29.PGT उद्योग (Industry)

उद्योग (Industry)

औद्योगिक नीति (Industrial Policy) स्वतन्त्र भारत की पहली औद्योगिक क्रान्ति की घोषणा 6 अप्रैल, 1948 को की गयी।

★ 6 अप्रैल, 1948 की औद्योगिक नीति में मिश्रित अर्थव्यवस्था कायम करने का सुझाव दिया गया।

★ इस औद्योगिक नीति में औद्योगिक इकाइयों को 4 भागों में विभाजित किया गया था।

★ 1948 की औद्योगिक नीति की मुख्य सफलता मिश्रित एवं नियन्त्रण अर्थव्यवस्था की नींव रखा जाना है।

★ 30 अप्रैल, 1956 को दूसरी औद्योगिक नीति की घोषणा की गयी।

★ इस औद्योगिक नीति को समाजवादी ढंग के समाज को आधार भूत सामाजिक और आर्थिक नीतियों के रूप में स्वीकार किया गया।

★ 1956 की औद्योगिक नीति में औद्योगिक इकाइयों को 3 क्षेत्रों में विभाजित किया गया।

★ प्रस्ताव 'क' में 17 उद्योगों को (पूर्ण राज्य दायित्व पर) प्रस्ताव 'ख' में 12 उद्योगों को तथा प्रस्ताव 'ग' में शेष उद्योगों को रखा गया।

★ 1956 की औद्योगिक नीति प्रस्ताव को राजनीतिक संविधान की भांति भारत का आर्थिक संविधान माना गया।

★ 23 दिसम्बर, 1977, को जनता सरकार ने औद्योगिक नीति की घोषणा की।

★ इस औद्योगिक नीति से पहली बार लघु कुटीर उद्योगों पर विशेष जोर दिया गया।

★ 23 जुलाई, 1990 को उद्योग मंत्री श्रीचरनजीत चानना ने 1956 को औद्योगिक नीति को आधार मानते और छोटे, मध्यम तथा बड़े उद्योगों की प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए इस नीति की घोषणा की।

★ उद्योग अधिनियम अक्टूबर, 1951 को पारित हुआ तथा 8 मई 1952 से लागू किया गया।

★ हजारी समिति - औद्योगिक लाइसेंस प्रणाली से सम्बन्धित है।

★ दत्त समिति - का गठन 22 जुलाई, 1966 को किया गया।

★ 18 फरवरी, 1970 को भारत सरकार ने नयी लाइसेंस नीति बनायी।

★ 1975 को औद्योगिक लाइसेंस नीति सरकार ने उदार बना दिया। सरकार ने 21 उद्योगों को लाइसेंस प्राप्त करने की छूट दे दी।

★ 1985 में राजीव गाँधी ने सरकार को लाइसेंस प्रणाली को उदार बनाने की दिशा में भारी परिवर्तन किया।

★ 30 जनवरी, 1986 को सरकार ने 23 उद्योगों को (MRTP) और (FERA) कम्पनियों को लाइसेंस से मुक्त कर दिया गया बशतें वे पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित हैं।

★ लघु स्तर इकाइयों की विनियोग की सीमा 20 लाख रुपयों से बढ़कर 35 लाख रुपये कर दी गयी तथा सहायक इकाइयों की विनियोग सीमा 35 लाख रुपयों से बढ़ाकर 45 लाख रुपये कर दिये गये।

उद्योग मंत्री श्री अजीत सिंह ने 31 मई, 1990 को जनता दल सरकार की उद्योग नीति की घोषणा की इसमें रोजगार जनक, उद्योगों के ग्रामीण क्षेत्रों में फैलाव और छोटे उद्योगों के निर्यात में भाग को बढ़ाये जाने पर बल दिया।

★ नरसिम्हा राव के नेतृत्व में स्थापित कांग्रेस (ई) की सरकार ने 24 जुलाई, 1991 की नयी औद्योगिक नीति की घोषणा की।

★ इस नई औद्योगिक नीति 18 उद्योगों के अतिरिक्त अन्य सभी को लाइसेंस की अनिवार्यता से मुक्त किया गया। इसके बाद 12 अन्य उद्योगों को भी लाइसेंस की अनिवार्यता से मुक्त किया गया।

★ अब निम्नलिखित 6 उद्योगों के लिए लाइसेंस अनिवार्य है-

(1) एल्कोहल युक्त पेयों का आवसन व शराब

(2) तम्बाकू और तम्बाकू उत्पाद

(3) इलेक्ट्रॉनिक एयरोस्पेस व रक्षा उपकरण

(4) औद्योगिक विस्फोट सामग्री (परिशिष्ट-II)

(5) औषधि और फार्मास्युटिकल (औषधि-नीति के अनुसार)

★ 1991 में एकाधिकार एवं प्रतिबन्ध व्यापार व्यवहार अधिनियम 1969 (MRTP ACT, 1969) के अन्तर्गत आने वाली कम्पनियों की परिसम्पत्ति की सीमा को समाप्त किया गया। बाद में इसके स्थान पर प्रतिस्पर्धा अधिनियम (Comptition Act, 2002) को लागू किया गया।

★ सार्वजनिक क्षेत्र के आरक्षित उद्योगों की संख्या को 17 से घटाकर 8 कर दिया गया। बाद में इसे क्रमशः कम करते हुए 3 किया गया। ये उद्योग निम्नलिखित है-

(1) परमाणु ऊर्जा

(2) परमाणु ऊर्जा आदेश (1953) की अनुसूची में विनिर्दिष्ट खनिज

(3) रेल परिवहन

★ सार्वजनिक क्षेत्र के बीमार इकाइयों के सन्दर्भ में औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड की राय लेने की नीति की घोषणा की गयी।

★ सार्वजनिक उपक्रमों को नवरत्न व मिनीरत्न का ऊर्जा दिया गया और इन उपक्रमों को दर्जे के अनुरूप प्रबन्धकीय और वित्तीय स्वायात्ता प्रदान की गयी।

★ सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश की नीति की घोषणा की गयी।

★ लघु उद्योग क्षेत्र में निवेश की सीमा को बढ़ाया गया और सेवा क्षेत्र की लघु इकाइयों को भी लघु उद्योग क्षेत्र में शामिल किया गया।

★ लघु उद्योग क्षेत्र के लिए आरक्षित मदों को अनारक्षित करने की नीति की घोषणा की गयी। आरक्षित मदों की संख्या को क्रमशः कम करके 873 से फरवरी 2008 तक 35 कर दिया गया।

योजना काल में औद्योगिक प्रगति

★ प्रथम योजना में औद्योगिक क्षेत्र में निवेश केवल 55 करोड़ रुपये था जो कुल निवेश का केवल 2.8 प्रतिशत था।

★ इस योजना में निम्नलिखित उद्योग स्थापित किये गये-

1. हिन्दुस्तान शिपयार्ड

2. हिन्दुस्तान मशीन टूल्स

3. सिंदरी उर्वरक कारखाना

4. इंटिग्रल कोच फैक्ट्री

5. नेपा मिल्स

6. हिन्दुस्तान एण्टीवायोटिक्स आदि

★ दूसरी योजना में उद्योग को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी।

★ इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्र के निम्नलिखित इस्पात कारखाने स्थापित किये गये-

1. भिलाई इस्पात संयंत्र

2. दुर्गापुर इस्पात संयंत्र

3. राउर केला इस्पात संयंत्र

★ इसके अतिरिक्त सार्वजनिक क्षेत्र में उर्वरक, रेल इंजन व डिब्बे, भारी रासायन, मशीन टूल्स, जहाज आदि का निर्माण आरम्भ किया गया।

★ तीसरी योजना में दूसरी योजना के समान ही मूलभूत और पूँजीगत उद्योगों के विकास पर बल दिया गया तथा दूसरी योजना की अधूरी योजनाओं को प्राथमिकता दी गयी।

★ चौथी योजना में औद्योगिक विकास के सम्बन्ध में निम्न उद्देश्य निश्चित किये गये-

1. उन योजनाओं को पूरा करना जिसके सम्बन्ध में पहले निर्णय किया जा चुका था।

2. वर्तमान तथा भावी विकास के लिए आवश्यक स्तरों तक औद्योगिक क्षमता में वृद्धि करना। 3. घरेलू उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए नये उद्योगों की स्थापना।

3. औद्योगिक विकास के लिए आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय को पहली बार पांचवी योजना में शामिल किया गया।

★ छठीं योजना से ही औद्योगिक उदारीकरण का श्रीगणेश माना जा सकता है क्योंकि इस योजना में औद्योगिक लाइसेंसिंग तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार दोनों ही क्षेत्रों पर सरकारी शिकंजे में ढील दी गयी।

★ सातवीं योजना में 'सूर्योदय उद्योग' (Sunrise Industries) को बढ़ावा दिया गया।

★ आठवीं योजना में 1991 में नई औद्योगिक नीति की घोषणा की गई थी। इस नीति में निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया तथा सार्वजनिक क्षेत्र का क्षेत्र सीमित किया गया।

मात्रात्मक प्रतिबंधों व लाइसेंसों के स्थान पर औद्योगिक व्यापार और राजकोषीय नीतियों में परिवर्तन का सहारा लिया गया।

लघु उद्योगों पर आबिद हुसैन समिति की सिफारिशें

★ इस समिति का गठन दिसम्बर, 1995 में किया गया तथा इसके सिफारिशों को 27 जनवरी, 1997 को सार्वजनिक रूप में घोषित किया गया। प्रमुख सिफारिशों निम्नलिखित है-

🔥 लघु उद्योगों में निवेश सीमा को मौजूदा 60/75 लाख रुपये से बढ़कर 3 करोड़ रुपया किया जाय।

🔥 लघुतर (Tiny Units) में निवेश सीमा 5 लाख रुपये से बढ़ाकर 25 लाख रुपये की जाय।

🔥 लघु उद्योगों के लिए उत्पादों के आरक्षण की व्यवस्था को समाप्त किया जाए (अक्टूबर, 2008 तक 21 उत्पादों का उत्पादन लघु उद्योगों के लिए आरक्षित था।)

🔥 लघु उद्योगों में विदेशी पूंजी निवेश की 24 प्रतिशत की मौजूदा सीमा को समाप्त किया जाए।

🔥 लघु उद्योगों के हितो को ध्यान में रखते हुए अगले पाँच वर्षों के लिए सरकार द्वारा कुल 2500 करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की जाय।

🔥 लघु उद्योगों के वित्तीयन हेतु नायक समिति की सिफारिशों को शीघ्र लागू किया जाय।

🔥 अति लघु उद्योगों को अधिकाधिक सहायता देने को एक रिवाल्विंग फण्ड की स्थापना की जाय।

🔥 सेवा क्षेत्र की लघुस्तरीय इकाइयों को भी लघु उद्योगों में शामिल किया जाय तथा लघु उद्योग क्षेत्र को लघुस्तरीय उद्यम क्षेत्र के नाम से जाना जाय ।

🔥 एक ही प्रकार के एक ही स्थान पर केन्द्रीय लघुस्तरीय उद्यम् समूहों के लिए 'क्रेडिट रेटिंग' की प्रणाली विकसित की जाय ।

मीरा सेठ समिति हथकरघा से सम्बन्धित है। प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित हैं-

🔥 समिति ने 500 करोड़ रुपये का एक राष्ट्रीय हथकरघा ऋण कोष स्थापित करने का सुझाव दिया था।

🔥 बुनकरों को हथकरघा खरीदने, हैंकयार्न पर सब्सिडी देने आदि के लिए समिति ने एक आपदा राहत योजना लागू करने की सिफारिश की थी।

सर्वाधिक उद्यम संख्या वाले पाँच राज्य

क्र०

राज्य

रोजगार

1.

तमिलनाडु

4446999 (10.56%)

2.

महाराष्ट्र

4374764 (10.39%)

3.

पं० बंगाल

4285688 (10.17%)

4.

आंध्र प्रदेश

4023411 (9.55%)

5.

उत्तर प्रदेश

4015926 (9.55%)

सर्वाधिक उद्यम संख्या वाले तीन केन्द्रशासित क्षेत्र

क्र०

राज्य

उद्यमों की संख्या

1.

दिल्ली

753795 (1.79%)

2.

चण्डीगढ़

65906 (0.16%)

3.

पांडिचेरी

49915 (0.12%)

सर्वाधिक रोजगार वाले पाँच राज्य

क्र०

राज्य

उद्यमों की संख्या

1.

महाराष्ट्र

11826566 (11.95%)

2.

तमिलनाडु

9866633 (9.97%)

3.

पं बंगाल

9318026 (9.42%)

4.

आन्ध्र प्रदेश

8870591 (8.96%)

5.

उत्तर प्रदेश

8540038 (8.63%)

सर्वाधिक रोजगार वाले तीन केन्द्रशासित क्षेत्र

क्र०

राज्य

उद्यमों की संख्या

1.

दिल्ली

4080033 (4.12%)

2.

चण्डीगढ़

251521 (0.25%)

3.

पांडिचेरी

193286 (0.20%)

उद्योग एक नजर में-

🔥 औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का आधार वर्ष 1980-81 से बदलकर 1993-94 कर दिया गया है।

🔥 लघु उद्योग केलिए अलग से औद्योगिक नीति की घोषणा सर्वप्रथम 6 अगस्त, 1991 को की गयी थी।

🔥 सूक्ष्म औद्योगिक इकाइयों के लिए निवेश की सीमा 25 लाख रु० की गयी है।

🔥 लघु औद्योगिक इकाइयों में उन इकाई को सम्मिलित किया जाता है, जिनमें प्लांट व मशीनरी में विनियोग 5 करोड़ रुपया तक निर्धारित है।

🔥 मध्यम उद्योग इकाइयों वाली के लिए यह सीमा 5 करोड़ रुपये से अधिक तथा 10 करोड़ रु० तक रखी गयी हैं।

🔥 सेवा क्षेत्र में अधिकतम 10 लाख रु० तक के निवेश की इकाई ही सूक्ष्म उपक्रम के रूप में रखी गयी है, जबकि लघु उपक्रम इकाइयों के लिए यह निवेश सीमा 10 लाख रु० से 2 करोड़ रु० तक तथा मध्यम उपक्रम के लिए 2 करोड़ रुपये से 5 करोड़ रु० तक रखी गयी है।

🔥 वर्तमान समय में गुजरात राज्य में 112 सूती वस्त्र मिले हैं, जिनमें अकेले अहमदाबाद में 66 मिलें हैं। इसे पूर्व का वोस्टन कहा जाता है। महाराष्ट्र राज्य में 104 मिलें है जिनमें मुम्बई में अकेले 54 मिले हैं। मुम्बई को सूती वस्त्री वस्त्रों की राजधानी कहा जाता है। कानपुर शहर में सूती वस्त्र की 10 मिले हैं, जिसे उत्तर प्रदेश का मानचेस्टर कहा जाता है।

🔥 कपास (सफेद सोना) उत्पादन के मामलों में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है और कपास के अन्तर्गत क्षेत्रफल की दृष्टि से प्रथम स्थान पर पहुँच गया है। देश में कपास का उत्पादन गुजरात में सबसे अधिक होता है।

🔥 लघु औद्योगिक इकाइयों की संख्या 2006-07 में 128.4 लाख थी जिनमें से 20.32 लाख पंजीकृत तथा 108.12 लाख अपंजीकृत थी।

🔥 लघु उद्योग क्षेत्र में अनुमानित रोजगार संख्या 1991-92 में 129.8 लाख थी, जो 2006-07 में बढ़कर 312.52 लाख हो गयी।

🔥 औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण बोर्ड (BIFR) की स्थापना बीमार औद्योगिक कम्पनी अधिनियम 1985 के अन्तर्गत की गयी थी। बोर्ड ने 15 मई 1987 कार्य प्रारम्भ कर दिया था।

🔥 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में उपनिवेश का दौर 1991-92 से प्रारम्भ हुआ।

🔥 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों पर वित्तीय भार कम करने के उद्देश्य से सरकार ने इनके कर्मचारियों के लिए एकमुश्त राशि देकर एच्छित सेवा निवृत्ति की योजना प्रारम्भ की है। इसे 'गोल्डेन हैड शेक स्कीम' कहा गया है।

🔥 31 मार्च, 2008 की स्थिति के अनुसार केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के 242 उपक्रम थे। इनमें संचयी निवेश 455409 करोड़ रुपये का था। निवेश में सबसे बड़ा हिस्सा सेवा क्षेत्र (40.40 प्रतिशत) का था।

🔥 लाभ कमाने वाले 160 केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का निवल लाभ 2007-08 में 91083 करोड़ रुपये था। घाटे पर चलने वाले 53 उपक्रमों का निवल घाटा 11274 करोड़ रुपये था। इनमें भारतीय उर्वरक निगम की हानि (1504 करोड़ रुपये) सर्वाधिक था।

🔥 (CPSE) ने 2007-05 के दौरान 74283 करोड़ रुपये की विदेश मुद्रा अर्जित की थी।

🔥 सरकार ने लघु उद्योग क्षेत्र की वित्त सम्बन्धी एवं रुग्णता सम्बन्धी समस्याओं के मूल्यांकन के लिए नायक समिति का गठन किया था; जिसने अपनी रिपोर्ट सितम्बर, 1992 में प्रस्तुत की गयी थी।

🔥 वर्ष 2007-08 में 52.7 लाख पर्यटकों का भारत आगमन हुआ जिनसे लगभग 11666 मिलियन डालर की विदेशी मुद्रा अर्जित की गयी। वर्ष 2008-09 (अप्रैल-जनवरी) के दौरान 41.6 लाख पर्यटक भारत आये जिनसे 8753 मिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा अर्जित की गयी थी।

🔥 वर्तमान में निम्नलिखित तीन (3) उद्योगों को सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित रखा गया है (1) परमाणु ऊर्जा (2) रेल परिवहन (3) परमाणु ऊर्जा के अनुसूची में निर्दिष्ट खनिज। 9 मई, 2001 के मन्त्री मण्डलीय निर्णय के अनुसार सरकार ने सुरक्षा उत्पादन के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के प्रवेश को अनुमति दे दी है जिसके लिए कम्पनी को रक्षा मंत्रालय से लाइसेंस लेना पड़ता है।

🔥 वर्तमान में निम्नलिखित 5 उद्योगों को अनिवार्य लाइसेंस की परिधि में रखा गया है-

1. एल्कोहालयुक्त पेयो का आसवन व मध्र्यीकरण,

2. तम्बाकू के सिगार व सिगरेट तथा तैयार तम्बाकू विकल्प, अन्य विकल्प

3. इलेक्ट्रॉनिक, एअरोस्पेश व रक्षा उपकरण सभी प्रकार के,

4. दियासलाइयों सहित औद्योगिक विस्फोट

5. खतरनाक रसायन

🔥 लघु उद्योग क्षेत्र में निर्माण के लिए पूर्णतया आरक्षित मदों की कुल संख्या 13 मार्च, 2007 को 114 रह गयी थी। 79 मदों को 5 फरवरी, 2008 की एक अधिसूचना के तहत अनारक्षित किया गया था, जिनके फलस्वरूप यह संख्या घटकर 35 रह गयी थी। अक्टूबर 2008 में 14 मदों को अनारक्षित कर दिया गया था। अतः अक्टूबर, 2008 में इनकी संख्या घटकर मात्र 21 रह गयी थी।

🔥 देश के कुल विनिर्मित औद्योगिक उत्पादन में लगभग 45 प्रतिशत उत्पादन लघु क्षेत्र का है। देश के कुल निर्यात में लगभग 35 प्रतिशत लघु उद्योग क्षेत्र का है।

🔥 लघु उद्योग विकास संगठन (SIDO) की स्थापना 1954 में की गयी थी।

🔥 भारत में डीजल इंजन बनाने का पहला कारखाना 1932 में सतारा (महाराष्ट्र) में खोला गया है।

🔥 भारत में साइकिले बनाने का पहला कारखाना 1938 में कोलकाता में खोला गया। साइकिलों के उत्पादन में भारत का अब विश्व में तीसरा स्थान है। प्रतिवर्ष लगभग 90 लाख साइकिलों को उत्पादन भारत में होता है।

🔥 देश में लाभ अर्जन करने में सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनी तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम का प्रथम स्थान है।

🔥 सार्वजनिक उपक्रमों में उपनिवेश से प्राप्त राजस्व के सुनिश्चित प्रयोग के लिए 1 अप्रैल, 2005 को राष्ट्रीय निवेश निधि की स्थापना की गयी थी।

🔥 10वीं योजना के तहत केन्द्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की 17 रुग्ण उपक्रमों की पहचान पुनर्जीवन हेतु की थी। इनमें (NTPC) टायर कारपोरेशन, मद्रास फर्टिलाइजर्स, तुंगभद्रा स्टील प्रोटक्टस व सेन्ट्रल इनलैण्ड वाटर ट्रांसपोर्ट कारपोरेशन शामिल थे।

🔥 11 वीं योजना के दौरान औद्योगिक क्षेत्र की विकास दर का औसत लक्ष्य 10.5 प्रतिशत रखा गया है, जबकि सेवा क्षेत्र को विकास दर का औसत लक्ष्य 10 प्रतिशत का है।

विनिवेश

🔥 वस्तुतः विनिवेश, निवेश का विपरीतार्थक है। निवेश का अर्थ धन कमाने के लिए किसी भी कारोबार में धन लगाना जबकि विनिवेश का अर्थ है कारोबार में लगा हुआ धन वापस निकालना तथा उसकी जगह किसी दूसरे का धन लगवाना।

🔥 देश की अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के साथ सरकारी उद्यमों में विनिवेश की प्रक्रिया शुरू हुई थी तथा यह प्रक्रिया पिछले 1990 से जारी है तथा सरकार लगभग कई सरकारी उद्यमों में विनिवेश की प्रक्रिया पूरी कर चुकी है।

क्यों जरूरी है विनिवेश

🔥 दरअसल आम आदमी की तरह हमारे देश की अर्थव्यवस्था भी एक हद तक ऋण पर आश्रित है। विश्व बैंक से सबसे ज्यादा ऋण लेने वालों में से हमारा स्थान पहला है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से भी हमने बड़ी मात्रा में ऋण रखा है। अब कोई भी ऋणदाता यह नहीं चाहेगा कि वह ऐसे व्यक्ति या संस्था को ऋण दे जो उसका ऋण लौटा नहीं सके। ऐसे में इन दोनों संस्थाओं ने देश की सरकार पर दबाव डाला था कि वह अपना राजकोषीय घाटा कम करे ताकि उसकी आर्थिक स्थिति सुधर सके तथा वह उनके ऋण लौटा सके। वस्तुतः सरकारी प्राप्तियां कम हैं एवं खर्चे बहुत अधिक। यही अधिक राजकोषीय घाटे का मुख्य कारण है। अब सरकार के 3 रास्ते बचते हैं जिससे यह घाटा कम किया जा सकता है।

1. घाटे वाले उद्यमों को निजी क्षेत्र में बेच देना।

2. सरकार अपने खर्चों पर अंकुश लगाये।

3. लाभ वाले उपक्रमों के शेयर बेचना।

विनिवेश वर्तमान स्थिति

🔥 स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद माना जाता था कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग आर्थिक सवृद्धि दर को बढ़ाने के साथ-साथ सामाजिक कल्याण में भी सहायक होंगे। ये सार्वजनिक हितों को प्राथमिकता देगें व निजी लाभ को प्राथमिक उद्देश्यों से दूर रखेगे। भारत सरकार ने कुल 246 सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियां स्थापित की (बैंक, बीमा व वित्तीय कम्पनियों को छोड़कर)। इन कम्पनियों के बढ़ते हुए घाटे सरकार को इनके विनिवेश करने को मजबूत किया। विनिवेश एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा सरकार सार्वजनिक (सरकारी) क्षेत्र की कम्पनियों को सीधे तौर पर निजी कम्पनियों को बेंच देती है या फिर इसके प्रतिभूतियों (शेयर) को अपने कर्मचारियों को बेंचती है।

विनिवेश का उद्देश्य

(i) प्रबन्धन की गुणवत्ता को सुधारना

(ii) प्रबन्धकों को उत्तरदायित्व सौंपना

(iii) सरकारी वित्तीय सहायता को कम करना

(iv) राजकोषीय घाटे को कम करने का प्रयास

(v) सरकारी हस्तक्षेप को कम करना

(vi) सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को बाजार आधारित निजी क्षेत्र की नीतियों से प्रतिस्पर्धात्मक बनाना।

विनिवेश की समस्याएं

(i) व्यापारिक/श्रमिक द्वारा विरोध

(ii) कम्पनियों की विक्रय नीति में पारदर्शिता का अभाव

(iii) सरकार तक उसका सही मूल्य/लाभ न पहुँचाना पाना।

(iv) (UPA) सरकार में विनिवेश नीति को लेकर मतभेद अभी तक है राजनीतिक दलों की मतभिन्नता के कारण भी विनिवेश की प्रक्रिया प्रभावित हुई या धीमी पड़ गयी है।

(v) सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद वैसी कम्पनियों को, जो संसदीय अधिनियम द्वारा गठित की गयी थी, जैसे- (भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) व हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन लि० (HPCL) का विनिवेश संसद की अनुमति से ही की जानी चाहिए।

(vi) अस्पष्ट विनिवेश नीति

(vii) मुनाफे में चल रही कम्पनियों के बिकने से राष्ट्र-प्रेम की भावना को ठेस पहुँचाता है।

विनिवेशीकरण में सरकारी नीति/पक्ष

🔥 भारत में सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश की प्रक्रिया 1991 में प्रारम्भ हुई। तब से लेकर जुलाई, 2007 तक सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश व इनकी रणनीतिक बिक्री (Straegic sale) से कुल मिलाकर 51,608 करोड़ रुपये केन्द्र सरकार को प्राप्त हुए हैं। इनमें उपक्रमों की रणनीतिक बिक्री से प्राप्त राशि 6344.35 करोड़ रुपये रही हैं। वित्तीय वर्ष 2007-08 में राजनीतिक क्षेत्र के चार उपक्रमों—मारुति उद्योग, पारवग्रिड कार्पोरेशन, ग्रामीण विद्युतीकरण निगम (REC) व राष्ट्रीय जल विद्युत निगम (NHPC) में विनिवेश की केन्द्र सरकार की योजना है। इनमें कुछ विनिवेश पुरी हो चुकी है तथा यह प्रक्रिया अभी जारी है।

🔥 सरकार को सार्वजनिक क्षेत्रों की समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए न कि वाणिज्यिक कम्पनियों को चलाने पर । सरकार की नीति इस प्रकार है-

(i) पुनर्जीवित न की जा सकने वाली कम्पनियों को बेंच दिया जाय या बंद कर दिया जाएं।

(ii) उन कम्पनियों को पुनर्जीवित किया जाय जो सरकार को भविष्य में मुनाफा दे सके। तत्पश्चात् उसे बेचकर मुनाफा लिया जा सकता है।

(iii) सरकार की भागीदारी को गैर-सामाजिक क्षेत्रों के कम्पनियों की भागीदारी से कम करके 26 प्रतिशत या उससे भी कम पर लाया जाय।

(iv) श्रमिकों के अधिकार की पूर्ण सुरक्षा की जाय।

🔥 सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश के सभी प्रस्ताव स्थगित कर दिए जाए। वर्तमान मनमोहन सिंह की सरकार को एक बड़ा झटका जुलाई, 2006 में उस समय लगा, जब लिवेग्नी लिग्नाइट कार्पोरेशन में विनिवेश के मुद्दे पर डी०एम०के० के तीव्र विरोध के आगे झुकते हुए विनिवेश के सभी प्रस्तावों व फैसलों को स्थगित करना पड़ा। 'लिवेग्नी लिग्नाइट कार्पोरेशन में 10 प्रतिशत विनिवेश का फैसला किया गया था। परिणामस्वरूप, (NALCO) में भी पूर्ण घोषित 10 प्रतिशत विनिवेश भी स्थगित हो गया। अन्य प्रस्ताव भी अब ठंडे बस्ते में चला गया। विनिवेश की योजनाओं को स्थापित करने से राजकोषीय स्थिति व उसमें सुधार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त 2005 में स्थापित 'राष्ट्रीय निवेश निधि' भी खटाई में पड़ गई। विनिवेश प्राप्ति को इसी निधि में जमा करने की सरकार की योजना थी। कोष में जमा राशि का 3/4 हिस्सा शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर तथा 1/4 हिस्सा रुग्ण सार्वजनिक उपक्रमों को पुनरुद्धार करने पर खर्च की गई थी।

भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों की भूमिका

🔥 कृषि के बाद रोजगार उपलब्ध कराने वाला यह दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है।

🔥 लघु व कुटीर उद्योगों के विस्तार से क्षेत्रीय असमानता कम होता है।

🔥 इससे उद्योगों के विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा मिलता है। परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में गुणात्मक परिवर्तन होता है जैसे-पंजाब की अर्थव्यवस्था लघु उद्योगों पर आधृत है। पंजाब की समृद्धि महाराष्ट्र से भी ज्यादा है। इन उद्योगों के प्रसार से स्थानीय संसाधनों का उपयोग सही रूप हो पाता है। बड़े उद्योगों की तुलना में लघु इकाइयों में औद्योगिक विवाद कम होते हैं। लघु उद्योग भारत कुल निर्यात में 33 प्रतिशत से भी अधिक का योगदान करते हैं। निर्यात क्षेत्र में लघु इकाइयों से असीम संभावनाएं व्यक्त की जाती है। औद्योगिक क्षेत्र में (GDP) में कुल आय का 39 प्रतिशत लघु क्षेत्र से प्राप्त होते हैं।

लघु उद्योग क्षेत्र के विकास के कारक

1. लघु उद्योगों पर निवेश के दृष्टिकोण से परीक्षण एवं प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध कराने का बल दिया जाना चाहिए।

2. लघु उद्योगों की प्रगति और प्रसार के लिए उपर्युक्त सहायता एवं समर्थन दिया जाना चाहिए।

3. यह सुनिश्चित किया जाय कि विदेशी निवेश इन उद्योगों को विस्थापित न कर सके।

4. बढ़ती प्रतिस्पर्धा में निवेश की सीमा को बढ़ाया जाय ताकि ये तकनीकी रूप से सक्षम हो सके।

5. निर्यात की संभावनाओं को देखते हुए लघु क्षेत्र के लिए आरक्षित सूची पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए।

6. लघु उद्योग क्षेत्र की इकाइयों को कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराना चाहिए ताकि तकनीकी नवीकरण के साथ- साथ इनके उत्पादों का सही वितरण हो सके।

7. खादी और ग्रामीण उद्योगों को मजबूत बनाना चाहिए ताकि अधिक से अधिक रोजगार सृजित की जा सके।

लघु एवं कुटीर उद्योग की समस्याएं

(i) पूंजी एवं साख का अभाव। ऋण गारण्टी स्कीम की व्यवस्था का न होना।

(ii) कच्चे माल की उपलब्धि के लिए स्थानीय स्रोतों पर निर्भर होना, जिसके फलस्वरूप व्यापारियों द्वारा कारीगरों या बुनकरों का शोषण होता है।

(iii) पुराने मशीनों का उपयोग होना जिसके चलते उत्पादकता में कमी आती है।

(vi) उत्पादों के विपणन की समस्या का होना

(v) इन इकाइयों को आधारभूत सुविधाओं से वंचित होना, जैसे- बिजली, सड़क, संचार आदि।

भारत की नई आर्थिक नीति-

🔥 भारत की आर्थिक समस्याओं ने 1991 में गंभीर संकट का रूप ले लिया था। जिसका कारण था का प्रबन्धन ( Marco Management) इसके अन्तर्गत राजकोषीय घाटा सकल घरेलू (GDP) का 9 प्रतिशत चला गया जबकि भारत का भुगतान सन्तुलन भी अत्यन्त घाटे में चला गया। फलस्वरूप, अन्तर्राष्ट्रीय पूँजी बाजार में भारत की साख स्तर काफी घट गई। इस विषम परिस्थिति ने मुद्रा-स्फीति को बढ़ा दिया। 1990-91 के संकटग्रस्त स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने आर्थिक सुधारों को लागू करने का निर्णय लिया। इन आर्थिक सुधारों के दो तत्त्व हैं-

(I) समष्टि आर्थिक स्थिरीकरण  (II) ढाँचा का सुधार।

🔥 पहले तत्त्व का सम्बन्ध माँग प्रबन्धन से है, जबकि दूसरे का लक्ष्य अर्थव्यवस्था की पूर्ति पक्ष की समस्याओं का समाधान करना है।

🔥 समष्टि आर्थिक स्थिरीकरण- इसके अन्तर्गत मुख्य तीन बातें हैं-

1. मुद्रा स्फीति की दर को कम करना,

2. सरकारी घाटे को कम करके राजकोषीय समायोजन करना,

3. वैश्वीकरण एवं निजीकरण की नीति को अपनाकर भुगतान सन्तुलन की नीति को भारत के पक्ष करना।

उपर्युक्त तीनों बातें एक-दूसरे से सम्बद्ध हैं। राजकोषीय समायोजन के बाद मुद्रास्फीति की दर में कमी आती है, जिसके चलते वस्तुओं का मूल्य गिरता है तथा निर्यात में वृद्धि होती है।

🔥 ढांचागत सुधार - इसके अन्तर्गत निम्नलिखित तत्व हैं-

(i) व्यापार तथा पूँजी प्रवाह में सुधार-भारत के आर्थिक सुधारों का प्रधान लक्ष्य विदेश व्यापार (आयात-निर्यात) को बढ़ावा देना है। इसके अन्तर्गत निजी कम्पनियों को लाइसेंस राज से मुक्त किया गया तथा इन्हें सामरिक क्षेत्रों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में भी पहुँचने की अनुमति दी गई। पूँजी प्रवाह के अन्तर्गत भारत में विदेशी कम्पनियों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से आने की अनुमति दी गई, जिसके चलते भारत में विदेशी मुद्रा संकट लगभग समाप्त हो गया।

(ii) औद्योगिक नियन्त्रण- इसके तहत औद्योगिक नियन्त्रण को समाप्त किया गया तथा निजी कम्पनियों के कार्यकलापों के लिए सरकारी नियन्त्रण के साथ-साथ कम्पनियोंके आकार पर लगायी गयी सीमा को अब समाप्त कर दिया गया है।

(iii) सार्वजनिक क्षेत्र में सुधार- इस क्षेत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण सुधार सरकार की विनिवेश नीति है जिसके तहत सार्वजनिक कम्पनियों को कुशल प्रबन्धन के साथ-साथ मजबूत बनाया गया है। इस नीति के अनुसार घाटे में चल रही कम्पनियों को या तो बन्द कर दिया जाता है या बेंच दिया जाता है। इसके अतिरिक्त निजी कम्पनियों को सार्वजनिक क्षेत्रों में काम करने की अनुमति दी गई।

(iv) वित्तीय क्षेत्र में सुधार-बैंकिंग क्षेत्र में नहसिम्हन कमेटी की सिफारिशों को स्वीकार किया गया है, जिसके चलते सरकारी क्षेत्र के बैंक कुशल प्रबन्धन के साथ-साथ न्यायोचित ढंग से कार्य कर रहे हैं। निजी क्षेत्र के बैंको के विस्तार के लिए भी अनुमति दे दी गई हैं। इसके अतिरिक्त विदेशी बैंकों के विस्तार के लिए भी अनुमति दे दी गयी हैं। पूँजीगत क्षेत्रों में पूँजीगत बाजार का तकनीकी नवीकरण के बाद विस्तार हुआ है।

🔥 मूल्यांकन-1991 के आर्थिक सुधार के बाद सरकार का राजकोषीय घाटा बहुत कम नहीं हो पाया हैं। साथ ही मुद्रास्फीति की दर अनियमित रूप से घटती-बढ़ती रही है। कृषि उत्पादन क्षेत्र में भी कोई बहुत बड़े नीतिगत फैसले पश्चिमी देशों के समान नहीं लिए गये हैं। निजीकरण के प्रोत्साहन के बावजूद भी कृषि क्षेत्र में सरकारी निवेश का स्तर नहीं बढ़ पाया है। फलस्वरूप, कृषि उत्पादन में भी अनियमितता देखी जा रही है। साथ ही, बहुत सारे क्षेत्रों में विशेषकर अकालग्रस्त क्षेत्रों में खाद्यान्न उपलब्धि का अभाव देखा गया है जो कि सरकार की खाद्यान्न की कमियों को दर्शाता हैं। इसके अलावा शिक्षा एवं स्वास्थ्य क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी निवेश युक्ति संगत नहीं है। बेरोजगारी की संख्या में भी वृद्धि हुई हैं।

🔥 हालांकि, आर्थिक सुधारों ने भारत में निवेश की दर को बढ़ाया है तथा भारत में विदेशी मुद्रा अभाव को समाप्त कर दिया है। काफी हद तक संसाधनों का उपयोग सही तरीके से हो रहा है तथा निजी एवं विदेशी कम्पनियों की मौजूदगी से उपभोक्ता क्षेत्र में गुणात्मक सुधार देखा गया है।

🔥 मोटे तौर पर देखा जाय तो आर्थिक सुधार की प्रक्रिया निम्न बातों से दोषपूर्ण है-

(i) स्पष्ट विकास युक्ति का अभाव होना; विशेषकर ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था को बाजार आधारित अर्थव्यवस्था से अलग रखना।

(ii) आर्थिक सुधारों का गलत क्रम होना ।

(iii) सुधार लागू करने में अनावश्यक जल्दबाजी करना ।

(iv) सुधारों की पूर्व अपेक्षाओं की उपेक्षा करना; जैसे -मानव विकास सूचकांक कम होना।

(v) भारतीय निजी कम्पनियों का प्रतिस्पर्द्धा के मुकाबले में असक्षम होना।

(vi) विकास के अभिन्न अंग के रूप में गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों पर विशेष ध्यान न देना।

औद्योगिक विकास के विभिन्न चरण -

मुख्य रूप से औद्योगिक विकास के चार चरण है जो इस प्रकार है

🔥 (I) औद्योगिक विकास का प्रथम चरण (1951-65) - प्रथम चरण में भारत में मजबूत औद्योगिक आधार का निर्माण करना ही उद्देश्य था।

👉 प्रथम योजना में औद्योगिक आधार सीमित थे। इनमें प्रमुख उद्योग निम्न थे-चीनी, नमक, साबुन, कागज, चमड़े का समान तथा सूती वस्त्र उद्योग।

👉 अन्य मध्यवर्ती उद्योग थे-कोयला, इस्पात, सीमेंट किन्तु इनकी उत्पादन क्षमता कम थी।

👉 दूसरी योजना में महालनोविस मॉडल के आधार पर निर्धारित उद्देश्य थे-वैसे उद्योग का विकास करना, जो भविष्य के लिए उपयोगी मनुष्यों का निर्माण कर सके, जैसे भारी मशीन, रसायन, सीमेंट निर्माण, उर्वरक निर्माण, इत्यादि।

👉 तीसरा योजना के अन्तर्गत औद्योगिक विकास हेतु आधारभूत ढाँचे के विस्तार के साथ-साथ उद्योगों का विकास भी किया गया। इस योजना में कुल अनुमानित बजट का 20 प्रतिशत उद्योग पर खर्च हुआ किन्तु उत्पादन लक्ष्य से कम हुआ।

🔥 (II) औद्योगिक विकास के द्वितीय चरण (1965-80)- इस चरण में औद्योगिक विकास की गति अत्यन्त धीमी रही तथा उद्योग आधारभूत संरचना से जूझते रहे।

👉 चौथी पंचवर्षीय योजना में औद्योगिक विकास का उद्देश्य पूर्व से चल रही योजनाओं को पूरा करना तथा घरेलू उपलब्धि को ध्यान में रखकर नये उद्योगों की स्थापना करना था। इस योजना में भी औद्योगिक विकास की दर अपने लक्ष्य से कम हो ही रहा।

👉 पाँचवीं पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य था भारत को औद्योगिक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना, सामाजिक न्याय करना व समृद्धि लाना। इस योजना के दौरान उद्योग, निर्यात व आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन के मामले में व्यापक विस्तार किया गया अनावश्यक वस्तुओं के उत्पादन पर रोक लगाई गई।

🔥 (III) औद्योगिक विकास का तृतीय चरण (1980-90)-इस अवधि में भारत में पहली उदारीकरण व वैश्वीकरण की प्रवृत्ति देखी गयी। 1980 में घोषित नयी औद्योगिक नीति के अन्तर्गत उपभोक्ता वस्तुओं तथा पेट्रोलियम व रसायन आदि उद्योगों को प्रोत्साहन दिया गया। सातवीं योजना के दौरान उद्योग क्षेत्र की उत्पादकता, कीमत नीति व वस्तुओं की गुणवत्ता पर ध्यान दिया गया।

🔥 (IV) औद्योगिक विकास का चतुर्थ चरण (1990 से अब तक) - 1991 में आयी नई नीति के तहत भारत में लाइसेंसी राज को समाप्त कर सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को निजी क्षेत्र के उद्योगों के लिए खोल दिया गया। साथ ही, विदेशी निवेश को भी प्रोत्साहित किया गया।

👉 निजी कम्पनियों की परिसम्पत्ति सीमा को समाप्त कर दिया गया तथा उन्हें नई कम्पनियों की स्थापना, विस्तार, विलयन तथा आधुनिकता हेतु सरकार की पूर्व अनुमति आवश्यक नहीं थी। 1990 दशक में औद्योगिक समृद्धि नियमित रूप से बढ़ी है। 1995-96 के बाद इसमें गिरावट आनी शुरू हो गई है।

👉 पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिक समृद्धि दर में गिरावट का कारण

(I) विश्व में 2001 के बाद आर्थिक मंदी का आना।

(II) पूँजी निवेश में छोटे निवेशकों की कम भागीदारी

(III) भारत में आधारभूत संरचना का पूर्ण विकास न हो पाना ।

(IV) 2008 का विश्वव्यापी मंडी एवं वर्तमान में यूरोपीय ऋण संकट।

🔥 सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योगों की समस्याएँ व निदान-सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार की निवेशित पूँजी 5 लाख करोड़ से भी अधिक हैं। इस बड़ी पूँजी के मुकाबले उसके लाभ नगण्य हैं। इस घाटे के कारण हैं-

1. मूल्य नीति- सार्वजनिक उद्योगों की मूल्य नीति निजी क्षेत्र के उद्योगों से भिन्न होती है। निजी कम्पनियाँ लाभ के उद्देश्य व आकांक्षा से काम करती है; जबकि सार्वजनिक कम्पनियों का उद्देश्य वस्तु को कम मूल्य पर लोगों को उपलब्ध करा कर देश का कल्याण व सामाजिक न्याय का प्रयास करना है।

2. अनेक सार्वजनिक कम्पनियाँ सही स्थान पर स्थित न होने के कारण उनका लागत खर्च बढ़ जाता है।

3. अनुपयुक्त तकनीकों के इस्तेमाल से उसकी उत्पादकता प्रभावित हुई है।

4. सार्वजनिक कम्पनियों के कामकाज में प्रायः राजनीतिज्ञों का हस्तक्षेप होता रहता है, जिससे प्रबन्धकों को कार्य करने में कठिनाइयाँ आती हैं।

🔥 उपर्युक्त कम्पनियों को दूर करने के उपाय-

(i) घाटे में चल रही सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को वित्तीय सहायता देनी बंद करें। उन्हें सुधार का मौदा दें, या फिर बेंच दें।

(ii) सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को अपनी वस्तुओं की सही अवस्था के अनुसार नीतिगत फैसले लेनी चाहिए ताकि वे बाजार आधारित अर्थव्यवस्था में सफल सिद्ध हो सकें।

राष्ट्रीय आय

🔥 किसी देश में एक वर्ष में उत्पादन के साधनों को दिये गये पारिश्रमिक अथवा उन साधनों द्वारा अर्जित कुल आय उस देश विशेष की राष्ट्रीय आय कहते हैं।

🔥 राष्ट्रीय आय में केवल अन्तिम वस्तुएं ही शामिल की जाती है।

🔥 भारत में राष्ट्रीय आय समंक 1 अप्रैल, से 31 मार्च अर्थात वित्तीय आय पर आधारित होते हैं।

🔥 भारत में राष्ट्रीय आय का अनुमान निम्न विधियों से लगाया जाता है- उत्पादन गणना विधि, आय गणना विधि तथा व्यय गणना विधि ।

🔥 सकल घरेलू उत्पाद (बाजार मूल्य पर) = एक देश की सीमा के अन्दर किसी दी हुई समयावधि, प्रायः 1 वर्ष में उत्पादित समस्त अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं का कुल बाजार अथवा मौद्रिक मूल्य।

🔥 शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = सकल राष्ट्रीय उत्पाद - मूल्य ह्रास

🔥 निजी आय = शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद - सरकार को प्राप्त होने वाली आय + हस्तान्तरण भुगतान + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज - सामाजिक कर - निगमकर, सुरक्षा व्यय।

🔥 प्रति व्यक्ति आय = शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद ÷ देश की कुल जनसंख्या ।

🔥 साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद को सामान्यता राष्ट्रीय आय कहा जाता है।

🔥 साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद को सम्बन्धित देश की जनसंख्या से विभाजित करने पर प्रति व्यक्ति आय ज्ञात होती है।

🔥 एक ही वर्ष की अवधि के भीतर उत्पादित अन्तिम पदार्थों और सेवाओं के कुल बाजार मूल्य को सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) कहा जाता है।

🔥 यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद में पूँजीगत पदार्थ के अपकर्ष और प्रतिस्थापन की लागत घटा दी जाये, तो वह निवल राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) कहलाता है।

🔥 निवल राष्ट्रीय उत्पाद में से परोक्ष कराधान घटा दिया जाये तथा सरकारी सहायता को जोड़ दिया जाये तो राष्ट्रीय आय या साधन लागत पर राष्ट्रीय आय कहते हैं।

🔥 राष्ट्रीय आय में से उन आयों को घटा दिया जाये, तो कमायी तो जाती है, किन्तु प्राप्त नहीं होती तथा हस्तातरण भुगतानों को जोड़ दिया जाये तो वह व्यक्तिगत आय (PI) कहलाती है।

🔥 व्यक्तिगत आय में से व्यक्तिगत प्रत्यक्ष कराधान घटाने पर व्यय योग्य आय (DI) प्राप्त होती है।

🔥 चालू कीमतों पर 2006 और 2007 के दौरान (GDP) में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्र का योगदान क्रमश: 18.5 प्रतिशत, 26.4% तथा 55 प्रतिशत आकलित किया गया।

🔥 2005 और 2006 की स्थिति के अनुसार सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय (70112 रुपये) वाला राज्य गोआ है।

🔥 (CSO) ने वित्तीय वर्ष 2006 और 2007 में चालू मूल्यों पर भारत का सकल घरेलू उत्पादन (GDP) 3790063 करोड़ रुपये होने का अनुमान लगाया है।

🔥 (CSO) ने संशोधित आकलन में प्रति व्यक्ति आय 2006 और 2007 में 22553 (1999-2000 की कीमतों पर) आकलित की है, जबकि चालू मूल्यों पर 29642 रुपये आकलित की गई है।

🔥 CSO के जनवरी 2010 के ताजा आंकलन में 2008-09 में प्रति व्यक्ति आय स्थिर मूल्यों पर (2004-05 के मूल्य स्तर पर ) 31,821 रुपये आकलित की है।

पंचायती राज व्यवस्था

🔥 भारत में प्राचीन काल में ही पंचायती राज व्यवस्था अस्तित्व में रही है।

🔥 ब्रिटिश काल में सन् 1882 में लार्ड रिपन ने स्थानीय स्वशासन को स्थापति करने का प्रयास किया था।

🔥 स्थानीय स्वायत्व संस्थाओं की स्थिति की जांच के लिए सन् 1882 एवं 1907 में शाही आयोगी की नियुक्ति की गयी।

🔥 आयोग ने अपनी संस्तुति में स्वायत संस्थाओं के विकास पर बल दिया था।

🔥 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्यों को पंचायतों के गठन का निर्देश दिया गया है।

🔥 संविधान की 7वीं अनुसूची की प्रविष्टि 5 में ग्राम पंचायतों को शामिल करके, राज्यों को इस पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया है।

🔥 सन् 1993 में संविधान में 73वें संवैधानिक संशोधन करके पंचायती राज संस्था को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गयी।

🔥 संविधान में भाग 9 को पुनः जोड़कर इसमें 16 अनुच्छेद 243 से 243-ण तक तथा संविधान में 11वीं अनुसूची जोड़कर पंचायती राज संस्था को संवैधानिक महत्त्व भी प्रदान किया गया।

🔥 गाँधी जी ने कहा था-"यदि गांव नष्ट होते हैं तो भारत नष्ट हो जायेगा।

🔥 भारतीय संविधान में यह निर्देश दिया गया है कि- "राज्य ग्राम पंचायतों के निर्माण के लिए कदम उठायेगा, और उन्हें इतनी शक्ति तथा अधिकार प्रदान करेगा, जिसमें पंचायतें स्वशासन के क्षेत्र में एक स्वतन्त्र इकाई के रूप में कार्य कर सकें। (अनु० 40)

🔥 प्रो० रजनी कोठारी के अनुसार- "राष्ट्रीय नेतृत्व का एक दूरदर्शिता पूर्ण कार्य था पंचायती राज की स्थापना, इसमें भारतीय राज व्यवस्था का विकेन्द्रीकरण हो रहा है और देश में एक सी स्थानीय संस्था के निर्माण से उनकी एकता भी बढ़ी है।"

🔥 प्रो० जवाहर लाल नेहरू का कहना था कि-“गाँवों के लोगों को अधिकार सौंपने चाहिए। उनको काम करने दो चाहे वे हजारों गलतियां करें, इससे डरने की जरूरत नहीं। पंचायतों को अधिकार दो।"

🔥 1952 में नेहरू की पहल पर सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ।

🔥 सामुदायिक विकास कार्यक्रम का उद्देश्य था कि आर्थिक नियोजन एवं सामाजिक पुनरुत्थान की राष्ट्रीय योजनाओं के प्रति देश को ग्रामीण जनता में सक्रिय रुचि पैदा की जा सके।

🔥 वास्तव में यह कार्यक्रम सरकारी तन्त्र और ग्रामीण जनता के बीच की दूरी कम करने के उद्देश्य में विफल रहा।

🔥 जयप्रकाश नारायण ने पंचायती राज को देशी और प्राचीन 'सामुदायिक लोकतन्त्र' के समान बताया और साथ ही इसे पश्चिम के "जनता को हाथ बटाने का अवसर देने वाले लोकतन्त्र से भी आधुनिक कहा है।"

बलवन्त राय मेहता समिति

🔥 सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता की जाँच के लिए सन् 1957 में अध्ययन दल नियुक्त किया गया जिसके अध्यक्ष श्री बलवन्त राय मेहता थे।

🔥 मेहता रिपोर्ट में कहा गया कि लोकतान्त्रिक विकेन्द्रीकरण और सामुदायिक विकास कार्यक्रमों को सफल बनाने हेतु पंचायती राज संस्थानों की तुरन्त शुरूआत की जानी चाहिए।

🔥 बलवन्त राय मेहता समिति ने त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था की संस्तुति की।

🔥 पंचायती के तीन स्तर-ग्राम या नगर पंचायत, तहसील पंचायत तथा जिला पंचायत

🔥 समिति ने गाँव समूहों के लिए प्रत्यक्षतः निर्वाचित पंचायतों, खण्ड स्तर पर निर्वाचित तथा नामित सदस्यों वाली एवं जिला स्तर पर जिला परिषद का गठन करने की सुझाव दिया।

🔥 साधन जुटाने और जन सहयोग संगठित करने का भी इन संस्थाओं को पर्याप्त अधिकार था।

🔥 मेहता समिति की सिफारिशों को 01 अप्रैल, 1958 को लागू किया गया।

🔥 2 अक्टूबर, 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में सर्वप्रथम पंचायती राज का विधिवत् उद्घाटन में पं० जवाहर लाल नेहरू के द्वारा किया गया।

पंचायती राज का अशोक मेहता मण्डल

🔥 बलवन्त राय समिति के सिफारिशों से उत्पन्न खामियों को दूर करने के लिए 12 सितम्बर, 1977 को जनता सरकार ने अशोक मेहता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया।

🔥 इस समिति को गठित करने के पीछे मुख्य उद्देश्य यह था कि सत्ता का विकेन्द्रीकरण कर उसे संस्थागत रूप प्रदान किया जाय।

🔥 इस समिति ने जिला परिषद को मजबूत बनाने का सुझाव दिया तथा द्विस्तरीय संगठन के निर्माण की संस्तुति की।

🔥 संगठन के दो स्तर जिला परिषद तथा मण्डल पंचायत की स्थापना की जाय।

🔥 ग्राम पंचायत की जगह मण्डल पंचायत की स्थापना की जाय।

🔥 जिले को विकेन्द्रीकरण की धुरी मानकर, जिला परिषद को समस्त विकास कार्यों का केन्द्र बिन्दु माना जाय।

🔥 जिला परिषद ही जिले के आर्थिक नियोजन का समस्त कार्य करें। तथा विकास कार्यों में सामंजस्य स्थापित करेगी।

🔥 मण्डल पंचायत का गठन कई गाँवों को मिलाकर किया जायेगा तथा मण्डल पंचायतें 15000 से 20000 की जनसंख्या पर गठित की जायेगी।

🔥 पंचायती राज संस्थायें समिति प्रणाली के आधार पर कार्यों का संपादक करेगी।

🔥 जिला कलक्टर सहित जिला स्तर के सभी अन्य अधिकारी जिला परिषद के मताहत रखे जायेंगे।

🔥 इन संस्थाओं के निर्वाचनों में राजनीतिक दलों को खुले तौर से अन्य चुनाव चिन्हों के प्रयोग की तथा भाग लेने की अनुमति दी जाय।

🔥 न्याय पंचायतों को पंचायतों के साथ न मिलाया जाय।

🔥 मण्डल पंचायत तथा जिला परिषद का कार्यकाल 4 वर्ष किया गया।

🔥 डी०पी०वी० के० राव समिति ने राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद, जिला स्तर पर जिला परिषद, मण्डल स्तर पर मण्डल पंचायत तथा गाँव स्तर पर गांव सभा के गठन कि सिफारिश की।

🔥 इस समिति ने विभिन्न स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा जनजाति एवं महिलाओं के लिए आरक्षण की भी सिफारिश की, इस समिति के सिफारिशों को नामंजूर कर दिया गया।

🔥 डॉ० एल०एम० सिंघवी समिति ने यह सिफारिश दी कि गाँव पंचायतों को सक्षम बनाने के लिए उनका पुनर्गठन किया जाय तथा ग्राम पंचायतों को अधिक वित्तीय साधन उपलब्ध कराया जाय।

73वां संविधान संशोधन

🔥 सन् 1988 में पी० के० धुंगन समिति का गठन करके पंचायत राज व्यवस्था पर पुन: विचार किया गया।

🔥 इस समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा कि पंचायती राज व्यवस्था को संविधान में स्थान दिया जाये।

🔥 समिति की सिफारिशें को संवैधानिक मान्यता देने के लिए 1989 में 64वाँ संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया गया, परन्तु यह विधेयक राज्य सभा द्वारा नामंजूर कर दिया गया।

🔥 दिसम्बर, 1992 में 73वां संविधान संशोधन विधेयक पारित हुई तथा 25 अप्रैल, 1993 को इसे क्रियान्वित किया गया।

🔥 पंचायती राज व्यवस्था के सम्बन्ध में प्रावधान संविधान के भाग-9 में 16 अनुच्छेदों में शामिल किया गया।

🔥 ग्राम सभा गाँव के स्तर पर ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगी और ऐसे कार्यों को करेगी जो राज्य विधान मण्डल विधि बनाकर उपलब्ध कराये।

🔥 अनुच्छेद 243 (ख) त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रावधान करता है।

🔥 प्रत्येक राज्य में ग्राम स्तर पर, मध्यवर्ती स्तर पर तथा जिला स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं का गठन किया जायेगा।

🔥 जिस राज्य में जनसंख्या 20 लाख से अधिक नहीं है वहाँ मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों का गठन नहीं किया जायेगा।

🔥 पंचायतों के सभी स्थान पंचायत राज्य क्षेत्र के प्रादेशिक क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गये व्यक्तियों से भरे जायेंगे।

🔥 प्रत्येक पंचायत में क्षेत्र की जनसंख्या के अनुपात में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था द्वारा की जायेंगी।

🔥 प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे गये स्थानों के संख्या के 1/3 स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे।

🔥 पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा।

🔥 राज्य का राज्यपाल 73वें संशोधन प्रारम्भ से एक वर्ष के अन्दर और उसके बाद 5 वर्ष की समाप्ति पर पंचायती की स्थिति का पुनर्निरीक्षण करने के लिए एक वित्त आयोग का गठन करेगा।

🔥 पंचायतों का निर्वाचन करने के लिए राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति का प्रावधान है।

🔥 पंचायतों के कार्य के लिए 11वीं अनुसूची में 29 विषयों को रखा गया है, जिन पर पंचायतें विधि बनाकर उन कार्यों को कर सकेगी।

नगरीय शासन

🔥 भारत में नगरीय शासन को कानूनी रूप सर्वप्रथम 1687 में प्रदान किया गया।

🔥 इस कानून के तहत ब्रिटिश सरकार द्वारा मद्रास शहर के लिए नगर निगम संस्था की स्थापना की गयी।

🔥 सन् 1973 के चार्टरद्वारा मद्रास, बंगाल तथा बम्बई महानगरों के लिए नगर निगमों की स्थापना की गयी।

🔥 सन् 1909 में शाही विकेन्द्रीकरण आयोग का गठन किया गया, जिसकी रिपोर्ट को आधार बनाकर 1919 के अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान सम्मिलित किया गया।

🔥 संविधान के 74वें संशोधन द्वारा नगरीय प्रशासन के सम्बन्धों को संवैधानिक मान्यता प्रदान किया गया।

🔥 इस संशोधन द्वारा संविधान भाग-9 (क) तथा 18 नये अनुच्छेद को शामिल किया गया।

🔥 कार्यों के वर्णन के लिए प्रावधान संविधान में एक अतिरिक्त 12वीं अनुसूची को जोड़ा गया।

🔥 प्रत्येक राज्य में नगर पंचायत, नगरपालिका परिषद तथा नगर-निगम का गठन किया जायेगा।

🔥 3 लाख या अधिक जनसंख्या वाली नगरपालिका के क्षेत्र में एक या अधिक वार्ड समितियों का गठन किया जायेगा।

🔥 प्रत्येक प्रकार के नगर निकायों के स्थान के लिए अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थानों को आरक्षित किया जायेगा।

🔥 एक तिहाई स्थानों का आरक्षण महिलाओं के लिए होगा।

🔥 नगरीय निकायों की अवधि 5 वर्ष होगी, परन्तु इन्हें 5 वर्ष से पहले भी विघटित किया जा सकता है।

🔥 नगरीय संस्थाओं के उत्तरदायित्व तथा शक्तियों का निर्धारण राज्य विधान मण्डल कानून बनाकर निश्चित करेगा।

🔥 वे सारे अतिरिक्त विषय संविधान की बारहवीं अनुसूची में शामिल किये गये हैं, के सम्बन्ध में कानून बनाकर नगरीय संस्थाओं को सौंपे जायेंगे।

वित्त आयोग

🔥 भारत में वित्त आयोग का गठन संविधान के अनुच्छेद 208 के तहत राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।

🔥 वित्त आयोग की स्थापना का मुख्य उद्देश्य बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार संघ एवं राज्यों के बीच वित्तीय समायोजन हेतु आवश्यक सिफारिशें देना है।

वित्त आयोग के कार्य

🔥 संघ एवं राज्यों के बीच उन करों की आय का वितरण करना जो दोनों के बीच विभाज्यशील हो।

🔥 उन सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना जिनके आधार पर भारत के संचित कोषों में से राज्यों का सहायक अनुदान दिये जा सके।

🔥 संघ द्वारा राज्यों के वित्तीय सम्बन्धों में सुदृढ़ता लाने हेतु राष्ट्रपति द्वारा आयोग को सौंपे गये किसी भी अन्य विषय पर विचार करना।

🔥 प्रथम वित्त आयोग की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिसम्बर, 1951 को श्री के० सी० नियोगी की अध्यक्षता में किया गया।

🔥 इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1952 में सरकार के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया।

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