समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय (Introduction to Macroeconomics)

समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय (Introduction to Macroeconomics)

समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

प्रश्न 1. व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में क्या अंतर है?

उत्तर: शेष अर्थव्यवस्था को समान मानकर व्यक्तिगत क्षेत्र की कार्य पद्धति का अध्ययन व्यष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है। उदाहरण के लिए वस्तु विशेष की कीमत का निर्धारण, वस्तु विशेष की मांग अथवा पूर्ति आदि व्यष्टि अर्थशास्त्र के विषय हैं। समष्टि अर्थशास्त्र में सामूहिक आर्थिक चरों का अध्ययन किया जाता है। इस शाखा में विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों के अन्तर्संबंधों का अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए आय एवं रोजगार का निर्धारण, पूंजी निर्माण, सार्वजनिक व्यय, आदि विषयों का विश्लेषण समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।

प्रश्न 2. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ क्या हैं?

उत्तर: पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं –

1. इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर जनता का निजी स्वामित्व होता है।

2. वस्तु एवं सेवाओं का उत्पादन बाजार में बिक्री के लिए किया जाता है।

3. बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर श्रम संसाधन का क्रय-विक्रय किया जाता है।

4. उत्पादक लाभ कमाने के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करते हैं।

5. विभिन्न उत्पादक इकाइयों में परस्पर प्रतियोगिता पायी जाती हैं।

प्रश्न 3. समष्टि अर्थशास्त्र की दृष्टि से अर्थव्यवस्था के चार प्रमुख क्षेत्रकों का वर्णन करें।

उत्तर: अर्थव्यवस्था के चार प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं –

1. परिवार क्षेत्र

2. फर्म या उत्पादक क्षेत्र

3. सामान्य सरकार

4. विदेशी क्षेत्र

परिवार क्षेत्र से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के उन सभी व्यक्तियों से जो उपभोग के लिए वस्तुएँ/सेवाएं खरीदते हैं। इसके परिवार क्षेत्र साधन आगतों जैसे भूमि, श्रम पूँजी एवं उद्यम की आपूर्ति करते हैं। उत्पादक क्षेत्र में उन सभी उत्पादक इकाइयों को शामिल किया जाता है जो साधनों को क्रय करती है, उनका संगठन करती है, उनकी सेवाओं का प्रयोग करके वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादक करती है और बाजार में उनका विक्रय करती है। फर्म का आकार छोटा अथवा बड़ा हो सकता है।

सरकार से अभिप्राय उस संगठन से है जो जनता को सुरक्षा, कानून, मनोरंजन, न्याय, प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सेवाएं निःशुल्क या सामान्य कीमत पर प्रदान करता है। सामान्यतः सरकार जनहित के लिए आर्थिक क्रियाओं का संचालन करती है। सरकार लाभ कमाने के लिए आर्थिक क्रियाओं का संचालन नहीं करती है। शेष विश्व से अभिप्राय उन सभी आर्थिक इकाइयों से है जो देश की घरेलू सीमा से बाहर स्थित होती है। शेष विश्व में दूसरे देशों की अर्थव्यवस्थाओं, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार, विश्व बैंक, विश्व मुद्रा कोष आदि को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 4. 1929 की महामंदी का वर्णन करें।

उत्तर: वर्ष 1929 से 1933 की अवधि को महामंदी कहते हैं। इस अवधि में यूरोप व अमेरिका में उत्पादन, रोजगार में भारी कमी उत्पन्न हो गई थी। इस अवधि में वस्तुओं की मांग का स्तर कम था। उत्पादन साधन बेकार पड़े थे। श्रम शक्ति को भारी संख्या में कार्य क्षेत्र से बाहर कर दिया गया था। अमेरिका में बेरोजगारी का स्तर 3% से बढ़कर 25% हो गया था।

लगभग विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाएँ अभावी मांग की समस्या एवं मुद्रा अवस्फीति की समस्याओं से ग्रस्त थीं। आर्थिक महामंदी के काल में अर्थशास्त्रियों को समूची अर्थव्यवस्था को एक इकाई मानकर अध्ययन करने के लिए विवश कर दिया। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि महामंदीकाल की समस्याओं के परिणामस्वरूप ही समष्टि अर्थशास्त्र का उदय हुआ।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1. अर्थशास्त्र के दो विषय क्या हैं?

उत्तर: अर्थशास्त्र अध्ययन के निम्नलिखित दो विषय हैं –

1. व्यष्टि अर्थशास्त्र, तथा

2. समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 2. व्यष्टि अर्थशास्त्र में किन समस्याओं का अध्ययन किया जाता है?

उत्तर: व्यष्टि अर्थशास्त्र में विशिष्ट अथवा व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 3. समष्टि अर्थशास्त्र में किन आर्थिक इकाइयों का अध्ययन किया जाता है?

उत्तर: सामूहिक या वृहत स्तर पर आर्थिक चरों का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।

प्रश्न 4. पूर्ण रोजगार का अर्थ लिखो।

उत्तर: वह स्थिति जिसमें सभी इच्छुक व्यक्तियों को उनकी रुचि एवं योग्यतानुसार प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य करने का अवसर प्राप्त हो जाता है पूर्ण रोजगार की स्थिति कहलाती है।

प्रश्न 5. अर्थशास्त्र की उस शाखा का नाम लिखो जो समष्टि आर्थिक चरों का अध्ययन करती है।

उत्तर: समष्टि अर्थशास्त्र सामूहिक चरों का अध्ययन करता है।

प्रश्न 6. समष्टि अर्थशास्त्र का विरोधाभास क्या है?

उत्तर: समष्टि अर्थशास्त्र का विरोधाभास यह है कि जो बात एक व्यक्तिगत आर्थिक चर के बारे में सत्य होती है आवश्यक नहीं कि सामूहिक आर्थिक चरों के बारे में भी सत्य हो।

प्रश्न 7. पूरी अर्थव्यवस्था के विश्लेषण का कार्य किससे होता है?

उत्तर: विभिन्न आर्थिक इकाइयों अथवा क्षेत्रों में घनिष्ठ संबंध के कारण समूची अर्थव्यवस्था का विश्लेषण किया जाता है।

प्रश्न 8. प्रतिनिधि वस्तु का अर्थ लिखो।

उत्तर: एक अकेली वस्तु जो अर्थव्यवस्था में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रतिनिधित्व करती है प्रतिनिधि वस्तु कहलाती है।

प्रश्न 9. रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त का अर्थ लिखो।

उत्तर: रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त के अनुसार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रचलित मजदूरी दर पर सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति रहती है।

प्रश्न 10. रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त के मुख्य बिन्दु लिखो।

उत्तर: रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त के मुख्य बिन्दु –

1. वस्तु की आपूर्ति अपनी मांग की स्वयं जननी होती है।

2. एक अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है।

प्रश्न 11. समष्टि अर्थशास्त्र की एक सीमा बताओ।

उत्तर: समष्टि अर्थशास्त्र में सामूहिक आर्थिक चरों को समरूप माना जाता है जबकि वे वास्तव में समान होते नहीं हैं।

प्रश्न 12. चार परंपरावादी अर्थशास्त्रियों के नाम लिखो।

उत्तर: चार परंपरावादी अर्थशास्त्री –

1. डेविड रिकार्डों

2. जे. बी. से

3. जे. एस. मिल तथा

4. एडम स्मिथ 

प्रश्न 13. जे. एम. कीन्स द्वारा लिखित अर्थशास्त्र की पुस्तक का क्या नाम है?

उत्तर: प्रो. जे. एम. कीन्स द्वारा लिखित पुस्तक का नाम है General Theory of Employment Interest and Money.

प्रश्न 14. स्वतंत्र आर्थिक चरों का अर्थ लिखो।

उत्तर: वे आर्थिक चर जो दूसरी किसी आर्थिक चर/चरों को प्रभावित करता है स्वतंत्र आर्थिक चर कहलाते हैं। जैसे राष्ट्रीय आय आदि।

प्रश्न 15. आश्रित आर्थिक चर का अर्थ लिखो।

उत्तर: वह आर्थिक चर दूसरे किसी आर्थिक चर से प्रभावित होता है आश्रित चर कहलाता है। जैसे उपभोग, बचत आदि।

प्रश्न 16. समष्टि अर्थशास्त्र के चरों के उदाहरण लिखिए।

उत्तर: समष्टि चरों के उदाहरण –

1. सामूहिक मांग

2. सामूहिक पूर्ति

3. रोजगार

4. सामान्य कीमत स्तर आदि

प्रश्न 17. ‘से’ का नियम क्या है?

उत्तर: ‘से’ का नियम बताता है कि किसी वस्तु की आपूर्ति उसकी मांग की स्वयं जननी होती है।

प्रश्न 18. 1929-1933 की अवधि में महामंदी के मुख्य बिन्दु लिखो।

उत्तर: आर्थिक महामंदीकाल में बाजारों में वस्तुओं की आपूर्ति उपलब्ध थी लेकिन वहाँ मांग की कमी की समस्या थी और बेरोजगारी का स्तर भी बढ़ गया था।

प्रश्न 19. उस आर्थिक चर का उदाहरण दीजिए जिसे समष्टि स्तर पर स्थिर माना जाता है।

उत्तर: वस्तुओं के कीमत स्तर को समष्टि स्तर पर स्थिर माना जाता है।

प्रश्न 20. सामूहिक मांग की परिभाषा लिखो।

उत्तर: अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग के योग को कुल मांग/सामूहिक मांग कहते हैं।

प्रश्न 21. उपभोग फलन का अर्थ लिखो।

उत्तर: उपभोग राष्ट्रीय आय का फलन है। दूसरे शब्दों में उपभोग फलन, उपभोग व राष्ट्रीय आय के बीच संबंध को व्यक्त करता है।

प्रश्न 22. आर्थिक महामंदीकाल (1929-1933) से पूर्व समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन किस शाखा में किया जाता था?

उत्तर: आर्थिक महामंदीकाल (1929-1933) से पूर्व अर्थशास्त्र का अध्ययन केवल व्यष्टि अर्थशास्त्र के रूप में किया जाता था।

प्रश्न 23. समष्टि अर्थशास्त्र का वैकल्पिक नाम लिखिए।

उत्तर: समष्टि अर्थशास्त्र को आय सिद्धान्त के रूप में भी जाना जाता है।

प्रश्न 24. कीमत सिद्धान्त को और किस नाम से जाना जाता है?

उत्तर: वैकल्पिक तौर पर कीमत सिद्धान्त को व्यष्टि अर्थशास्त्र के नाम से जाना जाता था।

प्रश्न 25. दो आश्रित चरों के उदाहरण लिखो।

उत्तर: आश्रित चरों के उदाहरण –

1. उपभोग एवं

2. बचत

प्रश्न 26. अन्तः क्षेपण का अर्थ लिखिए।

उत्तर: वे आर्थिक क्रियाएं जिनसे राष्ट्रीय आय में बढ़ोतरी होती है अन्तः क्षेपण कहलाती हैं। जैसे निवेश, उपभोग आदि।

प्रश्न 27. बाह्य स्राव का अर्थ लिखो।

उत्तर: वे आर्थिक क्रियाएं जिनसे राष्ट्रीय आय में कमी आती है बाह्य स्राव कहलाती है।

प्रश्न 28. समष्टि अर्थशास्त्र का उदय किस कारण हुआ?

उत्तर: केन्द्रीय क्रांति अथवा आर्थिक महामंदी के बाद समष्टि अर्थशास्त्र का उदय हुआ।

प्रश्न 29. उस आर्थिक चर का नाम लिखो जिसे व्यष्टि स्तर पर स्थिर माना जाता है।

उत्तर: आय एवं रोजगार स्तर को व्यष्टि पर स्थिर माना जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1. व्यष्टि व समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर लिखो।

उत्तर: व्यष्टि व समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर –

1. व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक चरों का अध्ययन करता है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र सामूहिक स्तर पर आर्थिक चरों का अध्ययन करता है।

2. व्यष्टि अर्थशास्त्र समझने में सरल है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र सापेक्ष रूप से जटिल विषय है।

3. संसाधनों का वितरण व्यष्टि अर्थशास्त्र का एक आवश्यक उपकरण है लेकिन समष्टि स्तर पर इसे स्थिर माना जाता है।

4. व्यष्टि अर्थशास्त्र कीमत सिद्धान्त तथा संसाधनों के आबटन पर जोर देता है लेकिन आय व रोजगार समष्टि के मुख्य विषय हैं।

प्रश्न 2. समष्टि आर्थिक चरों के उदाहरण लिखिए।

उत्तर: समष्टि अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था को इकाई मानकर सामूहिक आर्थिक चरों का विश्लेषण करता है। समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र अधिक व्यापक है। निम्नलिखित आर्थिक चरों का इस शाखा में अध्ययन किया जाता है –

1. सामूहिक मांग

2. सामूहिक पूर्ति

3. सकल घरेलू पूंजी निर्माण

4. स्वायत्त एवं प्रेरित निवेश

5. निवेश गुणांक

6. औसत उपभोग एवं बचत प्रवृत्ति

7. सीमान्त उपभोग एवं बचत प्रवृत्ति

8. पुंजी की सीमान्त कार्य क्षमता

प्रश्न 3. संक्षेप में पूर्ण रोजगार की अवधारणा को स्पष्ट करो।

उत्तर: वह स्थिति जिसमे एक अर्थव्यवस्था में सभी इच्छुक लोगों को दी गई या प्रचलित मजदूरी दर पर योग्यतानुसार आसानी से कार्य मिल जाता है पूर्ण रोजगार कहलाती है। परंपरावादी अर्थशास्त्री जे. बी. से का पूर्ण रोजगार के बारे में अलग विचार था। परंपरावादी रोजगार सिद्धान्त के अनुसार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है क्योंकि प्रचलित मजदूरी पर काम करने के इच्छुक सभी व्यक्तियों को आसानी से काम मिल जाता है।

जे. एम. कीन्स के अनुसार आय के सन्तुलन स्तर पर रोजगार स्तर को साम्य रोजगार स्तर कहते हैं। आवश्यक रूप से साम्य रोजगार का स्तर पूर्ण रोजगार स्तर के समान नहीं होता है। साम्य रोजगार का स्तर यदि पूर्ण रोजगार स्तर से कम होता है तो अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की समस्या रहती है। परंपरावादी अर्थशास्त्री साम्य रोजगार को ही पूर्ण रोजगार कहते थे।

प्रश्न 4. व्यष्टि अर्थशास्त्र की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।

उत्तर: व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध विशिष्ट या व्यक्गित आर्थिक चरों से है। दूसरे शब्दों में अर्थशास्त्र की इस शाखा में विशिष्ट आर्थिक इकाइयों या व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र की व्यष्टि शाखा में उपभोक्ता सन्तुलन, उत्पादक सन्तुलन, साम्य कीमत निर्धारण, एक वस्तु की मांग, एक वस्तु की पूर्ति आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है। आर्थिक महामंदी से पूर्व अर्थशास्त्र के रूप में केवल व्यष्टि अर्थशास्त्र का ही अध्ययन किया जाता है। व्यष्टि अर्थशास्त्र को कीमत-सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 5. समष्टि अर्थशास्त्र की अवधारणा संक्षेप में स्पष्ट करो।

उत्तर: समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध सामूहिक या समष्ट्रीय आर्थिक चरों से हैं। दूसरे शब्दों में अर्थशास्त्र की इस शाखा में सामूहिक या समष्टि आर्थिक चरों का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र की समष्टि शाखा में आय एवं रोजगार निर्धारण, पूँजी निर्माण, सार्वजनिक व्यय, सरकारी व्यय, सरकारी बजट, विदेशी व्यापार आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र ही इस शाखा का उदय आर्थिक महामंदी के बाद हुआ है। इस शाखा को आय एवं रोजगार सिद्धान्त के रूप में भी जाना जाता है।

प्रश्न 6. रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त समझाइए।

उत्तर: रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त का प्रतिपादन परंपरावादी अर्थशास्त्रियों ने किया था। इस सिद्धान्त के अनुसार एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक इच्छुक व्यक्ति को प्रचलित मजदूरी पर उसकी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार आसानी से काम मिल जाता है। दूसरे शब्दों में प्रचलित मजदूरी दर पर अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है। काम करने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए दी गई मजदूरी दर पर बेरोजगारी की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती है। रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त को बनाने में डेविड रिकार्डो, पीगू, मार्शल आदि व्यष्टि अर्थशास्त्रियों ने योगदान दिया है। रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त में जे. बी. से का रोजगार सिद्धान्त बहुत प्रसिद्ध है।

प्रश्न 7. संक्षेप में अनैच्छिक बेरोजगार को समझाइए।

उत्तर: यदि दी गई मजदूरी दर या प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने के लिए इच्छुक व्यक्ति को आसानी से कार्य नहीं मिल पाता है तो इस समस्या को अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं। एक अर्थव्यवस्था में अनैच्छिक बेरोजगारी के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –

1. अर्थव्यवस्था में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति हो सकती है।

2. प्राकृतिक संसाधनों की कमी।

3. पिछड़ी हुई उत्पादन तकनीक।

4. आधारिक संरचना की कमी आदि।

प्रश्न 8. सामूहिक मांग का अर्थ लिखिए।

उत्तर: दी गई अवधि में एक अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग के योग को कुल मांग या सामूहिक मांग कहते हैं। अर्थव्यवथा में वस्तुओं की मांग उपभोग तथा निवेश के लिए की जाती है। इस प्रकार वस्तुओं की उपभोग के लिए मांग तथा निवेश के लिए मांग के योग को भी सामूहिक मांग कह सकते हैं। संक्षेप में सामूहिक मांग = उपभोग + निवेश। सामूहिक मांग के संघटको को निम्न प्रकार से भी लिखा जा सकता है –

1. निजी अन्तिम उपभोग व्यय।

2. सार्वजनिक अन्तिम उपभोग व्यय।

3. सकल घरेलू पूंजी निर्माण।

4. शुद्ध निर्यात।

प्रश्न 9. वे कारक लिखिए जिन पर कीन्स का रोजगार सिद्धान्त निर्भर करता है।

उत्तर: कीन्स का आय एवं रोजगर सिद्धान्त निम्नलिखित कारकों पर निर्भर है –

1. अर्थव्यवस्था में आय एवं रोजगार का स्तर, सामूहिक मांग के स्तर पर निर्भर होता है। सामूहिक मांग का स्तर जितना ऊँचा होता है, आय एवं रोजगार का स्तर भी उतना ही अधिक होता है। इसके विपरीत सामूहिक मांग का स्तर नीचा होने पर आय एवं रोजगार का स्तर भी नीचा रहता है।

2. अर्थव्यवस्था आय एवं रोजगार के स्तर को उपभोग का स्तर बढ़ाकर बढ़ाया जा सकता है।

3. अर्थवव्यवस्था के उपभोग का स्तर आय के स्तर व उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर होता है।

प्रश्न 10. कुछ व्यष्टि आर्थिक चरों के उदाहरण लिखिए।

उत्तर: व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध व्यक्तिगत या विशिष्ट आर्थिक चरों से होता है। कुछ व्यष्टि आर्थिक चरों के उदाहरण निम्नलिखित हैं –

1. संसाधनों का आंबटन

2. उपभोक्ता व्यवहार एवं उपभोक्ता सन्तुलन

3. वस्तु की मांग

4. वस्तु की मांग की लोच

5. वस्तु की आपूर्ति

6. उत्पादक व्यवहार एवं उत्पादक सन्तुलन

7. वस्तु की पूर्ति लोच

8. वस्तु की कीमत का निर्धारण।

प्रश्न 11. समष्टि अर्थशास्त्र में संरचना की भ्रान्ति को स्पष्ट करो।

उत्तर: समष्टि अर्थशास्त्र में समूहों का अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन में समूह की इकाइयों में बहुत अधिक विषमता पायी जाती है। समूह की इकाइयों की विषमता को पूरी तरह से अनदेखा किया जाता है। इस विषमता के कारण कई भ्रान्तियाँ पैदा हो जाती हैं। जैसे पूंजी वस्तुओं की कीमत गिरने से सामान्य कीमत स्तर गिर जाता है। लेकिन दूसरी ओर खाद्यान्नों की बढ़ती हुई कीमतें उपभोक्ताओं की कमर तोड़ती रहती हैं। लेकिन सरकार आंकड़ों की मदद से सामान्य कीमत स्तर को घटाने का श्रेय बटोरती है।

प्रश्न 12. समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व लिखिए।

उत्तर: समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। जैसे –

1. समष्टि शाखा से आर्थिक भ्रान्तियों को सुलझाने में मदद मिलती है।

2. इस. शाखा के अध्ययन से आर्थिक उतार-चढ़ावों को समझना सरल हो जाता है।

3. व्यष्टि अर्थशास्त्र के पूरक के रूप में इसके विकास को समष्टि अर्थशास्त्र सहायक है।

4. समष्टि आर्थिक विश्लेषण से आर्थिक नियोजन से मदद मिलती है।

5. आर्थिक नियोजन के क्रियान्वयन में मदद मिलती है।

प्रश्न 13. परंपरावादी रोजगर सिद्धान्त की मान्यताएं लिखिए।

उत्तर: आय एवं रोजगार का परंपरावादी सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है –

1. वस्तु की आपूर्ति उसकी मांग की जननी होती है।

2. मजदूरी दर पूर्णतया लोचदार होती है।

3. ब्याज दर पूर्णतया लोचदार होती है।

4. वस्तु की कीमत पूर्णतथा नम्य होती है।

5. अर्थव्यवस्था में पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है।

6. आर्थिक क्रियाकलापों के संचालन में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।

प्रश्न 14. समष्टि अर्थव्यवस्था के उपकरण बताइए।

उत्तर: समष्टि अर्थशास्त्र में उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित उपकरणों का उपयोग किया जाता है –

1. आय एवं रोजगार नीति –

👉सामूहिक मांग

👉सामूहिक पूर्ति

2. राजकोषीय नीति –

👉सरकारी बजट

👉मजदूरी नीति

👉आयात व निर्यात नीति

👉उत्पादन नीति

3. मौद्रिक नीति –

👉बैंक दर

👉नकद जमा अनुपात

👉संवैधानिक तरलता अनुपात

👉खुले बाजार की क्रियाएँ

👉साख नीति

प्रश्न 15. समष्टि अर्थशास्त्र के लिए व्यष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व बताइए।

उत्तर: जिस प्रकार व्यक्ति-व्यक्ति को मिलाकर समाज का गठन होता है फर्म-फर्म के संयोजन से उद्योग की रचना होती है। उद्योगों को मिलाकर अर्थव्यवस्था अर्थात् समग्र बनता है। इसलिए व्यष्टि अर्थशास्त्र समष्टि अर्थशास्त्र के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। जैसे –

1. अलग-अलग वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमत के आधार पर ही सामान्य कीमत स्तर का आकलन करते हैं।

2. व्यक्तिगत आर्थिक/उत्पादक इकाइयों के आय के योग के योग से राष्ट्रीय आय ज्ञात की जाती है।

3. आर्थिक नियोजन के लिए फर्मों व उद्योगों के नियोजन का जानना अति आवश्यक है।

प्रश्न 16. समष्टि अर्थशास्त्र में समूहों को मापने में आने वाली कठिनाइयों को लिखिए।

उत्तर: अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। वस्तुओं एवं सेवाओं का मापन अलग-अलग इकाइयों में किया जाता है। दूसरे शब्दों में सभी उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मापन करने के लिए कोई एक उपयुक्त इकाई नहीं है। अत: वस्तुओं एवं सेवाओं को मापने में केवल मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 17. आय व उत्पादन के बारे में परंपरावादी विचार को संक्षेप में लिखिए।

उत्तर: आय एवं उत्पादन के परंपरावादी सिद्धान्त के अनुसार वस्तु की आपूर्ति, मांग की जननी होती है। अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता पायी जाती है। वस्तुओं की कीमत पूर्णतः नम्य होती है। इसका अभिप्राय यह है कि वस्तुओं की आपूर्ति एवं मांग में परिवर्तन के अनुसार कीमत में परिवर्तन हो जाता है। नम्य कीमत पर से वस्तु बाजार में मांग व पूर्ति में स्वतः सन्तुलन स्थापित हो जाता है।

इसलिए अधिशेष उत्पादन अथवा अधिमांग की कोई समस्या पैदा नहीं होती है। यदि अस्थायी तौर पर अधिशेष उत्पादन की समस्या उत्पन्न होती है तो वस्तु की कीमत गिर जाती है। कम कीमत पर वस्तु की मांग बढ़ जाती है और उत्पादक पूर्ति कम मात्रा में करने लगते हैं। मांग व पूर्ति में परिवर्तन का क्रम संतुलन स्थापित होने पर रुक जाता है। वस्तु बाजार की तरह श्रम बाजार में भी नम्य मजदूरी दर के द्वारा सन्तुलन स्थापित हो जाता है और अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति रहती है।

प्रश्न 18. व्यष्टिं अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र की परस्पर निर्भरता स्पष्ट करो।

उत्तर: व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र की दो अलग-अलग शाखाएं हैं। ये दोनों शाखाएं परस्पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए एक वस्तु की कीमत निर्धारण व्यष्टि विश्लेषण के आधार पर किया जाता है और सामान्य कीमत का निर्धारण समष्टि विश्लेषण के द्वारा होता है। उद्योग में मजदूरी दर निर्धारण व्यष्टि अर्थशास्त्र का मुद्दा है। सामान्य मजदूरी दर का निर्धारण समष्टि अर्थशास्त्र का विषय है। इस प्रकार से कहा जा सकता है। कि व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र एक-दूसरे पर निर्भर शाखाएं हैं।

प्रश्न 19. संक्षेप में समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र बताइए।

उत्तर: समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र की एक विस्तृत श्रृंखला है। इस शाखा के कुछ क्षेत्र नीचे लिखे गए हैं –

1. रोजगर सिद्धान्त-रोजगार एवं बेरोजगार से संबंधित विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।

2. राष्ट्रीय आय का सिद्धान्त-राष्ट्रीय आय से संबंधित समाहारों जैसे बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद, साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद, बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद, राष्ट्रीय प्रयोज्य आयं आदि तथा उनके संघटकों का अध्ययन किया जाता है।

3. मुद्रा सिद्धान्त-मुद्रा के कार्य, मुद्रा के प्रकार, बैंकिग प्रणाली आदि का विश्लेषण अर्थशास्त्र की इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है।

4. विश्व व्यापार का सिद्धान्त- व्यापार शेष, भुगतान शेष, विनिमय दर आदि के बारे में विश्लेषण समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।

प्रश्न 20. आर्थिक विरोधाभास को समझने के लिए समष्टि अर्थशास्त्र किस प्रकार सहायक है?

उत्तर: कुछ आर्थिक तथ्य ऐसे होते हैं जो व्यक्तिगत स्तर पर उपयुक्त होते हैं परन्तु सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। ऐसी धारणाओं को आर्थिक विरोधाभास कहते है। जैसे महामंदीकाल में व्यक्तिगत बचत व्यक्तिगत स्तर पर लाभकारी रही परन्तु पूरी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक सिद्ध हुई। इस विरोधाभास को प्रो. जे. एम. कीन्स ने समष्टि अर्थव्यवस्था की सहायता से स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि बचत व्यक्तिगत स्तर पर वरदान होती है परन्तु सामूहिक स्तर पर अभिशाप होती है।

प्रश्न 21. क्या व्यष्टि अर्थशास्त्र को समझने के लिए समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन जरूरी है?

उत्तर: कई बार व्यक्तिगत निर्णय समष्टि निर्णयों को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं। इसी प्रकार व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयां निर्णय लेने के लिए सामूहिक निर्णयों को ध्यान में रखना जरूरी होता है –

1. एक फर्म के उत्पादन का स्तर का पैमाना कुल मांग अथवा लोगों की क्रय शक्ति को ध्यान में रखकर तय करती है।

2. एक वस्तु की कीमत उस वस्तु की मांग व पूर्ति से ही तय नहीं होती है बल्कि दूसरी वस्तुओं की मांग व पूर्ति को भी ध्यान में रखकर तय की जाती है।

3. एक फर्म साधन भुगतान के निर्धारण के लिए दूसरी फर्मों के साधन भुगतान संबंधी निर्णय ध्यान में रखती है। आदि।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1. आय एवं रोजगार सिद्धान्त की कीन्स विचारधारा के मुख्य बिन्दु बताइए।

उत्तर: आर्थिक महामंदीकाल (1929-1933) ने कई ऐसी आर्थिक समस्याओं को जन्म दिया जिनको व्यष्टि अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों के आधार पर हल नहीं किया जा सका। इन समस्याओं के समाधान हेतु प्रो. जे. एम. कीन्स ने General Theory of Employment, Interest & Money लिखी। इस पुस्तक में कीन्स ने आय एवं रोजगार के बारे में निम्नलिखित मुख्य बातें बतायीं –

1. एक अर्थव्यवस्था में आय एवं रोजगार का स्तर संसाधनों की उपलब्धता एवं उपयोग पर निर्भर करता है। यदि किसी अर्थव्यवस्था में कुछ संसाधन बेकार पड़े होते हैं तो अर्थव्यवस्था उन्हें उपयोग में लाकर आय एवं रोजगार के स्तर को बढ़ा सकती है।

2. कीन्स ने परंपरावादियों के इस विचार को कि एक वस्तु की पूर्ति मांग की जनक होती है खारिज कर दिया। कीन्स ने बताया कि वस्तु की कीमत उपभोक्ता की आय और उपभोक्ता की उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करती है।

3. परंपरावादी अर्थशास्त्रियों के अनुसार सन्तुलन की अवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है। लेकिन कीन्स ने सन्तुलन स्तर के रोजगार स्तर को साम्य रोजगार स्तर का नाम दिया और स्पष्ट किया कि साम्य रोजगार स्तर आवश्यक रूप से पूर्ण रोजगार स्तर के समान नहीं होता है यदि साम्य रोजगार स्तर, पूर्ण रोजगार स्तर से कम है तो अर्थव्यवस्था उपभोग या सामूहिक मांग को बढ़ाकर आय एवं रोजगार स्तर में वृद्धि कर सकती है।

4. परंपरावादी विचार में सरकारी हस्तक्षेप को निषेध करार दिया गया था। लेकिन कीन्स ने सुझाव दिया कि विषम परिस्थितियों जैसे अभावी मांग अधिमांग आदि में हस्तक्षेप करके इन्हें ठीक करने के लिए उपाय अपनाने चाहिए।

5. परंपरावदी सिद्धांत में बचतों को वरदान बताया गया है जबकि समष्टि स्तर पर कीन्स ने बचतों को अभिशाप की संज्ञा दी है। व्यक्तिगत स्तर पर बचत वरदान हो सकती है।

प्रश्न 2. व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर स्पष्ट करो।

उत्तर:

प्रश्न 3. आय एवं रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त को संक्षेप में समझाइए।

उत्तर: परंपरावादी अर्थशास्त्रियों जैसे पीग, डेविड रिकार्डों, आल्फ्रेड मार्शल, जे. एस. मिल, जे. बी. से आदि ने व्यष्टि अर्थशास्त्र के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। दूसरे शब्दों में परंपरावादी अर्थशास्त्रियों ने अपना ध्यान व्यष्टि अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों एवं नियमों का प्रतिपादन करने की ओर केन्द्रित किया। परंपरावादी अर्थशास्त्रियों की मान्यता थी कि साम्य स्तर पर एक अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है। आर्थिक परिवर्तन से अस्थायी अधिशेष उत्पादन अथवा बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो सकती है। परन्तु नम्य मजदूरी दर एवं नम्य कीमत के द्वारा ये समस्याएं स्वतः सरकारी हस्तक्षेप के बिना ठीक हो जाती है। इस सिद्धांत की मुख्य बातें निम्न प्रकार हैं –

1. एक वस्तु की आपूर्ति, मांग की जनक होती है।

2. साम्य की अवस्था में अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है।

3. अर्थव्यवस्था में अधिशेष उत्पादन कोई समस्या नहीं होती है। यदी कभी यह समस्या उत्पन्न होती है तो वस्तु की नम्य कीमत के द्वारा यह समस्या स्वयं हल हो जाती है।

4. अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की समस्या भी उत्पन्न नहीं होती है। यदि अस्थायी रूप से यह समस्या उत्पन्न होती है तो नुम्य मजदूरी दर उसे ठीक कर देती है।

5. अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति अथवा अवस्फीति की भी कोई समस्या नहीं होती है। नम्य ब्याज दर मुद्रा की मांग एवं आपूर्ति में सन्तुलन बना देती है।

6. सरकार को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।

प्रश्न 4. समष्टि आर्थिक दृष्टिकोण की आवश्यकता को स्पष्ट करो।

उत्तर: परंपरावादी अर्थशास्त्रियों जैसे पीगू, डेविड रिकाडौँ, आल्फ्रेड मार्शल, जे. एस. मिल. जे. बी. से आदि ने व्यष्टि आर्थिक सिद्धान्तों को प्रतिपादित करने में अहम भूमिका निभायी। इन अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक समस्याओं का हल ढूंढने का काम व्यष्टि स्तर तक सीमित रखा। 1929 तक व्यष्टि आर्थिक सिद्धान्त एवं उनकी मान्यताओं से आर्थिक समस्याओं का स्वतः समाधान होता रहा। लेकिन (1929-1933) के महामंदीकाल ने व्यष्टि अर्थशास्त्रियों की मान्यताओं एवं सिद्धान्त को असफल कर दिया। वस्तुएं प्रचुर मात्रा में बाजार में उपलब्ध थीं परन्तु अपनी मांग नहीं उत्पन्न कर पा रही थी। वस्तु की कीमत नम्यता के आधार पर कीमत घटने पर भी वस्तुओं की मांग नहीं बढ़ी।

इसी प्रकार साधन बाजार नम्य मजदूरी पर बेरोजगारी की समस्या को ठीक नहीं कर पाई। नम्य ब्याज दर से अर्थव्यवस्थाओं में अवस्फीति की स्थिति ठीक नहीं हो पा रही है। महामंदी की लम्बी अवधि, इसके द्वारा उत्पन्न विकट समस्याओं जैसे अभावी मांग, मुद्रा अवस्फीति, बेरोजगारी आदि ने अर्थव्यवस्थाओं को बेहाल बना दिया। इन समस्याओं का समाधान करने में व्यष्टि आर्थिक सिद्धान्तों के हाथ खड़े हो गए। अर्थात् व्यष्टि सिद्धान्तों से इन समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा था।

इसी संदर्भ मे जे. एम. कीन्स ने General Theory of Income & Employment, Money and Interest लिखी। इस पुस्तक ने महामंदी की समस्याओं से छुटकारा पाने की नई राह दिखाई। इस नई राह को समष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं। इस सिद्धान्त में सुझाए गये सिद्धान्तों के आधार पर अर्थव्यवस्थाओं में बेकार पड़े, साधनों का सदोपयोग बढ़ा, जिससे उत्पादन, आय एवं रोजगार स्तर में सुधार संभव हो पाया। अतः समष्टि स्तर की समस्याओं जैसे आय का स्तर बढ़ाने, बेरोजगारी दूर करने, अवस्फीति या स्फीति आदि को ठीक करने के लिए समष्टि दृष्टिकोण आवश्यक है।

प्रश्न 5. समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्रों का संक्षिप्त ब्योरा दीजिए।

उत्तर: समष्टि अर्थशास्त्र में निम्नांकित विषयों का अध्ययन किया जाता है –

1. राष्ट्रीय आय का सिद्धान्त-इस शाखा में राष्ट्रीय आय की विभिन्न अवधारणाओं, संघटकों माप की विधियों तथा सामाजिक लेखांकनों का अध्ययन किया जाता है।

2. मुद्रा का सिद्धान्त-मुद्रा की मांग व पूर्ति रोजगार के स्तर को प्रभावित करती है। मुद्रा के कार्य, प्रकर तथा मुद्रा सिद्धान्तों का अध्ययन समष्टि स्तर पर किया जाता है।

3. सामान्य कीमत सिद्धान्त-मुद्रा स्फीति, मुद्रा, अवस्फिति, इनके उत्पन्न होने के कारणों एवं इन्हें ठीक करने के उपायों का अध्ययन एवं विश्लेषण अर्थशास्त्र में किया जाता है।

4. आर्थिक विकास का सिद्धान्त-आर्थिक विकास/प्रति व्यक्ति आय में होने वाले परिवर्तनों एवं इनकी समस्याओं का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है। सरकार की राजस्व नीति, एवं मौद्रिक नीतियों का अध्ययन समष्टि शाखा में किया जाता है।

5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धान्त-विभिन्न देशों के बीच आयात-निर्यात की मात्रा, दिशा के साथ विभिन्न देशों के दूसरे आर्थिक लेन-देनों का विश्लेषण भी इस शाखा में किया जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1. पूर्ण रोजगार वह स्थिति होती है जिसमें सभी इच्छुक व्यक्तियों को आसानी से कार्य मिल जाता है –

(A) बाजार मजदूरी दर पर

(B) स्थिर मजदूरी दर पर

(C) बाजार से कम मजदूरी दर पर

(D) बाजार से अधिक मजदूरी दर पर

प्रश्न 2. सन्तुलन रोजगारी स्थिति वह होती है जिसमें –

(A) सामूहिक मांग व सामूहिक पूर्ति समान होती है

(B) सामूहिक मांग, सामूहिक पूर्ति से ज्यादा होती है

(C) सामूहिक मांग, सामूहिक पूर्ति से कम होती है

(D) सामूहिक मांग शून्य होती है

प्रश्न 3. उपभोग प्रवृत्ति जिस परिवर्तन के बारे में बताती है वह है –

(A) आय के कारण बचत में परिवर्तन

(B) आय के कारण निवेश में परिवर्तन

(C) आय के कारण ब्याज दर में परिवर्तन

(D) आय के कारण उपभोग में परिवर्तन

प्रश्न 4. वर्ष 1929 से पूर्व अर्थशास्त्र जिस शाखा का अध्ययन किया जाता था वह है –

(A) समष्टि अर्थशास्त्र

(B) व्यष्टि अर्थशास्त्र

(C) A तथा B दोनों

(D) बीजगणित व समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 5. Teh General Theory of Income & Employment, Money and Interest लिखा था –

(A) आल्फ्रेड मार्शल

(B) जे. एस. मिल

(C) डेविड रिकार्डो

(D) जे. एम. कीन्स

प्रश्न 6. Teh General Theory of Income & Employment,Money and Interest प्रकाश में आयी –

(A) वर्ष 1929

(B) वर्ष 1729

(C) वर्ष 1936

(D) वर्ष 1991

प्रश्न 7. समष्टि अर्थशास्त्र का वैकल्पिक नाम है –

(A) आय सिद्धान्त

(B) कीमत सिद्धान्त

(C) उपभोक्ता सिद्धान्त

(D) उत्पादक सिद्धान्त

प्रश्न 8. व्यष्टि अर्थशास्त्र का वैकल्पिक नाम है –

(A) आय सिद्धान्त

(B) कीमत सिद्धांत

(C) उपभोक्ता सिद्धान्त

(D) उत्पादक सिद्धान्त

प्रश्न 9. बचत प्रवृत्ति जिस परिवर्तन के बारे में बताती है वह है –

(A) आय के कारण बचत में परिवर्तन

(B) आय के कारण उपभोग में परिवर्तन

(C) आय के कारण निवेश में परिवर्तन

(D) आय के कारण ब्याज परिवर्तन

प्रश्न 10. आर्थिक महामंदीकाल की अवधि थी –

(A) 1939-1942

(B) 1857-1860

(C) 1929-1932

(D) 1947-1950

إرسال تعليق

Hello Friends Please Post Kesi Lagi Jarur Bataye or Share Jurur Kare