31.PGT झारखंड में भूमि सुधार की प्रगति (Progress of Land Reform in Jharkhand)

झारखंड में भूमि सुधार की प्रगति (Progress of Land Reform in Jharkhand)

झारखंड में भूमि सुधार की प्रगति

🔥 भूमि सुधार क्या है : भूमि सुधार एक विस्तृत धारणा है जिसमें सामाजिक न्याय की दृष्टि से जोतों के स्वामित्व का पुनर्वितरण तथा भूमि के इष्टतम प्रयोग की दृष्टि से खेती किए जाने वाले जोतों का पुनगर्ठन सम्मिलित है। नोबल पुरस्कार प्राप्त महान अर्थशास्त्री प्रो0 गुन्नार मिर्डल के अनुसार-’’भूमि सुधार व्यक्ति और भूमि के सम्बन्धों में नियोजन तथा संस्थागत पुनर्गठन है।’’

स्वतंत्रता-प्राप्ति के समय देश के अधिकांश कृषि क्षेत्र में वास्तविक काश्तकार तथा भूमि के स्वामी के बीच मध्यस्थों की एक बड़ी सेना विद्यमान थी। इनके कारण जहाँ एक ओर काश्तकार को भूमि की उपज का बड़ा भाग मध्यस्थों को देना पड़ता था, वही दूसरी ओर वह इन पर पूरी तरह आश्रित था। भू-धारण की उसे कोई गांरटी नही दी जाती थी और लगान की दरों में भी निश्चितता नहीं थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ‘‘जोतने वाले को भूमि’’ के नारे को वास्तविकता में बदलने के लिए भूमि-सुधार किए गयें। सबसे पहले उत्तर प्रदेश लिए कानून बनाया गया।

भूमि संबंधी अधिनियम / कानून

🔥 छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 Chota Nagpur Tenancy (CNT) Act, 1908 : छोटानागपुर के भूमि संबंधी अधिनियमों (कानूनों में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (1908) का सर्वप्रमुख स्थान है।

इसके अलावे जो पूर्ववर्ती या परवर्ती अधिनियम (कानून) हैं, वे इस अधिनियम (कानून) के पूरक अधिनियम कानून (Complementary acts) हैं।

👉 सी. एन. टी. एक्ट 1908 के पहले

🔥 1765 ई. में मुगलों द्वारा अंग्रजों को बंगाल-बिहार की दीवानी देने के उपरांत छोटानागपुर में भूमि संबंधी कानूनों का आरंभ हुआ ।

🔥 1771 ई. में छोटानागपुर के महाराजा दर्पनाथ शाह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी की अधीनता स्वीकार कर ली और 12,000 रुपये सालाना कर देना स्वीकार किया।

🔥 अंग्रेज शासक एवं स्थानीय राजा ने इस क्षेत्र में अधिकाधिक कर वसूली के लिए इस क्षेत्र के बाहर के लोगों को बसाना शुरू किया और उन्हें जमीनों का पट्टा देना शुरू किया।

🔥 इस क्षेत्र के नये मालिक और उसके साथ आये ठेकेदार, साहूकार और जमींदार सभी मिलकर इस क्षेत्र की जनता के शांत जीवन में उथल-पुथल मचा दिया।

🔥 1789 ई. में आदिवासियों ने विद्रोह कर दिया जो 1795 ई. तक चलता रहा। आदिवासियों को शांत करने के लिए बंगाल रेगुलेशन (1793 ई. में रेगुलेशन संख्या-20 एवं 1805 ई. में रेगुलेशन संख्या-18) लाये गये जो पूरे बंगाल क्षेत्र (जिसमें छोटानागपुर का क्षेत्र भी शामिल था) में प्रभावी था। मगर इन रेगुलेशनों के प्रावधान आदिवासियों को डिगा नहीं सके। अंततः 1837 ई. में कैप्टेन विलिकिन्सन ने कोल्हान क्षेत्र में रहनेवालों के लिए नियम (rules) बनाए जो कुछ हद तक सर्वमान्य रहे और आदिवासियों को शांत कर सके।

🔥 विल्किन्सन रूल (1837 ई.) के पश्चात् भी आदिवासियों के जमीनों एवं उनके सामुदायिक एवं व्यक्तिगत जीवन में बाहरी हस्तक्षेप (दखलअंदाजी) बंद नहीं हुई ।

🔥 1854 ई. में छोटानागपुर को बंगाल प्रांत के एक गैर- रेगुलेशन प्रदेश के रूप में एक आयुक्त के अधीन कर दिया गया। गैर रेगुलेशन प्रदेश में सामान्य रूप से साधारण कानून तब तक प्रभावी नहीं होते जब तक कि उसके लिए अलग से घोषणा नहीं की जाए। इसकी तुलना मौजूदा भारतीय संविधान के 5वीं अनुसूची से की जा सकती थी

🔥 1854 ई. में आदिवासियों ने जमींदारों से जबरन अपने पुरखों की जमीन वापस लेने का प्रयास किया जिससे आदिवासियों तथा जमींदारों एवं ठेकेदारों के बीच खूनी संघर्ष छिड़ गया जो आखिरकार 1858 ई. में शांत हुआ।

🔥 छोटानागपुर भूधृति अधिनियम (1869): इस शांति को बनाये रखने और भविष्य में खूनी संघर्ष न हो इसके लिए 15 अप्रैल, 1858 ई. को श्री लोकनाथ शाही (तत्कालीन जमींदार) तथा उप सहायक आयुक्त को भूइहारी जमीन का रजिस्टर तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया, जिसने 1860 ई. में काम आरंभ किया। मगर श्री लोकनाथ शाही की मृत्यु के कारण यह बीच में हीं रूक गया। तब भूइहारी जमीन के हक का आधिकारिक बंदोबस्ती के साथ छोटानागपुर की कुछ भूधृति को जाँचने, प्रबंध करने एवं पंजीकृत करने के उद्देश्य से छोटानागपुर भूधृति अधिनियम (Chotanagpur Tenure Act) को बंगाल काउन्सिल के द्वारा 17 मार्च, 1869 ई. को अधिनियमित किया गया जो 1 अप्रैल, 1869 ई. से प्रभावी हुआ।

असफलता के कारण-

छोटानागपुर भूधृति अधिनियम असफल रहा। इसके कारण इस प्रकार थे-

(a) आदिवासियों से जुड़े इस अधिनियम (कानून) को बनने में बहुत देर हो गई थी।

(b) आदिवासियों की अज्ञानता और आशंका इस अधिनियम (कानून) के सफल होने में बाधक साबित हुई थी।

(c) यह अधिनियम (कानून) भूइहारी जमीन को छोड़ दूसरे प्रकार के भूधृतियों या जमीनों के बारे में मौन था।

इस प्रकार, यह अधिनियम, जो मुख्यतः आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए एवं उनको जमींदारों के शोषण से बचाने के लिए बनाया गया था, अपने मकसद को संतोषजनक ढंग से पूरा नहीं कर पाया।

सी. एन. टी. एक्ट, 1908

🔥 जब छोटानागपुर भूधृति अधिनियम, 1869 संतोषप्रद साबित नहीं हुआ तब तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के गवर्नर जनरल लॉर्ड मिण्टो-II ने इंडियन काउन्सिल अधिनियम, 1892 की धारा 15 के तहत छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम ( Nagpur Tenancy - CNT Act), 1908 को पारित करने की अनुमति बंगाल काउन्सिल को दी।

🔥 सी. एन. टी. एक्ट, 1908 ( बंगाल अधिनियम संख्या-6, 1908) को बिरसा आंदोलन (1899-1900 ई.) की परिणति माना जाता है।

🔥 सी. एन. टी. एक्ट, 1908 की रूपरेखा तैयार करने का श्रेय फादर जॉन बैप्टिस्ट हॉफमैन (John Baptist Hoffmann : 1857-1928 ई.) को है जो एक जर्मन जेशुइट पादरी थे और उन दिनों छोटानागपुर में मुण्डाओं के बीच सामाजिक कार्यकर्ता की हैसियत से कार्यरत थे। इस अधिनियम को बनाने में मिस्टर लिस्टर ने भी सराहनीय भूमिका निभाई।

🔥 सी. एन. टी. एक्ट, 1908 को जनजातियों का महाधिकार पत्र (Magna Charta) कहा जाता है।

🔥 यह एक्ट इस पारम्परिक धारणा को प्रतिपादित करता है कि जमीन किसी एक की सम्पत्ति न होकर कुटुम्ब या समाज की सम्पत्ति है। इससे पारम्परिक भूमि पर विशेषकर जनजातीय समाज को भूइहारी और खूँटकट्टी हक का कानूनी अधिकार प्राप्त हुआ। खूँटकट्टी का अर्थ है एक खूँट या परिवार द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली जमीन जिसे उस विशेष खूँट या परिवार ने जंगल साफ कर तैयार किया है और जिसमें वे खेती या वास करते हैं।

🔥 सी. एन. टी. एक्ट, 1908 में 19 अध्याय (Chapters), 271 धारायें (Sections) एवं 2 अनुसूचियाँ (Schedules) हैं।

अध्याय संख्या

अध्याय का नाम

धाराएं

मुख्य प्रावधान

I.

प्रारंभिकी

1-3

अधिनियम का नाम, टाईटल विस्तार आदि

II.

काश्तकारों के वर्ग

4-8

काश्तकारों का वर्गीकरण, व्याख्या आदि।

III.

भूधारक

9-15

भूधारक, भूमि अंतरण का निबंधीकरण आदि

IV.

अधिभोगी रैयत

16-36

अधिभोगी रैयत के अधिकार, बेदखली से संरक्षण, अंतरणों का निबंधन, लगान आदि

V.

खूंटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयत

37

खूटकड़ी अधिकार प्राप्त रैयत के संबंध में

VI.

अनधिभोगी रैयत

38-42

अनधिभोगी रैयत के लगान, लगान में वृद्धि, उन्हें बेदखल करने के आधार एवं बेदखली की शर्ते

VII.

अध्याय IV V से छूट प्राप्त भूमि

43

अध्याय IV V से छूट प्राप्त भूमियों के संबंध में

VIII.

 जोतों एवं भूधृतियों के पट्टे एवं अंतरण

44-50

जोतों एवं भूधृतियों के पट्टे एवं उसके अंतरण के संबंध में, धारा 46 में आदिवासी, हरिजन और पिछड़े वर्ग के भूमि हस्तांतरण पर रोक का विवरण (बहुचर्चित एवं विवादित धारा)

IX.

 लगान के सामान्य उपबंध

51-63

IX-लगान के सामान्य उपबंध के संबंध में; IX-- बंजर भूमि के बंदोबस्ती के संबंध में

X.

भूस्वामी एवं काश्तकार के विविध उपबंध

64-75

भूस्वामी एवं काश्तकार के लिए विविध (प्रकीर्ण) उपबंध

XII.

अधिकार अधिलेखों एवं लगान की बंदोबस्ती

80-100

अधिकार अधिलेखों एवं लगानों की बंदोबस्ती  (निर्धारण) के संबंध में

XIII.

भूमि संबंधी शर्तों एवं रूपांतरण और उनके अभिलेखन

101-117

भूमि संबंधी शर्तों एवं रूपांतरण और उनके अभिलेखन (लिपिकरण) के संबंध में

XIV.

भूस्वामियों के विशेषाधिकार युक्त भूमि का अभिलेखन

118-126

भूस्वामियों के विशेषाधिकार युक्त भूमि के अभिलेखन के संबंध में

XV.

खूँटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयतों, ग्राम प्रधानों एवं काश्तकारों के अन्य वर्गों के अधिकार अभिलेख एवं अनुबंध-पत्र (इकरारनामा)

127-134

खूँटकट्टी अधिकार प्राप्त रैयतों, ग्राम प्रधानों एवं काश्तकारों के अन्य वर्गों के अधिकार अभिलेख एवं अनुबंध-पत्र के संबंध में

XVI.

 उपायुक्त द्वारा संज्ञेय विषयों (मामलों) में न्यायिक प्रक्रिया

135-229

उपायुक्त द्वारा संज्ञेय विषयों में न्यायिक प्रक्रिया के संबंध में

XVII.

 परिसीमन

230-238

 परिसीमन के संबंध में

XVIII.

 मुण्डारी खूँटकट्टीदारों के  विषय में विशेष उपबंध

239-256

मुण्डारी खूँटकट्टीदारों के विषय में विशेष उपबंध के बारे में

XIX

 अनुपूरक उपबंध

257-271

संयुक्त स्वामी, आदेशिका, खर्च, नियम अधिसूचना आदि के विषय में अनुपूरक उपबंध

🔥 अनुसूची A: छोटानागपुर मण्डल में निरस्त अधिनियमों एवं अधिसूचनाओं की सूची

🔥 अनुसूची B: मानसून जिले में निरस्त अधिनियमों एवं अधिसूचनाओं की सूची

सी. एन. टी. एक्ट, 1908 वर्तमान में छोटानागपुर क्षेत्र के सभी प्रमण्डलों के सभी स्थानों पर समान रूप से प्रभावी है चाहे वह देहाती इलाका हो या क्षेत्र जहाँ नगरपालिका, नगरनिगम, नगर पंचायत या अधिसूचित क्षेत्र की व्यवस्था है।

सी. एन. टी. एक्ट (1908) के बाद

🔥 सी. एन. टी. एक्ट (1908) के लागू होने के बाद बदलती जरूरतों के अनुरूप समय-समय पर विभिन्न अधिनियम पारित और लागू हुए जो सी. एन. एक्ट (1908) के पूरक अधिनियम/ कानून हैं।

ये अधिनियम इस प्रकार हैं-

(a) छोटानागपुर भूधारक लगान लेखा अधिनियम, 1929

(b) राँची जिला आदिवासी रैयत कृषिभूमि प्रत्यावर्तन अधिनियम, 1947

(c) राँची जिला टाना भगत रैयत कृषिभूमि प्रत्यावर्तन अधिनियम, 1947

(d) बिहार शिड्युल एरिया रेगुलेशन, 1969

समग्रतः कहा जा सकता है कि वर्तमान परिस्थिति में सी. एन. टी. एक्ट 1908 (पूर्ववर्ती एवं परिवर्ती अधिनियमों सहित) के अधिसंख्य प्रावधान अप्रासंगिक होते जा रहे हैं इसलिए उनमें संशोधन नितांत आवश्यक हो गए हैं। झारखण्ड सरकार को चाहिए कि पूरे झारखण्ड राज्य के विभिन्न भूमि कानूनों को संघटित और समेकित कर एक सर्वमान्य भूमि कानून बनाए जो सब पर समान रूप से लागू हो।

संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, 1949

🔥 संथाल परगना के भूमि संबंधी अधिनियमों (कानूनों) में संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (1949) का सर्वप्रमुख स्थान है।

🔥 इसके अलावे जो पूर्ववर्ती या परवर्ती अधिनियम (कानून) हैं, वे इस अधिनियम (कानून) के पूरक अधिनियम / कानून (Complementary acts) हैं।

एस. पी. टी. एक्ट (1949) के पहले

🔥 संथाल विद्रोह (1855) के परिणामस्वरूप संथाल परगना जिले का निर्माण हुआ।

🔥 1855 में अधिनियम संख्या-37 (Act No.-37) के द्वारा भागलपुर एवं वीरभूम जिले के कुछ भागों, जो संथाल विद्रोह से प्रभावित थे, को मिलाकर संथाल परगना नामक नये जिले का सृजन किया गया। बाद में इस अधिनियम का नाम बदल कर संथाल परगना अधिनियम, 1855' (Santhal Parganas Act, 1855) कर दिया गया।

🔥 29 दिसम्बर, 1856 ई. को संथाल पुलिस नियमावली, 1856 (Santhal Police Rules, 1856) बनाया गया। इस नियमावली को भागलपुर के तत्कालीन कमिश्नर जॉर्ज युल ने बनाया था इसलिए उसके नाम पर इसे 'युल नियमावली (Yul Rules) भी कहा जाता है। इस नियमावली के द्वारा संथाल परगना में प्रशासन का पहला ढाँचा बनाने का प्रयास हुआ। प्रशासन के जिस सिद्धांत को इस नियमावली के द्वारा स्थापित करने का प्रयास हुआ उसका मूल उद्देश्य शासक एवं जनता के बीच सीधा संपर्क स्थापित करना था।

🔥 संथाल परगना बंदोबस्त विनियमन, 1872 (Santhal Parganas Settlement Regulation, 1872): वर्ष 1872 ई. में संथाल परगना बंदोबस्त विनियमन 1872 (1872 का III ) को गवर्नर जनरल - इन काउंसिल द्वारा पारित किया गया जो 1 मई, 1872 ई. से प्रभावी हुआ। संथाल परगना के काश्तकारों से संबंधित यह पहला कानून था। इसी कानून से संथाल परगना में काश्तकारों की अवधारणा का आरंभ हुआ।

इस विनियमन के प्रमुख प्रावधान थे— भूमि बंदोबस्ती की सरकार द्वारा घोषणा (धारा-9), बंदोबस्ती पदाधिकारी की नियुक्ति (धारा-10), जमींदार, रैयतों एवं मांझी के अधिकारों को लिपिबद्ध करने की व्यवस्था (धारा-12-13), परती जमीन की मापी (धारा-15), मांझी एवं अन्य पदधारियों के अधिकारों को दर्ज करना (धारा-17) तथा किसानों और रैयतों के अधिकारों को परिभाषित करना (धारा-18) आदि

इस विनियमन के माध्यम से संथाल परगना क्षेत्र में काश्तकारी अधिकारों एवं कर्तव्यों को पहली बार परिभाषित किया गया। 1934 ई. में संथाल परगना बंदोबस्त (संशोधन) विनियमन, 1934 तथा 1944 ई. में संथाल परगना बंदोबस्त (संशोधन) विनियमन, 1944 पारित किए गए।

🔥 संथाल परगना लगान विनियमन, 1886 (Santhal Parganas Rent Regulation, 1886) : तत्कालीन ब्रिटिश शासक संथाल परगना से अधिक से अधिक राजस्व उगाही करना चाहते थे, सो उन्होंने 'संथाल परगना लगान विनियमन, 1886' पारित किया। इ विनियमन में लगान वसूली के लिए बड़े कड़े नियम बनाये गए थे। इस विनियमन में यह व्यवस्था की गई कि अगर कोई काश्तकार वक्त पर लगान अदा नहीं कर सकता हो तो जमींदार उस काश्तकार से जमीन वापस लेकर दूसरे ऐसे व्यक्ति को दे सकता है जो वक्त पर लगान अदा कर सकता हो ।

इस विनियमन के कारण अनेक संथालों को अपनी बनाई हुई जमीन से हाथ धोना पड़ा। इस खरीद-फरोख्त से यहाँ के बंगाली जमींदार बहुत लाभान्वित हुए। इस लाभ में हिस्सा बांटने में सूदखोर महाजन और ठेकेदार भी पीछे न रहे। इस प्रकार संथाली काश्तकारों जिन्होंने जमीन बनाई थी के हाथों से जमीन का एक बड़ा भाग उनके हाथ चली गई जिन्होंने इन जमीनों को बनाने में किसी प्रकार की मेहनत नहीं की थी।

🔥 1907 ई. में संथाल परगना लगान (संशोधन) विनियमन, 1907 ई. पारित किया गया।

एस. पी. टी. एक्ट, 1949

🔥 जे. एफ. गेंजर (J. F. Gantzer) को संथाल परगना में 1855 ई. से 1935 ई. के दौरान हुए बंदोबस्त कार्यवाही पर रिपोर्ट तैयार करने का कार्यभार सौंपा गया। मि. गेंजर के पूर्व सर ह्युज मैकफर्सन (Hugh Macpherson) ने संथाल परगना बंदोबस्त रिपोर्ट प्रस्तुत की थी जो 1905 ई. में प्रकाशित हुई। मि. गैंजर के द्वारा 1935 ई. में प्रस्तुत बंदोबस्त रिपोर्ट में बहुत भयानक तस्वीर सामने आई जिसे देखते हुए, तत्कालीन बिहार सरकार ने 'संथाल परगना जाँच समिति 1937' (Santhal Parganas Enquiry Committee, 1937) बैठा दी। इस समिति ने संथाल परगना के समग्र प्रशासन की सभी दृष्टिकोणों से जाँच-परख कर अपनी सिफारिश बिहार सरकार को सौंपी।

🔥 संथाल परगना जाँच समिति की सिफारिशों के आधार पर संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (अनुपूरक उपबंध) 1949 (बिहार अधिनियम संख्या-14, 1949) का निर्माण किया गया। यह अधिनियम 1 नवम्बर, 1949 ई. को प्रभावी हुआ।

🔥 एस. पी. टी. एक्ट, 1949 में 9 अध्याय (Chapters), 72 धाराएँ (Sections) एवं 2 अनुसूचियाँ (Schedules) हैं।

अध्याय संख्या

अध्याय का नाम

धाराऐं

मुख्य प्रावधान

I.

प्रारंभिक

1-4

संक्षिप्त नाम, आरंभ, कानून का विस्तार क्षेत्र आदि

II.

ग्राम प्रधान एवं मूलरैयत

 5-11

ग्राम प्रधान की नियुक्ति, कबुलियत आदि

III.

रैयत

12-26

 रैयतों के अधिकार, उनकी बेदखली, उनके अधिकार का हस्तांतरण, रैयती भूमि का विनियमन, हस्तांतरण का निबंधन

IV.

बंजर भूमि एवं खाली जोतों का बंदोबस्त

27-42

बंजर भूमि एवं खाली जोतों का बंदोबस्त के प्रावधान

V.

लगान

43-52

लगान संबंधी प्रावधान

VI.

निश्चित उद्देश्यों के लिए भूस्वामी द्वारा भूमि का अर्जन

53

अब यह प्रयोग में नहीं है

VII

न्यायिक प्रक्रिया

54-63

न्यायिक प्रक्रिया के प्रावधान

VIII.

परिसीमा

64-66

परिसीमा के सामान्य नियम

IX.

विविध प्रावधान

67-72

दण्ड, नोटिस तामिला, बकाया वसूली आदि के प्रावधान

🔥 अनुसूची A : पुराने विनियमनों की निरस्त धाराओं की सूची ।

🔥 अनुसूची B: मूलवासियों (aboriginals) के अंतर्गत आने वाली जनजातियों एवं जातियों की सूची।

एस. पी. टी. एक्ट, 1949 के गुण-दोष :

🔥 गुण :

(a) इस एक्ट की पहली विशेषता यह है कि इसके द्वारा काश्तकारों की जमीन को सुरक्षा प्रदान की गई।

(b) इसकी दूसरी विशेषता यह है कि काश्तकार को अपनी जमीन हस्तांतरित करने का अधिकार नहीं है यानी उनकी जमीन हस्तांतरणीय नहीं है ।

(c) इसकी तीसरी विशेषता यह है कि ग्राम प्रधान (मांझी) को परती भूमि (बंजर भूमि) एवं रिक्त जोतों (खाली जोतों) की बंदोबस्ती में राजस्व न्यायालय के समकक्ष अधिकार प्राप्त है।

(d) इसकी चौथी विशेषता यह है कि इसमें दण्ड व्यवस्था समाहित है।

🔥 दोषः इतना सब कुछ होने के बाद भी यह एक्ट दोषरहित नहीं है। इसमें कुछ कमियँ या कमजोरियाँ हैं।

(a) इस एक्ट की पहली कमजोरी यह है कि धारा-11 में ग्राम प्रधानों, परगनैतों एवं पहाड़िया सरदारों को उनके अच्छे कार्यों के लिए पुरस्कृत करने का प्रावधान है, पर यह अच्छा कार्य क्या है इसे किसी भी धारा में परिभाषित नहीं किया गया है। नतीजतन किसी को पुरस्कृत नहीं किया जा सका है।

(b) इस एक्ट की दूसरी कमजोरी धारा-28 (बी) में निहित है। इस धारा के भी व्यक्ति ग्राम समुदाय, समाज या राज्य की सेवा के बदले जमीन की बंदोबस्ती का अनुसार कोई विशेष दावा कर सकता है। इस वाक्य की संरचना इतनी ढीली है कि भारत का कोई भी व्यक्ति इस श्रेणी में आ सकता है।

(c) इस एक्ट की तीसरी कमजोरी धारा-20 (1) में निहित है। इस धारा के अनुसार नियम यह है कि कोई भी रैयत अपनी जमीन का कोई हिस्सा न तो बिक्री, दान रेहन, वसीयतनामा या पट्टा द्वारा किसी दूसरे को दे सकता है, जबकि व्यवहार में उपायुक्तों। ने सैंकड़ों एकड़ रैयती जमीन पत्थर उत्खनन के नाम पर गैर-आदिवासियों को पट्टे पर दे रखा है।

(d) इस एक्ट की चौथी कमजोरी धारा-20 (2) के परन्तुक में निहित है। इसके अनुसार आदिवासी रैयत अपनी बहन या बेटी को अपनी जमीन दान में दे सकता है और अपने घर-जमाई के नाम अपनी जोत का कुछ हिस्सा हस्तांतरित कर सकता है। पर व्यवहार में ऐसा हो नहीं पाता क्योंकि इसमें कई अड़चनें हैं।

अन्य राज्यपरक अधिनियम

झारखण्ड राज्य के भूमि संबंधी अन्य अधिनियमों (कानूनों) में प्रमुख अधिनियम (कानून) हैं-

(a) बिहार भूमि सुधार अधिनियम, 1950

Bihar Land Reforms (BLR) Act, 1950

(b) बिहार जोतों की चकबंदी अधिनियम, 1956

Bihar Consolidation of Holdings Act, 1956

(c) बिहार भूमि हदबंदी अधिनियम,

1961 Bihar Land Ceiling Act, 1961

(d) बिहार अनुसूचित क्षेत्र विनियमन,

1969 Bihar Scheduled Area Regulation, 1969

(e) पंचायत प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार), 1997

Panchayat Provisions (Extension to Scheduled Area), 1997

(f) भूमि अधिग्रहण (भूअर्जन), पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्थापन अधिनियम, 2013

Land Acquisition, Rehabilation and Settlement Act, 2013

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