प्रश्न- कूर्नो द्वारा प्रतिपादित
अल्पाधिकार मॉडल की व्याख्या करे
उत्तर - ऑगस्टीन कूर्नो ने जो एक फ्रेंच अर्थशास्त्री थे, 1838
में अपने द्वि-अधिकार के
सिद्धांत को प्रकाशित किया। परन्तु 1880 तक यह अनदेखा रहा। फिर उसी वर्ष (1880)
वालरस ने अर्थशास्त्रियों का ध्यान कूर्नो के मॉडल की ओर आकर्षित किया। कूर्नो ने द्वि-अधिकार की स्थिति का वर्णन किया। कूर्नो ने दो खनिज
झरनों का उदाहरण लिया जो कि समान है, जिनको दो व्यक्ति चला रहे और खनिज जल को एक
ही बाजार में बेच रहे है। कूर्नो ने सरलता के लिये यह भी माना कि उत्पादक बिना
किसी उत्पादन लागत के खनिज झरनों को चलाकर
पानी बेच रहे है। इस प्रकार कूर्नो के मॉडल में उत्पादन लागत को शून्य मानकर बाजार
के केवल माँग पक्ष का विश्लेषण किया गया है। द्वि- अधिकारियों को खनिज जल की बाजार
माँग का पूरा ज्ञान है- वे माँग वक्र के प्रत्येक बिन्दु का अनुमान लगा सकते है।
इसके अतिरिक्त पदार्थ की बाजार
मांग को रेखीय वक्र से व्यक्त किया गया है अर्थात् दोनों उत्पादक एक सरल रेखा प्रकार
के माँग वक्र का सामना करते हैं।
कूर्नो अपने विश्लेषण का प्रारम्भ इस आधारभूत मान्यता से करते हैं कि प्रत्येक द्वि-अधिकारी का यह विश्वास है कि उसकी क्रियाओं और उसके पदार्थ की बाजार कीमत पर पड़ने वाले प्रभावों से बेखबर हो कर दूसरा उत्पादक उसी मात्रा का उत्पादन करता रहेगा जिसका उत्पादन वह वर्तमान में कर रहा है। दूसरे शब्दों में, उत्पादन मात्रा का निर्धारण करने में, वह अपनी क्रियाओं के प्रति अपने प्रतिद्वंदी की प्रतिक्रियाओं पर कोई ध्यान नहीं देता।
माना कि दोनों उत्पादक जिस माँग वक्र का सामना कर रहे है वह
एक सीधी रेखा MD है। साथ यह भी माना कि ON=ND, प्रत्येक खनिज झरने का
अधिकतम दैनिक उत्पादन है। इस प्रकार दोनों क्षरणों का दैनिक उत्पादन ON+ND = OD
है। चित्र से यह स्पष्ट है कि जब दोनों झरनों के दैनिक उत्पादन ON को बाजार में
बेचने के लिए रखा जाता है तो कीमत शून्य होगी । इस पर यहाँ ध्यान देना चाहिए कि
बाजार में यदि पूर्ण प्रतियोगिता होती तो दीर्घकालीन सन्तुलन कीमत शून्य होती और
वास्तविक उत्पादन ON के बराबर होता। यह इसलिए क्योंकि उत्पादन लागत को शून्य मान लेने
पर पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत भी शून्य होगी। पूर्ण प्रतियोगिता में
दीर्घकालीन सन्तुलन शून्य लाभ पर ही हो सकता है।
कुछ क्षण के लिये मान लीजिए कि दोनों में से एक उत्पादक
एकाधिकारी के रूप में उत्पादन आरम्भ करता है- अर्थात् उसने उत्पादन को पहले प्रारम्भ
किया है। वह प्रतिदिन ON मात्रा का उत्पादन करेगा, जो कि उसका अधिकतम दैनिक
उत्पादन है। ON उत्पादन पर उसके लाभ अधिकतम होगे जो OPKN के बराबर होगे (लागत शून्य होने
के कारण समस्त आय OPKN लाभ होगी)। उत्पादक कीमत OP निर्धारित करेगा। अब माना कि
दूसरा उत्पादक बाजार में प्रवेश करता है और अपने झरने को प्रारम्भ कर देता है। यह
नया उत्पादक देखता है कि पुराना उत्पादक ON मात्रा का उत्पादन कर रहा है। कूर्नो
की आधारभूत धारणा के अनुसार नया उत्पादक यह मान लेगा कि पहला उत्पादक ON = 1/2 OD
मात्रा का उत्पादन करता रहेगा। वह चाहे जितनी भी मात्रा का उत्पादन करे पुराने
उत्पादक की उत्पादन मात्रा इससे प्रभावित नहीं होगी।
इस मान्यता व विश्वास के आधार पर नया उत्पादक जो अपने लिए
सर्वोत्तम निर्णय ले सकता है वह यह है कि KD को अपना माँग
वक्र मान ले। उसका माँग वक्र KD होने की दशा में उत्पादक NH = 1/2 ND
का उत्पादन करेगा। इस समय कुल उत्पादन ON + NH = OH होगा और कीमत गिरकर OP' अथवा HL प्रति इकाई हो
जाएगी। दोनो उत्पादको की OP'LH कुल लाभ प्राप्त होगा जो कि OPKN से कम है। कुल लाभ
OP'LH में से, पहले उत्पादक के लाभ OP'GN होंगे तथा दूसरे उत्पादक के लाभ
NGLH, अब चूंकि दूसरे उत्पादक द्वारा NH उत्पादन करने के कारण
पहले उत्पादक के लाभ OPKN से घटकर OP'GN रह गए है, इसलिए वह स्थिति को पुनः विचार
करेगा। किंतु वह मान लेगा कि दूसरा उत्पादक NH मात्रा का उत्पादन करता रहेगा।
दूसरे उत्पादक द्वारा NH मात्रा का उत्पादन करने की स्थिति में पहला उत्पादक जिस
सर्वोत्तम मात्रा का उत्पादन कर सकता है वह है 1/2(OD-NH)।
अतः वह अपने उत्पादन को कम कर देगा।
अब चूँकि दूसरा उत्पादक पहले उत्पादक द्वारा उत्पादन को घटा देने की क्रिया से चकित हो गया है और वह यह भी देखता है कि उसके लाभ पहले उत्पादक
के लाभों से कम है, इसलिए वह सम्पूर्ण स्थिति पर पुनः विचार करेगा यह विचार करते हुए
कि पहला उत्पादक वस्तु की अपनी नयी मात्रा का उत्पादन करता रहेगा, दूसरा उत्पादक यह
देखेगा कि 1/2(OD-पहले उत्पादक की नयी उत्पादन मात्रा)
का उत्पादन करने पर उसके लाभ अधिकतम हो जाते हैं। दूसरा उत्पादक, इस प्रकार अपने उत्पादन
को बढ़ा देगा। पहले उत्पादक की इस क्रिया से दूसरे उत्पादक के लाभ घट जाएंगे । पहला उत्पादक अपनी स्थिति
पर फोन से विचार करेगा और वह देखेगा कि वह 1/2
(OD- दूसरे उत्पादक का उत्पादन)
के बराबर उत्पादन करके अपने लाभो को बढ़ा सकता
है। उत्पादन मात्रा का परिवर्तन तथा पुनः परिवर्तन करने की यह क्रिया चलती रहेगी और
पहला उत्पादक धीमे-धीमें अपना उत्पादन कम करता रहेगा जबकि दूसरा उत्पादक अपने उत्पादन
को बढ़ाता रहेगा। ऐसा तब तक चलता रहेगा जब तक कि कुल उत्पादन OT नहीं
हो जाता (OT = 2/3 OD) और
दोनों
का उत्पादन एक समान नहीं हो जाता।
इस अन्तिम स्थिति में, पहला उत्पादक OC मात्रा
का उत्पादन करेगा और दूसरा CT
मात्रा का जबकि OC = CT, परिवर्तन तथा पुनः परिवर्तन करने की इस सम्पूर्ण प्रक्रिया
में, प्रत्येक उत्पादक यह सोच लेता है कि उसका प्रतिद्वन्द्वी अपने उत्पादन को वर्त्तमान
स्तर पर बनाए रखेगा और उसमे परिवर्तन नहीं करेगा और फिर हमेशा 1/2 (OD- अन्य उत्पादक का वर्तमान उत्पादन) के बराबर मात्रा का उत्पादन
करके अपने लाभों को अधिकतम
करेगा।
जैसा कि पहला उत्पादक ON = (1/2
OD) मात्रा से उत्पादन प्रारम्भ करता है और निरन्तर उत्पादन में कमी करता रहता है जब तक कि
वह OC तक नहीं पहुँच जाता। पहले उत्पादक का अन्तिम उत्पादन OC के
बराबर होगा :
OD
( 1-1/2-1/8-1/32-----) = 1/3 OD = 1/2 OT
दूसरी ओर, दूसरा
उत्पादक OD की एक चौथाई मात्रा से उत्पादन प्रारम्भ करता है और निरन्तर अपने उत्पादन को बढ़ाता रहता है जब तक कि यह CT के
बराबर नहीं हो जाता। उसका अन्तिम उत्पादन
CT बराबर होगा :
OD ( 1/4+1/16+1/64-----) = 1/3 OD = 1/2 OT
उपर्युक्त दोनों अभिव्यक्तियों को जोड़ने से निम्न दोनों उत्पादको द्वारा कुल उत्पादन प्राप्त होता है।
OD
(1-1/2+1/4-1/8+1/16-1/32+1/16-----) = 2/3 OD = OT
चित्र
से स्पष्ट है कि जब प्रत्येक उत्पादक 1/3 OD का उत्पादन कर रहा है तो प्रतिद्वन्द्वी
के लिए सर्वोत्तम विकल्प 1/2(OD-1/3OD) मात्रा का उत्पादन करना है जो कि 1/3 OD = OC
= CT के बराबर है। इस प्रकार जब प्रत्येक उत्पादक 1/3 OD का उत्पादन कर रहा होता है
जिसके कारण दोनों
का कुल उत्पादन 2/3 OD होता है तो दोनों में कोई भी अपने उत्पादन में और अधिक परिवर्तन
करके अपने लाभों में वृद्धि नहीं कर सकता। इस प्रकार, कूर्नो के द्वि-अधिकार मॉडल में स्थायी संतुलन तब प्राप्त
होता है जब कि कुल उत्पादन OD का 2/3 है और प्रत्येक उत्पादक OD के 1/3 भाग का उत्पादन
कर रहा होता है।
फर्मों की दो से अधिक संख्या में होने की दशा में कूर्नो का मॉडल
कूर्नो कें द्वि अधिकारी समाधान में दो उत्पादन 2/3 OD अर्थात् अधिकतम सम्भव उत्पादक की दो तिहाई मात्रा का उत्पादन करते हैं। उसके समाधान को उन स्थितियों पर भी लागू किया जा सकता है जहाँ विक्रेताओं की संख्या दो से अधिक हो। इस प्रकार इसी तरीके से, यह सिद्ध किया जा सकता है कि बाजार में यदि तीन उत्पादक होंगे तो कुल उत्पादन OD का 3/4 होगा और प्रत्येक उत्पादक 1/4 OD का उत्पादन करेगा। वास्तव में कूर्नो के समाधान में उत्पादको अथवा विक्रेताओं की संख्या तथा उनके द्वारा उत्पादित कुल उत्पादन को एक सामान्य समीकरण के रूप में अभिव्यक्त किया जा सकता है। अतः यदि उत्पादको की संख्या n है तो कूर्नो के समाधान में n उत्पादको द्वारा उत्पादित कुल उत्पादन OD का `\frac n{n+1}` होगा जहाँ OD अधिकतम सम्भव उत्पादन है।
यदि
उत्पादकों की संख्या बहुत अधिक है तो कुल उत्पादन अर्थात् OD (सम्पूर्ण प्रतियोगी
उत्पादन) होगा और कीमत पूर्ण प्रतियोगी कीमत के बराबरा। अनिवार्य
शर्त जिसका पता चलता है, यह है कि: जैसे-जैसे विक्रेताओं की संख्या एक से अनेक की ओर
बढ़ती है तो कीमत एकाधिकार स्तर से निरन्तर गिरती रह कर पूर्ण प्रतियोगिता के कीमत स्तर
तक पहुँच जायेगी और उत्पादको के लिए यह कीमत पूर्णतया निश्चित होगी।
उपर्युक्त
कूर्नो के
अल्पाधिकारी समाधान में उत्पादन लागत को शून्य मान लिया गया है। फिर भी यह ध्यान देने योग्य है कि हम जिस अनिवार्य
निष्कर्ष पर पहुंचे हैं उसमें उस समय भी, कोई परिवर्तन नहीं होगा, जबकि हम उत्पादन
लागत को धनात्मक मान लेंगे। प्रो. चैम्बरलिन ने अपनी पुस्तक 'The Theory of monopolistic competition' में कहा है,
"विक्रेताओं की किसी भी दी हुई
संख्या के लिए द्वि-अधिकार में संतुलन कीमत, स्थिर लागत की
तुलना में ह्मासमान प्रतिफल की दशा में पूर्ण प्रतियोगी कीमत के अधिक निकट होगी और
यह वर्धमान लागत की तुलना में स्थिर लागत की दशा में पूर्ण प्रतियोगी कीमत के निकट
होगी"।
प्रतिक्रिया फलन तथा कुर्नो का द्वि अधिकारी सन्तुलन
द्वि अधिकार के अन्तर्गत सन्तुलन की समस्या का कूर्नो द्वारा
सुझाये गए समाधान को दो फर्मों के प्रतिक्रिया फलनो द्वारा
भी निरूपित किया जा सकता है। कूर्नो
के समाधान की व्याख्या करने के लिए उत्पादन
विषयक प्रतिक्रिया फलनों का प्रयोग किया जाता है। एक उत्पादन प्रतिक्रिया फलन यह बतलाता
है कि अन्य फर्म का उत्पादन दिए हुऐ होने पर एक फर्म का लाभ अधिकतम करने वाला उत्पादन किया होगा। कूर्नो के समाधान के अनुसार एक फर्म अधिकतम लाभ प्राप्ति की उत्पादन
मात्रा ज्ञात करने के लिए कि पूर्ण
प्रतियोगिता के अन्तर्गत निश्चित होने वाली उत्पादन मात्रा के अनुसार मार्केट माँग
में से अन्य फर्म की वर्तमान उत्पादन मात्रा
घटा कर शेष माँग का आधा(1/2) उत्पादन निर्धारित करती है।
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत उत्पादन जिस पर कीमत वस्तु
की सीमांत लागत (MC) के समान होती है अधिकतम उत्पादन मात्रा को व्यक्त करती है। क्योंकि यदि उत्पादन उससे अधिक बढ़ता है तो कीमत वस्तु की MC से
भी नीचे चली जाएगी और इसलिए उत्पादन को उससे अधिक बढ़ाना लाभकारी नहीं होगा। इस
प्रकार किसी फर्म A को अधिकतम लाभ प्रदान करने वाला उत्पादन प्रतिक्रिया फलन निम्न सूत्र द्वारा प्रकट कर
सकते हैं
`Q_a=\frac{Q_D-Q_b}2=\frac{Q_D}2=\frac{1}2Q_b`
जहाँ
Qa = फर्म A का
उत्पादन
QD = पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत वस्तु की उत्पादन
मात्रा
Qb = फर्म B द्वारा उत्पादित वर्त्तमान मात्रा
इसी प्रकार फर्म B का उत्पादन प्रतिक्रिया फलन निम्न प्रकार
लिखा जा सकता है-
`Q_b=\frac{Q_D-Q_a}2=\frac{Q_D}2=\frac{1}2Q_a`
उपर्युक्त दो फलनों को एक साथ हल करने पर हमे दो फर्मों की सन्तुलन उत्पादन मात्राएं प्राप्त
होगी।
उदाहरण के लिए माना कि वस्तु की कीमत तथा उसकी सीमांत लागत
में समानता द्वारा निर्धारित पूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादन मात्रा 90 के समान है। इस पूर्ण प्रतियोगिता सन्तुलन उत्पादन मात्रा
के अनुसार उपर्युक्त प्रतिक्रिया फलन निम्नलिखित है-
`Q_a=\frac{90}2=\frac{1}2Q_b`
`Q_a=45-\frac{1}2Q_b`------(i)
or, `Q_b=45-\frac{1}2Q_a`------(ii)
अब Qb की उत्पादन मात्रा का समीकरण (i) में लिखने पर हमे निम्न प्राप्ता है
`Q_a=45-\frac{1}2\left(45-\frac{1}2Q_a\right)`
Qa = 45-22.5+`\frac{1}4`Qa
Qa - `\frac{1}4` Qa = 45-22.5 = 22.5
`\frac{3}4` Qa = 22.5
Qa = 22.5 x `\frac{4}3` = `\frac{90}3` = 30
समीकरण (ii) में Qa की सन्तुलन उत्पादन मात्रा लिखने पर
Qb
=45 -
अतः
Qa = Qb = 30
प्रतिक्रिया वक्रों द्वारा कूर्नो के द्वि-अधिकारी सन्तुलन की व्याख्या
कूर्नो के मॉडल में चूंकि समायोजक चर उत्पादन है, इसलिए यहाँ उत्पादन प्रतिक्रिया वक्र प्रासंगिक है। यह विशेष ध्यान देने योग्य है कि ये प्रतिक्रिया वक्र उन प्रतिक्रियाओं को नहीं बताते जिनकी विक्रेता अपने प्रतिद्वन्द्वियों से अपेक्षा करते है बल्कि ये तो विक्रेता की स्वयं की प्रतिक्रियाओं को बताते है जो उसके प्रतिद्वन्द्वी की क्रिया के परिणामस्वरूप होती है। इसे चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
चित्र में दो उत्पादको A तथा B के प्रतिक्रिया वक्रो को दिखाया गया है। MN उत्पादक A का उत्पादन प्रतिक्रिया वक्र है और RS उत्पादक B का उत्पादन प्रतिक्रिया वक्र है। उत्पादक A के उत्पादन प्रतिक्रिया वक्र MN से पता चलता है कि उत्पादक B द्वारा उत्पादन में परिवर्तन के कारण उत्पादक A की क्या प्रतिक्रियाएँ होगी अर्थात् A के उत्पादन प्रतिक्रिया वक्र से पता चलता है कि B के प्रत्येक उत्पादन स्तर पर A कितनी मात्रा का उत्पादन करेगा।
यदि B का उत्पादन OB, है तो A का उत्पादन प्रतिक्रिया वक्र MN बताता है कि A का उत्पादन OA2 होगा। इसी प्रकार अन्य उत्पादन स्तरों के विषय में भी कहा जा सकता है। दूसरी ओर A यदि OA2 का उत्पादन करता है तो B के उत्पादन प्रतिक्रिया वक्र RS से पता चलता है कि B का उत्पादन OB2 होगा। इसी प्रकार से अन्य उत्पादन स्तरों के संबंध में भी कहा जा सकता है।
चित्र से यह पता लगता है कि उत्पादन प्रतिक्रिया वक्रों को रेखीय बनाया गया है। इसका कारण यह है कि हम यह मान रहे है कि द्वि-अधिकारी के पदार्थ का माँग वक्र सरल रेखा है और दोनों उत्पादको A तथा B की सीमांत उत्पादन लागत शून्य पर स्थिर है। यह उल्लेखनीय है कि OM उत्पादन एकाधिकारी उत्पादन है क्योंकि उत्पादक A वस्तु की OM मात्रा का उत्पादन तभी करेगा जबकि उत्पादक B का उत्पादन शून्य होगा। पूर्ण प्रतियोगिता की दशाओं में ON मात्रा का उत्पादन किया जाएगा क्योंकि ON उत्पादन पर कीमत शून्य होगी और इसीलिए सीमांत लागत के बराबर होगी जिसको वर्तमान स्थिति में शून्य मान लिया गया है। इस प्रकार जबकि OM एकाधिकारी उत्पादन है, ON पूर्ण प्रतियोगिता उत्पादन है। हम मान लेते है कि A व B दो उत्पादक पूर्णरूप से समान है, इसलिए OR बराबर होगा OM के तथा OS बराबर होगा ON के।
प्रत्येक उत्पादक, पहले की तरह, यह कल्पना कर लेता है कि वह चाहे जिस मात्रा का उत्पादन करे परन्तु उसका प्रतिद्वन्द्वी पदार्थ की वर्तमान मात्रा का उत्पादन करता रहेगा। प्रारम्भ करने के लिये माना कि उत्पादक A पहले उत्पादन प्रारम्भ करता है और इसलिये प्रारम्भ मे एकाधिकारी है। इसलिए, प्रारम्भ में A उत्पादक OM मात्रा का उत्पादन करेगा। अब मान लीजिये कि B भी उद्योग में प्रवेश कर जाता है। 'B' यह मान लेगा कि A अपना उत्पादन OM पर स्थिर रखेगा। B के उत्पादन प्रतिक्रिया वक्र RS से पता चलता है कि A का उत्पादन OM होने पर, वह OB1 मात्रा का उत्पादन करेगा। परन्तु जब A देखता है कि B उत्पादक OB1 मात्रा का उत्पादन कर रहा है तो वह अपने पिछले निर्णय पर फिर से विचार करेगा, परन्तु वह भी यह मान लेगा कि B उत्पादक OB1 मात्रा का उत्पादन करता रहेगा, A उत्पादक के उत्पादन प्रतिक्रिया वक्र NM से पता चलता है कि उत्पादक B के OB1 उत्पादन की प्रतिक्रिया में उत्पादक A मात्रा OA₂ का उत्पादन करेगा। अब जब कि B यह देखता है कि A उत्पादक OA₂ मात्रा का उत्पादन कर रहा है, तो वह अपने उत्पादन को बदलने की सोचेगा, परन्तु मान लेगा कि A उत्पादक OA₂ मात्रा का ही उत्पादन करता रहेगा। उत्पादक B का उत्पादन प्रतिक्रिया वक्र RS बताता है कि उत्पादक A के OA₂ मात्रा का उत्पादन करने पर वह मात्रा OB₂ का उत्पादन करेगा। परन्तु जब A को पता चलता है कि B उत्पादक OB₂ मात्रा का उत्पादन कर रहा है तो वह पुनः अपने उत्पादन का समायोजन अथवा परिवर्तन करेगा और OA3 मात्रा का उत्पादन करेगा। परिवर्तन और पुनः परिवर्तन की यह प्रक्रिया चलती रहेगी जब तक कि ऐसा बिन्दु नहीं आ जाता कि दोनों के प्रतिक्रिया वक्र एक दूसरे को काटते हो और उत्पादक A तथा B क्रमशः OAn तथा OBn मात्रा का उत्पादन कर रहे हो। प्रतिच्छेद बिन्दु पर द्वि-अधिकारी स्थाई सन्तुलन को प्राप्त कर लेते है क्योंकि इस बिन्दु पर पहुंचने के उपरान्त वे अपने उत्पादको में पुनः समायोजन अथवा परिवर्तन नहीं चाहते। B द्वारा OBn का उत्पादन किये जाने पर A का अधिकतम लाभप्रद उत्पादन जैसा कि उसके प्रतिक्रिया वक्र NM से पता लगता है, OAn है। A के द्वारा OAn मात्रा का उत्पादन करने पर B के लिये अधिकतम लाभप्रद उत्पादन, जैसा कि उसके प्रतिक्रिया वक्र RS से पता चलता है, OBn है। इस प्रकार प्रतिक्रिया वक्रों के विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि कूर्नो का समाधान, द्वि-अधिकार में विलक्षण तथा स्थिर सन्तुलन की प्राप्ति को बताता है।
कूर्नो मॉडल का मूल्यांकन
कूर्नो के मॉडल में एक मौलिक त्रुटि है। कूर्नो के अनुसार एक उत्पादक अपनी उत्पादन मात्रा निश्चित करते समय यह मान लेता है कि वह चाहे जो भी उत्पादन निश्चित करे उसकी प्रतिद्वन्द्वी फर्म अपनी उत्पादन मात्रा को वर्तमान स्तर पर स्थिर रखेंगी। उसकी यह गलत मान्यता अथवा धारणा तब भी बनी रहती है जब वह वास्तव में अनुभव करता है कि उसके द्वारा उत्पादन में परिवर्तन के फलस्वरूप प्रतिद्वन्द्वी अपना उत्पादन स्थिर नही रखते बल्कि उसके प्रत्युतर में अपनी उत्पादन मात्रा पर पुनः विचार करके अपनी मात्रा को बदलते है। अतः कूर्नो की मान्यता तर्कसंगत अथवा विवेकशील नहीं है। इसलिए कूर्नो के मॉडल को "No Learning by Doing Model" कहा जाता है।
इसके अतिरिक्त एक उत्पादक द्वारा अपना उत्पादन सम्बंधी निर्णय लेते समय कूर्नो द्वारा यह मान लेना कि वह अपना निर्णय लेते समय अपने प्रतिद्वन्द्वी द्वारा प्रतिक्रिया को ध्यान में नहीं रखेगा, अल्पाधिकार के अन्तर्गत उत्पादकों में परस्पर निर्भरता की उपेक्षा करना है। यह उसके मॉडल की त्रुटि है।
A Mathematical Version of Cournot's Model
Assume that the market demand facing the duopolists is
X = a* + b*P
or, P = a + bx b < 0
Given that X = X1 + X2
`\frac{\partial X}{\partial X_1}=\frac{\partial X}{\partial X_2}=1`
and
the MRs of the duopolists need not be the Same. Actually if the duopolists
are of unequal size the one with the larger output will have the smaller MR.
proof
:- Ri = PXi
P
= a+b (X1+X2) = ƒ (X1+X2)
Thus `\frac{\partial R_i}{\partial X_i}=P+X_i\frac{\partial P}{\partial X_i}`
But `\frac{\partial P}{\partial X_1}=\frac{\partial P}{\partial X_2}=\frac{\partial P}{\partial X}=b`
`\frac{\partial R_i}{\partial X_i}=P+X_i\frac{\partial P}{\partial X}` = P + (Xi) (b)
Given
that p > o while b < o , it is clear that the larger Xi is,
the smaller the MR will be
The
two duopolists have different cost
C1
= ƒ1
(X1) and C2 = ƒ 2
(X2)
The
first duopolist maximises his profit by assuming X2 constant,
irrespective of his own decisions while the second duopolist maximises his
profit by assuming that X1 will remain constant.
The first order condition for maximum profits of each duopolist is
`\frac{\partial\pi_1}{\partial X_1}=\frac{\partial R_1}{\partial X_1}-\frac{\partial C_1}{\partial X_1}=0`
`\frac{\partial\pi_2}{\partial X_2}=\frac{\partial R_2}{\partial X_2}-\frac{\partial C_2}{\partial X_2}=0`
Rearranging
we have
Second
equation is
`\frac{\partial R_1}{\partial X_1}=\frac{\partial C_1}{\partial X_1}`
`\frac{\partial R_2}{\partial X_2}=\frac{\partial C_2}{\partial X_2}`
Solving
the first equation of for X we obtain X1 as a function of X2,
that is, we obtain the reaction curve of firm A. It expresses the output which
A must produce in order to maximise his profit for any giver amount X₂ of his
rival
Solving
the second equation of for X₂ We obtain
X2 as a function of X1, that is, we obtain the reaction
function of firm B.
If
we solve the two equations simultaneously we obtain the Cournot equilibrium,
the Values of X1 and X2 which satisfy both equations, that
is the point of intersection of the two reaction curves.
The
second-order condition for equilibrium requires that
`Each duopolist's MR. must be increasing less rapidly than his MC, that is, the MC must cut the MR from below, for both duopolists.
निष्कर्ष
उपर्युक्त त्रुटियों के बावजूद कूर्नो का मॉडल आर्थिक सिद्धांत में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसका कारण यह है कि द्वि-अधिकार में कीमत-उत्पादक सन्तुलन की व्याख्या करते समय उसने सर्वप्रथम पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार में कीमत व उत्पादन निर्धारण के विषय में विधिवत् मॉडल प्रतिपादित किया। इसके अतिरिक्त उसके मॉडल से एक व्यक्तिगत फर्म की मार्केट शक्ति तथा उसके मार्किट माँग में हिस्से में सम्बंध को व्युत्पादित किया जा सकता है तथा फर्म द्वारा संयोग बना कर एकाधिकारी कीमत व उत्पादन निर्धारित करने की प्रवृत्ति को प्रकट करता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)