रामीण क्षेत्रों में उन परिवारों को गरीबी के स्तर के नीचे मानते हैं जिनकी वार्षिक आय 324 रुपये से कम थी। इस श्रेणी में आने वाले लोग समस्त ग्नामीण जनसंख्या के 40 प्रतिशत थे। शहरी क्षेत्र के लिए उन्होंने गरीबी का स्तर प्रति व्यक्ति 486 रुपये वार्षिक आय पर निर्धारित किया। इस आधार पर 1968-69 में शहरी क्षेत्र में 50 प्रतिशत से अधिक व्यक्ति गरीबी के स्तर से नीचे थे।

पूर्ण बैठक में गरीबी रेखा की माप के लिए लकड़वाला फार्मूले को स्वीकार कर लिया गया। इस न्यूनतम उपभोग के लिए आवश्यक आय के विषय पर अर्थशास्त्री एकमत नहीं है। 7वें वित्त आयोग ने एक नई वर्द्धित गरीबी रेखा की अवधारणा की संकल्पना का प्रतिपादन किया। इस वर्द्धित गरीबी रेखा के निर्धारण में मासिक वैयक्तिक उपभोग व्यय में सरकार द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य परिवार नियोजन, समाज कल्याण आदि पर किए जाने वाले प्रति व्यक्ति मासिक व्यय की राशि भी जोड़ दी। इस प्रकार प्राप्त हुई धनराशि को बर्दित गरीबी रेखा का नाम दिया गया। चर्द्धित गरीबी रेखा पूरे देश के लिए समान नहीं होती बल्कि इसका निर्धारण प्रत्येक राज्य के लिए अलग-अलग होता है। इस कारण योजना आयोग द्वारा गरीबी रेखा निर्धारण के सम्बन्ध एक वैकल्पित परिभाषा स्वीकार की जिसमें आहार सम्बन्धी जरूरतों को ध्यान में रखा गया है। इस अवधारणा के अनुसार "जिनको ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 2400 कैलोरी प्रतिदिन तथा शहरी क्षेत्र में 2100 कैलोरी प्रतिदिन के हिसाब से पोषक शक्ति नहीं प्राप्त होती है उनको गरीबी रेखा से नीचे माना जाता है।"

जो व्यापक गरीबी की स्थिति को बताता है। जिसका विद्यमान होना चिन्ता का विषय है। इसी अवधारणा पर आधारित योजना आयोग राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण एवं विश्व बैंक द्वारा उपभोग व्यय से सम्बन्धित जो जानकारी उपलब्ध है उसके आधार पर शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी के अनुमापन का प्रयास किया गया।

भारत में गरीबी का अनुमान

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के विभिन्न दौर पर किए गए सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों पाया गया समग्र गरीबी का अनुपात 1993-94 से 2004-05 की अवधि के दौरान 36.0 प्रतिशत से कम होकर 27.5 प्रतिशत हो गया अर्थात् इसमें 8.50 प्रतिशत की कमी हुई जो इसके पूर्व की अवधि 1983-84 से 1993-94 के बीच भी 44.5 प्रतिशत से कम होकर 36.0 प्रतिशत अर्थात् इसमें भी 8.5 प्रतिशत की कमी हुई। शहरी क्षेत्र में यह अनुपात 1983-84 से 1993-94 की अवधि में 40.4 प्रतिशत से कम होकर 32.4 प्रतिशत अर्थात् 8.4 प्रतिशत की कमी जो वर्ष 1993-94 से 2004-05 में 32.4 प्रतिशत से कम होकर 25.7 प्रतिशत अर्थात् इसमें 6.7 प्रतिशत की कमी हुई। ग्रामीण क्षेत्र में यह अनुपात 1983-84 से 1993-94 की अवधि में 45.7 प्रतिशत से कम होकर 37.3 प्रतिशत अर्थात् 8.4 प्रतिशत की कमी हुई वर्ष 1993-94 से 2004-05 में 37.3 प्रतिशत से कम होकर 28.3 प्रतिशत अर्थात् 9.0 प्रतिशत की कमी हुई। इसके साथ, शहरों में 8.1 करोड़ गरीब रहते थे जो कुल गरीबों का 26.8 प्रतिशत और ग्राम क्षेत्रों में 22.1 करोड़ गरीब रहते थे जो कुल गरीबों का 73.2 प्रतिशत है देश में गरीबों की कुल संख्या 30.2 करोड़ थी।

डॉ. सी रंगराजन की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञों की समिति ने देश में निर्धनों की संख्या व निर्धनता अनुपात के सम्बन्ध में अपनी रिपोर्ट 1 जुलाई 2014 को प्रस्तुत की थी। समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का साराश अधोलिखित प्रकार से दिया गया है।

गरीबी निवारण के लिए नीतियाँ और कार्यक्रम

भारतीय संविधान और पंचवर्षीय योजनाओं में सामाजिक न्याय को सरकार की रणनितियों का प्राथमिक उद्देश्य माना है।

प्रथम योजना ( 1951-56 ) में ही यह विचार व्यक्त किया गया था कि आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन की अतः प्रेरणा का उदय गरीबी और आय, संपत्ति तथा अवसरों की असमानताओं से होता है। और माना गया आर्थिक विकास की प्रक्रिया के बढ़ने के साथ रिसाव सिद्धान्त प्रभावी हो जाएगा एवं गरीबी और आय. सम्पत्ति की असमानता में कमी आएगी। दूसरी योजना (1956-61) में भी कहा गया है, “आर्थिक विकास के अधिकाधिक लाभ समाज के अपेक्षाकृत कम भाग्यशाली वर्गों तक पहुँचने चाहिए"। प्रायः सरकार के सभी नीति विषयक प्रपत्रों में गरीबी निवारण और अपनाई जाने वाली रणनीतियों की चर्चा हुई है। इस सन्दर्भ में सरकार गरीबी निवारण के लिए त्रि-आयामी नीति अपनाई। प्रथम संवृद्धि आधारित जो प्रथम, दूसरी एवं तीसरी योजना में रही जो राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में तीव्र वृद्धि का प्रभाव धीरे-धीरे गरीबी वर्ग तक पहुँचने पर आधारित था। जिसमें चुने क्षेत्रों का तीव्र औद्योगिक विकास हो एवं

तीसरी योजना ( 1961-66) में लागू हरित क्रान्ति से कृषि का पूर्ण कायाकल्प कर समाज के अधिक पिछड़े वर्गों को लाभान्वित करना था। जनसंख्या वृद्धि के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में बहुत वृद्धि न हो सकी एवं साथ ही धनी एवं गरीबी की खाई और बढ़ गई। हरित क्रान्ति ने विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के बीच खाई को और चौड़ा किया। जबकि भूमि के पुनर्वितरण की इच्छा तथा योग्यता का अभाव था। इस तरह

चौथी योजना ( 1969-74) तक गरीबी के निवारण हेतु प्रत्यक्ष कार्यवाही की जगह अप्रत्यक्ष नीति का सहारा लिया जाता रहा।

पाँचवीं योजना ( 1974-1979) में प्रथम बार गरीबी से मुक्ति को मुख्य उद्देश्य माना गया। योजना के अन्तर्गत गरीबी निवारण, स्वावलम्बन की प्राप्ति, आय की विषमताओं में कमी और गरीबों के उपभोग स्तर में वृद्धि के मुख्य लक्ष्य नियत किए थे। छठी योजना (1980-85) में भी गरीबी निवारण को महत्ता प्रदान की गई। विकास कार्यक्रमों में न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रमों पर अधिक ध्यान दिया। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की सामाजिक-आर्थिक अन्तर्सरचना को सुदृढ़ करने, ग्रामीण गरीबी का निवारण एवं क्षेत्रीय विषमताओं को कम करने के लिए विशिष्ट कार्यक्रम संचालित किए।

इसी तरह सातवीं योजना ( 1985-90 ) में खाद्यान्न उत्पादन की वृद्धि, रोजगार अवसरों में वृद्धि, आधुनिकीकरण, स्वावलम्बन व सामाजिक न्याय के आधारभूत सिद्धान्त के आधार पर उत्पादकता में वृद्धि लाने पर बल दिया गया जिससे गरीबी पर प्रत्यक्ष प्रहार सम्भव हो इसी रणनीति के तहत गरीबी से सन्दर्भित अनेक कार्यक्रम चलाए गए।

आठवीं योजना ( 1992-97 ) में नियोजित विकास हेतु 'मानव विकास' को मुख्य रूप से ध्यान की स्थितियों में गिरावट की ओर ध्यान देते हुए न्याय संगत सामाजिक स्थिति के पुनर्स्थापन पर जोर दिया गया। यह सुनिश्चित किया गया कि योजना के केन्द्र में, आम लोगों की आवश्यकताएँ व उनका जीवन स्तर सुधार का लक्ष्य रहे। इसके लिए काम के अधिकार, ग्रामीण विकास की अनिवार्यता, विकेन्द्रीकरण व एकीकृत क्षेत्र आयोजना, कृषि का विकास, शहरी गरीबी व बेरोजगारी का निवारण व सामाजिक विकास शिक्षा व स्वास्थ्य के स्तर में परिवर्तन, खाद्य व सामाजिक सुरक्षा का बेहतर स्थिति व जनसंख्या नियंत्रण की रणनीति प्रस्तावित की गई।

नवीं योजना (1997-2002) में उन योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर लागू किया गया जो कृषि एवं ग्रामीण विकास को प्राथमिकता दी गई जिससे गरीबी का निवारण हो सके। इसके साथ ही योजना हेतु निर्दिष्ट स्कीमों में श्रम गहन होने पर जोर दिया गया जो दीर्घकालीन धारणीय लाभ प्रदान कर सके। योजना काल में आरम्भ किए गए आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के द्वारा जो संरचनात्मक सुधार लागू हुए उनका ध्येय भीmगरीबी पर प्रत्यक्ष प्रहार करना ही था।

दसवीं पंचवर्षीय योजना ( 2002-07) के दौरान तीव्र वृद्धि के साथ गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के माध्यम से गरीबी में बड़ी कमी का लक्ष्य रख गया। योजना में 8 प्रतिशत वार्षिक विकास का लक्ष्य रखा गया। इसके साथ प्राथमिक शिक्षा व साक्षरता में वृद्धि करना, स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास को प्राथमिकता प्रदान की गई। परन्तु जहाँ वृद्धि दर 7.6 प्रतिशत प्राप्त हुई लेकिन गरीबी निवारण कार्यक्रमों में उतनी सफलता नहीं प्राप्त हुई जितनी आशा थी।

ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना ( 2002-12) में समावेशी विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के साथ शुरू की गई है। जिसमें गरीबी पर प्रत्यक्ष प्रहार के अनेक दीर्घकालीन कार्यक्रमों को लागू किया गया है और इसे इस प्रकार क्रियान्वित किया जाना है कि आर्थिक व सामाजिक विकास में राज्यों के बीच अन्तर समाप्त हो जाए।

गरीबी निवारक कार्यक्रम

गरीबी को समाप्त करने के लिए सरकार अनेक गरीबी निवारक कार्यक्रम चलाए हुए है जिससे लोगों की आय का सृजन हो। इसमें से अधिकांश कार्यक्रम भौतिक सम्पदा के निर्माण जैसे ग्रामीण आधारिक संरचना के अन्तर्गत सड़क, पीने का पानी की सुविधाओं, सीवरेज आदि से जुड़े हैं जबकि अन्य को स्वरोजगार हेतु प्रोत्साहित करना तथा व्यापार प्रारम्भ करने हेतु सहायता प्रदान करना है। स्वयं सहायता समूह भी लोगों के सतत विकास हेतु प्रयत्नशील है। गरीबी निवारक कार्यक्रम निम्न हैं

अस्थायी रोजगार सृजित करने वाले कार्यक्रम-जवाहर रोजगार योजना (जे.आर.वाई.), जवाहर समृद्धि योजना, दस लाख कुआं योजना, रोजगार गारंटी योजना, काम के बदले अनाज, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (एन.आर.ई.पी.), भूमिहीन ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम (एन.आर.ई. जी.पी.), राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना अधिनियम (2005)।

सतत रोजगार एवं आय सृजित कार्यक्रम-स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना, स्वयंसिद्धा प्रोजेक्ट, संयुक्त वन प्रबन्धन कार्यक्रम, स्वयं सहायता समूह, ग्रामीण वन प्रबन्धन कमेटी, सूक्ष्म वित्त एवं प्रबन्धन द्वारा लाभार्थी का व्यापक आर्थिक सुधार।

जीविका की लागत कम करने वाले कार्यक्रम सार्वजनिक वितरण प्रणाली, स्वजल धारा (ग्रामीण क्षेत्र में पीने के पानीकी सुनिश्चितता करना), इन्दिरा आवास योजना।

अन्य मुख्य कार्यक्रमों का विवरण निम्न है-

आत्मनिर्भर भारत अभियान

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 12 मई, 2020 को राष्ट्र को संबोधित करते हुए कोविड-19 के विरूध सफलता प्राप्त करने के लिए एक 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' शुरू करने की घोषणा की।

आत्मनिर्भर भारत अभियान मुख्यत: पाँच स्तम्भों पर खड़ा है, ये हैं

• ऐसी अर्थव्यवस्था के निर्माण को प्रोत्साहन देना जो वृद्धिशील परिवर्तन ही नहीं, बल्कि लम्बी छलांग सुनिश्चित करती हो।

• ऐसी प्रणाली (सिस्टम) का विकास करना, जो 21वीं शताब्दी की प्रौद्योगिकी संचालित व्यवस्थाओं पर आधारित हो।

• ऐसी विशेष बुनियादी ढाँचा के निर्माण पर जोड़ देना जो भारत की विशेष पहचान दर्शाये।

उत्साहशील आबादी, जो आत्मनिर्भर भारत के लिए ऊर्जा का स्रोत हैं, और

मांग, जिसके तहत हमारी मांग एवं आपूर्ति श्रृंखला की ताकत का उपयोग पूरी क्षमता से हो।

कोविड संकट के दौरान सरकार द्वारा इससे पहले की गई घोषणाओं और आरबीआई द्वारा लिए गए निर्णयों से जुड़ी राशि को मिला देने पर यह पैकेज लगभग 20 लाख करोड़ रुपये का है, जो देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 10 प्रतिशत के बराबर है।

आत्मनिर्भर भारत अभियान का मुख्य बल चार एल पर दिया गया हैं ये है लैण्ड (भूमि), लेबर (श्रम) लिक्विडिटी (तरलता) और लॉ (कानून), यह अभियान आत्मनिर्भर देश को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में कड़ी प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करेगी। इस अभियान को तैयार करते समय यह ध्यान रखा गया है कि यह न केवल विभिन्न सेक्टरों में दक्षता निर्माण पर जोड़ दे वरन् यह उनकी गुणवत्ता पर भी विशेष बल दे। यह अभियान एमएसएमई, कुटीर उद्योग, मध्यम वर्ग, मजदूर वर्ग सहित विभिन्न वर्गों की जरूरतों को ध्यान रखते हुए लाया गया है।

'वोकल फॉल लोकल' के मंत्र के साथ लांच की गई इस अभियान के तहत अब लोकल उत्पादों का गर्व से प्रचार करने और इन लोकल उत्पादों को वैश्विक बनाने में मदद करने की बात की गई है।

इस अभियान को पाँच किश्तों में श्रेणीबद्ध करते हुए प्रथम किश्त की घोषणा 13 मई, 2020 को की गई, जिसमें सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों के त्वरित विकास की पहल से संबंधित उपायों की घोषणा है-

एमएमएमई सहित अन्य व्यवसायों के लिए 3 लाख करोड़ रुपये की आपातकालीन कार्यशील पूँजी सुविधा का प्रावधान किया गया है। इसके तहत व्यवसायों को राहत प्रदान करने के लिए 29 फरवरी,

2020 तक बकाया ऋण के 20 प्रतिशत की अतिरिक्त कार्यशील पूँजी रियायती ब्याज सावधि ऋण के रूप में प्रदान की जाएगी। यह सुविधा 25 करोड़ रुपये तक के बकाया ऋण और 100 करोड़ रुपये तक के टर्नओवर वाली उन इकाइयों के लिए उपलब्ध होगी, जिनके खाते मानक है।

इसके अंतर्गत अब एमएसएमई की नई परिभाषा भी गढ़ी गई हैं निवेश और टर्नओवर की नई सीमा निर्धारित कर एमएसएमई की परिभाषा को संशोधित किया गया है।

अब नए कैटेगरी के तहत विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के ऐसे उद्यम सूक्ष्म उद्यम के अंतर्गत आयेगें, जो 1 करोड़ रुपये से कम निवेश और 5 करोड़ रुपये से कम टर्नओवर के होंगे। 10 करोड़ रुपये से कम निवेश और 50 करोड़ रुपये से कम टर्न ओवर वाले उद्यम, लघु उद्यम के रूप में जाने जायेगें। मझोले उद्यम की सीमा 50 करोड़ रुपये से कम निवेश और 250 करोड़ रुपये से कम टर्नओवर की रखी गई है।

इसके अंतर्गत ऐसे एमएसएमई जो कर्ज के बोझ तले दबे है या एनपीए की समस्या से जूझ रहे हैं, उनके लिए 20,000 करोड़ रुपयेmका प्रावधान किया गया है।

• इसमें एमएसएमई फण्ड ऑफ फ्रेंड्स के माध्यम से 50,000 करोड़ रुपये की इक्विटी सुलभ कराने का प्रावधान भी किया गया है।

• 200 करोड़ रुपये तक की सरकारी निविदाओं के लिए कोई वैश्विक निविदा जारी नहीं करने का प्रावधान भी किया गया है।

एमएसएमई के लिए ई-मार्केट लिकेज को बढ़ावा देने का प्रावधान है, जो व्यापार मेलों और प्रदर्शनियों के प्रतिस्थापन के रूप में कार्य करेगा।

व्यावसायिक और संगठित कामगारों के लिए कर्मचारी भविष्य निधि सहायता की बात की गई है। आगे, ईपीएफ अंशदान को नियोक्ताओं और कर्मचारियों के लिए 3 माह तक घटाये जाने का भी प्रावधान बनाया गया है।

कर व्यवस्था को सरल करते हुए 'स्रोत पर कर कटौती' 'स्रोत पर संग्रहीत कर' की दरों में कटौती का भी प्रावधान किया गया है।

इस अभियान की दूसरी किश्त की घोषणा 15 मई, 2020 को की गई, जिसके अंतर्गत प्रवासियों, किसानों, छोटे कारोबारियों और रेहड़ी-पटरी वालों सहित अन्य गरीबों को सहायता के लिए अल्पकालीक एवं दीर्घकालीक दोनों उपायों का प्रावधान किया गया है।

इसके अंतर्गत प्रवासी कामगारों के लिए सभी राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों को प्रति कामगार दो महीने (मई एवं जून, 2020) के लिए प्रति महीने प्रति कामगार 5 किलोग्राम की दर से खाद्यान्न और साथ ही प्रति परिवार 1 किलोग्राम चना का मुफ्त आबंटन किये जाने का प्रावधान किया गया है।

केन्द्र सरकार प्रवासी श्रमिकों और शहरी गरीबों के लिए सस्ते किराये के आवास परिसरों के निर्माण से संबंधित योजना शुरू करेगी।

प्रवासियों को भारत में किसी भी उचित मूल्यवाली दुकान से पीडीएस (राशन) खरीदने में सक्षम बनाने के लिए मार्च, 2020 तक प्रौद्योगिकी प्रणाली के उपयोग की बात है, ये है एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड।

केन्द्र सरकार मुद्रा शिशु ऋण लेने वालों में शीघ्र भुगतान करने वालो को 12 महीने की अवधि के लिए 2 प्रतिशत का ब्याज उपदानप्रदान करेगी, जिनके ऋण 50,000 रूपये कम के हैं।

• स्ट्रीट वेंडरो के लिए 5,000 करोड़ रुपये की ऋण सुविधा का प्रावधान किया गया है। इसके तहत प्रत्येक उद्यम के लिए 10,000 रुपये की प्रारंभिक कार्यशील पूँजी की बैंक ऋण सुविधा दी जायेगी। यह योजना शहर के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के विक्रेताओं को भी कवर करेगी जो आस-पास के शहरी इलाकों में अपना व्यवसाय चलाते हैं।

पीएमएवाईं (शहरी) के तहत एमआईजी के लिए क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना के विस्तार के माध्यम से आवासनन क्षेत्र मध्यम आय समूह को 70,000 करोड़ रुपये के प्रोत्साहन का प्रावधान किया गया है।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और ग्रामीण सहकारी बैंकों की फसल ऋण आवश्यकता को पूरा करने के लिए नाबार्ड 30,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त पुनर्वितीयन सहायता प्रदान करेगा।

क्षतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैम्पा) के अंतर्गत लगभग 6,000 करोड़ रुपये को निधियों का उपयोग शहरी क्षेत्रों सहित वनीकरण एवं वृक्षारोपण कार्यों, वन प्रबंधन, वन संरक्षण, वन एवं वन्य जीव संबंधी आधार-भूत सुविधाओं के विकास आदि में खर्च किया जाएगा।

इस किश्त के अंतर्गत, किसान क्रेडिट कार्ड योजना के तहत 2.5 करोड़ किसानों को 2 लाख करोड़ रुपये के ऋण प्रोत्साहन का भी प्रावधान किया गया है।

इस अभियान के तृतीये किश्त में कृषि, खाद्य, प्रसंस्करण, मन्स्य पालन से संबंधित सुधार प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है।

किसानों के लिए कृषि-द्वार (फार्म-गेट) आधारभूत ढांचे पर केन्द्रित 1,00,000 करोड़ रुपये का कृषि ढाँचा कोष के निर्माण की बात की गई है। इसमें प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों, किसान उत्पादक संगठनों, कृषि उद्यमियों, स्टार्ट-अप आदि से संबंधित आधारभूत ढांचे में सुधार की व्यापक पहल शामिल है।

सूक्ष्म खाद्य उपक्रमों (एमएफई) के औपचारिकरण के लिए 10,000 करोड़ रुपये की योजना प्रस्तुत की गई हैं। इसके अंतर्गत 2 लाख सूक्ष्म खाद्य उपक्रमों (एमएफई) की सहायता के लिए 'वैश्विक पहुँच के साथ बोकल फॉर लोकल' का शुभारम्भ किया जाएगा, इससे ऐसे उद्यमियों को फायदा होगा। जिन्हें एफएसएसएआई खाद्य मानकों को हासिल करने, ब्रांड खड़ा करने और विपणन के लिए दक्षता और प्रौद्योगिकी उन्नयन की आवश्यकता है।

इस किश्त के अंतर्गत प्रधानमंत्री मन्स्य संपदा योजना के माध्यम से मछुआरों के लिए 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसके अंतर्गत सरकार समुद्री, अंतर्देशीय मछली पालन और एक्वाकल्चर से जुड़ी अन्य गतिविधियों के लिए 11,000 करोड़ रुपये साथ ही आधारभूत ढाँचा तथा फिशिंग हार्बर्स, कोल्ड स्टोरेज (शीत भण्डार), बाजार आदि के लिए 9,000 करोड़ रुपये की धनराशि उपलब्ध करायेगी।

अन्य उपायों में पशुपालन से संबंधित आधारभूत ढाँचे के विकास के लिए 15.000 करोड़ रुपये, औषधीय महत्व के पौधे एवं इससे संबंधित खेती को बढ़ावा देने के लिए 4,000 करोड़ रुपये, राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम जिसमें की खुरपका-मुंहपका रोग और ब्रुसेलोसिस शामिल है, के लिए 13 343 करोड़ के कुल परिव्यय की बात की गई है। मधुमक्खी पालन से संबंधित कार्य के लिए 500 करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया गया है।

इस अभियान के चतुर्त किश्त में सरकार ने आठ महत्वपूर्ण सेक्टरों यथा-कोयला क्षेत्र, खनिज क्षेत्र, रक्षा क्षेत्र, नागरिक उड्डयन क्षेत्र, विद्युत क्षेत्र, अंतरिक्ष क्षेत्र, सामाजिक अवसंरचना से संबंधित क्षेत्र व परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में व्यापक ढाँचागत सुधार की पहल की है। ये पहल इस प्रकार है-

सरकार कोयला क्षेत्र में विभिन्न उपायों के माध्यम से प्रतिस्पर्धा, पारदर्शिता और निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहन देगी।

खनिज क्षेत्र में भी निजी निवेश को प्रोत्साहित करने की पहल की गई है। खनन पट्टों के हस्तांतरण में कैप्टिव और नॉन-कैप्टिव खादानों के बीच के अंतर को समाप्त कर इस क्षेत्र में व्यापक नीतिगत सुधार पर बल दिया गया है।

रक्षा उत्पादन में बढ़ोत्तरी एवं आत्मनिर्भर बनने के लिए 'मेक इन इंडिया' पर विशेष बल दिया गया है। रक्षा उत्पादन में नीतिगत सुधार की पहल करते हुए स्वचालित मार्ग के जरिए रक्षा विनिर्माण में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा 49 प्रतिशत से बढ़कर 74 प्रतिशत करने की पहल की गई है।

नागरिक उड्डयन क्षेत्र के लिए कुशल एयरस्पेस प्रबंधन की पहल करते हुए कहा गया है कि इस क्षेत्र में प्रतिबंधों में ढील दी जाए ताकि नागरिक उड़ानें अधिक कुशलता से संचालित हो सके। पीपीपी के माध्यम से अधिक विश्व-स्तरीय हवाई अड्डे, परिचालन और रख-रखाव की भी पहल की गई है।

विद्युत क्षेत्र में टैरिफ संबंधी नीतिगत सुधार पर विशेष जोड़ देते हुए निम्न पहल की गई है-

- अब डिस्कॉम की विफलताओं के कारण उपभोक्ताओं पर बोझ नहीं डाला जायेगा।

- क्रास सब्सिडी में सुधार की पहल की गई है।

- केन्द्र शासित प्रदेशों में बिजली विभागों/उपदेयताओं का निजीकरण की बात की गई है।

अंतरिक्ष क्षेत्र के अंतर्गत उपग्रहों, प्रक्षेपणों और अंतरिक्ष आधारित सेवाओं में निजी क्षेत्र को समान अवसर प्रदान करने की पहल की गई है।

सामाजिक आधारभूत ढाँचे के सुधार हेतु, संशोधित व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण योजना के माध्यम से निजी क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है।

परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सुधार की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए कैंसर और अन्य बीमारियों के लिए सस्ता उपचार प्रदान करने और मानवता के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए, चिकित्सा आइसोटोप के उत्पादन के लिए पीपीपी मोड में अनुसंधान रिएक्टर की स्थापना बल दिया गया है।

इस अभियान के पंचम किश्त के अंतर्गत सात संक्टरों में सुधारों और अन्य उपायों की घोषणा की गई है।

मनरेगा के आबंटन में 40,000 करोड़ रुपये की वृद्धि कर रोजगार को बढ़ावा देने पर विशेष फोकस रखा गया है।

स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य एवं कल्याण केन्द्रों की संख्या में बढ़ोत्तरी पर विशेष बल दिया गया है।

अन्य सुधारों के अंतर्गत कोविड के बाद समानता के साथ प्रौद्योगिकी आधारित शिक्षा की पहल, कम्पनी अधिनियम के तहत की गई गलती (चूक) को अपराध की श्रेणी से बाहर करना, दिवालिया एवं शोधन अक्षमता संहिता से संबंधित उपायों के माध्यम से कारोबार में सुगमता लाना, नए और आत्मनिर्भर भारत के लिए सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम नीति की पहल करना, कम्पनियों के लिए कारोबार करने में सुगमता लाना और राज्य सरकारों को सहायता की विशेष पहल कीगई है।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना

यह योजना 'कोरोना वायरस' के खिलाफ लड़ाई में मदद करने के उद्देश्य से 26 मार्च, 2020 को लांच किया गया हैं। केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्माला सीतारमण ने गरीबों के लिए इस वायरस के विरुद्ध लड़ाई लड़ने में मदद हेतु इस योजना के तहत 1.70 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की घोषणा की। इन राहत पैकेजों का उद्देश्य गरीब एवं वंचित वर्ग के लोगों के हाथों में भोजन एवं पैसा देकर उनकी यथासंभव सहायता करना है, ताकि उन्हें आवश्यक वस्तुओं को खरीदने में कठिनाई का सामना न करना पड़े।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में निम्नलिखित उपायों को सम्मिलित किया गया है-

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज

इसके अंतर्गत सरकारी अस्पतालों और स्वास्थ्य केन्द्रों में कोविड-19 से लड़ने वाले स्वास्यकर्मियों के लिए बीमा योजना का प्रावधान किया गया है। डॉक्टर, नर्स, वार्ड-स्वॉय, आशा कार्यक्रर्ता, सफाई कर्मचारी एवं अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ता एक विशेष बीमा योजना के तहत बीमा कवर किये जायेगें।

कोविड-19 मरीजों का इलाज करते समय किसी भी स्वास्थ्य प्रोफेशनल के साथ दुर्घटना होने पर उन्हें इस योजना के तहत 50 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान किया जाएगा। एक अनुमान के मुताबिक लगभग 22 लाख स्वास्थ्यकर्मी इस बीमा कवर के अंदर आएगें।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना

इस पैकेज के अंतर्गत केन्द्र सरकार अगले तीन महीनों अर्थात् अप्रैल, मई, एवं जून, 2020 (वर्तमान में इसे नवंबर, 2020 तक बढ़ा दिया गया है) के दौरान खाद्यानों की उपलब्धता को सुनिश्चित करेगी। भारत की लगभग दो-तिहाई जनसंख्या लगभग 80 करोड़ लोग। इस योजना के तहत कवर होंगी। इनमें से प्रत्येक व्यक्ति को इस दौरान मौजूदा निर्धारित अनाज के मुकाबले दो गुल अनाज दिया जाएगा। साथ में एक किलो दाल देने का भी प्रावधान किया गया है।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत शामिल अन्य उपायों में किसान, वरिष्ठ नागरिक, मनरेगा मजदूर, स्वयं सहायता समूह आदि के लिए भी विभिन्न प्रकार की सहायता का प्रावधान किया गया हैं।

इस योजना के तहत 1 अप्रैल, 2020 से मनरेगा मजदूरी में 20 रुपये की बढ़ोत्तरी की गई है। अब उनकी दैनिक मजदूरी 182 रुपये से बढ़कर 202 रुपये होगी। इससे लगभग 13.62 करोड़ परिवार लाभान्वित होंगे।

किसानों को लाभ प्रदान करने हेतु 2020-21 में देय 2,000 रुपये की प्रथम किस्त अप्रैल, 2020 में ही 'पीएम किसान योजना' के तहत खाते में डाल दी जायेगी। इससे लगभग 7 करोड़ किसानों को लाभ होगा।

गरीबों की मदद हेतु कुल 40 करोड़ प्रधानमंत्री जन-धन योजना की महिला खाताधारकों को अगले तीन महीनों (अप्रैल, मई, जून, 2020) के दौरान प्रतिमाह 500 रुपये की अनुग्रह राशि दी जायेगी।

पीएम गरीब कल्याण योजना के तहत अगले तीन महीनों (अप्रैल, मई, जून 2020) में 8 करोड़ गरीब परिवारों को गैस सिलेंडर मुफ्त में दिए जाएंगे।

इस पैकेज के तहत सरकार ने अगले तीन महीनों (अप्रैल, मई, जून 2020) के दौरान संगठित क्षेत्रों में कम पारिरमिक पाने वालों की मदद हेतु उनके पीएफ खातों में उनके मासिक पारिश्रमिक का 24 प्रतिशत भुगतान करने का प्रस्ताव किया है, ताकि उनके रोजगार में व्यवधान या खतरे को कम किया जा सके।

इस योजना के तहत ऐसी लगभग 3 करोड़ वृद्ध विधवाएं और दिव्यांग श्रेणी के लोग, जो कोविड-19 के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक व्यवधान की वजह से असुरक्षित हुए हैं, उन्हें सरकार अगले तीन महीनों (अप्रैल, मई, जून 2020) के दौरान कठिनाइयों से निपटने हेतु 1,000 रुपये दिए जाएंगे।

इस योजना के अन्य उपायों के तहत संगठित क्षेत्र को भी सहायता प्रदान करने की पहल हुई है। कर्मचारी भविष्य निधि नियमनों में संशोधन कर 'महामारी' को भी उन कारणों में शामिल किया गया जिसे ध्यान में रखते हुए कर्मचारियों को अपने खातों से कुल राशि के 75 प्रतिशत का गैर-वापसी योग्य अग्रिम या तीन महीने का पारिश्रमिक, जो भी कम हो, प्राप्त करने की अनुमति दी गयी है।

केन्द्र सरकार ने निर्माण श्रमिकों को राहत देने के लिए राज्य सरकारों को 'भवन और निर्माण श्रमिक कल्याण कोष' का उपयोग करने का आदेश दिया हैं। इसके अंतर्गत लगभग 3.5 करोड़ पंजीकृत श्रमिक हैं। साथ ही राज्य सरकारों से जिला खनिज कोष के तहत उपलब्ध धनराशि के उपयोग की भी सलाह दी गई है, ताकि कोविड-19 महामारी के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए चिकित्सा परीक्षण और अन्य संबंधित आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।

अन्य योजनाएँ

प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना

इस योजना का शुभारंभ 9 मई, 2015 को कोलकाता से किया गया। इस योजना का लक्ष्य सभी भारतीयों विशेषकर गरीब और कमजोर तबकों एवं असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली का निर्माण करना है।

इस योजना के तहत 18 70 वर्ष की आयु के सभी बचत बैंक खाताधारक इसके पात्र होंगे। इस योजना के प्रावधानों के अनुसार, प्रीमियम राशि 12 रुपये प्रति वर्ष निर्धारित की गई है। यह स्वतः भुगतान प्रणाली के माध्यम से जुड़ी होंगी। दुर्घटना में मृत्यु अथवा पूर्ण अपंगता पर 2 लाख रुपया, आंशिक अपंगता पर 1 लाख रुपया का प्रावधान इस योजना के तहत निर्धारित किया गया है।

प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना

यह योजना स्वाभाविक तथा दुर्घटना मृत्यु. दोनों ही के संबंध में लागू होंगी। इस योजना के तहत् प्राप्य राशि 2 लाख रुपया होगी। इस योजना के तहत् अंशदान 330 रुपया वार्षिक होगा तथा यह 18 50 वर्ष की आयु वर्ग के संबंध में लागू होगी।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना

यह योजना 2 अक्टूबर, 2007 को असंगठित क्षेत्र में गरीबी रेखा से नीचे रह रहे परिवारों (बीपीएल परिवारों) के लिए शुरू की गई तथा यह 1 अप्रैल, 2008 से लागू कर दी गयी। इसमें कुल बीमित राशि प्रतिवर्ष प्रति परिवार 30,000 रुपये है। प्रीमियम की राशि केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा 75 : 25 अनुपात में वहन की जाती हैं। पूर्वोत्तर राज्यों तथा जम्मू कश्मीर में यह वहनीय अनुपात 90 : 10 का है।

संपूर्ण बीमा ग्राम योजना

इस योजना का शुभारंभ 13 अक्टूबर, 2017 को तत्कालीन दूर संचार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रचार) मनोज सिन्हा द्वारा किया गया। इस योजना के तहत प्रत्येक जिले से कम-से-कम एक गांव जिसमें न्यूनतम 100 परिवार हों, को चिहित कर उस गांव के सभी परिवार को कम-से-कम एक ग्रामीण डाक जीवन बीमा पॉलिसी से आच्छादित किया जाएगा। सभी सांसद आदर्श गांव को इसके अंतर्गत सम्मिलित किया गया है।

कौशल विकास कार्यक्रम

भारत एक मानव संसाधन बाहुल्य देश की श्रेणी में आता है। ऐसे में यदि इस संसाधन को कुशल विकास के साथ जोड़ दिया जाए तो यह देश को तरक्की के नये आयाम तक ले जाएगा। इन्हीं उद्देश्यों को मूलभूत रखते हुए ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में सरकार ने अधिकाधिक मानव संसाधन को शामिल करते हुए पूरे देश में एक व्यापक कौशल विकास कार्यक्रम की शुरूआत की। सरकार द्वारा कौशल विकास को समन्वित कार्रवाई योजना में वर्ष 2022 तक 500 मिलियन कुशल कार्मिक तैयार करने का लक्ष्य रखा गया है, जिससे देश को विभिन्न क्षेत्रों में कुशल लोगों का साथ और मार्गदर्शन प्राप्त हो सके।

एक त्रि-स्तरीय संस्थागत संरचना इस संबंध में पहले से ही तैयार कर ली गई है, जो कौशल विकास मिशन को आगे बढ़ाने का कार्य करेंगी। ये है प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कौशल विकास परिषद्, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम एवं राष्ट्रीय कौशल विकास समन्वय बोर्ड। राष्ट्रीय कौशल विकास समन्वय बोर्ड ने कौशल विकास से संबंधित पाँच मुख्य विषयों पर कार्य किया है। ये है-

• प्रशिक्षुता प्रशिक्षण (अपरेन्टिसशिप ट्रेनिंग) से संबंधित कार्य।

पाठ्यक्रम में सतत आधार पर संशोधन से संबंधित कार्य।

• व्यावसायिक शिक्षा से संबंधित कार्य।

प्रत्यापन एवं प्रमाणन प्रणाली से संबंधित कार्य।

कौशल के अभाव की स्थिति के निर्धारण से संबंधित कार्य।

राष्ट्रीय कौशल विकास निगम की स्थापना कौशल विकास के संबंध में निजी क्षेत्र के प्रयास को प्रोत्साहन देने के लिए, वित्त मंत्रालय में एक निलार्भ निगम (नॉन प्रोफिट) के रूप में संस्थागत व्यवस्था है। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम विभिन्न कौशल क्षेत्रों में ट्रेनिंग के संबंध में पाठ्यक्रम तथा मानक तय करेगा। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम को वित्तीय व्यवस्था हेतु राष्ट्रीय कौशल विकास फण्ड की भी स्थापना को गयी है। जो एक ट्रस्ट के रूप में कार्य करेगी। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के पाठ्यक्रमों तथा मानकों के अनुरूप के संबंध में ट्रेनिंग दे सकता है। साथ ही ट्रेनिंग के उपरान्त अधिकृत संस्था द्वारा ली जाने वाली परीक्षा के बाद ट्रेनिंग के संबंध में प्रमाण पत्र तथा दस हजार रुपये नकद ईनाम की भी व्यवस्था है।

राष्ट्रीय कौशल विकास निधि को राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के लिए निधियां प्राप्त करने वाले एक न्यास के रूप में निगमित किया गया है।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना

इस योजना का उद्देश्य लघु एवं सीमांत कृषकों को निवेश एवं अन्य आवश्यकताओं हेतु एक सुनिश्चित पूरक आय उपलब्ध कराने के साथ साथ फसल कटाई के मौसम से पूर्व किसानों की आकस्मिक आवश्यकताओं को भी पूरा करने में मदद करना है।

इस योजना की औपचारिक शुरूआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 24 फरवरी, 2019 को गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) से की गई। पूर्व में इस योजना के तहत लाभार्थी कृषक परिवार के पास राज्य तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के भू-अभिलेखों में सम्मिलित रूप से अधिकतम दो हेक्टेयर तक की कृषि योग्य भूमि का स्वामित्व होना चाहिए था। लेकिन 31 मई, 2019 को केंद्रीय मंत्रीमंडल द्वारा लिए गए निर्णय के तहत किसानों के लिए अधिकतम दो हेक्टेयर तक की कृषि योग्य भूमि के स्वामित्व की बाध्यता को समाप्त कर दिया गया है। इन सुधारों के बाद प्रधानमत्री किसान योजना के दायरे में अब कुल लगभग 14.5 करोड़ लाभार्थी शामिल हो गये हैं। इस योजना के तहत पात्र परिवारों (लघु एवं सीमांत कृषकों) को प्रतिवर्ष 6000 रुपये की आर्थिक सहायता, आधार से जुड़े बैंक खातों में प्रत्यक्षतः चार-चार माह की तीन किश्तों (प्रत्येक किश्त 2000 रुपये) में उपलब्ध कराई जाएगी। इस योजना को । दिसंबर, 2018 से प्रभावी माना गया है तथा पात्र कृषक परिवारों को यह लाभ इसी तिथि के पश्चात् की अवधि से देय होगा।

प्रधानमंत्री किसान पेंशन योजना

31 मई, 2019 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वितीय कार्यकाल के प्रथम मंत्रीमंडलीय बैठक के दौरान 'प्रधान मंत्री किसान पेंशन योजना' को स्वीकृति प्रदान की गई। इस योजना के प्रावधानों के तहत 18-40 वर्ष का कोई भी किसान इस योजना में शामिल हो सकता है। इस योजना में किसानों को 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर 3000 रुपये न्यूनतम निर्धारित पेंशन दिए जाने का प्रावधान है। इस योजना के पात्र किसानों द्वारा किए गए अंशदान के बराबर राशि ही केंद्र सरकार पेंशन निधि में जमा कराएगी।

प्रधानमंत्री जी-वन योजना

28 फरवरी, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद मोदी की अध्यक्षता में मंत्रीमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने प्रधानमंत्री जी-वन Ji-VAN: जैव ईंधन वातावरण अनुकूल फसल अवशेष निवारण) योजना को मंजूरी प्रदान किया। इस योजना हेतु वर्ष 2018-19 से वर्ष 2023-24 की अवधि के दौरान कुल 1969.50 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय को मंजूरी प्रदान की गई है। इस योजना के प्रावधानों के अंतर्गत वाणिज्यिक स्तर पर 12 परियोजनाओं को और प्रदर्शन स्तर पर दूसरी पीढ़ी की 10 एथेनॉल परियोजनाओं को दो चरणों में वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।

राष्ट्रीय पोषण मिशन

कुपोषण जनित समस्याओं के समाधान तथा देश में पोषण के स्तर में सुधार हेतु केंद्रीय मंत्रीमंडल द्वारा 30 नवंबर, 2017 को 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' को स्वीकृति प्रदान की गई। राष्ट्रीय पोषण मिशन का लक्ष्य ठिगनेपन, अल्प पोषण तथा जन्म के समय कम वजन के बच्चों में, प्रत्येक में 2 प्रतिशत वार्षिक की कमी लाना है। इस मिशन के अंतर्गत रक्ताल्पता के संदर्भ में प्रतिवर्ष 3 प्रतिशत की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है।

इस मिशन को चरणबद्ध तरीके से पूरे देश में लागू कराये जाने का प्रावधान है, जिसके तहत वर्ष 2017-18 में 315 जिले, वर्ष 2018-19 में 235 जिले तथा वर्ष 2019-20 में शेष सभी जिलों को शामिल किया जाएगा। वर्ष 2017-18 से प्रारंभ होकर तीन वर्षों की अवधि हेतु इस मिशन के लिए लगभग साढ़े नौ हजार करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया है। इस मिशन हेतु आबंटित राशि में 50 प्रतिशत भारत सरकार के बजटीय समर्थन द्वारा, जबकि शेष 50 प्रतिशत आईवीआरडी अथवा अन्य बहुपक्षीय विकास बैंकों से जुटाया जाएगा।

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना का शुभारंभ 21 जुलाई, 2017 को तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली द्वारा नई दिल्ली से किया गया। इस योजना का उद्देश्य वृद्धावस्था के दौरान सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराने के साथ-साथ 60 वर्ष एवं इससे अधिक आयु के नागरिकों को अनिश्चित बाजार स्थितियों के कारण उनकी ब्याज हानि के कारण होने वाली हानि से उन्हें संरक्षित करना है। यह योजना भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा संचालित हो रही है। इसके अंतर्गत विनियोजित राशि 7.5 लाख है तथा इसकी अवधि 10 वर्ष है। इस पर ब्याज दर 8 प्रतिशत वार्षिक है जो मासिक आधार पर देय है। जमाकर्ता की मृत्यु के बाद जमा राशि नामित व्यक्ति को प्राप्त हो जायेगी।

प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना

यह योजना 1 जनवरी, 2017 से प्रभावी हैं। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के अनुरूप महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित की जा रही है। इस योजना के प्रावधानों के अंतर्गत गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं के प्रथम बच्चे के जन्म पर पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने हेतु 5000 रुपये नकद प्रदान किये जाएंगे। इस राशि को तीन किस्तों में प्रदान कियं जाने का प्रावधान है। 11000 रुपये की प्रथम किस्त गर्भावस्था के पंजीकरण के समय दी जायेगी। 2000 रुपये की द्वितीय किस्त गर्भावस्था के 6 माह बाद कम-से-कम एक प्रसव पूर्व जांच कराने के बाद दी जाएगी। तृतीय किस्त के रूप में 2000 रुपये बच्चे के जन्म के पंजीकरण होने तथा उसके टीकाकरण चक्र शुरू होने पर प्रदान की जाएगी। इस योजना के अंतर्गत लाभ उन गर्भवती महिलाओं को अनुमान्य नहीं होगा जो केन्द्र या राज्य में सार्वजनिक नियमित रोजगार में है या जो किसी कानून व्यवस्था के अंतर्गत ऐसा लाभ प्राप्त कर रही हैं।

मिशन इन्द्रधनुष

इस योजना का शुभारंभ भारत सरकार द्वारा दिसंबर, 2014 में किया गया। यह योजना स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत कार्य कररही है। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य सभी शिशुओं तथा गर्भवती महिलाओं को तीव्र गति से पूर्ण टीकाकरण मुहैया कराना है। इसके अंतर्गत दो वर्ष के सभी बच्चों को सभी उपलब्ध टीकाओं से टीकाकरण तथा सभी गर्भवती महिलाओं को सात वैक्सीन द्वारा टीकाकरण कराना है। इसके अंतर्गत टिटनस, पोलियों, डिप्थीरिया, टी.वी., हेपीटाइटिस बी, जापानी इनसेफलाइटिस आदि बीमारियों को रखा गया है। वर्ष 2017 से इसमें न्युमोनिया को भी शामिल कर लिया गया है।

आयुष्मान भारत

23 सितंबर, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आयुष्मान भारत योजना की घोषणा की गई। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य है-गरीब एवं वाचत वर्ग को उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना और साथ ही साथ उनका स्वास्थ्य बीमा भी करवाना, जो कि स्वयं ऐसा कर पाने में अक्षम है।

आयुष्मान भारत की विशेषताएँ-

इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत् देश के 10 करोड़ से अधिक परिवार और 50 करोड़ से अधिक लोगों को कवर किया जाएगा। इस प्रकार यह विश्व में स्वास्थ्य क्षेत्र की सबसे बड़ी योजना होगी।

आयुष्मान भारत के अंतर्गत दो तरह की स्वास्थ्य सेवाओं को अपनाया गया है, प्रथम, स्वास्थ्य तथा कल्याण केंद्रों का निर्माण करना ताकि घरों के नजदीक ही बेहतर इलाज उपलब्ध हो सके और दूसरा, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को लांच किया गया है। जिसके अंदर गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर लोग शामिल होते है। इस प्रकार सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज व सतत विकास लक्ष्य, 2030 की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।

यह योजना, इस मामले में भी विशेष है कि, स्वास्थ्य सेवाओं के अंतर्राष्ट्रीय मानकों के स्तर पर भारत की स्वास्थ्य सेवाएं ज्यादा अच्छी स्थिति में नहीं है, अतः अच्छे इलाज की तलाश में प्रतिवर्ष लगभग 6 करोड़ लोग गरीब। रेखा के नीचे चले जाते है, अतः यह योजना न ककेवल स्वास्थ्य की स्थिति में बेहतर सुधार ला सकेगी वरन् गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम में एक सशक्त सहायक उपकरण कीभी तरह कार्य करेगी।

इस योजना के तहत देश की करीब 40 फीसदी आबादी को लक्ष्य बनाया गया है। जिसमें लगभग 8.30 करोड़ ग्रामीण परिवार और 2.33 करोड़ शहरी परिवार शामिल होंगे।

इस योजना के तहत प्रतिवर्ष प्रति परिवार 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया जाएगा।

यह योजना कई-प्रकार की बीमारियों को कवर करती है। इसमें कुल 1350 मेडिकल पैकेज है। इसमें 23 गंभीर बीमारियों और मानसिक स्वास्थ्य को भी शामिल किया गया है।

इस योजना में दूसरे व तीसरे स्तर की स्वास्थ्य सेवाओं को पूर्णत:कवर किया गया है।

इस योजना के अंतर्गत निजी और सरकारी दोनों अस्पताल सम्मिलित हैं।

इस योजना की एक बड़ी विशेषता यह है कि, इस योजना का लाभार्थी, भारत में किसी भी जगह पर इस योजना का लाभ ले सकता है। अर्थात् यह योजना राष्ट्रीय स्तर पर पोर्टेबल है।

योजना की पात्रता की शर्ते-

इस योजना के लाभार्थियों का चयन सामाजिक, आर्थिक, जातीय जनगणना 2011 के आधार पर किया जाएगा।

इस योजना के पात्र मुख्यतः वे लोग होंगे जो बेघर हैं या झुग्गी-झोपड़ी या मलिन बस्तियों में रहते हैं या सफाई कर्मचारी हैं। दूसरे शब्दों में कहाजाये तो समाज का सबसे वंचित तबका इस योजना का लाभार्थी है।

इस योजना की शर्तों के अनुरूप जिनके पास 50 हजार रुपये से ज्यादा सीमा का क्रेडिट कार्ड हो या जिसको परिवार का कोई सदस्य सरकारी नौकरी में हो या जिनके पास दो पहिया, तीन पहिया या चार पहिया वाहन था फिर फिशिंग वोट हो या आयकर भरने वाला परिवार या 3 या उससे अधिक कमरे का पक्की दीवार और छत वाला मकान हो या 2.5 एकड़ से ज्यादा एक सिंचाई यंत्र के साथ सिंचित भूमि वाला परिवार आदि को इस योजना में शामिल नहीं करने का प्रावधान किया गया है।

निर्वाचन बॉण्ड योजना, 2018

निर्वाचन बॉण्ड योजना, 2018 वित्त मंत्रालय द्वारा 2 फरवरी, 2018 को अधिसूचित की गई। इस योजना की पात्रता के शर्तों के अनुसार भारत का नागरिक भारत में नियमित कोई प्रतिष्ठान तथा भारतीय व्यक्तियों का संघ इस बॉण्ड को खरीदने के पात्र होंगे। निर्वाचन बॉण्ड को भुनाने हेतु वही राजनैतिक दल पात्र होंगे, जो जन प्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा 29(क) के तहत पंजीकृत हों तथा जिन्हें लोकसभा अथवा विधानसभा के पिछले में गये मतों का कम से कम 1 प्रतिशत मत प्राप्त हुआ हो।

इस योजना के प्रावधानों के अंतर्गत निर्वाचन बॉण्ड । हजार, 10 हजार, । लाख, 10 लाख तथा 1 करोड़ रुपये के मूल्य वर्ग में जारी किए जाएंगे। इन बॉण्डों की वैधता उनके निर्गमन की तारीख से 15 दिनों तक की होती है। इस अवधि में यदि इन्हें नहीं भुनाया जाता है, तो यह राशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा कर दी जाएगी।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना

इस योजना की शुरूआत 22 जनवरी, 2015 को हरियाणा के पानीपत जिले से हुई। यह योजना तीन मंत्रालयों-महिला एवं बाल विकास मंत्रालय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन मंत्रालय की संयुक्त पहल है।

इस योजना का उद्देश्य लिंग आधारित भेदभाव को खत्म करके लिंगानुपात को ऊपर उठाना है। इसका उद्देश्य गंभीर रूप से गिरते हुए शिशु लिंगानुपात में बहुक्षेत्रीय हस्तक्षेप द्वारा लड़कियों की शिक्षा का प्रवर्तन तथा उनका सर्वांगीण सशक्तिकरण सम्मिलित है, के द्वारा शिशु लिंगानुपात में सुधार लाना है।

प्रारंभ में इसे देश के सबसे कम लिंगानुपात वाले 100 जिलों में लागू किया गया था जिसके तहत 1 वर्ष में जन्म लिंगानुपात में 10 अंकों की वृद्धि का लक्ष्य रखा गया था। वर्तमान में इस योजना का विस्तार भारत के सभी जिलों तक किया जा चुका है।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना

'स्वच्छ ईंधन, बेहतर जीवन' के आदर्श वाक्य के साथ प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का शुभारंभ 1 मई, 2016 को बलिया (उत्तर प्रदेश) से किया गया। इस योजना का लक्ष्य गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले निर्धन परिवारों को स्वच्छ ईंधन (एल.पी.जी.) उपलब्ध करना है।

इस योजना के प्रावधानों के अंतर्गत तीन वर्षों (2016-19) में गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले 5 करोड़ परिवारों की महिलाओं को निःशुल्क रसोई गैस कनेक्शन उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था जिसे, 2018-19 में संशोधित कर 8 करोड़ कर दिया गया है। यह योजना बीपीएल परिवारों के लिए प्रत्येक एल.पी.जी. कनेक्शन पर 1600 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इस योजना के तहत सामाजिक आर्थिक जनगणना 2011 के अंतर्गत चिन्हित गरीब परिवार की प्रौढ़ महिला सदस्य को, बिना किसी जमा (सिक्योरिटी मनी) के एल.पी.जी. कनेक्शन दिया जाएगा। यह योजना पेट्रोलियम तथा नैचुरल गैस मंत्रालय द्वारा प्रबन्धित है।

दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शरही आजीविका मिशन:- स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना जो दिसम्बर, 1997 में शुरू की गयी थी; सितम्बर, 2013 में पुनर्गठित करके राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के नाम से शुरू की गई। जुलाई, 2015 को इसे पुन: पुनर्गठित करके दीनदयाल अन्त्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन कर दिया गया है।

इस योजना का लक्ष्य शहरों में लाभोन्मुख स्वरोजगार तथा कौशल-आधारित रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देकर शहरी गरीबी एवं उसकी सुभेधता (उपेक्षिता) को दूर करना है। साथ ही शहरी बेघर लोगों को आवश्यक सेवाओं से युक्त आक्षय प्रदान करना है। 20 फरवरी, 2016 को सरकार ने देश के सभी सांविधिक शहरी स्थानीय निकायों के इसके अंतर्गत शामिल कर लिया है।

इस मिशन में 'कौशल प्रशिक्षण एवं प्लेसमेंट' के माध्यम से रोजगार के प्रत्येक शहरी गरीब के प्रशिक्षण पर 15,000 रुपये तक व्यय किये जाते हैं। साथ ही पूर्वोत्तर एवं जम्मू कश्मीर में इस पर 18,000 रुपये तक व्यय किए जाते हैं। इस मिशन का कार्यान्वयन आवास एवं शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।

दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन-यह वर्ष 1999 में शुरू की गई स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना की उत्तरवर्ती योजना है जिसे 3 जून, 2011 को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में परिवर्तित कर दिया गया है। वर्तमान में इसका नाम परिवर्तित कर दीन दयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन कर दिया गया है। इस योजना का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्वरोजगार एवं कुशल मजदूरी रोजगार के माध्यम से गरीबों की आजीविका में सतत सुधार करना है। इस योजना के प्रावधानों के अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण गरीब परिवार की कम-से-कम एक महिला सदस्य को समयबद्ध तरीके से स्वयं सहायता समूह (एस.एम.जी.) के अंतर्गत लाना है। इस योजना के तहत लगभग 7 करोड़ ग्रामीण परिवारों की आजीविका में सुधार का लक्ष्य रखा गया है।

प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी)

इस योजना का शुभारंभ 25 जून, 2015 को हाउसिंग एण्ड अर्बन पावर्टी एलीवेशन मिनिस्ट्री के अंतर्गत किया गया। इसके अंतर्गत वर्ष 2015 से वर्ष 2022 के बीच इस योजना पर कार्य होगा। इस योजना के प्रमुख उद्देश्य वर्ष 2022 तक शहरी गरीबों को आवास उपलब्ध करना है। इस योजना के तहत 2022 तक 1.20 करोड़ मकान निर्माण का लक्ष्य रखा गया है। यह योजना जनगणना 2011 के अनुसार, घोषित सभी 4041 साविधिक कस्बों को कवर करेंगी। इसका कार्यान्वयन तीन चरणों में किया जाएगा

अप्रैल, 2015-मार्च, 2017 तक 100 शहरों के लिए।

अप्रैल, 2017 मार्च, 2019 तक अतिरिक्त 200 शहर।

अप्रैल, 2019 मार्च, 2022 तक शेष सभी शहर।

इस योजना के तहत ऐसी मकान निर्माण टेक्नॉलाजी पर बल दिया जाएगा जिससे मकान वहनीय हो तथा निर्माण में तीन महीने से अधिक नहीं लगे।

प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण)

ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत चल रही इस योजना का प्रारंभ 20 नवंबर, 2016 को किया गया था। इस योजना का लक्ष्य वर्ष 2022 तक सबके लिए आवास के रूप में रखा गया है। इस योजना के प्रथम चरण में वर्ष 2019 तक 1 करोड़ मकान बनाने का लक्ष्य रखा गया। इस योजना के प्रावधानों के तहत मैदानी क्षेत्रों में प्रति इकाई 1.20 लाख रुपये और पहाड़ी क्षेत्रों में 1.30 लाख रुपये की सहायता का प्रावधान किया गया है।

इस योजना के लाभार्थियों की पहचान हेतु सामाजिक-आर्थिक-जातीय जनगणना, 2011 का उपयोग किया जाएगा। इस योजना में यह भी व्यवस्था है कि लाभार्थी चाहे तो 70,000 रुपये का बैंक ऋण प्राप्त कर सकता है। इस योजना की लागत वहन करने में केन्द्र तथा राज्य की हिस्सेदारी मैदानी क्षेत्रों में 60 : 40 के अनुपात तथा पहाड़ी क्षेत्रों में 90 : 10 के अनुपात में होगी। इस योजना के अंतर्गत मकान के आवंटन को परिवार के महिला सदस्य के नाम में करने की वरीयता होगी।

भारत निर्माण योजना

इस योजना को दिसम्बर, 2005 में ग्रामीण क्षेत्रों में अवस्थापना तथा आधारभूत सुविधाओं के निर्माण के लिए शुरू किया गया। भारत निर्माण योजना के छः अंग है-सड़क, सिंचाई, जल-आपूर्ति, भवन निर्माण, ग्रामीण विद्युतीकरण तथा ग्रामीण टेलकॉम कनेक्टिविटी। इन आधारभूत सुविधाओं को प्रदान कर ग्रामीण भारत में भी एक स्तर तक मूलभूत नगरीय सुविधा प्रदान करने की कोशिश की गई है। इस प्रकार यह ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में अंतराल में कमी लाने तथा ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने से संबंधित योजना है। ग्रामीण आवास से संबंधित इंदिरा आवास योजना, विद्युतीकरण से संबंधित राजीव गाँधी नामीण विद्युतीकरण योजना, सड़क निर्माण से संबंधित प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना आदि इसमें सम्मिलित योजनायें हैं।

भारत निर्माण योजना के प्रमुख उद्देश्य-

वंचित वर्गों के लिए 60 लाख अतिरिक्त मकानों का निर्माण कर अगले पाँच वर्ष में आवास लक्ष्य को दो गुणा करना।

ग्रामीण जलापूर्ति कार्यक्रम को वर्ष 2011 तक पूरा करना।

सिंचाई के अंतर्गत 1 करोड़ हेक्टेयर अतिरिक्त जोत को लाना।

• 1000 से अधिक जनसंख्या वाले (पहाड़ी क्षेत्रों में 500 से अधिक) ग्रामों को सड़क से जोड़ना।

विद्युतीकरण से बचे हुए 1,25,000 गांवों तथा 2.30 करोड़ घरों को बिजली सुविधा प्रदान करना।

अवशिष्ट 66,822 गांवों का टेलीफोन सुविधा प्रदान करना।

यह योजना इस बात में भी विशेष महत्व रखता है कि ग्रामीणअवस्थापना को विकसित करने से ग्रामीण क्षेत्र के विकास, रोजगार सृजन में बढ़ोत्तरी होगी जो बेरोजगारी को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी।

इंदिरा आवास योजना

वर्ष 1985-86 से प्रारंभ तथा वर्ष 1999-2000 में पुनर्गठित यह योजना गांव में गरीबों के लिए मुफ्त में मकान के निर्माण की प्रमुख योजना है। यह एक केन्द्र प्रयोजित योजना है जिसका वित्तपोषण केन्द्र और राज्यों के बीच 75 : 25 (केन्द्र शासित प्रदेश में 100%) के अनुपात में किये जाने का प्रावधान था, परंतु 1 अप्रैल, 2013 से यह 50 : 50 अनुपात का होगा।

प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना

इस योजना का लक्ष्य ग्रामीण सड़कों के पुननिर्माण तथा ग्रामीण जुड़ाव (कनेक्टिविटी) से है। इस योजना के प्रावधानों के अंतर्गत इस क्षेत्र से संबंधित विशिष्ट योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए राज्य सरकारों को केन्द्रीय सहायता दी जाएगी। केन्द्र सरकार में इससे संबद्ध मंत्रालय इसके संबंध में दिशा निर्देश तय करेगा तथा क्रियान्वयन का नियमन भी करेगा। पूर्व से कार्य कर रही आधारभूत न्यूनतम सेवा स्कीम इस नई योजना में सम्मिलित कर दी जाएगी।

गंगा ग्राम परियोजना

गंगा ग्राम परियोजना का शुभारंभ 23 दिसंबर, 2017 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित 'गंगा ग्राम स्वच्छता सम्मेलन' में किया गया। 'नमामि गंगे योजना' के अंतर्गत चल रही यह परियोजना गंगा नदी के तट पर बसे गांवों के सर्वांगीण स्वच्छता विकास से संबंधित है। इसका उद्देश्य गंगा तटीय गांवों को आदर्श ग्राम के रूप में विकसित करना है। यह योजना पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के अधीन क्रियान्वित होगी।

इस योजना के तहत गंगा के किनारे स्थित लगभग 4470 गांवों का स्वच्छता आधारित एकीकृत विकास किया जाएगा, जिसमें से 1674 ग्राम पंचायतों में शौचालयों के निर्माण के लिए 829 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इस योजना में निम्नांकित बातों पर बल दिया गया है-

ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन

तालाबों एवं जल संसाधनों का पुनरूद्धार

जल संरक्षण परियोजनाएं

जैविक बागवानी एवं चिकित्सकीय पौधो की कृषि को प्रोत्साहन आदि।

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य : SAUBHAGYA)

इस योजना की शुरूआत सितम्बर, 2017 में की गयी। ऊर्जा मंत्रालय के अंतर्गत इस योजना की शुरूआत की गई है। इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में सभी एपीएल तथा बीपीएल परिवारों को तथा शहरी क्षेत्रों में सभी बीपीएल परिवारों को मुफ्त बिजली कनेक्शन प्रदान करने का प्रावधान है। इस योजना का प्रमुख लक्ष्य देश के सभी भागों में सभी परिवारों का युनिवर्सल विद्युतीकरण है। ग्रामीण विद्युत निगम इस योजना के क्रियान्वयन के लिए नोडल एजेन्सी नामित की गई है। इस योजना के तहत लाभार्थियों की पहचान सामाजिक-आर्थिक जनगणना 2011 के तहत की जाएगी।

समर्थ योजना

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा 20 दिसंबर, 2017 को कपड़ा क्षेत्र में क्षमता निर्माण हेतु एक नई योजना को मंजूरी प्रदान की गई थी। इसी के परिप्रेक्ष्य में कपड़ा मंत्रालय द्वारा 23 अप्रैल, 2018 को 'समर्थ योजना' का दिशा-निर्देश जारी किया गया।

यह योजना 1300 करोड़ रुपये के परिव्यय से वर्ष 2017-18 से वर्ष 2019 20 तक, तीन वर्षों के लिए है। इस योजना के प्रावधानों के अनुसार, 10 लाख लोगों को कपड़ा क्षेत्र से संबंधित परिक्षण प्रदान कराने का लक्ष्य रखा गया है, जिससे वे आजीविका के बेहतर विकल्पों को प्राप्त कर सकें।

अगस्त, 2019 में केन्द्रीय कपड़ा मंत्रालय ने समर्थ योजना के तहत 16 राज्य सरकारों के साथ समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित किए, जिससे 4 लाख लोगों को कौशल प्रदान किया जा सकेगा।

साथी पहल

'साथी' (SATHI: सस्टेनेबल एण्ड एक्सिलरेटेड एडॉप्शन ऑफ इफिशिएण्ट टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी टू हेल्प स्मॉल इंडस्ट्रीज) विद्युत मंत्रालय एवं कपड़ा मंत्रालय की एक संयुक्त पहल है। 24 अक्टूबर, 2017 को इस पहल क्रियान्वयन हेतु समझौता किया गया।

इस पहल के अंतर्गत विद्युत मंत्रालय के अधीन 'ऊर्जा दक्षता सेवा लिमिटेड' (ई.ई.एस.एल.) द्वारा थोक मात्रा में ऊर्जा दक्ष पावरलूम मशीने खरीदकर उन्हें लघु एवं मध्यम पावरलूम इकाइयों को बिना किसी अग्रिम लागत के प्रदान किया जाएगा। पावरलूम धारकों द्वारा इसे 4-5 वर्षों में किस्तों में इन मशीनों का पुनर्भुगतान ऊर्जा दक्षता सेवा लिमिटेड को किया जाएगा। इस प्रक्रिया से पावरलूम उद्योग की ऊर्जा दक्षता तथा उत्पादकता दोनों में वृद्धि होगी।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना

इस योजना का शुभारंभ । जुलाई, 2015 को किया गया। इस योजना में 'त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम', 'समेकित वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम तथा खेत में जल प्रबंधन को सम्मिलित कर दिया गया है। इस योजना का लक्ष्य उचित तकनीकों, प्रौद्योगिकियों एवं पद्धतियों के माध्यम से जल का दक्ष उपयोग एवं क्षेत्रीय स्तर पर सिंचाई में निवेश संवर्धन करना है।

राष्ट्रीय स्तर पर इस योजना की निगरानी एवं निरीक्षण प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित एक अंतर-मंत्रालयी राष्ट्रीय संचालन समिति द्वारा की जाती है, जिसमें सभी संबंधित मंत्रालयों के केंद्रीय मंत्री सदस्य हैं।

इस योजना के अंतर्गत 5 वर्षा (2015-16 से 2019 20) के लिए 50 हजार करोड़ रुपये के व्यय का प्रावधान किया गया है। राज्यों के कृषि विभाग इस योजना के कार्यान्वयन हेतु नोडल एजेंसी होंगे।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना

इस योजना का शुभारंभ 13 जनवरी, 2016 को किया गया। यह योजना खरीफ वर्ष 2016 से प्रभावी है। इस योजना का लक्ष्य प्राकृतिक आपदाओं, कीटों एवं बीमारियों के परिणामस्वरूप फसलों की क्षति की स्थिति में किसानों को वित्तीय सहयोग प्रदान करना है। इस योजना के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की फसलों को कवर किया गया है। इसके अंतर्गत रबी, खरीफ, वाणिज्यिक एवं बागवानी फसलें शामिल की गई हैं।

इस योजना में किसानों द्वारा देय प्रीमियम राशि खरीफ फसलों पर 2.0 प्रतिशत, रबी पर 1.5 प्रतिशत और वाणिज्यिक एवं बागवानी फसलों पर 5 प्रतिशत है। इस योजना के प्रावधानों के अनुसार, प्रीमियम राशि, बीमित राशि या अनुमानित भावी क्षति, दोनों में से जो कम हो, का निर्दिष्ट प्रतिशत होगा।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना

19 फरवरी, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राजस्थान के सूरतगढ़ में इस योजना का शुभारंभ किया गया। 'स्वस्थ धरा, खेत हरा' के आदर्श वाक्य के साथ प्रधानमंत्री ने इसका शुभारंभ किया था।

इस योजना का लक्ष्य मृदा स्वास्थ्य में सुधार हेतु किसानों को मृदा की वास्तविक स्थिति को बताना है जिससे संपोषणीय कृषि को बढ़ावा दिया जा सके। इस योजना के प्रावधानों के अंतर्गत अगले 3 वर्षों में 14 करोड़ किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करना हैं। ये कार्ड प्रत्येक तीन वर्ष के चक्र में एक बार जारी किए जाएंगे।

यह योजना कृषि एवं सहकारिता विभाग की देख-रेख में भारत के सभी राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों में लागू की जा रही है।

स्मार्ट सिटी मिशन

इस मिशन की शुरूआत 25 जून, 2015 को की गई। इस मिशन का लक्ष्य शहरों में बुनियादी सुविधाओं का विकास कर, नागरिकों को सभ्य एवं गुणवत्तापूर्ण जीवन शैली प्रदान करने के साथ एक स्वच्छ एवं टिकाऊ पर्यावरण का निर्माण करना है। इस मिशन के अंतर्गत सभी राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों को समग्र रूप से 100 स्मार्ट सिटीज वितरित किए जाने का लक्ष्य है, जिसमें से अब तक लगभग 100 से ऊपर शहर चुने जा चुके हैं।

इस मिशन के वित्तीयन के अंतर्गत केन्द्र द्वारा प्रति शहर, प्रति वर्ष 100 करोड़ रुपये और इतनी ही राशि का योगदान राज्यों द्वारा करने का प्रावधान किया गया है।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी रर्बन मिशन

इस मिशन की शुरूआत 21 फरवरी, 2016 को की गयी। यह मिशन ग्रामीण विकास मंत्रालय के अधीन क्रियान्वित होती है। इस मिशन का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में शहर जैसी सुविधा जिसमें कौशल विकास तथा आर्थिक विकास सम्मिलित है, मुहैया कराना है। यह स्कीम ग्रामीण क्षेत्रों में तीव्र आर्थिक विकास लाने के उद्देश्य से की गई है। इसके अंतर्गत पूरे देश में स्थानीय आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने हेतु 300 ग्रामीण कलस्टरों के विकास का प्रावधान किया गया है, जिन्हें 'रर्बन कलस्टर' नाम दिया गया है।

राज्य सरकारों द्वारा ऐसे ग्राम पंचायतों के समूह का चयन किया जाएगा, जिनकी जनसंख्या मैदानी तथा तटीय भागों में 25-50 हजार एवं रेगिस्तानी, पहाड़ी, द्वीपीय तथा जनजातीय क्षेत्रों में 5-15 हजार तक होगी। इस मिशन के अंतर्गत वर्ष 2015-16 से वर्ष 2019-20 तक की समयावधि हेतु 5142.08 करोड़ रुपये परिव्यय का प्रावधान किया गया है।

अटल पेंशन योजना

इस योजना की शुरूआत । जून, 2015 को पूर्व की स्वावलंबन योजना का विलय करने किया गया। इस योजना की घोषणा वित्तमंत्री ने 2015-16 की केन्द्रीय बजट में की थी। यह योजना वित्तमंत्रालय के अधीन चल रही एक पेंशन योजना हैं।

इस योजना का लक्ष्य निजी क्षेत्र में कार्यरत असंगठित गरीब कामगारों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना हैं। यह योजना असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रहे उन सभी नागरिकों से संबंधित होगी जो किसी वैधानिक सामाजिक सुरक्षा योजना के सदस्य नहीं है। इस योजना के तहत अभिदाताओं को उनके अंशदान के आधार पर 60 वर्ष की आयु पूरी होने पर 1000-5000 के बीच पेंशन का प्रावधान है। इस योजना की पात्रता की शर्तों के अनुसार 18-40 वर्ष की आयु के सभी बैंक खाताधारक इसके पात्र होंगे। अभिदाता द्वारा अंशदान की न्यूनतम अवधि 20 वर्ष है। 5 वर्षों तक अंशदान का 50 प्रतिशत था 100 रुपया प्रतिवर्ष जो भी कम हो, का वहन सरकार द्वारा किये जाने का प्रावधान है।

बालिका समृद्धि योजना

इस योजना का शुभारंभ बालिकाओं के प्रति समाज के दृष्टिकोण में बदलाव लाने के लक्ष्य के साथ वर्ष 1997 में शुरू किया गया। आगे, जून 1999 में इसे पुनर्गठित किया गया। वर्ष 1999 के पूर्व शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे के परिवार में पैदा हुई बालिका की माँ को 500 रुपये का अनुदान दिया जाता था, पुनर्गठित योजना में बालिका के पैदा होने के बाद प्रति बालिका 500 रुपया का जो अनुदान दिया जाता था, उसे नवजात बालिका के नाम पर ब्याज प्रदान करने वाले खाते में जमा कर दिया जाता है।

किशोरी शक्ति योजना

यह योजना किशोर उम्र की लड़कियों के सशक्तिकरण को ध्यान में रखकर लाई गई। 11 से 18 वर्ष की किशोरियों के लिए एक विशेष योजना है जिसके अंतर्गत आई.सी.डी.सी.एस. अवसंरचना का उपयोग करते हुए पोषाहार, साक्षरता तथा व्यवसायिक दक्षता के साथ किशोरियों के बहुमुखी विकास को बढ़ावा दिया जाता है।

माँ-कार्यक्रम

इस कार्यक्रम का शुभारंभ 5 अगस्त, 2016 को किया गया। यह कार्यक्रम केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा चलाया लांच किया गया है।

इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य स्तनपान के लाभ के संबंध में लोगों में जागरूकता को फैलाना है, विशेष रूप से माताओं को इस लाभ के बारे में जागरूक करना इस कार्यक्रम का प्रमुख लक्ष्य है, ताकि इससे स्तनपान को बढ़ावा मिल सके। इस कार्यक्रम के तहत केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 30 करोड़ रुपये का आवंटन का प्रावधान किया गया है, जिसमें प्रत्येक जिले के लिए लगभग 4.3 लाख रुपये आबंटित है।

जल शक्ति अभियान

केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने 1 जुलाई, 2019 को इस अभियान का शुभारंभ नई दिल्ली में किया। इस अभियान का प्रमुख लक्ष्य जल की कमी वाले क्षेत्रों में जल प्रबंधन, जल संचय एवं जल संरक्षण की पहल पर कार्य करना है।

देश में जल स्तर की लगातार गिरावट, पानी की किल्लत और वर्ष 2019 में अपेक्षाकृत कमजोर मानसून से उपजी परिस्थितियों के बीच पूरे देश में इस अभियान की शुरूआत की गई है। इस अभियान के तहत सरकार का लक्ष्य देश के प्रत्येक परिवार को सम्पोषणीय आधार पर प्राथमिकता के साथ शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराना है।

इस अभियान में देश के 256 जिलों के 1592 विकास खण्डों को शामिल किया गया है। जल शक्ति अभियान से संबंधित कुछ प्रमुख पहलु-

जल संरक्षण एवं वर्षा जल का संचयन

जल का पुन: उपयोग

पारम्परिक एवं अन्य जल स्रोतों का कायाकल्प

जलोन्सारण क्षेत्रों का निर्माण

वनीकरण

प्रधानमंत्री जन-धन योजना

'मंरा खाता, भाग्य विधाता' के आदर्श वाक्य के साथ यह योजना 28 अगस्त, 2014 को शुरू की गई। इस योजना का प्रमुख लक्ष्य गरीब एवं वंचित वर्गों का वित्तीय समावेशन कर उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त करना है। चित एवं गरीब लोगों को वित्तीय सेवाओं यथा बचत बैंक खाता, साख (क्रेडिट), बीमा, पेंशन आदि की उपलब्धता इस योजना के प्रमुख घटक हैं। इस योजना के तहत वित्तीय जागरूकता का संवर्धन एवं प्रत्यक्ष लाभ अंतरण से इन्हें संबद्ध करना की प्रमुख उद्देश्य है। इस योजना की एक प्रमुख विशेषता रूपे डेबिट कार्ड के साथ 1 लाख रुपये का दुर्घटना बीमा भी है।

इस योजना की एक प्रमुख उपलब्धि यह रही कि 4 अप्रैल, 2018 तक कुल 31.42 करोड़ खाते खोले जा चुके है।

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना

इस योजना की शुरूआत 8 अप्रैल, 2015 को भी गई। मुद्रा (MUDRA: माइक्रो युनिट डेवलॉपमेण्ट एण्ड रिफीनॉन्स एजेन्सी) का गठन कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक के एक अनुषंगी इकाई के रूप में की गई है।

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का प्रमुख उद्देश्य है 'धनहीन को धन प्रदान करना।' इस योजना के तहत पिरामिड के निम्नतम स्तर के व्यापक आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए सर्वोत्तम एवं वैश्विक स्तर की एकीकृत वित्तीय सहायता सेवा प्रदान इसका लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस योजना के अंतर्गत सूक्ष्म संस्थाओं को तीन नेणियों में विभाजित किया गया है-

• शिशु उद्योग-50 हजार रुपये तक।

किशोर उद्योग-50 हजार से 5 लाख रुपये तक।

तरूण उद्योग-5 लाख से 10 लाख रुपये तक।

स्वच्छ भारत अभियान

गाँधी जयंती के अवसर पर 2 अक्टूबर, 2014 को शुरू हुए 'स्वच्छ भारत अभियान' का लक्ष्य वर्ष 2019 तक भारत को खुले में शौच की प्रवृति से मुक्त बनाना हैं इस अभियान का महत्व इस बात से ही आंका जा सकता है कि स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में राजपन पर इस अभियान का शुभारंभ करते हुए कहा, “वर्ष 2019 में महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती के अवसर पर भारत उन्हें स्वच्छ भारत के रूप में सर्वश्रेष्ठ श्रद्धांजलि दे सकता है।"

इस अभियान का लक्ष्य व्यक्तिगत, सामूहिक और सामुदायिक शौचालय के निर्माण के माध्यम से हासिल किया जाना है, ताकि गाँधी जी की 150वीं जयंती (2 अक्टूबर, 2019) तक संपूर्ण भारत को स्वच्छ बनाया जा सके। इसमें ग्राम पंचायत के जरिये ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के साथ गांवों को साफ रख जाने की योजना है। इस अभियान को सही तरीके से लागू करने के लिए 19 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन भी किया गया है। इस अभियान के तहत कुल 4041 साविधिक नगरों में 5 वर्षों तक चलने वाले इस कार्यक्रम की अनुमानित लागत लगभग 64000 करोड़ रुपये होगी।

स्वच्छ भारत अभियान के दो उप-अभियान है-प्रथम स्वच्छ भारत ग्रामीण अभियान एवं दूसरा, स्वच्छ, भारत शहरी अभियान।

स्टार्ट-अप इंडिया

'स्टार्ट-अप इंडिया' की घोषणा 15 अगस्त 2015 को की गई थी जबकि इस स्कीम का शुभारंभ 16 जनवरी, 2016 को हुई। इस स्कीम का प्रमुख उद्देश्य नवोन्मेष को बढ़ावा देना तथा कारोबार की शुरूआत हेतु अनुकूल वातावरण का सृजन करना है। इस स्कीमक्षके अर्हता के अनुसार कंपनी का गठन अथवा पंजीकरण भारत में होना अनिवार्य है। साथ ही किसी वित्तीय वर्ष में वार्षिक कारोबार (टर्न ओवर) 25 करोड़ से अधिक न हो। कंपनी प्रौद्योगिकी या बौद्धिक संपदा आधारित नए उत्पादों, प्रक्रियाओं अथवा सेवाओं के नवप्रवर्तन, विकास, अनुप्रयोग या वाणिज्यिकरण के संबंध में कार्य कर रहा हो या इसमें बड़ी मात्रा में रोजगार सृजन अथवा परिसम्पति सृजन का सामर्थ्य विद्यमान हो नवप्रवर्तन आधारित स्टार्टअप को वित्तीय सहायता देने के लिए 10,000 करोड़ रुपये के फंड की स्थापना की गई है। इस फंड का प्रबंधन सिडबी (SIDBI) द्वारा की जाएगी।

स्टैंड-अप इंडिया

'स्टैंड अप इंडिया' की घोषणा 15 अगस्त, 2015 को की गई थी, जबकि इसका शुभारंभ 5 अप्रैल, 2015 को नोएडा (उत्तर प्रदेश) से की गई।

इस स्कीम का लक्ष्य संस्थागत साख संरचना तक अनुसूचित जाति। जनजाति एवं महिला उद्यमियों की पहुँच को आसान व सुलभ बनाना है। इसके अंतर्गत सभी वाणिज्यिक बैंकों की प्रत्येक शाखा से कम से कम एक अनुसूचित जाति। जनजाति तथा एक महिला ऋणग्राहियों को 10 लाख से 1 करोड़ रुपये तक का ऋण किसी नवउद्यम हेतु उपलब्ध करवाना है। सिडवी (SIDBI) इस स्कीम के तहत 10,000 करोड़ रुपये का पुनर्वित खिड़की उपलब्ध करवायेगा। साथ ही इस स्कीम में यह भी प्रावधान है कि नेशनल क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट कंपनी लिमिटेड (NCGTL) 5,000 करोड़ रुपये के कोष के माध्यम से एक विशेष क्रेडिट गारंटी तंत्र का निर्माण करेगा।

मेक इन इंडिया

'मेक इन इंडिया' स्कीम का शुभारंभ 25 सितम्बर, 2014 को किया गया। इस स्कीम का प्रमुख उद्देश्य विनिर्माण क्षेत्र के बेहतर संवर्धन हेतु भारत को महत्वपूर्ण विनिर्माण निवेश तथा अभिनव प्रयोगों के वैश्विक केंद्र के रूप में परिवर्तित करना है, ताकि भारत इस क्षेत्र विशेष में एक महत्वपूर्ण हब के रूप में स्थापित हो सके।

मेक इन इंडिया स्कीम के लिए 25 विशेष औद्योगिक क्षेत्रों की पहचान की गई है, ताकि इनका बेहतर संवर्धन हो सके। इस स्कीम के तहत वर्ष 2022 तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी को 16 प्रतिशत से बढ़ाकर 25 प्रतिशत करना एवं क्षेत्र में 100 मिलियन अतिरिक्त रोजगार का सृजन करना भी लक्ष्य रखा गया है।

'संगम' परियोजना

इस परियोजना का शुभारंभ मार्च, 2019 में किया गया है। भारत में अधिकारियों और कार्यकर्ताओं को स्वच्छ भारत ई-लर्निंग पोर्टल पर प्रशिक्षित करने के लिए माइक्रोसॉफ्ट और भारत के आवासन व शहरी कार्य मंत्रालय की संयुक्त भागीदारी में इस परियोजना का क्रियान्वयन किया गया है। 'संगम' वास्तव में एक 'क्लाउड-होस्टेड' मोबाइल फर्स्ट कम्युनिटी‌लर्निंग प्लेटफार्म है, जिसके माध्यम से 'स्वच्छ भारत ई-लर्निंग पोर्टल पर नगरपालिका के अधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जायेगा।

प्रवासी तीर्थ दर्शन योजना

22 जनवरी, 2019 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 15वें प्रवासी भारतीय दिवस के उद्घाटन के दौरान 'प्रवासी तीर्थ दर्शन योजना' को तैयार किये जाने संबंधी उद्घोषणा की गई।

इस योजना के तहत् चयनित भारतीय प्रवासियों के एक समूह को केन्द्र सरकार वर्ष में 2 बार भारत में धार्मिक स्थानों की यात्रा कराएगी। इस योजना के प्रावधानों के तहत अभिष्ट प्रवासियों के चयन में मॉरीशस, सूरीनाम, गुयाना, फिजी, त्रिनिदाद एवं टोबैगो और जमैका में रहने वाले गिरमिटिया (भारतीय श्रमिकों के वंशज) लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी।

स्वदेश दर्शन स्कीम

इस स्कीम की शुरूआत जनवरी, 2015 में की गई थी। यह पर्यटन मंत्रालय द्वारा शुरू की गई स्कीम है। यह पूर्ण रूप से केन्द्र समर्थित स्कीम हैं इस स्कीम का प्रमुख उद्देश्य विशिष्ट उद्देश्य आधारित पर्यटन सर्किट विकसित करना है। इन पर्यटन सर्किट को उच्च पर्यटन मूल्य, प्रतिस्पर्धात्मकता तथा पोषणीयता के सिद्धांत के आधार पर विकसित किया जाएगा। इस स्कीम के तहत प्रारंभ में पाँच सर्किट विकसित करने की बात की गई है, ये है-बुद्धिस्ट सर्किट, हिमालयन सर्किट, कृष्णा सर्किट, उत्तरी पूर्वी सर्किट तथा कोस्टल सर्किट। आगे इस स्कीम में और भी सर्किटों को सम्मिलितक्षकिया गया है, जैसे-वन्यजीव सर्किट, ट्राइबल सर्किट, रेगिस्तान सर्किट, सूफी सर्किट, तीर्थान्कर सर्किट, हेरिटेज सर्किट, इको सर्किट आदि। वर्तमान में इनकी संख्या 15 हैं।

उड़ान योजना

'उड़े देश का आम नागरिक' के टैग लाइन के साथ सिविल एविएशन मंत्रालय द्वारा 27 अप्रैल, 2017 से संचालित उड़ान योजना क्षेत्रीय एविएशन बाजार को विकसित करने से संबंधित है। यह क्षेत्रीय हवाई अड्डों के विकास तथा क्षेत्रीय कनेक्टिविटी से संबंधित भारत सरकार की स्कीम हैं जो आम आदमी का उड़ान की सुविधा तथा सहूलियत से जोड़ने की व्यवस्था से संबंधित है।

इस स्कीम का प्रमुख लक्ष्य क्षेत्रीय स्तर पर वहनीय, आर्थिक दृष्टि से व्यवहार्य तथा लाभप्रद उड़ान सृजित करना है, ताकि छोटे और मझोले शहरों में आम आदमी के लिए भी उड़ान वहनीय हो सके। यह स्कीम 200 से 800 किलोमीटर के बीच लागू होगी। इस स्कीम की क्रियान्वयन ऑथरिटी 'एयरपोर्ट ऑथरिटी ऑफ इंडिया को बनाया गया है। साथ ही इस स्कीम के तहत केन्द्र सरकार एयलाइन्सों को इसके अंतर्गत होने वाली हानि के लिए सब्सिडी व्यवस्था का भी प्रावधान किया है।

दीन दयाल स्पर्श योजना

'दीन दयाल स्पर्श योजना' का शुभारंभ 3 नवंबर, 2017 को तत्कालीन दूरसंचार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) मनोज सिन्हा द्वारा किया गया। यह एक छात्रवृत्ति योजना है जिसका प्रमुख उद्देश्य डाक टिकटों के प्रति अभिरूचि को बढ़ावा देना है, साथ ही इस क्षेत्र में शोध कार्य को प्रोत्साहित भी करना है। इसका पूर्ण रूप 'डाक टिकटों के प्रति अभिरूचि और शोधकार्य के प्रोत्साहन हेतु छात्रवृत्ति (SPARSH: स्कॉलरशिप फॉर प्रोमोशन ऑफ एप्टिट्यूड एण्ड रिसर्च इन स्टांप्स ऐज ए हॉबी) है। यह योजना कक्षा 6 से 9 तक के विद्यार्थियों के लिए है। इस योजना के तहत पूरे भारत में 920 छात्रवृतियां (500 रुपये प्रतिमाह) प्रदान की जाएगी।

संकल्प और स्ट्राइव योजनाएं

आर्थिक मामलों की मंत्रीमंडलीय समिति द्वारा 11 अक्टूबर, 2017 को 'संकल्प' एवं 'स्ट्राइव' योजनाओं के स्वीकृति प्रदान की गई। ये दोनों योजनाएं बाजार आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल विकास से संबंधित हैं।

संकल्प आजीविका संवर्धन हेतु कौशल अभिग्रहण और ज्ञान जागरूकता' (SANKALP: स्कील्स एक्यूजिशन एण्ड नॉलेज अवेयरनेस फॉर प्रोमोशन का संक्षिप्त रूप हैं, वहीं स्ट्राइव 'औद्योगिक मूल्य संवर्धन हेतु कौशल सशक्तिकरण' (STRIVE-स्कील स्ट्रेनथिंग फॉर इंडस्ट्रियल वैल्यू इनहान्शमेंट) का संक्षिप्त रूप है।

अटल भूजल योजना

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 25 दिसम्बर, 2019 को कम भूजल स्तर वाले क्षेत्रों में भूजल संरक्षण को प्रोत्साहन देने के लिए 'अटल भूजल योजना का शुभारंभ किया गया।

इस योजना की रूप रेखा सहभागी भूजल प्रबंधन के लिए संस्थागत संरचना को सुदृढ़ करने तथा सात राज्यों यथा गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश में टिकाऊ भूजल संसाधन प्रबंधन के लिए समुदाय स्तर पर व्यवहारगत बदलाव लाने के मुख्य उद्देश्य के साथ बनाई गई है।

इस योजना के प्रावधानों के अंतर्गत 6,000 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय में 50 प्रतिशत विश्व बैंक ऋण के रूप में होगा, जिसका भुगतान केन्द्र सरकार करेगी। शेष 50 प्रतिशत नियमित बजटीय सहायता से केन्द्रीय सहायता के रूप में उपलब्ध कराया जाएगा।

इस योजना के कार्यान्वयन से इन राज्यों के 78 जिलों में लगभग 8350 ग्राम पंचायतों को लाभ पहुँचने की उम्मीद है। इसके तहत् तटीय क्षेत्रों के युवाओं को मत्स्य पालन से जोड़कर रोजगार के सृजन का भी प्रावधान किया गया है।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना

20 मई, 2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रीमण्डल ने 'प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना' के क्रियान्वयन को मंजूरी प्रदान की है। इस योजना का प्रधान लक्ष्य नीली क्रांति के माध्यम से देश में मत्स्य पालन क्षेत्र के सतत और जवाबदेह विकास को सुनिश्चित करना है।

वित्त वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक अर्थात् पांच वर्षों की अवधि के लिए इस योजना को लागू किया जाएगा। कुल 20,050 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली यह योजना, केन्द्रीय योजना और केन्द्र प्रायोजित योजना के रूप में लागू की जाएगी। इसमें केन्द्र की हिस्सेदारी 9,407 करोड़ रुपये, राज्यों की हिस्सेदारी 4,880 करोड़ रुपये तथा लाभार्थियों की हिस्सेदारी 5,763 करोड़ रुपये होगी।

प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के दो घटक होगें, पहला केन्द्रीय योजना और दूसरा केन्द्र प्रायोजित योजना। केन्द्रीय प्रायोजित योजना को तीन प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया है, ये है-उत्पादन और उत्पादकता को प्रोत्साहन, अवसंरचना और उत्पादन पश्चात् प्रबंधन तथा मत्स्य पालन प्रबंधन और नियामक फ्रेमवर्क।

गोल कार्यक्रम

केन्द्रीय जनजातीय कार्यमंत्री, श्री अर्जुन मुंडा ने 15 मई, 2020 को नई दिल्ली में फेसबुक की साझेदारी में जनजातीय कार्य मंत्रालय के कार्यक्रमक्ष'गोल (गोइंग ऑनलाइन ऐज लीडर्स) की शुरूआत की। डिजिटल रूप से सक्षम यह कार्यक्रम, आदिवासी युवाओं के अंदर छिपी हुई प्रतिभाओं की खोज करने के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में भूमिका निभाने की परिकल्पना करता है, जो न केवल उनके व्यक्तिगत विकास में सहायता करेगा बल्कि उनके समाज के बहुमुखी उन्नयन में भी योगदान देगा। गोल प्रणाली का प्रमुख उद्देश्य डिजिटल प्रणाली के माध्यम से आदिवासी समाज के युवाओं को मेंटरशिप प्रदान करना है।

वर्तमान में यह कार्यक्रम 5,000 आदिवासी युवाओं को डिजिटल प्लेटफार्म और उपकरणों की पूर्ण क्षमता का उपयोग करने, व्यापार करने के नए तरीके सीखने, नए अवसरों का तलाश करने और उनके साथ जुड़ने का उद्देश्य रखता है। इस कार्यक्रम की एक प्रमुख विशेषता है कि यह आदिवासी महिलाओं को डिजिटल विश्व के साथ जोड़कर उनके सशक्तिकरण संबंधित प्रयास को आगे बढ़ाने हेतु माहौल तैयार करने की दिशा में बहुत आगे तक ले जाएगा।

दीन दयाल उपाध्याय 'श्रमेव जयते' कार्यक्रम

इस कार्यक्रम की शुरूआत 16 अक्टूबर, 2014 को की गई। यह कार्यक्रम श्रम तथा रोजगार मंत्रालय के अंतर्गत क्रियान्वित किया जाएगा।

इस कार्यक्रम का लक्ष्य श्रम क्षेत्र में पारदर्शिता एवं दक्षता के माध्यम से औद्योगिक विकास हेतु अनुकूल परिवेश तैयार करना है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत पाँच योजनाएं यथा-समर्पित श्रम सुविधाा पोर्टल, आकस्मिक निरीक्षण की नई व्यवस्था, यूनिवर्सल खाता संख्या, प्रशिक्षु प्रोत्साहन योजना तथा पुनर्गठित राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना शामिल की गई है। श्रम सुविधा पोर्टल के अंतर्गत ऑन लाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा मुहैया कराने के लिए श्रमिकों को यूनिक लेबर आइडेन्टीफिकेशन नम्बर का आबंटन का भी प्रावधान है।

अटल भाषांतर योजना

इस योजना का शुभारंभ दिसंबर, 2018 में किया गया। विदेश मंत्रालय द्वारा भाषा विशेषज्ञों को प्रशिक्षण देने के प्रधान लक्ष्य के साथ 'अटल भाषांतर योजना को क्रियान्वित करने की योजना है।

इस योजना के अंतर्गत भाषा विशेषज्ञों को प्रशिक्षित करके हिंदी भाषा में अरबी, जापानी, रूसी, फ्रांसीसी, चीनी एवं स्पेनिश से विलोमतः अनुवाद करने हेतु भाषा विशिष्ट दुभाषियों का एक विशेष समूह को तैयार किया जाएगा।

संक्षिप्त में अन्य कार्यक्रम

   
कार्यक्रम   
   
वर्ष   
   
उद्देश्य   
   
सघन कृषि जिला कार्यक्रम (IADP)   
   
1960-61   
   
कृषकों को बीज, उर्वरक, औजार ऋण उपलब्ध करना।   
   
साख अधिकरण योजना (CAS)   
   
1995   
   
RBI की चयनात्मक साख नीति की एक योजना   
   
बहु-फसली कार्यक्रम   
   
1966-67   
   
कृषि उत्पादन में वृद्धि करना   
   
विभेदीकृत ब्याज दर योजना   
   
1972   
   
समाज के कमजोर वर्गों को रियायती दर 4 प्रतिशत पर ऋण उपलब्ध कराना।   
   
ग्रामीण रोजगार के लिए नकद योजना   
   
1972-74   
   
ग्रामीण विकास हेतु   
   
मरूभूमि विकास कार्यक्रम
   
काम के बदले अनाज कार्यक्रम   
   
1977-78
   
1977-78   
   
मरूभूमि विस्तार प्रक्रिया नियंत्रण एवं पर्यावरण सन्तुलन
   
विकास प्रक्रियाओं के काम हेतु खाद्यान्न देना।   
   
अन्तोदय कार्यक्रम   
   
1977-78   
   
राजस्थान में गांव के सबसे गरीब परिवारों को स्वावलम्बी बनाना।   
   
ग्रामीण युवाओं को   
   
15 अगस्त   
   
युवा वर्ग की बेरोजगारी को दूर   
   
स्वरोजगार हेतु ग्रामीण (TRYSEM)   
   
1979   
   
करने हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रशिक्षण कार्यक्रम   
   
समन्वित ग्रामीण विकास   
   
12 अक्टूबर   
   
ग्रामीण निर्धन परिवारों को स्व   
   
कार्यक्रम (IRDP)   
   
1980   
   
रोजगार हेतु ऋण उपलब्ध कराना   
   
राष्ट्रीय ग्राम्य रोजगार कार्यक्रम   
   
1980   
   
ग्रामीण निर्धनों को लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराना   
   
ग्रामीण क्षेत्रों में महिला एवं बाल विकास (NREP)   
   
1982   
   
BPL ग्रामीण परिवारों की महिलाओं को कार्यक्रम स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराना।   
   
ग्रामीण भूमिहीन रोजगार   
   
15 अगस्त   
   
भूमिहीन कृषकों व श्रमिकों को   
   
गारण्टी कार्यक्रम   (RLEGP)   
   
1983   
   
रोजगार उपलब्ध कराने हेतु।   
   
इन्दिरा आवास योजना   
   
1985-86   
   
ग्रामीण क्षेत्रों में गृह निर्माण हेतु।   
   
शहरी निर्धनों हेतु स्वरोजगार कार्यक्रम   
   
1986   
   
स्वरोजगार हेतु वित्तीय एवं तकनीकी मद   
   
सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण   
   
1988   
   
ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में शिक्षा विस्तार   
   
नेहरू रोजगार योजना   
   
अक्टूबर, 1989   
   
नगरीय बेरोजगारी को रोजगार देने हेतु।   
   
जवाहर रोजगार योजना   
   
अप्रैल, 1989   
   
ग्रामीण क्षेत्रों के बेरोजगारों को रोजगार देने हेतु।   
   
कृषि एवं ग्रामीण ऋण राहत योजना   
   
1990   
   
ग्रामीण कुशल श्रमिकों कारीगरों बुनकरों को 10000 रु. तक ब्याज मुक्त ऋण देना।   
   
शहरी सूक्ष्म उद्यम योजना   
   
1990   
   
शहरी लघु उद्यगियों को वित्तीय सहायता।   
   
शहरी सवेतन रोजगार योजना   
   
1990   
   
एक लाख से कम जनसंख्या वाली शहरी बस्तियों में गरीबों के लिए मूल सुविधा की व्यवस्था करके मजदूरी रोजगार प्रदान करना।   
   
शहरी आवास एवं आश्रय सुधार योजना   
   
1990   
   
1 लाख से 20 लाख की जनसंख्या वाली शहरी बस्तियों में आश्रय उन्नयन के माध्यम से रोजगार प्रदान करना।   
   
रोजगार आश्वासन योजना   
   
1993-94   
   
रोजगार उपलब्ध कराने हेतु।   
   
राष्ट्रीय सामाजिक सहयता   
   
1995   
   
विभिन्न योजनाओं द्वारा लोगों कार्यक्रम को सहायत।   
   
संगम योजना   
   
1996   
   
विकलांगों के कल्याण हेतु।   
   
कस्तूरबा गांधी शिक्षा योजना   
   
15 अगस्त 1997   
   
नीची महिला साक्षरता वाले जिलों में बालिका विद्यालय की स्थापना   
   
स्वर्ण जयंती शहरी   
   
1 दिसंबर   
   
शहरी क्षेत्रों में लाभ प्रद रोजगार   
   
रोजगार योजना   
   
1997   
   
उपलब्ध कराना।   
   
जवाहर ग्राम समृद्धि योजना   
   
1 अप्रैल, 1999   
   
ग्रामीण निर्धनों का जीवन सुधारना और लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराना।   
   
अन्नपूर्णा योजना   
   
1 अप्रैल, 1999   
   
वृद्ध नागरिकों को निःशुल्क अनाज   
   
स्वर्ण जयंती ग्राम
   
   
   
1 अप्रैल   
   
सामूहिक प्रयास पर बल, सहायता   
   
स्वरोजगार योजना   
   
1999   
   
प्राप्त व्यक्ति को 3 वर्ष में BPL के ऊपर लाना।   
   
प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना   
   
2000   
   
गाँवों का समग्र विकास।   
   
अन्तोदय योजना   
   
2000   
   
बी.पी.एल. पारिवारिक सर्वाधिक गरीबों को अनाज उपलब्ध कराना   
   
आश्रय बीमा योजना   
   
जून 2001   
   
रोजगार छूटे कर्मचारियों को सुरक्षा कवच प्रदान करना।   
   
सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना   
   
25 सितम्बर, 2001   
   
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का सृजन   
   
बाल्मीकि अम्बेडकर आवास योजना   
   
दिसम्बर, 2001   
   
शहरी स्लम आबादी को स्वच्छ आवास उपलब्ध कराने हेतु।   
   
सर्वशिक्षा अभियान   
   
2000-01   
   
6-14 वर्ष के सभी बच्चों को 2010 तक नि:शुल्क एवं आठवीं तक की प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना।   
   
खाद्यान्न बैंक योजना   
   
2001   
   
घोषित ग्राम पंचायत स्तर पर खाद्यान्न बैंक की स्थापना।   
   
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना   
   
25 दिसम्बर, 2000   
   
गाँवों को सड़क से जोड़ना।   
   
हरियाली योजना   
   
27 जनवरी, 2003   
   
ग्रामीण क्षेत्रों में वृक्षारोपण को प्रोत्साहन।   
   
जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिनुअल मिशन   
   
3 दिसम्बर, 2005   
   
शहरी अवस्थापना विकास   
   
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य अभियान   
   
12 अप्रैल, 2005   
   
प्राथमिक स्वास्थ्य सुरक्षा को सुदृढ़ करना।   
   
भारत निर्माण योजना   
   
16 दिसम्बर, 2005   
   
ग्रामीण अवस्थापना सर्वांगीण तथा व्यापक विकास योजना।   
   
नेशनल रूरल लिवलीहुड   
   
2009-10   
   
SGRY का नया नाम मिशन   
   
राजीव आवास योजना   
   
2009-10   
   
स्लममुक्ति से सम्बन्धित   
   
प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना   
   
2009-10   
   
अनुसूचित जाति बहुल ग्राम विकास योजना।   
   
महिला किसान सशक्तिकरण योजना   
   
2010-11   
   
ग्रामीण किसान महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु   
   
महात्मा गांधी नेशनल रूरल एंप्लॉयमेंट गारन्टी प्रोग्राम (मनरेगा)   
   
2 अक्टूबर, 2009
   
मूलत: 2.2.2006   
   
ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार का अधिकार देना   

गरीबी निवारण की रणनीति का आलोचनात्मक मूल्यांकन

भारतीय योजनाकारों की आरम्भ से ही यह धारणा थी कि आर्थिक विकास प्रक्रिया के द्वारा राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी जिसका प्रभाव रिसाव द्वारा नीचे तक स्वयं ही पहुँच जाएगा। जिसके साथ प्रगतिशील करारोपण तथा सार्वजनिक व्यय का कल्याणकारी स्वरूप गरीबी में कमी लाएगा। परन्तु गरीबी निवारण की यह धारणा सफल न हो सकी। इस सन्दर्भ में गरीबी निवारण कार्यक्रम का पूरा ध्यान अतिरिक्त आय के सृजन पर केन्द्रित रहा है। परिवार कल्याण, पैष्टिक आहार, सामाजिक सुरक्षा तथा न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की ओर ध्यान नहीं दिया गया है। इन कार्यक्रमों में अपाहिज, बीमार तथा उत्पादक रूप से काम करने के अयोग्य लोगों के लिए कुछ नहीं किया गया है। जनसंख्या के लगातार छोटा होता जा रहा है, स्वरोजगार उद्यमों पर या मजदूरों के रोजगार कार्यक्रमों पर निर्भरता सही नहीं है।

वर्ष 1965-66 के बाद नई कृषि क्रन्ति के आने से गुणात्मक परिवर्तन हुआ। अब कृषि उत्पादन में वृद्धि और अधिक भूमि के कारण नहीं बल्कि गहन खेती के कारण होने लगी। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ऐसे परिवर्तन हुए जो गरीबों के लिए हितकर नहीं थे। जैसे मशीनों द्वारा श्रम का प्रतिस्थापन फलस्वरूप रोजगार के अवसर नहीं बढ़ सके। बड़े भूस्वामियों ने छोटे-छोटे काश्तकारों से बटाँई खेती लेकर स्वयं कृषि कार्य करना शुरू कर दिया। बड़े कृषकों की आय बढ़ने एवं महँगी कृषि आगत से साधन-विहीन सीमान्त व छोटे कृषकों की आय घटने से स्थानीय दस्तकारों व कारीगरों द्वार बनाई गई वस्तुओं की माँग गिरी और लोग ज्यादा गरीब हो गए। जबकि आवश्यकता इस बात पर ध्यान देने की है कि गरीबी की रेखा से नीचे रह रहे विभिन्न लोगों के आय स्तरों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।

गरीबी निवारण के उपाय

गरीबी की समस्या को दूर करने के लिए उन दशाओं को सुधारना आवश्यक है जिनके कारण गरीबी उत्पन्न होती है। इसके लिए एक बहुपक्षीय कूटनीति बहुत जरूरी है। इसके प्रमुख पक्ष निम्न हैं-

1. आर्थिक विकास दर को बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिए, विशेष रूप से सभी क्षेत्रों के मध्य संतुलन बनाया जाए।

2. कृषि विकास एवं गरीबी के मध्य प्रत्यक्ष सह-सम्बन्ध दिखाई देता है। जिन राज्यों में कृषि क्षेत्र की संवृद्धि दर तेज पाई गई वहाँ गरीबी में कम देखी गई। हरित क्रान्ति का प्रभाव जैसे-जैसे सीमान्त एवं छोटे कृषकों तक पहुँचा गरीबी में कमी हुई। अतः कृषि विकास की नवीन रणनीति, लघु व सीमान्त कृषिकों तथा ऐसे भूमि क्षेत्रों को भी ध्यान में रखना है, जहाँ भूमि उपज न्यून है।

3. गरीबी के निवारण हेतु ग्रामीण एवं लघु कुटीर उद्योगों एवं ग्रामीण हस्तशिल्प का विकास किया जाना चाहिए। इस हेतु ग्रामीण औद्योगिकरण को बढ़ावा देते हुए ग्राम स्तर पर लघु कुटीर उद्योगों को स्थापित करने के लिए अधिक प्रयास करने होंगे तथा इन्हें संसाधन, वित्त व बाजार की समस्त सुविधाएँ प्रदान करनी होंगी। लघु उद्योगों में नवीन शोध को बढ़ावा देकर अउत्पादित वस्तु की गुणवत्ता को बढ़ाना होगा।

4. एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम गरीबी निवारण की अधिक सुस्पष्ट एवं महत्वपूर्ण नीति है। इसके द्वारा उत्पादकता वृद्धि ग्रामीण जनसंख्या के जीवन स्तर में सुधार एवं स्वावलंबन युक्त विकास किया जाना सम्भव होगा। जिस परिप्रेक्ष्य में श्रम गहन कृषि विकास, कृषि आधारित लघु एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की स्थापना, एवंश्रकार्यक्रमों में निर्माण में ग्राम जन की भागीदारी सुनिश्चित करना होगा।

5. जनसंख्या की तीव्र वृद्धि ने विकास को प्रभावहीन कर दिया। राष्ट्रीय आय में नगण्य वृद्धि हुई। इस हेतु एक प्रभावी नीति के निर्माण एवं क्रियान्वयन की आवश्यकता है।

6. आय एवं धन के वितरण में असमान्यता को कम करने हेतु तीव्र कदम उठाने चाहिए। प्रगतिशील करारोपण के माध्यम से वितरण में समानता लाने का प्रयास किया जाए। भूमि एवं शहरी सम्पत्ति की अधिकता सीमा का निर्धारण कर अतिरिक्त को जनकल्याण के कार्यों में लगाया जाना चाहिए।

7. बचत, निवेश और पूँजी-निर्माण को तीव्र प्रोत्साहन हेतु प्रभावी कदम उठाने चाहिए। बचत को प्रोत्साहन कर उन्हें उत्पादक कार्यों में लगाया जाना चाहिए। इस परिप्रेक्ष्य में छोटी-छोटी बचतों को एकत्रीकरण के साथ ही विदेशी प्रत्यक्ष पूँजी को भी आकर्षित करना आवश्यक है।

8. आधारभूत आवश्यकताएं जो गरीबी के मूल कारण से जुड़ी है, प्रभावी आय आवश्यक है। इस सन्दर्भ में प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा, सड़क, बिजली, आवास एवं विद्युतीकरण के कार्यक्रमों को तीव्रता से लागू कर गरीबी पर प्रत्यक्ष प्रहार सम्भव है।

9. क्षेत्रीय असमानता को दूर करने एवं सीमान्त प्रदेशों में प्रेरित प्रयास रूपी कार्यक्रम आरम्भ करने चाहिए। जैसा कि ब्राजील, चीन, मलेशिया जैसे देशों में महज जनसंख्या प्रदेशों से भूमो पर जनसंख्या का दबाव कम करने के लिए सीमान्त प्रदेशों में प्रवास को प्रेरित करने का व बसाव की विधि को अपनाया एवं सफलता पायी।

बेरोजगारी का आशय

अर्थव्यवस्था चाहे विकसित हो अथवा अल्प विकसित बेरोजगारी एक सामान्य बात है। बेरोजगारी कुशल एवं अकुशल दोनों श्रेणी के श्रमिकों के मध्य पाई जाती है। आर्थिक दृष्टि से देखे तो यह उत्पादन के एक महत्वपूर्ण संसाधन की बर्बादी है। बेरोजगारी ऐसी स्थिति का निर्माण करती है जहाँ व्यक्ति का सर्वाधिक नैतिक पतन हो जाता है।

बेरोजगारी भारत की एक ज्वलन्त समस्या है जिसकी जड़ गहरी पहुंच चुकी है। आज इसका स्परूप दीर्घता की ओर बढ़ता चला जा रहा है। भारत में ही बेकारी नहीं अपितु बेकारी की समस्या विश्वव्यापी है। सामान्यतया जब एक व्यक्ति को अपने जीवन निर्वाह के लिए कोई कार्य नहीं मिलता है तो उस व्यक्ति को बेरोजगार और इस समस्या को बेरोजगारी कहते हैं। दूसरे शब्दों में जब कोई व्यक्ति कार्य करने का इच्छुक है और वह शारीरिक रूप से कार्य करने में समर्थ भी हैं लेकिन कोई कार्य नहीं मिलता जिससे की वह अपनी जीविका का निर्वाहन कर सके तो इस प्रकार की समस्या बेरोजगारी की समस्या कहलाती है। हम बेरोजगार जनसंख्या के उस बढ़े भाग को नहीं कहते हैं जो काम के लिए नहीं मिलतं जैसे विद्यार्थी बढ़े उम्र के व्यक्ति घरेलू कार्यों में लगी महिलायें आदि जैसा प्रो. पीगू ने कहा है “एक व्यक्ति तभी ही बेरोजगार कहलाता है। जबकि उसके पास कार्य नहीं हो और वह रोजगार पाने का इच्छुक हो।"

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के प्रकाशन के मुताबिक बेरोजगार शब्द में वे सब व्यक्ति शामिल किए जाने चाहिए जो एक दिए हुए दिन में काम की तलाश में और रोजगार में नहीं लगे हुए हैं किन्तु यदि कोई रोजगार दिया जाए तो काम में लग सकते हैं। समस्या को परिभाषित करने के लिए यह आवश्यक है कि आवश्यकता और साधन के बारे में विस्तृत विवेचन किया जाए। बेरोजगारी के सन्दर्भ में जब हम दृष्टिपात करते है तो पाते हैं कि रोजगार के अवसरों और रोजगार के साधनों के संख्यात्मक मान में भी बहुत बढ़ा अन्तर है यही अन्तर बेरोजगारी चिन्तन के लिए हमें विवश करता है। बेरोजगारी मूलरूप से गलत आर्थिक नियोजन का परिणाम है। व्यक्ति जहां संसार में एक मुंह के साथ आता है वही श्रम हेतु दो हाथ भी लाता है। जब तक इन हाथों को श्रम के साधन प्राप्त नहीं होते तब तक अर्थव्यवस्था को पूर्ण नियोजित अर्थव्यवस्था नहीं माना जा सकता है।

गाँधी जी का इस संदर्भ में विचार सम्पत्ति व्यक्तिगत नहीं होनी चाहिए उत्पत्ति के साधनों पर नियंत्रण होना चाहिए समाज में उपस्थित विभिन्न आर्थिक तत्व को नियोजित ढंग से कुटीर और लघु उद्योगों को प्रश्रय देना चाहिए।

बेरोजगारी के प्रकार

भारत में बेरोजगारी की समस्या ने कई रूप ले लिए है, जो निम्नवत हैं

प्रच्छन्न बेरोजगारी

बेरोजगारी का वह स्वरूप है जो प्रत्यक्ष रूप में दिखाई नहीं देता और छुपा रहता है भारत में इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि में पाई जाती है। जिसमें अवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे हुए हैं। यदि इनमें से कुछ व्यक्तियों को खेती के कार्यों से अलग कर दिया जाता है तो उत्पादनों में कोई अन्तर नहीं पड़ता है। इसका अर्थ यही है कि इस प्रकार के व्यक्तियों द्वारा उत्पादन में कोई योगदान नहीं दिया जाता है। ऐसे व्यक्ति प्रच्छन्न बेरोजगारी के अन्तर्गत आते हैं।

अल्प रोजगार

जब किसी व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार कार्य नहीं मिलता है या पूरा कार्य नहीं मिलता है। तो इसे अल्प रोजगार कहते हैं। जैसे एक इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त व्यक्ति लिपिक या श्रमिक के रूप में कार्य करता है तो इसे अल्प रोजगार कहते हैं ऐसे व्यक्ति कार्य करता हुआ दिखाई तो देता परन्तु इसकी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं होता है।

खुली बेरोजगारी

जब व्यक्ति कार्य के योग्य है और वह कार्य करना चाहते हैं लेकिन उन्हें कार्य नहीं मिलता है तो ऐसी स्थिति को खुली बेरोजगारी कहते हैं। भारत में इस प्रकार की बेरोजगारी व्याप्त है यहाँ लाखों व्यक्ति ऐसे हैं जो शिक्षित है तकनीकी योग्यता प्राप्त है लेकिन उनको काम करने का अवसर नहीं मिल रहा है।

मौसमी बेरोजगारी

इस प्रकार की बेरोजगारी वर्ष के कुछ समय में ही होती है भारत में यह कृषि में पाई जाती है। जब खेती की जुताई एवं बुआई का मौसम होता है तो कृषि उद्योग में दिन-रात कार्य होता है। इसी प्रकार जब कटाई का समय होता है तो फिर कृषि में कार्य होता हैं। लेकिन बीच के समय में इतना काम नहीं होता है। अतः इस प्रकार के समय में श्रमिकों को काम नहीं मिलता है। इस बेरोजगारी को मौसमी बेरोजगारी कहते हैं।

शिक्षित बेरोजगारी

खुली बेरोजगारी का ही एक रूप है। इसमें शिक्षित व्यक्ति बेरोजगार होते हैं। शिक्षित बेरोजगारी में कुछ व्यक्ति अल्प रोजगार की स्थिति में होते हैं। जिन्हें रोजगार मिला हुआ होता है लेकिन वह उनकी शिक्षा के अनुरूप नहीं होता है। भारत में भी इस प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है।

• बेरोजगारी का स्वरूप देश के शहरी तथा ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में विद्यमान है। शहरी बेरोजगारी दो प्रकार की है प्रथम शिक्षित लोगों को बेरोजगारी तथा द्वितीय औद्योगिक मजदूरों और शारीरिक श्रम करने वाले लोगों की बेरोजगारी ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी मुख्य रूप से तीन प्रकार की है प्रथम मौसमी बेरोजगारी, द्वितीय प्रच्छन्न या छिपी हुई बेरोजगारी और तृतीय प्रत्यक्ष बेरोजगारी।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार बेरोजगारी के तीन परिकल्पनाएँ की जाती हैं-

1. चिरकालिक बेरोजगारी या सामान्य स्थिति : यह बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या के रूप में माप है जो पूरे वर्ष के दौरान बेरोजगार हो। इसी कारण इस बेरोजगारी को खुली बेरोजगारी के रूप में जाना जाता है।

2. साप्ताहिक स्थिति बेरोजगारी : इसे भी व्यक्तियों की संख्या के आधार पर मापन किया जाता है अर्थात ऐसे व्यक्ति जिन्हें सर्वेक्षण सप्ताह के दौरान एक घंटे का भी रोजगार नहीं मिला हो।

3. दैनिक स्थिति बेरोजगारी : इसे व्यक्ति दिनों या व्यक्ति वर्षों के रूप में मापन करते हैं। अर्थात वे व्यक्ति जिन्हें सर्वेक्षण सप्ताह के दौरान या एक दिन या कुछ दिन रोजगार प्राप्त न हुआ हो। यह बेरोजगारी की व्यापक माप है। जिसमें सामान्य स्थिति बेरोजगारी और अल्परोजगार दोनों शामिल होते हैं।

बेरोजगारी के कारण

देश में बेरोजगारी के लिए बहुत से कारण जिम्मेदार होते हैं इन्हें हम आन्तरिक और बाहरी कारणों में बाँट सकते हैं। आन्तरिक कारण श्रमिकों के स्वभाव, शारीरिक, मानसिक व नैतिक कमियों से सम्बन्धित होते हैं। प्रायः एक व्यक्ति अपनी इच्छा के बावजूद अपनी शारीरिक मानसिक कमजोरियों दोषपूर्ण शिक्षा एवं प्रशिक्षण आदि के कारण काम पाने में असमर्थ रहता है। इन परिस्थितियों में बेरोजगारी आन्तरिक कारणों का नतीजा होती है। बेरोजगारी के बाहरी कारण भी बहुत से होते हैं। श्रम बाजार में चक्रीय उतार-चढ़ाव हो रहा है। मंदी के दिनों में व्यावसायिक क्रियाएं एक न्यूनतम स्तर पर होती है और बेरोजगारी बढ़ती है। किन्तु दूसरी ओर तेजी के दौरान व्यावसायिक क्रियाओं का विस्तार होता है और इस समय बेकारी की मात्रा घटने लगती है। मंदी और तेजी की ऐसी अवधियाँ विभिन्न कारणों से होती है जिन्हें व्यापार चक्रों के सिद्धान्तों द्वारा स्पष्ट किया जाता है। उद्योग में विवेकीकरण की योजनाओं को अपनाया जाना बेरोजगारी को उत्पन्न करता है। इसके अलावा कुछ व्यवसाय व आर्थिक क्रियाएं स्वभाव से मौसमी होती है। जैसे बिल्डिंग निर्माण या कृषि। अन्त में आकस्मिक श्रम पद्धति भी जिसके अन्तर्गत श्रमिकों को कुछ कार्यों पर सिर्फ व्यावसायिक व्यवस्था के समय ही स्थायी रूप में लगाया जाता है दूसरे समय ऐसे श्रमिकों के लिए बेकारी पैदा कर दी जाती है।

बेरोजगारी के दुष्प्रभाव

• आर्थिक दुष्प्रभाव

• सामाजिक दुष्प्रभाव

• राजनीतिक दुष्प्रभाव

मोटे तौर से बेरोजगारी के कारणों की व्याख्या के संबंध में तीन सैद्धान्तिक विचारधाराएँ पाई जाती हैं।

1. पहली विचारधारा के मुताबिक बेकारी सिद्धान्त अर्थात स्वतंत्र प्रतियोगिता तथा स्वतंत्र व्यापार से डिग जाने का दण्ड होती है।

2. दूसरी विचारधारा के मुताबिक ब कारी व्यापार चक्रों के कारणों की जटिलताओं के कारण पैदा होती है। इसे चक्रिय बेकारी के रूप में देखा जाता है।

3. तीसरी विचारधारा के मुताबिक बेकारी प्रभावी मांग की कमी उपभोग पर किये जाने वाले पूँजीगत व्यय की कमी या निवेश की कमी या दोनों ही के कारण पैदा होती है।

बेरोजगारी के दोष बहुत अधिक है। राष्ट्र के लिए बेरोजगारी समस्या एक गम्भीर समस्या है क्योंकि खाली मस्तिष्क शैतान का घर हैं। कार्ल मार्क्स के मुताबिक कार्य मानवीय अस्तित्व के लिए मूल शर्त है। व्यापक बेरोजगारी एक ऐसी बुराई है जो गम्भीर आर्थिक सामाजिक एवं राजनैतिक खतरों से भरी है। तकलीफ निराशा और असंतोष पैदा करके बेरोजगारी राजनीति और सामाजिक जीवन को कडुवा बनाती है तथा सुरक्षा को ठेस पहुंचाती है। पेट की आग को बुझाने के लिए व्यक्ति कुछ भी कार्य कर सकता है। यदि उनको सही रूप से व्यवसाय नहीं मिलेगा जिससे वह अपने अनुकूल जीवन यापन कर सके तो निश्चित रूप से ही वह गलत कार्यों को करने के लिए प्रेरित होंगे जिन्हें करना वह स्वयं भी उचित नहीं समझते किन्तु करना पड़ता है क्योंकि मरता क्या न करता।

बेरोजगारी से व्यक्ति में यह भावना आती है कि वह समाज के लिए गैर जरूरी है। वह परिवार में अपने को बोझ समझने लगता है। इसी कारण से वह अपराधी तक बन सकता है। किसी देश में निष्क्रिय मानव व्यक्ति का मतलब उत्पादन एवं आय का उस स्तर से नीचा होना है जिस पर कि वे सभी श्रमिकों को काम पर नहीं लगा सकते हैं। मानवीय दृष्टिकोण से इस बेरोजगारी का गम्भीर परिणाम व्यक्ति का स्वयं का नुकसान है। इसमें धीरे-धीरे व्यक्ति की कार्य क्षमता का ह्रास होता है। उसकी इस शक्ति को यदि उचित रूप में काम में लिया जाए तो यह राष्ट्र के लिए उन्नति समृद्धि एवं सम्पन्नता का साधन बन सकती है।

जिस देश में बेरोजगारी होती है उस देश में नई-नई सामाजिक समस्याएं जैसे चोरी, डकैती, बेईमानी, अनैतिकता, शराबखोरी, जुआ-बाजी आदि पैदा हो जाती है। जिससे सामाजिक सुरक्षा को खतरा पैदा हो जाता है शांति और सुरक्षा की समस्या उत्पन्न हो जाती है जिस पर सरकार को भारी व्यय करना पड़ता है। वर्तमान आतंकवाद की समस्या भी मेरी समझ में किसी न किसी रूप में बेरोजगारी का ही एक परिणाम है।

बेरोजगारी की समस्या देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा करती है। क्योंकि बेकार व्यक्ति हर समय राजनीति उखाड़-पछाड़ में लगे रहते हैं। आज राजनीति से जुड़े हुए बहुत व्यक्ति ऐसे हैं जो किसी न किसी रूप में समाज में अपराधी रहे हैं। ऐसे व्यक्ति अपनी योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि दबाव और शक्ति से कानून को अपने हाथ में लेना चाहते हैं।

देश में व्याप्त दीर्घस्थायी बेरोजगारी और अल्प-रोजगार की समस्या के लिए निम्न घटक उत्तरदायी हैं-जनसंख्या में होने वाली तीव्र वृद्धि के दर फलस्वरूप श्रमशक्ति में तीव्र दर-जनांकिकीय दृष्टि से हम इतनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं कि प्रगति और परिवर्तनों के बावजूद हम आर्थिक दृष्टि से ठहरे हुए जान पड़ते हैं। नियोजन काल में राज्य की जनसंख्या तथा इसके फलस्वरूप श्रमशक्ति कई गुना बढ़ गई है। बढ़ती हुई श्रमशक्ति के लिए पर्याप्त रोजगार के अवसर उपलब्ध न कराए जाने के कारण बेरोजगारी की मात्रा बढ़ती गई है।

1. अनुप्रयुक्त शिक्षा प्रणाली एवं कार्य के प्रति संकुचित दृष्टिकोण- देश में प्रचलित शिक्षा प्रणाली के कारण शिक्षित युवक नौकरी पाने की इच्छा रखते हुए भी शारीरिक श्रम वाले रोजगार से दूर भागते हैं। सरकार अभी तक शिक्षा प्रणाली को आर्थिक विकास की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं ढाल सकी है परिणामस्वरूप करोड़ों शिक्षित युवक और युवतियां रोजगार की तलाश में घूमते-फिर रहे हैं।

2. कुटीर उद्योगों का पतन-श्रम गहन होने के कारण इन उद्योगों का रोजगार की दृष्टि से विशेष महत्व है। आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत पूंजी गहन बड़े उद्योगों की स्थापना पर विशेष बल दिए जाने के कारण कुटीर और लघु उद्योगों का वांछनीय विकास नहीं हो पाया है। फलतः राज्य में गरीबी और बेरोजगारी की समस्या निरन्तर गम्भीर होती चली गई है।

3. कृषि की मानसून पर अधिक निर्भरता एवं सिंचाई साधनों का अभाव-निर्धनता के उन्मूलन, रोजगार के अवसरों में वृद्धि, आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में स्थायित्व तथा घरेलू बाजार के विस्तार की दृष्टि से कृषि के महत्व को जानते हुए तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार की आवश्यकता बार-बार स्वीकार करते हुए भी नियोजन काल में कृषि क्षेत्र को कुल निवेश योग्य साधनों में से उचित हिस्सा नहीं दिया गया है। फलत: गांवों से शहरों की ओर श्रम शक्ति के पलायन की प्रवृत्ति और पकड़ती गई तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अदृश्य बेरोजगारी की समस्या गहन होती चली गई।

4. उत्पादन साधनों का असमान वितरण-भूमि और पूँजी जैसे उत्पादन साधनों का अत्यधिक असमान वितरण, आर्थिक विषमता और बेरोजगारी की समस्या के लिए प्रत्यक्ष रूप से उत्तरादायी है। 20 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या खेतिहर श्रमिकों के रूप में निर्धनता, शोषण, कुपोषण और अल्प रोजगार से ग्रस्त है। उत्तराखण्ड में 70 प्रतिशत किसानों की जोतें अनार्थिक आकार (एक हेक्टेयर से कम) की हैं जिन्हें सम्पूर्ण वर्ष में 5-6 महीने निष्क्रिय रहना पड़ता है। दूसरी ओर बहुत थोड़ी पूँजी वाले इस राज्य में उपलब्ध पूँजी गिने चुने हाथों में केन्द्रित है। साधन सम्पन्न व्यक्तियों की स्वार्थी प्रवृत्ति के कारण विभिन्न व्यवसायों में श्रम की बचत करने वाले गहन तकनीक का उपयोग किया जा रहा है।

5. अविकसित सामाजिक दशाएं-देश को दोषपूर्ण सामाजिक संस्थाएं (जाति-प्रथा, संयुक्त परिवार प्रणाली, छुआछूत, बाल-विवाह, प्रदा पर्था आदि बेरोजगारी की समस्या को उग्र बनाने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सहायक हुई है। जनसाधारण की निरक्षरता, अन्धविश्वास और भाग्यवादिता ने भी युवकों को निष्क्रिय बनाए रखने में सहयोग दिया है। श्रम शक्ति का असन्तुलित व्यावसायिक वितरण, व्यावसायिक शिक्षण एवं शिक्षण सुविधाओं की अपर्याप्तता, श्रम शक्ति में गतिशीलता का अभाव आदि कारणों ने भी बेरोजगारी और बेरोजगार की समस्या को गम्भीर बना दिया है।

6. पर्याप्त तकनीकी प्रशिक्षण सुविधाओं का अभाव-आज अधिकांश शिक्षा ऐसी दी जाती है कि जो केवल सैद्धान्तिक ज्ञान तक ही सीमित है और जिसका जीवन में अधिक उपयोग नहीं है। बी.ए. . एम.ए. करने के बाद भी लड़कों को यह भी पता नहीं हो पता है कि अब उसे क्या करना है। तकनीकी शिक्षा के पूर्ण अभाव को कारण वह अपना कोई छोटा-मोटा व्यवसाय भी नहीं कर सकता।

7. पूँजी निर्माण की धीमी गति- बेरोजगारी में वृद्धि होने के कारण प्रति व्यक्ति आय बहुत कम होती जा रही है, परिणामस्वरूप बचत एवं विनियोग की दर में भी कमी हो रही है। इससे पूँजी निर्माण की गति बहुत धीमी हो गयी है जिसका प्रभाव उद्योग, व्यापार एवं अन्य सेवाओं पर पड़ रहा है और उनका विस्तार नहीं हो पा रहा है। इस चक्र के प्रभाव से बेरोजगारी की संख्या में और अधिक वृद्धि हो रही है।

8. स्वरोजगार के प्रति उपेक्षा-देश में शिक्षित बेरोजगारी बढ़ने के मूल में यह कारण निहित है कि प्रत्येक युवा अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद नौकरी की तलाश में जुट जाता है। उसमें स्वयं का व्यवसाय करने की भावना का अभाव रहता है, परिणामस्वरूप बेरोजगारों की संख्या में बहुत तेजी से वृद्धि होती जा रही है।

9. अन्य कारण-बड़ी संख्या में शरणार्थी आगमन, समयबद्ध रोजगार नीति एवं कार्यक्रमों का अभाव, लघु एवं कुटीर उद्योगों का पतन और उनके पुनर्विकास की धीमी गति और आर्थिक सुधारों नीतियों का रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव।

बेरोजगारी के खराब असर बराबर बढ़ते जा रहे हैं। इसीलिए विलियम बेवरिज ने लिखा है कि बेरोजगारी रखने के स्थान पर लोगों को गड्ढे खुदवाकर वापस भरने के लिए नियुक्त करना ज्यादा अच्छा है।

सार रूप में हमारे देश की बेरोजगारी का कारण उसकी संरचनात्मक अवस्था में निहित है। जो कृषि के अल्प विकास उद्योगों का असंतुलित विकास सेवा क्षेत्र के संकुचित आकार के श्रम की माँग में है जो और रोजगार के अवसर सीमित कर देते हैं। लोग विद्यमान मजदूरी दर पर कार्य करने को तत्पर हैं परन्तु फिर भी कार्य की अनुउपलब्धता के कारण वह बेरोजगार हैं।

भारत में रोजगार और बेरोजगारी का विश्लेषण

देश में रोजगार और बेरोजगारी के संबंध में अनुमान लगाने के लिए अधिकांशतः वर्तमान दैनिक स्थिति के आधार का प्रयोग किया गया है। दैनिक स्थिति पर आधारित अनुमान बेरोजगारी की समेकित दर है जिसमें समीक्षा वर्ष के दौरान एक दिन के आधार पर बेरोजगारी का औसत स्तर का उल्लेख किया गया है। दैनिक स्थिति के आधार पर रोजगार और बेरोजगारी के अनुमान दर्शाते हैं जैसा कि तालिका 9.1 में दिया गया है कि वर्ष 1983-1993 के काल में लगभग 74.50 मिलियन कार्य के अवसरों का सृजन हुआ वही वर्ष में 1993 से 2004-05 में लगभग 71 मिलियन कार्य के अवसरों का सृजन हुआ वह भी 1999-2000 से 2004-05 में 46 मिलियन कार्य के अवसरों का सृजन हुआ। रोजगार में वृद्धि इन्हीं वर्षों में 1.25 प्रतिशत प्रतिवर्ष से बढ़कर 2.62 प्रतिशत प्रतिवर्ष प्राप्त हुई। परन्तु बेरोजगारी दर 1983 के 9.22 प्रतिशत से गिरकर 1993-94 में 6.06 प्रतिशत हुई थी। वह 2004-05 में बढ़कर 8.28 प्रतिशत हो गई परन्तु बेरोजगारों की संख्या इन्हीं वर्षों में 24.34 मिलियन से गिरकर 20.27 मिलियन थी वह भी बढ़कर 34.74 मिलियन हो गई जबकि जनसंख्या वृद्धि दर 1983 से 1993-94 के दौरान 2.11 प्रतिशत से घटकर 1993-2000 में 1.98 प्रतिशत एवं 1999-2004-05 में 1.69 प्रतिशत ही रह गई।

बेरोजगारी दूर करने के सुझाव

तेजी से बढ़ रही बेरोजगारी के प्रति अर्थशास्त्री, राजनेता, चिन्तक और विद्वान सभी चिन्तित हैं। बेरोजगारी की इस गम्भीर समस्या ने अनेक ऐसी समस्याओं को जन्म दिया हैं जिनका समाधान खोज पाना अत्यधिक दुष्कर हो गया है। यदि समय रहते सुरसा की भांति मुँह बाए खड़ी बेरोजगारी के समाधान की दिशा में सार्थक प्रयास नहीं किए जा सके तो देश एवं समाज का विघटन अवश्यम्भावी है। बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए कुछ सुझाव निम्नानुसार है

1. तेजी से बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण-बेरोजगारी की गम्भीर समस्या के हल के लिए सर्वप्रथम राज्य में तेजी से बढ़ रही जनसंख्या की गति को नियन्त्रित किया जाना अति आवश्यक है। जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण किए बिना बेरोजगारी की समस्या का समाधान सम्भव नहीं है।

2. छोटे उद्योग धन्धों का विकास-बेरोजगारी दूर करने के लिए छोटे-छोटे उद्योग धन्धों का विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक यह होगा कि सरकार द्वारा बेरोजगार युवकों को अत्यधिक सुविधाजनक शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराए जाए और बेरोजगारों द्वारा स्थापित उद्योगों के उत्पादन की बिक्री की समुचित व्यवस्था की जाए।

3. कृषि से सम्बद्ध उद्योगों का विकास-देश की अर्थव्यवस्था में कृषि को प्रधानता प्राप्त है किन्तु अभी भी कृषि व्यवसाय मात्र ऋतुपरक या मौसमी रोजगार उपलब्ध कराता है। वर्ष के मात्र छ:-सात माह के लिए कृषक और कृषि श्रमिक के पास रोजगार की व्यवस्था रहती है। शेष समय में कृषक और श्रमिक बेरोजगार रहते हैं, अतः इस खाली समय के उपयोग के लिए कृषि से सम्बद्ध सहायक उद्योगों की स्थापना की जानी चाहिए; जैसे-दूध का व्यवसाय, मुर्गीपालन, पशुपालन आदि।

4. ग्रामों में रोजगार उन्मुख योजनाओं का क्रियान्वयन-देश में सर्वाधिक बेरोजगारी ग्रामीण क्षेत्रों में है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की सम्भावनाएं भी बहुत अधिक है। सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ऐसी योजनाएं तैयार करानी चाहिए जो ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने में सहायक सिद्ध हो सकें। इन योजनाओं का क्रियान्वयन भी अत्यधिक प्रभावी ढंग से किया जाना चाहिए।

5. रोजगार उन्मुख शिक्षा प्रणाली-देश की प्रचलित वर्तमान शिक्षा प्रणाली पूरी तरह सैद्धान्तिक है। यह शिक्षा प्रणाली विद्यार्थियों को रोजगार उपलब्ध कराने में सहायता नहीं करती। अतः सरकार को रोजगारोन्मुख शिक्षा प्रणाली की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि युवक स्कूल और कॉलेज की शिक्षा पूर्ण होने के बाद स्वयं का कोई व्यवसाय या रोजगार स्थापित करने में समर्थ व सक्षम हो सके।

6. उद्योगों की पूर्ण क्षमता का उपयोग-देश में यद्यपि उद्योग तुलनात्मक रूप से कम लगे हुए है तथा उनका पूर्ण दोहन भी नहीं हो पा रहा है और आवश्यकता इस बात की है कि सिर्फ उद्योगों की संख्या को ही न बढ़ाया जाए बल्कि उनकी उत्पादन क्षमता का भी पूर्ण उपयोग होना चाहिए।

7. विनियोग ढांचे में परिवर्तन-आधारिक संरचना को मजबूत बनाकर विनियोग को प्रेरित किया जा सकता है जिससे रोजगार में बढ़ोत्तरी होगी तथा अनिवार्य उपभोक्ता वस्तु उद्योगों का विस्तार भी होगा।

8. तकनीक को प्रोत्साहन-नई तकनीकी का इस प्रकार से प्रयोग होना चाहिए जिससे रोजगार पर कोई विशेष फर्क न पड़ते हुए उत्पादन क्षमता में बढ़ोत्तरी हो।

9. जनशक्ति नियोजन-देश में बेरोजगारी की स्थिति को देखते हुए इस बात की नितान्त आवश्यकता है कि जनशक्ति का वैज्ञानिक ढंग से नियोजन होना चाहिए। जिससे जनशक्ति का गुणात्मक पक्ष मजबूत होगा और इसके लिए भौतिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक तथा संगठनात्मक पहलुओं स्वस्थ आधारों पर विकसित किया जाए। जनशक्ति का व्यवसाय वितरण, व्यावसायिक ढांचा, रोजगार की सम्भावनाओं की स्थिति तथा जन-वृद्धि में होने वाले परिवर्तन आदि के बारे में विस्तृत एवं पूर्ण सूचनाएं एकत्रित की जाए।

10. अन्य सुझाव-भारत सरकार द्वारा गठित राष्ट्रीय श्रम ने बेरोजगारी की समस्या के समाधान हेतु अनेक सुझाव दिए हैं; जैसे देश में रोजगार के लिए एक राष्ट्रीय नीति सुनिश्चित की जाए, अखिल भारतीय स्तर पर मानब शक्ति सेवा का गठन किया जाए, शिक्षा पद्धति में आमूल परिवर्तन किए जाए और उसे रोजगारोन्मुख बनाया जाए, औद्योगिक सेवाओं को सुदृढ़ता प्रदान की जाए तथा देश के प्रत्येक सामुदायिक विकास खण्ड में कम से कम एक रोजगार कार्यालय की स्थापना की जाए।

उत्पादक गतिविधियों की पुनर्संरचना द्वारा उत्पादन में वृद्धि लाकर सरकार द्वारा रोजगार सृजन की प्रक्रिया तो जारी है ही, किन्तु साथ ही सरकार प्रत्यक्ष रूप से युवाओं एवं अन्य बेरोजगारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने के लिए विशेष कार्यक्रम भी चला रही है।

बेरोजगारी निवारण के लिए पंचवर्षीय योजनाओं में रोजगार नीति

बेरोजगारी एक ऐसा आर्थिक एवं सामाजिक अभिशाप है, जिसके रहते कोई भी देश उन्नति नहीं कर सकता है। जैसे कि संविधान में नागरिकों के लिए उचित रोजगार की व्यवस्था के मूलभूत दायित्व को इस प्रकार व्यक्त किया है-"राज्य अपनी नीति को इस प्रकार निर्देशित करेगा कि जिससे समस्त पुरुषों एवं स्त्रियों के लिए जीविकोपार्जन के पर्याप्त साधन, समान कार्य के समान वेतन तथा आर्थिक क्षमता और विकास की सीमाओं के भीतर प्रत्येक के लिए कार्य करने और शिक्षा प्राप्त करने तथा बेकारी, वृद्धावस्था बीमारी एवं अयोग्यता की दिशा में सार्वजनिक सहायता प्राप्त करने के अधिकार की सुरक्षा के लिए प्रभावपूर्ण व्यवस्था हो सके।" इस दायित्व को पूर्ण करने के लिए सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं में जो कार्य किए उनका विवरण निम्नवत है-

पहली पंचवर्षीय योजना में रोजगार वृद्धि से सम्बन्धित 11 सूत्री कार्यक्रम को ध्यान में रखा गया। श्रम प्रधान, कुटीर उद्योग, सड़क, परिवहन व सिंचाई परियोजनाओं को प्राथमिकता दी गई।

द्वितीय योजना के विकास प्रारूप में श्रम शक्ति के अधिकतम उपयोग का सैद्धान्तिक पक्ष मुख्य रूप से ध्यान में रखा गया। भारी व आधारभूत उद्योगों के साथ लघु व ग्रामीण उद्योगों के विस्तार को महत्व दिया गया।

तीसरी योजना में रोजगार के अवसरों में वृद्धि हेतु ग्रामीण विद्युतीकरण, ग्रामीण विनिर्माण कार्यों, जिला स्तर पर बेकारी दूर करने की योजना व बेरोजगारी से पीड़ित विशिष्ट क्षेत्रों में विशेष कार्यक्रम चलाये जाने को प्राथमिकता दी गई। 1 करोड़ 40 लाख व्यक्तियों को अतिरिक्त रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया था, जबकि श्रम-शक्ति में जुड़ने वाले नए लोगों की संख्या 1 करोड़ 70 लाख आंकी गयी थी।

अनेक प्रयासों के बावजूद भी रोजगार प्रदान करने में असफलता ही रही। पुराने बेरोजगारों को क्या नये को भी रोजगार प्रदान नहीं किया जा सका। योजना के अन्त में 120 लाख लोगों के लगभग बेरोजगार होने का अनुमान था।

चतुर्थ योजना में श्रम-गहन कार्यक्रमों पर काफी बल दिया गया जैसे सड़क, लघु सिंचाई, भू-संरक्षण, क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम, सहकारिता, सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, ग्रामीण विद्युतीकरण, लघु उद्योग, आवास, डेयरी फार्मिंग आदि। तथा यह अनुभव किया गया कि ऐसे कार्यक्रमों के लिए भौतिक पूँजी के अतिरिक्त मानवीय पूँजी एवं कौशल निर्माण में भारी विनियोग करना आवश्यक होगा।

पाँचवीं योजना का प्रमुख लक्ष्य गरीबी उन्मूलन था। गरीबी का प्रमुख कारण भूमि सम्पत्ति की असमानता एवं रोजगार में कमी बतलाया गया। अतः श्रम प्रधान परियोजनाओं एवं स्वरोजगार के अवसर उत्पन्न करनी वाली परियोजनाओं को विशेष महत्त्व दिया गया। कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर में वृद्धि हेतु विशेष जोर दिया गया। साथ ही गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार अवसरों में वृद्धि हेतु विकास केन्द्रों के विस्तार की योजना सामने रखी गई।

छठी योजना में अल्प रोजगार की समस्या व दीर्घकालीन बेरोजगारी दूर करने के उपायों को प्राथमिकता दी गई। इस उद्देश्य हेतु रोजगार उन्मुख तीव्र आर्थिक वृद्धि की आवश्यकता का अनुभव किया गया। साथ ही अतिरिक्त रोजगार वृद्धि के लिए राष्ट्रीय युवा स्वरोजगार प्रशिक्षण योजना (टाइसेम), न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम, समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (आई.आर.डी.पी.), राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (एन.आर. ई.पी.) तथा ग्रामीण भूमिहीन गारण्टी कार्यक्रम प्रमुख थे।

सातवीं योजना में उत्पादन रोजगार प्रदान करने के लिए विनियोग व उत्पादन की उपयुक्त संरचना को विकसित करने तथा समुचित तकनीक व संगठनात्मक आधार को निर्मित करने की प्राथमिकता दी गई। अतिरिक्त रोजगार के लिए (1) ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई सुविधाओं का विस्तार तथा पशुपालन, डेयरी एवं सामाजिक वानिकी को बढ़ावा दिया गया है। (2) लघु एवं कुटीर उद्योग का विकास, भवन निर्माण, पर्यटन विकास एवं यातायात क्षेत्र के विकास के लिए विशेष व्यूह नीति बनाई गयी। (3) योजना में शिक्षित बेरोजगारी दूर करने के लिए अतिरिक्त रोजगार उपलब्ध करने के प्रयास किये गये। (4) योजना के अन्तिम वर्ष 1989 में ग्रामीण रोजगार हेतु जवाहर योजना प्रारम्भ की गई। इस योजना “ भोजन, काम तथा उत्पादकता" को तीन केन्द्र-बिन्दु माना गया है।

आठवीं योजना में रोजगार पर प्रमुख बल दिया गया है। इस योजना के दौरान उचित विकास कार्यक्रमों से प्रत्येक नागरिक को काम करने के अधिकार की गारण्टी के प्रति वचनबद्धता को कार्यरूप प्रदान करने का प्रयास किया गया। आठवीं योजना में कुल 5.8 करोड़ व्यक्तियों तथा 1992-2002 के दशक में कुल 9.4 करोड़ व्यक्तियों को काम देने की आवश्यकता स्वीकार की गई। इस योजना की विशेष बात यह रही कि शहरी बेरोजगारी के सन्दर्भ में विशेष ध्यान था। इस योजना में 4 करोड़ अतिरिक्त रोजगार सृजित किए गए।

नवी योजना में रोजगार वृद्धि हेतु त्वरित कार्यक्रमों में तीव्रता लाने का लक्ष्य रखा गया। योजना काल में 5 करोड़ अतिरिक्त लोगों को अतिरिक्त रोजगार प्रदान करने का लक्ष्य था।

दसवीं योजना का लक्ष्य रोजगार सृजन और समानता पर जोर देते हुए योजना अवधि के दौरान प्रगति रफ्तार में तेजी लाना था। इसमें योजना अवधि के दौरान सकल घरेलू उत्पाद में 8 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। जिसमें 5 करोड़ अतिरिक्त रोजगार और स्वरोजगार अवसरों का लक्ष्य भी शामिल था। दसवीं योजना में श्रम शक्ति के साथ लाभदायक उच्च गुणवत्ता वाला रोजगार मुहैया कराने पर जोर दिया गया। इस योजना की रणनीति में तेज विकास के उन क्षेत्रों पर जोर दिया गया, जो सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यटन, वित्तीय सेवाएं आदि की तरह उच्च गुणवत्तापूर्ण रोजगार अवसरों का सृजन करते हैं।

ग्यारहवीं योजना में रोजगार की गुणवत्ता में सुधार को सुनिश्चित करते हुए रोजगार के अवसरों में तेजी से विकास किया जाएगा। इसमें कुल रोजगारों में नियमित कर्मचारियों के हिस्से को बढ़ाने की आवश्यकता के साथ अनियमित रोजगार तदनुरूप कटौती किया जाना शामिल है। योजना में रोजगार सृजन नीति में अधोस्तरीय रोजगार में कटौती का पूर्वानुमान लगाते हुए कृषि क्षेत्र में लगे अतिरिक्त श्रम को उच्च मजदूरी वाले क्षेत्रों में और कृषि भिन्न क्षेत्र में अधिक लाभकारी रोजगार में लगाया जाएगा। विनिर्माण में रोजगार के 4 प्रतिशत पर बढ़ाने की आशा है। जबकि निर्माण और परिवर्तन तथा संचार में रोजगार के क्रमश: 8.2 प्रतिशत और 7.6 प्रतिशत बढ़ने की आशा है। योजना के दौरान कुल श्रम बल में 45 मिलियन की वृद्धि होने का पूर्वानुमान लगाया गया है जबकि 58 मिलियन रोजगार के अवसरों का सृजन किया जाएगा। फलस्वरूप बेरोजगारी की दर में 5 प्रतिशत से नीचे तक की गिरावट आएगी।

बेरोजगारी को दूर करने के सरकारी कार्यक्रम

काम के बदले अनाज कार्यक्रम-14 नवम्बर 2004 को इस कार्यक्रम को देश के 150 सर्वाधिक पिछड़े जिलों में शुरू किया गया जिसका प्रमुख उद्देश्य पूरक रोजगार सृजन करना था। यह योजना लोगों को खाद्य सुरक्षा देने से भी सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक परिवार के कम से कम एक शारीरिक रूप से समर्थ व्यक्ति को 100 दिन का रोजगार दिया जा सकेगा। यह कार्यक्रम 100 प्रतिशत केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में कार्यन्वित किया जा रहा है।

ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम - यह कार्यक्रम 1995 में ग्रामीण क्षेत्रों तथा छोटे शहरों से शुरू किया गया। यह कार्यक्रम खादी और ग्रामोद्योग आयोग द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत 25 लाख रुपये की लागत वाली परियोजनाओं के लिए उद्यमी खादी ग्रामेद्योग और बैंक ऋणों प्राप्त मार्जिन धन सहायता का लाभ उठाकर ग्राम स्थापित कर सकते हैं।

• इन्दिरा आवास योजना - यह एक केन्द्र प्रायोजित योजना है जिसका वित्तपोषण केन्द्र एवं राज्यों के बीच 75.25 (केन्द्र शासित प्रदेश 100) के अनुपात में किया जाता है। 1999-2000 से प्रारम्भ की गयी इन्दिरा भवन आवास योजना गांवों में गरीबों के लिए मुफ्त में मकानों के निर्माण की प्रमुख योजना है।

• जवाहर ग्राम समृद्धि योजना - इस योजना को अप्रैल 1999 से प्रारम्भ किया गया जो चली आ रही जवाहर रोजगार योजना को ही पुनर्गठित तथा कारगार स्वरूप प्रदान करके किया गया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य अधिक मांग वाले ग्रामीण आधारभूत संरचना जिसमें ग्रामीण स्तर पर टिकाउ परिसम्पत्तियाँ सम्मिलित हैं, को विकसित करना है।

• रोजगार आश्वासन कार्यक्रम- इस योजना का प्रारम्भ 2 अक्टूबर 1993 को सूखा प्रवण, रेगिस्तान बहुल तथा पर्वतीय क्षेत्रों के चुने गए 1772 पिछड़े ब्लाकों में किया गया था। इसी योजना को एकल मजदूरी कार्यक्रम के रूप में 1 अप्रैल 1999 को पुनः तैयार किया गया है।

• सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना - इस योजना को पहले से चल रही जवाहर ग्रामीण समृद्धि योजना तथा एम्पलॉयमेंट एश्योरेंस स्कीम को मिलाकर 25 सितम्बर 2001 को चलाया गया। यह अपने लक्ष्य स्वयं निर्धारित करने वाली योजना है। इसका प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में अतिरिक्त खाद्यान्न सुरक्षा प्रदान करना है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में टिकाउ सामुदायिक, सामाजिक तथा आर्थिक अवस्थापना सृजित करना है।

• शहरी रोजगार एवं गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम - शिक्षित बेरोजगारों को स्वरोजगार प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री रोजगार योजना (PMRY) को 1993-94 में शहरी क्षेत्रों में चलाया गया।

• स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना - यह योजना दिसम्बर 1997 में लागू हुई जिसमें तीन शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों-नेहरू रोजगार, शहरी गरीबों के लिए बुनियादी सेवाएं योजना तथा प्रधानमंत्री एकीकृत शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम को एक में मिला दिया गया। इसका उद्देश्य स्वरोजगार उद्यमों की स्थापना को प्रोत्साहन देना या मजदूरी रोजगार के सृजन के द्वारा गरीबी रेखा के नीचे नवीं दर्जा तक शिक्षित शहरी बेरोजगारों या अर्धरोजगारों को रोजगार प्रदान करना है।

• स्वशक्ति प्रोजेक्टर - यह प्रोजेक्टर अक्टूबर 1998 में ग्रामीण महिला विकास तथा सशक्तिकरण प्रोजेक्टर के रूप में केन्द्र द्वारा बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखण्ड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश में चलाया गया। यह प्रोजेक्टर वर्ल्ड बैंक तथा इन्टरनेशनल फण्ड फॉर एग्रीकल्चल डेवेलपमेण्ट द्वारा संयुक्त रूप से प्राप्त सहायता से चल रही है।

• इन्दिरा महिला योजना - इसका उद्देश्य महिलाओं की अधिकारिता प्रदान करना है। इस योजना को 1995-96 के दौरान 200 विकास खण्डों में चलाया गया था। योजना आयोग के एक अध्ययन दल की संस्तुति पर आई. एम. वाई. को पुर्नगठित करके इसकी कमियों को दूर करके संशोधित रूप में अनुमोदित कर दिया गया है। महिला समृद्धिmयोजना को आई.एम.वाई. के साथ जोड़ दिया गया है।

• बालिका समृद्धि योजना को 1997 में बालिकाओं के प्रति समाज के दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने के विशेष उद्देश्य से प्रारम्भ किया गया था।

• एकीकृत बाल विकास तथा सेवा स्कीम 1975 में शुरू इस स्कीम का उद्देश्य 6 वर्ष तक के उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को स्वास्थ्य पोषण एवं शैक्षणिक सेवाओं का एकीकृत पैकेज प्रदान करना है, आँगनवाड़ी, भवनो, सीडीपीओ कार्यालयों एवं गोदामों के निर्माण के लिए ऋण प्रदान करना है।

• प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना जिसका प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण लोगों की आवश्यक आवश्यकताओं को निर्धारित समयावधि में पूरा करना है।

• प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना - 25 दिसंबर, 2000 को लागू की गई। 60 हजार करोड़ रुपये की इस योजना का उद्देश्य 500 से अधिक जनसंख्या वाले गांवों को 2007 तक हर मौसमी सड़क से जोड़ना है। यह एक 100 प्रतिशत केन्द्र प्रायोजित योजना है। इसका वित्तपोषण डीजल पर उपकर से होता है।

• अन्नपूर्णा योजना - 1999-2000 की बजट में घोषित अन्नपूर्णा योजना का आरम्भ गाजियाबाद के सिंखोड़ा ग्राम से हुआ। ज्ञातव्य है कि इस योजना को उद्देश्य देश के अत्यन्त निर्धन लागों के रोटी की व्यवस्था करनी है।

• यह योजना 1 अप्रैल 2001 से लागू, 2001-02 के बजट में प्रस्तावित योजना है। इस योजना के अन्तर्गत गरीबी रेखा से नीचे के बच्चों के माता-पिता को 100 रुपये प्रतिमाह शैक्षिक भत्ता प्रदान किया जाएगा जिससे व 9 से 12 वीं कक्षा तक की शिक्षा के व्यय को पूरा कर सके।

• अन्तोदय अन्न योजना - यह योजना दिसम्बर 2000 में चालू की गई। इसके तहत लक्ष्यित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत पहचान किए गए बी.पी.एल. परिवारों में से 1 करोड़ निर्धनतम परिवारों को चुना जाता है। शुरू में इसके अन्तर्गत प्रत्येक अर्हक परिवारों को 25 किलोग्राम अन्न 2 रुपया प्रति किलो गेहूं तथा 3 रुपया प्रति किलों ग्राम चावल दिया जाता था। अप्रैल 2002 से 25 किलोग्राम को बड़ाकर 35 किलो ग्राम कर दिया गया।

• दीन दयाल स्वावलम्बन योजना - केन्द्रीय युवा मामलें व खेल मंत्रालय द्वारा ग्रामीण युवकों को स्वयं सहायता समूहों के रूप में संगठित कर उनमें स्वरोजगार के जरिए आय अर्जित करने के लिए क्रियान्वित।

• प्रधानमन्त्री आदर्श ग्राम योजना - 2009-10 बजट में प्रस्तावित नई योजना है जो उन 44000 गांवों के समन्वित विकास से सम्बन्धित है जिनकी जनसंख्या में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक है।

• प्राइम मिनिस्टर एंप्ल्वायमेंट जनरेशन प्रोग्रैम - 15 अगस्त 2008 से प्रारम्भ प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम अपने ढंग का एक नया प्रयास है जिसका प्रमुख उद्देश्य सब्सिडी पर कराए गए ऋण के माध्यम से शहरी तथा ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में माइक्रो इन्टरप्राइजेज़ की स्थापना के द्वारा रोजगार के अवसर सृजित करना है। पहले से चली आ रही दो रोजगार योजनाओं PMKY तथा REGP को इसमें मिला दिया गया है।

• राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा फण्ड - असंगठित क्षेत्रीय कामगारों सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008 के अनुपालन में इस फण्ड को 1000 करोड़ रुपये के व्यय के साथ 2010-10 बजट से चालू किया गया हैं। यह फण्ड धुनियों, रिक्शाचालकों, बीड़ी कारीगरों आदि से सम्बन्धित स्कीमों को सहायता देगा।

• स्वावलम्बन - 2010-11 से शुरू यह स्कीम नयी पेंशन स्कीम में असंगठित लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने से सम्बन्धित है। ऐसे लोग जो न्यूनतम 1000 रु. तथा अधिकतम 12000 रु. से इस स्कीम को अपना खाता खोलकर ज्वाइन करेंगे उसमें 1000 रु. सरकार अंशदान के रूप में देगी। यह तीन वर्ष तक उपलब्ध होगी।

• महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना - 2010-11 से शुरू परियोजना है जो किसान महिलाओं की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूर्ति से सम्बन्धित है। यह राष्ट्रीय ग्रामीण लिवलीहुड मिशन के एक उपभाग के रूप में 100 करोड़ रुपया से शुरू की गई है।

• महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण योजना गारन्टी एक्ट 2004 (मनरेगा)‌तथा राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी कार्यक्रम-नेशनल रूरल एंप्लॉवायमेंट गारण्टी एक्ट (NREGA) नरेगा सितम्बर 2005 को पारित हुआ तथा 2 फरवरी, 2006 को इसकी शुरूआत प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा आन्ध्र प्रदेश के बन्दापाली से की गई। 2 अक्टूबर 2009 इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण गारण्टी ऐक्ट कर दिया गया। 2 फरवरी को सरकार ने रोजगार दिवस के रूप में घोषित कर दिया। शुरू में यह योजना 200 जिलों में लागू की गई पर 2007-08 बजट में इसे बढ़ाकर 3300 जिलों में कर दिया गया। इस समय यह देश के सभी 614 जिलों में लागू है। रोजगार सृजन करने वाली यह पहली योजना है और इस दृष्टि से यह सभी स्कीमों से भिन्न है, जो पार्लियामेंट द्वारा पारित एक्ट के द्वारा ग्रामीण जनसंख्या को रोजगार प्राप्त करने की गारण्टी के साथ कानून द्वारा अधिकार प्रदान करती है।

1. प्रत्येक ग्रामीण परिवार के कम से कम एक प्रौढ़ सदस्य को वर्ष में कम से कम 100 दिन का गारण्टी रोजगार प्रदान की जिम्मेदारी होगी, जिसमें कम से कम 1/3 स्त्रियां होंगी।

2. इसके तहत दिया गया रोजगार अकुशल शारीरिक श्रम रोजगार होगा जिसके लिए वैधानिक न्यूनतम मजदूरी देय होगी तथा जिसका भुगतान कार्य किए जाने के 7 दिन के भीतर देय होगा।

3. रोजगार दिए जाने के सम्बन्ध में आवेदन के 15 दिन के भीतर रोजगार प्रदान किया जाएगा तथा रोजगार श्रमिक के निवास से 5 किलोमीटर दूरी के भीतर होगा। इससे बाहर काम दिए जाने पर श्रमिकों को 10 प्रतिशत अतिरिक्त मजदूरी दी जाएगी। जॉब कार्ड प्राप्त होने के 15 दिन तक काम न पाने पर वह बेरोजगारी भत्ता प्राप्त करेगा। जॉब कार्ड 5 वर्ष तक वैध रहेगा।

4. यदि इस समय सीमा के भीतर रोजगार नहीं प्रदान किया गया तो आवेदन को बेरोजगारी भत्ता देय होगा जो न्यूनतम वैधानिक मजदूरी के 1/3 से कम नहीं होगा।

5. सेन्ट्रल एम्प्लॉवायमेंट गारण्टी कौन्सिल तथा प्रत्येक राज्य द्वारा स्टेट कौंसिल की स्थापना जो इससे सम्बन्धित कार्य सम्पादित कर सके।

6. जिला स्तर पर पंचायत अपने सदस्यों की स्टैन्डिंग कमेटी बनाएगी जो जिला के भीतर कार्यक्रमों की देखरेख, मानीटरिंग तथा क्रियान्वयन देखेगी।

7. इस स्कीम के क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकार प्रत्येक ब्लॉक के लिए प्रोग्राम ऑफीसर की नियुक्ति करेगी।

8. ग्राम पंचायत परियोजनाओं की पहचान, क्रियान्वयन तथा देखरेख के लिए जिम्मेदारी होगी।

9. केन्द्र सरकार इसकी फंन्डिग की व्यवस्था के लिए नेशनल एमप्ल्वायमेंट गारण्टी फण्ड तथा राज्य सरकार स्टेट एंप्ल्वायमेंट गारण्टी फण्ड की स्थापन करेगी।

10. पूरी स्कीम इस अर्थ में स्वचयनात्मक होगी कि गरीबों में जो लोग न्यूनतम मजदूरी पर कार्य करने के इच्छुक हैं वे स्वयं इस स्कीम में कार्य के लिए आएगे।

11. सी प्रस्तावित है कि परियोजना से सम्बन्धित मजदूरी भाग का भुगतान (जो कुल लागत की लगभग 80 होगी) केन्द्र सरकार करेगी जबकि उसमें लगने वाली सामग्री की लागत का 75 प्रतिशत तथा प्रशासनिक लागत का कुछ भाग केन्द्र सरकार वहन करेंगी तथा शेष राज्य सरकार वहन करेगी। इसमें होने वाले व्यय को केन्द्र तथा राज्य सरकार 90 : 10 में वहन करती हैं।

12. ग्राम पंचायत इस स्कीम की क्रियान्वयन इकाई है तथा परिवार लाभ प्राप्तकर्ता इकाई है।

13. इस योजना के अन्तर्गत जल सम्भरण, वाटरशेड मैनजमेन्ट, बाढ़ तथा सूखा संरक्षण, फोरेस्ट्री, भूमि विकास, गांवों को सड़क के द्वारा जोड़ना, मरूस्थल विकास आदि से सम्बन्धित परियोजनाओं में रोजगार प्रदान किया जाएगा, इस प्रकार रोजगार के द्वारा अर्थव्यवस्था में सम्पत्ति सृजन होगा।

14. उल्लेखनीय है कि इस योजना के अन्तर्गत मजदूरी का भुगतान 'एकाउन्टपेयी चेक' या पोस्ट आफिस में खाते के द्वारा ही होता है जिससे मध्यस्थों या बिचोलियों से मुक्ति मिल सके।

निःसन्देह राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना सर्वथा अलग योजना है। अन्य रोजगार सृजन कार्यक्रमों की तरह इसकी सफलता इसके क्रियान्वयन तथा उसके साथ जुड़े हुए भ्रष्टाचार घूसखोर, फर्जीहाजिरी, जबाबदेही आदि के स्तर पर निर्भर करेगी। रोजगार सृजन की यह योजना सार्वजनिक वस्तुओं को विकसित करने के लिए मजदूरी की व्यवस्था करती है। चूंकि सार्वजनिक वस्तु किसी की अपनी नहीं होती है, इसीलिए इसके सृजन में होने वले हर सम्भव दुरूपयोग सम्भव हैं। आवश्यकता इसकी है कि पूरी योजना इस प्रकार से नियोजन हो कि जहां एक ओर यह गरीबों को अधिक से अधिक लाभप्रद रोजगार प्रदान करे वहीं दूसरी ओर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तीव्र आर्थिक विकास सुनिश्चित हो।

मानव निर्धनता सूचकांक (HPI)

मानब निर्धनता सूचकांक अथवा एचपीआई मानत्र विकास सूचकांक के विभिन्न आयामों में से प्रत्येक में से तीन आवश्यक तत्वों, यथा स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवनस्तर हेतु निर्धारित न्यूनतम स्तर से भी नीचे रहने वाले लोगों के अनुपात पर जोर देता है। स्वास्थ्य और लंबी आयु, शिक्षा की सुविधा और अच्छा-भला जीवनस्तर के आधार पर ये मानक निर्धारित किए जाते हैं। एचपीआई, निर्धनता मापने के मानक 1.25 डॉलर प्रतिदिन (पीपीपी अमरीकी डॉलर) के आधार पर मानक प्रस्तुत करता है।

एचपीआई में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी या उपलब्धता की गणना उन लोगों की संख्या के अनुपात से की जाती है जिनकी 40 वर्ष से अधिक जीने की आशा नहीं होती।

बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI)

एमपीआई की धारणा को यूएनडीपी (UNDP) द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट-2010 में विकसित किया गया। बहुआयामी निर्धनता निर्देशांक एक अंतर्राष्ट्रीय निर्धनता माप का सूचक है, जिसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के लिए ऑक्सफोर्ड निर्धनता एवं मानव विकास पहल (OPHI) द्वारा ध्वजवाहक मानव विकास रिपोर्ट हेतु विकसित किया गया है। यह अभिनव सूचकांक शिक्षा, स्वास्थ्य एवं जीवन स्तर के संदर्भ में निर्धन व्यक्तियों द्वारा सामना की जा रही विभिन्न समस्याओं को परिलक्षित करता है, इस प्रकार यह सूचकांक तीक्ष्ण बहुआयामी निर्धनता का निर्देशांक है।

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