जनसंख्या प्रक्षेपण (पूर्वानुमान) (POPULATION LAUNCHING)

जनसंख्या प्रक्षेपण (पूर्वानुमान) (POPULATION LAUNCHING)



मनुष्य अपने भविष्य के प्रति हमेशा आश्वस्त रहना चाहता है इसलिए अपने उज्जवल भविष्य हेतु वह प्रकृति से भी मुकाबला करने के लिए तैयार हो जाता है, अर्थात मनुष्य अपने आने वाले कल का अनुमान लगाकर पूर्व तैयारी करना चाहता है। इसी संकल्पना का विस्तृत वर्णन ही जनसंख्या प्रक्षेपण है।

मनुष्य के भूतकाल में जो घटना घट चुकी है और वर्तमान में जो घटित हो रही है उसके आधार पर वह भविष्य में उस घटना के घटित होने की जानकारी प्राप्त करना चाहता है। जो विषय जितनी अधिक सटीक भविष्यवाणी करता है उसकी उपादेयता उतनी ही अधिक होती है। आज प्रत्येक देश आर्थिक विकास एवं जनकल्याण की नीतियों का निर्माण करते समय यह जानना चाहता है कि वर्तमान समय में देश में जो जनसंख्या है उसको देखते हुए भविष्य में जनसंख्या क्या होगी, ताकि उसके अनुरूप विकास एवं जनकल्याण के कार्यक्रम बनाए जा सकें। अतः जनसंख्या सम्बन्धी पूर्वानुमान लगाना जनसंख्या प्रक्षेपण है।

जनसंख्या प्रक्षेपण का अर्थ

(Meaning of Population Launching)

जनसंख्या प्रक्षेपण से आशय किसी देश, क्षेत्र या स्थान विशेष की जनसंख्या के पूर्वानुमानों से है। इसके अन्तर्गत कुछ मान्यताओं के आधार पर निर्धारित भविष्य की तिथि पर जनसंख्या के आकार एवं संरचना का आंकलन किया जाता है। अर्थात् जनसंख्या प्रक्षेपण से तात्पर्य किसी समुदाय विशेष का किसी समय विशेष पर जनसंख्या के अनुमानों, पूर्वानुमानों एवं पूर्व कथनों से है।

जनसंख्या प्रक्षेपण के सम्बन्ध में दी गयी कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नानुसार हैं:

संयुक्त राष्ट्र संघ बहुभाषी जनांकिकी शब्दकोश के अनुसार, जनसंख्या प्रक्षेपण ऐसी गणनाएँ हैं जो प्रजननशीलता, मृत्युक्रम तथा प्रवास के भविष्य के स्वरूप को स्पष्ट करती है।"

थाम्पसन एवं ह्वेल्पटन के मतानुसार, "जनसंख्या प्रक्षेपण भविष्य की जनसंख्या के आकार की ठीक-ठीक भविष्यवाणी नहीं है और ही इसे लिंग और आयु संरचना का सूचक माना जाना चाहिए। वास्तविक अर्थों में, यदि प्रजननशीलता, मृत्युक्रम तथा प्रवास कुछ विशिष्ट प्रवृत्तियों का अनुसरण करें तब यह इस बात का कथन मात्र है कि भविष्य की किसी निश्चित तिथि पर जनसंख्या का आकार तथा आयु संरचना क्या होगी।'

पीटर आर० कॉक्स के अनुसार, 'भविष्य सम्बन्धी जनसंख्या के परिकलन में पर्याप्त अनिश्चितता रहती है। मृत्युक्रम, प्रजननशीलता, विवाह तथा प्रवास में परिवर्तन लाने वाली शक्तियों के सम्बन्ध में हमारा ज्ञान अपूर्ण है तथा किसी संदेहास्पद तत्व के प्रभावों को निश्चित रूप से आँकना सम्भव नहीं हैं। भूतकाल के सम्बन्ध में हमारा ज्ञान कितना पूर्ण क्यों हो, भविष्य आवश्यक रूप से अनिश्चित ही रहेगा। अतः पूर्ण सत्यता के साथ भविष्यवाणी करना तो सम्भव है और ही कभी सम्भव होगा।

इस तरह, प्रक्षेपण द्वारा वर्तमान तथा भूत की जनसंख्या वृद्धि अथवा ह्रास की प्रवृत्ति के आधार पर निर्धारित तिथि पर भविष्य की जनसंख्या-संरचना एवं आकार के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है। परन्तु प्रक्षेपण द्वारा प्राप्त किए गए आंकलन पूर्णरूपेण सही ही होंगे, इस बात की गारन्टी नहीं होती। इसका कारण यह है कि इसके अन्तर्गत किए गए आंकलन ऐसे तथ्यों पर आधारित होते हैं जो कि घटित हो चुके होते हैं। इस बात की कोई गारन्टी नहीं होती है कि भूतकाल की दशाएँ भविष्यकाल में भी विद्यमान रहेगी।

अनुमान, भविष्यवाणियाँ तथा प्रक्षेपण में अन्तर

सामान्यतः अनुमान, भविष्यवाणी तथा प्रक्षेपण को एक-दूसरे के पर्यायवाची के रूप में प्रयोग में लाया जाता है, परन्तु उनमें स्पष्ट अन्तर है। अनुमानों का उद्देश्य भविष्य में घटने वाली समस्याओं को व्यक्त करना होता है। कोई भी जनांकिक अधिकार के साथ भविष्यवाणी नहीं कर सकता। वह तो इतना भर संकेत कर सकता है कि, यदि ऐसा हुआ तो भविष्य में ऐसा होगा।'' 'यदि ऐसा हुआ तो' भविष्य तथा भूत के आपसी सम्बन्ध पर निर्भर करता है। बहुभाषी जनांकिकी शब्दकोष भविष्यवाणी तथा प्रक्षेपण में इस तरह अन्तर स्पष्ट करती है- "जनसंख्या प्रक्षेपण एक प्रकार की गणना है जो भविष्य में प्रजननशीलता, मृत्युक्रम तथा प्रवास के स्वरूप को दर्शाती है। यह शुद्ध रूप से अनुमानों के आधार पर की गयी गणनाएँ हैं, जबकि जनसंख्या भविष्यवाणी एक प्रकार का प्रक्षेपण है जिसके अन्तर्गत मान्यताओं के आधार पर भविष्य में जनसंख्या के सम्भावित विकास की वास्तविक रूपरेखा की परिकल्पना की जाती है।"

इसी तरह पूर्वानुमान के सम्बन्ध में अपना मत व्यक्त करते हुए लुइस एवं फॉक्स कहते हैं, जो ज्ञान आज हमारे पास उपलब्ध है, उसका प्रयोग करके यह अनुमान लगाना कि भविष्य में क्या घटित होगा, पूर्वानुमान कहलाता है।'' इस तरह, पूर्वानुमान विशुद्ध रूप से समंक विश्लेषण है, जिसको यथासम्भव वैज्ञानिक आधार प्रदान किया जाता है। पूर्वानुमान व्यवसाय तथा वाणिज्य को भविष्य में घटित हो सकने वाली घटनाओं की पूर्व सूचना देकर उन्हें सचेत करने का कार्य करता है। इसके विपरीत, भविष्यवाणी का तो कोई सांख्यिकीय आधार होता है और ही कोई वैज्ञानिक आधार। यह बहुत कुछ भाग्यवादिता, ग्रह-दशा अथवा किसी रहस्यमयी शक्ति की कल्पना पर आश्रित मनोवैज्ञानिक कथन मात्र होता है।

स्क्रिप्स फाउण्डेशन ने 1947 में 'Population India' का सम्पादन करते हुए लिखा था कि, जनसंख्या के संशोधित अनुमान भविष्यवाणियाँ नहीं है बल्कि प्रक्षेपण है।'' पूर्वानुमान, भविष्यवाणी और प्रक्षेपण के सम्बन्ध में अपने मत व्यक्त करते हुए प्रो० स्पेंग्लर ने लिखा है कि, पूर्वानुमान, भविष्यवाणियाँ तथा प्रक्षेपण में बहुत ही कम अन्तर है और यह जनांकिकी-समंकों के प्रयोगकर्ताओं के लिए ही है। जब तक भविष्य की जनसंख्या के सम्बन्ध में इस तरह की सूचनाएँ प्रकाशित होती रहेगी तब तक उन्हें भविष्यवाणियाँ ही माना जाता रहेगा।

इस प्रकार जनसंख्या प्रक्षेपण व्यापारिक पूर्वानुमान का एक विशिष्ट स्वरूप है जिसके अन्तर्गत वर्तमान एवं भूतकालीन जनसंख्या तथा जनसंख्या दरों के आधार पर मान्यताएँ विकसित की जाती है।

जनसंख्या प्रक्षेपण के प्रकार

(Type of Population Launch)

जनसंख्या प्रक्षेपण को तीन भागों में बांटा गया है:

(1) अन्तर्जनगणना:- इसके अन्तर्गत दो जनगणनाओं के बीच की अवधि के लिए जनसंख्या का प्रक्षेपण किया जाता है।

(2) पश्च जनगणनाः- इसके अन्तर्गत उन अनुमानों को सम्मिलित किया जाता है जो अन्तिम जनगणना वर्ष से लेकर अब तक के किसी वर्ष से संबंधित होती है।

(3) भावी प्रक्षेपण:- इसके अन्तर्गत आने वाले भावी वर्षों के लिए जनसंख्या का अनुमान लगाया जाता है।

जनसंख्या प्रक्षेपण की विधियाँ

(Methods of Population Launching)

जनसंख्या प्रक्षेपण की विभिन्न विधियों को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है:

(1) गणितीय विधिः- प्रक्षेपण की गणितीय विधियों के अन्तर्गत प्रायः अन्तर्वेशन तथा बहिर्वेशन विधियों का प्रयोग किया जाता है। दिए हुए समंकों के आधार पर किसी विशिष्ट रीति द्वारा किसी बीच की तिथि के लिए आँकड़ों का अनुमान लगाना अन्तर्वेशन कहलाता है। यदि इससे बाहर के आँकड़ों का अनुमान लगाया जाता है तो यह बर्हिवेशन कहलाता है। यह विधि निम्न मान्यताओं पर आधारित होती है।

(1) दी हई समयावधि के अन्तर्गत किसी तरह का कोई आकस्मिक उच्चावचन नहीं होता है।

(2) परिवर्तन की दर यथावत् रहती है।

जनसंख्या प्रक्षेपण हेतु प्रायः निम्नलिखित गणितीय विधियों का प्रयोग किया जाता है-

(a) अंकगणितीय प्रक्षेपण:- यह जनसंख्या प्रक्षेपण की सरलतम विधि है। इसके अन्तर्गत यह मान लिया जाता है कि जनसंख्या में परिवर्तन की दर प्रक्षेपण समयावधि में समान रहती है और यह एक सरल सीधी रेखा के अनुसार बढ़ती या घटती है। इस विधि द्वारा गणना उन परिस्थितियों में उचित होती है जहाँ उपलब्ध आँकड़े बहुत अधिक शुद्ध नहीं होते तथा जहाँ गणना में बहुत अधिक शुद्धता की आवश्यकता नहीं होती। इस विधि द्वारा जनसंख्या प्रक्षेपण का सूत्र इस प्रकार हैं:

जहाँ

Pn = किसी मध्यवर्ती वर्ष के लिए जनसंख्या का अनुमान 

P0= वर्तमान जनसंख्या

Pm = पिछली जनगणना की जनसंख्या

n= पिछली जनगणना तथा अन्तर्गणना के बीच वर्ष अथवा माह की संख्या

m = दो जनगणनाओं के बीच वर्षों अथवा महीनों की संख्या

(b) गुणोत्तर प्रक्षेपण:- माल्थस का जनसंख्या का सिद्धान्त इस अवधारणा पर आधारित है कि जनसंख्या गुणोत्तर अनुपात से बढ़ती है। गुणोत्तर प्रक्षेपण हेतु निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Pn = P0(1+r)n

Pn = वर्षों के पश्चात् प्रेक्षित जनसंख्या

P0 = वर्तमान जनगणना के आधार पर जनसंख्या

r= प्रतिवर्ष जनसंख्या परिवर्तन की दर

(c) घातकीय प्रक्षेपण:- घातकीय प्रक्षेपण विधि के अन्तर्गत जनसंख्या प्रक्षेपण के लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है:

Pn = P0ern

(d) वृद्धिघात वक्र विधि:- वृद्धिघात वक्र विधि जनसंख्या प्रक्षेपण की उत्तम विधियों में से एक है। पर्ल तथा रीड ने सन् 1920 में फलों की मक्खियों पर प्रयोग कर 'जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि' के वृद्धिधात वक्र का निर्माण किया, जिसका आकार S की तरह होता है। वृद्धिघात वक्र के अनुसार जैसे-जैसे जनसंख्या के घनत्व में वृद्धि होती जाती है वैसे-वैसे जनसंख्या वृद्धि की दर घटती जाती है।

यदि मान लिया जाए कि किसी क्षेत्र में जनसंख्या वृद्धि की दर में धीरे-धीरे गिरावट रही है, तब P का ह्रासमान फलन होगा : r(i - KP) जहाँ r तथा K धनात्मक स्थिरांक है।

इस दशा में अवकल समीकरण का स्वरूप इस प्रकार का होगा:

या, 

समाकलन करने पर,

log P - Log (1 - KP) = rt+c

या,  

या,

जहाँ, A स्थिरांक है।

यदि, t (-)  ,P 0.

तथा, यदि  t    ,P  .

यदि जनसंख्या की उच्चतम सीमा को L मान लिया जाय, तब उपर्युक्त समीकरण को निम्नवत् लिखा जा सकता है-

यदि मान लिया जाए कि समय t =   होने पर जनसंख्या P=   हो जाएगी, तब समीकरण (vi) इस प्रकार होगाः

या , A = Lerß

A के इस मान को समीकरण (vi) में रखने पर,

वृद्धिघात वक्र के समीकरण को इसी रूप में व्यक्त किया जाता है। वृद्धिधात वक्र को निम्न चित्र द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है

उपर्युक्त चित्र में जनसंख्या का काल्पनिक प्रक्षेपण दर्शाया गया है। चित्र के प्रारम्भ में जनसंख्या तेजी से बढ़ती है तथा जनसंख्या के अधिकतम होने तक वृद्धि दर जारी रहती है। जनसंख्या के अधिकतम बिन्दु के पश्चात् जब जनसंख्या वृद्धि दर घटने लगती है, तब वक्र का झुकाव नीचे की तरफ हो जाता है। इस वक्र के द्वारा अन्तर्वेशन, बहिर्वेशन की अपेक्षा अधिक सही होता है। वद्धिघात वक्र इस सिद्धान्त पर आधारित है कि प्रारम्भ में जनसंख्या वृद्धि दर बहुत कम होती है, फिर उसमें तेजी से वृद्धि होती है और पुनः जनसंख्या वृद्धि की दर घटने लगती है।

(e) बिन्दुरेखीय विधि:- यह जनसंख्या प्रक्षेपण की एक सरल विधि है। इसके अन्तर्गत समय को क्षैतिज अक्ष पर तथा जनसंख्या को ऊर्ध्वाधर अक्ष पर प्रदर्शित किया जाता है। फिर माप निश्चित कर बिन्दुओं को अंकित किया जाता है। इस प्रकार समयानुसार जनसंख्या का वक्र बनता है। अब जिस समय के लिए जनसंख्या ज्ञात करनी हो वहाँ से एक लम्ब, वक्र की ओर खींचा जाता है। यह लम्ब वक्र को जिस बिन्दु पर काटता है, वहाँ ये ऊर्ध्वाधर अक्ष (OY - अक्ष) पर लम्ब द्वारा प्राप्त मूल्य ही प्रक्षेपित जनसंख्या होगी। यही जनसंख्या को अर्वेशन मूल्य भी कहा जाता है। बर्हिवेशन ज्ञात करने के लिए उसी गति या क्रम में वक्र को आगे बढ़ा दिया जाता है। इस विधि से अन्तर्वेशन, बर्हिवेशन की अपेक्षा अधिक विश्वसनीय होता है। बहिर्वेशन में वक्र को आगे बढ़ाते समय पर्याप्त सावधानी तथा सतर्कता की आवश्यकता होती है।

आजकल जनसंख्या प्रक्षेपण की इस विधि का अधिक प्रयोग किया जाता है। इस विधि में जनसंख्या की आयु-संरचना, प्रजननशीलता, मृत्युक्रम तथा प्रवास आदि को ध्यान में रखकर वर्तमान जनसंख्या के भावी स्वरूप का प्रक्षेपण किया जाता है। जनसंख्या प्रक्षेपण के लिए यह आवश्यक है कि जनसंख्या के विभिन्न चरों जैसे- जन्म-दर, मृत्यु-दर तथा प्रवास के सम्बन्ध में सही मान्यताओं के आधार पर गणनाएँ की जाएँ। इन चरों की सही-सही गणना के लिए अनेक बातों की जानकारी होना आवश्यक है।

(1) जन्म-दरः- जनसंख्या प्रक्षेपण के लिए जन्म-दर के सम्बन्ध में निम्न बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है

(i) प्रजनन आयु वर्ग की स्त्रियों की संख्या।

(ii) प्रजनन आयु वर्ग की स्त्रियों में से संतानोत्पादन शक्ति सम्पन्न स्त्रियों की संख्या।

(iii) प्रजनन आयु वर्ग में सन्तानोत्पादन में असमर्थ एवं बाँझ स्त्रियों तथा नपुंसक पुरूषों की संख्या।

(2) मृत्यु दरः- मृत्यु दर जनसंख्या वृद्धि को प्रभावित करने के साथ-साथ आयु संरचना को भी प्रभावित करती है। प्रत्यक्ष प्रजनन आयुवर्ग में कितनी महिलाओं की प्रतिवर्ष मृत्यु हो जाती है, की गणना करना भी आवश्यक है।

(3) प्रवास:- प्रवास के अन्तर्गत दो बातों का समावेश होता है। प्रथम, देश में बाहर से आने वाले व्यक्तियों की संख्या, तथा द्वितीय, देश से बाहर जाने वाले व्यक्तियों की संख्या। प्रक्षेपण के लिए शुद्ध प्रवास की गणना की जाती है।

किसी तिथि पर प्रक्षेपित जनसंख्या प्राप्त करने के लिए निम्न सूत्र को प्रयोग में लाया जाता है-

P2 = P1 + B + Mi - D- Me

उपर्युक्त सूत्र में,

P2 = किसी प्रक्षेपण तिथि पर जनसंख्या

P1 = प्रारम्भ (वर्तमान) वर्ष की जनसंख्या

B= उस अवधि में सजीव जन्में बच्चों की संख्या

Mi = अन्तर्मन (विदेशों से देश में आए व्यक्तियों की संख्या)

Me = बहिर्गमन (देश छोड़कर गए हुए व्यक्तियों की संख्या)

D= उस समयावधि में मृतकों की संख्या

जनसंख्या प्रक्षेपण के स्वरूप

(Forms of Population Launching)

जनसंख्या प्रक्षेपण में मान्यताओं का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान है। ये मान्यताएँ जनसंख्या अवयव के सम्बन्ध में की जाती हैं। ये अवयव जन्म-दर, मृत्यु-दर तथा आवास एवं प्रवास हैं और इनके सम्बन्ध में मान्यताओं के समूह के आधार पर तीन प्रकार के प्रक्षेपित मूल्य प्राप्त किए जाते हैं। इन्हें क्रमशः उच्च, मध्यम एवं निम्न प्रक्षेपण कहा जाता है। यदि ये मान्यताएँ गलत हुई, तो प्रक्षेपित मूल्य भी गलत ही होंगे। इन मान्यताओं को जनांकिकीविदों ने निम्नलिखित श्रेणी में बाँटा है:

जनसंख्या वृद्धि सम्बन्धी प्रचलित मान्यताएँ

घटक

क्रम

1

2

3

जन्म-दर

अधिक दर से वृद्धि

मध्यम दर से वृद्धि

कम दर से वृद्धि

मृत्यु-दर

अधिक दर से वृद्धि

मध्यम दर से वृद्धि

कम दर से वृद्धि

प्रवास

अधिक दर से होगा

मध्यम दर से होगा

कम दर से होगा

आवास

अधिक दर से होगा

मध्यम दर से होगा

कम दर से होगा

 

उपर्यक्त मान्यताओं के आधार पर ही प्रक्षपित जनसंख्या को ऊँची, मध्यम या निम्न श्रेणी में रखा जाता है, इसे निम्न तालिका में प्रदर्शित किया गया है:-

मान्यताओं के आधार पर जनसंख्या प्रक्षेपण

प्रक्षेपित मूल्य

जन्म दर

मृत्यु दर

प्रवास

आवास

उच्च

ऊँची होगी

कम रहेगी

कम होंगे

अधिक होंगे

मध्यम

मध्यम स्तर पर

मध्यम स्तर पर

मध्यम स्तर पर

मध्यम स्तर पर

निम्न

निम्नतम

उच्चतम

अधिक

कम

 

(i) उच्च प्रक्षेपण:- इस प्रक्षेपण में यह मान लिया जाता है कि जन्म-दर ऊँची, मृत्यु-दर नीची, आव्रजन अथवा आवास अधिक तथा प्रवास कम होंगे। अतः जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ेगी तथा लगभग 25 वर्ष में दुगुनी हो जाएगी। यह स्थिति कम विकसित देशों में पायी जाती है। इस अवस्था में भारत, पाकिस्तान तथा चीन, आदि देश आते हैं।

(ii) मध्यम प्रक्षेपण:- इसमें यह मान लिया जाता है कि जन्म-दर, मृत्यु-दर, आवास एवं प्रवास की दरें मध्यम अर्थात् न बहुत ऊँची और न बहुत नीची होती हैं। इस प्रकार की मान्यता के अन्तर्गत जनसंख्या लगभग 35-45 के बीच दुगुनी हो जाती है। इस तरह का प्रक्षेपण उन देशों के लिए उपयोगी है जिनमें परिवार नियोजन तथा स्वास्थ्य सेवाओं का पर्याप्त विकास हो चुका है। आज रूस, कनाडा, आदि देशों में इस प्रकार का जनसंख्या प्रक्षेपण अत्यंत उपयुक्त है।

(iii) न्यून प्रक्षेपण:- यह प्रक्षेपण इस मान्यता पर आधारित है कि देश में निम्नतम जन्म-दर के साथ अधिकतम मृत्यु दर विद्यमान रहती है। आवास की अपेक्षा प्रवास अधिक होता है, परन्तु इस प्रकार की दशा व्यावहारिक नहीं है।

प्रक्षेपण की शुद्धता:- जनसंख्या प्रक्षेपण में मात्र गणितीय आगणन ही नहीं होता बल्कि यह अनुमानों पर भी आधारित होते हैं। अतः यह उम्मीद करना कि वे पूर्णरूपेण शुद्ध ही होंगे, उचित नहीं प्रतीत होता। जनसंख्या के शुद्ध व यथार्थ प्रक्षेपण के लिए निम्न बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है-

(i)  जनसंख्या घटकों से सम्बन्धित सभी प्रकार के उच्चावनों का ठीक-ठीक ज्ञान होना चाहिए।

(ii) जनसंख्या प्रक्षेपण की विभिन्न रीतिओं में से सही एवं अधिक शुद्ध रीति का चुनाव करना चाहिए।

(iii) प्रक्षेपण का कार्य विषय के विशेषज्ञों द्वारा निष्पक्ष रूप से किया जाना चाहिए। व्यक्तिगत अभिरूचि द्वारा परिणाम प्रभावित नहीं होने चाहिए, साथ ही प्रक्षेपण की अवधि लम्बी नहीं होनी चाहिए।

(iv) जनसंख्या घटकों से सम्बन्धित अव्यवों, वातावरण तथा अन्य प्रकार से इनकों प्रभावित करने वाले तत्वों की ठीक-ठीक जानकारी होनी चाहिए।

(v) प्रक्षेपण को स्वतंत्र रूप से कार्य करने तथा परिणामों को प्रकाशित करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

(vi) प्रक्षेपण विधि का चुनाव इस प्रकार करना चाहिए कि जिससे आवश्यकता पड़ने पर परिणामों की शुद्धता की जाँच की जा सके।

(vii) प्रक्षेपण बहुत छोटे क्षेत्र या जाति विशेष के लिए न होकर सम्पूर्ण देश या वर्ग के लिए होना चाहिए। इससे बहुत सी गणितीय, आवास-प्रवास सम्बन्धी कठिनाइयाँ स्वतः ही समाप्त हो जाती हैं।

जनसंख्या प्रक्षेपण का महत्व

जनांकिकी तथा आर्थिक अध्ययन की दृष्टि से जनसंख्या प्रक्षेपण अत्यंत महत्वपूर्ण है जो निम्न प्रकार है:-

(1) जीवन समंकों का अभाव व अपर्याप्तता:- जनांकिकी में जीवन समंकों का बहुत महत्व है। यदि विभिन्न देशों में जीवन समंकों की स्थिति का अध्ययन किया जाए तो पता चलता है कि वे न केवल अपर्याप्त हैं बल्कि उनका अभाव भी है। प्रायः अल्पविकसित देशों में जहाँ जनगणना के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति नहीं हुई है वहाँ भूतकालीन समंक या तो मिलते ही नहीं, यदि मिलते भी हैं तो वे इतने अपर्याप्त होते हैं कि उनकी सहायता से किसी निश्चित व विश्वसनीय परिणाम पर नहीं पहुंचा जा सकता है।

(2) समंकों का नष्ट हो जाना:- अनेक बार ऐसा होता है कि किसी अनुसन्धान से सम्बन्धित समंक वर्षा, बाढ़, दीमक, चोरी अथवा आग लगने के कारण नष्ट हो जाते हैं अथवा खो जाते हैं। ऐसी दशा में प्रक्षेपण आवश्यक हो जाता है।

(3) जनगणना तिथियों के मध्य जनसंख्या की जानकारी हेतुः- जनगणना 10 वर्षों के अन्तराल पर होती है और तभी जनसंख्या के सही समंक उपलब्ध हो पाते हैं, परन्तु जनसंख्या सम्बन्धी समंकों की आवश्यकता दो जनगणनाओं की मध्यवर्ती तिथियों में कभी भी पड़ सकती है।

(4) राष्ट्रीय योजना में महत्व:- योजना के लक्ष्यों के निर्धारण में प्रक्षेपित जनसंख्या की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। योजनाओं का लक्ष्य निर्धारित करते समय देश की भावी आवश्यकताओं का अनुमान लगाना पड़ता है। शिक्षा, रोजगार, औद्योगिक एवं आर्थिक विकास की योजनाओं के निर्धारण में जनसंख्या के आकार, रचना, लिंग तथा व्यावसायिक वितरण आदि की जानकारी आवश्यक होती है।

(5) तुलनात्मक अध्ययन:- दो स्थानों, समयों एवं अर्थव्यवस्थाओं के बीच तुलना करने में प्रक्षेपण की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। चीन की प्रक्षेपित जनसंख्या की अनुमानों से ज्ञात होता है कि अभी भी हम चीन की तरह प्रभावी परिवार नियोजन नहीं अपना सकेंगे।

जनसंख्या प्रक्षेपण के महत्व को स्पष्ट करते हुए प्रो० हजनाल ने लिखा है, "प्रक्षेपण में चाहे कितनी ही कमियाँ क्यों न हों, कुछ आँकड़ों का होना, न होने से तो अच्छा है, प्रक्षेपण की उपयोगिता में चार चाँद लगा देता है।"

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