13. योगस्य वैशिष्ट्यम् (योग की विशेषता)
अधिगम-प्रतिफलानि
1. विद्यार्थी सरलसंस्कृतभाषया कक्षोपयोगीनि वाक्यानि वक्तुं
समर्थ अस्ति।
(विद्यार्थी सरल संस्कृत भाषा में कक्षा में उपयोगी वाक्यों
को बोलने में समर्थ होते हैं।)
2. कक्षातः बहि दैनन्दिन जीवनो-पयोगीनि वाक्यानि वदति।
(कक्षा से बाहर दिन-प्रतिदिन जीवन उपयोगी वाक्यों को बोलते
हैं)
3. पठित्वा अपठितगद्यांशं तदाधारितप्रश्नानामुत्तरप्रदाने
सक्षमः अस्ति।
(अपठित गद्यांश को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर
देने में सक्षम होते हैं।)
पाठ परिचय-
प्रस्तुत पाठ पतंजलि योग सूत्र पर आधारित है। जिसमें योगाभ्यास
के माध्यम से जीवन को संयमित बनाने के लिए शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक रूप से विशिष्ट
उपायों का उल्लेख किया गया है तथा योग के विभिन्न स्वरूपों का सलक्षण वर्णन किया गया
है। प्रस्तुत पाठ का संवाद के माध्यम से रोचक रूप में विवेचन किया गया है। पाठ में
निहित विषय वस्तु छात्रों के बहुमुखी विकास के लिए अत्यंत उपयोगी है।
पाठांश:-
(कक्षायाः दृश्यम् अद्य कक्षा विशेषरूपेण सुसज्जिता अस्ति।
भित्तिषु योगविषयस्य विविध-चित्राणि सज्जितानि सन्ति।)
स्वप्निलः - बलरामा अद्य कक्षायां कोऽपि विशिष्टः कार्यक्रमः ?
बलरामः - अरे मित्रा त्वं न जानासि ? इदानीं तु योगशिक्षायाः कालांशः।
मोहिनी - एषः तु नूतनः विषयः। किं प्रतिदिनम् ईदृशी कक्षा प्रचलिष्यति
?
बलरामः - आम्, अधुना तु अस्माकं कृते योगशिक्षा अतीव उपयोगिनी अस्ति।
सागरिका - अहो! सुखदमाश्चर्यम्। अहमपि गृहे मातुः मुखाद् योगशिक्षायाः
विषये श्रुतवती। तया उक्तम्- 'योगः स्वास्थ्यकरः।'
सागरः - किं विद्याध्ययनेऽपि अस्योपयोगः वर्तते?
मोहिनी - आम्, अस्मिन् विषये योगशिक्षकः, विशेषरूपेण वदिष्यति।
(योगशिक्षकः कक्षायां प्रविशति)
छात्रा: - नमो नमः आचार्य! स्वागतम् अत्र भवतां कक्षायाम्।
योगाचार्यः - छात्राः! भवन्तः सम्प्रति समुत्सुकाः दृश्यन्ते। काऽपि
विशिष्टा जिज्ञासा अस्ति किम्?
सागरः - भो आचार्य! वयं सर्वे योगस्य उपयोगितायाः विषये सम्यग्रूपेण
ज्ञातुम् उत्सुकाः स्मः।
पदार्थाः-
भित्तिषु = दीवारों पर
कोऽपि = कोई भी
इदानीम् = इस समय
कालांश = समय का भाग (पढ़ाई का एक पीरियड)
नूतनः = नया
ईदृशी = इस प्रकार
अधुना = अब
अतीव = बहुत
उपयोगिनी = उपयोगी (काम में आने वाली)
उक्तम् = कहा हुआ
प्रविशति = प्रवेश करता है
सम्प्रति = इस समय
दृश्यन्ते = दिखाई दे रहे हैं
विशिष्टा = विशेष
जिज्ञासा = जानने की इच्छा
सम्यग्रूपेण = अच्छी तरह से
ज्ञातुम् = जानने के लिए
व्याकरणकार्यम् -
कोऽपि = कः + अपि (विसर्ग सन्धि)
इदानीम् = अव्ययं
प्रचलिष्यति = प्र उपसर्ग, चल् धातु, लृट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
सुखदमाश्चर्यम् = सुखदम् + आश्चर्यम् (संयोग)
अहमऽपि = अहम् + अपि (संयोग)
मातुः = मातृ (माता) शब्द, पंचमी और षष्ठी विभक्ति, एकवचन
उपयोगिनी = उप + युज् + घिनण् (स्त्रीलिंग)
उक्तम् = वच् + क्त (वच् धातु, क्त प्रत्यय)
श्रुतवती = श्रु + क्तवतु, श्रु धातु, क्तवतु प्रत्यय
विद्याध्ययनेऽपि = विद्याध्ययने + अपि
अस्योपयोगः = अस्य + उपयोगः (गुण सन्धि)
वदिष्यति = वद् धातु, लृट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
स्वागतम् = सु + आ + गम् + क्त
सम्यग्रूपेण = सम्यक् + रुपेण (व्जंजन संधि)
ज्ञातुम् = ज्ञा + तुमुन्, ज्ञा धातु, तुमुन् प्रत्यय
अनुवादः/ भावार्थ:-
(कक्षा का दृश्य है- आज कक्षा विशेष रूप से सजी हुई है। दीवारों
में योग विषय के विभिन्न चित्र सजे हुए हैं।)
स्वप्निल - बलराम! क्या आज कक्षा में कोई विशेष कार्यक्रम है?
बलराम अरे मित्र! क्या तुम नहीं जानते हो? इस समय तो योग शिक्षा
का कालांश (पीरियड) है।
मोहिनी - यह तो नया विषय है। क्या प्रतिदिन इस तरह की कक्षा चलेगी?
बलराम - हां, इस समय तो हमारे लिए योग की शिक्षा बहुत उपयोगी है।
सागरिका - अरे वाह। यह तो बड़ा ही सुखद आश्चर्य है। मैं भी घर में
माताजी के मुख से योग की शिक्षा के विषय में सुना है। उसने कहा- योग स्वास्थ्यकर है।
(स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है)
सागर क्या विद्या अध्ययन में भी इसका उपयोग है?
मोहिनी हां, इस विषय में योग शिक्षक विशेष रूप से बताएंगे।
(योग शिक्षक कक्षा में प्रवेश करते हैं)
छात्रा नमो नमः (प्रणाम) आचार्य! यहां कक्षा में आपका स्वागत है।
योगाचार्य - छात्राओं (विद्यार्थियों)। आप लोग
इस समय बड़े उत्सुक दिखाई दे रहे हैं। क्या कोई विशेष जिज्ञासा
(जानने की इच्छा) है?
सागर हे अचार्य! हम सभी योग की उपयोगिता के विषय में अच्छी तरह
से जानने के लिए उत्सुक हैं।
पाठांशाधारिताः प्रश्नाः-
1. एकपदेन उत्तरत-
क. योगसूत्र कः विरचितः?
उत्तर-
पतञजलिः
ख. भित्तिषु कस्य विविध सज्जितानि सन्ति? चित्राणि
उत्तर-
योगविषयस्य
ग. किम् स्वास्थ्यकरः?
उत्तर-
योगः
घ. कक्षायां कः प्रविशति?
उत्तर-
योग शिक्षकः
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
क. अधुना तु अस्माकं कृते किम् अतीव उपयोगिनी
अस्ति?
उत्तर-
अधुना तु अस्माकं कृते योगशिक्षा अतीव उपयोगिनी अस्ति।
ख. योगशिक्षकः कक्षायां प्रविशति तदा छात्राः किम्
वदन्ति?
उत्तर-
छात्रा वदन्ति यत्- नमो नमः आचार्य! स्वागतम् अत्र भवतां कक्षायाम्।
3. बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः
1. 'श्रुतवती 'इति पदे कः प्रत्यय?
क. क्तवतु
ख. क्त
ग. क्त्वा
घ. शतृ
ii. 'मातुः' इति पदे का विभक्तिः?
क. प्रथम
ख. तृतीया
ग. षष्ठी
घ. सप्तमी
iii. 'योगः स्वास्थ्यकरः' इति पदे कः विशेषणः?
क.
चतुरः
ख. स्वास्थ्यकरः
ग.
सुन्दरः
घ.
उत्तमं
iv. 'ज्ञातुम्' इति पदे कःधातुः?
क.
गम्
ख. पठ्
ग.ज्ञा
घ.
अस्
पाठांश:-
योगाचार्यः प्रियच्छात्राः। किं भवन्तः
जानन्ति यत् योगशास्त्रे शरीरस्य मनसः च
नियमनं
प्रतिपादितं वर्तते। अस्य ज्ञानेन अभ्यासेन च भवन्तः स्वाध्यायेऽपि एकाग्रतां वर्धयितुम्
सक्षमाः भविष्यन्ति।
मनीषः अस्माभिः समाचारपत्रेषु पठितम्
यत् विश्वेऽपि योगदिवसः सोत्साहम् मान्यते।
योगाचार्यः साधूक्तम्। जूनमासस्य एकविंशति
तमः दिवसः तु अन्ताराष्ट्रिययोगदिवसरूपेण सर्वत्र मान्यते।
मोहिनी आचार्य! सम्प्रति वयं योगविषये सविस्तरं ज्ञातुम् इच्छामः।
(योगाचार्यः पाठमाध्यमेन योगशिक्षां शिक्षयति)
योगाचार्यः - प्रियच्छात्राः ध्यानेन शृणुत।
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।
मोहनः - चित्तवृत्तिनिरोधः। अथ किं तात्पर्यम् अस्य ?
योगाचार्यः चित्तवृत्तीनां भेदः लक्षणम् प्रथमं, ततः विस्तरेण बोधयामि
'प्रमाणविपर्य यविकल्पनिद्रास्मृतयः' इति
प्रमाणम् अर्थात् प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि।
विपर्यस्तः अर्थात् विपर्ययो मिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठम् ।
विकल्पः- अर्थात् शब्दज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः।
निद्रा - अभावप्रत्ययालम्बनावृत्तिर्निद्रा।
स्मृतिः - अनुभूतविषयासम्प्रमोषः स्मृतिः।
(एतत् सर्वं श्यामपट्टे योगाचार्यः लिखति अवबोधयति च, छात्राः
च प्रसन्नमनसा अवगच्छन्ति, स्वपुस्तिकासु चाऽपि लिखन्ति)
पदार्थाः-
प्रियच्छात्राः - प्रिय छात्र
वर्धयितुम्- बढ़ाने के लिए
विश्वेऽपि - विश्व में भी
सोत्साहम् - उत्साह के साथ
चित्तवृत्ति - मन की चंचलता
निरोधः - रुकावट
विपर्ययः - विपरीत ज्ञान
प्रत्ययः - ज्ञान
विकल्पः - शब्द ज्ञान से रहित
निद्राः - अभाव जन्य ज्ञान आश्रित वृत्ति
स्मृतिः - अनुभवजन्य प्रत्यक्षीकरण
अवबोधयति - समझाते हैं
अवगच्छन्ति - जानते हैं
व्याकरणकार्यम्-
प्रियछात्राः - (प्रिय + छात्राः, तुक्)
चित्तवृत्तिः - चित्तस्य वृत्ति (षष्ठी तत्पुरुष)
भविष्यन्ति - भू धातु, लृट् लकार
पठितम् - पठ् धातु, क्त प्रत्यय, नपुंसकलिंग
विश्वेऽपि - विश्वे + अपि (पूर्वरुप सन्धि)
श्रृणुत - श्रु धातु, लोट लकार, मध्यम् पुरुष बहुवचन
निरोधः – (नि + रुध् + घञ्) नि उपसर्ग, रुध् धातु घञ् प्रत्यय
विपर्ययः - वि + परि + इ + अच्
प्रत्ययः - प्रति + अयः, प्रति + इ + अच्
अवगच्छन्ति - अव उपसर्ग, गम् धातु, लट् लकार, प्रथम पुरुष, बहुवचन
स्वपुस्तिकासु - सप्तमी विभक्ति बहुवचन
चापिः - च + अपि (दीर्घ सन्धि)
अनुवादः/ भावार्थ:-
योगाचार्य- मेरे छात्रों (विद्यार्थियों) ! क्या आप लोग जानते हैं
कि योग शास्त्र में शरीर और मन की नियम को प्रतिपादित किया गया है (बताया गया है)।
इसके ज्ञान और अभ्यास से आप लोग अपने स्वाध्याय में भी एकाग्रता बढ़ाने के लिए सक्षम
होंगे (हो सकते हैं)।
मनीष - हम लोगों ने भी समाचार पत्रों में पढ़ें हैं कि विश्व में
भी योग दिवस बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
योगाचार्य - सही कहा है। जून महीने के 21 तारीख को तो अंतरराष्ट्रीय
(पूरे विश्व में) योग दिवस के रूप में सभी जगह मनाया जाता है।
मोहिनी हे आचार्य! इस समय हम सब योग के विषय में विस्तार से जानना
चाहते हैं। (योगाचार्य (योग शिक्षक) पाठ के माध्यम से योग शिक्षा को पढ़ाते हैं (शिक्षा
देते हैं)।
योगाचार्य - प्रिय छात्रों ध्यान से सुनो।
चित्त (मन) की (वृत्ति) चंचलता का
(निरोध) रोकना ही योग है।
मोहन चित्त वृत्ति का निरोध इसका क्या तात्पर्य है?
योगाचार्य - पहले हम लोग चित्तवृत्ति के भेद और लक्षण को जानते हैं उसके
बाद विस्तार से बताऊंगा-
अ- चित्तवृत्ति निरोध के भेद और लक्षण
1. प्रमाण
क- प्रत्यक्ष प्रमाण
ख- अनुमान प्रमाण
ग- आगम प्रमाण
2. विपर्यय
3. विकल्प
4. निद्रा
5. स्मृति
प्रमाण, विपर्यय, विकल्प, निन्दा और स्मृति, इस तरह से
प्रमाण अर्थात् ये जो प्रमाण है। प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम प्रमाण
है।
प्रत्यक्ष प्रमाण- पांचों ज्ञान इन्द्रियों (आंख,
कान, नाक, जीभ और त्वचा) के सामने,
या ज्ञान इन्द्रियों के द्वारा जो खुद से देखा है, वही प्रत्यक्ष प्रमाण है।
अनुमान - जो अनुमान के द्वारा प्रमाण मानते हैं। जैसे धुआं देखकर
आग का अनुमान लगा लेते हैं।
आगम आप्त वाक्य अर्थात् महापुरुषों के वाक्य को आगम प्रमाण मानते
हैं। बड़े लोगों के शब्द ज्ञान को आगम प्रमाण मांगते हैं।
जैसे श्री कृष्ण के उपदेश को गीता ज्ञान मान लेते हैं यह
आगम प्रमाण है।
विपर्यय अर्थात भ्रम। जो मिथ्या ज्ञान है,
जो सचमुच में नहीं है, वही विपर्यय
है। जैसे रस्सी को देखकर सांप समझना, ये विपर्यय है।
विकल्प - अर्थात् शब्द ज्ञान। वस्तु शून्य ज्ञान को विकल्प कहते
हैं। जैसे शीतल अग्नि शब्द सुनकर हमें शब्द का तो ज्ञान हुआ पर वस्तु शून्य हैं क्योंकि
अग्नि शीतल नहीं होती है।
निद्रा ज्ञान के अभाव का आश्रय लेना ही निंद्रा है अर्थात् अज्ञानता
रूपी नींद में रहना जो ज्ञानरूपी नहीं जगा है।
स्मृति - अर्थात् याद। अनुभव किए गए याद को न भूलना ही स्मृति कहा
जाता है।
(यह सब योगाचार्य श्यामपट्ट में लिखते हैं और समझाते हैं
और छात्र प्रसन्न (खुशी) मन से जानते हैं और अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखते हैं।
पाठांशाधारिता : प्रश्नाः-
1. एकपदेन उत्तरत-
क. योगशास्त्रे कस्य मनसः च नियमनं प्रतिपादितं
वर्त्तते?
उत्तर
- शरीरस्य
ख. विश्वे जूनमासस्य एकविंशति तमः किं सोत्साहम्
मान्यते?
उत्तर
- योगदिवसः
ग. योगशिक्षां कः शिक्षयति?
उत्तर
- योगाचार्यः
घ. छात्राः प्रसन्नमनसा कासु लिखन्ति?
उत्तर
- स्वपुस्तिकासु
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
क. छात्राः केन प्रकारेण स्वाध्याये एकाग्रतां
वर्धयितुं सक्षमाः भविष्यन्ति?
उत्तर
- छात्राः योगस्य ज्ञानेन अभ्यासेन च स्वाध्याये एकाग्रतां वर्धयितुम् सक्षमाः भविष्यन्ति।
ख. अन्ताराष्ट्रिययोगदिवसः कदा मान्यते?
उत्तर
- अन्ताराष्ट्रिययोगदिवसः जूनमासस्य एकविंशति तमः मान्यते।
3. बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः-
i. 'श्रृणुत' इति पदे कः लकारः?
क. लट्
ख. लोट्
ग. लृट्
घ. लङ्
ii. 'वर्धयितुम्' इति पदे कः प्रत्ययः?
क.
क्त
ख.
अनीयू
ग.
ल्यप्
घ. तुमुन्
iii. 'अवगच्छन्ति' इति पदे कः उपसर्गः?
क.
अनु
ख.
अप
ग. अव
घ.
अधि
iv. 'चित्तवृत्तिनां' इति पदे का विभक्तिः?
क.
तृतीया
ख.
चतुर्थी
ग.
पंचमी
घ. षष्ठी
पाठांश:-
सागरः आचार्य! अन्यदपि ज्ञातुमुत्सुकाः वयं विस्तरेण।
योगाचार्यः -अधुना योगाङ्गानां नामानि लक्षणानि चावबोधयामि
'यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहार-
धारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि'
सागरिका - कः तात्पर्यः अस्य एतादृशस्य
दीर्घवाक्यस्य ?
किञ्चिदपि
नावगम्यते ....
योगाचार्यः अलं चिन्तया, एकैकं कृत्वा
बोधयामि ।
यमः अहिंसासत्यास्तेयब्रहम्चर्यापरिग्रहाः
यमाः।
नियमः शौचसन्तोषतपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि
नियमाः।
आसनम् - स्थिरसुखमासनम्।
प्राणायामः तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः
प्राणायामः।
प्रत्याहारः स्वविषयसम्प्रयोगे चित्तस्वरूपानुकार
इवेन्द्रियाणां प्रत्याहारः।
धारणा देशबन्धश्चित्तस्य धारणा।
ध्यानम् तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्।
समाधिः तदेवार्थमात्र निर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधिः एतत्सर्वमपि
योगाचार्यः श्यामपट्टे लिखित्वा बोधयति छात्राश्च स्वस्वपुस्तिकासु लिखन्ति, अवबुध्यन्ति
च।
स्वप्निलः - आचार्य! योगाङ्गानां नामानि तु अस्माभिः सुष्ठु ज्ञातानि
अवबुद्धानि चाऽपि।
साम्प्रतं योगाङ्गानां फलमपि ज्ञातुं महती उत्कण्ठा वर्तते।
योगाचार्यः आम् आम् तदपि बोधयामि। शृण्वन्तु, लिखन्तु, अवबुध्यन्तु
च तावत्
यमः
अहिंसा अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः।
सत्यम् - सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलाश्रयत्वम्।
अस्तेयम् अस्तेयप्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानम्।
ब्रह्मचर्यम् - ब्रह्मचर्यप्रतिष्ठायां वीर्यलाभः।
अपरिग्रहः अपरिग्रहस्थैर्ये जन्मकथन्तासम्बोधः।
बलरामः अतीव ज्ञानवर्धिका एषा कक्षा पुस्तकालयं गत्वाऽपि एतावत्
ज्ञानं प्राप्तुमश्क्यमासीत् यादृशम् अद्य अस्यां कक्षायां प्राप्तम्।
पदार्थाः-
अन्यदपि - दूसरा भी
एतादृशस्य - इस प्रकार के
दीर्घवाक्यस्य - लम्बे वाक्य के
किञ्चिदपि - कुछ भी
नावगम्यते - नहीं समझ में आया
यमः - नियंत्रण, संयम
नियमः - नियंत्रण (योग का एक भेद)
आसनम् - योग में बैठने का तरीका
प्राणायामः - श्वास खींचने, रोकने और निकालने की एक विशेष प्रक्रिया
प्रत्याहारः - इन्द्रियों का दमन
धारणा - चित्त को संयमित करने की शक्ति
ध्यानम् - चिन्तन, मनन
समाधिः - ब्रह्मचिन्तन में पूर्णलीनता
गत्वाऽपि - जाकर भी
एतावत् - इस तरह से (इस प्रकार से) (ऐसा)
यादृशम् - जिस प्रकार से (जैसा)
तत्सन्निधौ - उसके पास में
अहिंसा - मन, वचन और कर्म से किसी को पीड़ा न देना (हिंसा न करना)
सत्यम् - वास्तविक
अस्तेयम् - चोरी न करना
ब्रह्मचर्यम् - संयमित जीवन
अपरिग्रहः - संचयन न करना (आवश्यकता से अधिक धन जमा नहीं करना)
व्याकरणकार्यम्-
अन्यदपि - अन्यत् + अपि (व्यञ्जन संधि)
ज्ञातुमुत्सुकाः - ज्ञातुम् + उत्सुकताः (संयोग)
किञ्चिदपि - किञ्चित् + अपि (व्जंजन संधि)
नावगम्यते - न + अवगम्यते (दीर्घ सन्धि)
यमः - यम् + घञ्
आसनम् - आस् + ल्युट् (आस् धातु, ल्युट् प्रत्यय)
प्राणायामः- प्राण + आयामः (दीर्घ संधि)
प्रत्याहारः- प्रति + आह्र+घञ् (प्र और आ उपसर्ग, हृ धातु, घञ् प्रत्यय)
ध्यानम्- ध्यै+ल्युट्
समाधिः - सम्+आ+धा+कि
सत्यम्- सत्+यत्
अस्तेयम् - न स्तेयम (नञ् तत्पुरुष समास)
अपरिग्रहः- न परिग्रहः (नञ् तत्पुरुष समास
अनुवादः / भावार्थ:-
सागर - हे अचार्य! हम लोग और भी विस्तार से जानने के लिए उत्सुक
हैं (जानना चाहते हैं)।
योगाचार्य - इस समय योग के अंगों के नाम और लक्षण को समझाता हूं -
यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि
योग के आठ अंग हैं।
सागरिका क्या तात्पर्य है? इस प्रकार के लंबे वाक्य का
कुछ भी समझ में नहीं आया.........
योगाचार्य - चिंता मत करो, एक एक करके समझाता हूं।
यम - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यह यम हैं।
नियम शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान यह नियम हैं।
आसन - स्थिर मन में बैठकर (चंचल रहित) सुख का अनुभव ही आसान
है।
प्राणायाम - उस आसन में रहते हुए सांस लेना, सांस छोड़ना और सांस लेने
की गति को रोकना प्राणायाम है।
प्रत्याहार इंद्रियों के अपने अपने विषय को छोड़कर (दमन कर) मन के स्वरूप
का अनुकरण करना ही प्रत्याहार है।
धारणा मन का किसी विशेष स्थान पर बांधना धारणा है।
ध्यान - वहां पर ज्ञान को लाना अर्थात् दूसरे ज्ञान को बीच में
न लाना ही ध्यान है।
समाधि वहीं पर ज्ञान मात्र का अनुभव (आभास) हो, वहां शून्य स्वरूप
की तरह हो, वह समाधि है।
यह सब भी योगचार्य श्यामपट्ट पर लिखकर समझाते हैं और छात्र
अपने उत्तर पुस्तिका में लिखते हैं और समझते हैं।
स्वप्निल आचार्य! योग के 8 अंगों के नाम तो हमने जान लिए हैं और समझ
भी लिए हैं।
अब योग के अंगों के फल (परिणाम) भी जानने के लिए बहुत उत्सुक
हैं।
योगाचार्य - हां हां वह भी समझाता हूं सुनो, लिखो और तब तक समझो।
यमः-
अहिंसा अहिंसा की स्थिति में पूर्ण होने पर उसके समीप रहने वाले
प्राणी में भी वैर (शत्रुता) को त्याग देते हैं।
सत्य सत्य की स्थिति पूर्ण होने पर योगी की वाणी द्वारा जो अच्छे
वचन बोलते हैं अच्छा परिणाम देने वाली होती है।
अस्तेय - चोरी की भावना त्याग करने पर सभी रत्नों की प्राप्ति योगी
को हो जाती है।
ब्रह्मचर्य - ब्रह्मचर्य की स्थिति (इंद्रियों को वश में कर लेने पर)
में बल को प्राप्त कर लेता है।
अपरिग्रह अपरिग्रह (आवश्यकता
से अधिक वस्तु या धन जमा न करने) की स्थिति पूर्ण होने पर जन्म कथन प्रकरण से संबंधित
सभी प्रकार की जानकारी योगी को सिद्ध हो जाती है।
(अर्थात् योगी को भूत, भविष्य और वर्तमान में जन्म कथन प्रकरण
की जानकारी हो जाती है कि मैं भूतकाल में क्या था वर्तमान में किया हूं और भविष्य में
क्या रहूंगा।)
बलाराम यह कक्षा बहुत
ही ज्ञानवर्धक (ज्ञान बढ़ाने वाली) है पुस्तकालय जाकर भी इतना ज्ञान प्राप्त करने में
असमर्थ था जितना ज्ञान आज इस कक्षा में प्राप्त किया।
पाठांशाधारिताः प्रश्नाः-
1. एकपदेन उत्तरत-
क. आसनम् किम् अस्ति?
उत्तर - स्थिरसुखमासनम्
ख. सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलाश्रयत्वम् किम्
आशयः?
उत्तर - सत्यम्
ग. तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः
किम् आशयः?
उत्तर - प्राणायामः
घ. अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहाः किम्
आशयः?
उत्तर - यमः
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
क. ध्यानम् किम् अस्ति?
उत्तर - तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्।
ख. 'समाधिः' इति पदस्य आशयः किम् ?
उत्तर - तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरुपशून्यमिव समाधिः।
3. बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः-
i. 'लिखित्वा' इति पदे कः प्रत्ययः
क. क्त
ख. क्त्वा
ग. शतृ
घ. तुमुन्
ii. 'योगाङ्गानां' इति पदे का विभक्तिः?
क. द्वितीया
ख. तृतीया
ग. षष्ठी
घ. सप्तमी
iii. 'अद्य' इति पदस्य विलोमपदं किम् अस्ति?
क. श्वः
ख. अधुना
ग. एकदा
घ. सहसा
iv. 'अवबुध्यन्तु' इति पदे कः उपसर्गः?
ख. उप
ख. अभि
ग. अव
घ. अनु
पाठांश:-
नियमः
शौचम् - शौचात्स्वाङ्गजुगुप्सा परैरसंसर्गः। सत्त्वशुद्धिसौमनस्य
ऐका ग्रेन्द्रियजयात् आत्मदर्शनयोग्यत्वानि च।
सन्तोषः - सन्तोषादनुत्तमसुखलाभः।
तपः कार्येन्द्रियसिद्धिः अशुद्धिाक्षयात्तपः।
स्वाध्यायः - स्वाध्यायादिष्टदेवतासम्प्रयोगः।
ईश्वरप्रणिधानम् समाधिसिद्धिरीश्वरप्रणिधानात्।
(तदैव घण्टावादनम् भवति)
सर्वे छात्राः आचार्य! कृपया आसन-प्राणायामेत्यादिकं स्पष्टीकृत्य एव कक्षा
समापयतु। अर्ध मा त्यजतु।
योगाचार्यः - आम् आम् बोधयामि अग्रे अपि।
आसनम् - ततो द्वन्द्वानभिघातः
प्राणायामः ततः क्षीयते प्रकाशावरणम्। धारणासु च योग्यता मनसः।
प्रत्याहारः - ततः परमावश्यतेन्द्रियाणाम्।
धारणा ध्यान-समाधिः- त्रयमेकत्र संयमः। तज्जयात्प्रज्ञालोकः।
योगाचार्यः - शोभनम्। श्वः प्रायोगिक व्यवहारं करिष्यामः, येन भवन्तः
यमनियमेत्यादीनां प्रत्यक्षमनुभवं विधास्यन्ति।
(एवं कथयित्वा कक्षातः प्रस्थानं करोति आचार्यः। छात्राः
अपि हृष्टमनसा परस्परं योगचर्चा कुर्वाणः सन्ति।)
पदार्थाः-
शौचम् - शुद्धि, पवित्रता
जुगुप्सा - घृणा
सन्तोषः - संतुष्टि
स्पष्टीकृत्य - स्पष्ट कर
समापयतु - समाप्त कीजिए
अर्धे - आधे में
त्यजतु - छोड़ दीजिए
क्षीयते - नष्ट हो जाता है
प्रज्ञा - बुद्धि
विधास्यन्ति - करेंगे
कथयित्वा - कहकर
हृष्टमनसा - प्रसन्न (खुशी) मन से
कुर्वाणः - करते हुए
व्याकरणकार्यम् -
शौचम् - शुच् + घञ्
जुगुप्सा - गुप् + सन् + अ + टाप्
सन्तोषः - सम् + तोषः (संयोग)
सम् - तुष् + घञ्
त्यजतु - त्यज् धातु, लोट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन
कथयित्वा - कथ् धातु, क्त्त्वा प्रत्यय
अनुवादः / भावार्थ:-
नियम-
शौच - शारीरिक और मानसिक शुद्धि। शौच के नियम से शुद्ध होने पर
योगी अपने अंगों से घृणा करता है और उसी तरह से दूसरों के शरीर से भी संसर्ग करने से
अनासक्ति कर लेता है और योगी यह मान लेता है कि यह शरीर का घर है। शौच की अवस्था प्राप्त
कर लेने पर व्यक्ति की बुद्धि निर्मल हो जाती है उसमें प्रसन्नता का भाव आ जाता है,
एकाग्रता आती है और इंद्रियों को जीत लेता है और आत्म दर्शन की क्षमता उसमें आ जाती
है और अपने आप को पहचान लेता है कि मैं क्या हूं।
सन्तोष - संतोष का अर्थ है संतुष्टि। व्यक्ति के पास जो कुछ भी है,
उसी में वह प्रसन्न रहना सीख जाता है, और व्यक्ति में संतुष्टि का भाव आ जाता है और
वह सुख को प्राप्त कर लेता है।
तप - अशुद्धियों का नाश होने पर योगी को तप की अवस्था प्राप्त
होती है। उससे इंद्रियों की सिद्धि हो जाती है और योगी को द्वंद-अद्वन्द सहने की क्षमता
हो जाती है। (सुख-दुःख, सर्दी गर्मी आदि को समान मानकर सहन करने की क्षमता आ जाती है)।
स्वाध्याय - स्वाध्याय का अर्थ है- वेदों का अध्ययन, ग्रंथों का अध्ययन। स्वाध्याय से ईष्ट देवता के साथ व्यक्ति का सानिध्य (योग) हो जाता है।
ईश्वरप्रणिधान- ईश्वरप्रणिधान का
अर्थ है- अपने आप को ईश्वर के अधीन अर्पण कर देना।
अपने आपको ईश्वर के अधीन समर्पित कर देने से योग की अंतिम
अवस्था योगी को समाधि व्यवस्था सिद्ध हो जाती है।
(तभी घंटी बजती है)
सभी छात्र - आचार्य! आसन, प्राणायाम आदि को भी स्पष्ट करके ही कक्षा का
समापन (समाप्त) करें।
योगाचार्य - हां हां आगे भी समझाता हूं।
आसन - आसन की अवस्था प्राप्त कर लेने पर व्यक्ति में द्वन्दों
को सहन करने की क्षमता हो जाती है। (सभी को समान मानते हैं, किसी को बता नहीं मानते
हैं)।
प्राणायाम - प्राणायाम की अवस्था प्राप्त कर लेने पर प्रकाश का जो आवरण
है उससे अज्ञान का नाश हो जाता है और धारणाओं में रम जाता है, कहीं भटकता नहीं है।
प्रत्याहार - जब प्रत्याहार की अवस्था प्राप्त हो जाती है तो उसके बाद
व्यक्ति की इन्द्रियां अपने वश में हो जाती है। (अर्थात् इन्द्रियों को व्यक्ति अपने
वश में कर लेता है।)
धारणा - धारणा, ध्यान और समाधि तीनों के मिलने पर संयम उत्पन्न होता
है। यह तीनों के जीत लेने पर व्यक्ति की बुद्धि प्रकाशित हो जाती है।
योगाचार्य - ठीक है। कल हम लोग इसका प्रायोगिक व्यवहार करेंगे। जिससे
प्रत्यक्ष रूप से यम, नियम आदि का अनुभव हो जाएगा। (जान जाएंगे)
(इतना कहकर कक्षा से आचार्य चले जाते हैं। और छात्र भी प्रसन्न
मन से आपस में योग की चर्चा करते हैं।)
पाठांधारिताः प्रश्नाः-
1. एकपदेन उत्तरत-
क. 'अर्धे मा त्यजतु' इति के वदन्ति?
उत्तर- छात्राः
ख. कक्षातः कः प्रस्थानं करोति?
उत्तर- आचार्यः
ग. छात्राः कदा योगासनस्य प्रायोगिकं व्यवहारं
करिष्यन्तिः?
उत्तर- श्वः
घ. कः हृष्टमनसा परस्परं योगचर्चा कुर्वाणः
सन्ति?
उत्तर- छात्राः
2. पूर्णवाक्येन उत्तरत-
क. तपः कः कथ्यते?
उत्तर- कार्येन्द्रियसिद्धिः अशुद्धिअक्षयां
तपः कथ्यते।
ख. ईश्वरप्रणिधानम् कः कथ्यते?
उत्तर- समाधिसिद्धिरं ईश्वरप्रणिधानम्
कथ्यते।
3. बहुविकल्पीयाः प्रश्नाः-
i. 'तदैव' इति पदस्य संधि-विच्छेदं किम् अस्ति?
क. त + दैव
ख. तथा + एव
ग. तद् + देव
घ. तत् + एव
ii. 'सन्तोषः' इति पदे कः प्रत्ययः?
क. क्त्वा
ख. तुमुन्
ग. घञ्
घ. शान्त
iii. 'अपरिग्रहः' इति पदस्य विलोमपदं किम्
अस्ति?
उत्तर — परिग्रहः।
iv. 'सन्ति' इति पदे कः धातुः अस्ति?
उत्तर - अस् धातुः → लट् लकारे प्रथमपुरुषबहुवचनरूपम्
अभ्यास :
(1) अधोलिखितप्रश्नानां उत्तराणि संस्कृतेन लिखत ।
(क) योगः कः कथ्यते ?
उत्तर
- चित्तवृत्तिनां निरोधः योगः कथ्यते ।
(ख) मातुः मुखाद् योगशिक्षायाः विषये का श्रुतवती ?
उत्तर
- मातुः मुखाद् योगशिक्षाया: विषये सागरिका: श्रुतवती ।
(ग) छात्राः कस्मिन् विषये ज्ञातुम् उत्सकाः सन्ति ।
उत्तर
- छात्रा: योग्यस्य उपयोगिता: विषये ज्ञातुम उत्सकाः सन्ति ।
(घ) प्रमाणानि कानि ?
उत्तर
- प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रभामानि सन्ति ।
(ङ) स्मृतिः का कथ्यते ?
उत्तर
- अनुभूतविषयासम्रमोषः स्मृतिः कथ्यते ।
(च) निद्रा का भवति ?
उत्तर
- अभावप्रत्ययालम्बनावृतिः निद्रा भवति ।
(छ ) योगाङ्गानि कानि ?
उत्तर
- यमः , नियमः , आसनम् ,प्रणायामः , प्रत्याहारः , धारणा, ध्यानम्, समाधिः, अष्टं,
योगङ्गानि ।
या -' यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहार - धारणा - ध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि
'।
(ज) अहिंसा का कथ्यते ?
उत्तर
- वैरत्याग: अहिंसा कथ्यते ।
(झ) अपरिग्रहः कः भवति ?
उत्तर
- जन्मकथन्तासम्बोधः अपरिग्रहः कथयति ।
(ञ) के नियमाः ?
उत्तर
- शौचम् , सन्तोष:, तपः, स्वाध्यायः, ईश्वरप्रणिधानम् , नियमः ।
(2) वाक्यांशानम् आशयं स्पष्टीकुरुत ।
(क ) स्थिरसुखमासनम् ।
उत्तर
- प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक शाश्वती भाग दो के त्रयोदशः पाठः योगस्य वैशिष्ट्यम
से लिया गया है। यह पाठ पतञ्जलि रचित योगसूत्र पर आधारित है । जिसमें योगाभ्यास के
माध्यम से जीवन को संयमित बनाने के लिए शारीरिक , मानसिक एवं बौद्धिक रूप से विशिष्ट
उपायों का उल्लेख किया गया है इस पंक्ति से यह आशय स्पष्ट प्रतीत होता है कि आसन्
( बैठना) आस् धातु और ल्युट् प्रत्यय से बना है। आसनम् का अर्थ योग में बैठने का ढंग
ही आसन कहलाता है । स्थिरता पूर्वक बैठकर सुख का अनुभव प्राप्त होना ही आसन कहा जाता
है।
(ख) देशबन्धश्चितस्य धारणा ।
उत्तर
- मन को किसी देश विशेष में बाँधना ही धारणा कहलाता है ।
( ग ) ब्रह्मचर्यप्रतिष्ठायां वीर्यलाभः
उत्तर
- ब्रहमचर्य का अर्थ संयमित जीवन होता है । ब्रह्मचर्य की सिद्धि होने पर बल की प्राप्ति
होती है, और इन्द्रियों पर काबू पाना ही सिद्धि है।
(घ) सन्रोषादनुत्तम: सुखलाभः ।
उत्तर
- सम् उपसर्ग तुष् धातु और घञ् प्रत्यय से बना शब्द संतोषः का अर्थ संतुष्टि या तृष्णारहित
होना होता है। संतोष करने से अनुत्तम या सर्वोत्तम सुख का लाभ होता है।
(ङ) स्वाध्यादिष्टदेवतासम्प्रयोग: ।
उत्तर
- स्वाध्याय के सिद्ध होने से योगी परमात्मा / ईश्वर से जुड़ जाता है।
(3) ' अ ' स्तम्भस्य वाक्यांशै: सह ' ब ' स्तम्भस्य वाक्यांशान् मेलभत्
।
' अ ' ' ब '
क . शब्दज्ञानुपाती = विकल्प:
ख . स्थिरसुखम् = आसनम्
ग . देशबन्ध चितस्य = धारणा
घ . अस्तेयप्रतिष्ठायाम् = वीर्यलाभः
ङ . प्रत्येकतानया = ध्यानम्
(4) रिक्तस्थानानां पूर्ति कुरुत ।
क
. योगशास्त्रे शरीरस्य मनसः नियनमं प्रतिपादनं
वर्त्तते ।
ख
. अन्तराष्ट्रिययोगदिवसः जूनमासस्य एकविंशति तमे दिवसे
मन्यते ।
ग.
शौचसन्तोषतपः स्वाध्यायेइश्वर प्राणिधानानि नियमा:
घ
. सत्यप्रतिष्ठायां क्रियाफलाश्रयत्वम् ।
ङ
. विपर्ययो मिथ्या ज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठम् ।
(5) अधोलिखितानां संधिं विच्छेदं वा कुरुत
क . स्वागतम् = सु + आगतम्
ख . कालांश = काल + अंश:
ग . अति + झ्व = अतीव
घ . विदाध्ययनेऽपि = विद्या + अध्ययने
+ अपि
ड . सन उत्साहम् = सोत्साहम्
च . सम्यगूपेण = सम्यक्
+ रुपेण
छ . सन्निधि = सम्
+ निधिः
(6) अधोलिखितपदानां मूलशब्दं , विभक्तिं , वचनं , लिङ्गम् च लिखत ।
पदानि मूलशब्दः
विभक्तिः वचनम् लिङ्गम्
(क) अस्माकम् अस्मद्
षष्ठी बहुवचन त्रिषुलिंग
(ख) मनसः मनस् पंचमी,षष्ठी एकवचन नपुंसक
(ग) चिन्तया चिन्ता तृतीया एकवचन स्त्रीलिंग
(घ) अङ्गानि अङ्ग प्र० द्वि० बहुवचन नपुंसक
(ङ) तस्मिन् तद् सप्तमी एकवचन पु०/ नपु०
(च) महती महत प्रथमा एकवचन स्त्रीलिंग
(छ) प्रतिष्ठायाम् प्रतिष्ठा सप्तमी एकवचन स्त्रीलिंग
JCERT/JAC REFERENCE BOOK
विषय सूची
अध्याय-1 विद्ययामृतमश्नुते (विद्या से अमृतत्व की प्राप्ति होती है)
अध्याय-5 शुकनासोपदेशः (शुकनास का उपदेश)
अध्याय-7 विक्रमस्यौदार्यम् (विक्रम की उदारता)
अध्याय-9 कार्यं वा साधयेयं, देहं वा पातयेयम् (कार्य सिद्धकरूँगा या देह त्याग दूँगा)
अध्याय-11 उद्भिज्ज परिषद् (वृक्षों की सभा)
अध्याय-12 किन्तोः कुटिलता (किन्तु शब्द की कुटिलता)
अध्याय-13 योगस्य वैशिष्ट्यम् (योग की विशेषता)
अध्याय-14 कथं शब्दानुशासनम् कर्तव्यम् (शब्दों का अनुशासन(प्रयोग) कैसे करना चाहिए)
JCERT/JAC प्रश्न बैंक - सह - उत्तर पुस्तक (Question Bank-Cum-Answer Book)
विषयानुक्रमणिका
क्रम. | पाठ का नाम |
प्रथमः पाठः | |
द्वितीयः पाठः | |
तृतीयः पाठः | |
चतुर्थः पाठः | |
पंचमः पाठः | |
षष्ठः पाठः | |
सप्तमः पाठः | |
अष्टमः पाठः | |
नवमः पाठः | |
दशमः पाठः | |
एकादशः पाठः | |
द्वादशः पाठः | |
त्रयोदशः पाठः | |
चतुर्दशः पाठः | |