पाठ्यपुस्तक के अभ्यास प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. निम्नांकित चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए
(i) केन्द्रीय
प्रवृत्ति का जो माप चरम मूल्यों से प्रभावित नहीं होता है, वह है
(क) माध्य
(ख) माध्य तथा बहुलक
(ग) बहुलक
(घ) माध्यिका।
(ii) केन्द्रीय
प्रवृत्ति का वह माप जो किसी वितरण के उभरे भाग से हमेशा संपाती होगा, वह
(क) माध्यिका
(ख) माध्य तथा बहुलक
(ग) माध्य
(घ) बहुलक।
(iii) ऋणात्मक
सहसम्बन्ध वाले प्रकीर्ण अंकन में अंकित मानों के वितरण की दिशा होगी
(क) ऊपर बाएँ
से नीचे दाएँ
(ख) नीचे बाएँ से ऊपर दाएँ
(ग) बाएँ से दाएँ
(घ) ऊपर दाएँ से नीचे बाएँ।
प्रश्न 2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
(i) माध्य को
परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
माध्य ऐसा मूल्य है जिसके निकट अन्य सभी मूल्य केन्द्रित होते हैं। माध्य से अधिक
तथा कम सभी मूल्यों का योग शून्य होता है। अथवा किसी चर के विभिन्न मूल्यों का
साधारण अंकगणितीय औसत माध्य कहलाता है। अथवा माध्य वह मान है जो सभी मूल्यों के
योग को कुल प्रेक्षणों की संख्या में विभाजित करने पर प्राप्त होता है।
(ii) बहलक के
उपयोग के क्या लाभ हैं? .
उत्तर:
बहुलक के प्रयोग से गणना आसान हो जाती है और इसे समझना आसान हो जाता है (इसे
निरीक्षण द्वारा ही ज्ञात कर लिया जाता है)।
(iii) अपकिरण
किसे कहते हैं?
उत्तर:
सरल भाषा में अपकिरण विभिन्न इकाइयों का माध्य मूल्य से विचलन को कहते हैं। अपकिरण
माध्य मूल्य से प्रसार, बिखराव, प्रकीर्णन परिक्षेपण आदि हैं। कोनर के अनुसार,
“जिस सीमा तक व्यक्तिगत पद-मूल्यों में भिन्नता होती है, उसके माप को अपकिरण कहते
हैं।”
(iv) सहसम्बन्ध
को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
चरों के बीच सम्बन्धों की तीव्रता और उसके स्वभाव की माप को ‘सहसम्बन्ध’ कहते हैं।
(v) पूर्ण सहसम्बन्ध
किसे कहते हैं?
उत्तर:
सहसम्बन्ध पूरा 1 (एक) होने पर (चाहे धनात्मक हो या ऋणात्मक) इसे ‘पूर्ण
सहसम्बन्ध’ कहते हैं।
(vi) सहसम्बन्ध
की अधिकतम सीमाएँ क्या हैं?
उत्तर:
सहसम्बन्ध की अधिकतम विस्तार (सीमा) 1 (एक) है।
प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए
(i) आरेखों की
सहायता से सामान्य तथा विषम वितरणों में माध्य, माध्यिका तथा बहुलक की सापेक्षिक स्थितियों
की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
केन्द्रीय प्रवृत्ति के तीन माप माध्य, माध्यिका और बहुलक की तुलना सामान्य वितरण
वक्र द्वारा की जा सकती है। सामान्य वक्र घंटाकार वक्र होता है, जिसमें माध्य की
उच्चतम आवृत्ति के दोनों तरफ आवृत्तियों का वितरण एकसमान होता है। माध्य के दोनों
तरफ किनारों की ओर जाने पर आवृत्तियों की संख्या क्रमशः कम होती जाती है। इस वक्र
में.माध्य, माध्यिका तथा बहुलक का मान समान होता है।
परन्तु विषम वक्र होने पर माध्य, माध्यिका तथा बहुलक का मूल्य भिन्न हो जाता है। चित्र में धनात्मक विषमता वाला वक्र दिखाया गया है जिसमें निम्न मूल्यों की आवृत्तियाँ अधिक तथा अधिक मूल्यों की आवृत्तियाँ कम हैं। इस अवस्था में पहले बहुलक, फिर माध्यिका और अन्त में माध्य आता है।
अन्त में चित्र में ऋणात्मक
विषमता वाला वक्र दिखाया गया है जिसमें कम मूल्य की आवृत्तियाँ कम तथा अधिक मूल्य की
आवृत्तियाँ अधिक हैं। इस अवस्था में पहले माध्य, फिर माध्यिका और अन्त में बहुलक आता
है।
(ii) माध्य,
माध्यिका तथा बहुलक की उपयोगिता पर टिप्पणी कीजिए (संकेत : उनके गुण तथा दोषों से)।
उत्तर:
(I) माध्य : माध्य के निम्नलिखित
गुण हैं
1. सरल-इसकी गणना करना तथा
इसे समझना बहुत सरल है।
2. प्रतिनिधि माध्य-यह श्रेणी
की सभी इकाइयों पर आधारित होता है।
3. निश्चित मूल्य-माध्य का
मूल्य सदा निश्चित रहता है।
4. स्थिर-यह स्थिर होता है।
माध्य के निम्नलिखित दोष हैं
1. चरम मूल्यों का प्रभाव-माध्य
पर चरम मूल्यों का अधिक प्रभाव होता है।
2. अप्रतिनिधि तथा अवास्तविक-माध्य
वह मूल्य हो सकता है जो श्रेणी में उपस्थित न हो।
3. हास्यास्पद परिणाम-माध्य
द्वारा कभी-कभी भ्रमात्मक तथा असंगत निष्कर्ष निकल आते हैं जो हास्यास्पद होते हैं।
(II) माध्यिका : माध्यिका के
निम्नलिखित गुण हैं
1. सरल-माध्यिका को समझना और
ज्ञात करना सरल है।
2. चरम मूल्यों का न्यूनतम
प्रभाव-माध्यिका ज्ञात करने में श्रेणी के चरम मूल्यों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
3. आँकड़ों के अभाव में उपयुक्त-आँकड़ों
का अभाव होने पर भी इसकी गणना की जा सकती है।
4. बिन्दुरेखीय प्रदर्शन-माध्यिका
मूल्य को ग्राफ की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है।
माध्यिका के निम्नलिखित दोष
हैं
1. समंकों का क्रम-समंकों को
क्रम में जमाने में अधिक समय लगता है।
2. चरम मूल्यों की उपेक्षा-इसमें
चरम मूल्यों की उपेक्षा की गई है।
3. प्रतिनिधित्व का अभाव यह
केवल संभावित माप होता है, वास्तविक नहीं।
4. अनियमित आँकड़ों के लिए
उपयुक्त नहीं-यह अनियमित आँकड़ों के लिए उपयुक्त विधि नहीं है।
(III) बहुलक : बहुलक के निम्नलिखित
गुण हैं
1. सरल गणना- इसकी गणना बड़ी
सरल है।
2. चरम मूल्यों का न्यूनतम
प्रभाव- यह चरम मूल्यों से प्रभावित नहीं होता है।
3. सर्वोत्तम प्रतिनिधित्व-यह
श्रेणी का सर्वोत्तम प्रतिनिधित्व करता है।
4. व्यावहारिक उपयोगिता- व्यवहार
में बहुलक का काफी प्रयोग किया जाता है।
बहुलक
के
निम्नलिखित दोष हैं
1. अनिश्चित माध्य-बहुलक सबसे
अधिक अनिश्चित व अस्पष्ट माध्य है।
2. सभी मूल्यों पर आधारित नहीं-यह
सभी मूल्यों पर आधारित नहीं होता है।
3. चरम मूल्यों की उपेक्षा-यह
चरम मूल्यों की उपेक्षा करता है।
4. वर्ग विस्तार से प्रभावित-यह
वर्ग विस्तार से प्रभावित होता है।
(iii) एक काल्पनिक
उदाहरण की सहायता से मानक विचलन की गणना की प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर: मानक विचलन- मानक विचलन किसी श्रेणी के विभिन्न मूल्यों के समान्तर माध्य से निकाले गए विचलनों के वर्गों के माध्य का वर्गमूल होता है। मानक विचलन हमेशा समान्तर माध्य के लिए जाते हैं और विचलन लेते समय शुद्धि की दृष्टि से +’ तथा ‘-‘ चिह्नों का पूरा ध्यान रखा जाता है। उन्हें पुन: धनात्मक बनाने के लिए उनके वर्ग कर लिए जाते हैं और फिर उनका वर्गमूल ज्ञात करके मानक विचलन निकाल लिया जाता है। इसे व्यक्त करने के लिए ग्रीक भाषा का अक्षर (छोटा सिग्मा) प्रयुक्त किया जाता है। अवर्गीकृत आँकड़ों का मानक विचलन ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
मानक विचलन σ=Σ
जहाँ Σd2 =
विचलनों के वर्गों का योग
N = बारम्बारता,
उपर्युक्त सूत्र कुछ कठिन प्रतीत
होगा। यदि X का मान दशमलव अंकों में हो और प्रेक्षणों की संख्या बहुत अधिक हो। उस स्थिति
में हम निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करेंगे
उदाहरण- निम्न तालिका में आगरा के 10 वर्षों की वर्षा के आँकड़े दिए गए हैं। मानक विचलन ज्ञात कीजिए।
वर्ष |
वर्षा(सेमी में) |
1 |
90 |
2 |
100 |
3 |
110 |
4 |
120 |
5 |
70 |
6 |
80 |
7 |
130 |
8 |
150 |
9 |
100 |
10 |
50 |
(iv) प्रकीर्णन
का कौन-सा माप सबसे अधिक अस्थिर है तथा क्यों?
उत्तर: परिसर अथवा विस्तार
किसी श्रृंखला में अधिकतम तथा न्यूनतम मानों के बीच अन्तर को परिसर (Range) कहते हैं।
इसकी गणना निम्नलिखित सूत्र के द्वारा की जाती है, अर्थात्
R = L – S
यहाँ R= परिसर/विस्तार
L= अधिकतम मान
S = न्यूनतम मान प्रकीर्णन
का परिसर (विस्तार) माप सबसे अधिक अस्थिर है, क्योंकि यह केवल अधिकतम तथा न्यूनतम मानों
पर निर्भर करता है और अन्य मानों का प्रयोग नहीं करता जिससे इसका प्रयोग अधिक नहीं
होता है। यद्यपि इसे ज्ञात करना अत्यन्त सरल है।
परिसर, परिवर्तनशीलता का अशोधित
(crude) माप है और इसे सावधानी से केवल उसी परिस्थिति में प्रयोग करना चाहिए जहाँ आँकड़े
लगातार तथा नियमित हों।
(v) सहसम्बन्ध
की गहनता पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर: सहसम्बन्ध की गहनता
सहसम्बन्ध की ऋणात्मक अथवा धनात्मक सहसम्बन्ध के अलावा हमारे लिए दो चरों के बीच सहसम्बन्ध
की गहनता के सम्बन्ध में जानना भी आवश्यक है। साहचर्य की गहनता अधिक 1 से लेकर न्यूनतम
-1 तक होती है और इन दो चरम सीमाओं के बीच शून्य (0) होती है।
इस विस्तार का रैखिक वर्णन चित्र में दर्शाया गया है। सहसम्बन्ध पूरा 1 (एक) होने पर (चाहे धनात्मक हो या ऋणात्मक) इसे पूर्ण सहसम्बन्ध कहते हैं। इस तरह गहनतम सहसम्बन्ध के दो विपरीत सिरों के ठीक मध्य में शून्य (0) सहसम्बन्ध स्थित होता है, जिस बिन्दु पर चरों के मध्य सहसम्बन्ध का अभाव अथवा सहसम्बन्ध अनुपस्थित होता है।
(vi) कोटि सहसम्बन्ध
की गणना के विभिन्न चरण कौन-से हैं?
उत्तर: कोटि सहसम्बन्ध (स्पीयरमैन)
कोटि संहसम्बन्ध को सन् 1904 में स्पीयरमैन ने प्रतिपादित किया था। इस विधि के अनुसार
सहसम्बन्ध की गणना कोटियों के आधार पर की जाती है। सांख्यिकी के संकेताक्षर ρ (ग्रीक
अक्षर जिसका उच्चारण है रो (rho) है। इसकी गणना विधि आसान होने के कारण स्पीयरमैन सहसम्बन्ध
का उपयोग अधिक प्रचलित है।
कोटि सहसम्बन्ध की गणना के
विभिन्न चरण
1. X – Y चरों को सारणी के
क्रमश: प्रथम एवं द्वितीय स्तम्भों में दिखाएँ।
2. दोनों चर अलग कोटि के हैं।
X के मान को तीसरे स्तम्भ में दिखाया गया है। इसी प्रकार Y के मान को चौथे स्तम्भ में
दिखाया जाता है। सर्वाधिक मान को R1 तथा दूसरे सबसे अधिक मान को R2 दिखाते
हैं।
3. जब XR और YR प्राप्त कर
लिए जाते हैं तो दोनों का अन्तर ज्ञात किया जाता है और पाँचवें स्तम्भ में रख दिया
जाता है।
4. इनमें प्रत्येक अन्तर का
वर्ग ज्ञात किया जाता है और इनका जोड़ किया जाता है। इसे छठे स्तम्भ में रखते हैं।
5. इस प्रकार कोटि सहसम्बन्ध
का परिकलन निम्न सूत्र से किया जाता है
जिसमें
ρ = कोटि सहसम्बन्ध
Σd2 = दोनों कोटियों के अन्तर
के वर्ग का योग
N = X – Y युग्मों की संख्या
उदाहरण :
निम्न संमको से रैंक सह-सम्बन्ध ज्ञात कीजिए
गणित में प्राप्तांक |
36 |
46 |
29 |
35 |
44 |
48 |
26 |
30 |
अर्थशास्त्र में प्राप्तांक |
20 |
50 |
30 |
40 |
60 |
55 |
29 |
42 |
X |
Y |
Rx |
Ry |
d (Rx -Ry) |
d2 |
36 |
20 |
4 |
8 |
-4 |
16 |
46 |
50 |
2 |
3 |
-1 |
1 |
29 |
30 |
7 |
6 |
1 |
1 |
35 |
40 |
5 |
5 |
0 |
0 |
44 |
60 |
3 |
1 |
2 |
4 |
48 |
55 |
1 |
2 |
-1 |
1 |
26 |
29 |
8 |
7 |
1 |
1 |
30 |
42 |
6 |
4 |
2 |
4 |
|
|
|
|
|
Σd2 =28 |
क्रियाकलाप
प्रश्न 1. भौगोलिक
विश्लेषण के लिए प्रयुक्त कोई काल्पनिक उदाहरण लीजिए तथा अवर्गीकृत आँकड़ों की गणना
करने की प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष विधियों को समझाइए।
उत्तर: काल्पनिक उदाहरण
निम्नलिखित सारणी में लखनऊ के मासिक तापमान के आँकड़े दिए गए हैं। इससे लखनऊ का औसत तापमान ज्ञात कीजिए
प्रश्न 2. विभिन्न
प्रकार के पूर्ण सहसम्बन्ध दर्शाने के लिए प्रकीर्ण आरेख बनाइए।
उत्तर: पूर्ण धनात्मक सह : सम्बन्ध-जब सरल रेखा प्रकीर्ण आरेख के निचले बायें से ऊपरी दायें भाग की ओर जाती है, तो यह पूर्ण धनात्मक सह - सम्बन्ध कहलाता है। इसमें X - अक्ष पर प्रत्येक एक इकाई की वृद्धि के साथ-साथ Y - अक्ष पर भी दो इकाइयों की वृद्धि हो जाती है। पूर्ण धनात्मक सह - सम्बन्ध का मान +1.00 होता है।
पूर्ण ऋणात्मक सह: सम्बन्ध - जब सरल रेखा प्रकीर्ण आरेख के ऊपरी बाएँ भाग से निचले दाएँ भाग की ओर जाती है, तो यह पूर्ण ऋणात्मक सह-सम्बन्ध कहलाता है, जिसका मान -1.00 होता है। इसमें X -अक्ष पर प्रत्येक एक इकाई वृद्धि के साथ-साथ Y -अक्ष पर दो इकाइयों की कमी हो जाती है। इसका आशय यह है कि दोनों चरों में एक - दूसरे के विपरीत गति करने की प्रवृत्ति है, अर्थात् एक चर में वृद्धि होने से दूसरे चर में कमी होती है।
शून्य सह-सम्बन्ध : जब युग्म के दोनों चर एक-दूसरे में परिवर्तन का कोई प्रत्युत्तर नहीं देते, तो ऐसी स्थिति में दोनों चरों के मध्य कोई सह-सम्बन्ध नहीं होता है। इसे शून्य सह-सम्बन्ध अथवा सह-सम्बन्ध का अभाव कहते हैं। X -चर में परिवर्तन का Y-चर द्वारा प्रत्युत्तर नहीं दिये जाने के कारण शून्य सह-सम्बन्ध को प्रकीर्ण अंकन-A द्वारा प्रदर्शित किया गया है। इसी तरह Y-चर में परिवर्तन का X -चर द्वारा कोई प्रत्युत्तर नहीं दिये जाने के कारण प्रकीर्ण अंकन-B में भी शून्य सह-सम्बन्ध की स्थिति उत्पन्न हुई है।
कमजोर, मध्यम तथा गहन सह-सम्बन्ध-पूर्ण
सह-सम्बन्ध (±1) व शून्य सह-सम्बन्ध के बीच साहचर्य की सामान्य प्रवृत्ति पायी जाती
है, जिन्हें कमजोर, मध्यम व गहन सह-सम्बन्ध कहा जाता है। इन तीनों स्थितियों को निम्न
चित्र द्वारा दर्शाया गया है। इनमें अंकित बिन्दुओं को देखकर कहा जा सकता है कि प्रकीर्णन
या बिखराव जितना अधिक होगा, सह-सम्बन्ध उतना ही कमजोर होगा तथा प्रकीर्णन कम होने से
सह-सम्बन्ध गहन होगा।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. सहसम्बन्ध
किसे कहते हैं? इसके प्रकारों को समझाइए।
उत्तर: सहसम्बन्ध का अर्थ प्रकृति
में प्रत्येक तथ्य एवं परिघटना किसी अन्य तथ्य या परिघटना से प्रभावित और संबंधित होती
है। इसी कारण दो या दो से अधिक श्रेणियों में परस्पर सम्बन्ध पाया जाता है अर्थात्
एक श्रेणी में परिवर्तन आने पर दूसरी श्रेणी में भी परिवर्तन आ जाता है।
उदाहरण- किसी स्थान पर तापमान
बढ़ने से वहाँ का वायुदाब कम होने लगता है। चरों के बीच सम्बन्धों की तीव्रता और उसके
स्वभाव के माप को ‘सहसम्बन्ध’ कहा जाता है।
“जब सम्बन्ध संख्यात्मक प्रकृति
का होता है तो उसे खोजने, मापने तथा सूत्र में व्यक्त करने की विधि को ‘सहसम्बन्ध’
कहते हैं।”
सहसम्बन्ध
के प्रकार
सहसम्बन्ध के दो प्रकार निम्नलिखित
हैं
1. धनात्मक सहसम्बन्ध-
जब दो चरों में परिवर्तन एक ही दिशा में होता है अर्थात् एक चर के बढ़ने पर दूसरा चर
भी बढ़ता है और एक के घटने पर दूसरा भी घटता है तो ऐसे सहसम्बन्ध को ‘धनात्मक सहसम्बन्ध’
कहते हैं।
2. ऋणात्मक सहसम्बन्ध-
जब दो चरों में परिवर्तन एक-दूसरे की विपरीत दिशाओं में होता है तो इसे ‘ऋणात्मक सहसम्बन्ध’
कहते हैं।
प्रश्न 2. निम्नलिखित
आँकड़ों से माध्य विचलन ज्ञात कीजिए 15, 17, 19, 25, 30, 35, 48.
हल:
क्रम
संख्या |
मद
(X) |
मद
से माध्य का विचलन |
1 |
15 |
12 |
2 |
17 |
10 |
3 |
19 |
8 |
4 |
25 |
2 |
5 |
30 |
3 |
6 |
35 |
8 |
7 |
48 |
21 |
n=7 |
ΣX = 189 |
Σd = 64 |
\overline X=\frac{\Sigma X}n=\frac{189}7=27
चरण
(1) मदों को X मानिए।
(2) समान्तर माध्य \overline Xज्ञात कीजिए।
(3) प्रत्येक मद में से घटाइए (X – X̅ = d)
(4) प्रत्येक विचलन को जोड़कर
Σd ज्ञात करें।
(5) विचलनों के योग को मदों
की संख्या से भाग दीजिए।
सूत्र = माध्य विचलन = \frac{\Sigma d}n= 9.14
प्रश्न 3. निम्नलिखित
शब्दों के अर्थ को स्पष्ट कीजिए
(i) आवृत्ति
या बारंबारता, (ii) वर्ग, (iii) वर्ग-आवृत्ति, (iv) आवृत्ति-वितरण श्रृंखला, (v) मिलान
रेखाएँ।
उत्तर:
(i) आवृत्ति या बारंबारता-
किन्हीं आँकड़ों के समूह में एक मद (विशेष अंक) कितनी बार आता है अर्थात् उस संख्या
की कितनी बार पुनरावृत्ति होती है, उसे उस मद की आवृत्ति या बारंबारता कहते हैं। उदाहरणत:
किसी सारणी में मद 135 की चार बार पुनरावृत्ति हुई है, अत: 135 की बारंबारता 4 है।
(ii) वर्ग-
यदि मदों (आँकड़ों) की संख्या बहुत अधिक हो तो विभिन्न मानों को छोटे-छोटे समूहों में
बाँट दिया जाता है, जिन्हें वर्ग कहते हैं; जैसे-119-129, 129-139 वर्ग हैं।
(iii) वर्ग-आवृत्ति-
किसी भी एक वर्ग में आने वाले मदों की संख्या को ‘वर्ग आवृत्ति’ कहते हैं।
(iv) आवृत्ति-वितरण श्रृंखला- यह
आवृत्तियों के बंटन को प्रदर्शित करने वाली श्रृंखला है जिसमें मात्रात्मक सूचनाओं
को संक्षिप्त करके व्यवस्थित रूप में रखा जाता है।
(v) मिलान रेखाएँ-
आवृत्ति श्रृंखला की रचना करते समय प्रत्येक वर्ग में पड़ने वाली मद को एक छोटी-सी
रेखा के द्वारा प्रकट किया जाता है जिसे ‘मिलान रेखा’ कहा जाता है। प्रत्येक चार मिलान
रेखाओं के समूह के बाद पाँचवीं मिलान रेखा उन चारों रेखाओं को काटती हुई खींची जाती
है, जैसे। फिर इन्हें गिनकर उस वर्ग-विशेष के सामने लिख दिया जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. माध्य
क्या है?
उत्तर : माध्य- इसे औसत भी
कहते हैं। आँकड़ों को समझने और उनकी तुलना करने में औसत सर्वाधिक प्रभावशाली है। माध्य
या औसत एक ऐसी अकेली संख्या है जो पूरी श्रृंखला के सभी आँकड़ों का प्रतिनिधित्व करती
है। औसत तो अधिकतम और न्यूनतम मूल्यों के बीच का एक मूल्य या मद होती है जो अधिक या
कम सभी मूल्यों का प्रतिनिधित्व कर देती है।
प्रश्न 2. सहसम्बन्ध
में स्वतन्त्र व आश्रित चर को समझाइए।
उत्तर : सहसम्बन्ध में स्वतन्त्र
व आश्रित चर-सहसम्बन्ध के कुछ चर दूसरे चरों को प्रभावित करते हैं; इसीलिए उनमें सहसम्बन्ध
होता है। जो चर प्रभावित होते हैं उन्हें ‘आश्रित चर’ कहा जाता है। इसके विपरीत जो
चर प्रभावित करते हैं उन्हें ‘स्वतन्त्र चर’ कहा जाता है। उदाहरणत: कृषि उत्पादकता
सिंचाई पर निर्भर करती है। इसमें सिंचाई ‘स्वतन्त्र चर’ व कृषि ‘आश्रित चर’ मानी जाती
है।
प्रश्न 3. माध्य
की उपयोगिता तथा उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : माध्य की उपयोगिता
तथा उद्देश्य निम्नलिखित हैं
1. माध्य संक्षिप्तीकरण में
सहायक है।
2. यह तुलना में सहायक है।
3. यह विश्लेषण में सहायक है।
4. यह अनुपात निर्धारण में
सहायक है।
5. यह समग्र का प्रतिनिधित्व
करता है।
6. यह मार्गदर्शन प्रदान करता
है।
प्रश्न 4. एक
आदर्श माध्य के आवश्यक तत्त्व/विशेषताएँ बताइए।
उत्तर: एक आदर्श माध्य के आवश्यक
तत्त्व/विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. आदर्श माध्य की स्थिर परिभाषा
होती है।
2. यह सभी मूल्यों पर आधारित
है।
3. यह सरल और बोधगम्य है।
4. यह शीघ्र गणनीय होता है।
5. यह बीजगणितीय विवेचन के
योग्य है।
6. यह निदर्शन परिवर्तनों से
न्यून प्रभावित होता है।
प्रश्न 5. बहुलक
की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर: बहुलक की विशेषताएँ
निम्नलिखित हैं
1. बहुलक में सर्वाधिक आवृत्ति
होती है।
2. इसमें एकाधिक माध्य होता
है।
3. यह आवृत्ति पर निर्भर करती
है।
4. इसकी परिकलन विधि आसान है।
5. इसमें अधिक व न्यून मूल्य
का महत्त्व नहीं होता है।
प्रश्न 6. माध्यिका
की विशेषताओं को समझाइए।
उत्तर: माध्यिका की विशेषताएँ
निम्नलिखित हैं
1. माध्यिका का निर्धारण करने
के लिए पदों को आरोही (बढ़ते हुए) या अवरोही (घटते हुए) क्रम में व्यवस्थित किया जाता
है।
2. माध्यिका समंकमाला के केन्द्र
में स्थित पद का मूल्य होता है।
3. माध्यिका सम्पूर्ण समंक
श्रेणी को दो बराबर-बराबर भागों में बाँटती है तथा विभाजित करती है।
4. माध्यिका को पद-मूल्यों
की क्रमिक वृद्धि पर आधारित किया जाता है, जिसके एक तरफ मूल्य कम तथा दूसरी तरफ अधिक
मूल्य होते हैं।
प्रश्न 7. विस्तार
के गुणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: विस्तार के गुण निम्नलिखित
हैं
1. विस्तार को सफलतापूर्वक
मापा जा सकता है।
2. विस्तार को समझना भी सरल
है।
3. इसका प्रयोग बड़े उद्योगों
एवं कल-कारखानों में उत्पादन की वस्तुओं की गुणवत्ता के नियन्त्रण में विशेष रूप से
किया जाता है।
प्रश्न 8. विस्तार
के दोषों को समझाइए।
उत्तर: विस्तार के दोष निम्नलिखित
हैं-
1. विस्तार किसी भी श्रेणी
के विचरण का स्थायी माप नहीं होता है।
2. अधिकतम और न्यूनतम के मध्य
पद मूल्यों में होने वाले प्रभाव का विस्तार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
3. विस्तार की सबसे बड़ी कमी
यह है कि इसमें चरम मूल्यों के बीच स्थित पद-मूल्यों के विचलन का ज्ञान नहीं हो पाता
है।
आवृत्ति बंटनों के लिए विस्तार
हमेशा उपयुक्त नहीं होते हैं।
प्रश्न 9. मानक
विचलन की विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर: मानक विचलन की विशेषताएँ
निम्नलिखित हैं
1. इसके आकलन में मूल्य के
विचलन सदैव समान्तर माध्य से ही ज्ञात किए जाते हैं।
2. इसकी माप में धनात्मक
(+) और ऋणात्मक (-) चिह्नों को छोड़ा नहीं जाता है, बल्कि विचलनों का . वर्ग तो लिया
जाता है।
प्रश्न 10. विचरण
के गुणांक को समझाइए।
उत्तर: विचरण का गुणांक-प्रमाप
विचलन के गुणांक का प्रयोग विभिन्न श्रेणियों में प्रमाप विचलन का तुलनात्मक अध्ययन
एवं विवेचन किया जाता है। इसका मूल्य सामान्यतया एक से कम दशमलव 1 से 9 तक संख्या हो
सकती है।
प्रमाप विचलन का प्रतिशत ही
विचरण का गुणांक होता है। इसका सूत्र निम्नलिखित है
विचरण गुणांक(Coefficient of Variation) = \frac\sigma Ẍ × 100
प्रश्न 11. प्रमाप
विचलन के लाभ बताइए।
उत्तर: प्रमाप विचलन के लाभ
निम्नलिखित हैं
1. प्रमाप विचलन सभी मूल्यों
पर आधारित है।
2. यह स्पष्ट व निश्चित माप
होता है।
3. इसमें परिवर्तन पर न्यूनतम
प्रभाव होता है।
4. यह उच्चस्तरीय सांख्यिकी
में प्रयोग किया जाता है।
5. यह अपकिरण के माप की सर्वश्रेष्ठ
विधि है।
प्रश्न 12. प्रमाप
विचलन के दोष/अवगुण/कमियाँ समझाइए।
उत्तर: प्रमाप विचलन के दोष/अवगुण/कमियाँ
निम्नलिखित हैं·
(1) प्रमाप विचलन की गणनाविधि
एवं प्रक्रिया अन्य अपकिरण की माप की विधियों से कठिन है। इसे समझना, गणना करना आदि
कष्टसाध्य है।
(2) इसके माप में चरम मूल्यों
को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है।
मौखिक प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न 1. केन्द्रीय
प्रवृत्ति का माप क्या होता है?
उत्तर : आँकड़ों की समंक श्रेणी
में एक ऐसा प्रतिनिधि मूल्य जो सम्पूर्ण श्रेणी की केन्द्रीय प्रवृत्ति को सरल और संक्षिप्त
रूप से अभिव्यक्त करे, केन्द्रीय प्रवृत्ति का माप’ कहलाता है।
प्रश्न 2. केन्द्रीय
प्रवृत्ति के प्रमुख माप कौन-कौन-से हैं?
उत्तर: सामान्यतः केन्द्रीय
प्रवृत्ति के 3 माप होते हैं
1. अंकगणितीय माध्य/औसत
2. माध्यिका तथा
3. बहुलक।
प्रश्न 3. केन्द्रीय
प्रवृत्ति का कौन-सा माप स्थितिजन्य है?
उत्तर.
• माध्यिका एवं
• बहुलक।
प्रश्न 4. आँकड़ों
में विचरणशीलता का विक्षेपण को जानना क्यों आवश्यक है?
उत्तर: यह जानने के लिए कि
माध्य आँकड़ों का उचित प्रतिनिधित्व कर रहा है अथवा नहीं, विचरणशीलता का अध्ययन आवश्यक
है।
प्रश्न 5. प्रकीर्णन
के मापन की प्रमुख विधियों के नाम बताइए।
उत्तर: प्रकीर्णन के मापन की
प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं
• विस्तार
• चतुर्थक विचलन
• माध्य विचलन
• मानक विचलन (S.D.) तथा विचरण
गुणांक (C.V.)
• लारेन्ज वक्र।
प्रश्न 6. सहसम्बन्ध
किसे कहते हैं?
उत्तर: विभिन्न चरों के बीच
संख्यात्मक सम्बन्धों की तीव्रता और उसके स्वभाव के माप को ‘सहसम्बन्ध’ कहते हैं।
प्रश्न 7. सहसम्बन्ध
ज्ञात करने की मात्रिक विधियाँ कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:
1. कार्ल पियर्सन का सहसम्बन्ध
का गुणांक (r) तथा
2. स्पीयरमैन कोटिक्रम सहसम्बन्ध
(rK)
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. केन्द्रीय
प्रवृत्ति का प्रमुख माप है
(a) अंकगणितीय माध्य
(b) माध्यिका
(c) बहुलक .
(d) उपर्युक्त
सभी।
प्रश्न 2. केन्द्रीय
प्रवृत्ति का स्थितिजन्य माप है
(a) माध्यिका
(b) बहुलक
(c) (a) व
(b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं।
प्रश्न 3. प्रकीर्णन
के मापन की विधि नहीं है
(a) विस्तार
(b) बहुलक
(c) माध्य विचलन
(d) लॉरेन्ज वक्र।
प्रश्न 4. ‘विस्तार’
का संकेताक्षर है..
(a) R
(b) L
(c) S
(d) P
प्रश्न 5. पूर्ण
ऋणात्मक सहसम्बन्ध होता है
(a) 1
(b) 0
(c) – 1
(d) इनमें से कोई नहीं।
प्रश्न 6. पूर्ण
सहसम्बन्ध होता है
(a) – 1
(b) +1
(c) ±1
(d) इनमें से कोई नहीं।