12th अंतरा (ऐच्छिक) 3. विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी

12th अंतरा (ऐच्छिक) 3. विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी
12th अंतरा (ऐच्छिक) 3. विश्वनाथ त्रिपाठी = बिस्कोहर की माटी

बिस्कोहर की माटी

प्रश्न 1. कोइयाँ किसे कहते हैं ? उसकी विशेषताएँ बताइये।

उत्तर : कोइयाँ एक जल-पुष्प है। इसको कुमुद भी कहते हैं। इसे कोकाबेली भी कहा जाता है। यह शरद् ऋतु में खिलता है। जहाँ भी गड्ढा होता है और उसमें पानी भरा होता है, वहाँ पर कोइयाँ फूल उठती है। रेलवे लाइन के दोनों ओर गड्ढों में भरे पानी में यह पुष्प दिखाई देता है। यह समस्त उत्तर भारत में पाया जाता है। शरद् ऋतु में सरोवरों में चाँदनी का प्रतिबिम्ब तथा खिली हुई कोइयाँ की पत्तियाँ मिलकर एक हो जाती हैं। जो इसकी गंध को पसन्द करता है वही इसके महत्त्व को जानता है।

प्रश्न 2. 'बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं, माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है' टिप्पणी कीजिए।

अथवा

"बच्चे द्वारा माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं, माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन चरित होता है।" निहित जीवन-मूल्यों की दृष्टि से प्रस्तुत कथन की समीक्षा कीजिए।

अथवा

"बच्चे का अपनी माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं, माँ से बच्चे के सारे संबंधों का जीवन चरित होता है। कथन का आशय स्पष्ट करते हुए इसके आलोक में माँ और बच्चे के संबंध पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर : माँ अपने बच्चे को आँचल में छिपाकर दूध पिलाती है। बच्चे का माँ का दूध पीना सिर्फ दूध पीना नहीं, माँ से बच्चे. के सारे संबंधों का जीवन-चरित होता है।' बच्चा सुबकता है और रोता है। वह माँ को मारता है। माँ भी कभी-कभी बच्चे को मारती है फिर भी बच्चा माँ से चिपटा रहता है।

माँ भी उसे अलग नहीं करती, चिपटाए रहती है। बच्चा माँ के पेट का स्पर्श करता है। वह उसके शरीर की गंध सूंघता है। इस स्पर्श से बच्चा जैसे माँ के पेट में अपना स्थान तलाशता है। चाँदनी रात में खटिया पर लेटकर बच्चे को दूध पिलाते समय माँ दूध ही नहीं, उसे चाँदनी भी पिलाती है। चाँदनी भी माँ के समान ही बच्चे को ममता, पुलक और स्नेह देती है। माँ की गोद में लेटकर माँ का दूध पीना मानव जीवन की सार्थकता है।

माँ का दूध पीने के साथ ही बच्चे का माँ के साथ जीवनभर का अटूट बंधन जुड़ जाता है। बच्चा माँ की ममता पाना चाहता है, उसके लिए तरसता है। माँ में बच्चे के प्रति ममता का गुण प्रकृति प्रदत्त होता है। बच्चे के प्रति ममता और स्नेह उसके मन में सदा बने रहते हैं। माँ का दूध पीने से बालक तथा माँ में जो सम्बन्ध जुड़ता है, वह जीवन भर कभी नहीं टूटता।

प्रश्न 3. बिसनाथ पर क्या अत्याचार हो गया ?

उत्तर : बिसनाथ अपनी माँ का दूध पीता था। वह तीन वर्ष का था, तभी उस पर अत्याचार हो गया। उसका छोटा भाई पैदा हो गया। बिसनाथ का दूध कट गया। माँ के दूध पर उसका अधिकार नहीं रहा। उस पर छोटे भाई का कब्जा हो गया। छोटा भाई हुमक-हुमक कर माँ का दूध पीता और बिसनाथ को गाय का बेस्वाद दूध पीना पड़ता। कसेरिन दाई पड़ोस में रहती थी। उन्होंने ही बिसनाथ को पाला-पोसा। साफ-सुथरी सुजनी पर तीन साल का बिसनाथ दाई के साथ लेटे-लेटे चाँद को देखता रहता था।

प्रश्न 4. गरमी और लू से बचने के उपायों का विवरण दीजिए। क्या आप भी उन उपायों से परिचित हैं ?.

उत्तर : गरमी की ऋत में तेज धप पडती है तथा तेज गर्म हवा चलती है। इसको ल चलना कहते हैं। ल लगने से मनुष्य के शरीर में पसीना आना बन्द हो जाता है तथा उसके शरीर का ताप बहुत बढ़ जाता है। कभी-कभी इससे मृत्यु भी हो जाती है। गाँवों में लू से बचने के लिये दो उपाय किए जाते हैं -

1. प्याज की गाँठ किसी कपड़े में बाँधकर या जेब में डालकर घर से बाहर जाते समय ले जाते हैं। इस प्रकार लू लगने से बचा जा सकता है।

2. कच्चे आम को भूनकर या उबालकर उसमें गुड़ अथवा चीनी मिलाकर बने शरबत को आम का पन्ना कहते हैं।

इसको पीने, शरीर पर लेप करने तथा नहाने से लू से रक्षा होती है। आम को भूनकर उसके गूदे से सिर धोने से भी लू से बचा जा सकता है। ये प्राकृतिक चिकित्सा के उपाय हैं। इन घरेलू उपचारों को लोग आजकल भी अपनाते हैं। हम भी इनसे परिचित हैं।

प्रश्न 5. लेखक बिसनाथ ने कित आधारों पर अपनी माँ की तुलना बत्तख से की है ?

अथवा

'माँ की ममता' किसी प्रयोजन या उद्देश्य के लिए है।' बिस्कोहरे की माटी' पाठ में लेखक ने माँ की ममता का वर्णन किस उदाहरण से किया है?

अथवा

"बिस्कोहर की माटी' में लेखक ने किन कारणों से अपनी माँ की तुलना बत्तख से की है? इस पर प्रकाश डालिए।

अथवा

"बिस्कोहर की माटी' पाठ में लेखक ने किन आधारों पर अपनी माँ की तुलना बत्तख से की है। लगभग 100 शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : लेखक बिसनाथ ने अपनी माँ की तुलना बत्तख से निम्नांकित आधारों पर की है।

1. बत्तख सुरक्षित स्थान पर अंडे देती है तथा उनको सेती है। वह पंख फुलाकर उन्हें सबकी दृष्टि से बचाती है। वह कौए इत्यादि से अपने अंडों को बचाती है। बिसनाथ की माँ ने भी अपने बच्चे (बिसनाथ) को जन्म दिया है, दूध पिलाया है तथा उसको पाला-पोसा है।

2. बत्तख अपने अंडों को दूसरों से बचाती है। बिसनाथ की माँ भी उसकी सुरक्षा का ध्यान रखती है।

3. बिसनाथ की माँ अपने पुत्र के प्रति गहरा ममता-भाव रखती है। बत्तख को भी अपने अंडों से बेहद ममता है। दोनों में ममता का यह भाव स्वाभाविक तथा प्रकृति-प्रदत्त गुण है।

4. बत्तख अपनी सख्त चोंच का प्रयोग अंडों के ऊपर करने में बहुत सावधान रहती है। बिसनाथ की माँ भी अपने बेटे के साथ कोमलता तथा ममता का व्यवहार करती है।

प्रश्न 6. बिस्कोहर में हुई बरसात का जो वर्णन बिसनाथ ने किया है उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : गर्मी के बाद बरसात अच्छी लगती थी। बरसात एकाएक नहीं आती थी। पहले बादल घिरते थे और गड़गड़ाहट होती थी। फिर पूरा आकाश बादलों से घिर जाता था और दिन में रात का जैसा अंधेरा छा जाता था। बरसात की बूंदों के गिरने से जो आवाजें होती थीं उनमें संगीत का आनंद आता था। जोश ने लिखा है, 'बजा रहा है सितार पानी।' उसमें तबला, मृदंग और सितार का संगीत होता था। पानी बरसता था तो दिखाई भी देता था। घर की छत से देखने पर दूर से घोड़ों की कतार दौड़ती हुई चली आ रही प्रतीत होती थी। आँधी चलती थी तो टीन और छप्पर उड़ जाते थे।

कई दिन लगातार वर्षा होने पर दीवारें गिर जाती थीं, घर धुंसक जाते थे, बाढ़ आ जाती थी। भीषण गर्मी के बाद बरसात के कारण कुत्ते, बकरी, मुर्गी-मुर्गे पुलकित होकर भौं-भौं, में-में, चूं-धूं करते बेमतलब इधर-उधर भागते थे, थिरकते थे। जुगनूं, कानखजूरा, मच्छर आदि अनेक कीड़े-मकोड़ों की बहुतायत हो जाती थी। पेड़-पौधों तथा घास पर हरियाली छा जाती थी। गाँव में सब तरफ भीषण गंदगी हो जाती थी। खेत-खलिहान तथा रास्ते पानी से भर जाते थे। शौच तक के लिए स्थान नहीं बचता था। लकड़ी तथा कंडे भीग जाने से जलते ही न थे, जलाने पर धुआँ बहुत करते थे।

प्रश्न 7. 'फूल केवल गंध ही नहीं देते, दवा भी करते हैं' कैसे ?

अथवा

लेखक ने विभिन्न प्रकार के फूलों की क्या-क्या उपयोगिता बताई है?

उत्तर : प्रत्येक पुष्प में किसी न किसी तरह की गंध होती है। गंधहीन फूल कम ही होते हैं। सिंघाड़े के फूल में भी गंध मिलती है। इनकी गंध मनुष्य को आनन्दित करती है। गंध देने के साथ-साथ फूल विभिन्न रोगों में दवा का काम भी करते हैं। बिसनाथ के गाँव में एक फूल होता है 'भरभंडा'। इसको सत्यानाशी भी कहा जाता है। इसका प्रयोग गर्मियों में आँख दुखने पर दवा के तौर पर किया जाता है। नीम के फूल तथा पत्तों को चेचक के रोगी के पास रखा जाता है। इससे रोगी को लाभ मिलता है, बाहरी प्रदूषण से रोगी की रक्षा होती है। बेर का फूल सूंघने से बरे तथा ततैयों के डंक झड़ जाते हैं। इसी प्रकार अनेक कीजिए।

वनस्पतियाँ हैं जिनके पत्ते, फूल, फल, लकड़ी, जड़ तथा छाल दवा के रूप में प्रयोग की जाती हैं। गुड़हल के फूल के सेवन से मधुमेह रोग दूर होता है। बेलफल तथा बेलपत्र उदर रोगों में लाभकारी है। बबूल की दाँतून दाँतों को मजबूत बनाती है। अमरूद के पत्तों को पानी में उबालकर गरारे करने से सूजा हुआ गला ठीक होता है। इसी प्रकार अन्य वनस्पतियाँ भी लाभदायक हैं।

प्रश्न 8. 'प्रकृति सजीव नारी बन गई' इस कथन के संदर्भ में लेखक की प्रकृति, नारी और सौन्दर्य सम्बन्धी मान्यताएँ स्पष्ट कीजिए।

अथवा

"प्रकृति सजीव नारी बन गई।" इस कथन के संदर्भ में 'बिस्कोहर की माटी' की प्राकृतिक छटा की विवेचना

अथवा

"बिस्कोहर की माटी' में लेखक ने प्रकृति की सतरंगी छटा का मनोरम चित्रण किया है।" स्पष्ट करें।

उतर : बिसनाथ जब दस बरस का था तब उसने उस औरत को पहली बार बढ़नी में एक रिश्तेदार के यहाँ देखा था। उसे देखकर ऐसा लगा जैसे बरसात की चाँदनी रात में जूही की.खुशबू आ रही है। उन दिनों बिसनाथ बिस्कोहर में संतोषी भइया के घर बहुत जाया करते थे। उनके आँगन में जूही लगी थी। उसकी खुशबू बिसनाथ के प्राणों में बसी थी। चाँदनी में जूही के. सफेद फूल ऐसे लगते थे जैसे कि चाँदनी ही फूल बनकर डालों पर लगी हो।

चाँदनी, फूल और खुशबू सभी प्रकृति के ही.... रूप हैं। वह औरत भी बिसनाथ को जूही की लता बनी हई चाँदनी के रूप में दिखाई दी जिसके फलों से सुगंध आ रही थी। बिसनाथ ने उसे औरत्ते के रूप में नहीं देखा था। उसमें बिसनाथ ने प्रकृति के ही सजीव रूप को देखा था। ऐसा लगता था जैसे प्रकृति ने ही सजीव स्त्री का रूप धारण किया है। सौन्दर्य क्या है, उसकी तदाकार परिणिति क्या होती है, जीवन की सार्थकता क्या है ये बातें तो बिसनाथ को बाद में समझ में आईं, वह भी उसी नारी के संदर्भ में।

प्रश्न 9. ऐसी कौन-सी स्मृति है जिसके साथ लेखक को मृत्यु का बोध अजीब तौर से जुड़ा मिलता है ? .

उत्तर : लेखक (पाठ का पात्र बिसनाथ) ने उस सुन्दर औरत को तब देखा था, जब वह दस साल का था। वह उससे. दस साल बड़ी थी। उसके मन में उसके प्रति गहरा आकर्षण था। उसकी यह आसक्ति कभी नहीं मिटी, जीवन भर बनी रही। शर्म और संकोच के कारण वह उससे कुछ न कह सका।

लेखक उस औरत को प्रकृति के साथ तदाकार करके देखता था। ऐसा लगता था जैसे प्रकृति उसके रूप में सजीव हो उठी हो। चाँदनी रात में जूही के सफेद फूलों के समान सुन्दरता तथा गंध लेखक को आकर्षित करती थी। वह उसको सफेद फूलों और चाँदनी के समान सफेद साड़ी पहने, काले बादलों जैसे घने काले केशों को सँवारे दिखाई देती थी। उसकी आँखों में विचित्र-सी आर्द्र-व्यथा थी। वह सिर्फ इंतजार करती थी। वह संगीत, नृत्य, मूर्ति, कविता, स्थापत्य यानी कि कला के हर रूप के आस्वाद में उपस्थित रहती थी। उस औरत के प्रति यह गहरी आसक्ति लेखक में सदैव बनी रही। यह स्मृति उसे बराबर रही और इसी के साथ मृत्यु का एक अजीब प्रकार का बोध भी जुड़ा रहा।

योग्यता विस्तार

प्रश्न 1. पाठ में आए फूलों के नाम, साँपों के नाम छाँटिए और उनके रूप, रंग, विशेषताओं के बारे में लिखिए।

उत्तर :

(क) पाठ में आए फूलों के नाम, रूप, रंग तथा विशेषताएँ -

कमल-नीला, पीला, लाल, गुलाबी रंग, हल्की गंध, पानी में दिन में खिलता है। इसके पत्ते 'पुरइन' कहलाते हैं। इसका बीज कमल गट्टा तथा नाल (भसीण) खाई जाती है।

सिंघाड़े का फूल-पानी में पैदा होता है। रंग उजला तथा गंध हल्की होती है।

हरसिंगार - सफेद रंग, भीनी गंध, शरद् ऋतु में ढेर सारे फूल देता है।

कोइयाँ इसको कुमुद तथा कोकाबेली भी कहते हैं। गड्ढों में जहाँ भी पानी होता है यह खिलता है। गंध आकर्षक होती है। उत्तर भारत में हर स्थान पर मिलता है।

इनके अतिरिक्त और भी फूल हैं जिनको फूलों में गिना नहीं जाता है तोरई, लौकी, भिंडी, भटकटैया, इमली, अमरूद, कदंब, बैंगन, कोहड़ा या काशीफल, शरीफा; आम का बौर, कटहल, बेल (बेला, चमेली, जूहीवाला बेला नहीं), अरहर, उड़द, चना, मसूर, मटर और सेमल के फूल। सरसों के फूल, भरभंडा या सत्यानाशी के फूल। अनेक प्रकार के दूबों (घास)" के फूल। धान, जौ, गेहूँ, भुट्टे के फूल। नीम, गुड़हल तथा बेर के फूल।

(ख) साँपों के नाम, रूप, रंग तथा विशेषताएँ

डोंडहा - विषहीन होता है। यह ब्राह्मण माना जाने से अवध्य है।

मजगिदवा विषैला नहीं होता।

धामिन-विषहीन होती है। यह लम्बी होती है। मुँह से कुश पकड़कर पूँछ से मार दे तो अंग सड़ जाता है।

गोंहुअन-इसको 'फेंटारा' भी कहा जाता है। यह अत्यन्त विषैला होता है।

घोर कड़ाइच-इसके काटने पर आदमी घोड़े की तरह हिनहिनाकर मरता है।

टिहा-इसके दो मुँह होते हैं।

प्रश्न 2. इस पाठ से गाँव के बारे में आपको क्या-क्या जानकारियाँ मिलीं ? लिखिए।

उत्तर : प्रस्तुत पाठ से गाँव के बारे में अनेक जानकारियाँ मिलती हैं, जैसे

1. गाँव का वातावरण स्वच्छ और स्वास्थ्य वर्द्धक होता है। वहाँ प्रकृति की मनोहर शोभा दिखाई देती है। चारों ओर वृक्षों तथा घास की हरियाली होती है।

2. गाँव में वर्षा, शरद्, वसन्त तथा गर्मी की ऋतुओं का सच्चा आनंद प्राप्त होता है। तेज वर्षा होती है, खेतों तथा रास्तों में पानी भर जाता है। अतिवृष्टि से बाढ़ आती है। मकान गिरते और धंसते हैं। शरद् की चाँदनी और ठसमें खिले फूल सुन्दर लगते हैं। वसन्त में वनस्पतियों को नवजीवन मिलता है। गर्मी में भयानक ताप होता है तथा लू चलती है। प्याज साथ रखने तथा आम का पन्ना का प्रयोग करने से लू से बचा जा सकता है।

3. गाँव की अपनी बोली, रीति-रिवाज तथा संस्कृति होती है।

4. वहाँ साँप, बिच्छू तथा अनेक प्रकार के पशु-पक्षी और कीट पाए जाते हैं। वर्षा ऋतु में कीड़े-मकोड़ों की भरमार होती है। .

5. गाँव में तरह-तरह के अन्न, फल-फूल तथा तरकारियाँ उत्पन्न होती हैं।

6. गाँव के लोगों का रहन-सहन सादा होता है।

प्रश्न 3. वर्तमान समय-समाज में माताएँ नवजात शिशु को दूध नहीं पिलाना चाहतीं। आपके विचार में माँ और बच्चे पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है?

उत्तर : वर्तमान समय में हमारे समाज में माताएँ नवजात शिशु को अपना दूध नहीं पिलाना चाहती हैं। पश्चिमी समाज से यह प्रथा अब भारतीय माताओं में भी पनप उठी है। नवजात शिशु को दूध पिलाने से वे इस कारण बचना चाहती हैं कि ऐसा करने से कहीं उनके अंगों का सौन्दर्य नष्ट न हो जाय। हमारा विचार है कि ऐसा करने से माँ के स्वास्थ्य पर अच्छा असर नहीं होता और अनेक माताएँ स्तन कैंसर की शिकार हो जाती हैं। माताओं का अपने शिशु से आत्मीयता का सम्बन्ध भी नहीं बन पाता है।

शिशु के लिए भी यह अच्छी बात नहीं है। उसको गाय, भैंस, बकरी का दूध अथवा डिब्बा-बन्द दूध पीना पड़ता है, जिससे उसका स्वास्थ्य प्रभावित होता है। माँ का दूध बच्चे को अनेक रोगों से बचाता है और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसके अभाव में बच्चे रोगी हो जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. बिस्कोहर में कमल के विविध प्रयोगों के बारे में लेखक ने क्या बताया है ?

उत्तर : बिस्कोहर गाँव के पूरब टोले के पोखर में कमल के फूल खिलते थे। जब हिन्दुओं के यहाँ कोई भोज होता था तो कमल के पत्तों पर खाना परोसा जाता था। कमल के पत्ते को पुरइन कहते थे। कमल. नाल को भसीण कहा जाता था। आसपास एक बड़ा कमल-तालाब था. लेंवडी का ताल। जब अकाल पड़ता था तो लोग वहाँ से कमल-ककड़ी को खोदकर बड़े-बड़े खाँचों में भरकर सिर पर लादकर खाने के लिए ले जाते थे। वैसे सामान्यतः गाँव में कमल-ककड़ी-खाई नहीं जाती थी। कमल के बीज कमल गट्टा को जरूर खाया जाता था।

प्रश्न 2. 'कमल से कहीं ज्यादा बहार कोइयाँ की थी।"लेखक के ऐसा कहने का आशय क्या है ?

उत्तर : गाँव के ताल में कमल खूब खिलते थे मगर कमल से भी अधिक कोइयाँ खिला करती थी। कोइयाँ भी एक जल पुष्प है जो कुमुद भी कहलाता है। इसको कोका-बेली भी कहते हैं। यह शरद् ऋतु में खिलती थी। जहाँ भी कोई गड्ढा होता था और उसमें पानी भरा होता था, वहाँ पर ही कोइयाँ फूल उठती थी। शरद् की चाँदनी में सरोवरों में चाँदनी का प्रतिबिम्ब और खिली हई कोइयाँ की पत्तियाँ एक हो जाती थीं। इसकी गंध चारों ओर फैल ज लगती थी।

प्रश्न 3. सिंघाड़ा क्या है ? लेखक ने उसके बारे में क्या बताया है ?

उत्तर : सिंघाड़ा एक जल में उत्पन्न होने वाला फल है। यह एक काँटेदार फल है जो पोखरों-तालाबों के पानी में होता है। सिंघाड़े के फूल उजले होते हैं। उनमें गंध भी होती है। बिंसनाथ सिंघाड़े के फूलों से भरे गाँव के तालाबों पर जाकर घूम-घूमकर उसकी गंध का आनंद लेता था। उसकी गंध के साथ एक हल्की-सी आवाज भी सुनाई देती थी। सिंघाड़ा जब छोटा दूधिया होता है तब उसमें वह गंध भी होती है।

प्रश्न 4. हरसिंगार के बारे में लेखक ने क्या बताया है ?

उत्तर : हरसिंगार शरद् ऋतु में ही फूलता है। पितृ-पक्ष अर्थात् श्राद्ध-पक्ष में मालिन दाई लेखक के घर के दरवाजे पर हरसिंगार के फल रख जाती थी। इसको गाँव की बोली में कहें तो कहना होगा-'कुरइ जात रहीं।' हरसिंगार के पेड़ से ढेर सारे फूल इकट्ठे अनायास ही गिर पड़ते थे। ये फूल सफेद होते हैं तथा उनसे भीनी-भीनी गंध उठती है।

प्रश्न 5. बिसनाथ बचपन में गाँव के अन्य बच्चों के साथ प्रकृति की सुन्दरता का आनन्द किस प्रकार लेता था ?

उत्तर : बिसनाथ के गाँव में अनेक प्रकार की ज्ञात-अज्ञात वनस्पतियाँ उगती थीं। वहाँ पानी अपने विविध रूपों में विद्यमान था। गाँव में जो मिट्टी थी, वह भी विविध प्रकार की थी और उसके वर्ण तथा आकार भी अनेक थे। वनस्पतियों, पानी तथा मिट्टी से युक्त गाँव का वातावरण अत्यन्त सजीव था। बिसनाथ और अन्य सभी बच्चे उसे छूते, पहचानते तथा उससे बातचीत करते थे। आकाश में चंदामामा चमकता था। उसमें बैठी इयां बच्चों को अपनी दादी की सहेली लगती थी। आकाश भी उनको अपने गाँव का एक टोला लगता था।

प्रश्न 6. 'पशु-माताएँ भी यह सुख देती-पाती होंगी और पक्षी-अंडज !' लेखक ने यहाँ किस सुख का उल्लेख पशु-पक्षियों के संदर्भ में किया है ?

उत्तर : बच्चा माँ का दूध पीता है, माँ भी स्नेहपूर्वक उसको दूध पिलाती है। वह चाँदनी रात में अपनी माँ की गोद में लेटकर उससे चिपटकर जब दूध पीता है, तो इसका सुख बच्चे तथा माँ दोनों को ही प्राप्त होता है। बच्चे को दूध पिलाते समय माँ भी अत्यन्त सुखी होती है। माँ तथा बच्चे में जीवनभर का एक स्थायी स्नेह-सम्बन्ध बन जाता है। लेखक के मन में प्रश्न उठता है कि क्या इसी प्रकार का सुख पशु-माताओं और पशु-वत्सों तथा पक्षी माताओं और अडज शावकों को भी प्राप्त होता होगा। उसको विश्वास है कि माँ के साथ संतान का यह सुखदाई संबंध मनुष्यों में ही नहीं, पशु और पक्षियों में भी होता है, क्योंकि यह प्राकृतिक नियम है।

प्रश्न 7. 'जड़ चेतन में रूपांतरित होकर क्या-क्या अन्तरबाह्य गढ़ता है, लीलाचारी होता है। लेखक के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर : मनुष्य, पशु तथा पक्षी की माँ जब अपने बच्चों को दूध पिलाती है, पालती-पोसती है, देखभाल करती है, तब माता तथा बच्चा दोनों ही जड़ से चेतन प्राणी हो जाते हैं। उनका यह आचरण अत्यन्त स्वाभाविक है। इससे माँ तथा बच्चे को जो सुख मिलता है, वह प्राकृतिक है। बिसनाथ की माँ तथा बत्तख माँ में बच्चे के लिए जो ममता समान रूप से प्राप्त है, वह उसी प्रकार प्रकृति का नियम है जैसे पानी का बहना और हवा का चलना। माँ-बच्चे के इस स्नेहपूर्ण सम्बन्ध में जड़ प्रकृति का चेतन रूप दिखाई देता है।

प्रश्न 8. 'बिसनाथ दूध कटहा हो गए' का क्या तात्पर्य है ? तीन साल का बिसनाथ क्या करता था ?

उत्तर : जब बिसनाथ की आयु तीन साल थी, उसके छोटे भाई का जन्म हुआ। अब तक माँ का दूध बिसनाथ पीता था, अब उसे उसका छोटा भाई पीने लगा। बिसनाथ का दूध कंट गया, उसका माँ का दूध पीना बन्द हो गया। माँ के दूध पर छोटे भाई का कब्जा हो गया। बिसनाथ को गाय का बेस्वाद दूध पीना पड़ता था। वह कसेरिन दाई के साथ सुजनी पर लेटे हुए चाँद को देखता था। बिसनाथ लेटे-लेटे इस चाँदनी को देखता और उसे लगता जैसे वह उसे छू रहा है, खा रहा है, उससे बातें कर .. रहा है।

प्रश्न 9. कमल, कोइयाँ तथा हरसिंगार के अतिरिक्त और कौन-से फल हैं, जिनकी चर्चा फलों के रूप में नहीं होती?

अथवा

'ऐसे कितने फूल थे जिनकी चर्चा फूलों के रूप में नहीं होती। 'बिस्कोहर की माटी' पाठ के आधार पर इन फूलों के बारे में लिखिए।

उत्तर : कमल, कोइयाँ तथा हरसिंगार प्रसिद्ध फूल हैं, सब इनको जानते हैं। लेखक ने कुछ ऐसे फूलों के नाम बताए हैं जिनकी गणना फूलों में नहीं होती। ऐसे फूल निम्नलिखित हैं -

तोरई, लौकी, भिंडी, भटकटैया, इमली, अमरूद, कदंब, बैंगन, कोहड़ा (काशीफल), शरीफा, आम का बौर, कटहल, बेल (बेला, चमेली, जूहीवाला बेला नहीं), अरहर, उड़द, चना, मटर, मसूर, सेमल, भरभंडा या सत्यानाशी, बेर, धान, गेहूँ, भुट्टा, नीम इत्यादि।

प्रश्न 10. कदंब तथा श्रीकृष्ण के बारे में क्या बातें प्रचलित हैं ?

उत्तर : कदंब एक वृक्ष है, जिस पर फूल खिलते हैं। इसके फूलों की गंध तेज होती है। इसके फूल गोल होते हैं तथा उनमें चारों ओर छोटे-छोटे नुकीले तिनके जैसे निकले रहते हैं। श्रीकृष्ण को यह वृक्ष बहुत प्रिय था। ब्रज में कदंब बहुत होते थे। वे इस पेड़ के नीचे खड़े होकर राधाजी तथा गोपियों के साथ रास-लीला रचाते थे। वृक्ष के नीचे खड़े होकर वह मधुर स्वर से बाँसुरी बजाते थे। बाँसुरी की सुरीली तान सुनने के लिए गायें, मोर, गोपियाँ तथा अन्य पशु-पक्षी एकत्र हो जाते थे। वह इसकी डाल पर झूला डालकर गोपियों के साथ झूलते थे।

प्रश्न 11. 'सरसों के फूल का पीला सागर' किसको कहा गया है ?

उत्तर : सरसों जब फूलती है तो उन पर पीले फूल आते हैं। ये फूल असंख्य होते हैं। खेत में सरसों के पौधे पास-पास खड़े होते हैं। उनके ऊपर अनेक फूल लदे होते हैं। सरसों के पूरे खेत में पीले रंग की चादर-सी बिछी हुई दिखाई देती है। स ओर भी निगाह जाती है, दूर-दूर तक सरसों के फूल का पीलापन दिखाई देता है। सरसों के तने तथा हरी पत्तियों से भी भूमि ढक जाती है। फूलों के इस पीले रंग के विस्तार को ही लेखक ने सरसों के फूल का पीला सागर कहा है।

प्रश्न 12. भरभंडा किसे कहते हैं ? इसकी क्या उपयोगिता है ?

उत्तर : लेखक के गाँव में एक फूल बहुत अधिक संख्या में उत्पन्न होता है। इसको भरभंडा कहते हैं। शायद इसी का सत्यानाशी भी है। इसका नाम भले ही अच्छा न लगे परन्तु यह फल होता बहत सुन्दर है। इसके फल पीले होते हैं। वे पीले रंग की तितली के समान प्रतीत होते हैं। जब गर्मियों में गाँव में आँखें दुखने की बीमारी होती है तो इसका दूध आँखों में लगाया जाता है। आँख दुखने की बीमारी को दूर करने में यह बहुत उपयोगी है।

प्रश्न 13. वे कौन-से जीव-जन्तु थे जिनको देखकर भय लगता था परन्तु देखने की इच्छा भी होती थी ?,

उत्तर : बिसनाथ के गाँव में साँप बहुत होते थे। डोंड़हा, मजगिदवा, धामिन, गोंहुअन, घोर कड़ाइच, भटिहा इत्यादि साँप वहाँ मिलते थे। डोंड़हा, मजगिदवा तथा धामिन विषहीन होते हैं। भटिहा के दो मुँह होते हैं। आम, पीपल तथा केवड़े की हने वाले सॉप बहुत खतरनाक होते हैं। गोंहुअन साँप बहुत विषैला होता है। घोर कड़ाइच के काटने पर आदमी घोड़े की तरह हिनहिनाकर मरता है। ये साँप घास-पात भरे मेड़ों पर, मैदानों में तथा तालाब के भीटों पर मिलते थे। साँपों को देखकर डर तो लगता था पर उनकी प्रतीक्षा भी रहती थी। छोटे-छोटे पेड़-पौधों के बीच में सरसराते हुए साँप को देखकर भयानक रस की सृष्टि होती थी। परन्तु उन्हें देखने से स्वयं को रोक पाना भी असंभव था।

प्रश्न 14. साँपों के अतिरिक्त लेखक ने किन अन्य विषैले जीवों का जिक्र किया है ?

उत्तर : साँप विषैला होता है। कुछ साँप विषहीन भी होते हैं। साँपों के अतिरिक्त कुछ और जीव-जन्तु भी लेखक के गाँव में होते थे, जो विषैले होते थे, यद्यपि उनके काटने से कोई मरता नहीं था। बिच्छ एक ऐसा ही जन्त था। बिच्छ केक से बहुत दर्द होता था। बरे और ततैया भी विषैले कीट थे। उनके डंक में विष होता है। बेर.का फूल सूंघने से बचें और ततैया जन्तु था। बिच्छू के काटने का डंक झंड़ जाता है। तब गाँव के बच्चे उनको पकड़ लेते थे और अपनी जेबों में भर लेते थे। वे उनकी कमर में धागा बाँधकर उनको लड़ाते थे।

प्रश्न 15. 'बिस्कोहर की माटी' की कथा के केन्द्र में क्या है ?

अथवा

बिस्कोहर की माटी' के आधार पर सिद्ध कीजिए कि यह पाठ ग्रामीण जीवन के रूप-रस-गंध को उकेरने वाला मार्मिक लेख है।

उत्तर : 'बिस्कोहर की माटी' की पूरी कथा के केन्द्र में बिस्कोहर ही है जो लेखक का गाँव है। बिसनाथ भी उसके केन्द्र में है, लेखक ही विश्वनाथ हैं। गर्मी, वर्षा और शरद् ऋतु में गाँव में जो दिक्कतें होती हैं, लेखक पर उनका प्रभाव पड़ा है। दस वर्ष की उम्र में अपनी आयु से दस वर्ष बड़ी स्त्री को देखकर मन में उठे भावों, संवेगों के अमिट प्रभाव व उसकी मार्मिक प्रस्तुति के बीच सवादो की यथावत् आचलिक प्रस्तुति से अनुभव की नैसर्गिकता तथा सत्यता प्रकट हुई है। पूरी रचना में लेखक ने अपने देखे तथा भोगे यथार्थ को प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ अनूठी और एकदम नई शैली में प्रस्तुत किया है। अतः यह पाठ ग्रामीण जीवन की विशेषताओं को उकेरने वाला लेख है।

प्रश्न 16. बिस्कोहर में पहली बार मिली उस औरत के सम्बन्ध में बिसनाथ के क्या विचार थे ?

उत्तर : बिसनाथ को बिस्कोहर की फसलों-वनस्पतियों की गंध में उस औरत की गंध मिलती थी। बड़े.गुलाम अली खाँ की गाई एक पहाड़ी ठुमरी-अब तो आओ साजन-अकेले में सुनकर या याद करके उसे रुलाई आती तथा उस संगीत में वही औरत दिखाई देती थी। चाँदनी के फूलों जैसी सफेद साड़ी में लिपटी, घने काले केशों को सँवारे हुए और आँखों में एक तरल आर्द्र पीड़ा लिए हुए वह औरत आज भी उसको इंतजार करती हुई दिखाई देती है। कला के विभिन्न रूपों अर्थात् संगीत, नृत्य, मूर्ति, स्थापत्य, कविता, चित्र इत्यादि के केन्द्र में उसको वही औरत दिखाई देती है। जो कुछ मनुष्य को जीवन में प्राप्त नहीं हो पाता उसकी प्राप्ति विभिन्न रूपों में होती है। बिसनाथ भी कला के हर रूप में उसका स्वाद भोगता है।

प्रश्न 17. बिस्कोहर की वर्षा का चरित्र-चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर : बिस्कोहर में वर्षा धीरे-धीरे आती थी। पहले बादल घिरते, गरजते, दिन में रात हो जाती। वर्षा में संगीत भी सुनाई देता था। तबला, मृदंग और सितार बजते थे। वर्षा आती दिखाई देती थी। लगता जैसे दूर से घोड़ों की कतार दौड़ी चली आ रही है, पहले दूर फिर पास और पास। नदी, डेगहर, बड़की बगिया, पड़ौस फिर घर पर बूंदें टपकने लगती थीं। आँधी चलती तो टीन छप्पर उड़ जाते थे। तेज वर्षा से दीवारें गिर जाती थीं और मकान धंस जाते थे। वर्षा आने पर कुत्ते, बकरी, मुर्गे-मुर्गी चिल्लाते हुए इधर-उधर भागते थे। वर्षा में अनेक कीड़े-मकोड़े पैदा हो जाते थे। सारी पृथ्वी हरियाली से ढक जाती थी। खेतों में पानी, रास्तों में कीचड़ भर जाता था। ईंधन गीला हो जाता था। नदी-नाले पानी से भर जाते थे। वर्षा के बाद गाँव का वातावरण सुन्दर हो जाता था।

प्रश्न 18. 'कमल' का उपयोग बिसनाथ के गाँव में कैसे होता था ?

उत्तर : गाँव में अनेक रंगों वाले कमल फूलते थे। कमल के पत्ते पुरइन कहलाते थे। उनका उपयोग भोजन करने के लिए पत्तल की तरह होता था। कमल ककड़ी को 'भसीण' कहते थे। वैसे गाँव में वह खाई नहीं जाती थी परन्तु अकाल के समय लोग इसे खाते थे। कमल का बीज कमल गट्टा भी खाने के काम आता था। कमल का पुष्प भी काम में आता था।

प्रश्न 19. बिसनाथ की माँ तथा बत्तख में क्या समानता थी?

उत्तर : बिसनाथ की माँ तथा बत्तख में वात्सल्य भाव की समानता थी। बिसनाथ की माँ अपने पुत्र की देखभाल करती थी, उसे चाँदनी में लेटकर दूध पिलाती थी। उससे बहुत स्नेह करती थी। यह सब करके उसे बहुत सुख मिलता था। बत्तख भी अपने अण्डों को सेती थी, सावधानी से उनकी रक्षा करती थी। उनको कौए से बचाती थे। अपनी पैनी चोंच से धीरे से सावधानीपूर्वक उन्हें सँभालती थी। दोनों में मातृत्व का यह भाव प्रकृति प्रदत्त था।

प्रश्न 20. संगीत, नृत्य, मूर्ति, कविता, चित्र, स्थापत्य आदि कलाओं के रूप के आस्वाद में कौन उपस्थित है ?

उत्तर : संगीत, नृत्य, मूर्ति, कविता, चित्र, स्थापत्य आदि कला के विविध स्वरूप हैं। इन कलाओं में जो व्यंजित हुआ है वह है सौन्दर्य का भाव। इस संसार में नारी सौन्दर्य की प्रतीक है। नारी का रूप उन समस्त कला-रूपों में व्यक्त हुआ है। सेभी कलाओं की वर्ण्य-वस्तु नारी का सुन्दर रूप है। नारी के कोमल और मादक सौन्दर्य की, व्यंजना उन समस्त कलाओं में हुई है। उसके सौन्दर्य का रसात्मक आनन्द समस्त कलाओं से प्राप्त होता है।

प्रश्न 21. 'बिस्कोहर की माटी' पाठ में बिसनाथ का अपने गाँव के प्रति क्या मनोभाव व्यक्त हुआ है ?

अथवा

"बिस्कोहर की माटी' के लेखक की अपने गाँव और गाँव की नारियों के बारे में क्या मान्यता है और क्यों? समझाइए।

अथवा

बिस्कोहर की माटी लेखक के मन में क्यों बस गई? किन्हीं दो कारणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर : बिस्कोहर बिसनाथ (लेखक विश्वनाथ त्रिपाठी) का गाँव है। वह बिस्कोहर में ही पैदा हुआ तथा पला-बढ़ा है। इस पाठ में लेखक ने अपने गाँव का वर्णन अत्यन्त तन्मयतापूर्वक किया है। इससे अपने गाँव के प्रति उनके गहरे प्रेम का पता चलता है। उनको अपने गाँव की मिट्टी, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु आदि सब अच्छे लगते हैं। उनको अपने गाँव का प्राकृतिक सौन्दर्य आकर्षक लगता है। अपने से दस वर्ष बड़ी औरत का रूप उन्हें प्रकृति, संगीत, कविता सब में दृष्टिगत होता है। उन्हें अपने गाँव से ज्यादा सुन्दर कोई दसरा गाँव नहीं लगता, बिस्कोहर की औरतों से सुन्दर किसी अन्य स्थान की औरत भी सुन्दर नहीं लगती। बिसनाथ मान ही नहीं सकते कि बिस्कोहर से अच्छा कोई गाँव हो सकता है और बिस्कोहर से ज्यादा सुन्दर कहीं की औरत हो सकती है।

निबन्धात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 'बिस्कोहर.की माटी' पाठ के आधार पर ग्रामीण जीवन में वर्षा ऋतु की उपयोगिता तथा उसके कारण होने वाली कठिनाइयों का वर्णन कीजिए।

अथवा

'बिस्कोहर की माटी' पाइ के आधार पर बरसात में और बरसात के बाद की प्रकृति और ग्रामीण जीवन की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर : ग्रामीण जीवन में भीषण गर्मी के पश्चात् वर्षा ऋतु का विशेष महत्त्व है। आकाश में छाए गरजते बादलों को देख-सुनकर चित्त प्रसन्न हो उठता है। पूरा आकाश जब बादलों से घिर जाता है तो दिन में भी रात का अंधेरा छा जाता है। वर्षा में बादलों तथा बूंदों और हवा के कारण उत्पन्न होने वाली आवाजों से संगीत का आनन्द प्राप्त होता है। वर्षा के कारण सभी जीव-जन्तुओं में नवजीवन का संचार हो जाता है। वर्षा के साथ आने वाली आँधी में टीन छप्पर उड़ जाते हैं। तेज वर्षा के कारण सब जगह पानी भर जाता है। पानी भरने से घरों की दीवारें गिर जाती हैं, मकान धंस जाते हैं। अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ और हरियाली छा जाती है। वर्षा के जल से धुले हुए पत्ते अत्यन्त चमकीले तथा सुन्दर लगते हैं। सत्यनारायण कविरत्न ने लिखा है "धोये-धोये पातन की बात निराली है"।

वर्षा ऋतु में जहाँ ग्रामीण जीवन प्रसन्नता और आनन्द से भर उठता है, वहाँ उसके कारण लोगों को कुछ कठिनाइयाँ भी होती हैं। वर्षा के कारण अनेक प्रकार के कीड़े-मकोड़े पैदा हो जाते हैं। जोंक, केंचुआ, ग्वालिन-जुगनू, अगनिहवा, बोका, करकच्ची, गोंजर आदि कीट जमीन पर रेंगने लगते हैं। मच्छर, डाँस, मक्खी आदि जन्तु भारी संख्या में पैदा होकर लोगों को परेशान करते हैं। चारों तरफ भीषण गंदगी, कीचड़ तथा बदबू फैल जाती है। सब तरफ पानी भर जाने से शौचक्रिया के लिए स्थान भी नहीं बचता। लकड़ी, ईंधन भीग जाता है। इनके भीग जाने से आग नहीं जलती और धुआँ उठता रहता है।

प्रश्न 2. 'जे तुम्हें पाइ जाइ ते जरूरै बौराय जाइ।' बिसनाथ ने यह किससे तथा क्यों कहा था ?

उत्तर : बिसनाथ जब दस बरस का था तब उसने बढ़नी में एक रिश्तेदार के यहाँ पहली बार उस औरत को देखा था। बिसनाथ की उम्र उससे काफी कम थी। उसे देखकर बिसनाथ को लगा था जैसे बरसात की चाँदनी रात में जूही की खुशबू आ रही है। बरसात की भीगी चाँदनी चमकती तो नहीं मगर मधुर होती है तथा शोभा के भार से ज्यादा दबी होती है। वह औरत भी वैसी ही थी। उन दिनों बिसनाथ बिस्कोहर में संतोषी भैया के घर बहुत जाता था। उनके आँगन में जूही लगी थी।

जूही की खुशबू बिसनाथ के प्राणों में बसी थी। चाँदनी में जूही के सफेद फूल ऐसे लगते थे जैसे चाँदनी ही फूल के रूप में दिखाई पड़ रही हो। वह औरत भी बिसनाथ को औरत नहीं, जूही की लता बनी चाँदनी के रूप में ही दिखाई दे रही थी। ऐसी चाँदनी जिसके फूलों से खुशबू आ रही थी। प्रकृति ने जैसे सजीव नारी का रूप धारण कर लिया था और बिसनाथ को उसमें आकाश, चाँदनी, सुगंधि-सब कुछ दिखाई दे रहा था। बिसनाथ जीवनभर उससे शरमाता रहा, कुछ भी कह-सुन न सका। बहुत दिन बाद अवसर मिलने पर बहुत हिम्मत बाँधने के बाद बिसनाथ ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए उससे कहा था - "जे तुम्हें पाइ जाइ ते जरूरै बौराय जाइ", अर्थात् जो तुम्हें पा जाएगा वह जरूर ही पागल हो जाएगा।

प्रश्न 3. "बिस्कोहर की माटी' पाठ के प्रतिपाद्य पर विचार कीजिए।

अथवा

"बिस्कोहर की माटी' आत्मकथांश में लेखक ने ग्रामीण प्राकृतिक सुषमा और सम्पदा का सुंदर वर्णन किया है। पठित पाठ के आधार पर इसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : 'बिस्कोहर की माटी' विश्वनाथ त्रिपाठी द्वारा आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया पाठ है। अभिव्यंजना की दृष्टि से यह अत्यन्त रोचक तथा पठनीय है। लेखक ने अपनी उम्र के अनेक पड़ाव पार करने के बाद अपने जीवन में माँ, गाँव तथा आसपास के प्राकृतिक परिवेश का वर्णन इस पाठ में किया है। लेखक ने पाठकों को ग्रामीण जीवन-शैली, परिवेश, लोक-कथाओं, लोकमान्यताओं तथा सुखों और असुविधाओं से परिचित कराने का भरपूर प्रयास किया है।

गाँवों में शहरों के समान जीवन जीने की सुविधाएँ नहीं होती। वहाँ का जीवन अकृत्रिम होता है तथा प्रकृति पर अधिक निर्भर होता है। गाँव का वातावरण प्राकृतिक सौन्दर्य से भरापूरा होता है। प्रस्तुत कथा में लेखक ने अपने गाँव के प्राकृतिक सौन्दर्य का तन्मयता से चित्रण किया है। वर्षा जब बाढ़ का संकट पैदा करती है तो गाँव में अनेक परेशानियाँ पैदा हो जाती हैं। विभिन्न फूलों और सब्जियों का वर्णन करके लेखक ने गाँव की प्राकृतिक सुषमा को व्यक्त किया है। उसने विभिन्न साँपों एवं विषकीटों आदि से भयानक रस की भी सष्टि की है। फल, दवा का काम करते हैं यह बताकर प्रकट किया गया है कि ग्रामीण प्राकृतिक रूप से प्राप्त जड़ी-बूटियों को रोग के उपचार के लिए प्रयोग करने को प्राथमिकता देते हैं।

बिसनाथ जो स्वयं इस कथा के लेखक हैं, इस पूरी कथा के केन्द्र में स्थित हैं। बिस्कोहर गाँव बिसनाथ की दृष्टि से सबसे अच्छा गाँव है. और बिस्कोहर की स्त्री ही संसार की सबसे सुन्दर स्त्री है। "बिसनाथ मान ही नहीं सकते कि बिस्कोहर ... से अच्छा कोई गाँव हो सकता है और बिस्कोहर से ज्यादा सुन्दर कहीं की औरत हो सकती है।" इन केन्द्रीभूत तथा प्रमुख विषयों के अतिरिक्त गर्मी, वर्षा, शरद् में होने वाली दिक्कतों ने लेखक के मन पर जो प्रभाव डाला है उसका उल्लेख भी इस पाठ में स्वाभाविक रूप में हुआ है। लेखक ने अपने भोगे यथार्थ को प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ प्रस्तुत किया है। - थोड़ा ध्यान देने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि बिस्कोहर गाँव ही मूलतः प्रतिपाद्य है।

प्रश्न 4. लेखक ने दिलशाद गार्डन के डियर पार्क में बत्तखों से सम्बन्धित क्या दृश्य देखा ? इससे लेखक के किस मत की पुष्टि हुई ?

उत्तर : दिलशाद गार्डन के डियर पार्क में लेखक ने बत्तखों को देखा। बत्तख अंडा देने के वक्त पानी से बाहर आकर जमीन पर कोई सुरक्षित स्थान ढूँढ़ती है। डियर पार्क में इसके लिए एक काँटेदार बाड़ा था, जो सुरक्षित स्थान था। लेखक ने वहाँ एक बत्तख को अपने अंडे को सेते हुए देखा। उसने पंख फुलाकर अंडों को सबकी नजरों से छिपा रखा था। एक कौआ थोड़ी दूर पर बैठा था और अंडों को खा जाने का मौका तलाश रहा था। बत्तख पूरी तरह सावधान थी।

अंडा कोमल होता है और बत्तख की चोंच सख्त। परन्तु बत्तख अपनी चोंचं का प्रयोग अंडों के साथ करते समय बहुत सतर्क रहती थी तथा उनको। कोमलता के साथ स्पर्श करती थी। बत्तख का यह ममत्व तथा मातृत्वभाव अवर्णनीय है। लेखक के अनुसार सरस्वती और शेषनाग भी इसका वर्णन नहीं कर सकते। इस दृश्य को देखने पर लेखक के इस मत की पुष्टि होती है कि पशु-पक्षियों की माताएँ भी अपने बच्चों से ममता तथा स्नेह का व्यवहार करती हैं तथा उनकी सुरक्षा का ध्यान रखती हैं।

प्रश्न 5. गर्मी की दोपहर में लेखक क्या करता था ? लू से बचने के लिये उसकी माँ क्या करती थी?

उत्तर : गर्मी की दोपहर में जब घर के बड़े सो जाते थे तो लेखक उनकी निगाह बचाकर घर से बाहर निकल जाता था। वह दोपहरिया का नाच देखता था। वह आम की बगिया में जाकर पेड़ पर लगे कच्चे आमों के झुंडों को देखा करता था। वह कच्चे आम की हरी गंध को सूंघता था तथा पकने से पहले ही जामुन तोड़कर खाता था। उन दिनों कटहल भी होता था, इसकी तरकारी भी बनती थी।

लू से बचाने के लिए लेखक की माँ धोती अथवा कमीज में माँठ लगाकर प्याज बाँध देती थी। वह कच्चे आम को भनकर उसके गदे के साथ चीनी या गड़ मिलाकर पन्मा बनाकर भी उसे पिलाती थी। शरीर पर पन्ने का लेप भी किया जाता था तथा गूदे से सिर भी धोया जाता था। इन उपायों से लू से बचा जा सकता था। गाँव में लू के भयंकर प्रकोप से बचने के लिए लोग इन्हीं प्राकृतिक उपायों को अपनाया करते थे। उस समय लोगों का जीवन बनावटी नहीं था। गाँव के लोग प्रकृति से प्राप्त जड़ी-बूटियों का उपयोग किया करते थे।

प्रश्न 6. 'संगीत, गंध, बच्चे - बिसनाथ के लिए सबसे बड़े सेतु हैं, काल, इतिहास को पार करने के।' प्रस्तुत कथन के आधार पर बताये कि गंध के संबंध से बिसनाथ किस तरह जडा हआ है?

उत्तर : बिसनाथ का मानना है कि समय और इतिहास को पार करना हो, समय के आर-पार झाँकना हो तो संगीत, गंध और बच्चे इसमें सहायक होते हैं। काल और इतिहास के दोनों तटों को जोड़ने में वे नदी के पुल का काम करते हैं। बड़ा होने पर बिसनाथ को अपना बचपन याद आता है, तो उसको यह भी याद आता है कि उसको अपनी माँ के पेट की गंध, दूध की गंध जैसी लगती थी। पिता के कुर्ते को वह सँघता था तो उसके पसीने की बू उसको अच्छी लगती थी।

नारी शरीर से उसको. बिस्कोहर की फसलों और वनस्पतियों की गंध आती थी। तालाब की चिकनी मिट्टी की गंध, गेहूँ, खीरा, भुट्टा या पुआल की गंध भी उसे प्रिय थी। फूले हुए नीम की गंध को नारी शरीर या श्रृंगार से कभी नहीं जोड़ा जा सकता। वह गंध मादक, गंभीर और असीमित की ओर ले जानेवाली होती है। बचपन के बाद इतना समय बीत जाने के बाद आज बिसनाथ गंध के पुल पर होकर पुनः अपने बचपन वाले तट पर लौट सकता है। गंध के माध्यम से वह आज भी अपने माता-पिता तथा उस आकर्षक नारी से जुड़ा है।

प्रश्न 7. 'बिस्कोहर की माटी' पाठ के गाँव की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर : 'बिस्कोहर की माटी' विश्वनाथ त्रिपाठी की आत्मकथा का अंश है। इस आत्मकथा का पात्र बिसनाथ स्वयं लेखक ही है। इसमें लेखक ने अपने गाँव 'बिस्कोहर' का वर्णन किया है। इस पाठ में गाँव की निम्नलिखित विशेषताएँ वर्णित हुई हैं -

प्राकृतिक सौन्दर्य - बिस्कोहर की प्राकृतिक सुषमा अनुपम है। वहाँ लेंवडी का ताल' में कमल फूलते हैं। कमल के पत्तों पर भोजन परोसा जाता है। कमल से ज्यादा बहार कोइयाँ की होती है। इसे कुमुद और कोकाबेली भी कहते हैं। शरद में जहाँ पानी भरा हो वहाँ यह फल उठती है। गाँव में कमल, कोइयाँ, हरसिंगार के अतिरिक्त अनेक फूल होते हैं, जिनको फलों में नहीं गिना जाता। कदंब. शरीफा. आम. कटहल. बेल. इमली, अमरूद, सेमल आदि के फलों के साथ ही सरसों, तोरी, लौकी, भिंडी, भटकटैया, भरभंडा (सत्यानाशी) आदि के फूल भी वहाँ होते हैं।

जीव-जन्तु - गाँव में डोंड़हा, मजगिदवा, धामिन, फेंटारा, घोर कड़ाइच आदि साँप तथा बिच्छू खूब होते हैं। बरे, ततैया आदि विषैले कीट भी होते हैं। बच्चे इनको पकड़ लेते हैं और धागे में बाँधकर उड़ाते हैं।

ऋतुएँ - गाँव में तेज गर्मी पड़ती है, लू चलती है। लू से बचने के लिए प्याज जेब में रखी जाती है। कच्चे आम को भूनकर पन्ना बनाकर पिया जाता है तथा उससे सिर धोया जाता है। शरीर पर लेप भी करते हैं। गर्मी के बाद वर्षा का आना अच्छा लगता है। बादल छा जाते हैं और गरजते हैं। दिन में रात का अँधेरा छा जाता है। फिर वर्षा की बूंदें गिरती हैं।

उससे संगीत की ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। आँधी में टीन-छप्पर उड़ जाते हैं। तेज वर्षा में मकान गिर जाते हैं। कीचड़ और गन्दगी हो जाती है, रास्तों में पानी भर जाता है। अनेक कीड़े-मकोड़े पैदा हो जाते हैं। तालाब, नदी-नाले जल से भर जाते हैं। सब जगह हरियाली छा जाती है। इसके बाद शरद ऋतु आती है। शरद की चाँदनी बहुत सुन्दर लगती है। जाड़े की धूप भी अच्छी लगती है। चाँदनी में जूही के फूल बहुत सुन्दर लगते हैं। बिस्कोहर में शहर जैसी सुविधायें तो नहीं हैं परन्तु वह अत्यन्त आकर्षक तथा मनोहर है।

बिस्कोहर की माटी (सारांश)

लेखक परिचय

विश्वनाथ त्रिपाठी का जन्म बिस्कोहर गाँव, जिला बस्ती (सिद्धार्थ नगर), उत्तर प्रदेश में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में हुई। तत्पश्चात् बलरामपुर कस्बे में आगे की शिक्षा प्राप्त की। उच्च शिक्षा के लिए वे पहले कानपुर और बाद में वाराणसी गए। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। शुरू में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के राजधानी कालेज में अध्यापन कार्य किया और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर में अध्यापन कार्य से जुड़े रहे। उनकी रचनाओं में प्रारंभिक अवधी, हिंदी आलोचना, हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, लोकवादी तुलसीदास, मीरा का काव्य, देश के इस दौर में, कुछ कहानियाँ-कुछ विचार प्रमुख आलोचना और इतिहास संबंधी ग्रंथ हैं।

पेड़ का हाथ, जैसा कह सका प्रमुख कविता-संग्रह हैं। उन्होंने आरंभ में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के साथ अदहमाण (अब्दुल रहमान) के अपभ्रश काव्य संदेश रासक का संपादन किया तथा कविताएँ 1963, कविताएँ 1964, कविताएँ 1965 अजित कुमार के साथ व हिंदी के प्रहरी रामविलास शर्मा अरुण प्रकाश के साथ संपादित की। उनकी एक और पुस्तक व्योमकेश दरवेश प्रकाशित हुई जो हिंदी के सुप्रसिद्ध आलोचक एवं साहित्यकार. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पर केंद्रित है।

उनको गोकुलचंद्र शुक्ल आलोचना पुरस्कार, डॉ. रामविलास शर्मा सम्मान, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, हिंदी अकादमी, दिल्ली के साहित्यकार सम्मान आदि से सम्मानित किया गया। बिस्कोहर की माटी बिसनाथ को अपनी माँ के पेट का रंग हल्दी मिलाकर बनाई गई पूड़ी-सा लगता था और गंध दूध की। पिता के कुर्ते को सूंघने पर पसीने की बू अच्छी लगती थी। नारी शरीर से उन्हें बिस्कोहर की फसलों और वनस्पतियों की गंध आती थी। संगीगंध और बच्चे बिसनाथ के लिए काल और इतिहास को पार करने के सेतु थे।

बड़े गुलाम अली खाँ द्वारा गाई ठुमरी-'अब तो आओ साजन' में वहीं औरत व्याकुल हुई दिखाई देती थी। सफेद साड़ी पहने, घने काले केश सँवारे, आँखों में आई कथा लिए वह सिर्फ इंतजार करती थी। संगीत, नृत्य, मूर्ति, कविता, स्थापत्य, चित्र-हर कला-रूप के आस्वाद में वह मौजूद थी। बिसनाथ के लिए हर दुःख-सुख से जोड़ने का सेतु थी। इस स्मृति के साथ मृत्यु का बोध अजीब तौर पर जुड़ा हुआ था।

कठिन शब्दार्थ

3पूरब टोला = गाँव का एक भाग।

भोज = दावत, अनेक लोगों के लिए की गई भोजन की व्यवस्था।

पत्र = पत्ता।

नाल = डंडी।

भसीण = कमल ककड़ी।

बहार = प्राकृतिक सुन्दरता।

कोइयाँ = कुमुद का फूल।

शरद = वर्षा के बाद की ऋतु।

अनवरत = लगातार।

निरंतर = हमेशा।

सरोवर = तालाब।

प्रतिबिंब = परछाँई।

गंध = बू।

सिंघाड़ा = पानी में पैदा होने वाला काँटेदार फल।

दूधिया = दूध के रंग का तथा कोमल।

हरसिंगार = एक पेड़ जिस पर वर्षा के बाद फूल आते हैं।

पितृ-पक्ष = श्राद्ध-पक्ष।

पक्ष = पन्द्रह दिन का समय।

अनायास = अचानक, बिना प्रयास।

सहजता = स्वाभाविकता।

वर्ण = रंग।

आकार = बनावट।

बतियाते = बातें करते।

सुबकना = सिसकियाँ भरना।

स्पर्श = छूना।

टीसना = दाँत से काटना।

खटिया = छोटी चारपाई।

पुलक = रोमांच।

अंक = गोद।

जड़ = सोचने-समझने की शक्ति से रहित प्राणी।

चेतन = ज्ञानवान, सोचने-समझने में सक्षम।

अंडज = अंडों से जन्म लेनेवाला।

डियर = हिरण।

बाड़ा = स्थान।

अंडे सेना = पक्षियों द्वारा अंडों के ऊपर बैठकर उन्हें परिपोषित करने की क्रिया।

ताक में होना (मुहा.) = अवसर की तलाश में होना।

छिटकना = बिखरना।

डैने = पंख।

सतर्कता = सावधानी।

सेस = शेषनाग।

सारद = शारदा, सरस्वती।

बयान = वर्णन।

रूपांतरित होना = रूप बदलना।

अंतरबाह्य = भीतरी-बाहरी।

गढ़ना = बनाना, रचना करना।

लीलाचारी होना = कार्यशील होना।

प्रयोजन = उद्देश्य।

निहित = निश्चित, निर्धारित।

फतह करना = जीतना।

कटहा = कटा हुआ।

हुमक = प्रसन्नता और आनन्द से।

बेस्वाद = स्वादहीन।

कसेरिन = बर्तनों के बनाने और बेचने का काम करनेवाली।

कथरी = बिछौना।

साफ-सफ्फाक = साफ-सुथरी।

छतनार = बड़ी टहनियों वाला।

अंतराल = दूरी।

फुनगी = पेड़ की शाखा का आगे का भाग कोमल पत्तियाँ।

भटकटैया = दवा के काम आनेवाला एक कटीला पौधा।

लदबदा जाना = लद जाना, भर उठना।

ताल = तालाब।

सागर = समुद्र।

इफ़रात = बहुतायत।

भरभंडा = सत्यानाशी।

दूब = घास।

वर्णी = रंगोंवाले।

खोंसना = पिरोना, घुसाकर पहनना।

शक्ल = बनावट।

कोदो = एक जंगली अन्न।

खेक्सा = एक तरकारी।

भीटों = टीलों।

विषहीन = विषरहित, बिना जहर के।

वामन = ब्राह्मण।

हिनहिनाना = घोड़े की आवाज।

अवचेतन = सुषुप्त मस्तिष्क।

सरसराते = तेजी से तिरछा रेंगना।

चडैल = भुतनी, प्रेतनी।

वन्य = जंगली।

मादक = नशीली।

चिलचिलाती = तेज़ चमकीली।

दुपहरिया = दोपहर।

लू = गर्मी की तेज हवा।

पन्ना = आम से बना पेय पदार्थ।

लेपना = लेप करना।

झऔर = झुंड, गुच्छे।

बहार = सुख।

तरकारी = सब्जी।

असाढ़ = आषाढ़, वर्षा का पहला महीना।

गाजा = गरजा।

घन = बादल।

नीड़ = घोंसला।

बिहंगम = पक्षी।

तबला, मृदंग = नाद वाद्य।

कतार = पंक्ति।

डेगहर = मार्ग।

बड़की : बड़ी।

बढ़िया = बाढ़।

पुलकित = रोमांचित।

बेमतलब = निरुद्देश्य।

माँजा = फेन।

जोंक = खून चूसने वाला कीड़ा।

ग्वालिन = एक बरसाती कीट।

करकच्ची = एक छोटी चिड़िया।

गोंजर = कानखजूरा।

हरित = हरी।

आभा = शोभा।

पात = पत्ते।

दिसा-मैदान = शौच।

जलावन = जलाने की वस्तु, ईंधन।

सिवान = सीमा।

निखरना = चमकना, अच्छा लगना।

अगाध = बहुत गहरा।

आत्मीर - आत्मा सम्बन्धी।

बरहा = खेतों को सींचने के लिए खेत में मिट्टी ऊँची करके बनायी गयी पानी की नालियाँ।

धारा = लगातार बहाव।

ताज्जुब = आश्चर्य।

प्राणों में बसना (मुहा.) = अच्छा लगना।

सजीव = जीवित।

तदाकार = उसी के समान बनावट।

परिणति = बदल जाना।

सार्थकता = महत्त्व।

कब्बों = कभी।

उत्कट = तेज।

वनस्पति = पेड़-पौधे।

सेतु = पुल।

ठुमरी = एक गायन-शैली।

आर्द्र = गीली।

स्थापत्य = भवन निर्माण की कला।

गरज = यानी।

आस्वाद = चखना, आनंद लेना।

स्मृति = याद।

बोध = ज्ञान।

अजीब = विचित्र।

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