जनसंख्या की संरचना : सामाजिक, आर्थिक (POPULATION COMPOSITION : SOCIAL, ECONOMIC)

जनसंख्या की संरचना : सामाजिक, आर्थिक (POPULATION COMPOSITION : SOCIAL, ECONOMIC)

जनसंख्या की संरचना में जहाँ एक ओर लिंग, आयु, साक्षरता, नगरीयकरण आदि का महत्व है वही जनसंख्या की संरचना में सामाजिक, आर्थिक, वर्गीकरण भी महत्वपूर्ण है।

सामाजिक संरचना (Social Structure)

सामाजिक संरचना की सबसे छोटी इकाई परिवार है। विविध परिवार से समूह तथा विविध समूह के मिलने से समाज का निर्माण होता है अर्थात सामाजिक समूहों में सबसे अधिक व्यापक स्वरूप परिवार है। एक कुटुम्ब आवश्यक रूप से परिवार नहीं होता है, क्योंकि इसका आशय होता है ‘एक साथ रहने वाले लोगों का समूह'। परिवार या कुटुम्ब की संख्या एवं आकार द्वारा अधिवासों की विशेषताएँ काफी ज्यादा प्रभावित होती हैं, जो भौगोलिक महत्व को होती हैं। सामान्यतया परिवार विवाह पर आधारित एक सामाजिक संरचना है जिसके अन्तर्गत पिता, माता एवं बच्चे आदि शामिल होते हैं। सांख्यिकीय उद्देश्य के लिए संतानहीन पति-पत्नी भी एक परिवार कहलाते हैं। यह परिभाषा सामान्य रूप से सभी जनांकिकीविदों द्वारा प्रयुक्त होती है।

एक सामान्य परिवार की गणना, निम्न रूप से की जा सकती है-

(a)विभिन्न अवस्थाओं के सहगण अर्थात् विवाहित स्त्रियों का समूह जिनका विवाह किसी एक वर्ष में सम्पन्न हुआ; और

(b) प्रजननतापूर्ण किए सहगण।

(c) विभिन्न आयु वर्गों की विवाहित स्त्रियाँ।

(d) प्रजननतापूर्ण विवाहित स्त्रियों की पीढ़ी।

विविध परिवार से समूह तथा विविध समूह के मिलने से समाज का निर्माण होता है अर्थात् बड़े परिवार आम तौर पर बहु-विवाह व मूलभूत परिवार के सामान्य आवास पितृ या मातृ पक्ष से संबंधित होते हैं तथा इनके वंशज पितृ-वंशिक अथवा मातृ-वंशिक हो सकते हैं। इस प्रकार परिवारों को दो प्रमुख वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है- (a) पैतृक; एवं (b) मातृक

पैतृक परिवार को एक महत्वपूर्ण आर्थिक इकाई के रूप में देखा जाता है। यह ज्यादातर ग्रामीण परिवारों में तथा विभिन्न आकारों में पाई जाती है। लेकिन यूरोप में यह औद्योगीकरण, नगरीकरण तथा परिवार नियोजन द्वारा अधिष्ठापित है जो लघुतर, अल्पसत्तावादी, रोमांचक और व्यक्ति स्वेच्छाचारितायुक्त आधुनिक लोकतंत्रीय परिवार में परिवर्तित हो गया है। अब यहाँ परिवार एक उत्पादन इकाई नहीं रह गया है; स्त्रियों की शिक्षा तथा उनकी आर्थिक स्वतंत्रता में वृद्धि के कारण इनके आर्थिक कार्य परिवर्तित हो गए हैं। इससे भी ज्यादा राज्य, चर्च और सामाजिक संगठनों द्वारा परिवार कई रूपों में नियंत्रित एवं परिवर्तित किया जाता है और इस प्रकार परिवारों के सामाजिक काम लुप्त हो रहे हैं।

वर्तमान समय में परिवार के आकार एवं स्वरूप में काफी बदलाव आ रहा है, संयुक्त परिवार की प्रथा प्रायः समाप्त होती जा रही है उनका स्थान एकल अथवा छोटे परिवार लेते जा रहे हैं जो मूल रूप से परिवार नियोजन का प्रतिफल है। उपर्युक्त वर्णित देशों के समान ब्रिटेन में परिवार-आकार में प्रथम गिरावट व्यवसायिक एवं वेतनभोगी वर्ग में उन्नीसवीं सदी के अन्तिम तथा बीसवीं सदी के आरंभ के वर्षों में आई जबकि रूप सभी वर्षों में यह प्रवृत्ति प्रथम विश्वयुद्ध के उपरांत ही दृष्टिगत होती है। इस प्रकार उच्च वर्ग तथा क्रियाशील वर्ग के परिवारों में पाए जाने वाले अन्तर खत्म हो रहे हैं। सही मायने में जीवन स्तर में वृद्धि तथा सामान्य शिक्षा के प्रसार ने वर्ग-अन्तर को कम करने में प्रमुख भूमिका निभाई है।

कुटुम्ब-

कुटुम्ब की परिभाषा देना एक जटिल कार्य है। संस्थागत कुटुम्बों के तहत स्कूलों, चिकित्सालयों, होटलों, छावनियों तथा ऐसे ही संस्थानों में रहने वाले जनसमूह को शामिल किया जाता है। राष्ट्रसंघ ने व्यक्तिगत कुटुम्ब को परिभाषा के लिए निम्न बातों का होना जरूरी माना है; वे व्यक्ति जो सामूहिक रूप से एक गृह इकाई के सम्पूर्ण अथवा एक भाग को धारण करते हों; बहुधा प्रमुख भोजन में हिस्सा लेते हों और प्राथमिक निवास संबंधी आवश्यकताओं के लिए एक सार्वजनिक सुविधा का प्रावधान रखते हों। कुटुम्बों के अन्दर खून, विवाह अथवा गोद लेने संबंधी रिश्ते रखने वाले परिवारों की अभिज्ञान अथवा पहचान संभव है हालाँकि कई उदाहरणों में परिवार एवं कुटुम्ब एक ही होगा। जनगणना के उद्देश्य से प्राथमिक इकाई परिवार केन्द्र ही होता है जिसे संकुचित अर्थ में परिवार कह सकते हैं, अगर वहाँ विवाहित दम्पत्ति, माता-पिता, विवाहित, विधवा, विधुर आदि के साथ एक या अधिक बच्चे रहते हैं।

कुटुम्ब और परिवारों दोनों को पृथक रूपों में से विश्लेषित किया जा सकता है, लेकिन इनमें विभेद करना जरूरी होता है चूँकि परिवार जहाँ मुख्य रूप से जैविक महत्व के होते हैं, कुटुम्ब एक आर्थिक संकल्पना है।

व्यक्तिगत कुटुम्ब की तुलना संस्थागत कुटुम्ब आकार में बड़े होते हैं विविध कारणों से क्षेत्रीय अन्तर के आधार कुटुम्ब के आकारों में अंतर देखने को मिलता है। अधिक संख्या में अल्पायु विवाह, विवाहों एवं लघु आकार परिवारों के कारण इंग्लैण्ड तथा वेल्स में कुटुम्बों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई। इन्हीं क्षेत्रों के कुटुम्ब आकार प्रतिरूप कुटुम्ब की संख्या में परिवर्तन तथा वासगृहों से कुटुम्बों के अनुपात संबंधी परीक्षण कर जनसंख्या में परिवर्तन तथा वासगृहों से कुटुम्बों के बीच संश्लिष्ट अर्न्तसम्बन्ध प्रदर्शित किए गए हैं। कुटुम्ब संख्या में महत्वपूर्ण बढ़ोत्तरी वृहत् नगरों के उपान्तों तथा बुद्धिमान औद्योगिक प्रदेशों में पाए गए हैं।

विभिन्न देशों में कुटुम्ब का औसत रूप

देश

प्रति कुटुम्ब व्यक्तियों का औसत

देश

प्रति कुटुम्ब व्यक्तियों का औसत

1.कोरिया गणराज्य

5.56

15. पोलैण्ड

3.48

2. मेक्सिको

5.51

16. आस्ट्रेलिया

3.47

3. भारत

5.46

17. सं.रा. अमेरिका

3.29

4. श्रीलंका

5.37

18. फ्रांस

3.11

5. कुवैत

6.65

19. नाइजीरिया

4.42

6. सीरिया

5.93

20. पुर्तगाल

3.39

7. ब्राजील

5.17

21. इंग्लैण्ड एवं वेल्स

3.04

8. लीबिया

4.7

22. . जर्मनी

2.86

9. सिंगापुर

5.81

23. ग्रीस

3.78

10. चीनी

5.39

24. स्विटजरलैण्ड

3.27

11. ताइवान

5.79

25. कनाडा

3.75

12. थाइलैण्ड

5.64

26. सोवियत संघ

3.71

13. टर्की

5.64

27. इटली

3.36

14. कांगो

4.50

28. स्वीडन

2.74


जातीय संरचना

जातीय संरचना को अभिव्यक्त करना काफी जटिल कार्य है क्योंकि जातीय संरचना एक अस्पष्ट तथा विवादित तथ्य है। जैविकीय दृष्टिकोण से 'प्रजाति आयु और यौन की भाँति जनसंख्या की एक जनांकिकीय विशेषता है।' यह एक ऐसा भौतिक तथ्य है जो व्यक्ति; विशिष्ट समाज द्वारा बदला नहीं जा सकता है। व्यावहारिक प्रयोग में, जैविक संकल्पना और सामाजिक समूह के आधार पर जाति के अलग-अलग अर्थ होते हैं। ये सामाजिक समूह में विकसित जातियाँ सही मायने में जैविकीय आधार पर प्रजाति वर्ग नहीं है। अपितु ये सामाजिक कार्य वर्ग है, जो सामाजिक बदलाव के साथ-साथ परिवर्तित होती रहती हैं।

जीवविज्ञानवेत्ता, नृतत्वशास्त्री और आनुवंशिकीवेत्ता के अनुसार जातीय संरचना वास्तव में प्रजाति जैवीय वर्गों से संबंधित है। जनांकिकीय एवं जनसंख्या भूगोल में इसका अध्ययन इसलिए आवश्यक है कि परम्परागत जैवीय आधार पर प्रजातीय विभिन्नता महाद्वीपीय या विश्वस्तर पर ही एक उल्लेखनीय तथ्य है, क्षेत्रीय आधार पर नहीं। क्षेत्रीय आधार पर एक ही विभिन्न सामाजिक वर्ग, प्रजाति वर्ग, भाषा, धार्मिक समूहों में विभक्त हुआ दृष्टिगत होता है, इसलिए जनसंख्या के उद्भव, विकास तथा स्थानान्तरण को समझने में भी इससे सहायता मिलती है। सामाजिक विचारधारा के अनुरूप प्रजाति का विस्तृत अर्थ है। इस अर्थ में प्रजाति वर्गीकरण, समय तथा क्षेत्र के अनुरूप परिवर्तित होते रहते हैं। ज्यादातर जैवरत तथ्य- राष्ट्रीयता, धर्म, भाषा आदि का ही ऐसे प्रजातियों के निर्धारण में प्रयोग किया जाता है। सही मायने में इस प्रकार से भिन्न-भिन्न जातियों का कोई जैवीय आधार नहीं होता है।

'प्रोफेसर मैक' ने स्पष्ट किया है कि मानव प्रजाति के संबंध में अवधारणा परम्परागत रूप से प्रचलित सामाजिक अवधारणा ही रही है। इन सामाजिक जातियों में परिवर्तन जनसंख्या की गतिशील और भौगोलिक कारकों के कारण होता है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न जाति वर्ग सामाजिक आधार पर विकसित हो जाते हैं। यूरेशिया में पूर्व पश्चिमी भिन्न-भिन्न सामाजिक प्रजातियाँ दृष्टव्य हैं हालाँकि इसमें जैवीय आधार पर सीमित प्रजातियाँ ही हैं। अगर यह मान लिया जाए कि जनसंख्या का स्थानान्तरण नहीं होगा तो किसी निश्चित भौगोलिक प्रदेश में एक ही प्रकार की जैवीय प्रजाति और सामाजिक विशेषताएँ मिलेंगी। लेकिन व्यावहारिक रूप में गतिशीलता जनसंख्या का प्राथमिक गुण है जिससे जातीय संरचना में अधिक बदलाव नहीं होता है सामाजिक विशिष्टताओं के समावेश के बावजूद भी जातीय संरचना के मौलिक लक्षण विद्यमान रहते हैं।

विश्व में अनेक जातियां और प्रजातियां पायी जाती है अंग्रेज, यहूदी, हंगेरियन, पोलिश, फ्रांसीसी, भारतीय संदर्भ में मुसलमान, एंग्लो-इण्डियन आदि जाति समूह हैं। जिनकी अलग-अलग संस्कृति पायी जाती है सही मायने में इस जातिवर्ग के अन्तर्गत एक समान संस्कृति और सामूहिक पहचान होती है, जो दूसरे वर्ग से उन्हें अलग करती है। इस तरह जाति वर्ग एक ही जाति का अथवा अनेक जातियों के समिश्रण से विकसित होता है। कालान्तर में क्रमशः विकास करके जातीय अवयव लुप्त हो जाते हैं। प्रजाति एवं जातीय संख्या का जनसंख्या भूगोल में अध्ययन इसलिए जरूरी है कि किसी भी जनसंख्या में विभिन्न प्रजातिवर्ग और जातिवर्ग की पृथक पहचान और परम्परागत विचारधारा रहती है जो कालक्रमानुसार विभिन्न प्रकार के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर के विकास में योगदान देती है।

जातीय वर्ग भी अनेक पीढ़ियों में देश की बहुसंख्यक जनसंख्या में मिल जाते हैं। पृथक-पृथक देशों की जनगणना में प्रजाति और जातीय वर्गों के तहत जनगणना विभिन्न प्रकार से की जाती है क्योंकि इनके अर्थ में देश-देश में विभिन्नता पाई जाती है। अधिकांश राष्ट्रों में जाति-वर्ग और प्रजातियों के अध्ययन हेतु भाषा, धर्म, जन्मस्थल संबंधी आंकड़ों को एकत्रित करते हैं। अतएव प्रजाति और जातीय निर्माण का अध्ययन किसी देश के परिप्रेक्ष्य में भली प्रकार किया जा सकता है। चूँकि देश की राजनीतिक सीमा के तहत एक जैवीय प्रजाति या कई प्रजातियों का विश्लेषण सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य में करना सरल है।

आर्थिक संरचना (Economic Structure)

किसी क्षेत्र अथवा देश की जनसंख्या की आर्थिक संरचना से तात्पर्य उस क्षेत्र अथवा देश में विभिन आर्थिक कार्यों में संलग्न जनसंख्या से होता है। जनसंख्या के आर्थिक पहलू के अन्तर्गत उसके व्यावसायिक वितरण - कृषि, व्यापार, रोजगार, उद्योग-धंधे, यातायात, राष्ट्रीय आय आदि को सम्मिलित किया जाता है। जनसंख्या के ये दोनों पक्ष प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से आर्थिक संरचना को प्रभावित करते हैं। इस संदर्भ में प्रो. रिचर्ड गिल का कथन है कि, “आर्थिक विकास एक यांत्रिक प्रक्रिया के साथ-साथ मानवीय उपक्रम भी है, जिसका प्रतिफल अन्ततः इसे क्रियान्वित करने वाले लोगों की कुशलता, गुण एवं प्रवृत्तियों पर निर्भर है।"

आर्थिक आँकड़ों के स्रोत- जनसंख्या के आर्थिक आंकड़ों का मुख्य स्रोत जनगणना (Census) है, जो विभिन्न देशों द्वारा निश्चित अन्तराल पर कराया जाता है। विश्व के विकसित देशों द्वारा इस प्रकार की सूचनाएँ संकलित करने के लिए, प्रतिदर्श सर्वेक्षण आदि भी किये जाते हैं, जिनसे जनसंख्या के आर्थिक पक्ष की विशिष्ट सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं। जनगणना द्वारा प्राप्त आँकड़ों के प्रयोग में भूगोलविदों को अग्रलिखित कठिनाइयों का अनुभव होता है।

1. अधिकांश देशों की जनगणना द्वारा आर्थिक पक्ष की सूचनाएँ एकत्रित नहीं की जाती हैं।

2. जो देश आर्थिक संरचना के आँकड़े एकत्रित करते भी हैं, उनमें श्रमशक्ति से संबंधित सूचनाओं का अभाव मिलता है।

3. आर्थिक संरचना के विविध तत्वों की परिभाषाओं एवं संकल्पनाओं में समरूपता नहीं मिलती।

इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किया गया प्रयास सराहनीय है, जिसके अन्तर्गत आँकड़ों को इस प्रकार संकलित एवं संपादित करके प्रकाशित किया जाता है, जिससे उनका समुचित तुलनात्मक अध्ययन संभव हो सके। जनांकिकी की भाँति जनसंख्या भूगोल में भी जनसंख्या के आर्थिक संरचना की व्याख्या निम्नांकित शीर्षकों में की जाती है-

(a) सक्रिय एवं निष्क्रिय जनसंख्या-

देश की कुल जनसंख्या एवं उसकी जनशक्ति में आधारभूत अन्तर है। जनशक्ति में आधारभूत के अन्तर्गत वह जनसंख्या आती है जो आर्थिक क्रियाओं में संलग्न होती है। किसी देश की जनशक्ति दो वर्गों में विभक्त की जा सकती है-

(i) आर्थिक दृष्टि से सक्रिय जनसंख्या; (ii) आर्थिक दृष्टि से निष्क्रिय जनसंख्या।

आर्थिक दृष्टि से सक्रिय जनसंख्या में वह जनसंख्या सम्मिलित की जाती है, जो आर्थिक उत्पादन एवं सेवाओं में कार्यरत है अथवा अवसर की तलाश में है। इस सक्रिय जनसंख्या को दो भागों में बाँटा जा सकता है- (1) रोजगार प्राप्त जनसंख्या, (2) बेरोजगार जनसंख्या। आर्थिक दृष्टि से निष्क्रिय जनसंख्या के अन्तर्गत वे लोग सम्मिलित हैं, जो गृहकार्य, स्वजनों के कार्य तथा पेंशन प्राप्त करने में लगे हैं।

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