आयात कोटा(Import Quotas)

आयात कोटा(Import Quotas)

संरक्षण विधि के रूप में आयात कोटा (अथवा अभ्यंश) टैरिफ के विकल्प हैं। आयात कोटा के अन्तर्गत प्रायः एक वर्ष के समय के दौरान मूल्य अथवा परिमाण में एक वस्तु की स्थिर मात्रा को देश के अन्दर आयात करने की आज्ञा दी जाती है। इस उद्देश्य के लिए सरकार एक आयात लाइसेन्स जारी कर सकती है जिसे वह या तो प्रतियोगी कीमत पर आयातकर्ताओं को बेच सकती है या पहले जो आए और प्राप्त करे के आधार पर आयातकर्ताओं को दे सकती है। वैकल्पिक तौर से, आयातकर्ताओं द्वारा एक विशेष वस्तु के आयात को खरीदने के लिए सरकार उन्हें सीमित मात्रा में विदेशी विनिमय प्रदान करके आयात के मूल्य को सीमित कर सकती है। आयात कोटा का उद्देश्य विदेशी प्रतियोगिता से घरेलू उद्योगों का संरक्षण तथा भुगतान शेष में असन्तुलन को ठीक करने के लिए आयात का प्रतिबन्ध और नियमन करना है। वे प्रतिशोधात्मक विधि के रूप में भी प्रयोग किए जाते हैं। आयात कोटा पांच प्रकार के होते हैं:

1. टैरिफ कोटा (Tariff Quota)- इस कोटा-प्रणाली के अन्तर्गत एक वस्तु की दी हुई मात्रा को बिना शुल्क या सापेक्षतया नीची शुल्क दर देने पर देश में प्रवेश की आज्ञा दी जाती है । परन्तु उस मात्रा से अधिक आयात पर सापेक्षतया ऊंची शुल्क दर ली जाती है।

2. एकपक्षीय कोटा (Unilateral Quota)- कोटा की इस प्रणाली के अन्तर्गत आयात की जाने वाली वस्तु की कुल मात्रा या मूल्य को अन्य देशों के साथ समझौता किए बिना कानून या डिगरी द्वारा निश्चित किया जाता है। अपने आप निश्चित किया गया कोटा व्यापक या आवंटित हो सकता है। व्यापक (global) कोटा के अन्तर्गत कोटा की पूरी राशि किसी भी एक देश से आयात की जा सकती है जबकि आवंटित कोटा-प्रणाली के अन्तर्गत कोटा की कुल मात्रा विभिन्न देशों के बीच बांट दी जाती है।

3. बहुपक्षीय कोटा (Bilateral Quota)- इस कोटा-प्रणाली के अन्तर्गत कोटा को एक या अधिक देशों के साथ कुछ समझौते के अनुसार निश्चित किया जाता है । हैबरलर इसे सहमत (agreed) कोटा कहता है।

4. मिश्रण कोटा (Mixing Quotas)- इस प्रणाली के अनुसार, कोटा निश्चित करने वाले देश में घरेलू उत्पादक तैयार वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए कुछ अनुपात में आयातित कच्चे माल के साथ घरेलू कच्चे माल का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार आयात कोटा प्रणाली, कोटा निश्चितकर्ता देश को दो प्रकार से लाभ प्रदान करती है: प्रथम, यह कच्चे माल के घरेलू उत्पादकों का विदेशी प्रतियोगिता से संरक्षण करती है; और दूसरे, यह देश के विदेशी विनिमय की बचत करती है।

5. आयात लाइसेंसिग (Import Licensing)- आयात लासेंसिंग विभिन्न प्रकार की कोटा प्रणालियों को लागू करने की विधि है । इस प्रणाली के अन्तर्गत, आयात की जाने वाली वस्तु की मात्रा पहले ऊपर वर्णित कोटा प्रणालियों के आधार पर निर्धारित की जाती है, तब आयात की जाने वाली वस्तुओं की विशिष्ट मात्राओं के लिए सरकार द्वारा आयात लाइसेंस जारी किए जाते हैं।

आयात कोटा के उद्देश्य (OBJECTIVES OF IMPORT QUOTAS)

एक देश के आयात को नियंत्रित करने के अलावा आयात कोटा के निम्न उद्देश्य होते हैं:

  विकसित देश अक्सर दीर्घकालीन भुगतान शेष असंतुलनों से ग्रस्त होते हैं जिन्हें ठीक करने के लिए आयात कोटा का प्रयोग किया जाता है। इससे आयात कम हो जाते हैं और विदेशी विनिमय की बचत होती है। इस तरह यह विदेशी विनिमय संकट को दूर करने में भी सहायक होते हैं।

2. शिशु उद्योग संरक्षण (To Protect Infant Industry)- अपने शिशु उद्योगों को संरक्षण देकर उनके विकास को प्रोत्साहित करने हेतु उस उद्योग से संबंधित वस्तुओं के लिए आयात कोटा निश्चित किए जाते हैं।

3. अनावश्यक वस्तुओं पर रोक (To Control Non-essential Goods)- आयात-कोटा का एक उद्देश्य विलासिताओं और अनावश्यक वस्तुओं के आयात पर रोक लगाना है।

4. प्रतिकार करना ('To Retaliate)- जब एक देश कोटा-प्रणाली का प्रयोग करके दूसरे देश से वस्तुओं का आयात कम कर देता है तो ऐसी स्थिति में दूसरा देश प्रतिकार करने के लिए आयात कोटा प्रणाली प्रारंभ करता है।

5.राशिपातन के विरुद्ध (AgainstDumping)- आयात-कोटा का एक और उद्देश्य राशिपातन के प्रभाव को कम करना है। जब एक देश दूसरे देश में अपनी वस्तुएं डम्प कर देता है तो अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा हेतु दूसरा देश आयात-कोटा प्रणाली द्वारा राशिपातन का नियंत्रण करता है।

6. सट्टात्मक आयातों को रोकना (To Prevent Speculative Imports)- एक देश में जब टैरिफ का प्रयोग किया जाता है तो उसमें इतनी अधिक मात्रा में वस्तुओं का आयात होता है कि उससे आयात में सट्टात्मक प्रवृत्ति पाई जाती है जिसे रोकने के उद्देश्य से आयात-कोटा प्रणाली चालू की जाती है

7.आयातों और कीमतों के उतार-चढ़ावरोकना (To Prevent Fluctuations in Importsand Prices)- कोटा-प्रणाली का एक अन्य उद्देश्य आयात और परिणास्वरूप कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को रोकना है। कोटा निश्चित हो जाने से आवश्यक मात्रा में वस्तुओं का आयात होता है जिनसे वस्तुओं की कमी को पूरा करके उनकी कीमतों के भी बढ़ने पर रोक लग जाती है।

आयात-कोटा के प्रभाव (EFFECTS OF IMPORT QUOTAS)

किंडलबर्गर (Kindleberger) ने कुछ आंशिक संतुलन के अन्तर्गत और कुछ सामान्य सन्तुलन विश्लेषण के अन्तर्गत, कुल मिलाकर, आयात कोटा के आठ प्रभावों का विश्लेषण किया है। पहले, हम आंशिक संतुलन विश्लेषण के अन्तर्गत आयात कोटा के प्रभावों की व्याख्या कर रहे हैं।

आंशिक संतुलन विश्लेषण (Partial Equilibrium Analysis)

1. कीमत प्रभाव (Price Effeet)- आयात कोटा का लक्ष्य किसी वस्तु की भौतिक मात्रा को सीमित करना है। इसलिए जब आयात कोटा निश्चित किया जाता है, तो इससे वस्तु की कीमत बढ़ती है। कीमत कितनी बढ़ेगी, यह इस बात पर निर्भर है कि घरेलू बाजार के भीतर वस्तु की पूर्ति तथा मांग की स्थिति क्या है और इस बात पर कि कोटा से आयातित वस्तु की पूर्ति किस सीमा तक प्रतिबन्धित होती है। आयात कोटा का कीमत प्रभाव नीचे के  चित्र में दिखाया गया है

जहां D तथा S क्रमश: वस्तु के घरेलू मांग तथा पूर्ति वक्र है। PB मुक्त व्यापार के अन्तर्गत विदेश पूर्ति वक्र है जो घरेलू मांग वक्र D को बिन्दु B पर काटता है और OP कीमत निर्धारित होती है। इस प्रकार वस्तु की कुल घरेलू मांग OQ3 है। परंतु घरेलू पूर्ति OQ है। इसलिए मुक्त व्यापार के अन्तर्गत OP कीमत पर वस्तु की QQ3 मात्रा आयात की जा रही है।

मानलीजिए कि सरकार आयात कोटा निश्चित कर देती है जिसको मात्रा Q1Q2 है। अब वस्तु की कुल पूर्ति S + Q हो जाती है जिसमें घरेलू पूर्ति तथा आयात कोटा शामिल है। यह (S + Q) पूर्ति वक्र घरेलू मांग वक्र को N पर काटता है और इस प्रकार कोटा से घरेलू कीमत OP से बढ़कर OP1 हो जाती है। अतः PP1 कोटा का कीमत प्रभाव है।

2. संरक्षण प्रभाव (Protective Effect)- आयात कोटा जब किसी आयात योग्य वस्तु कीnमात्रा घटाता है और उस वस्तु के घरेलू उत्पादकों को विदेशी प्रतियोगिता से बचाता है तो यह आयात कोटा का संरक्षण प्रभाव होता है। चित्र में, जब आयात कोटा को Q1Q2 मात्रा निश्चित होती है तो वस्तु का घरेलू उत्पादन OQ से OQ1 तक बढ़ता है । इस प्रकार QQ1 आयात कोटा का सरंक्षण प्रभाव है।

3. उपभोग प्रभाव (Consumption Effect)- जब आयात कोटा निश्चित किया जाता है तो वस्तु की घरेलू कीमत बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप, वस्तु का घरेलू उपभोग कम हो जाता है। इसे चित्र में दिखाया गया है जहां मुक्त व्यापार के अन्तर्गत वस्तु का कुल घरेलू उपभोग OQ3 है। जब कोटा की मात्रा Q1Q2 निश्चित कर दी जाती है, तो कुल घरेलू उपभोग घटकर OQ2 रह जाता है । इस प्रकार घरेलू उपभोग में जो Q3Q2 =(OQ3 - OQ2) कमी हुई है वह आयात कोटा का उपभोग प्रभाव है।

4. राजस्व प्रभाव (Revenue Effect)- किसी आयात कोटा का राजस्व प्रभाव निर्धारित करना बहुत जटिल तथा कठिन है । यदि सरकार आयात कोटा की नीलामी तब करे जब कीमत PP1 हो और Q1Q2 मात्रा आयात करने की अनुमति हो और बोली PP1 x Q1Q2 पर ठहरती है, तो आयात कोटा का राजस्व प्रभाव aMNb क्षेत्र के बराबर होगा। यह आयात प्रशुल्क के बराबर है। परन्तु आजकल सरकारें आयात कोटा नीलाम नहीं करती क्योंकि यदि उन्हें नीलाम किया जाए तो राजस्व प्रभाव को आयातकर्ता या निर्यातकर्ता या दोनों मिलकर ऊंची कीमतों और लाभों के रूप में हड़प जाएंगे। यदि घरेलू आयातकर्ता संगठित हैं और एकाधिकारी के रूप काम करते हैं, तो वे राजस्व प्रभावों को हथिया लेंगे। दूसरी ओर, यदि विदेशी निर्यातकर्ता संगठित हैं और घरेलू आयातकर्ता संगठित नहीं हैं, तो राजस्व प्रभावों को विदेशी निर्यातकर्ता हड़प लेंगे। यदि घरेलू आयातकर्ता और विदेशी निर्यातकर्ता दोनों ही संगठित होंगे तो द्विपाश्विक (bilateral) एकाधिकार होगा और राजस्व प्रभाव को दोनों मिल बांट कर खाएंगे। पर, वास्तविक परिणाम अनिश्चित रहेगा, जैसा कि द्विपाश्विक एकाधिकार के अन्तर्गत होता है।

5. पुनर्वितरणात्मक प्रभाव (Redistributive Effect)- आयात कोटा के निश्चित करने का पुनर्वितरणात्मक प्रभाव भी होता है। यह तब होता है जब वस्तु की कीमत बढ़ने पर घरेलू उत्पादक अधिक लाभ कमाते हैं और वस्तु से उपभोक्ता की बेशी घट जाती है। वास्तव में, पुनर्वितरण प्रभाव उपभोक्ता की बेशी का उत्पादकों को हस्तान्तरण है जो उस वस्तु की कीमत बढ़ने का परिणाम होती है जिसका आयात कोटा निश्चित किया जाता है। इसे चित्र में चतुर्भुज PP1MA के रूप में दिखाया गया है।

6. भुगतान सन्तुलन प्रभाव (Balance of Payments Effect)-आयात कोटा का भुगतान सन्तुलन प्रभाव उस देश के अनुकूल होता है जो आयात कोटा लगाता है। आयात कोटा निश्चित करने का एक उद्देश्य यह भी है कि आयात इस तरह रोके जाएं कि वे देश के निर्यातों से न बढ़ने पाएं। इस प्रकार आयात कोटा व्यापार सन्तुलन में सुधार लाते हैं। और फिर, जब कोटा से आयात सीमित किए जाते हैं, तो आयात में जाने वाली राष्ट्रीय आय का भाग बच जाता है। इसे आयात स्थानापन्नता के लिए घरेलू उद्योगों में और निर्यात बढ़ाने वाले उद्योगों में निवेश किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप, विदेश से होने वाली आय बढ़ती है और आयात कोटा लगाने वाले देश की भुगतान सन्तुलन स्थिति बेहतर बनती है। आयात कोटा का भुगतान संतुलन प्रभाव चित्र में दिखाया गया है जहां मुक्त व्यापार के अन्तर्गत OP कीमत पर वस्तु की QQ3 मात्रा आयात की जाती है। आयात के कुल मूल्य को चतुर्भुज AQQ3B व्यक्त करता है। यह भुगतान शेष घाटे को व्यक्त करता है क्योंकि आयातकर्ताओं द्वारा भुगतान की गई राशि वह राशि है जिसे दूसरा देश प्राप्त करता है। इस भुगतान शेष घाटे को पूरा करने के लिए आयात कोटा की मात्रा Q1Q2 निश्चित की जाती है और परिणामस्वरूप आयात की मात्रा इतनी ही (Q1Q2) कम हो जाती है। यदि सरकार यह कोटा आयातकर्ताओं को नीलाम करती है, तो इसे aMNb क्षेत्र के बराबर राशि प्राप्त होती है। अथवा, यदि आयातकर्ता संगठित हैं, तो उन्हें यह राशि लाभ के रूप में प्राप्त होती है और वे इस राशि को पुन: देश के भीतर निवेश करने के लिए उपयोग करते हैं। यह भी विदेशी-विनिमय की बचत है। भुगतान सन्तुलन में भी सुधार होता है क्योंकि कोटा लगाने वाला देश आयात के लिए aQ1Q2b क्षेत्र के बराबर राशि का भुगतान करता है। यह भुगतान AQQ3B राशि से कम है जो उसे मुक्त व्यापार के अन्तर्गत करना पड़ता था।

7. सामान्य संतुलन विश्लेषण के अन्तर्गत व्यापार शर्तों का प्रभाव (Terms of Trade Effect under General Equilibrium Analysis)- आयात कोटा निश्चित करने से देश की व्यापार शर्ते बदल जाती हैं। व्यापार की नई शर्ते उस देश के थोड़ी बहुत अनुकूल हो सकती हैं जो कोटा निश्चित करता है। यह प्रस्ताव वक्र की लोच अथवा आयातकर्ता देश या निर्यातकर्ता देश की एकाधिकार शक्ति पर निर्भर करेगा। यदि आयात करने वाले देश को वस्तु के आयात का एकाधिकार प्राप्त है (अर्थात् उसका प्रस्ताव वक्र लोचदार है), तो व्यापार की शर्ते उसके अनुकूल होंगी। दूसरी ओर, यदि निर्यातकर्ता देश को उस वस्तु पर एकाधिकार प्राप्त है जिस पर आयात कोटा निश्चित किया जाता है (अथवा यदि उसका प्रस्ताव वक्र लोचदार है), तो व्यापार की शर्ते उस देश के अनुकूल और कोटा लगाने वाले देश के प्रतिकूल होंगी। व्यापार शर्तों का प्रभाव नीचे के चित्र में दिखाया गया है

जहां OE इंग्लैंड का प्रस्ताव वक्र है और OG जर्मनी का प्रस्ताव वक्र है। इंग्लैंड कपड़ा देकर जर्मनी से लिनन मंगवाने का व्यापार करता है और मुक्त व्यापार के अन्तर्गत व्यापार की शर्ते बिन्दु A पर निर्धारित होती हैं। मानलीजिए कि इंग्लैंड लिनन की OL मात्रा का आयात कोटा निश्चित कर देता है। व्यापार को शर्ते बदल जाएंगी। व्यापार की नई शर्ते या तो OT1 रेखा पर होंगी या फिर OT2 रेखा पर होंगी। यदि वे OT1 रेखा पर OM है, तो व्यापार की शर्ते इंग्लैंड के अनुकूल होंगी क्योंकि वह जर्मनी के OL लिनन के बदले LM कपड़ा विनिमय करेगा। दूसरी ओर, यदि व्यापार को शर्ते OT2 रेखा पर ON हैं तो व्यापार की शर्ते इंग्लैंड के प्रतिकूल होंगी क्योंकि उसे जर्मनी के OL लिनन के बदले अधिक कपड़ा LN देना पड़ेगा। जैसाकि द्विपाश्विक व्यापार की स्थिति में होता है, जहां एकाधिकार क्रेता और एकाधिकार विक्रेता होता है, परिणामत सैद्धान्तिक रूप से अनिश्चित होता है।

प्रशुल्कों तथा कोटा की समानता (THE EQUIVALENCE OF TARIFFS AND QUOTAS)

प्रशुल्क तथा कोटा में समानता है। दोनों के कुछ प्रभाव एक जैसे हैं। दोनों ही घरेलू कीमत बढ़ाते हैं, दोनों ही आयात्य वस्तु के घरेलू उत्पादन को संरक्षण देते हैं, दोनों ही घरेलू उपभोग घटाते और आयातों की मात्रा प्रतिबन्धित करते हैं।

इसकी मान्यताएं (Its Assumptions)

प्रशुल्क तथा कोटा के बीच समानता विश्लेषण की मान्यताएं हैं कि (i) घरेलू बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता है; (ii) विदेशी पूर्ति प्रतियोगी है; (iii) सामूहिक रूप से घरेलू क्रेताओं को उस पूर्ति वक्र का सामना करना पड़ता है जो घरेलू पूर्ति वक्र जमा निश्चित कोटा के बराबर है; (iv) यदि कोटा पूरी ‘तरह काम में लाया जाए तो कोटा पूर्ण प्रतियोगिता को सुनिश्चित करता है; और (v) प्रशुल्क तथा आयात कोटा इस दृष्टि से समान है कि प्रशुल्क ठीक उतना ऊंचा है जो आयात की मात्रा को कोटा द्वारा स्वीकृत राशि के बराबर लाने के लिए पर्याप्त हो।

इसकी व्याख्या (Its Explanation)

इन मान्यताओं के दिया हुआ होने पर, प्रशुल्क तथा आयात कोटा के समान प्रभाव नीचे के चित्र में प्रदर्शित किए गए हैं

जहां Dd तथा Sd आयात्य वस्तु के घरेलू मांग तथा पूर्ति वक्र हैं । मुक्त व्यापार के अन्तर्गत विश्व कीमत OPw है और PwSF विदेश का पूर्ति वक्र है जो OPF कीमत पर पूर्णतया लोचदार है। इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता की परिस्थितियों के अन्तर्गत बिन्दु B मुक्त व्यापार सन्तुलनmप्रदान करता है जहां Dd वक्र OPW विश्व कीमत पर पूर्ति वक्र PwSF को काटता है । वस्तु की कुल मांग OQ3 है और घरेलू पूर्ति OQ है। घरेलू मांग और पूर्ति के अन्तर को OPF कीमत पर वस्तु की QQ3 मात्रा के आयात पूरा करते हैं।

कीमत प्रभाव (Price Effect)- जब वस्तु के आयात पर PwPT/OPw की दर से प्रशुल्क लगाया जाता है, तो यह PWSF वक्र को ऊपर की ओर PTS'F पर सरका देता है और कीमत को बढ़ाकर OPT पर ले जाता है। इसी प्रकार जब वस्तु की Q1Q2 मात्रा के बराबर प्रत्यक्ष आयात कोटा लगाया जाता है, तो घरेलू पूर्ति वक्र दाएं को सरककर Sd + Q पर पहुंच जाता है। यह Dd वक्र को N पर काटता है और इस तरह कोटा घरेलू कीमत को बढ़ाकर OPT पर पहुंचा देता है। इस प्रकार प्रशुल्क तथा कोटा का कीमत प्रभाव यह है कि वस्तु की कीमत में समान मात्रा में बढ़ोतरी हो जाए।

संरक्षण प्रभाव (Protective Effect)- प्रशुल्क तथा आयात कोटा दोनों का उद्देश्य आयात्य वस्तु की मात्रा घटाना और वस्तु के घरेलू उत्पादकों को विदेशी प्रतियोगिता से बचाना है। चित्र में प्रशुल्क लगाने से पहले वस्तु की QQ3 मात्रा आयात की जाती है। परन्तु जब PwPT/OPT प्रशुल्क लगाया जाता है तो आयात QQ3 से गिरकर Q1Q2 रह जाते हैं और घरेलू उत्पादन OQ से बढ़कर OQ1 हो जाते हैं। इस प्रकार वस्तु के घरेलू उत्पादन में जो OQ1 बढ़ोतरी हुई है, वह प्रशुल्क का संरक्षण अथवा उत्पादक प्रभाव है। इसी प्रकार जब आयात कोटा Q1Q2 निश्चित किया जाता है, तो वस्तु का घरेलू उत्पादन OQ से बढ़कर QQ1 हो जाता है जिससे QQ1 संरक्षण प्रभाव प्राप्तहोता है जो प्रशुल्क के सरंक्षण प्रभाव के ही बराबर है।

उपभोग प्रभाव (Consumption Effect)- प्रशुल्क तथा आयात कोटा एक-समान उपभोग प्रभाव प्रदान करते हैं। दोनों ही वस्तु की घरेलू कीमत को बढ़ाते और घरेलू उपभोग को घटाते हैं। चित्र में मुक्त व्यापार के अन्तर्गत वस्तु का घरेलू उपभोग OQ3 है । जब PWPT/OPT प्रशुल्क लगाया जाता है और कीमत में OPT बढ़ोतरी होती है, तो आयात में Q3Q2 कमी हो जाती है और परिणामस्वरूप वस्तु का कुल उपभोग OQ3 से घटकर OQ2 रह जाता है। इस प्रकार प्रशुल्क का उपभोग प्रभाव Q3Q2 है। इसी प्रकार जब आयात कोटा की मात्रा Q1Q2 निश्चित की जाती है, तो कुल घरेलू उपभोग OQ3 से गिरकर OQ2 रह जाता है। इस प्रकार कोटा का उपभोग प्रभाव Q3Q2 है जो उसी प्रभाव के बराबर है जो प्रशुल्क के अन्तर्गत था।

निवल राष्ट्रीय हानि (Net National Loss)- प्रशुल्क से उतनी ही निवल राष्ट्रीय हानि होती है जितनी कि आयात कोटा से होती है। जब प्रशुल्क के कारण वस्तु की घरेलू कीमत बढ़कर OPT हो जाती है, तो उपभोक्ता बेशी की PTNBPW (मांग वक्र के अंतर्गत क्षेत्र) निवल हानि होती है।

अब क्षेत्र PTNBPW = क्षेत्र Z + a + R + b । इसमें क्षेत्र R को राजस्व के रूप में सरकार ले जाती है। क्षेत्र Z उत्पादक को प्रशुल्क से प्राप्त लाभ है। क्षेत्र a तथा b निवल राष्ट्रीय हानि है। इस हानि को दो त्रिभुज व्यक्त करते हैं। पहला त्रिभुज (a) आयात कोटा Q1Q2 की निश्चल (dead weight) हानि को और दूसरा त्रिभुज (b) उपभोक्ता बेशी की समान हानि को व्यक्त करता है जिसे Z + a + R+b प्रदर्शित करता है। इससे उत्पादकों को उतना ही लाभ होता है और उतनी ही निवल राष्ट्रीय हानि होती है जितनी कि प्रशुल्क के अन्तर्गत । क्षेत्र R वह आन्तरिक पुनर्वितरण है जो उपभोक्ताओं से आयात लाइसेन्स धारकों के पास चला जाता है । यह प्रशुल्क का राजस्व प्रभाव है क्योंकि यहां धारणा यह है कि सरकार आयात लाइसेन्स नीलाम करती है।

प्रशुल्क तथा आयात कोटा की यह समानता केवल पूर्ण प्रतियोगिता की स्थितियों के अन्तर्गत ही खरी ठहरती है। भगवती ने अपने “On the Equivalence to Tariffs and Quotas' शीर्षक पेपर में दिखाया है कि, यदि घरेलू उत्पादन में कोई एकाधिकार प्राप्त शक्ति हो, अथवा जब कुछ ही व्यक्तियों को आयात लाइसेन्स दिए जाएं और कोटा धारकों में पूर्ण प्रतियोगिता न हो, तो प्रशुल्कों तथा कोटा में असमानता रहती है। जिस आयातकर्ता के पास लाइसेन्स है, वह विश्व कीमत OPw तथा घरेलू कीमत OPT के अन्तर को प्रति इकाई लाभ के रूप में वसूल कर सकता है। यदि लाइसेन्स नीलाम किए जाएं तो आयातकर्ता इस बात के लिए तैयार रहेंगे कि स्वीकृत आयात की प्रति इकाई तक PwPT मात्रा का भुगतान कर दें।

आयात कोटा बनाम प्रशुल्क (IMPORT QUOTAS VERSUS TARIFFS)

प्रशुल्क की भांति आयात कोटा भी आयात को घटाता है, कीमत बढ़ाता है और जिस वस्तु पर कोटा लगाया जाता है, उस वस्तु के घरेलू उत्पादन को बढ़ाता है। परन्तु आयात कोटा तथा प्रशुल्क में कुछ महत्वपूर्ण अन्तर हैं जिनकी चर्चा यहां की जा रही है।

1. प्रतिबन्धात्मक प्रभाव (Restrictive Effects)- प्रशुल्क की अपेक्षा आयात कोटा का प्रतिबन्धात्मक प्रभाव बहुत अधिक तेजी से पड़ता है और अधिक मजबूत होता है। जहां प्रशुल्क प्रमुख रूप से वस्तु कीमतों को प्रभावित करता है, वहां आयात कोटा आयातित वस्तु को मात्रा को निर्धारित करता है। आयात कोटा के विपरीत, प्रशुल्क आयातित वस्तुओं की मात्रा पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाता है। परन्तु, यदि आयात कोटा का मूल उद्देश्य आयातित वस्तुओं की मात्रा को प्रभावित करना है, तो इसका परिणाम यह हो सकता है कि वस्तुएं दुर्लभ हो जाएं और कीमतें तेजी से बढ़ जाएं।

2. आयातों को मात्रा (Quantity of Imports)- प्रशुल्क की अपेक्षा आयात कोटा अधिक कठोरता से उस अधिकतम मात्रा को निश्चित करता है जो आयात की जा सकती है। दूसरी ओर, प्रशुल्क इतने कठोर नहीं होते, क्योंकि प्रारम्भिक प्रावस्था समाप्त हो जाने के बाद यदि विदेश कीमत गिर जाए अथवा संरक्षित वस्तु को घरेलू मांग या कीमत बढ़ जाए तो, आयात बढ़ेंगे।

3. स्थिर बनाम अस्थिर (Stable vs. Unstable)- आयात कोटा अस्थिर होता है क्योंकि नौकरशाही की इच्छानुसार इसमें परिवर्तन किया जा सकता है, जबकि प्रशुल्क स्थिर होता है, क्योंकि यदि प्रशुल्क नीति में परिवर्तन करना हो तो वैधानिक स्वीकृति लेनी पड़ती है।

4.विभेदात्मक बनाम अविभेदात्मक (Discriminatory vs. Non-Discriminatory)- प्रशुल्क की अपेक्षा आयात कोटा विभिन्न देशों से वस्तुओं की पूर्ति को प्रतिबन्धित करने में अधिक भेदभाव का बर्ताव करता है। इस प्रकार आयात कोटा से अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में कटुता आती है। क्योंकि प्रशुल्क के अन्तर्गत मांग तथा पूर्ति का बाजार-तंत्र मुक्त रूप से कार्य करता है, इसलिए, दूसरे देशों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार की कम गुंजाइश रहती है। परन्तु कोटा-प्रणाली के अन्तर्गत, आयात कोटा का आवंटन किसी एक स्वीकृत नियम के आधार पर नहीं होता। इससे प्रायः अन्तर्राष्ट्रीय भेदभाव बढ़ता है।

5. राजस्व बनाम लाभ (Revenue vs. Profit)- क्योंकि प्रशुल्क कर लगाने के परिणामस्वरूप अतिरिक्त राजस्व प्राप्त होता है, इसलिए प्रशुल्क से सरकार को लाभ होता है, जबकि आयात कोटा से लाइसेंसधारक, आयातकर्ताओं को लाभ होता है। परन्तु यदि सरकार आयातकर्ताओं को आयात लाइसेंस नीलाम करे, तो आयात कोटा से भी सरकार लाभ उठा सकती है।

6. कोटा या आर्थिक लगान (Quota or Economic Rent)- जब प्रशुल्क अथवा आयात कोटा लगाकर आयात नियन्त्रित किया जाता है, तो आयात में दुर्लभता मूल्य पाया जाता है और घरेलू मांग कीमत और विदेशों की पूर्ति कीमत में अन्तर पड़ जाने के परिणामस्वरूप आयात का दुर्लभता मूल्य आर्थिक लगान अथवा सीमा को जन्म देता है। प्रशुल्क के मामले में, आर्थिक लगान सरकार को राजस्व के रूप में प्राप्त होता है। परन्तु आयात कोटा से सरकार, आयातकर्ताओं, विदेशी उत्पादकों, घरेलू उपभोक्ताओं और कोटा प्रणाली के प्रशासक कर्मचारियों में से किसी को भी आर्थिक लगान प्राप्त हो सकता है। घरेलू बाजार स्थितियों तथा आयात कोटा के संगठन पर यह बात निर्भर करेगी कि यह आर्थिक लगान किसे प्राप्त होगा? यदि सरकार केवल आयात कोटा शुरू करती है, और यदि घरेलू उत्पादक संगठित हैं तथा विदेश में उत्पादक संगठित नहीं हैं तो लाभ और कीमतें बढ़ाकर घरेलू उत्पादक इस आर्थिक लगान को हथिया लेंगे। परन्तु यदि विदेश में तो उत्पादक संगठित हैं और घरेलू उत्पादक संगठित नहीं हैं तो विदेश के उत्पादक अपनी कीमतें बढ़ाकर और आगे व्यापार की शर्ते देश के प्रतिकूल बनाकर इस लगान का पर्याप्त भाग ले जाएंगे। यदि सरकार इस आर्थिक लगान को स्वयं प्राप्त करना चाहती है, तो आयात लाइसेन्स नीलाम करके वह ऐसा कर सकती है। यदि देश में कठोर कीमत नियंत्रण और राशनिंग है, तो आर्थिक लगान उपभोक्ताओं को प्राप्त होगा। परन्तु, यदि कुछ आयातकर्ता स्वयं आयातित वस्तु को प्रयोग नहीं करते और ऊंचे दामों पर अपना राशन दूसरों को बेच देते हैं, तो आर्थिक लगान वास्तविक उपभोक्ताओं को प्राप्त नहीं होगा। यदि प्रशासन ढीला है और आयात कोटा प्रणाली के प्रशासक कर्मचारियों को अपनी मर्जी से कुछ आयात लाइसेन्स देने का अधिकार है, तो वे घूस ले सकते हैं और इस प्रकार इस आर्थिक लगान का कुछ भाग प्राप्त कर सकते हैं।

7. एकाधिकार (Monopoly)- प्रशुल्क की अपेक्षा आयात कोटा विदेशी प्रतियोगिता को समाप्त करता है और घरेलू एकाधिकार को अधिक प्रोत्साहन देता है। जब आयात कोटा एकाधिकार को जन्म देता है, तो वह प्रशुल्क से अधिक बुरा होता है। कुछ आयातकों को आयात कोटा के आवंटन से एकाधिकार शक्ति उत्पन्न होती है। वे मार्केट का शोषण करते हैं और बड़े कोटा लाभ कमाते हैं । जब कोटा से एकाधिकार उत्पन्न होता है, तो देश में कीमतें बढ़ेंगी, उत्पादन गिरेगा और प्रशुल्क की तुलना में कोटा से अधिक राष्ट्रीय हानि होगी, जबकि प्रशुल्क भी उतना ही आयात प्रदान करेगा।

8. भुगतान शेष (Balance of Payments)- आयात कोटा तथा प्रशुल्क प्रायः देश की भुगतान सन्तुलन की स्थिति सुधारने के लिए काम में लाए जाते हैं । परन्तु, आयात कोटा से भुगतान सन्तुलन में आयात की कमी के बराबर सुधार नहीं हो सकता। वे केवल मांग में परिवर्तन ला सकते हैं। क्योंकि पहले जिन वस्तुओं का निर्यात होता था, अब घरेलू उपभोक्ता उनकी मांग नहीं करेंगे। और फिर, आयातित वस्तुओं की घरेलू तथा विदेशी कीमत में भारी अन्तर लाकर आयात कोटा, आयात को ऊपर तथा नीचे की ओर, दोनों की दिशाओं में कठोर बनाते हैं। दूसरी ओर, प्रशुल्क आयात तथा निर्यात के परिणाम को नियंत्रित नहीं करते बशर्ते कि प्रशुल्क निषेधात्मक रूप से बहुत ऊंचे न हों। इस प्रकार प्रशुल्क भुगतान सन्तुलन की लोचात्मकता में हस्तक्षेप नहीं करते।

9. व्यापार की शर्ते (Terms of Trade)- व्यापार की शर्तों पर प्रशुल्क का प्रभाव निश्चित होता है। परंतु आयात कोटा का व्यापार की शर्तों पर प्रभाव अनिश्चित और अनिर्धारित होता है।

10. सरल बनाम कठिन (Simpe vs. Cumbersome)- आयात कोटा की अपेक्षा प्रशुल्क अधिक लोचशील होता है। इसलिए इसे अधिक सरलता से लगाया जा सकता है और अधिक सरलता से हटाया भी जा सकता है। कोटा का संचालन सरकारी अधिकारियों द्वारा किया जाता है और इसमें राजनैति हस्तक्षेप तथा भ्रष्टाचार पाए जाते हैं।

11. प्रतिशोध (Retaliation)- प्रशुल्क और आयात कोटा आयातों को रोकते हैं इसलिए दूसरे देशों द्वारा प्रतिशोध की संभावना पाई जाती है। परन्तु प्रशुल्क की तुलना में कोटा में प्रतिशोध की संभावना अधिक होती है। एक ऊंची प्रशुल्क दर दूसरे देश द्वारा कम प्रतिशोध ही लाती है जो अपनी निर्यात कीमतें कम कर सकता है। परन्तु एक ऊंचा शुल्क कोटा और कम कोटा दूसरे देश द्वारा अक्सर प्रतिशोध लाता है।

12. प्रभावी संरक्षण (Effective Protection)- जब घरेलू वस्तु के लिए कच्चे माल आयात करने हेतु कोटा लगाया जाता है तो इससे उसकी उत्पादन लागत बढ़ जाती है। इसका प्रशुल्क जैसा ही प्रभाव होता है। परन्तु जब अन्तिम (बनी हुई) वस्तु निर्यात की जाती है तो उसके कच्चे माल पर निर्यात शुल्क में प्रायः छूट नहीं दी जाती है, जबकि कोटा पर छूट दी जाती है।

13. कीमत भिन्नताएं (Price Differentials)- प्रशुल्क और कोटा घरेलू कीमत और विश्व कीमत के बीच कीमत भिन्नताओं में भी भिन्न होते हैं। प्रशुल्क में घरेलू कीमत टैरिफ शुल्क की मात्रा द्वारा विश्व कीमत से भिन्न होती है। एक आयातकर्ता वस्तु की जितनी चाहे मात्रा शुल्क देकर आयात कर सकता है। परन्तु ऐसा कोटा के बारे में नहीं होता है जहां घरेलू कीमत और विश्व कामत में कोई अंतर नहीं होता है।

आयात कोटा और प्रशुल्क के गुण एवं दोष (MERITS AND DEMERITS OF IMPORT QUOTAS AND TARIFFS)

अब आयात कोटा और प्रशुल्क के गुण और दोषों का विवेचन करते हैं। संरक्षण की इन दोनों विधियों के गुण एवं दोष अलग-अलग नहीं होते बल्कि आयात कोटा के गुण, प्रशुल्क के दोष होते हैं और आयात कोटा के दोष, प्रशुल्क के गुण हैं।

आयात कोटा के गुण और प्रशुल्क के दोष (Merits of Import Quotas and Demerits of Tariffs)

प्रशुल्क की अपेक्षा आयात कोटा निश्चित करने से एक देश को निम्न लाभ प्राप्त होता हैं:

1. आयात को निश्चित तौर से कम करना (Definite Reduction of Imports)- आयात कोटा द्वारा आयात को निश्चित तौर से कम किया जाता है। ऐसा इसलिए कि आयात की जाने वाली विभिन्न वस्तुओं की मात्रा स्थिर होती है और किसी भी हालत में आयातकर्ताओं को उससे अधिक आयात नहीं करने दिया जाता है।

परन्तु प्रशुल्क के अन्तर्गत कोई गारंटी नहीं होती है कि आयात की कटौती कर दी जाएगी जब आयात की मांग बेलोच हो। आयात की मात्राओं को कम करने में प्रशुल्क असफल रहते हैं।

2. विदेशी विनिमय की सही मात्रा निश्चित करना (Fix Correct Quantity of Foreign Exchange)- कोटा प्रणाली के अन्तर्गत आयात की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा पहले से ही निर्धारित कर ली जाती है। इसलिए, सरकार इस बात का सही अनुमान लगा सकती है कि आयात के लिए कितने विदेशी मुद्रा की आवश्यकता पड़ेगी। इसका इंतजाम करने के लिए उसे पर्याप्त समय भी मिल जाता है।

परन्तु प्रशुल्क के अन्तर्गत आयात की जाने वाली वस्तुओं के बारे में अनुमान बिल्कुल नहीं लगाया जा सकता और सरकार विदेशी विनिमय की आवश्यकताओं का भी पूर्वानुमान नहीं लगा सकती है।

3. आयातित वस्तुओं की स्थिर मात्रा (Fixed Quantity of Imported Goods)- आयात कोटा प्रणाली के अन्तर्गत, आयात की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा स्थिर होती है। इसलिए, घरेलू उत्पादकों को यह मालूम होता है कि उनको कितना उत्पादन करना है और वे समय पर अतिरिक्त निवेश करके अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ा सकते हैं।

प्रशुल्क के अन्तर्गत घरेलू उत्पादकों को यह मालूम नहीं होता कि वस्तुओं की कितनी मात्रा आयातित की जानी है और उनको कितनी वस्तुओं को उत्पादित करना होगा ताकि घरेलू मांग को पूरा किया जा सके। परिणामस्वरूप, अनिश्चितता पाई जाने से वे निवेश करना नहीं चाहते हैं।

4. लोचशील (Flexible)- आयात कोटा लोचशील होते हैं। उन्हें सरकारी कर्मचारियों द्वारा निर्धारित किया जाता है जो विभिन्न परिस्थितियों के अनुसार आयात कोटा में आवश्यक परिवर्तन कर सकते हैं। इसलिए आयात कोटा देश के विदेशी व्यापार में आवश्यक परिवर्तन करने की एक बहुत लाभदायक और प्रभावी विधि है।

प्रशुल्क में परिवर्तन केवल संसद ही कर सकती है। इसलिए, वे कठोर और अलोचशील होते हैं। उनमें तुरन्त परिवर्तन नहीं किए जा सकते और वे विदेशी व्यापार में आवश्यकताओं के अनुसार अपना योगदान देने में असमर्थ होते हैं।

5. विकासशील देश के लिए अधिक उपयुक्त (More Suited for Developing Country)- एक विकासशील देश के लिए आयात कोटा अधिक उपयुक्त होते हैं क्योंकि उसे विकास के लिए पूंजी पदार्थ, कच्चा माल आदि आयात करने पड़ते हैं। इन वस्तुओं की देश के लिए मांग बेलोच होती है। देश की विदेशी विनिमय की स्थिति को ध्यान में रखते हुए आयात कोटा निश्चित किया जाता है। अक्सर आयात कोटा द्वारा आयातित वस्तुओं की मात्रा में कमी की जाती है, यद्यपि इससे घरेलू वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है।

आयात की जाने वाली वस्तुओं की मांग बेलोच होने पर जब सरकार प्रशुल्क लगाती है तो आयातकर्ताओं का उन वस्तुओं के लिए अधिक कर देना पड़ता है जिससे उनकी कीमतें बढ़ जाती हैं। परन्तु आयात कोटा की तुलना में प्रशुल्क लगने से कीमतों में अधिक वृद्धि होती है।

6. विलासिताओं पर नियंत्रण (Control over Luxuries)-विकासशील देशों की एक मुख्य समस्या वस्तुओं का दिखावटी उपभोग है, जो विलासिताओं का होता है और जिन्हें अमीरों के लिए आयात किया जाता है। इन वस्तुओं के उपभोग को रोकना आवश्यक होता है। ऐसा आयात कोटा द्वारा ही सम्भव है क्योंकि इसके अन्तर्गत आयात की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा निश्चित होती है और अमीर वर्ग दिखावटी उपभोग के लिए इन वस्तुओं को आयात नहीं कर सकता है।

परन्तु प्रशुल्क के अन्तर्गत ऐसा संभव नहीं हो सकता क्योंकि आयात प्रशुल्क लगने के बावजूद धनी वर्ग विलासिताओं के लिए अधिक प्रशुल्क दरें देकर भी इन वस्तुओं का आयात कर सकता है।

7. आयात में सट्टेबाजी संभव नहीं (Speculation Imports not Possible)- आयात कोटा के अन्तर्गत जब वस्तुओं के बारे में कोटा निश्चित कर दिए जाते हैं तो आयात में सट्टेबाजी संभव नहीं हो सकती है।

परन्तु टैरिफ के अन्तर्गत ऐसा संभव होता है, क्योंकि जब आयातकर्ता यह समझते हैं कि सरकार वस्तुओं पर टैरिफ की दरों को बढ़ाएगी तो वे अधिक वस्तुओं का आयात करना प्रारंभ कर देते हैं जिससे आयात में सट्टेबाजी होती है।

8. भुगतान शेष को ठीक करने वाली श्रेष्ठ विधि (Better Method of Correcting BOP)- आयात कोटा, भुगतान संतुलन में असंतुलन को ठीक करने के लिए बेहतर विधि है। जब एक देश को चिरकालिक भुगतान शेष में असंतुलन की समस्या का सामना करना पड़ता है तो उसके लिए आयात में कमी एक आवश्यक उपाय है। आयात कोटा के अन्तर्गत आयात में कमी को सरलता से किया जा सकता है।

परन्तु प्रशुल्क लगाने से यह आवश्यक नहीं कि आयात कम किए जाएंगे। इसलिए आयात प्रशुल्क भुगतान शेष की स्थिति को सुधारने के लिए प्रभावी तरीका नहीं है।

9. प्रतिशोध की कम संभावना (Less Possibility of Retaliation)- आयात कोटा के अन्तर्गत जब वस्तुओं का आयात कोटा निश्चित किया जाता है तो अन्य देशों द्वारा प्रतिशोध की

संभावना कम होती है। आयात कोटा लगाने से किसी अन्य देश पर बिना दबाव डाले आयात को दूर किया जा सकता है।

दूसरी ओर, प्रशुल्क की दरों को अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता क्योंकि इससे दूसरे देश द्वारा प्रतिशोध करने की संभावना होती है।

आयात कोटा के दोष और प्रशुल्क के गुण (Demerits of Import Quotas and Merits of Tariffs)

प्रशुल्क की अपेक्षा आयात कोटा निश्चित करने से एक देश को निम्न हानियां होती हैं:

1. विभेदात्मक (Discriminatory)- आयात कोटा विभेदात्मक होते हैं क्योंकि जिन देशों से वस्तुएं आयात करनी होती हैं उनके लिए कोटा प्रदान किए जाते हैं । अन्य देशों से वस्तुएं आयात नहीं की जा सकती हैं।

परन्तु प्रशुल्क के अन्तर्गत आयातकर्ताओं को वस्तुएं किसी भी देश से आयात करने की बिल्कुल छूट होती है। इसलिए किसी भी देश के आपूर्तिकर्ता के साथ विभेद नहीं किया जाता।

2. एकाधिकारात्मक (Monopolistic)- आयात कोटा प्रणाली एकाधिकार को प्रोत्साहित करती है। इस प्रणाली के अन्तर्गत आयातकर्ताओं को सरकार से आयात लाइसेंस जारी किये जाते हैं जिन्हें पूर्व स्थापित, बड़े और पुराने लाइसेंसधारक अपने प्रभाव और अनियमित ढंग से प्राप्त करने में सदैव सफल होते हैं। इस प्रकार उनका एकाधिकार स्थापित हो जाता है। परिणास्वरूप, नए और छोटे व्यापारी आयात लाइसेंस प्राप्त नहीं कर पाते।

परन्तु प्रशुल्क के अन्तर्गत कोई भी व्यापारी एक वस्तु की कितनी भी मात्रा किसी भी देश से आयात शुल्क देकर आयात कर सकता है। इसमें छोटे अथवा बड़े व्यापारी का कोई भेद-भाव नहीं होता है और सभी आयातकर्ता देश की व्यापार-नीति के अनुसार वस्तुएं मंगवा सकते हैं ।

3. भ्रष्टाचार (Corruption)- आयात कोटा प्रणाली के अन्तर्गत सरकारी अधिकारी आयातकर्ताओं को आयात लाइसेंस आवंटित करते हैं जिनको प्राप्त करने के लिए व्यापारी और अधिकारी अनेक प्रकार के भ्रष्ट तरीके अपनाते हैं जैसे भेद-भाव, घूसखोरी आदि।

दूसरी ओर, प्रशुल्क के अन्तर्गत सरकारी अधिकारियों का कोई हस्तक्षेप नहीं होता क्योंकि प्रशुल्क की दरें सदन द्वारा निश्चित की जाती हैं। इसलिए यह प्रणाली भ्रष्टाचार से मुक्त है ।

4. महंगी प्रणाली (Costly System)- आयात कोटा प्रणाली सरकार के लिए महंगी पड़ती है। सरकार आयात लाइसेंस बेच कर फीस अथवा नीलाम करके कुछ राशि प्राप्त करती है जबकि इस प्रणाली को चलाने हेतु उसे प्रशासकीय व्यय बहुत करना पड़ता है। सरकार को कोई अतिरिक्त राजस्व प्राप्त नहीं होता है। बल्कि आयातकर्ता 'कोटा लाभ' अर्जित करते हैं।

इसके विपरीत, प्रशुल्क प्रणाली से सरकार को बहुत राजस्व प्राप्त होता है। जितनी अधिक वस्तुएं आयात होती हैं और जितने उंचे आयात प्रशुल्क होते हैं, उतना ही अधिक सरकार को राजस्व प्राप्त होता है, क्योंकि सरकारी राजस्व = आयातित वस्तुओं की मात्राएं - प्रशुल्क दरें।

5. कीमत वृद्धि (Price Rise)- कोटा प्रणाली के अन्तर्गत देश में वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होती है। जब वस्तुओं की मांग बढ़ती है तो अधिक वस्तुएं आयात करके उनकी पूर्ति को नहीं बढ़ाया जा सकता क्योंकि आयात की जाने वाली वस्तुओं का कोटा निश्चित होता है।

परन्तु प्रशुल्क प्रणाली में मांग के अनुरूप वस्तुओं को आयात करके उनकी पूर्ति बढ़ाई जा सकती है। इसलिए वस्तुओं की कीमतें प्रशुल्क दर के अनुसार ही बढ़ती हैं, परन्तु कोटा प्रणाली से कम। प्रारम्भ में ये अधिक बढ़ती हैं जब तक कि आयातित वस्तुएं मार्केट में नहीं आ जातीं। मार्केट में उनके प्रवेश के बाद कीमतें गिरना प्रारंभ कर देती हैं। परन्तु कोटा प्रणाली में ऐसा संभव नहीं होता है।

6. उपभोक्ता का शोषण (Exploitation of Consumer)- एक ओर तो आयात कोटा के कारण वस्तुओं की कीमतें मार्केट में बढ़ती हैं और दूसरी ओर कोटाधारक एकाधिकार रखने के कारण आयात की गई वस्तुओं की अधिक कीमतें निश्चित करते हैं। इन दोनों प्रवृत्तियों के पाये जाने से उपभोक्ता को वस्तुओं की अत्यधिक कीमतें देनी पड़ती हैं जिससे उनका शोषण होता है।

प्रशुल्क प्रणाली के अन्तर्गत उपभोक्ता का शोषण नहीं होता है क्योंकि आयातकर्ता जितनी चाहें वस्तुएं आयात कर सकते हैं और घरेलू मार्केट में उनको बेचने के लिए प्रतिस्पर्धा होने से अधिक कीमतें नहीं निश्चित करते । फिर, वे ऐसे देशों से वस्तुओं का आयात करते हैं जो न्यूनतम कीमतें लेते हैं । इससे भी देश में वस्तुओं की अधिक पूर्तियां और कम कीमतें होती हैं । अत: उपभोक्ता को लाभ होता है।

7. असमानताओं में वृद्धि (Increase in Inequalites)- ऊपर वर्णित के उप-परिणाम के रूप में जब उपभोक्ता को वस्तुओं के लिए अधिक कीमतें देनी पड़ती हैं और उनका शोषण होता है, तो उनकी वास्तविक आय में कमी होती है जिससे उनकी आर्थिक दशा बिगड़ने से उनका जीवन-स्तर गिरता है। दूसरी ओर, आयात कोटा धारक और व्यापारी जो आयातित वस्तुएं बेचते हैं वे बहुत लाभ कमाते हैं । इस प्रकार आयात कोटा प्रणाली के प्रभावस्वरूप निर्धन अधिक निर्धन और धनी अधिक धनी होते हैं जिससे आय असमानता में वृद्धि होती है।

परन्तु प्रशुल्क के अन्तर्गत आय समानताएं कम होती है। जब सरकार आयात पर प्रशुल्क लगाती है तो उसे राजस्व प्राप्त होता है जिसे सरकार ऐसी कल्याणकारी परियोजनाओं पर व्यय करती है जो गरीबों को लाभ पहुंचाती हैं। इस तरह गरीबों की वास्तविक आय में वृद्धि होती है और असमानताएं कम होती हैं।

8. द्विपक्षीय व्यापार की ओर (Towards Bilateral Trade)-आयात कोटा विश्व को बहुपक्षीय व्यापार की अपेक्षा द्विपक्षीय व्यापार की ओर ले जाता है। कोटा प्रणाली के अन्तर्गत व्यापारियों को प्रायः एक विशेष देश से एक विशेष वस्तु आयात करने हेतु लाइसेंस आवंटित किए जाते हैं। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का आधार सीमित होकर द्विपक्षीय बन जाता है।

इससे विपरीत, प्रशुल्क प्रणाली से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार बहुपक्षीय बनता है, क्योंकि आयातकर्ता अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी देश से प्रतियोगी कीमतों पर वस्तुएं खरीद सकता है। इससे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की मात्रा में भी वृद्धि होती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

आयात कोटा और प्रशुल्क के गुण और दोषों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि आयात कोटा से प्रशुल्क बेहतर है। इसी कारण गैट इस बात पर बल देता है कि यदि व्यापार नियंत्रण करना अति आवश्यक हो तो टैरिफ का प्रयोग करना अधिक उपयुक्त होता है।

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