प्रश्न : मकड़ी जाल मॉडल की विशेषताओं का वर्णन करे
?
उत्तर : जब माँग,
पूर्ति तथा कीमत के बीच एक समयावधि में प्राप्त संतुलन का अनुसंधान किया जाता है तो उसे मकड़ी जाल सिद्धांत कहते है। उत्पादको का पूर्ति वक्र
यह प्रदर्शित करता है कि कीमत में परिवर्तन होने पर उत्पादक किस प्रकार अपने उत्पादन
में समायोजन करते है। अधिक कीमतों पर वे अधिक उत्पादन करते है तथा अपेक्षाकृत कम कीमत
पर वे कम उत्पादन करते है।
किंतु कीमत में परिवर्तन होने के परिणामस्वरूप उत्पादन में
यह समायोजन तुरन्त नहीं होता है बल्कि इस पर बहुत अधिक समय लगता है। पूर्ति के बीच
इसी समय- अन्तराल को पूर्ति बिलम्ब कहा जाता है। कृषि वस्तुओ तथा पशुपालन इत्यादि की
स्थिति में प्रायः पूर्ति विलम्ब पाया जाता है। पूर्ति विलम्ब प्रायः समय के साथ कीमत
तथा मात्रा मे चक्रीय परिवर्तन या उच्चावचन के रूप में परिणत होते है।
मकडी जाल मॉडल :-
इसे हम एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते है। माना कि गेहूँ की किसी बाजार कीमत पर उसकी
पूर्ति की गयी मात्रा मे एक वर्ष का विलम्ब होता है। अतः
St = ƒ (Pt-1)
जिसका अर्थ है कि t वर्ष में पूर्ति की गयी गेहूँ की मात्रा पूर्व वर्ष (Pt-1) में प्रचलित कीमत पर निर्भर करती
है। इसके अतिरिक्त वर्तमान वर्ष की औसत (Pt) आगमी अवधि में पूर्ति की मात्रा (St-1) निर्धारित करेगी।
फलन के माँग पक्ष में कोई विलम्ब नहीं होता है
अर्थात् किसी वर्ष की माँगी गयी मात्रा उसी वर्ष की ही कीमतो पर निर्भर करती है।
किसी वर्ष में संतुलित कीमत उस स्तर पर निर्धारित होती है जिस पर किसी वर्ष t में
माँगी गयी मात्रा t वर्ष में
पूर्ति की गयी मात्रा के बराबर होती है। पूर्ति इस मॉडल मे पूर्व वर्ष में प्रचलित
कीमत पर निर्भर करती है। यह ध्यान देने योग्य है कि गेहूँ जैसी कृषि वस्तुओं की
पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होती है जिसकी पूर्ति में वृद्धि के लिए आगामी वर्ष तक
अधिक मात्रा का उत्पादन नहीं किया जा सकता है। अतः किसी वर्ष t में -
Dt = St
or, Dt - St = 0
यह वह संतुलन स्थिति
है जो किसी वर्ष में कीमत में समायोजन द्वारा लायी जाती है। किसी वर्ष में बाजार में किसी उत्पादक के पास अनबिका माल नहीं होता तथा किसी उपभोक्ता की असन्तुष्ट माँग नहीं
होती है। कीमत में परिवर्तन का सम्भावित
समय मार्ग तथा उसके परिणामस्वरूप उच्चावचन की प्रकृति विशिष्ट माँग तथा पूर्ति फलन
पर निर्भर करती है। मकड़ी जाल के
अनुसार माँग तथा पूर्ति को गणितीय रूप में निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं -
Dt = bPt + a -----(1)
St = gPt-1 + c -----(2)
संतुलन में
Dt - St = 0
or, bPt + a - gPt-1 – c = 0
-----(3)
Pt का मान निकालने पर
`or,P_t=\frac{c-a}b+\frac gbP_{t-1}---(iv)`
माना कि जब t = 0 तो कीमत (P) = P0 होती है तो समीकरण (iv) का हल
`P_t=P_0-\frac{c-a}{b-g}+\left(\frac gb\right)^t+\frac{c-a}{b-g}`
माँग फलन में b तथा a अचर है जहाँ b वस्तु की कीमत तथा उसकी माँग के
संबंध को प्रदर्शित करने वाली ढाल का गुणक है तथा a एक स्थिर अवरोध तत्त्व है। इसी
प्रकार पूर्ति फलन मे g तथा c अचर है
जिसमे g वस्तु की
कीमत तथा उस पर की जाने वाली पूर्ति की मात्रा के बीच सम्बंध को प्रदर्शित करने
वाला ढाल गुणक है तथा c इस पूर्ति फलन का अवरोध तत्त्व है।
अतः समय पर आधारित कीमत की मार्ग, माँग फलन की ढाल के निरपेक्ष मूल्य तथा पूर्ति फलन के ढाल पर निर्भर करता है। यदि पूर्ति वक्र का ढाल मांग वक्र के ढाल की अपेक्षा अधिक है तो हमे घटता हुआ उच्चावचन प्राप्त होते हैं जो एक मकड़ी जाल की तरह प्रतीत होता है। जिसे हम रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं:-
उपर्युक्त रेखाचित्र में कीमत-मात्रा संयोग (P1Q1) से प्रारम्भ करके कीमत तथा
मात्रा के समय मार्ग की विवेचना करती है।
माँग तथा पूर्ति वक्र कीमत P0 तथा मात्रा Q पर एक दूसरे को
काटती है। इसलिए वे क्रमशः संतुलन कीमत तथा मात्रा है।
माना कि सूखे जैसी बाधा उत्पन्न हो जाती है जो गेहूं
के उत्पादन (मात्रा) को Q1 तक कम कर देती है। अतः माँग वक्र DD तथा पूर्ति की मात्रा Q1 होने पर कीमत P1 निर्धारित होती है पूर्ति वक्र SS से यह देखा जा सकता है कि P1 कीमत
पर पूर्ति की Q2 मात्रा आगामी वर्ष t2 में आयेगी। पूर्ति Q2
तथा माँग वक्र DD होने पर कीमत P₂ निर्धारित होती है। इस प्रकार कीमत वर्ष 1 में P1
से कम होकर वर्ष 2 में P2 निर्धारित हो जाती है। इसके पश्चात देखा जा सकता
है P2 कीमत आगामी वर्ष 3 में Q3 पूर्ति को प्रेरित करेगी। Q3 पूर्ति
की मात्रा तथा DD माँग वक्र होने पर अवधि
3 में संतुलित कीमत P3 निर्धारित होती है। इसके कारण आगामी अवधि में पूर्ति में और अधिक परिवर्तन होगा जो कीमत में पुनः
परिवर्तन करेगी।
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि वर्तमान स्थिति में जबकि
पूर्ति वक्र का निरपेक्ष ढाल मांग वक्र की अपेक्षा अधिक होता
है तो कीमत में घटता उच्चावचन प्राप्त होते है किंतु समय के साथ इसकी प्रवृत्ति संतुलन
स्तर की ओर जाने की होती है। अतः घटता हुआ उच्चावचन का मकड़ी जाल मॉडल स्थिर प्रावैगिक
संतुलन की स्थिति को प्रदर्शित करता है।
रेखाचित्र
b से पता चलता है कि जो विभिन्न वर्षों के दौरान प्रत्यक्ष रूप से कीमत का समय मार्ग प्रदर्शित करता है तथा यह दिखाता
है कि समय के साथ कीमत संतुलन स्तर के समान होने की प्रवृत्ति रखती
है।
निरन्तर उच्चावचन -
यदि माँग तथा पूर्ति वक्र के निरपेक्ष ढाल एक समान है
तो हमें निरन्तर उच्चावचन का मकड़ी जाल मॉडल प्राप्त होगा, प्रारम्भ में वर्ष 1
में वस्तु की उत्पादित मात्रा Q1 है तथा माँग वक्र DD दी होने पर वर्ष 1 मे कीमत P1 निर्धारित होती है। वर्ष 1 में P1 कीमत वर्ष 2 मे Q2 उत्पादन तथा पूर्ति की मात्रा को
प्रेरित करती है। पूर्ति की मात्रा Q2 तथा माँग वक्र DD होने पर वर्ष 2 मे अपेक्षाकृत कम कीमत P₂
निर्धारित होती है। पूर्ति वक्र SS से देखा जा सकता है कि अपेक्षाकृत कम कीमत P2 पर उत्पादक उत्पादन तथा पूर्ति की
मात्रा को पुनः Q1 तक कम कर देते हैं। पूर्ति की मात्रा Q1 तथा माँग वक्र DD होने पर कीमत
पुनः वर्ष 3 मे बढ़कर
P1 हो जाती है तथा यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। कीमत में P1 तथा P2 के बीच निरन्तर उच्चावचन होता रहता
है तथा मात्रा Q1 तथा Q2 के बीच निरन्तर ऊपर-नीचे होती रहती है। निरन्तर उच्चावचन की स्थिति में कीमत
तथा मात्रा सन्तुलन कीमत तथा मात्रा की ओर नहीं जाते है। अतः एक बार सन्तुलन भंग
हो जाने पर पुनः सन्तुलन कभी प्राप्त नहीं होता है। जब मात्रा कम होती है तो कीमत
अधिक होती है तथा मात्रा अधिक होने पर कीमत कम होती है।
विस्फोटक उच्चावचन :-
विस्फोटक उच्चावचन कीमते तथा मात्राएँ माँग तथा
पूर्ति वक्रो के प्रतिच्छेद द्वारा व्यक्त संतुलन के बजाय संतुलन से और अधिक दूर
हटती जाती है। यह तब होता है जबकि पूर्ति वक्र की ढाल का निरपेक्ष मूल्य माँग वक्र
की ढाल की अपेक्षा कम होता है। इसका अर्थ यह है कि जब कीमत में परिवर्तन होता है
तो माँग की अपेक्षा पूर्ति अधिक अंश तक परिवर्तित हो जाती है जिससे कीमत तथा
मात्रा के उच्चावचन का विस्तार समय के साथ निरन्तर बढ़ता जाता है तथा बहुत ही अधिक
हो जाता है। इसे ही उच्चावचन विस्फोटक उच्चावचन कहा जाता है।
उपर्युक्त रेखाचित्र में वर्ष 1 में P1 कीमत में प्रारम्भ करने पर यह
वर्ष 2 मे P2 तक कम हो जाती है तथा इसके बाद यह
वर्ष 3 में तेजी से P3 तक बढ़ जाती है और उसके बाद P4 तक अत्यधिक कम हो जाती है। कीमत पुनः
आगामी वर्षों में तेजी से बढ़कर P5 हो जाती है। कीमत में परिवर्तन को चित्र b में प्रदर्शित किया गया है जहाँ
यह देखा जा सकता है कि यह मांग तथा पूर्ति वक्रो के प्रतिच्छेद द्वारा व्यक्त
संतुलन की स्थिति से निरन्तर दूर हटने की प्रवृत्ति रखती है।
सन्तुलन की स्थिरता
आर्थिक नीति के लिए बाजार के
सन्तुलन की स्थिरता का अत्याधिक महत्त्व है। यदि एक प्रतिस्पर्धात्मक बाजार स्थिर
संतुलन की स्थिति में होता है तो इसका अर्थ है कि यह किसी भी बड़ी तथा सशक्त बाह्य
बाधाओं को झेल सकता है।
उदाहरण के लिए यदि माँग तथा पूर्ति के दिये होने पर
कुछ तत्त्वों के कारण कीमत बढ़ती है और अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति उत्पन्न हो
जाती है। ऐसी स्थिति में यदि बाजार सन्तुलन स्थिर है तो सरकार के बिना किसी
हस्तक्षेप के कीमत स्वतः ठीक हो जायगी परन्तु व्यवहार जगत में कुछ वस्तु बाजारो,
श्रम बाजारो, विदेशी विनिमय बाजारो में अस्थिर संतुलन देखते है और वह स्वतः
संतुलित नहीं हो सकते । अत: कीमतो तथा आय एवं रोजगार के उच्च स्तर की स्थिरता के
साथ संतुलन प्राप्त करने के लिए अर्थव्यवस्था में सरकार द्वारा हस्तक्षेप आवश्यक
होता है।
निष्कर्ष
उपर्युक्त विवेचनाओ के आधार पर कहा जा सकता है कि मकड़ी जाल मॉडल अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्त्वपूर्ण रूप रेखा तैयार करता है जो माँग, पूर्ति तथा कीमत के बीच एक समयावधि में प्राप्त संतुलन का अनुसंधान करता है।
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