25. विकास कार्यक्रमों का प्रबंधन

25. विकास कार्यक्रमों का प्रबंधन
25. विकास कार्यक्रमों का प्रबंधन

Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. विकास कार्यक्रम की संकल्पना की व्याख्या कीजिए।

उत्तर : विकास से आशय-विकास मनुष्य की क्षमताओं, विकल्पों तथा अवसरों को बढ़ावा देने की वह प्रतिक्रिया है, जिससे वह दीर्घ, स्वस्थ तथा परिपूर्ण जीवन व्यतीत कर सके। इस प्रक्रिया में मनुष्य के सामर्थ्य तथा कौशलों का प्रसार सम्मिलित है, जिससे वे अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को प्रभावित करने वाले कारकों तक पहुँच सकें और उन पर नियंत्रण कर सकें। विकास का लक्ष्य मनुष्यों द्वारा उनकी क्षमताओं तथा संसाधनों का पूर्ण रूप से उपयोग करना होता है।

विकास कार्यक्रम-विकास कार्यक्रम दी गई परिस्थितियों को बदलने के लिए सुवाचित प्रयासों पर केन्द्रित है। अधिकतर इसके अन्तर्गत विभिन्न कार्यक्रम कार्यनीतियों तथा क्रियाकलापों का विकास और साथ ही इन प्रयासों के लक्ष्य वर्ग के जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों को समझना है।

विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्यक्रमों की एक रूपरेखा बनाई जाती है। कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाते समय अधिकांश कार्यक्रमों में निम्न तीन घटकों में से एक या अधिक होते हैं जो किये जाने वाले क्रियाकलापों के केन्द्र बिन्दु तथा दृष्टिकोण को दिशा निर्देशित करते हैं। यथा-

  • विकासात्मक घटक-विकासात्मक घटक में ऐसे क्रियाकलाप होते हैं, जिनका केन्द्र बिन्दु मुख्य रूप से अंत:क्षेत्रों की संकल्पना तैयार करना होता है।
  • संस्थागत घटक-संस्थागत घटक में कार्यक्रम के क्रियान्वयन में कार्यक्रम से जुड़े विभिन्न व्यक्तियों की भूमिका की क्षमता का निर्माण सम्मिलित है।
  • सूचनात्मक घटक-सूचनात्मक घटक में विभिन्न संचार चैनलों का उपयोग करके विभिन्न पणधारियों को कार्यक्रम से संबंधित महत्वपूर्ण सूचना प्रदान करने का प्रयत्न करता है।

लोकतांत्रिक क्रियाकलाप के रूप में विकास-कार्यक्रम-आजकल विकास कार्यक्रम को लोकतांत्रिक क्रियाकलाप की भांति देखा जाता है, जिसमें कार्यक्रम, विकास और मूल्यांकन से जुड़े विभिन्न विषयों के बारे में बातचीत और सहमति नीचे दर्शाए अनुसार होना आवश्यक है-

  1. किसी दी हुई स्थिति को किस प्रकार वर्णित और विश्लेषित किया जा सकता है?
  2. मुख्य समस्यायें, आवश्यकताएँ और अपेक्षाएँ क्या हैं?
  3. समस्याओं के हल के क्या विकल्प हैं?
  4. किस प्रकार के संसाधन, सूचनाएँ तथा प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता है?
  5. किस प्रकार की परियोजनाओं तथा क्रियाकलापों को कार्यान्वित किया जाना चाहिए और उन्हें कब, कैसे, कहाँ व कौन करे?
  6. मूल्यांकन को किस प्रकार देखा जाना चाहिए? इसे कौन करे और कब करे?
  7. कार्यक्रम का प्रबंधन और नियंत्रण कौन और कैसे करे?

प्रश्न 2. सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों के नाम बताइए।

  • उत्तर : सहस्राब्दि विकास लक्ष्य आठ समयबद्ध विस्तृत विकास लक्ष्य हैं, जिन्हें प्राप्त करने के लिए पूरे संसार की सहमति है। ये लक्ष्य निम्नलिखित हैं-
  • अति निर्धनता तथा भूख का उन्मूलन।
  • प्राथमिक स्तर पर सर्वशिक्षा प्राप्त करना।
  • जेंडर समानता तथा महिलाओं का सशक्तीकरण।
  • बच्चों की मृत्यु दर को कम करना।
  • माता के स्वास्थ्य में सुधार।
  • एच.आई.वी./एड्स, मलेरिया तथा अन्य बीमारियों पर विजय प्राप्त करना।
  • पर्यावरण की संधारणीयता को सुनिश्चित करना।
  • विकास के लिए वैश्विक सहभागिता विकसित करना।

प्रश्न 3. कार्यक्रमों में पणधारियों की भागीदारी क्यों आवश्यक है?

उत्तर : कार्यक्रमों में पणधारियों की भागीदारी की आवश्यकता विकास कार्यकर्ताओं ने यह अनुभव किया है कि विकास कार्यक्रमों की सफलता और उनसे संधारणीय परिणाम प्राप्त करने के लिए उनमें पणधारियों की भागीदारी का स्वरूप और स्तर एक प्राथमिक आवश्यकता है।

पणधारियों की भागीदारी के अनेक लाभों की पहचान की गई है, जो इन्हें विकास कार्यक्रमों का एक आवश्यक साधन बनाते हैं। यथा-

(1)मूलभूत सेवाओं को प्रभावी ढंग से जुटाना-पणधारियों की सहभागिता से स्वास्थ्य, शिक्षा, जल आदि की व्यवस्था करने के लिए प्रभावी तंत्र विकसित होता है, जो लागत प्रभावी और समावेशी होता है, जिसके कारण वंचित समुदाय उनका लाभ कम कीमत पर उठा सकते हैं।

(2) नीति बनाने में सहभागिता-नीति बनाने के क्रियाकलापों जैसे-अनुसंधान, स्थानीय शासन के कार्यक्रम, जनसुनवाई तथा बजट बनाने आदि में भाग लेने से विभिन्न पणधारियों-विशेष रूप से सामान्य नागरिकों की सम्मति भी नीति बनाने के प्रक्रम में प्राप्त की जा सकती है। इस प्रकार अधिक जन-अनुक्रियाशील नीतियों तथा कार्यक्रमों को विकसित किया जा सकता है।

(3) लक्ष्य की ओर प्रगति का अनुवीक्षण-भागीदारी होने से विभिन्न पणधारी कार्यक्रमों के क्रियाकलापों के प्रत्यक्ष अनुवीक्षण में भाग लेने तथा उनके प्रभावी नियमन में समर्थ हो जाते हैं।

(4) चिंतन तथा अधिगम को सुसाध्य बनाना-भागीदारी से विभिन्न पणधारी समूहों के बीच विवेचनात्मक सोच-विचार तथा अधिगम के लिए बातचीत के अवसर उत्पन्न होते हैं, जो कि विकास कार्यक्रमों या परियोजनाओं का एक मूल तत्व हैं।

प्रश्न 4. विकासकार्यक्रम चक्र का वर्णन कीजिए।

उत्तर : विकासकार्यक्रम चक्र विकासकार्यक्रम चक्र के चार चरणों को निम्नलिखित रेखाचित्र में दर्शाया गया है-

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विकास-कार्यक्रम चक्र के उक्त चरणों का विवेचन निम्न प्रकार किया गया है-

(1) स्थिति अथवा विषय-वस्तु या संदर्भ का विश्लेषण-विकास कार्यक्रम चक्र का यह पहला चरण है। इसमें विकास-समस्या को समझा तथा परिभाषित किया जाता है। समस्या को पूर्णतया समझने के लिए विकास समस्या से संबंधित पिछले अनुभवों तथा समुदाय व व्यक्तिगत ज्ञान और अभिवृत्तियों को समझना, प्रचलित मानदंड एवं कार्य व्यवहार तथा सामाजिक अर्थशास्त्रीय एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य के बारे में अन्य सूचनाएँ जानने का प्रयास किया जाता है।

इस चरण का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू मुद्दों के बारे में आपसी संवाद से विभिन्न पणधारियों के बीच आपसी समझ के लिए क्रिया विधि विकसित किया जाना है। इससे विषय की आवश्यकताओं, समस्याओं, जोखिमों और उसके संसाधनों के विषय में समझ के साथ-साथ प्रत्यक्ष ज्ञान के समाधान, मुद्दों की प्राथमिकताओं के बारे में सामंजस्य विकसित होगा तथा कार्यक्रम के जिन लक्ष्यों पर वे सहमत हैं उनके हलों को परिभाषित करने में सहायता प्राप्त होगी।

(2) कार्ययोजना का अभिकल्पन-इस चरण में कार्यक्रम के लक्ष्यों या उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए जो कार्यनीति अपनायी जाएगी और जिन क्रियाकलापों को करना आवश्यक है, उन्हें निश्चित किया जाएगा। योजना का सफलतापूर्वक अभिकल्पन उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने से प्रारंभ होता है। उद्देश्यों को सुसाध्य तथा मापन योग्य विधि से परिभाषित करने के लिए पथ प्रदर्शक का कार्य करने के लिए सुस्पष्ट मापन योग्य, प्राप्य, यथार्थवादी तथा समयोचित सूत्र को अपनाया जा सकता है।

इस चरण का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष ऐसे संबद्ध व्यक्तियों, समूहों तथा संस्थाओं की पहचान करना है, जिनके साथ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए तथा स्थिति में सुधार के लिए. सहभागिता की आवश्यकता है, क्योंकि कार्यक्रम के प्रति व्यक्तियों तथा समूहों का अभिप्रेरण तथा प्रतिबद्धता अलग-अलग हो सकती है। अतः भागीदारी विकसित करना, सक्रिय सहभागिता तथा सभी साझेदारों का सहयोग ऐसी चुनौतियां हैं, जिन पर विचार करना आवश्यक है।

तीसरे, कार्यक्रम की कार्यनीति विकसित करते समय इसकी अपेक्षाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना और उनके - मूल्यांकन तथा मापन पर विचार करना आवश्यक है।

(3) योजना को कार्यान्वित करना-एक बार कार्यक्रम योजना के विकसित हो जाने के पश्चात् सभी संगत क्रियाकलापों के प्रबंधन तथा अनुवीक्षण के लिए तथा आगे बढ़ने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि कार्य योजना बनाई जाये। उदाहरण के लिए, आगे सारणी में कार्य योजना विकसित करने की एक विधि की विशिष्टताएँ दर्शायी गई हैं। इस कार्य योजना का उद्देश्य झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाले फारी समुदाय के 16-18 वर्ष के युवकों को, जो विद्यालय में नहीं पढ़ते हैं, एच.आई.वी. तथा एड्स के बारे में जानकारी देना है।

सारणी-कार्य योजना का ढांचा

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(4) योजना का मूल्यांकन-योजनाबद्ध कार्यक्रम का मूल्यांकन उसका अंतिम चरण है और यह कार्यक्रम चक्र को पूरा करता है। मूल्यांकन एक ऐसी समयबद्ध प्रक्रिया है जो सुव्यवस्थित रूप तथा वस्तुनिष्ठ दृष्टि से पूरे हो चुके तथा चल रहे कार्यक्रमों तथा परियोजनाओं की संगतता की सफलता तथा निष्पादन को निर्धारित करने का प्रयत्न है। यह कार्यक्रम, परियोजना के गुण-दोषों को पहचानने तथा समझने में सहायता करता है।

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