माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत (THE MALTHUSIAN THEORY OF POPULATION)

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत (THE MALTHUSIAN THEORY OF POPULATION)

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत (THE MALTHUSIAN THEORY OF POPULATION)

प्रश्न :- माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या यह भारत में लागू होता है।

→ "वर्तमान समय के लिए माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत का आंतक समाप्त हो चुका है"। क्या आप इस कथन से सहमत है।

→ वह कौन से कारण थे जिनसे प्रभावित होकर माल्थस ने अपने जनसंख्या सिद्धांत का प्रतिपादन किया उन्होने अपने जनसंख्या संबंधी विचारों को किस तरह प्रस्तुत किया?

उत्तर :- यद्यपि प्राचीन समय से जनसंख्या की समस्या के बारे में यत्र-तत्र विचार व्यक्त किए गये थे, परन्तु 1798 ई. में जब युवक पादरी थामस राबर्ट माल्थस का एक गुमनाम (anonymous) निबंध, जिसका शीर्षक 'एसे ऑन दी प्रिंसिपिल्स ऑफ पापुलेशन एज इट एफेक्ट्स दी फ्यूचर इंप्रूवमेंट ऑफ सोसाइटी' (Essay on the Principles of Population as it Effects the Future Improvement of Society). प्रकाशित हुआ, जिसने सारे संसार में सनसनी मचा दी तब से जनसंख्या समस्या ने संपूर्ण विश्व का ध्यान आकर्षित किया और एक निश्चित सिद्धांत का रूप धारण किया। चूँकि यह निबंध गुमनाम था, इसलिए निबंध के पाठक अनूठी जिज्ञासा और उत्सुकता के साथ निबंध लेखक की खोज करने लगे। 1803 में इस निबंध का द्वितीय संस्करण प्रकाशित हुआ, जिसमें लेखक का नाम थामस राबर्ट माल्थस (Thomas Robert Malthus) दिया हुआ था। इस निबंध का शीर्षक था 'एन एसे ऑन दी प्रिंसिपिल ऑफ पापुलेशन और ए व्यू ऑफ इट्स पास्ट एण्ड प्रेजेण्ट एफेक्ट्स ऑन हृयूमन हेपीनेस' (An Essay on the Principle of Popula- tion or a View of its Past and Present Effects on Human Happiness)।

थामस राबर्ट माल्थस का जन्म इंग्लैण्ड के रॉकरी (Rockery) में 1776 ई. में हुआ था। उनके पिता थामस डेनियल माल्थस (Thomas Daniel Malthus) स्वयं वकील थे और डेविड हूम और प्रसिद्ध दार्शनिक रूसो के मित्र थे। माल्थस ने उच्च शिक्षा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में प्राप्त की, जहाँ उन्होंने ग्रीक तथा लैटिन भाषाओं और गणित शास्त्र में पुरस्कार प्राप्त किए। 1791 ई. में इन्होंने एम. ए. की उपाधि प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्होंने अपने जन्मस्थान पर गिरिजाघर में कार्य करना आरंभ कर दिया तथा 31 वर्ष की आयु में एक छोटे स्थान के पादरी बने। 1799 ई. में माल्थस यूरोप का भ्रमण करने के लिए गये, किन्तु यूरोप में अशांति होने के कारण केवल फ्रांस, नार्वे, स्वीडन तथा स्विट्जरलैण्ड की यात्रा करके स्वदेश वापस लौट आये। 1804 ई. में उन्होंने विवाह किया। 1805 ई. में वे ईस्ट इंडिया कंपनी के कॉलेज में इतिहास तथा राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्राध्यापक नियुक्त किए गये। इस पद पर उन्होंने मृत्युपर्यन्त कार्य किया, सन् 1834 में माल्थस का स्वर्गवास हो गया।

माल्थस को जनसंख्या संबंधी निबंध लिखने के लिए प्रेरित करने वाले कारक

निबंध लिखने के समय इंग्लैण्ड की जो दशा थी उसने माल्थस के विचारों को बहुत अधिक प्रभावित किया था। उसके विचारों पर प्रभाव डालने वाली मुख्य बातें निम्नलिखित थीं-

1. जनसंख्या की वृद्धि (Increase in Population)- अठारहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में इंग्लैण्ड की कृषि उन्नत अवस्था में थी, परन्तु इसी शताब्दी के अंत में इतना अधिक अर्थिक संकट विद्यमान हो गया था कि देश की जनसंख्या इतनी अधिक प्रतीत होने लगी कि जिसका भरण-पोषण इंग्लैण्ड की भूमि नहीं कर सकती थी। गेहूँ का मूल्य प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा था। लोग बेकार, भूखे और नंगे दिखाई पड़ रहे थे। बीमारी, महामारी और निर्धनता का साम्राज्य चारों ओर था। स्थिति में सुधार करने के लिए अनाज नियम लागू किए जा रहे थे, परंतु स्थिति बिगड़ती जा रही थी। थारांड राजर्स अठारहवीं शताब्दी के अंतिम तीस वर्षों में इंग्लैण्ड की आर्थिक दशा का वर्णन करते हुए लिखते हैं, "कीमतें बढ़ती गयीं और जब यह देश प्रायः सारे सभ्य संसार से युद्ध कर रहा था, तो उसे दुर्भिक्ष के आतंक सहने पड़े। जब तक युद्ध होता रहा, देश बुरी फसलों के उन चक्रों से होकर गुजर रहा था जो अवर्णनीय किन्तु रहस्यमय ढंग से घटित होते थे।" आयरलैण्ड में जनसंख्या उचित सीमा पार कर गयी थी।

2. औद्योगिक क्रांति (Industrial Revolution)- माल्थस का काल औद्योगिक क्रांति के तुरंत बाद का काल था, जिसमें एक ओर तो पूँजीपति वर्ग था और दूसरी और श्रमिक वर्ग। माल्थस ने देखा कि ज्यों-ज्यों औद्योगिक विकास होता जा रहा है, त्यों- त्यों एक ओर पूँजीपतियों और प्रतिभाशाली व्यक्तियों का प्रभुत्व भी बढ़ता जा रहा था, परंतु दूसरी ओर श्रमिक और निर्धन वर्गों में बेरोजगारी, बीमारी और निर्धनता बढ़ती जा रही थी। प्रसिद्ध इतिहासकार थामस ग्रीन ने उन दिनों आयरलैण्ड की दशा का वर्णन करते हुए लिखा है, "कुशासन के अभिशाप के साथ-ही-साथ दरिद्रता का अभिशाप भी जुड़ गया था और यह दरिद्रता देश की जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के साथ बढ़ती गयी, जिसके फलस्वरूप दुर्भिक्ष ने देश को एक नरक कुंड में परिणत कर दिया।"

3. वणिकवादियों और निर्बाधवादियों के विचारों की प्रतिक्रिया (Reactions of Mercantil- ists and Physiocrates) - वणिकवादियों और निर्बाधवादियों द्वारा देश की संपदा और शक्ति को बढ़ाने के हेतु जनसंख्या की वृद्धि पर जोर दिया गया। एडम स्मिथ के समय औद्योगिक क्रांति के दुष्परिणाम सम्मुख नहीं आये थे, अतः उनका ध्यान भी इस ओर न जा सका था। देश की समृद्धि के लिए जनसंख्या की वृद्धि समय के फेर के कारण अनुपयुक्त दिखाई पड़ रही थी।

4. माल्थस पर समकालीन विचारों का प्रभाव (Effects of Contemporary Thinkers)- उपर्युक्त बातों के अतिरिक्त माल्थस पर उस समय के विचारकों के विचारों का भी प्रभाव पड़ा है। माल्थस के समकालीन विचारक नये नये विचार दे रहे थे। उदाहरण के लिए, डेविड हुम ने अपनी पुस्तक 'एसे ऑन दी पापुलेशन ऑफ एनसियेण्ट नेशन्स' (Essay on the Population of Ancient Nations) में कुछ प्राचीन देशों की जनसंख्या का अनुमान लगाया था। टाउनसेण्ड (Townsend) ने 'डिसटेंशन आन दी पुअर ला' (Dissertation on the Poor Law, 1786) नामक पुस्तक में लिखा था कि "जब तक मानवीय विवेक क्रियाशील नहीं होने पाता है, समृद्धि के पश्चात् अत्यधिक जनसंख्या, अभाव तक ऊँची मृत्यु दर का आगमन होता है। सर वाल्टर रेले (Sir Walter Raleigh) ने अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ दी वर्ल्ड' (History of the World-1962) में यह तर्क दिया कि "यदि युद्ध और बीमारियाँ नियंत्रण न लगातीं, तो जनसंख्या इतनी अधिक बढ़ जाती कि उसका भरण-पोषण कठिन हो जाता। "सर मैथ्यू हेल ने अपनी पुस्तक 'दी प्रिमिटिव ओरिजिनेशन ऑफ मेनकाइन्ड' (The Primitive Origination of Mankind) में जनसंख्या संबंधी महत्त्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए। उनका विचार था कि सामान्यतः जनसंख्या में वृद्धि, मृत्यु-संख्या से अधिक होती है और इसे यदि नियंत्रित किया जाये, तो यह बढ़ती ही जाएगी। जनसंख्या के उपचारों के संबंध में मैथ्यू हेल ने अकाल, बाढ़ आदि का उल्लेख किया है। निःसंदेह माल्थस अपने जनसंख्या संबंधी विचारों के प्रतिपादन में पूर्ववर्ती विचारकों से एक बड़ी सीमा तक प्रभावित हुए हैं।

5. गॉडविन की पुस्तक का प्रकाशन (Publication of Godwin Book)- माल्थस के विचारों को प्रभावित करने वाले विद्वानों में विलियम गॉडविन (Willian Godwin) का नाम प्रमुख है। गॉडविन ने अपनी 'इनक्वाइरी कन्सर्निंग पोलीटिकल जस्टिस एण्ड इट्स इन्फ्लूएन्स आन मोरल्स एण्ड हैपीनेस' (Enquiry Con- cerning Political Justice and its Influence on Morals and Happiness) नामक एक उत्तेजनात्मक पुस्तक 1793 ई. में प्रकाशित की, जिसमें उसने मनुष्यों की अप्रसन्नता तथा दुःखों के लिए सरकार को दोषी ठहराया तथा व्यक्तिगत संपत्ति का विरोध किया। गॉडविन को विज्ञान एवं समाज की उन्नति पर पूर्ण विश्वास था। वह बढ़ती हुई जनसंख्या से भयभीत नहीं थे, क्योंकि उनका यह विश्वास था कि मानव समाज के नियम या सिद्धांत जनसंख्या की सदैव उस सीमा से नीचे रखते हैं, जितना कि जीवित रहने के साधन हों। इसी पुस्तक में उसने लिखा कि मनुष्य जाति एक स्वर्ण युग की ओर अग्रसर हो रही है तथा जनसंख्या से लाभ की ही सम्भावना, हानि की नहीं। गॉडविन के इन विचारों का माल्थस के पिता ने समर्थन किया किन्तु स्वयं माल्थस ने विरोध किया। माल्थस ने अपने जनसंख्या निबंध का मुख्य कारण गाडविन के लेख को माना- जैसा कि उसके द्वारा लिखे गये निबंध की भूमिका के निम्नांकित शब्दों से स्पष्ट होता है-

"यह निबंध गॉडविन के निबंध के विषय पर एक मित्र के साथ वार्तालाप के पारिणामस्वरूप लिखा गया। विवाद, समाज की भावी प्रगति के समान विषयों को लेकर शुरू हुआ। लेखक अपने मित्र के समक्ष अपने विचारों को व्यक्त करने की इच्छा से लिखने बैठ गया। कारण यह था कि वह अपने विचारों को वार्तालाप की अपेक्षा लिखकर अधिक स्पष्ट रूप से व्यक्त कर सकता था। परन्तु जब उसने लिखना आरंभ किया, तो उसके मस्तिष्क में ऐसे विचार आये, जो कि पहले कभी नहीं आये थे और इसलिए उसका यह विचार हुआ कि इस प्रकार के मनोरंजक विषय पर थोड़ा-सा प्रकाश डालना भी लोगों को रुचिकर प्रतीत होगा। अतः उसने अपने विचारों को प्रकाशित करने का निश्चय किया।"

गॉडविन की विचारधारा के समर्थक फ्रांस के एक प्रसिद्ध विचारक एवं राजनीतिज्ञकाण्डरसेट (Conderset) भी थे। उनका विचार था कि विज्ञान की सहायता से मनुष्य की तर्कशक्ति का विकास होता है, इसलिए जनसंख्या की वृद्धि किसी भी दशा में हानिकारक नहीं है। काण्डरसेट के शब्दों में, "विज्ञान की सहायता से मानव, निःसंदेह अमर तो नहीं हो गया, किन्तु मानव जीवन को अपरिमित सीमा तक लंबा किया जा सकता है।" संक्षेप में, गॉडविन और काण्डरसेट ने बढ़ती हुई जनसंख्या को मानव जाति की प्रगति बताई।

माल्थस के लिए ये आशावादी विचार चुनौती स्वरूप थे। एक दिन जिस समय माल्थस अपने पिता के साथ चाय पी रहे थे और गॉडविन के इन विचारों 'बढ़ती हुई जनसंख्या देश के हित में है' पर बात कर रहे थे, तब उनके मस्तिष्क में जनसंख्या के सिद्धांत का विचार आया और उन्होंने इस विचारधारा के विरुद्ध एक निबंध लिखा, परन्तु पिता के भय के कारण अपना नाम नहीं दिया, क्योंकि उनके पिता भी आशावादी विचारधारा के थे। बाद में माल्थस ने विभिन्न देशों में भ्रमण करके अनेक आँकड़े एकत्रित किए, ताकि वह इनकी सहायता से अपने सिद्धांत की पुष्टि कर सकें। दूसरे निबंध में उन्होंने विषय-सामग्री को वैज्ञानिक रूप से प्रस्तुत किया और लेखक के रूप में अपना नाम भी दिया। इसी कारण बहुत से अर्थशास्त्री माल्थस के निबन्ध के दूसरे संस्करण को ही प्रथम संस्करण मानते हैं।

कुछ अर्थशास्त्री माल्थस के विचारों को एक निराशावादी व्यक्तिगत निरीक्षण कहकर अवहेलना करते हैं; क्योंकि इनमें केवल निरीक्षणों के निष्कर्षों को ही व्यक्त किया गया है। परन्तु वास्तविकता यह है कि यह निबंध ही जनसंख्या विज्ञान का आरंभिक बिन्दु है। प्रो. जीड के शब्दों में, "एक शताब्दी के बाद भी वाद विवाद की यह प्रतिध्वनि जो इस निबंध ने उत्पन्न की थी, पूर्णतया समाप्त नहीं हुई है।" इस निबंध को एडम स्मिथ का उत्तर भी समझा जा सकता है। वह इसलिए कि एडम स्मिथ ने अपनी पुस्तक का नाम 'ऐन इनक्वाइरी इनटू दी नेचर एण्ड काजिज ऑफ वेल्थ ऑफ नेशन्स' (An Enquiry into the Nature and Causes of Wealth of Nations) रखा था, जबकि जेम्स बोनर (James Bonar) का कहना है कि माल्थस को अपने निबंध का नाम 'ऐन ऐसे ऑन दी काजिज ऑफ पॉवर्टी ऑफ नेशन्स' (An Essay on the Causes of Poverty of Nations) रखना चाहिए था। वस्तुतः माल्थस की पुस्तक एडम स्मिथ के विचारों को चुनौती थी। माल्थस ने अपने अनुभव और निरीक्षण के आधार पर जो निष्कर्ष निकाले हैं, वे 'माल्थस के जनसंख्या के सिद्धांत' नाम से जाने जाते हैं।

माल्थस के सिद्धांत की मान्यताएँ

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है-

1. मानव की काम-वासना यथास्थिर है और इसकी संतुष्टि के परिणामस्वरूप संतानोत्पत्ति आवश्यक है अर्थात काम-वासना और संतानोत्पत्ति में प्रत्यक्ष संबंध है।

2. आर्थिक संपन्नता और संतानोत्पत्ति के मध्य सीधा और घनिष्ठ संबंध है अर्थात् संपन्नता की प्रत्येक वृद्धि संतान उत्पादन और जनसंख्या की वृद्धि को प्रोत्साहित करती है।

3. मनुष्य के जीवित रहने के लिए भोजन आवश्यक है।

4. कृषि में उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होता है।

उपर्युक्त मान्यताओं के आधार पर माल्थस ने जनसंख्या सिद्धांत को इन शब्दों में व्यक्त किया है, "उत्पादन की विधियों की एक दी हुई स्थिति के अंतर्गत जनसंख्या जीवन-निर्वाह के साधनों से अधिक तीव्र गति से बढ़ने की प्रवृत्ति दिखाता है।"

माल्थस द्वारा निकाले गये निष्कर्ष

उपर्युक्त मान्यताओं के आधार पर माल्थस ने निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले-

1. खाद्य-सामग्री में वृद्धि (Increase in Food Supply)- किसी देश की जनसंख्या की सीमा वहाँ पर उपलब्ध खाद्य सामग्री यानी जीवन-निर्वाह के साधन द्वारा निर्धारित होती है। यदि खाद्य सामग्री बढ़ती है तो आबादी भी बढ़ेगी यदि उस पर शक्तिशाली अंकुश नहीं रखा गया। माल्थस के शब्दों में, "अतएव यह उचित रूप से प्रतिपादित किया जा सकता है कि पृथ्वी की वर्तमान औसत व्यवस्था पर विचार करते हुए मानव उद्योग के लिए अत्यन्त अनुकूल परिस्थितियों में भी जीवन-निर्वाह के साधनों में अंकगणित या साध्य श्रेणी से अधिक तीव्रता से वृद्धि करना संभव नहीं होगा।" अर्थात् खाद्य पदार्थों में वृद्धि अंकगणितीय क्रम 1 : 2 : 3 : 4 : 5 : 6 आदि से होती है। इसका कारण उन्होंने कृषि के क्षेत्र में उत्पत्ति द्वास नियम की क्रियाशीलता बताया है। उन्हीं के शब्दों में, "यह उनकी अवश्य मालूम होगा जिनको कृषि संबंधी विषय में थोड़ी-सी भी जानकारी है कि जिस अनुपात में कृषि बढ़ाई जाती है और जो बढ़ोतरी पहली उपज में प्रतिवर्ष होती है, धीरे-धीरे क्रम से घटती चली जाती है।"

2. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in Population)- माल्थस ने बताया कि मानव में अत्यंत तीव्र प्रजननात्मक (Reproductive) प्रेरणा पाई जाती है और उसकी संतानोत्पत्ति की शक्ति असीम है। इसलिए यदि इस प्रवृत्ति में किसी प्रकार की रुकावट न हुई तो किसी देश की जनसंख्या वहाँ के खाद्य-पदार्थों की पूर्ति की तुलना में अधिक तेजी के साथ बढ़ने की प्रवृत्ति रखती है। माल्थस ने कहा, जनसंख्या ज्यामितिक या गुणोत्तर श्रेणी (Geometrical Progression) अर्थात् 1 : 2 : 4 : 8 : 16 :32 आदि के हिसाब से बढ़ती है। स्पष्ट है कि प्रत्येक स्तर पर वृद्धि गुणन के अनुसार होती है।

इस प्रकार, माल्थस के अनुसार खाद्य सामग्री और जनसंख्या की वृद्धि इस प्रकार होती है-

जनसंख्या 1, 2, 4, 8, 16, 32

खाद्य सामग्री 1, 2, 3, 4, 5, 6

माल्थस के सिद्धांत का गणितीय व्याख्या

गुणोत्तर श्रेणी - यदि किसी श्रेणी के पदों का क्रम इस प्रकार है कि दो लगातार पदों का अनुपात समान रहता है तो इस श्रेणी को गुणोत्तर श्रेणी कहते है।

यदि गुणोत्तर श्रेणी की प्रथम राशि a है और सार्व अनुपात r है तो r से गुणा करते जाने पर श्रेणी के अन्य पद प्राप्त किए जा सकते है यथा-

a, ar, ar², ar3 -------- arn-1

"अतः गुणोत्तर श्रेणी का सामान्य पद arn-1 होता है।"

स्पष्टीकरण - यदि प्रारम्भ में जनसंख्या 1 हो तो 25 वर्षों की क्रमिक अवधियों में जनसंख्या क्रमशः इस प्रकार होगी।

प्रारम्भिक जनसंख्या (a) = 1

25 वर्षों की जनसंख्या = a.r = 1 x 2 = 2 [यहाँ r = 2 है ]

इसी तरह अगले 25 वर्ष के बाद की जनसंख्या = ar2 = 1(2)² = 4

अंकगणितीय श्रेणी - संख्याओं का ऐसा समूह जिसमे कि दो निकट के पदों का अन्तर पूरी श्रेणी में समान रहता है। अंकगणितीय श्रेणी कहलाता है।

यदि किसी अंक गणितीय श्रेणी का प्रथम पद a = तथा सार्व अन्तर (common difference) d है तो,

दूसरा पद = a + d

तीसरा पद = a + d + d

चौथा पद = a + d + d + d = a + 3 d

= a+(4-1) d

इसी तरह, nवाँ पद = a + (n-1) d

इसी तरह अन्तिम पद (nवाँ पद) का मूल्य 1= a+(n-1)d

स्पष्टीकरण- माल्थस की धारणा थी कि 25 वर्षों की क्रमिक अवधि‌यों में खाद्यपूर्ति अंकगणितीय श्रेणी में बढ़ती है। अंकगणितीय श्रेणी में यदि सार्व अन्तर d का मान = 1 है तब

प्रारम्भ में खाद्यपूर्ति a = । है

तब 25 वर्षों में खाद्यपूर्ति = a + d = 1+1 = 2 (यहाँ d =1)

अगले 25 वर्षों में = a + 2d =1 + 2 = 3

माल्थस के शब्दों में, "प्रकृति के द्वारा मानवीय आहार धीरे से अकंगणितीय क्रम में बढ़ता है और मनुष्य स्वयं तेजी से गुणोत्तर अनुपात में बढ़ता है। यदि अन्य बातें समान रहें तो जनसंख्या 25 वर्षों में दोगुनी हो जाएगी।" खाद्य सामग्री में वृद्धि दर और जनसंख्या में वृद्धि दर को चित्र 1 और 2 के द्वारा स्पष्ट किया गया है।

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत (THE MALTHUSIAN THEORY OF POPULATION)

3. जनसंख्या और खाद्य सामग्री में असंतुलन (Disequilibrium between Population and Food Supply)- जनसंख्या में गुणोत्तर दर तथा खाद्य सामग्री में समानान्तर दर के अनुसार वृद्धि होने से दोनों में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है। माल्थस ने यह निष्कर्ष निकाला कि 200 वर्षों में जनसंख्या तथा खाद्य सामग्री की पूर्ति के मध्य 9 : 256 का अनुपात होगा, जबकि 300 वर्षों में यह अंतर बढ़कर 4,096 : 13 के अनुपात में हो जाएगा। 2000 वर्षों में तो दोनों के मध्य इतना अधिक अंतर एवं असंतुलन हो जाएगा जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इस प्राकर माल्थस ने जनसंख्या के संबंध में एक निराशामय दृष्टिकोण विश्व के सामने रखा कि यदि जनसंख्या को स्वतंत्रतापूर्वक बढ़ने दिया जाये तो स्वाभाविक परिणाम यह निकलता है कि जनसंख्या खाद्य-सामग्री की पूर्ति की तुलना में अधिक तेजी के साथ बढ़ जाती है जिससे संसार में भुखमरी, कष्ट और निर्धनता का साम्राज्य स्थापित हो जाता है। माल्थस का कहना है कि "प्रकृति की मेज सीमित अतिथियों के लिए ही लगी है इसलिए जो बिना निमंत्रण के आयेगा, उसे अवश्य भूखा मरना पड़ेगा।" इसमें सत्यता का अंश दृष्टिगोचर होता है, क्योंकि प्रत्येक बच्चा जो जन्म लेता है, उसको जीवन-निर्वाह करने के लिए कुछ चाहिए। यदि उसके जीवन-निर्वाह के साधन नहीं हैं तो उसको मरना ही होगा।

माल्थस के शब्दों में, "प्रकृति के द्वारा मानवीय आहार धीरे-धीरे अंकगणितीय क्रम में बढ़ता जाता है और मनुष्य स्वयं तेजी से गुणोत्तर अनुपात में बढ़ता है, यदि अन्य बातें समान रहें।"

माल्थस के सुझाव (SUGGESTION OF MALTHUS)

जनसंख्या व खाद्य सामग्री की पूर्ति की वृद्धि की यह गति भूतकाल में ऐसी ही रही है और भविष्य में भी ऐसी ही बनी रहेगी। परंतु जनसंख्या की तीव्र गति की वृद्धि को दो तरीकों से रोका जा सकता है- प्राकृतिक व कृत्रिम। माल्थस के शब्दों में, "जो निरोध जनसंख्या को जीवन निर्वाह के साधनों के स्तर तक सीमित रखते हैं, वे प्राकृतिक व कृत्रिम है।"

(अ) कृत्रिम अवरोध या प्रतिबंधक निरोध (Preventive Checks)- कृत्रिम अथवा प्रतिबंधक निरोध के अंतर्गत वे सारे उपाय आते हैं जिनका प्रयोग मनुष्य अपने विवेक से जन्म दर को रोकने के लिए करता है, जैसे-बड़ी उम्र में विवाह, संयम का जीवन, ब्रह्मचर्य, विभिन्न प्रकार के सन्तति निग्रह (Birth Control) के साधनों का प्रयोग, आदि।

इस प्रकार कृत्रिम अवरोध के अंतर्गत दो प्रकार के उपाय आते हैं-

(1) नैतिक प्रतिबंध अर्थात् संयम, ब्रह्मचर्य, आदि।

(ii) कृत्रिम साधन, जैसे-संतति निग्रह का प्रयोग। इसे माल्थस ने पाप (Vices) कहा है।

(ब) प्राकृतिक अवरोध या नैसर्गिक निरोध (Positive Checks)- इस प्रकार के प्रतिबंध स्वयं प्रकृति द्वारा बनाए जाते हैं। इन प्रतिरोधों द्वारा समाज में जनसंख्या स्वतः कम हो जाती है। अकाल, महामारी, भूकम्प, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपत्तियाँ, दैवी प्रकोप इनके अंतर्गत आते हैं। माल्थस ने इन्हें कष्ट (Miseries) की संज्ञा दी है। नैसर्गिक निरोध के द्वारा मृत्यु दर में वृद्धि होकर जनसंख्या में कमी होती है और जनसंख्या का खाद्यान्न के साथ संतुलन स्थापित हो जाता है परन्तु यह संतुलन अल्पकालीन होता है, क्योंकि मनुष्य के बढ़ने की स्वाभाविक इच्छा शीघ्र कार्य करने लगती है और जनसंख्या पुनः बढ़कर खाद्यान्न की पूर्ति से अधिक हो जाती है। प्राकृतिक प्रतिबंध पुनः क्रियाशील हो जाते हैं, फलतः पुनः जनसंख्या का खाद्यान्न के साथ संतुलन स्थापित हो जाता है। घटनाओं का यह कुचक्र घटता जाता है जिसमें फंसकर जनसंख्या कष्ट पाती रहती है। इस कुचक्र को माल्यूसियन चक्र (Malthusian Cycle) कहते हैं

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत (THE MALTHUSIAN THEORY OF POPULATION)

(स) माल्थस का विश्वास है कि नैसर्गिक प्रतिबंध जनसंख्या के लिए अधिक कष्टदायक होते हैं। परन्तु यदि मनुष्य स्वयं प्रतिबंधक उपायों के द्वारा जनसंख्या को रोकने का प्रयत्न नहीं करता तो ये प्राकृतिक प्रतिबंध अवश्य क्रियाशील होंगे। इसलिए माल्थस ने सुझाव दिया कि "मानव के कष्टों को दूर करने के लिए जनसंख्या पर कृत्रिम प्रतिबंध लगाना चाहिए।"

माल्थस के शब्दों में, "इस निबंध के प्रथम संस्करण में मैंने यह देखा कि प्रकृति के नियमों से यह स्पष्ट है कि जनसंख्या के बढ़ने पर अवरोध (रोक) अवरोध होना चाहिए। यह उत्तम होगा यदि ऐसी रोक परिवार की कठिनाइयों तथा निर्धनता के भय की दूरदर्शिता से लगाई जाये, न कि वास्तव में दरिद्रता या बीमारी के आ जाने पर। ईसाइयों के लिए मैं कहूँगा कि धार्मिक ग्रन्थ स्पष्ट रूप से बता रहे हैं कि हमारा कर्तव्य है कि हमें अपनी वासनाओं को विवेक की सीमाओं में नियंत्रित रखना चाहिए। यदि हम अपनी वासनाओं की पूर्ति इस ढंग से करते हैं जिसके बारे में विवेक हमें बताता है और यह अंत में हमें कष्ट की ओर धकेल देगा तो यह इस नियम का प्रत्यक्ष उल्लंघन होगा।" अतः माल्थस ने यह सुझाव दिया कि व्यक्ति को स्वयं सजगता से कार्य करना चाहिए ताकि वह स्थिति ही उपस्थित न हो, जबकि स्वयं प्रकृति जनसंख्या को कम करने के लिए क्रियाशील हो उठे। माल्थस के शब्दों में, "प्रत्येक व्यक्ति को स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि वह अपनी गरीबी का कारण स्वयं है। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक अवरोध (Positive Checks) की भयंकरता से बचने के लिए प्रतिबंध निरोधों को अपनाएँ।"

(द) माल्थस का कहना है कि यदि किसी देश में नैसर्गिक प्रतिबंध क्रियाशील हो जाते हैं तो यह इस बात का प्रमाण है कि उस देश में जनसंख्या आवश्यकता से अधिक है। अतः प्राकृतिक शक्तियाँ जनसंख्या को तेजी के साथ बढ़ने से रोक रही है।

संक्षेप में, माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत में तीन बातें प्रकट होती हैं-

(i) प्रत्येक देश की जनसंख्या खाद्य-पदार्थों की पूर्ति की तुलना में अधिक तेजी के साथ बढ़ती है।

(ii) यदि मानव कृत्रिम उपायों द्वारा जन्म दर को कम नहीं करता तो प्रकृति मृत्यु दर बढ़ाकर जनसंख्या पर रोक लगाती है।

(iii) नैसर्गिक प्रतिबंध कष्टदायक होते हैं, इसलिए मानव को प्रतिबंध अवरोध अपनाना चाहिए। माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत को निम्न चार्ट द्वारा स्पष्ट किया गया है-

माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत (THE MALTHUSIAN THEORY OF POPULATION)

माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत की आलोचनाएँ

माल्थस के जनसंख्या के सिद्धांत की तीव्र आलोचनाएँ हुई हैं। आलोचकों में गॉडविन (Godwin), केनन (Cannon).

निकलसन (Nicholson), मॉम्बर्ट (Mombert), ओपनहेम (Oppenheim), इंग्राहम (Ingrham) आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन आलोचनाओं के संबंध में ग्रे (Gray) में लिखा है, "यह सरलतापूर्वक कहा जा सकता है कि अभी तक किसी भी सम्मानीय नागरिक की इतनी बदनामी व आलोचनाएँ नहीं हुई हैं जितनी माल्थस की हुई है।" माल्थस के निबंध के प्रकाशित होते ही गॉडविन ने कहा, "यह काला भयानक राक्षस मानव जाति की आशाओं का गला घोंटने के लिए सदैव तत्पर है।" वास्तव में, माल्थस के सिद्धांत को काले राक्षस की संज्ञा देना उचित नहीं है, जबकि इस सिद्धांत ने वास्तव में मानव जाति की अत्यंत सेवा की है।

1. सिद्धांत की मान्यताएँ ठीक नहीं (Assumptions of the Theory Not Correct) - माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है, जैसे-

(अ) माल्थस का यह विचार ठीक नहीं है कि मानव की काम-वासना यथास्थिर रहती है, क्योंकि जीवन-स्तर उठ जाने पर जब व्यक्ति के पास मनोरंजन के विविध साधन हो जाते हैं तो प्रायः उसकी काम-वासना कम हो जाती है।

(ब) काम-वासना की संतुष्टि और संतानोत्पत्ति में कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता, क्योंकि संतानोत्पत्ति की इच्छा सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक आदि विचारों व परिस्थितियों से प्रभावित होती है। कामेच्छा जन्मजात होती है जिसे सामान्यतः किसी भी प्रकार समाप्त नहीं किया जा सकता। अतः यह आवश्यक नहीं है कि कामेच्छा के साथ-साथ संतानोत्पत्ति की इच्छा भी हो।

(स) जीवन-स्तर ऊँचा होने के साथ संतानोत्पत्ति की इच्छा नहीं बढ़ती, अर्थात् आर्थिक संपन्नता और संतानोत्पत्ति के मध्य प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता क्योंकि जैसे जैसे मनुष्य की आय बढ़ती जाती है, वैसे वैसे उसमें संतानोत्पत्ति की इच्छा कम होती जाती है और वह अपना जीवन स्तर बढ़ाने के लिए देरी से विवाह करने अथवा विवाहोपरांत कम बच्चे उत्पन्न करने के लिए प्रेरित होता है। इंग्लैण्ड और अमेरिका जैसे विकसित देशों में धनोत्पादन तो अत्यधिक हो रहा है किन्तु जनसंख्या में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हो रही है। मॉम्बर्ट (Mombert) के मतानुसार, "आरामदायक वस्तुएँ तथा मानवीय समृद्धि जनसंख्या को नियन्त्रित करने का अच्छा कार्य करती हैं।"

(द) कृषि में उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होने की जो कल्पना की है, वह गलत है, क्योंकि यह नियम कृषि में उसी समय क्रियाशील होता है, जबकि कृषि पद्धति में कोई सुधार नहीं किए जाते। वास्तव में, कृषि में वैधानिक विधियों के प्रयोग से क्रमागत उत्पत्ति ह्यास नियम की कार्यशीलता को स्थगित किया जा सकता है। रासायनिक खाद, सिंचाई के उत्तम साधन, श्रम-विभाजन, परिवहन में सुधार, साधन यंत्रीकरण आदि ने कृषि उत्पादन में कई गुना वृद्धि को संभव बना दिया है। मनुष्य द्वारा कृषि क्षेत्र में की गयी इस अद्भुत उन्नति का अनुमान माल्थस न लगा सके थे। हैने ने ठीक लिखा है, "वह (माल्थस) जानते थे कि क्या हुआ, उन्होंने देखा कि क्या हो रहा था किन्तु अपने परिस्थान (Surroundings) से प्रभावित होने के कारण भविष्य के प्रति उनकी दृष्टि अनुचित रूप से अस्पष्ट थी।"

2. सिद्धांत का गणितात्मक रूप ठीक नहीं (The Mathematical Form of Theory Not Correct)- माल्थस ने जनसंख्या एवं खाद्य सामग्री की वृद्धि में जो गणितात्मक अनुपात स्थापित किया है, वह सही नहीं है, क्योंकि उनके वृद्धि के संबंध में इस प्रकार का कोई निश्चित सूत्र निर्धारित नहीं किया जा सकता। इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता जिससे यह सिद्ध हो कि जनसंख्या ज्यामिति गति से तथा खाद्य-सामग्री अंकगणितीय गति से बढ़ी हो। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि यह आलोचना माल्थस द्वारा दी गयी श्रेणियों का अनुपात का शाब्दिक अर्थ लेने के कारण उपस्थित होती है। वास्तव में, माल्थस ने निबंध के दूसरे संस्करण में यह स्पष्ट कर दिया था कि इन श्रेणियों का प्रयोग केवल उदाहरण के लिए किया और इनको केवल यह बताना था कि किस शीघ्रता से जनसंख्या खाद्य सामग्री से आगे बढ़ जाती है। इसके उत्तर में आलोचकों का कहना है, "माल्थस ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की गणित विद्या की सर्वश्रेष्ठ उपाधि प्राप्त कर रखी थी और वह गणित सूत्रों में बहुत आस्था रखता था, जबकि उसके कुछ समर्थकों का विपरीत विश्वास था।"

आलोचकों का यह भी कहना है कि माल्थस ने जनसंख्या के दूने होने के लिए 25 वर्ष का समय माना है, जबकि यह अवधि 33 वर्ष की होनी चाहिए क्योंकि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में 33 वर्ष का अंतर होता है किन्तु यह तर्क सिद्धांत के मूलभूत निष्कर्ष का खण्डन करने की अपेक्षा उसका समर्थन करता है। माल्थस का संकेत तो केवल प्रवृत्ति की ओर था। यदि यह अवधि 25 वर्ष के स्थान पर 33 वर्ष हो तो ऐसे परिवर्तन का प्रभाव केवल यह होगा कि वृद्धि की गति कुछ मंद पड़ जाएगी किन्तु इसका ज्यामितिक स्वभाव फिर भी बना रहेगा।

3. माल्थस की भविष्यवाणी सही नहीं हुई (Prediction of Malthus Not Correct)- जोड और रिस्ट के शब्दों में, "इतिहास ने उसके भयों की पुष्टि नहीं की है। शायद ही किसी राष्ट्र से यह प्रकट हुआ हो कि वह अति जनसंख्या से पीड़ित है। कुछ देशों में, विशेषतया फ्रांस में, जनसंख्या धीरे-धीरे ही बढ़ी है। अन्य देशों में जनसंख्या की वृद्धि बहुत काफी हुई है परन्तु वहाँ अधिक जनसंख्या की कोई समस्या नहीं है क्योंकि, जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ राष्ट्रीय आय भी बढ़ गयी है।"

4. जनसंख्या की प्रत्येक वृद्धि हानिकारक नहीं होती (Every increase in Population Not Harmful) - माल्थस का यह विचार है कि जनसंख्या की प्रत्येक वृद्धि राष्ट्र के लिए हानिकारक होती है, ठीक नहीं है, क्योंकि यदि किसी देश में जनसंख्या आदर्श बिन्दु से कम है तो जनसंख्या में होने वाली वृद्धि से देश की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय में वृद्धि होती है। ऐसी स्थिति में जनसंख्या में होने वाली वृद्धि राष्ट्र के हित में होती है। अतः यदि जनसंख्या में वृद्धि के साथ देश का कुल उत्पादन भी बढ़ता है तो जनसंख्या की वृद्धि से कोई हानि नहीं है।

5. जनाधिक्य के कारण ही नैसर्गिक नियंत्रण नहीं लगते (Positive Checks Not Due to Over-Population) : माल्थस का यह कहना है कि अधिक जनसंख्या पर प्राकृतिक विपत्तियों का होना अनिवार्य है, ठीक नहीं है, क्योंकि जहाँ जनाधिक्य नहीं है, वहाँ भी ये नैसर्गिक प्रतिबंध अर्थात् प्राकृतिक विपत्तियाँ पाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त जिन देशों में जनाधिक्य है, वहाँ इन विपत्तियों को नियंत्रित करने के उचित उपाय भी किए जा चुके हैं। वास्तव में, प्राकृतिक विपत्तियाँ उत्पादन की अकुशलता, धन का असमान वितरण, चिकित्सा विज्ञान का अपर्याप्त विकास आदि के परिणाम, हैं, न कि जनाधिक्य के।

6. आत्मसंयम कठिन है (Self Restraint is Difficult)- माल्थस ने संयम के लिए जो सिफारिश की है, वह संतोषजनक नहीं है, क्योंकि साधारण व्यक्तियों के लिए ब्रह्मचर्य या आत्मसंयम का प्रयोग असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। सैद्धांतिक दृष्टिकोण से तो आत्मसंयम विचारपूर्ण आदर्श है परंतु व्यावहारिकता में यह उतना ही बड़ा सिरदर्द बन जाता है। जथार और बैरी के शब्दों में, "विवाहित व्यक्तियों को अधिक समय तक संयम से रहने का उपदेश देना भूख दूर करने के लिए पेट काटने के उपाय के समान है।" मनोवैज्ञानिक सर्वेक्षण जो इस संबंध में किए गये हैं, उनसे भी यह पता चलता है कि दीर्घकाल तक संयम का जीवन व्यतीत करने से विवाहित स्त्री और पुरुष के शरीर और मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

7. कुल उत्पादन की उपेक्षा (Total Production Ignored) - माल्थस ने जनसंख्या की तुलना कुल उत्पादन के बजाय केवल खाद्य उत्पादन से की है, जो कि उचित नहीं है। जनसंख्या की तुलना देश के कुल उत्पादन (खाद्यान्नों के उत्पादन, औद्योगिक उत्पादन, आयात, खाद्य सामग्रियों का उत्पादन) से करनी चाहिए, क्योंकि ब्रिटेन जैसे देश, जहाँ खाद्य सामग्री का अभाव है, औद्योगिक वस्तुओं का उत्पादन और निर्यात करता है तथा खाद्यान्न आदि को अपने उपयोग के लिए आयात करता है।

8. अन्य आलोचनाएँ (Other Criticisms)- (अ) माल्थस का सिद्धांत जनसंख्या की वृद्धि का उ त्तरदायित्व निर्धन पर थोपता हैमाल्थस के शब्दों में, "निर्धन व्यक्तियों की दरिदूता का कारण वे स्वयं हैं।" कार्ल मार्क्स तथा अन्य समाजवादी लेखकों ने इस तर्क की घोर निन्दा की है। आलोचकों का कहना है कि अधिक जनसंख्या होना निर्धनता का मुख्य कारण नहीं है, बल्कि निर्धनता के लिए प्राकृतिक व मानवीय साधनों का अनुचित व अपूर्ण विदोहन, आय का असमान वितरण, सरकार की दोषपूर्ण नीति आदि बातें उत्तरदायी होती हैं।

(ब) माल्थस ने अपने सिद्धांत के प्रतिपादन में आगमन प्रणाली (Inductive Method) का प्रयोग किया है अर्थात् उन्होंने कुछ देशों के जनसंख्या संबंधी आँकड़ों के अध्ययन आधार पर ही जनसंख्या का सामान्य सिद्धांत बनाया है परन्तु जो बात कुछ देशों के विषय में सत्य हो सकती है, उसका सभी देशों के विषय में सत्य होना आवश्यक नहीं है।

उपर्युक्त वर्णित आलोचनाओं से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि माल्थस के जनसंख्या के सिद्धांत में कुछ त्रुटियाँ अवश्य रह गयी हैं जिसके कारण इस सिद्धांत को समझने में कुछ भ्रांतियाँ उत्पन्न हो गयी हैं। माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत की कुछ आलोचनाओं को स्वीकार करते हुए प्रो. हैने (Heney) ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक History of Economic Thought' में लिखा है, "निःसंदेह माल्थस की कुछ कमियाँ क्षम्य हैं, क्योंकि ये उसके कथन को स्पष्ट और प्रभावपूर्ण बनाने के प्रयास में हुई हैं, जो उसके सिद्धांत को गलत समझने का एक और कारण माना जा सकता है।"

माल्थस के सिद्धांत में सत्यता का अंश

माल्थस के सिद्धांत की उपर्युक्त आलोचनाओं का यह अर्थ नहीं है कि यह सिद्धांत बेकार है और उसमें सत्यता का कुछ भी अंश नहीं है। माल्थस के सिद्धांत में कुछ सत्यता का अंश है जिसकी हम उपेक्षा नहीं कर सकते। प्रो. वाकर ने कहा है, "कटु वाद-विवाद के बीच भी माल्थस का सिद्धांत अडिग खड़ा है।" इसी प्रकार क्लार्क ने कहा, "माल्थस के सिद्धांत की जितनी अधिक आलोचनाएँ की गयी हैं, उतनी अधिक दृढ़ता उसमें आयी है।" कोसा (Cossa), मार्शल, टॉजिंग, ऐली, कारवर, वोल्फ, पेटन, मार्शल, वाकर आदि अर्थशास्त्रियों ने समर्थन किया है। जे. फोरेस्टर की पुस्तक 'World Dynamics' (1971) व डेनिस मिडोज तथा उनके सहयोगियों की पुस्तक 'The Limits of Growth' (1972) में वातावरण के दूषण, प्राकृतिक साधनों की तीव्र गति से होने वाली समाप्ति तथा भविष्य में प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में अनिवार्यतः गिरावट आदि के निष्कर्षो ने माल्थस की याद ताजा कर दी है। संक्षेप में, माल्थस के सिद्धांत में सत्यता का अंश इस प्रकार पाया जाता है-

(i) तीव्र जनसंख्या वृद्धि माल्थस का यह निष्कर्ष ठीक है कि यदि देशवासियों द्वारा किसी भी प्रतिबंध का प्रयोग न किया जाये तो जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ेगी। विश्व में जिन देशों में जनसंख्या के बढ़ने की गति तीव्र है, उनमें मनुष्य द्वारा अपनाये गये प्रतिबंध निरोध का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

(ii) खाद्यान्न का अभाव - अर्द्ध-विकसित एवं पिछड़े देशों में अब भी जनसंख्या और खाद्यान्न उत्पादन में असंतुलन है और खाद्यान्न का अभाव व्याप्त है।

(iii) प्राकृतिक प्रकोप - जनाधिक्य वाले देशों में अब भी नैसर्गिक प्रतिबंध, प्राकृतिक प्रकोप, अकाल, युद्ध, महामारियाँ, भूचाल, बाढ़, आदि से अनेक व्यक्ति अकाल मृत्यु के ग्रास होते हैं।

(iv) संतति निग्रह के कृत्रिम उपाय अमेरिका तथा यूरोपीय देशों के लोगों पर माल्थस की चेतावनी का गहरा प्रभाव पड़ा है और संभवतः वह उसी का परिणाम है कि वहाँ के लोगों ने संतति निग्रह के कृत्रिम उपायों का इतना अधिक प्रयोग किया है कि जनसंख्या वृद्धि अत्यन्त मंद अथवा स्थिर हो गयी है।

(v) माल्थस की चेतावनी माल्थस ने तीव्र जनसंख्या वृद्धि से बेरोजगारी, निर्धनता, भुखमरी, महामारी, चोरी, आदि के बढ़ने की चेतावनी दी थी जो आज भी विकासशील देशों के सन्दर्भ में काफी सीमा तक सही लगती है। इन देशों में प्राकृतिक प्रकोपों के कारण प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में असामयिक मृत्यु हो जाती है।

(vi) पिछड़े व विकासशील देश- जब किसी देश में जनसंख्या उस सीमा तक बढ़ जाती है। जहाँ भूमि की गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है तब प्रति व्यक्ति आय में कमी के कारण निर्धनता, बेरोजगारी, भुखमरी, आदि का बढ़ना स्वाभाविक है जिसका निवारण जनसंख्या में कमी के द्वारा ही हो सकता है, क्योंकि भूमि को बढ़ाना संभव नहीं होता है। अतः माल्थस का सिद्धांत पिछड़े एवं विकासशील देशों के संदर्भ में अधिक सही लगता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अनेक आलोचनाओं के उपरांत भी संसार के अनेक देशों (विशेष रूप से अर्द्धविकसित देशों में) माल्थस के सिद्धांत का भय अब भी है वहाँ जहाँ एक ओर औद्योगिक विकास पर बल दिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकारें तथा निजी संस्थाएँ गर्भ निरोधक विधियों तथा परिवार नियोजन को लोकप्रिय करने में प्रयत्नशील हैं। जन्म दर में कमी करने के लिए किए जाने वाले प्रयास माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत की यदि पुष्टि नहीं तो फिर क्या है, अतः माल्थस का सिद्धांत- अपने में एक बड़े सत्य को छिपाये है जिसके कारण यह आज भी अडिग और दृढ़ बना हुआ है।

क्या माल्थस की निराशावादी विचारधारा पुनर्जीवित हो रही है ?

निम्नलिखित दो अध्ययनों ने माल्थस की निराशावादी विचारधारा को पुनर्जीवित कर दिया है-

1. क्लब ऑफ रोम मॉडल (Club of Rome Model):

2. सन् 2000 में विश्व एक अध्ययन (Global Two Thousand Study: GTS)

1. क्लब ऑफ रोम मॉडल (Club of Rome Model)- संयुक्त राज्य अमरीका के मैसेच्युसेट संस्थान में जनसंख्या वृद्धि, औद्यागीकरण, कुपोषण, संसाधनों का क्षय, पर्यावरण प्रदूषण एवं असंतुलन के अंतर्संबंध का अध्ययन व विश्लेषण किया गया है। इस अध्ययन को विकास की सीमा (Limits to Growth) का मॉडल भी कहा जाता है। इस अध्ययन में कम्प्यूटर की सहायता से विभिन्न घटकों के अंतर्संबंधों का विश्लेषण करके यह निष्कर्ष निकाला गया कि यदि आर्थिक प्रगति की यही प्रवृत्ति चलती रही, तो आगामी एक सौ वर्षों में पृथ्वी में विकास की अंतिम सीमा आ जाएगी। बढ़ते हुए औद्योगीकरण के कारण प्राकृतिक संसाधनों की मात्रा घटती जाएगी और उनकी कीमतों में निरंतर वृद्धि होती जाएगी, जिससे कच्चा माल मिलने में कठिनाइयाँ उत्पन्न होर्मी, फलतः औद्योगिक आधार डगमगाने लगेगा। कृषि का आधार भी अब उद्योग ही हो गया है। अतः कृषि की स्थिति भी उद्योगों की भाँति शोचनीय हो जाएगी, खाद्यान्नों की कमी होगी और मृत्यु दर बढ़ जाएगी। औद्योगीकरण और आर्थिक विकास के इस दूरगामी बैंकर परिणामों को ध्यान में रखते हुए 'क्लब ऑफ रोम मॉडल' में यह चेतावनी दी गयी है कि मानवता को यदि भुखमरी से बचाना है, तो एक भी दिन खोए बिना आर्थिक संतुलन को बनाए रखने के लिए ठोस उपाय करने होंगे।

2. सन् 2000 में विश्व एक अध्ययन (Global Two Thousand Study: GTS)- संयुक्त राज्य अमरीका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने एक आयोग का गठन किया था, जिसका उद्देश्य विश्व की जनसंख्या एवं संसाधनों का अध्ययन करना था। आयोग की रिपोर्ट सन् 1980 में प्रकाशित हुई। इस प्रतिवेदन को जी. टी. एस. (G.T.S.) के नाम से जाना जाता है।

इस अध्ययन में सन् 2000 के लिए विश्व का एक अत्यंत गंभीर और निराशापूर्ण चित्र प्रस्तुत किया गया था। इस अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि यदि विश्व में जनसंख्या वृद्धि की यही प्रवृत्ति बनी रही, तो सन् 2000 का विश्व आज से अधिक भीड़-भाड़ वाला, अधिक प्रदूषण एवं पर्यावरण की दृष्टि से अधिक असंतुलित एवं अधिक विस्फोटक होगा और तत्कालीन मानव आज से कहीं अधिक गरीब होगा, यद्यपि भौतिक उत्पादन आज से कहीं अधिक होगा।

विश्व की जनसंख्या लगभग 6.35 बिलियन होगी, जिसमें से तृतीय विश्व के देशों की जनसंख्या लगभग 5 बिलियन होगी। यद्यपि जनसंख्या की वृद्धि दर में बहुत कमी आ जाएगी, फिर भी प्रतिवर्ष बच्चों की संख्या 80 मिलियन से बढ़कर 200 मिलियन होगी। यद्यपि साक्षरता, आय-स्तर एवं आयु-प्रत्याशा में पर्याप्त वृद्धि हो जायेगी, फिर भी प्रतिवर्ष पहले से अधिक निरक्षर, पहले से अधिक गरीब लोग जनसंख्या में जुड़ते जाएँगे। अतः इस प्रतिवेदन में यह सुझाव दिया गया कि संपूर्ण विश्व के मानव कल्याण के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि पूर्ण सहयोग और समर्पण की भावना से पर्यावरण को सुरक्षित रखा जाये और जनसंख्या पर नियंत्रण लगाया जाये।

क्या भारत में माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत लागू हो रहा है ?

माल्थस का सिद्धांत निश्चय ही भारत पर लागू होता है। इस मान्यता की पृष्ठभूमि में निम्नलिखित कारण प्रस्तुत किए जाते हैं :

1. जनसंख्या की तीव्र वृद्धि- माल्थस का यह कहना था कि जनसंख्या की वृद्धि प्रगतिशील अनुपात से होती है। यदि हम भारत की जनसंख्या वृद्धि से संबंधित आँकड़ों पर दृष्टिपात करें, तो हमें विदित होगा कि 1600 ई. से लेकर 1870 ई. तक के बीच अर्थात् 270 वर्षों में भारत की जनसंख्या दुगनी हो गयी थी, लेकिन 1871 से 1950 तक केवल 80 वर्ष में जनसंख्या पुनः दोगुनी हो गयी और 1951 से 1990 तक अर्थात् 40 वर्षों में भारत की जनसंख्या पुनः दोगुनी से अधिक हो गयी। यदि जनसंख्या की 1.6 प्रतिशति की वृद्धि दर जारी रही तो 2020 तक जनसंख्या पुनः दोगुनी हो जाएगी। इसका तात्पर्य यह है कि भारत में जनसंख्या की वृद्धि दर अत्यधिक तीव्र है, भले ही माल्थस द्वारा प्रस्तुत दर के आधार पर यह वृद्धि न हो रही हो। आस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या से अधिक जनसंख्या भारत में प्रत्येक वर्ष बढ़ जाती है।

2. खाद्यान्न का अभाव - भारत की जनसंख्या लगभग 2 प्रतिवर्ष वार्षिक की दर से बढ़ रही है, लेकिन दुर्भाग्यवश खाद्य उत्पादन इस दर पर नहीं बढ़ रहा है। सन् 1775 तक भारत में अनुमानतः 4 करोड़ व्यक्तियों की मृत्यु भूख से हुई तथा सन् 1900 से लेकर सन् 2005 तक इसी प्रकार 4 करोड़ व्यक्ति भूख से मरे। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा यद्यपि खाद्य-समस्या पर विजय प्राप्त करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं परन्तु फिर भी हमारी कृषि मानसून पर निर्भर है।

3. निरोधक प्रतिबंधों का आश्रय जनाधिक्य की समस्या को रोकने के लिए माल्थस ने निरोधक उपायों के संबंध में सुझाव दिया था। भारत में विगत वर्षों में परिवार नियोजन, बंध्याकरण और औषधियों के उपयोग की लोकप्रियता बढ़ रही है, अर्थात् माल्थस द्वारा बताई गयी दिशा में हम लोग चलने का प्रयास कर रहे हैं।

4. नैसर्गिक प्रतिबंधों की क्रियाशीलता- माल्थस का यह कथन था कि यदि मनुष्य स्वयं प्रतिबंधक उपायों के द्वारा जनसंख्या को रोकने का प्रयत्न नहीं करता, तो प्राकृतिक या नैसर्गिक प्रतिबंध अवश्य क्रियाशील होंगे। भारत में समय-समय पर सूखा, अकालों, बाढ़ों एवं महामारियों जैसी प्राकृतिक विपत्तियाँ घटित होती रहती हैं, जिससे जनजीवन की महान क्षति होती है। इस प्रकार माल्थस ने नैसर्गिक प्रतिबंधों के संबंध में जो कुछ कहा था, वह काफी सीमा तक भारतीय परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है।

5. ऊँची जन्म व मृत्यु दर- भारत में आज भी 2001 की जनगणना के अनुसार जन्म दर 26.1 व मृत्यु दर 87 प्रति हजार है, जो कि बहुत अधिक है। ऊँची जन्म दर के साथ मृत्यु दर का अधिक होना भी माल्थस के सिद्धांत की क्रियाशीलता का परिणाम है।

6. देश में जनसंख्या का बढ़ता हुआ घनत्व देश में 1901 में मात्र 77 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर जनसंख्या का घनत्व था, जो 2001 में बढ़कर व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर हो गया है। यह तथ्य इस बात को प्रमाणित करता है कि जनसंख्या में निरंतर तीव्र वृद्धि हो रही है और माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत क्रियाशील है।

7. निम्न जीवन-स्तर- भारत दुनिया के 10 गरीब देशों में से एक है। यह बात संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अभी कराए गये एक सर्वेक्षण में सिद्ध हो चुकी है। देश में लगभग 26 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करते हैं। इसका मूल कारण खाद्यान्न व अन्य वस्तुओं के उत्पादन की तुलना में जनसंख्या में होने वाली वृद्धि है। इस दृष्टि से भी माल्थस का सिद्धांत भारत में क्रियाशील प्रमाणित होता है।

उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि माल्थस का जनसंख्या सिद्धांत भारत में काफी सीमा तक लागू होता है।

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