अर्थ (Meaning)- साधारणतया देशान्तर का
तात्पर्य आवागमन है। मनुष्य एक स्थान से दूसरे स्थान को आता जाता रहता है, जिसके
फलस्वरूप उसके निवास स्थान में परिवर्तन होते रहते हैं। मनुष्य के निवास स्थान के
परिवर्तन की घटना को देशान्तरण कहते हैं। निवास स्थान में होने वाले परिवर्तन को स्थलीय
गतिशीलता (Spatial Mobility) भी कहते हैं।
देशान्तरण को कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित
1.
डेविड एम. हीर (David M. Heer) 'देशान्तरण का अर्थ है अपने स्वाभाविक निवास को परिवर्तित करना।"
2.
संयुक्त राष्ट्र संघ (U. N. 0.)-''देशान्तर निवास स्थान को परिवर्तित करते हुए एक भौगोलिक इकाई से दूसरी भौगोलिक इकाई में विचरण का एक प्रकार है।''
संक्षेप
में, देशान्तरण में निम्नलिखित तत्वों का आभास होता है-
(i)
इसमें निवास में परिवर्तन होना आवश्यक है।
(ii)
यह परिवर्तन स्थायी होता है।
(iii)
इसके अन्तर्गत किसी भौगोलिक इकाई को पार करना आवश्यक है।
देशान्तरण के प्रकार (Kinds of Migration)
मोटे
तौर पर देशान्तरण को दो भागों में बाँटा जा सकता है I.आन्तरिक देशान्तरण, II.
अन्तर्राष्ट्रीय देशान्तरण।
I. आन्तरिक देशान्तरण (Internal
Migration)
आन्तरिक
अथवा किसी राष्ट्र विशेष के अन्दर होने वाली गतिशीलता को आन्तरिक देशान्तरण कहते
हैं। यदि मध्य प्रदेश की जनसंख्या का कुछ भाग महाराष्ट्र, गुजरात एवं पश्चिम बंगाल
प्रदेशों में जाकर रहने लगे, तो यह आन्तरिक देशान्तरण कहा जायेगा। आन्तरिक प्रवसन
के विभिन्न प्रारूपों की व्याख्या भी आवश्यक है। मोटे तौर पर आन्तरिक देशान्तरण का
निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत अध्ययन कर सकते हैं-
1. अन्तातीय देशान्तरण (Inter-Provincial Migration)- इस
प्रकार के देशान्तरण से आशय किसो राष्ट्र की सीमा के अन्तर्गत एक
प्रान्त से दूसरे प्रान्त को होने वाले देशान्तरण से है। इस प्रकार के देशान्तरण
का निर्धारण प्रान्तीय सीमाओं के अन्तर्गत होता है।
2. वैवाहिक देशान्तरण (Marital Migration)- इस
प्रकार के देशान्तरण से तात्पर्य वर अथवा वधू के उस देशान्तरण से है, जो विवाह के कारण
घटित होता है। इस प्रकार का देशान्तरण गाँव से शहर, शहर से शहर, शहर से गाँव अथवा गाँव
से गाँव हो सकता है। यद्यपि यह देशान्तरण अन्तर्राष्ट्रीय भी हो सकता है, परन्तु इनकी
संख्या अति नगण्य होती है।
3. गाँव-शहर देशान्तरण (Rural-Urban Migration)- गाँव-शहर
देशान्तरण चार प्रकार के हो सकते हैं-[i) गाँवों से शहरों की ओर, (ii) गाँवों से गाँवों
की ओर, (iii) शहरों से गाँवों की ओर, और (iv) शहरों से शहरों को ओर देशान्तरण।
4. सम्बद्धताजन्य देशान्तरण (Assication Migration)- इस
प्रकार के देशान्तरण से आशय विदेश में किसी अर्जनशील देशान्तरणकारी के सात आश्रितों
के देशान्तरण से है। कमाने वाले सदस्यों का स्थानान्तरण प्राय : एकाकी देशान्तरण के
रूप में होता है। वे शहरों में रहकर आय कमाते हैं और गाँव में रहने वाले आश्रितों को
धनराशि भेजते रहते हैं। लेकिन एकाकी परिवारों की वृद्धि के साथ सम्बद्धताजन्य देशान्तरण
की प्रवृत्ति होती जा रही है।
II. अन्तर्राष्ट्रीय देशान्तरण
(International Migration)
इसका
तात्पर्य विभिन्न राष्ट्रों के बीच होने वाले गमनागमन से है, जैसे- भारत में अमेरिका,
इंग्लैण्ड, कनाडा, जापान आदि राष्ट्रों से लोग आते हैं और कुछ भारतवासी भी इन राष्ट्रों
में जाते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय देशान्तरण प्राय : दो प्रकार का होता है। किसी देश में
बाहर से आने वालों को आव्रजक (Immigrations) एवं बाहर जाने वाले को प्रव्रजक
(Emigrants) तथा इस प्रकार के देशान्तरण को क्रमश: आव्रजन (Immigrations) एवं बाहर
जाने वाले प्रव्रजक (Emigration) कहा जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय देशान्तरण प्रव्रजनकारियों
एवं देशान्तरण स्थान के मूल निवासियों के परस्पर सम्बन्धों में समायोजन की अनेक समस्याओं
से गर्भित है।
भारत में ग्रामीण-शहरी प्रवास (Rural-Urban Migration in India)
जब
गाँवों में रहने वाले लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं तो उस स्थिति को ग्रामीण शहरी
प्रवास या प्रव्रजन (Rural-Urban Migration) कहा जाता है। रोजगार जीन एवं सम्पत्ति
की सुरक्षा, बेहतर नागरिक सुविधाओं की उपलब्धता जैसे कारणों से लोग क्षेत्रों से आकर
शहरों में रहने लगते हैं। इस प्रवास का स्वरूप स्थायी तथा अस्थाई दोनों ही प्रकार का
हो सकता है।
ग्रामीण-शहरी प्रवास के प्रकार (Kinds of Rural-Urban Migration)
भारत
में ग्रामीण या शहरी प्रवास को निम्नलिखित चार भागों में बाँटा जा सकता है-
(i)
गाँव से गाँव को प्रवाह | Rural to Rural)
(ii)
गाँव से शहर को प्रवाह (Rural to Urban)
(iii)
शहर से गाँव की ओर प्रवाह (Urban to Rural)
(iv)
शहर से शहर की ओर प्रवाह (Urban to Urhan)
जनसंख्या
का गाँव से गाँव का प्रवाह सर्वाधिक है। सन् 1961 में गाँव में गाँव का प्रवास
73.7 प्रतिशत था, जो 1971 में घटकर 71.3 प्रतिशत हो गया। शहर से गाँव की ओर प्रवास
सन् 1961 में 3.6 प्रतिशत था, वह 1971 में बढ़कर 4.9 प्रतिशत हो गया।
अब
हम गाँवों से शहरों तथा शहरों की ओर प्रवास या शहरों का बाह्य प्रवसन
(Outmigration of Towns) का विशेष अध्ययन करेंगे। जकारिया ने 1941-51 में ग्रामीण-शहरी
प्रवसन के अध्ययन में बताया है कि इसकी मात्रा 82 लाख थी। यह वर्ष 1941 की शहरी जनसंख्या
का 18 प्रतिशत भाग थी। इसी प्रकार 1951-61 के दशक में शुद्ध ग्रामीण-शहरी प्रवसन
52 लाख था, जो 1951 की शहरी जनसंख्या का 8.4 प्रतिशत भाग था। भारत में 1961 तथा
1971 में प्रवसन के विभिन्न स्रोतों से कुल प्रवसन की प्रतिशत मात्रा को सारणी 1 में
प्रदर्शित किया गया है।
सारिणी
1 के अंकों से स्पष्ट है कि 1961 में कुल प्रवसनों में ग्रामीण से शहरी तथा शहरी से
शहरी क्षेत्र में प्रवस्न का योगदान 22.6 प्रतिशत था। यह प्रतिशत योगदान 1971 में बढ़कर
23.8 प्रतिशत हो गया। निरपेक्ष रूप में 1961 में ग्रामीण से शहरी तथा शहरी से शहरी
क्षेत्रों की ओर जनसंख्या का कुल प्रवसन 300 लाख था, जो कि 1971 में बढ़कर 390 लाख
हो गया। दूसरे शब्दों में सम्पूर्ण दशक (1961-71) में उपर्युक्त दोनों स्रोतों में
जनसंख्या के प्रवसन में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
गत
दो दशकों में शहरों की बाह्य प्रवसन की प्रवृत्ति में बहुत वृद्धि हुई है। इस अवधि
में 5,000 तक की जनसंख्या वाले करबों या शहरों में गतिहीनता की स्थिति दृष्टिगत हुई।
बड़े शहरों, जिनकी जनसंख्या 50,000 से अधिक है, अपने आस पास के 5 किलोमीटर की दूरी
में स्थित छोटे शहरों से जनसंख्या को खींचने में समर्थ हुए हैं। इसको छाता प्रभाव'
(Umbrella Effect) कहते हैं, जिसके कारण बहुत से छोटे शहर गतिहीन हो गये हैं।
सारिणी
1 के अंकों से यह भी स्पष्ट पता चलता है कि स्त्रियों में पुरुषों की अपेक्षा ग्रामों
से ग्रामों की ओर प्रवास अधिक है। जिसका एक कारण यह हो सकता है कि गाँव की लड़कियों
का विवाह प्राय: गाँव में ही हो जाता है
सारिणी 1 विभिन्न प्रवासों की सापेक्षिक स्थिति (प्रतिशत में)
1961 |
1971 |
|||||
प्रवास प्रवाह |
कुल प्रवास में प्रवास
प्रवाह कुल प्रवास में प्रवास प्रवाह का प्रतिशत वितरण (1961) |
कुल प्रवास में प्रवास
प्रवाह का प्रतिशत वितरण (1971) |
||||
|
कुल |
पुरुष |
स्त्री |
कुल |
पुरुष |
स्त्री |
गाँव से गाँव को प्रवाह |
73.7 |
56.7 |
81.3 |
71.3 |
53.5 |
78.8 |
शहर से गाँव की ओर |
3.7 |
4.6 |
3.2 |
4.9 |
6.1 |
4.4 |
गाँव से शहर की ओर |
14.5 |
25.7 |
9.7 |
15.0 |
26.1 |
10.3 |
शहर से शहर की ओर |
8.1 |
13.0 |
5.8 |
8.8 |
14.3 |
6.5 |
योग |
100 |
100 |
100 |
100 |
100 |
100 |
ग्रामों
से शहरों की ओर प्रवास में पुरुषों का अनुपात अपेक्षकृत अधिक है यदि स्त्री-पुरुषों
की सापेक्षित स्थिति का अध्ययन किया जाये तो यह स्पष्ट होगा कि गाँवों से गाँवों के
प्रवाह में स्त्रियों का बाहुल्य है। शहरों से गाँवों की ओर स्त्रियों की ही अधिकता
है। इसके विपरीत गाँवों से शहरों की ओर जाने वाले पुरुषों की अधिकता है, किन्तु शहरों
की ओर प्रवास प्रायः दोनों का बराबर है।
सारिणी 2 -भारत में पुरुष एवं स्त्री का प्रवास प्रवाह में प्रतिशत भाग (1961-71)
वितरण (प्रतिशत में) |
||||||
प्रवास प्रवाह |
1961 |
1971 |
||||
|
पुरुष |
स्त्री |
कुल |
पुरुष |
स्त्री |
कुल |
गाँव से गाँव |
23.73 |
76.27 |
100.00 |
22.42 |
77.5 |
100.00 |
शहर से गाँव |
39.15 |
60.85 |
100.00 |
37.13 |
62.87 |
100.00 |
गाँव से शहर |
54.03 |
45.97 |
100.00 |
52.07 |
47.93 |
100.00 |
शहर से शहर |
49.99 |
50.01 |
100.00 |
48.59 |
51.41 |
100.00 |
भारत
में जहाँ एक ओर ग्रामों से नगरों की ओर प्रवास की मात्रा अधिक है, वहीं दूसरी और ऐसे
तत्व भी विद्यमान हैं, जो इस प्रवास को हतोत्साहित करते हैं। प्रथम नगरों में पहले
से ही विद्यमान श्रमिक वर्ग में पूर्ण और अपूर्ण बेरोजगारी की बहुतायत है। यह गाँव
से नगरों की ओर प्रवास में बाधा का कार्य करता है। द्वितीय नगरों में सामाजिक सुरक्षा
की कमी है। बीमारी, बेरोजगारी तथा असमर्थता की स्थिति में कहीं से सहायता नहीं मिल
सकती।
ग्रामीण-शहरी प्रवास के कारण (Causes of Rural-Urban Migration)
ग्रामीण
शहरी प्रवास प्रवाह विश्व के सभी देशों में है। ग्रामीण शहर प्रवास को मोटे तौर पर
दो भागों में बाँटा जाता है। वे समस्त घटक, जो ग्रामीण अंचलों से लोगों को अपना घर
छोड़ने के लिए विवश कर रहे हैं, उन्हें प्रतिकूल या प्रत्याकर्षण तथ्य (Push
Factors) कहा जाता है और जिन घटकों के कारण व्यक्ति शहरों की ओर जाने के लिए आकर्षित
होता है, उसे अनुकूल या आकर्षण तथ्य (Pull Factors) कहते हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था
के सम्बन्ध में उपर्युक्त घटकों को निम्नलिखित रूपों में पहचाना जा सकता है-
(1)
संयुक्त परिवार प्रणाली का विघटन।
(2)
बढ़ती हुई जनसंख्या एवं घटती हुई जोत के कारण भूमिहीन श्रमिकों की संख्या में वृद्धि।
(3)
कृषि जगत् का बहुत धीमा विकास, जिसके कारण बढ़ती हुई जनसंख्या का भरण-पोषण गाँवों में
सम्भव नहीं हैं।
(4)
ग्रामीण एवं कुटीर उद्योगों का पतन।
(5)
कृषि के मशीनीकरण से श्रम आधिक्य की स्थिति पैदा हो गयो है।
(6)
भारतीय शिक्षा-पद्धति, जिसने श्रम की गरिमा घटाई है एवं दफ्तर में काम करने की प्रवृत्ति
को बढ़ाया है।
(7)
गाँवों में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं नागरिक प्रशासन सुविधाओं का
(8)
शहरों में अनेक प्रकार के आकर्षण हैं- वैयक्तिक जीवन को स्वतन्त्रता आमोद-प्रमोद के
साधनों की उपलब्धता रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के अधिक अवसर आदि।
अवधि के अनुसार प्रवास (Migration According to Duration)
प्रवास
की अवधि के अनुसार प्रवासियों का वर्गीकरण करने से पता चलता है कि हमारे देश में अधिकांशत:
स्थाई निवास के लिए प्रवास होता है। स्थायी निवास के लिए प्रवास का प्रमुख कारण ही
है। यही कारण है कि सन् 1971 में 20 वर्ष से अधिक आयु के लिए प्रवासित होने वाले पुरुषों
का प्रतिशत 21 था, जबकि स्त्रियों का प्रतिशत 79 था। सारिणी 3 में सन् 1971 के आन्तरिक
प्रवासित व्यक्तियों के प्रवास की अवधि का ब्यौरा दिया गया है।
सारिणी 3 : प्रवास की अवधि
|
प्रत्येक श्रेणी में प्रवासितों का |
लिंग के अनुसार प्रतिशत विवरण |
|
निवास की अवधि |
प्रतिशत |
पुरुष |
स्त्री |
1 वर्ष से कम |
4.36 |
51.03 |
48.97 |
1 वर्ष से 4 वर्ष |
18.33 |
41.36 |
58.64 |
2 वर्ष से 9 वर्ष |
13.48 |
33.01 |
66.99 |
10 वर्ष से 19 वर्ष |
21.36 |
25.99 |
74.01 |
20 वर्ष |
27.26 |
20.59 |
79.41 |
20 वर्ष से अधिक |
14.85 |
36.65 |
63.35 |
कारणों के अनुसार प्रवास (Migration According to Reasons)
भारत में आर्थिक कारणों से होने वाले प्रवास की मात्रा सबसे अधिक है इस प्रवास की दर छोटे नगरों की अपेक्षा बड़े नगरों में अधिक होती है। आर्थिक कारणों से प्रवास की दर स्त्रियों में सबसे कम होती है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के अनुसार भारत में वैवाहिक और आर्थिक सम्बन्धी प्रवास प्रतिशत अग्न सारिणी के अनुसार है-
देशान्तरण के प्रभाव (Consequences of Migration)
यद्यपि
देशान्तरण के प्रभावों का अध्ययन करना बहुत कठिन है, परन्तु मोटे तौर पर देशान्तरण
के प्रभावों का हम निम्न दो शीर्षकों के अन्तर्गत अध्ययन कर सकते हैं-
(1)
देशान्तरण के अच्छे या सकारात्मक प्रभाव (Good or Positive Effects of Migration)
(2)
देशान्तरण के बुरे या नकारात्मक प्रभाव (Bad or Negative Effects of Migration)
1. देशान्तरण के अच्छे या सकारात्मक प्रभाव (Good or Positive
ffects of Migration)
देशान्तरण के अच्छे प्रभाव निम्नलिखित हैं-
(i) भूमि पर जनसंख्या का भार घटना-ग्रामीण क्षेत्रों से
जब व्यक्ति प्रवासी होकर शहरी क्षेत्र में जाता है, तो ग्रामीण क्षेत्र में भूमि पर
जनसंख्या का भार घटता है और भूमि का अपखण्डन व उपविभाजन कम हो जाता है। गाँवों से शहरों
की ओर प्रवास भूमि के दबाव को घटाता है और बचत की शक्ति बढ़ती है। जैसा कि प्रो. नर्क्स
का मत है कि छिपी हुई बेरोजगारी उस व्यवसाय की बचत की सम्भावित शक्ति है। अत: यदि उन्हें
शहरों में व्यवसाय मिल जाता है, तो ग्रामीण बचतें बढ़ जाती हैं।
(ii) माँग और पूर्ति में सामंजस्य-देशान्तरण श्रमिकों
की माँग और पूर्ति में सामंजस्य स्थापित करके राष्ट्रीय आय की वृद्धि में सहायक होता
है। जिन स्थानों में रोजगार के अवसर कम होते हैं, परन्तु श्रमिकों की संख्या अधिक होती
है, वहाँ से श्रमिक देशान्तरण के कारण अधिक रोजगार के अवसर वाले क्षेत्र में ले जाते
हैं, फलतः सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का सन्तुलित विकास होता है।
(iii) भावात्मक एकता-एक देश के अन्तर्गत जब व्यक्ति
एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता है तो वह दूसरे की भाषा संस्कृति से परिचित होता है,
वहाँ की समस्या समझता है और उसमें एकता की भावना विकसित होती है। वस्तुत: देशान्तरण
से मनुष्य में मनुष्यत्व, भाई-चारे आदि की भावनाओं में वृद्धि होती है।
(iv) नगरीकरण के लाभ-नागरिकता तथा उसके द्वारा प्राप्त
समस्त लाभ देशान्तरण के ही द्वारा प्राप्त होता है। शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों
की अपेक्षा परिवहन एवं संचार, शिक्षा, मनोरंजन, चिकित्सा आदि की सुविधाएँ अधिक होती
हैं, किन्तु शहरी क्षेत्रों में देश-विदेश के व्यक्तियों की शैक्षणिक प्रतिभा, संस्कृति,
साहित्य, कला आदि के क्षेत्र में उपलब्धियों का पूरा-पूरा लाभ प्राप्त होता है। तकनीकी
शिक्षा, प्रशिक्षा तथा शोध आदि का लाभ शहर में ही प्राप्त होता है। इस प्रकार से शहरीकरण
के लाभ प्रवास द्वारा ही होते हैं।
(v) जनांकिकी दृष्टि से लाभ-देशान्तरण जनांकिकी दृष्टिकोण
से भी लाभकारी होता है। इससे जन्म एवं मृत्यु दर में कमी आती है तथा स्वास्थ्य सुविधाओं
आदि की सुचारु रूप से उपलब्धता के कारण जीवन स्तर ऊँचा होता है।
(vi) अन्य लाभ-(अ) प्रवास जहाँ सामाजिक एकता में वृद्धि
करता है वहीं उसे सांस्कृतिक विस्तार (Social Integration and cultural Diffusion)
भी होता है। (ब) इसी प्रकार के प्रवास से राजनीतिक जागरूकता आती है तथा प्रजातन्त्र
के सफल होने के अच्छे अवसर उत्पन्न होते हैं। इसी तरह राज्य को अधिक कर मिलते हैं।
2. देशान्तरण के बुरे या नकारात्मक प्रभाव (Bad or Negative
Effects of Migration)
देशान्तरण
के जहाँ अच्छे प्रभाव पड़ते हैं, वहीं दूसरी ओर दुष्प्रभाव भी देखने को मिलते हैं-
(i) मानसिक असन्तोष-प्रो. डेविड एवं हीर का मत
है कि यदि प्रवासी व्यक्ति बड़ी-बड़ी महत्वाकाक्षाएँ लेकर प्रवासित होते हैं और उनकी
वास्तविक उपलब्धि उनकी आशा के अनुरूप नहीं होती है, तो इससे मानसिक असन्तोष फैलता है
और मानसिक बीमारियाँ बढ़ती हैं।
(ii) अन्तर्व्यक्ति सम्बन्धों का ह्रास-देशान्तरण
सामाजिक अलगाव को जन्म देता है, जिससे व्यक्ति कभी-कभी भयंकर बुराइयों का शिकार हो
जाता है। इसका कारण यह है कि देशान्तरण अपने कुटुम्बीजनों, परिवारों एवं मित्रगणों
से परस्पर सम्बन्धों में कमी ला देती है। नये स्थान पर उसके लिए कोई अपना साथी नहीं
होता। कोई मनोरंजन का साधन उसे नहीं मिल पता, फलतः जुआ, शराब, वेश्यावृत्ति प्राय:
प्रवासित व्यक्तियों में अधिक पनपती है।
(iii) वर्ग भेद-देशान्तरण से समाज में वर्ग भेद को जग मिलता
है। प्रायः प्रवासियों व स्थानीय व्यक्तियों में सामाजिक सांस्कृतिक अलगाव बना रहता
है और समाज के अन्दर ही समाज (Community within a Community) बनने लगते हैं। इन समाजों
में परस्पर संघर्ष एवं तनाव क वातावरण पनपता है। जातीयता, प्रान्तीयता, भाषा विवाद
आदि की भी उत्पत्ति इसके कारण होती है।
(iv) नागरिकता की समस्या- प्रवास के कारण शहरी जनसंख्या
घनत्व में वृद्धि होती है, जिसके कारण आवास, स्वच्छता आदि की समस्या धीरे-धीरे शहरों
में भी उत्पन्न होने लगती है। जो पेन्सन के शब्दों में "These Shanty Houses,
Ghettoes Slums are the graves of over Migrants.' स्पष्ट रूप से अति प्रवास के कारण
उत्पन्न होता है।
(v) गम्भीर बेरोजगारी की समस्या-प्रायः शहरों की ओर
देशान्तरण का मुख्य उद्देश्य रोजगार प्राप्त करना होता है। शहरों के विकास के कारण
उद्योगों, यातायात एवं संचार निर्माण कार्यों का विकास आदि होता है। इन विकास कार्यक्रमों
के कारण यद्यपि शहरों में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं, परन्तु ये
अवसर
सीमित होते हैं। अधिक मात्रा में निरन्तर आने वाले ग्रामीण व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध
कराना सम्भव नहीं हो पाता, फलत: इन क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या गम्भीर हो जाती
है।
उपचार (Remedies)
देशान्तरण
व नगरीकरण की बुराइयों को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपचार किये जाने चाहिए-
1. कृषि की उन्नति-ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि
की उन्नति की जानी चाहिए, ताकि वह एक लाभदायक उद्योग बन सके।
2. उद्योग धन्धों का विकास-ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय
कच्चा माल एवं कुशलता के आधार पर कुटीर एवं लघु उद्योगों के विकास की बहुत सम्भावनाएं
हैं। इन उद्योगों के विकास से ग्रामीण बेरोजगारी की समस्या भी दूर होगी।
3. शिक्षा- ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा सुविधाओं का विस्तार
किया जाना चाहिए और तकनीकी शिक्षा की सुविधाएँ भी उपलब्ध करानी चाहिए।
4. चिकित्सा, पेय जल आदि की व्यवस्था-ग्रामीण
क्षेत्रों में चिकित्सा, पेय जल, सफाई, मनोरंजन, बिजली, आवास आदि की व्यवस्था की जानी
चाहिए।
5. यातायात के साधनों का विकास-ग्रामीण क्षेत्रों में
यातायात के साधनों का विकास किया जाना चाहिए और संचार व्यवस्था उपलब्ध होनी चाहिए।
6. विकास कार्य-गाँव में विकास कार्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिससे वहाँ का आर्थिक विकास तीव्र गति से हो सके।