प्रश्न- विवाह क्या है? इसकी माप किस प्रकार
होती है? भारत में विवाह की आयु की प्रवृत्ति बताइए विवाह की औसत आयु निर्धारित करने वाले तत्त्वों की विवेचना
कीजिए ?
उत्तर :- भारत में विवाह एक सामाजिक बन्धन है जिससे यौन सम्बन्धों को एक
पुरुष व एक स्त्री तक नियंत्रित रखा जाता है। प्राचीन काल से ही इस संस्था की एक धार्मिक संस्कार के रूप में मान्यता
प्राप्त है। विवाह एक महत्त्वपूर्ण जनांकिकीय घटना है जिसके उपरान्त स्त्री पुरुष सामाजिक
मान्यता प्राप्त कर साथ-साथ रहना प्रारम्भ करते है तथा शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करते
हैं।
विवाह को विभिन्न विद्वानों ने निम्न प्रकार से परिभाषित
किया है-
प्रो. बोगार्डस
के शब्दों में, "विवाह एक संस्था है जो पुरुष एवं स्त्री
की पारिवारिक जीवन में प्रवेश कराती है"।
प्रो वेस्टरमार्क ने अपनी पुस्तक 'The History of Human
marriage’ में लिखा है, "विवाह एक या अधिक पुरुषों एवं स्त्रियों का वह सम्बंध
होता है जिसे प्रथा या कानून द्वारा मान्यता प्राप्त होती है और जिसमें विवाह करने
वाले दोनों पक्षों के और उनसे उत्पन्न होने वाले बच्चों के प्रति एक दूसरे के अधिकारो एवं
कर्तव्यों का समावेश होता है "।
राबर्ट एच. लोवी के अनुसार, "विवाह स्पष्टतया वह स्वीकृत
संगठन है जो यौन सन्तुष्टि के बाद भी स्थायी रहता है और इस तरह, पारिवारिक जीवन की
आधारशिला होता है"।
जनांकिकीय दृष्टि से प्रभावपूर्ण विवाह को ही विवाह की संज्ञा
दी जाती है। प्रभावपूर्ण विवाह से तात्पर्य पुरुष एवं स्त्री के बीच यौनिक सम्बंध से
है। भारत में कुछ जातियों में बहुत कम आयु में विवाह हो जाता है, परन्तु लड़का तथा
लड़की जब तक वयस्क नहीं हो जाते, अपने माँ-बाप के साथ रहते है। वयस्क होने पर "गौना"
होता है उसी के उपरान्त वे सहवास प्रारम्भ करते है। अतः जनांकिकीय दृष्टि से प्रथम विवाह
को विवाह न मानकर द्वितीय विवाह (गौना) को ही विवाह माना जाता है।
अल्पविकसित देशों की ही भांति भारत में भी बाल-विवाह का प्रचलन होने के कारण स्त्रियों की विवाह के समय आयु कम रहती है। हिन्दुओ में प्रथम रजोदर्शन से पूर्व लड़कियों का विवाह उचित माना जाता है, किंतु रहन सहन के स्तर में सुधार से यह प्रथा अब टूटती जा रही है। परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों, विशेषकर निम्न जातियों में यह प्रथा अब भी प्रचलन में हैं जहाँ लड़कियां 18 वर्ष की आयु से पूर्व ही विवाह के बन्धन में बंध जातीं हैं। शारदा एक्ट के अन्तर्गत बाल-विवाह करने पर मुकदमा चलाया जा सकता है, परन्तु इस मुकदमे का प्रारम्भ किसी रिश्तेदार या अन्य व्यक्ति को करना होता है। इस एक्ट के अन्तर्गत शायद ही कोई किसी के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कराया है। आज भारत में सामान्यतया अशिक्षित ग्रामीण कन्याओं का विवाह 13-17 वर्ष की आयु में कर दिया जाता है। यहां लड़कियां का विवाह तो छोटी उम्र में कर दिया जाता है परन्तु लड़की अपने पिता के घर तब तक रहती है जब तक कि वह वयस्क होकर शारीरिक सम्बंध स्थापित करने योग्य नहीं हो जाती।
भारत में विवाह की आयु का ऐतिहासिक अध्ययन करने पर
स्पष्ट होता है कि प्राचीन काल में यहाँ बाल-विवाह प्रथा नहीं थी। वैदिक काल (ईसा
से 600 वर्ष पूर्व तक) में
स्त्रियों की विवाह की आयु 16 वर्ष निर्धारित की गयी थी, कौटिल्य ही वह पहले
व्यक्ति थे जिन्होंने यह व्यवस्था दी कि स्त्रियों का विवाह सातवे मासिक धर्म से
पूर्व ही हो जाना चाहिए। भारत में विवाह की आयु के बारे में कोई व्यवस्थित सूचना उपलब्ध
नहीं है क्योंकि यहाँ न तो विवाह का और न गौना का ही पंजीकरण होता है न ही इसे
जनगणना के अन्तर्गत एकत्रित किया जाता है।
विवाह की माप
जनांकिकी की दृष्टि से यह जानना आवश्यक समझा जाता है
कि किसी जनसंख्या में विवाह योग्य व्यक्तियों में से कितनों का विवाह हो चुका है।
कितनी तलाकशुदा अथवा विधवा स्त्रियों ने पुनर्विवाह किया। प्रायः विवाहितों की
संख्या जानने के लिए विवाह योग्य व्यक्तियों की कुल संख्या में से अविवाहितों की
संख्या को घटा दिया जाता है। इस तरह, सभी अन्य दरो के अनुरुप विवाह की दरे भी उस
जनसंख्या से ज्ञात की जाती है, जो विवाह योग्य आयु वर्ग में उपलब्ध रहती है।
अविवाहित पुरुषो तथा अविवाहित स्त्रियों की आयु के अनुरुप विवाह की दरे भी ज्ञात
की जाती है।
माना x एक दी हुई समयावधि में अविवाहित व्यक्तियों की संख्या तथा nx उन लोगों की संख्या है जो
अविवाहितों में से एक दी हुई समयावधि में विवाह कर लेते है। इस nx की माप ही विवाह सम्भाविता की माप है। इसे सूत्र द्वारा
दिखाया जा सकता है
जहाँ Mx = x तथा
n + 1 जन्म दिवसों के मध्य विवाहित व्यक्तियों की संख्या
Cx = x जन्म
दिवस पर अविवाहित व्यक्तियों की संख्या
तथा Nx = विवाह
सम्भाविता।
यदि उपर्युक्त विश्लेषण में
मृत्युक्रम को भी सम्मिलित कर लिया जाय तो Mx
के अन्तर्गत उन व्यक्तियों को भी सम्मिलित करना होगा जो x तथा
x+1 जन्म दिवस के बीच विवाहित
तो हुए परन्तु x+1 जन्म दिवस से पूर्व मर गए।
यदि इस तरह मृत्यु को प्राप्त व्यक्तियों की संख् ex है तो सूत्र इस
प्रकार होगा
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा
प्रकाशित जनांकिकी वर्ष पुस्तक 1969 में दो प्रकार की विवाह दरों का उल्लेख किया
गया है:-
(1)
अशोधित विवाह दर
:- अशोधित विवाह दर किसी वर्ष विशेष के मध्य तिथि पर प्रति हजार व्यक्तियों के
पीछे विवाहितों की संख्या को कहा जाता है। इस दर को ज्ञात करने के लिए किसी वर्ष
विशेष में हुए कुल विवाहों को उस देश की तत्कालीन कुल जनसंख्या से भाग देकर तथा
1000 से गुना करके प्राप्त किया जाता है। सूत्र से
जहाँ CMR = अशोधित विवाह दर
M = वर्ष विशेष में विवाहों की कुल
सख्या
P = सम्बंधित वर्ष की मध्य तिथि पर
व्यक्तियों की कुल संख्या
कहीं-कहीं इस दर की गणना करते समय
कुछ विवाहों की संख्या के स्थान पर वर्ष विशेष में कुल विवाहित व्यक्तियों की
संख्या को रखा जाता है। यह इस सम्भावना पर आधारित है कि यह हो सकता है कि किसी
व्यक्ति ने किसी कारणवश एक से अधिक बार विवाह कर लिया हो। इस प्रकार अशोधित विवाह
दर दो जनसंख्याओं की विवाह दरो की तुलना का उचित मापदण्ड नहीं है। इसके अतिरिक्त अशोधित
विवाह दर दो जनसंख्याओं के मध्य लिंग, आयु, जाति तथा पेशे आदि के आधार पर
विवाह की दरों की तुलना नहीं की जाती है। इस कमी को दूर करने के लिए विशिष्ट विवाह
की दरों की गणना की जाती है।
(2) विशिष्ट विवाह दर :- विशिष्ट विवाह
दरो की गणना विभिन्न चरो यथा-आयु, लिंग, जाति, वैवाहिक स्तर, सामाजिक एवं आर्थिक
आदि के आधार पर की जाती है। ये दरे सामान्यतया अविवाहित प्रौढ़ जनसंख्या अथवा
वैवाहिक आयु काल तक के व्यक्तियों तक ही सीमित रहती है। यह आयु काल सामान्यतया 15
से 44 वर्ष लिया जाता
है।
विवाह
की दरो को ज्ञात करते समय प्रवास प्रभाव को
शून्य
मान लिया जाता है जबकि व्यवहार में ऐसा होता नहीं है।
यदि
आयु विशिष्ट विवाह दर ज्ञात करना
हो तो निम्न सूत्र का सहारा लिया जा सकता है।
यदि
x तथा y सम्बंधित
आयु
वर्ग की अग्रतम तथा उच्चतम सीमा है तब,
जहाँ, A.S.M.R = Age
specific marriage Rate
Mx-y = x और
y आयु के बीच विवाहित व्यक्तियों की संख्या
Mx-y = x और
y आयु के बीच कुल व्यक्तियों की संख्या
(3) सामान्य विवाह दर :- एक वर्ष में प्रति हजार विवाह योग्य आयु वाले अविवाहित व्यक्तियों की विवाहित संख्या को सामान्य विवाह दर कहते हैं। इसका सूत्र निम्नवत् है।-
इस दर की गणना में यह मान लिया
जाता है कि अधिकाश विवाह 15-45 वर्ष की आयु में हो जाते है। स्त्रियों
की विवाह दर ज्ञात करने के लिए यह दर अपेक्षाकृत अधिक उपयोगी
होती है क्योंकि पुरुषों की अपेक्षा बहुत कम स्त्रियां 45 वर्ष की आयु के बाद विवाह
करती है।
विवाह की औसत आयु
भारत में जनगणना दस वर्षीय
अन्तराल पर होती है, अतः विवाह की आयु की गणना के लिए मान लिया जाता है कि इन वर्षों
में न तो देशान्तर हो रहा है और न ही मृत्युओं का जनसंख्या पर कोई असर पड़ रहा
है।
इस विधि में किसी समय t पर
x और (t+10) समय पर (x+10) आयु के मध्य बचे अविवाहित लोगों की गणना
को ज्ञात करने के लिए इन सम्भावनाओं को संश्लेषित सहगण में उपयोग करते है। इस प्रकार
के सहगण को दशक संश्लेषित सहगण कहा जाता है। (0-4) तथा (5-9) आयु सहगण के लिए एकाकी
अनुपात वह है जो समय (t+10) पर जनगणना में पाए जाते है, क्योंकि ये एकाकी अनुपात तार्किक
रूप से दशक के विवाह अनुभव परिणाम है। इनकी गणना में निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में
रखा जाता है
माना कि
nPx = जनगणना
में (x) से (x+n) आयु वर्ग में जनसंख्या।
nUx = जनगणना में (x) से (x+n)
आयु वर्ग में अविवाहितों की संख्या ।
nSx = जनगणना
में (x) से (x+n) आयु वर्ग में एकाकी व्यक्तियों का अनुपात।
Sx = जनगणना में ठीक आयु (x) पर
एकाकी व्यक्तियों का अनुपात ।
nS'x = दशक
संश्लेषण सहगण में (x) तथा (x+n) आयु वर्ग में एकाकी व्यक्तियों का अनुपात।
S'x = दशक संश्लेषण
सहगण में ठीक आयु (x) पर एकाकी
व्यक्तियों का अनुपात।
= विवाह की औसत आयु या एकाकी जीवन की औसत आयु यदि सहगण में देशान्तर नहीं होता, तबः
और
जहाँ Ux
तथा
Px ठीक आयु (x) पर अविवाहितो
की संख्या तथा जनसंख्या को दर्शाते है। संश्लेषित सहगण जिसमें मृत्यु के
परिणामस्वरूप रिक्तता आती है, के संदर्भ में 'n' वर्षों
के अन्तर में प्रत्येक वर्ष की जनसंख्या nPx,
nPo के बराबर होगी क्योंकि मरणहीनता की मान्यता के कारण Px
= Po
जहाँ X = एकाकी जीवन की औसत
आयु काल है एवं इस संदर्भ में मान्यता यह होती है कि प्रत्येक व्यक्ति का विवाह
किसी आयु पर होगा। इस तरह, समीकरण (3) की सत्यता इस बात पर निर्भर करेगी जब
प्रत्येक व्यक्ति k आयु
पर विवाह कर लें। अतः इस समीकरण का संशोधित रूप इस प्रकार होगा
अंश तथा हर दोनों में उन लोगों की संख्या को जोड़
दिया जाता है जो एक निश्चित आयु पर अविवाहित रह जाते है। यदि विवाह
की औसत आयु एक विशिष्ट जनगणना के एकाकी अनुपातों के प्रयोग से प्राप्त की जाती है तब
उसे 'जनगणना सांश्लेषिक सहगण' कहा जाता है।
विवाह की औसत आयु को निर्धारित करने वाले तत्व
भारत में अभी भी विवाह की
न्यूनतम आयु सम्बंधी कानूनों की अवहेलना करते हुए कम आयु में लड़को तथा लड़कियों का
विवाह कर दिया जाता है। यहाँ विवाह की औसत आयु निम्न कारणों से कम रहती है उनमें से कुछ निम्नवत
है।
(1) शिक्षा का निम्न स्तर :- भारत में अधिकतर माँ
बाप अशिक्षित है जो परम्पराओं एवं रूढ़ियों से दबे रहते है और उन्हे
नियम कानून की बहुत जानकारी नहीं रहती । वे अपने बच्चों की शिक्षा
के प्रति बहुत सजग एवं चिन्तित नहीं रहते तथा जल्दी से जल्दी उनका विवाह कर दायित्व
से छुटकारा प्राप्त करना चाहते है। उच्च शिक्षित माँ-बाप अपने
बच्चों का शीघ्र एवं कम आयु पर विवाह नहीं करते। शिक्षित लड़के- लड़कियां भी शिक्षा
समाप्त होने तथा तदनुसार रोजगार प्राप्ति तक विवाह नहीं करते है। शहरों में शिक्षा
व देर से विवाह में व्यापक सह सम्बंध पाया जाता है। गाँवों
में यह सह सम्बंध कमजोर होता है क्योंकि बहुधा लड़के लड़कियाँ शिक्षा के बीच में ही
विवाह कर लेते हैं।
(2) आर्थिक स्थिति :- यदि अन्य परिस्थितियां
सामान्य रहे तो अधिक धनी व्यक्तियों के बच्चों
का विवाह अपेक्षाकृत अधिक आयु में ही होता है या तो वे शिक्षा ग्रहण करते रहते है या
फिर व्यवसाय आदि में लगे रहने के कारण उन्हें विवाह की शीघ्रता नहीं रहती है। इसके
अतिरिक्त यदि लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रहती तो वे अपनी लड़कियों को उच्च
शिक्षा नहीं प्रदान कर पाते है तथा अधिक उम्र की लड़की के लिए अधिक दहेज भी देना पड़ता
है। यह सोचकर वे कम उम्र की लड़की का कम उम्र के लड़के से विवाह कर देना पसन्द करते
है। यदि व्यक्ति धनी है और अधिक दहेज देने की स्थिति में है तो अपने बच्चों को अधिक
दिन तक अविवाहित रख सकता है।
(3) रोजगार का स्तर :- भारत के गाँवों व शहरों
में स्त्रियों के रोजगार व विवाह की आयु में
कोई सह सम्बंध नहीं पाया जाता है। फिर भी आज स्त्रियों में शिक्षा तथा रोजगार की प्रवृत्ति
धीरे-धीरे बढ़ रही है। जो लड़कियां उच्च शिक्षा प्राप्त कर रोजगार से जुड़ना चाहती
है वे देर से शादी करना पंसद करती है। आज यहाँ कामकाजी महिलाओं में रोजगार में आने के बाद विवाह
करने की प्रवृत्ति बढ़ रही
है। यह प्रवृत्ति कुछ हद तक शहरों में ही विद्यमान है।
गाँवों
में यह बात देखने को नहीं मिलती।
(4) निवास की मनोवृत्ति :- गाँवों में ग्रामीण मनोवृति के कारण मां -बाप
अपने
बच्चों का शीघ्र विवाह कर भार मुक्त होना चाहते हैं वे परम्पराओं एवं
अन्धविश्वासों से जुड़े रहने के कारण इस धारणा के प्रति
झुकाव
रखते
हैं
कि रजस्वला होने से पूर्व ही कन्या का विवाह कर देना चाहिए। गांवों में
संयुक्त परिवार प्रणाली भी कम आयु में विवाह के प्रति जिम्मेवार है। शहरों में शहरी
मनोवृत्ति के कारण कम आयु में विवाह करने से बचते है।
भारत में विवाह की आयु
भारत में विवाह की आयु के
सम्बंध में 1927 के पूर्व तक किसी प्रकार का सरकारी प्रतिबन्ध नहीं था। 1927 में श्री हरिविलास
शारदा ने लोक सभा मे लड़के-लड़कियों की न्यूनतम विवाह आयु निर्धारित किए जाने के सम्बंध
में एक बिल पेश किया जो कि 28 सितम्बर 1929 को पास हुआ
तथा यह एक्ट 1 अप्रैल, 1930 में लागू हुआ। शारदा कानून के
द्वारा सभी समुदायों के लड़के-लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 18 वर्ष तथा
14 वर्ष रखी गयी। इस कानून में 1949 में सुधार किया गया जिसके अनुसार लड़कियों की आयु
पुनः 13 वर्ष कर दी गयी। 1956 में पुनः संशोधन
कर यह आयु क्रमशः 19 वर्ष तथा 15 वर्ष कर दी गयी। 1976 में
आपात काल के दौरान जो जनसंख्या नीति घोषित की गयी उसमें लड़के तथा लड़कियों के विवाह
की न्यूनतम आयु क्रमशः 21 वर्ष तथा 18 वर्ष निर्धारित की गयी। यहीं व्यवस्था
अद्यतन लागू है।
विवाह की आयु के सन्दर्भ
में प्राप्त सूचनाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत में विकसित देशों की तुलना
में विवाह की औसत आयु कम है। सन् 1991 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत में पुरुषों
के विवाह की औसत आयु 23.8 वर्ष तथा स्त्रियों की औसत विवाह की आयु 17.7 वर्ष रही। यह तालिका से
स्पष्ट होता है
भारत में विवाह की औसत आयु
वर्ष |
पुरुष |
स्त्री |
1895 |
19.6 |
12.5 |
1901 |
20.0 |
13.1 |
1911 |
23.3 |
13.2 |
1921 |
20.7 |
13.7 |
1931 |
18.6 |
12.7 |
1941 |
19.9 |
14.7 |
1951 |
19.9 |
15.6 |
1961 |
21.6 |
15.8 |
1971 |
22.7 |
17.2 |
1981 |
23.30 |
18.3 |
1991 |
23.8 |
17.7 |
उपरोक्त तालिका से स्पष्ट होता है कि भारत में विवाह
की औसत आयु में बहुत धीरे-धीरे वृद्धि हुई है। इस तरह भारत में विवाह की आयु में
कोई उल्लेखनीय वृद्धि न होने के फलस्वरूप यहाँ स्त्रियों की औसत प्रजनन दर पर कोई
प्रभाव नहीं पड़ा। कम आयु में विवाह होने से यहाँ स्त्रियों का प्रजनन काल बहुत
लम्बा रहता है जिससे उन्हें अधिक बच्चे उत्पन्न करने का मौका मिल जाता है।
यदि विश्व के विभिन्न देशों में विवाह की औसत आयु के
आंकड़ों का अध्ययन किया जाय तो स्पष्ट होता है कि भारत में अभी भी विवाह की औसत
आयु पुरुषो तथा स्त्रियों दोनों में अपेक्षाकृत कम है। निग्न तालिका में विश्व के
कुछ प्रमुख देशों में विवाह को प्रदर्शित किया गया है।
विश्व के कुछ देशों में विवाह की औसत आयु
देश |
विवाह की औसत आयु (वर्षो में) |
|
|
पुरूष |
स्त्री |
आस्ट्रेलिया |
25.8 |
21.93 |
फ्रांस |
25.98 |
22.60 |
अमेरिका |
22.14 |
20.37 |
जापान |
22.82 |
23.08 |
थाईलैंड |
23.62 |
20.39 |
भारत |
23.8 |
17.07 |
उपरोक्त तालिका से स्पष्ट होता है की विकसित देशों में स्त्रियों तथा पुरुषों दोनों की विवाह की औसत आयु भारत सहित विकासशील देशों की अपेक्षा अधिक है।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)