14. संग्रहालयों में वस्त्र संरक्षण

14. संग्रहालयों में वस्त्र संरक्षण
14. संग्रहालयों में वस्त्र संरक्षण

Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. आप कला संरक्षण और वस्त्र संरक्षण से क्या समझते हैं?

उत्तर : कला संरक्षण और वस्त्र संरक्षण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा क्रमशः कलाकृतियों और वस्त्रों की देखभाल और उनका रख-रखाव किया जाता है ताकि भविष्य में होने वाली क्षति से उन्हें सुरक्षित रखा जा सके। यह अवधारणा शिल्पकृतियों की वृहद् श्रृंखला पर लागू होती है, जिमसें टेपेस्ट्री, गलीचे, रजाइयां, झंडे, कपड़े, परदे, गद्दीदार फर्नीचर, गुडिया और संबंधित वस्तुएँ जैसे-पंखे, छाते, दस्ताने और टोपियाँ जैसे वस्त्र शामिल हैं।

प्रश्न 2. निवारक और हस्तक्षेपीय संरक्षण में क्या भिन्नता है?

उत्तर : संरक्षण मुख्य रूप से किसी वस्तु के जीवनकाल को दीर्घ बनाने पर लक्षित एक संक्रिया है जो अल्पकालिक अथवा दीर्घकालिक प्राकृतिक या आकस्मिक ह्रास को रोकने में परिणत होती है। यह दो प्रकार का होता है-(1) निवारक संरक्षण और (2) हस्तक्षेपीय संरक्षण। यथा-

(1) निवारक संरक्षण-निवारक संरक्षण में संग्रहालय सभी संग्रहित वस्तुओं की देखभाल व रखरखाव के लिए एक सुरक्षित पर्यावरण सृजित किया जाता है। यह प्रत्येक वस्तु के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराकर ह्रास को रोकने पर लक्षित होता है। निवारक संरक्षण सांस्कृतिक संपदा को यथासंभव उनकी मूल स्थिति में रखने के लिए, उनके परिवेश पर नियंत्रण और/या उनकी संरचना के उपचार द्वारा उनके ह्रास या क्षति को कम करने या रोकने की प्रक्रिया है।

(2) हस्तक्षेपीय संरक्षण-हस्तक्षेपीय संरक्षण के अन्तर्गत सफाई करना, ठीकठाक रखना, मरम्मत करना अथवा किसी मूल वस्तु के हिस्सों को बदलना भी शामिल है। सरल शब्दों में, इसका अर्थ है-वस्तु में पहले से उपस्थित दोषों के उपचार हेतु कार्य करना, आगे होने वाली क्षति से बचाना और इसे अच्छी स्थिति में बनाए रखना तथा पुनः स्थापित करना है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि निवारक संरक्षण जहाँ संरक्षित प्रत्येक वस्तु के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराकर उसमें होने वाली क्षति को रोकने की प्रक्रिया है, वहाँ हस्तक्षपीय संरक्षण संरक्षित वस्तु में आए दोष या उसमें हुई क्षति को ठीक कर उसे पुनः अच्छी स्थिति में लाकर पुनः स्थापित करना है।

प्रश्न 3. वस्त्रों को क्षतिग्रस्त करने वाले पर्यावरणीय कारकों का वर्णन कीजिए।

उत्तर : वस्त्रों को क्षतिग्रस्त करने वाले पर्यावरणीय कारक

संग्रहालय में रखे गये वस्त्र मुख्य रूप से प्राकृतिक रेशों से निर्मित होते हैं क्योंकि वस्त्र कार्बनिक प्रकृति के होते हैं। इसलिए ये प्रकाश, ऊष्मा, आर्द्रता, नाशक जीव तथा प्रदूषकों द्वारा क्षतिग्रस्त हो सकते हैं । ये सभी पर्यावरणीय कारक हैं। इनका विवेचन निम्नलिखित बिंदुओं के अन्तर्गत किया गया है-

(1) प्रकाश-वस्त्रों को एक बड़ा खतरा प्रकाश से होता है। प्रकाश ऊर्जा का एक रूप है जो वस्त्रों का रंग फीका कर सकता है और वस्त्रों के रेशों का भौतिक तथा रासायनिक ह्रास कर सकता है।

प्राकृतिक और पराबैंगनी दोनों प्रकार के प्रकाश में वस्त्रों को खुला छोड़ने पर वस्त्रों की आयु को खतरा हो सकता है। दोनों प्रकार का प्रकाश वस्त्रों की क्षति के लिए उत्तरदायी होता है।

प्रकाश के कारण क्षति धीरे-धीरे होती है। रंगों का धमिल पडना, रंगों में परिवर्तन प्रकाश द्वारा होने वाली क्षति के आसानी से पाए जाने वाले लक्षण हैं। प्रकाश के कारण वस्तु की क्षतिग्रस्त होने की प्रक्रिया इस प्रकार है-

पहले वस्तु अपना लचीलापन खोती है, फिर कमजोर पड़ती है, भंगुर हो जाती है और अन्त में फट जाती है, उसके टुकड़े धूल जैसे कणों में परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में वस्त्रों का पीला या भूरा पड़ जाना उनकी खराब अवस्था का सूचक है।

पराबैंगनी प्रकाश सूर्य के प्रकाश में उपस्थित होता है और यह कई बल्बों द्वारा भी उत्सर्जित किया जाता है। यह बहुत कम समय में बहुत अधिक क्षति पहुंचाने की क्षमता रखता है।

(2) नमी और ऊष्मा-संग्रहालय की वस्तुओं को अच्छी स्थिति में रखने हेतु जलवायु भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि जलवायु की परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं हैं तो अभिक्रियाओं की एक श्रृंखला उनको क्षति पहुंचाना शुरू कर देती है।

नियंत्रित जलवायु, विशेष रूप से नियंत्रित ताप और आर्द्रता संरक्षित वस्तुओं को अच्छी स्थिति में रखती है। आर्द्रता (द्रव अथवा वाष्प अवस्था) वस्त्रों की क्षति के लिए एक गंभीर कारण है। उच्च और निम्न आर्द्रता में परिवर्तन उन वस्त्रों के निरंतर फलने और सिकडने का कारण बनता है जो आर्द्रताग्राही प्रक प्रकृति के होती हैं।

दूसरे, नमी की अधिकता सूक्ष्म जीवों की वृद्धि का आधार होती है जो वस्त्र जैसे जैविक पदार्थों को संदूषित करती है।

तीसरे, नमी की मात्रा में कमी भी वस्त्रों को प्रभावित करती है। इससे वस्त्र भंगुर, भुरभुरे और थोड़ा उलट-पुलट करने पर फट जाते हैं क्योंकि ये उसके लचीलेपन को प्रभावित करते हैं।

(3) नाशक जीव-नाशक जीव भी वस्त्र को क्षति पहुँचा सकते हैं। इनमें से अधिकतर पाए जाने वाले मोथ (शलभ), कार्पेट बीटल, सिलवर फिश और चूहे होते हैं।

  • नाशकजीवों का खतरा उष्णकटिबंधीय जलवायु में शीतोष्ण जलवायु क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक होता है क्योंकि आर्द्रता कीटों की वृद्धि में सहायक होती है।
  • कुछ कीट तो अपने लारवा (झिल्ली) स्वरूप में ही तबाही मचा देते हैं, जबकि अन्य पूर्ण विकसित स्वरूप में हानि पहुंचाते हैं।
  • कपड़ा-शलभ प्रोटीन रेशों की ओर आकर्षित होते हैं और विशेष रूप से रेशम, ऊन और फरों की ओर आकर्षित होते हैं।
  • वस्त्रों पर सफेद कोकून (कृमिकोष) या कीटों का दिखना संदूषण का साक्ष्य हो सकता है।
  • सिलवर फिश और फायर ब्रैट एक जैसे कीट हैं जो स्टार्च खाते हैं जो वस्त्रों की साइजिंग और अन्य उपचारों के लिए काम में आती है।

(4) फफूंदी-फफूंदी हल्के गरम, नम वातावरण में लगती है, जहाँ वायु का आवागमन कम होता है। वस्त्रों पर रोंएदार वृद्धि का होना या बिखरे हुए धब्बों का पाया जाना या हवा में एक फफूंदीदार गंध का होना आदि लक्षण इस बात के सूचक हैं कि संभवतः वस्त्र में हुई यह क्षति फफूंदी के कारण हुई है।

फफूंदी वस्त्रों को स्थायी रूप से नष्ट या धब्बेदार कर सकती है और अन्ततः कपड़े का सामर्थ्य पूर्ण रूप से समाप्त हो जाता है।

फफूंदी लगे कपड़ों का निवारण का काम करते. समय धूल मास्क, चश्मे, उपयोग के बाद फेंक दिए जाने वाले दस्ताने और पूरा तन ढकने वाली पोशाक पहनी जानी चाहिए।

(5) धूल-धूल, वायु में उपस्थित महीन कणों वाला वह प्रदूषक है, जिसमें विभिन्न पदार्थ मिले होते हैं, जैसे-रेशे, मिट्टी के कण, मानव एवं जंतुओं की त्वचा और बालों के अंश, वायु प्रदूषक, जैसे-धुएं और राख के कण, फफूंदी के बीजाणु, पेंट के अंश और पराग कण।

वस्त्रों के ऊपर धूल ताजी-ताजी जमी हो तो उसे हटाया जा सकता है, लेकिन समय के साथ यह रेशों में चली जाती है और तब इसे हटाना असंभव सा हो जाता है। धूल में पोषण मिलने से नाशक कीट उसमें आश्रय ले लेता है।

प्रश्न 4. आप संग्रहालयों में वस्त्रों के भंडारण के लिए क्या अनुशंसाएँ करेंगे?

उत्तर : संग्रहालयों में संचय किए गए वस्त्रों में बहुत अधिक भिन्नता होती है। वे अपनी ऐतिहासिक अभिरुचि, अपने सौंदर्य बोध और अपने सांस्कृतिक महत्व के कारण मूल्यवान होते हैं। ऐतिहासिक महत्व के पहनावे के वस्त्र अधिकांश संग्रहालयों में स्थायी रूप से प्रदर्शित रहते हैं। इसलिए संग्रहालयों में वस्त्रों के भंडारण के लिए हम अग्रलिखित अनुशंसाएँ करेंगे-

(1) वस्त्रों का भंडारण इस समझ के साथ भंडारित व प्रदर्शित कीजिए कि उन्हें सुरक्षित तरीके से कैसे संभालें। यह संग्रहालय का आवश्यक उत्तरदायित्व है कि उनकी देखभाल के अन्तर्गत सभी संग्रहों, चाहे वे भंडार में हों, प्रदर्शित किए गए हों या कहीं भेजे जा रहे हों, के लिए एक सुरक्षित पर्यावरण बनाए रखें। प्रत्येक वस्तु के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराकर उनके ह्रास को रोकें । एक अनुकूल भंडारण पर्यावरण भौतिक क्षति को रोकता है और रासायनिक विकृति को धीमा करने में मदद करता है। इससे वस्त्रों से संबंधित वस्तुओं का जीवनकाल बहुत बढ़ जाता है।

(2) प्रतिकूल भंडार परिस्थितियाँ संग्रह की सभी वस्तुओं को प्रभावित करती हैं क्योंकि परिवर्तन लंबी समयावधि में धीरे-धीरे होते हैं, उनके प्रभाव सदैव स्पष्ट नहीं होते। फिर भी यदि एक बार परिवर्तन हो जाते हैं तो उन्हें बदला नहीं जा सकता अथवा उनसे निपटने के लिए जटिल और महँगे उपचार करने पड़ते हैं।

(3) संग्रहालयों में वस्त्रों के भंडारण के लिए यह भी आवश्यक है कि संरक्षणकर्ता संग्रहित किये गए वस्त्रों में पहले से उपस्थित दोषों के उपचार हेतु कार्य करें, आगे होने वाली क्षति से उन्हें बचाना तथा उन्हें अच्छी स्थिति में बनाए रखने हेतु आवश्यक कदम उठाने चाहिए।

(4) वस्त्रों की धरोहर सामग्री को साइज और आवश्यकता के अनुसार भंडारित करना चाहिए, जैसा कि नीचे चित्र में दिखाया गया है-

14. संग्रहालयों में वस्त्र संरक्षण

(5) वस्त्रों को प्रदूषकों, धूल और कीटों से बचाना चाहिए। वायु में उपस्थित रसायन जो वस्त्रों को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं, उनमें धुआँ, तेल और अम्ल शामिल होते हैं । धुएँ से धब्बे पड़ जाते हैं और रंग फीका पड़ जाता है, जिन्हें दूर करना अत्यधिक कठिन होता है।

(6) वस्त्र जब ऐसे कमरे में प्रदर्शित किए जाते हैं जिसमें अग्नि कोष्ठ हो या जहाँ धूम्रपान की अनुमति हो, तो वस्त्रों को धुएँ से बचाव वाले, जैसे-सील किए गए फ्रेम या सील किए जा सकने वाले बक्सों में रखना चाहिए।

पीड़कनाशक पट्टियाँ (पेस्ट स्ट्रिप्स) और कुछ प्रकार के प्लास्टिक अल्प मात्रा में अम्ल छोड़ते हैं। अत: बंद भंडार क्षेत्रों में पेस्ट स्ट्रिप्स का सामान्यतः उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

प्रश्न 5. एक वस्त्र संरक्षक बनने के लिए किस प्रकार के ज्ञान और कौशलों की आवश्यकता होती है?

उत्तर : एक वस्त्र संरक्षक बनने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल

वस्त्र संरक्षण का क्षेत्र एक उभरता हुआ क्षेत्र है जो विशेष रूप से विकसित हो रहे कलाकारों के लिए भरपूर रचनात्मक तुष्टि देने वाला है। एक वस्त्र संरक्षक बनने के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता कला बोध की है। व्यक्ति को कला के प्रति लगाव होना चाहिए तथा उसमें वस्त्रों में सन्निहित जटिलताओं का मूल्यांकन करने और समझने का रुझान होना चाहिए। इस दृष्टि से एक वस्त्र संरक्षक में निम्नलिखित ज्ञान और कौशलों का होना आवश्यक है-

  • व्यक्ति को आधारभूत विज्ञान विषयों, विशेष रूप से रसायन और भौतिकी का अच्छा ज्ञान होना चाहिए और कुछ भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में मास्टर ऑफ आर्ट्स के लिए पूर्वापेक्षित कार्यक्रमों का ज्ञान होना चाहिए।
  • उसे भारतीय के साथ विश्वस्तरीय वस्त्र निर्माण के इतिहास, तकनीकों और प्रक्रियाओं का ज्ञान यह निर्धारित करने के लिए आवश्यक रूप से होना चाहिए कि उनके संरक्षण के लिए कौन-सी विधियाँ उपयुक्त हैं।
  • इसके अतिरिक्त उसे कला संरक्षण की उन्नत प्रौद्योगिकियों का ज्ञान भी अवश्य होना चाहिए।
  • संरक्षणकर्ताओं के लिए कला का ज्ञान और सौंदर्यबोध मूल्यों के प्रति संवेदनशीलता लाभदायक है, परंतु इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह जानना है कि पदार्थ किस प्रकार परस्पर क्रिया करते हैं, काल प्रभावित होते हैं और अपक्षय हो जाते हैं। यह ज्ञान संरक्षणकर्ताओं को वस्त्र में होने वाली क्षति को रोकने में सहायक होता है और धरोहर सामग्री को लम्बे समय तक बनाए रखता है।
  • एक कला संरक्षक बनने में हस्त-दक्षता, प्रबल संप्रेषण कौशल और अकेले अथवा टीम के पर्यावरण में कार्य करने की योग्यता की विशेषताएँ सहायक होती हैं।
  • उसे कंप्यूटर और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर पद्धतियों का उपयोग जानना भी महत्वपूर्ण है।
  • उसमें समस्या समाधान और विश्लेषणात्मक कौशलों का होना भी आवश्यक है।
  • एक सफल संरक्षक में व्यापक शोध के लिए आवेग और दृढ़ता का होना आवश्यक है।
  • उसको कला को चाहने वाले और कला में दक्ष कलाकारों के कार्यों के प्रति पूरी तरह भावपूर्ण होने चाहिए।
  • विभिन्न संस्थान कला संरक्षण विषयों में कम अवधि के व डिग्री वाले पाठ्यक्रम उपलब्ध कराते हैं। व्यक्ति को वस्त्र संरक्षक ज्ञान व कौशलों के विकास के लिए इन पाठ्यक्रमों को पूरा करना चाहिए।
  • बहुत से संग्रहालय और कला दीर्घाएं विकसित हो रहे हैं जो वस्त्र संरक्षण से जुड़े व्यवसायियों को सेवाकालीन प्रशिक्षण देकर उनके लिए आवश्यक ज्ञान व कौशलों को विकसित करते हैं।

प्रश्न 6. यदि किसी को कला संरक्षण के क्षेत्र में प्रवेश के लिए मार्गदर्शन चाहिए तो आप क्या सलाह देंगे?

उत्तर : कला संरक्षण के क्षेत्र में प्रवेश हेतु मार्गदर्शन

यदि कोई व्यक्ति कला व संरक्षण के क्षेत्र में डिग्री या कम अवधि के डिप्लोमा ग्रहण कर लेता है तो उसके पास , राजकीय नौकरी या निजी संग्रहालयों या कला दीर्घाओं में कार्य करने के विकल्प होते हैं। यथा-

  • वह राज्य द्वारा संचालित संग्रहालयों और कलादीर्घाओं में रोजगार प्राप्त कर सकता है।
  • राज्य द्वारा संचालित संस्थानों में भी कला संरक्षण के क्षेत्र में रोजगार मिलता है।
  • कला और संस्कृति विरासत का भारत के राष्ट्रीय न्यास द्वारा संचालित कला संरक्षण संस्थानों में भी ऐसे व्यक्ति रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।
  • निजी दीर्घाएँ, संग्रहालय, प्रतिष्ठान अथवा व्यक्ति जिनके पास अपने स्वयं के बड़े संग्रह या दुकानें और एम्पोरियम (वाणिज्य केन्द्र) होते हैं और जो पुरावस्तुओं का व्यापार करते हैं वे ऐसे व्यक्तियों को पूरे समय के लिए अथवा परियोजनाओं के लिए अथवा कार्य के आधार पर नियुक्तियाँ देते हैं।
  • लेकिन हमारी सलाह है कि नौकरियों की बजाय इस क्षेत्र में सबसे उत्साहजनक विकल्प स्वतंत्र व्यवसाय अथवा स्वयं का रोजगार है। स्वतंत्र व्यवसायी भौगोलिक सीमाओं में बंधे हुए नहीं होते और प्रायः उनकी नियुक्ति पश्चिम देशों में स्थित दीर्घाओं में हो जाती है।
  • संरक्षण का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम विभिन्न विश्वविद्यालयों से पूरा करने से, जिसमें सैद्धान्तिक और प्रायोगिक वस्त्र निर्माण प्रलेखन और संरक्षण का अध्ययन सम्मिलित है, विद्यार्थियों को संरक्षण वस्त्र संग्रहालयों में विभिन्न पदों पर कार्य करने के अवसर मिलते हैं, जैसे-संरक्षण सहायक, संग्रहालयाध्यक्ष आदि।

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