कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

प्रश्न :- "कीमत प्रभाव आय तथा प्रतिस्थापन प्रभाव का योगफल हैं"

→ किसी वस्तु के मूल्य के परिवर्तन के फलस्वरूप आय तथा प्रतिस्थापन प्रभावों की व्याख्या करे?

उत्तर :- उदासीनता रेखा प्रणाली के माध्यम से उपभोक्ता संतुलन की अवस्था में तब आता है, जब प्रतिस्थापन की सीमांत पर दो वस्तुओं के कीमत अनु‌पात के बराबर होती है और प्रतिस्थापन की सीमांत दर घटती हुई होती है।

कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

चित्र में E संतुलन बिन्दु है। जिससे यह पता चलता है कि उपभोक्ता संतुलन की अवस्था में OM of X + ON of Y खरीदता है। X की माँग OM मात्रा की है और Y की माँग ON मात्रा की है।

मार्शल की उपयोगिता विश्लेषण का एक मुख्य दोष यह था कि इसने आय में परिवर्तन होने के परिणामस्वरूप माँग से होने वाले परिवर्तन पर उचित ध्यान नहीं दिया।

आय प्रभाव

प्रो हिक्स के अनुसार "यदि वस्तुओं की कीमते यथा स्थिर रहती है, परन्तु उपभोक्ता की आय में परिवर्तन होत है तो वह वस्तुओं की कम या अधिक माँग कर सकता है। और उसकी सन्तु‌ष्टि पहले की अपेक्षा घट या बढ़ सकती है "।

यदि आय प्रभाव को ग्राफ पर दिखाया जाय तो हमें एक रेखा प्राप्त होती है जिसे आय उपभोग रेखा कहते है। यही रेखा आय प्रभाव को व्यक्त करती है।

कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

चित्र में ICC (आय उपभोग रेखा) को दिखाया गया है:- (ⅰ) माना कि दो वस्तुएँ X तथा Y की कीमते दी हुई है तथा वे, स्थिर है (ii) उप‌भोक्ता की द्राव्यिक आय में परिवर्तन होता है। जैसे-जैसे उपभोक्ता की आय में वृद्धि होती है, मूल्य देखा LM अपने आपको समानान्तर रखते हुऐ दाये को खिसकती जाती है। कीमत रेखा LM से L1M1 तथा L2M2 हो जाती है। इन कीमत रेखाओं के सन्दर्भ में उपभोक्ता के सन्तुलन की स्थितियाँ क्रमशः P1, P2 तथा P3 बिन्दु है। इन बिन्दुओं को मिलाने से जो रेखा प्राप्त होती है उसे आय उपभोग रेखा कहते है।

आय प्रभाव धनात्मक हो सकता है या ऋणात्मक सैद्धान्तिक दृष्टि से कुछ दशाओं में वह तटस्थ भी हो सकता है।

एक वस्तु के लिए आय प्रभाव धनात्मक तब कहा जायेगा जबकि उपभोक्ता की आय में वृद्धि के फलस्वरूप वस्तु के उपभोग में भी वृद्धि होती है। यह सामान्य स्थिति है और ऐसी स्थिति में वस्तु को 'सामान्य वस्तु' तथा श्रेष्ठ वस्तु कहा जाता है। अतः एक वस्तु को सामान्य या श्रेष्ठ तब कहा जायेगा जबकि आय प्रभाव धनात्मक हो।

जब X तथा Y दोनों वस्तु‌ओं का आय प्रभाव धनात्मक होता है तो आय उपभोग रेखा (ICC) का ढाल धनात्मक होगा

कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

चित्र में, ऊपर को चती हुई आ उपभोग रेखा बताती है कि आय में वृद्धि के साथ दोनों वस्तुओं X तथा Y का उपभोग बढ़‌ता है अतः दोनों वस्तुएं X तथा Y सामान्य या श्रेष्ठ वस्तुएँ है।

एक वस्तु के लिए आय प्रभाव ऋणात्मक होगा, जबकि उपभोक्ता की आय में वृद्धि के साथ उसके उपभोग में कमी होती है। उनको निम्न कोटि की वस्तुएं कहा जाता है। निर्धन व्यक्तियों के लिए सामान्य वस्तु‌ओं का खरीदना कठिन होता है क्योकि प्राय: इन वस्तुओं की कीमतें ऊँची होती है। परन्तु जैसे उनकी आय बढ़ती है वे निम्न कोटि की वस्तुओं के स्थान पर श्रेष्ठ वस्तुओं का प्रतिस्थापन करने लगते है और इस प्रकार आय में वृद्धि के साथ निम्न कोटि की वस्तुओं का उपभोग कम होने लगती है।

निम्न कोटि की वस्तुओं में ICC या तो पीछे को बाये की ओर झुक सकती है या दाये को झुक सकती है; यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वस्तु X निम्न कोटि की है या वस्तु Y निम्न कोटि की है। इसे चित्र द्वारा स्पष्ट  कर सकते हैं।

कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

यदि X वस्तु निम्न कोटि की है तो चित्र में ICC का ढाल OQ2 तक धनात्मक हैं, अर्थात् वह ऊपर को चढती हुई है जिसका अर्थ है कि आय में वृद्धि के साथ दोनों वस्तुओं X तथा Y के उपभोग में वृद्धि होती है। परन्तु बिन्दु Q2 के बाद से ICC पीछे बाये को झुक जाती है जो कि बताती है कि आय में वृद्धि के साथ बिन्दु Q2 के बाद से वस्तु X का उपभोग घटने लगता है, परन्तु वस्तु Y का उपभोग बढ़ता जाता है। इस प्रकार X एक निम्न कोटि की वस्तु है और Y एक श्रेष्ठ वस्तु है।

यदि Y वस्तु निम्न कोटि की है तो चित्र में ICC का ढाल OQ2 तक धनात्मक हैं, परन्तु बिन्दु Q2 के बाद से यपीछे दाये को झुक जाती है जो कि बताती है कि बिन्दु Q2 के बाद से आय में वृद्धि के साथ वस्तु Y का उपभोग घटने लगता है, परन्तु वस्तु X का उपभोग बढ़ता जाता है। इस प्रकार Y एक निम्न कोटि की वस्तु है और X एक श्रेष्ठ वस्तु है।

बिना तटस्थता रेखाओं तथा मूल्य रेखाओं को दिखाए हुए निम्न कोटि की वस्तुओं की आय उपभोग रेखाओं को चित्र से स्पष्ट कर सकते हैं

कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

चित्र में जब वस्तु X निम्न कोटि की है तो आय उपभोग रेखा की शक्ल ICC1 होगी यह R बिन्दु से बाये की ओर झुकती है। जब वस्तु Y निम्न कोटि की है तो आय उपभोग देखा की शक्ल ICC2 होगी; यह H बिन्दु से दाये की ओर झुकती है।

आय प्रभाव तब तटस्थ कहा जाता है जबकि आय में वृद्धि होने पर वस्तु के उपभोग (मांग) में कोई वृद्धि या कमी नहीं होती है। दूसरे शब्दों में, ऐसी वस्तुएं जिनका तटस्थ आय प्रभाव होता है, उनको तटस्थ वस्तुएँ कहा जाता है।

इसे चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते है

कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

चित्र A में जब वस्तु Y तटस्थ है तो ICC की शक्ल एक पड़ी रेखा होगी जो बताती है कि आय में वृद्धि के साथ Y की मात्रा समान रहती है अर्थात् उसमे न वृद्धि होती है और न कमी, परन्तु वस्तु X की मात्रा बढ़ती जाती है। अतः वस्तु Y एक तटस्थ वस्तु है तथा वस्तु X एक श्रेष्ठ वस्तु है।

चित्र B में जब वस्तु X तटस्थ है तो ICC की शक्ल एक ड़ी रेखा होगी जो बताती है कि आय में वृद्धि के साथ X की मात्रा समान रहती है अर्थात् उसमे न वृद्धि होती है और न कमी, परन्तु वस्तु Y की मात्रा बढ़ती जाती है। अतः वस्तु X एक तटस्थ वस्तु है तथा वस्तु Y एक श्रेष्ठ वस्तु है।

प्रतिस्थापन प्रभाव

"केवल सापेक्षिक कीमतों में परिवर्तन के परिणामस्वरूप किसी वस्तु के उपभोग (माँग) में परिवर्तन को प्रतिस्थापन प्रभाव कहा जाता है, जबकि उपभोक्ता की वास्तविक आय स्थिर रहती है"

कीमतों में केवल सापेक्षिक परिवर्तनों के प्रभाव को तब मालूम किया जा सकेगा जबकि आय प्रभाव को समाप्त किया जाये। यह तब होगा, जब उपभोक्ता की द्राव्यिक आय में परिवर्तन किया जाय। इसे अर्थशास्त्रियों ने आय में क्षतिपूरक परिवर्तन कहा है।

प्रतिस्थापन प्रभाव के दो रूप में व्याख्या की जाती है जो निम्नलिखित है।

(a) हिक्स का प्रतिस्थापन प्रभाव

हिक्स के अनुसार प्रतिस्थापन प्रभाव तब उत्पन्न होता है जबकि सापेक्षिक कीमतों में परिवर्तन के परिणामस्वरूप उपभोक्ता पहले की तुलना में न तो अच्छी स्थिति में होता है और न ही खराब स्थिति में अर्थात् वह सस्ती वस्तु को महंगी वस्तु के स्थान पर प्रतिस्थापित करता है। इसे एक चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं-

कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

चित्र में दो वस्तुओं की दी हुई कीमतों तथा उपभोक्ता की दी हुई आय को बजट रेखा PL व्यक्त किया गया है। उपभोक्ता अनधिमान वक्र के बिन्दु Q पर संतुलन में है और वह वस्तु X की OM मात्रा तथा वस्तु Y की ON मात्रा खरीद रहा है। अब यदि X की कीमत घट जाती है (Y की कीमत स्थिर रहती हैं ) जिससे नई बजट रेखा PL' हो जाती है। वस्तु X की कीमत घटने से उपभोक्ता की वास्तविक आय बढ़ जाती है।

प्रतिस्थापन प्रभाव को ज्ञात करने के लिए उपभोक्ता की वास्तविक आय को समाप्त कर दिया जाता है तो बजट रेखा जो PL' हो गई थी, अब नीचे सरक कर AB हो जाएंगी जो PL' के समांतर है और IC वक्र को T बिन्दु पर स्पर्श कर रहा है। जो संतुलन बिन्दु हो जाऐगा BL' अथवा PA उस आय की मात्रा को व्यक्त करता है जो कि वस्तु X की कीमत के घटने से वास्त‌विक आय में वृद्धि को समाप्त कर देती है। अतः यह आय में क्षतिपूरक परिवर्तन है। X वस्तु की कीमत कम होने से उपभोक्ता वस्तु X की मात्रा में मलाMM' वृद्धि करता है तथा वस्तु Y में NN' कमी करता है। यही गति प्रतिस्थापन प्रभाव कहलाती है। अर्थात् संतुलन बिन्दु Q से बिन्दु T तक उपभोक्ता की गति प्रतिस्थापन प्रभात को प्रकट करती है।

अतः स्पष्ट है कि प्रतिस्थापन प्रभाव के परिणामस्वरूप उपभोक्ता समान अधिमान वक्र पर ही रहता है किंतु वह अनधिमान वक्र के एक भिन्न बिन्दु पर सन्तुलन में होता है। किसी वस्तु की अपेक्षाकृत कीमत कम होने पर प्रतिस्थापन प्रभाव के कारण उसकी मांग मात्रा बढ़ती है जबकि संतुष्टि स्तर पूर्ववत् रहता है। इसलिए प्रतिस्थापन प्रभाव सदा णात्मक होता है।

(b) स्लट्स्की का प्रतिस्थापन प्रभाव

स्लट्स्की की पद्धति में उपभोक्ता की आय में परिवर्तन इतनी मात्रा में किया जाता है जिससे उपभोक्ता, यदि वह चाहे तो वस्तुओं का वह संयोग क्रय कर सकता है जो वह पूर्व कीमत पर क्रय कर रहा था। अर्थात् उपभोक्ता की आ में परिवर्तन पूर्व कीमत पर स्तु X की क्रय की जा रही मात्रा की लागत तथा नई कीमत पर उसी मात्रा की लागत में अन्तर के सामान किया जाता है। इस प्रकार स्लट्स्की के प्रतिस्थापन प्रभाव में, आय में परिवर्तन लागत - अन्तर के बराबर किया जाता है न कि क्षतिपूरक परिवर्तन के समान

लागत अन्तर को समझने के लिए उदाहरण का प्रयोग किया जा सकता है :- किसी वस्तु X की कीमत में परिवर्तन को Px द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। यदि एक उपभोक्ता कीमत में परिवर्तन होने से पूर्व वस्तु X की Qx मात्रा रीद रहा है तो कीमत में ∆Px के समान घटने पर QxPx के बराबर लागत अन्तर उत्पन्न हो जाऐगा। अर्थात् अब उपभोक्ता वस्तु की पूर्व मात्रा Qx खरीदने के लिए Qx∆Px के बराबर उस पर कम व्यय करेगा ।

मान लिया कि एक निश्चित आ से उपभोक्ता वस् X की Qx मात्रा तथा वस्तु Y की Qy मात्रा क्रय कर रहा है। अब उपभोक्ता की आय तथा Y स्तु की कीमत स्थिर रहने पर वस्तु X की कीमत Px1 से टकर Px2 हो जाती है तो इससे निम्न लागत - अन्तर उत्पन्न होगा-

Px1Qx - Px2Qx = ∆PxQx

स्लट्स्की के प्रतिस्थापन प्रभाव की व्याख्या दो तरह से होती है-

(i) कीमत में कमी होने पर

इसकी व्याख्या रेखाचित्र द्वारा की जा सकती है

कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

चित्र में एक दी हुई निश्चित आय तथा दो वस्तुओं X और Y की बजट रेखा PL से उपभोक्ता IC1 के बिन्दु Q पर संतुलन में है। जहाँ वस्तु X की OM मात्रा तथा Y का ON मात्रा क्रय करता है। अब यदि X की कीमत घट जाती है तो नई बजट रेखा PL1 प्राप्त होगी। कीमत घटने से वास्तविक आय बढ़ जायेगी। स्लट्स्की का प्रतिस्थापन प्रभाव ज्ञात करने के लिए उपभोक्ता की मुद्रा आय को लागत अन्तर के बराबर घटाया जाऐ जिससे कि वह दो वस्तुओ के अपने पूर्व संयोग Q को यदि वह चाहे तो खरीद सके। ऐसा करने के लिए नई कीमत रेखा GH जोकि PL' के समानान्तर है खींचेंगे जोकि Q बिन्दु से गुजरती है। उपभोक्ता चाहे तो Q बिन्दु पर रह सकता है परन्तु X वस्तु सस्ती हो गई है और Y वस्तु महंगी अतः वह X वस्तु की मात्रा बढाऐगा और Y की घटाऐगा। चित्र में देखा जाये तो GH बजट रेखा को IC2 वक्र स्पर्श कर रहा है अतः उपभोक्ता उच्चे अधिमान वक्र पर जाना चाहेगा जहां वह S बिन्दु पर संतुलन में होगा। अत: कीमत में कमी होने पर स्लट्‌स्की प्रतिस्थापन के प्रभाव में उपभोक्ता वस्तु X की MK मात्रा अधिक और वस्तु Y की NW मात्रा कम खरीदता है।

(ⅱ) कीमत में वृद्धि होने पर

उपर्युक्त रेखा चित्र से स्पष्ट है कि जब X वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तो नई बजट रेखा वास्तविक आघटाने पर या लागत अंतर करने पर GH प्राप्त होती है। इस रेखा से दो अनधिमान वक्र IC2, IC3 स्पर्श कर रही है। उपभोक्ता चाहे तो Q बिन्दु पर संतुलन में रह सकता है। जहां वह X वस्तु की OM मात्रा तथा Y वस्तु की ON मात्रा क्रकरता है। परन्तु उपभोक्ता हमेशा ऊँचा अनधिमान वक्र पर जाना चाहता है अतः वह IC2 से IC3 पर S बिन्दु पर पहुँचता है जहाँ वह संतुलन में है। S बिन्दु पर वह X वस्तु की मात्रा KM घटाता है तथा Y वस्तु की मात्रा NP बनता है। उपभोक्ता का बिन्दु Q से चलकर S बिन्दु को जाना ही स्लट्‌स्की के प्रतिस्थापन प्रभाव का परिणाम है।

कीमत प्रभाव आय तथा प्रतिस्थापन प्रभाव का योग है-

कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप उप‌भोक्ता द्वारा किसी वस्तु की माँगी गयी मात्रा पर कुल प्रभाव को कीमत प्रभाव मापता है।

कीमत प्रभाव दो विभिन्न शक्तियों अर्थात् प्रतिस्थापन प्रभाव और आय प्रभाव का परिणाम है।

कीमत प्रभाव को आय तथा प्रतिस्थापन प्रभाव में विभाजित करने की मुख्यतः दो पद्धतियाँ हैं:-

(ⅰ) हिक्स की रीति

कीमत प्रभाव दो प्रभावो का योग है- प्रतिस्थापन प्रभाव ता आय प्रभाव। दूसरे शब्दों में, कीमत उपभोग रेखा इन दोनों प्रभावों को अपने में शामिल रखती है। कीमत उपभोग रेखा को चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं

कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

रेखाचित्र में संतुलन बिन्दु Q,R,S तथा T को मिलाने से PCC रेखा, प्राप्त होती है जिसे कीमत उपभोग रेखा कहते है।

कीमत उपभोग रेखा यह बताती है कि एक वस्तु X की कीमत में परिवर्तन किस प्रकार से उपभोक्ता के लिए उस वस्तु X की मांग को प्रभावित करती है, जबकि दूसरी वस्तु Y की कीमत तथा उपभोक्ता की द्राव्यिक आय स्थिर रहती है। दूसरे शब्दों में, कीमत उपभोग रेखा कीमत प्रभाव के रास्ते को बताती है।

कीमत प्रभाव को प्रतिस्थापन प्रभाव तथा आय प्रभाव में तोड़ने की हिक्स की रीति को चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं

कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

उपर्युक्त रेखा चित्र में वस्तु X की कीमत घटती है। बजट रेखा PL1 से PL2 हो जाती है। कीमत घटने से वास्तविक आय बढ़ जाती है परन्तु उपभोक्ता से वास्तविक आय कम कर देने पर वह अनधिमान वक्र IC1 पर ही S बिन्दु पर संतुलन में होगा। पहले वह Q बिन्दु पर संतुलित था लेकिन, जब X वस्तु सस्ती हो जाती है तो उपभोक्ता X वस्तु का अधिक क्रय करता है और Y वस्तु के क्रय में कमी करता है। इसलिए प्रतिस्थापन प्रभाव के कारण उपभोक्ता Q से S बिन्दु पर चला आता है।

यदि उस मुद्रा आय की मात्रा को जो उपभोक्ता से ली गई थी उसे पुनः दे दी जाए तो उपभोक्ता अधिमान वक्र IC1 के बिन्दु S पर से चलकर ऊँचे अनधिमान वक्र IC2 के बिन्दु R पर पहुंच जायेगा। जो उसका संतुलन बिन्दु होगा।

इस प्रकार प्रथम प्रतिस्थापन प्रभाव के फलस्वरूप बिन्दु Q से बिन्दु S तक जाना और द्वितीय आय प्रभाव के फलस्वरूप उसका बिन्दु S से बिन्दु R तक जाना। अतः स्पष्ट है कि कीमत प्रभाव प्रतिस्थापन प्रभाव और आय प्रभाव का योग है।

रेखा चित्र में वस्तु X की क्रय मात्रा पर विभिन्न प्रभाव इस प्रकार है-

कीमत प्रभाव = MN

प्रतिस्थापन प्रभाव = MK

आय प्रभाव = KN

चित्र में MN = MK+KN

अथवा, कीमत प्रभाव = प्रतिस्थापन प्रभाव + आय प्रभाव

(ⅱ) स्लट्स्की की रीति

कीमत प्रभाव को प्रतिस्थापन प्रभाव तथा आय प्रभाव में तोड़ने में स्लट्स्की की रीति हिक्स की रीति से थोड़ी भिन्न है। इसे चित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते है

कीमत,आय और प्रतिस्थापन प्रभाव (Price, Income and Substitution Effects)

रेखा चित्र में, एक दी हुई कीमत और आय सम्बंधी स्थिति जिसको बजट रेखा PL1 व्यक्त करती है उपभोक्ता अनधिमान वक्र IC1 के बिन्दु Q पर संतुलन में है। अन्य बाते समान रहने पर वस्तु X की कीमत में कुछ कमी होने के कारण बजट रेखा बदल कर PL2 हो जाती है और अब उपभोक्ता अनधिमान वक्र IC3 के बिन्दु R पर संतुलन की स्थिति प्राप्त करेगा। बिन्दु Q से बिन्दु R को उपभोक्ता की कीमत प्रभाव को व्यक्त करता है। प्रतिस्थापन प्रभाव को ज्ञात करने के लिए उपभोक्ता की वास्तविक आय में कम कर दी जाती है। इसके लिए AB जोकि PL2 के समानान्तर है खींची गई है।

उपभोक्ता यदि चाहे तो पूर्व संयोग Q को खरीद सकता है परन्तु वस्तु X वस्तु Y की तुलना में सस्ती है अतः उपभोक्ता Y के स्थान पर वस्तु X का प्रतिस्थापन करेगा। बजट रेखा AB को IC2 बिन्दु S को स्पर्श कर रहा है अतः उपभोक्ता बिन्दु Q से बिन्दु S पर चला आऐगा। इसे ही स्लट्स्की का प्रतिस्थापन प्रभाव कहते हैं।

अब यदि उपभोक्ता से ले ली गई मुद्रा उसको वापस कर दी जाऐ तो वह अनधिमान वक्र IC2 के बिन्दु S से IC3 के बिन्दु R को चला जाऐगा। S से R को यह गति आय प्रभाव को बतलाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि कीमत प्रभाव, प्रतिस्थापन प्रभाव तथा आय प्रभाव का कुल योग है।

निष्कर्ष

इस प्रकार हम देखते है कि वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप उसकी मांग में परिवर्तन की दिशा को समझने के लिए कीमत प्रभाव को उसके दो भागो, आय प्रभाव तथा प्रतिस्थापन प्रभाव में विभाजित करना आवश्यक है। मार्शल ऐसा न कर सका और इसलिए वह निम्न व गिफेन पदार्थों की दशा में कीमत और माँग में सम्बंध की समुचित व्याख्या करने में विफल रहा।

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