Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1. आप 'डिजाइन' शब्द से क्या समझते हैं?
उत्तर
: 'डिजाइन' का अर्थ-डिजाइन एक लोकप्रिय समकालीन शब्द है, जिसके विभिन्न गुण तथा अर्थ
होते हैं। व्यापक अर्थ में, इसे रूप में सामंजस्य के लिए बताया जा सकता है, परन्तु
डिजाइन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू डिजाइनरों की सृजनात्मक लालसा और अभिव्यक्ति के अर्थ
और उपयोग में निहित होता है और इसीलिए सर्वोच्च सामञ्जस्य तभी प्राप्त होता है, जब
अच्छे डिजाइन का कलात्मक पहलू उस वस्तु की उपयोगिता से वास्तविक रूप से एकीकृत हो,
जिसे रचा गया है।
अतः
हम कह सकते हैं कि "डिजाइन उत्पादों की कल्पना करने, योजना बनाने और कार्यान्वित
करने की मानवीय सामर्थ्य है, जो मानव जाति को किसी वैयक्तिक अथवा सामूहिकं उद्देश्य
के निष्पादन में सहायता करती है।"
एक
अच्छा डिजाइन कलात्मक रूप से मोहक होने से भी अधिक महत्व का होता है। इसमें सामग्री
का सही उपयोग उन लोगों के लिए होता है जो लोग मूल्य, रंग और लाभ सम्बन्धी अपेक्षा रखते
हैं।
प्रश्न 2. वे कौन से कारक हैं जो वस्त्र के ताने-बाने को उसके निर्माण
के समय प्रभावित करते हैं?
उत्तर
: वस्त्र के ताने-बाने को उसके निर्माण के समय प्रभावित करने वाले कारक
वस्त्र
के ताने-बाने को उसके निर्माण के समय प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
(1)
रंग-हमारे चारों ओर रंग कई रूपों में हैं। ये सभी वस्त्र निर्माण वस्तुओं के सबसे महत्वपूर्ण
पहलुओं (कारकों) में से एक हैं, चाहे वह परिधान घरेलू, व्यापारिक अथवा संस्थागत उपयोग
के लिए हों। उत्पाद की पहचान का श्रेय अधिकतर रंग को दिया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति
रंग के प्रति प्रतिक्रिया करता है और उसकी निश्चित प्राथमिकताएँ होती हैं। रंग मौसम,
समारोह तथा लोगों की भावनाओं को प्रतिबिंबित करता है, रंग की पसंद, संस्कृति, परम्परा,
जलवायु, मौसम, अवसर अथवा पूर्णतया वैयक्तिक कारण से प्रभावित होती है। रंग फैशन का
एक महत्वपूर्ण अंग है। डिजाइनर एक सुनिश्चित विवरण के लिए रंगों का चयन सावधानीपूर्वक
करते हैं।
वस्त्र
में रंग-वस्त्र के रंग को विविध डिजाइन-रूपों में देखा जा सकता है। वस्त्र के उत्पाद
के चरणों में जब रंग को विभिन्नता के लिए जोड़ा जाता है तो कई प्रकार के डिजाइन प्राप्त
होते हैं। यथा-
(क)
रेशे के स्तर पर रंगाई कम होती है, फिर भी कुछ निर्मित रेशों के लिए इसका सहारा लेना
पड़ता है, जैसे-जो आसानी से रंगे नहीं जा सकते अथवा डिजाइन की आवश्यकता ऐसे धागों की
होती है, जिसमें बहुरंगी रेशे हों।
(ख)
धागे के स्तर पर रंगाई, बहुविधि डिजाइन की रचना में मदद करती है। बुनी हुई धारीदार
पट्टियाँ, चौकदार कपड़ा, पट्ट इत्यादि बनाए जाने वाले सामान्य डिजाइन हैं । जरी और
जैकार्ड पैटर्न रंगे हुए धागों को बुनकर तैयार किया जाता है। जब धागों की बंधाई-रंगाई
की जाती है तो सुंदर इकत पैटर्न प्राप्त होते हैं।
(ग)
वस्त्र के स्तर पर रंगना एक सर्वाधिक प्रचलित विधि है। यह विधि एक सामान्य एकल रंग
वाले वस्त्र प्राप्त करने के लिए और बंधाई तथा बाटिक प्रक्रिया द्वारा डिजाइन वाली
सामग्री प्राप्त करने के लिए उपयोग में लाई जा सकती है।
(घ)
वस्त्र के स्तर पर भी रंगाई, छपाई, चित्रकारी, कसीदाकारी और पैच अथवा गोटा-पट्टी द्वारा
की जा सकती है। यहाँ रंग का अनुप्रयोग किसी भी आकार और रूप में हो सकता है।
(2)
बुनावट (टेक्सचर)-बुनावट दिखने और छूने की एक संवेदी अनुभूति है जो वस्त्र की स्पर्शी
और दृश्य गुणवत्ता को बताती है। प्रत्येक वस्त्र की एक विशिष्ट बुनावट होती है। पोशाक
में बुनावट का मुख्य उद्देश्य रुचि उत्पन्न करना और उसके वांछित लक्षणों को उभारना
है। पोशाक में उपयोग में लाई गई बुनावट शारीरिक आकार, निजी गुण, वेशभूषा की रूपरेखा
या आकार तथा अवसर के उपयुक्त होनी चाहिए।
वस्त्र
में बुनावट को निर्धारण करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
(क)
रेशा-रेशे का प्रकार (प्राकृतिक या मानव निर्मित), इसकी लम्बाई, उत्कृष्टता और इसके
पृष्ठीय गुण।
(ख)
धागे का संसाधन और धागे का प्रकार-संसाधन की विधि, संसाधन के समय समावेशित घुमाव, धागे
की उत्कृष्टता और धागे का प्रकार।
(ग)
वस्त्र निर्माण तकनीक-बुनने का प्रकार और उसकी साघनता, बुनाई, नमदा बनना, गुँथना, लेस
या जाली बनाना इत्यादि।
(घ)
वस्त्र सज्जा-कड़ा करना (मांड लगाना या गोंद लगाना), इस्तरी करना, कैलेंडरिंग और टेंटरिंग,
नैपिंग, परिष्करण करना।
(ङ)
पृष्ठीय सजावट-गुच्छे से सजाना, मखमली मुद्रण, कसीदाकारी, सिलाई आदि।
(3)
रेखा-किसी डिजाइन के तत्व के रूप में रेखा वस्त्रों की आकृति प्रदर्शित करती है, गति
प्रदान करती है। और दिशा निर्धारित करती है। रेखाएँ दो प्रकार की होती हैं-(1) सरल
रेखाएँ और (2) वक्र रेखाएँ।
रेखाएँ
दिखने वाला अर्थ प्रदान करती हैं। जब इनका डिजाइन में प्रयोग किया जाता है तब सरल रेखा
सामर्थ्य तथा दृढ़ता जबकि वक्र रेखाएँ मृदु तथा शालीन दिखाई देती हैं। यदि सरल रेखाएँ
अधिक प्रधान हैं तो डिजाइन का प्रभाव पुरुषोचित होता है, वहीं वक्र रेखाएँ नारीत्व
तथा कोमलता का प्रभाव देती हैं।
(4)
आकृतियाँ या आकार-आकृतियाँ या आकार रेखाओं को जोड़कर बनाए जाते हैं। आकृतियाँ द्विविमीय
हो सकती हैं, जैसे-एक वस्त्र पर चित्रकारी या मुद्रण। ये आकृतियाँ त्रिविमीय भी हो
सकती हैं। इसका अभिप्राय यह है कि वस्त्र के रूप में जिसे तीन या अधिक दिशाओं में देखा
जा सकता है, जैसे-एक मानव शरीर पर पोशाकें।
रेखाओं
के गुण आकृति के गुण को निर्धारित करते हैं। वस्त्रं में आकृति और रूप का सम्बन्ध सामग्री
के प्रभाव या सजावट, अलंकरण तथा कलाकृतियों के आकार पर और उनकी आवृत्ति अर्थात् अंतिम
पैटर्न बनने से होता है।
(5)
पैटर्न (प्रतिरूप)-एक पैटर्न तब बनता है, जब आकृतियाँ एक साथ समूहित की जाती हैं। इन
आकृतियों का समूहन भी प्राकृतिक, रूढ़ शैली का, ज्यामितीय अथवा अमूर्त हो सकता है।
प्रश्न 3. वस्त्र निर्माण के विभिन्न चरणों में रंग का अनुप्रयोग किस
प्रकार से वस्त्र में डिजाइन को प्रभावित करता है?
उत्तर
: वस्त्र निर्माण के विभिन्न चरणों में रंग का अनुप्रयोग और वस्त्र डिजाइन में उसका
प्रभाव वस्त्र निर्माण के विभिन्न चरणों में रंग का अनुप्रयोग निम्न प्रकार से वस्त्र
में डिजाइन को प्रभावित करता है-
(1)
रेशे के स्तर पर रंगाई-रेशे के स्तर पर रंगाई बहत कम होती है, क्योंकि यह बहत महंगी
प्रक्रिया सिद्ध होती है। फिर भी कुछ निर्मित रेशों के लिए इसका सहारा लेना पड़ता है,
जैसे-जो आसानी से रंगे नहीं जा सकते अथवा डिजाइन की आवश्यकता ऐसे धागों की होती है,
जिसमें बहुरंगी रेशे हों।
(2)
धागे के स्तर पर रंगाई-धागे के स्तर पर की गई रंगाई, बहुविधि डिजाइन की रचना में मदद
करती है। बुनी हुई धारीदार पट्टियाँ, चौकदार कपड़ा, पिट्ट इत्यादि बनाए जाने वाले सामान्य
डिजाइन हैं। जरी और जैकार्ड पैटर्न रंगे हुए धागों को बुनकर तैयार किया जाता है। जब
धागों की बंधाई, रंगाई की जाती है तो सुंदर इकत पैटर्न प्राप्त होते हैं।
(3)
वस्त्र के स्तर पर रंगाई- वस्त्र के स्तर पर रंगाई करना एक सर्वाधिक प्रचलित विधि है।
यह विधि एक सामान्य एकल रंग वाले वस्त्र प्राप्त करने के लिए और बंधाई तथा बाटिक प्रक्रिया
द्वारा डिजाइन वाली सामग्री प्राप्त करने के लिए उपयोग में लाई जा सकती है।
(4)
वस्त्र के स्तर पर चित्रकारी, छपाई आदि-वस्त्र के स्तर पर भी एक अन्य प्रकार की रंगाई,
छपाई, कसीदाकारी और पैच अथवा गोटा-पट्टी द्वारा की जा सकती है। यहाँ रंग का अनुप्रयोग
किसी भी आकार और रूप में हो सकता है।
प्रश्न 4. विभिन्न प्रकार की रेखाएँ तथा आकृतियाँ कौन-सी होती हैं?
वे किस प्रकार विभिन्न प्रभावों तथा मनोदशाओं का सर्जन करती हैं?
उत्तर
: रेखा-रेखा को उस चिह्न के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो दो बिन्दुओं को जोड़ती
है, उसमें एक आरंभ और एक अन्त होता है । यह किसी वस्तु, आकृति या आकार की रूपरेखा की
भांति भी हो सकती है। किसी डिजाइन के तत्व के रूप में यह वस्तुओं की आकृति प्रदर्शित
करती है, गति प्रदान करती है और दिशा निर्धारित करती है।
रेखा
के प्रकार तथा उनके प्रभाव
मूल
रूप से रेखा के दो प्रकार होते हैं-(1) सरल रेखा और (2) वक्र रेखा। यथा-
(1)
सरल रेखाएँ-सरल रेखा एक दृढ़ अखंडित रेखा होती है। सरल रेखाएँ अपनी दिशा के अनुसार
विभिन्न प्रभावों का सर्जन करती हैं। वे मनोवृत्ति का प्रदर्शन भी करती हैं।
विभिन्न
सरल रेखाएँ तथा उनके प्रभाव निम्नलिखित हैं-
- ऊर्ध्वाधर रेखाएँ-ऊर्ध्वाधर सरल रेखाएँ
ऊपर और नीचे गति पर बल देती हैं, ऊँचाई का महत्व बताती हैं और वह प्रभाव देती
हैं जो तीव्र, सम्मानजनक और सुरक्षित होता है।
- क्षैतिज रेखाएँ-क्षैतिज सरल रेखाएँ एक ओर
से दूसरी ओर गति पर बल देती हैं और चौड़ाई के भ्रम का सर्जन करती हैं। चूँकि ये
धरातलीय रेखा की पुनरावृत्ति करती हैं, इसलिए ये एक स्थायी और सौम्य प्रभाव देती
हैं।
- तिरछी अथवा विकर्ण रेखाएँ-तिरछी अथवा विकर्ण
रेखाएँ कोण की कोटि और दिशा पर निर्भर करते हुए चौड़ाई को बढ़ाती या घटाती हैं।
ये रेखाएँ एक सक्रिय, आश्चर्यजनक अथवा नाटकीय प्रभाव सर्जित कर सकती हैं।
(2)
वक्र रेखाएँ-वक्र रेखा किसी भी कोटि की गोलाई वाली रेखा होती है। वक्र रेखा एक सरल
चाप अथवा एक जटिल मुक्त हस्त से खींचा गया वक्र हो सकता है। गोलाई की कोटि वक्र का
निर्धारण करती है। अल्प कोटि की गोलाई सीमित वक्र कहलाती है। अधिक कोटि की गोलाई एक
वृतीय वक्र देती है। कुछ वस्तुएँ इन वक्रों से संबंधित हैं और उनके नाम उसी प्रकार
हैं, जैसे-परवलय, कुंडली, विसर्पण, केशपिन, चाबुक की रस्सी अथवा सर्पाकार, आठ की आकृति
आदि।
वक्र
रेखाओं के प्रभाव-वक्र रेखाओं के प्रभावों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है-
(क)
लंबी और लहराती हई वक्र रेखाएँ-ये वक्र रेखाएँ अत्यन्त मनोहर तथा लयबद्ध दिखाई देती
हैं।
(ख)
बड़े गोल वक्र-ये एक नाटकीय स्पर्श प्रदान करते हैं. और अमाप को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत
करते हैं।
(ग)
छोटे, हल्के वक्र-ये वक्र युवा तथा प्रफुल्ल होते हैं।
अतः
स्पष्ट है कि रेखाएँ दिखने वाला अर्थ व्यक्त करती हैं। सरल रेखाएँ बल, सामर्थ्य और
दृढ़ता को व्यक्त करती हैं तो वक्र रेखाएँ मृदु तथा शालीन दिखाई देती हैं। किसी डिजाइन
में डिजाइन का प्रभाव पुरुषोचित होता है और यदि वक्र रेखाओं की प्रधानता है तो वे नारीत्व
व कोमलता का प्रभाव देती हैं।
आकृतियाँ
तथा उनके प्रभाव
आकृतियाँ
रेखाओं को जोड़कर बनायी जाती हैं। ये द्विविमीय हो सकती हैं, जैसे-एक वस्त्र पर चित्रकारी
या मुद्रण। ये त्रिविमीय भी हो सकती हैं, वस्तु के रूप में जिसे तीन या अधिक दिशाओं
में देखा जा सकता है, जैसे-एक मानव शरीर पर पोशाकें।
आकतियों
के प्रकार-आकृतियों के चार मूलभूत समूह होते हैं। यथा-
- प्राकृतिक आकृतियाँ-प्राकृतिक आकृतियाँ
वे होती हैं जो प्रकृति अथवा मानव-निर्मित वस्तुओं की सामान्य आकृतियों की नकल
होती हैं।
- फैशनेबल शैली की आकृतियाँ-ये आकृतियाँ सरलीकृत
या संशोधित प्राकृतिक आकृतियाँ होती हैं। इनका कुछ भाग विकृत अथवा अतिशयोक्तिपूर्ण
हो सकता है।
- ज्यामितीय आकृतियाँ-ज्यामितीय आकृतियाँ
वे हैं, जो गणितीय रूप से बनाई जाती हैं अथवा कुछ वैसा ही आभास देती हैं। इनको
कंपास, पैमाना अथवा अन्य मानक उपकरणों का उपयोग कर बनाया जा सकता है।
- अमृत आकृतियाँ-अमूर्त आकृतियाँ मुक्त रूप
होती हैं। वे किसी विशिष्ट वस्तु जैसी दिखाई नहीं देती हैं बल्कि अपने वैयक्तिक
संबंधों के कारण विभिन्न लोगों के लिए विभिन्न वस्तुएँ हो सकते हैं।
प्रभाव-वस्त्र
में आकृति और रूप का संबंध सामग्री के प्रभाव या सजावट, अलंकरण तथा कलाकृतियों के आकार
पर और उनके स्थापन या आवृत्ति पैटर्न बनने से होता है।
रेखा
और आकृतियाँ दोनों तत्व मिलकर प्रत्येक डिजाइन के प्रतिरूप (पैटर्न) अथवा योजना का
सर्जन करते हैं। प्रत्येक वस्तु पर जो सजावट हम देखते हैं या उपयोग में लाते हैं, वह
रेखाओं और आकृतियों का संयोजन है।
प्रश्न 5. आप पोशाक में आवर्तिता तथा सामंजस्यता किस प्रकार प्राप्त
करते हैं?
उत्तर
: पोशांक में आवर्तिता
आवर्तिता
का अर्थ है-डिजाइन अथवा विवरण की लाइनों, रंगों अथवा अन्य तत्वों को दोहराकर पैटर्न
का सर्जन करना, जिसके माध्यम से पोशाक आँख को अच्छा लगे।
आवर्तिता
रेखाओं, आकृतियों, रंगों तथा बुनावटों का उपयोग कर इस प्रकार सर्जित की जा सकती है
कि यह दृश्य-एकता दर्शाती है। इसे निम्न प्रकार से सर्जित किया जा सकता है-
- यह कसीदाकारी युक्त लेसों, बटनों की जोट
(पाइपिंग), रंग इत्यादि को गले, बाँहों, किनारों पर दोहरा कर प्राप्त किया जाता
है।
- इसे कलाकृतियों, रेखाओं, बटनों, रंगों,
बुनावट के माप में क्रमिक वृद्धि अथवा कमी करके प्राप्त किया जा सकता है।
- विकिरण आँखें एक केन्द्र बिन्दु से एक व्यवस्थित
तरीके से गतिमान होती हैं अर्थात् कमर, योक अथवा कफ इत्यादि पर संग्रहित होती
हैं।
- समांतरता तब सर्जित होती है जब तत्व एक-दूसरे के समान्तर होते हैं, जैसे-योक में चुन्नटें अथवा घाघरे (स्कर्ट) में धारदार चुन्नटें। रंग की धारियाँ भी किसी पोशाक में एक आवर्तिता प्रभाव उत्पन्न करती हैं।
पोशाक
में सामञ्जस्यता
किसी
पोशाक में सामञ्जस्यता अथवा एकता तब उत्पन्न होती है, जब उसकी डिजाइन के सभी तत्व एक
रोचक सामञ्जस्यपूर्ण प्रभाव के साथ एक दूसरे के साथ आते हैं। यह जन स्वीकृत डिजाइनों
के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण कारक है।
आकृति
द्वारा सामञ्जस्यता-आकृति द्वारा सामंजस्यता तब उत्पन्न होती है जब पोशाक के सभी भाग
एक जैसी आकृति दर्शाते हैं। जब कालर, कफ और किनारे गोलाई लिए होते हैं, तब यदि जेबें
वर्गाकार बना दी जाएँ, तो ये डिजाइन की निरंतरता में बाधक होंगी।
जब
पोशाक कई भागों में हो, जैसे-सलवार, कुरता और दुपट्टा; तो पोशाक के लिए सही बुनावट
का उपयोग करके बुनावट में सामंजस्य सर्जित किया जा सकता है। सूती दुपट्टे का उपयोग
एक रेशमी कुरते और सलवार के साथ खराब सामंजस्य प्रदर्शित करेगा।