प्रश्न :- त्वरक के सिद्धांत की आलोचनात्मक व्याख्या
करे
☞ त्वरक के अर्थ, कार्यशीलता, सीमाएँ तथा महत्त्व
की व्याख्या करे ?
उत्तर :- त्वरक की धारणा का अर्थशास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान है। इस धारणा की सबसे पहले
चर्चा फ्रांसीसी अर्थशास्त्री अफ्तालियन
ने 1909 में की थी, बाद में इस सिद्धांत को अमेरिकन अर्थशास्त्री प्रो. जे.एम. क्लार्क
ने 1917 ई. मे विकसित किया। आधुनिक समय में हैरोड, हेन्सन, सैम्युल्सन, हिक्स, पीगू,
कूरिहारा ने इस सिद्धांत को अधिक विकसित किया।
इस सिद्धांत के अनुसार उपभोग माँग में वृद्धि निवेश को उत्तेजित करती है और उपभोग माँग में कमी निवेश को कम करती है। उपभोग और निवेश में यह संबंध त्वरक कहलाता है। यह संबंध उपभोग व्यय में विशुद्ध परिवर्तन और निवेश में विशुद्ध परिवर्तन के बीच होता है -
`or,a=\frac{\Delta I}{\Delta C}`
त्वरक विनियोग पर उपभोग में
होने वाले परिवर्तन के प्रभाव की व्याख्या करता है।
`\frac{\Delta I}{\Delta C}=a---(1)`
उपभोग में परिवर्तन होने
के
परिणामस्वरूप निवेश में कितना परिवर्तन होगा।
`\frac{\Delta Y}{\Delta C}=a---(2)`
उपभोग में परिवर्तन होने पर
आय में कितना परिवर्तन होगा।
`\frac{\Delta I}{\Delta Y}=a---(3)`
आय में परिवर्तन होने पर
निवेश में कितना परिवर्तन होगा समीकरण (1), (2) और (3) को मिलाने पर
`a=\frac{\Delta I}{\Delta C}=\frac{\Delta Y}{\Delta C}=\frac{\Delta I}{\Delta Y}`
त्वरक विनियोग की मात्रा पर
होने वाले उपभोग की दर में वृद्धि अथवा कमी के प्रभावो की माप करता है। यह उपभोग
में शुद्ध परिवर्तन के फलस्वरूप विनियोग में शुद्ध परिवर्तन में अनुपात को व्यक्त
करती है।
जब
नये विनियोग के फलस्वरूप आय में वृद्धि होती है तो व्यवसायी आशावादी हो जाते है और
अपने विनियोग में वृद्धि करते है। इसके अतिरिक्त बढ़ी हुई आय उपभोग में वृद्धि को प्रेरित
करती है। दूसरी ओर यदि आय में कमी होती है तो उपभोग व्यय तथा विनियोग में कमी होगी।
इस प्रकार उपभोग मे परिवर्तन तथा प्रेरित विनियोग के बीच प्रत्यक्ष संबंध है तथा उपभोग में
शुद्ध परिवर्तन एवं प्रेरित विनियोग में शुद्ध परिवर्तन के अनुपात को त्वरक
गुणांक कहा जाता है। उदाहरण के लिए यदि उपभोग व्यय
में 10 करोड़ रूपये की शुद्ध वृद्धि हो तो विनियोग में 20 करोड़ रूपये का शुद्ध वृद्धि
होगा, तब त्वरक गुणांक 2 होगा।
इसका कारण यह है कि उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन के लिए पूँजीगत उपकरणों की आवश्यकता
होती है जिसके लिए विनियोग में वृद्धि की जाऐगी।
बिना
समय अन्तराल के त्वरक का सिद्धांत को इस प्रकार लिख सकते है-
`I\left(t\right)=I\{\frac d{dt}Y\left(t\right)}---(4)`
जहां `\frac d{dt}Y(t)` कुल उत्पादन का अनुपात है और (t) प्रेरित विनियोग का दर है। रेखीय रूप में
`I\left(t\right)=V\frac d{dt}Y\left(t\right)---(5)`
जहां V विनियोग गुणांक की
घनात्मक स्थिरांक है।
यदि K प्रतिक्रिया की दर है तो समय का स्थिरांक `T=\frac1K` है प्रेरित विनियोग की दर निर्भर करता है
`\frac d{dt}I(t)=-K\{I(t)-V\frac d{dt}Y(t)\}---(6)`
उपयुक्त समीकरण का अर्थ इस प्रकार
है- विनियोग का सम्भावित दर जहाँ समय स्थिर है तब त्वरक
`J(t)=V\frac d{dt}Y(t)` है
विनियोग का वास्तविक दर I(t) जो बढ़ता है `\frac d{dt}I(t)` घटते हुए दर से जो`-\{I(t)-J(t)\}=-\{I(t)-V\frac d{dt}Y(t)\}` जहां K तीव्र प्रतिक्रिया की दर को बताता है।
समीकरण (6) का घतांकीय रूप
है जो अवकलन के साथ इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है
`D=\frac d{dt}`
DI = - K (I – VDY)
DI = - KI + KVDY
DI+ KI = KVDY
I(D+ K) = KVDY
`I=\frac{KVDY}{D+K}---(7)`
जो त्वरक को बताता है
समय विश्लेषण में त्वरक को
इस प्रकार लिखा जा सकता है
`I_t=I\{Y_t-Y_{t-1}\}=V(Y_t-Y_{t-1})---(8)`
जो रैखीय रूप में है।
समीकरण (8) जो समीकरण (5) से मिलता है और प्रेरित विनियोग निर्भर करता है वर्तमान
उत्पादन के परिवर्तन पर। इस प्रकार त्वरक का साधारण रूप इस प्रकार होगा
`I_t=I\{Y_{t-1}-Y_{t-2}\}=V(Y_{t-1}-Y_{t-2})---(9)`
त्वरक सिद्धांत यह बताता है
कि विशुद्ध प्रेरित निवेश पूर्ण रूप से अन्तिम उत्पादन में होने वाली वृद्धि की दर
का परिणाम है। यदि Yt-1 >
Yt-2 हो तो t अवधि के दौरान शुद्ध निवेश धनात्मक होता है
। दूसरी ओर यदि Yt-1 < Yt-2
होने
पर शुद्ध निवेश ऋणात्मक होता है अर्थात t
अवधि के दौरान विनिवेश होता है।
प्रो. जे. आर. हिक्स ने अपनी पुस्तक 'Value and Capital' में व्यापार चक्र कि व्याख्या त्वरक कि क्रियाशीलता पर आधारित होकर कि है जिसे चित्र से स्पष्ट किया जा सकता है।
प्रो. हिक्स ने स्पष्ट किया है कि
(1) `\frac{d^2Y(t)}{dt^2}=0` से लेकर `\frac{d^2Y(t)}{dt^2}=0` तक त्वरक काम करता है।
(2) अर्थव्यवस्था कि यह जीवन्त अवस्था है।
(3) मृत अथवा मृतप्राय अर्थव्यवस्था में त्वरक कार्य नहीं करता है।
यदि `a=\frac{dI}{dC}--(10)`
जहां a = त्वरक , V = त्वरक
गुणांक, I = निवेश, Y = आय
प्रो. हिक्स के अनुसार
`V=\frac{dI}{dY}`
or, dI = dY.V ---(11)
Putting the value of
equation (11) in equation (10)
`a=\frac{dY.V}{dC}`
`or,a=V\frac{dY}{dC}--(12)`
`or,a=g\frac{dY}{dC}` ( जहां g = कुल)
`or,a=g\frac{dY(t)}{dt}---(13)`
From equation (10),
(12) and (13)
`a=g\frac{dY(t)}{dt}=\frac{dI}{dC}=V.\frac{dY}{dC}`
गणितीय विश्लेषण स्पष्ट करता
है कि त्वरक आय को बढ़ाने के लिए एक प्रमुख कारक है
जो समय के परिवर्तन के साथ संभव है।
मान्यताएँ
त्वरक सिद्धांत कुछ मान्यताओं
पर आधारित है। जो निम्नलिखित है -
(1) पूँजी और उत्पादन का
अनुपात स्थिर रहता है
(2) वस्तु की पर्याप्त उपलब्धता
बाजार में हो
(3) पूर्ति पूर्णतः लोचदार
होनी चाहिए
(4) वस्तु का अतिरिक्त भण्डार
उपभोक्ता के यहाँ नहीं होना चाहिए।
(5) ब्याज की दर बहुत कम
होना चाहिए,
(6) पूँजी की सीमांत उत्पादकता
बहुत अधिक होना चाहिए
(7) अर्थव्यवस्था में मुद्रा
स्फीति होनी चाहिए
(8) अर्थव्यवस्था में राजनीतिक
स्थिरता एवं शांति रहनी चाहिए
त्वरक को एक काल्पनिक उदाहरण द्वारा
भी स्पष्ट कर सकते है- मान लिया की 100 उपभोक्ता वस्तुओं की वर्तमान
मांग
को
स्थिर रखने के लिए 10 मशीनो की जरूरत होती है। हर वर्ष 1 मशीन घीस जाती है। त्वरक गुणांक
1 मान लिया गया है। अब मान लीजिये कि उपभोक्ता वस्तुओं के लिए माँग 100 इकाइयों से
बढ़कर 110 हो जाती है। उपभोक्ता वस्तुओ की इन 10 अतिरिक्त इकाइयों
से उत्पादन के लिए एक अतिरिक्त मशीन की आवश्यकता है। इसका अर्थ है कि इस अवधि में दो
नई मशीन बढ़ानी पडेगी। एक तो प्रतिस्थापन के लिए और दूसरी उपभोक्ता
वस्तुओं की इन 10 अतिरिक्त इकाइयों के लिए।
वर्ष |
उपभोग वस्तुएं इकाइयां |
मशीनों की संख्या जिनकी जरूरत |
मशीनों का वार्षिक प्रतिस्थापन |
कुल निवेश मशीनों के रूप में |
शुद्ध निवेश बढ़ाई गई मशीन |
1 |
100 |
10 |
1 |
1 |
0 |
2 |
110 |
11 |
1 |
2 |
1 |
3 |
110 |
11 |
1 |
1 |
0 |
उपभोक्ता, वस्तुओं में
10 प्रतिशत वृद्धि होने से शुद्ध निवेश मशीनों
के
रूप
में शून्य से बढ़कर एक हो जाता है और कुल
निवेश दुगुना हो जाता है अर्थात् 100 प्रतिशत बढ़कर मशीनो के रूप मे एक से दो पर पहुंच
जाता है। यदि उपभोग मांग 110 पर स्थिर रहे तो उत्पादक को और मशीनों की
जरूरत नही पड़ेगी। अत: तीसरे वर्ष
में कुल निवेश 50% घट जाता है और शुद्ध निवेश गीरकर शून्य हो जाता
है। निष्कर्ष यह प्राप्त होता है कि शुद्ध निवेश उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में परिवर्तन
पर निर्भर करता है। जब उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन बढ़ती है तो शुद्ध निवेश धनात्मक होता है और जब वह
स्थिर हो तो शुद्ध निवेश शून्य होता है।
विनियोग में प्रारम्भिक वृद्धि
के फलस्वरूप आय में कुल कितनी वृद्धि होगी, इसे जानने के लिए गुणक तथा त्वरक दोनो पर विचार करने
की जरुरत पड़ती है। इसी सिलसिले में सुपर गुणक की विवेचना की जाती है
आय पर गुणक-त्वरक के संयुक्त
प्रभाव को स्पष्ट कर सकते है। माना कि प्रेरक
उपभोग तथा प्रेरक विनियोग का योग प्रेरक व्यय (MPX) है -
अर्थात
`MPX=MPC+MPI`
जहाँ MPI = विनियोग की सीमांत
प्रवृत्ति
ऐसी स्थिति में सुपर गुणक
`=\frac1{1-MPX}`
`=\frac1{1-(MPC+MPI)}`
सरल गुणक`=\frac1{1-MPC}`
मान लिया MPC `=\frac{3}5=0.6`
`MPI=\frac{1}5=0.2`
सरल गुणक`=\frac1{1-MPC}=\frac1{1-0.6}=2.5`
सुपर गुणक `=\frac1{1-MPX}`
`=\frac1{1-(0.6+0.2)}=\frac1{0.2}=5`
मन्दी काल में सरल गुणक ही
आय सृजन का सही परिणाम देने में सक्षम है। अतिरिक्त उत्पादन क्षमता के समाप्त होने
पर सुपर गुणक ही आय सृजन का सही परिणाम देगे।
सीमाएँ
त्वरक की कुछ सीमाएँ भी है।
जिनमे त्वरक कार्यशील नहीं हो पाता। इन परिस्थितियों में उपभोक्ता वस्तु उद्योगों
में उत्पादन में परिवर्तन होने पर भी विनियोग वस्तु उद्योगों पर या तो कुछ भी
प्रभाव नहीं पड़ता या नहीं के बराबर प्रभाव पड़ता है-
(1)
उपभोग उद्योगों के अतिरिक्त उत्पादन क्षमता
:- यदि स्टॉक में पहले से ही अत्यधिक मशीने है या कुछ मशीने बेकार पड़ी है या
मशीनो को पर्याप्त काम ही नहीं है तो उपभोक्ता वस्तु उद्योगों में नया विनियोग
नहीं दिया जायेगा।
(2)
विनियोग वस्तु उद्योगों मे अतिरिक्त उत्पादन क्षमता
:- त्वरक की कार्यशीलता इस मान्यता पर आधारित है कि विनियोग वस्तु उद्योगों में
अतिरिक्त उत्पादन क्षमता विद्यमान है लेकिन यदि विनियोग वस्तु उद्योगों में
अतिरिक्त उत्पादन क्षमता न हो तो त्वरक की कार्यशीलता में बाधा उत्पन्न हो जाती
है।
(3)
माँग में अस्थायी परिवर्तन होना चाहिए :- कभी-कभी माँग में
वृद्धि अथवा कमी अस्थायी ही होती है। माँग में ऐसी वृद्धि अथवा कमी निवेश में
परिवर्तन नहीं कर पाती। माँग में केवल वे ही परिवर्तन निवेश की मांग को उत्तेजित
करते है जो जिकाऊ अथवा स्थायी प्रकृति वाले होते है।
(4)
साख की उपलब्धता :- त्वरक की क्रियाशीलता के लिए
यह आवश्यक है कि निवेश के लिए सस्ती साख आवश्यक परिमाण में उपलब्ध हो क्योकि निवेश
के लिए उत्पादको को साख की आवश्यकता होती है।
(5)
पूँजी उत्पाद अनुपात में परिवर्तन :- त्वरक स्थिर पूँजी उत्पाद
अनुपात पर आधारित है। किंतु यह अनुपात स्थिर नहीं रहता क्योंकि उत्पादन तकनीक में होने
वाले परिवर्तन पूँजी उत्पाद अनुपात में परिवर्तन कर देता है।
(6)
सार्वजनिक उद्योगों की स्थापना :- यदि सरकार द्वारा दीर्घकाल
में फल देने वाले उद्योगों की स्थापना की जाती है तो ऐसे उद्योगों में होने वाला विनियोग
स्तर पर आधारित नहीं होता अतः त्वरक कार्यशील नहीं होता।
आलोचनाएँ
इस
सिद्धांत की निम्नलिखित तर्को से आलोचनाएँ की गई है
(1)
अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित :- यह सिद्धांत अवास्तविक मान्यताओं
पर आधारित है जो तथ्यों से मेल नही खाती, यह सिद्धांत कल्पना करता है कि उपभोग वस्तुओं
में अतिरिक्त उत्पादन क्षमता नहीं होती है, निवेश वस्तुओं में अतिरिक्त उत्पादन क्षमता
विद्यमान होती है, पूँजी उत्पाद अनुपात स्थिर होता है, पूँजी की पुनर्स्थापना माँग
स्थिर होती है, वास्तविक तथा मौद्रिक संसाधन पर्याप्त उपलब्ध होती है।
(2)
प्रत्याशों की अवहेलना :- निवेश साहसियों की प्रत्याशाओ
पर निर्भर रहता है परन्तु त्वरक सिद्धांत में प्रत्याशा की उपेक्षा कर दी गयी है। साहसी
किसी एक ही वर्ष की बिक्री के आधार पर ही निवेश नहीं करते। सम्भव है कि बढ़ी हुई माँगो
की पूर्ति वस्तुओं के रखे गये स्टॉको से कर ली जाय क्योंकि इनकी पहले से ही प्रत्याशा
कर ली गयी हो और उनके लिए पहले से ही स्टॉक रखे गये हो।
नये मशीनों
के लिए आदेश ही नहीं दिये जाये क्योंकि संघटको को प्रत्याशा हो सकती है कि बढ़ी हुई
माँग केवल अस्थायी ही है। वस्तुतः प्रेरित निवेश अनेक आर्थिक, राजनीतिक तत्त्वों पर
आधारिता होती है।
(3)
भौतिक सीमाओं की अवहेलना :- निवेश के लिए अनेक बाधाएं
और सीमाएँ हो सकती है। नये निवेश से उत्पादन प्रारम्भ होने के पहले छोटी बड़ी फलावधि
हो सकती है। अर्थात् निवेश करने और उससे उत्पादन प्रारम्भ करने
के बीच एक अवधि बीत सकती है जिसे निर्माण की अवधि
कहते है। निवेश का फल कुछ समय के बाद ही मिल पाता है। यदि यह
अवधि 4 वर्षों की हो तो प्रेरित निवेश का पूर्ण संगठन 4 वर्षों तक चलता रहेगा न कि एक वर्ष तक । माँग
के बढ़ने के बाद भी जिन
फर्मो के पास अपना आन्तरिक वित्तीय कोष नहीं
होता है और जिन्हें धन राशि
बैंको अथवा दूसरे स्त्रोतों से
ऋण के रूप मे नही मिल पाती उन्हे विवश
होकर नई मशीनों के लिए आदेश देने के कार्य को स्थगित कर देना पड़ता है। वे चाहते हुए
भी विस्तार नहीं कर सकती।
पूँजी
संयंत्र भारी और अविभाजनशील हो सकती है जिनमें खर्च अधिक हो सकती है। अतः इनकी स्थापना
तभी हो सकती है जब बढ़ी हुई
मांग पर्याप्त और स्थायी हो। यह तथ्य और भी महत्त्वपूर्ण इसलिए है कि आधुनिक युग में
एक ही नयी मशीन की स्थापना नहीं की जा
कर मशीनों की एक समूह की स्थापना की जाती है।
व्यवस्था
का अभी जो उपलब्ध स्तर है वह संयंत्र और पूँजीगत साज-सम्मान में केवल सीमित वृद्धियाँ
होने पर ही उनका कुशलता पूर्वक सचांलन व्यवस्था कर पाता है।
महत्व
त्वरक
सिद्धांत आर्थिक विश्लेषण में विशेष स्थान रखता है-
(1)
आय प्रजनन की व्यख्या में महत्त्वपूर्ण
:- गुणक सिद्धांत की अपेक्षा त्वरण का नियम आय प्रजनन की प्रक्रिया को अधिक वास्तविक
तथा स्पष्ट बनाता है।
(2)
निवेश के प्रभाव की व्याख्या में महत्त्वपूर्ण
:- गुणक उपभोग के मार्ग से आय पर निवेश में परिवर्तन का प्रभाव दिखाता है, जबकि त्वरक
निवेश तथा आय पर उपभोग के प्रभाव को व्यक्त करता है।
(3)
आय तथा रोजगार के उतार-चढ़ाव की व्याख्या में महत्त्वपूर्ण
:- त्वरक पूँजी वस्तुओं के उद्योगो में उतार-चढाव के परिणाम स्वरूप आय तथा रोजगार में
होने वाले तीव्र उतार चढ़ावो की व्याख्या करता है। यह नीचे के मोढ बिन्दुओं
की अधिक व्याख्या कर सकता है।
(4)
व्यापार चक्र की व्याख्या में महत्त्वपूर्ण
:- प्रो. जे. आर. हिक्स का व्यापार चक्र मूलतः त्वरक
सिद्धांत पर ही आधारित और आधुनिक व्यापार चक्र सिद्धांत में त्वरक और गुणक
केन्द्रीय तत्त्व है।
(5) विकास सिद्धांत में भी
त्वरक सिद्धांत को स्थान मिला है। प्रो. आर. एफ हैंरोड का सतत् विकास सिद्धांत
त्वरक सिद्धांत पर ही आधारित है।
निष्कर्ष
उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद हम कह सकते है कि आर्थिक विश्लेषण में त्वरक सिद्धांत एक महत्वपूर्ण यंत्र के रूप में काम करता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था (INDIAN ECONOMICS)
व्यष्टि अर्थशास्त्र (Micro Economics)
समष्टि अर्थशास्त्र (Macro Economics)
अंतरराष्ट्रीय व्यापार (International Trade)