16.PGT उपभोग फलन (Consumption Function)

उपभोग फलन (Consumption Function)

👉 उपभोग और आय के सम्बन्ध को ही उपभोग या उपभोग फलन कहते हैं।

👉 उपभोग की प्रवृत्ति और आय में फलनात्मक सम्बन्ध होता है अर्थात आय बढ़ती है तो उपभोग प्रवृत्ति बढ़ती है और आय के घटने से घटती है।

👉 जिस आय स्तर पर उपभोग ठीक उसके बराबर होता है उसे अन्तराल शून्य बिन्दु कहते हैं।

👉 कुल आय का जो भाग उपभोग के काम में लिया जाता है उसे कीन्स ने उपभोग प्रवृत्ति का नाम दिया है।

👉 औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) आय का वह भाग जो उपभोग पर खर्च किया जाता है उसे औसत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

👉 सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) आय में थोड़ी सी वृद्धि के परिणाम स्वरूप उपभोग में जो वृद्धि होती है उसे MPC कहते हैं।

`MPC=\frac{\Delta C}{\Delta Y}`

👉 यदि आय 1000 करोड़ रुपये से बढ़कर 1020 करोड़ रुपये हो जाये और उपभोग 800 करोड़ से बढ़कर 812 करोड़ हो जाये तो -

`MPC=\frac{\Delta C}{\Delta Y}`

∆Y = 1020-1000 = 20

∆C= 812–800 = 12

`MPC=\frac{12}{20}` = 60 प्रतिशत या 0.6

प्रश्न :- निम्नलिखित तालिका को पूरा करें ?

आय स्तर

(Y)

उपभोग खर्च

(C)

सीमांत उपभोग प्रवृत्ति

(MPC)

औसत उपभोग प्रवृत्ति

(APC)

100

100

-

1

200

190

0.9

0.95

300

275

0.85

0.916

400

355

0.8

0.88


👉 कुल उपभोग में कुल आय की अपेक्षा कम वृद्धि होती है।

👉 आय वृद्धि से उपभोग व बचत में वृद्धि होती है।

👉 आय के वृद्धि का उपभोग व बचत में वितरण होता है।

👉 APC, MPC से अधिक होती है। (APC > MPC)

👉 दीर्घकाल में APC = MPC

👉 अल्पकाल में APC > MPC

👉 निरपेक्ष आय उप कल्पना का प्रतिपादन जेम्स टोबिन तथा आर्थर स्मिथीज ने की है। इनके अनुसार उपभोग तथा आय में अल्पकालीन सम्बन्ध गैर आनुपातिक है।

👉 सापेक्ष आय उप कल्पना - जेम्स एस० डयूजनबरी ने सर्वप्रथम 1949 में अपनी पुस्तक 'Income Saving and Theory of Consumer Behaviour' में अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन उपभोग फलन का सिद्धान्त प्रतिपादित किया।

👉 स्थायी आय उप कल्पना - स्थायी आय उप कल्पना का विचार सन् 1957 में प्रकाशित मिल्टन फ्रीडमैन के अध्ययन 'A Theory of Consumer function' में पाया जाता है।

👉 जीवन चक्र उप कल्पना का विकास मोडिगलियानी, एलबर्ट एण्डो तथा ब्रम्बर्ग ने किया है।

👉 विनियोग के निर्धारक तत्व :- पूंजी की सीमांत उत्पादकता और ब्याज दर

👉 MEC = 

👉 प्रत्याशित दर के रूप में व्यक्त करने के लिए 100 से गुणाकर दिया जाता है।

`MEC=\frac YP\times100` 

👉 पूंजी की सीमान्त उत्पादकता (MEC) को प्रभावित करने वाले तत्व :- 1. अल्पकालीन 2. दीर्घकालीन

👉 अल्पकालीन तत्व-

♥️ लागत सीमा व माँग का स्वरूप

♥️ आय में परिवर्तन

♥️ उपभोग प्रवृत्ति

♥️ सरल सम्पत्ति

♥️ भावी आशाओं की वर्तमान दशा

♥️ कुल विनियोग की मात्रा

👉 दीर्घकालीन तत्व-

👉 जनसंख्या

👉 नये क्षेत्र का विकास

👉 तकनीकी प्रगति

👉 वर्तमान पूंजी उपकरण की उत्पादन क्षमता

👉 कीन्स ने 1936 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'General Theory of Em- ployment, Intrest & Money' में ब्याज के निर्धारण को तरलता पसन्दगी का नाम दिया।

👉 कीन्स के अनुसार ब्याज वह कीमत है जो धन को नगद रूप में रखने की इच्छा और नगदी की उपलब्ध मात्रा के बीच सन्तुलन स्थापित करती है।

👉 कीन्स मुद्रा की माँग को तरलता पसन्दगी कहते हैं।

👉 कीन्स के अनुसार अर्थव्यवस्था में मुद्रा की माँग तीन उद्देश्यों के लिए की जाती है-

♥️ वस्तुओं तथा सेवाओं को क्रय करने के लिए।

♥️ आकस्मिक घटनाओं के निदान के लिए

♥️ सट्टेबाजी उद्देश्य के लिए

👉 तरललता ट्रेप का अर्थ है कि ब्याज की दर एक न्यूनतम सीमा तक घट सकती है किन्तु शून्य नहीं हो सकती।

👉 लेन-देन उद्देश्य से की गयी मुद्रा की माँग पर ब्याज दर का कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।

👉 जब MEC > r तब उद्यमी विनियोग बढ़ाते हैं।

👉 जब MEC < r तब उद्यमी विनियोग घटाते हैं।

👉 जब MEC = r विनिमय का साम्य बिन्दु होगा।

गुणक

👉 गुणक के विचार का सर्वप्रथम प्रयोग आर० एफ० कान्ह ने किया था ।

👉 कान्ह का गुणक रोजगार गुणक कहलाता है।

👉 लार्ड कीन्स ने कान्ह के गुणक के विचार से विनियोग गुणक का विचार प्रतिपादित किया है।

👉 कीन्स के अनुसार प्रारम्भिक विनियोग के कारण आय में कई गुना वृद्धि होती है इसे विनियोग कहते हैं।

👉 हेन्सन के शब्दों में कीन्स का विनियोग गुणक वह गुणांक है जिसका सम्बन्ध विनियोग वृद्धि और आय वृद्धि के मध्य से है।

👉

👉

गुणक का सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से सम्बन्ध

👉 गुणक का आकार सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर यदि MPC अधिक है तो K भी अधिक होगा इसके विपरीत कम होगा।

👉 `\therefore K=\frac1{1-MPC}`

👉 MPC + MPS का मान इकाई के बराबर होता है। यदि हम 1 से MPC घटा दे तो MPS का मान ज्ञात हो जाता है।

👉 `\therefore K=\frac1{1-MPC}`

या     

👉 `MPC=\frac{1}2` हो तो गुणक का मान ?

`\therefore K=\frac1{1-MPC}`

👉 यदि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है तथा विनियोग में वृद्धि 100 करोड़ है,तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि ज्ञात करें ?

उत्तर :-       MPC = 0.6 , ΔI = 100

                   ΔY = K ΔI

`\therefore K=\frac1{1-MPC}`

`=\frac1{1-0.6}=\frac{10}{0.4}=2.5`

`\therefore\Delta Y` राष्ट्रीय आय ) = 2.5 (100) = 250 करोड़ रु.

महत्वपूर्ण निष्कर्ष

👉 MPC तथा K में सीधा सम्बन्ध होता है।

👉 MPS तथा K में उल्टा सम्बन्ध होता है।

👉 सामान्यतया MPC शून्य नहीं होती, जब MPC शून्य हो तब K= 1 जब MPC = 1 तो गुणक का मान अनन्त होता है।

👉 सामान्यत K का मान इकाई या अनन्त नहीं होता है

👉 गुणक तभी प्रभावी होगा जब व्ययों में निरन्तरता होती है।

गुणक का महत्व

♥️ आय प्रश्न का स्पष्टीकरण

♥️ विनियोग का महत्व

♥️ S & I में समानता

♥️ व्यापार चक्र की व्याख्या

♥️ नीतियों के निर्माण में सहायक

♥️ पूर्ण रोजगार

♥️ मुद्रा स्फीति पर नियंत्रण

♥️ दीर्घकालीन गतिहीनता को समाप्त करने में सहायक

त्वरण का सिद्धान्त

👉 त्वरक सिद्धान्त की व्याख्या अर्थशास्त्र में पहली बार 1971 में जे० एम० क्लार्क द्वारा किया गया।

👉 इस सिद्धान्त को आगे बढ़ाने तथा वैज्ञानिक रूप देने का श्रेय प्रो० पीगू, साइमन, कुजनेस्ट, राबर्टसन, हैरोड, सैम्यूलसन जैसे अर्थशास्त्रियों को जाता है।

👉 त्वरक वह अनुपात है उपभोग व्यय में परिवर्तन और प्रेरित विनियोग में परिवर्तन के बीच होता है।

👉 यदि उपभोग व्यय = 5 करोड़ रुपये से बढ़ता है जिसके परिणामस्वरूप विनियोग में 10 करोड़ रुपये की वृद्धि होती है-

त्वरक `\frac{10}2=2`

👉 त्वरक उपभोग वस्तुओं की माँग में वृद्धि के कारण हुई पूँजीगत वस्तुओं की माँग में वृद्धि को मापता है और उन दोनों के बीच कार्यात्मक सम्बन्ध स्थापित करता है।

त्वरक `=\frac{\Delta I}{\Delta C}`

गुणक व त्वरक में अन्तर

👉 गुणक, त्वरक की एक पूर्व स्थिति है, पहले गुणक क्रियाशील होता है और आय में वृद्धि के कारण माँग में वृद्धि करता है तब त्वरक क्रियाशील होता है।

👉 गुणक विनियोग के कारण आय तथा रोजगार के परिवर्तनों को व्यक्त करता है जबकि त्वरक उपभोग में हुए परिवर्तनों के विनियोग पर पड़ने वाले प्रभाव को मापता है।

👉 गुणक की दशा में उपभोग विनियोग पर आश्रित है त्वरक की दशा में विनियोग उपभोग पर निर्भर है।

👉 K के आकार MPC पर निर्भर होता है जबकि त्वरक का मूल्य पूंजी उत्पाद अनुपात पर निर्भर करता है।

👉 K., MPC जैसे मनोवैज्ञानिक कारक पर निर्भर है जबकि त्वरक तकनीकी कारणों पर ।

👉 गुणक तथा त्वरक प्रतियोगी न होकर समानान्तर हैं।

👉 गुणक की भांति त्वरक भी अर्द्ध विकसित देशों में कार्यशील नहीं होता।

आय निर्धारण तथा IS-LM फलन, वस्तु तथा मुद्रा बाजार का सामान्य सन्तुलन

👉 प्रो० हिक्स तथा प्रो० हेन्सन के अनुसार ब्याज की दर तथा आय का स्तर एक दूसरे के साथ बंधे हैं अर्थात ब्याज की दर का निर्धारण बिना आय के स्तर के निर्धारण के संभव नहीं है।

👉 हिक्स का सिद्धान्त अर्थव्यवस्था को दो भागों में बाँटता है-वस्तु बाजार (I = S) तथा मुद्रा बाजार (L=M)।

👉 वस्तु बाजार उस समय साम्य की दशा में होगा जब I = S

👉 मुद्रा बाजार उस समय साम्य की दशा में होगा जब L=M

👉 ब्याज के आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार जिसकी रचना प्रो० हिक्स तथा हेन्सन ने किया है, उस बिन्दु पर होगा जहाँ पर IS तथा LM वक्र एक दूसरे को स्पर्श करें।

👉 P बिन्दु पर ब्याज तथा आय का सन्तुलन स्थापित होता है।

👉 P बिन्दु I, S, L, M चारों बराबर हैं अर्थात अर्थव्यवस्था को एक सामान्य सन्तुलन प्राप्त होता है।

👉 हिक्स तथा हेन्सन का आधुनिक ब्याज दर निर्धारण सिद्धान्त एक साथ वस्तु बाजार तथा मुद्रा बाजार दोनों में सन्तुलन स्थापित करता है।

व्यापार चक्र के विभिन्न सिद्धान्त

👉 प्रो० बेन्हम के शब्दों में- यह वैभव विपन्नता का वह काल है जिसके पश्चात् अवसाद अथवा मन्दी का काल आता है।

👉 व्यापार चक्र विस्तार की एक अवस्था तथा संकुचन की एक अवस्था को मिलाकर बनता है।

👉 के० ई० वोल्डिंग के अनुसार व्यापार चक्र की अवस्थायें-

♥️ अवसाद

♥️ पुनरुद्धार

♥️ पूर्ण रोजगार

♥️अभिवृद्धि तथा

♥️ अवरोध है।

👉 अलवर्त मेयर्स के अनुसार व्यापार चक्र की निम्न अवस्थायें हैं-

♥️ पुनरुद्धार

♥️ समृद्धि

♥️ अवरोध

♥️ अवसाद

व्यापार चक्र के प्रमुख सिद्धांत

👉 प्रो० हाब्सन का अल्प उपभोग या अति बचत सिद्धान्त ।

👉 हाट्रे का शुद्ध मौद्रिक सिद्धान्त ।

👉 हेयक का अधिविनियोग सिद्धान्त ।

👉 कीन्स का व्यापार चक्र (Business cycle) सिद्धान्त

👉 सैम्यूलसन का गुणक त्वरक सिद्धान्त

👉 हिक्स का व्यापार चक्र का आधुनिक सिद्धान्त ।

समष्टि गति वितरण के सिद्धान्त

👉 आय वितरण का क्लासिकल सिद्धान्त ।

👉 आय वितरण का मार्क्सवादी सिद्धान्त।

👉 केल्डार का समग्र आय वितरण सिद्धान्त ।

👉 वितरण का वीन्ट्राब का समष्टि आर्थिक सिद्धान्त

👉 आय के साधनों में वितरण की समस्या में सर्वप्रथम रूचि रिकार्डों ने ली। रिकार्डो के सिद्धान्त में अर्थव्यवस्था के दो क्षेत्र हैं - कृषि व उद्योग ।

👉 कृषि में क्रमागत उत्पादन ह्मस नियम लागू होता है।

👉 रिकार्डों के अनुसार लगान अधिसीमान्त तथा सीमान्त भूमि से प्राप्त होने वाले उत्पादन का अन्तर है।

👉 कुल लगान = कुल उत्पादन - कुल उत्पादन लागत ।

कार्ल मार्क्स का सिद्धान्त

👉 मार्क्स का सिद्धान्त पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में आय के वितरण पर प्रकाश डालता है।

👉 मार्क्स का आय वितरण का सिद्धान्त मूल्य के श्रम सिद्धान्त पर आधारित है ।

👉 मार्क्स के अनुसार -

♥️ स्थिर पूंजी (C)

♥️ परिवर्तनशील पूंजी (V)

♥️ अतिरेक कीमत = (S)

♥️ उत्पादन की कुल कीमत C+V+S

♥️ शुद्ध उत्पादन मूल्य = V+ S

👉 मार्क्स के अनुसार लाभ की दर = `\frac S{C+V}`

👉 पूंजी की प्रासंगिक संरचना `\frac C{C+V}`

👉 मार्क्स के अनुसार शोषण की दर = `\frac SV` अतिरेक / परिवर्तनशील पूंजी

👉 पूंजी की प्रासंगिक संरचना `\frac C{C+V}`

लाभ की दर = `\frac S{C+V}`

`=\frac SV.\frac V{C+V}`

जहाँ `\frac VC+V` परिवर्तनशील पूंजी से कुल पूंजी का अनुपात है।

`=\frac SV\left[1-\frac C{C+V}\right]`

👉 अर्थात शोषण की दर `\left[\frac SV\right]` के स्थिर रहने की दशा में पूंजी की प्रासंगिक संरचना `\left[\frac C{C+V}\right]` में वृद्धि होने पर लाभ की दर में कमी आयेगी।

👉 जैसे-जैसे उत्पादन की पूंजी गहन रीतियों का प्रयोग करेगी लाभ की दर कम होती जायेगी।

केल्डार का समग्र आय वितरण सिद्धान्त

👉 केल्डार का सिद्धान्त यह स्पष्ट करता है कि आय में लाभ का अंश विनियोग में लाभ की दर तथा वास्तविक मजदूरी ये सब राष्ट्रीय में विनियोग के फलन हैं जो स्वतंत्र रूप से आय तथा लाभ के अनुपात पर निर्भर करते हैं।

रिकार्डों के सिद्धान्त के प्रमुख तत्व

👉 प्रति इकाई लगान = औसत श्रम उत्पादन - सीमान्त श्रम उत्पादन

👉 लाभ = श्रम की सीमान्त उत्पादन - मजदूरी दर

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