आर्थिक
नियोजन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए योजना में नीति अपनायी जाती है, उसे
योजना की व्यूह-रचना कहा जाता है। इसे विकास युक्ति (Development Strategy) या
विकास कूटनीति भी कहा जाता है। इस प्रकार व्यूह-रचना का आशय उन उपायों, नीतियों
एवं प्राथमिकताओं के क्रम से है जिन्हें योजना के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए
अपनाया जाता है।
संक्षेप
में, योजना व्यूह-रचना' में तीन बातों का समावेश होता है-(i) लक्ष्य निर्धारण,
(ii) प्राथमिकताओं का क्रम निर्धारण, (iii) लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उपायों का
चयन। व्यूह-रचना में अर्थव्यवस्था के प्रमुख प्रतिबन्धों (Crucial Constraints) को
ध्यान में रखते हुए स्थिरता के साथ विकास (Growth with Stability) का
मार्ग चुनना पड़ता है।
विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में व्यूह-रचना (Strategy in Different
Five Year Plans)—मोटे तौर पर हमारे नियोजन
की व्यूह-रचना अर्थव्यवस्था के सन्तुलित विकास पर आधारित रही है
किन्तु यह उल्लेखनीय है कि आर्थिक दशाओं के बदले परिवेश में विविध क्षेत्रों में
सन्तुलन बनाये रखने के लिए प्रत्येक योजना में कुछ क्षेत्रों को ऊँची प्राथमिकता
देकर असन्तुलित विकास की कूटनीति किया गया हो। मोटे तौर पर भारत के आर्थिक नियोजन
की व्यूह-रचना का अध्ययन हम दो शीर्षकों के अन्तर्गत कर सकते
हैं-
1.1991
तक विकास की व्यूह-रचना,
2.
1991 के बाद उदारवादी विकास की व्यूह रचना।
(1) 1991 तक विकास की व्यूह-रचना
(DEVELOPMENT STRATEGIES TILL 1991)
नियोजित
आर्थिक विकास के शुरू के चरणों में हमारी योजनाओं का मुख्य उद्देश्य आर्थिक विकास
था। इस दृष्टि से आर्थिक आयोजन में विकास की युक्ति के तीन पहलू थे-
1.
विकास के लिए पहले अर्थव्यवस्था को तैयार करना,
2.
औद्योगीकरण को प्राथमिकता देना और
3.
औद्योगीकरण क्षेत्र में पूँजीगत माल तैयार करने वाले उद्योगों पर जोर देना।
संक्षेप
में 1991 तक भारत की विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में भारत की व्यूह-रचना अग्र प्रकार
थी-
प्रथम पंचवर्षीय योजना (First Five Year Plan)_इस
योजना के प्रारम्भ होने के समय देश की अर्थव्यवस्था अस्त व्यस्त थी। द्वितीय विश्व
युद्ध तथा देश के विभाजन के कारण अर्थव्यवस्था को गहरा आघात लगा था। प्रथम पंचवर्षीय
योजना का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में उत्पन्न हुए इस असन्तुलन को दूर करना था।
प्रथम
पंचवर्षीय योजना में ₹ 1,960 करोड़ व्यय किये गये। इस योजना में कृषि को सर्वोच्च प्राथमिकता
प्रदान की गयो। योजना व्यय का 44 प्रतिशत भाग कृषि, सिंचाई व शक्ति पर व परिवहन एवं
संचार पर 27 प्रतिशत भाग व्यय किया गया।
मूल्यांकन (Evaluation)—यह योजना सन्तुलित विकास की
व्यूह रचना पर आधारित एक योजना थी। यद्यपि भौतिक लक्ष्यों को प्राप्ति की दृष्टि से
यह सफल रही परन्तु इस योजना में उद्योगों तथा खनिजों के विकास पर बिल्कुल ही ध्यान
नहीं दिया गया।
द्वितीय पंचवर्षीय योजना (Second Five Year Plan) — इस
योजना को व्यूह रचना
महालनोबिस
मॉडल पर आधारित थीं। इस योजना में कृषि के स्थान पर उद्योगों को, श्रम-प्रधान परियोजनाओं
के आधार पर पूँजी प्रधान परियोजनाओं को, सन्तुलित विकास के आधार पर असन्तुलित विकास
को, उपभोग के स्थान पर उत्पादन व रोजगार को मान्यता दी गयी।
द्वितीय
पंचवर्षीय योजना में सार्बजनिक क्षेत्र में ₹ 4,672 करोड़ व्यय हुए जिसका 27 प्रतिशत
परिवहन एवं संचार साधनों, 24.1 प्रतिशत उद्योग व खनिज तथा 18.9 प्रतिशत सिंचाई एवं
ऊर्जा पर व्यय किया गया।
मूल्यांकन (Evaluation)—यह योजना असन्तुलित विकास की
व्यूह रचना पर आधारित थी और भारी उद्योगों की स्थापना करने में सफल रहीं परन्तु निम्न
कृषि निष्पादिता व लघु उद्योगों की असफलता के कारण योजनाकाल में कीमतों में 30 प्रतिशत
की वृद्धि हुई जिसके कारण अर्थव्यवस्था स्फीतिक दबावों से त्रस्त हो गयी।
तृतीय पंचवर्षीय योजना (Third Five Year Plan)-इस
योजना का प्रमुख उद्देश्य आत्म-स्फूर्ति को अवस्था को प्राप्त करना था। इस योजना में
कृषि एवं सिंचाई के विकास को महत्व प्रदान करते हुए कहा गया कि विस्तारशील अर्थव्यवस्था
को खाद्य व कच्चे माल की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कृषि उत्पादन में वृद्धि लाने की
अत्यधिक आवश्यकता है।
तृतीय
पंचवर्षीय योजना में सार्वजनिक क्षेत्र के कुल परिव्यय र 8,577 करोड़ में से कृषि एवं
सिंचाई पर 20.4 प्रतिशत, परिवहन एवं संचार पर 24.7 प्रतिशत तथा संगठित उद्योग एवं खनिज
पर 20.1 प्रतिशत भाग व्यय किया गया।
मूल्यांकन (Evaluation)—इस योजना में कृषि के साथ साथ
शक्ति, परिवहन और उद्योग को भी महत्व देकर विकास की सन्तुलित रणनीति अपनायीं गयीं परन्तु
योजनाकाल में चीन व पाकिस्तान द्वार अकस्मात आक्रगण करने पर योजना का सगस्त ढाँचा अस्त
व्यस्त हो गया।
चतुर्थं पंचवर्षीय योजना (Fourth Five Year Plan)—इस
योजना में 'स्थिरता के साथ विकास' (Growth with Stability) का नारा दिया गया। यद्यपि
चौथी पंचवर्षीय योजना का आधारभूत ढाँचा महालनोबिस व्यूह रचना पर ही आधारित था परन्तु
उसमें कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन भी किये गये। योजना के लक्ष्यों में खण्डीय सन्तुलन
(Sectoral Balance) का महत्व स्वीकारा गया, पिछड़े क्षेत्रों के विकास पर बल दिया गया
तथा भारत के विदेशी व्यापार क्षेत्र को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया।
इस
योजना के वास्तविक परिव्यय ₹ 15,779 करोड़ में से कृषि तथा सिंचाई के लिए 23.3 प्रतिशत,
शक्ति के लिए 18.6 प्रतिशत, परिवहन एवं संचार के लिए 19.5 प्रतिशत भाग व्यय किया गया।
पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (Fifth Five Year Plan)—इस
योजना की व्यूह रचना अपने दोहरे उद्देश्यों-(i) गरीबी को दूर करना, (ii) आर्थिक निर्भरता
को प्राप्त करना पर आधारित थी। यद्यपि पाँचवीं योजना में गरीबी निवारण कार्यक्रमों
को प्राथमिकता दी गयी लेकिन गरीबी कम करने के लिए घरेलू उत्पाद में वृद्धि की दर से
ऊँचा उठाने पर जोर दिया गया। इस दृष्टि से-(i) चालू विकास परियोजनाओं को शीघ्र पूरा
करने, (ii) पूर्व स्थापित क्षमताओं का पूर्ण प्रयोग करने, (iii) मुख्य क्षेत्र
(Core-Sector) में आवश्यक न्यूनतम लक्ष्यों को प्राप्त करने और (iv) समाज के कमजोर
वर्गों के लिए विकास का न्यूनतम स्तर प्राप्त करने पर बल दिया गया।
पाँचवीं
पंचवर्षीय योजना का कुल परिव्यय ₹ 39,216 करोड़ का था जिसका सर्वाधिक 24.3 प्रतिशत
उद्योग एवं खनिज, 18.8 प्रतिशत शक्ति तथा 17.4 एवं 17.3 प्रतिशत भाग क्रमश: परिवहन
एवं सामाजिक सेवाओं में व्यय किया गया।
छठी पंचवर्षीय योजना (Sixth Five Year Plan)-इस
योजना की व्यूह रचना इस प्रकार की गयी थी जिससे कृषि और उद्योग दोनों क्षेत्रों की
संरचना सृदृढ़ हो, ताकि पूँजी निवेश, उत्पादन और निर्यात बढ़ाने के लिए उपयुक्त वातावरण
तैयार हो सके और इस उद्देश्य से तैयार किये गये विशेष कार्यक्रमों के द्वारा ग्रामीण
और असंगठित क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो जिससे लोगों की बुनियादी
जरूरतें पूरी हो सकें।
इस
योजना का वास्तविक परिव्यय ₹ 1,09,292 करोड़ का था जिसमें से सर्वाधिक 28.1 प्रतिशत
ऊर्जा, 14.6 प्रतिशत सामाजिक सेवाओं तथा 13 प्रतिशत परिवहन पर व्यय किया गया, जबकि
उद्योग व खनिज में 155 प्रतिशत भाग व्यय किया गया।
सातवीं पंचवर्षीय योजना (Seventh Five Year Plan) इस
योजना में प्राथमिकता- (1) गरीबी कम करने, (ii) उत्पादकता बढ़ाने व (ii) रोजगार अवसर
बढ़ाने को दी गयी। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए जो रीति-नीति अपनायीं गयीं, उसमें
गरीबी की समस्या पर सीधा प्रहार किया गया तथा बेकारी व क्षेत्रीय असमानताओं को दूर
करने का प्रयास किया गया। सभी क्षेत्रों में कुशलता से योजनाओं को लागू किया गया, विशेष
रूप से सिंचाई, शक्ति, परिवहन व उद्योग क्षेत्र में वृद्धि करना। इस योजना में कुल
₹ 2,18,730 करोड़ सार्वजनिक क्षेत्र में व्यय किये गये थे और प्राथमिकता क्रम में ऊर्जा,
कृषि और सिंचाई, परिवहन व संचार तथा उद्योग व खनिज पर क्रमश: 28.2 प्रतिशत, 22.0 प्रतिशत,
17.4 प्रतिशत व 11.9 प्रतिशत व्यय किया गया।
1991 तक के विकास की व्यूह-रचना की विशेषताएँ
(या तत्व) (Features of Strategy of Development Till 1991)
भारत
के आर्थिक नियोजन के प्रारम्भ में विशेषकर 1991 तक मुख्य जोर आर्थिक संवृद्धि पर था,
यद्यपि आर्थिक नियोजन के अन्य उद्देश्य सामाजिक न्याय, गरीबी उन्मूलन व पूर्ण रोजगार
की प्राप्ति आदि भी था, परन्तु ये उद्देश्य गौण थे। संक्षेप में, 1991 तक भारत में
विकास की व्यूह रचना के प्रमुख तत्व निम्नलिखित थे-
1. विकास के लिए सृदृढ़ आधार की तैयारी (Preparation of Strict
Base for Development) प्रथम पंचवर्षीय योजना में नियोजकों के समक्ष
युद्धोत्तर पुनर्निर्माण की समस्या प्रमुख रूप से थी। परन्तु साथ ही देश में भयंकर
बेरोजगारी, निर्धनता एवं अभाव भी विद्यमान थे। अतः एक ऐसी व्यूह-रचना की आवश्यकता थी
जिससे इन समस्याओं को दूर किया जा सके। इसी बात को ध्यान में रखकर प्रथम पंचवर्षीय
योजना में अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण तथा आधारिक संरचना का निर्माण
करके
विकास के लिए मजबूत आधार तैयार करने की बात कही गयी।
2. औद्योगीकरण पर जोर (Emphasis on Industrialization)—महालनोबिस
मॉडल में तीव्र आर्थिक बिकास के लिए औद्योगीकरण पर जोर दिया गया था। इस रणनीति में
विकास को औद्योगीकरण का पर्याय मानने वाले विचार को ही स्वीकार किया गया है। अत: यह
अर्थव्यवस्था के औद्योगिक क्षेत्र के विकास एवं आधुनिकीकरण पर अधिक जोर देता है।
3. सार्वजनिक क्षेत्र पर अधिक बल (More Emphasis on Public Sector) भारत
में यद्यपि स्वतन्त्रता के पश्चात् मिश्रित अर्थव्यवस्था प्रणाली को अपनाया गया था
परन्तु सन् 1991 से पहले आर्थिक नीतियों को विशेषता निजी क्षेत्र की तुलना में सार्वजनिक
क्षेत्र को अधिक महत्व देने की थी।
4. निजी क्षेत्र का नियमित विकास (Regular Development of Trivate
Sector) — सन् 1991 से पहले की आर्थिक नीतियों में निजी क्षेत्र पर
कई प्रतिबन्ध लगाये गये। उदाहरण के लिए, औद्योगिक( विकास एवं नियमन) कानून, 1948 के
अनुसार अधिकतर उद्योगों को अपनी स्थापना के लिए लाइसेन्स लेना पड़ा था तथा पंजीकरण
कराना पड़ता था। इसी प्रकार एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार कानून, 1969 के अनुसार
उद्योगों के विकास पर कई पाबंदियाँ लगा दी गयीं।
5. विदेशी पूँजी पर प्रतिबन्ध (Restrictions on Foreign Capital)
देश में विदेशी पूँजी के प्रत्यक्ष निवेश पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगा दिये थे। विदेशी
पूँजी को नियन्त्रित करने के लिए विदेशी विनिमय नियन्त्रण कानून लागू किया गया था।
6. व्यूह-रचना के अन्य तत्व (Other Elements of Strategy)-
(i) लघु उद्योगों एवं कृषि उत्पादन वृद्धि पर जोर, (ii) सामाजिक न्याय के साथ विकास,
(iii) पिछड़े क्षेत्रों का विकास।
(2) 1991 के बाद उदारवादी विकास की व्यूह-रचना
(LIBERALISED DEVELOPMENT STRATEGY)
भारत
की आर्थिक विकास युक्ति में दीर्घकाल तक नियमन, नियन्त्रण और संरक्षण के तत्वों को
प्रधानता दी जाती रही। इस विकास युक्ति के परिणामस्वरूप उपभोक्ता वस्तु उद्योगों के
साथ माध्यमिक और पूँजीगत उद्योगों का विकास हुआ परन्तु इस विकास युक्ति के परिणामस्वरूप
अर्थव्यवस्था विश्व स्तर पर स्पर्धात्मक नहीं हो सकी। दूसरी ओर, कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं
के उदारीकरण के अनुभव सकारात्मक रहे। इन तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में भारत में 1991
से उदारीकरण की प्रक्रिया अपनायो गयी। नियमन और नियन्त्रण की युक्ति के स्थान पर उदारीकरण
पर जोर दिया गया। अत: अप्रैल, 1992 में आठवीं पंचवर्षीय योजना एक परिवर्तित परिवेश
में आरम्भ की गयी। आठवीं पंचवर्षीय योजना के प्रारूप में कहा गया कि बाजार तन्त्र
(Market. Mechanism) की बढ़ती भूमिका के कारण अब नियोजन की अपेक्षाकृत अधिक मार्गदर्शी
भूमिका होगी।
अब सरकार की व्यूह रचना पर पुनः विचार करके निम्नलिखित बिन्दुओं की
ओर विशेष ध्यान देना होगा-
1.
सरकार को अपनी आर्थिक गतिविधियों को सीमित रखना चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो, सरकारी हस्तक्षेप
शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं आदि की आपूर्ति तक ही सीमित रहना चाहिए।
2.
निजी पूँजी और उपक्रम को प्रोत्साहन दिये जाने चाहिए तथा उच्च आधुनिक तकनीक वाले क्षेत्रों
में इनके प्रवेश को उत्साहित किया जाना चाहिए।
3.
ऊपरी ढाँचे के विकास और विस्तार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
4.
सार्वजनिक क्षेत्र का और अधिक विस्तार न किया जाये बल्कि इस क्षेत्र का पुनर्गठन किया
जाये।
संक्षेप में, 1991 के बाद अपनायी गई उदारवादी विकास व्यूह-रचना की निम्नलिखित
विशेषताएँ है-
1.
नियन्त्रित व्यवस्था अर्थात् उद्योग व व्यापार के लिए लाइसेन्स के स्थान पर उदारीकरण
(Liberalisation) की नीति।
2.
सार्वजनिक क्षेत्र को संकुचित कर निजीकरण (Privatisation) की नीति।
3.
आयात और निर्यात के लिए परमिट प्रणाली के स्थान पर विश्वव्यापीकरण (Clobalisation)
की नीति।
आठवीं पंचवर्षीय योजना (Eighth Five Year Plan) आठवीं पंचवर्षीय योजना
का शुभारम्भ
1
अप्रैल, 1992 से हुआ। इस योजना में मुख्य ध्यान मानव संसाधन विकास पर दिया गया। इसी
आधारभूत उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए रोजगार सृजन, जनसंख्या नियन्त्रण, अशिक्षा,
स्वास्थ्य शिक्षा, पेयजल और पर्याप्त अन्न एवं बुनियादी ढांचे के प्रावधानों की योजना
की प्राथमिकताओं के रूप में माना गया।
आठवीं योजना की व्यूह-रचना की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार थी-
(i)
यह योजना एक दिशापरक योजना थी जिसका उद्देश्य एक भावी दीर्घकालीन कार्य-नीति का निर्माण
करना था।
(ii)
मानव विकास तथा आर्थिक संरचना को सर्वोपरि महत्व दिया गया।
(iii)
इस योजना में विकास प्रयासों का एकीकरण किया गया, ताकि विनियोग से अच्छे परिणाम प्राप्त
हो सकें।
(iv)
इस योजना में नीचे से नियोजन (Planning from Below) के सिद्धान्त को अपनाया गया।
(v)
ग्रामीण रोजगार पर विशेष बल दिया गया।
(vi)
इस योजना में निष्पादन सुधार, चेतना और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा पर जोर दिया गया।
आठवीं
पंचवर्षीय योजना में सार्वजनिक क्षेत्र में कुल ₹ 4,34,100 करोड़ व्यय किये गये। कुल
आय का सबसे अधिक भाग 26.6 प्रतिशत ऊर्जा पर व्यय किया गया। प्राथमिकता में द्वितीय
स्थान कृषि और सिंचाई को दिया गया जिस पर कुल परिव्यय का 22.2 प्रतिशत व्यय किया गया।
नौवीं पंचवर्षीय योजना (Ninth Five Year Plan) नौवीं
पंचवर्षीय योजना को विकास- रणनीति का उद्देश्य, एक तरफ 'भौतिक अधःसंरचना'
(Physical Infra-structure) का निर्माण करके उत्पादन सम्बन्धी रुकावटें तोड़ना था तो
दूसरी तरफ 'सामाजिक अधःसंरचना' (Social Infra- structure) के रूप में मानव संसाधन विकास
को प्रोन्नत करके 'सामाजिक न्याय सहित विकास' (Growth with Social Justice) के लक्ष्य
को प्राप्त करना था।
अत: नौवीं पंचवर्षीय योजना की विकास रणनीति में निम्नलिखित क्षेत्रों
पर बल दिया गया-
(i)
जनसंख्या को शिक्षा, स्वास्थ्य व पेयजल को सुविधा उपलब्ध कराने पर।
(ii)
आर्थिक आधार संरचना, जैसे-शक्ति, सड़कें, बन्दरगाहों, रेलवे, टेली नगरपालिका सेवाएँ
आदि उपलब्ध कराने पर।
(iii)
आधार संरचना, सिंचाई, ग्रामीण सड़कों, संगठित बाजारों का निर्माण और अनुसन्धान को बढ़ावा
दिया जाये।
(iv)
कृषि उत्पादों के लिए निर्यात बाजारों को खोलना।
(v)
सरकार का राजकोषीय घाटा ( केन्द्र एवं राज्य) दोनों स्तरों को एक उचित स्तर पर लाना।
उपर्युक्त
रणनीति (Strategy) को साकार रूप देने के लिए, सिंचाई सहित कृषि व ग्रामीण विकास पर
कुल परिव्यय का 21.4 प्रतिशत व्यय तथा ऊजा (Energy) जो आर्थिक विकास का इंजन है, इसलिए
इस क्षेत्र को कुल परिव्यय का लगभग 23 प्रतिशत भाग व्यय किया गया है।
दसवीं पंचवर्षीय योजना (Tenth Five Year Plan) दसवीं
पंचवर्षीय योजना की व्यूह-रचना या विकास युक्ति के मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं-
1. सरकार की भूमिका की पुनर्व्याख्या-दसर्वी
पंचवर्षीय योजना के अनुसार, नए ब्दलते आर्थिक परिप्रेक्ष्य में सरकार की भूमिका की
पुनर्व्याख्या करना जरूरी है क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में एक सक्षम व मजबूत निजी
क्षेत्र जड़ पकड़ चुका है। इसलिए अब सरकारी नीतियों का रूप बदल देना चाहिए और इन नौतियों
का उद्देश्य निजी क्षेत्र के लिए एक उचित आर्थिक वातावरण तैयार करना होना चाहिए।
परन्तु
योजना में खासतौर पर दो क्षेत्रों की चर्चा की गई है जिनमें सरकार को अहम् भूमिका बनी
रहेगी-(1) सामाजिक क्षेत्र जिसमें सरकारी भूमिका को और बढ़ाना होगा तथा (2) आधारिक
संरचना (Infrastructure) का विकास क्योंकि इसमें कई खामियाँ हैं और इन्हें भर पाना
निजी क्षेत्र के बस की बात नहीं है। योजना में आधारिक संरचना को दो हिस्सों में बाँटा
गया है-दूरसंचार, बिजली, बन्दरगाह इत्यादि जिनमें निजी क्षेत्र को और ज्यादा अवसर प्रदान
करने चाहिए तथा ग्रामीण आधारिक संरचना एवं सड़क विकास इत्यादि जिनमें सरकार को नेतृत्व
अपने हाथ में लेना होगा।
2. सामाजिक न्याय के लिए व्यूह-रचना-योजना
में उच्च आर्थिक संवृद्धि के साथ समानता और सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित
तीन-पक्षीय युक्ति अपनाने की बात की गई है-
(i)
कृषि विकास को दसवीं पंचवर्षीय योजना का मूल तत्व माना जाना चाहिए क्योंकि इस क्षेत्र
के विकास का ग्रामीण वर्ग पर सीधा व सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है।
(ii)
दसवीं पंचवर्षीय योजना की विकास युक्ति में उन क्षेत्रों का तेजी से विकास करने पर
जोर दिया गया, जिनमें रोजगार प्रदान करने की ज्यादा सम्भावनाएँ हैं।
(iii)
ऐसे विशिष्ट लक्षित वर्गों (Special Target Groups) के लिए विशिष्ट कार्यक्रम व नीतियाँ
बनाने पर जोर दिया गया है, जिन्हें सामान्य आर्थिक संवृद्धि व विकास योजनाओं से या
तो लाभ नहीं मिल पाता या यह बहुत कम लाभ मिल पाता है।
ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (Eleventh Five Year Plan) इस
योजना में अधिक तीव्र और ज्यादा समावेशी संवृद्धि' (Faster and More Inclusive
Growth) पर जोर दिया गया है। "ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना के इस व्यापक दृष्टिकोण
में कई अन्तःसम्बन्धित घटक हैं- तेज संवृद्धि जो गरीबी को कम कर सके तथा रोजगार अवसरों
का सृजन कर सके, स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में गरीब लोगों को अनिवार्य सुविधाओं
की उपलब्धि, सभी को समान अवसर, शिक्षा एवं कौशल द्वारा शक्तिकरण (Empowerment), रोजगार
अवसरों में वृद्धि (राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम से जिसे और पुख्ता
किया गया है), पर्यावरण की सुरक्षा, स्त्री-शक्ति को मान्यता तथा बेहतर अभिशासन
(Government)।"
इस व्यापक दृष्टिकोण के अनुसार, ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में जो युक्ति
अपनाई गई है, उसके मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं-
(i)
तेज आर्थिक संवृद्धि (9 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर पर) जो गरीबी को कम कर सके तथा रोजगार
के अवसरों का सृजन कर सके।
(ii)
सभी को विकास के समान अवसर।
(iii)
शिक्षा तथा कौशल विकास के माध्यम से शक्तिकरण (Empowerment)।
(iv)
स्वास्थ्य तथा शिक्षा के क्षेत्र में (खासतौर पर गरीबों के लिए) अनिवार्य सुविधाओं
की उपलब्धि।
(v)
बेहतर अनुशासन।
(vi)
स्त्री-शक्ति को मान्यता।
(vii)
पर्यावरण की दीर्घकालीन सुरक्षा ।
(viii) रोजगार के अवसरों में वृद्धि।