प्रश्न :- एकाधिकार क्या है? एकाधिकार के अंतर्गत मूल्य
किस प्रकार निर्धारण होता है? क्या एकाधिकारी मूल्य सर्वदा प्रतियोगी मूल्य से अधिक
रहता है।
☞ "एकाधिकार का मुख्य उद्देश्य अधिकतम एकाधिकारी
राजस्व प्राप्त करने हेतु उत्पादन को निर्धारित करना है।" व्याख्या कीजिए।
☞ "एकाधिकारी पूर्ति निश्चित कर सकता है? अथवा मूल्य निश्चित
कर सकता है।
वह दोनों को निश्चित
नही कर सकता है।" इस कथन को समझाये और बताए की एकाधिकारी अपनी वस्तु का मूल्य
किस प्रकार निश्चित करता है?
उत्तर :- अंग्रेजी में मोनोपोलिस शब्द का अर्थ एक विक्रेता से होता है। अंग्रेजी के मोनो
का अर्थ है एक, और पोली का अर्थ है विक्रेता । अर्थात् एक विक्रेता तथा एक उत्पादक
।
" प्रो० बैनहम के शब्दो मे, " एकाधिकार वस्तुतः
एक मात्र विक्रेता होता है और एकाधिकारी शक्ति की पूर्णतः पूर्ति
के नियंत्रण पर निर्भर करती है।"
"प्रो० बोल्डिंग के शब्दो मे, "शुद्ध एकधिकारी
वह फर्म है जो किसी ऐसी वस्तु का उत्पादन करता है जिसका अन्य फर्म की उत्पादित वस्तु में से कोई प्रभावपूर्ण
स्थानापन्न नहीं होता"।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि एकाधिकारी
की निम्नलिखित विशेषताएँ है -
1. एकाधिकारी अपनी वस्तु का अकेला
उत्पादक होता है।
2. एकाधिकार की स्थिति में फर्म स्वयं
उद्योग होता है।
3. एकाधिकारी जिस वस्तु का उत्पादन करता है उसकी कोई निकटतम
प्रतिस्थापन वस्तु बाजार में नहीं पायी जाती।
4. नये फर्मों को एकाधिकारी उद्योग में प्रवेश करने का अधिकार
नहीं होता।
एकाधिकारी के उद्देश्य
प्रो० मार्शल के शब्दो मे, " एकाधिकारी का प्रमुख्य उद्देश्य
माँग और पूर्ति का समायोजन इस ढंग से करना नहीं होता कि वह कीमत, जिस पर वह अपनी वस्तु
बेच सकता है। इसकी लागत व्यय को पूरा कर लें। अपितु उसका उद्देश्य माँग और पूर्ति को
इस ढंग से समायोजित करना होता है कि उसे अधिकतम विशुद्ध आय प्राप्त हो सके।"
एकाधिकार के अंतर्गत मूल्य निर्धारण
एकाधिकारी का अपनी वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियंत्रण होता
है, परंतु वस्तु की मांग पर उसका कोई नियंत्रण नहीं होता। अतएव एकाधिकारी एक ही साथ
कुल उत्पति की मात्रा और इसकी कीमत को निश्चित नहीं कर सकता। एकाधिकारी के सामने अपने
लाभ को अधिकतम करने हेतु दो वैकल्पिक मार्ग
होते हैं इसे हम निम्नलिखित गणितीय विधि द्वारा व्यक्त कर सकते हैं।
एक एकाधिकारी के कुल लागत फलन एवं मांग फलन क्रमश: C = ax2 + bx + c तथा P= β -αx है। उत्पादन का वह
स्तर ज्ञात करना है जिस पर एकाधिकारी लाभ अधिकतम होता है।
1. जब फर्म उत्पादन का स्तर निश्चित करती है -
हम जानते हैं कि
R = Px
जहां, R = आय ,
P = मूल्य, X = उत्पादन
R = (β - αx)x
`MR=\frac{dR}{dX}=\beta-2\alpha x`
`MC=\frac{dC}{dX}=2\alpha x+b`
MR =
MC
β - 2ax = 2ax + b
β - b = 2ax+2ax
2x
(a+a) = β - b
`\therefore X=\frac{\beta-b}{2\left(a+\alpha\right)}`
यह लाभ को अधिकतम करने वाला उत्पादन स्तर है।
2. जब फर्म वस्तु की कीमत निश्चित
करती है -
P = β - αx
αx = β – P
`X=\frac{\beta-P}\alpha`
We
know that
R = Px
`R=\left(\frac{\beta-P}\alpha\right)P`
`R=\frac{\beta P-P^2}\alpha`
`\frac{dR}{dP}=\frac{\beta-2P}\alpha`
C = ax2 + bx + c
`C=a\left(\frac{\beta-2P}\alpha\right)^2+b\left(\frac{\beta-2P}\alpha\right)+c`
`C=a\left(\frac{\beta^2-2\beta P+P^2}{\alpha^2}\right)+\left(\frac{b\beta-bP}\alpha\right)+c`
`C=\frac{a\beta^2-2a\beta P+aP^2}{\alpha^2}+\left(\frac{b\beta-bP}\alpha\right)+c`
`\frac{dC}{dP}=\frac{-2a\beta+2aP}{\alpha^2}+\frac{-b}\alpha`
`\frac{dC}{dP}=\frac{-2a\beta+2aP}{\alpha^2}-\frac b\alpha`
`\frac{dC}{dP}=\frac{-2a\beta+2aP-b\alpha}{\alpha^2}`
लाभ अधिकतम करने पर,
`\frac{dC}{dP}=\frac{dR}{dP}`
`\frac{-2a\beta+2aP-b\alpha}{\alpha^2}=\frac{\beta-2P}\alpha`
-2aβ+2aP-bα
= αβ-2αP
2aP+2αP
= 2aβ+ αβ+ bα
P(2a
+2α) = 2aβ+ αβ+ bα
`\therefore P=\frac{2a\beta+\alpha\beta+b\alpha}{2a+2\alpha}`
Putting the value of P in X
`X=\frac{\beta-b}\alpha=\frac\alpha\beta-\frac P\alpha`
`X=\frac\beta\alpha=\frac{2a\beta+\alpha\beta+b\alpha}{\left(2a+2\alpha\right)\alpha}`
`X=\frac{2a\beta+2\alpha\beta-2a\beta-\alpha\beta-b\alpha}{\left(2a+2\alpha\right)\alpha}`
`X=\frac{2\alpha\beta-\alpha\beta-b\alpha}{\left(2a+2\alpha\right)\alpha}`
`X=\frac{\alpha\beta-b\alpha}{\left(2a+2\alpha\right)\alpha}`
`X=\frac{\alpha\left(\beta-b\right)}{\left(2a+2\alpha\right)\alpha}`
`X=\frac{\beta-b}{2\left(a+\alpha\right)}`
यह उत्पादन का वही स्तर है जब फर्म ने उत्पादन निश्चित किया था।
एकाधिकारी के अंतर्गत वस्तु का मूल्य कैसे निर्धारित होता है। इस संदर्भ में
दो प्रकार के सिद्धांतों का प्रतिपादन हुआ।
1. मार्शल द्वारा प्रतिपादित, "मूल और जाँच का सिद्धांत।"
2. श्रीमती रॉबिन्सन द्वारा प्रतिपादित "सीमान्त आय तथा सीमान्त लागत का
सिद्धान्त ।"
प्रो० मार्शल का सिद्धान्त
प्रो. मार्शल का सिद्धांत को 'जाँच एवं
मूल्य प्रणाली' कहते है इस प्रणाली के अनुसार एकाधिकारी विभिन्न मूल्यों पर
प्राप्त होने वाले लाभ की जांच करके अन्त में एक ऐसा मूल्य निश्चित करता है। जिस
पर उसे अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। चूंकि विभिन्न मूल्यों को जांचने के क्रम में
एकाधिकारी से भूल होने की संभावना रहती है। अतः इस प्रणाली को 'जाँच एवं भूल प्रणाली' कहते है। इस प्रणाली से मूल्य
निश्चित करने के लिए एकाधिकारी निम्न दो बातो पर ध्यान देता है।
1. मांग की लोच - मांग की लोच की तीन निम्नलिखित स्थितियां होती हैं-
(a)
मांग की लोच इकाई से अधिक :- जब किसी वस्तु की मांग की लोच इकाई से अधिक रहती है (e>1) तो एकाधिकारी Price को कम रखकर वस्तु की अधिक मात्रा
बेचना पसंद करेगा।
b. मांग की लोच इकाई से कम :- यदि मांग की लोच इकाई से कम रहे (e<1) तो एकाधिकारी
अपने पूर्ति को कम करके उस सीमित पूर्ति को अधिक मूल्य पर बेचेगा।
c. मांग की लोच इकाई के बराबर :- यदि मांग की लोच इकाई के बराबर (e=1) होती है तो एकाधिकारी
उत्पति के नियम पर ध्यान रखकर अपने मूल्य का निर्धारण करता है।
2. उत्पत्ति के
नियम :- उत्पति के नियमो
की निम्न तीन परिस्थितियां होती है -
a. उत्पत्ति वृद्धि नियम :- ऐसी अवस्था में एकाधिकारी अपना उत्पादन बढ़ाकर कम ही
मूल्य रखकर अपने लाभ को अधिक करेगा।
b. उत्पत्ति ह्रास नियम :- ऐसी
अवस्था में एकाधिकारी अपने उत्पादन की मात्रा को कम करके वस्तु का दाम बढ़ायेगा।
c. उत्पत्ति समता नियम :-
इस स्थिति में एकाधिकारी मांग की लोच के अनुसार मूल्य निर्धारण करेगा।
इस प्रणाली के द्वारा वह अपना मूल्य उस बिन्दु पर निश्चित करता है। जहां उसकी कुल आय (TR) एवं कुल व्यय (TC) का अंतर अधिकतम हो, क्योकि इसी अवस्था में एकाधिकारी को अधिकतम शुद्ध लाभ प्राप्त होगा।
TC = कुल लागत रेखा
TR = कुल आय रेखा
रेखाचित्र में TQ अन्तर ही अधिकतम है। एकाधिकार के अंतर्गत
ON मात्रा का उत्पादन होगा।
मार्शल के सिद्धांत के मुख्य दोष यह है कि इससे यह पता नहीं
चलता है कि वस्तु की कीमत क्या होगी? पुनः तुरंत इससे उत्पादन की मात्रा भी निश्चित
नहीं की जा सकती है।
श्रीमती रॉबिन्सन का सिद्धान्त
श्रीमती रॉबिन्सन के अनुसार अधिकतम प्राप्त करने के लिए एकाधिकारी
अपना मूल्य उस बिन्दु पर निश्चित करता है जिस बिन्दु पर सीमान्त आय (MR) एवं सीमान्त
व्यय (MC) एक दूसरे के बराबर हो जाती है।
एकाधिकार कीमत के निर्धारण में MR,AR, MC तथा AC रेखाओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अतः इसकी आकृति जानना आवश्यक है।
एकाधिकार में AR रेखा मांग एवं मूल्य की रेखा होती है।
AR और MR दोनो रेखाएं नीचे की ओर गिरती है, परन्तु MR रेखा AR रेखा से दुगुनी गति से
झुकती है। इसे गणितीय रूप में सिद्ध कर सकते है।
According to Figure Slope of
MR = 2 ( Slope of AR )
Let, TR = ax – bx2---------------(1)
`AR=\frac{TR}x=\frac{ax}x-\frac{bx^2}x=a-bx`
`Slope\;of\;AR=\frac{d(AR)}{dx}=-b`--(2)
Again, TR = ax – bx2
MR = 1st Order derivatives of TR
`\frac{d(TR)}{dx}=MR=a-2bx`
Slope of MR =`\frac{d\left(MR\right)}{dx}`=-2b .......(3)
From equation (2) and (3) we get
Slope of MR = 2 ( slope of AR )
एकाधिकार के अन्तर्गत AC तथा MC की रेखा 'U' की आकार की होती है जिसमें MC रेखा AC रैखा को नीचे से काटती हुई ऊपर चली जाती है।
एकाधिकार में संतुलन के दो शर्ते है-
(a) MR = MC
(b) MC रेखा MR रेखा को नीचे से ऊपर की
ओर जाते हुए काटे
हम जानते हैं की
π = R – C
जहां , π = लाभ , R = आय , C = लागत
We find first derivatives with Respect to X
`\frac{d\pi}{dx}=\frac{dR}{dx}-\frac{dC}{dx}`
लाभ अधिकतम करने पर ;`\frac{d\pi}{dx}=` 0
`or,\frac{dR}{dx}=\frac{dC}{dx}`
⸫ MR = MC
We find Second derivatives With Respect To X
`\frac{d^2\pi}{dx^2}=\frac{d^2R}{d^2x}-\frac{d^2C}{d^2x}`
लाभ अधिकतम करने पर ; `\frac{d^2\pi}{dx^2}`< 0
`or,\frac{d^2R}{d^2x}-\frac{d^2C}{d^2x}<0`
`or,\frac{d^2R}{d^2x}<\frac{d^2C}{d^2x}`
`or,\frac{d^2C}{d^2x}>\frac{d^2R}{d^2x}`
`or,\frac d{dx}\left(\frac{dC}{dx}\right)>\frac d{dx}\left(\frac{dR}{dx}\right)`
अतः , Slope of (MC) > Slope of (MR)
अल्पकालीन संतुलन
यहां संतुलन के लिए एक ही आवश्यक शर्त है (MR=MC)। चूंकि अल्पकाल में फर्म अपनी उत्पादन क्षमता को मांग
के अनुसार सामायोजित नहीं कर पाता। इसलिए अल्पकाल में तीन संभवनाएँ देखने को मिलती
है।
1. असामान्य लाभ की स्थिति -
We
Know that
असामान्य
लाभ = TR - TC
TR = AR ( output ) TC = AC(output)
TR
= PQ
( OQ ) TC = MSQ ( OQ )
TR
= OQPR TC = OQSN
असामान्य
लाभ
= OQPR - OQSN = NSPR
उपर्युक्त रेखाचित्र में E संतुलन बिन्दु है। जहां MR=MC
हैं। अतः E
बिन्दु से होती हुई खड़ी रेखा को
खीचने से वह AR रेखा को P बिन्दु पर मिलती है। चूंकि AR (कीमत); AC के ऊपर है, इसलिए
फर्म को PS प्रति इकाई लाभ होगा, Price - PQ तथा उत्पादन
- OQ होगा।
2. सामान्य लाभ की स्थिति -
सामान्य लाभ = TR - TC
TR = AR ( output ) TC = AC(output)
TR = NP ( ON ) TC
= NP (ON)
TR = ONPQ
TC = ONPQ
सामान्य लाभ = ONPQ - ONPQ = O
रेखाचित्र
मे E संतुलन
बिन्दु है। जहां MR=MC है।
अतः E बिन्दु
से होती हुई खड़ी रेखा AR रेखा तक P
बिन्दु पर मिलती है। यहां AR=AC
है अतः फर्म को
केवल सामान्य लाभ प्राप्त होता है। अतः मूल्य PN तथा उत्पादन की मात्रा ON निर्धारित
होगी।
3. हानि की स्थिति :-
रेखाचित्र में E संतुलन बिन्दु है जहां MR-MC है। इसलिए E बिन्दु से होती हुई खड़ी रेखा AR तक
खीचने से P बिन्दु मिलती है इसलिए मूल्य PN हुई। चूंकि AC रेखा AR रेखा से ऊपर है, इसलिए फर्म
को RP के बराबर प्रति इकाई हानि होगी।
हानि = TR - TC
TR = AR ( output ) TC = AC(output)
TR = NP ( ON )
TC = RंN
(ON)
TR = ONPQ
TC = ONRS
हानि = ONPQ - ONRS = SRQP
अब प्रश्न उठता है कि क्या एकाधिकारी फर्म हानि की अवस्था में अपना फर्म या उत्पादन जारी रखेगा, अथवा बंद कर देगा। स्पष्टता प्रो. हिपडन ने इसका जोरदार ढंग से खंडन कर दिया है कि लॉस (Loss) की किसी भी अवस्था मे जारी रहेगा यदि,
TC
= FC + VC
if
Price > AVC
Firm
will be run
if
Price = AVC
Firm
as to as
if
Price < AVC
Firm
will be droped
दीर्घकालीन संतुलन
दीर्घकाल
एक ऐसी अवस्था है जिसमे उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन किया जा सकता है। अतः दीर्घकाल में एकाधिकारी अपने फर्म का विस्तार एवं
संकुचन कर सकता है। इसके लिए एकाधिकारी उत्पादन के नियमो पर ध्यान देता है। उत्पादन
के तीन नियम निम्न है-
1. लागत ह्रास नियम - इसके अंतर्गत जिस अनुपात में उत्पादन में वृद्धि की जाती है उससे कम अनुपात में लागत में वृद्धि होती है। चित्र से
TR = AR ( output ) TC = AC(output)
TR
= OP ( OQ ) TC = OP' (OQ)
TR
= OPKQ TC = OP'K'Q
हानि
= OPKQ
- OP'K'Q = P'PKK'
रेखाचित्र
में एकाधिकारी लागत ह्रास नियम के अन्तर्गत कार्य कर रहा है। E संतुलन
बिन्दु है। जहां MR=MC
है। इस बिन्दु से होती हुए खड़ी रेखा OP कीमत
को बताती है तथा उत्पादन
की मात्रा OQ को
I AR तथा AC के बीच की खडी रेखा
K'K प्रति इकाई
लाभ को
बताती है।
2. लागत स्थिरता नियम- इस नियम के अनुसार प्रत्येक दशा में वस्तु की लागत समान रहती है। चित्र से
TR = AR ( output ) TC = AC(output)
TR
= OP ( OQ ) TC = QE (OQ)
TR
= OPKQ TC = OP'EQ
लाभ
= OPKQ
- OP'EQ = P'PKE
रेखाचित्र
में एकाधिकारी लागत स्थिरता नियम के अन्तर्गत कार्य कर रहा है। E संतुलन बिन्दु है।
जहां MR=MC है। इस बिन्दु से होती हुए खड़ी रेखा OP कीमत को बताती है तथा उत्पादन की
मात्रा OQ को I AR तथा AC के बीच की खडी रेखा KE प्रति
इकाई लाभ को बताती है।
3. लागत वृद्धि नियम - इस नियम के अनुसार जिस अनुपात में उत्पादन में वृद्धि होती है लागत मे उससे अधिक अनुपात में वृद्धि होती है।
TR = AR ( output ) TC = AC(output)
TR
= OP ( OQ ) TC = OP' (OQ)
TR
= OPKQ TC = OP'K'Q
हानि
= OPKQ
- OP'K'Q = P'PKK'
अब
प्रश्न यह है कि क्या एकाधिकारी कीमत पूर्ण प्रतियोगिता की कीमत से अधिक होती है?
सैद्धांतिक दृष्टि से, एकाधिकारी मूल्य पूर्ण प्रतियोगिता मूल्य से अधिक होती है और उत्पादन की मात्रा की पूर्ण प्रतियोगिता से कम। इसे रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं
पूर्ण प्रतियोगिता मे
कीमत P
बिन्दु पर निर्धारित होगा। जहां MC=AR अतः PS = कीमत,
OS = उत्पादन की मात्रा ।
एकाधिकार की अवस्था में
E
संतुलन बिन्दु है जहां MR = MC है। अतः कीमत MN उत्पादन की मात्रा = ON I
अतः
एकाधिकारी कीमत (MN) पूर्ण प्रतियोगिता की कीमत (PS) से ज्यादा है, परन्तु
एकाधिकारी उत्पादन (ON) पूर्ण प्रतियोगिता के उत्पादन (OS) से
कम है।
व्यवहार
में एकाधिकारी कीमत पूर्ण प्रतियोगिता की कीमत से अधिक नहीं हो सकती है। इसके
निम्न कारण है-
1. जिस
वस्तु का उत्पादन एकाधिकारी कर रहा है. यदि उसकी मांग अधिक लोचदार हो तो एकाधिकारी
मूल्य को ऊंचा नहीं रख सकता ।
2. एकाधिकारी
की अवस्था में उत्पादन प्रायः बड़े पैमाने पर होता है जिससे एकाधिकारी को बड़े
पैमाने के उत्पादन की मितव्ययिताये प्राप्त होती है जो पूर्ण प्रतियोगिता की
स्थिति में प्रायः नहीं मिलती। इसके चलते एकाधिकारी का उत्पादन व्यय कम होता है और
उसका मूल्य भी कम होगा।
3. एकाधिकारी
प्रतियोगिता के भय के कारण ही अपने मूल्य को अधिक ऊंचा नहीं रखता । यदि एकाधिकारी
अधिक मूल्य रखकर अधिक असामान्य लाभ कमाने लगे तो दूसरे फर्म भी उस उद्योग में
प्रवेश करना चाहेंगे और यदि वह सफल हो गये तो एकाधिकारी का लाभ तथा स्वयं एकाधिकार
ही समाप्त हो जायेगा।
4. पूर्ण
प्रतियोगिता की तुलना में एकाधिकारी को विज्ञापन इत्यादि पर कम व्यय करना पड़ता है
जिसके चलते भी उसका उत्पादन व्यय एवं मूल्य कम होता है।
5. सरकारी
हस्तक्षेप के भय से ही एकाधिकारी अपने मूल्य को अधिक ऊंचा नहीं रखता। यदि
एकाधिकारी किसी ऐसी वस्तु का उत्पादन करता है जो समाज के लिए बहुत ही आवश्यक है
तथा उस वस्तु का अधिक मूल्य रखकर वह उपभोक्ताओं का शोषण करता है तो सरकार उस
उद्योग का राष्ट्रीयकरण कर सकती है। अतः इसका व्यय एकाधिकारी को बना रहा है।
निष्कर्ष
जिस
प्रकार राजा अपने क्षेत्र का शासक होता है। उसी प्रकार एकाधिकारी भी अपनी वस्तु के
Price तथा उत्पादन के लिए मनमानी कर सकता है। क्योकि उसकी
वस्तु का कोई स्थानापन्न वस्तु नहीं होता है इसलिए कहा जाता है कि " Monopoly is a
king with out a Crown"
परंतु इसका अभिप्राय यह नहीं है कि वह पूर्णतयः मनमानी कर सकता है क्योंकि एकाधिकारी का पूर्ति पर तो नियंत्रण रहता है किन्तु मांग पर नहीं।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)