केन्द्रीय सरकार के आय (आगम) के स्रोत (SOURCES OF REVENUE OF CENTRAL GOVERNMENT)

केन्द्रीय सरकार के आय (आगम) के स्रोत (SOURCES OF REVENUE OF CENTRAL GOVERNMENT)

 भारतीय बजट प्रक्रिया में केन्द्र सरकार की समस्त प्राप्तियों को दो भागों में बाँटा जाता है- (I) राजस्व प्राप्तियाँ तथा (IT) पूँजीगत प्राप्तियाँ।

(I) राजस्व प्राप्तियाँ (Revenue Receipts) केन्द्र सरकार की राजस्व प्राप्तियों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-(A) कर-आय तथा (B) गैर-कर आय।

(A) आय के कर-साधन (TAX SOURCES OF REVENUE)

भारत सरकार की कर संरचना में निम्न श्रेणी के कर पाये

I. आय पर कर-(1) आयकर, (2) पूँजी लाभ कर, (3) निगम कर।

II. सम्पत्ति तथा पूँजी सौदों पर कर-(1) सम्पदा कर, (2) लपहार कर, (3) सम्पत्ति या धन कर।

III. वस्तुओं पर कर-(1) केन्द्रीय उत्पादन शुल्क, (2) सीमा शुल्क, (3) सेवा कर ।

I.आय पर कर (TAXES ON INCOME)

1. आय कर (Income Tax) भारत में प्रत्यक्ष करों में आयकर का प्रमुख स्थान है। इस कर से सम्बन्धित प्रावधान आयकर अधिनियम, 1952 और आयकर नियम, 1961 में दिये गये हैं। इनमें समय-समय पर संशोधन होते रहते हैं। संविधान के अनुसार भारत में कृषि से हुई आय पर कर लगाने का अधिकार राज्यों को है तथा शेष आर्यों पर आयकर लगाने का अधिकार संघ को है। इन अधिकार क्षेत्रों को दृष्टिगत रखते हुए भी संसद ने जो आयकर अधिनियम स्वीकृत किया है, उसमें कृषि को कर-मुक्त रखा गया है परन्तु दस से अधिक राज्यों की विधान सभाओं ने उन राज्यों के भीतर उपार्जित कृषि आय पर कर लगाने हेतु अलग-अलग कृषि आयकर अधिनियम स्वीकृत किये हैं।

विशेषताएँ (Characteristics)-(i) एक निश्चित सीमा तक की आय, आयकर से मुक्त है।

(ii) कर की दरें प्रगतिशील हैं।

(iii) आयकर की दृष्टि से करदाताओं को तीन वर्गों-साधारण निवासी, असाधारण निवासी और अनिवासी में विभाजित किया जाता है।

(iv) आयकर व्यक्तियों, संयुक्त हिन्दू परिवारों, फर्मों और व्यक्तियों की अन्य परिषदों पर लगाया जाता है।

(v) केन्द्रीय सरकार द्वारा लगाये जाने वाले आयकर में कृषि आय पर कर नहीं लगाया जाता लेकिन कर की दर निकालने के लिए कृषि आयों को जोड़ अवश्य लिया जाता है।

(vi) आयकर की गणना चालू वित्तीय वर्ष के पूर्व गत वर्ष में करदाता के समाप्त होने वाले वर्ष को आय पर लगाया जाता है।

(vii) बचत की भावना को बनाये रखने के लिए प्रॉविडेण्ट फण्ड, बीमा, प्रीमियम इत्यादि के लिए दिये गये अंशदानों पर छूट दी जाती है।

(viii) आयकर की गणना करते समय विभिन्न आयों को क्रमबद्ध करने को दृष्टि से आय के 6 शीर्षक बताये गये हैं-(i) वेतन, (ii) प्रतिभूतियों पर ब्याज, (iii) मकान सम्पत्ति से आय, (iv) व्यापार और पेशे से लाभ, (v) पूँजी लाभ, (vi) अन्य साधनों से आय।

(ix) विभिन्न आधारों पर अनेक आयों को करमुक्त रखा गया है या उनमें छूट दी गयी है, जैसे- आकस्मिक आय, विदेश में मिले भत्ते तथा अनुल्लाभ, वैधानिक और प्रमाणित प्रोविडेण्ट फण्ड से मिला भुगतान, कुछ विशिष्ट प्रतिभूतियों की ब्याज, छात्रवृत्तियाँ, पुण्यार्थ अधवा धार्मिक ट्रस्ट की आय इत्यादि।

(x) आयकर के लिए आय की गणना करते समय कुछ व्ययों की छूट भी दी जाती है। इनमें असमर्थ आश्रित की देख-रेख एवं चिकित्सा पर व्यय, शिक्षा व्यच, पुण्याथं, संस्थाओं अथवा कुछ विशेष कोषों को दिये गये दान इत्यादि उल्लेखनीय हैं।

(xi) आयकर का निर्धारण तथा एकत्रण केन्द्रीय सरकार द्वारा किया जाता है लेकिन इसके बड़े भाग को राज्य सरकारों के मध्य विभाजित कर दिया जाता है।

आयकर से प्राप्तियाँ (Revenue from Income Tax)-नियोजन काल में आयकर से प्राप्त आगम को निम्नांकित सारणी द्वारा दर्शाया जा सकता है-

सारणी1 आयकर से प्राप्तिया

2. पूँजी-लाभ कर (Capital Gains Tax) भारत में यह कर सर्वप्रथम लगाया गया था, परन्तु विनियोग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने केश्रकारण 1950 में इसे हटा दिया गया था। प्रो. काल्डोर के सुझाव पर 1956 से इसे पुन: लगा दिया गया। 1962 तथा 1964 में इस कर में संशोधन किये गये। 1976-77 में इस कर मैं पुन: कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गये।

विशेषताएँ (Characteristics)-(i) मूल्यों में वृद्धि के कारण सम्पत्ति कर के क्रय विक्रय से जो लाभ प्राप्त होता है, उस लाभ पर जो कर लगाया जाता है, उसे पूँजी-लाभ कर सकते हैं।

(ii) पूँजी-लाभ कर कुल आय के लिए आयकर की दर के अनुसार ही लगता है, उसमें पूँजी लाभ का केवल एक तिहाई भाग शामिल होता है।

(iii) पूँजी-लाभ पर कोई 'सुपर-टैक्स' नहीं लगता है।

(iv) दीर्घकालीन पूँजीगत लाभ पर कर की दर जो घरेलू कम्पनियों पर 30 प्रतिशत थी, उसे 1999-2000 के बजट में घटकर 10 प्रतिशत कर दिया गया।

भारत में पूँजी लाभ कर बेलोच, असमान तथा आर्थिक दशाओं के प्रतिकूल है। यह विनियोग पर भी बुरा प्रभाव डालता है। अतः लाभों का जब विनियोग किया जाए तो उन पर पूँजी-लाभ कर नहीं लगाना चाहिए।

3. निगम कर (Corporation Tax) व्यापारिक कम्पनियों और निगमों की आय पर जो कर लगाया जाता है, उसे निगम कर (Corporation Tax) कहते हैं। यह कर उस कर से कतई भिन्न नहीं होता है जो कम्पनी के हिस्सेदार अपनी आयों पर देते हैं। निगम कर व्यक्तिगत आयकर के समान हैं और इसके सिद्धान्त आयकर जैसे हैं।

विशेषताएँ (Characteristics)-(i) आयकर की भाँति निगम कर में, कर मुक्ति को कोई सीमा नहीं है।

(ii) कम्पनियों द्वारा जो निगम कर दिया जाता है, वह कम्पनी की ओर से दिया माना जाता है, न कि अंशधारियों की ओर से दिया गया।

(iii) निगम कर की दरें मुख्य रूप से आनुपातिक हैं।

(iv) भारत में लगाये गये निम्न कर में विनियोगों को प्रोत्साहित करने तथा प्राथमिक क्षेत्रों में कम्पनियों की स्थापना को प्रेरित करने के लिए पर्याप्त प्रेरणाएँ दी गयी हैं।

(v) ऐसी कम्पनियाँ (विद्युत तथा आधारिक संरचना क्षेत्र के अतिरिक्त) जिनका पर्याप्त किताबी लाभ (Book Profit) है, परन्तु कोई कर नहीं देते, उन पर 1996-97 के बजट में न्यूनतम वैकल्पिक (MAT) की व्यवस्था की गयो।

निगम कर से आय (Income from Corporation Tax)—भारत में निगम कर से प्राप्ति की प्रवृत्ति को निम्न तालिका द्वारा दर्शाया जा सकता है-

सारणी 2 निगम कर से प्राप्त आय

II. सम्पत्ति तथा पूँजी सौदों पर कर (TAXES ON PROPERTY AND CAPITAL TRANSACTIONS)

1. सम्पदा कर (Estate Duty)—सम्पदा कर मृतक व्यक्ति द्वारा छोड़ो गयी कुल सम्पत्ति पर उसके उत्तराधिकारियों में बाँटे जाने से पूर्व लगाया जाता है। भारत में सम्पदा कर 15 अक्टूबर, 1953 को लागू किया गया था तथा इसे 16 मार्च, 1985 को समाप्त कर दिया गया।

2. उपहार कर (Gift Tax)—प्रत्यक्ष करारोपण की कमी को दूर करने के उद्देश्य से प्रो. कालडोर के सुझाव पर अप्रैल, 1958 से भारत में उपहार कर लागू किया गया जो उपहार देने वाले व्यक्तियों पर लगाया जाता है। 1 दिसम्बर, 1998 से उपहार कर समाप्त कर दिया गया है।

3. सम्पत्ति कर (Wealth Tax) वार्षिक सम्पत्ति या धन कर (Annual Property or Wealth Tax) उस कर को कहते हैं जो कि किसी भी व्यक्ति की सम्पत्ति, धन अथवा पूँजी के कुल मूल्य पर वार्षिक रूप से लगाया जाता है। यह एक आवर्ती कर (Recurent Tax) होता है, जबकि अनावर्ती पूँजी कर (Capital Levy) केवल एक बार ही लगाया जाता है।

इसे 1 अप्रैल, 1957 से लागू कर दिया गया। उस समय यह कर कम्पनी को सम्पत्ति पर भी लगाया गया था और कर निर्धारण वर्ष 1957-58 से 1959-60 तक लागू रहा परन्तु कर-निर्धारण वर्ष 1960-61 से इसे समाप्त कर दिया गया। चौबीस वर्षों के बाद इसे सन् 1983 के बजट में लागू कर दिया गया (कर-निर्धारण वर्ष 1984-85 से)।

विशेषताएँ (Characteristics) (1) भारत में सम्पत्ति कर सर्वप्रथम 1957 में लगाया गया।

(ii) यह कर निजी व्यक्तियों, अविभाजित परिवारों तथा निजी व्यावसायिक कम्पनियों की विशुद्ध सम्पत्ति (Net Wealth) पर प्रति वर्ष लगाया जाता है।

(iii) यह कर प्रगतिशील दरों पर लगाया जाता है।

(iv) इस कर के प्रशासन का कार्य आयकर विभाग को सौंपा गया है।

(v) सम्पत्ति का मूल्यांकन बाजार मूल्य के आधार पर किया जाता है। बाजार मूल्य निश्चित नियमों के आधार पर किया जाता है।

(vi) कुछ सम्पत्तियों को कर-मुक्त रखा गया है, जैसे-दान सम्बन्धी सम्पत्तियाँ, कृषि सम्पत्ति, बीमा पॉलिसी, व्यक्तिगत फर्नीचर एवं गहने आदि।

(vii) सन् 1993-94 में धन कर में एक उल्लेखनीय संशोधन किया गया था। तदनुसार विशिष्ट परिसम्पत्तियों को छोड़कर शेष सभी परिस्थितियों से धन कर हटा दिया गया। अंशों, बैंक में जमा राशियों, सावधि जमा राशियों, बॉण्डों और ऋण पत्रों, जैसे-परिसम्पत्तियों से धन हटा लिया गया। यह कदम चैलय्या समिति का सिफारिशों पर लिया गया था।

III. वस्तुओं पर कर (TAXES ON COMMODITIES)

1. केन्द्रीय उत्पादन शुल्क (Union Excise Duties)—एक देश में जिस वस्तु का उत्पादन होता है जिसके उत्पादन होने के बाद और उस वस्तु के उपभोक्ता तक पहुँचने से पूर्व उत्पादन की मात्रा पर जो कर लगाया जाता है, उसे उत्पादन कर कहते हैं।

भारत में इस प्रकार के कर लगाने का अधिकार प्रान्तों को भी है और केन्द्रीय सरकार को भी। प्रान्तीय सरकार केवल नशीले पदार्थों, जैसे-शराब, चरस, भाँग आदि के उत्पादन पर ही कर लगा सकती है। इसे प्राप्तीय उत्पादन कर (State Excise Duty) कहते हैं और अन्य उपभोग की वस्तुओं के उत्पादन पर केन्द्रीय सरकार कर लगाती है जिसे 'संघीय उत्पादन कर' के नाम से पुकारते हैं। केन्द्रीय सरकार उत्पादन कर तम्बाक, चीनी, टायर, दियासलाई, रूई और उससे उत्पादित वस्तुएँ, कोयला, चाय, कॉफी, वनस्पति, मोटर, स्प्रिट, साबुन, सुपारी, इस्पात पिण्ड (Steel Ingots), कागज तथा सिगरेट आदि पर लगा सकती है।

केन्द्रीय उत्पादन कर से प्राप्त आय को वित्तीय आयोग की सिफारिश के आधार पर केन्द्र व राज्य सरकारों के मध्य विभाजित किया जाता है। उत्पादन करों की दरों में समय-समय पर परिवर्तन होते रहते हैं तथा प्रत्येक वर्ष सरकार नवीन वस्तुओं पर उत्पादन लगा देती है। इसके साथ अनेक वस्तुओं पर उत्पादन कर की छूट भी प्रदान की जाती है

आम नागरिकों द्वारा उपयोग में लायी जाने वाली मदों जिन पर 4% उत्पादन शुल्क लगता है को पूरी तरह से शुल्क युक्त किया गया

गैर-यान्त्रिक क्षेत्र द्वारा बनाया जाने वाली माचिसों को उत्पाद शुल्क से पूरी तरह छूट रहेगी। टायरों, सॉफ्ट डिवस, एयर कन्डीशनरों तथा मोटर कारों पर 32% उत्पाद शुल्क को घटाकर 24% कर दिया है।

केन्द्रीय उत्पादन शुल्क से प्रायः (Income from Excise Duties) जैसा सारणी 3 में दर्शाया गया है

सारणी 3 केन्द्रीय उत्पादन शुल्क से प्राप्त आय

2. सीमा शुल्क (Custom Dhities) केन्द्रीय सरकार की आय का दूसरा साधन सीमा शुल्क है। सीमा शुल्क से अर्थ आयातों एवं निर्यातों पर लगाये जाने वाले शुल्कों से है जो आयातों पर लगाये जाते हैं, उन्हें आयात शुल्क तथा जो निर्यातों पर लगाये जाते हैं, उन्हें निर्यात शुल्क कहते हैं। शुल्क वस्तु की मूल्यानुसार (Advalorem Duty) या मात्रानुसार (Specific) होते हैं। इन शुल्कों को लगाने के दो उद्देश्य होते हैं-(i) सरकार की आय में वृद्धि करना, व (ii) विदेशी प्रतियोगिता से देशी उद्योगों को बचाना व संरक्षण देना।

सीमा शुल्क से आय (Income from Custom Duties)—केन्द्रीय शुल्क के प्राप्त आय को आगे सारणी में दर्शाया गया है-

सारणी 4-सीमा शुल्क से आय

3. सेवा कर (Service Tax)–1996-97 के बजट में टेलीफोन बिल, गैर-जीवन बीमा के प्रीमियम, स्टॉक ब्रोकर के प्रीमियम पर 5 प्रतिशत की दर से सेवा कर लगाया गया। 2001-2002 के बजट में इसमें शामिल सेवाओं का विस्तार किया गया है। वर्तमान में लगभग सैकड़ों सेवाओं को सेवा कर के दायरे में लाया जा चुका है। विज्ञापन, होटल, कोरियर आदि सेवाएँ भी इसमें शामिल हैं।

'सेवा कर (Service Tax)—इस कर का आरोपण एवं संग्रहण वर्तमान में केन्द्र सरकार द्वारा ही किया जा रहा है, किन्तु भविष्य में राज्य सरकारें भी इस कर का आरोपण कर सकेंगी। इसके लिए 95वाँ संविधान संशोधन विधेयक 2003 मई 2003 में संसद ने पारित कर दिया था सेवा कर से प्राप्तियों को सारणी-5 में दर्शाया गया है।

सारणी 5 सेवा कर की प्राप्तियाँ

(B) भारत सरकार की आय के गैर- कर साधन (NON-TAX ITEMS OF THE INCOME OF THE GOVERNMENT OF INDIA)

भारत सरकार की आय के गैर-कर साधन निम्नलिखित हैं-

1. ऋण सेवाएं अथवा ब्याज प्राप्तियाँ (Interest Receipts) केन्द्रीय सरकार का यह एक प्रभावी स्रोत है। केन्द्रीय सरकार ने राज्य सरकारों तथा अन्य संस्थाओं को बड़ी मात्रा में ऋण दे रखा है जिससे ब्याज के रूप में पर्याप्त आय प्राप्त होती है।

2. करेंसी तथा सिक्के (Curreney and Coins) केन्द्रीय सरकार को एक रुपये के नोट अपने तथा अन्य सांकेतिक सिक्के (Token Coins) टकसाल में ढालने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। सरकार को चलन में प्रमाणिक सिक्कों तथा पत्र मुद्रा के निर्गमन से लाभ होता है। इससे भी भारत सरकार को प्रतिवर्ष आय की प्राप्ति होती है।

3. सामाजिक सेवाएँ (Social Services) भारत सरकार शिक्षा, सार्वजनिक चिकित्सा और स्वास्थ्य सम्बन्धी कई प्रकार की सेवाएं प्रदान करती है। इन सेवाओं के बदले में सरकार को आय प्राप्त होती है।

4. आर्थिक सेवाएँ Economic Services)—भारत सरकार सड़क, भवन निर्माण आदि कई प्रकार के निर्माण कार्य, बहुउद्देश्य नदी घाटी योजना आदि के कार्य करती है।

5. प्रशासनिक सेवाएँ (Administrative Services) केन्द्र सरकार नागरिक प्रशासन, शान्ति एवं व्यवस्था आदि के रूप में जो सेवाएं प्रदान करती है, उससे भी उसे आय प्राप्त होती है। स्मरणीय है कि इस आय का कोई प्रभावी स्रोत नहीं है और न ही इन सेवाओं का उद्देश्य आर्थिक लाभ कमाना है।

6. डाक व तार (Postage and Telegraph) डाक व तार विभाग केन्द्रीय सरकार का एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक विभाग है। स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व तक यह विभाग पर्याप्त आय अर्जित करता रहा है, परन्तु उसके उपरान्त डाक की दरों में पर्याप्त वृद्धि होने के बावजूद इसकी आय घटती जा रही है। इसका मुख्य कारण विभाग के विस्तार पर होने वाले पूँजीगत तथा चालू व्ययों का अधिक होना है।

7. रेलवे (Railway) रेले भारत सरकार के कर भिन्न आय के स्रोतों में से एक है। यद्यपि रेलवे बजट सरकार के सामान्य बजट से अलग होता है फिर भी रेलवे अपने राजस्व का 1.5 प्रतिशत सामान्य बजट को प्रतिवर्ष देता है।

8. अन्य सार्वजनिक उपक्रम (Other Public Enterprises)–भारत सरकार द्वारा कुछ अन्य सार्वजनिक उपक्रमों की भी स्थापना की गयी है। वर्ष 1997-98 में केन्द्र सरकार के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की संख्या 236 थी। इन उपक्रमों से प्राप्त शुद्ध आय सामान्य बजट की रजस्व प्राप्तियों का अंग बनती है। यद्यपि अधिकांश सार्वजनिक उपक्रम हानि पर चल रहे हैं फिर भी कुछ सार्वजनिक उपक्रमक्षकेन्द्रीय राजस्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

गैर-कर साधनों की आय का बढ़ता हुआ महत्व (INCREASING IMPORTANCE OF NON-TAX REVENUE)

केन्द्र सरकार के गैर-कर साधनों से प्राप्त आय को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि देश की कुल राजस्व प्राप्ति में गैर कर सम्बन्धी स्रोतों का महत्वपूर्ण स्थान है। आज देश की कुल राजस्व प्राप्ति में लगभग 28 प्रतिशत अंशदान इन्हीं स्रोतों द्वारा किया जाता है। भारतीय पंचवर्षीय योजनाओं के सन्दर्भ में इन स्रोतों का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि योजनाओं को पूरा करने में बड़ी मात्रा में वित्तीय साधनों की आवश्यकता पड़ती है। संघ सरकार एवं राज्य सरकारों की आय में गैर-कर स्रोतों के महत्व का विवेचन करते हुए करारोपण जाँच आयोग ने लिखा है कि केन्द्र और राज्य दोनों सारों पर गैर-कर आय के स्रोत देश की सार्वजनिक वित्त-व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण तत्व का निर्माण करते हैं। प्रशासनिक एवं आय विविध प्राप्तियों को छोड़कर गैर-कर स्रोत के अन्तर्गत राजकीय उपक्रमों की बचत भीश्रसम्मिलित है जो सार्वजनिक आय का एक बढ़ता हुआ स्रोत है।

केन्द्र सरकार की राजस्व आय की प्रवृत्तियाँ (TRENDS OF REVENUE RECEIPTS OF CENTRAL GOVERNMENT)

केन्द्र सरकार की राजस्व प्राप्तियों की प्रवृत्तियों का अध्ययन हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कर सकते हैं-

1. राजस्व प्राप्तियों में वृद्धि GDP के प्रतिशत के रूप में-1950-51 में केन्द्र सरकार की कुल राजस्त्र प्राप्ति 406 करोड़ रुपए थी, पर जैसे जैसे राज्य के वित्तीय व्यवहार में वृद्धि हुई, सार्वजनिक व्ययों को पूरा करने के लिए सरकार के राजस्व में भी वृद्धि हुई। नीचे दी गई सारणी में केन्द्र सरकार की राजस्व प्राप्तियों की स्थिति प्रदर्शित है-

नीचे सारणी में दिए गए आँकड़ों से यह स्पष्ट पता चलता है कि जीडीपी (GDP: के प्रतिशत के रूप में 1950-51 में राजस्व प्राप्तियों का प्रतिशत 3.9% था 0 2017-18 में 9% हो गया। जैसा कि सारणी 6 के अंकों से स्पष्ट होता है

सारणी 6- जीडीपी के प्रतिशत के रूप में राजस्व खाते के घटक

2. विभिन्न करों से राजस्व प्राप्तियों का प्रतिशत-भारत सरकार को वर्ष 2016-17 में विभिन्न करों से प्राप्त होने वाली राजस्व को नीचे सारणी 7 में दर्शाया गया है।

सारणी 7 विभिन्न करों से राजस्व प्राप्तियाँ

3. कर आय एवं गैर-कर आय-राजस्व प्राप्तियों के दो प्रमुख स्रोत हैं-कर आय तथा गैर-कर आय, केन्द्रीय सरकार की राजस्व प्राप्तियों के विभिन्न स्रोतों में कर स्रोतों का महत्वपूर्ण स्थान है, केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों प्रकार के कर लगाये जाते हैं।

वित्त मन्त्री के अनुसार भारत में केन्द्र और राज्य सरकारों (विभिन्न राज्यों के स्थानीय निकायों के कर संग्रहण के एकसमान आँकड़ों की अनुपस्थिति में) द्वारा एकत्रित किए गए कर की राशि हाल ही के वर्षों में अधिकतर उन्नत देशों में 30 प्रतिशत से भी अधिक की तुलना में जीडीपी के 18 प्रतिशत से भी कम है। हालांकि, भारत की प्रदत्त आर्थिक स्थिति, जिसमें 30% जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे रहती है और लगभग 60% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रही है और यह जनसंख्या कृषि आय ( कर मेंmछूट प्राप्त) पर निर्भर है, को ध्यान में रखते हुए यहाँ पर वित्तीय संसाधनों को एकत्र करने की बाधाएँ स्पष्ट है।

4. कर संरचना में प्रत्यक्ष करों का बढ़ता हुआ महत्व-भारतीय कर प्रणाली में प्रत्यक्ष करों काmमहत्व बढ़ रहा है। उदाहरण के लिए, सकल कर राजस्व में प्रत्यक्ष करों का हिस्सा वर्ष 1990-91 के 19.1 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2000 में 40.0 प्रतिशत हो गया इसके विपरीत, अप्रत्यक्ष करों के हिस्से मेंmकाफी गिरावट आयो तथा यह वर्ष 1990-91 के 78.4 प्रतिशत से गिरकर वर्ष 2007-08 में 51.0 प्रतिशत हो गया।

5. आयकर की अधिकतम सीमा-कुछ अर्थशास्त्रियों जैसे एन. ए. पालकीवाला का यह विचार है कि भारतवर्ष में आयकर की दर संसार में सबसे अधिक थी। इसकी अधिकतम सीमा 69 प्रतिशत थी। 2006-07 के बजट में अधिकतम सीमा को कम करके 30 प्रतिशत कर दिया गया है, परन्तु देश मेंmकेवल 0.2 प्रतिशत लोगों को ही आयकर देना पड़ता है। आयकर की अधिकतम सीमा 0.1 प्रतिशतmलोगों पर ही लागू होती है।

6. राज्य सरकारों को दिये जाने वाले करों के भाग में वृद्धि-केन्द्रीय सरकार द्वारा एकत्रित कई करों में काफी भाग राज्य सरकारों को वित्त आयोगों की सिफारिशों के अनुसार देना पड़ता है। बारहवें वित्त आयोग के अनुसार उत्पादन कर का 30.5 प्रतिशत भाग राज्यों को दिया जाता है।

7. उत्पाद शुल्कों से प्राप्त राजस्व में वृद्धि संघीय राजस्व में उत्पाद शुल्कों के अंशदान में द्वितीय योजनाकाल से पर्याप्त वृद्धि हो गयी है। 1955-56 तक आयकर, तथा सीमा शुल्क के पश्चात संघीय राजस्व के अंशदान में उत्पाद शुल्क का तीसरा स्थान था। परन्तु आजकल स्थिति पर्याप्त भिन्न है। अब केन्द्रीय राजस्व में पहला स्थान उत्पाद शुल्क, द्वितीय स्थान निगम कर तथा तीसरा एवं चौथा स्थान आयकर व सीमा शुल्क का है।

केन्द्रीय सरकार की पूँजीगत प्रवृत्तियाँ (CAPITAL RECEIPTS OF THE CENTRAL GOVERNMENT)

रिजर्व बैंक द्वारा केन्द्रीय सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों को 14 भागों में वर्गीकृत किया गया है-

1. आन्तरिक बाजार ऋण, 2. स्पेशल बियर बॉण्ड, 3. बाह्य ऋण, 4. मुद्रा कोष ट्रस्ट फण्ड से ऋण, 5. लघु बचतें, 6. सार्वजनिक भविष्य निधि, 7. राज्य भविष्य निधि, 8. ऋण एवं अग्रिम की वसूली, 9. रेलवे रिजर्व फण्ड, 10. गैर-रेलवे सरकारी भविष्य निधि से विशेष जमा, 11. रिजर्व बैंक से अनिवार्य जमा के विरुद्ध विशेष ऋण, 12. एल.आई.सी. एवं जी.आई.सी आदि से प्राप्त जमा, 13. अन्य प्राप्तियाँ, 14. कुल पूँजीगत प्राप्तियाँ ।

केन्द्रीय सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों को नीचे सारणी में दर्शाया गया है।

नीचे सारणी में विभिन्न वर्षों में जीडीपी के प्रतिशत के रूप में राजस्व प्राप्तियाँ और पूँजीगत प्राप्तियों को दर्शाया गया है-

सारणी 8- जीडीपी के प्रतिशत के रूप में पूँजीगत प्राप्तियाँ

 

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