आज
का युग आर्थिक नियोजन का युग है। इसीलिए आज प्रत्येक राष्ट्र-चाहे विकसित हो या अर्द्ध-विकसित,
पूँजीवादी हो या समाजवादी-आर्थिक नियोजन को अपना रहा है। वास्तव में, नियोजन वर्तमान
समय का महत्वपूर्ण आर्थिक नारा और सभी आर्थिक बुराइयों की औषधि बन गया है। श्री
टी. टी. कृष्णमाचारी के शब्दों में, "आध्यात्मिक क्षेत्र में जो महत्व ईश्वर
का है, आर्थिक क्षेत्र में वही महत्व नियोजन का है।"
आर्थिक नियोजन की परिभाषाएँ
(DEFINITIONS OF ECONOMIC PLANNING)
विभिन्न
देशों में वहाँ की आवश्यकतानुसार भिन्न-भिन्न उद्देश्यों से आर्थिक नियोजन को अपनाया
गया है। अत: इसकी परिभाषाओं में भी काफी भिन्नता पाई जाती है। आर्थिक नियोजन की कुछ
परिभाषाएँ निम्न हैं-
1. प्रो. एल. रॉबिन्स (L. Robbins) के शब्दों में,
"नियोजन से आशय उत्पादन पर किसी भी प्रकार के राजकीय
नियन्त्रण से है।"
यह
ठीक है कि नियोजन में नियन्त्रण अपनाये जाते हैं लेकिन नियन्त्रणों को ही नियोजन नहीं
कहा जा सकता।
2. डाल्टन (Dalton) के अनुसार, "आर्थिक नियोजन
अपने विस्तृत अर्थ में, विशाल साधनों के संरक्षक व्यक्तियों
द्वारा निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु आर्थिक क्रियाओं का इच्छित निर्देशन है।
2
इस
परिभाषा से स्पष्ट है कि आर्थिक नियोजन की प्रक्रिया में-(अ) लक्ष्यों का पहले से निर्धारण किया जाता है; (ब) इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आर्थिक
क्रियाओं का इच्छित निर्देशन किया जाता है और (स) यह निर्देशन 'विशाल साधनों के
संरक्षक व्यक्तियों' अर्थात् सरकार द्वारा किया जाता है।
3. गुन्नार मिर्डल के अनुसार, “आर्थिक नियोजन राष्ट्रीय
सरकार की व्यूह रचना का एक कार्यक्रम है, जिसमें बाजार की शक्तियों के साथ-साथ सरकारी
हस्तक्षेप द्वारा सामाजिक प्रक्रिया को ऊपर ले जाने के प्रयास किये जाते हैं।"
इस
परिभाषा में यह स्पष्ट किया गया है कि आर्थिक नियोजन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य सामाजिक
व्यवस्था को ऊपर उठाना है जिसके लिए राजकीय हस्तक्षेप को अपनाया जाता है।
4. योजना आयोग-"आर्थिक नियोजन अनिवार्य रूप से परिभाषित
सामाजिक लक्ष्यों के अनुसार विभिन्न साधनों को अधिकतम लाभ के लिए संगठित करने और उपयोग
करने की एक प्रणाली है।" नियोजन के दो प्रमुख अंग हैं-(अ) उद्देश्यों का क्रम
जिनकी पूर्ति का प्रयास किया जाय तथा (ब) प्राप्त साधनों और उनके अनुकूलतम विवरण के
सम्बन्ध में ज्ञान ।
मूल्यांकन-योजना
आयोग द्वारा दी गई परिभाषा से स्पष्ट है कि आर्थिक नियोजन में उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक
साधनों का अधिकतम उपभोग समाज के हित के लिए होता है।
आर्थिक
नियोजन की उपर्युक्त परिभाषाओं से नियोजन के स्पष्ट अर्थ का ज्ञान नहीं होता। इसलिए
किसी भी परिभाषा को सर्वमान्य मान लेना कठिन है। आर्थिक नियोजन की एक सरल परिभाषा इस
प्रकार दी जा सकती है-
"आर्थिक
नियोजन आर्थिक विकास की वह सतत् एवं दीर्घकालीन प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत राज्य
आर्थिक शक्तियों एवं गतिविधियों को इस प्रकार नियन्त्रित करता है कि उपलब्ध साधनों
का विभिन्न क्षेत्रों में पूर्व-निधारित उद्देश्यों की पूर्ति अनुकूलतम उपयोग हो सके।"
आर्थिक नियोजन के लक्षण विशेषताएं (CHARACTERISTICS OF ECONOMIC
PLANNING)
आर्थिक
नियोजन के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं
1. केन्द्रीय नियोजन सत्ता-आर्थिक नियोजन के लिए एक केन्द्रीय
सत्ता का होना आवश्यक है जो सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था की विभिन्न क्रियाओं में समन्वय
स्थापित करने के साथ-साथ नियोजन के लक्ष्यों को निर्धारित कर सके।
2. एक संगठित पद्धति-नियोजन आर्थिक क्रियाओं के
सम्पादन की संगठित पद्धति होती है। इस प्रणाली में जो भी कार्य किये जाते हैं, वे पूर्णरूपेण
सोच समझाकर किये जाते हैं और उन कार्यों के सम्पादन के लिए सम्पूर्ण आर्थिक साधनों
को पहले से हो ठीक, सुसंगठित और संगुच्छित करना आवश्यक रहता है।
3. साधनों का विवेकपूर्ण उपयोग-नियोजन को प्रमुख विशेषता
होती है कि संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए क्योंकि इस प्रणाली का प्रमुख उद्देश्य
होता है सीमित समय में सीमित
साधनों
से अधिकतम उपलब्ध करना। यह तब तक सम्भव नहीं होगा जब तक कि हम उपलब्ध हों, उनका उपयोग
विवेकपूर्ण ढंग से न करें अर्थात् यह सोच समझकर कि किस कार्य को करने और कितना विनियोग
करने से अधिकाधिक उपलब्धि होगी।
4. उद्देश्य पूर्व-निर्धारित और पूर्ण-विचारित
होते हैं-योजना प्रणाली में एक निर्धारित अवधि के जो भी कार्यक्रम बनाये जाते हैं,
उनके उद्देश्य का निर्धारण पहले किया जाता है कि एक निश्चित समय में क्या कार्य करने
हैं ? उस कार्य (उद्देश्य) को पूरा करने के लिए अर्थव्यवस्था के किस क्षेत्र में कितनी
उपलब्धि करनी होगी और उस लक्ष्य की उपलब्धि के लिए कितना विनियोग करना होगा ?आदि।
5. निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति निश्चित समय में की जाती है-नियोजन
प्रणाली में उद्देश्यों को उपलब्ध कराने के लिए एक समय निर्धारित किया जाता है और उसकी
प्राप्ति उस निश्चित समय के अन्तर्गत ही किये जाने का प्रयल किया जाता है। उदाहरणार्थ,
त्रिवर्षीय, पंचवर्षीय एवं सप्तवर्षीय योजनाएँ जो होती हैं, उनमें निर्धारित लक्ष्यों
को इस निश्चित समय में प्राप्त करने का अटूट प्रयत्न किया जाता है।
6. साधनों का नियन्त्रण राज्य द्वारा-चूँकि
इस प्रणाली में एक निश्चित उद्देश्य एक सीमित और निर्धारित समय में प्राप्त करना रहता
है, अत: यह आवश्यक होता है कि सम्पूर्ण उपलब्ध साधनों का उपयोग सर्वोत्तम ढंग से किया
जाए । कार्यों का सम्पादन भो इस ढंग से होना चाहिए कि निर्धारित लक्ष्यों को उपलब्धि
की जा सके । अतः साधनों पर राज्य का नियन्त्रण और निर्देशन आवश्यक हो जाता है।
7. साधनों का तान्त्रिक समन्वय-निर्धारित सीमित समय
में अधिकतम उपलब्धि प्राप्त करने के दृष्टिकोण से यह अत्यावश्यक होता है कि साधनों
का उपयोग तान्त्रिक एवं समन्वित रूप में हो अर्थात् उनका उपयोग इस प्रकार से किया जाए
कि वे प्रत्येक एक-दूसरे के अधिकतम सहायक हो सकें और उनका उपयोग पूर्णरूपेण समन्वित
हो।
8. साधनों का प्राथमिकता के आधार पर उपयोग- एक
राष्ट्र में जो भी साधन उपलब्ध रहते हैं, उनका उपयोग विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में
उनकी महत्ता के आधार पर होता है अर्थात् जिस क्रिया का सम्पादन सर्वाधिक महत्वपूर्ण
एवं आवश्यक होता है, उसको सर्वप्रथम हाथ में लिया जाता है और उस पर सर्वाधिक व्यय किया
जाता है। यह प्रणाली क्रमिक रूप में चलती रहती है, जैसे-हमारी सभी पंचवर्षीय योजनाओं
में (द्वितीय योजना को छोड़कर) कृषि को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई, उद्योग को द्वितीय
और यातायात एवं संवादवाहन तथा समाजसेवा को क्रमश: तृतीय एवं चतुर्थ-इन दोनों के सन्दर्भ
में योजनाओं में उलट-फेर होता रहा।
9. योजना संचालन के लिए जनता के प्रतिनिधियों एवं निःस्वार्थ भाव से
सेवा करने वालों का एक सुसंगठित केन्द्रीय विभाग-योजना आर्थिक क्रियाओं
के सम्पादन की एक विशिष्ट प्रणाली है। अतः इसका सम्पादन एवं संचालन विशिष्ट ढंग से
किया जाना आवश्यक है अन्यथा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो पाती। अतः इस कार्य
को सुचारु रूप से पूरा करने के लिए विशिष्ट विभाग होना आवश्यक है जिसमें दक्ष एवं नि:स्वार्थ
सेवाभाव से रत व्यक्ति सम्मिलित हों। यह विभाग भारत में 'योजना आयोग' और रूस में 'गास
प्लान' के नाम से जाना जाता है।
10. सम्बन्धित देश का सर्वांगीण विकास- योजना
के माध्यम से विकास के जो प्रयत्न किये जाते हैं, उनमें यही व्यवस्था की जाती है कि
देश का सर्वांगीण विकास हो अर्थात् आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं मानसिक सभी प्रकार
की प्रगति हो। कार्यक्रम भी इसी के अनुकूल बनाये जाते हैं।
11. जन सहयोग आवश्यक शर्त-नियोजन के लक्ष्यों को सफलतापूर्वक
पूरा करने के लिए आवश्यक होता है कि उनका कार्यान्वयन सुचारु रूप से हो।
नियोजन के उद्देश्य (OBJECTIVES OF PLANNING)
आर्थिक
नियोजन एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है। विभिन्न देशों को आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों
को आवश्यकताओं के आधार पर ही वहाँ के नियोजन के उद्देश्य निर्भर करते हैं। समाजबादी
एवं प्रजातान्त्रिक राष्ट्रों में आर्थिक नियोजन के मुख्य उद्देश्य पूर्ण रोजगार, आर्थिक
स्थिरता और सामाजिक सुरक्षा होती है परन्तु साम्यवादी राष्ट्रों में आर्थिक उद्देश्य
के साथ ही साथ राजनीतिक उद्देश्यों पर भीध्यान दिया जाता है।
सैद्धान्तिक रूप में नियोजन के उद्देश्यों के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों
ने अपने विभिन्न विचार व्यक्त किये हैं-
(i) आर. वी. राव-"नियोजित अर्थव्यवस्था का अर्थ है,
आर्थिक क्रियाओं का पूर्ण क्षेत्र पर (अर्थात् उत्पत्ति, उपभोग, वितरण तथा मुद्रा आदि
पर) नियन्त्रण रखना।"
(ii) अर्देशीर दलाल-"आर्थिक नियोजन का उद्देश्य
उत्पादन का अधिक से अधिक सम्भव सीमा तक विकास करना तथा सर्वसाधारण के रहन-सहन स्तर
को ऊँचा करना है।"
(iii) वाडिया तथा मर्चेण्ट-'आर्थिक नियोजन का उद्देश्य
मनुष्य के रहन-सहन के स्तर को ऊँचा करना, आर्थिक साधनों का समुचित उपयोग करके उनका
बहुमुखी विकास करना, सुखी एवं समृद्ध जीवन की सम्भावना को बढ़ाना, देश में यातायात
के साधनों का समुचित प्रबन्ध करना, गृह उद्योग-धन्धों को विकसित करना, ग्राम्य जीवन
को समृद्ध बनाना तथा बाजारों को विस्तृत करना है।"
उपर्युक्त
विवेचन से स्पष्ट है कि नियोजन के उद्देश्य अधिकांशत: आर्थिक होते हैं किन्तु आजकल
सामाजिक और राजनीतिक उद्देश्यों को ही सम्मिलित किया जाता है। इस प्रकार आर्थिक नियोजन
के उद्देश्यों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है,
1.राजनीतिक (Political Objectives)
प्रारम्भ
में अधिकांश योजनाएँ राजनीतिक उद्देश्यों को लेकर ही बनायी जाती थी। रूस की प्रथम तथा
पंचम योजना मुख्य रूप से राजनीतिक योजना थी। आज भी राजनीतिक उद्देश्यों को सामने रखकर
आर्थिक योजनाओं के निर्माण की परम्परा देखने को मिलती है। आर्थिक नियोजन के प्रमुख
राजनीतिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. आन्तरिक शान्ति (Internal Peace) आर्थिक नियोजन का एक
उद्देश्य यह भी है कि देश में आन्तरिक शान्ति बनायी रखी जा सके। इसके लिए यह आवश्यक
है कि देश में उत्पन्न होने वाली आर्थिक समस्याओं का तत्काल समाधान किया जाय, ताकि
हड़ताल, तालाबन्दी, घेराव व अन्य हिंसक घटनाएँ न हों। जनप्रतिनिधियों द्वारा समय समय
पर सरकार का ध्यान इन समस्याओं की ओर खींचा जाता है। अत: इसके निरकरण का उद्देश्य भी
आयोजनाओं में सम्मिलित कर लिया जाता है।
2. सुरक्षा (Defence) देश की जल, थल एवं वायु सेनाओं
को शक्तिशाली बनाकर देश को किसी भी आकस्मिक आक्रमण से सुरक्षित बनाये रखना आधुनिक आर्थिक
नियोजन का प्रमुख उद्देश्य माना जाता है। "शक्तिशाली देश की ओर कोई उँगली भी नहीं
उठा सकता।" इन धारणाओं के अनुकूल युद्ध के लिए तैयार रहने से युद्ध को टाला जा
सकता है। आज अमेरिका, रूस, चीन आदि अनेक देशों ने सुरक्षा को महत्व देकर अपने आपको
एक शक्तिशाली राष्ट्र बना लिया है।
3. नीतियों का पालन (Implementation Policies)—प्रत्येक
सरकार की कुछ घोषित नीतियाँ, जैसे-समाजवाद, पूँजीवाद, साम्यवाद होती है जिनके पालन
के लिए वे वचनबद्ध होते हैं। आर्थिक नियोजन को घोषित नीति की सफलता के उपकरण की तरह
काम में लाया जाता है। उदाहरण के लिए, भारत ने समाजवादी समाज की स्थापना की नीति अपनायी
है फलतः भारत की प्रायः सभी योजनाओं में समाजवादी समाज के निर्माण का एक प्रमुख उद्देश्य
घोषित किया गया है।
4. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि (Increase in International
Collaboration) — आर्थिक नियोजन का एक अन्य राजनीतिक उद्देश्य
अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना भी हो सकता है। यह सहयोग आर्थिक, राजनीतिक या सांस्कृतिक
क्षेत्र में हो सकता है।
II. आर्थिक उद्देश्य (Economic Objectives)
1.पिछड़े हुए क्षेत्रों का विकास (Development of Backward Areas)—प्राय:
सभी देशों में नियोजन का प्रमुख उद्देश्य पिछड़े हुए तथा अविकसित क्षेत्रों का विकास
करना होता है। वास्तव में, जब तक किसी भी देश के सभी क्षेत्रों का उपयुक्त एवं स्वांगीण
विकास नहीं होगा तब तक उस देश का पूर्ण विकास सम्भव नहीं है।
2. पूर्ण रोजगार और औद्योगीकरण (Full Employment and
Industrialisation) अविकसित राष्ट्रों की बहुत बड़ी समस्या होती
है 'बेकारी की समस्या'। वहाँ विभिन्न आर्थिक एवं औद्योगिक साधन अर्द्धशोषित एवं अशोषित
रहते हैं। फलस्वरूप काम करने योग्य जनसंख्या का एक बड़ा भाग बेकार अधवा अनियुक्त रहता
है, इससे लोगों का रहन-सहन नीचा रहता है, राष्ट्र निर्धन और गरीब बना रहता है और राष्ट्रीय
शक्ति कमजोर रहती है। आर्थिक नियोजन का उद्देश्य होता है बेकारो दूर करना, अधिक से
अधिक लोगों को रोजगार की व्यवस्था कराना और देश में धनोपार्जन बढ़ाना। इस तरह आर्थिक
दृष्टिकोण से यह उद्देश्य महत्वपूर्ण है।
3. अवसर की समानता (Equality of Opportunity) अवसर
की समानता नियोजन का उद्देश्य होना स्वाभाविक व आवश्यक है क्योंकि बिना अवसर की समानता
के समाज में समानता, उत्पादन, विनिमय और वितरण में उपयुक्तता नहीं लाई जा सकती है।
समाज में अनियोजित अर्थव्यवस्था की विभिन्न प्रकार की कमियाँ बनी रहती हैं। नियोजन
में यह प्रयत्न किया जाता है कि सभी व्यक्तियों को शिक्षण तथा अपनी-अपनी कुशलता का
प्रयोग करने का समान अवसर प्राप्त हो।
4. अधिक उत्पादन (Mass Production)—अधिकाधिक उत्पादन से
ही जन समुदाय का जीवन स्तर ऊँचा हो सकता है अत: अधिकतम उत्पादन नियोजन का प्रधान एवं
विशिष्ट उद्देश्य होता है। अधिकतम उत्पादन निम्न उपायों से किया जा सकता है- (i) राष्ट्रीय
साधनों एवं जनसमुदाय का उपयोग उपयुक्त प्रकार से किया जाए। (ii) नवीनतम यान्त्रिक ज्ञान,
कुशल श्रमिक व दक्ष साहसियों द्वारा देश के साधनों का ठीक ढंग से प्रयोग किया जाए।
(iii) उद्योगशालाओं एवं विभिन्न अन्य क्षेत्रों में शासन सम्बन्धी सुधार हो, पूर्ण-रोजगार
की व्यवस्था हो और श्रमिकों को भी प्रबन्ध में उचित स्थान दिया जाए। (iv) प्रतिस्पर्द्धा
और निजी उत्पादकों को कुरीतियों पर रोक लगायी जाए। (v) विभिन्न प्रकार के उद्योगों
का समुचित उत्थान किया जाए और इन्हें उपयुक्त सहायता दी जाए । (vi) मौद्रिक स्थिरता
रखी जाए एवं मौद्रिक नीति को अनुकूल बनाया जाए। (vii) कृषि के दोषों को दूर करके उसे
विकसित किया जाए। (viii) बचत की दर बढ़ाई जाए। पूँजी-निर्माण और विनियोग की दर में
अधिकाधिक वृद्धि की जाए। (ix) विवेकीकरण एवं वैज्ञानिक पद्धति को उद्योगों में लागू
किया जाए। (x) बड़े पैमाने पर उत्पादन के लाभों को प्राप्त किया जाए।
5. आर्थिक सुरक्षा (Economic Security)—आर्थिक
सुरक्षा नियोजन का लक्ष्य होता है। इसका तात्पर्य यह है कि श्रमिकों को उपयुक्त मजदूरी,
साहसियों को उपयुक्त लाभ, पूँजी विनियोजकों को उपयुक्त ब्याज तथा भूस्वामी को उपयुक्त
लगान प्राप्त हो अर्थात् आर्थिक क्रियाओं में जो भी साधन भाग लेते हैं उनमें से किसी
एक के द्वारा अन्य का शोषण न हो अर्थात् उन्हें आर्थिक सुरक्षा मिलती रहे।
6. आय का समान वितरण (Equal Distribution of Income) आर्थिक
नियोजन का उद्देश्य देश में आय एवं धन का समान वितरण करना होता है। सरकार अमीरों पर
अधिक करारोपण कर प्राप्त आय का गरीबों में पुनर्वितरण करती है।
7. ऊँचा जीवन-स्तर (High Standard of Living) आर्थिक
नियोजन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य जन-साधारण को पहले से श्रेष्ठ जोवन-स्तर को उपलब्ध
कराना है, ताकि सभी लोग सुविधाजनक और सम्मानित जीवन व्यतीत कर सकें।
8. आत्मनिर्भरता की प्राप्ति (Achievement of Self-sufficiency) यह
सच है कि आधुनिक युग में कोई भी देश आर्थिक दृष्टि से आत्म-निर्भर नहीं हो सकता तो
भी आर्थिक नियोजन का उद्देश्य होता है कि देश यथासम्भव दूसरों पर आश्रित होने के बजाय
आत्मनिर्भर बने।
9. आर्थिक संरचना (Economic Infra-structure) किसी
भी देश के आर्थिक विकास के लिए सड़कें, रेलें, जलापूर्ति, बिजली आदि की सुविधाओं की
पर्याप्त व्यवस्था करना आवश्यक होता है क्योंकि यह सुविधाएँ आर्थिक विकास का अधार होती
हैं। अत: आर्थिक नियोजन में उपयुक्त साज सज्जा को व्यवस्था करने का लक्ष्य रखा जाता
है, ताकि विकास की क्रियाओं में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न होने की आशंका न हो।
10. अधिकतम सामाजिक कल्याण (Maximun Social Welfare)-आर्थिक
नियोजन का उद्देश्य देश के नागरिकों का अधिकतम सामाजिक कल्याण करना भी होता है। इसके
लिए सरकार इस प्रकार की नीति अपनाती है जिससे आर्थिक साधनों का इस प्रकार उपयोग किया
जाए कि जनता को अधिकतम कल्याण प्राप्त हो सके।
11. आर्थिक विकास एवं पुनर्निर्माण
(Economic Development and Re-habitation) आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए
देशों का विकास करना तथा युद्ध-जर्जरित अर्थव्यवस्थाओं का पुनर्निर्माण करना भी आर्थिक
नियोजन का एक आवश्यक उद्देश्य होता है।
III. सामाजिक उद्देश्य (Social Objectives)
1. सामाजिक सुरक्षा (Social Security)- माजिक
सुरक्षा का तात्पर्य जनसमूह हेतु ऐसी सुविधाओं की उपलब्धि से होता है, जिनकी सहायता
से जनता विभिन्न आकस्मिक आपत्तियों, जैसे- बीमारी, बेकारी, वृद्धावस्था, मृत्यु, औद्योगिक
उथल पुथल आदि से सुरक्षित रह सकेगी। ये सुविधाएँ सामाजिक बीमा तथा सामाजिक सहायता
(Social Insurance and Social Assistance) द्वारा प्रदान की जाती हैं।
2. सामाजिक समानता (Social Equality)—सर्वांगीण
एवं समुचित विकास के लिए सामाजिक समानता आवश्यक । समानता के आ जाने पर गरीबों व अमीरों
के बीच की खाई समाप्त हो जाती है। प्रत्येक को अपनी वृद्धि और योग्यता के अनुसार अपना
विकास करने के लिए समान अवसर प्राप्त होता है।
3. कल्याणकारी राज्य की स्थापना (Establishment of Welfare State)—नियोजन
का उद्देश्य एक ऐसे कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है जिसमें नागरिकों की आवश्यकताओं
की पूर्ति, सन्तुलित भोजन, स्वास्थ्य एवं शिक्षा की सेवाएं प्रदान की जाती हैं। कण्ट
ने कल्याणकारी राज्य को परिभाषित करते हुए कहा है, "एक ऐसा राज्य जिसमें नागरिकों
को बड़ी मात्रा में सामाजिक सेवाएँ उपलब्ध की जाती हैं जिसका प्रमुख उद्देश्य नागरिकों
को सुरक्षा प्रदान करता है। यदि वह आय के सामान्य स्रोतों को खो देता है तो राज्य उसे
सहायता प्रदान करता है।"
4. अहितकर कार्यों पर नियन्त्रण (Control on Harmful Activities) आर्थिक
नियोजन का एक उद्देश्य यह भी होता है कि ऐसे सामाजिक कार्यों व नीतियों पर कठोर नियन्त्रण
लगाया जाए जो जनसाधारण को असामाजिक प्रवृत्तियों की ओर आकर्षित करती हैं। शराबबन्दी,
विलासिताओं के उपभोग पर पाबन्दी, नशीली दवाओं पर रोक आदि इसके उदाहरण हैं।
उपर्युक्त
विवेचन से स्पष्ट है कि आर्थिक नियोजन का उद्देश्य देश का सर्वांगीण विकास करना होता
है। आर्थिक नियोजन के उद्देश्य के सम्बन्ध में निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं-
(i)
नियोजन के अधिकांश उद्देश्य आर्थिक और राजनीतिक होते हैं।
(ii)
प्रायः समस्त उद्देश्य एक-दूसरे से सम्बन्धित और एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं।
(iii)
नियोजन के उद्देश्य सम्पूर्ण समाज के लिए और सम्पूर्ण देश के लिए होते हैं, अतः उन्हीं
उद्देश्यों को रखना चाहिए जो समाज के लिए आवश्यक हों
(iv)
उद्देश्य एक-दूसरे से सम्बन्धित एवं एक-दूसरे पर आश्रित होते हैं इसलिए योजनाओं में
प्राथमिकताएँ सावधानी से निर्धारित की जानी चाहिए।
(v)
उद्देश्य की सहायता के लिए आवश्यक है कि अधिक मात्रा में केन्द्रीय नियन्त्रण हो और
नियोजन का ठीक से संचालन हो।
आर्थिक
नियोजन की आवश्यकता (महत्व) [INEED (IMPORTANCE) OF ECONOMIC PLANNING]
आधुनिक
युग में आर्थिक नियोजन की उपादेयता को विश्व के सभी राष्ट्र स्वीकार करते हैं। नियोजन
के विषय में एक व्यापक मान्यता यह है कि पूँजीवादी तथा समाजवादी दोनों ही प्रकार की
अर्थव्यवस्था में व्याप्त आर्थिक समस्याओं का निराकरण आर्थिक नियोजन की सहायता से आसानी
से किया जा सकता है।
प्रो.
रॉबिन्स का यह कथन अक्षरशः सत्य है कि ''आर्थिक नियोजन हमारे युग को एक अचूक महा-औषधि
है।'' यह प्रणाली विकसित एवं विकासशील, सभी राष्ट्रों की आर्थिक समस्याओं का हल प्रस्तुत
करती है।
आर्थिक
नियोजन के महत्व का अध्ययन हम दो शीर्षकों में करेंगे-
I.
विकसित देशों के लिए महत्व और
II.
विकासशील देशों के लिए महत्व ।
1. विकसित देशों के लिए महत्व (Importance for Developed
Countries)—स्वतन्त्र पूँजीवादी एवं विकसित अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक
स्थिरता बनाये रखने की समस्या होती हैं। इन अर्थव्यवस्थाओं में तेजी, मन्दी, एकाधिकारी
शक्तियों का विकास, श्रम-संघर्ष आदि का भव प्राय: बनारहता है। विकास के साथ-साथ उत्पादन
के साधन प्राय: कुछ अमीर व्यक्तियों के हाथों में संकेन्द्रित होते जाते हैं, फलत:
वर्ग-संघर्ष उत्पन्न होता है। इतना ही नहीं, औद्योगिक विकास के फलस्वरूप भी अनेक कठिनाइयाँ
समय-समय पर होती रहती हैं।
उपर्युक्त
कठिनाइयों को दूर करने के लिए सरकार आर्थिक नियोजन का सहारा लेती है। विगत वर्षों में
अनेक पूँजीवादी देशों में सम्बन्धित सरकारों द्वारा विभिन्न योजनाएँ बनाकर अर्थव्यवस्था
में हस्तक्षेप किया गया। अनेक पूँजीवादी देशों में भी महत्वपूर्ण उद्योगों का राष्ट्रीयकरण
किया गया तथा अन्य आर्थिक नियन्त्रण लागू किये गये तथा सामाजिक सुरक्षा-व्यवस्था को
अच्छा बनाने के लिए कानून बनाये गये। वस्तु मूल्यों पर भी नियन्त्रण किया गया।
II. विकासशील देशों के लिए महत्व या अनिवार्यता (Importance for
Developing Countries) विकासशील देशों के तीब्र आर्थिक विकास के लिए
आर्थिक नियोजन का विशेष महत्व है। विकासशील देशों की प्रमुख समस्याएँ निम्न राष्ट्रीय
उत्पादन, निम्न प्रति व्यक्ति आय, कम बचत व कम विनियोग व बेरोजगारों आदि हैं। इन अर्थव्यवस्थाओं
में संसाधनों की कमी होती है। जो भी साधन उपलब्ध होते हैं, उनका श्रेष्ठ उपयोग कर पाने
में भी अधिकांश विकासशील देश अपने को असमर्थ पाते हैं। इन देशों में तकनीकी प्रविधि
निम्न कोटि की होती है व व्यापार की शर्ते प्रतिकूल रहती हैं। इन देशों की बढ़तो हुई
जनसंख्या इनके आर्थिक विकास में और अधिक रोड़े अटकाती है। ऐसी उलझनभरी स्थिति नियोजन
का मार्ग इन देशों के लिए कारगर सिद्ध हो सकता है। ये देश योजनाबद्ध ढंग से अपने सीमित
साधनों के विवेकपूर्ण उपयोग द्वारा हो अपनी विभिन्न कठिनाइयों से मुक्ति पा सकते हैं।
अत: विकासशील देशों के लिए आर्थिक नियोजन हो एकमात्र वह दीपक है जिसकी लौ के प्रकाश
में वे अन्धकार से उजाले की और सफलतापूर्वक आगे बढ़ सकते हैं।
अब
हम विकसित व विकासशील दोनों ही देशों में आर्थिक नियोजन के महत्व का विस्तार से अध्ययन
करेंगे-
1. स्वतन्त्र अर्थव्यवस्था के दोषों से मुक्ति-स्वतन्त्र
अर्थव्यवस्था में अनेक दोष थे, जैसे-आय के वितरण की असमानताएँ, कुछ व्यक्तियों के हाथों
में पूँजी का संकेन्द्रण, वर्ग-संघर्ष आदि। इन दोनों को नियोजन के द्वारा दूर किया
जा सकता है।
डार्विन
के अनुसार, "केवल नियोजन ही पूँजीवाद के दोषों को दूर करने का एकमात्र साधन तथा
आशा है।"
2.सामाजिक लागतों का निराकरण-अनियोजित अर्थव्यवस्था या स्वतन्त्र
उपक्रम में औद्योगिक बीमारिंचों, औद्योगिक दुर्घटनाओं, चक्रीय बेरोजगारी, अत्यधिक भीड़-भाड़,
अस्वस्थ दशाओं के रूप में व्यक्तियों को सामाजिक लागतों' का सामना करना पड़ता है। नियोजित
अर्थव्यवस्था में इन सामाजिक लागतों' का निराकरण किया जा सकता है या उनमें बहुत कमी
की जा सकती है।
3.आर्थिक स्थायित्व का महत्वपूर्ण उपकरण-आर्थिक
नियोजन के अन्तर्गत राजकीय हस्तक्षेप आर्थिक क्रियाओं को इस प्रकार नियन्त्रित एवं
संचालित करता रहता है कि माँग और पूर्ति में आवश्यकसन्तुलन बनाये रखना सम्भव हो जाता
है। नियोजन प्राधिकरण द्वारा उत्पादन का समन्वय किया जाता है जिससे अर्थव्यवस्था में
व्यापार चक्रों के कुप्रभावों पर रोक लगती है।
4. प्रतिस्पर्धात्मक अपव्ययों की समाप्ति-एक
नियोजित अर्थव्यवस्था में प्रचार एवं विज्ञापन सम्बन्धी खर्चा में कमी हो जाती है।
वस्तुओं के डिजाइनों, रंगों तथा आकारों में बहुलता के कारण होने वाले अपव्यय पर भी
रोक लग जाती है। अनावश्यक प्रतिस्पर्धा के समाप्त हो जाने से उत्पादन लागत कम हो जाती
है जिससे उपभोक्ताओं को अपेक्षाकृत सभी वस्तुएँ उपलब्ध हो जाती हैं।
5. साधनों का अधिकतम प्रयोग-(i) नियोजित अर्थव्यवस्था में
केन्द्रीय सत्ता देश में उपलब्ध साधनों का संरक्षण करती है और पूर्व-निर्धारित प्राथमिकताओं
के आधार पर उनका अनुकूलतम प्रयोग किया जाता है।
(ii)
नियोजित अर्थव्यवस्था में केन्द्रीय सत्ता द्वारा साधनों में उचित सम्बन्ध स्थापित
किया जाता है, फलतः कर्मचारियों एवं यन्त्रों का द्विगुणन (Duplication) नहीं होने
पाता।
(iii)
नियोजन प्रतियोगिता को कम करके अपव्यय को रोकता है।
6. कल्याण उद्देश्य-नियोजित अर्थव्यवस्था में केन्द्रीय
सत्ता कल्याण के कार्य करती है, फलत:-(i) श्रमिकों का शोषण नहीं होता, क्योंकि उन्हें
श्रम का पूरा पारितोषण मिलता है, (ii) उपभोक्ताओं का शोषण नहीं होता क्योंकि वस्तुएँ
उचति कीमत पर उपलब्ध होती हैं। इसी प्रकार नियोजित अर्थव्यवस्था में सामाजिक परिजोविता
(दूसरे के श्रम पर जीवित रहना) को भी समाप्त करने का प्रयत्न किया जाता है।
7. ऊँची पूँजी-निर्माण की दरें-आर्थिक नियोजन पूँजी-निर्माण
की दर को भी ऊँचा करने में सहायक होता है। नियोजित अर्थव्यवस्था में करों के माध्यम
से सरकार निजी लाभों को सार्वजनिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयुक्त करती है। इसी
प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र की आय का प्रयोग भी नियोजन के उद्देश्यों को पूर्ति के लिए
किया जाता है। इन सभी उपायों में पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि होती है।
8. मानव शक्ति का समुचित उपयोग- आर्थिक नियोजन द्वारा
देश की मानव शक्ति का भी समुचित उपयोग सम्भव होता है। एक ओर तो जनसंख्या वृद्धि पर
नियन्त्रण लगाने के लिए योजना बनाई जा सकती है, दूसरी ओर शिक्षा व प्रशिक्षण के आधार
पर मानवशक्ति का गुणात्मक विकास करके व्यक्तियों को उनकी योग्यतानुसार रोजगार दिलाया
जा सकता है। इस दृष्टि से आर्थिक नियोजन का दीर्घकालीन विकास में अत्यधिक महत्व है।
9. साधनों का समुचित वितरण-नियोजित अर्थव्यवस्था में उत्पत्ति
के विभिन्न साधनों का उपयोग अधिकतम सामाजिक लाभ के सिद्धान्त के अनुसार किया जाता है।
केन्द्रीय नियोजन सत्ता द्वारा आवश्यक वस्तुओं का मूल्यांकन करके उत्पत्ति के साधनों
का वितरण, सामाजिक माँग को ध्यान में रखकर प्राथमिकताओं के आधार पर किया जाता है। इस
प्रकार नियोजित अर्थव्यवस्था में साधनों का अधिक अच्छा वितरण होता है।
10. अन्य दृष्टिकोण से महत्व-उपर्युक्त बातों के अतिरिक्त
अन्य दृष्टियों से भी आर्थिक नियोजन महत्वपूर्ण है। इनमें से निम्नलिखित विशेष उल्लेखनीय
हैं-
(i)
जीवन-स्तर-नियोजन से देश के निवासियों के जीवन स्तर में सुधार की प्रक्रिया आरम्भ होती
है।
(ii)
नयी तकनीक-नियोजित अर्थव्यवस्था में नये औद्योगिक एवं वैज्ञानिक परिवर्तनों के साथ
सामंजस्य अपेक्षाकृत सुगमतापूर्वक व शीघ्र होता है।
(iii)
आत्म-निर्भरता-देश को आत्म-निर्भर बनाने में भी नियोजन सहायक होता है।
(iv)
प्राकृतिक संकट-खाद्य पदार्थों की कमी, बाढ़ अकाल आदि से सम्बन्धित समस्याओं का निराकरण
भी नियोजन के आधार पर आसानी से किया जा सकता है।
(v)
क्षेत्रीय सन्तुलन-देश के विभिन्न क्षेत्रों में सन्तुलित विकास के लिए भी आर्थिक नियोजनएक
प्रभावी उपकरण है।
(vi)
पुनर्निर्माण-आर्थिक पुननिर्माण के लिए भी आर्थिक नियोजन विशेष रूप से उपयोगी माना
जाता है।
निष्कर्ष-वस्तुतः आधुनिक युग में नियोजन के महत्व को स्वीकार
किया जा सकता है। अब कोई भी देश अहस्तक्षेप की नीति में विश्वास नहीं करता। लुइस
(Lewis) के कथनानुसार, "अब अहस्तक्षेप की नीति में विश्वास करने वाला कोई नहीं
है। यदि है तो वह पागलों के समान है।" इसी प्रकार मोरिसन (Morrison) के अनुसार,
"व्यक्तिगत पूँजीवादी प्रणाली तथा अनियन्त्रित स्पर्धा अब पुरानी हो चुकी है।
प्रत्येक व्यक्ति को नयी विचारधारा के अनुरूप विचारधारा तथा आदेशों को परिवर्तित करना
चाहिए।" आधुनिक युग में नियोजन की अपरिहार्यता स्वकार करते हुए लुइस (Lewis) ने
लिखा है कि “नियोजन पर विचार-विनिमय में मुख्य बात यह नहीं है कि नियोजन होना चाहिए
या नहीं, बल्कि यह है कि इसका कौन-सा रूप होना चाहिए।'