CLASS XI ( TERM -
II) EXAMINATION, 2022
HINDI- A (CORE)
इस
प्रश्नपत्र में तीन खंड हैं। सभी खंड के प्रश्नों का उत्तर देना अनिवार्य है।
प्रश्नों
के उत्तर उनके साथ दिए निर्देशों के आलोक में ही लिखें।
खण्ड
क (अपठित बोध )
1.
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
जीवन
एक कुआँ है
अथाह,
अगम
सबके
लिए एक-सा वृत्ताकार ।
जो
भी पास जाता है,
सहज
ही तृप्ति, शांति पाता है।
मगर
छिद्र होते हैं, जिसके पात्र में,
रस्सी
डोर रखने के बाद भी
हर
प्रयत्न करने के बाद भी,
वह
यहाँ प्यासा का प्यासा रह जाता है ।
(क) कविता में जीवन को कुआँ क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
कवि ने जीवन को कुआँ कहा है, क्योंकि जीवन भी कुएँ की तरह अथाह व अगम है।
(ख) कैसा व्यक्ति कुएँ के पास जाकर भी प्यासा रह जाता है?
उत्तर:
दोषी व्यक्ति कुएँ के पास जाकर भी प्यासा रह जाता है।
(ग) उपर्युक्त पंक्तियों का उचित शीर्षक लिखे?
उत्तर:
जीवन
अथवा
निम्नलिखित
गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
साहस
की जिंदगी सबसे बड़ी जिंदगी होती है। ऐसी जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह बिल्कुल
निडर और बेखौफ होती है। साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नहीं
करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं ? जनमत की उपेक्षा करके
जीने वाला आदमी दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से
मिलता है। अड़ोस-पड़ोस को देखकर चलना, यह साधारण जीव का काम है। क्रांति करनेवाले लोग
अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं और न अपनी चाल को ही पड़ोसी
की चाल देखकर मद्धिम बनाते हैं ।
(क) साहस की जिन्दगी को सबसे बड़ी जिंदगी क्यों कहा गया है ?
उत्तर:
साहस की जिन्दगी को सबसे बड़ी जिन्दगी बताया गया है। इसकी पहचान है कि यह बिल्कुल निडर
होती है।
(ख) दुनिया की असली ताकत किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर:
जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला साहसी आदमी दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता
को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है।
(ग) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
जिन्दगी
खण्ड-ख ( अभिव्यक्ति और माध्यम तथा रचनात्मक लेखन )
2.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(क) 'पंचायत चुनाव' अथवा 'वृक्षारोपण' विषय पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर:
'पंचायत चुनाव'
प्रस्तावना: इस बात में कोई संदेह नही की, भारत देश
में लोकतंत्र है। लोकतंत्र एक प्रकार का कार्य है, जिसे वह सोचता है कि स्वतंत्रता
दी गई थी, उनके अनुसार उन्होंने अपने प्रतिनिधि को चुना। वह देश की प्रगति का प्रतिनिधित्व
करने वाले सार्वजनिक और राज्य हितों को प्रस्तुत करता है। उन्होंने समग्र ऑपरेटिंग
सिस्टम का नेतृत्व करने के लिए एक प्रतिनिधि चुना। यदि कोई कारण सरकार, राज्य और भाग्य
के लाभ के लिए काम नहीं कर सकता है, तो समुदाय में यह पसंद है कि वह पांच साल में फिर
से सरकार को बदल सकता है। श्रम की तुलना में कोई बड़ी शक्ति नहीं है ।
लोकतंत्र
का अधिकार: लोकतंत्र चुनने के लिए जन्म का अधिकार, देश के हर नागरिक को है। वर्तमान
में, वादे कई प्रकार के अवसर हैं और राजनीतिक लोगों को प्रगतिशील हैं जो बुद्धिमान
और खतरनाक हैं ताकि जनता उन्हें चुन सके। कुछ लोग अक्सर बोलने का फैसला करते हैं। अधिकांश
निवासी सतर्क और जागृत हो गए हैं, आसानी से, वे अपनी कक्षा में एक छलांग नहीं पहुंचे।
भाग्य आम तौर पर सोचकर तथ्यों और चुनावों पर ध्यान देते हैं। चुनाव लोकतांत्रिक राष्ट्र
का आधार है। भारत को दुनिया में सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है। चुनावी प्रणाली में,
लोग उचित उम्मीदवारों के लिए मतदान करके अपनी सरकार को चुनने का अधिकार देते हैं।
इस
प्रकार, लोकतंत्र में सार्वजनिक भावनाओं को शामिल करना है। यह सार्वजनिक कल्याण का
खुलासा करता है। सभी काम लोकतंत्र में प्रचार की भावना से पूरा हो चुके हैं। आत्मा
प्रचार हमारे सामने देखा जाता है।
लोकतंत्र
में सम्मानित सभी की भावना के कारण लोकतंत्र का महत्व भी है और हर किसी को स्वतंत्र
रूप से अपनी भावनाओं को दिखाने का पूरा मौका मिलता है।
वोट
देने का अधिकार: भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में कई महत्वपूर्ण चुनाव चयन हैं। हमारी राय
देश के भविष्य का फैसला करती है। हमारे चुनाव तय करते हैं कि हम अपने देश में क्या
चाहते हैं। लेकिन यदि हम अपने दायित्वों का पालन नहीं करते हुए मतदान में भाग नहीं
लेते हैं, तो यह देश का नुकसान है।
किसी
देश के प्रत्येक नागरिक के पास एक ऐसा कार्य है जिसे उन्होंने चयन प्रक्रिया में मतदान
चुना और इस देश में एक ईमानदार और सक्षम सरकार दिखायी । लोग गुप्त मतदान के माध्यम
से चुन सकते हैं और अपनी राय बता सकते हैं, जो दिखाते हैं कि कौनसी पार्टी या व्यक्ति
अपने देश को चलाने के लिए सही है।
उम्मीदवारों
या टीमों के पास देश के संचालन के काम के लिए बहुमत, शक्तिशाली और जिम्मेदारी बढ़ जाती
है। भारत में चयन शहर, कानून और संसद के लिए है। न्याय सुनिश्चित करने के लिए, चुनाव
पांच साल बाद व्यवस्थित किए जाते हैं।
इन
पांच वर्षों के दौरान, लोगों को प्रतिनिधि समुदाय द्वारा किए गए कार्यों का आकलन करने
का अधिकार है और देश की प्रगति के लिए लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों को जनता का
ख्याल रखना चाहिए।
निष्कर्ष:
प्रत्येक नागरिक देश के भविष्य को निर्धारित करता है। देश का रूप सरकार के हाथ में
होगा, यह चुनाव है। यह सभी नागरिकों का मुख्य कार्य है, कि वह अपने देश के उज्वल भविष्य
के लिए सही सरकार पर फैसला करेंगे। एक ईमानदार और मजबूत सरकार के विकास के लिए, हर
वोट जरूरी होती है।
वृक्षारोपण
प्रस्तावना:-
हमारे देश भारत की संस्कृति एवं सभ्यता वनों में ही पल्लवित तथा विकसित हुई है यह एक
तरह से मानव का जीवन सहचर है वृक्षारोपण से प्रकृति का संतुलन बना रहता है वृक्ष अगर
ना हो तो सरोवर (नदियां ) में ना ही जल से भरी रहेंगी और ना ही सरिता ही कल कल ध्वनि
से प्रभावित होंगी वृक्षों की जड़ों से वर्षा ऋतु का जल धरती के अंक में पोहचता है,
यही जल स्त्रोतों में गमन करके हमें अपर जल राशि प्रदान करता है वृक्षारोपण मानव समाज
का सांस्कृतिक दायित्व भी है, क्योंकि वृक्षारोपण हमारे जीवन को सुखी संतुलित बनाए
रखता है। वृक्षारोपण हमारे जीवन में राहत और सुखचैन प्रदान करता है।
“वृक्षारोपण
से ही पृथ्वी पर सुखचैन है
इसे
लगाओ जीवन का एक महत्वपूर्ण संदेश है.”
संस्कृति
और वृक्षारोपण: भारत की सभ्यता वनों की गोद मे ही विकासमान हुई है। हमारे यहां के ऋषि
मुनियों ने इन वृक्ष की छांव में बैठकर ही चिंतन मनन के साथ ही ज्ञान के भंडार को मानव
को सौपा है। वैदिक ज्ञान के वैराग्य में, आरण्यक ग्रंथों का विशेष स्थान है वनों की
ही गोद में गुरुकुल की स्थापना की गई थी। इन गुरुकुलो में अर्थशास्त्री, दार्शनिक तथा
राष्ट्र निर्माण शिक्षा ग्रहण करते थे इन्ही वनों से आचार्य तथा ऋषि मानव के हितों
के अनेक तरह की खोजें करते थे ओर यह क्रम चला ही आ रहा है। पशियो चहकना, फूलो का खिलना
किसके मन को नहीं भाता है इसलिए वृक्षारोपण हमारी संस्कृती में समाहित है।
वनों
से लाभ: वनों से हमे भवन निर्माण की सामग्री मिलती है औषधीय, जड़ी बूटियां, गोंद, घास,
तथा जानवरों का चारा भी वनों से ही प्राप्त होता है।वन तापमान को सामान्य बनाने में
सहायक एवं भूमि को बंजर होने से रोकता है वनों से लकड़ी, कागज, फर्नीचर, दवाईया, सभी
के लिए हम वनों पर ही निर्भर है। वन हमे दूषित वायु को ग्रहण करके शुद्ध एवं जीवन दायक
वायु प्रदान करता है, जितनी वायु और जल जरूरी है उतना ही आवश्यक वृक्ष होते हैं इसलिए
वनों के साथ ही वृक्षारोपण सभी जगह करना जरूरी है और कई तरह के लाभ देने वाले वनों
की रक्षा करना हमारा कर्तव्य।
वनों
के कटने से कई तरह की हानियां: आज मानव अपनी भौतिक प्रगति की तरफ आतूर है वह अपने स्वार्थ
को पूरा करने के लिए बेधड़क वृक्षों की कटाई कर रहा है ओधोगिक प्रतिस्पर्धा और जनसंख्या
के चलते बनो का क्षेत्रफल प्रतिदिन घटता जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार एक करोड़ हेक्टेयर
इलाके के वन काटे जाते हैं, अकेले भारत में ही 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले बनो
को काटा जा रहा है, वृक्ष के कटने से पक्षियों का चहचहाना भी कम होता जा रहा है, पक्षी
प्राकृतिक संतुलन स्थिर रखने में प्रमुख कारक है, परंतु वृक्षों की कटाई से तो वो भी
अब कम ही दिखने लगे हैं, अगर इसी तरह से वृक्ष की कटाई होती रही तो इसके अस्तित्व पर
ही एक प्रश्न चिन्ह लग जाएगा।
वृक्षारोपण
कार्यक्रम: हमारे देश भारत में वृक्षारोपण के लिए कई संस्थाएं, पंचायती राज संस्थाएं,
राज्य वन विभाग, पंजीकृत संस्था, कई समितिया ये सब वृक्षारोपण के कार्य कराती हैं कुछ
संस्थाओं तो वृक्ष को गोद लेने की परंपरा कायम कर रही है, शिक्षा के पाठ्यक्रम में
भी वृक्षारोपण को भी स्थान दिया गया है, पेड़ लगाने वाले लोगों को प्रोत्साहित किया
जाना चाहिए आज हमें ए.के. जोन्स की तरह ही वृक्षारोपण का संकल्प लेने की आवश्यकता है।
उपसंहार:
आज हमारे देशवासी वनों तथा वृक्षों की महत्ता को एक स्वर से स्वीकार कर रहे हैं वन
महोत्सव हमारे राष्ट्र की अनिवार्य आवश्यकता है, देश की समृद्धि में हमारे वृक्ष का
भी महत्वपूर्ण योगदान है इसलिए इस राष्ट के हर नागरिक को अपने लिए और अपने राष्ट्र
के लिए वृक्षारोपण करना बहुत जरूरी है।
(ख) अपने विद्यालय में प्रधानाध्यापक को पत्र लिखकर छात्रवृत्ति के
लिए अनुरोध करें ।
उत्तर:
सेवा
में,
प्रधानाचार्य
महोदय,
रामजस
विद्यालय
S-301
सदर बाजार, झाँसी
मान्यवर,
सविनय
निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय की ग्यारहवीं कक्षा का छात्र हूँ। विगत दिनों मेरे
पूज्य पीताजी का स्वर्गवास हो जाने से घर की आर्थिक स्थिति बहुत बिगड़ गई है। मेरी
माँ सारा दिन बड़ी मेहनत करके परिवार के सात सदस्यों की किसी प्रकार भरण पोषण करती
है। वस्त्र तथा अन्य वस्तुओं के लिए भी बहुत कठिनाई उठानी पड़ती है, ऐसी स्थिति में
मेरी माँ के लिए मेरी पढ़ाई का व्यय भार उठाना नितान्त असम्भव है, जबकि मेरे मन में
पढ़ने की तीव्र अभिलाषा है।
मैं
अब तक सभी श्रेणियों में सदैव अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होता रहा हूँ। सभी गुरुजन तथा
सहपाठी मेरे आचरण से प्रसन्न हैं। मैं खेलों तथा वाक् प्रतियोगिताओं में भी सक्रिय
भाग लेता हूँ। अतः आप से करबद्ध प्रार्थना करता हूँ कि आप मुझे विद्यालय की ओर से छात्रवृत्ति
दिलाएँ, जिससे मेरी पढ़ाई का खर्च चल सके। आशा है कि मेरी स्थिति को ध्यान में रखकर
मेरी प्रार्थना को अवश्य ही स्वीकृत करेंगे।
इस
उपकार के लिए जीवन पर्यन्त आपका आभारी रहूँगा।
धन्यवाद
सहित।
आपका आज्ञाकारी शिष्य
कमलेश, कक्षा 11 अ
(ग) किसी दैनिक समाचार पत्र के प्रधान सम्पादक को बढ़ती हुई महँगाई
पर चिंता प्रकट करते हुए एक पत्र लिखें।
उत्तर:
सेवा
में,
संपादक
महोदय,
दैनिक
समाचार पत्र,
रांची,
विषय-
बढ़ती हुई मंहगाई पर चिंता जताते हुए संपादक को पत्र।
मान्यवर,
मेरा
नाम संजीव वर्मा है। मैं रांची शहर के सूरज नगर इलाके का निवासी हूं। इस पत्र के माध्यम
से मैं सरकार का ध्यान दिन प्रतिदिन बढ़ती हुई मंहगाई की ओर आकर्षित करना चाहता हूं।
महोदय,
कुछ दिनों से देश में महगांई का स्तर पूर्व से अधिक गुना बढ़ता नजर आ रहा है। जिससे
कि आम जनता के सामने एक बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है। सामान्य जीवनयापन की वस्तुओं, खाद्यान्नों
व अन्य उपभोगी वस्तुओं के मूल्यों में भारी वृद्धि समस्त स्तर के परिवारों के लिए चिंता
का विषय बन गया है।
इसके
अतिरिक्त, समाज में रोजगार तथा आय के स्रोत में भी किसी प्रकार की वृद्धि नहीं की जा
रही है। सरकार की ओर से महगांई पर लगाम कसने के लिए प्रयास भी नहीं किए जा रहे है।
ऐसे में मध्य एवम् निम्न वर्ग का व्यक्ति महगांई के बोझ तले दबता जा रहा है। प्रत्येक
मनुष्य के जीवनयापन के लिए आवश्यक मूल तत्व – रोटी, कपड़ा और मकान है। इसमें भी परम
आवश्यक रोटी है।
लेकिन
आज महगांई के कारण सरकार ने आम जनता को रोटी खाने के मामले में भी सोचने पर विवश कर
दिया है। दाल, मसालों, आटा, चीनी आदि के दाम आसमान छू रहे है। कुछ ही दिनों में इन
वस्तुओं के दाम पहले के दामों से तिगुने दाम पर पहुंच गए गए हैं।
दूसरी
ओर, पेट्रोल के दामों पर भी कोई रोक ही नहीं है।90-100 के बीच में पहुंचे पेट्रोल,
डीजल के दामों ने जनता के बीच सरकार के प्रति आक्रोश पैदा कर दिया हैं। सरकार की ओर
से बढ़ती महगांई की ओर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा रहा है। जो कि बेहद चिंता का विषय
है।
अतः
मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप इस विषय को अपने प्रतिष्ठित समाचार पत्र में छापकर
सरकार का ध्यान महगांई की ओर आकर्षित करें। अन्यथा यह बढ़ती महगांई जनता के अनहित का
कारण बन जाएगी।
सधन्यवाद।
प्रार्थी,
संजीव
वर्मा,
समाज
सेवी,
सूरज
नगर,
रांची।
दिनांक…..
(घ) एक अच्छे संपादक के गुणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
किसी समाचार पत्र या पत्रिका के प्रकाशन में संपादक की सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका
होती है। एक अच्छे संपादक में निम्नलिखित गुण अपेक्षित हैं
(1)
निष्पक्ष दृष्टिकोण: सम्पादक का दृष्टिकोण निष्पक्ष होना चाहिए | सम्पादक यदि किसी
विचारधारा का पक्षधर होता है तो वह अपनी विचारधारा से विभिन्न विषयों के साथ न्याय
नहीं कर सकेगा। वह समाचार पत्र के स्वामियों और अन्य लोगों के विचारों में सामंजस्य
तभी स्थापित कर सकेगा जब वह तटस्थ भाव से वस्तुओं को देखेगा।
(2)
विषद ज्ञान: संपादक को विभिन्न विषयों का विशद ज्ञान होना चाहिए । तभी वह विभिन्न विषयों
पर टिप्पणी कर सकेगा | इसके साथ-साथ संपादक को तकनीक का ज्ञान भी होना चाहिए क्योंकि
आज के युग में समाचार पत्रों के प्रकाशन में नईनई तकनीक आ रही है जिनके प्रयोग से समाचार
पत्र को आकर्षक व प्रभावी बनाया जा सकता है।
(3)
नेतृत्व क्षमता: सम्पादक अपने समाचार पत्र का मुखिया होता है | उसके साथ उप संपादक,
सह संपादक, संवाददाता, टेक्नीशियन, समाचार पत्र के विभिन्न विभागों में कार्यरत कर्मचारी
काम करते हैं | उन सबको साथ लेकर चलना और उनसे अच्छा काम करवाना संपादक का कार्य है।
सभी कर्मचारियों से सफलतापूर्वक काम करवाने के लिए नेतृत्व क्षमता का होना अनिवार्य
है।
(4)
भाषा-ज्ञान: संपादक को उस भाषा का अच्छा ज्ञान होना चाहिए जिस भाषा में वह समाचार पत्र
प्रकाशित होता है। उस भाषा के व्याकरण व शब्दकोश की व्यापक जानकारी होने पर ही सम्पादक
एक आकर्षक और प्रभावी संपादकीय लिख सकेगा और दूसरे लेखकों के द्वारा लिखे गए लेखों
की भली प्रकार जांच कर सकेगा।
(5)
मधुरता व विनोद-प्रियता: संपादक की वाणी में मधुरता और स्वभाव में विनोदमें प्रियता
होनी चाहिए ताकि संपादन जैसे गंभीर कार्य को वह सरल बना सके और कार्यालय के कर्मचारियों
के साथ उसके अच्छे संबंध स्थापित हो सकें।
(6)
कुशल प्रबंधक: संपादक का कार्य केवल संपादकीय लिखना और दूसरे लेखकों द्वारा लिखे गए
लेखों की जांच करना ही नहीं है बल्कि समाचार पत्र के प्रकाशन से जुड़े हुए प्रत्येक
कार्य का प्रबंधन करना भी है। अत: सम्पादक के लिए एक अच्छा प्रबंधक होना अति आवश्यक
है।
खण्ड ग ( पाठ्यपुस्तक )
3. निम्नलिखित में से किसी एक का काव्य-सौंदर्य लिखिए :
(क) यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चलें और उम्र
भर के लिए ।
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित ‘गजल’ से उद्धृत हैं।
यह गजल दुष्यंत कुमार द्वारा रचित है। यह उनके गजल संग्रह ‘साये में धूप’ से ली गई
है। इस गजल का केंद्रीय भाव है-राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा है, उसे खारिज करना
और नए विकल्प की तलाश करना। व्याख्या-कवि कहता है कि नेताओं ने घोषणा की थी कि देश
के हर घर को चिराग अर्थात् सुख-सुविधाएँ उपलब्ध करवाएँगे। आज स्थिति यह है कि शहरों
में भी चिराग अर्थात् सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। नेताओं की घोषणाएँ कागजी हैं। दूसरे
शेर में, कवि कहता है कि देश में अनेक संस्थाएँ हैं जो नागरिकों के कल्याण के लिए काम
करती हैं। कवि उन्हें ‘दरख्त’ की संज्ञा देता है। इन दरख्तों के नीचे छाया मिलने की
बजाय धूप मिलती है अर्थात् ये संस्थाएँ ही आम आदमी का शोषण करने लगी हैं। चारों तरफ
भ्रष्टाचार फैला हुआ है। कवि इन सभी व्यवस्थाओं से दूर रहकर अपना जीवन बिताना चाहता
है। ऐसे में आम व्यक्ति को निराशा होती है।
काव्य-सौंदर्य:
1.
कवि ने आजाद भारत के कटु सत्य का वर्णन किया है। नेताओं के झूठे आश्वासन व संस्थाओं
द्वारा आम आदमी के शोषण के उदाहरण आए दिन मिलते हैं।
2.
चिराग, मयस्सर, दरखत, साये आदि उर्दू शब्दों के प्रयोग से भाव में गहनता आई है। खड़ी
बोली में प्रभावी अभिव्यक्ति है।
3.
‘चिराग’ व ‘दरख्त’ आशा व सुव्यवस्था के प्रतीक हैं।
4.
अंतिम पंक्ति में निराशा व पलायनवाद की प्रवृत्ति दिखाई देती है।
5.
लक्षणा शक्ति का निर्वाह है।
6.
‘साये में धूप लगती है’ में विरोधाभास अलंकार है।
(ख) मैं तो ब्याह कभी न करूंगी
और कहीं जो ब्याह हो गया
तो मैं अपने बालम को संग-साथ रखूँगी
कलकत्ता मैं कभी न जाने दूँगी
कलकत्ते पर बजर गिरे ।
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘चंपा काल-काले
अच्छर नहीं चीन्हती’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रगतिशील कवि त्रिलोचन हैं। इस कविता
में कवि ने पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है। गाँव में साक्षरता
के प्रति उदासीनता को चंपा के माध्यम से मुखरित किया गया है।
व्याख्या-कवि
द्वारा चंपा को पढ़ने की सलाह पर वह उखड़ जाती है। वह कहती है कि तुम बहुत झूठ बोलते
हो। तुम पढ़-लिखकर भी झूठ बोलते हो। जहाँ तक शादी की बात है, तो मैं शादी ही कभी नहीं
करूंगी। दूसरे, यदि कहीं शादी भी हो गई तो मैं पति को अपने साथ रखेंगी। उसे कभी कलकत्ता
नहीं जाने दूँगी। दूसरे शब्दों में, वह अपने पति का शोषण नहीं होने देगी। परिवारों
को दूर करने वाले शहर कलकत्ते पर वज़ गिरे। वह अपने पति को उससे दूर रखेगी।
काव्य-सौंदर्य:
1.
चंपा की दृष्टि में शिक्षित समाज शोषक है।
2.
चंपा का भोलापन प्रकट हुआ है।
3.
ग्रामीण परिवेश का सजीव चित्रण हुआ है।
4.
मुक्त छद है।
5.
खड़ी बोली है।
6.
‘बजर गिरे’ से शोषक वर्ग के प्रति आक्रोश जताया गया है।
7.
संवाद शैली है।
8.
अनुप्रास अलंकार है।
4.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(क) बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है ?
उत्तर:
बस्तियों को शहर में विद्यमान चकाचौंध तथा बनावटी जीवन से बचाने की आवश्यकता है। यहाँ
की चकाचौंध तथा बनावटी जीवन बस्तियों की पवित्रता और सरल जीवन पर प्रभाव डाल रही है।
शहरों ने प्रदूषण की समस्या मनुष्य को उपहार स्वरूप दी है। यदि वह इस जीवन को अंगीकार
करते हैं, तो प्रदूषण की समस्या वहाँ भी पसर जाएगी। वे अभी तक जिस सांस्कृतिक विरासत
को संभाले हुए है, वह भी शहर के संपर्क में आने से नष्ट हो जाएगी। अतः हमें अपनी बस्तियों
को इन सबसे बचाकर रखना चाहिए।
(ख) यदि चंपा पढ़ी-लिखी होती, तो कवि से कैसे बातें करती ?
उत्तर:
यदि चंपा पढ़ी-लिखी होती तो कवि की योग्यता का सम्मान करती। चंपा का बात को अभिव्यक्त
करने का तरीका विनम्र और सम्मानपूर्ण होता। तब शायद उसकी बातों में विद्रोह के स्वर
की अपेक्षा कवि के प्रति श्रध्दा होती।
(ग) 'गजल' शीर्षक के आधार पर बताइए कि शायर की हसरत क्या है ।
उत्तर:
"गजल” नामक इस विधा में कवि राजनीतिज्ञों के झूठे वायदों पर व्यंग्य करता है कि
वे हर घर में चिराग उपलब्ध कराने का वायदा करते हैं, परंतु यहाँ तो शहर में ही चिराग
नहीं है। कवि को पेड़ों के साये में धूप लगती है अर्थात् आश्रयदाताओं के यहाँ भी कष्ट
मिलते हैं। अत: वह हमेशा के लिए इन्हें छोड़कर जाना ठीक समझता है। वह उन लोगों के जिंदगी
के सफर को आसान बताता है जो परिस्थिति के अनुसार स्वयं को बदल लेते हैं। मनुष्य को
खुदा न मिले तो कोई बात नहीं, उसे अपना सपना नहीं छोड़ना चाहिए। थोड़े समय के लिए ही
सही, हसीन सपना तो देखने को मिलता है। कुछ लोगों का विश्वास है कि पत्थर पिघल नहीं
सकते। कवि आवाज़ के असर को देखने के लिए बेचैन है। शासक शायर की आवाज को दबाने की कोशिश
करता है; क्योंकि वह उसकी सत्ता को चुनौती देता है। कवि किसी दूसरे के आश्रय में रहने
के स्थान पर अपने घर में जीना चाहता है।
5. निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(क) आजादी से पूर्व किसानों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता था
?
उत्तर:
आज़ादी से पूर्व भारत के किसानों को गरीबी, कर्जदारी, पूँजीपतियों द्वारा शोषण, जमींदारी,
महाजन, कड़े लगान और सूद, पुलिस के जुल्म आदि समस्याओं से जूझना पड़ता था। सिंचाई के
पर्याप्त साधन नहीं थे। वर्षा पर निर्भर रहना, कठोर परिश्रम के पश्चात भी मेहनताना
न मिलने जैसी अनेक विषम समस्याओं का सामना करना पड़ता था।
(ख) 'रजनी' पाठ का प्रतिपाद्य बताइए ।
उत्तर:
यह पाठ शिक्षा के व्यवसायीकरण, ट्यूशन के रैकेट, अधिकारियों की उदासीनता तथा आम जनता
द्वारा अन्याय का विरोध आदि के बारे में बताता है। यह हमें अन्याय का विरोध करने की
प्रेरणा देता है। यह पाठ सिखाता है कि यदि अन्याय को नहीं रोका गया तो वह बढ़ता जाएगा।
अन्याय का विरोध समाज को साथ लेकर हो सकता है, क्योंकि आम आदमी की सहभागिता के बिना
सामाजिक, प्रशासनिक व राजनैतिक व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन संभव नहीं है ।
(ग) स्पीति के लोग जीवनयापन के लिए किन कठिनाइयों का सामना करते हैं
?
उत्तर:
स्पीति के लोग जीवनयापन के लिए सब प्रकार की कठिनाइयों का सामना करते हैं। स्पीति में
साल के आठ-नौ महीने बर्फ रहती है तथा यह क्षेत्र शेष संसार से कटा रहता है।कठिनता से
तीन-चार महीने बसंत ऋतु आती है। यहाँ न हरियाली है, न पेड़। यहाँ वर्ष में एक बार बाजरा,
गेहूँ, मटर, सरसों की फसल होती है। यहाँ रोजगार के साधन नहीं हैं।
6. 'मन्नू भंडारी' अथवा 'निर्मला पुतुल' की किन्हीं दो रचनाओं के नाम
लिखिए ।
उत्तर:
मन्नू भंडारी की रचना:- त्रिशंकु और आंखों देखा झूठ
निर्मला पुतुल की रचना:- नगाड़े की तरह बजते
शब्द और अपने घर की तलाश में
7. 'आलो-आँधारि' पाठ के आधार पर तातुश का चरित्र चित्रण कीजिए ।
उत्तर:
तातुश सज्जन प्रवृत्ति के अधेड़ अवस्था के शिक्षक हैं, वे दयालु हैं तथा करुण भाव से
युक्त हैं। जब बेबी उनके घर काम करने आई तो उन्होंने उसके काम की प्रशंसा की। वे उसे
अपनी बेटी के समान समझते थे। वे उसे कदम-कदम पर प्रोत्साहित करते थे। बेबी की पढ़ने
के प्रति रुचि देखकर वे कॉपी व पेन देते हैं तथा उसे लिखने के लिए प्रेरित करते हैं।
वे उसके बच्चों को स्कूल में भेजने की व्यवस्था करते हैं। उसका घर टूट जाने के बाद
उसे अपने घर में जगह देते हैं। वे उसके बड़े लड़के को ढूँढ़कर उससे मिलवाते हैं तथा
बाद में अच्छी जगह पर उसे काम दिलवाते हैं। जब कभी बेबी के बच्चे बीमार होते हैं तो
उनका इलाज भी करवाते थे। तातुश बेबी के लेखन को अपने मित्रों के पास भेजते थे। वे कोई
ऐसी बात नहीं करते थे जिससे बेबी को ठेस लगे। ऐसे चरित्र समाज में दुर्लभ होते हैं
तथा आदर्श रूप प्रस्तुत करते हैं।
अथवा
'तुम दूसरी आशापूर्णा देवी बन सकती हो' - जेठू का यह कथन रचना संसार
के किस सत्य को उद्घाटित करता है ?
उत्तर:
तुम दूसरी आशापूर्णा देवी बन सकती हो – जेठू का यह कथन रचना संसार के विषम परिस्थितियों
पर विजय पाना और प्रोत्साहन रचनात्मक को उभार सकता है के सत्य को उद्घाटित करता है।
इस
कथन का आशय यह है कि मनुष्य चाहे तो जीवन की कठिन परिस्थितियाँ भी उसके आड़े नहीं आ
सकती है। आशापूर्णा देवी भी आम गृहणी थी। सारा दिन कामकाज में व्यस्त रहने के बावजूद
भी लेखन के लिए समय निकाल ही लेती थी। जिस किसी में भी लेखन के प्रति रूचि है उसे यदि
उचित समय पर प्रोत्साहित किया जाय तो वह अच्छा लेखन कर सकता है।
8. मोहल्लेवासियों का लेखिका के प्रति कैसा रवैया था ?
उत्तर:
लेखिका अकेली रहती थी, इस कारण मोहल्लेवासियों का रवैया अच्छा नहीं था। वे उसे हर समय
परेशान करते थे। महिलाएँ उससे तरह-तरह के सवाल करती थीं। कुछ पुरुष उसके साथ बात करने
की कोशिश करते थे तो कुछ उसे ताने देते थे। औरतें उसके अकेले रहने का कारण पूछती थीं।
लोग पानी के बहाने उसके घर के अंदर तक आ जाते थे। वे उससे अजीबो-गरीब सवाल पूछते जिनके
जवाब लोकलिहाज से परे थे। दुखी होकर उसने मकान बदलने का फैसला किया।
अथवा
लेखिका को लेखन के लिए किन-किन लोगों ने उत्साहित किया ?
उत्तर: लेखिका को लेखन के लिए सबसे पहले तातुश ने प्रेरित किया। उन्होंने ही उसका परिचय कोलकाता और दिल्ली के लोगों से करवाया। इसके अतिरिक्त कोलकाता के जेलू आनंद, अध्यापिका शर्मिला आदि पत्र लिखकर उसे प्रोत्साहित करते थे। दिल्ली के रमेश बाबू उनसे फोन पर बातें करते थे।