👉नियम
शब्द से अभिप्राय प्रत्येक उस सिद्धान्त से है जो किसी वस्तु अथवा कार्य के कारणों
एवं परिणामों का सम्बन्ध स्थापित करता है और जो पूर्ण जाँच करने के पश्चात सदा सत्य
प्रमाणित होता है।
👉 अर्थशास्त्र
के नियमों को मोटे तौर पर चार भागों में बाँटा जाता है-
a.
वैधानिक नियम- ये नियम देश की सरकार द्वारा बनाये जाते हैं और सभी
लोगों को उनका पालन करना होता है।
b.
नैतिक नियम - मनुष्य के आचरण, धर्म व आदर्श से सम्बन्धित नियमों को
नैतिक नियम कहा जाता है।
c.
सामाजिक व व्यवहारिक नियम- ये वे नियम
होते हैं जो किसी समाज में विधिवत संचालन के लिए कार्य करते हैं।
d.
वैज्ञानिक नियम - प्रो० मार्शल के अनुसार वैज्ञानिक नियम सामान्य सत्य प्रवृत्तियों
के वर्णन मात्र से है जो प्रायः निश्चित एवं सत्य होते हैं।
👉अर्थशास्त्र
के नियम भी वैज्ञानिक होते हैं।
👉प्रो०
राबिन्स के अनुसार आर्थिक नियम उन समानताओं का उल्लेख करते हैं
जिन पर सीमित साधनों द्वारा असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति करने से सम्बन्धित मानव
व्यवहार निर्भर हैं।
👉प्रो० सैलिंग मैन के अनुसार अर्थशास्त्र के नियम काल्पनिक होते हैं।
👉प्रो० बाघ के शब्दों में आर्थिक नियम गुणात्मक होते हैं न कि
परिमाणात्मक।
👉प्रो०
मार्शल का मत है कि आर्थिक नियमों की तुलना गुरुत्वाकर्षण के साधारण
और निश्चित नियमों से करने के बजाय ज्वार-भाटे के नियमों से करनी चाहिए।
👉प्रो०
राबिन्स का मत है कि आर्थिक नियमों को प्राकृतिक नियमों के समकक्ष
माना जा सकता है।
👉निगमन प्रणाली - एक प्राचीन प्रणाली है, इसके
अन्तर्गत सामान्य सत्य के आधार पर विशिष्ट सत्य का पता लगाया जाता है।
👉निगमन
विधि का प्रयोग 19वीं शताब्दी में क्लासिकल अर्थशास्त्रियों ने किया। यह आर्थिक अध्ययन
की सबसे पुरानी विधि है। इसमें सामान्य सत्य या सर्वमान्य स्वयंसिद्ध या आधारभूत तथ्यों
को आधार मानकर विशिष्ट सत्य या निष्कर्ष निकाले जाते हैं। अतः अध्ययन का क्रम सामान्य
से विशिष्ट की ओर होता है। क्योंकि इस प्रणाली में केवल अनुमान ही लगाये जा सकते हैं
इसलिए इसे अनुमान प्रणाली भी कहा जा सकता है।
👉
इसमें गणितीय विधि का प्रयोग एजवर्थ ने 19वीं शताब्दी में किया।
👉आगमन
प्रणाली- निगमन प्रणाली के ठीक विपरीत दशा होती है, इसके अन्तर्गत अध्ययनकर्ता की रूचि
विशिष्ट सत्य से सामान्य सत्य की ओर बढ़ती है।
👉अगमन
विधि की शुरूआत निगमन विधि के दोषों की प्रतिक्रिया के रूप में जर्मनी के ऐतिहासिक
स्कूल द्वारा हुआ। इसका प्रारम्भ रोशर की प्रसिद्ध पुस्तक ‘राजनीति अर्थशास्त्र”
1854 के प्रकाशन से हुआ।
👉माल्थम
का जनसंख्या सिद्धान्त आगमन प्रणाली के आधार पर सन् 1798 में लिखा गया।
👉प्रो०
माल्थस को छोड़कर शेष सभी परम्परागत अर्थशास्त्री निगमन प्रणाली
का उपयोग अपने सिद्धान्तों के विश्लेषणों में किये।
👉जर्मन
ऐतिहासिक सम्प्रदाय के अनुसार आर्थिक अध्ययन के लिए आगमन प्रणाली ही सबसे उपयुक्त है।
👉सूक्ष्म अर्थशास्त्र व्यक्तियों के निश्चित समूहों की आर्थिक क्रियाओं
का अध्ययन है।
👉व्यष्टिगत
अर्थशास्त्र को कीमत सिद्धान्त भी कहा जाता है।
👉समष्टिगत
अर्थशास्त्र में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित समूहों जैसे रोजगार के सिद्धान्त,
राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय बचत, राष्ट्रीय विनियोग, सामान्य कीमत स्तर आदि का अध्ययन
किया जाता है।
उपयोगिता विश्लेषण (Utility Analysis)
👉
उपभोक्ता व्यवहार के सिद्धांत में दो पहलू हैं - 1. योग पहलू और 2. व्यय पहलू
👉
योग पहलू के लिए रोजगार का सिद्धांत का अध्ययन किया जाता है तथा व्यय पहलू में दो दृष्टिकोण
है, यथा; a. सीमांत उपयोगिता विश्लेषण, और b. उदासीनता वक्र विश्लेषण।
👉उपयोगिता
का अर्थ 'आवश्यकता सन्तुष्टि शक्ति' से है। अर्थात् उपभोक्ता की किसी आवश्यकता विशेष
को सन्तुष्ट करने की निहित क्षमता अथवा शक्ति (Capacity or Power) का नाम ही उपयोगिता
है।
👉उपयोगिता
शब्द 'सापेक्षिक' होता है। शराब हानिकारक होते हुए भी शराब-भोगी व्यक्ति के लिए उपयोगी
होता है।
👉फ्रेजर
के अनुसार- "उपयोगिता केवल इच्छा करना है। "
👉"उपयोगिता
इच्छा की तीव्रता का फलन है। "
👉जैसे-जैसे
उपभोक्ता किसी वस्तु विशेष की अतिरिक्त इकाइयों का उपभोग करता चला जाता है उसकी इच्छा
की तिव्रता में कमी आती जाती है। इसे ही घटती उपयोगिता कहा जाता है।
👉माँग
के सिद्धान्त का अभिप्राय उन तत्वों को निर्धारित करना है जो मांग को प्रभावित करते
हैं। माँग कई तत्वों द्वारा निर्धारित होती है जैसे किसी वस्तु की माँग, वस्तु की कीमत,
उपभोक्ता की आय तथा अन्य वस्तुओं की कीमत, उपभोक्ता की रूचि, आय वितरण, जनसंख्या, उपभोक्ता
की सन्तुष्टि, साख, सरकारी नीतियाँ, पहले का आय स्तर तथा पहले की कीमत इत्यादि ।
👉माँग
के सिद्धान्त की व्याख्या उपयोगिता या तुष्टिगुण विश्लेषण के रूप में की जाती है, उपयोगिता
या तुष्टिगुण विश्लेषण यह स्पष्ट करता है कि किस प्रकार व्यक्ति अपने साधानों से अधिकतम
उपयोगिता प्राप्त करके सन्तुष्टि के स्तर को अधिकतम करता है।
👉उपभोक्ता
को एक विवेकशील प्राणी इसलिए कहा जाता है क्योंकि व्यक्ति की आय सीमित होती है तथा
इच्छायें असीमित होती हैं अतः सीमित साधनों द्वारा असीमित इच्छाओं में वह ऐसी वस्तुओं
का चयन करता है जो वस्तुयें उसे अधिकतम सन्तुष्टि या उपयोगिता दे सके।
👉उपयोगिता
किसी वस्तु के प्रयोग के बदले में प्राप्त होने वाली सन्तुष्टि है।
👉प्रो०
रॉबिन्स के अनुसार उपयोगिता से हमारा अभिप्राय किसी वस्तु के उस अमूर्त गुण से है जिसके
द्वारा हमारे उद्देश्यों की पूर्ति होती है। उपयोगिता के मापनीयता के सन्दर्भ में अर्थशास्त्रियों
में मतभेद है।
👉जहाँ
प्रो० मार्शल उपयोगिता को मापनीय मानते हैं वहीं प्रो० जे० आर० हिक्स तथा प्रो० सैम्यूलसन
उपयोगिता को एक मनोवैज्ञानिक गुण मानते हैं।
👉प्रो०
मार्शल का मत है कि किसी वस्तु के प्रयोग के बदले में जो सन्तुष्टि प्राप्त होती है
वह मापनीय होती है, अर्थात् प्रो० मार्शल के अनुसार उपयोगिता मापनीय है।
👉उपयोगिता
की मापनीयता का आधार मुद्रा है।
👉प्रो०
जे० आर० हिक्स ने उपयोगिता के क्रमवाचक दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है।
👉प्रो०
जे० आर० हिक्स के अनुसार उपयोगिता एक मनोवैज्ञानिक गुण है। जिसे हम केवल महसूस कर सकते
हैं इसका मौद्रिक माप संभव नहीं है।
👉प्रो०
मार्शल ने उपयोगिता का गणनावाचक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हुए यह स्पष्ट किया है कि
उपयोगिता मापनीय होती है तथा इसकी मापनीयता का आधार मुद्रा है।
👉इन
दोनों विश्लेषणों में उपयोगिता विश्लेषण सबसे पुराना है।
👉उन्नीसवीं
शताब्दी के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, जेबन्स, वालरस, कार्ल मेन्जर ने तुष्टिगुण या उपयोगिता
विश्लेषण का विकास किया।
👉प्रो०
मार्शल ने इनके द्वारा विकसित उपयोगिता विश्लेषण सिद्धांत में सुधार करके संशोधित उपयोगिता
विश्लेषण सिद्धान्त प्रस्तुत किया।
👉आधुनिक
अर्थशास्त्री उपयोगिता का अर्थ अनुमानित सन्तुष्टि बताते हैं क्योंकि अनुमानित सन्तुष्टि
'उपभोग की तीव्रता' पर निर्भर करती है।
👉उपयोगिता
की माप -
(i)
गणना वाचक माप (गणनावाचक दृष्टिकोण)
(ii)
क्रमवाचक माप (क्रमवाचक दृष्टिकोण)
👉गणनावाचक
दृष्टिकोण के अनुसार उपयोगिता को मापा जा सकता है जबकि क्रमवाचक दृष्टिकोण के अनुसार
उपयोगिता के निरपेक्ष अन्तरों द्वारा मापा नहीं जा सकता।
👉हिक्स
- एलेन के अनुसार, उपभोक्ता अनुभव की गयी सन्तुष्टि को एक वरियता क्रम तो दे सकता है,
किन्तु परिमाणात्मक संख्याएँ नहीं।
👉'सीमान्त'
का अर्थ है 'एक अतिरिक्त'।
👉किसी
वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपयोग से सन्तुष्टि के कुल स्तर में जो वृद्धि होती है
वह उस अतिरिक्त इकाई की सीमान्त उपयोगिता कहलाती है।
👉सीमान्त
उपयोगिता कुल उपयोगिता की परिवर्तन दर को बताती है।
MUn
= TUn - TU(n-1)
👉किसी
वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता के योग को कुल उपयोगिता
कहते हैं।
TUn
= MU1 + MU2 + MU3 + …….+ MUn
👉
कुल उपयोगिता की गणना दो विधि से होती है-
a.
गुणक रीति : इसमें वस्तु की सीमांत उपयोगिता को उसकी इकाइयों की संख्या से गुणा कर
देते हैं। यदि किसी व्यक्ति ने 5 इकाइयों का प्रयोग किया हो और प्रत्येक की उपयोगिता
20 हो तो कुल उपयोगिता 100 ( 5 X 20) होगी।
b.
संयोजन रीति : इसमें वस्तु की विभिन्न इकाइयों से प्राप्त होने वाली सभी उपयोगिता के
योग को कुल उपयोगिता कहेंगे । जैसे प्रथम इकाई से 20, द्वितीय से 16, तृतीय से 11,
चतुर्थ से 2 उपयोगिता मिलती है, तो हमारी कुल उपयोगिता 49 होगी।
👉
सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम का सर्वप्रथम उल्लेख बेंथम ने आर्थिक सिद्धांतों में किया
था, परंतु इसका उल्लेख सर्वप्रथम जर्मन अर्थशास्त्री एच.एच. गोसेन ने किया।
👉
उपभोक्ता को विवेकशील प्राणी माना गया है। क्योंकि वह उपयोगिता अथवा संतुष्टि को अधिकतम
करने के लिए बहुत सोच समझकर एक वस्तु का प्रतिस्थापन दूसरी वस्तु से करता है।
👉सीमान्त तुष्टि गुण शून्य होने पर कुल उपयोगिता अधिकतम होती है।
चित्र
और तालिका से निम्न बातें स्पष्ट है -
i.
जब सीमांत उपयोगिता गिरती है तब कुल उपयोगिता में घटती दर पर वृद्धि होती है।
ii.
जब सीमांत उपयोगिता शून्य होती है तब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है।
iii.
जब सीमांत उपयोगिता ऋणत्मक होती है तब कुल उपयोगिता गिरना शुरू हो जाती है।