संगम काल
➤ भारत के सुदूर दक्षिण में कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदियों के मध्य स्थित प्रदेश
को तमिलकम् प्रदेश कहा जाता था। इस प्रदेश में अनेक छोटे-छोटे राज्यों का
अस्तित्व था, जिनमें चेर, चोल और पाण्ड्य राज्य सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थे।
➤ सुदूर दक्षिण में पाण्ड्य राज्य था, जिसकी राजधानी मदुरई थी। इसके अतिरिक्त
चोलों की राजधानी उरैयुर एवं चेरों की राजधानी वांजी थी।
➤ मेगास्थनीज के विवरण, अशोक के अभिलेख तथा कलिंग नरेश खारवेल के हाथीगुम्फा
अभिलेख में भी इन तीनों राज्यों का वर्णन मिलता है। परन्तु इनके विषय में विस्तृत
जानकारी संगम साहित्य से ही मिलती है।
➤ संगम शब्द का अर्थ है, संघ, परिषद्, गोष्ठी अथवा संस्थान। इस प्रकार संगम
तमिल कवियों, विद्वानों, आचार्यों, ज्योतिषियों एवं बुद्धि जीवियों की एक परिषद्
थी। तमिल भाषा में लिखे गये प्राचीन साहित्य को ही संगम साहित्य कहा जात है।
सामान्यतः इस साहित्य का विकास काल 100-250 ई. माना जाता है।
➤ सर्वप्रथम इन परिषदों का आयोजन पाण्ड्य राजाओं के राजकीय संरक्षण में किया
गया।
➤ संगम का महत्त्वपूर्ण कार्य होता था उन कवियों व लेखकों की रचनाओं का अवलोकन
करना, जो अपनी रचनाओं को प्रकाशित करवाना चाहते थे। परिषद् अथवा संगम की संस्तुति
के उपरांत ही वह रचना प्रकाशित हो पाती थी।
➤ प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि इस प्रकार के लगभग
तीन परिषदों (संगमों) का आयोजन पाण्ड्य शासकों के संरक्षण में किया गया।
➤ प्रथम संगम का आयोजन मदुरा में किया गया। इस संगम के अध्यक्ष अगस्त्य ऋषि
(आचार्य अगत्तियनार) थे। इसमें रचित प्रमुख ग्रन्थ हैं-अकत्तियम, परिपदल एवं
मुदुनरै आदि। परन्तु इस संगम का कोई भी ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है।
➤ द्वितीय संगम का आयोजन कपाट पुरम (अलवै) में किया गया। इस संगम के भी
अध्यक्ष आरम्भ में अगस्त्य ऋषि ही थे। बाद में उनका स्थान उनके शिष्य तोलकाप्पियर
ने लिया।
➤ द्वितीय संगम के दौरान जिन ग्रन्थों की रचना हुई उनमें से एकमात्र ग्रन्थ
तोल्काप्पियम् ही उपलब्ध है। तोल्काप्पियम् की रचना अगस्त्य ऋषि के शिष्य तोल्काप्पियम् ने की थी।
तोल्काप्पियम् तमिल व्याकरण की प्रसिद्ध रचना है।
➤ तृतीय संगम का आयोजन उत्तरी मुदरा में किया गया। इस संगम के अध्यक्ष नक्कीरर थे।
➤ तृतीय संगम में शामिल विद्वानों में उल्लेखनीय थे- इरैयनार, कपिलर, परवर, सित्तलै
सत्तनार और पाण्ड्य शासक उग्र।
➤ तृतीय संगम की रचनाओं में प्रमुख हैं-नेडुण्थोकै,
कुरून्थोकै, पदिलुप्पत्तु, परिपादल आदि। इस संगम के भी अधिकांश ग्रन्थ नष्ट हो गये
हैं तथापि जो संगम साहित्य अभी उपलब्ध है, वह इसी संगम की रचना मानी जाती है।
➤ उपर्युक्त तीनों संगमों का उल्लेख 8वीं शताब्दी के ग्रन्थ इरैयनार अग्गपोरूल में
हुआ है। किन्तु इस ग्रन्थ में दिये गये विवरण में ऐतिहासिक तथ्यों से अधिक कल्पना का
सहारा लिया गया है।
संगम साहित्य के प्रमुख ग्रन्थ
➤ तोल्काप्पियम्- इसकी रचना अगस्त्य ऋषि के शिष्य तोल्काप्पियर के द्वारा की
गयी। सूत्र शैली में रचा गया यह ग्रन्थ तमिल भाषा का प्राचीनतम व्याकरण ग्रन्थ है।
➤ कुराल - तिरूमल्लमीर द्वारा रचित इस ग्रन्थ को तमिल का बाइबिल कहा जाता है। इस ग्रन्थ को कुरल या मुप्पाल
के नाम से भी जाना जाता है। यह तमिल साहित्य का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है।
➤ संगमकालीन ग्रन्थों
में शिल्पादिकारम्, मणिमेखलै, जीवक चिंतामणि, वलयपति तथा कुण्डलकेशि महाकाव्य है। इन
पाँचों में प्रथम तीन ही उपलब्ध हैं।
➤ शिल्प्पादिकारम् - यह तमिल साहित्य का प्रथम महाकाव्य है, जिसका शाब्दिक अर्थ है नूपुर की कहानी।
इस महाकाव्य की रचना चेर शासक सेन गुट्टुवन के भाई इलांगोआदीगल ने लगभग ईसा की दूसरी-तीसरी
शदी में की। इस महाकाव्य की सम्पूर्ण कथा नूपुर के चारों ओर घूमती है। इस महाकाव्य
के नायक और नायिका कोवलन् और कण्णगी है। यह महाकाव्य पुहारकांडम, मदुरैक्कांडम्, वंजिक्कांडम
में विभाजित है जिनमें क्रमशः चोल, पाण्ड्य और चेर राज्यों का वर्णन है। यह काव्य मूलतः
वर्णनात्मक है। इसे तमिल साहित्य का उज्जवलतम रत्न माना जाता है।
➤ मणिमेखलै - बौद्ध धर्म की श्रेष्ठता प्रतिपादित
करने वाले इस महाकाव्य की रचना मदुरा
के एक व्यापारी सीतलै सत्तनार ने की। मणिमेखलै की रचना शिल्प्पादिकारम के बाद की गयी।
ऐसी मान्यता है कि जहाँ शिल्पादिकारम् की कहानी खत्म होती है, वहीं से मणिमेखलै की
कहानी प्रारम्भ होती है। सीतलै सत्तनार कृत इस महाकाव्य की नायिका मणिमेखलै शिल्पादिकारम्
के नायक कोवलन् की दूसरी पत्नी वेश्या माधवी की पुत्री थी।
➤ जीवक चिन्तामणि- जीवक चिन्तामणि जैन मुनि एवं महाकवि तिरक्तदेवर की अमर
कृति है। इस ग्रन्थ को तमिल साहित्य के प्रसिद्ध ग्रन्थों में गिना जाता है। तेरह खण्डों
में विभाजित इस ग्रन्थ में लगभग 3,145 पद है। इस महाकाव्य में कवि ने जीवक नामक राजकुमार
का जीवनवृत प्रस्तुत किया है। इस काव्य का नायक जीवक आठ विवाह करता है। जीवक चिन्तामणि
में आठ विवाह का वर्णन किया गया, इसलिए इसे मणनूल (विवाह ग्रन्थ) भी कहा जाता है।
संगम साहित्य से ज्ञात राजनैतिक इतिहास
➤ संगम साहित्य में तत्कालीन
तीन राजवंशों चेर, चोल एवं पाण्ड्य के विषय में जानकारी मिलती है।