एल. पेसिनेटी ने लाभ एवं वृद्धि
के मॉडल को अपने शोध लेख Rate of Profit and Distribution in Relation to the Rate
of Economic Growth (1962) में प्रस्तुत किया । पेसिनेटी मॉडल'
वितरण के कालडर मॉडल का विस्तार है जिसमें वर्करों के लाभों को उनकी बचतों के प्रतिफल
के रूप में लिया गया है। यह दर्शाता है कि लाभों और मजदूरियों के बीच आय का वितरण
पाया जाता है जो अर्थव्यवस्था को दीर्घकालीन संतुलन में रखता है।
मान्यताएँ (Assumptions)
पेसिनेटी
का सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है:
1. पूर्ण रोजगार पाया जाता
है।
2. राष्ट्रीय आय (Y) में मजदूरी
(W) और लाभ (P) सम्मिलित होते हैं।
3. वर्करों को मजदूरी का वितरण
उन द्वारा लगाई गई श्रम की मात्रा के अनुपात में किया जाता है तथा
पूँजीपतियों को लाभों का वितरण पास रखी पूँजी की मात्रा के अनुपात में किया जाता है।
4. प्रत्येक वर्ग अपनी आय का
एक स्थिर अनुपात बचत करता है और पूँजीपतियों की बचत की प्रवृत्ति
(sc) वर्करों की बचत की प्रवृत्ति (sw) से अधिक होती है।
मॉडल (The Model)- ये मान्यताएँ दी होने
पर, राष्ट्रीय समीकरण है,
Y=W+P
और
P = Pc + Pw
Y = W + Pw + Pc
जहाँ
Pc और Pw क्रमशः पूँजीपतियों और
वर्करों को प्राप्त होने वाले लाभों से संबद्ध हैं।
वर्करों
का बचत फलन है, Sw
= sw (W + Pw)
तथा
पूँजीपतियों का बचत फलन है, Sc = scPc
अतः
कुल बचत फलन है, S = sw(W + Pw)
+ scPc
यह
विदित है कि
I = S
या I + sw(W + Pw)
+ scPc
लेकिन Y = W + Pw + Pc
या W + Pw = Y - Pc
और I = sw(Y-Pc) +
scPc (`\because` W+Pw = Y - Pc)
= swY - SwPc
+ scPc
=swY
+ (sc - sw) Pc ...........(1)
जिससे निवेश का राष्ट्रीय आय
के साथ अनुपात,
`\frac IY=\frac{swY+(sc-sw)Pc}Y`
या `\frac IY=sw\frac{P_c}Y(sc-sw)`
या `\frac{P_c}Y(sc-sw)=\frac IY-sw`
या `\frac{P_c}Y=\frac I{(sc-sw)}\times\frac IY-\frac{sw}{sc-sw}` ........(2)
यह समीकरण पूँजीपतियों और वर्करों के बीच आय के वितरण की व्याख्या करता है। इसी प्रकार, निवेश का कुल पूँजी के साथ अनुपात समीकरण (1) से व्युत्पन्न किया जा सकता है:
`\frac IK=\frac{swY+(sc-sw)Pc}K`
या `\frac IK=sw\frac YK+\frac{P_c}K\left(sc-sw\right)`
या `\frac{P_c}K\left(sc-sw\right)=\frac IK-sw\frac YK`
या `\frac{P_c}K=\frac I{\left(sc-sw\right)}\times\frac IK-\frac{sw}{\left(sc-sw\right)}\times\frac YK`...(3)
समीकरण (2) और (3) लाभों के
उस भाग को दर्शाते हैं जो पूँजीपतियो को प्राप्त होते हैं। लाभों और मजदूरियों के बीच
आय के वितरण को दर्शाने के लिए हमें आय में वर्करों के हिस्से को, Pw /Y,
समीकरण (2) के दोनों ओर जमा करना चाहिए, क्योंकि यह समीकरण केवल राष्ट्रीय आय में पूँजीपतियों
के हिस्से को व्यक्त करता है । अतः लाभों और मजदूरियों के बीच आय का वितरण ऐसे व्यक्त
किया जा सकता है:
`\frac PY=\frac{P_c}Y+\frac{P_w}Y` ...........(4)
इसी प्रकार, समीकरण (3) पूँजीपतियों
के लाभों का कुल पूँजी के साथ अनुपात को दर्शाता है, और न कि कुल लाभों का कुल पूँजी
(लाभ की दर) का अनुपात ! लाभ की दर को निकालने के लिए हमें वर्करों के लाभ का हिस्सा
Pw/K, समीकरण (3) के दोनों ओर पूँजी में जोड़ना चाहिए ताकि
`\frac PK=\frac{P_c}K+\frac{P_w}K` ........(5)
पेसिनेटी यह दर्शाता है कि
लाभों और बचतों में मूलभूत संबंध होता है। दीर्घकाल में, प्रत्येक वर्ग द्वारा लगाई
गई बचतों के अनुपात में लाभों को वितरित किया जाता है। दूसरे शब्दों में, लाभ बचतों
के समानुपातिक होते हैं, और वे वर्करों और पूँजीपतियों दोनों के लिए समान होते हैं
। अतः
`\frac{P_w}{S_w}=\frac{P_c}{S_c}` .........(6)
यह संस्थानिक नियम पर आधारित
है कि लाभों को पूँजी के स्वामित्व के अनुपात में वितरित किया जाता है। समस्त अर्थव्यवस्था
के लिए लाभों के बचतों के साथ अनुपात का वास्तविक मूल्य निर्धारित करने के लिए, बचत
फलन को समीकरण (6) में प्रतिस्थापित करिए ताकि लाभ तथा वृद्धि का पेसिनेटी मॉडल
`\frac{P_w}{S_w\left(W+P_w\right)}=\frac{P_c}{\ s\ c\ P_c}\left[S=sw(W+P_w)orSc=scP_c\right]`
अथवा `sw(W+P_w)=scP_w` ...........(7)
इस समीकरण को यह कह कर समझा
जा सकता है कि दीर्घकाल में जब वर्कर बचत करते हैं तो वे लाभों (Pw) की
एक राशि प्राप्त करते हैं जो उनकी कुल बचतों को उस राशि के बिल्कुल बराबर बना देती
है जिसे पूँजीपतियों ने वर्करों के लाभों (Pw) में से बचाया होता यदि ये
लाभ उनके पास रहते । दूसरे शब्दों में, वर्कर सदैव अपनी बचतों के अनुपात में लाभों
की एक राशि प्राप्त करेंगे, चाहे लाभ की दर कुछ भी हो। लाभ की दर वर्करों द्वारा निर्धारित
नहीं होती है। दूसरी ओर, पूँजीपतियों के बारे में बचता और लाभी के बीच सीधा संबंध होता
है क्योंकि उनकी बचते लाभों में से आती हैं। इसलिए पूँजीपतियों की बचत प्रवृत्ति,
sc, दी होने पर लाभों और बचतों के बीच केवल एक समानुपातिक संबंध होता है जो अनुपात
Pc/scPc को Pc/Sc के बराबर बना देता है। यह समानुपातिक संबंध सिवाय sc के और कुछ नहीं
हो सकता है जो इस कारण सभी बचत ग्रुपों के लिए लाभों के बचतों के साथ अनुपात को निर्धारित
करेगा, और परिणामस्वरूप सारी अर्थव्यवस्था के लिए लाभों और मजदूरियों के बीच आय वितरण
भी।
कालपर्यन्त पूर्ण रोजगार कायम
करने के लिए, निवेश की इतनी राशि अवश्य करनी चाहिए जो तकनीकी उन्नति और जनसंख्या वृद्धि
द्वारा बहिर्जातीय तौर से निर्धारित होती है। ऐसी स्थिति में, लाभ की केवल एक संतुलन
दर होती है जो वृद्धि की प्राकृतिक दर विभाजित पूँजीपतियों की बचत प्रवृत्ति द्वारा
निर्धारित होती है, जो मॉडल के किसी और चर से स्वतंत्र है। इसे यूँ व्यक्त किया जाता
है।
`\frac PK=\frac n{sc}`
केवल लाभ की यह दर (P/K) अर्थव्यवस्था
को पूर्ण रोजगार के गत्यात्मक पथ पर रखती है।
ऐसी प्रणाली में स्थिरता की
केवल शर्त sc > 0 हैं जहाँ पूर्ण रोजगार निवेश किए जाते हैं तथा कीमतों का मजदूरियों
से संबंध लचीला होता है।
पेसिनेटी ने अपने मॉडल के दो
निहितार्थ दिए हैं । प्रथम, दीर्घकाल में वर्करों की बचत प्रवृत्ति (sw) लाभ की दर
को प्रभावित नहीं करती है, इस प्रकार P/K = 1/sc. I/K. आगे sw लाभों और मजदूरियों के
बीच आय के वितरण को प्रभावित नहीं करती है, इस प्रकार P/Y=1/sc. I/Y. इस सबका मतलब
यह है कि लाभ की दर और लाभ और मजदूरियों के बीच वितरण sw से स्वतंत्र निर्धारित होते
हैं। दूसरे, समस्त प्रणाली में लाभों के साथ बचतों का अनुपात जो पाया जाता है वह पूँजीपतियों
की बचत प्रवृत्ति sc द्वारा दिया गया है और इस बारे में वर्करों द्वारा बचत करने के
निर्णय इसमें नहीं लिए जाते हैं। कुल लाभों में वर्करों का हिस्सा पूर्व-निर्धारित
होता है और यह इसको बिल्कुल प्रभावित नहीं कर सकता है।
कालडर मॉडल के
साथ तुलना (Comparison with Kaldor Model)
पेसिनेटी ने वर्करों के लाभों
को उनकी बचतों के प्रतिफल के रूप में अपने लाभों तथा वृद्धि के मॉडल में सम्मिलित करके
कालडर के वितरण मॉडल का विस्तार किया है। वर्करों की बचतों को शून्य मानकर, कालडर मॉडल
आय के वितरण की दो संधारणाओं में भेद करने में असफल रहा है। ये हैं : लाभों और मजदूरियों
के बीच आय का वितरण, तथा पूँजीपतियों और वर्करों के बीच आय का वितरण । जब sc= 0 हो
तो दोनों संधारणाएं अनुरूप हो जाती हैं।
कालडर मॉडल में यह कमी है कि
यह सभी लाभों को पूँजीपतियों से संबद्ध रखता है जिसका मतलब है कि वर्करों की बचतें
पूर्णतया पूँजीपतियों को उपहार के रूप में हस्तांतरित हो जाती हैं। यह अवास्तविक है
क्योंकि जब एक व्यक्ति अपनी आय के एक भाग को बचाता है उसे उसको रखने का अधिकार होना
चाहिए, अन्यथा वह बिल्कुल बचत नहीं करेगा । वास्तव में, पूँजी के कुल स्टॉक पर पूँजीपतियों
और वर्करों दोनों का ही स्वामित्व होता है जो भूतकाल में बचत करते हैं। क्योंकि वर्कर
पूँजीपतियों की तरह बचाते और पूंजी के स्टॉक के एक भाग का स्वामित्व रखते हैं तो वे
भी कुल लाभों का एक हिस्सा प्राप्त करते हैं। इस प्रकार, कुल लाभ पूँजीपतियों और वर्करों
दोनों को प्राप्त होते हैं। यह महत्वपूर्ण पहलू कालडर के मॉडल में नहीं पाया जाता है
जिसे पेसिनेटी ने अपने मॉडल में पूरा करने का प्रयल करता है। अतः वह आय के वितरण की
दो विभिन्न संधारणाओं के बीच उलझन को स्पष्ट करता है, तथा लाभों और मजदूरियों के बीच
एवं पूँजीपतियों और वर्करों के बीच आय के वितरण के भेद को स्पष्ट करता है।
पेसिनेटी पूँजीपतियों की बचत
प्रवृत्ति पर आधारित लाभ की दर और वृद्धि की दर के बीच एक सीधा तथा साधारण संबंध स्थापित
करता है। यह सतत स्थिति में सत्य है जबकि वर्कर भी बचत करते हैं। यह कालडर का इस मान्यता
से अधिक वास्तविक है कि वर्करों की बचत शून्य है।
फिर, पेसिनेटी परिकल्पना करता
है कि बचत प्रवृत्तियाँ वर्ग के अनुसार भिन्न होती हैं, न कि आय के प्रकार द्वारा,
तथा वर्ग स्थिर हैं। उसकी सतत स्थिति यह अपेक्षित करती है कि वर्गों के बीच पूँजी के
स्वामित्व का वितरण स्थिर होता है और दीर्घकालीन संतुलन में स्थिरता के लिए शर्त केवल
sc> 0 है, जबकि कालडर मॉडल की स्थिरता शर्ते sw < I/Y तथा sc > VY अल्पकालीन
संतुलन की हैं। अतः सभी ओर से, कालडर मॉडल की तुलना में पेसिनेटी मॉडल श्रेष्ठ और अधिक
वास्तविक है।