👉 मुद्रा वह वस्तु है जिसमें अत्यधिक तरलता या क्रयशक्ति का गुण है और जो
समाज में व्यापक रूप में सर्वग्राह्य है।
👉 मानवता के विकास के साथ-साथ मुद्रा का विकास हुआ।
👉 आखेट युग में मुद्रा, खाल एवं हड्डी के रूप में थी।
👉 चारागाह युग में
पशु भी मुद्रा के रूप में प्रयोग में लाये जाते थे।
👉 कृषि युग में विभिन्न
अनाजों को मुद्रा के रूप में स्वीकार किया गया।
👉 औद्योगिक युग में
सर्वप्रथम धातु की मुद्रा आयी जैसे लौहा, तांबा, शीशा, रांगा। बाद में सोना, चांदी
आदि।
👉 पत्र मुद्रा का प्रारम्भिक रूप साहूकारों द्वारा दी गयी लिखित रसीद के
रूप में देखने को मिलता है।
👉 बैंकों की स्थापना ने पत्र मुद्रा के विकास को एक नया आयाम और नई गति
प्रदान की।
👉 केन्द्रीय बैंक की
स्थापना के बाद प्रत्येक देश मे नोट निर्गमन का कार्य उस देश के केन्द्रीय बैंक को
दे दिया गया है।
👉 केन्द्रीय बैंक द्वारा
निर्गमित मुद्रा वैधानिक मुद्रा घोषित की गयी जिसे हर व्यक्ति सहाजता से स्वीकार करता
है।
👉 नि:संदेह मुद्रा
का आविष्कार मानव समाज के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हैं।
👉 स्पालडिंज का मत
है कि मुद्रा का जन्म आकस्मिक हुआ है।
👉 ओडेमन स्पान, स्मिथ,
हैन्सन तथा क्राउथर का मत हैं कि मुद्रा का जन्म आवश्यकता तथा निश्चितं सोच-विचार के
साथ हुआ।
👉 एक वस्तु से दूसरी
वस्तु के प्रत्यक्ष विनिमय को ही वस्तु विनिमय कहते हैं।
👉 वस्तु विनिमय के मार्ग में दोहरे संयोग का अभाव, मूल्य मापन की समस्या,
विभाजन की समस्या, मूल्य संचय की समस्या, स्थगित भुगतानों की समस्या तथा मूल्य
हस्तान्तरण की समस्यायें थीं।
👉 वे मुद्राएँ जिन्हें
सरकार चलन का अधिकार देती है अथवा जिन्हें स्वीकार करने के लिए व्यक्ति को कानूनी तौर
पर बाध्य किया जा सकता है, चलन कहलाती है।
👉 चलन में सामान्यतया
कागज के नोट और धातु के सिक्के आते हैं।
👉 मुद्रा में सभी प्रकार की मुद्रायें सम्मिलित किये जाते हैं जबकि चलन
में केवल वैधानिक मुद्रायें ही सम्मिलित की जाती है।
👉 सभी मुद्रायें वैधानिक
नहीं होती लेकिन चलन सदैव वैधानिक होता है।
👉 मुद्रा को अंग्रेजी में Money कहते हैं जो लैटिन भाषा के शब्द Moneta
से बना है, इसी से इसका नाम धीरे-धीरे Money पड़ गया।
👉 प्रो० मार्शल के अनुसार मुद्रा में वे सभी वस्तुयें सम्मिलित है जो
संदेह अथवा विशेष जाँच के बिना वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने तथा खर्चों को चुकने
के साधन के रूप में साधारणतया प्रचलित रहती है।
👉 हार्टले विदर्स के
अनुसार, मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करे।
👉 क्राउथर के अनुसार, मुद्रा वह वस्तु है जो विनिमय
के साधन के रूप में सामान्यतः स्वीकार्य होती है। साथ ही मूल्य के मापक और संचय के
आधार का कार्य करती है।
👉 मुद्रा के चार कार्य
हैं- माध्यम, मापक, संचय, आधार ।
👉 मुद्रा के आकस्मिक
कार्य-
♥️ साख का आधार
♥️ पूँजी का निर्माण
♥️ राष्ट्रीय आय का वितरण
♥️ उत्पादन एवं कार्य क्षमता
में वृद्धि
♥️ शोधन क्षमता का मूल्यांकन
♥️ इच्छा का वाहक
♥️ सीमान्त उपयोगिता का लाभ
👉 प्रो० मार्शल के
अनुसार, मुद्रा वह धुरी है जिसके चारों ओर सम्पूर्ण आर्थिक विज्ञान चक्कर लगाता है।
👉 ट्रेस्काट के शब्दों
में- यदि मुद्रा हमारी अर्थव्यवस्था का हृदय नहीं तो रक्त स्रोत अवश्य ही है।
👉 मिल के शब्दों में आधुनिक अर्थतन्त्र में मुद्रा
से कम महत्व की कोई वस्तु नहीं है।
मुद्रा का महत्व :
(1) विनिमय को आसान बनाना
- मुद्रा विनिमय का एक महत्वपूर्ण साधन है। मुद्रा के द्वारा ही वस्तुओं का लेनदेन
होता है।
(2) पूँजी का निर्माण- मुद्रा
से पूँजी निर्माण आसान हो जाता है। पूँजी का संचय मुद्रा के रूप में ही किया जाता है।
(3) मुद्रा की सहायता से पूँजी
की गतिशीलता बनी रहती है। मुद्रा का प्रवाह एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से होता
है।
(4) साख का आधार - मुद्रा साख
का आधार भी है। ऋणों का लेन-देन मुद्रा में ही होता है।
(5) मुद्रा पूँजीवाद का भी
आधार है।
(6) मुद्रा के द्वारा ही अन्तर्राष्ट्रीय
व्यापार किया जाता है। अतः मुद्रा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को सरल बनाता है।
(7) मुद्रा प्रगति का सूचक
भी है।
(8) मुद्रा के द्वारा वस्तु
विनिमय प्रणाली के दोष को समाप्त किया जा चुका है। जब मुद्रा का प्रादुर्भाव नहीं था,
तब वस्तुओं का आदान- प्रदान विनिमय के माध्यम से ही होता था। अतः मुद्रा वस्तु विनिमय
प्रणाली के दोषों को दूर करता है।
मुद्रा के प्रमुख दोष-
(1) इससे मुद्रा स्फीत का जन्म
होता है जिसे महंगायी बढ़ती है।
(2) समाज में असमानता की जन्म
होता है। धनी और निर्धन वर्ग का उदय होता है।
(3) भ्रष्टाचार बढ़ता है।
(4) क्रय शक्ति का केन्द्रीयकरण
होता है।
(5) सामर्थ्य से अधिक ऋण लेने
की प्रवृत्ति बढ़ती है।
(6) व्यापार चक्र के कुप्रभाव का उदय होता है।
👉 प्रतिनिधि मुद्रा
वह मुद्रा है जो अपने पीछे रखे गये कोषों का प्रतिनिधि करती है।
👉 परिवर्तनशील मुद्रा
वह मुद्रा है जिसे सरकार अथवा निर्गमन संस्था निश्चित मूल्य के बदले परिवर्तित करने
का कार्य करती है।
👉 वैधानिक मुद्रा सरकारी
मान्यता प्राप्त होती है।
👉 प्रधान मुद्रा वह
मुद्रा होती है, जिसके द्वारा देश में विनिमय होता है।
👉 सहायक मुद्रा वह
मुद्रा होती है जिसे प्राय: छोटे भुगतानों को सम्पन्न करने लिए अंशों में विभक्त कर
दिया जाता है।
👉 मुद्रामान से तात्पर्य
मौद्रिक व्यवस्था को चलाना एवं नियंत्रित करना होता है।
👉 मुद्रामान के भेद
- धातुमान, स्वर्णमान, रजतमान, पत्रमान, अन्य मान।
👉 एक धातुमान के अन्तर्गत
देश में केवल एक ही धातु मुद्रा के लिए प्रयोग की जाती है।
👉 स्वर्णमान या रजतमान
ही संसार में एक धातुमान के रूप में प्रचलित रहे हैं।
👉 रजतमान उस मौद्रिक
व्यवस्था को कहते हैं जिसमें चाँदी के सिक्के चलन में होते हैं।
👉 भारत में 1853 में
रजतमान अपनाया गया।
👉 भारत में चलायमान
चाँदी के एक रुपये के सिक्के का वजन 180 ग्रेन था।
👉 भारत में 1893 में
रजतमान का त्याग कर दिया गया।
👉 द्विधातुमान में
दो धातुओं की प्रधान मुद्रायें चलन में होती हैं।
👉 बहुधातुमान के अन्तर्गत
कई धातुओं के सिक्के एक साथ प्रचलित होते हैं।
👉 पत्र मान को प्रादिष्टमान
(Fiat Money) भी कहते हैं। इसके अन्तर्गत कागज की मुद्रा चलती है जो कि प्रधान मुद्रा
होती है। यह पूर्णतया सरकार की साख पर चलती है। इसलिए इसे साखमान (Credit
standard) भी कहते हैं।
👉 वर्तमान में भारत
में पत्रमान व्याप्त है।
👉 स्वर्णमान मुद्रा
का वह रूप है जिसमें सोने के सिक्के चलन में होते हैं।
👉 सर्वप्रथम 1816 में
ग्रेट ब्रिटेन में स्वर्णमान को अपनाया।
👉 स्वर्णमान का युग
1900 से 1914 तक रहा।
👉 स्वर्णमान को स्वर्ण
टंकमाण (Gold Gin Standard), पूर्ण स्वर्णमान (Full Gold Standard) कट्टर स्वर्णमान
(Orthe dox gold Standard) कई नामों से जाना जाता है।
👉 स्वर्ण धातुमान को
सर्वप्रथम 1925 में ग्रेट ब्रिटेन ने अपनाया।
👉 भारत ने इस प्रणाली
को 1927 में अपनाया।
👉 ब्रिटेन, अमरीका
तथा फ्रांस ने 1936 में एक त्रिपक्षीय मौद्रिक समझौता किया और एक नयी मौद्रिक प्रणाली
को अपनाया जिसे स्वर्ण निधिमान (Gold Reserve Standard) कहते हैं।
👉 1939 में यह प्रणाली
समाप्त हो गयी।
👉 ग्रेशम में नियम
के अनुसार खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलने से बाहर कर देती है। यह परिभाषा सन्
1560 में राज्य पत्र के अनुसार है।
👉 Bad Money
drives good Money out of Cirrculation - Sir T. Gresham.
मुद्रा पूर्ति अवधारणा (Money Supply Concept)
👉 मुद्रा एक व्यष्टिभावी
अवधारणा है न की मुद्रा पूर्ति एक विस्तृत अवधारणा है।
👉 Money in Theory
of Finance की रचना 1960 में जान जी गर्ले एवं एडवर्ड डी शाह ने की है।
👉 गर्ले एवं शाह ने
वाह्य मुद्रा तथा आन्तरिक मुद्रा दोनों को सम्मिलित करने की बात की।
👉 वाह्य मुद्रा एक
तरह से प्राथमिक मुद्रा है जो सरकार द्वारा सृजित वस्तु मुद्रा या आधार मुद्रा पर पूर्णतया
आधारित रहती है।
👉 आन्तरिक मुद्रा वह
मुद्रा है जो गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थों द्वारा सृजित है जिस पर सरकार या बैंकिंग
व्यवस्था का कोई प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं है।
👉 Red Cliff
Committee की रिपोर्ट का प्रकाशन 1959 में हुआ है। इससे मुद्रा पूर्ति विश्लेषण, उसके
नियंत्रण, तथा मौद्रिक नीति के लिए नई गति व दिशा मिली।
👉 Time deposit को
Non Monetary liability के रूप में देखा जाता है जबकि अन्य विकसित देशों में इसे
Quasi Money के रूप में देखते हैं।
👉 भारत में मुद्रा
पूर्ति से सम्बन्धित विवरण-
♥️ MS = CRBI
+ DDCB + ODRBI जिसमें CRBI = नोट + सिक्के जो
RBI द्वारा निगर्मित हैं।
♥️ DDCB व्यापारिक
बैंकों की समस्त माँग जमायें।
♥️ ODRBI अन्य जमायें।
👉 RBI के द्वितीय वर्किंग
ग्रुप की रिपोर्ट 1977 के अनुसार तरलता अंश के आधार पर मुद्रा स्टाक को चार भागों में
बाँटा गया है।
👉 मुद्रा की क्रय शक्ति
एवं सामान्य कीमत स्तर में विपरीत सम्बन्ध होता है।
👉 फिशर अपने समीकरण
MP = PT में MS पक्ष पर विशेष जोर देते हैं।
👉 पीगू के अनुसार `P=\frac M{KR}\{C+h\left(1-c\right)\}`
👉 राबर्टसन के अनुसार
M = KTP
👉 A tract on
Money Reform के लेखक कीन्स हैं।
👉 कीन्स का वास्तविक शेष सभी० `P=\frac n{K+rk}`
👉 कैम्ब्रिज अर्थशास्त्री
पूर्ति की तुलना में मुद्रा की माँग पर विशेष जोर दिये।
👉 फ्रीडमैन के अनुसार मुद्रा की माँग M = (P,Y.`\frac{1}2\frac{dp}{dt}`rb, re, w, u)
👉 मुद्रा परिमाण पर
शिकागो स्वरूप फ्रीडमैन ने प्रस्तुत किया।
👉 पैटिन्किन ने वास्तविक
शेष प्रभाव सिद्धान्त प्रस्तुत किया।
👉 पैटिन्किन के अनुसार Md = P f (Y,r, M/P)
👉 फिशर के अनुसार मुद्रा
तथा साख मुद्रा के बीच एक निश्चित सम्बन्ध होता है।
👉 कैम्ब्रिज समीकरण M = PKR जिसमें `P=\frac M{KR}`
👉 फिशर तथा पीगू के समीकरण में, फिशर P को मूल्य मानते हैं तथा पीगू P को मुद्रा ।
👉 मुद्रा पूर्ति की
नवीन अवधारणा -
♥️ M1 = C+
DD+OD
♥️ M2 = M1
+ Post office Saving deposit
♥️ M3 = M1
+ All time doposits of CBs.
♥️ M4 = M3 + Post office Saving deposits,
साख गुणक (Credit
Maltipler)`K=\frac1{C+r(1-C)}`
👉 उदारीकरण के परिप्रेक्ष्य
में हो रहे वित्तीय सुधारों के परिप्रेक्ष्य में सर्वेक्षण के विश्लेषणात्मक पहलुओं
की जाँच के लिए RBI ने दिसंबर 1997 में डॉ. Y. V. Reddy की अध्यक्षता में कार्यदल का
गठन गया। इस कार्यदल ने अपनी रिपोर्ट 23 June, 1998 को RBI को सौपी। इस कार्यदल ने
त्रैमासिक वित्तीय क्षेत्रक समीक्षा (Financial Sector Survery) प्रकाशित करने के विस्तृत
मौद्रिक मूल्यांकन हेतु 4 मौद्रिक सूचकों (M1, M2, M3,
M4) और 3 तरलता सूचकों को प्रकाशित करने की सिफारिश की। कार्यदल का मानना
था कि प्रचलित मौद्रिक सूचक वास्तविक वित्तीय स्थिति का निरुपण नहीं करते हैं क्योंकि
वर्तमान में वाणिज्यिक बैंक Commercial Papers शेयरों और Debentures में भारी मात्रा
में निवेश करते हैं जो वाणिज्यिक ऋण होता है। इस कार्यबल के अनुसार मुद्रापूर्ति के
विभिन्न सूचक इस प्रकार होने चाहिए -
M₁ = जनता के पास मुद्रा +
बैकों की माँग जमाएँ + RBI के पास अन्य जमाएँ।
M2 = M₁ + पोस्ट
ऑफिस के पास बचत बैंक जमाएँ
M3 = M₁+ बैंकों
की सावधि जमाएँ ।
M4 = M3
+ डाकघरों की समग्र जमाएँ ।
👉 मुद्रापूर्ति के
उपर्युक्त मापों में M1 सर्वाधिक तरल है क्योंकि यह किसी समय बिन्दु पर
विनिमय माध्यम के रूप में प्रयुक्त होता है। M1 की अपेक्षा M2
कम तरल होता है। इसमें पोस्ट ऑफिस की बचत जमा शामिल होती है, जो बैंकों की माँग जमा
से कम तरल होती है। अतः जैसे-जैसे हम M1 से M2, M3,
M4, को और बढ़ते जाते हैं। मुद्रा की तरलता कम होती है। अतः मौद्रिक मापों
में M1 सर्वाधिक तरल व संकीर्ण और M3 सबसे कम तरल व विस्तृत
(Brodader) होती है।
👉 मुद्रा परिमाण सिद्धान्त
इस बात की व्याख्या करता है कि यदि अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा दी हुई है तो
उसका मूल्य क्या होगा।
👉 मुद्रा के आन्तरिक मूल्य से तात्पर्य अर्थव्यवस्था में मूल्य स्तर के आधार पर वस्तुओं व सेवाओं की खरीदी गयी मात्रा में से है।
👉 मुद्रा का मूल्य `MV=\frac1P`
👉 मुद्रा परिणाम सिद्धान्त
का सर्वप्रथम प्रतिपादन डेविड ह्यूम ने किया।
👉 प्रो0 इरविंग फिशर
ने 1911 में मुद्रा के नकद लेन-देन उपागम्य (Transaction approach) सिद्धान्त का प्रतिपादन
किया है।
👉 प्रो० फिशर का समी. MV = PT तथा नयी समी. MV+M'V' = PT
👉 फिशर के बाद मुद्रा
परिमाण का दूसरा रूप कैम्ब्रिज नकद शेष उपागम्य (Cash Balance approach) के नाम से
जाना जाता है।
👉 कैम्ब्रिज उपागम्य
का प्रतिपादन प्रो० मार्शल, प्रो0 पीगू तथा राबर्टसन ने किया है।
👉 वास्तविक शेष प्रभाव
(Real Balance Effect) का प्रतिपादन डा० पैटिन्किन ने किया।
👉 संस्थागत उपागम्य
के रूप में गर्ले एवं शाह ने सामान्य तरलता, गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थों तथा आन्तरित
व वाह्य मुद्रा से सम्बन्धित विश्लेषण प्रस्तुत किया।
👉 नये समीकरण `P=\frac{MV+M^'V^'}T`
👉 कैम्ब्रिज उपागम्य
= M = PKT
👉 प्रो० मार्शल के
अनुसार समी. M = kPY
👉 कीन्स के अनुसार
n = PK
👉 मुद्रा परिणाम सिद्धान्त
विश्लेषण में मुद्रा की इकाई माँग लोच निहित है।
👉 कीन्स का पहला मौलिक
समीकरण अर्थव्यवस्था में उपभोग वस्तु के मूल्य निर्धारण से सम्बन्धित है।
👉 कीन्स का दूसरा मौलिक
समीकरण अर्थव्यवस्था के सामान्य मूल्य स्तर के निर्धारण व विश्लेषण से सम्बन्धित है।
👉 ब्याज के तरलता अधिमान
सिद्धान्त का प्रतिपादन कीन्स ने किया है।
👉 बॉण्ड उन प्रतिभूतियों
को कहते हैं जिन पर अंकित राशि खरीदने वाले को देनी पड़ती है।
👉 केन्स के अनुसार
ब्याज एक पूर्णतः मौद्रिक घटना है।
👉 तरलता जाल की स्थिति
में अनिश्चितता के कारण पूँजी हानि की अत्यधिक सम्भावना रहती है।
👉 तरलता जाल की दशा
में ब्याज दर गिरकर निम्नतम हो जाती है।
👉 इस दशा में मुद्रा
की मात्रा को चाहे जितना क्यों न बढ़ा दिया जाये, ब्याज दर अपरिवर्तित रहती है।
👉 इस स्थिति में मुद्रा
की माँग अनन्त होती है।
👉 तरलता जाल की दशा
में Bond के मूल्य अधिकतम होते हैं।
👉 इस स्थिति को केन्स
ने आर्थिक स्थिरता की दशा कहा है।
👉 कीन्स के तरलता जाल
के विरोध में प्रो. पीगू का तर्क पीगू प्रभाव के नाम से जाना जाता है।
👉 जैसे-जैसे विनियोग
बढ़ता है MEC घटती जाती है।
👉 जब MEC में वृद्धि
होती है तब IS रेखा दाहिनी और खिसक जाती है।
👉 The quantity
theory of Money, A restatement के लेखक फ्रीडमैन हैं।
👉 फ्रीडमैन के अनुसार
QTM मुद्रा की माँग का सिद्धान्त है।
👉 Money, intrest
& Price के लेखक डा. पैटिन्किन हैं।
👉 फ्रान्सीसी अर्थशास्त्री
आफ्तालियों द्वारा R = QP दिया गया है।
👉 हिक्स तथा हेन्सन
ने वास्तविक (IS) तथा मौद्रिक (LM) क्षेत्रों को समन्वित करके एक निर्धार्य ब्याज दर
निर्धारण का सिद्धान्त दिया।
👉 वास्तविक शेष प्रभाव
(Real Balance effect) का प्रतिपादन डा. पेटिन्किन ने किया है।
👉 पेटिन्किन की सबसे
पहली और सबसे बड़ी मान्यता यह है कि मुद्रा पूर्ति (MS) मौद्रिक तथा गैर मौद्रिक दोनों
रूपों में है।
👉 Money in theory
of Finance की रचना जान जी गर्ले एवं शाह ने किया है।
👉 मिल्टन, फ्रीडमैन
ने अपने मुद्रा परिमाण सिद्धान्त में Human & NonHuman Wealth जैसी नयी संकल्पनाओं
का माँग फलन में प्रयोग किया।
👉 मिल्टन फ्रीडमैन
के विश्लेषण में मुद्रा की माँग को पोर्टफोलियो संरचना (Port Folio Composition) के
ढाँचे में रखा जा सकता है।
👉 A Monetary
History of U.S.A. (1867-1960) नामक ग्रन्थ को फ्रीडमैन ने प्रस्तुत किया।
👉 फ्रीडमैन के अनुसार
"A Mild inflation is no inflation. "
👉 फ्रीडमैन के अनुसार
मांग और पूर्ति का ब्याज दर से कोई सम्बन्ध नहीं है।
👉 जेम्स टोबिन मूलतः
केन्सीय परम्परा के एक नव केन्सीयन मौद्रिक अर्थशास्त्री हैं।
👉 टोबिन के अनुसार
वास्तविक शेष की माँग तीन बातों पर निर्भर करती है-
♥️ अर्थव्यवस्था का आय स्तर
♥️ पूँजी की सम्पूर्ण माँग
♥️ पूँजी पर लगान
👉 Money in a
growth model की रचना एच.जी. जान्सन ने किया है।
👉 गैर बैंकिंग वित्तीय
संस्थाओं की चर्चा सर्वप्रथम गर्ले एवं शाह ने की है।
👉 वाह्य मुद्रा, पूर्णरूपेण
वस्तु मुद्रा है।
👉 आन्तरिक मुद्रा गैर
बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थों द्वारा किसी व्यक्तिगत ऋण के बदले सृजित की जा सकती है।
👉 गर्ले एवं शाह ने मुद्रा तटस्थता विवाद को एक नया मोड़ दिया।