9.PGT समउत्पाद वक्र (Iso Product Curve)

समउत्पाद वक्र (Iso Product Curve)

♥️ समउत्पाद वक्र उपभोग के उदासीनता वक्र की भांति होते हैं।

♥️ जिस प्रकार उदासीनता वक्र दो वस्तुओं के विभिन्न संयोगों से उपभोक्ताओं को प्राप्त होने वाली समान सन्तुष्टि को स्पष्ट करता है, ठीक उसी प्रकार सम उत्पाद वक्र दो उत्पत्ति के साधनों के विभिन्न संयोगों से उत्पादक को प्राप्त होने वाले एक समान उत्पादन स्तर को बताता है।

♥️ सम उत्पाद वक्र को उत्पादन उदासीनता वक्र भी कहते हैं।

♥️ समोत्पाद रेखा दो संयोगों के उन सम्भावित संयोगों को बताती है जो कि एक समान कुल उत्पादन प्रदान करते हैं।

♥️ समोत्पाद वक्र विश्लेषण करने का श्रेय प्रो० फ्रिश, स्नीडर, हिक्स, कार्लसन तथा प्रो० के० ई० वोल्डिंग को दिया जाता है।

♥️ समोत्पाद वक्र दो साधनों के उन संयोगों को दिखाता है जिनसे उत्पादक को समान उत्पत्ति मिलती है।

♥️ समोत्पाद वक्र को निम्न नामों से भी जाना जाता है -

👉 Equal Product Curve

👉 ISO, Product Curve

👉 ISO, quant Curve

♥️ समोत्पाद वक्र का ढाल ऋणात्मक तथा मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होता है।

♥️ समोत्पाद वक्र में तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर

`MRTS=\frac{\Delta Y}{\Delta X}`

∆Y = जिसमें पूंजी के उपयोग में परिवर्तन

∆X = श्रम के उपयोग में परिवर्तन

♥️ समोत्पाद रेखायें मूल बिन्दु के प्रति उन्नतोदर होती है।

♥️ समोत्पाद रेखा की यह विशेषता घटती हुई सीमान्त तकनीकी प्रतिस्थापन दर (DMRTS) पर आधारित है।

♥️ आइसो क्वान्ट (ISO quant) कभी भी एक दूसरे को काटती नहीं है। 

♥️ सम लागत रेखा अथवा कीमत रेखा- उत्पादक द्वारा कुल व्यय द्वारा दोनों उत्पत्ति के साधनों की अधिकतम मात्रा की ओर संकेत करती है।

♥️ रिज रेखायें (Ridge Lines) उत्पादन के आर्थिक क्षेत्र की सीमाएं हैं।

♥️ तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर एक समोत्पाद रेखा के ढाल को मापती हैं।

♥️ साधन कीमत रेखा का ढाल `=\frac{P_x}{P_y}` इसका चिन्ह ऋणात्मक होता है।

अर्थात `=\frac{-P_x}{P_y}`

♥️ उत्पत्ति के साधन पूर्ण स्थानापन्न होते हैं तब तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर (MRTS) स्थिर होगी और समोत्पाद रेखा एक ऋणात्मक ढाल वाली सीधी रेखा होगी।

♥️ साधन कीमत प्रभाव = उत्पादन प्रभाव + तकनीकी प्रतिस्थापन प्रभाव।

♥️ अनुपात का विचार अल्पकालीन है, जबकि पैमाने का विचार दीर्घकालीन है।

♥️ बढ़ते हुए पैमाने के प्रतिफल उस समय उत्पन्न होते हैं जब सभी उत्पत्ति साधनों को एक ही अनुपात में बढ़ाने पर उत्पादन अधिक अनुपात में बढ़ता है।

♥️ जब कभी उत्पत्ति के साधनों को एक अनुपात में बढ़ाने पर उत्पादन के ठीक उसी अनुपात में वृद्धि होती है तो इसे स्थिर पैमाने के प्रतिफल कहते हैं।

♥️ जब सभी उत्पत्ति के साधनों को एक अनुपात में बढ़ाया जाता है और उत्पादन इस अनुपात से कम बढ़ता है तो इसे ह्रासमान पैमाने के प्रतिफल कहते हैं।

♥️ समोत्पाद वक्र का ढाल सदैव ऋणात्मक होता है।

♥️ समोत्पाद वक्र की तकनीकी प्रतिस्थापन `MRTS=\frac{\Delta Y}{\Delta X}`

♥️ उत्पादन के साधनों की पूर्ण स्थानापन्नता की दशा में समोत्पाद वक्र का ढाल 'L' के आकार का होता है।

♥️ पूर्ण स्थानापन्नता होने की दशा में साधन की प्रतिस्थापन लोच अनन्त होती है।

♥️ साधनों के पूरक होने की दशा में साधन की प्रतिस्थापन लोच अनन्त होती है।

♥️ मूल बिन्दु से खींची गयी कोई भी रेखा पैमाने को बताती है।

♥️ उत्पत्ति के साधन पूर्ण स्थानापन्न नहीं होते जिसके कारण सीमान्त उत्पादन में कमी आती है।

प्रतिस्थापन की लोच

♥️ X तथा Y वस्तुओं के संयोग अनुपात में हुआ परिवर्तन / X तथा Y वस्तुओं के कीमत अनुपात में हुआ आनुपातिक परिवर्तन

♥️ जब दो वस्तुओं एक दूसरे की पूर्ण स्थानापन्न होती हैं तो प्रतिस्थापन की लोच असीमित मानी जाती है।

`\left(E_s=\infty\right)` 

♥️ जब दो वस्तुयें एक दूसरे से बिल्कुल ही प्रतिस्थापित की जाती हैं तो उनके प्रतिस्थापन की लोच शून्य होती है। (Es=0)

♥️ जब X तथा Y वस्तुयें एक दूसरे से अच्छी तरह स्थानापन्न हैं तब (Es> 1) प्रतिस्थापन की लोच एक से अधिक होती है।

♥️ जब X तथा Y वस्तुयें एक दूसरे की स्थानापन्न नहीं होती तब ऐसी स्थिति में उनके मध्य प्रतिस्थापन की लोच (Es < 1) होती है।

♥️ साधन कीमत प्रभाव = उत्पादन प्रभाव + तकनीकी प्रतिस्थापन प्रभाव ।

♥️ दीर्घकाल में प्राप्त होने वाली आन्तरिक एवं वाह्म बचतें घटती-बढ़ती रहती हैं।

♥️ आन्तरिक एवं वाह्य बचतों के कारण पैमाने के प्रतिफल बढ़ते हैं।

♥️ मुद्रा लागत दो प्रकार की होती है - स्पष्ट लागते तथा सन्निहित लागते।

♥️ स्पष्ट लागतें (Explicit Cost) वे लागतें हैं जो उत्पादक द्वारा उत्पत्ति के अनेक साधनों को एकत्रित करने में प्रत्यक्ष रूप से व्यय की जाती है। जैसे मजदूरी, कच्चे माल, ब्याज आदि के भुगतान पर व्यय।

♥️ सन्निहित लागतें में उत्पादक के वे व्यय सम्मिलित होते हैं जिनका उत्पादक को प्रत्यक्ष रूप से भुगतान नहीं करना पड़ता । जैसे-उत्पादक की अपनी स्वयं की मजदूरी, स्वयं की पूंजी पर ब्याज उत्पादन प्रक्रिया में संलग्न भवन का किराया इत्यादि ।

♥️ स्थिर लागत को पूरक लागत तथा परिवर्तनशील लागतों को प्रमुख लागतों के नाम से जाना जाता है।

♥️ वास्तविक लागत का अर्थ उन सब कष्टों, प्रयत्नों तथा त्याग से है जो किसी वस्तु के उत्पादन में उठाने पड़ते हैं।

♥️ प्रो० मार्शल ने वास्तविक लागत को सामाजिक लागत कहा है।

♥️ अवसर लागत कष्ट तथा त्याग पर आधारित प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के सन्देहात्मक तथा दोषपूर्ण वास्तविक लागत के विचार को आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने परित्याग कर उसके स्थान पर अवसर लागत की धारणा प्रस्तुत की।

♥️ अवसर लागत को निम्न नामों से भी जाना जाता है-

👉 वैकल्पित लागतें Alternative Cost

👉 विस्थापित लागत Displaced Cost

👉 हस्तान्तरण आय Transfer earning

👉 हस्तान्तरण लागत Transfer Cost

♥️ किसी निश्चित वस्तु की अवसर लागत वह उत्तम लागत वैकल्पित है जिसका परित्याग कर दिया जाता है।

♥️ मुद्रा के रूप में अवसर लागत को हस्तान्तरण आय या कीमत या लागत कहते हैं।

♥️ अवसर लागत की धारणा सभी प्रकार के साधनों तथा सभी प्रकार के उद्योगों पर समान रूप से लागू होती है।

♥️ यदि किसी साधन का एक ही प्रयोग संभव है अर्थात वह पूर्णतया विशिष्ट है तो उसके द्वारा उपयोग के अभाव में उस साधन की अवसर लागत शून्य होगी।

♥️ मुद्रा के रूप में अवसर लागत को व्यक्त करते समय इसमें स्पष्ट लागतें तथा अव्यक्त लागतें दोनों को शामिल किया जाता है।

लागत के व्यवहार का विश्लेषण

🔥 लागत के व्यवहार का अध्ययन दो शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है- अल्पकाल तथा दीर्घ काल में।

🔥 अल्पकाल में लागत का अध्ययन कुल लागतें (Total Costs), औसत लागते (Average cost or Unit Costs) तथा सीमान्त लागत (Marginal Costs) शीर्षकों के अन्तर्गत किया जाता है।

🔥 कुल लागत (Total Cost) किसी दी हुई उत्पादन मात्रा का उत्पादन करने में जो व्यय होता है उसे कुल लागत कहते हैं। कुल लागत में दो लागते सम्मिलित रहती है। स्थिर या पूरक लागत तथा परिवर्तनशील या प्रमुख लागत

🔥 स्थिर लागत या पूरक लागत (Fixed Cost of Supplementary Cost) स्थिर लागत के लागत हैं जिसकी कुल राशि अल्प काल में उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने पर पूर्णतया अपरिवर्तित रहती है।

🔥 उत्पादन की मात्रा शून्य होने पर भी स्थिर लागत धनात्मक होती है।

🔥 स्थिर लागत में सामान्यतया निम्नलिखित व्यय सम्मिलित रहते हैं यथा प्रारंभिक खर्चे, स्थायी पूंजी के व्यय, व्यवस्थापकों के वेतन, ऋण पत्रों पर ब्याज, मशीनों पर ह्मस।

🔥 परिवर्तनशील या प्रमुख लागत - प्रो० मार्शल इसे प्रमुख लागत (Prime Cost) कहा है।

🔥 'कुल परिवर्तनशील लागत उत्पादन का वह अंग है जो उत्पादन की मात्रा के साथ घटता बढ़ता रहता है।

🔥 यदि किसी कारणवश कारखाना (Factory) बन्द हो जाती है तो परिवर्तनशील लागत शून्य हो जाती है।

🔥 आधारित प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के सन्देहात्मक तथा दोषपूर्ण वास्तविक लागत के विचार को आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने परित्याग कर उसके स्थान पर अवसर लागत की धारणा प्रस्तुत की।

🔥 अवसर लागत को वैकल्पित लागत (Alternative Cost), विस्थापित लागत (Displeced Cost), हस्तान्तरण आय (Transfer earning) अथवा हस्तान्तरण लागत (Transfer cost) आदि नाम से पुकारा जाता है।

🔥 किसी निश्चित वस्तु की अवसर लागत वह उत्तम वैकल्पित है जिसका परित्याग कर दिया जाता है।

🔥 मुद्रा के रूप में अवसर लागत को हस्तान्तरण आय या कीमत या लागत कहते हैं।

🔥 अवसर लागत की धारणा सभी प्रकार के साधनों तथा सभी प्रकार के उद्योगों पर समान रूप से लागू होती है।

🔥 यदि किसी साधन का एक ही प्रयोग संभव है अर्थात वह पूर्णतया विशिष्ट है तो उसके दूसरे उपयोग के अभाव में उस साधन की अवसर लागत शून्य होगी।

🔥 मुद्रा के रूप में अवसर लागत को व्यक्त करते समय इसमें 'स्पष्ट लागतें' तथा अव्यक्त लागतें दोनों को शामिल किया जाता है।

🔥 यदि उत्पादन की मात्रा शून्य है तब लागत भी शून्य के बराबर होगी।

🔥 स्थिर लागतों को 'सामान्य लागतें', 'पूरक लागतें', 'अचल लागतें" परोक्ष लागते, ऊपर की लागतें, उपरिव्यय लागतें तथा अपरिवर्तनशील लागतें भी कहते हैं।

🔥 कुल परिवर्तनशील लागत (TVC) की वृद्धि दर उत्पत्ति के नियमों से होती है।

🔥 TFC रेखा OX रेखा के समानान्तर है जो यह प्रदर्शित करती है कि उत्पादन की मात्रा के परिवर्तन होने पर स्थिर लागत में कोई परिवर्तन नहीं है।

🔥 TC & TFC का अन्तर ही (बीच का अन्तर ही) परिवर्तनशील (VC) का द्योतक है।

🔥 कुल लागत (TC) मुख्य रूप से परिवर्तनशील लागत (VC) पर निर्भर करती है, स्थिर लागतों पर नहीं।

🔥 उत्पादन स्थिर एवं परिवर्तनशील लागतों दोनों का सम्मिलित परिणाम है।

🔥 TVC उत्पादन की मात्रा के साथ बदलती रहती है जबकि कुल स्थिर लागत (TFC) का उत्पादन की मात्रा से कोई सम्बन्ध नहीं है।

🔥 TC = TFC + TVC यह अल्पकाल की दशा का योग है।

🔥 प्रारम्भ में FC स्थिर रहती है और VC तेजी से बढ़ती है पर जब उद्योग का आकार बड़ा हो जाता है तो आन्तरिक एवं बाह्य बचतें प्राप्त होने के लिए VC उत्पादन के साथ आनुपातिक रूप से नहीं बढ़ती ।

🔥 स्थिर तथा परिवर्तनशील लागतों के बीच अन्तर केवल अल्पकाल में लागू होता है।

🔥 कीमत निर्धारण में स्थायी लागत और परिवर्तनशील लागत का बहुत महत्व है।

🔥 जिस बिन्दु पर कीमत (P) ठीक परिवर्तनशील लागत (VC) के बराबर होता है उसे उत्पादन बन्द होने का बिन्दु (Shutdown Point) कहते हैं।

🔥 औसत स्थिर लागत (Average Fixed Cost) औसत स्थिर लागत कुल स्थिर लागत में भाग देने से प्राप्त होती है।

`AFC=\frac{TFC}x`

🔥 औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) इस लागत को ज्ञात करने के लिए कुल परिवर्तनशील लागत में उत्पादित इकाइयों की संख्या से भाग देते हैं। यथा `AVC=\frac{TVC}x`

🔥 परिवर्तनशील अनुपातों के नियम पर आधारित होने के कारण अल्पकाल में SAC का आकर 'U' Shaped होता है।

🔥 सीमान्त लागत (M.C) एक अतिरेक इकाई का उत्पादन करने के अतिरिक्त लागत को सीमान्त लागत कहते हैं।

औसत लागत `\frac{TC}{Unit\of\Produce}`

  MC = TCn – TCn-1

🔥 जब औसत लागत गिरती है (AC) तब सीमान्त लागत (MC) इससे कम रहती है।

🔥 जब औसत लागत (AC) बढ़ती है तब सीमान्त लागत (MC) भी बढ़ती

🔥 जब AC स्थिर रहती है तब MC भी उसके बराबर होगी और ऐसी स्थिति में MC वक्र AC चक्र को सदैव उसके न्यूनतम बिन्दु पर काटता है।

🔥 जब AC गिरता है तब MC उससे नीचे गिरता है लेकिन जब AC उठता है, MC उससे ऊपर उठता है।

🔥 औसत लागत (AC) वक्र के गिरने पर MC वक्र उससे नीचे स्थिर होता है।

🔥 AC के बढ़ने पर MC वक्र उससे ऊपर स्थित होता है।

🔥 स्थिरता की अवस्था में MC वक्र, AC वक्र को सदैव उसके न्यूनतम बिन्दु पर काटता है।

🔥 दीर्घकालीन औसत वक्र (LAC) सभी अल्पकालीन औसत लागत वक्रों को स्पर्श करता हुआ बनाया जाता है इसलिए इसे आवरण वक्र (Envelop Corve) भी कहते हैं।

🔥 उत्पादन के पैमाने की बचतों (Economics) तथा हानियों (diseconomics) के कारण LAC वक्र का आकार 'U' Shaped होता है।

🔥 दीर्घकालीन औसत वक्र को 'आयोजन वक्र' (Planning Curve) कहते हैं।

🔥 LAC वक्र भिन्न-भिन्न प्लान्टों की औसत लागत को प्रकट करती है जबकि SAC वक्र केवल एक ही प्लान्ट की लागतों को प्रकट करती है।

🔥 LAC वक्र भी SAC वक्र की तरह 'U' आकार की होती हैं, परन्तु यह अपेक्षाकृत अधिक चपटी होती है।

🔥 LMC वक्र अंग्रेजी के 'U' आकार की होती है क्योंकि दीर्घकाल में FC तथा VC का अन्तर समाप्त हो जाता है।

🔥 जब LAC गिरती है LMC उससे कम होती है।

🔥 LAC के न्यूनतम बिन्दु पर LMC उसके बराबर हो जाती है।

🔥 LMC, LAC की अपेक्षा अधिक तेजी से नीचे की ओर गिरती है और अधिक तेजी से ऊपर बढ़ती है।

🔥 इष्टतम उत्पादन के बिन्दु P पर SAC = SMC = LAC = LMC

🔥 AC तथा AVC का अन्तर AFC को बताता है। MC वक्र का AC के साथ वहीं सम्बन्ध है जो AVC के साथ।

🔥 एक फर्म उत्पादन नहीं करेगी जहाँ पर MC = MR तथा MC वक्र MR वक्र को नीचे से काटेगी।

🔥 प्रत्येक उत्पादक उस बिन्दु पर मूल्य तथा उत्पादन को निश्चित करेगा, जहाँ MR = MC

🔥 यदि AR > AC तो फर्म को लाभ तथा AR < AC तो फर्म को हानि होगी।

🔥 यदि P > AVC तो उत्पादन होगा और यदि P < AVC तब उत्पादन बन्द कर दिया जायेगा।

🔥 फर्म को अधिकतम लाभ उत्पादन के उस मात्रा पर प्राप्त होता है वहाँ पर फर्म की MC = MR

🔥 MC वक्र, TVC वक्र या TC वक्र दोनों के ढाल द्वारा ज्ञात किया जाता है।

🔥 AFC वक्र का ढाल U आकार का नहीं होता।

🔥 AVC, AC, MC वक्रों का ढाल U Shaped होता है।

🔥 साधनों की अविभाज्यता का विचार श्रीमती जान राबिन्सन ने प्रस्तुत किया।

🔥 MC वक्र का AVC के साथ वही सम्बन्ध है जो AC के साथ होता है।

🔥 आयताकार परिवलय का सम्बन्ध AFC वक्र से होता है।

🔥 स्पष्ट एवं अस्पष्ट लागतें मौद्रिक लागतों का अंग है।

🔥 जब MC बढ़ती है तो AC, TC दोनों बढ़ती है।

🔥 MC = MCn = TCn - TCn-1

🔥 

🔥 MC, TVC पर निर्भर करती है स्थिर लागतों पर नहीं।

🔥 FC तथा AVC के बीच अन्तर केवल अल्पकाल में होता है।

🔥 जब MC > AC तब AC बढ़ती हैं।

     जब AC = MC तब AC स्थिर

     जब AC > MC तब AC गिरती है।

🔥 अल्पकाल में TC= TVC + TFC

     अल्प काल में AC = AVC + AFC

Post a Comment

Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare