जनसंख्या की संरचना : धर्म (POPULATION COMPOSITION : RELIGION)

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 मानव समाज में एक व्यापक व शाश्वत सत्य संकल्पना धर्म की है। जिसका संबंध मनुष्य की भावनाओं, श्रद्धा तथा भक्ति से होता है। भाषा व धर्म मनुष्य के आंतरिक जीवन को प्रभावित करने के साथ ही सामाजिक सांस्कृतिक तथा आर्थिक जीवन को भी प्रभावित करता है।

जनसंख्या की संरचना को विस्तृत में समझने के लिए धर्म और भाषा की संरचना का अध्ययन भी आवश्यक है।

धर्म (Religion)

आज के आधुनिक युग में धर्म एक सार्वभौमिक तथा निर्णायक तथ्य के रूप में विद्यमान है जिसका विस्तृत वर्णन निम्न प्रकार है।

धर्म की संकल्पना (Concept of Religion)- धर्म शब्द की व्युत्पत्ति के 'धृ' शब्द से हुई है जिसका अर्थ है 'धारण करना' अर्थात संसार के सभी जीवों के प्रति हृदय में दया धारण करना। इसके अंग्रेजी रूपांतर 'Religion' शब्द की उत्पत्ति 'रेलिगेयर' (Religare) शब्द से मानी जाती है जिसका अर्थ 'बांधना' है। अतः मनुष्य को ईश्वर से बांधने या संबंधित करने को धर्म माना जा सकता है। धर्म की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्न प्रकार है।

प्रसिद्ध समाजशास्त्री दुर्खीम (Durkhiem) के अनुसार, "धर्म पवित्र वस्तुओं से संबंधित विश्वासों तथा आचरणों की वह सम्पूर्ण व्यवस्था है जो इन पर विश्वास करने वालों को एक नैतिक समुदाय में संयुक्त करती हैं।

एच.एम.जानसन के अनुसार, “धर्म अति प्राकृतिक प्राणियों, शक्तियों, स्थानों और अन्य वस्तुओं से संबंधित विश्वासों एवं रीतियों की सुसंगत प्रणाली है।

राबर्टसन (W.Robertson) का मानना है कि, "धर्म न तो अज्ञात शक्तियों का अस्पष्ट भय है और न भय की उपज है बल्कि किसी समुदाय के सभी सदस्यों के साथ उस समुदाय की अच्छाई चाहने वाली ऐसी शक्ति के साथ संबंध है जो उसके नियम तथा आचार व्यवस्था की रक्षा करती है।

इसी प्रकार अनेक विद्वानों तथा लेखकों ने धर्म की परिभाषा अपने-अपने दृष्टिकोण से प्रस्तुत है। वास्तव में धर्म का स्वरूप इतना विस्तृत है और इसकी अभिव्यक्ति इतने अधिक रूपों में होती है कि किसी एक सर्वमान्य परिभाषा पर सभी की सहमति सुगम नहीं है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से धर्म विश्वासों, प्रतीकों, मूल्यों तथा क्रियाओं की संस्थापित पद्धति है जो समाज के परमजीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।

धर्म के मूल तत्व (Basic Facts of Religion)

सामान्यतः प्रत्येक धर्म में निम्नांकित तत्व सम्मिलित होते हैं-

(1) पवित्रता की धारणा (Concept of Sacredness)- किसी धर्म विशेष को मानने वालों की यह धारणा होती है कि उनके धर्म से संबंधित सभी बाते पवित्र होती है। धर्म इन्हीं पवित्र बातों तथा वस्तुओं के प्रति विश्वास और आचरणों पर टिका होता है और उसे मानने वालों को एक नैतिक समुदाय में बाँधता है।

(2) अलौकिक शक्ति में विश्वास (Belief in Supernatural Power)- प्रत्येक धर्म किसी ऐसी अलौकिक शक्ति में विश्वास करता है जो मनुष्य और इस भौतिक संसार से परे (दूर) है। यह शक्ति साकार अथवा निराकार हो सकती है।

(3) अलौकिक शक्तियों से मनुष्य का अनुकूलन (Man's Adjustment to Super-natural Power)- मनुष्य का धार्मिक जीवन जिस अलौकिक तथा सर्वशक्तिमान शक्ति पर आश्रित होता है, उसके प्रति मनुष्य अनुकूलन करता है। इसके लिए मनुष्य कई प्रकार की बाह्य क्रियाएँ करता है जैसे प्रार्थना, पूजा-पाठ, यज्ञ, भजन-कीर्तन आदि।

(4) संवेगात्मक भावनाएँ (Emotional Feelings)- धर्म तर्क प्रधान नहीं बल्कि भावना प्रधान होता है। किसी विशिष्ट धर्म के मानने वाले लोगों में अलौकिक शक्ति के प्रति संवेगात्मक भावनाएँ पायी जाती है जो उसे परम शक्ति के प्रति श्रद्धा, प्रेम, भय आदि के रूप में प्रकट करती हैं।

(5) निषेध एवं पाप कर्मों की धारणा (Concept of Taboos and Sinful Acts)- प्रत्येक धर्म में कुछ वस्तुओं और कार्यों को दोषपूर्ण तथा पाप समझा जाता है। कुछ निषेध प्रायः सभी धर्मों में समान रूप से मिलते हैं जैसे दुराचार, अत्याचार, झूठ बोलना, बेईमानी करना आदि। कुछ निषेध धर्मों से ही संबंधित होते हैं।

(6) मुक्ति की विधि (Method of Salvation)- प्रत्येक धर्म ऐसी विधियों का प्रतिपादन करता है जिसका पालन एवं अनुसरण करके मनुष्य अपने पापों तथा दोषों को दूर कर सकता है।

धर्मों का वर्गीकरण (Classification of Religions)

सम्पूर्ण विश्व में अनेकानेक धर्म प्रचलित हैं जिनमें कुछ का संख्यात्मक तथा क्षेत्रीय आकार बड़ा तथा कुछ का आकार अत्यंत लघु है। धर्म का वर्गीकरण करना वास्तव में बहुत कठिन है फिर भी उनको निम्न वर्गों में बाँटा जा सकता है।

(1) सार्वभौमिक धर्म (Universal Religion)- इसके अन्तर्गत वे धर्म आते हैं जिनकी सदस्यता सभी मानव समाज के व्यक्तियों द्वारा ग्रहण की जा सकती है। इनके द्वारा किसी भी व्यक्ति के लिए खुले होते हैं जो इनकी आस्था को स्वीकार करता हो। धर्म प्रचार तथा धर्म परिवर्तन के द्वारा ये धर्म अपनी सदस्यता तथा विस्तार में वृद्धि करते हैं क्योंकि इनकी सदस्यता केवल धर्म में विश्वास की घोषणा द्वारा प्राप्त की जा सकती है। ईसाई धर्म, इस्लाम धर्म और बौद्ध धर्म इसके उदाहरण हैं।

(2) नृजातीय धर्म (Ethnic Religion)- इसके अन्तर्गत वे धर्म आते हैं जिनकी सदस्यता जन्म से अथवा एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान एवं जटिल जीवन शैली द्वारा प्राप्त होती है। नृजातीय धर्म अपने समूह से बाहरी व्यक्तियों का धर्मान्तरण द्वारा अपनी सदस्यता नहीं प्रदान करता है जिसके कारण यह एक सीमित समुदाय वाला होता है। अतः इसकी पहचान मुख्यतः विशिष्ट नृजातीय समूह के रूप में की जाती है। हिन्दू धर्म, यहूदी धर्म, शिन्टो धर्म और चीनी धर्म नृजातीय धर्मों के उदाहरण है।

(3) जनजातीय धर्म (Tribal Religion)- जनजातीय धर्म विशिष्ट प्रकार के नृजातीय धर्म है जिनकी पहचान आधुनिक समाज से बिल्कुल अलग तथा प्रकृति से घनिष्ठ रूप से संबंधित स्थानीय सांस्कृतिकसमूह के रूप में की जाती है जिनका आकार लघु होता है।

विश्व के प्रमुख धर्म और उनका वितरण

(Major Religions of the World and Their Distribution)

विश्व में अनेक छोटे-बड़े धर्म पाये जाते हैं जिनमें कुछ का प्रसार विश्वव्यापी है तो कुछ विशिष्ट देश या क्षेत्र तक ही सीमित हैं। विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण धर्मों में (1) ईसाई धर्म (2) इस्लाम धर्म, (3) हिन्दू धर्म, (4) बौद्ध धर्म, (5) यहूदी धर्म, (6) चीनी धर्म, और (7) जापानी धर्म प्रमुख हैं। इनके अतिरिक्त अनेक स्थानीय तथा जनजातीय धर्म भी हैं जिनके अनुयायियों की संख्या अत्यल्प हैं।

विश्व के प्रमुख धर्मों का वितरण

(1) ईसाई धर्म (Christianity)-

विश्व की लगभग 30 प्रतिशत जनसंख्या ईसाई धर्म की अनुयायी मानी जाती है। विश्व के अधिकांश भागों में ईसाई धर्म को मानने वाले हैं किन्तु यूरोप, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया में इनकी संख्या सर्वाधिक है। ईसाई धर्म की स्थापना ईसा की प्रथम शताब्दी में फिलीस्तीन में हुई थी जिनके संस्थापक ईसा मसीह थे। 'बाइबिल' ईसाई धर्म की पवित्र पुस्तक है जिसमें इस धर्म का सम्पूर्ण विवरण मिलता है। बाइबिल के दो भाग हैं - (1) पुरानी बाइबिल, और (2) नयी बाइबिल। पुरानी बाइबिल ईसा मसीह के जन्म के पहले यहूदी धर्म के पैगम्बर हजरत दाऊद और हजरत मूसा द्वारा लिखी गयी है। नयी बाइबिल में ईसा मसीह के उपदेश संग्रहीत हैं। ईसाई के संस्थापक ईसा मसीह का जन्म फिलिस्तीन में जेरूसलेम के समीप एक गाँव में हुआ था जिनकी कुंवारी माता का नाम मरियम था। ईसा के समय समाज में अनेक कुरीतियाँ और अंध विश्वास फैले हुए थे। ईसा मसीह ने प्राचीन यहूदी धर्म के स्थान पर नये धर्म की स्थापना की और लोगों को बहुत से कल्याणकारी संदेश दिये। बाइबिल में ईश्वर के दस आदेशों का उल्लेख है जिनका पालन करने के लिए ईसाई धर्मावलम्बियों को निर्देशित किया जाता है।

ईसाई धर्म की विशेषताएँ (Characteristics of Christainity)- ईसाई धर्म की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार है-

(i) एकेश्वरवाद- ईसाई धर्म एकेश्वरवाद में विश्वास करता है। मनुष्यों के कष्टों को दूर करने तथा उनकी सहायता करने के लिए ईश्वर अपने पैगम्बर भेजता है अथवा अपने पुत्र के रूप में वह संसार में स्वयं आता है।

(ii) समानता एवं भाईचारा- ईसाई धर्म समानता और भाईचारे के सिद्धान्त पर आधारित है। ईसाई धर्म के मानने वालों में ऊँच-नीच का भेद नहीं होता है।

(iii) निराकार ईश्वर में विश्वास- ईसाई धर्म मूर्तिपूजा का विरोधी है तथा निराकार और अलौकिक ईश्वर में विश्वास करता है।

(iv) आत्मा की पवित्रता- ईसाई धर्म आत्मा को ईश्वर का ही रूप और शक्ति मानता है।

(v) ईसा मसीह में विश्वास- ईसाई धर्म के अनुयायी ईसा मसीह में विश्वास करते हैं और उन्हें ईश्वर का दूत या पुत्र मानते हैं जिन्हें ईश्वर ने मानव कल्याण के लिए ही पृथ्वी पर भेजा था।

(vi) चर्च की महत्ता- चर्च ईसाई धर्म का महत्वपूर्ण पक्ष है। ऐसा माना जाता है कि चर्च के माध्यम से ही ईश्वर तक पहुँचा जा सकता है।

विश्वव्यापी ईसाई धर्म की कई शाखाएँ एवं प्रशाखाएँ प्रचलित हैं। जिनमें क्षेत्रीय पर्यावरण के अनुसार उल्लेखनीय अन्तर पाये जाते हैं। ईसाई धर्म के अनुयायी मुख्यतः चार वर्गों में बंटे हुए हैं- रोमन कैथोलिक, पूर्वी कट्टरपंथी, प्रोटेस्टैन्ट और अन्य ईसाई थे।

ईसाई धर्म का प्रसार एवं विश्व वितरण

ईसाई धर्म का प्रसार (Spread of Christianity)

ईसाई धर्मक अरंभ रोमन शासन-काल में यहूदी धर्म में एक सुधारवादी आन्दोलन के रूप में हुआ। इसमें विश्वास पर अधारित प्राचीन यहूदी परम्पराओं के स्थान पर ईश्वर तथा मानव के प्रति प्रेम के सिद्धान्त पर बल दिया गया। इस आन्दोलन को जीसस (ईसा मसीह) ने सर्वप्रथम फिलीस्तीन में आरम किया। ईसा मसीह के प्रधान शिष्य पाल ने उनके मूल संदेश को समुचित व्याख्या करके इसे एक संगठनात्मक स्वरूप प्रदान किया। ईसाई धर्म यूनानी और रोमन लोगों में लोकप्रिय होता गया। इस प्रकार रोमन साम्राज्य द्वारा सम्पूर्ण दक्षिणी यूरोप में ईसाई धर्म का प्रचार हो गया। ईसा की चौथी शताब्दी से ईसाई धर्म का प्रचार रोमन साम्राज्य से शुरू हुआ। ग्यारहवीं शताब्दी में पूर्वी चर्च की स्थापना हुई जिसने पोप की सत्ता को मानने से इंकार कर दिया। इसे पूर्वी कट्टरपंथी चर्च के नाम से जाना जाता है।

मध्यकाल में चर्चों (गिरजाघरों) की शक्ति अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच चुकी थी। इसके पश्चात् ईसाई धर्म की विभिन्न शाखाओं के मध्य संघर्ष होते रहे और उनमें प्रोटेस्टैन्ट आन्दोलन अधिक प्रभावशाली रहा। सोलहवीं शताब्दी में जब प्रोटेस्टैन्ट धर्म का सुधार आन्दोलन जोरों पर था, ईसाई धर्म का पुनः विभाजन हुआ और इसका एक वर्ग 'प्रोटेस्टैन्ट' के नाम से स्थापित हो गया। बाद में प्रोटेस्टैन्ट धर्म भी स्थानीय तथा कालिक परिस्थितियों के अनुसार कई उपवर्गों में विभक्त हो गया। इस प्रकार उत्तरी-पश्चिमी यूरोप प्रोटेस्टैन्ट धर्मावलम्बियों का प्रमुख क्षेत्र बन गया।

सत्रहवीं से उन्नीसवीं शताब्दियों तथा बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दसकों में यूरोपीय देशों में बड़े पैमाने पर जनसंख्या स्थानान्तरण उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया महाद्वीपों के लिए हुआ। यूरोपीय प्रवासियों के साथ ही यूरोप से ईसाई धर्म भी उन नवीन प्रदेशों में पहुँच गया। विश्व के विभिन्न भागों में ईसाई धर्म का प्रसार यूरोपीय उपनिवेशों को स्थापना के साथ प्रारम्भ हुआ। उत्तरी-पश्चिमी यूरोप (मुख्यतःब्रिटेन) से जनसंख्या स्थानान्तरण और उपनिवेश स्थापना के परिणामस्वरूप उत्तरी अमेरिका (सं.रा. अमेरिका और कनाडा), दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड आदि में प्रोटेस्टैन्ट पंथ का विस्तार हुआ। आज विश्व में ईसाई मिशनरियों का जाल बिछा हुआ है जो ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु निरन्तर प्रयत्नशील हैं।

ईसाई धर्म विश्व के सर्वाधिक व्यापक क्षेत्र में फैला हुआ है। यह विश्व का बृहत्तम धर्म है जिसके अनुयायियों की संख्या लगभग 200 करोड़ है जो विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 30 प्रतिशत है। 1987 में विश्व में ईसाइयों की कुल संख्या 160 करोड़ (विश्व की जनसंख्या का 30.5 प्रतिशत) थी। ईसाइयों की सर्वाधिक संख्या यूरोप (46.2 करोड़) में है जिसके पश्चात् क्रमशः लैटिन अमेरिका (39.3 करोड़), अफ्रीका (23.6 करोड़), आंग्ल अमेरिका (23.2 करोड़), एशिया (19.6 करोड़) और ओशेनिया (2.1 करोड़) है।

(2) इस्लाम धर्म (Islam)

इस्लाम धर्म विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है जिसका विस्तार उत्तरी अफ्रीका तथा दक्षिणी-पश्चिमी, दक्षिण और दक्षिणी-पूर्वी एशिया में है। इस्लाम धर्म का उदय 7वीं शताब्दी में अरब देश में हुआ था जिसके संस्थापक एवं प्रवर्तक हजरत मोहम्मद साहब थे। मोहम्मद साहब का जन्म अरब के मक्का नगर में 570 ई. में हुआ था। ऐसा मानते हैं कि मोहम्मद साहब ने 15 वर्षों तक एक गुफा में रहकर चिन्तन किया। वहीं अल्लाह (इस्लाम धर्म के ईश्वर) ने उन्हें दर्शन दिया और उन्हें निर्देश दिया कि जाओ अल्लाह के बन्दों (भक्तों) को सही रास्ता दिखाओ। मोहम्मद साहब ने अपने को अल्लाह का दूत (पैगम्बर) बताते हुए लोगों के सामने अल्लाह के बताये गये तथ्यों को प्रस्तुत किया।

इस्लाम धर्म एकेश्वरवाद को मानता है और प्रतिपादित करता है कि प्रलय (मृत्यु) के बाद सभी लोगों को अल्लाह के सम्मुख उपस्थित होकर अपने द्वारा किये गये शुभ-अशुभ कर्मों का लेखा-जोखा देना पड़ेगा और उसी के अनुसार उसे स्वर्ग या नरक मिलेगा। इस्लाम धर्म के दो प्रमुख ग्रंथ है कुरान और हदीसा। 'कुरान' में वह सारा ज्ञान संग्रहीत है जिसे स्वयं अल्लाह ने अपने दूत मोहम्मद साहब को पथ भ्रष्ट लोगों को सही मार्ग दिखाने के लिए दिया था। 'हदीसा' नामक ग्रंथ में मोहम्मद साहब के उपदेशों को संग्रहीत किया गया है। 'कुरान' इस्लाम धर्म के अनुयायियों का पवित्रतम ग्रंथ है जिसके प्रति मुसलमान विशेष आदर, श्रद्धा और विश्वास के भाव रखते हैं। इस्लाम के आस्था के पाँच नियम इस प्रकार हैं - (1) अल्लाह (ईश्वर) में आस्था, (2) पैगम्बर में आस्था, (3) कुरान में आस्था, (4) देवदूत में आस्था, और (5) कयामत के दिन में विश्वास। इस्लाम धर्म को मानने वाले सभी मुसलमानों के निम्नांकित पाँच कर्तव्य निश्चित किये गये हैं जो निम्न प्रकार हैं-

(i) कलमा- 'ईश्वर एक है और मुहम्मद उसके प्रेषित हैं' इस प्रतिश्रा वाक्य को 'कलमा' कहते है। जिसका उच्चारण प्रत्येक मुसलमान के लिए अनिवार्य है।

(ii) नमाज- 'नमाज' अर्थात प्रार्थना। प्रत्येक मुसलमान को प्रतिदिन पाँच बार प्रार्थना करनी चाहिए।

(ii) रोजा- रमजान के महीने में प्रत्येक को सम्पूर्ण दिन निर्जल व्रत रखना चाहिए।

(iv) जकात- प्रतिवर्ष धनी व्यक्ति व्यक्ति को अपनी आमदनी के ढाई प्रतिशत हिस्से का दान- धर्म करना चाहिए।

(v) हज- संभव हो तो कम-से-कम एक बार मक्का की यात्रा (हज) अवश्य करनी चाहिए।

इस्लाम के दो प्रमुख सम्प्रदाय हैं - सुन्नी और शिया। विश्व के लगभग 90 प्रतिशत मुसलमान सुन्नी सम्प्रदाय से और शेष 10 प्रतिशत शिया सम्प्रदाय से संबंधित है। इस्लाम धर्मावलम्बी सउदी अरब में स्थित मक्का और मदीना को अति पवित्र नगर मानते हैं और प्रति वर्ष यहाँ विश्व के कोने-कोने से हजारों मुसलमान यात्री हज करने आते हैं। मक्का मोहम्मद साहब की जन्मभूमि है और मदीना कर्मभूमि। मक्का को सर्वाधिक पवित्र स्थान माना जाता है जहाँ पवित्रतम स्थान काबा-अलहरम शरीफ स्थित है। यहाँ स्थित अलहरम मस्जिद में 'ज़मज़म' नामक पवित्र कुआं भी है। मक्का एक ऐसा स्थान है जहाँ हज करने की इच्छा प्रायः सभी मुसलमानों में पायी जाती है। मदीना नगर मक्का से 350 किमी. उत्तर में स्थित है। इस्लाम धर्म की पहली मस्जिद मदीना में ही बनाई गयी थी।

(3) हिन्दू धर्म (Hinduism)

हिन्दू धर्म भारत का सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण धर्म है। अनुयायियों की संख्या की दृष्टि से ईसाई और इस्लाम के बाद इसका विश्व में तीसरा बड़ा स्थान है। ईसा से लगभग 3000 वर्ष पूर्व आर्यों द्वारा स्थापित इस धर्म को पहले आर्य धर्म कहा जाता था। वेद हिन्दू धर्म के प्राचीनतम ग्रन्थ है जिनके नाम पर इसे वैदिक धर्म के नाम से भी जाना जाता है। बाद में पुराणों और स्मृतियों की रचना के आधार पर इसे पौराणिक धर्म की भी संज्ञा दी गयी।

यह एक सनातन धर्म है जिसे परवर्ती वर्षों में हिन्दू धर्म के नाम से जाना जाने लगा और हिन्दुओं का देश 'हिन्दुस्तान' नाम से प्रसिद्ध हुआ। हिन्दु धर्म एक नृजातीय धर्म है जिसकी सदस्यता व्यक्ति के जन्म से निर्धारित होती है। प्राचीनतम धर्मग्रन्थ वेद हिन्दू धर्म (वैदिक धर्म) के आधार हैं तथा वेद में लिखी गयी बातों को स्पष्ट माना जाता है और उनके विषय में तर्क नहीं किया जाता। वेद चार हैं - ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इनमें ऋग्वेद सबसे प्राचीन है। आगे चलकर उत्तर वैदिक काल में तीन वेदों, ब्राह्मण ग्रन्थों, पुराणों, उपनिषदों आदि की रचना हुई। ऋग्वेद में विभिन्न प्राकृतिक लीलाओं को विभिन्न देवों के कार्य के रूप में व्याख्या की गयी है और यह प्रतिपादित किया गया है कि संसार के समस्त कार्य इन्हों देवों की कृपा से संचालित होते है जिनके कारण विभिन्न प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं। ऋग्वेद में 33 देवता बताये गये है जिनमें इन्द्र, अग्नि, वरुण, पवन, सूर्य, चन्द्र आदि प्रमुख हैं।

हिन्दू धर्म का प्रसार (Spread of Hinduism)

हिन्दू धर्म नृजातीय धर्म है जो मूलतः जन्म पर आधारित है। इसकी सदस्यता व्यक्ति के जन्म से निर्धारित होती है और किसी विधर्मी को हिन्दू बनाना लगभग वर्जित है। अधिकांश हिन्दू भारत में ही संकेन्द्रित है। भारतीय सीमा से संलग्न पर्वतीय देश नेपाल एक हिन्दू राज्य है जहाँ की अधिकांश जनसंख्या हिन्दू है। प्राचीन काल में कुछ लोग दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ देशों में व्यापार तथा धर्म प्रचार आदि के लिए गये और वहीं बस गये। विश्व में लगभग 80 करोड़ जनसंख्या हिन्दू हैं जो विश्व की कुल जनसंख्या का लगभग 13 प्रतिशत है। 1987 में सम्पूर्ण विश्व में हिन्दुओं की संख्या 59.4 करोड़ थी जिसमें से 99.3 प्रतिशत (59 करोड़) एशिया महाद्वीप विशेषतः भारत में संकेन्द्रित थी। भारत की लगभग 82 प्रतिशत जनसंख्या हिन्दू है। अफ्रीका के पूर्वी भागों में लगभग 14 लाख हिन्दू रहते हैं। उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका और यूरोप महाद्वीपों में भी प्रत्येक में लगभग 6 लाख हिन्दुओं का निवास है। ओशेनिया (आस्ट्रेलिया) में भी लगभग 3 लाख हिन्दू हैं। भारत के बाहर हिन्दुओं की उल्लेखनीय संख्या दक्षिण एशिया में नेपाल और श्रीलंका, दूरवर्ती द्वीपीय देश मारीशस एवं फिजी तथा दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों - म्यांमार, थाईलैण्ड, हिन्दचीन, इण्डोनेशिया आदि में पायी जाती है।

(4) बौद्ध धर्म (Buddhism)

बौद्ध धर्म की स्थापना पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में हुई थी। इसके प्रवर्तक गौतम बुद्ध थे। बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व कपिल वस्तु के पास लुम्बिनी नामक स्थान पर हुआ था जो नेपाल की तराई में स्थित है। गौतम बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को छोड़कर गृह त्याग दिया और सन्यास धारण करके साधना में लीन हो गये। गया में वटवृक्ष के नीचे सात दिनों तक निरन्तर घोर तपस्या तथा साधना के पश्चात् गौतम को ज्ञान की प्राप्ति हुई। तब वे 'तथागत' और 'बुद्ध' कहलाये। बुद्ध का दृष्टिकोण हमेशा व्यावहारिक रहा और वे कभी भी आत्मा और जीव, जीवन और मृत्यु, जीव के अमरत्व या नश्वरता आदि के उलझनों में नहीं पड़े। अहिंसा और जीवों की समानता,दया तथा करुणा आदि मानव मूल्यों पर आधारित बौद्ध धर्म को तत्कालीन राजाओं ने संरक्षण प्रदान किया और इसके प्रचार-प्रसार पर बल दिया।

बौद्ध धर्म का प्रसार (Spread of Buddhism)

भारत बौद्ध धर्म की जन्म-स्थली है। पाँचवी शताब्दी ईसा पूर्व में गौतम बुद्ध द्वारा संस्थापित बौद्ध धर्म को राजधर्म और विश्व धर्म बनाने में सम्राट अशोक तथा कनिष्क ने महान योगदान दिया। आगे चलकर बौद्ध धर्म श्रीलंका, बर्मा, मध्य एशिया, तिब्बत और चीन तथा वहाँ से कोरिया और जापान में फैल गया। सातवीं शताब्दी तक इन सभी प्रदेशों में बौद्ध धर्म का प्रचार हो गया था। बौद्ध धर्म चीन में पहले से प्रचलित कन्फुसियसवाद और ताओवाद से मिल गया है। कन्फूसियसवाद पूर्वजों की पूजा पर आधारित है जबकि ताओवाद प्रकृति पर आधारित चीनी धर्म है। चीन की साम्यवादी सरकार ने बौद्ध मठो के परम्परागत विशेषाधिकारों को कम कर दिया है और उनके बौद्ध मठों को अपने अधिकार में ले लिया है जिसका उपयोग म्यूजियम या अन्य धर्मनिरपेक्ष कार्यों में किया जाने लगा है। धर्म विरोधी अभियानों से बौद्धों की संख्या कम होती जा रही है।

जापान में छठी शताब्दी के पश्चात् शिन्टोवाद का प्रचार हुआ। बाद में बौद्ध धर्म इससे मिल गया। शिन्टो धर्म में कई देवताओं की पूजा मंदिरों में की जाती है। बहुत से जापानी दोनों ही पवित्र स्थानों पर पूजा एवं आराधना करते हैं। चीन की भाँति मंगोलिया, कोरिया तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया के कुछ देशों जहाँ धर्म विरोधी आंदोलन हुए हैं, वहाँ बौद्ध धर्म को काफी हानि उठानी पड़ी है। बौद्ध धर्म की जन्मस्थली भारत में यह अत्यंत प्राचीन, सनातन तथा सशक्त हिन्दू धर्म द्वारा दबा दिया गया और उसके सम्मुख नहीं टिक पाया। परिणाम यह हुआ कि राजाओं के आश्रय में पनपे बौद्ध धर्म का प्रभाव भारत में अत्यल्प रह गया। विश्व भर में कुल 35.6 करोड़ बौद्ध धर्मानुयायी है जो कुल जनसंख्या का 5.8 प्रतिशत है। सन् 1987 में बौद्ध धर्म के अनुयायियों की संख्या 30.8 करोड़ थी। इनमें से लगभग 99 प्रतिशत बौद्ध केवल एशिया महाद्वीप में थे। एशिया में बौद्ध धर्म के अनुयायी दक्षिणी एशिया (भारत, नेपाल, श्रीलंका), दक्षिण-पूर्वी एशिया (म्यांमार, थाईलैण्ड, कम्बोडिया वियतनाम), मध्य एशिया (तिब्बत), पूर्वी एशिया (चीन, जापान, कोरिया, ताइवान, मंचूरिया, मंगोलिया आदि) के विस्तृत भू-भाग में फैले हुए हैं।

(5) यहूदी धर्म (hudaism)

यहूदी धर्म प्राचीन धर्मों में से एक है जिसका उद्भव ईसा पूर्व तेरहवीं शताब्दी में जेरूसलेम में हुआ था। मूसा कालीन इस धर्म के मानने वाले अनेक देवताओं की पूजा करते थे। यहूदी जेरूसलेम को पवित्र भूमि मानते हैं। 135 ई. में रोमन साम्राज्य के साथ संघर्ष में जेरूसलेम के नष्ट हो जाने पर यहूदियों को पवित्र भूमि से भगा दिया गया था। लगभग 1800 वर्ष पश्चात् 1948 में फिलिस्तीन में यहूदी राज्य की स्थापना हुई और यहूदी पुनः संगठित हुए। यहूदी धर्म एक नृजातीय धर्म है जो एक दृढ़ सांस्कृतिक समूह का निर्माण करता है। केवल यहूदी परिवार में जन्म लेने वाला व्यक्ति ही यहूदी धर्म का सदस्य बन सकता है अथवा कोई व्यक्ति एक जटिल पद्धति द्वारा सांस्कृतिक पहचान बनाकर ही इस धर्म को स्वीकार कर सकता है। इस प्रकार यहूदी धर्म के अनुयायियों ने इसे एक प्रतिबंधित समुदाय के रूप में स्थापित किया है। एक वार्षिक चक्र या जलवायु दशाओं पर आधारित यहूदी कैलेण्डर यहूदी धर्म की प्रमुख विशेषता है। कृषकों या पशुचारकों के लिए इसका विशेष महत्व है अतः इसे कृषि कैलेण्डर भी कहा जाता है। सम्पूर्ण विश्व में यहूदी लोगों को कुल जनसंख्या लगभग 1.4 करोड़ (2000) है जो विश्व की कुल जनसंख्या का मात्र 0.23 प्रतिशत ही है। 1987 के आंकड़े के अनुसार लगभग 40 प्रतिशत यहूदी (81 लाख)संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते हैं। लगभग 22 प्रतिशत यहूदो यूरोप में और शेष 18 प्रतिशत एशिया महाद्वीप में हैं। अन्य महाद्वीपों में इनकी संख्या नगण्य है।

(6) चीनी धर्म (Chinese Religion)

चीन में कई धर्म प्रचलित हैं जो नृजातीय धर्मों की श्रेणी में आते हैं। चीनी धर्मों में परलोक के विषय में कम विचार किया गया है किन्तु वे वर्तमान जीवन को उत्तम ढंग से जीने योग्य बनाने पर बल देते हैं। चीनी लौकिक धर्म धार्मिक की तुलना में नैतिक और दार्शनिक अधिक हैं और चीन का प्रमुख धर्म है। कन्फूसियस धर्म और ताओ धर्म चीन के अन्य प्रमुख धर्म है। विश्व की लगभग 6.23 प्रतिशत जनसंख्या (38 करोड़) चीनी लोक धर्म के अंतर्गत आती है जो कुल चीनी जनसंख्या की लगभग 35 प्रतिशत है। चीन में निम्नलिखित धर्म पाए जाते हैं।

(i) कन्फुसियस धर्म (Confucianism)- इस धर्म का संस्थापक लू प्रांत का शासक कन्फूसियस (ई.पू. 551-479) था। यह धर्म सार्वजनिक जीवन में नैतिक कर्तव्य पर बल देता है। इसमें शासक और प्रजा तथा परिवार और उसके सदस्यों के मध्य उचित आचरण को प्रतिपादित किया गया है। इस धर्म में कोई चर्च (धार्मिक संस्था) या पुरोहित (पुजारी) नहीं होता है और पूर्वजों की पूजा तथा आदर के रूप में कृतज्ञता व्यक्त करने पर महत्व दिया जाता है।

(ii) ताओ धर्म (Taoism)- इसकी स्थापना लाओत्से (604-517 ई.पू.) नामक चीनी शासक ने किया था जो कन्फुसियस का समकालीन था। ताओ धर्म जीवन के रहस्यवादी पक्ष पर बल देता है और मानता है कि जीवन और संसार के विषय में सब कुछ जानने योग्य नहीं है। इस धर्म के अनुसार प्रकृति के साथ पूर्ण रूप से तादात्म स्थापित करके अनन्त शांति प्राप्त की जा सकती है।

चीन के अधिकांश भागों में चीनी लोक धर्म, कन्फुसियस धर्म, ताओ धर्म और बौद्ध धर्म का प्रचलन है किन्तु उनमें प्रतिस्पर्धा नहीं है। इसके अलावा भी विश्व में शिन्टो धर्म, जनजातीय धर्म' आदि भी पाए जाते है।

विश्व के प्रमुख धर्म और उनके अनुयायियों की अनुमानित संख्या

धार्मिक समूह

सम्बन्धित जनसंख्या (करोड़ में)

विश्व की कुल जनसंख्या का प्रतिशत

1. ईसाई

179.40

29.31

(i) रोमन कैथोलिक

104.40

17.10

(ii) प्रोस्टैन्ट

33.70

5.50

(iii) अर्थोडाक्स

21.30

3.48

(iv) ऐंगेलिकन

7.80

1.27

(v) अन्य ईसाई

12.10

1.96

2. मुस्लिम

115.50

18.87

3. हिन्दू

79.90

13.06

4. चीनी लोक धर्म

38.10

6.23

5. बौद्ध

35.60

5.82

6. अनीश्वरवादी

14.80

2.42

7. नव धार्मिक

10.10

1.65

8. सिक्ख

2.30

0.38

9. यहूदी

1.40

0.23

10. कनफ्यूसियस

0.62

0.10

11. बहाई

0.62

0.10

12. जैन

0.41

0.07

13. शिन्टो

0.28

0.05

14. अन्य धर्म

0.10

0.02

भारत के प्रमुख धर्म (Major Religions of India)

धर्म का संबंध मनुष्य की भावनाओं, श्रद्धा और भक्ति से है जो उसका संबंध अलौकिक शक्ति से जोड़ती है। धर्म मनुष्य के आंतरिक जीवन को तो प्रभावित करता ही है साथ में उसके सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक जीवन को भी प्रभावित करता है। धर्म को अपनाकर व्यक्ति सामाजिक नियमों का पालन करता है जिससे सामाजिक व्यवस्था सुचारू रूप से संचालित होगी।

भारत प्राचीन काल से ही विभिन्न धर्मों की उत्पत्ति और प्रसार का मूल केन्द्र रहा है। भारत अनेक धर्मों का देश है। विश्व में संभवतः ऐसा अन्य कोई देश नहीं है जहाँ भारत के समान धर्मों की विविधता तथा बहुलता पायी जाती हो। भारत में मुख्य रूप से 6 धर्मों - हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध और जैन के अनुयायी अधिक है इनके अतिरिक्त यहाँ कुछ पारसी, यहूदी तथा जनजातीय धर्मों को मानने वाले लोग भी हैं।

प्रत्येक सम्प्रदाय की भी अनेक शाखाएँ और उपशाखाएँ हैं। शैव, वैष्णव, शाक्त, ब्रह्म समाज, आर्य समाज आदि हिन्दू धर्म के प्रमुख सम्प्रदाय हैं। इसी प्रकार इस्लाम में शिया और सुन्नी, ईसाई धर्म में प्रोटेस्टेंट तथा कैथोलिक, बौद्ध धर्म में महायान और हीनयान, जैन धर्म में श्वेताम्बर और दिगम्बर प्रमुख धार्मिक सम्प्रदाय हैं। भारत हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिक्ख धर्मों की जन्मस्थली है जबकि इस्लाम, ईसाई, पारसी, यहूदी आदि धर्म विदेशों से यहां आये हैं। वास्तव में हिन्दू धर्म ही भारत का आदि धर्म है और बौद्ध, जैन तथा सिक्ख धर्म इसके ही अंग हैं जिन्होंने स्वतंत्र धर्म का अस्तित्व प्राप्त कर लिया है।

(1) हिन्दू धर्म (Hinduism)

हिन्दू धर्म भारत का सबसे प्राचीन धर्म है जिसने ईसा पूर्व 3000 के लगभग आर्यों के साथ भारत में पदार्पण किया था। पहले इसे आर्य धर्म ही कहते थे। इसके अंतर्गत वेदों की रचना हुई जिसके कारण इसे वैदिक धर्म भी कहा गया है। पुराणों की रचना के साथ इसे पौराणिक धर्म की भी संज्ञा दी गयी है। बाद में इसके अनुयायियों को हिन्दू और इमे हिन्दू धर्म कहा जाने लगा। भारत में हिन्दुओं की बाहुलता के कारण इसे 'हिन्दुओं का देश' या 'हिन्दूस्तान भी कहा जाता है। जनगणना 2001 के अनुसार भारत में 81.4% प्रतिशत जनसंख्या हिन्दुओं की है।

हिन्दू धर्म भारत का वृहत्तम धर्म है। भारत के हिन्दुओं को जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या जा लगभग 12 प्रतिशत है। इसके अनुयायी पूरे देश में फैले हुए हैं किन्तु कुछ राज्यों या प्रदेशों में हिन्दुओ का संकेन्द्रण कम है। उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, असम, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसढ़, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा आदि हिन्दू बहुल बन्द हैं। हिन्दुओं की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है। इनमें से अधिकांश राज्यों की 85 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या हिन्दू है। इसके विपरीत जम्मू और कश्मीर (इस्लाम प्रधान) तथा उत्तरी-पूर्वी राज्यों (ईसाई प्रधान) में हिन्दुओं का अनुपात निम्न है और वहाँ हिन्दू अल्पसंख्यक हैं।

(2) इस्लाम (Islam)

भारत में इस्लाम धर्म का प्रारम्भ ग्यारहवीं शताब्दी में माना जाता है किन्तु इसका वास्तविक प्रमा तेरहवीं शताब्दी में हुआ जब यहाँ प्रथम मुस्लिम शासन स्थापित हुआ। भारत में इस्लाम धर्म का प्रवेश आक्रांता के रूप में हुआ और मुस्लिम शासकों ने अपने शासन काल (1206-1757 ई.) में बलात् अथवा प्रलोभन देकर असंख्य भारतीयों को इस्लाम धर्म का अनुयायी बनने पर बाध्य किया। जनगणना 2011 के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या में मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 12.4 प्रतिशत है। भारत में मुसलमान संख्या की दृष्टि से हिन्दुओं के पश्चात् द्वितीय स्थान पर हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति (1947) से पहले अविभाजित भारत की कुल जनसंख्या में 22.5 प्रतिशत मुसलमान थे। देश विभाजन के परिणामस्वरूप मुस्लिम बहुलता वाले दो क्षेत्रों (पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान) के अलग हो जाने तथा देश के अन्य भागों से वहाँ मुसलमानों के संकेन्द्रित होने से भारत में मुसलमानों का अनुपात लगभग 10.6 प्रतिशत रह गया। मुसलमानों का सर्वाधिक संकेन्द्रण उन क्षेत्रों में पाया जाता है जो मुस्लिम शासन की अवधि में अधिक शक्तिशाली और महत्वपूर्ण राज्य थे। जम्मू एवं कश्मीर और लक्षद्वीप में मुसलमान बहुसंख्यक ही जम्मू एवं कश्मीर में हिन्दू और बौद्ध अल्पसंख्यक के रूप में हैं। जम्मू एवं कश्मीर की कुल जनसंख्या में 67.0 प्रतिशत मुसलमान 29.6 प्रतिशत हिन्दू हैं। लक्षद्वीप में 90 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या मुसलमानों की है। उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की संख्या सर्वाधिक (307 लाख) है जिसके पश्चात् क्रमशः महाराष्ट्र, केरल, आंध्र प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, गुजरात और तमिलनाडु आते हैं।

(3) ईसाई (Christianity)

भारत में ईसाई धर्म का तीसरा स्थान है। यह देश का ज़्तिीय अल्पसंख्यक समूह है। भारत की 2.32 प्रतिशत जनसंख्या ईसाई धर्मावलम्बी है। ईसाई धर्म का जन्म लगभग 2000 वर्ष पूर्व फिलिस्तीन में हुआ था। इसके संस्थापक ईसा मसीह थे। भारत में ईसाई धर्म का प्रचार मुख्यतः पंद्रहवीं शताब्दी से आरंभ हुआ। ईस्ट इंडिया कम्पनी तथा ब्रिटिश शासन काल में अनेक ईसाई मिशनरियां भारत आयीं और यहाँ ईसाई धर्म का खूब प्रचार किया। इनके प्रभाव से हिन्दुओं में दलित तथा निम्न जातियों के हजारों लोगों ने धर्मान्तरण द्वारा ईसाई धर्म को स्वीकार कर लिया। इसी प्रकार असंख्यक जनजातीय लोग भी ईसाई बन गये। भारत में ईसाई जनसंख्या का वितरण अधिक असमान है। पूर्वोत्तर राज्यों में ईसाई बहुसंख्यक ही मेघालय (70.3 प्रतिशत), मिजोरम (87.0 प्रतिशत) और नागालैण्ड (90.0 प्रतिशत) राज्यों में अधिकांश जनसंख्या ईसाई धर्मावलम्बी है। इसे अतिरिक्त केरल (19.0 प्रतिशत), मणिपुर (34.0 प्रतिशत) और गोआ (26.7 प्रतिशत) में भी ईसाईयों का अनुपात अपेक्षाकृत अधिक है। ईसाईयों की वास्तविक संख्या की दृष्टि से केरल (82.9 लाख) बृहत्तम राज्य है।

(4) सिक्ख धर्म (Sikhism)

सिक्ख धर्म भारत का चौथा महत्वपूर्ण धर्म है और इसके अनुयायी तृतीय बृहत्तम अल्पसंख्यक समूह का निर्माण करते हैं। यह मूलतः हिन्दू धर्म से परिवर्तित और पंजाब में जन्मा धर्म है। इसका उद्भव और विकास सोलहवीं शताब्दी में सुधार आन्दोलन के रूप में हुआ। गुरूनानक (1469-1538) इसके संस्थापक गुरु थे। भारत की कुल जनसंख्या में लगभग 1.9 प्रतिशत सिक्ख हैं जिनकी संख्या 190.5 लाख है। भारत के 90 प्रतिशत से अधिक सिक्ख पंजाब में संकेन्द्रित हैं। पंजाब की कुल जनसंख्या में लगभग 60.0 प्रतिशत सिक्ख और 36.9 प्रतिशत हिन्दू हैं। पंजाब के अधिकांश जिलों में सिक्खों का प्रतिशत 60 से 65 तक पाया जाता है। पंजाब के अतिरिक्त अन्य समीपवर्ती राज्यों - हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भी पर्याप्त संख्या में सिक्ख पाये जाते हैं।

(5) बौद्ध धर्म (Buddhism)

भारत बौद्ध धर्म की जन्मस्थली है। इस धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध थे जिन्होंने छठी शताब्दी ई.पू. में इसका प्रवर्तन किया। बुद्ध ने दुःख निवारण का जो मार्ग बताया उसके आठ अंग हैं, अतः उसे अष्टांगिक मार्ग भी कहते ही उसके आठ अंग हैं - 1. सम्यक् दृष्टि, 2. सम्यक् संकल्प, 3. सम्यक् वाणी, 4. सम्यक कर्म, 5. सम्यक् आजीव, 6. सम्यक् व्यायाम, 7. सम्यक् स्मृति, और 8. सम्यक् समाधि। विशुद्ध आचरण पर आधारित इस मार्ग को मध्यम मार्ग भी कहा जाता है। महात्मा बुष्ठ कर्मवाद और पुनर्जन्म में विश्वास करते थे। उनके अनुसार, कर्मों के अनुसार ही मनुष्य का पुनर्जन्म होता है। बौद्ध धर्म का चरम लक्ष्य निर्वाण की प्राप्ति है। बौद्ध धर्म का प्रसार भारत के बाहर दक्षिण-पूर्वी एशिया, चीन, तिब्बत, जापान आदि अनेक एशियाई देशों में हुआ है। भारत में बौद्ध धर्म अल्पसंख्यक धर्म के रूप में विद्यमान है। भारत की मात्र 0.8 प्रतिशत जनसंख्या ही बौद्ध धर्म की अनुयायी है। जिसमें महाराष्ट्र राज्य में बौद्धों की संख्या अधिक है क्योंकि महाराष्ट्र में बी.आर. अम्बेडकर की प्रेरणा से दलित वर्ग के से लोगों ने बौद्ध धर्म को अपना लिया यहाँ बौद्धों का संकेन्द्रण जन्मू एवं कश्मीर में लद्दाख क्षेत्र, हिमाचल प्रदेश में स्पिती क्षेत्र और अरुणाचल प्रदेश में कामेंग जनपद में पाया जाता है। पांच-छ: दशकों में नव-बौद्ध आन्दोलनों के प्रभाव से महाराष्ट्र, मिजोरम और त्रिपुरा के अनुसूचित जाति के अनेक परिवारों ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया है।

(6) जैन धर्म (Jainism)

जैन धर्म का उद्भव-स्थल भी भारत ही है। इसके प्रवर्तक महावीर स्वामी थे। जिन्होंने छठी शताब्दी ई.पू. में इस धर्म का आरंभ किया। उनके अनुसार इस सांसारिक दुःख से मुक्ति पाने के लिए मनुष्य को परिवार, संसार, संपत्ति, आसक्ति, तृष्णा आदि का परित्याग कर बिक्षु बनकर निर्बन्ध होता और भ्रमण करना चाहिए। जैन धर्म अहिंसा और शरीर क्लेश को अधिक महत्व देता है। जैन भिक्षुकों के लिए पाँच महाव्रतों का पालन करना आवश्यक बताया गया है - 1. अहिंसा, 2. असत्य त्याग, 3. अस्तेय, 4. ब्रह्मचर्य और 5. अपरिग्रह। वर्तमान में जैन धर्म के दो सम्प्रदाय हैं - दिगम्बर (निर्वस्त्र) और श्वेताम्बर (श्वेत वस्त्र धारी)। भारत में जैन धर्मानुयायियों की संख्या 42.2 लाख कुल जनसंख्या 0.41 प्रतिशत है। इसके अनुयायो भारत से बाहर अन्य देशों में नगण्य हैं। जैन धर्मावलम्बी मुख्यतः वाणिज्यिक क्रियाओं तथा राजनीति में संलग्न है और अधिकांशतः नगरीय क्षेत्रों में ही बसे हुए हैं। महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश आदि में स्थित हैं।

(7) पारसी धर्म (Parsism)

पारसी धर्म की उत्पत्ति 600 ई.पू. ईरान में हुई थी। जिसके संस्थापक जरथुस थे। भारत में पारसी धर्म का आरम्भ आठवीं शताब्दी में तब हुआ जब पश्चिमी एशिया के कुछ धर्म प्रचारक खंभात की खाड़ी में स्थित 'दिव' नामक द्वीप पर आये। पारसी धर्म एकेश्वरवादी है और ईश्वर को 'होरमद्ज' कहा जाता है। इसका पवित्र धार्मिक पुस्तक अवेस्ता है। भारत में पारसी धर्म के अनुयायियों की संख्या लगभग 2 लाख है जो कुल जनसंख्या का मात्र 0.13 प्रतिशत है। भारत के अधिकांश (90 प्रतिशत) पारसी धर्मावलम्बी अधिकांशतः मुम्बई और सूरत नगरों तथा उसके आस-पास हो निवास करते हैं।

इस प्रकार भारत में विविध धर्मों के लोग निवास करते हैं जिनमें विशेषतः अपनी-अपनी संस्कृति, भाषा, जीवन शैली पायी जाती है।

भारत की जनसंख्या का धार्मिक संघटन (1961-2011)

धार्मिक वर्ग

कुल जनसंख्या का प्रतिशत

1961

1971

1981

1991

2001

2011

1. हिन्दू

83.50

82.82

82.63

82.41

81.4

80.5

2. मुस्लिम

10.70

11.20

11.36

11.67

12.4

13.4

3. ईसाई

2.40

2.59

2.43

2.32

2.3

2.3

4.सिक्ख

1.80

1.89

1.96

1.99

1.9

1.8

5.बौद्ध

0.70

0.71

0.71

0.77

0.8

0.8

6. जैन

0.50

0.40

0.48

0.41

0.4

0.2

7. पारसी एवं अन्य

0.40

0.41

0.43

0.43

0.7

0.1

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