भारतीय जनगणना व उसका महत्व (INDIAN CENSUS & ITS IMPORTANCE)

भारतीय जनगणना व उसका महत्व (INDIAN CENSUS & ITS IMPORTANCE)

 भारतीय जनगणना व उसका महत्व (INDIAN CENSUS & ITS IMPORTANCE)

किसी भी क्षेत्र, देश, राज्य का आवश्यक घटक वहाँ रहने वाली जनसंख्या होती है, इसीलिए देश के आर्थिक विकास में जनसंख्या सम्बन्धी समंकों का विशेष महत्व है। जनसंख्या सम्बन्धी समंक ही किसी देश की जनशक्ति तथा उसके विकास के मार्ग पर प्रारम्भिक प्रकाश डालते हैं। किसी भी देश में जनसंख्या सम्बन्धी समंकों का संकलन जनगणना के माध्यम से किया जाता है। जनगणना एक देश की जननिधि तथा उसको विशिष्टताओं का विवरण है। जनगणना की परिभाषा स्पष्ट करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने कहा है कि- "किसी निश्चित प्रदेश में एक निश्चित समय में रहने वाले सभी व्यक्तियों के सम्बन्ध में जनांकिकीय, आर्थिक एवं सामाजिक तथ्यों का संकलन, सम्पादन एवं प्रकाशन करने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को जनगणना कहते है।" जनगणना व्यक्तियों की गणना मात्र नहीं बल्कि इसके अन्तर्गत केवल स्त्री-पुरूषों की संख्या को ही नहीं गिना जाता बल्कि उनको आर्थिक व सामाजिक स्थिति का भी स्पष्ट चित्रण करने का प्रयास किया जाता है। जनगणना के प्रमुख उद्देश्य होते हैं- एक स्थिर तथा दूसरा प्रावैगिक स्थिर अर्थ में, जनगणना एक निश्चित समय पर लिया गया एक समुदाय का चित्रण है, जबकि प्रावैगिक का अर्थ है जनगणना समुदाय का गतिमान चित्रण करती है।

जनगणना की विशेषताएँ (Characterstics of Census):- जनगणना की परिभाषाओं के आधार पर निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं:संगठन

(1) सरकार द्वारा किया जाना (Government Sponsored):- जनगणना में व्यापक व्यय, आदि की आवश्यकता पड़ती है अतः इसे सरकार के माध्यम से ही कराया जाता है।

(2) पूर्व-प्रसीमित प्रवेश (Pre-defined Territory):-- यह किसी पूर्वनिश्चित भू-प्रदेश में की जाती है जो सुपरिभाषित भौगोलिक अथवा राजनैतिक क्षेत्र होता है। जनगणना प्रदेश में किसी प्रकार के अन्तर का उल्लेख जनगणना में किया जाना चाहिये।

(3) सम्पादन एवं प्रकाशन (Compilation and Publication):- जनगणना सम्बन्धी सभी परिणामों को प्रकाशित किया जाता है जिससे इसका उपयोग देश के विकास के लिए किया जा सके।

(4) सर्वव्यापकता जनगणना (Universality):- जनगणना में देश के प्रत्येक नागरिक के बारे में जानकारी एकत्रित की जानी चाहिए।

(5) एक साथ आंकलन (Simultaneous Count):- जनसंख्या से सम्बन्धित सभी सूचनाओं को एक निश्चित समय बिन्दु के सन्दर्भ में एकत्रित किया जाना चाहिए अन्यथा समंकों का मापन में उपयोग नहीं किया जा सकता है।

(6) व्यक्तिगत जानकारी का एकत्रीकरण (Collection of Personal and Individual datay. इसमें प्रत्येक 'व्यक्ति' से उसके परिवार के सदस्यों के बारे में जनांकिकीय, आर्थिक एवं सामाजिक जानकारी ली जाती है।

(7) नियमितता (Regularity) :- प्रायः जनगणनायें एक निश्चित समय अन्तराल (10 वर्ष के बाद) में की जाती है। इसका कारण है कि इसमें भारी व्यय होता है एवं आंकलन सम्बन्धी कठिनाइयों आदि आती है।

जनगणना की पद्धतियाँ (Methods of Conducting Census ):

प्रारम्भ में जब जनगणना की संकल्पना रखी गयी थी तब यह अत्यंत दुष्कर कार्य लग रहा था परन्तु फिर 1872 में सेंट पीटर्सबर्ग में जनगणना की निम्न दो पद्धतियों का वर्णन दिया गया।

(1) तथ्य सिद्ध जनगणना प्रणाली (Defacto Method):- तथ्य-सिद्ध प्रणाली के अन्तर्गत जनगणना के लिए विशेष तिथि या रात्रि को जो व्यक्ति जहाँ उस समय होते हैं वहीं उनकी गणना की जाती है, चाहे वे स्थायी तौर पर किसी भी स्थान के रहने वाले हों। अतः इस पद्धति में जो व्यक्ति जनगणना वाले दिन या रात्रि को जहाँ भी पाया जाता है गिन लिया जाता है, इसलिये इस प्रणाली को तिथि प्रणाली भी कहते हैं।

(2) विधि सिद्ध प्रणाली (Dejure Method):- इस प्रणाली में व्यक्ति की गणना सामान्यतया उसके सदा रहने वाले स्थान पर ही की जाती है। अस्थायी रूप से स्थान परिवर्तन का गणना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। गणना एक रात्रि के साथ पर एक ही समय अवधि पर की जाती है, इसलिए इसे समयावधि प्रणाली भी कहते हैं। इस प्रणाली में आगणकों की कम आवश्यकता के साथ-साथ अशुद्धि की कम सम्भावना रहती है। इसमें अशुद्धि की भी जाँच कर ली जाती है। इसके अलावा गणना तथा अन्तिम जाँच के बीच के समय में नवजात शिशुओं की गणना कर ली जाती है तथा मृतकों का नाम भी हटा दिया जाता है।

प्रत्येक देश में जनगणना उस देश के जनगणना कैलेण्डर के माध्यम से की जाती है जिसमें जनगणना से पूर्व के कार्य, गणना कार्य तथा जनगणना के बाद के कार्यों का विवरण रहता है। जनगणना से पूर्व के कार्यों में नक्शे बनाना, गणना क्षेत्रों को सीमाबद्ध करना, प्रश्नावलियाँ तथा तालिकाओं का निर्माण करना प्रमुख है। प्रश्नावलियों को इस प्रकार तैयार किया जाता है जिससे कि व्यक्ति, परिवार तथा अन्य परिवार से सम्बन्धों के प्रति जानकारी मिल सके। इसके अलावा प्रश्नावलियों में उत्तर 'हाँ' या 'ना' में ही अधिकतर होने चाहिये।

प्रश्न-पत्र परीक्षण के बाद कभी-कभी प्रायोगिक गणना या फिर परीक्षण गणना भी की जानी चाहिए। गणना के बाद के कार्यों में सम्पादन, पैचिंग, छटाई, संकलन, सारणीयन के अलावा उत्तरार्द्ध जनगणना परीक्षण परिणामों का मूल्यांकन एवं प्रकाशन आता है। इस प्रकार किसी भी देश में जनगणना शुरू करने के पहले देश की जरूरतों के अनुसार प्रारूप एवं माडल के बिना जनगणना कानून बनाना आवश्यक हो जाता है। इसके बाद ही वित्तीय व्यवस्था एवं संगठनात्मक एवं प्रशासनिक कार्य किये जाते हैं।

भारत में जनगणना (Population Census in India)

बारत में प्रथम पद्धतिपूर्ण जनगणना सन् 1872 ई० में की गई। किन्तु न तो इस जनगणना में पूरे देश को ही शामिल किया गया और न ही इसमें एकरूपता देखी गई। यह प्रयास बहुत ही अव्यवस्थित था। इसके 9 वर्ष बाद 17 फरवरी, 1881 में पुनः जनगणना की गई जिसे भारत की प्रथम जनगणना मानते है और तब से प्रत्येक 10 वर्ष बाद अपने देश में जनगणना होती आ रही है। भारत की 14 वीं जनगणना 2011 में की गई जिसके परिणाम अभी हाल ही में प्रकाशित हो चुके है।

भारत में जनगणना को हम निम्न दो भागों में बांटते हैं।

स्वतंत्रता से पूर्व की जनगणनाओं का अध्ययन (Census Before Independence):-

(a) 1993 तक की जनगणनायें:-

सन् 1872 से 1931 तक की सभी गणना तथ्य सिद्ध प्रणाली के द्वारा की गई। अब तक सभी जनगणनाओं की कार्य-पद्धति संगठन विशेषताओं आदि का विवरण इस प्रकार है-

(1) अस्थायी जनगणना अधिनियम:- भारतीय जनगणना अधिनियम, 1948 (Indian Census Act,1948) के पारित होने के पहले देश में जनगणना कराने के लिए जनगणना तिथि के 2-3 वर्ष पूर्व एक अस्थायी जनगणना अधिनियम पारित किया जाता है, जो केन्द्रीय सरकार को जनगणना आयुक्त, जनगणना संगठन तथा प्रान्तों में जनगणना अधीक्षक नियुक्त करने का अधिकार दिया गया था। इसके अनुसार ही व्यक्तियों को जानकारी देने के लिए बाध्य होना पड़ता था। वैसे व्यक्तियों के द्वारा झूठी सूचना देने या सूचना न देने पर आर्थिक दण्ड या कारावास का भी प्रावधान था।

(ii) गृह सूची का निर्माण:- जनगणना में प्रयुक्त घर का अर्थ है एक चूल्हे पर खाना बनाने वालों से है। किसी एक मकान के अन्दर कई चूल्हे जलाकर लोग अलग-अलग खाना बनाते हैं। इनमें से प्रत्येक जनगणना के लिए अलग-अलग घर होगा।

(iii) जनगणना संगठन:- जनगणना के इस गणना कार्य के सम्पादक के लिए जनगणना आयुक्त, जनगणना अधीक्षक, जिला गणना अधिकारी, तहसील स्तर पर कार्यभारत अधीक्षक वृत्त निरीक्षक तथा खण्ड आगणक इस काम के लिए नियुक्त किये जाते थे।

(iv) प्रशिक्षण:- जनगणना कार्य के शुरू होने के पूर्व इसके अधिकारियों को इस काम से सम्बन्धी सभी प्रशिक्षण दिया जाता था और इसी समय जनगणना पुस्तिकाओं का भी निर्माण किया जाता था।

(v) गणना कार्य :- गणना रात्रि तय तिथि के पूर्व आगणक घर-घर में जाकर एक तालिका भरता है जिसको परीक्षण तालिका कहते हैं। आगणक जनगणना तिथि पर प्रत्येक घर में जाकर उपस्थित व्यक्तियों की सूची में लिख लेते ही वनों, सेना के कर्मचारियों तथा नभ, थल एवं जल के यात्रियों की गणना के लिए योग्य प्रबन्ध किया जाता है। रेलगाड़ियों में यात्रा करने वालों की प्लेटफार्म पर गणना कर ली जाती थी। 1931 तथा उसके पहले की जनगणना समंकों को कम विश्वसीनय माना गया है। यद्यपि कि 1921 की गणना को जन-असहयोग से बचा लिया गया था परन्तु 1931 की जनगणना पर नमक आन्दोलन के असहयोग आन्दोलन का प्रभाव पड़ा। 1931 की गणना रिपोर्ट में 46 भाग हैं तथा इसमें 1000 व्यक्तियों के लिए 15.50 करोड़ रूपयों का खर्च हुआ था।

(b) 1941 की जनगणना:-

1941 की जनगणना युद्ध काल में की गई थी जिसका प्रभाव इस पर भी पड़ा। इसलिए इसकी सूची एवं प्रणाली में बदलाव करके इस बाद विधि सिद्ध आधार को अपनाया गया। कुछ सूचनायें तो गृह सूची तैयार करते समय ही एकत्रित कर ली गई थीं। इस जनगणना में पूर्व में की गई जनगणना से निम्न बातें अलग की गई।

(i) इसमें 'तिथि प्रणाली' या एक 'रात्रि प्रणाली' के स्थान पर समयावधि विधि का प्रयोग किया गया जो 6 दिन का था।

(ii) आयु, लिंग, परिवार का आकार आदि की सूचनायें गृह सूची तैयार करते समय ही एकत्रित कर ली गई थी।

(iii) भाषा तथा लिपि के प्रश्न का कुछ कठिनाइयों के कारण परित्याग कर दिया गया था।

(iv) तथ्य सिद्ध के स्थान पर विधि सिद्ध का उपयोग किया गया और गणना व्यक्ति के स्थायी निवास के आधार पर की गई।

(v) अनुसूचियों, प्रश्नावलियों आदि की छपाई का कार्य केन्द्रीकृत किया गया था।

(vi) व्यवसाय के अनुसार वर्गीकरण की सूचना सरकार ने इसलिए एकत्रित नहीं कराई कि लोगों को सेना के बारे में जानकारी हो जायेगी।

इस जनगणना में प्रमुख रूप से सुधार किए गए वे निम्न प्रकार थे-

a) इस गणना में सूचियों के स्थान पर गणना पर्चियों का प्रयोग किया गया जिससे समय तथा कर्मचारियों में कमी आई।

b) इस जनगणना में पहली बार जनसंख्या वृद्धि जानने के लिए बच्चों की संख्या तथा बच्चे के समय माँ की आयु और साक्षरता को पूछा गया। इस बार जनगणना का केवल एक भाग 1946 में प्रकाशित किया गया। अब तक की सभी जनगणनायें अस्थायी रूप से की जाती थीं जिनका लाभ अगली योजनाओं में नहीं उठाया जा सकता है।

(c) इस गणना में प्रश्नों के उत्तरों को पूरा-पूरा न लिखकर पूर्व निर्धारित संकेतों का उपयोग किया गया। जैसे एक व्यक्ति यदि गाँव का निवासी है तो 'गाँ' लिखा गया।

d) इस जनगणना में पहली बार सारणीयन में मशीनों का उपयोग किया गया।

स्वतंत्रता के बाद की जनगणना (Census After Independence):- 15 अगस्त 1947 को भारत देश को स्वतंत्रता मिली। स्वतंत्रता के बाद पहली बार 1951 में स्वतंत्र भारत की जनगणना की गई।

(A) 1951 में हुई जनगणना:-

स्वतंत्रता भारत की पहली जनगणना 9 फरवरी से 1 मार्च तक 21 दिन तक चली। यह 17 खण्डों एवं 63 प्रखण्डों में प्रकाशित हुई। 307 जिला स्तरीय हस्त पुस्तिकाओं में आवश्यक आर्थिक व जनसंख्या सम्बन्धी जानकारी भी प्रकाशित की गई। इस जनगणना में जाति, धर्म, वर्ग इत्यादि पर ध्यान न देकर आर्थिक एवं सामाजिक सूचनायें एकत्रित करने पर जोर दिया गया था। जिससे पंचवर्षीय योजना के लागू होने में सहायता मिल सके। यह जनगणना पिछली जनगणनाओं से निम्न प्रकार भित्रता रखती है।

(i) स्थायी जनगणना अधिनियम:- भारत सरकार ने 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ के जनगणना सम्बन्धी अन्तर्राष्ट्रीय सुझावों को लागू करने के लिए "भारतीय जनगणना अधिनियम, 1948" पारित किया।

(ii) स्थायी जनगणना संगठन:- देश में इस अधिनियम के तहत् पहली बार जनगणना आयुक्त एवं महापंजीयक कार्यालय की निर्मिती की गई जो कि 10 वर्षीय जनगणना कार्य के अलावा बीच की अवधि में जन्म-मृत्यु के समंकों को एकत्रित करके जनसंख्या को संभावित करता है।

(iii) धर्म, जाति, वर्ण का परित्याग:- इस जनगणना में जाति, धर्म, वर्ण आदि विषय की सूचनाओं का एकीकरण व्यर्थ समझा गया, क्योंकि इसी समय भारत धर्म निरपेक्ष देश घोषित हो चुका था।

(iv) सत्यता की जाँच:- इसमें 2% पर्चियों को दैव निदर्शन रीति से चुनकर जनगणना की सत्यता की जाँच की गई, जिससे पता चला कि 1.1 प्रतिशत गणना घटी है।

(v) समयावधि में वृद्धिः- इसमें 21 दिन में जनगणना की गई। इस जनगणना में पिछली जनगणनाओं की तुलना में नये बदलाव किये गये।

(a) राष्ट्रीय नागरिक पंजीयिका:- इस जनगणना में पहली बार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार किया गया। व्यक्तिगत गणना पर्ची की मदद से प्रत्येक गाँव, कस्बा, शहर के लिए एक रजिस्टर बनाया गया जिसको महापंजीकार जन्म एवं मृत्यु की प्रवृष्टि करके पूरा रखते हैं। इस रजिस्टर से निर्वाचन सूचियाँ तैयार करने में सहायता मिलती है।

(b) आर्थिक समंक:- इस जनगणना में हर एक व्यक्ति की आर्थिक स्थिति की सूचना इस प्रकार एकत्रित की गई1. स्वावलम्बी, 2. कमाने वाले आश्रित, 3. न कमाने वाले आश्रित।

(c) सामाजिक दसा का ज्ञान:- इस जनगणना में सामाजिक दसा वाले प्रश्न विवाहित, अविवाहित, तलाक, विधुर-विधवा इत्यादि से सम्बन्धित पूछे गये।

(d) घर तथा परिवार में अन्तर:- 1951 की जनगणना में पहली बार 'घर' तथा 'परिवार' के अन्तर को स्पष्ट किया गया। 'घर' से तात्पर्य निवास स्थान से लगाया गया और परिवार उस व्यक्ति-समूह को माना गया जो एक साथ निवास करते हैं तथा एक ही चूल्हे पर तैयार खाना खाते हों।

इसी प्रकार इस जनगणना में 4x4 की प्रश्नावलियों में 14 प्रश्न पूछे गये जिनमें बेरोजगारी, स्थानांतरण, बहरा, गूंगा, पागल, तपेदिक, मधुमेह जैसे विविध आँकड़ों की जानकारी प्राप्त की गई। इस जनगणना में लगभग 149 लाख रूपयों का व्यय हुआ। इसमें लगभग 7 लाख लोगों को रोजगार मिला।

(B) 1961 की जनगणना:-

स्वतंत्र भारत की दो पंचवर्षीय योजनाओं के अनुभवों के आधार पर लागू होने वाली योजनाओं में समंकों का ध्यान रखते हुए 1961 में दूसरी जनगणना का आयोजन किया गया था। जनगणना की अवधि 7 फरवरी, 1961 से 28 फरवरी, 1961 तक के 11 दिन रखे गए जो कि 1 मार्च, 1961 से सम्बन्धित थी। 1 मार्च से 5 दिनों में तथ्यों की सत्यता की फिर से जाँच प्रत्येक घर में जाकर की गई। इस जनगणना में उपयुक्त संगठित एवं कार्य-विधि इस प्रकार थी-

(1) जनगणना संगठन:- इस जनगणना का संगठन 1951 के जनगणना संगठन से किसी प्रकार अलग न था। 1961 में प्रयुक्त जनगणना संगठन इस प्रकार था।

(2) गृह सूची (Home List):- इस प्रकार की सूची पहली कर देश में तैयार की गई थी, जो से कुछ महिने पहले तैयार की गई जिसमें मुख्य जानकारी इस प्रकार एकत्रित की गई थी-

(i) मकान का क्रमांक

(ii) मकान या क्रमांक

(iii) गणना गृह का प्रयोग किस उद्देश्य को पूरा करने के लिए किया जाता है।

(3) परिवार सूची (Household Schedule):- इसका उपयोग पहली बार 1961 में किया गया इसके माध्यम से पारिवारिक आर्थिक गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल की जाती है। खेती,भू-स्वामित्व, पारिवारिक उद्योग, कर्मचारियों की संख्या इत्यादि के बारे में जानकारी एकत्रित की गई।

(4) जनगणना अभिलेख (Census Population Record): 'परिवार अनुसूची' के दूसरे पेज पर 'जनगणना अभिलेख' की सूची थी जिसमें व्यक्तिगत प्रगणन पर्ची के आधार पर प्रगणित व्यक्ति के बारे में सूचना लिखी गई है। इस लेखा को 1971 की जनगणना तक रखा गया है और इसी के आधार पर निदर्शन जाँच की जाती है।

1961 की जनगणना की प्रमुख विशेषतायें:- इस जनगणना की अन्य विशेषतायें निम्नलिखित थी-

(1) इस जनगणना में समस्त क्षेत्रफल, सीमाओं तथा प्रगणन-खण्ड का मानचित्र तैयार किया गया

(2) 1961 की गणना में जनसंख्या मान चित्रावली बनाने के व्यवस्था की गई।

(3) गाँवों तथा छोटे नगरों में घर-हीन लोगों की जनगणना 28 फरवरी, 1961 की रात्रि में हुई थी।

(4) प्रपत्रों को संविधान की सम्पूर्ण प्रादेशिक भाषाओं में छापा गया।

(5) गृह-सूची को और विस्तृत बनाकर मकान में प्रयुक्त सामग्रियों के बारे में भी सूचना एकत्रित की गई।

इस प्रकार हम देखते हैं कि 1961 की जनगणना में काफी सूचनायें एकत्रित की गयीं। यह जनगणना 1961 तक की जनगणनाओं से श्रेष्ठ थी।

(C) 1971 की जनगणना:-

इस जनगणना के साथ ही सरकारी जनगणना का एक शतक पूरा हो गया। यह जनगणना संगठन, व्यापकता एवं विधि में 1961 की जनगणना से मेल खाती है। यह जनगणना लोक सभा चुनाव के कारण अपनी पूर्व तिथि ] मार्च से हटकर 1 अप्रैल, 1971 के सन्दर्भ में की गई। इस जनगणना की प्रमुख विशेषतायें इस प्रकार जानी जा सकती है:-

(1) गणक यन्त्रों का प्रयोग करके समंकों का सारणीयन एवं विश्लेषण शीघ्रता से हो गया जिससे परिणाम जनगणना के एक सप्ताह के अन्दर प्रकाशित कर दिए गये।

(2) नागरिकों की व्यक्तिगत सूचनाओं को गोपनीय रखा गया।

(3) इस जनगणना में पहली बार प्रजनन सम्बन्धी सूचनायें संकलित की गई।

(4) प्रवासन सम्बन्धी विस्तृत सूचना इस जनगणना में पहली बार एकत्रित की गई।

(5) आर्थिक कार्य सम्बन्धी रोजगार, रोजगार की प्रकृति इत्यादि के बारे में विस्तृत जानकारी संकलित की गई।

(6) तकनीकी व्यक्तियों एवं उपाधि धारकों के सम्बन्ध में विशिष्ट जानकारी प्राप्त करने के प्रयास किए गए।

(7) इस जनगणना में प्रयुक्त अनुसूचियों की रचना पर्याप्त नियोजन एवं परामर्श के बाद की गई। इनके बनाने में योजना आयोग, केंद्रीय एवं राज्य सरकारों के मन्त्रालयों, समाज कल्याण संगठन, व्यापार एवं वाणिज्य संगठन, विश्वविद्यालय एवं शोध संस्थान एवं व्यक्तिगत शोधकर्ताओं, जो जनगणना से मिले समकों का उपयोग करते हैं का परामर्श लिया गया था। यही नहीं संयुक्त राष्ट्रसंघ तथा इकाफ (ECAFE) के सुझावों को भी ध्यान में रखा गया। इस जनगणना में निम्न प्रकार से सूचियाँ बनायी गयीं:-

(1) गृह सूची (House List):- 1961 की जनगणना के समय जिस प्रकार की गृह-सूची तैयार की गई थी, लगभग उसी प्रकार इस बार भी तैयार की गई।

(2) प्रतिष्ठित सूची (Establishment Schedule):- प्रतिष्ठित सूची 1971 की जनगणना में पहली बार प्रयुक्त हुई। इसमें संस्थानों के विषय में जानकारी सम्मिलित की गई।

(3) परिवार सूची (Household Schedule):- इस सूची में चार प्रकार के तथ्य संकलित किये गये-

(a) जनसंख्या अभिलेख,

(b) उर्वरता अनुसूची,

(c) आवास स्थिति तथा,

(d) परिवार नियोजन सम्बन्धी तथ्य एकत्रित किए गए।

(4) व्यक्तिगत पर्ची (Individual Slip):- इसमें व्यक्तियों के बारे में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, प्रवास तथा आर्थिक सूचनायें एकत्रित की गई।

(D) 1981 की जनगणना (Census of India, 1981):-

यह जनगणना 9 फरवरी, 1981 से 28 फरवरी, 1981 की अवधि में पूरी की गई थी। घर-विहीन परिवारों की गणना 28 फरवरी से मार्च, 1981 की रात्रि में की गई थी तथा इसे 1 मार्च 1981 के सूर्योदय समय का माना गया तथा 1 मार्च, 1981 से 5 मार्च, 1981 के इनकी जाँच का कार्य पूरा किया गया।

1981 की जनगणना में मकानों की सूची, प्रगणना ब्लाक का नजरी नक्शा तथा प्रारूप अद्यतन किया गया। इसी प्रकार जाँच कर अभिलेखों को अद्यतन किया गया। परिवार अनुसूची भाग में परिवार का विवरण तथा भाग में 2 जनसंख्या रिकार्ड भरा गया। इसके अतिरिक्त प्रत्येक सदस्य के लिए व्यक्तिगत पर्ची भी भरी गई। डिग्रीधारी एवं तकनीकी व्यक्तियों की अनुसूची सैम्पल क्षेत्रों में उपयुक्त व्यक्तियों से भरवाई गई।

1981 की जनगणना में जहाँ व्यापक सुधार किए गए वहीं व्यावसायिक संरचना के अन्तर्गत 1971 के 10 श्रमिक वर्गों को कम करके केवल चार वर्गों में ही वर्गीकृत किया गया। सम्पूर्ण श्रमशक्ति को मुख्य श्रमिक तथा सीमान्त श्रमिक के दो प्रमुख भागों में बांटा गया था। सीमान्त श्रमिक उन्हें माना गया जिन्होंने जनगणना तारीख के पहले एक वर्ष के अन्दर छः माह (अर्थात् 183 दिन) से कम समय के लिए उत्पादक कार्यों में संलग्न रहे अथवा नियोजित रहे। इस जनगणना में असम में विदेशी नागरिकों के असहयोग आन्दोलन तीव्र होने के कारण यहाँ जनगणना नहीं की जा सकी। इस कालावधि में मृत्यु दर के तीव्रता से गिरने तथा जन्म-दर ह्यस गति अत्यधिक धीमी होने के कारण जनसंख्या में वृद्धि 2.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष से ज्यादा रही तथा 1981 में भारत की जनसंख्या 68.5 करोड़ हो गई। आज भारत संक्रमण के द्वितीय चरण में है जहाँ जन्म-दर उच्च तथा मृत्यु दर न्यून है।

1981 की जनगणना की प्रमुख विशेषता

1) जनगणना-मकान:- यह भवन का ही एक भाग है जिसका प्रवेश द्वार अलग होता है, एक इकाई के रूप में माना जाता है।

2) भवन:- प्रायः एक पूरी इमारत को ही भवन कहते है किन्तु यदि एक इमारत के कई खण्ड अनेक उपयोग में प्रयुक्त होते हैं तो उन्हें एक भवन नहीं माना जायेगा। अर्थात् एक ही छत के नीचे अनेक संस्थायें हैं तो उन्हें अलग-अलग माना जायेगा। यदि एक अहाते में एक ही व्यक्ति के प्रयोग की संस्थायें हैं तो एक ही भवन का अंग होती है।

(3) परिवार:- परिवार एक, दो या अनेक व्यक्तियों का समूह होता है जो एक साथ रहता व भोजन करता है।

इस जनगणना की एक प्रमुख विशेषता यह भी वो कि जनगणना के अतिरिक्त इस वर्ष प्रतिवर्ष क्षेत्रीय अध्ययन भी किया गया जिसके निम्न जानकारी एकत्र की गई।

(i) जन्म स्थान

(ii) पूर्व निवास स्थान ।

(iii) पूर्व निवास स्थान छोड़ने के कारण।

(iv) गाँव या शहर में निवास के अवधि

(v) प्रजननता के बारे में प्रश्न केवल विवाहितों (महिलाओं) से।

(E) सन् 1991 की जनगणना सन्:-

1991 की जनगणना स्वतंत्र भारत की 5वीं और देश की 12वीं जनगणना थी जिसे दो चरणों में संपादित किया गया।

(1) प्रथम चरण:-

(a) यह चरण 15 जून, 1990 से 15 जुलाई, 1990 तक चला।

(b) इस चरण में मकानों को नम्बर प्रदान करने तथा मकान सूची बनाने का कार्य किया गया।

(c) मकान सूचियों के आधार पर जनगणना हेतु प्रगणक खण्ड बनाये गये, जिनमें से फरवरी- मार्च 1991 के दौरान गणना के लिये एक खण्ड एक प्रगणक को निधारित किया गया।

गणना के दौरान उन सभी की जानकारी प्राप्त की गई, जहाँ व्यक्ति रहते थे व

(d) मकानों की गणना के दौरान उन सभी की जानकारी प्राप्त की गई, जहां व्यक्ति रहते थे या रहने की संभावना थी।

(ii) द्वितीय चरण:-

(a) इस जनगणना कर द्वितीय चरण 9 फरवरी, 1991 से शुरू होकर 5 मार्च, 1991 तक चला।

(b) इस चरण में गणना अवधि 9 फरवरी, 1991 से 28 फरवरी, 1991 तक निश्चित की गई और संदर्भ काल मार्च का सूर्योदय निर्धारित किया गया। अर्थात् एक दिन देश की जो जनसंख्या होगी, उसका सम्पूर्ण विवरण इस जनगणना के आँकड़ों में समावेशित होगा।

(c) एक मार्च 1991 के सूर्योदय तक जो भी बच्चे ने जन्म लिया, उसकी भी पर्ची भरकर गणना की गई और उस दिन सूर्योदय तक जिनकी मृत्यु हो गई, उसके नाम की पर्ची रद्द कर दी गयी।

(d) प्रत्येक प्रगणक ने मार्च 1991 से 5 मार्च 1991 के मध्य जाँच का कार्य किया।

(e) सन् 1981 की जनगणना की तरह इस जनगणना में भी निम्नांकित पत्रक एवं अनुसूचियाँ उपयोग में लाई गई हैं।

(1) नजरी नक्शा / खाका, (ii) मकान-सूची (iii) मकान-सूची-सार, (iv) उस्त्रम-सूची, (v) उद्यम सूची-सार, (vi) व्यक्तिगत पर्ची, (vii) परिवार अनुसूची, (viii) स्नातक एंव स्नातकोत्तर डिग्री धारकों और तकनीकी कर्मियों के लिये सूची।

(F) सन् 2001 की जनगणना:-

यह जनगणना देश की 14वीं स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की 6वीं तथा 21वीं शताब्दी की पहली जनगणना थी। जनगणना के प्रथम चरण का कार्य 9 फरवरी से 28 फरवरी 2011 तक चला। हम अवधि में 20 लाख से भी अधिक प्रशिक्षित प्रगणकों ने देश भर में 593 जिलों, 5564 तहसीलों, 5161 कस्बों तथा लगभग 6.40 लाख गाँवों से जानकारी एकत्र की। 1 मार्च से 5 मार्च 2011 तक जनगणना के द्वितीय चरण में सुधार सम्बन्धी कार्य किए गए।

2001 जनगणना की विशेषताएँ:-

(1) जनगणना की निर्देश पुस्तिका 18 भाषाओं में मुद्रित थी तथा 23 प्रश्नों की सूची दी गई।

(2) साधारण व विशेष वर्ग में सूचनाएँ इकट्ठा की गई। साधारण वर्ग में आने वाली सूचनाएँ- उम्र, साक्षरता का स्तर, परिवार का आकार, सम्पत्ति की मिल्कियत, नगरीकरण, जन्म-दर, मृत्यु दर, अनुसूचित जाति व जनजाति, भाषा, धर्म, स्थानान्तरण, रोजगार आदि है। विशेष वर्ग की सूचनाएँ अर्थव्यवस्था की नई आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर एकत्रित की गई हैं। इनमें कार्यालय से आवास की दूरी, आवागमन के लिए वाहन का उपयोग आदि मुख्य है।

(3) सन् 2001 में पहली बार महिलाओं के कार्यों की विस्तृत विवेचना की गई।

(4) इस जनगणना में विकलांगों की गणना का प्रावधान किया गया है, जिसमें देखने, बोलने, सुने, चलने तथा मानसिक रूप से असमर्थ लोगों की जनगणना की गई।

(5) कृषि तथा उद्योगों के विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सूचनाएँ एकत्रित की गई।

(6) इस जनगणना में वेश्याओं को भिखारियों की श्रेणी में रखा गया है जिस पर समाजशास्त्रियों ने खिन्नता व्यक्त की।

(7) किन्नरों को पुरूषों की श्रेणी में रखा गया।

(8) भारत का जनगणना अभियान विश्व में महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यहाँ हर एक घर में जाकर प्रगणक हर एक व्यक्ति की गणना करते हैं, जबकि अन्य देशों में केवल नमूनों के आधार पर जनगणना की जाती है।

जनगणना 2001 में विभिन्न जातियों की आर्थिक सामाजिक स्थिति के आकलन के लिये कोई विशेष व्यवस्था नहीं की गई है, जबकि इन आँकड़ों को सोशल इंजीनियरिंग के लिए विशेष महत्व होता है।

(G) सन् 2011 की जनगणना:-

यह जनगणना देश की 15वीं तथा स्वतंत्रता के बाद 7वीं तथा 21वीं शताब्दी की दूसरी जनगणना थी। जनगणना 2011 के प्रथम चरण का कार्य। 1 मई 2010 से 15 जून 2010 तक चला। इसका द्वितीय चरण 9 फरवरी 2011 से 5 मार्च 2011 तक चला। फरवरी 2011 में सम्पन्न भारत की 15वीं जनगणना के अंतिम परिणाम देश के महापंजीयक व जनगणना आयुक्त (Registrar General and Census Commissioner) ‘सी चन्द्रमौलि’ ने देश के गृह सचिव 'जी० के० पिल्लै' की उपस्थिति में 31 मार्च, 2011 को जारी किए। इस जनगणना में देश की कुल जनसंख्या 1, 21, 01, 93, 422 (121.02 करोड़) आंकलित की गई। इस प्रकार विगत एक दशक में देश की जनसंख्या में 18.15 करोड़ (17.64 प्रतिशत) की वृद्धि देश की जनसंख्या में हुई थी। इस प्रकार अंतिम आँकड़ों के अनुसार जनसंख्या वृद्धि की दर में गिरावट इस दशक में दर्ज की गई है। 2011 में देश की कुल जनसंख्या विश्व जनसंख्या का 17.5 प्रतिशत है। वर्तमान अंतिम आँकड़ों अनुसार में 2011 देश की कुल जनसंख्या में 6 वर्ष से कम उम्र की जनसंख्या का भाग 13.12 प्रतिशत है। कुल 121.02 करोड़ जनसंख्या में पुरूषों की संख्या 62.37 करोड़ व महिला संख्या 58.65 करोड़ आंकलित की गई। इस प्रकार प्रति 1000 पुरूषों पर महिलाओं की संख्या 940 है। इससे पूर्व 2001 की जनगणना में यह अनुपात 933 स्त्रियों प्रति हजार पुरूष था। 2001 की तरह इस बार भी राज्यों में न्यूनतम स्त्री-पुरुष अनुपात हरियाणा (877) का है। इसी प्रकार प्रति हजार पुरूषों पर स्त्रियों की सर्वाधिक जनसंख्या केरल में 1084 है।

भारतीय जनगणना की कमियाँ:- यद्यपि 1951, 1971, 1991, 2001, 2011 की जनगणनाओं में अनेक गुणात्मक एवं परिमाणात्मक सुधार किए गए हैं, किन्तु अभी भी जनगणना समंक उतना पूर्ण एवं सजातीय नहीं हो पाया हैं जितना कि अन्य विकसित देशों में दिखाई देता है। इसके अनेक कारण हैं-

(1) शुद्धता की कमी:- विभिन्न जनगणनाओं द्वारा प्राप्त सूचनाओं में अशुद्धि की मात्रा अलगअलग है। यह अशुद्धियाँ व्यक्तियों की अज्ञानता, परम्परागत विचार, अभिमति, असावधानी, उदासीनता व मनोवैज्ञानिक धारणाओं के कारण विवाह, आयु, धर्म आदि के प्रति गलत सूचनाओं के देने के कारण निर्मित होती ही

(2) व्यावसायिक वर्गीकरण समरस नहीं:- भारत की पिछली सभी जनगणनाओं में व्यावसायिक वर्गीकरण का आधार एवं उनकी परिभाषायें अलग-अलग थीं।

(3) जनता में उदासीनता:- भारत में जहाँ एक ओर उचित पारिश्रमिक के अभाव में प्रगणक उदासीन रहता है वहीं दूसरी ओर जनता अशिक्षा एवं अज्ञानता के कारण इसकी उपयोगिता नहीं समझती और इसके प्रति सूचना देने में रूचि नहीं लेती है। इसके अलावा देश में जनगणना प्रगणकों का यह कार्य अस्थायी होता है और अनुभवी व्यक्ति यह कार्य प्रायः नहीं करते, इसलिए भी अशुद्धियों की मात्रा अधिक होती है।

जनगणना में सुधार के सुझाव:- यद्यपि प्रत्येक जनगणना में दोषों को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है फिर भी इनमें और अधिक सुधार के लिए प्रशिक्षित, अनुभवी एवं उत्साही प्रगणक रखे जाएँ। बार-बार व्यावसायिक वर्गीकरण न बदला जाये। जनगणना के पहले लोगों में इसके महत्व के विषय में उचित प्रचार किया जाए। जनगणना में प्रजननता एवं मरणशीलता सम्बन्धी सूचनाओं की ओर अत्यधिक ध्यान दिया जाए। स्त्रियों से जानकारी के लिए स्त्रीगणक रखी जाए।

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