विश्व बैंक International Bank for Reconstruction and Development (World Bank)

विश्व बैंक International Bank for Reconstruction and Development (World Bank)

विश्व बैंक International Bank for Reconstruction and Development (World Bank)

विश्व बैंक International Bank for Reconstruction and Development (World Bank)

प्रश्न:- विश्व बैंक के क्या उद्देश्य है? उसके कार्यों की व्याख्या कीजिए ? विश्व बैंक की सफलताओं का उल्लेख कीजिए। यदि इसमें कुछ दोष है तो उन्हे स्पष्ट करते, हुए बताइए कि उन्हें दूर करने के लिए क्या सुझाव देगे? भारत विश्व बैंक से किस सीमा तक लाभान्वित हुआ है। विस्तार से समझाइए?

उत्तर :- 1944 में आयोजित ब्रेटनवुड्स अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सम्मेलन में जिन दो संस्थाओं की स्थापना का निश्चय किया गया था उनमे अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) तो सदस्य देशों के अस्थाई भुगतान असन्तुलन को ठीक करने के लिए बनाया गया था, परन्तु युद्धजनित अव्यवस्था को दूर करने तथा अविकसित और अल्प विकसित देशों को विकास करने हेतु दीर्घकालीन पूँजी की पूर्ति के लिए अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD) अथवा विश्व बैंक की स्थापना की गई। विश्व बैंक ने जून 1946 से कार्य करना आरंभ कर दिया था

विश्व बैंक के उद्देश्य

विश्व बैंक की स्थापना 1945 में, विश्व के विकासशील देशों में आर्थिक विकास को गतिशील बनाने के उद्देश्य से की गई थी। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार है:-

(1) पुनर्निर्माण और विकास :- विश्व बैंक का प्रथम उद्देश्य युद्ध पीड़ित देशों के पुनर्निर्माण तथा पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास में सहायता देना था। इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए उसने सदस्य देशों को उत्पादक कार्यों के लिए पूँजी लगाने में प्रोत्साहन दिया।

(2) पूँजी विनियोजन :- उत्पादन तथा विकास के लिए जिन क्षेत्रों में पूँजी की आवश्यकता होती है विश्व बैंक उनमे निजी उधोगपतियों को पूँजी लगाने की सलाह देता है और आवश्यकता होने पर स्वयं भी उनके साझे में पूँजी विनियोग करता है। यदि किसी क्षेत्र में पूँजी उचित शर्तों पर उपलब्ध न हो तो विश्व बैंक स्वयं उस क्षेत्र में पूँजी लगाता है ताकि धन की कमी के कारण आवश्यक विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न न हो।

(3) भुगतान सन्तुलन :- अन्तर्राष्ट्रीय बैंक विकसित देशों को अल्प विकसित देशों में पूँजी लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है ताकि उन देशों में उत्पादन में वृद्धि हो, श्रमिकों का रहन सहन और जीवन स्तर सुधर सके तथा सम्बन्धित देशों का भुगतान सन्तुलन भी व्यवस्थित होता रहे। इन सब कार्यों का उद्देश्य दीर्घकाल में अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को साम्य एवं सन्तुलित अवस्था में रखना है।

(4) पूँजी की व्यवस्था :- अन्तर्राष्ट्रीय बैंक सदस्य देशों में स्वयं पूंजी लगाता है तथा दूसरे देशों के पूँजीपतियों से पूँजी लगवाता है। इन दोनों वर्गों की पूंजी का इस ढंग से सामंजस्य होना आवश्यक है कि आवश्यक क्षेत्रों में पूँजी पहले नियोजित की जाय और विदेशों से प्राप्त मशीने अथवा अन्य प्राविधिक सामान का श्रेष्ठतम प्रयोग हो सके, विश्व बैंक विकास कार्य में पूंजी को प्राथमिकता के सम्बन्ध में मार्गदर्शक का कार्य करता है।

(5) शान्तिकालीन अर्थव्यवस्था :- विश्व बैंक का यह दायित्व है कि वह सदस्य देशो मे लेन-देन अथवा ऋण सम्बंधी जी भी कार्य करे उससे किसी देश की व्यापारिक व्यवस्था को हानि पहुंचने की आशंका नही होनी चाहिए। युद्ध पीडित देशों की अर्थव्यवस्था को शान्ति कालीन अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करने में विश्व बैंक को अत्यन्त गम्भीर एवं महत्त्वपूर्ण दायित्व सौंपा गया है।

उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि विश्व बैंक का मुख्य उद्देश्य वे सब कार्य करना है जो सदस्य देशों के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सके।

विश्व बैंक का संगठन

संसार का कोई भी देश विश्व बैंक का सदस्य हो सकता है, किन्तु विश्व बैंक की सदस्यता प्राप्त करने के लिए पहले अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का सदस्य बनना अनिवार्य है। मुद्रा कोष की सदस्यता छोड़ते ही उस देश की विश्व बैंक की सदस्यता अपने आप समाप्त हो जाती है। यदि बैंक की कुल मत शक्ति के 75% मत से उस देश को सदस्य बनाए रखने का प्रस्ताव पास कर दिया जाय तो वह देश मुद्रा कोष का सदस्य न रहते हुए भी विश्व बैंक का सदस्य बना रह सकता है। जब कोई देश विश्व बैंक की सदस्यता त्याग देता है तो वहाँ की सरकार तब तक बैंक की किसी भी राशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होती है जब तक कि उस देश में दिया गया ऋण चुकता नहीं हो जाता। वर्तमान में विश्व बैंक के सदस्यों की संख्या 184 है।

विश्व बैंक का प्रबन्ध करने के लिए प्रशासक मण्डल, प्रशासकीय संचालक मण्डल, एक अध्यक्ष तथा अन्य अधिकारी होते है।

(1) प्रशासक मण्डल :- बैंक के प्रशासक मण्डल में प्रत्येक सदस्य देश द्वारा एक गवर्नर तथा एक स्थानापन्न गवर्नर नियुक्त किया जाता है। इनकी अवधि 5 वर्ष होती है, किंतु इसके पूर्व भी इन्हें बदला जा सकता है। गवर्नर मण्डल की प्रतिवर्ष एक साधारण सभा होती है जो मुद्रा कोष की सभा के साथ ही होती है। स्थानापन्न गवर्नर बैंक की सभाओं में भाग ले सकता है, परन्तु केवल गवर्नर की अनुपस्थिति में ही मत देने का अधिकारी होता है। प्रशासक मण्डल अपने सदस्यों में से एक को अध्यक्ष चुन लेता है जो वार्षिक सभा में अध्यक्षता करता है।

(2) प्रशासकीय संचालक मण्डल :- विश्व बैंक के दैनिक कार्यों का संचालन करने के लिए एक कार्यकारी संचालक मण्डल होता है जिसमें 22 सदस्य होते है। इनमें 5 सदस्य सबसे बड़े अम्यंश वाले देशों द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। शेष 17 संचालक अन्य सदस्यों द्वारा चुने जाते है। प्रत्येक संचालक का कार्यकाल 2 वर्ष का होता है। संचालक मण्डल द्वारा एक अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है जो संचालक मण्डल के निर्देशन में कार्य करता है, प्रशासकीय संचालक मण्डल का अध्यक्ष ही विश्व बैंक का अध्यक्ष होता है। यह अध्यक्ष बैंक के कार्यकारी स्टाफ का प्रमुख होता है तथा संचालक मण्डल के निर्देशन में बैंक के सामान्य कार्यों का संपादन करता है।

वर्तमान में सबसे बड़े अभ्यंश वाले 5 देश अमेरिका जापान, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन है। शेष देश 17 निर्वाचन क्षेत्रो में बंटे है तथा प्रत्येक से एक कार्यकारी संचालक का चुनाव होता है। सदस्य देश स्वयं यह निर्णय करते है कि वे किस समूह में रहेंगे। कार्यकारी संचालक साप्ताहिक बैठको में ऋण प्रस्ताव, बजट एवं नीतिगत मामलो पर विचार करते है।

अध्यक्ष द्वारा बैंक के अन्य अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है और वह उसके कार्य का निर्देशन एवं निरीक्षण करता है।

(3) सलाहकार परिषद् :- बैंक द्वारा कम से कम सात सदस्यों की एक सलाहकार परिषद् की नियुक्ति की जाती है जिसमे बैंकिग, व्यापार, उद्योग, श्रम तथा कृषि क्षेत्र के विशेषज्ञ होते है। इस परिषद् मे बैंक अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के विशेषज्ञों का सहयोग भी प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। परिषद् की साधारणतया वर्ष में एक बैठक होती है, परन्तु आवश्यकता पड़ने पर अधिक बैठके बुलाई जा सकती है। इसकी बैठक बुलाने सम्बंधी सारा खर्च (सदस्यों का यात्रा-व्यय, भत्ता, आदि सहित) बैंक उठाता है।

(4) ऋण समितियां :- सदस्यों द्वारा मांगे गए ऋणों की उपयुक्तता की जाँच करने के लिए समय-समय पर विश्व बैंक ऋण समितियां नियुक्त करता रहता है। इन समितियों में विश्व बैंक के एक या दो सदस्य होते है जो सम्बन्धित उद्योग अथवा योजना (जिसके लिए ऋण की मांग की गई है) के विशेषज्ञ होते है। एक विशेषज्ञ की नियुक्ति उस देश का प्रतिनिधि गवर्नर करता है जिसने ऋण की मांग की है। यह समितियां यथासमय अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करती है जिनके आधार पर बैंक ऋण देने सम्बन्धी निश्चय करता है।

(5) विशिष्ट उद्देश्यों के लिए निर्मित विभिन्न समितियां :- प्रशासकीय मण्डल द्वारा विभिन्न कार्यों को संपादित करने के लिए, अन्य समितियां भी गठित की गई है जिनमे प्रमुख है : विकास समिति, संयुक्त अंकेक्षण समिति, लागत और बजट समिति, कार्मिक नीति समिति, संचालको की प्रशासकीय, मामलो की समिति तथा मण्डल कार्यनीति की तदर्थ समिति इत्यादि ।

विश्व बैंक के कार्य

(A) ऋण देना :- बैंक के समझौता पत्र में स्पष्ट उल्लेख है कि बैंक को केवल उत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना चाहिए, तथा इस ऋण के फलस्वरूप विकासशील देशों में आर्थिक विकास प्रोत्साहित होना चाहिए, प्रत्येक ऋण या तो देश की सरकार को दिया जाता है अथवा सम्बन्धित देश की सरकार द्वारा ऋण की गारण्टी दी जानी चाहिए । ऋण की विस्तृत कार्यप्रणाली इस प्रकार है :

(i) विश्व बैंक की ऋण देने की कार्यप्रणाली :- सामान्य रूप से बैंक दीर्घकालीन और मध्यमकालीन अवधि की परियोजनाओं एवं विनियोग के लिए ऋण देता है। बैंक निम्न तीन प्रकार से ऋण देने की व्यवस्था करता है

(a) अपने स्वयं के कोषों से ऋण देता है

(b) मुद्रा बाजार से ऋण लेकर सदस्य देशों को ऋण देता है

(c) बैंक उन ऋ‌णों की पूर्ण अथवा आंशिक रूप से गारण्टी देता है जो विनियोग एजेन्सियो अथवा निजी विनियोजको द्वारा दिए जाते हैं।

(ii) ऋण देने की विधि :- ऋण देते समय विश्व बैंक निम्न चार अवस्थाओं से क्रमशः गुजरता है :

(a) प्रथम अवस्था में ऋण मांग करने वाले देश की भुगतान क्षमता की जाँच की जाती है। विशेष रूप से यह देखा जाता है कि आवेदक देश में ऋण के उचित प्रयोग की क्षमता है तथा ण की वापसी एवं ब्याज के भुगतान में कोई कठिनाई नहीं होगी।

(b) द्वितीय अवस्था में विश्व बैंक के विशेषज्ञ उस देश में जाकर उस परियोजना की जांच करते है जिसके लिए ऋण मांगा जा रहा है।

(c) तीसरी अवस्था में ऋण की शर्तों को तय किया जाता है अर्थात विश्व बैंक कुल विनियोग का कितना प्रतिशत ऋण देगा, ऋण की अवधि तथा ब्याज की दर क्या होगी।

(d) चौथी तथा अन्तिम अवस्था में बैंक णों के प्रयोग पर दृष्टि रखता है तथा आवश्यकतानुसार निर्देश भी देता है। ।

(iii) ऋण देने सम्बन्धी शर्ते :- ऋण देते समय अथवा ऋण की गारण्टी देते समय विश्व बैंक निम्न शर्तों का ध्यान रखता है :-

(1) यह देखा जाता है कि ऋण लेने वाला देश किस सीमा तक अपने दायित्वों को पूरा करेगा। भुगतान क्षमता की जांच की जाती है।

(2) ऋण की गारण्टी देते समय विश्व बैंक अपने जोखिम के लिए उचित क्षतिपूर्ति ऋणी देश से लेता है।

(3) बैंक द्वारा ऋण उसी समय स्वीकृत किया जाता है जब बैंक इस बात से सन्तुष्ट हो जाता है कि ण की मांग करने वाले देश को उचित शर्तों पर अन्य स्त्रोतों से ण नहीं मिल सकता है।

(4) विश्व बैंक किसी परियोजना के विदेशी विनिमय भाग की पूर्ति के लिए ही ण देता है।

(5) कुछ अपवादो को छोड़कर विश्व बैंक पुनर्निर्माण और विकास की विशेष परियोजनाओं के लिए ही ण देता है।

(6) विश्व बैंक ऋणों का भुगतान एकमुश्त न करके ऋणी देश के नाम बैंक में खाता खोल देता है जिसमे से णी देश आवश्यकतानुसार राशि निकाल सकता है।

(iv) ब्याज की दर :- विश्व बैंक द्वारा जो ऋण दिए जाते है उस पर ब्याज की दर प्रति 6 माह के लिए निर्धारित की जाती है। जिस ब्याज की दर पर विश्व बैंक ऋण लेता है, उसकी तुलना में वह ऋण लेने वाले देशो से 0.5% ब्याज की दर अधिक लेता है।

(v) ऋण की सीमा :- बैंक किसी भी परियोजना में होने वाले पूरे व्यय की राशि ऋण के रूप में नहीं देता वरन् बैंक द्वारा स्वीकृत योजना के सम्पूर्ण व्यय का वह भाग ऋण के रूप में दिया जाता है जो विदेशों से माल खरीदने के लिए व्यय किया जाता है, किंतु यह भाग कुल लागत के 50% से अधिक नहीं होना चाहिए। णी देश को ण का भुगतान उस मुद्रा में करना होता है जिसमे वह ऋण लिया गया था।

(B) गारण्टी देना- विश्व बैंक का दूसरा कार्य है गारण्टी देना। बैंक सदस्य देशो के लिए अन्य वित्तीय संस्थाओ (बैंको आदि) से ऋण की व्यवस्था करवा सकता है और उनके द्वारा दिए जाने वाले णों के समय पर भुगतान की गारण्टी करता है। बैंक प्रत्येक गारण्टी पर कमीशन लेता है। बैंक के समझौता पत्र के अनुसार अपने कार्यकाल के पहले दस वर्षों में उसके लिए प्रत्येक गारण्टी के लिए कम से कम 1 प्रतिशत और अधिक से अधिक 1.5 प्रतिशत गारण्टी कमीशन लेना आवश्यक था। यह कमीशन बिना चुकाई हुई ण राशि पर लिए जाने की व्यवस्था है। दस वर्ष की अवधि के बाद बैंक को इस कमीशन की राशि में परिवर्तन करने का अधिकार दिया गया था। विश्व बैंक ने आरम्भ से ही इस कमीशन की दर 1 प्रतिशत रखी और उसमे परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं समझी गई।

बैंक 1949 से ही णो तथा ऋणपत्रों की गारण्टी करता रहा। गारण्टी कार्य पिछले कुछ वर्षों में सर्वथा समाप्त हो गया है क्योंकि 1986 के पश्चात् एक भी ण की गारण्टी नहीं दी गई। इसके दो कारण है - एक तो विश्व बैंक के दो सहयोगी, अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम और अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ ने अविकसित देशों के उद्योगों को पर्याप्त मात्रा में दीर्घकालीन ण पूंजी देनी आरम्भ कर दी है, दूसरे अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग बढ़ जाने से बड़े देश विश्व बैंक की गारण्टी के बिना ही विदेशों में ऋण देने लगे है।

(c) प्राविधिक सहायता :- बैंक का तीसरा कार्य है प्राविधिक सहायता की व्यवस्था करना। इस कार्य की पूर्ति के लिए बैंक ने यह निश्चित किया है कि अविकसित सदस्य देशों के विस्तृत आर्थिक सर्वेक्षण किए जाय जिससे उन देशों के प्राकृतिक साधन, आर्थिक एवं औद्योगिक सम्भावनाएं, परिवहन के साधन, आदि की एक साथ ही पूर्ण जानकारी हो जाय। सम्पूर्ण आर्थिक सर्वेक्षण के अतिरिक्त बैंक अपने विशेषज्ञों को विभिन्न नियोजन कार्यों में सहायता देने के लिए सदस्य देशों में भेजता रहता है। यह विशेषज्ञ आर्थिक, वैज्ञानिक, प्राविधिक अथवा अन्य कार्यों में सहायता देते है। बैंक द्वारा अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले आर्थिक सर्वेक्षणों तथा अनुसन्धानों में सहयोग प्रदान किया जाता है। अनेक अफ्रीकी एवं अन्य देशों के आर्थिक सर्वेक्षण प्रकाशित किए जा चुके है।

(D) प्रशिक्षण व्यवस्था :- नियोजित आर्थिक विकास आज का युगधर्म बन गया है और प्रत्येक देश के विभिन्न क्षेत्रो में योजनाओं का संचालन करने के लिए प्रशिक्षित अधिकारियो की आवश्यकता है। विश्व बैंक ने इस आवश्यकता को ध्यान में रखकर 1 जनवरी 1949 को सदस्य देशों के वरिष्ठ अधिकारियों के लिए एक वर्षीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आरम्भ किया। 1950 से कनिष्ठ कर्मचारियों के लिए भी लोक वित्त तथा हिसाब किताब ठीक ढंग से रखने के लिए प्रशिक्षण कार्य आरम्भ किए गए।

आर्थिक विकास विद्यालय : उपर्युक्त दो प्रशिक्षण योजनाओं के अतिरिक्त विश्व बैंक ने 1955 में एक आर्थिक विकास संस्थान की स्थापना की जिससे सदस्य देशों के वरिष्ठ कर्मचारियों को नियमित रूप से विकास कार्यों से सम्बन्धित क्षेत्रो में गहन प्रशिक्षित किया जा सके।

(E) अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का निपटारा :- एक अन्तर्राष्ट्रीय निष्पक्ष संगठन होने के नाते विश्व बैंक एक ऐसी संस्था बन गई है जिसे अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक समस्याएँ सुलझाने के लिए मध्यस्थ बनाया जा सकता है। इस दिशा में बैंक के दो कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण है:-

(a) भारत-पाक नहरी पानी विवाद :- भारत का विभाजन होने से भारत और पाकिस्तान में पंजाब की नदियों के जल विभाजन सम्बन्धी विवाद उत्पन्न हो गया था जो क्रमशः गम्भीर रूप धारण कर गया। अन्ततः विश्व बैंक की इस विवाद में मध्यस्थता से 1951 में दोनों देशों के अधिकारियों के बीच वार्ता आरम्भ हुई और 1954 में बैंक ने दोनों देशों के सामने सिन्धु घाटी के जल विभाजन सम्बन्धी योजना प्रस्तुत की। विचार करते-करते अन्त में 19 जनवरी 1960 को इस विवाद का निपटारा हो गया और दोनों के बीच एक महत्त्वपूर्ण समस्या का अन्त हो गया।

(b) पर्यावरण संरक्षण :- विश्व बैंक ने विश्वविकास रिपोर्ट 1992 में स्पष्ट किया कि पर्याप्त पर्यावरण संरक्षण के बिना विकास का उद्देश्य सीमित हो जाता है।1992 से विश्व बैंक ने विश्व पर्यावरण सुविधा प्रारम्भ की है।

आलोचनाएं

(1) ऊँची ब्याज दर :- आलोचको के अनुसार बैंक की ब्याज दर ऊँची है। बैंक विशेष रूप से पिछड़े देशों के आर्थिक पुनरुत्थान के लिए ण देता है। अतः ऐसे देशों के सन्दर्भ में बैंक की ब्याज की दर काफी अधिक है। विश्व बैंक द्वारा लिए जाने वाले ब्याज में तीन बातों का समावेश होता है- प्रथम, बैंक को ब्याज का भुगतान कर बाजार से ऋण लेना होता है, द्वितीय, बैंक सब प्रकार के णो पर क्षतिपूर्ति के लिए 1% कमीशन लेता है; तीसरे बैंक 1/4 से 1% तक वसूली प्रशासनिक लागत और निधि कोष के लिए करता है। इसे दृष्टि में रखते हुए बैंक रियायती दर पर ऋण नही दे पाता। अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA) की स्थापना से ऊँची ब्याज की शिकायत काफी हद तक दूर हो गई है। IDA विश्व बैंक की रियायती ऋण की खिड़की के रूप में जाना जाता है।

(2) अपर्याप्त सहायता :- आलोचको का यह भी मत है कि विकासशील देशों की भारी आवश्यकताओ को देखते हुए, उनके लिए विश्व बैंक द्वारा दी जाने वाली सहायता अपर्याप्त है।

वर्तमान में उक्त आलोचना सही नहीं है, क्योंकि बैंक ने उक्त सीमा को स्वीकार कर अपनी पूंजी में वृद्धि की है तथा सदस्य देशों का अम्यंश बढ़ा दिया है। यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि बैंक कुछ निश्चित उत्पादक योजनाओं के लिए ऋण देता है अतः देशों को भी हर प्रकार की परियोजना के लिए बैंक से ऋण की आशा नहीं करनी चाहिए।

(3) पुनः भुगतान क्षमता पर अधिक जोर :- बैंक की यह भी आलोचना की जाती है कि ऋण देने के पूर्व बैंक सम्बन्धित देश की भुगतान क्षमता पर अधिक बल देता है। पिछड़े देशो को सहायता देते समय इस प्रकार, की शर्त नहीं लगाई जानी चाहिए। किंतु बैंक के समर्थक कहते है कि बैंक की पूँजी को सुरक्षित रखने के लिए यह आवश्यक है।

(4) कार्यों में विलम्ब एवं जटिलताएं:- यह भी आलोचना की जाती है कि बैंक की ऋण देने की प्रक्रिया जटिल है एवं इसमे काफी विलम्ब लगता है तथा इसमें विकासशील देशों को ण प्राप्त करने में कठिनाई होती है। किंतु यह आलोचना भी सही नहीं है क्योंकि विश्व बैंक 184 देशों का बैंक है और उसके विस्तृत कार्यक्षेत्र को देखते हुए कुछ विलम्ब होना स्वाभाविक है।

(5) पक्षपातपूर्ण व्यवहारः- विश्व बैंक पर अमेरीका एवं ब्रिटेन सरीखे कुछ विकसित देशों का अधिक प्रभाव है। बैंक के मताधिकार का लगभग 43% विश्व के पाँच बड़े देशों के हाथ में है। बैंक के प्रबन्ध विभाग एवं अन्य सहयोगी कर्मचारियों में अधिकांश अमरीका तथा यूरोप के है। इस प्रकार बैंक पर राजनीतिक प्रभाव अधिक है।

(6) ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी हटाने में असफल एवं पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव :- आलोचकों का कहना है कि विश्व बैंक की ऋण नीति विकासशील देशों के ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी दूर करने में असफल रही है, जिससे इन, देशो की गरीब जनसंख्या को आधारभूत आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए प्राकृतिक साधनों पर निर्भर रहना पड़ा है जिससे पर्यावरण पर कुप्रभाव पड़ा है। विश्व बैंक द्वारा प्रायोजित आर्थिक विकास पर्यावरण को कमजोर करने के मूल्य पर प्राप्त हुआ है। किंतु, वर्तमान में बैंक द्वारा पर्यावरण संरक्षण हेतु किए गए उपायो को देखते हुए इस आलोचना की उचित नहीं कहा जा सकता।

निष्कर्ष

उपरोक्त आलोचनाओ के बावजूद इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि अर्द्ध-विकसित देशों के आर्थिक विकास का पथ प्रशस्त करने में बैंक ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। यह विश्व बैंक की सहायता का ही परिणाम है कि पहले की बंजर जमीन अब फसलो से लहलहा रही है, विश्व बैंक के पूर्व अध्यक्ष ब्लेक के शब्दों में, "संसार के कम विकसित देशो के लिए विश्व बैंक एक अपूर्व सहारा है। बैंक का उद्देश्य ऐसी व्यवस्था और विचारधारा का निर्माण करना है जिससे समृद्धि केवल कल्पना न रहकर ठोस और साकार बन जाए"।

विश्व बैंक एवं भारत

स्वतन्नता प्राप्ति के बाद भारत के प्रारम्भिक आर्थिक विकास में विश्व बैंक की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। एशियाई राष्ट्रों में पहला ऋण विश्व बैंक द्वारा 1949 में भारत को ही दिया गया। बैंक के भारत के साथ दीर्घ एवं रचनात्मक सम्बंधो ने विश्व बैंक को एक विकास संस्था के रूप में विकसित होने में काफी सहायता की है। भारत विश्व के प्रारम्भिक सदस्यों में से एक है। शुरू में भारत का अम्यंश 400 मिलियन डालर था एवं उसका नाम अधिकतम पूँजी वाले 5 देशों में शामिल था जिससे भारत को विश्व बैंक में एक स्थायी कार्यकारी संचालक नियुक्त करने का अधिकार मिल गया था। किंतु अब अन्य देशों का अम्यंश भारत से अधिक हो जाने के कारण प्रथम 5 देशो में भारत का स्थान नहीं रह गया है। वर्तमान में भारत का अम्यंश 5.404 मिलियन डालर है जिसमे से बैंक को प्रदत्त राशि 333.7 मिलियन डालर है तथा शेष 5,070 मिलियन डालर मांग के अन्तर्गत है।

विश्व बैंक ने गुजरात भूकम्प से हुई बर्बादी से उबरने के लिए 300 मिलियन डालर की तात्कालिक सहायता दी थी तथा अगले छ: माह में बैंक द्वारा सरकार को गुजरात के पुनर्निर्माण के लिए पुनः सहायता उपलब्ध कराने का प्रस्ताव किया गया था।

विगत वर्षों में भारत को जिन योजनाओं के लिए ण मिले है, उनमें से मुख्य निम्न प्रकार है।

(1) रेल व्यवस्था का नवीनीकरण एवं विस्तार

(2) टाटा लोहा एवं इस्पात तथा भारत के लौह एवं इस्पात कम्पनी

(3) चम्बल घाटी क्षेत्र तथा राजस्थान नहर क्षेत्र का विकास

(4) दामोदर घाटी निगम विद्युत परियोजना

(5) एयर इण्डिया द्वारा हवाई जहाजों का क्रय

(6) हल्दिया बन्दरगाह का निर्माण तथा चेन्नई एवं कोलकाता बन्दरगाहो का विकास

(7) विद्युत शक्ति विस्तार परियोजनाएं

(8) औद्योगिक सारव एवं विनियोग निगम की कार्यशील पूंजी में वृद्धि

(9) कृषि विकास हेतु ऋण (10) निजी क्षेत्र में कोयला उद्योग के विकास हेतु

(11) ट्राम्बे धर्मल पावर स्टेशन की स्थापना हेतु ण ।

भारत को सबसे अधिक ऋण रेलवे विकास के लिए दिए गए। इसके बाद क्रमशः विद्युत उत्पादन, उर्वरक कारखानों एवं कृषि एवं सिचाई का क्रम आता है।

विश्व बैंक ने भारत की दूसरी एवं तीसरी पंचवर्षीय योजना में आर्थिक सहायता देने के उद्देश्य से 1958 में भारत सहायता क्लब की स्थापना की जिसमे विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ के अतिरिक्त दस राष्ट्र है। ये राष्ट्र है- सयुंक्त राज्य अमेरिका, इंगलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, जापान, आस्ट्रिया, बेल्जियम, इटली तथा नीदरलैण्ड । समय-समय पर क्लब की बैठक होती है जिसमे भारत की सहायता देने पर विचार किया जाता है। वर्तमान में अब भारत सहायता क्लब का नाम बदलकर भारत विकास मंच हो गया है।

विश्व बैंक एवं अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ द्वारा भारत को दिए गए ऋण का विवरण निम्नवत् प्रस्तुत किया जा सकता है:-

भारत का बकाया ऋण (मिलियन अमेरिकी डालर)

वर्ष (मार्च के अन्त में)

आई.डी.ए(रियायती ऋण)

IBRD(गैर रियायती ऋण)

1992

13,974

6,796

1993

15,169

6,947

1994

15,721

7,203

1995

17,438

7,136

1996

17,263

6,938

1997

17,337

6,772

1998

17,541

6,430

1999

18,301

6,062

2000

18,964

5,810

2001

18,811

5,654

2002

19,440

5,742

2003

21,257

4009

जनांकिकी (DEMOGRAPHY)

Public finance (लोक वित्त)

भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)

आर्थिक विकास (DEVELOPMENT)

JPSC Economics (Mains)

व्यष्टि अर्थशास्त्र  (Micro Economics)

समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)

अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)

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