कपट सन्धिपूर्ण अल्पाधिकार या कीमत नेतृत्व (COLLUSIVE OLIGOPOLY)

कपट सन्धिपूर्ण अल्पाधिकार या कीमत नेतृत्व (COLLUSIVE OLIGOPOLY)

उपयोगिता माप की न्यूमैन-मोरगेन्स्टर्न विधि (THE NEUMANN-MORGENSTERN METHOD OF MEASURING UTILITY)

प्रश्न - अल्पाधिकार के बाजार में कीमत नेतृत्व के अंतर्गत कीमत का निर्धारण कैसे होता है?

उत्तर - अल्पाधिकार के अन्तर्गत स्वतन्त्र कीमत निर्धारणं से फर्मों के मध्य परस्पर अविश्वास, अनिश्चितता तथा असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो जाती है। इससे बचने के लिए कभी-कभी अल्पाधिकारी फर्में आपस में कीमत तथा उत्पादन मात्रा के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से समझौता कर लेती हैं तो उसे कार्टेल (Cartel) अथवा उत्पादक संघ कहते हैं। मोटे तौर पर कार्टेल के दो भेद हैं -

(1) पूर्ण कार्टेल एवं लाभ अधिकतमीकरण (Perfect Cartels and Profit Maximisation) - एक ही उद्योग की स्वतन्त्र फर्मों के संगठन को कार्टेल (Cartel) कहा जाता है। कार्टेल के संगठन का उद्देश्य उद्योग की फर्मों के मध्य प्रतियोगी प्रवृत्तियों पर रोक लगाकर फर्मों द्वारा अर्जित लाभ को अधिक करना होता है। कार्टेल की फर्में कीमत उत्पादन तथा विक्रय के क्षेत्रों में समान नीतियों का अनुसरण करती हैं।

दो प्रकार के कार्टेल संगठन उपस्थित होते हैं -

(A) 'लाभ-विभाजन' कार्टेल मॉडल (Profit Sharing Cartel Model)- यह मॉडल कार्टेल की फर्मों के मध्य पूर्ण गठबन्धन (Complete Collusion) को स्वीकार करता है। पूर्ण गठबन्धन के अन्तर्गत सभी फर्में कार्टेल को वस्तु उत्पादन मात्रा एवं कीमत निर्धारण का पूर्ण अधिकार दे देती हैं। कार्टेल फर्मों का उत्पादन कोटा इस प्रकार निर्धारित करता है कि फर्मों का लाभ अधिकतम हो जाए।

कार्टेल अनेक प्लाण्ट वाले एकाधिकारी (Multi-plant Mono- polist) की ही भांति होता है। मांग वक्र एवं सीमान्त आगम वक्र दिए हुए होते हैं। कार्टेल की फर्मों के अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्रों में उद्योग का सीमान्त लागत वक्र प्राप्त किया जाता है। लाभ को अधिकतम करने के लिए कार्टेल की सदस्य फर्मों के मध्य उत्पादन कोटा इस प्रकार बांटा जाता है कि प्रत्येक फर्म के कोटे की सीमान्त लागत दूसरी फर्मों के कोटे की सीमान्त लागत के बराबर हो जाए। अधिकतम लाभ देने वाला कीमत-उत्पादन सम्बन्ध तब उपस्थित होगा जब व्यक्तिगत फर्मों को बांटा जाए।

जहां

SMCA = SMCB = MR1

अर्थात् फर्म A की अल्पकालीन सीमान्त लागत, फर्म B की अल्पकालीन सीमान्त लागत तथा उद्योग का सीमान्त आगम परस्पर बराबर हो जाए।

पूर्ण गठबन्धन कार्टेल को चित्र में दिखाया गया है।

कपट सन्धिपूर्ण अल्पाधिकार या कीमत नेतृत्व (COLLUSIVE OLIGOPOLY)

उद्योग का उत्पादन OQ (= OQA + OQB) पर स्थिर है। MR1 रेखा उद्योग की सीमान्त आगम वक्र रेखा को बताती है। उद्योग का सीमान्त वक्र (ΣMC वक्र) फर्म A तथा B के सीमान्त लागतों- क्रमशः SMCA तथा SMCB के क्षैतिक योग द्वारा प्राप्त किया जाता है। उद्योग में ΣMC तथा MR वक्रों की सहायता से OQ उत्पादन स्तर तथा OP कीमत का निर्धारण होता है। इस OQ उत्पादन को दोनों फर्मों के मध्य बांटने के लिए एक क्षैतिज रेखा इस प्रकार खींची जाती है जिस पर दोनों फर्मों की सीमान्त लागतें - SMCA तथा SMCB परस्पर बराबर हो जाएं। चित्र में यह स्थिति EAQA तथा EBQB द्वारा दिखायी गयी है। इस प्रकार फर्म A तथा B को क्रमशः OQA तथा OQB कोटा निर्धारित किया जाता है। इस दशा में सन्तुलन की शर्त पूरी हो रही है अर्थात्

SMCA = SMCB = ΣMC = MR1

फर्म A के लिए, निर्धारित कोटा = OQA

निर्धारित कीमत = OP अथवा KQA

प्रति इकाई लागत = TQA

प्रति इकाई लाभ = KT

कुल लाभ = RTKP

फर्म B के लिए, निर्धारित कोटा = OQB

निर्धारित कीमत = OP अथवा MQB

प्रति इकाई लाभ = MN

प्रति इकाई लागत = NQB

कुल लाभ = GNMP

(B) बाजार विभाजन हल - दो फर्मों के बीच बाजार बांट की व्याख्या को चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है :

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चित्र में DD' वक्र उद्योग के मांग वक्र को तथा Dd फर्म में मांग वक्र को बतलाता है। प्रत्येक फर्म का सीमान्त आगम वक्र MR द्वारा दिखाया गया है। फर्म के लिए सन्तुलन बिन्दु E पर मिलेगा तथा ऐसी दशा में प्रत्येक फर्म OP कीमत पर OQF मात्रा का उत्पादन करेगी (चित्र में OQF = ½ OQC) | OQF मात्रा पर प्रत्येक फर्म का लाभ KTRP के बराबर होगा। दोनों फर्मे मिलकर उद्योग के लिए OQc मात्रा का उत्पादन करेंगी (उद्योग का सन्तुलन बिन्दु Ec पर दिखाया गया है) तथा बाजार कीमत R'QC (अथवा OP) होगी।

उपर्युक्त मॉडल की व्याख्या में बाजार का बराबर विभाजन मान लिया गया है जो सदैव आवश्यक नहीं। यह सम्भावना है कि उद्योग में दोनों फर्म भिन्न-भिन्न आकार एवं क्षमता वाली हों। ऐसी दशा में बड़े आकार एवं ऊंची क्षमता वाली फर्म बाजार के एक बड़े भाग पर अपना अधिकार करने में सफल हो जाएगी। साथ ही साथ फर्म का स्थानीयकरण (Location) भी फर्म के बाजार विभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(2) अपूर्ण कार्टेल : कीमत नेतृत्व मॉडल - अल्पाधिकार में फर्मों का अपूर्ण गठबन्धन (Imperfect Collusion) कीमत नेतृत्व के आधार पर होता है। कीमत नेतृत्व में उद्योग की सभी फर्में एक चुनी गई फर्म के द्वारा निर्धारित मार्ग का अनुसरण करती हैं। इस प्रकार गठबन्धन में यह समझौता होता है कि फर्में उद्योग की नेता फर्म द्वारा निर्धारित कीमत पर अपनी-अपनी वस्तुएं बेचेंगी।

कीमत नेतृत्व निम्नलिखित दो प्रकार का हो सकता है :

(A) स्थितिमान कीमत नेतृत्व कम लागत फर्म मॉडल- इस प्रकार के नेतृत्व में फर्म का आकार सबसे बड़े आकार का होना आवश्यक नहीं होता बल्कि फर्म अपनी बुद्धिमत्ता के आधार पर कीमत तथा लागत का हिसाब लगाकर कीमत नीति की घोषणा कर देती है। गुप्त समझौते के अनुसार कार्टेल की अन्य सभी फर्में उसका अनुकरण करने लगती हैं। इस प्रकार कार्टेल की न्यूनतम लागत वाली फर्में कार्टेल का नेतृत्व प्राप्त कर लेती हैं।

मान्यताएं

कम लागत फर्म मॉडल निम्न मान्यताओं पर आधारित है :

1. A और B दो फमें हैं।

2. उनकी लागतें भिन्न हैं। A कम लागत फर्म है और B उच्च लागत फर्म है।

3. उनके समरूप मांग और MR वक्र हैं। उनका मांग वक्र बाजार मांग वक्र का 1/2 है।

4. क्रेताओं की संख्या बहुत बड़ी है।

5. बाजार (उद्योग) मांग वक्र की दोनों फर्मों को जानकारी है।

उपरोक्त मान्यताओं के आधार पर दोनों फर्में एक गुप्त समझौता करती हैं जिसके अनुसार उच्च लागत बाली फर्म कीमत नेता फर्म द्वारा निश्चित की गई कीमत का अनुसरण करेगी और बाजार को समान रूप से बांटेगी। दोनों फर्में जिस कीमत नीति का अनुसरण करेंगी उसे चित्र में प्रदर्शित किया गया है। 

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चित्र में दोनों फर्में एकसमान मांग वक्र Dd का सामना करती हैं। पहली फर्म के सीमान्त लागत तथा औसत लागत वक्र क्रमशः SMC₁ तथा SAC₁ तथा दूसरी फर्म के क्रमशः SMC₂ तथा SAC₂ दिखाए गए हैं। फर्म 2 ऊंची लागत वाली फर्म है अतः फर्म 1 बाजार एवं कार्टेल का नेतृत्व करती है। प्रत्येक फर्म के लिए सीमान्त आगम रेखा MR है। कम लागत वाली पहली फर्म OP1 कीमत पर OQ₁ मात्रा का उत्पादन करेगी जबकि ऊंची लागत वाली दूसरी फर्म OP₂ कीमत पर OQ2 मात्रा का उत्पादन करेगी। ऐसी दशा में यदि दूसरी फर्म OP₂ कीमत पर ही स्थिर रहना चाहेगी तो वह अपना विक्रय पूर्ण रूप से खो देगी। अतः बाध्य होकर फर्म 2 को कम लागत वाली फर्म का नेतृत्व स्वीकार करते हुए अपनी कीमत भी OP₁ पर ही निर्धारित करनी पड़ती।

(B) प्रधान फर्म कीमत नेतृत्व मॉडल (Dominant Firm Price Leadership Model)- कीमत नेतृत्व की एक विशिष्ट स्थिति वह होती है जहां उद्योग की एक बड़ी फर्म प्रधान होती है तथा कई छोटी फर्में पाई जाती हैं। प्रधान फर्म समस्त उद्योग के लिए कीमत निर्धारित कर देती है और छोटी उद्योग फर्में जितना चाहें, वस्तु का उतना विक्रय कर सकती हैं शेष बाजार को प्रधान फर्म स्वयं पूरा (cover) करती है। अतः प्रधान फर्म ऐसी कीमत चुनेगी जिसमें उसको अधिक लाभ हो।

मान्यताएं- प्रधान फर्म मॉडल निम्न मान्यताओं पर आधारित हैः

1. अल्पाधिकारात्मक उद्योग में एक बड़ी प्रधान फर्म तथा अनेक छोटी फर्में हैं।

2. प्रधान फर्म बाजार कीमत का निर्धारण करती है।

3. अन्य सभी फर्में विशुद्ध प्रतियोगियों की तरह कार्य करती हैं और वे एक निर्धारित कीमत को स्वीकार करती हैं।

4. केवल प्रधान फर्म ही बाजार मांग वक्र का अनुमान लगा सकती है।

5. प्रधान फर्म अपने द्वारा निर्धारित की गई कीमत पर अन्य फर्मों की पूर्तियों का पूर्वानुमान लगा सकती है।

उपरोक्त मान्यताओं के आधार पर चित्र में प्रधान फर्म कीमत नेतृत्व मॉडल की व्याख्या को प्रदर्शित किया गया ह

कपट सन्धिपूर्ण अल्पाधिकार या कीमत नेतृत्व (COLLUSIVE OLIGOPOLY)

प्रधान फर्म द्वारा निर्धारित कीमत को उद्योग या अन्य फर्में पूर्ण प्रतियोगिता की भांति उसे दिया हुआ मानकर अपना उत्पादन स्तर निर्धारित करती हैं। दूसरे शब्दों में, फर्मों के लिए मांग की लोच पूर्णतया लोचदार होती है। फर्में प्रधान फर्म द्वारा दी गई कीमत के साथ उस बिन्दु पर अपना उत्पादन निर्धारित करेंगी जहां सीमान्त लागत तथा सीमान्त आगम परस्पर बराबर हो जाएं। उद्योग की फर्में (प्रधान फर्म को छोड़कर) पूर्ण प्रतियोगिता की भांति व्यवहार करती हैं जिसके कारण उनका पूर्ति वक्र उनकी सीमान्त लागत वक्र द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। सभी छोटी फर्मों का सामूहिक पूर्ति वक्र उनके सीमान्त लागत वक्रों के क्षैतिज योग द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। चित्र में यह वक्र ΣSMC द्वारा दर्शाया गया है। बाजार का मांग वक्र DD यह बताता है कि विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ता वस्तु की कितनी मात्रा खरीदने को तैयार है। SMC वक्र विभिन्न कीमतों पर छोटी फर्मों द्वारा की गई कुल पूर्ति को बताता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि विभिन्न कीमतों पर DD तथा ΣSMC का अन्तर प्रधान फर्म द्वारा की जा रही पूर्ति को बताता है। चित्र में P₁d प्रधान फर्म का मांग वक्र है। जब प्रधान फर्म OP₁कीमत निर्धारित करती है तो इस ऊंची कीमत पर छोटी फर्मों की ओर से पूर्ति अधिकतम है क्योंकि OP₁ कीमत पर बाजार की कुल मांग P₁A है जो छोटी फर्मों द्वारा पूरी तरह से उपभोक्ता को दी जा रही है।

इस दशा में प्रधान फर्म की पूर्ति शून्य है, यदि प्रधान फर्म की कीमत OP₂ हो जाती है तब इस कीमत पर P2A2 छोटी फर्मों द्वारा पूर्ति की जाएगी तथा बाजार की शेष मांग A2B प्रधान फर्म पूरी करेगी। प्रधान फर्म का मांग वक्र ज्ञात करने के लिए बिन्दु C₂ इस प्रकार चुना जाता है कि P2C2 = A2B, अब दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि OP2 कीमत पर प्रधान फर्म P₂C2 पूर्ति प्रदान करेगी। इसी प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है कि कीमत OP3 पर प्रधान फर्म P₃d वस्तु की मांग को पूरा करेगी।

इस प्रकार P₁dd प्रधान फर्म का मांग वक्र बन जाता है। इस मांग वक्र से सम्बन्धित प्रधान फर्म के सीमान्त आगम वक्र को MRd द्वारा चित्र में दिखाया गया है। प्रधान फर्म को उस विन्दु पर अधिकतम लाभ की प्राप्ति होगी जहां SMCd = MRd

चित्र में यह स्थिति बिन्दु E पर दिखायी गयी है। इस कीमत OP3 पर बाजार की कुल मांग OQ है जिसमें से OMd प्रधान फर्मों द्वारा तथा OMs छोटी फर्मों द्वारा उत्पादित एवं बिक्री की जाएगी।

OQ = OMd (अथवा MsQ) + OMs

कुल मांग = प्रधान फर्म द्वारा पूरी की गई मांग + छोटी फर्मों द्वारा पूरी की गई मांग

यदि प्रधान फर्म वस्तु कीमत OP4 से कम निर्धारित कर दे तो छोटी फर्में बाजार की मांग का कोई भी भाग पूरा नहीं कर पाएंगी तथा उनकी पूर्ति शून्य हो जाएगी। दूसरे शब्दों में, वस्तु की कीमत OP4 से कम निर्धारित होने पर बाजार की सम्पूर्ण मांग प्रधान फर्म द्वारा ही पूरी हो जाएगी।

कीमत-नेतृत्व की सीमाएं (Limitations of Price Leadership)

(1) प्रधान फर्म नीची कीमत का निर्धारण करके छोटी फर्मों को उत्पादन क्षेत्र से बाहर कर सकती है।

(2) कीमत नेतृत्व तभी सफल हो सकता है जब कोई फर्म गैर-मूल्य प्रतियोगिता (Non-price Competition) का सहारा लेकर विज्ञापन आदि न करे। विज्ञापन एवं प्रचार की दशा में कीमत-नेतृत्व टूट जाता है।

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