फेल्पस का वृद्धि मॉडल (संचयन का स्वर्णिम नियम) [PHELPS' MODEL OF GROWTH] (The Golden Rule of Accumulation)

फेल्पस का वृद्धि मॉडल (संचयन का स्वर्णिम नियम) [PHELPS' MODEL OF GROWTH] (The Golden Rule of Accumulation)

काल्डोर का आर्थिक वृद्धि मॉडल [KALDOR'S MODEL OF ECONOMIC GROWTH]

प्रश्न  :- फेल्पस के आर्थिक वृद्धि मॉडल की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।

फेल्पस द्वारा प्रतिपादित संचयन के स्वर्णिम नियम की विवेचना कीजिए।

"स्वर्णिम युग में अनुकूलतम वृद्धि पथ पर प्राकृतिक वृद्धि दर की दशाओं के अन्तर्गत निवेश की दर लाभ की प्रतिस्पर्द्धात्मक दर के बराबर होती है।" फेल्पस के इस कथन की व्याख्या कीजिए।

उत्तर :- फेल्पस ने अमेरिकन इकोनॉमिक रिव्यू में 'The Golden Rule of Accumulation' शीर्षक से प्रकाशित अपने लेख के माध्यम से एक आर्थिक वृद्धि मॉडल का प्रतिपादन किया तथा सोलोविया (Solovia) नामक देश को सन्दर्भित करते हुए मत व्यक्त किया कि अर्थव्यवस्था आर्थिक वृद्धि के स्वर्णिम युग पथ (golden age path) पर चलती रहे, इसके लिए आवश्यक है कि बचत अथवा निवेश की दर तथा लाभ की प्रतियोगी दर आपस में बराबर रहे।

मान्यताएं (Assumptions)

फेल्पस का वृद्धि मॉडल निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है :

1. अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की दशा विद्यमान है।

2. प्राकृतिक संसाधनों की पर्याप्त आपूर्ति बनी रहती है।

3. उत्पादन में पैमाने के स्थिर प्रतिफल का नियम लागू होता है।

4. श्रम तथा पूंजी का परस्पर प्रतिस्थापन किया जा सकता है।

5. तकनीकी बेरोजगारी की सम्भावना नहीं है।

6. श्रम शक्ति तथा जनसंख्या में γ दर से घातांकी वृद्धि होती है। यदि किसी समय (t) पर श्रम की मात्रा Nt है तब,

Nt = Noeγt , γ > 0 ---(1)

7. स्थायी रूप से प्रौद्योगिकी दी गई है तथा पूंजी की उत्पादकता अथवा दक्षता (efficiency) में λ की दर से वृद्धि हो रही है तथा श्रम में μ की दर से सुधार हो रहा है।

अतः किसी भी समयावधि (t) में उत्पादन फलन का स्वरूप होगा,

`P_t=ƒ(e^{\gamma t}K_t.e^{\gamma t\}N_t),\lambda\geq0,\mu\geq0---(2)`

जहां,

Pt = समय (t) पर उत्पादन

Kt = समय (t) पर पूंजी की मात्रा

Nt = समय (t) पर श्रम की मात्रा

यदि पूंजी की प्रभावी मांग `\left(\hat{K_t}\right)=e^{\gamma t}K_t` तथा श्रम की प्रभावी मांग `\left(\hat{N_t}\right)=e^{\gamma t}N_t`

तब, `P_t=ƒ\left(\hat{K_t}.\hat{N_t}\right)`

(8) कुल उत्पादन का एक निश्चित अंश बचाया जाता है, इस तरह, 

`\frac{dK_t}{dt}=sP_t` सभी t के लिए, `0\leq s\leq1---(3)`

(9) सन्तुलन की दशा में बचत तथा निवेश परस्पर बराबर होते हैं।

उपर्युक्त मान्यताओं के आधार पर इस मॉडल में यह जानने का प्रयास किया गया है कि किसी भी अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन का कितना अंश बचत और निवेश किया जाए अर्थात् कैसी निवेश नीति अपनाई जाए ताकि अर्थव्यवस्था की विकास सम्बन्धी समस्या का समुचित हल प्राप्त हो सके।

मॉडल (MODEL)

प्रो. फेल्पस ने अपने वृद्धि मॉडल का विकास निम्नलिखित दो चरणों में किया है:

(अ) स्वर्णिम युग (Golden Age) - विकास की ऐसी अवस्था में प्रत्येक निवेश अनुपात के लिए कम से कम एक पूंजी-उत्पाद अनुपात अवश्य अस्तित्व में होगा। यदि यह सम्बन्ध एक बार स्थापित हो जाता है तब यह प्रावैगिक संस्थिति द्वारा कायम रहेगा।

मान लीजिए (सोलोविया के सम्बन्ध में) स्वर्णिम युग वृद्धि दर निवेश अनुपात से स्वतन्त्र है। हम इस वृद्धि दर (g) को प्राकृतिक वृद्धि दर कह सकते हैं जो निवेश निर्णयों पर निर्भर न होकर γ, λ, μ तथा अन्य ऐसे प्राचालों (parameters) पर निर्भर करती है जो उत्पादन फलन के आकार को परिवर्तित कर सकते हैं। प्राकृतिक वृद्धि दर का अस्तित्व इस बात का संकेत करता है कि श्रम तथा पूंजी इस तरह परस्पर स्थानापन्न होते हैं कि पूंजी उत्पादन अनुपात बचत प्रवृत्ति (s) के किसी मूल्य से इस तरह व्यवस्थित होता है कि यह पूंजी की वृद्धि दर `\frac{sP_t}{K_t}` को उत्पादन वृद्धि की प्राकृतिक दर (g) के बराबर कर देता है।

अर्थात्, `\frac{sP_t}{K_t}=g`

या, `\frac{K_t}{P_t}=\frac sg---(4)`

स्वर्णिम युग में प्राकृतिक दर से वृद्धि करने वाली एक अर्थव्यवस्था के उत्पादन फलन को निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया जा सकता है :

`P_t=P_0e^{gt},g>0---(5)`

जहां P0 समय (t = 0) से सम्बन्धित उत्पादन है।

(ब) सीमा रहित स्वर्णिम युग (Boundless Golden Age)- फेल्पस के अनुसार एक ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें स्वर्णिम युग तो हो, परन्तु जिसका कोई निश्चित प्रारम्भ बिन्दु न हो तथा वह प्राकृतिक दर से बढ़ती हो, उसे सीमा रहित स्वर्णिम युग कहा जाता है। सीमा रहित स्वर्ण युग में Po ज्ञात नहीं होता, परन्तु Po इसी काल के निवेश पर निर्भर करता है तथा निवेश समान काल की बचत पर निर्भर करता है। किसी भी समय स्वर्णिम युग उत्पादन दर उस समय प्रचलित s के मूल्य का फलन होता है। इस तथ्य को हम समीकरण (5) में Po के स्थान परƒ(s) को प्रतिस्थापित करके व्यक्त कर सकते हैं। इस तरह,

Pt =ƒ(s) egt -----(6)

विदित है कि s का एक अधिक बड़ा मूल्य उत्पाद से पूंजी के एक निम्न अनुपात को बताता है बशर्ते कि पूंजी के सापेक्ष उत्पादन की लोच समान रूप से इकाई से कम हो, स्थिरता की दशा के लिए, उत्पादन से पूंजी का अनुपात जितना छोटा होगा, उत्पादन तथा पूंजी दोनों का निरपेक्ष आकार उतना ही बड़ा होगा। अतः ƒ’(s) > 0.

यदि यह धारणाएं स्पष्ट तथा मान्यताएं स्वीकृत होती हैं तब निम्नलिखित साध्य (lemma) का निरूपण किया जा सकता है :

साध्य (Lemma)- 'किसी सीमा रहित स्वर्णिम युग में जो कि प्राकृतिक दर से वृद्धिशील है, प्रत्येक पीढ़ी एक ही जैसे निवेश अनुपात का चयन करेगी' अन्य शब्दों में, एक समान वृद्धि दर प्राप्त करेगी।

(The lemma: Each generation in a boundless golden age of natural growth will prefer the same investment ratio, which is to say the same natural growth path.)

फेल्पस के मतानुसार प्रत्येक पीढ़ी का मुख्य उद्देश्य उपलब्ध उपभोग को अधिकतम बनाना होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु निम्नलिखित उपभोग फलन को सन्तुष्ट करना आवश्यक होगा :

Ct = (1-s) Pt  

या, Ct = (1 - s) ƒ(s) egt (समीकरण 6 से) ---(7)

s के उस मूल्य को ज्ञात करने के लिए जो कि Ct को अधिकतम बनाता है, हम s के सापेक्ष इसके अवकलज (derivative) को शून्य के बराबर रखते हैं। अर्थात्

`\frac{dC_t}{ds}=`-ƒ(s) egt +(1 - s) ƒ’(s) egt = 0

या, egt [-ƒ(s) +(1 - s) ƒ’(s)] = 0 ---(8)

समीकरण के दोनों पक्षों को egt से भाग देने पर t से सम्बद्ध सभी पद समाप्त हो जाते हैं। इस तरह समीकरण (8) का हल उस पीढ़ी से स्वतन्त्र हो जाता है जिसका चयन हम उपभोग को अधिकतम बनाने के लिए करते हैं। स्पष्टतया s का मूल्य जो एक प्राकृतिक सीमा रहित स्वर्णिम युग में एक पीढ़ी के लिए अनुकूलतम होता है, सभी पीढ़ियों के लिए अनुकूलतम होगा। यह कथन उपर्युक्त साध्य को सिद्ध करता है। उपर्युक्त के सन्दर्भ में प्रो. फेल्पस ने एक अन्य नवीन आधारभूत प्रमेय का प्रतिपादन किया जो निम्नवत् है:

प्रमेय (Theorem) - 'स्वर्णिम युग में अनुकूलतम वृद्धि पथ पर प्राकृतिक वृद्धि दर की दशाओं के अन्तर्गत निवेश की दर लाभ की प्रतिस्पर्द्धात्मक दर के बराबर होती है।' (Theorem: Along the optimal golden-age path, under conditions of natural growth, the rate of investment is equal to the competitive rate of profit.)

फेल्पस का कथन है कि s का एक उच्च मूल्य उच्च स्वर्णिम युग उत्पादन पथ से सम्बद्ध होती है, परन्तु बचत (s) का एक अधिक ऊंचा मूल्य उपभोग के लिए उपलव्ध उत्पादन स्तर को बहुत नीचे स्तर पर ला देगा।

समीकरण (8) से हम प्राप्त कर सकते हैं:

ƒ(s) +(1 - s) ƒ’(s)]

या, s.ƒ(s) = s.(1 - s) ƒ’(s) (दोनों पक्षों को s से गुणा करने पर)

या, `\frac s{\left(1-s\right)}=\frac{s.ƒ’(s)}{ƒ(s)}--(9)`

`\frac s{\left(1-s\right)}` बचत (अथवा निवेश) से उपभोग के अनुकूलतम अनुपात को व्यक्त करता है। यह अनुपात, निवेश अनुपात के सापेक्ष समय (t = 0) पर स्वर्णिम युग उत्पाद की लोच के बराबर है। समीकरण (6) से स्पष्ट होता है कि प्रत्येक निवेश अनुपात के लिए यह लोच (elasticity) स्वर्ण युग पथ से सम्बद्ध सभी बिन्दुओं (तिथियों) पर समान अर्थात् यथावत स्थिर रहेगी। ऐसा न होने की दशा में स्वर्णिम युग वृद्धि दर निवेश अनुपात पर निर्भर करेगी जो हमारी प्राकृतिक वृद्धि की पूर्व मान्यता के विपरीत होगा।

हम जानते हैं कि किसी समय (t) पर उत्पादन फलन है :

Pt = ƒ(eλtKt. eμt Νt),

यदि t = 0 तब,

P0 = ƒ(K0. Ν0),

या, ƒ(s) = ƒ(K0. Ν0),

हम जानते हैं कि,

`K_t=\frac{sP_t}g` (समीकरण (4) से)

या, `K_0=\frac{sP_0}g=\frac{sƒ(s)}g`

(s के स्थिर रहने पर Po के स्थान पर ƒ(s) लिखा जा सकता है। अब, उपर्युक्त उत्पादन फलन को निम्नवत प्रदर्शित किया जा सकता है: 

`ƒ(s)=ƒ\left(\frac{sƒ(s)}g.N_0\right)--(10)`

समीकरण (10) को s के सापेक्ष अवकलन करने पर हमें ƒ (Ko, No) के पदों में एक समीकरण प्राप्त होगा। अर्थात्, 

`ƒ'(s)=ƒk\frac{ƒ(s)}g+ƒk\frac sg.ƒ'(s)--(11)`

अब, `a=ƒk\frac{K_0}{P_0}--(12)`

(a = कुल उत्पादन में पूंजी का अंश अर्थात् लाभ-आय अनुपात)

अतः `ƒk=a\frac{P_0}{K_0}`

या, `ƒk=a.\frac gs\left(\because\frac{P_0}{K_0}=\frac gs\right)`

 पुनः समीकरण (11) से, 

`ƒ'\left(s\right)=a.\frac gs.\frac{ƒ\left(s\right)}g+a.\frac gs.\frac sg.ƒ'\left(s\right)`

या, `s.ƒ'\left(s\right)=a.ƒ\left(s\right).+a.s.ƒ'\left(s\right)`

या, `s.ƒ'\left(s\right)-a.s.ƒ'\left(s\right)=a.ƒ\left(s\right)`

या, `s.ƒ'\left(s\right)\left[1-a\right]=a.ƒ\left(s\right)`

या, `\frac{s.ƒ'\left(s\right)}{ƒ\left(s\right)}=\frac a{1-a}---(13)`

पुनः समीकरण (9) तथा समीकरण (12) से 

`\frac s{1-s}=\frac a{1-a}`

या, s = a ....(14)

 प्रतिस्पर्द्धात्मक अर्थव्यवस्था (सोलोविया) में चर a समय शून्य पर (at time zero) कुल उत्पादन में पूंजी के सापेक्ष अंश को व्यक्त करता है। अब हम देखते हैं कि निवेश अनुपात के सापेक्ष स्वर्णिम उत्पाद की लोच (elasticity of golden age output) किसी भी विशेष स्वर्णिम युग पथ पर सर्वत्र समान है। साथ ही a अर्थात् लाभ-आय अनुपात (profit-income ratio) भी किसी भी स्वर्णिम युग पथ पर स्थिर होता है जैसा कि समीकरण (12) से प्रदर्शित है। इस तरह समीकरण (14) से इस तथ्य पर प्रकाश पड़ता है कि अनुकूलतम प्राकृतिक वृद्धि पथ पर निवेश अनुपात तथा लाभ अनुपात स्थिर तथा बराबर होते हैं। यह कथन उपर्युक्त प्रमेय को सिद्ध करता है।

सम्बन्ध s = a को संचयन का स्वर्णिम नियम (The Golden Rule of Accumulation) कहा जाता है। एक स्वर्णिम युग में जो स्वर्णिम नियम द्वारा शासित होता है प्रत्येक पीढ़ी अपनी भावी पीढ़ी के लिए आय के उस अंश का निवेश करती है जिस अंश को पिछली पीढ़ी ने उसके लिए किया था। फेल्पस के अनुसार प्राकृतिक वृद्धि के स्वर्णिम युग के पथों में वही स्वर्णिम युग सबसे अच्छा होता है जो स्वर्णिम नियम का पालन करता है।

समीक्षात्मक मूल्यांकन (Critical Appraisal)

फेल्पस की वृद्धि मॉडल मुख्यतः सोलो द्वारा प्रतिपादित मॉडल पर आधारित है, परन्तु फेल्पस के मॉडल में प्रयुक्त चरों s = a की स्थिति के कारण उसे काल्डोर तथा पेसिनिटी की श्रेणी में रखा जाता है।

फेल्पस का संचयन का स्वर्णिम युग विश्लेषण इस तथ्य का विश्लेषण करने में असफल रहा कि स्थिर विकास की दशा (steady state growth) किसी भी अर्थव्यवस्था में कैसे पाई जा सकती है। जबकि सोलो इसे स्पष्ट करने में सफल रहे थे।

इसके अतिरिक्त फेल्पस का वृद्धि मॉडल अनेक अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है; यथा-अर्थव्यवस्था में उत्पादन के स्थिर प्रतिफल के नियम का लागू होना, प्रौद्योगिकी का स्थिर होना, पूंजी की उत्पादकता में λ की स्थिर दर से वृद्धि होना, प्रत्येक पीढ़ी में s का स्थिर बने रहना, अर्थव्यवस्था में संसाधनों की पर्याप्त आपूर्ति का पाया जाना तथा श्रम एवं पूंजी का पूर्णतया रोजगार में लगे रहना आदि। ये मान्यताएं फेल्पस के मॉडल के अवास्तविक बना देती हैं।

आलोचकों का कथन है कि वृद्धि के कैम्ब्रिज मॉडलों की ही भांति फेल्पस का मॉडल भी स्थिर विकास की दशा को स्पष्ट करने में असफल रहा है। इस तरह, वृद्धि अर्थशास्त्र में इस मॉडल का कोई महत्वपूर्ण योगदान नहीं है।

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