पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
1. बहुवैकल्पिक प्रश्न
प्रश्न (i) निम्न में से किसने सर्वप्रथम यूरोप, अफ्रीका व अमेरिका
के साथ स्थित होने की सम्भावना व्यक्त की?
(क)
अल्फ्रेड वेगनर
(ख)
अब्राहमें आरटेलियस
(ग) एनटोनियो पेलेग्रिनी
(घ)
एडमण्ड हैस।
प्रश्न (ii) पोलर फ्लीइंग बल (Polar fleeing Force) निम्नलिखित में
से किससे सम्बन्धित है?
(क)
पृथ्वी का परिक्रमण
(ख) पृथ्वी को घूर्णन
(ग)
गुरुत्वाकर्षण
(घ)
ज्वारीय बल
प्रश्न (iii) इनमें से कौन-सी लघु (Minor) प्लेन नहीं है?
(क)
नजका
(ख)
फ़िलिपीन
(ग)
अरब
(घ) अण्टार्कटिक
प्रश्न (iv) सागरीय अधःस्तल विस्तार सिद्धान्त की व्याख्या करते
हुए हैस ने निम्न में से किस अवधारणा पर विचार नहीं किया?
(क)
मध्य-महासागरीय कटकों के साथ ज्वालामुखी क्रियाएँ
(ख)
महासागरीय नितल की चट्टानों में सामान्य व उत्क्रमण चुम्बकत्व क्षेत्र की पट्टियों
का होना
(ग) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण
(घ)
महासागरीय तल की चट्टानों की आयु ।
प्रश्न (v) हिमालय पर्वतों के साथ भारतीय प्लेट की सीमा किस तरह की
प्लेट सीमा है?
(क)
महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण
(ख)
अपसारी सीमा
(ग)
रूपान्तरण सीमा
(घ) महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए
प्रश्न (i) महाद्वीपों के प्रवाह के लिए वेगनर ने किन बलों का
उल्लेख किया?
उत्तर-
वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन के लिए निम्नलिखित दो बलों का उल्लेख किया है
- पोलर या ध्रुवीय
फ्लीइंग बल (Polar feeling force) तथा
- ज्वारीय बल (Tidal
force)।
ध्रुवीय
फ्लीइंग बल पृथ्वी के घूर्णन से सम्बन्धित है। वास्तव में पृथ्वी की आकृति एक
सम्पूर्ण गोले जैसी नहीं है, वरन् यह भूमध्य रेखा पर उभरी हुई है। यह उभार पृथ्वी
के घूर्णन के कारण है। दूसरा ज्वारीय बल सूर्य व चन्द्रमा के आकर्षण से सम्बद्ध
है, जिससे महासागर में ज्वार पैदा होता है। वेगनर का मानना था कि करोड़ों वर्षों
के दौरान ये बल प्रभावशाली होकर विस्थापन के लिए सक्षम हुए।
प्रश्न (ii) मैंटल में संवहन धाराओं के आरम्भ होने और बने रहने के
क्या कारण हैं?
उत्तर-
1930 के दशक में आर्थर होम्स ने मैंटल भाग में संवहन धाराओं के प्रभाव की सम्भावना
व्यक्त की थी। संवहन धाराएँ रेडियोएक्टिव तत्त्वों से ताप भिन्नता के कारण मैंटल
में उत्पन्न होती हैं। ये धाराएँ रेडियोएक्टिव तत्त्वों की उपलब्धता के कारण ही
मैंटल में बनी रहती हैं तथा इन्हीं तत्त्वों से संवहनीय धाराएँ आरम्भ होकर चक्रीय
रूप में प्रवाहित होती रहती हैं।
प्रश्न (iii) प्लेट की रूपान्तर सीमा, अभिसरण सीमा और अपसारी सीमा
में मुख्य अन्तर क्या है?
उत्तर-
प्लेट की रूपान्तर सीमा में पर्पटी का न तो निर्माण होता है और न ही विनाश। जबकि
अभिसरण सीमा में पर्पटी का विनाश होता है तथा अपसारी सीमा में पर्पटी का निर्माण
होता है। अत: रूपान्तर, अभिसरण और अपसारी सीमा में मुख्य अन्तर पर्पटी के निर्माण,
विनाश और दिशा संचालन के कारण है।
प्रश्न (iv) दक्कन ट्रैप के निर्माण के दौरान भारतीय स्थलखण्ड की
स्थिति क्या थी?
उत्तर-
आज से लगभग 14 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय स्थलखण्ड सुदूर दक्षिण में 50° दक्षिणी
अक्षांश पर स्थित था। भारतीय उपमहाद्वीप व यूरेशियन प्लेट को टैथीज सागर अलग करता
था और तिब्बती खण्ड एशियाई खण्ड के करीब था। इण्डियन प्लेट के एशियाई प्लेट की तरफ
प्रवाह के दौरान एक प्रमुख घटना लावा प्रवाह के कारण दक्कन टैप का निर्माण हुआ।
अत: भारतीय स्थलखण्ड दक्कन टैप निर्माण के समय भूमध्य रेखा के निकट स्थित था।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए
(i) महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के पक्ष में दिए गए प्रमाणों का वर्णन
करें।
उत्तर-
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के तहत वेगनर ने कहा है कि 20 करोड़ वर्ष पहले सभी
महाद्वीप आज की तरह अलग-अलग नहीं थे, बल्कि पैंजिया के ही भाग थे। इसको प्रमाणित
करने के लिए वेगनर ने कई साक्ष्य दिए हैं
(क)
भूवैज्ञानिक क्रियाओं के फलस्वरूप 47 करोड़ से 35 करोड़ वर्ष पुरानी पर्वत पट्टी का
निर्माण एक अविच्छिन्न कटिबंध के रूप में हुआ था। ये पर्वत अब अटलांटिक महासागर द्वारा
पृथक कर दिए गए हैं।
(ख)
कुछ जीवाश्म भी यह बताते हैं कि समस्त महाद्वीप कभी परस्पर जुड़े हुए थे। उदाहरण के
लिए, ग्लोसोप्टेरिस नामक पौधे तथा मेसोसौरस एवं लिस्ट्रोसौरस नामक जंतुओं के जीवाश्म
गोंडवानालैंड के सभी महाद्वीपों में मिलते हैं जबकि आज ये महाद्वीप एक-दूसरे से काफी
दूर हैं।
(ग)
अफ्रीका के घाना तट पर सोने का निक्षेप पाया जाता है जबकि 5000 कि०मी० चौड़े महासागर
के पार दक्षिणी अमेरिका में ब्राजील के तटवर्ती भाग में भी सोने का निक्षेप पाया जाता
है।
(घ)
पर्मोकार्बनी काल में मोटे हिमानी निक्षेप उरुग्वे, ब्राजील, अफ्रीका, दक्षिणी भारत,
दक्षिणी आस्ट्रेलिया तथा तस्मानिया के धरातल पर दिखाई देते थे। इन अवसादों की प्रकृति
में एकरूपता यह सिद्ध करती है कि भूवैज्ञानिक अतीत काल में समस्त महाद्वीप एक-दूसरे
से जुड़े हुए थे तथा यहाँ एक जैसी जलवायविक दशाएँ थीं।
(ङ)
महाद्वीपों का विस्थापन अभी भी जारी है। अटलांटिक महासागर की चौड़ाई प्रतिवर्ष कई सेंटीमीटर
के हिसाब से बढ़ रही है जबकि प्रशांत महासागर छोटा हो रहा है। लाल सागर भूपर्पटी में
एक दरार का हिस्सा है जो भविष्य में करोड़ों वर्ष पश्चात एक नए महासागर की रचना करेगा।
दक्षिणी अटलांटिक महासागर के चौड़ा होने से अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिकी एक-दूसरे से
अलग हो गए हैं।
(ii) महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत व प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत में
मूलभूत अंतर बताइए।
उत्तर-
महाद्वीपीय
विस्थापन एवं प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत में मूलभूत अन्तर
क्रम
सं० |
महाद्वीपीय
विस्थापना सिद्धान्त |
प्लेट
विवर्तनिकी सिद्धान्त |
1. |
यह
सिद्धान्त अल्फ्रेड वेगनर ने सन् 1912 में प्रतिपादित किया था। |
यह
सिद्धान्त मैकेन्जी और पारकर ने सन् 1967 में प्रतिपादित किया था। |
2. |
यह
सिद्धान्त महाद्वीप और महासागर की उत्पत्ति एवं वितरण से सम्बन्धित है। |
विवर्तनिक
सिद्धान्त सभी प्रकार की भूगर्भिक घटनाओं से सम्बन्धित है। इस सिद्धान्त के द्वारा
महाद्वीप, महासागर, पर्वत आदि के निर्माण तथा भूकम्प एवं ज्वालामुखी की उत्पत्ति
आदि के विषय में पर्याप्त व्याख्या की गई है। |
3. |
विस्थापन
सिद्धान्त के अनुसार सभी महाद्वीप एक अकेले भूखण्ड से जुड़े थे जिसे पैंजिया कहा
जाता था। |
इस
सिद्धान्त के अनुसार महाद्वीप एवं महासागर अनियमित आकार खण्ड वाले प्लेटों से बने
हैं। |
4. |
इस
सिद्धान्त के अनुसार सभी सम्बद्ध महाद्वीप पैंजिया कहलाते थे। इसके दो बड़े महाद्वीपीय
खण्ड लारेशिया तथा गोंडवानालैण्ड के रूप में 20 करोड़ वर्ष पहले विभाजित हुए थे। |
प्लेट
विवर्तनिकी सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी का स्थलमण्डल सात मुख्य प्लेटों व कुछ छोटी
प्लेटों में विभक्त है। |
5. |
वेगनर
की संकल्पना के अनुसार केवल महाद्वीप गतिमान है। |
इस
सिद्धान्त के अनुसार महाद्वीप एक प्लेट का हिस्सा है। ये प्लेटें पृथ्वी के पूरे
इतिहास काल में लगातार विचरण कर रही हैं। |
6. |
वेगनर
के अनुसार महाद्वीपों के वहन का कारण ध्रुवीय बल तथा ज्वारीय बल था। इन्हीं बलों
से महाद्वीपों का विस्थापन हुआ है। |
इस
सिद्धान्त के अनुसार ये प्लेटें दुर्बलतामण्डल पर दृढ़ इकाई के रूप में क्षैतिज अवस्था
में चलायमान हैं जिसके लिए मैंटल में उत्पन्न संवहनीय धाराएँ उत्तरदायी हैं। |
(iii) महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत के उपरांत की प्रमुख खोज क्या है,
जिससे वैज्ञानिकों ने महासागर व महाद्वीप वितरण के अध्ययन में पुनः रुचि ली?
उत्तर-
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत के द्वारा वेगनर ने ज जानकारी प्रस्तुत की थी, वह
पुराने तर्क पर आधारित थी। वर्तमान में जानकारी के जो स्रोत हैं, वे वेगनर के समय
में उपलब्ध नहीं थे। चट्टानों के चुंबकीय अध्ययन और महासागरीय तल के मानचित्रण ने
विशेष रूप से निम्न तथ्यों को उजागर किया
(क)
यह देखा गया कि मध्य-महासागरीय कटकों के साथ-साथ ज्वालामुखी उद्गार सामान्य क्रिया
है और ये उद्गार इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में लावा निकालते हैं।
(ख)
महासागरीय कटक के मध्य भाग के दोनों तरफ समान दूरी पर पाई जाने वाली चट्टानों के निर्माण
का समय, संरचना, संघटन और चुंबकीय गुणों में समानता पाई जाती है। महासागरीय कटकों के
समीप की चट्टानों में सामान्य चुंबकत्व ध्रुवण पाई जाती है तथा ये चट्टानें नवीनतम
हैं। कटकों के शीर्ष से दूर चट्टानों की आयु भी अधिक है।
(ग)
महासागरीय पर्पटी की चट्टानें महाद्वीपीय पर्पटी की चट्टानों की अपेक्षा अधिक नई हैं।
महासागरीय पर्पटी की चट्टानें कहीं भी 20 करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी नहीं हैं। महाद्वीपीय
पर्पटी के भूकंप उद्गम केंद्र अधिक गहराई पर हैं जबकि मध्य-महासागरीय कटकों के क्षेत्र
के भूकंप उद्गम केंद्र कम गहराई पर विद्यमान हैं।
(घ)
गहरी खाइयों में भूकंप उद्गम केंद्र अधिक गहराई पर हैं जबकि मध्य-महासागरीय कटकों के
क्षेत्र के भूकंप उद्गम केंद्र कम गहराई पर विद्यमान हैं।
सागरीय
अधःस्तल परिकल्पना
चुम्बकीय गुणों के आधार पर हैस ने 1961 में एक परिकल्पना प्रस्तुत की जिसे ‘सागरीय अध:स्तल विस्तार के नाम से जाना जाता है। हैस के तर्कानुसार महासागरीय कटकों के शीर्ष पर लगातार ज्वालामुखी उद्भेदन से महासागरीय पर्पटी में विभेदन हुआ और नया लावा इस दरार को भरकर महासागरीय पर्पटी के दोनों तरफ धकेल रहा है। इस प्रकार महासागरीय अध:स्तल का विस्तार हो रही है। इसके साथ ही दूसरे महासागर के न सिकुड़ने पर हैस ने महासागरीय पर्पटी के क्षेपण की बात कही है। अत: एक ओर महासागरों में पर्पटी का निर्माण होता है तो दूसरी तरफ महासागरीय गर्गों में इसका विनाश भी होता है। चित्र से
विवर्तनिक
संकल्पना
हैस
की परिकल्पना के उपरान्त विद्वानों की महासागरों वे महाद्वीपों के वितरण के अध्ययन
में फिर से रुचि उत्पन्न हुई। सन् 1967 में मैकेन्जी, पारकर और मोरगन ने स्वतन्त्र
रूप से उपलब्ध विचारों को समन्वित कर अध्ययन प्रस्तुत किया, जिसे प्लेट विवर्तनिकी
सिद्धान्त कहा गया। एक विवर्तनिक प्लेट ठोस चट्टान का विशाल व अनियमित आकार का
खण्ड है, जो महाद्वीप व महासागर स्थलमण्डलों के संयोग से बना है (चित्र 4.2)। ये
प्लेटें दुर्बलतामण्डल पर दृढ़ इकाई के रूप में संवहन धाराओं के प्रभाव से चलायमान
हैं। इन प्लेटों द्वारा ही महाद्वीप व महासागरों का वितरण, निर्माण तथा अन्य
भूगर्भीय घटनाएँ निर्धारित होती हैं।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1. वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन के लिए कितने बलों का
उल्लेख किया है?
(क)
एक
(ख) दो
(ग)
तीन
(घ)
चार
प्रश्न 2. आर्थर होम्स ने मैंटल भाग में संवहन धाराओं के प्रभाव की
सम्भावना व्यक्त की थी
(क)
1910 के दशक में
(ख)
1920 के दशक में
(ग) 1930 के दशक में
(घ)
1940 के दशक में
प्रश्न 3. मैकेन्जी और पारकर ने प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त कब प्रतिपादित
किया?
(क)
1966 में
(ख) 1967 में
(ग)
1968 में
(घ)
1969 में
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पैजिया क्या है?
उत्तर-
150 मिलियन वर्ष पूर्व एक विशाल महाद्वीप जिसमें वर्तमान सभी महाद्वीप एक साथ
जुड़े हुए थे, पैंजिया कहलाता था। वेगनर ने अपने ‘महाद्वीप विस्थापन सिद्धान्त’ के
अन्तर्गत इसी पैंजिया के विखण्डन से वर्तमान महाद्वीपों की उत्पत्ति और वितरण की
व्याख्या की है।
प्रश्न 2. प्लेट के संचरण के लिए कौन-सा बल कार्य करता है?
उत्तर-
संवहन धाराएँ तथा तापीय संवहन की प्रक्रिया प्लेट को खिसकाने में बल का कार्य करती
हैं। गर्म धाराएँ जैसे ही धरातल के पास पहुँचती हैं, ठण्डी हो जाती हैं। उसी समय
ठण्डी धाराएँ नीचे जाती हैं। यही संवाहनिक संचरण धरातलीय प्लेट को खिसकाता है।
प्रश्न 3. पैंथालासा क्या हैं?
उत्तर-
पैंथालासा का सामान्य अर्थ जल-क्षेत्र है। वैज्ञानिकों का मत है कि पूर्वकाल में
सभी महासागर एक सम्बद्ध जल-क्षेत्र था पैंथालासा कहा जाता था। पैंजिया स्थल
क्षेत्र इसी जल-क्षेत्र के लगभग मध्य में स्थित था जिसके विखण्डन से महाद्वीपों का
निर्माण हुआ है।
प्रश्न 4. पैजिया का प्रारम्भिक विखण्डन कब व कितने खण्डों में हुआ
था?
उत्तर-
वेगनर के अनुसार लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व पैंजिया का विभाजन आरम्भ हुआ। इस समय
पैंजिया के निम्नलिखित दो खण्ड हुए–
« •
लारेशिया जिससे उत्तरी महाद्वीप बने तथा
« •
गोंडवानालैण्ड जिसमें दक्षिण महाद्वीप सम्मिलित थे।
प्रश्न 5. पोलर वेण्डरिंग क्या है?
उत्तर-
भूगर्भिक परिवर्तन की प्रक्रिया जिसके अन्तर्गत ध्रुवों (Poles) की स्थिति बदल गई,
पोलर वेण्डरिंग कहलाता है।
प्रश्न 6. कौन-सी प्लेट महासागरीय धरातल से बनी है?
उत्तर-
प्रशान्त प्लेट महासागरीय धरातल से बनी है।
प्रश्न 7. रूपान्तरण सीमा क्या है?
उत्तर-
प्लेट संचलन की वह सीमा जहाँ न तो कोई नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही
पर्पटी का विनाश होता है, रूपान्तरण सीमा कहलाती है।
प्रश्न 8. अभिसरण के प्रकार बताइए।
उत्तर-
अभिसरण के निम्नलिखित तीन प्रकार हो सकते हैं
« महासागरीय
व महाद्वीपीय प्लेट के मध्य अभिसरण।
« महासागरीय
प्लेटों के मध्य अभिसरण।
« दो
महाद्वीपीय प्लेटों के मध्य अभिसरण।
प्रश्न 9. अपसारी सीमा क्या है? इसका एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
जब दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं और नई पर्पटी का निर्माण
होता है तो उन्हें अपसारी प्लेट कहते हैं। अपसारी सीमा का सबसे अच्छा उदाहरण मध्य
अटलांटिक कटक है।
प्रश्न 10. प्रविष्ठन (Subduction) क्षेत्र क्या होता है?
उत्तर-
अभिसरण सीमा पर जहाँ भू-प्लेट धंसती है, उस क्षेत्र को प्रविष्ठन क्षेत्र कहते
हैं। हिमालय पर्वतीय क्षेत्र इसका प्रमुख उदाहरण है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारतीय प्लेट की अवस्थिति एवं विस्तार पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
भारतीय प्लेट में प्रायद्वीप भारत और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप सम्मिलित हैं। इसकी
उत्तरी सीमा हिमालय पर्वत श्रेणियों में स्थित प्रविष्ठन क्षेत्र द्वारा निर्धारित
होती है, जो पूर्व दिशा में म्यांमार के राकिन्योमा पर्वत से होते हुए एक चाप के
रूप में जावा खाई तक विस्तृत है। भारतीय प्लेट की पूर्वी सीमा विस्तारित तल के रूप
में तथा पश्चिमी सीमा पाकिस्तान की किरथर श्रेणियों का अनुसरण करती हुई मकरान तट
के साथ-साथ लाल सागर द्रोणी तक स्थित है। यह प्लेट महाद्वीपीय-महाद्वीपीय अभिसरण
के रूप में अर्थात् दो महाद्वीपों से प्लेटों की सीमा निश्चित होती है। वर्तमान
में इस प्लेट की अवस्थिति का विश्लेषण नागपुर क्षेत्र में पाई जाने वाली चट्टानों
के आधार पर किया जाता है।
प्रश्न 2. विवर्तनिक प्लेटों को संचालित करने वाले कौन-से बल हैं,
वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जिस समय वेगनर ने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त प्रस्तुत किया था, उस समय यह माना
जाता था कि पृथ्वी एक ठोस गतिरहित पिण्ड है। किन्तु सागरीय अध:स्तल विस्तार और
प्लेट विवर्तनिक दोनों सिद्धान्तों से यह सिद्ध हो गया है कि पृथ्वी का धरातल एवं
भूगर्भ दोनों ही स्थिर न होकर गतिमान हैं। प्लेट चलायमान है, आज यह निर्विवाद तथ्य
है। ऐसा माना जाता है कि दृढ़ प्लेट के नीचे चलायमान चट्टानें वृत्ताकार रूप में
चल रही हैं। उष्ण पदार्थ धरातल पर पहुँचता है, फैलता है और धीरे-धीरे ठण्डा होता
है, फिर गहराई में जाकर नष्ट हो जाता है। यही चक्र बारम्बार दोहराया जाता है।
वैज्ञानिक इसे संवहन प्रवाह (Convection Flow) कहते हैं। इस विचार को सर्वप्रथम
1930 में होम्स ने प्रतिपादित किया था। इनके आधार पर वर्तमान में यही माना जाता है
कि मैंटल में स्थित रेडियोधर्मी तत्त्वों के क्षय से उत्पन्न बल ही संवहनीय धाराओं
के रूप में प्लेट को संचलित करने के लिए उत्तरदायी है।
प्रश्न 3. प्लेट प्रवाह दरें कैसे निर्धारित होती हैं? प्लेट
प्रवाह की न्यूनतम एवं वृहदतम् दरें बताइए।
उत्तर-
सामान्य व उत्क्रमण चुम्बकीय क्षेत्र पट्टियाँ जो मध्य महासागरीय कटक के समानान्तर
हैं, प्लेट प्रवाह की दर को समझने में वैज्ञानिकों के लिए सहायक सिद्ध हुई हैं।
प्लेट प्रवाह की दरों में विभिन्नताएँ मिलती हैं। स्थलमण्डलीय प्लेटों में आर्कटिक
कटक की प्रवाह दर सबसे कम (2.5 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष से भी कम) है, जबकि पूर्वी
द्वीप के निकट पूर्वी प्रशान्त महासागरीय उभार, जो चिली से 3400 किमी पश्चिम की ओर
दक्षिण प्रशान्त महासागर में है, इसकी प्रवाह दर सर्वाधिक (5 सेमी प्रतिवर्ष से भी
अधिक) है।
प्रश्न 4, पृथ्वी के स्थलमण्डल की सात मुख्य प्लेटों के नाम लिखिए।
उत्तर-
प्लेट विवर्तनिकी के सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी का स्थलमण्डल सात मुख्य प्लेटों व
कुछ छोटी प्लेटों में विभक्त है। सात मुख्य प्लेटों के नाम निम्नलिखित हैं(1)
अंटार्कटिक प्लेट (जिसमें अंटार्कटिक से घिरा महासागर भी सम्मिलित है), (2) उत्तरी
अमेरिकी प्लेट, (3) दक्षिणी अमेरिकी प्लेट, (4) प्रशान्त महासागरीय प्लेट, (5)
इंडो-ऑस्ट्रेलियन-न्यूजीलैण्ड प्लेट, (6) अफ्रीकी प्लेट, (7) यूरेशियाई प्लेट
(जिसमें पूर्वी अटलांटिक महासागरीय तल भी सम्मिलित है)।
प्रश्न 5. स्थलमण्डल की महत्त्वपूर्ण छोटी प्लेटों के नाम लिखिए
तथा इनकी स्थिति बताइए।
उत्तर-
स्थलमण्डल की महत्त्वपूर्ण छोटी प्लेटों के नाम निम्नलिखित हैं
1. कोकोस
प्लेट- यह प्लेट मध्यवर्ती अमेरिका और प्रशान्त महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
2. नफ्रका प्लेट- यह दक्षिण अमेरिका व प्रशान्त महासागरीय
प्लेट के मध्य है।
3. अरेबियन
प्लेट- इसमें अधिकतर अरब प्रायद्वीप का भूभाग स्थित है।
4. फिलिपीन
प्लेट- यह एशिया महाद्वीप और प्रशान्त महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
5. कैरोलिन
प्लेट- यह न्यूगिनी के उत्तर में फिलिपियन व इण्डियन प्लेट के बीच स्थित है।
6. फ्यूजी
प्लेट- यह ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पूर्व में स्थित है।
प्रश्न 6. संवहन धारा सिद्धान्त क्या है?
उत्तर-
पृथ्वी के मैंटल में स्थित रेडियोएक्टिव तत्त्वों में ताप-भिन्नता के कारण संवहन
धाराएँ प्रवाहित होती रहती हैं। 1930 के दशक में आर्थर होम्स ने सबसे पहले इन
संवहन धाराओं की उपस्थिति तथा इनके चक्रीय प्रवाह की सम्भावनाएँ व्यक्त की थीं।
होम्स ने ही महाद्वीप व महासागरों के वितरण और पर्वतों के निर्माण के सम्बन्ध में
संवहन धारा सिद्धान्त को प्रतिपादन किया था। यह सिद्धान्त पर्वतों, महाद्वीप तथा
महासागरों की उत्पत्ति एवं इनके वितरण की वैज्ञानिक व्याख्या करता है तथा अपने से
पूर्व के सभी सिद्धान्तों से अधिक मान्य है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त का वर्णन कीजिए तथा प्लेटों
की प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए।’
उत्तर-
प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त
महाद्वीपीय
विस्थापन एवं सागरीय तल विस्तार अवधारणा के पश्चात् महाद्वीप, महासागर एवं पर्वतों
का निर्माण तथा वितरण सम्बन्धी समस्याओं के समाधान हेतु सन् 1967 में मैकेन्जी
(Mekenzie), पारकर (Parker) और मोरगन (Morgan) ने स्वतन्त्र रूप से उपलब्ध विचारों
को समन्वित कर प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त को प्रस्तुत किया है। यह सिद्धान्त
भूगर्भ एवं भूपटल से सम्बन्धित विभिन्न जटिल प्रश्नों; जैसे—भूकम्प आने का क्या
कारण है, ज्वालामुखी विस्फोट क्यों होते हैं महाद्वीप एवं महासागरों की उत्पत्ति
कैसे हुई, इनके वितरण का क्या आधार है? आदि का समुचित समाधान करने में अभी तक की
सबसे अधिक मान्य एवं वैज्ञानिक व्याख्या है।
एक विवर्तनिक प्लेट (जिसे स्थलमण्डल प्लेट भी कहा जाता है) ठोस चट्टान का विशाल व अनियमित आकार का खण्ड है। अतएव स्थलमण्डल अनेक प्लेटों में विभक्त है। प्रत्येक प्लेट स्वतन्त्र रूप से दुर्बलतामण्डल से संचलन करती रहती है महाद्वीप एवं महासागरों की सतह को संचलने इन प्लेटों के माध्यम से ही होता है। स्थलमण्डल की ये 7 बड़ी एवं छोटी कठोर प्लेटें हैं (चित्र 4.2)। इन भू-प्लूटों पर स्थलाकृतियों का निर्माण, भ्रंशन तथा विस्थापन क्रियाओं द्वारा होता है जिन्हें विवर्तनिकी कहते हैं।
प्लेट
विवर्तनिकी प्रक्रिया
संवहनीय
धाराओं के आधार पर भू-प्लेटों की प्रक्रिया, विस्तार एवं क्षेत्र निम्नलिखित
प्रकार से सम्पन्न होता है–
1.
अपसारी क्षेत्र (प्लेट)-जब दो प्लेट एक-दूसरे से विपरीत दिशा में
अलग हटती हैं और नई पर्पटी का निर्माण होता है, उन्हें अपसारी प्लेट कहते हैं। वह स्थान
जहाँ से प्लेट एक-दूसरे से दूर हटती हैं, प्रसारी स्थान (Spreading Site) या अपसारी
क्षेत्र कहलाता है।
2.
अभिसारी क्षेत्र (प्लेट)-जब एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धंसती
है और जहाँ भूपर्पटी नष्ट होती है, वह अभिसरण क्षेत्र या सीमा कहलाता है। इस प्रक्रिया
में जब दो भिन्न दिशाओं में प्लेटें एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाती हैं तो संपीडन के कारण
पर्वत, खाइयाँ आदि स्थल-रूप निर्मित होते हैं।
3.
रूपान्तर क्षेत्र (प्लेट)-इन किनारों पर न तो नये पदार्थ का निर्माण
होता है और न विनाश होता | है। ऐसी स्थिति महासागरीय कटक के पास होती है।
प्रश्न 2. वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का संक्षेप में
वर्णन कीजिए।
उत्तर-
महाद्वीपीय प्रवाह (विस्थापन) सिद्धान्त
महाद्वीपीय
प्रवाह सिद्धान्त जर्मन मौसमविद् अल्फ्रेड वेगनर (Alfred wegner) द्वारा सन् 1912
में प्रस्तावित किया था। यह सिद्धान्त महाद्वीप एवं महासागरों के वितरण से
सम्बन्धित है। इस सिद्धान्त की आधारभूत संकल्पना यह थी कि सभी महाद्वीप पूर्वकाल
में परस्पर जुड़े हुए थे जिसे पैंजिया कहा जाता है। इसके चारों तरफ महासागर था,
जिसे पैन्थालासा कहा जाता है पैंजिया सियाल निर्मित था जो सघन सीमा पर तैर रहा था।
पैंजिया के मध्य में टैथिज उथला सागर था। इस सागर को उत्तरी भाग अंगारालैण्ड तथा
दक्षिणी भाग गोंडवानालैण्ड था। अंगारालैण्ड में उत्तरी अमेरिका तथा यूरेशिया
संलग्न थे। गोंडवानालैण्ड में दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका प्रायद्वीपीय भारत तथा
अंटार्कटिका आदि परस्पर संलंग्न थे। कार्बोनिफेरस युग के अन्त में पैंजिया टूट
गया। पैंजिया के विखण्डित भाग उत्तर में भूमध्यरेखा तथा पश्चिमी की ओर विस्थापित
हुए। भूमध्यरेखा की ओर विस्थापन का कारण वेगनर गुरुत्वाकर्षण एवं प्लवनशीलता बल को
तथा पश्चिम की ओर विस्थापकों का कारण ज्वारीय बल को मानते हैं। वेगनर इसी विस्थापन
को महाद्वीप एवं महासागर के वर्तमान क्रम के लिए उत्तरदायी मानते हैं।
प्रश्न 3. वेगनर के महाद्वीपीय सिद्धान्त एवं प्लेट विवर्तनिक
सिद्धान्त की तुलनात्मक विवेचना कीजिए।
उत्तर- वास्तव में वेगनर ने अपने सिद्धान्त में युग तथा दिशा को सही ढंग से समझाने का प्रयास नहीं किया है। धरातल पर कई प्रकार के परिवर्तन हुए हैं। पृथ्वी का भू-वैज्ञानिक इतिहास इसका साक्षी है। महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त यद्यपि विभिन्न भूगर्भिक समस्याओं की विवेचना करता है, फलस्वरूप इसे एक अच्छा सिद्धान्त तो माना जाता है, परन्तु इसे सत्य सिद्धान्त नहीं कहा जा सकता है। वेगनर के सिद्धान्त के अनुसार केवल महाद्वीप गतिमान है, सही नहीं है। वास्तव में महाद्वीप एक प्लेट का हिस्सा है और प्लेट गतिमान है। यह निर्विवाद तथ्य है कि भूवैज्ञानिक इतिहास में सभी प्लेट गतिमान रही हैं और भविष्य में भी गतिमान रहेंगी। चित्र 4.3 में विभिन्न कालों में महाद्वीपीय भागों की स्थिति को दर्शाया गया है। पुराचुम्बकीय आँकड़ों के केवल महाद्वीप गतिमान है, सही नहीं है। वास्तव में महाद्वीप एक प्लेट का हिस्सा है और प्लेट गतिमान है। यह निर्विवाद तथ्य है कि भूवैज्ञानिक इतिहास में सभी प्लेट गतिमान रही हैं और भविष्य में भी गतिमान रहेंगी। चित्र 4.3 में विभिन्न कालों में महाद्वीपीय भागों की स्थिति को दर्शाया गया है। पुराचुम्बकीय आँकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने विभिन्न भूकालों में प्रत्येक महाद्वीपीय खण्ड की अवस्थिति निर्धारित की है। इससे यह स्पष्ट होता है कि महाद्वीपीय पिण्ड जो प्लेट के ऊपर स्थित है भू-वैज्ञानिक कालपर्यन्त चलायमान थे और पैंजिया अलग-अलग महाद्वीपीय खण्डों के अभिसरण से बना था, जो कभी एक या किसी दूसरी प्लेट के हिस्से थे। अत: महासागरों एवं महाद्वीपों की उत्पत्ति एवं वर्तमान क्रम महाद्वपीय विस्थापन से नहीं बल्कि प्लेट विवर्तन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप है।
प्रश्न 4. महासागरीय अधःस्तल की बनावट का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
महासागरीय अध:स्तल की बनावट महाद्वीप एवं महासागरों के वितरण को समझने में
महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। गहराई एवं उच्चावच के आधार पर महासागरीय तल को (चित्र
4.4) निम्नलिखित तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है–
1. महाद्वीपीय सीमा-महाद्वीपीय सीमा महाद्वीपीय किनारों और गहरे समुद्री बेसिन के बीच का भाग है। इसके अन्तर्गत महाद्वीपीय मग्नतट, महाद्वीपीय ढाल, महाद्वीपीय उभार और गहरी महासागरीय खाइयाँ आदि सम्मिलित हैं। महासागरों व महाद्वीपों के वितरण को समझने में गहरी महासागरीय खाइयों का विशेष महत्त्व है।
2.
वितलीय मैदान-महाद्वीपीय तट एवं मध्य महासागरीय कटकों के
बीच स्थित लगभग समतल क्षेत्र को वितलीय मैदान कहते हैं। इनका निर्माण महाद्वीपों से
बहाकर लाए गए अवसादों द्वारा महासागरों के तटों से दूर निक्षेपण से होता है।
3.
मध्य महासागरीय कटक-मध्य महासागरीय कटक परस्पर संलग्न पर्वतों की
एक श्रृंखला है। यह महासागरीय जल में डूबी हुई पृथ्वी के धरातल पर पाई जाने वाली सम्भवतः
सबसे लम्बी पर्वत श्रृंखला मानी जाती है। यह वास्तव में सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्र
ही नहीं बल्कि विवर्तनिकी का मुख्य क्षेत्र है जो महाद्वीप एवं महासागरों के निर्माण
एवं वितरण में महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
प्रश्न 5. भारतीय प्लेट संचलन का वर्णन कीजिए।
उत्तर- भारतीय प्लेट का संचलन पूर्व में भारत एक वृहत् द्वीप था, जो ऑस्ट्रेलियाई तट से दूर एक विशाल महासागर में स्थित थी। लगभग 22.5 करोड़ वर्ष पहले तक टेथीस सागर इसे एशिया महाद्वीप से अलग करता था। ऐसा माना जाता है। कि लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले, जब पैंजिया विभक्त हुआ तब भारत ने उत्तर दिशा की ओर खिसकना आरम्भ किया। लगभग 4 से 5 करोड़ वर्ष पूर्व भारत एशिया से टकराया परिणामस्वरूप हिमालय पर्वत का उत्थान हुआ। 7.1 करोड़ वर्ष पूर्व भारत की स्थिति मानचित्र 4.5 में दर्शाई गई है। इस चित्र में भारतीय उपमहाद्वीप व यूरेशियन प्लेट की स्थिति भी दर्शाई गई है।
आज से लगभग 14 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप सुदूर दक्षिण में 50° दक्षिणी अक्षांश पर स्थित था। इन दो प्रमुख प्लेटों को टेथीस सागर अलग करता था। और तिब्बतीय खण्ड, एशियाई स्थलखण्ड के निकट था। भारतीय प्लेट के एशियाई प्लेट की ओर प्रवाह के समय दक्षिण में लावा प्रवाह से दक्कन ट्रैप का निर्माण हुआ, जिसे एक विशेष घटना माना जाता है। यह घटना लगभग 6 करोड़ वर्ष पूर्व से आरम्भ होकर लम्बे समय तक जारी रही। भारतीय प्लेट प्रवाह के सम्बन्ध में उल्लेखनीय बिन्दु, यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप तब भी भूमध्य रेखा के निकट था और वर्तमान में भी भूमध्य रेखा के निकट हैं। (देखिए चित्र 4.5)।